अल्लामा इक़बाल की नज़मे

अल्लामा इक़बाल की नज़मे0%

अल्लामा इक़बाल की नज़मे लेखक:
कैटिगिरी: शेर व अदब

अल्लामा इक़बाल की नज़मे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: अल्लामा इक़बाल
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अल्लामा इक़बाल की नज़मे
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अल्लामा इक़बाल की नज़मे

अल्लामा इक़बाल की नज़मे

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.


अल्लामा इक़बाल की ये नज़मे हमने रे्ख्ता नामक साइट से ली है और इनको बग़ैर किसी कमी या ज़्यादती के मिनो अन एक किताबी शक्ल मे जमा कर दिया है। इन नज़मो की तादाद उन्तीस है।

जवाब-ए-शिकवा

दिल से जो बात निकलती है असर रखती है

पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है

क़ुदसी-उल-अस्ल है रिफ़अत पे नज़र रखती है

ख़ाक से उठती है गर्दूं पे गुज़र रखती है

इश्क़ था फ़ित्नागर ओ सरकश ओ चालाक मिरा

आसमाँ चीर गया नाला-ए-बेबाक मिरा

पीर-ए-गर्दूं ने कहा सुन के कहीं है कोई

बोले सय्यारे सर-ए-अर्श-ए-बरीं है कोई

चाँद कहता था नहीं अहल-ए-ज़मीं है कोई

कहकशाँ कहती थी पोशीदा यहीं है कोई

कुछ जो समझा मिरे शिकवे को तो रिज़वाँ समझा

मुझ को जन्नत से निकाला हुआ इंसाँ समझा

थी फ़रिश्तों को भी हैरत कि ये आवाज़ है क्या

अर्श वालों पे भी खुलता नहीं ये राज़ है क्या

ता-सर-ए-अर्श भी इंसाँ की तग-ओ-ताज़ है क्या

आ गई ख़ाक की चुटकी को भी परवाज़ है क्या

ग़ाफ़िल आदाब से सुक्कान-ए-ज़मीं कैसे हैं

शोख़ ओ गुस्ताख़ ये पस्ती के मकीं कैसे हैं

इस क़दर शोख़ कि अल्लाह से भी बरहम है

था जो मस्जूद-ए-मलाइक ये वही आदम है

आलिम-ए-कैफ़ है दाना-ए-रुमूज़-ए-कम है

हाँ मगर इज्ज़ के असरार से ना-महरम है

नाज़ है ताक़त-ए-गुफ़्तार पे इंसानों को

बात करने का सलीक़ा नहीं नादानों को

आई आवाज़ ग़म-अंगेज़ है अफ़्साना तिरा

अश्क-ए-बेताब से लबरेज़ है पैमाना तिरा

आसमाँ-गीर हुआ नारा-ए-मस्ताना तिरा

किस क़दर शोख़-ज़बाँ है दिल-ए-दीवाना तिरा

शुक्र शिकवे को किया हुस्न-ए-अदा से तू ने

हम-सुख़न कर दिया बंदों को ख़ुदा से तू ने

हम तो माइल-ब-करम हैं कोई साइल ही नहीं

राह दिखलाएँ किसे रह-रव-ए-मंज़िल ही नहीं

तर्बियत आम तो है जौहर-ए-क़ाबिल ही नहीं

जिस से तामीर हो आदम की ये वो गिल ही नहीं

कोई क़ाबिल हो तो हम शान-ए-कई देते हैं

ढूँडने वालों को दुनिया भी नई देते हैं

हाथ बे-ज़ोर हैं इल्हाद से दिल ख़ूगर हैं

उम्मती बाइस-ए-रुस्वाई-ए-पैग़म्बर हैं

बुत-शिकन उठ गए बाक़ी जो रहे बुत-गर हैं

था ब्राहीम पिदर और पिसर आज़र हैं

बादा-आशाम नए बादा नया ख़ुम भी नए

हरम-ए-काबा नया बुत भी नए तुम भी नए

वो भी दिन थे कि यही माया-ए-रानाई था

नाज़िश-ए-मौसम-ए-गुल लाला-ए-सहराई था

जो मुसलमान था अल्लाह का सौदाई था

कभी महबूब तुम्हारा यही हरजाई था

किसी यकजाई से अब अहद-ए-ग़ुलामी कर लो

मिल्लत-ए-अहमद-ए-मुर्सिल को मक़ामी कर लो

किस क़दर तुम पे गिराँ सुब्ह की बेदारी है

हम से कब प्यार है हाँ नींद तुम्हें प्यारी है

तब-ए-आज़ाद पे क़ैद-ए-रमज़ाँ भारी है

तुम्हीं कह दो यही आईन-ए-वफ़ादारी है

क़ौम मज़हब से है मज़हब जो नहीं तुम भी नहीं

जज़्ब-ए-बाहम जो नहीं महफ़िल-ए-अंजुम भी नहीं

जिन को आता नहीं दुनिया में कोई फ़न तुम हो

नहीं जिस क़ौम को परवा-ए-नशेमन तुम हो

बिजलियाँ जिस में हों आसूदा वो ख़िर्मन तुम हो

बेच खाते हैं जो अस्लाफ़ के मदफ़न तुम हो

हो निको नाम जो क़ब्रों की तिजारत कर के

क्या न बेचोगे जो मिल जाएँ सनम पत्थर के

सफ़्हा-ए-दहर से बातिल को मिटाया किस ने

नौ-ए-इंसाँ को ग़ुलामी से छुड़ाया किस ने

मेरे काबे को जबीनों से बसाया किस ने

मेरे क़ुरआन को सीनों से लगाया किस ने

थे तो आबा वो तुम्हारे ही मगर तुम क्या हो

हाथ पर हाथ धरे मुंतज़िर-ए-फ़र्दा हो

क्या कहा बहर-ए-मुसलमाँ है फ़क़त वादा-ए-हूर

शिकवा बेजा भी करे कोई तो लाज़िम है शुऊर

अदल है फ़ातिर-ए-हस्ती का अज़ल से दस्तूर

मुस्लिम आईं हुआ काफ़िर तो मिले हूर ओ क़ुसूर

तुम में हूरों का कोई चाहने वाला ही नहीं

जल्वा-ए-तूर तो मौजूद है मूसा ही नहीं

मंफ़अत एक है इस क़ौम का नुक़सान भी एक

एक ही सब का नबी दीन भी ईमान भी एक

हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक

कुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक

फ़िरक़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं

क्या ज़माने में पनपने की यही बातें हैं

कौन है तारिक-ए-आईन-ए-रसूल-ए-मुख़्तार

मस्लहत वक़्त की है किस के अमल का मेआर

किस की आँखों में समाया है शिआर-ए-अग़्यार

हो गई किस की निगह तर्ज़-ए-सलफ़ से बे-ज़ार

क़ल्ब में सोज़ नहीं रूह में एहसास नहीं

कुछ भी पैग़ाम-ए-मोहम्मद का तुम्हें पास नहीं

जा के होते हैं मसाजिद में सफ़-आरा तो ग़रीब

ज़हमत-ए-रोज़ा जो करते हैं गवारा तो ग़रीब

नाम लेता है अगर कोई हमारा तो ग़रीब

पर्दा रखता है अगर कोई तुम्हारा तो ग़रीब

उमरा नश्शा-ए-दौलत में हैं ग़ाफ़िल हम से

ज़िंदा है मिल्लत-ए-बैज़ा ग़ुरबा के दम से

वाइज़-ए-क़ौम की वो पुख़्ता-ख़याली न रही

बर्क़-ए-तबई न रही शोला-मक़ाली न रही

रह गई रस्म-ए-अज़ाँ रूह-ए-बिलाली न रही

फ़ल्सफ़ा रह गया तल्क़ीन-ए-ग़ज़ाली न रही

मस्जिदें मर्सियाँ-ख़्वाँ हैं कि नमाज़ी न रहे

यानी वो साहिब-ए-औसाफ़-ए-हिजाज़ी न रहे

शोर है हो गए दुनिया से मुसलमाँ नाबूद

हम ये कहते हैं कि थे भी कहीं मुस्लिम मौजूद

वज़्अ में तुम हो नसारा तो तमद्दुन में हुनूद

ये मुसलमाँ हैं जिन्हें देख के शरमाएँ यहूद

यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो

तुम सभी कुछ हो बताओ तो मुसलमान भी हो

दम-ए-तक़रीर थी मुस्लिम की सदाक़त बेबाक

अदल उस का था क़वी लौस-ए-मराआत से पाक

शजर-ए-फ़ितरत-ए-मुस्लिम था हया से नमनाक

था शुजाअत में वो इक हस्ती-ए-फ़ोक़-उल-इदराक

ख़ुद-गुदाज़ी नम-ए-कैफ़ियत-ए-सहबा-यश बूद

ख़ाली-अज़-ख़ेश शुदन सूरत-ए-मीना-यश बूद

हर मुसलमाँ रग-ए-बातिल के लिए नश्तर था

उस के आईना-ए-हस्ती में अमल जौहर था

जो भरोसा था उसे क़ुव्वत-ए-बाज़ू पर था

है तुम्हें मौत का डर उस को ख़ुदा का डर था

बाप का इल्म न बेटे को अगर अज़बर हो

फिर पिसर क़ाबिल-ए-मीरास-ए-पिदर क्यूँकर हो

हर कोई मस्त-ए-मय-ए-ज़ौक़-ए-तन-आसानी है

तुम मुसलमाँ हो ये अंदाज़-ए-मुसलमानी है

हैदरी फ़क़्र है ने दौलत-ए-उस्मानी है

तुम को अस्लाफ़ से क्या निस्बत-ए-रूहानी है

वो ज़माने में मुअज़्ज़िज़ थे मुसलमाँ हो कर

और तुम ख़्वार हुए तारिक-ए-क़ुरआँ हो कर

तुम हो आपस में ग़ज़बनाक वो आपस में रहीम

तुम ख़ता-कार ओ ख़ता-बीं वो ख़ता-पोश ओ करीम

चाहते सब हैं कि हों औज-ए-सुरय्या पे मुक़ीम

पहले वैसा कोई पैदा तो करे क़ल्ब-ए-सलीम

तख़्त-ए-फ़ग़्फ़ूर भी उन का था सरीर-ए-कए भी

यूँ ही बातें हैं कि तुम में वो हमियत है भी

ख़ुद-कुशी शेवा तुम्हारा वो ग़यूर ओ ख़ुद्दार

तुम उख़ुव्वत से गुरेज़ाँ वो उख़ुव्वत पे निसार

तुम हो गुफ़्तार सरापा वो सरापा किरदार

तुम तरसते हो कली को वो गुलिस्ताँ ब-कनार

अब तलक याद है क़ौमों को हिकायत उन की

नक़्श है सफ़्हा-ए-हस्ती पे सदाक़त उन की

मिस्ल-ए-अंजुम उफ़ुक़-ए-क़ौम पे रौशन भी हुए

बुत-ए-हिन्दी की मोहब्बत में बिरहमन भी हुए

शौक़-ए-परवाज़ में महजूर-ए-नशेमन भी हुए

बे-अमल थे ही जवाँ दीन से बद-ज़न भी हुए

इन को तहज़ीब ने हर बंद से आज़ाद किया

ला के काबे से सनम-ख़ाने में आबाद किया

क़ैस ज़हमत-कश-ए-तन्हाई-ए-सहरा न रहे

शहर की खाए हवा बादिया-पैमा न रहे

वो तो दीवाना है बस्ती में रहे या न रहे

ये ज़रूरी है हिजाब-ए-रुख़-ए-लैला न रहे

गिला-ए-ज़ौर न हो शिकवा-ए-बेदाद न हो

इश्क़ आज़ाद है क्यूँ हुस्न भी आज़ाद न हो

अहद-ए-नौ बर्क़ है आतिश-ज़न-ए-हर-ख़िर्मन है

ऐमन इस से कोई सहरा न कोई गुलशन है

इस नई आग का अक़्वाम-ए-कुहन ईंधन है

मिल्लत-ए-ख़त्म-ए-रसूल शोला-ब-पैराहन है

आज भी हो जो ब्राहीम का ईमाँ पैदा

आग कर सकती है अंदाज़-ए-गुलिस्ताँ पैदा

देख कर रंग-ए-चमन हो न परेशाँ माली

कौकब-ए-ग़ुंचा से शाख़ें हैं चमकने वाली

ख़स ओ ख़ाशाक से होता है गुलिस्ताँ ख़ाली

गुल-बर-अंदाज़ है ख़ून-ए-शोहदा की लाली

रंग गर्दूं का ज़रा देख तो उन्नाबी है

ये निकलते हुए सूरज की उफ़ुक़-ताबी है

उम्मतें गुलशन-ए-हस्ती में समर-चीदा भी हैं

और महरूम-ए-समर भी हैं ख़िज़ाँ-दीदा भी हैं

सैकड़ों नख़्ल हैं काहीदा भी बालीदा भी हैं

सैकड़ों बत्न-ए-चमन में अभी पोशीदा भी हैं

नख़्ल-ए-इस्लाम नमूना है बिरौ-मंदी का

फल है ये सैकड़ों सदियों की चमन-बंदी का

पाक है गर्द-ए-वतन से सर-ए-दामाँ तेरा

तू वो यूसुफ़ है कि हर मिस्र है कनआँ तेरा

क़ाफ़िला हो न सकेगा कभी वीराँ तेरा

ग़ैर यक-बाँग-ए-दारा कुछ नहीं सामाँ तेरा

नख़्ल-ए-शमा अस्ती ओ दर शोला दो-रेशा-ए-तू

आक़िबत-सोज़ बवद साया-ए-अँदेशा-ए-तू

तू न मिट जाएगा ईरान के मिट जाने से

नश्शा-ए-मय को तअल्लुक़ नहीं पैमाने से

है अयाँ यूरिश-ए-तातार के अफ़्साने से

पासबाँ मिल गए काबे को सनम-ख़ाने से

कश्ती-ए-हक़ का ज़माने में सहारा तू है

अस्र-ए-नौ-रात है धुँदला सा सितारा तू है

है जो हंगामा बपा यूरिश-ए-बुलग़ारी का

ग़ाफ़िलों के लिए पैग़ाम है बेदारी का

तू समझता है ये सामाँ है दिल-आज़ारी का

इम्तिहाँ है तिरे ईसार का ख़ुद्दारी का

क्यूँ हिरासाँ है सहिल-ए-फ़रस-ए-आदा से

नूर-ए-हक़ बुझ न सकेगा नफ़स-ए-आदा से

चश्म-ए-अक़्वाम से मख़्फ़ी है हक़ीक़त तेरी

है अभी महफ़िल-ए-हस्ती को ज़रूरत तेरी

ज़िंदा रखती है ज़माने को हरारत तेरी

कौकब-ए-क़िस्मत-ए-इम्काँ है ख़िलाफ़त तेरी

वक़्त-ए-फ़ुर्सत है कहाँ काम अभी बाक़ी है

नूर-ए-तौहीद का इत्माम अभी बाक़ी है

मिस्ल-ए-बू क़ैद है ग़ुंचे में परेशाँ हो जा

रख़्त-बर-दोश हवा-ए-चमनिस्ताँ हो जा

है तुनक-माया तू ज़र्रे से बयाबाँ हो जा

नग़्मा-ए-मौज है हंगामा-ए-तूफ़ाँ हो जा

क़ुव्वत-ए-इश्क़ से हर पस्त को बाला कर दे

दहर में इस्म-ए-मोहम्मद से उजाला कर दे

हो न ये फूल तो बुलबुल का तरन्नुम भी न हो

चमन-ए-दहर में कलियों का तबस्सुम भी न हो

ये न साक़ी हो तो फिर मय भी न हो ख़ुम भी न हो

बज़्म-ए-तौहीद भी दुनिया में न हो तुम भी न हो

ख़ेमा-ए-अफ़्लाक का इस्तादा इसी नाम से है

नब्ज़-ए-हस्ती तपिश-आमादा इसी नाम से है

दश्त में दामन-ए-कोहसार में मैदान में है

बहर में मौज की आग़ोश में तूफ़ान में है

चीन के शहर मराक़श के बयाबान में है

और पोशीदा मुसलमान के ईमान में है

चश्म-ए-अक़्वाम ये नज़्ज़ारा अबद तक देखे

रिफ़अत-ए-शान-ए-रफ़ाना-लका-ज़िक्र देखे

मर्दुम-ए-चश्म-ए-ज़मीं यानी वो काली दुनिया

वो तुम्हारे शोहदा पालने वाली दुनिया

गर्मी-ए-मेहर की परवरदा हिलाली दुनिया

इश्क़ वाले जिसे कहते हैं बिलाली दुनिया

तपिश-अंदोज़ है इस नाम से पारे की तरह

ग़ोता-ज़न नूर में है आँख के तारे की तरह

अक़्ल है तेरी सिपर इश्क़ है शमशीर तिरी

मिरे दरवेश ख़िलाफ़त है जहाँगीर तिरी

मा-सिवा-अल्लाह के लिए आग है तकबीर तिरी

तू मुसलमाँ हो तो तक़दीर है तदबीर तिरी

की मोहम्मद से वफ़ा तू ने तो हम तेरे हैं

ये जहाँ चीज़ है क्या लौह-ओ-क़लम तेरे हैं

जावेद के नाम

लंदन में उस के हाथ का लिखा हुआ पहला ख़त आने पर

दयार-ए-इश्क़ में अपना मक़ाम पैदा कर

नया ज़माना नए सुब्ह ओ शाम पैदा कर

ख़ुदा अगर दिल-ए-फ़ितरत-शनास दे तुझ को

सुकूत-ए-लाला-ओ-गुल से कलाम पैदा कर

उठा न शीशागरान-ए-फ़रंग के एहसाँ

सिफ़ाल-ए-हिन्द से मीना ओ जाम पैदा कर

मैं शाख़-ए-ताक हूँ मेरी ग़ज़ल है मेरा समर

मिरे समर से मय-ए-लाला-फ़ाम पैदा कर

मिरा तरीक़ अमीरी नहीं फ़क़ीरी है

ख़ुदी न बेच ग़रीबी में नाम पैदा कर

जिब्रईल ओ इबलीस

जिब्रईल

हम-दम-ए-दैरीना कैसा है जहान-ए-रंग-ओ-बू

इबलीस

सोज़-ओ-साज़ ओ दर्द ओ दाग़ ओ जुस्तुजू ओ आरज़ू

जिब्रईल

हर घड़ी अफ़्लाक पर रहती है तेरी गुफ़्तुगू

क्या नहीं मुमकिन कि तेरा चाक दामन हो रफ़ू

इबलीस

आह ऐ जिबरील तू वाक़िफ़ नहीं इस राज़ से

कर गया सरमस्त मुझ को टूट कर मेरा सुबू

अब यहाँ मेरी गुज़र मुमकिन नहीं मुमकिन नहीं

किस क़दर ख़ामोश है ये आलम-ए-बे-काख़-ओ-कू

जिस की नौमीदी से हो सोज़-ए-दरून-ए-काएनात

उस के हक़ में तक़्नतू अच्छा है या ला-तक़्नतू

जिब्रईल

खो दिए इंकार से तू ने मक़ामात-ए-बुलंद

चश्म-ए-यज़्दाँ में फ़रिश्तों की रही क्या आबरू

इबलीस

है मिरी जुरअत से मुश्त-ए-ख़ाक में ज़ौक़-ए-नुमू

मेरे फ़ित्ने जामा-ए-अक़्ल-ओ-ख़िरद का तार-ओ-पू

देखता है तू फ़क़त साहिल से रज़्म-ए-ख़ैर-ओ-शर

कौन तूफ़ाँ के तमांचे खा रहा है मैं कि तू

ख़िज़्र भी बे-दस्त-ओ-पा इल्यास भी बे-दस्त-ओ-पा

मेरे तूफ़ाँ यम-ब-यम दरिया-ब-दरिया जू-ब-जू

गर कभी ख़ल्वत मयस्सर हो तो पूछ अल्लाह से

क़िस्सा-ए-आदम को रंगीं कर गया किस का लहू

मैं खटकता हूँ दिल-ए-यज़्दाँ में काँटे की तरह

तू फ़क़त अल्लाह-हू अल्लाह-हू अल्लाह-हू

ज़ोहद और रिंदी

इक मौलवी साहब की सुनाता हूँ कहानी

तेज़ी नहीं मंज़ूर तबीअत की दिखानी

शोहरा था बहुत आप की सूफ़ी-मनुशी का

करते थे अदब उन का अआली ओ अदानी

कहते थे कि पिन्हाँ है तसव्वुफ़ में शरीअत

जिस तरह कि अल्फ़ाज़ में मुज़्मर हों मआनी

लबरेज़ मय-ए-ज़ोहद से थी दिल की सुराही

थी तह में कहीं दुर्द-ए-ख़याल-ए-हमा-दानी

करते थे बयाँ आप करामात का अपनी

मंज़ूर थी तादाद मुरीदों की बढ़ानी

मुद्दत से रहा करते थे हम-साए में मेरे

थी रिंद से ज़ाहिद की मुलाक़ात पुरानी

हज़रत ने मिरे एक शनासा से ये पूछा

'इक़बाल ' कि है क़ुमरी-ए-शमशाद-ए-मआनी

पाबंदी-ए-अहकाम-ए-शरीअत में है कैसा

गो शेर में है रश्क-ए-कलीम-ए-हमदानी

सुनता हूँ कि काफ़िर नहीं हिन्दू को समझता

है ऐसा अक़ीदा असर-ए-फ़लसफ़ा-दानी

है उस की तबीअत में तशय्यो भी ज़रा सा

तफ़्ज़ील - ए - अली हम ने सुनी उस की ज़बानी

समझा है कि है राग इबादात में दाख़िल

मक़्सूद है मज़हब की मगर ख़ाक उड़ानी

कुछ आर उसे हुस्न - फ़रामोशों से नहीं है

आदत ये हमारे शोरा की है पुरानी

गाना जो है शब को तो सहर को है तिलावत

इस रम्ज़ के अब तक न खुले हम पे मआनी

लेकिन ये सुना अपने मुरीदों से है मैं ने

बे - दाग़ है मानिंद - ए - सहर उस की जवानी

मज्मुआ - ए - अज़्दाद है 'इक़बाल ' नहीं है

दिल दफ़्तर - ए - हिकमत है तबीअत ख़फ़क़ानी

रिंदी से भी आगाह शरीअत से भी वाक़िफ़

पूछो जो तसव्वुफ़ की तो मंसूर का सानी

उस शख़्स की हम पर तो हक़ीक़त नहीं खुलती

होगा ये किसी और ही इस्लाम का बानी

अल - क़िस्सा बहुत तूल दिया वाज़ को अपने

ता - देर रही आप की ये नग़्ज़ - बयानी

इस शहर में जो बात हो उड़ जाती है सब में

मैं ने भी सुनी अपने अहिब्बा की ज़बानी

इक दिन जो सर - ए - राह मिले हज़रत - ए - ज़ाहिद

फिर छिड़ गई बातों में वही बात पुरानी

फ़रमाया शिकायत वो मोहब्बत के सबब थी

था फ़र्ज़ मिरा राह शरीअत की दिखानी

मैं ने ये कहा कोई गिला मुझ को नहीं है

ये आप का हक़ था ज़े - रह - ए - क़ुर्ब - ए - मकानी

ख़म है सर - ए - तस्लीम मिरा आप के आगे

पीरी है तवाज़ो के सबब मेरी जवानी

गर आप को मालूम नहीं मेरी हक़ीक़त

पैदा नहीं कुछ इस से क़ुसूर - ए - हमादानी

मैं ख़ुद भी नहीं अपनी हक़ीक़त का शनासा

गहरा है मिरे बहर - ए - ख़यालात का पानी

मुझ को भी तमन्ना है कि 'इक़बाल ' को देखूँ

की उस की जुदाई में बहुत अश्क - फ़िशानी

'इक़बाल ' भी 'इक़बाल ' से आगाह नहीं है

कुछ इस में तमस्ख़ुर नहीं वल्लाह नहीं है

ज़ौक़ ओ शौक़

क़ल्ब ओ नज़र की ज़िंदगी दश्त में सुब्ह का समाँ

चश्मा - ए - आफ़्ताब से नूर की नद्दियाँ रवाँ !

हुस्न - ए - अज़ल की है नुमूद चाक है पर्दा - ए - वजूद

दिल के लिए हज़ार सूद एक निगाह का ज़ियाँ !

सुर्ख़ ओ कबूद बदलियाँ छोड़ गया सहाब - ए - शब !

कोह - ए - इज़म को दे गया रंग - ब - रंग तैलिसाँ !

गर्द से पाक है हवा बर्ग - ए - नख़ील धुल गए

रेग - ए - नवाह - ए - काज़िमा नर्म है मिस्ल - ए - पर्नियाँ

आग बुझी हुई इधर , टूटी हुई तनाब उधर

क्या ख़बर इस मक़ाम से गुज़रे हैं कितने कारवाँ

आई सदा - ए - जिब्रईल तेरा मक़ाम है यही

एहल - ए - फ़िराक़ के लिए ऐश - ए - दवाम है यही

किस से कहूँ कि ज़हर है मेरे लिए मय - ए - हयात

कोहना है बज़्म - ए - कायनात ताज़ा हैं मेरे वारदात !

क्या नहीं और ग़ज़नवी कारगह - ए - हयात में

बैठे हैं कब से मुंतज़िर अहल - ए - हरम के सोमनात !

ज़िक्र - ए - अरब के सोज़ में ,फ़िक्र - ए - अजम के साज़ में

ने अरबी मुशाहिदात , ने अजमी तख़य्युलात

क़ाफ़िला - ए - हिजाज़ में एक हुसैन भी नहीं

गरचे है ताब - दार अभी गेसू - ए - दजला - ओ - फ़ुरात !

अक़्ल ओ दिल ओ निगाह का मुर्शिद - ए - अव्वलीं है इश्क़

इश्क़ न हो तो शर - ओ - दीं बुतकद - ए - तसव्वुरात !

सिदक़ - ए - ख़लील भी है इश्क़ सब्र - ए - हुसैन भी है इश्क़ !

म 'अरका - ए - वजूद में बद्र ओ हुनैन भी है इश्क़ !

अाया - ए - कायनात का म 'अनी - ए - देर - याब तू !

निकले तिरी तलाश में क़ाफ़िला - हा - ए - रंग - ओ - बू !

जलवतियान - ए - मदरसा कोर - निगाह ओ मुर्दा - ज़ाऐक़

जलवतियान - ए - मयकदा कम - तलब ओ तही - कदू !

मैं कि मिरी ग़ज़ल में है आतिश - ए - रफ़्ता का सुराग़

मेरी तमाम सरगुज़िश्त खोए हुओं की जुस्तुजू !

बाद - ए - सबा की मौज से नश - नुमा - ए - ख़ार - ओ - ख़स !

मेरे नफ़स की मौज से नश - ओ - नुमा - ए - आरज़ू !

ख़ून - ए - दिल ओ जिगर से है मेरी नवा की परवरिश

है रग - ए - साज़ में रवाँ साहिब - ए - साज़ का लहू !

फुर्सत - ए - कशमुकश में ईं दिल बे - क़रार रा

यक दो शिकन ज़्यादा कुन गेसू - ए - ताबदार रा

लौह भी तू , क़लम भी तू ,तेरा वजूद अल - किताब !

गुम्बद - ए - आबगीना - रंग तेरे मुहीत में हबाब !

आलम - ए - आब - ओ - ख़ाक में तेरे ज़ुहूर से फ़रोग़

ज़र्रा - ए - रेग को दिया तू ने तुलू - ए - आफ़्ताब !

शौकत - ए - संजर - ओ - सलीम तेरे जलाल की नुमूद !

फ़क़्र - ए - 'जुनेद '-ओ - 'बायज़ीद 'तेरा जमाल बे - नक़ाब !

शौक़ तिरा अगर न हो मेरी नमाज़ का इमाम

मेरा क़याम भी हिजाब ! मेरा सुजूद भी हिजाब !

तेरी निगाह - ए - नाज़ से दोनों मुराद पा गए

अक़्ल ,ग़याब ओ जुस्तुजू ! इश्क़ ,हुज़ूर ओ इज़्तिराब !

तीरा - ओ - तार है जहाँ गर्दिश - ए - आफ़ताब से !

तब - ए - ज़माना ताज़ा कर जल्वा - ए - बे - हिजाब से !

तेरी नज़र में हैं तमाम मेरे गुज़िश्ता रोज़ ओ शब

मुझ को ख़बर न थी कि है इल्म - ए - नख़ील बे - रुतब !

ताज़ा मिरे ज़मीर में म 'अर्क - ए - कुहन हुआ !

इश्क़ तमाम मुस्तफ़ा ! अक़्ल तमाम बू - लहब !

गाह ब - हीला मी - बरद ,गाह ब - ज़ोर मी - कशद

इश्क़ की इब्तिदा अजब इश्क़ की इंतिहा अजब !

आलम - ए - सोज़ - ओ - साज़ में वस्ल से बढ़ के है फ़िराक़

वस्ल में मर्ग - ए - आरज़ू ! हिज्र में ल़ज़्जत - ए - तलब !

एेन - ए - विसाल में मुझे हौसला - ए - नज़र न था

गरचे बहाना - जू रही मेरी निगाह - ए - बे - अदब !

गर्मी - ए - आरज़ू फ़िराक़ ! शोरिश - ए - हाव - ओ - हू फ़िराक़ !

मौज की जुस्तुजू फ़िराक़ ! क़तरे की आबरू फ़िराक़ !

तराना- ए- मिल्ली

चीन - ओ - अरब हमारा हिन्दोस्ताँ हमारा

मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा

तौहीद की अमानत सीनों में है हमारे

आसाँ नहीं मिटाना नाम - ओ - निशाँ हमारा

दुनिया के बुत - कदों में पहला वो घर ख़ुदा का

हम इस के पासबाँ हैं वो पासबाँ हमारा

तेग़ों के साए में हम पल कर जवाँ हुए हैं

ख़ंजर हिलाल का है क़ौमी निशाँ हमारा

मग़रिब की वादियों में गूँजी अज़ाँ हमारी

थमता न था किसी से सैल - ए - रवाँ हमारा

बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम

सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा

ऐ गुलिस्तान - ए - उंदुलुस वो दिन हैं याद तुझ को

था तेरी डालियों में जब आशियाँ हमारा

ऐ मौज - ए - दजला तू भी पहचानती है हम को

अब तक है तेरा दरिया अफ़्साना - ख़्वाँ हमारा

ऐ अर्ज़ - ए - पाक तेरी हुर्मत पे कट मरे हम

है ख़ूँ तिरी रगों में अब तक रवाँ हमारा

सालार - ए - कारवाँ है मीर - ए - हिजाज़ अपना

इस नाम से है बाक़ी आराम - ए - जाँ हमारा

'इक़बाल 'का तराना बाँग - ए - दरा है गोया

होता है जादा - पैमा फिर कारवाँ हमारा