चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

औलादे शन्सब की दुश्मनाने आले मौहम्मद स. से जंग

इसी तारीख़े फ़रिशता के सफ़ा 54 में है कि जब अबू मुस्लिम मरवज़ी ने बादशाहे वक़्त के खि़लाफ़ ख़ुरूज किया था और उसने औलादे शन्सब से मदद चाही थी तो उन लोगों ने दर क़त्ले आदाए अहले बैत तक़सीर न करद दुश्मनाने आले मौहम्मद स. के क़त्ल करने में कोई कमी नहीं की। इन तहरीरों से मालूम होता है कि अमीरल मोमेनीन (अ.स.) के ज़रिये से इस्लाम के साथ साथ शिईयत भी हिन्दोस्तान में पहुँची थी क्यो कि औलादे शन्सब का तरज़े अमल शीईयत का आईना दार है।

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की राहे कूफ़ा से सिन्ध जाने की ख़्वाहिश

मुवर्रिख़ अबू मौहम्मद , मौहम्मद अब्दुल्लाह बिन मुस्लिम बिन क़तीबा देवनरी अल मुतावफ्फा 276 ई0 तहरीर फ़रमाते हैं जब हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) को हुर ने कूफ़े के रास्ते में रोका तो आपने इरशाद फ़रमाया कि तुम अगर मेरे ईराक़ मे आने को पसन्द नहीं करते तो मुझे छोड़ दो कि मैं सिन्ध चला जाऊँ। उसके बाद इब्ने क़तीबा लिखते है कि इमाम हुसैन (अ.स.) के इस फ़रमाने से मालूम होता है कि इस्लाम इस वक़्त से पहले में पहुँच चुका था।(मारिफ़ इब्ने क़तीबा सफ़ा 94 प्रकाशित मिस्र 1934 0 महीज़ उल अहज़ान सफ़ा 163 )

हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की एक ज़ौजा का सिन्धी होना

इस्लाम के क़दीम तरीन मुवर्रिख़ इब्ने क़तीबा अपनी किताबे मआरिफ़ के सफ़ा 73 पर लिखता है कानत ज़ौजातुल इमाम ज़ैनुल आबेदीन सिन्दिया व तवल्लुद तहा ज़ैद अल शहीद इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की एक बीवी सिन्धी थीं और उनसे हज़रत ज़ैद शहीद पैदा हुये। फिर इसी किताब के सफ़ा 94 पर लिखता है। ज़ैद बिन इमाम सज्जाद बिन इमाम हुसैन की कुन्नीयत अबुल हसन थीं और उनकी माँ सिन्धी थीं।

एक और जगह लिखता है जो बीवी इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को दी गई वह सिन्धी थीं। अब्दुल रज़्ज़ाक़ लिखते हैं कि ज़ैद शहीद इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की जिस बीवी से पैदा हुये वह सिन्धी थीं।

(किताब ज़ैद शहीद पृष्ठ 5 प्रकाशित नजफ़े अशरफ़)

इन जुमला हालात पर नज़र करने से यह बात वाज़ेह हो जाती है कि सिन्ध(हिन्दोस्तान) में दीने इस्लाम हज़रत अली (अ.स.) के ज़रिये से पहुँचा और इसी के साथ साथ शीईयत की भी बुनियाद पड़ी थी नीज़ यह कि हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) को सिन्ध के मुसलमानों पर भरोसा था। वह कूफ़ा व शाम के मुसलमानों पर सिन्ध के मुसलमानों को तरजीह देते थे। यही वजह है कि आपने कूफ़ा में इब्ने जि़याद और यज़ीद बिन माविया के लशकर के सरदार हुर बिन यज़ीद बिन माविया के लशकर के सरदार हुर बिन यज़ीदे रेयाही। (जो बाद में हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के क़दमो में शहीद हो कर राहिये जन्नत हुये थे।) से यह फ़रमाया था कि मुझे सिन्ध चले जाने दो। इसके अलावा आपके फ़रज़न्द इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने एक बीवी सिन्ध की अपने पास रखी थी जिस से हज़रत ज़ैद शहीद पैदा हुए थे। यह तमाम उमूर इस अम्र की वज़ाहत करते हैं कि आले मौहम्मद स. को इलाक़ाए सिन्ध से दिलचस्पी और वह उसके बाशिन्दों को अच्छी निगाह से देखते थे और उन पर पूरा भरोसा करते थे।

हज़रत अली (अ.स.) की शहादत

(40 हिजरी)

सिफ़्फ़ीन के साज़ेशी फ़ैसलाए हकमैन के बाद हज़रत अली (अ.स.) इस नतीजे पर पहुँचे कि अब एक फै़सला कुन हमला करना चाहिये। चुनान्चे आपने तैय्यारी शुरू फ़रमा दी और सिफ़्फ़ीन व नहरवान के बाद ही से आप इसकी तरफ़ मुतावज्जेह हो गये थे। यहां तक की हमले की तैय्यारियां मुकम्मल हो गईं। दस हज़ार फ़ौज का अफ़सर इमाम हुसैन (अ.स.) को और दस हज़ार फ़ौज का सरदार क़ैस इब्ने सआद को और दस हज़ार का अबू अय्यूब अंसारी को मुक़र्रर किया। इब्ने ख़ल्दून लिखता है कि फ़ौज की जो मुकम्मल फ़ेहरिस्त तैय्यार हुई उसमें चालीस हज़ार आज़मूदा कार , सत्तर हज़ार रंग रूट और आठ हज़ार मज़दूर पेशा शामिल थे लेकिन कूच का दिन आने से पहले इब्ने मुलजिम ने काम तमाम कर दिया। मुक़द्देमा नहजुल बलाग़ा , अब्दुल रज़्जा़क़ जिल्द 2 सफ़ा 704 में है कि फ़ैसला तो ढोंग ही था , मगर सिफ़्फ़ीन की जंग ख़त्म हो गई और माविया हतमी तबाही से बच गया। अब अमीरल मोमेनीन (अ.स.) ने कूफ़े का रूख़ किया और माविया पर आखि़री ज़र्ब लगाने की तैय्यारियां करने लगे। साठ हज़ार (60,000) फ़ौज आरास्ता हो चुकी थी और यलग़ार शुरू होने वाली थी कि एक ख़ारजी अब्दुल रहमान इब्ने मुलजिम ने दग़ा बाज़ी से हमला कर दिया। हज़रत अमीरल मोमेनीन (अ.स.) शहीद हो गये। इब्ने मुलजिम की तलवार ने हज़रत अली (अ.स.) काम तमाम नहीं किया बल्कि पूरी उम्मते मुसलेमा को क़त्ल कर डाला , तारीख़ का धारा ही बदल डाला। इब्ने मुलजिम की तलवार न होती तो खि़लाफ़त मिनहाजे नबूवत पर इस्तेवार रहती। (अरजहुल मतालिब सफ़ा 478 में है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने पेशीन गोई फ़रमाई थी कि अली (अ.स.) की डाढ़ी सर के ख़ून से रंगीन होगी। तारीख़ अल फ़ख़री सफ़ा 73 में है कि हज़रत अली (अ.स.) एक मरतबा बीमार हुए और शैख़ेन उन्हें देखने के लिये गये , तो हालत सक़ीम देख कर आं हज़रत स. से कहने लगे कि शायद अली (अ.स.) न बचेगें। आपने फ़रमाया अभी अली (अ.स.) को मौत नहीं आयेगी। अली (अ.स.) दुनिया के तमाम रंजो ग़म उठाने के बाद तलवार से शहीद होंगे। सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 80 में है कि हज़रत अली (अ.स.) फ़रमाते थे कि मेरे सर और मेरी दाढ़ी को ख़ून से जो रंगीन करेगा वह दुनिया मे सब से ज़्यादा बद बख़्त होगा। शरह इब्ने अबिल हदीद जुज़ 13 सफ़ा 102 में है कि ख़ालिद बिन वलीद बाज़ उमूरे शुजाअत की वजह से अली (अ.स.) को क़त्ल करना चाहते थे। सीरते हलबिया जिल्द 2 सफ़ा 199 व बुख़ारी जिल्द 5 हालाते ग़ज़वाए ताएफ़ सफ़ा 29 में है कि रसूल अल्लाह स. ख़ालिद इब्ने वलीद पर तबर्रा करते थे। तारीख़ अबुल फि़दा वग़ैरा में है कि ख़ालिद ने अहदे अबू बक्र में मालिक इब्ने नवेरा की बीवी से ज़ेना किया था। तारीख़े आसम कूफ़ी सफ़ा 34 व तारीख़े तबरी जिल्द 4 सफ़ा 464 में है कि हज़रत उमर ने ख़लीफ़ा होते ही ख़ालिद को माज़ूद कर दिया था। तारीख़े तबरी जिल्द 6 सफ़ा 54 व कामिल वग़ैरा में है कि 38 हिजरी में अमीरे माविया ने मालिके अशतर को ज़हर से शहीद करा दिया। तारीख़े कामिल इब्ने असीर जिल्द 3 सफ़ा 142 में है कि माविया ने हज़रत अबू बक्र के बेटे मौहम्मद को गधे की खाल में सी कर जि़न्दा जला दिया था। जिसका हज़रत आयशा को बहुत रंज था और माविया को बद दुआ किया करती थीं। तवारीख़ मे है कि माविया ने हज़रत आयशा को कुएं में गिरा कर जि़न्दा दफ़्न कर दिया। जि़क्र अल अब्बास सफ़ा 51 में मुख़्तलिफ़ तवारीख़ के हवाले से मरक़ूम है कि 28 सफ़र 50 हिजरी को वाकि़ये शहादत हज़रत अली (अ.स.) के दस साल बाद इमाम हसन (अ.स.) को ज़हर से माविया ने शहीद कराया था। कशफ़ुल ग़म्मा सफ़ा 61 में है कि हज़रत अली (अ.स.) ने पेशीन गोई फ़रमाई थी कि अमीरे शाम को उस वक़्त तक मौत न आयेगी जब तक वह मेरे सर और मेरी दाढ़ी को ख़ून आलूद अपनी आंख़ों से न देख लेगा। किताब तज़किराए मौहम्मद व आले मौहम्मद जिल्द 2 सफ़ा 288 में है कि इब्ने मुलजिम ख़ारजी तहरीक़ की इस जमाअत का मिम्बर था जो किसी मज़बूत हाथ के इशारे पर नाच रही थी। ऐन उस वक़्त जब हज़रत अली (अ.स.) शाम के हमले के लिये रवाना होने की तैय्यारियां कर रहे थे इब्ने मुलजिम का वार करना यह बता रहा है कि इसकी तह में बड़ी साजि़श थी। तारीख़ अल इमामत वल सियासत जिल्द 2 सफ़ा 30 में है कि माविया ने अहदे उस्मान में हज़रते उस्मान से क़त्ले अली (अ.स.) की इजाज़त मांगी थी लेकिन उन्होने इन्कार कर दिया था। किताब मनाकि़बे मुरतज़वी के सफ़ा 277 में बा हवाला हदीक़तुल हक़ाएक़ हकीम सनाई (र.) मरक़ूम है कि अमीरल मोमेनीन के क़त्ल के इन्तेज़ामात इब्ने मुलजिम के ज़रिये से अमीरे माविया ने किये थे जिसका इक़रार ख़ुद इब्ने मुलजिम ने इन अल्फ़ाज़ में किया था।

मैंने माविया के कहने से ऐसा किया मगर अफ़सोस कोई फ़ायदा बरामद न हुआ। मुलाहेज़ा हो जि़क्र अल अब्बास सफ़ा 20 किताब अरजहुल मतालिब सफ़ा 753 व तबरी जिल्द 4 सफ़ा 599 व रौज़तुल अहबाब में है कि अब्दुल रहमान इब्ने मुलजिम ने कूफ़ा पहुँच कर एक हज़ार दिरहम की एक तलवार ख़रीदी और उसे ज़हर में बुझा लिया और मौक़े की तलाश में कूफ़े की गलियों के चक्कर काटने लगा। इसी दौरान में एक दिन उसकी नज़र एक हसीन औरत पर जा पड़ी जिसका नाम क़तामा बिन्ते नजबा था और जो माविया की रिशतेदार होती थी। इब्ने मुलजिम उस औरत का बे दाम ग़ुलाम बन गया आर उससे सिलसिला जुम्बानी शुरू की। बिल आखि़र बात ठहरी और अक़्द का फ़ैसला हो गया। जब मेहर की गुफ़्तुगू हुई तो उसने कहा कि तीन हज़ार अशरफि़या और हज़रत अली (अ.स.) का सर लूगीं क्यो कि उन्होंने इस्लामी जंगों में मेरे बाप और भाईयो को क़त्ल कर दिया है। इब्ने मुलजिम ने जवाब दिया कि मुझे मंज़ूर है। लक़द क़सदत लक़तल अली वमा अक़द मनी हाज़ल मिस्र ग़ैर ज़ालेका ख़ुदा की क़सम तू ने ऐसी चीज़ मांगी है जिसके लिये मैं ख़ुद इस शहर में भेजा गया हूँ , अलबत्ता तुझे भी अपने वायदे का पास व लिहाज़ रखना चाहिये , उसने कहा ऐसा ही होगा। इस अहदो पैमान वायदा वईद के बाद इब्ने मुलजिम तगो दौ व सई व कोशिश और जद्दो जेहद में मशग़ूल हो गया। सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 80 में है कि इब्ने मुलजिम की इमदाद के लिये शबीब इब्ने बीरह अशजई भी था। रौज़तुल शोहदा सफ़ा 198 में है कि क़तामा ने और बई अशख़ास इसकी मद्द के लिये मोअय्यन और मोहय्या कर दिये। मुस्तदरिक हाकिम में है कि क़तामा ने ऐसा महर मांगा जिसकी मिसाल अरब व अजम में नहीं है। तारीख़े अहमदी सफ़ा 210 में ब हवाला रौज़तुल अहबाब मरक़ूम है कि हज़रत अली (अ.स.) ने ज़मानाए शहादत क़रीब होने पर कई बार अपनी शहादत का इशारे और कनाये में जि़क्र फ़रमाया था। मन्क़ूल है कि एक दिन आप ख़ुतबा फ़रमा रहे थे नागाह इमाम हसन (अ.स.) दौराने ख़ुतबा में आ गये। हज़रत अली (अ.स.) ने पूछा बेटा आज कौन सी तारीख़ है और इस महीने के कितने दिन गुज़र चुके हैं ? आपने अर्ज़ कि बाबा जान 13 दिन गुज़र गये हैं। फिर हज़रत ने इमाम हुसैन (अ.स.) की तरफ़ रूख़ कर के पूछा बेटा अब महीने के ख़त्म होने में कितने दिन बाक़ी रह गये हैं ? इमाम हुसैन (अ.स.) ने अर्ज़ कि बाबा जान 17 दिन रह गये हैं। उसके बाद आप ने अपनी रीशे मुबारक पर हाथ फेर कर फ़रमाया कि अन्क़रीब क़बीलाए मुराद का एक नामुराद मेरी दाढ़ी को सर के ख़ून से रंगीन करे गा। (अख़बारे सहीहा में वारिद है कि हज़रत अली (अ.स.) का उसूल यह था कि आप एक एक दिन अपने बेटों के यहां इफ़्तार फ़रमाया करते थे और सिर्फ़ एक लुक़मा तनावुल करते थे। एक रवायत में है कि आपने अपनी बेटी उम्मे कुलसूम से फ़रमाया कि मैं अन्क़रीब तुम लोगों से रूख़सत हो जाऊँगा। यह सुन कर वह रोने लगीं। आपने फ़रमाया कि मौत से किसी को छुटकारा नहीं बेटी मैंने आज रात को ख़्वाब में सरवरे आलम को देखा है कि वह मेरे सर से ग़ुबार साफ़ कर रहे हैं और फ़रमाते हैं कि तुम तमाम फ़राएज़ अदा कर चुके अब मेरे पास आ जाओ। जम्हूरे मुवर्रेख़ीन का इत्तेफ़ाक़ है कि जिस रात की सुबह को आप शहीद हुए उस रात में आप सोय नहीं। यह रात आप की इस तरह गुज़री कि आप थोड़ी थोड़ी देर के बाद मुसल्ले से उठ कर सहने ख़ाना में आते और आसमान की तरफ़ देख कर फ़रमाते थे कि मेरे आक़ा सरवरे कायनात ने सच फ़रमाया है कि मैं शहीद किया जाऊँगा। लिखा है कि जब नमाज़े सुबह के इरादे से बाहर निकले , तो सहने ख़ाना में बत्तख़ों ने दामन थाम लिया और शोर मचाने लगीं किसी ने रोका तो आपने फ़रमाया मत रोको यह मुझ पर नौहा कर रहीं हैं। फिर आप दौलत सरा से बरामद हो कर दाखि़ले मस्जिदे कूफ़ा हुए और गुलदस्तै अज़ान पर जा कर अज़ान कहने लगे। इसके बाद नमाज़ में मशग़ूल हो गये। जब आप सज्दाए अव्वल में गये , नामुराद इब्ने मुलजिम मुरादी ने सरे अक़दस पर तलवार लगा दी। यह तलवार उसी जगह लगी जिस जगह ख़न्दक़ में उमर बिन अब्देवुद की तलवार लग चुकी थी। ज़र्ब लगते ही आसमान से आवाज़ आई अला क़तलल अमीरल मोमेनीन आगाह हो कि अमीरल मोमेनीन क़त्ल हो गये। इसके बाद आप ज़मीन पर लौटने लगे और ज़ख़्म पर मिट्टी डाल कर बोले फ़ुज़तो बे रब्बिल काबा ख़ुदा की क़सम मैंने हयाते अब्दी पाई और कामयाब हो गया। ज़र्ब लगने के बाद इब्ने मुलजिम भागा , लोगों ने पीछा किया। (किताब जि़करूल अब्बास सफ़ा 40 मे है कि आपको ख़ून में नहाया देख कर अवलादो असहाब ने गिरया करना शुरू कर दिया। आप ने फ़रमाया बस रो चुको और मुझे घर ले चलो यह सुन कर हज़रत इमाम हसन (अ.स.) और हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) और हज़रते अब्बास (अ.स.) ने उक गिलीम में डाल कर आपको घर पहुँचाया। किताब अल कर्रार सफ़ा 402 में है कि घर पहुँच कर आप ने सुबह को मुख़ातिब कर के फ़रमाया कि तू गवाह रहना कि मैंने कभी नमाज़ क़जा़ नहीं की , और ख़ुदा और रसूल स. की कोई मुख़ालेफ़त मुझसे नहीं हुई। तारीख़े अहमदी सफ़ा 212 मे है कि कोई इलाज कारगर न हुआ और आपकी वफ़ात का वक़्त आ पहुँचा। तारीख़ अल इमामत वल सियासत जिल्द 1 सफ़ा 154 में है आपको ऐसी ज़हर से बुझी हुई तलवार से ज़ख़्मी किया गया था कि सारे अहले मिस्र के लिये काफ़ी था। किताब रहमतुल आलेमीन मुसन्नेफ़ा क़ाज़ी मौहम्मद सुलैमान जज पटियाला के सफ़ा 81 में है कि ज़ख़्म को जिस पर शहादत हुई कसीर बिन उमरो सकूनी जो शाहाने ईरान का तबीबे ख़ास रह चुका था उसने बताया कि ज़ख़्म उम्मे दिमाग़ तक पहुँच गया है और अब सेहत मोहाल है। तारीख़े कामिल इब्ने असीर में है कि इन्तेक़ाल के वक़्त आपने नसीहतें और वसीयतें फ़रमाईं जो तक़वा परहेज़ गारी , इबादत सिलए रहम वग़ैरा वग़ैर से मुताअल्लिक़ थीं। फिर एक नविश्ता लिख कर दिया। किताब अख़बारे मातम सफ़ा 124 में और बाज़ कुतुबे तवारीख़ में है कि आपकी खि़दमत में शरबत पेश किया गया तो आपने थोड़ा सा पी कर क़ातिल को भीजवा दिया। अल अख़बार अल तवाल सफ़ा 360 में है कि हज़रत उम्मे कुलसूम ने इब्ने मुलजिम से कहलाया कि ऐ दुशमने ख़ुदा तू ने अमीरल मोमेनीन को शहीद कर दिया , तो उसने जवाब दिया कि अमीरल मोमेनीन को नहीं , मैंने तुम्हारे बाप को क़त्ल किया है और ऐसी तलवार से क़त्ल किया है जिसे एक माह ज़हर पिलाता रहा हूँ। कशफ़ुल अनवार तरजुमा बिहार जिल्द 9 सफ़ा 277 मे है कि आपने आख़री वक़्त अपने सब बेटों को बुला कर इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) की इताअत और इमादाद का हुक्म दिया और फ़रमाया कि यह फ़रज़न्दाने रसूल स. हैं। उसूले काफ़ी सफ़ा 141 मे है कि जिन बेटों को हिदायत दी गई उनकी तादाद बारह थी। मरक़ातुल ईक़ान जिल्द 1 सफ़ा 40 में है कि आपने अपनी तमाम अवलाद व अज़वाज को इमाम हसन (अ.स.) के सिपुर्द फ़रमाया। माईतन्न सफ़ा 441 में है कि हज़रते अब्बास (अ.स.) को इमाम हुसैन (अ.स.) के हवाले कर के फ़रमाया कि यह तुम्हारा ग़ुलाम है करबला में काम आयेगा। किताब अक़दुल फ़रीद में है कि आपने अमरे खि़लाफ़त इमाम हसन (अ.स.) के सिपुर्द फ़रमाया। किताब वसीलातुन नजात में है कि इमाम हसन (अ.स.) हज़रत अली (अ.स.) की वसीयत के मुताबिक़ इमामे बरहक़ और ख़लीफ़ा ए वक़्त क़रार पाए। तारीख़े कामिल इब्ने असीर , बेहारूल अनवार , आलाम अल वरा , जि़करूल अब्बास सफ़ा 38 में है कि आपने 21 रमज़ान 40 हिजरी को इन्तेक़ाल फ़रमाया। किताब जामेए अब्बासी सफ़ा 59 और अल याक़ूबी में है कि शबे 21 रमज़ान को आपने इन्तेक़ाल फ़रमाया है। इसी शब को हज़रते ईसा (अ.स.) आसमान पर उठाए गये। हज़रते मूसा (अ.स.) ने रहलत की और यूशा इब्ने नून ने वफ़ात पाई। किताब अल इमामत वल सियासत जिल्द 1 सफ़ा 155 व इरशादे मुफ़ीद सफ़ा 7 में है कि इमामे हसन (अ स ) , इमामे हुसैन (अ.स.) और अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र ने ग़ुस्ल दिया और मोहम्मदे हनफि़या ने पानी डालने में मद्द की। कफ़न पिनहाने के बाद हज़रत इमाम हसन (अ.स.) ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ी। रहला इब्ने जबीर अनदलसी सफ़ा 189 प्रकाशित मिस्र 1908 ई0 में है कि आपको जिस जगह ग़ुस्ल दिया गया उस जगह हज़रत नूह (अ.स.) की बेटी का घर था। सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 80 में है कि शहादत के वक़्त आप की उम्र 63 साल थी। बाज़ तवारीख़ में है कि आपकी क़ब्र हज़रत नूह (अ.स.) की बनाई हुई थी और आपका जनाज़ा सिरहाने की तरफ़ से फ़रिश्ते उठाये हुए थे। तारीख़े अबुल फि़दा में है कि आप नजफ़े अशरफ़ में सिपुर्दे ख़ाक किये गये जो अब भी जि़यारत गाहे आलम है। अल याकूबी जिल्द 2 सफ़ा 203 में है कि शहादते अली (अ.स.) के बाद इमामे हसन (अ.स.) ने अपने ख़ुतबे में फ़रमाया कि उन्होंने सिर्फ़ सात सौ (700) दिरहम छोड़े हैं। मुसतदरिक हाकिम और रियाज़ुन नज़रा और अरजहुल मतालिब सफ़ा 760 में है कि जिस शब में हज़रत अली (अ.स.) शहीद हुये उसकी सुबह को बैतुल मुक़द्दस का जो पत्थर उठाया जाता था , उसके नीचे से ख़ूने ताज़ा बरामद होता था। तारीख़ अल याकूबी जिल्द 2 सफ़ा 203 में है कि हज़रत अली (अ.स.) के दफ़्न के बाद उनकी क़ब्र पर क़आक़ा बिन ज़रारा ने एक तक़रीर की जिसमें निहायत ग़मों अन्दोह के साथ कहा कि ऐ मौला आपकी जि़न्दगी ख़ैरो बरकत की किलीद थी , अगर लोग आपको सहीह तरीक़े पर मानते तो ख़ैर ख़ैर पाते मगर दुनिया वालों ने दुनिया को दीन पर तरजीह दी और ख़ैर हासिल न कर सके। इन्शाअल्लाह दुनिया दार जहन्नम में जायेंगे। किताब अनवारूल हुसैनिया जिल्द 2 सफ़ा 36 में है कि आपकी क़ब्र पोशीदा रखी गई थी। मिस्टर गिबन की तारीख़ डी गाईन एण्ड हाल अॅाफ़ दी रोमन इम्पाएर में है कि ज़ालिम बनी उम्मया की वजह से अली (अ.स.) की क़ब्र छुपाई गई। चौथी सदी में एक क़ुब्बा रौज़ए कूफ़ा के खन्डरों के पास नमूदार हो गया। मशहदे अली कूफ़े से पाँच मील और बग़दाद से 120 मील जुनूब में वाक़े है। हयातुल हैवान व दमीरी जिल्द 2 सफ़ा 187 में है कि सब से पहले आपकी क़ब्र के गिर्द कटैहरे लगवाये गये थे। किताब सैफ़ अल मुक़ल्लेदीन बाब 5 सफ़ा 274 में है कि मुसन्निफ़ किताब अब्दुल जलील यूसुफ़ी जी ने आपकी तारीख़ के बारे में लिखा है। गर तू साले शहादतश जूई।

सरे मातम चरानमी गोई।।

हज़रत अली (अ.स.) की शहादत पर मरसिया

हज़रत अली (अ.स.) की शहादत पर बहुत से शोअरा ने मरासी कहे हैं हम इस वक़्त किताब रहमतुल लिल आलेमीन मुसन्नेफ़ा का़ज़ी मौहम्मद सुलैमान जज पटियाला के जिल्द 2 सफ़ा 81 से बक्ऱ बिन हमाद अल क़ाहेरी के 11 अशआर में से सिर्फ़ तीन शेर मय तरजुमा नक़ल करते हैं।

क़ुल ला बिन मलहजम व अला क़द अर ग़ालेबा।

हदमत वै लका , लिल इस्लाम अरकाना।।

इब्ने मुलजिम से कहना गो मैं जानता हूँ कि तक़दीर सब पर ग़ालिब है कि कमबख़्त तूने इस्लाम के अरकान को ढा दिया।

क़तलत अफ़ज़ल मिन यमशी अली क़दम।

व अव्वलुन नास , इस्लामन व ईमाना।

वह शख़्स जो ज़मीन पर चलने वालों में सब से अफ़ज़ल था और इस्लाम व ईमान में सब से अव्वल।

व इल्मुन्नास बिल क़ुरआन सुम बेमा।

सन रसूलना , शरअन वत तबैना।।

और क़ुरआन व सुन्नत के जानने में सब आलम था , तूने उसे क़त्ल किया है।

हज़रत अली (अ.स.) की अज़वाज व औलाद

किताब अनवारूल हुसैनिया जिल्द 2 सफ़ा 35 में है कि आपने दस औरतों से निकाह किया और आपके इन्तेक़ाल के वक़्त चार बीवियां मौजूद थीं। इमामा , असमा , लैला और उम्मुल बनीन। आपने दस बेटे और अटठारा बेटियां छोड़ीं। इरशादे मुफ़ीद सफ़ा 199 व हमराह इब्ने हज़म व तहज़ीबुल असमा जिल्द 1 सफ़ा 149 में है कि आपके बारह बेटे और सोलह बेटियां थीं आप की नस्ल पांच बेटों से बढ़ी। 1. इमाम हसन (अ स ) , 2. इमाम हुसैन (अ स ) , 3. मोहम्मदे हनफि़या1 , 4. हज़रते अब्बास (अ.स.) 5. उमर बिन अली , मुलाहेज़ा हों। नासेख़ुल तवारीख़ जिल्द 3 सफ़ा 707 प्रकाशित बम्बई व जि़करूल अब्बास सफ़ा 44 प्रकाशित लाहौर।

1.मौहम्मद की माँ का असली नाम ख़ूला और लक़ब और हनफ़ेया था वह क़बीलाए हनफि़या बिन लहीम से थीं , मौहम्मद बिन हनफि़या 8 हिजरी में पैदा हुए और उन्होंने यकुम मोहर्रम 81 हिजरी को इन्तेक़ाल किया। उनके ज़ोहद व रियाज़द और ज़ोरो क़ुव्वत की हिकायत बहुत मशहूर है।(किताब रहमतुल लिल आलेमीन जिल्द 2 सफ़ा 85 प्रकाशित लाहौर) अबुल अब्बास , अहमद बिन अली नल शन्दी अल मुतावफ्फा 821 ई0 तहरीर फ़रमाते हैं कि बनी हनफ़या अदनान के बक्र बिन वाएली से मुताअल्लिक़ एक क़बीला है जिसका सिलसिला यह है। बनू हनफ़या बिन लहीम , बिन साअब बिन अली बिन बक्र बिन वाएल यह यमामा में रहते थे।

(निहायतुल अरब फि़न निसाब अल अरब सफ़ा 225 प्रकाशित नजफ़े अशरफ़)