चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

अबु अब्दुल्लाह हज़रत इमाम हुसैन (अ स ) शहीदे कर्बला

हुसैन तूने तहे तेग़ , वह किया सजदा।

कि फ़ख़्र करती है ताअत भी इस इताअत पर।।

न अब्दियत को फ़क़त , इफ़्तेख़ार है मौला।

उलूहियत भी है नाज़ां , तेरी इबादत पर।।

साबिर थरयानी (कराची)

यूँही बस तीसरी शाबान को हुरमत चौगनी हो गई।

मुझे बारह पिला दे , पांचवां साक़ी हुआ पैदा।।

न क्यों कर , ऐसे बेटे हों नाज़ां साक़ीए कौसर।

निहां हैं जिसमें नौ कौसर यह वह इस्मत का है दरिया।।

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) अबुल आइम्मा अमीरल मोमेनीन हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) व सय्यदुन्निसां हज़रत फ़ात्मातुज़ ज़हरा (अ.स.) के फ़रज़न्द और पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) व जनाबे ख़दीजातुल कुबरा के नवासे और शहीदे मज़लूम इमाम हसन (अ.स.) के कु़व्वते बाज़ू थे। आपको अबुल आइम्मातुस सानी कहा जाता है क्यों कि आप ही की नस्ल से नौ इमाम मुतावल्लिद हुए। आप भी अपने पदरे बुज़ुर्गवार और बरादरे आली वक़ार की तरह मासूम मन्सूस अफ़ज़ले ज़माना और आलिमे इल्मे लदुन्नी थे।

आपकी विलादत

हज़रत इमाम हसन (अ.स.) की विलादत के पचास रातें गुज़री थीं कि हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का नुक़ता ए वजूद बतने मादर में मुस्तक़र हुआ था। हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) इरशाद फ़रमाते हैं कि विलादते हसन (अ.स.) और इस्तेक़रारे इमाम हुसैन (अ.स.) में तोहर का फ़ासला था। (असाबा नज़लुल अबरार वाक़ेदी) अभी आपकी विलादत न होने पाई थी कि बा रवायते उम्मुल फ़ज़ल बिन्ते हारिस ने ख़्वाब में देखा कि रसूले करीम (स अ व व ) के जिस्म का एक टुकड़ा काट कर मेरी आग़ोश में रखा गया है। इस ख़्वाब से वह बहुत घबराई और दौड़ी हुई रसूले करीम (स अ व व ) की खि़दमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ परदाज़ हुई कि हुज़ूर आज एक बहुत बुरा ख़्वाब देखा है। हज़रत ने ख़्वाब सुन कर मुस्कुराते हुए फ़रमाया कि यह ख़्वाब तो निहायत ही उम्दा है। ऐ उम्मुल फ़ज़ल इसकी ताबीर यह है कि मेरी बेटी फ़ात्मा के बतन से अन्क़रीब एक बच्चा पैदा होगा जो तुम्हारी आग़ोश में परवरिश पाऐगा। आपके इरशाद फ़रमाने से थोड़ा ही अरसा गुज़रा था कि ख़ुसूसी मुद्दते हमल सिर्फ़ 6 माह गुज़ार कर नूरे नज़र रसूल (स अ व व ) इमाम हुसैन (अ.स.) बातारीख़ 3 शाबान सन् 4 हिजरी बमुक़ाम मदीना ए मुनव्वरा बतने मादर से आग़ोशे मादर में आ गये।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 13 व अनवारे हुसैनिया जिल्द 3 पृष्ठ 43 बा हवालाए साफ़ी पृष्ठ 298, व जामए अब्बासी पृष्ठ 59 व बेहारूल अनवार व मिसबाहे तूसी व मक़तल इब्ने नम्मा पृष्ठ 2 ) वग़ैरा , उम्मुल फ़ज़ल का बयान है कि मैं हसबुल हुक्म इनकी खि़दमत करती रही , एक दिन मैं बच्चे को ले कर आं हज़रत (स अ व व ) की खि़दमत में हाज़िर हुई। आपने आग़ोशे मोहब्बत में ले कर प्यार किया और आप रोने लगे मैंने सबब दरियाफ़्त किया तो फ़रमाया कि अभी अभी जिब्राईल मेरे पास आए थे वह बतला गए हैं कि यह बच्चा उम्मत के हाथों निहायत ज़ुल्मों सितम के साथ शहीद होगा और ऐ उम्मुल फ़ज़ल वह मुझे इसकी क़त्लगाह की सुखऱ् मिट्टी भी दे गये हैं। (मिशकात जिल्द 8 पृष्ठ 140 प्रकाशित लाहौर और मसनद इमाम रज़ा पृष्ठ 38 में है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने फ़रमाया देखो यह वाक़ेया फ़ात्मा (अ.स.) से कोई न बतलाए वरना वह सख़्त परेशान होंगी।

मुल्ला जामी लिखते हैं कि उम्मे सलमा ने बयान किया कि एक दिन रसूले ख़ुदा (स अ व व ) मेरे घर इस हाल में तशरीफ़ लाए कि आप के सरे मुबारक के बाल बिखरे हुए थे और चहरे पर गर्द पड़ी हुई थी। मैंने इस परेशानी को देख कर पूछा कि क्या बात है ? फ़रमाया मुझे अभी अभी जिब्राईल ईराक़ के मुक़ामे करबला ले गये थे वहां मैंने जाय क़त्ले हुसैन (अ.स.) देखी है और यह मिट्टी लाया हूँ। ऐ उम्मे सलमा (अ.स.) इसे अपने पास महफ़ूज़ रखो , जब यह ख़ून आलूद हो जाय तो समझना कि मेरा हुसैन शहीद हो गया।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 174 )

आपका इस्मे गेरामी

इमाम शिब्लन्जी लिखते हैं कि विलादत के बाद सरवरे कायनात (स अ व व ) ने इमाम हुसैन (अ.स.) की आंखों में लोआबे दहन लगाया और अपनी ज़बान उनके मूंह में दे कर बड़ी देर तक चुसाया इसके बाद दाहिने कान में अज़ान और बायें में अक़ामत कही फिर दुआए ख़ैर फ़रमा कर हुसैन नाम रखा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 113 ) उलेमा का बयान है कि यह नाम इस्लाम से पहले किसी का भी नहीं था। वह यह भी कहते हैं कि यह नाम ख़ुदा ख़ुदा वन्दे आलम का रखा हुआ है।(अरजहुल मतालिब व रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 236 ) किताब आलाम अल वरा तबरसी में है कि यह नाम भी दीगर आइम्मा के नामों की तरह लौहे महफ़ूज़ में लिखा हुआ है।

आपका अक़ीक़ा

इमाम हुसैन (अ.स.) का नाम रखने के बाद सरवरे कायनात (स अ व व ) ने हज़रत फ़ात्मा (अ.स.) से फ़रमाया कि बेटी जिस तरह हसन (अ.स.) का अक़ीक़ा किया गया है उसी तरह इसके अक़ीक़े का भी इन्तेज़ाम करो और इसी तरह बालों के हम वज़न चांदी तसद्दुक़ करो जिस तरह हसन (अ.स.) के लिये कर चुकी हो। अल ग़रज एक मेंढा मंगवाया गया और रस्मे अक़ीक़ा अदा कर दी गई।(मतालेबुस सूऊल सुनन 241 )

बाज़ माअसरीन ने अक़ीक़े के साथ ख़त्ने का ज़िक्र किया है जो मेरे नज़दीक क़तअन ना क़ाबिले क़ुबूल है क्यों कि इमाम का मख़्तून पैदा होना मुसल्लेमात से है।

कुन्नियत व अलक़ाब

आपकी कुन्नियत सिर्फ़ अबु अब्दुल्लाह थी अल बत्ता अलक़ाब आपके बे शुमार हैं जिनमें सय्यद , सिब्ते असग़र , शहीदे अकबर और सय्यदुश शोहदा ज़्यादा मशहूर हैं। अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ेई का बयान है कि सिब्ते और सय्यद ख़ुद रसूले करीम (स अ व व ) के मोअय्यन करदा अलक़ाब हैं।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 321 )

आपकी रज़ाअत

उसूले काफ़ी बाब मौलूदुल हुसैन (अ.स.) पृष्ठ 114 में है कि इमाम हुसैन (अ.स.) ने पैदा होने के बाद न हज़रत फ़ात्मा ज़हरा (अ.स.) का शीरे मुबारक नोश किया और न किसी दाई का दूध पिया। होता यह था कि जब आप भूखे होते तो सरवरे कायनात तशरीफ़ ला कर ज़बाने मुबारक दहने अक़दस में दे देते थे और इमाम हुसैन (अ.स.) उसे चूसने लगते थे। यहां तक कि सेरो सेराब हो जाते थे। मालूम होना चाहिये कि इसी से इमाम हुसैन (अ.स.) का गोश्त पोस्त बना और लोआबे दहने रिसालत से हुसैन (अ.स.) परवरिश पा कर कारे रिसालत अंजाम देने की सलाहियत के मालिक बने। यही वजह है कि आप रसूले करीम (स अ व व ) से बहुत मुशाबेह थे।(नूरूल अबसार पृष्ठ 113 )

ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से विलादते इमाम हुसैन (अ.स.) की तहनियत व ताज़ियत

अल्लामा हुसैन वाएज़ काशेफ़ी रक़म तराज़ हैं कि इमाम हुसैन (अ.स.) की विलादत के बाद ख़ल्लाक़े आलम ने जिब्राईल को हुक्म दिया कि ज़मीन पर जा कर मेरे हबीब मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) को मेरी तरफ़ से हुसैन (अ.स.) की विलादत पर मुबारक बाद दे दो और साथ ही साथ उनकी शहादते उज़मा से भी उन्हें मुत्तला कर के ताज़ियत अदा कर दो। जनाबे जिब्राईल ब हुक्मे रब्बे जलील ज़मीन पर वारिद हुए और उन्होंने आं हज़रत (अ.स.) की खि़दमत में पहुँच कर तहनियत अदा की। इसके बाद अर्ज़ परदाज़ हुए कि ऐ हबीबे रब्बे करीम आपकी खि़दमत में शाहदते हुसैन (अ.स.) की ताज़ियत भी मिन जानिब अल्लाह अदा की जाती है। यह सुन कर सरवरे कायनात का माथा ठन्का और आपने पूछा कि जिब्राईल माजेरा क्या है ? तहनियत के साथ ताज़ियत की तफ़सील बयान करो। जिब्राईल (अ.स.) ने अर्ज़ की एक वह दिन होगा जिस दिन आपके इस चहिते फ़रज़न्द ‘‘ हुसैन ’’ के गुलूए मुबारक पर ख़न्जरे आबदार रखा जायेगा और आपका यह नूरे नज़र बे यारो मद्दगार मैदाने करबला में यक्काओ तन्हा तीन दिन का भूखा प्यासा शहीद होगा। यह सुन कर सरवरे आलम (अ.स.) महवे गिरया हो गये। आपके रोने की ख़बर ज्यों ही अमीरल मोमेनीन (अ.स.) को पहुँची वह भी रोने लगे आलमे गिरया में दाखि़ले ख़ाना ए सय्यदा हो गए। जनाबे सय्यदा (अ.स.) ने जो हज़रत अली (अ.स.) को रोता देखा तो दिल बेचैन हो गया। अर्ज़ कि अबुल हसन रोने का सबब क्या है ? फ़रमाया बिन्ते रसूल (अ.स.) अभी जिब्राईल आये हैं और वह हुसैन की तहनियत के साथ साथ उसकी शहादत की ख़बर भी दे गये हैं हालात से बा ख़बर होने के बाद फ़ात्मा का गिरया गुलूगीर हो गया। आपने हुज़ूर (स अ व व ) की खि़दमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ कि बाबा जान यह कब होगा ? फ़रमाया जब न मैं हूंगा न तुम होगी न अली होंगे न हसन होंगे। फ़ात्मा (अ.स.) ने पूछा बाबा मेरा बच्चा किस ख़ता पर शहीद होगा ? फ़रमाया फ़ात्मा (स अ व व ) बिल्कुल बे जुर्म व बे ख़ता सिर्फ़ इस्लाम की हिमायत में शहीद होगा। फ़ात्मा (स अ व व ) ने अर्ज़ कि बाबा जान जब हम में से कोई न होगा तो इस पर गिरया कौन करेगा और उसकी सफ़े मातम कौन बिछायेगा।

रावी का बयान है कि इस सवाल का हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) अभी जवाब न देने पाये थे कि हातिफ़े ग़यबी की आवाज़ आई , ऐ फ़ात्मा ग़म न करो , तुम्हारे इस फ़रज़न्द का ग़म अब्द उल आबाद तक मनाया जायेगा और इसका मातम क़यामत तक जारी रहेगा।

एक रवायत में है कि रसूल करीम (स अ व व ) ने फ़ात्मा के जवाब में यह फ़रमाया था कि ख़ुदा कुछ लोगों को हमेशा पैदा करता रहेगा , जिसके बूढ़े , बूढ़ों पर और जवान जवानों पर और बच्चे बच्चों पर और औरतें औरतों पर गिरया व ज़ारी करते रहेंगे।

फ़ितरूस का वाक़ेया

अल्लामा मज़कूर बाहवालाए हज़रत शेख़ मुफ़ीद अल रहमा रक़म तराज़ हैं कि इसी तहनियत के सिलसिले में जनाबे जिब्राईल बे शुमार फ़रिश्तों के साथ ज़मीन की तरफ़ आ रहे थे। नागाह उनकी नज़र ज़मीन के एक ग़ैर मारूफ़ तबक़े पर पड़ी , देखा कि एक फ़रिश्ता ज़मीन पर पड़ा हुआ ज़ारो क़तार रो रहा है। आप उसके क़रीब गए और आपने उससे माजरा पूछा। उसने कहा ऐ जिब्राईल मैं वही फ़रिश्ता हूँ जो पहले आसमान पर सत्तर हज़ार फ़रिश्तों की क़यादत करता था। मेरा नाम फ़ितरूस है। जिब्राईल ने पूछा तुझे यह किस जुर्म की सज़ा मिली है ? उसने अर्ज़ की , मरज़ीए माबूद के समझने में एक पल की देरी की थी , जिसकी यह सज़ा भुगत रहा हूँ। बालो पर जल गए हैं , यहां कुंजे तन्हाई में पड़ा हूँ। ऐ जिब्राईल ख़ुदारा मेरी कुछ मद्द करो। अभी जिब्राईल जवाब न देने पाये थे कि उसने सवाल किया , ऐ रूहुल अमीन आप कहां जा रहे हैं ? उन्होंने फ़रमाया कि नबी आख़ेरूज़ ज़मां हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के यहां एक फ़रज़न्द पैदा हुआ है जिसका नाम ‘‘ हुसैन ’’ है। मैं ख़ुदा की तरफ़ से उसकी अदाए तहनियत के लिये जा रहा हूँ। फ़ितरूस ने अर्ज़ कि ऐ जिब्राईल ख़ुदा के लिये मुझे अपने हमराह लेते चलो , मुझे इसी दर से शिफ़ा और नजात मिल सकती है। जिब्राईल उसे साथ ले कर हुज़ूर की खि़दमत में उस वक़्त पहुँचे जब कि इमाम हुसैन (अ.स.) आग़ोशे रसूल (स अ व व ) में जलवा फ़रमा रहे थे। जिब्राईल ने अर्ज़े हाल किया। सरवरे कायनात (स अ व व ) ने फ़रमाया कि फ़ितरूस के जिस्म को हुसैन (अ.स.) के जिस्म से मस कर दो , शिफ़ा हो जायेगी। जिब्राईल ने ऐसा किया और फ़ितरूस के बालो पर उसी तरह रोईदा हो गये जिस तरह पहले थे। वह सेहत पाने के बाद फ़ख़्रो मुबाहात करता हुआ अपनी मंज़िले असली आसमाने सेयुम पर जा पहुँचा और मिसले साबिक़ सत्तर हज़ार फ़रिश्तों की क़यादत करने लगा।

बाद अज़ शहादते हुसैन (अ.स.) चूँ बरां क़ज़िया मतला शुद ’’

यहां तक कि वह ज़माना आया जिसमें इमाम हुसैन (अ.स.) ने शहादत पाई और इसे हालात से आगाही हुई तो उसने बारगाहे अहदियत में अर्ज़ कि ‘‘ मालिक मुझे इजाज़त दी जाय कि मैं ज़मीन पर जा कर दुश्मनाने हुसैन (अ.स.) से जंग करूं। इरशाद हुआ कि जंग की कोई ज़रूरत नहीं अलबत्ता तू सत्तर हज़ार फ़रिश्ते ले कर ज़मीन पर चला जा और उनकी क़ब्रे मुबारक पर सुबह व शाम गिरया ओ मातम किया कर और इसका जो सवाब हो उसे उनके रोने वालों पर हिबा कर दे। चुनान्चे फ़ितरूस ज़मीने करबला पर जा पहुँचा और ता क़याम क़यामत शबो रोज़ रोता रहेगा। ’’(रौज़तुल शोहदा अज़ 236 ता पृष्ठ 238 प्रकाशित बम्बई 1385 हिजरी व ग़नीमतुल तालेबीन शेख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी)

इमाम हुसैन (अ.स.) का चमकता चेहरा

मुल्ला जामी रहमतुल्लाह अलैहा तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम हुसैन (अ.स.) को ख़ुदा वन्दे आलम ने वह हुस्न व जमाल दिया कि जिसकी नज़ीर नज़र नहीं आतीं आपके रूए ताबां का यह हाल था कि जब आप जाय तारीक में बैठ जाते थे तो लोग आपके रूए रौशन से शमा ए तारीक़ का काम लेते थे यानी चीज़ रौशन हो जाती थी और लोगों को तारीकी में राहबरी की ज़हमत नहीं होती थी।(शवाहेदुन नबूवत रूकन 6 पृष्ठ 174 व रौज़तुल शोहदा बाब 7 पृष्ठ 238 ) शेख़ अब्दुल वासेए इब्ने यहीया वासेई लिखते हैं कि इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) एक दिन रसूल करीम (स अ व व ) की खि़दमत में हाज़िर थे यहां तक कि रात हो गई , आपने फ़रमाया मेरे बच्चों अब रात हो गई तुम अपनी माँ के पास चले जाओ। बच्चे हसबुल हुक्म रवाना हो गये। रावी का बयान है कि जैसे यह बच्चे घर की तरफ़ चले एक रौशनी पैदा हो हुई जो उनके रास्ते की तारीकी को दूर करती जाती थी , यहां तक कि बच्चे अपनी माँ की खि़दमत में जा पहुँचे। पैग़म्बरे इस्लाम (स अ व व ) जो इस रौशनी को देख रहे थे इरशाद फ़रमाने लगे। ‘‘ अल हम्दो लिल्लाहिल लज़ी अकरामना अहल्ल बैत ’’ ख़ुदा का शुक्र है कि उसने हम अहले बैत को इज़्ज़त व करामत अता फ़रमाई है।(मुसनदे इमाम रज़ा पृष्ठ 32 मतबुआ मिस्र 1341 हिजरी)

जनाबे इब्राहीम का इमाम हुसैन (अ.स.) पर क़ुरबान होना

उलेमा का बयान है कि एक रोज़ हज़रत रसूले ख़ुदा (स अ व व ) इमाम हुसैन (अ.स.) को दाहिने ज़ानू पर और अपने बेटे जनाबे इब्राहीम को बायें ज़ानू पर बिठाये हुए प्यार कर रहे थे कि नागाह जिब्राईल नाज़िल हुए और कहने लगे इरशादे ख़ुदा वन्दी है कि दो में से एक अपने पास रखो। पैग़म्बरे इस्लाम (स अ व व ) ने इमाम हुसैन (अ.स.) को इब्राहीम पर तरजीह दी और अपने फ़रज़न्द इब्राहीम को हुसैन (अ.स.) पर फ़िदा कर देने के लिये कहा। चुनान्चे इब्राहीम अलील हो कर तीन यौम में इन्तेक़ाल कर गये। रावी का बयान है कि इस वाक़िये के बाद से जब इमाम हुसैन (अ.स.) आं हज़रत (स अ व व ) के सामने आते थे तो आप उन्हें आग़ोश में बिठा कर फ़रमाते थे कि यह वह है जिस पर मैंने अपने बेटे इब्राहीम को क़ुरबान कर दिया है।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 174 व तारीख़े बग़दाद जिल्द 2 पृष्ठ 204 )

हसनैन(अ स . ) की बाहमी ज़ोर आज़माई

इब्नल ख़शाब शेख़ कमालउद्दीन और मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक मरतबा इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) कमसिनी के आलम में रसूले ख़ुदा (स अ व व ) की नज़रों के सामने आपस में ज़ोर अज़माई करने और कुश्ती लड़ने लगे। जब बाहम एक दूसरे से लिपट गए तो रसूले ख़ुदा (स अ व व ) ने इमाम हसन (अ.स.) से कहना शुरू किया , हां बेटा ‘‘ हसन बगीर , हुसैन रा ’’ हुसैन को गिरा दे और चीत कर दे। फ़ात्मा (स अ व व ) ने आगे बढ़ कर अर्ज़ कि बाबा जान आप तो बड़े फ़रज़न्द की हिम्मत बढ़ा रहे हैं और छोटे बेटे की हिम्मत अफ़ज़ाई नहीं करते। आपने फ़रमाया कि ऐ बेटी यह तो देखो जिब्राईल खड़े हुए हुसैन से कह रहे हैं ‘‘ बगीर हसन रा ’’ ऐ हुसैन तुम हसन को गिरा दो , और चित कर दो।

(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 174 व रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 239 नूरूल अबसार पृष्ठ 114 प्रकाशित मिस्र)

ख़ाके क़दमे हुसैन (अ.स.) और हबीब इब्ने मज़ाहिर

अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी लिखते हैं कि एक दिन रसूले ख़ुदा (स अ व व ) एक रास्ते से गुज़र रहे थे आपने देखा कि चन्द बच्चे खेल रहे हैं। आप उनके क़रीब गए और उनमें से एक बच्चे को उठा कर अपनी आग़ोश में बैठा लिया और आप उसकी पेशानी के बोसे देने लगे। एक साहबी ने पूछा , हुज़ूर इस बच्चे में क्या ख़ुसूसियत है कि आपने इस दर्जा क़द्र अफ़ज़ाई फ़रमाई है ? आपने इरशाद फ़रमाया कि मैंने इस एक दिन इस हाल में देखा कि यह मेरे बच्चे हुसैन के क़दमों की ख़ाक उठा कर अपनी आंखों में लगा रहा था। बाज़ हज़रात का बयान है कि वह बच्चा आं हज़रत ने जिसको प्यार किया था उसका नाम हबीब इब्ने मज़ाहिर था।(रौज़तुल शोहदा)

पिसरे मुर्तज़ा , इमाम हुसैन -- कि चूँ ऊला न बूदा दर कौनैन

मुस्तफ़ा ऊरा कशीदा बदोश -- मुर्तज़ा , पर वरीदा दर आग़ोश

अक़्ल दर बन्द अहदो पैमाईश -- बूदा जिब्राईल ,महद जुम्बानिश

इमाम हुसैन (अ.स.) के लिये हिरन के बच्चे का आना

किताब कनज़ुल ग़राएब में है कि एक शख़्स ने सरवरे काएनात (स अ व व ) की खि़दमत में एक बच्चे आहू (हिरन) हदिये में पेश किया। आपने उसे इमाम हसन (अ.स.) के हवाले कर दिया क्यों कि आप बर वक़्त हाज़िरे खि़दमत हो गये थे। इमाम हुसैन (अ.स.) ने जब इमाम हसन (अ.स.) के पास हिरन का बच्चा देखा तो अपने नाना से कहने लगे , नाना जान आप मुझे भी हिरन का बच्चा दीजिए। सरवरे कायनात (स अ व व ) इमाम हुसैन (अ.स.) को तसल्ली देने लगे लेकिन कमसिनी का आलम था फ़ितरते इंसानी ने इज़हारे फ़ज़ीलत के लिये करवट ली और इमाम हुसैन (अ.स.) ने ज़िद करना शुरू कर दिया और क़रीब था कि रो पड़ें , नागाह एक हिरन को आते हुए देखा गया जिसके साथ उसका बच्चा था। वह आहू (हिरन) सीधा खि़दमत में आया और उसने बा ज़बाने फ़सीह कहा , हुज़ूर मेरे दो बच्चे थे एक को सय्याद ने शिकार कर के आपकी खि़दमत में पहुँचा दिया और दूसरे को मैं इस वक़्त ले कर हाज़िर हुआ हूँ। उसने कहा मैं जंगल में था कि मेरे कानों में एक आवाज़ आई जिसका मतलब यह था कि नाज़ परवरदा ए रसूल (स अ व व ) बच्चा ए आहू के लिये मचला हुआ है जल्द से जल्द अपने बच्चे को रसूल (स अ व व ) की खि़दमत में पहुँचा। हुक्म पाते ही मैं हाज़िर हुआ हूँ और हदिया पेशे खि़दमत है। आं हज़रत (स अ व व ) ने आहू को दुआ ए ख़ैर दी और बच्चे को इमाम हुसैन (अ.स.) के हवाले कर दिया।(रौज़तुल शोहदा जिल्द 1 पृष्ठ 220 )

इमाम हुसैन (अ.स.) सीना ए रसूल (स अ . व . व . ) पर

सहाबिये रसूल (स अ व व ) अबू हुरैरा रावी ए हदीस का बयान है कि , मैंने अपनी आंखों से यह देखा कि रसूले करीम (स अ व व ) लेटे हुए हैं और इमाम हुसैन (अ.स.) निहायत कमसिनी के आलम में उनके सीना ए मुबारक पर हैं। उनके दोनों हाथों को पकड़े हुए फ़रमाते हैं , ऐ हुसैन तू मेरे सीने पर कूद चुनान्चे इमाम हुसैन (अ.स.) आपके सीना ए मुबारक कूदने लगे उसके बाद हुज़ूर (स अ व व ) ने इमाम हुसैन (अ.स.) का मूंह चूम कर ख़ुदा की बारगाह में अर्ज़ कि ऐ मेरे पालने वाले मैं इसे बेहद चाहता हूँ , तू भी इसे महबूब रख। एक रवायत में है कि हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) आं हज़रत (स अ व व ) का लोआबे दहन और उनकी ज़बान इस तरह चूसते थे जिस तरह कोई खजूर चूसे।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 359, पृष्ठ 361, इस्तेआब जिल्द 1 पृष्ठ 144, असाबा जिल्द 2 पृष्ठ 11 कंज़ुल आमाल जिल्द 7 पृष्ठ 104, कंज़ुल अल हक़ाएक़ पृष्ठ 59 )

हसनैन (अ.स.) में ख़ुशनवीसी का मुक़ाबला

रसूले करीम (स अ व व ) के शहज़ादे इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) ने एक तहरीर लिखी फिर दोनों आपस में मुक़ाबला करने लगे कि किसका ख़त अच्छा है। जब बाहमी फ़ैसला न हो सका तो फ़ात्मा ज़हरा (स अ व व ) की खि़दमत में हाज़िर हुए। उन्होंने फ़रमाया अली (अ.स.) के पास जाओ। अली (अ.स.) ने कहा रसूल अल्लाह से फ़ैसला कराओ। रसूले करीम ने इरशाद किया , ऐ नूरे नज़र इसका फ़ैसला तो मेरी लख़्ते जिगर फ़ात्मा ही करेगी उसके पास जाओ। बच्चे दौड़े हुए फिर मां की खि़दमत में हाज़िर हुए। मां ने गले लगा लिया और कहा ऐ मेरे दिल की उम्मीद तुम दोनों का ख़त बेहतरीन है और दोनों ने बहुत ख़ूब लिखा है लेकिन बच्चे न माने और यही कहते रहे मादरे गेरामी दोनों को सामने रख कर सही फ़ैसला दीजिये। मां ने कहा अच्छा बेटा , लो अपना गुलू बन्द तोड़ती हूँ उसके दाने चुनो , फ़ैसला ख़ुदा करेगा। सात दानों का गुलू बंद टूटा , ज़मीन पर दाने बिखरे , बच्चों ने हाथ बढ़ाए और तीन तीन दानों पर दोनों ने क़ब्ज़ा कर लिया और एक दाना जो रह गया उसकी तरफ़ दोनों के हाथ बराबर से बढ़े। हुक्मे ख़ुदा वन्दे आलम हुआ जिब्राईल दानों के दो टुकड़े कर दो। एक हसन (अ.स.) ने ले लिया और एक हुसैन (अ.स.) ने उठा लिया। मां ने बढ़ कर दोनों के बोसे लिये और कहा क्यों बच्चों मैं न कहती थी कि तुम दोनों के ख़त अच्छे हैं और एक की दूसरे के ख़त पर तरजीह नहीं है।(ख़ासेतुल मसाएब पृष्ठ 335 ) क़ारी अब्दुल वुदूद शम्स लखनवी खलफ़ मौलवी अब्दुल हकीम उस्ताद मौलवी शेख़ अब्दुल शकूर मुदीर अल नजम पाटा नाला लखनऊ , भारत , अपने एक क़सीदे में लिखते हैं।

दोनों भाई एक दिन , मादर से यह कहने लगे।

आप फ़रमाएं कि लिखना किसको बेहतर आ गया।।

सात मोती रख के फ़रमाया , कि जो ज़ाएद उठाये।

एक मोती , दो हुआ , हिस्सा बराबर हो गया।।

जन्नत से कपड़े और फ़रज़न्दाने रसूल (स अ . व . व . ) की ईद

इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) का बचपन है। ईद आने को है और इन असखि़याये आलम के घर में नये कपड़े का क्या ज़िक्र पुराने कपड़े बल्कि जौ की रोटियां तक नहीं हैं। बच्चों ने मां के गले में बाहें डाल दीं। मादरे गेरामी मदीने के बच्चे ईद के दिन ज़र्क़ बर्क़ कपड़े पहन कर निकलेंगे और हमारे पास नये कपड़े नहीं हैं। हम किस तरह ईद मनायेंगे। माँ ने कहा बच्चों घबराओ नहीं तुम्हारे कपड़े दरज़ी लायेगा। ईद की रात आई , बच्चों ने फिर मां से कपड़ों का तक़ाज़ा किया। माँ ने वही जवाब दे कर नौनिहालों को ख़ामोश कर दिया। अभी सुबह न हो पाई थी कि एक शख़्स ने दरवाज़े पर आवाज़ दी , दरवाज़ा खटखटाया , फ़िज़्ज़ा दरवाज़े पर गईं। एक शख़्स ने एक गठरी लिबास की दी। फ़िज़्ज़ा ने उसे सय्यदा ए आलम की खि़दमत में पेश किया। अब जो खोला तो उसमें दो छोटे छोटे अम्मामे , दो क़बाऐं , दो अबाऐं ग़रज़ की तमाम ज़रूरी कपड़े मौजूद थे। माँ का दिल बाग़ बाग़ हो गया। वह समझ गईं कि यह कपड़े जन्नत से आये हैं लेकिन मुँह से कुछ नहीं कहा। बच्चों को जगाया कपड़े दिये। सुबह हुई , बच्चों ने जब कपड़ों के रंग की तरफ़ नज़र की तो कहा मादरे गेरामी यह तो सफ़ैद कपड़े हैं। मदीने के बच्चे रंगीन कपड़े पहने होंगे। अम्मा जान हमें रंगीन कपड़े चाहिये। हुज़ूरे अनवर (स अ व व ) को इत्तेला मिली , तशरीफ़ लाये। फ़रमाया घबराओ नहीं तुम्हारे कपड़े अभी अभी रंगीन हो जायेंगे। इतने में जिब्राईल आफ़ताबा (एक बड़ा और चौड़ा बरतन) लिये हुए आ पहुँचे। उन्होंने पानी डाला , मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के इरादे से कपड़े सब्ज़ और सुखऱ् हो गये। सब्ज़ (हरा) जोड़ा हसन (अ.स.) ने पहना और सुखऱ् जोड़ा हुसैन (अ.स.) ने जे़गे तन किया। माँ ने गले लगाया , बाप ने बोसे दिये , नाना ने अपनी पुश्त पर सवार कर के मेहार के बदले अपनी ज़ुल्फ़ें हाथो में दे दीं और कहा मेरे नौनिहालों , रिसालत की बाग तुम्हारे हाथ में है। जिधर चाहो मोड़ो और जहां चाहो ले चलो।(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 189 बेहारूल अनवार) बाज़ उलेमा का कहना है कि सरवरे कायनात बच्चों को पुश्त पर बिठा कर दोनों हाथो पैरों से चलने लगे और बच्चों की फ़रमाईश पर ऊंट की आवाज़ मुंह से निकालने लगे।(कशफ़ुल महजूब)

गिरया ए हुसैनी और सदमा ए रसूल (स अ . व . व . )

इमाम शिबलंजी और अल्लामा बदख़्शी लिखते हैं कि ज़ैद इब्ने ज़ियाद का बयान है कि एक दिन आं हज़रत (स अ व व ) ख़ाना ए आयशा से निकल कर कहीं जा रहे थे , रास्ते में फ़ात्मा ज़हरा (अ.स.) का घर पड़ा। उस घर में से इमाम हुसैन (अ.स.) के रोने की आवाज़ बरामद हुई। आप घर में दाखि़ल हो गए और फ़रमाया ऐ फ़ात्मा ‘‘ अलम तालमी अन बक़ाराह यूज़ीनी ’’ क्या तुम्हें मालूम नहीं कि हुसैन (अ.स.) के रोने से मुझे किस क़द्र तकलीफ़ और अज़ीयत पहुँचती है।(नूरूल अबसार पृष्ठ 114 व मम्बए अहतमी जिल्द 9 पृष्ठ 201 व ज़ख़ाएर अल अक़बा पृष्ठ 123 ) बाज़ उलमा का बयान है कि एक दिन रसूले ख़ुदा (स अ व व ) कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक मदरसे की तरफ़ से गुज़र हुआ। एक बच्चे की आवाज़ कान में आई जो हुसैन (अ.स.) की आवाज़ से बहुत ज़्यादा मिलती थी। आप दाखि़ले मदरसा हुए और उस्ताद को हिदायत की कि इस बच्चे को न मारा करो क्यों कि इसकी आवाज़ मेरे बच्चे हुसैन से बहुत मिलती है।

इमाम हुसैन (अ.स.) की सरदारीए जन्नत

पैग़म्बरे इस्लाम की यह हदीस मुसल्लेमात और मुतावातेरात में से है कि ‘‘ अल हसन वल हुसैन सय्यदे शबाबे अहले जन्नतः व अबु हुमा ख़ेर मिन्हमा ’’ हसन व हुसैन जवानाने जन्नत के सरदार हैं और उनके पदरे बुज़ुर्गवार इन दोनों से बेहतर हैं।(इब्ने माजा) सहाबी ए रसूल जनाबे हुज़ैफ़ा यमानी का बयान है कि मैंने एक दिन सरवरे कायनात (स अ व व ) को बेइन्तेहा ख़ुश देख कर पूछा , हुज़ूर इफ़राते मसर्रत की क्या वजह है ? आप ने फ़रमाया ऐ हुज़ैफ़ा ! आज एक ऐसा मलक नाज़िल हुआ है जो मेरे पास इससे पहले नहीं आया था उसने मेरे बच्चों की सरदारिये जन्नत पर मुबारक बाद दी है और कहा है कि ‘‘ अन फ़ातमा सय्यदुन निसाए अहले जन्नतः व अनल हसन वल हुसैन सय्यदे शबाबे अहले जन्नतः ’’ फ़ात्मा जन्नत की औरतों की सरदार और हसनैन जन्नत के मरदों के सरदार हैं।(कन्ज़ुल आमाल जिल्द 7 पृष्ठ 107, तारीख़ुल ख़ोलफ़ा पृष्ठ 132, असदउल ग़ाबा पृष्ठ 12, असाबा जिल्द 2 पृष्ठ 12, तिर्मिज़ी शरीफ़ , मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 242, सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 114 ) इस हदीस से सियादते अलविया का मसला भी हल हो गया। क़तए नज़र इसके कि हज़रत अली (अ.स.) में मिसले नबी सियादत का ज़ाती शरफ़ मौजूद था और ख़ुद सरवरे कायनात ने बार बार आपकी सियादत की तसदीक़ सय्यदुल अरब , सय्यदुल मुत्तक़ीन , सय्यदुल मोमेनीन वग़ैरा जैसे अल्फ़ाज़ से फ़रमाई है। हज़रत अली (अ.स.) सरदाराने जन्नत इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) से बेहतर होना वाज़ेह करता है कि आपकी सियादत मुसल्लम ही नहीं बल्कि बहुत बलन्द दरजा रखती है। यही वजह है कि मेरे नज़दीक जुमला अवलादे अली (अ.स.) सय्यद हैं। यह और बात है कि बनी फ़ात्मा के बराबर नहीं हैं।