चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

इमाम हुसैन (अ.स.) आलमे नमाज़ में पुश्ते रसूल (स अ . व . व . ) पर

ख़ुदा ने जो शरफ़ इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) को अता फ़रमाया है वह औलादे रसूल (स अ व व ) के सिवा किसी को नसीब नहीं। इन हज़रात की ज़िक्र इबादत और उनकी मोहब्बत इबादत यह हज़रात अगर पुश्ते रसूल (स अ व व ) पर आलमे नमाज़ में सवार हो जायें तो नमाज़ में कोई ख़लल वाक़े नहीं होता। अकसर ऐसा होता था कि यह नौनेहाले रिसालत पुश्ते रसूल (स. स.) पर आलमे नमाज़ में सवार हो जाया करते थे और जब कोई मना करना चाहता था तो आप इशारे से रोक दिया करते थे और कभी ऐसा भी होता था कि आप सजदे में उस वक़्त तक मशग़ूले ज़िक्र रहा करते थे जब तक बच्चे आपकी पुश्त से ख़ुद न उतर आयें। आप फ़रमाया करते थे , ख़ुदाया मैं इन्हें दोस्त रखता हूँ तू भी इनसे मोहब्बत कर। कभी इरशाद होता था , ऐ दुनिया वालों ! अगर मुझे दोस्त रखते हो तो मेरे बच्चों से भी मोहब्बत करो।(असाबा पृष्ठ 12 जिल्द 2, मुसतदरिक इमाम हाकिम व मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 223 )

हदीसे हुसैनो मिन्नी

सरवरे कायनात (स अ व व ) ने इमाम हुसैन (अ.स.) के बारे में इरशाद फ़रमाया है कि ऐ दुनिया वालों ! बस मुख़्तसर यह समझ लो कि , ‘‘ हुसैनो मिन्नी व अना मिनल हुसैन ’’ हुसैन मुझ से है और मैं हुसैन से हूँ। ख़ुदा उसे दोस्त रखे जो हुसैन को दोस्त रखे।(मतालेबुस सूऊल , पृष्ठ 242, सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 114, नूरूल अबसार पृष्ठ 113 व सही तिर्मिज़ी जिल्द 6 पृष्ठ 307, मुस्तदरिक इमाम हाकिम जिल्द 3 पृष्ठ 177 व मस्नदे अहमद जिल्द 4 पृष्ठ 972 असदउल ग़ाबता जिल्द 2 पृष्ठ 91 कंज़ुल आमाल , जिल्द 4 पृष्ठ 221 )

मकतूबाते बाबे जन्नत

सरवरे कायनात हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) इरशाद फ़रमाते हैं कि शबे मेराज जब मैं सैरे आसमानी करता हुआ जन्नत के क़रीब पहुँचा तो देखा कि बाबे जन्नत पर सोने के हुरूफ़ में लिखा हुआ है। ‘‘ ला इलाहा इल्ललाह मोहम्मदन हबीब अल्लाह अलीयन वली अल्लाह व फ़ात्मा अमत अल्लाह वल हसन वहल हुसैन सफ़ुत अल्लाह व मिनल बुग़ज़हुम लानत अल्लाह ’’

तरजुमाः ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं , मोहम्मद (स अ व व ) अल्लाह के हबीब हैं , अली (अ.स.) अल्लाह के वली हैं , फ़ात्मा (स अ व व ) अल्लाह की कनीज़ हैं , हसन (अ.स.) और हुसैन (अ.स.) अल्लाह के बुरगुज़ीदा हैं और उनसे बुग़्ज़ रखने वालों पर ख़ुदा की लानत हैं।

(अरजहुल मतालिब बाब 3 पृष्ठ 313 प्रकाशित लाहौर 1251 0 )

इमाम हुसैन (अ.स.) और सिफ़ाते हसना की मरकज़ीयत

यह तो मालूम ही है कि इमाम हुसैन (अ.स.) हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के नवासे हज़रत अली (अ.स.) व फ़ात्मा (स अ व व ) के बेटे और इमाम हसन (अ.स.) के भाई थे और इन्हीं हज़रात को पंजेतन कहा जाता है , और इमाम हुसैन (अ.स.) पंजेतन के आख़री फ़र्द हैं। यह ज़ाहिर है कि आखि़र तक रहने वाले और हर दौर से गुज़रने वाले के लिये इक़तेसाब सिफ़ाते हसना के इम्कानात ज़्यादा होते हैं। इमाम हुसैन (अ.स.) 3 शाबान 4 हिजरी को पैदा हो कर सरवरे कायनात (स अ व व ) की परवरिश व परदाख़्त और आग़ोशे मादर में रहे और कसबे सिफ़ात करते हरे। 28 सफ़र 11 हिजरी को जब आं हज़रत (स अ व व ) शहादत पा गये और 3 जमादिउस्सानी को मां की बरकतों से महरूम हो गये तो हज़रत अली (अ.स.) ने तालिमाते इलाहिया और सिफ़ाते हसना से बहरावर किया। 21 रमज़ान 40 हिजरी को आपकी शहादत के बाद इमाम हसन (अ.स.) के सर पर ज़िम्मेदारी आयद हुई। इमाम हसन (अ.स.) हर क़िस्म की इस्तेमदाद व इस्तेयानते ख़ानदानी और फ़ैज़ाने बारी में बराबर के शरीक रहे।

28 सफ़र 50 हिजरी को जब इमाम हसन (अ.स.) शहीद हो गये तो इमाम हुसैन (अ.स.) सिफ़ाते हसना के वाहिद मरक़ज़ बन गए। यही वजह है कि आप में जुमला सिफ़ाते हसना मौजूद थे और आपके तरज़े हयात में मोहम्मद (स अ व व ) व अली (अ स ) , फ़ात्मा (स अ व व ) और हसन (अ.स.) का किरदार नुमायां था और आपने जो कुछ किया क़ुरआन और हदीस की रौशनी में किया। कुतुबे मक़ातिल में है कि करबला में जब इमाम हुसैन (अ.स.) रूख़्सते आखि़र के लिये ख़ेमे में तशरीफ़ लाये तो जनाबे ज़ैनब ने फ़रमाया था कि ऐ ख़ामेसे आले एबा आज तुम्हारी जुदाई के तसव्वुर से ऐसा मालूम होता है कि मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) अली ए मुर्तुज़ा (अ.स.) फ़ात्मा (स अ व व ) हसने मुजतबा (अ.स.) हम से जुदा हो रहे हैं।

हज़रत उमर का एतेराफ़े शरफ़े आले मोहम्मद (स अ . व . व . )

अहदे उमरी में अगर चे पैग़म्बरे इस्लाम (स अ व व ) की आंखें बन्द हो चुकी थीं और लोग मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) की खि़दमत और तालिमात को पसे पुश्त डाल चुके थे लेकिन फिर भी कभी कभी ‘‘ हक़ बर ज़बान जारी ’’ के मुताबिक़ अवाम सच्ची बातें सुन ही लिया करते थे। एक मरतबा का ज़िक्र है कि हज़रत उमर मिम्बरे रसूल पर ख़ुत्बा फ़रमा रहे थे। नागाह हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का उधर से गुज़र हुआ। आप मस्जिद में तशरीफ़ ले गये और हज़रत उमर की तरफ़ मुख़ातिब हो कर बोले ‘‘ अन्ज़ल अन मिम्बर अबी ’’ मेरे बाप के मिम्बर पर से उतर आईये और जाईये अपने बाप के मिम्बर पर बैठिये। हज़रत उमर ने कहा मेरे बाप का तो कोई मिम्बर नहीं है। उसके बाद मिम्बर पर से उतर कर इमाम हुसैन (अ.स.) को अपने हमराह अपने घर ले गये और वहां पहुँच कर पूछा कि साहब ज़ादे तुम्हें यह बात किसने सिखाई है तो उन्होंने फ़रमाया कि मैंने अपने से कहा है , मुझे किसी ने नहीं सिखाया। उसके बाद उन्होंने कहा मेरे माँ बाप तुम पर फ़िदा हों , कभी कभी आया करो। आपने फ़रमाया बेहतर है। एक दिन आप तशरीफ़ ले गये तो हज़रत उमर को माविया से तनहाई में महवे गुफ़्तुगू पा कर वापस चले गये। जब इसकी इत्तेला हज़रत उमर को हुई तो उन्होंने महसूस किया और रास्ते में एक दिन मुलाक़ात पर कहा कि आप वापस क्यों चले आये थे। फ़रमाया कि आप महवे गुफ़्तुगू थे , इस लिये मैं अब्दुल्लाह इब्ने उमर के हमराह वापस आया। हज़रत उमर ने कहा फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) मेरे बेटे से ज़्यादा तुम्हारा हक़ है। ‘‘ फ़ा अन्नमा अन्ता मातरी फ़ी दो सना अल्लाह सुम अनतुम ’’ इस से इन्कार नहीं किया जा सकता कि मेरा वुजूद तुम्हारे सदक़े में है।

(असाबा जिल्द 2 पृष्ठ 25 कनज़ुल आमाल जिल्द 7 पृष्ठ 107 व इज़ालतुल ख़फ़ा जिल्द 3 पृष्ठ 80 व तारीख़े बग़दाद जिल्द 1 पृष्ठ 141 )

इब्ने उमर का एतराफ़े शरफ़े हुसैनी

इब्ने हरीब रावी हैं कि एक दिन अब्दुल्लाह इब्ने उमर ख़ाना ए काबा के साय में बैठे हुए लोगों से बातें कर रहे थे कि इतने में हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) सामने से आते हुए दिखाई दिये इब्ने उमर ने लोगों की तरफ़ मुख़ातिब हो कर कहा कि यह शख़्स यानी इमाम हुसैन (अ.स.) अहले आसमान के नज़दीक तमाम अहले ज़मीन से ज़्यादा महबूब हैं।(असाबा जिल्द 2 पृष्ठ 15 )

इमाम हुसैन (अ.स.) की रक़ाब

इब्ने अब्बास के हाथों में सिपहर काशानी लिखते हैं कि एक मरतबा हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) घोड़े पर सवार हो रहे थे। हज़रत इब्ने अब्बास सहाबिये रसूल (स अ व व ) की नज़र आप पर पड़ी तो आप ने दौड़ कर हज़रत की रक़ाब थाम ली और इमाम हुसैन (अ.स.) को सवार कर दिया। यह देख कर किसी ने कहा कि ऐ इब्ने अब्बास तुम तो इमाम हुसैन (अ.स.) से उम्र और रिश्ते दोनों में बड़े हो , फिर तुम ने इमाम हुसैन (अ.स.) की रक़ाब क्यों थामी ? आपने गु़स्से में फ़रमाया कि ऐ कमबख़्त तुझे क्या मालूम कि यह कौन हैं और इनका शरफ़ क्या है। यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) हैं , इन्हीं के सदक़े में नेमतों से भरपूर और बहरावर हूँ अगर मैंने इनकी रकाब थाम ली तो क्या हुआ।(नासेख़ुल तवारीख़ जिल्द 6 पृष्ठ 45 )

इमाम हुसैन (अ.स.) की गर्दे क़दम और जनाबे अबू हुरैरा

कौन है जो जनाबे अबू हुरैरा के नाम से वाक़िफ़ न हो आप ही वह हैं जिन पर साबिक़ की हुकूमतों को बड़ा एतमाद था और आप पर एतमाद की यह हद थी कि माविया ने जब अमीरल मोमेनीन अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) के खि़लाफ़ हदीसें गढ़ने की स्कीम बनाई थी तो उन्हीं को इस स्कीम का रूहे रवां क़रार दिया था।(मीज़ान अल बक़रा इमाम शेरानी पृष्ठ 21 ) आप को हज़रत अली (अ.स.) से अक़ीदत भी थी आप नमाज़ हज़रत अली (अ.स.) के पीछे पढ़ते थे और खाना माविया के दस्तरख़्वान पर खाते थे। आप फ़रमाते थे कि इबादत का लुत्फ़ अली (अ.स.) के साथ और खाने का मज़ा माविया के साथ है।

मुवर्रिख़ तबरी का बयान है कि एक मय्यत में इमाम हुसैन (अ.स.) और जनाबे अबू हुरैरा ने शिरकत की और दोनों हज़रात साथ ही चल रहे थे। रास्ते में थोड़ी देर के लिये रूक गये तो अबू हुरैरा ने झट रूमाल निकाल कर हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के पाये मुबारक और तूतियों से गर्द झाड़ना शुरू कर दिया। इमाम हुसैन (अ.स.) ने फ़रमाया ऐ अबू हुरैरा ! तुम यह क्या करते हो , मेरे पैरों और जूतियों से गर्द क्यों झाड़ने लगे ? आपने अर्ज़ कि ‘‘ दाअनी मिनका फ़लो या लम अलनास मिनका मा अलम लहमलूक अला अवा तक़ाहुम ’’ ‘‘ मौला मुझे मना न किजीये , आप इसी क़ाबिल हैं कि मैं आपकी गर्दे क़दम साफ़ करूं। मुझे यक़ीन है कि अगर लोगों को आपके फ़ज़ाएल और आपकी वह बढ़ाई मालूम हो जाय जो मैं जानता हूँ तो यह लोग आपको अपने कंधों पर उठाये फिरें ’’(तारीख़े तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 19 तबअ मिस्र)

इमाम हुसैन (अ.स.) का ज़ुर्रियते नबी में होना

हज़रत इमाम हसन (अ.स.) और हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के ज़ुर्रियते नबी में होने पर आयते मुबाहेला गवाह है। रसूले ख़ुदा (स अ व व ) ने अबनअना की तामील व तकमील हसनैन (अ.स.) ही से की थी। यह उनके फ़रज़न्दाने रसूल होने की दलीले मोहकम हैं जिसके बाद किसी एतराज़ की गुन्जाईश नहीं रहती। आसिम बिन बहदेला कहते हैं कि एक दिन हम लोग हज्जाज बिन युसूफ़ के पास बैठे हुए थे कि इमाम हुसैन (अ.स.) का ज़िक्र आ गया। हज्जाज ने कहा उनका ज़ुर्रियते रसूल (स अ व व ) से कोई ताअल्लुक़ नहीं। यह सुनते ही यहिया बिन यामर ने कहा ‘‘ कुन्बत अहिय्या अल अमीर ’’ अमीर यह बात बिल्कुल ग़लत है और झूठ है वह यक़ीनन जु़र्रियते रसूल (स अ व व ) में से हैं। यह सुन कर उसने कहा कि इसका सुबूत क़ुरआने मजीद से पेश करो। ‘‘ अवला क़तलनका क़तलन ’’ वरना तुम्हें बुरी तरह क़त्ल करूंगा। यहिया ने कहा क़ुरआन मजीद में है। ‘‘ व मन ज़ुर्रियते दाऊदो सुलैमान व ज़करया व यहिया व ईसा ’’ इस आयत में ज़ुर्रियते आदम में हज़रते ईसा भी बताये गये हैं जो अपनी मां की तरफ़ से शमिल हुये हैं। बस इसी तरह इमाम हुसैन (अ.स.) भी अपनी मां की तरफ़ से ज़ुर्रियते रसूल (स अ व व ) में हैं। हज्जाज ने कहा यह सही है लेकिन मजमें में तुमने मेरी तक़ज़ीब (बे इज़्ज़ती) की है लेहाज़ा तुम्हें शहर बदर किया जाता है। इसके बाद उन्हें ख़ुरासान भेज दिया।(मुस्तदरिक सहीहीन जिल्द 3 पृष्ठ 164 )

करमे हुसैनी की एक मिसाल

इमाम फ़ख़रूद्दीन राज़ी तफ़सीरे कबीर में ज़ेरे आयत ‘‘ अल आदम अल असमा कुल्लेहा ’’ लिखते हैं कि एक एराबी ने खि़दमते इमाम हुसैन (अ.स.) में हाज़िर हो कर कुछ मांगा और कहा कि मैंने आपके जद्दे नामदार से सुना है कि जब कुछ मांगना हो तो चार क़िस्म के लोगों से मांगों। 1. शरीफ़ अरब से , 2. करीम हाकिम से , 3. हामिले क़ुरआन से , 4. हसीन शक्ल वाले से। मैं आपमें यह जुमला सिफ़ात पाता हूँ इस लिये मांग रहा हूँ। आप शरीफ़े अरब हैं। आपके नाना अरबी हैं। आप करीम हैं क्यों कि आपकी सीरत ही करम है। क़ुरआने पाक आपके घर में नाज़िल हुआ है। आप सबीह व हसीन हैं। रसूले ख़ुदा (स अ व व ) का इरशाद है कि जो मुझे देखना चाहे वह हसन व हुसैन को देखे। लेहाज़ा अर्ज़ है कि मुझे अतीये से सरफ़राज़ फ़रमाईये। आपने फ़रमाया कि जद्दे नामदार ने फ़रमाया है कि ‘‘ अल मारूफ़ बे क़दरे अल मारफ़ते ’’ मारफ़त के मुताबिक़ अतिया देना चाहिये। तू मेरे सवालात का जवाब दे , 1. बता सब से बेहतर अमल क्या है ? उसने कहा अल्लाह पर ईमान लाना। 2. हलाकत से नजात का ज़रिया क्या है ? उसने कहा अल्लाह पर भरोसा करना। 3. मरद की ज़ीनत क्या है ? कहा ‘‘ इल्म मय हिल्म ’’ ऐसा इल्म जिसके साथ हिल्म हो , आपने फ़रमाया दुरूस्त है। उसके बाद आप हंस पड़े। ‘‘ वरमी बिल सीरते इल्हे ’’ और एक बड़ा कीसा उसके सामने डाल दिया।(फ़ज़ाएल उल ख़मसते मिन सहायसित्ता जिल्द 3 पृष्ठ 268 )

इमाम हुसैन (अ.स.) की एक करामत

तबाक़ात इब्ने सआद जिल्द 5 पृष्ठ 107 में है कि जब इमाम हुसैन (अ.स.) मदीने से मक्के जाने के लिये निकले तो रास्ते में इब्ने मतीह मिल गये। वह उस वक़्त कुआं खोद रहे थे। पूछा मौला कहां का इरादा है ? फ़रमाया मक्के जा रहा हूँ , शायद मेंरा आख़री सफ़र हो। यह सुन कर उन्होंने अर्ज़ की मौला इस सफ़र को मुलतवी कर दिजीए। फ़रमाया मुम्किन नहीं है। फिर बात ही बात में उन्होंने अर्ज़ कि मैं कुआं खोद रहा हूँ। अकसर इधर पानी खारा निकलता है। आप दुआ कर दें पानी मीठा हो और कसीर हो। आपने थोड़ा पानी जो उस वक़्त बरामद हुआ था ले कर चखा और उसमें कुल्ली कर के कहा कि इसे कुएं में डाल दो। चुनान्चे उन्होंने ऐसा ही किया। ‘‘ फ़जब वमही ’’ उसका पानी शीरीं (मीठा) और कसीर हो गया।

इमाम हुसैन (अ.स.) की नुसरत के लिये रसूले करीम (स अ . व . व . ) का हुक्म

अनस बिन हारिस जो सहाबी ए रसूल और असहाबे सुफ़फ़ा में से में थे , का बयान करते है , मैंने देखा है कि हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) एक दिन रसूले ख़ुदा (स अ व व ) की गोद में थे और वह उनको प्यार कर रहे थे। इसी दौरान में फ़रमाया ‘‘ अन अम्बी हाज़ा यक़तेदा बारे ज़ैने यक़ाला लहा करबल फ़मन शोहदा ज़ालेका फ़ल यनसेरहा ’’ कि मेरा यह फ़रज़न्द ‘‘ हुसैन ’’ उस ज़मीन पर क़त्ल किया जायेगा जिसका नाम करबला है। देखो तुम में से उस वक़्त जो भी मौजूद हो उसके लिये ज़रूरी है कि उसकी मद्द करे।

रावी का बयान है कि असल रावी और चश्म दीद गवाह अनस बिन हारिस जो कि उस वक़्त मौजूद थे वह इमाम हुसैन (अ.स.) के हमराह करबला में शहीद हो गये थे।

(असदुल ग़ाबेआ जिल्द 1 पृष्ठ 123 व पृष्ठ 349, असाबा जिल्द 1 पृष्ठ 48, कन्ज़ुल आमाल जिल्द 6 पृष्ठ 223, ज़ख़ायर अल अक़बा मुहिब तबरी पृष्ठ 146 )

इमाम हुसैन (अ.स.) की इबादत

उलेमा व मुवर्रेख़ीन का इत्तेफ़ाक़ है कि हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ज़बरदस्त इबादत गुज़ार थे। आप शबो रोज़ में बेशुमार नमाज़ें पढ़ते और अनवाए अक़साम इबादत से सरफ़राज़ होते थे। आपने अच्चीस हज पा पियादा किए और यह तमाम हज ज़माना ए क़यामे मदीने मुनव्वरा में फ़रमाए थे। इराक़ में क़याम के दौरान आपको अमवी हंगामा आराइयों की वजह से किसी हज का मौक़ा नहीं मिल सका।(असद उल ग़ाबा जिल्द 3 पृष्ठ 27 )

इमाम हुसैन (अ.स.) की सख़ावत

मसनदे इमामे रज़ा पृष्ठ 35 में है कि सख़ी दुनियां के सरदार और मुत्तक़ी आख़ेरत के लोगों के सरदार होते हैं। इमाम हुसैन (अ.स.) सख़ी ऐसे थे जिनकी मिसाल नहीं। उलमा का बयान है कि उसामा इब्ने ज़ैद सहाबिए रसूल (स अ व व ) बीमार थे , इमाम हुसैन (अ.स.) उन्हे देखने के लिये तशरीफ़ ले गये तो आपने महसूस किया कि वह बेहद रंजीदा हैं। पूछा ऐ मेरे नाना के सहाबी क्या बात है ? ‘‘वाग़माहो ’’ क्यों कहते हो ? अर्ज़ कि मौला साठ हज़ार दिरहम का क़र्ज़ दार हूँ। आपने फ़रमाया घबराओ नहीं उसे मैं उसे अदा कर दूंगा। चुनान्चे आपने अपनी ज़िन्दगी में ही उन्हें क़रज़े के बार से सुबुक दोश फ़रमा दिया।

एक दफ़ा एक देहाती शहर में आया और उसने लोगों से दरयाफ़्त किया कि यहां सब से ज़्यादा सख़ी कौन है ? लोगों ने इमाम हुसैन (अ.स.) का नाम लिया। उसने हाज़िरे खि़दमत हो कर बा ज़रिये अशआर सवाल किया। हज़रत ने चार हज़ार अशरफ़ियां इनायत फ़रमा दीं। शईब ख़ज़ाई का कहना है कि शहादते इमामे हुसैन (अ.स.) के बाद आपकी पुश्त पर बार बरदारी के घट्टे देखे गये। जिसकी वज़ाहत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने यह फ़रमाई थी कि आप अपनी पुश्त पर लाद कर अशरफ़ियां और ग़ल्लों के बोरे बेवाओं और यतीमो के घर रात के वक़्त पहुंचाया करते थे। किताबों में है कि आपके एक ग़ैर मासूम फ़रज़न्द को अब्दुल रहमान सलमा ने सुरा ए हम्द की तालीम दी , आपने एक हज़ार अशरफ़ियां और एक हज़ार क़ीमती ख़लअतें इनायत फ़रमाई।

(मनाक़िब इब्ने शहरे आशोब जिल्द 4 पृष्ठ 74 )

इमाम शिब्लंजी और अल्लामा इब्ने मोहम्मद तल्हा शाफ़ेई ने नूरूल अबसार और मतालेबुस सूऊल में एक अहम वाक़ेया आपकी सिफ़ते सख़ावत के मुताअल्लिक़ तहरीर किया है , जिसे हम इमाम हसन (अ.स.) के हाल में लिख आये हैं क्यों कि इस वाक़िये सख़ावत में वह भी शरीक थे।

इमाम हुसैन (अ.स.) का अम्रे आस को जवाब

एक मरतबा माविया , उमरो आस और हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) एक मक़ाम पर बैठे हुए थे। उमरो आस ने पूछा क्या वजह है कि हमारे अवलाद ज़्यादा होती है और आप हज़रात के कम ? हज़रत ने उसके जवाब में एक शेर पढ़ा , जिसका तरजुमा यह है कि , कमज़ोर और ज़लील व हक़ीर चिड़यों के बच्चे ज़्यादा और शिकारी परिन्दे बाज़ और शाहीन वग़ैरा के बच्चे क़ुदरतन कम होते हैं। फिर उमरो आस ने पूछा कि हमारी मूंछों के बाल जल्दी सफ़ैद हो जाते हैं और आपके देर में , इसकी वजह क्या है ? आपने फ़रमाया कि तुम्हारी औरते गन्दा दहन होती हैं , बा वक़्ते मक़ारबत उनके बुख़ारात से तुम्हारी मूछों के बाल सफ़ैद हो जाते हैं। फिर उसने पूछा कि इसकी क्या वजह है कि आप लोगों की दाढ़ी घनी निकलती है ? आपने फ़रमाया कि इसका जवाब तो क़ुरआन में मौजूद है। उसके बाद आपने एक आयत पढ़ी , जिसका तरजुमा यह है। अच्छी ज़मीन से अच्छा सब्ज़ा उगता है और बुरी और ख़बीस ज़मीन से बुरी पैदावार होती है।(पारा 8 रूकू 14 ) उसके बाद माविया ने उमरो आस को मज़ीद सवाल करने से रोक दिया। तब आपने अरबी के शेर पढ़े , जिसका फ़ारसी में तरजुमा यह है।

नैश अक़रब न अज़ पैए कीं अस्त --- मुक़्तज़ाए तबीअतश ईं अस्त(मनाक़िब इब्ने शहरे आशोब जिल्द 4 पृष्ठ 75 व बेहार जिल्द 1 पृष्ठ 148 )

हज़रत उमर की वसीयत कि सनदे गु़लामी ए अहले बैत का नविशता मेरे कफ़न में रखा जाऐ

उल्माए अहले सुन्नत का बयान है कि एक दिन मंज़िले मनाख़ेरत में अब्दुल्लाह बिन उमर इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) के सामने फ़ख़रो इफ़तेख़ार की बातें करने लगे। यह सुन कर इमाम हसन (अ.स.) ने फ़रमाया कि तुम तो हमारे ग़ुलाम ज़ादे हो। इतनी बढ़ चढ़ कर क्या बातें कर रहे हो। इस पर अब्दुल्लाह बिन उमर रंजीदा हो कर अपने बाप के पास गये और इमाम हसन (अ.स.) ने जो कुछ कहा था उसे बयान किया। यह सुन कर हज़रत उमर ने फ़रमाया कि बेटा यह बात उन से लिख वा लेा , अगर लिख दें तो मेरे कफ़न में रख देना। एक रवायत में है कि उन्होंने लिख दिया और हज़रत उमर ने वसीयत कर दी कि इसे उनके कफ़न में रखा जाय क्यों कि मोहम्मद (स अ व व ) व आले मोहम्मद (अ.स.) की ग़ुलामी बख़शिश का ज़रिया है।

यह रवायत इस दर्जा मशहूर है कि शोअरा ने भी इसे नज़म किया है। इस मक़ाम पर रहबरे शरीयत व तरीक़त हज़रत फ़ाज़िल मख़दमू सय्यद मोहम्मद नासिर जलाली मद् ज़िल्लहुल आली की वह नज़म दर्ज करता हूँ जो उन्होंने ज़ेरे उनवान ‘‘ शाने अदब ’’ तहरीर फ़रमाई है। जिसे हाफ़िज़ शफ़ीक़ अहमद नासरी पाक बंगाल जहांगीर रोड , कराची नम्बर 5 रिसाला ‘‘ ख़ून के आंसू ’’ में शाया किया है अगर चे इसके बाज़ मुनदरजात से मुझे इत्तेफ़ाक़ नहीं है। वह तहरीर फ़रमाते हैं

एक दिन इब्ने उमर से यह हसन कहने लगे

जानते हो मेरे नाना थे , शहन शाहे ज़मन

हमसरी का है अगर , मुझसे तुम्हे कुछ दावा

साफ़ कहता हूँ कि यह अमर नहीं मुस्तहसन

जानता हूँ मैं तुम्हें तुम हो ग़ुलाम इब्ने गु़लाम

मेरे रूतबे से ख़बर दार है , हर अहले वतन

सुन के यह बात हुए , इब्ने उमर सख़्त मुलूल

ज़रदिये रूख़ से अयां हो गई दिल की उलझन

देर तक पहले तो ख़ामोश रहे हैरत से

फिर कहा फ़रते खि़ज़ालत से झुका कर गरदन

आप अपनी ज़बां से जिसे कहते हैं ग़ुलाम

है वह फ़रज़न्दे उमर कौन उमर फ़ख़र ज़मन

आज हैं अहले अरब उन्हीं की सरदारी में

आज है तख़्ते खि़लाफ़त पायही जलवा फ़िगन

नाम से उनके लरज़ जाते हैं दिल शाहों के

काम से उनके एयवाने अरब रशके चमन

मेरी तौक़ीर व शराफ़त की है दुनिया क़ायम

मेरी आज़ादिये अज़मत है जहां पर रौशन

फिर ग़ुलाम इब्ने ग़ुलाम आप मुझे कहते हैं

ग़ौर कीजिए है यही अहदे वफ़ा रसमे कोहन

जाके दरबारे खि़लाफ़त में करूंगा फ़रियाद

है कलाम आपका दर असल बहुत सब्र शिकन

आये इस हाल में नज़दिके उमर इब्ने उमर

अश्क आंखों में अलम दिल में लबों पर शेवन

दाद ख़्वाना तरीक़े से यह फिर अर्ज़ किया

देख लिजिये मुझ इस तरह से कहते हैं हसन

माजरा सुन के यह बेटे से उमर कहने लगे

सच तेरे साथ हसन का है यही तरज़े सुख़न

यूँ तेरी बात का कब दिल को यक़ीं आता है

हाँ अगर शाहे हसन लिख दें यह बातें मनो अन

आये फिर पेशे हसन इब्ने उमर और कहा

है ख़लीफ़ा का यह फ़रमान बा आदाबे हसन

आप लिख दीजिए काग़ज़ पर मुनासिब है यही

साफ़ वह बात कि जिससे है मुझे रंजो मेहन

सुन के इरशाद किया शाहे हसन ने कि सुनो

मुझ को डर है न किसी का न किसी से है जलन

लाओ काग़ज़ की अभी तुमको नविश्ता दे दूँ

किज़्ब के कांटों में उलझा नहीं मेरा दामन

है उमर मेरे ग़ुलाम , और मेरे नाना के

एक काग़ज़ पा दिया लिख के यह बे हीना व फ़न

लाये क़िरतासे हसन , पेशे उमर इब्ने उमर

ग़ुस्से के जोश में करते थे सब आज़ा सन सन

सर में सौदा था कि अब होगी हसन को ताजी़र

वहम था होंगे गिरफ़्तार , हसन के दुश्मन

और था हाले उमर यह कि पढ़ा जब काग़ज़

बल न अबरू पा पड़े आई जबीं पर न शिकन

झूम कर फ़रते मसर्रत से यह इरशाद किया

बारे एहसाने हसन से नहीं उठती गरदन

दस्ते अक़दस से दिया लिख के ग़ुलामी नामा

मेरी उम्मीद के कांटों को बनाया गुलशन

मिल गई अहमदे मुरसल से गु़लामी की सनद

हो गया पुर दुर्रे मक़सूद से मेरा दामन

दीनो दुनियां में मेरे वास्ते है बाएसे फ़ख़्र

इसे रखना यह वसीयत है मेरे ज़ेरे कफ़न

इमाम हुसैन (अ.स.) की मुनाजात और ख़ुदा की तरफ़ से जवाब

अल्लामा इब्ने शहरे आशोब और अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) एक रात को जनाबे ख़दीजा (अ.स.) की क़ब्र पर तशरीफ़ ले गये। आपके हमराह अनस इब्ने मालिक सहाबिए रसूल भी थे। आपने मज़ारे ख़दीजा (अ.स.) पर नमाज़ें पढ़ीं और आप बारगाहे ख़ुदावन्दी में महवे मुनाजात हो गये , मुनाजात में आपने 6 अश्आर पढ़े जिनमें पहला शेर यह है। ‘‘ या रब या रब अन्ता मौला - फ़ा रहम अबीदन इलैका मलजाहा ’’ तरजुमा ऐ मेरे रब ऐ मेरे रब , तू ही मेरा मौला और आक़ा है। ऐ मालिक तू अपने ऐसे बन्दे पर रहम फ़रमा जिसकी बाज़ गश्त सिर्फ़ तेरी ही तरफ़ है। अभी आपकी मुनाजात तमाम न होने पाई थी कि हातिफ़े गै़बी की मनजूम आवाज़ आई। जिसका पहला शेर है कि

लब्बैक अब्दी वा अन्ता फ़ी कन्फ़ी , व कलमा क़लत क़द अलमनहा

तरजुमा ऐ मेरे बन्दे मैं तेरी सुन्ने के लिये मौजूद हूँ और तू मेरी बारगाह में आया हुआ है। तूने जो कुछ कहा है मैंने अच्छी तरह से सुन लिया है।(मनाक़िब जिल्द 4 पृष्ठ 78 व बेहार जिल्द 1 पृष्ठ 144 )

जंगे सिफ़्फ़ीन में इमाम हुसैन (अ.स.) की जद्दो जेहद

अगरचे मुवर्रेख़ीन का तक़रीबन इस पर इत्तेफ़ाक़ है कि इमाम हुसैन (अ.स.) अहदे अमीरल मोमेनीन (अ.स.) के हर मारके में मौजूद रहे लेकिन महज़ इस ख़्याल से कि यह रसूले अकरम (स अ व व ) की ख़ास अमानत हैं। उन्हें किसी जंग में लड़ने की इजाज़त नहीं दी गई।(अनवारूल हुसैनिया पृष्ठ 44 ) लेकिन अल्लामा शेख़ मेहदी माज़ नदरानी की तहक़ीक़ के मुताबिक़ आपने बन्दिशे आब तोड़ने के लियेय सिफ़्फ़ीन में नबर्द आज़माई फ़रमाई थी।(शजरा ए तूबा , प्रकाशित नजफ़े अशरफ़ 1354 हिजरी व बेहारल अनवार जिल्द 10 पृष्ठ 257 प्रकाशित ईरान) अल्लामा बाक़र ख़ुरासानी लिखते हैं कि इस मौक़े पर इमाम हुसैन (अ.स.) के हमराह हज़रते अब्बास भी थे।

(किबरियत अल अहमर पृष्ठ 25 व ज़िकरूल अब्बास पृष्ठ 26 )

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) गिरदाबे मसाएब में (वाक़िए करबला का आग़ाज़)

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) जब पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) की ज़िन्दगी के आख़री लम्हात से ले कर इमाम हसन (अ.स.) की हयात के आख़री अय्याम तक बहरे मसाएब व आलाम के साहिल से खेलते हुए ज़िन्दगी के इस अहद में दाखि़ल हुए जिसके बाद आपके अलावा पंजेतन में कोई बाक़ी न रहा तो आपका सफ़ीना ए हयात ख़ुद गिरदाबे मसाएब में आ गया। इमाम हसन (अ.स.) की शहादत के बाद माविया की तमाम तर जद्दो जेहद यही रही कि किसी तरह इमाम हुसैन (अ.स.) का चिराग़े ज़िन्दगी भी इसी तरह गुल कर दें जिस तरह हज़रत अली (अ.स.) और इमाम हसन (अ.स.) की शम्मा ए हयात बुझा चुका है और उसके लिये वह हर क़िस्म का दाँव करता रहा और इससे उसका मक़सद यह था कि यज़ीद की खि़लाफ़त के मनसूबे को परवान चढ़ाये। बिल आखि़र उसने 56 हिजरी में एक हज़ार की जमाअत समेत यज़ीद के लिये बैअत लेने की ग़रज़ से हिजाज़ का सफ़र इख़्तेयार किया और मदीना ए मुनव्वरा पहुँचा। वहां इमाम हुसैन (अ.स.) से मुलाक़ात हुई उसने बैएते यज़ीद का ज़िक्र किया। आपने साफ़ लफ़्ज़ों में उसकी बदकारी का हवाला दे कर इनकार कर दिया। माविया को आपका इन्कार खला तो बहुत ज़्यादा लेकिन चंद उलटे सिधे अल्फ़ाज़ कहने के सिवा और कुछ कर न सका। इसके बाद मदीना और फिर मक्का में बैएते यज़ीद ले कर शाम को वापस चला गया।

अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी लिखते हैं कि माविया ने जब मदीने में बैएत का सवाल उठाया तो हुसैन बिन अली (अ.स.) अब्दुल रहमान बिन अबी बक्र , अब्दुल्लाह इब्ने उमर , अब्दुल्लाह इब्ने ज़ुबैर ने बैएते यज़ीद से इन्कार कर दिया। उसने बड़ी कोशिश की लेकिन यह लोग न माने और रफ़्ए फ़ितना के लिये इमाम हुसैन (अ.स.) के अलावा सब मदीने से चले गये। माविया उनके पीछे मक्के पहुँचा और वहां उन पर दबाव डाला लेकिन कामयाब न हुआ। आखि़र कार शाम वापस चला गया।(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 243 ) माविया बड़ी तेज़ी के साथ बेएते यज़ीद लेता रहा , और बक़ौल अल्लामा इब्ने क़तीबा इस सिलसिले में उसने टको में लोगों के दीन भी ख़रीद लिये। अल ग़रज़ रजब 60 हिजरी में माविया रख़्ते सफ़र बांध कर दुनिया से चल बसा। यजी़द जो अपने बाप के मिशन को कामयाब करना ज़रूरी समझता था। सब से पहले मदीने की तरफ़ मुतवज्जे हो गया और उसने वहां के वाली वलीद बिन उक़बा को लिखा कि इमाम हुसैन (अ स ) , अब्दुर रहमान इब्ने अबी बक्र , अब्दुल्लाह इब्ने उमर और इब्ने ज़ुबैर से मेरी बैएत ले ले , और अगर यह इन्कार करें तो उनके सर काट कर मेरे पास भेज दे। इब्ने अक़बा ने मरवान से मशविरा किया उसने कहा कि सब बैएत कर लेंगे लेकिन इमाम हुसैन (अ.स.) हरगिज़ बैएत न करेंगे और तुझे उनके साथ पूरी सख़्ती का बरताव करना पड़ेगा।

साहेबे तफ़सीरे हुसैनी अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी लिखते हैं कि वलीद ने एक शख़्स अब्दुल्लाह इब्ने उमर बिन उस्मान को इमाम हुसैन (अ.स.) और इब्ने ज़ुबैर को बुलाने के लिये भेजा। क़ासिद जिस वक़्त पहुँचा दोनों मस्जिद में महवे गुफ़्तुगू थे। आपने इरशाद फ़रमाया कि तुम चलो हम आते हैं। क़ासिद वापस चला गया और यह दोनों आपस में बुलाने के सबब पर तबादला ए ख़्याल करने लगे। इमाम हुसैन (अ.स.) ने फ़रमाया कि मैंने आज एक ख़्वाब देखा है जिससे मैं समझता हूँ कि माविया ने इन्तेक़ाल किया और यह हमें बैएते यज़ीद के लिये बुला रहा है। अभी यह हज़रात जाने न पाये थे कि क़ासिद फिर आ गया और उसने कहा कि वलीद आप हज़रात के इन्तेज़ार में है। इमाम हुसैन (अ.स.) ने फ़रमाया कि जल्दी क्या है जा कर कह दे कि हम थोड़ी देर में आ जायेंगे। इसके बाद इमाम हुसैन (अ.स.) दौलत सरा में तशरीफ़ लाये और 30 बहादुरों को हमराह ले कर वलीद से मिलने का क़स्द फ़रमाया , आप दाखि़ले दरबार हो गये और बहादुराने बनी हाशिम बैरूने ख़ाना दरबारी हालात का मुतालेआ करते रहे। वलीद ने इमाम हुसैन (अ.स.) की मुकम्मल ताज़ीम की और माविया के मरने की ख़बर सुना ने के बाद बैएत का ज़िक्र किया। आपने फ़रमाया कि मसला सोच विचार का है तुम लोगों को जमा करो और मुझे भी बुला लो मैं ‘‘ अली रूसे अल शहाद ’’ आम मजमे में इज़्हारे ख़्याल करूंगा। वलीद ने कहा बेहतर है। फिर कल तशरीफ़ लाइयेगा। अभी आप जवाब न देने पाये थे कि मरवान बोल उठा , ऐ वलीद ! अगर हुसैन इस वक़्त तेरे क़ब्ज़े से निकल गये तो फिर हाथ न आयेंगे। उनको इसी वक़्त मजबूर कर दे और अभी बैएत ले ले , और अगर यह इन्कार करें तो हुक्मे यज़ीद के मुताबिक़ सर तन से उतार ले। यह सुन्ना था कि इमाम हुसैन (अ.स.) को जलाल आ गया। आपने फ़रमाया ‘‘ यब्ने ज़रक़ा ’’ किस्में दम है जो हुसैन को हाथ लगा सके , तुझे नहीं मालूम हम आले मोहम्मद (स अ व व ) हैं। फ़रिश्तें हमारे घरों में आते जाते रहते हैं। हमें क्यों कर मजबूर किया जा सकता है कि हम यज़ीद जैसे फ़ासिक़ व फ़ाजिर और शराबी की बैएत कर लें। इमाम हुसैन (अ.स.) की आवाज़ बुलन्द होना था कि बहादुराने बनी हाशिम दाखि़ले दरबार हो गये और क़रीब था कि ज़बर दस्त हंगामा बरपा कर दें लेकिन इमाम हुसैन (अ.स.) ने उन्हें समझा बुझा कर ख़ामोश कर दिया। इसके बाद इमाम हुसैन (अ.स.) वापस दौलत सरा तशरीफ़ ले गये। वलीद ने सारा वाक़ेया लिख कर भेज दिया। उसने जवाब में लिखा कि इस ख़त के जवाब में इमाम हुसैन (अ.स.) का सर भेज दो। वलीद ने यज़ीद का ख़त इमाम हुसैन (अ.स.) के पास भेज कर कहला भेजा कि फ़रज़न्दे रसूल मैं यज़ीद के कहने पर किसी सूरत से अमल नहीं कर सकता , लेकिन आप को बा ख़बर करता हूँ और बताना चाहता हूँ कि यज़ीद आपका ख़ून बहाने के दरपै है। इमाम हुसैन (अ.स.) ने सब्र के साथ हालात पर ग़ौर किया और नाना के रौज़े पर जा कर दरदे दिल बयान किया और बेइन्तेहा रोये। सुबह सादिक़ के क़रीब मकान वापस आये और दूसरी रात को फिर रौज़ा ए रसूल (स अ व व ) पर तशरीफ़ ले गये और मुनाजात के बाद रोते रोते सो गये। ख़्वाब में आं हज़रत (स अ व व ) को देखा कि आप हुसैन (अ.स.) की पेशानी का बोसा ले रहे हैं और फ़रमा रहे हैं कि ऐ नूरे नज़र अन्क़रीब उम्मत तुम्हें शहीद कर देगी। बेटा तुम भूखे और प्यासे होंगे , तुम फ़रयाद करते होंगे और कोई तुम्हारी फ़रियाद रसी न करेगा। इमाम हुसैन (अ.स.) की आंख खुल गई , आप दौलत सरा वापस तशरीफ़ लाये और अपने आइज़्ज़ा को जमा कर के फ़रमाने लगे कि अब इसके सिवा कोई चारा कार नहीं है कि मैं मदीना छोड़ दूँ। तरके वतन का फ़ैसला करने के बाद आप , इमाम हसन (अ.स.) और मज़ारे जनाबे सय्यदा (स अ व व ) पर तशरीफ़ ले गये। भाई से रूख़सत हुए और मां को सलाम किया क़ब्र से जवाबे सलाम आया। नाना के रौज़े पर रूख़्सते आखि़र के लिये तशरीफ़ ले गये , रोते रोते सो गये , सरवरे कायनात (स अ व व ) ने जवाब में सब्र की तलक़ीन की और फ़रमाया बेटा हम तुम्हारे इन्तेज़ार में हैं।

उलेमा का बयान है कि इमाम हुसैन (अ.स.) 28 रजब 60 हिजरी यौमे सेह शम्बा ब इरादा ए मक्का रवाना हुए। अल्लामा इब्ने हजर मक्की का कहना है कि ‘‘ नफ़रूल मकता ख़ौफ़न अला नफ़सहू ’’ इमाम हुसैन (अ.स.) जान के ख़ौफ़ से मक्के को तशरीफ़ ले गये।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 47 ) आपके साथ तमाम मुख़द्देराते इस्मत व तहारत और छोटे छोटे बच्चे थे। अलबत्ता आपकी एक सहाबज़ादी जिनका नाम फ़ात्मा सुग़रा था और जिनकी उम्र उस वक़्त 7 साल थी , बवहे अलालते शदीद हमराह न जा सकीं। इमाम हुसैन (अ.स.) ने आपकी तीमार दारी के लिये हज़रत अब्बास की मां जनाबे उम्मुल बनीन को मदीने ही में छोड़ दिया था और कुछ फ़रिज़ा ए खि़दमत उम्मुल मोमेनीन जनाबे उम्मे सलमा के सिपुर्द कर दिया था। आप तीन शाबान 60 हिजरी यौमे जुमा को मक्के मोअज़्ज़मा पहुँच गये। आपके पहुँचते ही वालिये मक्का सईद इब्ने आस मक्का से भाग कर मदीने चला गया और वहां से यज़ीद को मक्के के तमाम हालात लिखे और बताया कि लोगों का रूझान इमाम हुसैन (अ.स.) की तरफ़ तेज़ी से बढ़ रहा है कि जिसका जवाब नहीं। यज़ीद ने यह ख़बर पाते ही मक्के में क़त्ले हुसैन (अ.स.) की साज़िश पर ग़ौर करना शुरू कर दिया।

इमाम हुसैन (अ.स.) मक्के मोअज़्ज़मा 4 माह शाबान , रमज़ान , शव्वाल , ज़ीक़ाद मुक़ीम रहे। यज़ीद जो बहर सूरत इमाम हुसैन (अ.स.) को क़त्ल करना चाहता था। उसने यह ख़्याल करते हुए कि हुसैन (अ.स.) अगर मदीने से बच कर निकल गये हैं तो मक्का में क़त्ल हो जायें और मक्के से बच निकलें तो कूफ़ा पहुँच कर शहीद हो सकें। यह इन्तेज़ाम किया कि कूफ़े से 12,000 (बारह हज़ार) ख़ुतूत दौराने क़याम मक्के में पहुँचवाये क्यों कि दुश्मनों को यक़ीन था कि हुसैन (अ.स.) कूफ़े में आसानी से क़त्ल किये जा सकेंगे। न यहां के बाशिन्दों में अक़िदे का सवाल है और न अक़ीदत का। यह फ़ौजी लोग हैं इनकी अक़्लें भी मोटी होती हैं। यही वजह है कि शहादते इमाम हुसैन (अ.स.) से क़ब्ल जब तक जितने अफ़सर भेजे गये वह महज़ इस ग़र्ज़ से भेजे जाते रहे कि हुसैन (अ.स.) को कूफ़े ले जायें।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 68 ) और एक अज़ीम लशकर मक्के में शहीद किये जाने के लिये इरसाल किया और तीस 30 ख़्वारजियों को हाजियों के लिबास में ख़ास तौर पर भिजवा दिया जिसका क़ायद उमर इब्ने साअद था।(नासेख़ुल तवारीख़ जिल्द 6 पृष्ठ 21, मुन्तखि़ब तरीही ख़ुलासेतुल मसाएब , पृष्ठ 150, ज़िकरूल अब्बास 122 )

अब्दुल हमीद ख़ान एडीटर मौलवी लिखते हैं कि ‘‘ इसके अलावा एक साज़िश यह भी की गई कि अय्यामे हज में 300 शामियों को भेज दिया गया कि वह गिरोहे हुज्जाज में शामिल हो जायें और जहां जिस हाल में भी हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) को पायें क़त्ल कर डालें। ’’(शहीदे आज़म पृष्ठ 71 ) ख़ुतूत जो कूफ़े से आये थे उन्हें शरई रंग दिया गया था और वह ऐसे लोगों के नाम से भेजे गये थे जिनसे इमाम हुसैन (अ.स.) मुतारिफ़ थे। शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस का कहना है कि यह ख़ुतूत ‘‘ मन कुल तायफ़तः व जमा अता हर तायफ़ा ’’ और जमाअत की तरफ़ से भीजवाए गये थे।(इसरारूयल शहादतैन पृष्ठ 27 )

अल्लामा इब्ने हजर का कहना है कि ख़ुतूत भेजने वाले आम अहले कूफ़ा थे।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 117 ) इब्ने जरीर का बयान है कि इस ज़माने में कूफ़े में एक घर के अलावा कोई शिया न था।(तबरी)

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपनी शरई ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिये कूफ़े के हालात जानने के लिये जनाबे मुस्लिम इब्ने अक़ील को कूफ़े से रवाना कर दिया।

हज़रत मुस्लिम इब्ने अक़ील

हज़रत मुस्लिम (अ.स.) हुक्मे इमाम पाते ही सफ़र के लिये रवाना हो गये। शहर से बाहर निकलते ही आपने देखा कि एक सय्यद ने एक आहू (हिरन) का शिकार किया है और उसे छुरी से ज़िब्हा कर डाला। दिल में ख़्याल पैदा हुआ कि इस वाक़ेए को इमाम हुसैन (अ.स.) से बयान करूं तो बेहतर होगा। इमाम हुसैन (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुए और वाक़िया बयान किया। आपने दुआये कामयाबी दी और रवानगी में उजलत की तरफ़ इशारा किया। जनाबे मुस्लिम इमाम हुसैन (अ.स.) के हाथों और पैरों का बोसा दे कर बा चश्में गिरया मक्के से रवाना हो गये। मुस्लिम इब्ने अक़ील के दो बेटे थे। मोहम्मद और इब्राहीम , एक की उम्र 7 साल दूसरे की 8 साल थी। यह दोनों बेटे बारवायत मदीना ए मुनव्वरा में थे। हज़रत मुस्लिम मक्के से रवाना हो कर मदीना पहुँचे और वहां पहुँच कर रौज़ा ए रसूल (स अ व व ) पर नमाज़ अदा की और ज़्यारत वग़ैरा से फ़राग़त हासिल कर के अपने घर वारिद हुए। रात गुज़री सुबह के वक़्त अपने बच्चों को ले कर दो रहबरों समैत जंगल के रास्ते से कूफ़ा रवाना हुए। रास्ते में शिद्दते अतश की वजह से इन्तेक़ाल कर गये। आप जिस वक़्त कूफ़ा पहुँचे और वहा जनाबे मुख़्तार इब्ने अबी उबैदा सक़ाफ़ी के मकान पर क़याम फ़रमा हुए। थोड़े दिनों में अट्ठारा हज़ार ( 18,000) कूफ़ियों ने आपकी बैअत कर ली। इसके बाद बैअत करने वालों की तादाद 30,000 (तीस हज़ार) हो गई। इसी के दौरान यज़ीद ने अब्दुल्लाह इब्ने ज़ियाद को बसरा लिखा कि कूफ़े में इमाम हुसैन (अ.स.) का एक भाई मुस्लिम नामी पहुँच गया है तू जल्द से जल्द वहां पहुँच कर नोमान इब्ने बशीर से हुकूमते कूफ़ा का चार्ज ले ले और मुस्लिम का सर मेरे पास भेज दे। इब्ने ज़ियाद पहली फ़ुरसत में कूफ़े पहुँच गया। इसने दाखि़ले के वक़्त ऐसी शक्ल बनाई कि लोग समझे कि इमाम हुसैन (अ.स.) आ गये हैं लेकिन मुस्लिम इब्ने उमर बहाली ने पुकार कर कहा कि यह इब्ने ज़ियाद है।

हज़रत मुस्लिम इब्ने अक़ील को जब इब्ने ज़ियाद की रसीदगी कूफ़े की इत्तेला मिली तो आप ख़ाना ए मुख़्तार से हट कर हानी इब्ने उरवा के मकान में चले गये। इब्ने ज़ियाद ने माक़िल नामी ग़ुलाम के ज़रिए जनाबे मुस्लिम की क़याम गाह का पता लगा लिया। उसे जब यह मालूम हुआ कि मुस्लिम हानि बिन उरवा के मकान में हैं तो हानी को बुलवा भेजा और पूछा कि तुमने मुस्लिम इब्ने अक़ील की हिमायत का बिड़ा उठाया है और वह तुम्हारे घर में हैं ? जनाबे हानी ने पहले तो इन्कार कर दिया लेकिन जब माक़िल जासूस सामने लाया गया तो आपने फ़रमाया कि ऐ अमीर ! हम मुस्लिम को अपने घर बुला कर नहीं लाये बल्कि वह ख़ुद आ गये हैं। इब्ने ज़ियाद ने कहा , अच्छा जो सूरत भी हो तुम मुस्लिम को हमारे हवाले करो। जनाबे हानी ने जवाब दिया कि यह बिल्कुल ना मुम्किन है। यह सुन कर इब्ने ज़ियाद ने हुक्म दिया कि हानी को क़ैद कर दिया जाये। जनाबे हानी ने फ़रमाया कि मैं हर मुसिबत को बर्दाश्त करूंगा लेकिन मेहमान को तुम्हारे सिपुर्द न करूंगा। मुख़्तसर यह कि जनाबे हानी जिनकी उम्र 90 साल की थी , को खम्बे में बंधवा कर पांच सौ ( 500) कोड़े मारने का हुक्म दिया गया। जनाबे हानी बेहोश हो गये। उसके बाद उनका सर काट कर तने मुबारक को दार पर लटका दिया गया।

जब हज़रत मुस्लिम को जनाबे हानी की गिरफ़्तारी का इल्म हुआ तो आप अपने साथियो को ले कर बाहर निकल गये। दुश्मन से घमासान जंग हुई लेकिन क़तीर इब्ने शहाब , मोहम्मद इब्ने अशअस , शिम्र इब्ने ज़िलजौशन , शीस इब्ने रबी के बहकाने और ख़ौफ़ दिलाने से सब डर गये। यहां तक कि नमाज़े मग़रबैन में आपके हमराह सिर्फ़ 30 आदमी थे और जब आपने नमाज़ तमाम की तो कोई भी साथ न था। आपने चाहा कि कूफ़े से बाहर जा कर कहीं रात गुज़ार लें , मगर मोहम्मद इब्ने कसीर ने कहा कि कूफ़े के तमाम रास्ते बन्द हैं आप मेरे मकान में जा ठहरिये। इब्ने ज़ियाद ने बाप और बेटे दोनों को तलब किया और दरबार में निहायत सख़्त और सुस्त कहा। उस वक़्त उनके साथी मोहम्मद इब्ने कसीर और दरबारियों में सख़्त जंग हुई। बिल आखि़र यह बाप और बेटे दोनों शहीद हो गये।

हज़रत मुस्लिम को जब मोहम्मद कसीर की शहादत की इत्तेला मिली तो वह उनके घर से बाहर बरामद हुए। मुस्लिम यह चाहते थे कि कोई ऐसा रास्ता मिल जाये कि मैं कूफ़े से बाहर चला जाऊँ और इसी कोशिश में घोड़े पर सवार हो कर कूफ़े के हर दरवाज़े पर गये लेकिन किसी दरवाज़े से रास्ता न मिला , क्यों कि हर जगह दो दो हज़ार सिपाहियों का पहरा था , नागाह सुबह हो गई और मुस्लिम नाचार अपना घोड़ा शारए आम पर छोड़ कर एक कूचे में घुस गये और वहां की एक बोसिदा मस्जिद में छुपे रहे। इब्ने ज़ियाद को जैसे यह मालूम था कि कूफ़े ही में मुस्लिम कहीं रू पोश हैं। उसने ऐलान करा दिया कि जो मुस्लिम को गिरफ़्तार कर के लायेगा या उनका सर दरबार में पहुँचायेगा तो उसे काफ़ी माल दिया जायेगा।

हज़रत मुस्लिम ने दिन मस्जिद में गुज़ारा और रात को मस्जिद से निकल कर खडे़ हुए। जनाबे मुस्लिम की हालत भूख और प्यास से ऐसी हो गई थी कि रास्ता चलना दूभर था। आप इसी हालत में एक महल्ले में सर गरदां फिर रहे थे कि आपकी नज़र एक ज़ईफ़ा (बूढ़ी औरत) पर पड़ी , आप उसके क़रीब गये और उससे पानी मांगा। उसने पानी दे कर ख़्वाहिश की कि जल्दी अपनी राह लगें क्यों कि यहां फ़िज़ा बहुत मुकद्दर है। आपने फ़रमाया कि ऐ ‘‘ तौआ ’’ जिसका कोई घर न हो वह कहां जाये। उसने पूछा कि आप कौन हैं ? फ़रमाया मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) और अली ए मुर्तुज़ा का भतीजा और इमाम हुसैन (अ.स.) का चचा जा़द भाई हूँ। यह सुन कर ‘‘तौआ ” ने आपको अपने घर में जगह दी। आपने रात गुज़ारी लेकिन सुबह होते ही दुश्मन का लशकर आ पहुँचा क्यों कि पिसरे तौआ ने माँ से पोशिदा इब्ने ज़ियाद से चुग़ल ख़ोरी कर दी थी। लशकर का सरदार मोहम्मद बिन अशअस था जो इमाम हसन (अ.स.) की क़ातेला जादा बिन्ते अशअस का सगा भाई था। हज़रत मुस्लिम ने जब तीन हज़ार घोड़ों की टापों की आवाज़ सुनी तो तलवार ले कर घर से बाहर निकल पड़े और सैकड़ों दुश्मनों को तहे तेग़ कर दिया। बिल आखि़र इब्ने अशअस ने और फ़ौज मांगी। इब्ने ज़ियाद ने कहला भेजा कि एक शख़्स के लिये तीन हज़ार फ़ौज कैसे न काफ़ी है। उसने जवाब दिया कि शायद तूने यह समझा है कि किसी बनिये बक़्क़ाल से लड़ने के लिये भेजा है। ग़र्ज़ कि जब मुस्लिम पर किसी तरह क़ाबू न पाया जा सका तो एक खस पोश गढ़े में आपको गिरा दिया गया , फिर गिरफ़्तार कर के इब्ने ज़ियाद के सामने पेश कर दिया।

इसने हुक्म दिया कि इन्हें कोठे से ज़मीन पर गिरा कर इनका सर काट लिया जाऐ। आपने कुछ वसीयतें की और कोठे से गिरते वक़्त ‘‘ अस्सलामो अलैका या अबा अब्दिल्लाह ’’ कहा और नीचे तशरीफ़ लाये। आपका सर काटा गया। उलमा का बयान है कि आपका और हानी का सर काट कर दमिश्क़ भेज दिया गया और तन बाज़ारे क़साबा में दार पर लटका दिया गया।

एक रवायत में है कि दोनों के पैरों में रस्सी बांध कर बाज़ारों में फिरा रहे थे कि क़बीला ए मुज़हज ने काफ़ी जंगो जिदाल कर के लाशें हासिल कर लीं और दफ़्न कर दिया। मुलाहेज़ा होः(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 260 से 276 तक व कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 68 व ख़ुलासतुल मसाएब पृष्ठ 46 )

आपकी शहादत 9 ज़िल्हिज 60 हिजरी को वाक़े हुई है।

(अनवारूल मजालिस बाब 9 मजालिस 2 प्रकाशित ईरान)

मोहम्मद और इब्राहीम की शहादत

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि शहादते हज़रत मुस्लिम के बाद लोगों ने इब्ने ज़ियाद को जनाबे मुस्लिम के दोनों कमसिन लड़कों के कूफ़े में मौजूद होने की ख़बर दी जिनका नाम मोहम्मद व इब्राहीम था। इब्ने ज़ियाद ने इनकी गिरफ़्तारी का हुक्म नाफ़िज़ कर दिया। पिसराने मुस्लिम क़ाज़ी शुरए के घर में पोशीदा थे। सरकारी ऐलान के बाद क़ाज़ी ने बच्चों से कहा कि हमारी और तुम्हारी दोनों की जान अब ख़तरे में है बेहतर यह है कि तुम्हें किसी सूरत से मदीने पहुँचा दिया जाय। बच्चों ने इसे क़ुबूल किया। क़ाज़ी ने अपने बेटे असद को हुक्म दिया कि इन बच्चों को दरवाज़े अराक़ेन के बाहर जो काफ़ला मदीना जाने के लिये ठहरा हुआ है उसमें छोड़ आ। असद उन बच्चों को ले कर जब रात के वक़्त वहां पहुँचा तो काफ़ला रवाना हो चुका था लेकिन इस मक़ाम से नज़र आ रहा था। असद ने बच्चों को उसी काफ़ले के रास्ते पर लगा दिया और घर वापस आया। कमसिन बच्चे थोड़ी दूर चले थे कि काफ़ला नज़रों से ग़ायब हो गया और सुबह हो गई। बच्चे हैरान व सरगरदान फिर रहे थे कि नागाह सरकारी आदमियों ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया और उन्हें इब्ने ज़ियाद के पास पहुँचा दिया। उसने उन्हे क़ैद ख़ाने में बन्द कर के यज़ीद को बच्चों की गिरफ़्तारी की इत्तेला दे दी। क़ैद ख़ाने का दरबान इत्तेफ़ाक़न मुहिब्बे आले मोहम्मद (स अ व व ) था। उसने रात के वक़्त बच्चों को छोड़ दिया और राहे क़ादसिया पर लगा कर एक अंगूठी दी और कहा कि क़ादसिया में मेरे भाई से मिलना और इस अंगूठी के ज़रिये से ताअर्रूफ़ के बाद उनसे कहना कि वह तुम्हें मदीना पहुँचा दें। बच्चे तो रवाना हो गये लेकिन सुबह होते ही दरबान जिसका नाम ‘‘ मशकूर ’’ था क़त्ल कर दिया गया। उससे पूछा गया कि तूने मुस्लिम के बेटों को क्यों छोड़ दिया ? उसने कहा कि ख़ुशनूदिये ख़ुदा के लिये। इब्ने ज़ियाद ने पाँच सौ ( 500) कोड़े मारने का हुक्म दिया। मशकूर की शहादत के बाद उसे उमर इब्ने अल हारिस ने दफ़्न कर दिया।

पिसराने मुस्लिम बिन अक़ील , मशकूर की मेहरबानी से रिहा हो कर क़ादसिया जा रहे थे। हुदूदे कूफ़ा के अन्दर ही रास्ता भूल गये और सारी रात चक्कर लगा कर सुबह को अपने को कूफ़े में ही पाया। सुबह हो चुकि थी दुश्मन के ख़तरे से दोनों एक दरख़्त पर चढ़ गये। इत्तेफ़ाक़न एक औरत उस जगह पानी भरने आई उसने पानी में परछाई देख कर पूछा कि तुम कौन हो ? उन्होंने इतमेनान करने के बाद कहा कि हम मुस्लिम के फ़रज़न्द हैं। उस औरत ने अपनी मलका को ख़बर दी। वह सरो पा बरहैना दौड़ कर आई और इन बच्चों को ले गईं और मकान की एक ख़ाली जगह पर इनको ठहरा दिया। थोड़ी रात गुज़री थी कि इस मोमिना का शौहर ‘‘ हारिस बिन उरवा ’’ सर गर्दा व परेशान घर में आया तो मोमिना ने पूछा कि आज बड़ी रात कर दी ख़ैर तो है ? उसने कहा , मशकूर दरबान ने मुस्लिम के बेटों को क़ैद से रिहा कर दिया जिनकी तलाश के लिये इनाम व इकराम इब्ने ज़ियाद की तरफ़ से मुक़र्रर किया गया है। मैं भी अब तक उनकी तलाश में फिर रहा था। हारिस खाना खा कर बिस्तर पर लेट गया। अभी आंख न लगी थी कि बच्चों की सांस की आवाज़ को महसूस कर के उठ खड़ा हुआ , बिवी से पूछा कि यह किस के सांस की आवाज़ आती है ? उसने कोई जवाब न दिया। यह उस तहख़ाने की तरफ़ चला जिसमें नौनिहालाने रिसालत जलवा अफ़रोज़ थे। उसकी आहट पा कर एक भाई ने दूसरे को जगा कर कहा कि भय्या अभी मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) अली मुर्तुज़ा (अ.स.) फ़ात्मा ज़हरा (स अ व व ) हसने मुजतबा (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) और मेरे बाबा ख़्वाब में तशरीफ़ लाये थे और उन्होंने फ़रमाया कि हम तुम्हारें इन्तेज़ार में हैं। इतने में हारिस अन्दर दाखि़ल हो गया। उन्हें पकड़ कर कहा कि तुम कौन हो ? उन्होंने फ़रमाया कि हम तेरे नबी की अवलाद हैं। ‘‘ हर बना मिनल सजन ’’ क़ैद ख़ाने से भाग कर आये हैं और तेरे घर में पनाह ली है। उसने कहा कि तुम क़ैद से भाग कर मौत के मुंह में आ गये हो। उसके बाद उसने उन यतीमों के रूख़सारों (गालों) पर ज़ोर से तमाचे मारे कि यह मुंह के बल गिर पड़े। फिर उसने उनके बाज़ुओं को कस कर बांधा और हाथ पाओ बांध कर डाल दिया। यह बेचारे सारी रात अपनी बेबसी और बे कसी पर रोते रहे। जब सुबह हुई तो उन्हें नहर पर क़त्ल करने के लिये ले चला। बीवी ने फ़रियाद की , उसे एक तलवारी मारी। गु़लाम ने रोका तो उसे क़त्ल कर दिया। बेटे ने मना किया तो उसे भी क़त्ल कर दिया। अलग़रज़ नहरे फ़ुरात पर ले जा कर क़त्ल करना ही चाहा था कि बच्चों ने कहा कि ऐ शेख़ 1. हमें ज़िन्दा इब्ने ज़ियाद के पास ले चल। 2 हमें बाज़ार में बेच डाल। 3. हमारी कम सिनी पर रहम कर। 4. हमें दो रकअत नमाज़ पढ़ने की इजाज़त दे। उसने कहा कि क़त्ल के सिवा कोई चारा कार नहीं। अलबत्ता अगर नमाज़ पढ़ते हो तो पढ़ लो लेकिन कोई फ़ायदा नहीं है। अल ग़रज़ बच्चों ने वुज़ू किया और दो दो रकअत नमाज़ अदा कि और दुआ के लिये हाथ उठाये। इस मलऊन ने बड़े भाई की गरदन पर तलवार लगाई। सरे मुबारक दूर जा कर गिरा। छोटे भाई ने दौड़ कर सरे मुबारक उठाया लिया और भाई के ख़ून में लौटने लगा। इस ज़ालिम ने बड़े भाई की लाश पानी में डाल दी और छोटे का सर भी काट लिया। जब दोनों लाशें पानी में पहुँची तो बाहम बग़लगीर हो कर डूब गईं। रावी का बयान है कि हारिस ने जिस वक़्त इब्ने ज़ियाद के सामने फ़रज़न्दे मुस्लिम के सर पेश किये ‘‘ क़ाम सुम क़दो फ़ल ज़ालेका सलासन ’’ तो वह तीन मरतबा उठा और बैठा। फिर हुक्म दिया कि यह सर उसी पानी में डाल दिये जायें जिस जगह इनके तन डाले गयें हैं। चुनान्चे एक मुहिब्बे आले मोहम्मद (अ.स.) ने इन सरों को फ़रात में डाल दिया। कहा जाता है कि सरों के पानी में पहुँचते ही डूबे हुए जिस्म सतह आब पर उभर आये और अपने सरों समैत तह नशीन हो गये। अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी तहरीर फ़रमाते हैं कि वह शख़्स जो मुस्लिम के बेटों के सरों को पानी में डाल ने के लिये लाया था उसका नाम ‘‘ मक़ातिल ’’ था। उसने दोनों सरों को पानी में डालने के बाद हारिस मलऊन को मक़तूल ग़ुलाम और बेटे की लाशों को बाबे बनी ख़ज़ीमा में दफ़्न कर दिया।(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 276 से पृष्ठ 285 व ख़ुलासतुल मसाएब पृष्ठ 421 ) अल्लामा अरबेली लिखते हैं कि जनाबे मुस्लिम इब्ने अक़ील हानी इब्ने उरवा व मोहम्मद इब्ने कसीर और फ़रज़न्दाने मुस्लिम को ठिकाने लगाने के बाद उमर इब्ने साअद और इब्ने ज़ियाद के माबैन ‘‘ रै ’’ का मोहयदा हो गया और तय पाया कि हुर इब्ने यज़ीद रियाही को सब से पहले दो हज़ार सवारों समैत रवाना कर के इमाम हुसैन (अ.स.) को गिरफ़्तार कराया जाए और उन्हें कूफ़े ला कर क़त्ल क र दिया जाय।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 68 )