हमारे अक़ीदे

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हमारे अक़ीदे लेखक:
: मौलाना सैय्यद क़मर ग़ाज़ी जैदी
कैटिगिरी: विभिन्न

हमारे अक़ीदे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: आयतुल्लाह नासिर मकारिम शीराज़ी साहब
: मौलाना सैय्यद क़मर ग़ाज़ी जैदी
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लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

इन्तेज़ार 1

जब काले बादल सूरज के तेजस्वी चेहरे को छिपा दें ,दश्त व जंगल सूरज की चरण स्पर्श से वंचित हो जायें और पेड़ पौधे व फल फूल उस सूरज की मुहब्बत की दूरी से बेजान हो जायें तो उस वक़्त क्या किया जाये ?जब अच्छाईयों का मुजस्समा और खुबसूरतियों का आइना अपने चेहरे पर ग़ैबत की नकाब ड़ाल ले और इस दुनिया में रहने वाले उसके लाभ से वंचित हो जायें तो क्या करना चाहिए ?

चमन के फूलों को इंतेज़ार है कि मेहरबान बाग़बान उनको देखता रहे और वह उसकी मुहब्बत भरी बातों से जीवन अमृत पियें। दिल में शौक़ व उमंग है और आँखें बेताब हैं कि किसी तरह जल्दी से जल्दी उस के नूरानी चेहरे की ज़ियारत हो जाये। यहीँ से इंतेज़ार का अर्थ व मअना समझ में आते हैं। जी हाँ ! सभी इंतेज़ार कर रहें हैं कि वह आयें और अपने साथ ख़ुशियों का तोहफ़ा ले कर आयें।

वास्तव में यह इन्तेज़ार कितना दिलकश ,खुबसूरत ,हसीन व मिठास से भरा हुआ है ! अगर इस की खुबसूरती को नज़र में रखा जाये और इस के मिठास को दिल की गहराईयों से चखा जाये ,तो यह बात समझ में आ सकती है।

इन्तेज़ार की हक़ीक़त और उसकी महत्ता

इन्तेज़ार के विभिन्न अर्थ व मअनी वर्णन किये गए हैं ,लेकिन इस शब्द पर गौर व फिक्र के ज़रिये इसके अर्थ की वास्तविक्ता तक पहुँचा जा सकता है। इन्तेज़ार का अर्त किसी के लिए आँखे बिछाना है। यह इन्तेज़ार शर्तें पूरी करने व रास्ता तैयार करने के लिहाज़ से महत्व पैदा करता है और इस से बहुत से नतीजे ज़ाहिर होते हैं। इन्तेज़ार सिर्फ़ रुह से संबंधित और आंतरिक हालत का नाम नहीं है ,बल्कि यह एक ऐसी हालत होती है जो अन्दर से बाहर की तरफ़ असर करती है और इस के नतीजे में इंसान अपने अन्दर के एहसास के अनुसार काम करता है। इसी वजह से रिवायतों में इन्तेज़ार को एक बेहतरीन अमल बल्कि तमाम आमाल में बेहतरीन अमल की शक्ल में याद किया गया है। इन्तेज़ार ,इन्तेज़ार करने वाले को एक हैसियत देता है और उसके कामों व कोशिशों की एक खास तरफ़ हिदायत करता है। इन्तेज़ार वह रास्ता है जो उसी चीज़ पर जा कर खत्म होता है जिस का इंसान को इन्तेज़ार होता है।

अतः इन्तेज़ार का अर्थ हाथ पर हाथ रख कर बैठना नही है ,इंसान दरवाज़े पर आँखें जमाए रखे और हसरत लिए बैठा रहे ,इसे इन्तेज़ार नहीं कहते ,बल्कि हक़ीक़त तो यह है कि इन्तेज़ार में ख़ुशी ,शौक व जज़्बा छुपा होता है।

जो लोग किसी अपने महबूब मेहमान का इन्तेज़ार करते हैं ,वह ख़ुद को और अपने चारों ओर मौजूद चीज़ों को उस मेहमान के लिए तैयार करते हैं और उसके रास्ते में मौजूद रुकावटों को दूर करते हैं।

हमारी बात उस ला जवाब घटना के इन्तेज़ार के बारे में है जिसकी खूबसूरती और कमाल की कोई हद नहीं है। इन्तेज़ार उस ज़माने का है जिसकी खुशी और मज़े की मिसाल पिछले ज़माने में नहीं मिलती और इस दुनिया में अब तक ऐसा ज़माना नहीं आया है। हमें हज़रत इमामे ज़माना (अ. स.) की उस विश्वव्यापी हुकूमत के स्थापित होने का इन्तेज़ार है जिसे रिवायतों में इन्तेज़ारे फर्ज के नाम से याद किया गया है और जिसको आमाल व इबादत में बेहतरीन अमल बताया गया है ,बल्कि जिसे तमाम ही आमाल क़बूल होने का वसीला क़रार दिया गया है।

हज़रत पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :

मेरी उम्मत का सब से बेहतरीन अमल (इन्तेज़ारे फरज) है...[ 1]

हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) ने अपने असहाब से फरमाया :

क्या मैं तुम लोगों को उस चीज़ के बारे में बताऊँ जिसके बग़ैर ख़ुदा वन्दे आलम अपने बन्दों से कोई भी अमल क़बूल नहीं करता ?!सब ने कहा : जी हाँ। इमाम (अ. स.) ने फरमाया :

ख़ुदा के एक होने का इक़रार ,पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की नबूव्वत की गवाही ,ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से नाज़िल होने वाली चीज़ों का इकरार ,हमारी विलायत और हमारे दुशमनों से नफ़रत व दूरी (यानी ख़ास तौर पर हम इमामों के दुशमनों से दूरी) ,अइम्मा (अ. स.) की इताअत (आज्ञापालन) करना ,तक़वा व परहेज़गारी को अपनाना ,कोशिश करना व बुर्दबारी व सयंम से काम करना और क़ाइम आले मुहम्मद (अ. स.) का इन्तेज़ार...[ 2]

बस इन्तेज़ारे फरज ,ऐसा इन्तेज़ार है जिसकी कुछ विशेषताएं है और कुछ अपने तरीक़े के अलग ही एहसास हैं और उनको पूर्ण रूप से पहचानना ज़रुरी है ताकि उसके बारे में बयान किये जाने वाले तमाम फज़ाइल का राज़ मालूम हो सके।

इमामे ज़माना (अ. स.) के इन्तेज़ार की विशेषताएं

जैसे कि हम ने ऊपर उल्लेख किया है कि इन्तेज़ार इंसान की फितरत में शामिल है और हर कौम ,दीन व मज़हब में इन्तेज़ार का तस्व्वुर पाया जाता है। इंसान की नीजी और सामाजिक ज़िन्दगी में पाया जाने वाला साधारण इन्तेज़ार चाहे कितना ही महत्वपूर्ण हो ,वह हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के इन्तेज़ार के मुक़ाबले में बहुत छोटा है क्यों कि उनके ज़हूर के इन्तेज़ार की कुछ ख़ास विशेषताएं है ।

इमाम ज़माना (अ. स.) के ज़हूर का इन्तेज़ार ,एक ऐसा इन्तेज़ार है जो संसार के आरम्भ से मौजूद था। यानी बहुत पुराने ज़माने में भी नबी (अ. स.) और वली उनके ज़हूर की खुश खबरी सुनाते थे और हमारे सभी मासूम इमाम (अ. स.) उनकी हुकूमत के ज़माने की तमन्ना रखते थे।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) फरमाते हैं कि

"अगर मैं उनके (हज़रत इमाम महदी अ.स.) ज़माने में होता तो तमाम उम्र उनकी खिदमत करता...। "[ 3]

इमाम महदी (अ. स.) का इन्तेज़ार ,एक विश्व सुधारक का इन्तेज़ार है ,न्याय व समानता पर आधारित एक विश्वव्यापी हुकूमत का इन्तेज़ार है ,और समस्त अच्छाइयों के फलने फूलने व लागू होने का इन्तेज़ार है। अतः आज इंसानी समाज इसी इन्तेज़ार में अपनी आँखे बिछाए हुए है और ख़ुदा द्वारा प्रदान की गई पाक व पवित्र फ़ितरत के आधार पर उसकी तमन्ना करता है। यह इंसानी समाज किसी भी ज़माने में पूर्ण रूप से उस तक नहीं पहुँच सका है। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) उस शख्सियत का नाम है जो न्याय ,समानता ,आध्यात्म ,सयंम ,बराबरी ,ज़मीन की आबादी ,मेल मुहब्बत ,अक्ल की परिपक्वता व पूर्णता ,और इंसानों के विभिन्न इल्मों की तरक्की को तोहफ़े में लायेंगे तथा साम्राज्यवाद व गुलामी ,ज़ुल्म व अत्याचार ,और अख़लाकी बुराईयों को जड़ से मिटा कर उनको ख़त्म करना उनकी हुकूमत का महत्वपूर्ण काम होगा।

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का इन्तेज़ार ,ऐसा इन्तेज़ार है जिसके फलने फूलने का रास्ता हमवार होने से ख़ुद इन्तेज़ार को भी चार चाँद लग जायेंगे और वह ऐसा आख़िरी ज़माना होगा जब तमाम इंसान एक समाज सुधारक और निजात व मुक्ति देने वाले की तलाश में होंगे। उस समय वह आयेंगे और अपने मददगारों के साथ बुराईयों के खिलाफ़ आन्दोलन चलायेंगे। ऐसा नही होगा कि वह आते ही अपने किसी मोजज़े (चमत्कार) से पूरी दुनिया के निज़ाम व व्यवस्था को बदल देंगे।

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का इन्तेज़ार ,उनका इन्तेज़ार करने वालों में उनकी मदद का शौक पैदा करता है और इंसान को हैसियत व ज़िन्दगी देता है और साथ ही साथ उनको उद्देशयहीनता व भटकने से बचाता है।

प्रयः पाठकों ! यह हैं उस इन्तेज़ार की कुछ विशेषताएं जो पूरे इतिहास की बराबर व्यापकता रखती हैं और हर इंसान की रुह में उस की जड़ें मिलती हैं। इसी लिए कोई दूसरा इन्तेज़ार इस महान इन्तेज़ार का ज़र्रा बराबर भी मुक़ाबेला नहीं सकता। अतः उचित है कि अब हम हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के इन्तेज़ार के विभिन्न पहलुओं और उसकी निशानियों व फ़ायदों को पहचानें और उनके ज़हूर का इन्तेज़ार करने वालों की ज़िम्मेदारियों और इस इन्तेज़ार के बे मिसाल सवाब के बारे में बाते करें।

इन्तेज़ार के पहलू

ख़ुद इंसान की ज़ात में विभिन्न पहलु पाये जाते हैं ,एक तरफ़ जहाँ उस में थयोरिकल व परैक्टिकल पहलू पाया जाता हैं ,वहीँ दूसरी तरफ़ उस में व्यक्तिगत और सामाजिक पहलू भी पाया जाता है। एक अन्य दृष्टिकोण से इंसान में जिस्म के पहलू के साथ रुह और नफ़्स का पहलू भी मौजूद होता है। इस बात में कोई शक नहीं है कि इन सब पहलुओं के लिए निश्चित क़ानूनों की ज़रुरत है ,ताकि उनके अन्तर्गत इंसान के लिए ज़िन्दगी का सही रास्ता खुल जाये और भटकाने व गुमराह करने वाला रास्ते बन्द हो जायें।

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर का इन्तेज़ार ,इन्तेज़ार करने वाले के तमाम पहलुओं को प्रभावित करता है। इंसान के सोच विचार व चिंतन का पहलू जो कि इंसान के व्यवहार व आमाल (क्रिया कलापों) का आधारभूत पहलू है ,यह इंसानी ज़िन्दगी के बुनियादी अक़ीदों की हिफ़ाज़त करता है। दूसरे शब्दों में इस तरह कहा जा सकता है कि सही इन्तेज़ार इस बात का तक़ाज़ा करता है कि इन्तेज़ार करने वाला अपने ईमान व फ़िक्र की बुनियादों को मज़बूत करे ताकि गुमराह करने वाले मज़हब के जाल में न फँस सके। या हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की ग़ैबत लंबी हो जाने की वजह से ना उम्मीदी के दलदल में न फँस सके।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) फरमाते हैं कि

"लोगों के सामने एक ऐसा ज़माना आयेगा ,जब उनका इमाम गायब होगा ,खुश नसीब है वह इंसान जो उस ज़माने में हमारे अम्र (यानी विलायत) पर बाक़ी रहे...। "[ 4]

यानी ग़ैबत के ज़माने में दुशमन विभिन्न शुबहें पैदा कर के शिओं के सही अक़ीदों को ख़त्म करने की कोशिश में लगा हुआ है ,इस लिए हमें इन्तेज़ार के ज़माने में अपने अक़ीदों की हिफ़ाज़त करनी चाहिए।

इन्तेज़ार ,अपने अमली पहलू में इंसान के कामों व किरदार को सही रास्ता दिखाता है। एक सच्चे मुन्तज़िर (इन्तेज़ार करने वाला) को अमल के मैदान में यह कोशिश करनी चाहिए कि इमाम महदी (अ. स.) की हक़ व सच्चाई पर आधारित हुकूमत का रास्ता हमवार हो जाये। अतः मुन्तज़िर को इस बारे में अपने और समाज के सुधार के लिए कमर बाँध लेनी चाहिए। मुन्तज़िर को चाहिए कि अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी में अपनी आध्यात्मिक ज़िन्दगी और अखलाक़ी फज़ीलतों (श्रेष्ठताओं) को उच्चता प्रदान करने की कोशिश करे और अपने जिस्म व बदन को मज़बूत बनाये ताकि एक कारामद ताक़त के लिहाज़ से नूरानी मोर्चे के लिए तैयार रहे।

हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) फरमाते हैं कि

"जो इंसान इमाम क़ाइम (अ.स.) के मददगारों में शामिल होना चाहता है उसे इन्तेज़ार करना चाहिए और इन्तेज़ार की हालत में तक़वे व परेहेज़गारी का रास्ता अपनाना चाहिए और अच्छे अखलाक़ व सदव्यवहार से सुसज्जित होना चाहिए...[ 5]

इस इन्तेज़ार की एक विशेषता यह है कि यह इंसान को व्यक्तिगत ज़ीवन से ऊपर उठा कर उसे समाज के हर इंसान से जोड़ देता है। अर्थात इन्तेज़ार न सिर्फ़ यह कि इंसान के व्यक्तिगत जीवन में प्रभारी होता है बल्कि समाज में इंसानों के लिए एक खास योजना पेश करता है और समाज में सकारात्मक क़दम उठाने का शौक भी दिलाता है। चूँकि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत सार्वजनिक है ,अतः हर इंसान को अपनी सामर्थ्य अनुसार समाज सुधार के लिए काम करना चाहिए और समाज में फैली बुराईयों के प्रति खामोश व लापरवाह नहीं रहना चाहिए ,क्यों कि विश्वव्यापी सुधार करने वाले के मुन्तज़िर को फिक्र व अमल के आधार पर सुधार व भलाई के रास्ते को अपनान चाहिए।

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि इन्तेज़ार एक ऐसा मुबारक झरना है जिसका जीवन अमृत इंसान और समाज की रगों में जारी है और यह ज़िन्दगी के हर पहलू में इंसान को अल्लाह के रंग में रंगता है। अब आप ही फैसला करें कि अल्लाह के रंग से अच्छा रंग कौनसा हो सकता है ?!

कुरआने करीम में वर्णन होता है कि :

सिबग़तल्लाहे व मन अहसनु मिन अल्लाहे सिबग़तन व नहनु लहु आबेदून....

صِبْغَةَ اللهِ وَمَنْ اٴَحْسَنُ مِنْ اللهِ صِبْغَةً وَنَحْنُ لَہُ عَابِدُونَ [6 ]

रंग तो सिर्फ़ अल्लाह का रंग है और उससे अच्छा किस का रंग हो सकता है और हम सब उसी के इबादत गुज़ार हैं।

उपरोक्त उल्लेखित अंशों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि हज़रत इमामे ज़माना (अ. स.) का इन्तेज़ार करने वालों की ज़िम्मेदारी अल्लाह के रंग में रंगे जाने के अलावा कुछ नहीं है। इन्तेज़ार की बरकत से यह रंग इंसान की व्यक्तिगत व सामाजिक ज़िन्दगी के विभिन्न पहलुओं में झलकता है। अगर इस नज़र से देखा जाये तो हम मिन्तज़िरों की यह ज़िम्मेदारियाँ हमारे लिए मुश्किल नहीं होंगी ,बल्कि एक अच्छी घटना के रूप में हमारी ज़िन्दगी के हर पहलू को बेहतरीन आध्यातमिक रूप देंगी । वास्तव में अगर देश का मेहरबान बादशाह और काफ़ले का प्यारा सरदार हमें एक अच्छे व लायक़ सिपाही की हैसियत से ईमान के खेमे में बुलाए और हक़ व हक़ीक़त के मोर्चे पर हमारे आने का इन्तेज़ार करे तो फिर हमें कैसा लगेगा ?क्या उस समय हमें अपनी इन ज़िम्मेदारियों को निभाने में कोई परेशानी होगी कि ये काम करो और ऐसे न बनो ?,या हम ख़ुद इन्तेज़ार के रास्ते को पहचान कर अपने चुने हुए उद्देश्य व मक़सद की तरफ क़दम बढाते हुए नज़र आयेंगे ?

इन्तेज़ार करने वालों की ज़िम्मेदारियाँ

मासूम इमामों की हदीसों और रिवायतों में ज़हूर का इन्तेज़ार करने वालों की बहुत सी ज़िम्मेदारियों का वर्णन हुआ हैं। हम यहाँ पर उन में से कुछ महत्वपूर्ण निम्न लिखित ज़िम्मेदारियों का उल्लेख कर रहे हैं ।

इमाम की पहचान

इन्तेज़ार के रास्ते को तय करना ,इमाम (अ. स.) की शनाख्त और पहचान के बग़ैर संभव नहीं है। इन्तेज़ार की वादी में सब्र से काम लेते हुए अडिग रहना ,इमाम (अ. स.) की सही शनाख्त से संबंधित है। अतः हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के नाम व नस्ब की शनाख्त के अलावा उनकी महानता ,महत्ता और उनके ओहदे को पहचानना भी बहुत ज़रुरी है।

अबू नस्र ,जो कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के सेवक थे ,वह हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की ग़ैबत से पहले हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) की सेवा में उपस्थित हुए। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) ने उन से सवाल किया कि क्या आप मुझे पहचानते हैं ?उन्होंने जवाब दिया : जी हाँ ! आप मेरे मौला व आक़ा और मेरे मौला व आक़ा के बेटे हैं। इमाम (अ. स.) ने फरमाया : मेरा मक़सद ऐसी पहचान नहीं है ,अबू नस्र ने कहा कि आप ही फरमाइये कि आप का मक़सद क्या था।

इमाम (अ. स.) ने फरमाया :

मैं पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का आखरी जांनशीन हूँ ,और ख़ुदा वन्दे आलम मेरी बरकत की वजह से हमारे खानदान और हमारे शिओं से बलाओं व विपत्तियों को दूर करता है...।[ 7]

अगर इन्तेज़ार करने वालों को इमाम (अ. स.) की सही पहचान हो जाये तो फिर वह उसी वक़्त से ख़ुद को इमाम (अ. स.) के मोर्चे पर देखेगा और एहसास करेगा कि वह इमाम (अ. स.) और उनके ख़ेमे के नज़दीक़ है। अतः अपने इमाम के मोर्चे को मज़बूत बनाने में पल भर के लिए भी लापरवाही नहीं करेगा।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) ने फरमाया :

مَنْ مَاتَ وَ ہُوَ عَارِفٌ لِاِمَامِہِ لَمْ َیضُرُّہُ، تَقَدَّمَ ہَذَا الاٴمْرِ اٴوْ تَاٴخَّرَ، وَ مَنْ مَاتَ وَ ہُوَ عَارِفٌ لِاِمَامِہِ کَانَ کَمَنْ ہُوَ مَعَ القَائِمِ فِی فُسْطَاطِہِ “ [8 ]

जो इंसान इस हालत में मरे कि अपने ज़माने के इमाम को पहचानता हो तो ज़हूर में जल्दी या देर से होन से उसे कोई नुक्सान नहीं पहुँचाता ,और जो इंसान इस हाल में मरे कि अपने ज़माने के इमाम को पहचानता हो तो वह उस इंसान की तरह है जो इमाम के ख़ेमे में और इमाम के साथ हो।

उल्लेखनीय है कि यह शनाख़्त और पहचान इतनी महत्वपूर्ण है कि मासूम इमामों (अ. स.) की हदीसों में बयान हुई है और इसको हासिल करने के लिए ख़ुदा वन्दे आलम से मदद माँगनी चाहिए।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने फरमाया :

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की लंबी ग़ैबत के ज़माने में बातिल ख्याल के लोग अपने दीन और अक़ीदे में शक व शुब्हे में पड़ जायेंगे। इमाम (अ. स.) के खास शागिर्द जनाबे ज़ुरारा ने इमाम (अ. स.) से पूछा कि मौला अगर मैं उस ज़माने तक रहूँ तो क्या काम करूँ ?

हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने फरमाया : इस दुआ को पढ़ना।

अल्लाहुम्म अर्रिफनी नफसक फइनलम तोअर्रिफनी नफसक लमआरिफ नबियक अल्लाहुम्मा अर्रिफनी रसूलक फइनलम तोअर्रिफनी रसूलक लमआरिफ हुज्जतक अल्लाहुम्म अर्रिफनी हुज्जतक फइन्नक लन तोअर्रिफनी हुज्जतक ज़ललतो अन दीनी..

. ”اَللّٰہُمَّ عَرِّفْنِی نَفْسَکَ فَإنَّکَ إنْ لَمْ تُعَرِّفْنِی نَفْسَکَ لَمْ اٴعْرِفْ نَبِیَّکَ، اَللّٰہُمَّ عَرِّفْنِی رَسُولَکَ فَإنَّکَ إنْ لَمْ تُعَرِّفْنِی رَسُولَکَ لَمْ اٴعْرِفْ حُجَّتَکَ، اَللّٰہُمَّ عَرِّفْنِی حُجَّتَکَ فَإنَّکَ إنْ لَمْ تُعَرِّفْنِی حُجَّتَکَ ضَلَلْتُ عَنْ دِیْنِی [9 ] “

ऐ अल्लाह ! तू मुझे अपनी ज़ात की पहचान करा दे क्योंकि अगर तूने मुझे अपनी ज़ात की पहचान न कराई तो मैं तेरे नबी को नहीं पहचान सकता। ऐ अल्लाह : तू मुझे अपने रसूल की पहचान करा दे क्योंकि अगर तूने अपने रसूल की पहचान न कराई तो मैं तेरी हुज्जत को नहीं पहचान सकूंगा। ऐ अल्लाह ! तू मुझे अपनी हुज्जत की पहचान करा दे क्योंकि अगर तूने मुझे अपनी हुज्जत की पहचान न कराई तो मैं अपने दीन से गुमराह हो जाऊँगा।

प्रियः पाठकों ! इस दुआ में इस संसार के निज़ाम व व्यवस्था में इमाम (अ. स.) की महानता व महत्ता की पहचान है...।[ 10]इमाम ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से हुज्जत और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का सच्चा जांनशीन और तमाम लोगों का हादी व इमाम होता है और उसकी इताअत (आज्ञा पालन) सब पर वाजिब है ,क्यों कि उसकी इताअत ख़ुदा वन्दे आलम की इताअत है।

इमाम की शनाख़्त का दूसरा पहलू ,इमाम (अ. स.) की सिफ़तों और उनकी सीरत की पहचान है।।[ 11]शनाख़्त का यह पहलू इन्तेज़ार करने वाले के व्यवहार को बहुत ज़्यादा प्रभावी करता है। यह बात स्पष्ट है कि इंसान को इमाम (अ. स.) की जितनी ज़्यादा पहचान होगी ,उसकी ज़िन्दगी में उसके उतने ही ज़्यादा असर पैदा होंगें।

इमाम (अ.) को नमून ए अमल व आदर्श बनाना

जब इमाम (अ. स.) की सही पहचान हो जायेगी और उनके खुबसूरत जलवे हमारी नज़रों के सामने होंगे तो उस कमाल ज़ाहिर करने वाली उस ज़ात को नमूना व आदर्श बनाने की बात आयेगी।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) फरमाते हैं कि :

"खुश नसीब है वह इंसान जो मेरी नस्ल के क़ाइम को इस हाल में देखे कि उस के क़ियाम (आन्दोलन) से पहले ख़ुद उसका और उस से पहले इमामों का अनुसरण करे और उनके दुशमनों से दूरी व नफ़रत का ऐलान करे ,तो ऐसे लोग मेरे दोस्त और मेरे साथी हैं और यही लोग मेरे नज़दीक मेरी उम्मत के सब से महान इंसान हैं..।.[ 12]

वास्तव में जो इंसान तक़वे ,इबादत ,सादगी ,सखावत ,सब्र और तमाम अखलाक़ी फज़ाइल में अपने इमाम का अनुसरण करे ,उसका का रुतबा अपने इमाम के नज़दीक कितना ज़्यादा होगा और वह उनके पास पहुँचने से कितना गौरान्वित व सर बुलन्द होगा !।

क्या इस के अलावा और कुछ है कि जो इंसान दुनिया के सब से ख़ूबसूरत मंज़र को देखने का मुन्तज़िर हो ,वह ख़ुद को अच्छाईयों से सुसज्जित करे और बुराईयों व बद अखलाक़ियों से दूर रहे और इन्तेज़ार के ज़माने में अपनी फ़िक्र व क्रिया कलापों की हिफ़ाज़त करता रहे ,वरना आहिस्ता आहिस्ता बुराइयों के जाल में फँस जायेगा और उसके व इमाम के बीच फासला ज़्यादा होता जायेगा। ये एक ऐसी हक़ीक़त है जो ख़तरों से परिचित करने वाले इमाम (अ. स.) की हदीस में में बयान हुई है। यह हदीस निम्न लिखित है।

” فَمَا یَحْبِسُنَا عَنْہُمْ إلاَّ مَا یَتَّصِلُ بِنَا مِمَّا نُکْرِہُہُ وَ لاٰ نُوٴثِرُہُ مِنْہُم “ [13 ]

कोई भी चीज़ हमें हमारे शिओं से जुदा नहीं करती ,मगर उनके वह बुरे काम जो हमारे पास पहुँचते हैं। न हम उन कामो को पसन्द करते हैं और न शिओं से उनको करने की उम्मीद रखते हैं।

इन्तेज़ार करने वालों की आखिरी तमन्ना यह है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की वह विश्वव्यापी हुकूमत जो न्याय व समानता पर आधारित होगी ,उसमें उनका भी कुछ हिस्सा हो और अल्लाह की उस आखरी हुज्जत की मदद करने का गौरव उन्हें भी प्राप्त हो। लेकिन यह महान सफलता व गौरव ख़ुद को बनाने संवारने और उच्च सदव्यवहार से सुसज्जित हुए बग़ैर संभव नहीं है।

हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) फरमाते हैं कि

” مَنْ سَرَّہُ اٴنْ یَکُوْنَ مِنْ اٴصْحَابِ الْقَائِمِ فَلْیَنْتَظِرْ وَ لِیَعْمَلْ بِالْوَرَعِ وَ مَحَاسِنِ الاٴخْلاَقِ وَ ہُوَ مُنْتَظِر “[14 ]

जो इंसान हज़रत क़ाइम (अ. स.) के मददगारों में शामिल होना चाहता हो ,उसे तक़वे ,पर्हेज़गारी और अच्छे अखलाक़ से सुसज्जित हो कर इमाम के ज़हूर का इन्तेज़ार करना चाहिए।

यह बात स्पष्ट है कि इस तमन्ना को पूरा करने के लिए ख़ुद हज़रत इमाम महदी (अ. स.) से अच्छा कोई नमूना व आदर्श नहीं मिल सकता क्योंकि वह सभी अच्छाईयों ,नेकियों और खुबसूरतियों का आइना हैं।

इमाम (अ. स.) को याद रखना

जो चीज़ हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की पहचान और उनका अनुसरण व पैरवी करने में मददगार साबित होगी और इन्तेज़ार की राह में सब्र व दृढ़ता प्रदान करेगी ,वह ,रुह व आत्मा के वैद्य व चिकित्सक (हज़रत इमाम महदी अ. स.) से हमेशा संबंध बनाये रखना है।

वास्तव में जब वह मेहरबान इमाम (अ. स.) हर वक़्त और हर जगह शिओं के हालात पर नज़र रखता और किसी भी भी वक़्त उनको नहीं भूलता तो क्या यह उचित है कि उसके चाहने वाले दुनिया के कामों में उलझ कर उस महबूब इमाम (अ. स.) को भूल जायें और उन से बेखबर हो जायें ?!नही दोस्ती व मुहब्बत का तक़ाज़ा यह है कि उन्हें हर काम में अपने और अन्य लोगों पर वरीयता दी जाये। जिस वक़्त दुआ के लिए मुसल्ले पर बैठें तो पहले उनके लिए दुआ करें ,उनकी सलामती और ज़हूर की दुआ करने के लिए अपने हाथों को ऊपर उठायें। इसके लिए ख़ुद उन्हेंने फरमाया है :

"मेरे ज़हूर के लिए बहुत दुआ किया करो कि उसमें ख़ुद तुम्हारी भलाई है। "[ 15]

अतः हमारी ज़बान पर हमेशा यह निम्न लिखित दुआ रहनी चाहिए।

अल्लाहुम्मा कुन लिवलिये-कल हुज्जत इब्निल हसन सलवातुका अलैहि व अला आबाएहि फ़ी हाज़ेहिस्साअत व फ़ी कुल्ले साअत वलियंव व हाफ़िज़ंव व काइदंव व नासिरंव व दलीलंव व ऐना हत्ता तुस्कि-नहु अर्ज़का तौअंव व तुमत्तेअहु फ़ीहा तवीला..

. ”اَللَّہُمَّ کُنْ لِوَلِیِّکَ الْحُجَّةِ بْنِ الحَسَنِ صَلَوٰاتُکَ عَلَیْہِ وَ عَلٰی آبَائِہِ فِی ہَذِہِ السَّاعَةِ وَ فِی کُلِّ سَاعَةٍ وَلِیاً وَ حَافِظاً وَ قَائِداً وَ نَاصِراً وَ دَلِیلاً وَ عَیْناً حَتّٰی تُسْکِنَہُ اٴرْضَکَ طَوْعاً وَ تُمَتِّعَہُ فِیْہَا طَوِیلاً “ ۔ [16 ]

ऐ अल्लाह ! अपने वली ,हुज्जत इब्नुल हसन के लिए (तेरा दरुद व सलाम हो उन पर और उन के बाप दादाओं पर ,इस वक़्त और हर वक़्त) वली व मुहाफ़िज़ व रहबर व मददगार व दलील और देख रेख करने वाला बन जा ,ताकि उनको अपनी ज़मीन पर अपनी मर्ज़ी से बसाये और उनको ज़मीन पर लंबी समय तक लाभान्वित रख।

सच्चा इन्तेज़ार करने वाला ,सदक़ा देते वक़्त पहले अपने इमाम (अ. स.) को नज़र में रखता है अर्थात पहले उनका सदक़ा निकालता है और बाद में अपना। वह हर तरह से उनके दामन से चिपका रहता है और हर वक़्त उनके मुबारक ज़हूर का अभिलाषी रहता है और उनके बेमिसाल व नूरानी चेहरे को देखने के लिए रोता बिलकता रहता है।

अज़ीज़ुं अलैया अन अरल खल्क वला तुरा