चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.


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मक्के मोअज़्ज़मा में इमाम हुसैन (अ.स.) की जान बच न सकी

यह वाक़ेया है कि इमाम हुसैन (अ.स.) मदीना ए मुनव्वरा से इस लिये आज़िमे मक्का हुए थे कि यहां उनकी जान बच जायेगी लेकिन आपकी जान लेने पर ऐसा सफ़्फ़ाक दुश्मन लगा हुआ था जिसने मक्का ए मोअज़्ज़मा और काबा ए मोहतरम में भी आपको महफ़ूज़ न रहने दिया और वह वक़्त आ गया कि इमाम हुसैन (अ.स.) मक़ामे अमन को महले ख़ौफ़ समझ कर मक्का ए मोअज़्ज़मा छोड़ने पर मजबूर हो गये और मजबूरी इस हद तक बढ़ गई कि आप हज तक न कर सके। यह मुसल्लेमात से है कि शयातीने बनी उमय्या के तीस ख़ूंख़ार हज के लिबास में इमाम हुसैन (अ.स.) के साथ हो गये और क़रीब था कि आपको आलमे हज व तवाफ़ में क़त्ल कर दें। इमाम हुसैन (अ.स.) को जैसे ही साज़िश का पता लगा आपने फ़ौरन हज को उमरे में बदला और आठ ज़िल्हिज 60 हिजरी को जनाबे मुस्लिम के ख़त पर भरोसा कर के आज़िमे कूफ़ा हो गये। अभी आप रवाना न होने पाये थे कि अज़ीज़ व अक़रेबा ने कमाले हमदर्दी के साथ कूफ़े के सफ़र को न करने की दरख़्वास्त की। आपने फ़रमाया कि अगर मैं चूंटी के बिल में भी छुप जाऊँ तो भी क़त्ल ज़रूर किया जाऊँगा और सुनो मेरे नाना ने फ़रमाया है कि हुरमते मक्का एक दुम्बे के क़त्ल से बरबाद होगी। मैं डरता हूँ कि वह दुम्बा मैं ही न क़रार पाऊँ। मेरी ख़्वाहिश है कि मैं मक्का से बाहर चाहे एक ही बालिश्त पर क्यों न ही क़त्ल किया जाऊँ।(तारीख़े कामिल जिल्द 4 पृष्ठ 20, नियाबुल मोअद्दता पृष्ठ 236, सवाएक़े मोहर्रेक़ा) यह वाके़या है कि यज़ीद का इरादा बहर सूरत इमाम हुसैन (अ.स.) को क़त्ल करना और इस्तेहसाले बनी फ़ात्मा था।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 87 ) यही वजह है कि जब इमाम हुसैन (अ.स.) के मक्के मोअज़्ज़मा से रवाना होने की इत्तेला वालीए मक्का उमर बिन सआद को हुई तो उसने पूरी ताक़त से वापस लाने की सई की और इसी सिललिसे में उसने यहिया बिन सईद इब्ने अल आस को एक गिरोह के साथ आपको रोकने के लिये भेज दिया। ‘‘ फ़ा क़ालू लहू अन सरफ़ा अयना तज़हब ’’ इन लोगों ने आपको रोका और कहा कि आप यहां से कहां निकले जा रहे हैं फ़ौरन लौटिये। आपने फ़रमाया ऐसा हरगिज़ नहीं होगा। यह रोकना मामूली न था जिसमें मार पीट की भी नौबत आई।(दमाउस साकेबा पृष्ठ 316 ) मक़सद यह है कि वालिये मक्का यह नहीं चाहता था कि इमाम हुसैन (अ.स.) इसके हुदूदे इक़्तेदार से निकल जायें और यज़ीद के मन्शा को पूरा न कर सकें क्यों कि उसके पेशे नज़र वालीए मदीना की बरतरफ़ी या तअत्तुल था। वह देख चुका था कि हुसैन (अ.स.) के मदीने से सालिम निकल आने पर वालीए मदीना बर तरफ़ कर दिया गया था।

इमाम हुसैन (अ.स.) की मक्के से रवानगी

अल ग़रज़ इमाम हुसैन (अ.स.) अपने जुमला आईज़्ज़ा और अक़रेबा व अनसारे जां निसार को हमराह ले कर जिनकी तादाद बक़ौल इमाम शिब्ली 72 थी मक्के से रवाना हो गये। आप जिस वक़्त मंज़िले पृष्ठ पर पहुँचे तो फ़रज़दक़ शायर से मुलाक़ात हुई। वह कूफ़े से आ रहा था। इसरार पर उसने बताया कि चाहे लोगों के दिल आपके साथ हों लेकिन इनकी तलवारें आपके खि़लाफ़ हैं। आपने अपनी रवानगी की वजहं बयान फ़रमाईं और आप वहां से आगे बढ़े फिर मंज़िले हाजिज़ के एक चश्मे पर उतरे और वहां अब्दुल्लाह इब्ने मुती से मुलाक़ात हुई उन्होंने भी कूफ़ियों की बे वफ़ाई का ज़िक्र किया , इसके बाद आप मंज़िले बतन अल रहमा पहुँचे और वहां से मंज़िले ज़ातुल अर्क़ पर डेरा डाला। वहां एक शख़्स बशीर इब्ने ग़ालिब से मुलाक़ात हुई उसने भी कूफ़ियों की ग़द्दारी का तज़किरा किया। फिर आप वहां से आगे बढ़े। एक मक़ाम पर एक ख़ेमा नस्ब देखा। पूछा इस जगह कौन ठहरा है। मालूम हुआ कि ज़ोहैरे इब्ने क़ैन। आपने उन्हें बुलवा भेजा। जब वह आये तो आपने अपनी हिमायत का ज़िक्र किया। उन्होंने क़ुबूल कर के अपनी बीवी को बा रवायत अपने भाई के साथ घर रवाना कर दिया और ख़ुद इमाम हुसैन (अ.स.) के साथ हो गये। फिर आप वहां से रवाना हो कर मंज़िले ‘‘ जबाला ’’ में पहुँचे वहां आपको हज़रते मुस्लिम व हानी और मोहम्मद बिन कसीर और अब्दुल्लाह बिन यक़तर जैसे दिलेरों की शहादत की ख़बर मिली। आपने ‘‘ निन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन ’’फ़रमाय और दाखि़ले ख़ेमा हो कर हज़रत मुस्लिम की बच्चियों को कमाले मोहब्बत के साथ प्यार किया और बे इन्तेहा रोये। उसके बाद बक़ौले अल्लामा अरबली , आपने ब वक़्ते शब एक ख़ुतबा दिया जिसमें हालात की वज़ाहत के बाद इरशाद फ़रमाया कि मेरा क़त्ल यक़ीनी है। मैं तुम लोगों की गरदनों से तौक़ै बैएत उतारे लेता हूँ। तुम्हारा जिधर जी चाहे चले जाओ। दुनियां दार तो वापस हो गये लेकिन सब दींदार साथ ही रहे। फिर वहां से रवाना हो कर मंज़िले क़सर बनी मक़ातिल पर उतरे। वहां पर अब्दुल्लाह इब्ने हजर जाफ़ेई से मुलाक़ात हुई। आपके इसरार के बवजूद वह बक़ौले वाएज़ काशफ़ी आपके साथ न हुआ। फिर आप मंज़िले साअलबिया पर पहुँचे वहां जनाबे ज़ैनब की आग़ोश में सर रख कर सो गये। ख़्वाब में रसूले ख़ुदा को देखा कि बुला रहे हैं। आप रो पड़े उम्मे कुलसूम ने रोने की वजह पूछी आपने ख़्वाब का हवाला दिया और ख़ानदान की तबाही का असर ज़ाहिर किया। अली अकबर (अ.स.) ने अर्ज़ कि बाबा हम हक़ पर हैं हमें मौत से कोई डर नहीं। उसके बाद आप ने मंज़िले क़तक़तानिया पर ख़ुतबा दिया और वहां से रवाना हो कर क़बीला ए बनी सुकून में ठहरे। आपकी यहां सुकूनत की इत्तेला इब्ने ज़ियाद को दी गई। उसने एक हज़ार या दो हज़ार के लशकर समैत हुर बिन यज़ीदे रिहाइ को इमाम हुसैन (अ.स.) की गिरफ़्तारी के लिये रवाना कर दिया। इमाम हुसैन (अ.स.) अपनी क़याम गाह से निकल कर कूफ़े की तरफ़ ब दस्तूर रवाना हो गये। रास्ते मे बनी अकरमा का एक शख़्स मिला , उसने कहा क़ादसिया में ग़दीब तक सारी ज़मीन लश्कर से पटी पड़ी है। आपने उसे दुआए ख़ैर दी और ख़ुद आगे बढ़ कर ‘‘ मंज़िले शराफ़ ’’ पर क़याम किया। वहां आपने मोहर्रम 61 हिजरी का चांद देखा और आप रात गुज़ार कर बहुत सवेरे रवाना हो गये।

हुर बिन यज़ीदे रियाही

सुबह का वक़्त गुज़रा दोपहर आई , लशकरे हुसैनी बादया पैमाई कर रहा था कि नागाह एक साहाबिये हुसैन (अ.स.) ने तकबीर कही। लोगों ने वजह पूछी , उसने जवाब दिया कि मुझे कूफ़े की सिम्त ख़ुरमे और केले के दरख़्त जैसे नज़र आ रहे हैं। यह सुन कर लोग यह ख़्याल करते हुए कि इस जंगल में दरख़्त कहां , उस तरफ़ ग़ौर से देखने लगे , थोड़ी देर में घोड़ों की कनौतियां नज़र आई , इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया कि दुश्मन आ रहे हैं। लेहाज़ा मंज़िले ज़ुख़शब या जूहसम की तरफ़ मुड़ चले। लश्करे हुसैनी ने रूख़ बदला और लश्करे हुर ने तेज़ रफ़्तारी इख़्तेयार की। बिल आखि़र सामने आ पहुँचा और ब रवायते लजामे फ़रस पर हाथ डाल दिया। यह देख कर हज़रते अब्बास (अ.स.) आगे बढ़े और फ़रमाया तेरी माँ तेरे ग़म में बैठे। ‘‘ मातरीद ’’ क्या चाहता है ?(मातईन पृष्ठ 183 )

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि चूंकि लश्करे हुर प्यास से बेचैन था इस लिये साक़िये क़ौसर के फ़रज़न्द ने अपने बहादुरों को हुक्म दिया कि हुर के सवारों और सवारी के जानवरों को अच्छी तरह सेराब कर दो। चुनान्चे अच्छी तरह सेराबी कर दी गई। उसके बाद नमाज़े ज़ौहर की अज़ान हुई। हुर ने इमाम हुसैन (अ.स.) की क़यादत में नमाज़ अदा की और बताया कि हमें आपकी गिरफ़्तारी के लिये भेजा गया है और हमारे लिये यह हुक्म है कि हम आपको इब्ने ज़ियाद के दरबार में हाज़िर करें। इमाम हुसैन (अ.स.) ने फ़रमाया कि मेरे जीते जी यह ना मुम्किन है कि मैं गिरफ़्तार हो कर ख़ामोशी के साथ कूफ़े में क़त्ल कर दिया जाऊं। फिर उसने तन्हाई में राय दी कि चुपके से रात के वक़्त किसी तरफ़ निकल जायें। आपने उसकी राय को पसन्द किया और एक रास्ते पर आप चल पड़े। जब सुबह हुई तो फिर हुर को पीछा करते देखा और पूछा कि अब क्या बात है ? उसने कहा मौला किसी जासूस ने इब्ने ज़ियाद से मुख़बिरी कर दी है। चुनान्चे अब उसका हुक्म यह आ गया है कि मैं आप को बे आबो गियाह जंगल (जहां पानी और साया न हो) में रोक लूँ। गुफ़्तुगू के साथ साथ रफ़्तार भी जारी थी कि नागाह इमाम हुसैन (अ.स.) के घोड़े ने क़दम रोके , आपने लोगों से पूछा कि इस ज़मीन को क्या कहते हैं ? कहा गया ‘‘ करबला ’’ आपने अपने साथियों को हुक्म दिया कि यहीं पर डेरे डाल दो और यहीं ख़ेमे लगा दो क्यो कि क़ज़ा ए इलाही यहीं हमारे गले मिलेगी।

(नूरूल अबसार पृष्ठ 117 मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 257, तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 307, कामिल जिल्द 4 पृष्ठ 26, अबुल फ़िदा जिल्द 2 पृष्ठ 201 व दमए साकेबा पृष्ठ 330, अख़बारूल तवाल पृष्ठ 250, इब्नुल वरदी जिल्द 1 पृष्ठ 172, नासिक़ जिल्द 6 पृष्ठ 219 बेहारूल अनवार जिल्द 10 पृष्ठ 286 )

करबला में वुरूद

2 मोहर्रमुल हराम 61 हिजरी यौमे पंज शम्बा को इमाम हुसैन (अ.स.) वारिदे करबला हो गये।(नूरूल ऐन पृष्ठ 46, हयवातुल हैवान जिल्द 1 पृष्ठ 51 मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 250, इरशादे मुफी़द व दमए साकेबा पृष्ठ 321 ) अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी और अल्लामा अरबली का बयान है कि जैसे ही इमाम हुसैन (अ.स.) ने ज़मीने करबला पर क़दम रखा ज़मीने करबला ज़र्द हो गई और एक ऐसा ग़ुबार उठा जिससे आपके चेहरा ए मुबारक पर परेशानी के आसार नुमाया हो गये। यह देख कर असहाब डर गये और जनाबे उम्मे कुलसूम रोने लगीं।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 69 व रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 301 )

साहेबे मख़ज़नुल बुका लिखते हैं कि करबला के फ़ौरन बाद जनाबे उम्मे कुलसूम ने इमाम हुसैन (अ.स.) से अर्ज़ कि भाई जान यह कैसी ज़मीन है कि इस जगह हमारा दिल दहल रहा है। इमाम हुसैन (अ.स.) ने फ़रमाया बस यह वही मक़ाम है जहां बाबा जान ने सिफ़्फ़ीन के सफ़र में ख़्वाब देखा था यानी यह वह जगह है जहां हमारा ख़ून बहेगा। किताब माईन में है कि इसी दिन एक सहाबी ने एक बेरी के दरख़्त से मिसवाक के लिये शाख़ काटी तो उससे ख़ूने ताज़ा जारी हो गया।

इमाम हुसैन (अ.स.) का ख़त अहले कूफ़ा के नाम

करबला पहुँचने के बाद आपने सब से पहले एतमामे हुज्जत के लिये एहले कूफ़ा के नाम कै़स इब्ने मसहर के ज़रिये से एक ख़त इरसाल फ़रमाया , जिसमें आपने तहरीर फ़रमाया था कि तुम्हारी दावत पर मैं करबला तक आ गया हूँ। क़ैस ख़त लिये जा रहे थे कि रास्ते में गिरफ़्तार कर लिये गये और उन्हें इब्ने ज़ियाद के सामने कूफ़े ले जा कर पेश कर दिया गया। इब्ने ज़ियाद ने ख़त मांगा क़ैस ने बा रवायते चाक कर के फेंक दिया और बा रवायते इस ख़त को खा लिया। इब्ने ज़ियाद ने उन्हें ताज़याने (कोड़े) मार कर शहीद कर दिया।(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 301, कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 66 )

उबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद का ख़त इमाम हुसैन (अ.स.) के नाम

अल्लामा इब्ने तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि इमाम हुसैन (अ.स.) के करबला पहुँचने के बाद , हुर ने इब्ने ज़ियाद को आपके करबला पहुँचने की ख़बर दी। उसने इमाम हुसैन (अ.स.) को फ़ौरन एक ख़त इरसाल किया जिसमें लिखा कि मुझे यज़ीद ने हुक्म दिया है कि मैं आप से उसके लिये बैएत ले लूँ , या क़त्ल कर दूं। इमाम हुसैन (अ.स.) ने इस ख़त का जवाब न दिया। ‘‘ अल क़ायमन यदह ’’ और उसे ज़मीन पर फेंक दिया।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 257 व नूरूल अबसार पृष्ठ 117 ) इसके बाद आपने मोहम्मद बिन हनफ़िया को अपने करबला पहुँचने की एक ख़त के ज़रिये से इत्तेला दी और तहरीर फ़रमाया कि मैंने ज़िन्दगी से हाथ धो लिया है और अन्क़रीब उरूसे मौत से हमकनार हो जाऊंगा।(जिलाउल उयून पृष्ठ 196 )

दूसरीमोहर्रम से नवी मोहर्रम तक के मुख़्तसर वाक़ेयात

दूसरी मोहर्रमुल हराम 61 हिजरी

को आप करबला में वारिद हुए। आपने अहले कूफ़ा के नाम ख़त लिखा। आपके नाम इब्ने ज़ियाद का ख़त आया , इसी तारीख़ को आपके हुक्म से नहरे फ़ुरात के किनारे ख़ेमे नस्ब किये गये।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 69 व शहीदे आज़म पृष्ठ 111 ) हुर ने रोका और कहा कि फ़ुरात से दूर ख़ेमे नस्ब कीजिए।(नूरूल ऐन पृष्ठ 46 ) अब्बास इब्ने अली (अ.स.) को ग़ुस्सा आ गया।(शहीदे आज़म जिल्द 2 पृष्ठ 371 ) इमाम हुसैन (अ.स.) ने गु़स्से पर क़ाबू किया और बक़ौल अल्लामा असफ़राईनी 3 या 5 मील के फ़ासले पर ख़ेमे नस्ब किये गये।(नूरूल ऐन पृष्ठ 46 ) नस्बे ख़्याम के बाद अभी आप इसमें दाखि़ल ने हुए थे कि चंद अशआर आपकी ज़बान पर जारी हुए। जनाबे ज़ैनब ने ज्यों ही अश्आर को सुना इस दर्जा रोईं कि बेहोश हो गईं। इमाम (अ.स.) रूख़सार पर पानी छिड़ कर होश में लाये।(लहूफ़ पृष्ठ 106 आसारतुल अहज़ान पृष्ठ 36 ) फिर आले मोहम्मद (स अ व व ) दाखि़ले ख़ेमा हुए। उसके बाद 60 हज़ार दिरहम पर 16 मुरब्बा मील ज़मीन ख़रीद कर चंद शरायत के उन्हीं को हिबा कर दी।(कशकोल बहाई पृष्ठ 91 ज़िकरूल अब्बास पृष्ठ 144 )

तीसरी मोहर्रमुल हराम

यौमे जुमा को उमर इब्ने साअद 5, 6 बक़ौल अल्लामा अरबली 22,000 (बाईस हज़ार सवार) व पियादे ले कर करबला पहुँचा और उसने इमाम हुसैन (अ.स.) से तबादलाए ख़्यालात की ख़्वाहिश की। हज़रत ने इरादा ए कूफ़े का सबब बयान फ़रमाया। उसने इब्ने ज़ियाद को गुफ़्तुगू की तफ़सील लिख दी। और यह भी लिखा कि इमाम हुसैन (अ.स.) फ़रमाते हैं कि अगर अब अहले कूफ़ा मुझे नहीं चाहते तो मैं वापस जाने को तैयार हूँ। इब्ने ज़ियाद ने उमर बिन साद के जवाब में लिखा कि अबा जब कि हम ने हुसैन को चुंगल में ले लिया है तो वह छुटकारा चाहते हैं। ‘‘ लात हीना मनास ’’ यह हरगिज़ नहीं होगा। इन से कह दो कि यह अपने तमाम आईज़्ज़ा व अक़रेबा समैत बैअते यज़ीद करें या क़त्ल होने के लिये आमादा हो जायें। मैं बैअत से पहले उनकी किसी बात पर ग़ौर करने के लिये तैयार नहीं हूँ।(नासिख़ व रौज़तुल शोहदा) इसी तीसरी तारीख़ की शाम को हबीब इब्ने मज़ाहिर क़बीला ए बनी असद में गये और उनमें से 90 जांबाज़ इमदादे हुसैनी के लिये तैयार किये। वह उन्हें ला रहे थे कि किसी ने इब्ने ज़ियाद को इत्तेला कर दी। उसने 400 (चार सौ) का लश्कर भेज कर उस कुमक को रूकवा दिया।(नासेख़ुल तवारीख़ जिल्द 6 पृष्ठ 235 )

चौथी मोहर्रमुल हराम

को इब्ने ज़ियाद ने मस्जिदे जामा में ख़ुत्बा दिया जिसमें उसने इमाम हुसैन (अ.स.) के खि़लाफ़ लोगों को भड़का दिया और कहा कि हुक्मे यज़ीद से तुम्हारे लिये ख़ज़ानों के मुंह खोल दिये गये हैं। तुम उसके दुश्मन इमाम हुसैन (अ.स.) से लड़ने के लिये आमादा हो जाओ। उसके कहने से बेशुमार लोग आमादा ए करबला हो गये और सब से पहले शिम्र ने रवानगी की दरख़्वास्त की। चुनान्चे शिम्र 4000 (चार हज़ार) इब्ने रकाब को दो हज़ार ( 2000) इब्ने नमीर को चार हज़ार ( 4000) इब्ने रहीना को तीन हज़ार ( 3000) इब्ने हरशा को दो हज़ार ( 2000) सवार दे कर करबला रवाना कर दिया।(दमएस साकेबा पृष्ठ 322 )

पाँचवीं मोहर्रमुल हराम

यौमे यकशम्बा को शीश इब्ने रबी को चार हज़ार ( 4000) उरवा इब्ने क़ैस को चार हज़ार ( 4000) सिनान इब्ने अनस को दस हज़ार ( 10,000) मोहम्मद इब्ने अशअस को एक हज़ार ( 1000) अब्दुल्लाह इब्ने हसीन को एक हज़ार का लश्कर दे कर रवाना कर दिया।(नासिख़ुल तवारीख़ जिल्द 6 पृष्ठ 233 दमउस साकेबा पृष्ठ 322 )

छठी मोहर्रमुल हराम

यौमे दोशम्बा को ख़ूली इब्ने यज़ीद असबही को दस हज़ार ( 10,000) इब्नुल हुर को तीन हज़ार ( 3000) हज्जाज इब्ने हुर को एक हज़ार ( 1000) का लशकर दे कर रवाना कर दिया गया। इनके अलावा छोटे बड़े और कई लश्कर इरसाल करने के बाद इब्ने ज़ियाद ने उमर इब्ने साद को लिख कर भेजा कि अब तक तुझे अस्सी हज़ार का कूफ़ी लश्कर भेज चुका हूँ इनमें हेजाज़ी और शामी शामिल नहीं हैं। तुझे चाहिये कि बिना हिला हवाला हुसैन को क़त्ल कर दे।(नासिख़ुल जिल्द 6 पृष्ठ 233, दमए साकेबा पृष्ठ 322 जिलाउल ऐन पृष्ठ 197 ) इसी तारीख़ को खू़ली इब्ने यज़ीद ने इब्ने ज़ियाद के नाम एक ख़त इरसाल किया जिसमें उमर इब्ने साद के लिये लिखा कि यह इमाम हुसैन (अ.स.) से रात को छुप कर मिलता है और इनसे बात चीत किया करता है। इब्ने ज़ियाद ने इस ख़त को पाते ही उमरे साद के नाम एक ख़त लिखा कि मुझे तेरी तमाम हरकतों की इत्तेला है , तू छुप कर बातें करता है। देख मेरा ख़त पाते ही हुसैन पर पानी बन्द कर दे और उन्हें जल्द से जल्द मौत के घाट उतारने की कोशिश कर।

(नासिख़ुल तवारीख़ जिल्द 6 पृष्ठ 236, अख़बारूल तौल पृष्ठ 256 तबरी जिल्द 1 पृष्ठ 212 अलबराता व अनहातिया जिल्द 8 पृष्ठ 175 )

सातवीं मोहर्रमुल हराम

यौमे सह शम्बा उमर इब्ने हजाज को पाँचसो सवारों समैत नहरे फ़ुरात पर इस लिये मुक़र्रर कर दिया कि इमाम हुसैन (अ.स.) के ख़ेमों तक पानी न पहुँच पाए।(तारीख़े तबरी जिल्द 1 पृष्ठ 313 व नासिख़ुल तवारीख़ जिल्द 6 पृष्ठ 236 ) फिर मज़ीद अहतीयात के लिये चार हज़ार ( 4000) का लशकर दे कर हजर को एक हज़ार ( 1000) का लशकर दे कर शीस इब्ने रवी को रवाना किया गया।(मक़तल मख़निफ़ पृष्ठ 32 ) और पानी की बन्दिश कर दी गईं। पानी बन्द होने के बाद अब्दुल्लाह इब्ने हसीन ने निहायत करीह लफ़्ज़ों में ताना ज़नी की।(नूरूल ऐन पृष्ठ 31 ) जिससे इमाम हुसैन (अ.स.) को सख़्त सदमा पहुँचा।(तज़किरा पृष्ठ 121 ) फिर इब्ने हौशब ने ताना ज़नी की जिसका जवाब हज़रत अब्बास (अ.स.) ने दिया।(अल इमामत वल सियासत जिल्द 1 पृष्ठ 8 ) आपने ग़ालेबन ताना ज़नी के जवाब में ख़ेमे से 19 क़दम के फ़ासले पर जानिबे क़िबला एक ज़र्ब तीशा से चश्मा जारी कर दिया।(मक़तले अवाम पृष्ठ 78 व आसम कूफ़ी पृष्ठ 266 ) और यह बता दिया कि हमारे लिये पानी की कमी नहीं है लेकिन हम इस मुक़ाम पर मोजिज़ा दिखाने के लिये नहीं आए बल्कि इम्तेहान देने आए हैं।

आठवीं मोहर्रमुल हराम

यौमे चार श्म्बा की शब को खे़मा ए आले मोहम्म्द (अ.स.) व आले मोहम्मद (स अ व व ) से पानी बिल्कुल ग़ाएब हो गया। इस प्यास की शिद्दत ने बच्चों को बेचैन कर दिया। इमाम हुसैन (अ.स.) ने हालात को देख कर हज़रत अब्बास (अ.स.) को पानी लाने का हुक्म दिया। आप चन्द सवारों को ले कर तशरीफ़ ले गये और बड़ी मुश्किलों से पानी लाये। वज़लका समीउल अब्बास सक्क़ा इसी सक्क़ाई वजह से अब्बास (अ.स.) को सक़्क़ा कहा जाता है।(अख़बारूल तवाल पृष्ठ 253, जिलाउल ऐन पृष्ठ 198 व दमए साकेबा पृष्ठ 323 ) रात गुज़रने के बाद जब सुबह हुई तो यज़ीद इब्ने हसीन सहराई ने ब इजाज़त इमाम हुसैन (अ स ) , इब्ने साद को फ़हमाईश की लेकिन कोई नतीजा बरामद न हुआ। इसने कहा यह कैसे हो सकता है कि हुसैन को पानी दे कर हुकूमते ‘‘ रै ’’ छोड़ दूँ।(नासिख़ुल तवारीख़ जिल्द 3 पृष्ठ 338 ) इमाम शिब्ली लिखते हैं कि इब्ने हसीन और इब्ने साद की गुफ़्तुगू के बाद इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपने ख़ेमे के गिर्द ख़न्दक़ खोदने का हुक्म दिया।(नूरूल अबसार पृष्ठ 117 ) इसके बाद हज़रत अब्बास (अ.स.) को हुक्म दिया कि कुएं खोद कर पानी बरामद करो। आपने कुआं तो खोदा लेकिन पानी न निकला।(मक़तल अबी मख़नफ़ पृष्ठ 27 )

नवीं मोहर्रमुल हराम

यौमे पंज शम्बा की शब को इमाम हुसैन (अ.स.) और उमरे साद में आख़री गुफ़्तुगू हुई। आपके हमराह हज़रत अब्बास (अ.स.) और अली अकबर (अ.स.) भी थे। आप ने गुफ़्तुगू में हर क़िस्म की हुज्जत तमाम कर ली।(दमए साकेबा पृष्ठ 323 ) नवीं की सुबह को आपने हज़रत अब्बास (अ.स.) को फिर कुंआ खोदने का हुक्म दिया लेकिन पानी बरामद न हुआ।(नासिख़ुल तवारीख़ जिल्द 6 पृष्ठ 245 ) थोड़ी देर के बाद इमाम हुसैन (अ.स.) ने बच्चों की हालत के पेशे नज़र फिर हज़रत अब्बास (अ.स.) से कुआं खोदने की फ़रमाईश की। आपने सई बलीग़ शुरू कर दी। जब बच्चों ने कुंआ खुदता हुआ देखा तो सब कुज़े ले कर आ पहुँचे। अभी पानी निकलने न पाया था कि दुश्मन ने आ कर उसे बन्द कर दिया। फ़हर बत अतफ़ाले ख़्याम दुश्मन को देख कर बच्चे ख़मों में जा छुपे। फिर थोड़ी देर बाद हज़रत अब्बास (अ.स.) ने कुंआ खोदा वह भी बन्द कर दिया गया। हत्ताहफ़रा अरबन यहां तक कि चार कुंए खोदे और पानी हासिल न कर सके। ब रवाएते पांचवीं मरतबा पानी बरामद हुआ। सकीना ने कुज़ा भरा और दुश्मन के ख़ौफ़ से ख़ेमे की तरफ़ भागीं तनाबे ख़ेमा में पांव उलझे और आप गिर पड़ीं पानी जाता रहा और दुश्मन ने कुंआ बन्द कर दिया , सकीना प्यासी की प्यासी रहीं।(ख़ुलासेतुल मसाएब पृष्ठ 112 प्रकाशित नवल किशोर पृष्ठ 1876 ) इसके बाद इमाम हुसैन (अ.स.) एक नाक़े पर सवार हो कर दुश्मन के क़रीब गए और अपना ताअर्रूफ़ कराया लेकिन कुछ न बना।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 70 ) मुवर्रेख़ीन लिखते हैं कि नवीं तारीख़ को शिम्र कूफ़ा वापस गया और उसने उमरे साद की शिकायत कर के इब्ने ज़ियाद से एक सख़्त हुक्म हासिल किया जिसका मक़सद यह था कि अगर हुसैन (अ.स.) बैअत नहीं करते तो उन्हें क़त्ल कर के उनकी लाश पर घोड़ें दौड़ा दें और अगर तुझ से यह न हो सके तो शिम्र को चार्ज दे दे हम ने उसे हुक्मे तामील हुक्मे यज़ीद दिया है।(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 306 व दम ए साकेगा पृष्ठ 323 ) इब्ने ज़ियाद का हुक्म पाते ही इब्ने साद तामील पर तैय्यार हो गया , इसी नवीं तारीख़ को शिम्र ने हज़रत अब्बास (अ.स.) और उनके भाईयों को अमान की पेशकश की उन्होंने बड़ी देर से उसे ठुकरा दिया।(जिलाउल उयून पृष्ठ 198, तबरी पृष्ठ 237 जिल्द 6 ) तफ़सील के लिये मुलाहेज़ा हों ज़िकरूल अब्बास पृष्ठ 176 से 182 तक। इसी नवीं की शाम आने से पहले शिम्र की तहरीक से इब्ने साद ने हमले का हुक्म दे दिया। इमाम हुसैन (अ.स.) ख़ेमे में तशरीफ़ फ़रमा थे। आपको हज़रते ज़ैनब फिर हज़रते अब्बास (अ.स.) ने फिर दुश्मन के आने की इत्तेला दी। हज़रत ने फ़रमाया मुझे अभी निंद सी आ गई थी , मैंने आं हज़रत (स अ व व ) को ख़्वाब में देखा उन्होंने फ़रमाया कि अनका तरो ग़दा हुसैन तुम कल मेरे पास पहुँच जाओगे।(दमए साकेबा 322 ) जनाबे ज़ैनब रोने लगीं और इमाम हुसैन (अ.स.) ने हज़रते अब्बास से फ़रमाया कि भय्या तुम जा कर उन दुश्मनों से एक शब की मोहलत ले लो। हज़रत अब्बास तशरीफ़ ले गए और लड़ाई एक शब के लिये मुलतवी हो गई।(तारीख़े इस्लाम 272 प्रकाशित गोरखपुर 1931 0 ) जंग के रोकने की ग़रज़ क्या थी उसके लिये मुलाहेज़ा हो ज़िकरूल अब्बास पृष्ठ 186)

शबे आशूर

नवीं का दिन गुज़रा , आशूर की रात आई , इलतवाए जंग के बाद इमाम हुसैन (अ.स.) को जिस चीज़ की ज़्यादा फ़िक्र थी वह यह थी कि अपने असहाब को मौत से बचा लें। आपने रात के वक़्त अपने असहाब और रिश्तेदारों को जमा कर के फ़रमाया , इसमें शक नहीं कि तुम से बेहतर रिश्तेदार और असहाब किसी को नसीब नहीं हुए लेकिन देखो चूंकि यह सिर्फ़ मुझी को क़त्ल करना चाहते हैं इस लिये मैं तुम्हारी गरदनों से तौक़े बैएत उतारे लेता हूँं। तुम रात के अंधेरे में अपनी जाने बचा कर निकल जाओ , यह सुन्ना था कि हज़रते अब्बास , फ़रज़न्दाने मुस्लिम बिन अक़ील , मुस्लिम इब्ने औसजा , ज़ोहैर इब्ने क़ैन , साद इब्ने अब्दुल्लाह खड़े हो गये और अर्ज़ करने लगे , मौला आपने यह क्या फ़रमाया , ‘‘ अरे लानत है उस ज़िन्दगी पर जो आपके बाद बाक़ी रहे ’’(इब्न अल वर्दी जिल्द 1 पृष्ठ 173, इरशाद पृष्ठ 297 व दमए साकेबा पृष्ठ 324 जला उल उयून 199 इन्सानियत मौत के दरवाज़े पर पृष्ठ 72 )

ख़ुत्बे के बाद आपने हज़रते अब्बास को पानी लाने का हुक्म दिया। आप 30 सवारों और 20 प्यादों समेत नहर पर तशरीफ़ ले गए और बड़ी देर जंग करने के बवजूद पानी न ला सके।(तज़किराए ख़्वास अल उम्मता पृष्ठ 141 ) उसके बाद इमाम हुसैन (अ.स.) मौक़ा ए जंग देखने के लिये मैदान की तरफ़ ले गये। वापसी में ख़ैमा ए जनाबे ज़ैनब में गए , जनाबे ज़ैनब ने पूछा भय्या आपने असहाब का इम्तेहान ले लिया है या नहीं ? आपने इत्मिनान दिलाया। फिर हिलाल इब्ने नाफ़ए ने जनाबे ज़ैनब को मुतमईन किया।(दमए साकेबा पृष्ठ 325 ) जनाबे ज़ैनब से गुफ़्तुगू के बाद आपने फिर एक ख़ुत्बा फ़रमाया और आइज़्ज़ा व असहाब से मिस्ले साबिक़ कहा कि यह लोग मेरी जान चाहते हैं तुम लोग अपनी जाने न दो। यह सुन कर असहाब व रिश्तेदारो ने बड़ा दिलेराना जवाब दिया।(नासिख़ जिल्द 6 पृष्ठ 227 ) इसके बाद इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपने असहाब को जन्नत दिखला दी।(वसाएले मुज़फ़्फ़री पृष्ठ 394 )

अल्लामा कन्तूरी लिखते हैं कि पानी न होने की वजह से ख़ेमे में शदीद इज़तेराब पैदा हो गया और जनाबे ज़ैनब के गिर्द 20 लड़के और लड़कियां जमा हो कर फ़रयाद करने लगीं।(मातीं जिल्द 1 पृष्ठ 318 ) यह हालत बुरैर हमदानी को मालूम हो गई। वह कुछ साथियो को ले कर नहर पर पहुँचे। ज़बरदस्त जंग हुई। हज़रत अब्बास मदद को भेजे गए। चंद जाबाज़ काम आ गये। ग़ालेबन इसी मौक़े पर हज़रत अब्बास (अ.स.) के एक भाई अब्बास अल असग़र भी शहीद हुए हैं।(नासिख़ जिल्द 6 पृष्ठ 289 ) अल ग़र्ज़ बुरैर हमदानी बहुत मुश्किल से एक मश्क़ ख़ेमे तक ले ही आये। बच्चे बेताबी की वजह से इस मश्क़ पर जा गिरें और मश्क़ का मुंह खुल गया , पानी बह गया। बच्चों और औरतों के साथ बुरैर ने भी मुंह पीट लिया और इन्तेहाई हसरत और अफ़सोस के साथ कहा , हाय आले मोहम्मद (स अ व व ) की प्यास न बुझ सकी।(मायतीन जिल्द 1 पृष्ठ 316 ) अल्लामा काशफ़ी लिखते हैं कि पानी की जद्दो जेहद की नाकामी के बाद इमाम हुसैन (अ.स.) ने हुक्म दिया कि सब अपने अपने ख़ेमों में जा कर इबादत में मशग़ूल हो जायें।(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 312 )

मुजाहेदीने करबला की आख़री सहर

इमाम हुसैन (अ.स.) और आपके अस्हाब व आईज़्ज़ा मशग़ूले इबादत हैं। सफ़ैद ए सहरी नमूदार होने को है। ज़िन्दगी की आख़री सुबह होने वाली है। नागाह इमाम हुसैन (अ.स.) की आंख लग गई , आपने ख़्वाब में देखा कि बहुत से कुत्ते आप पर हमला आवर हैं और इन कुत्तों में ए अबलक़ मबरूस कुत्ता है जो बहुत ही सख़्ती कर रहा है।(दमए साकेबा पृष्ठ 326 )

अल्लामा दमीरी लिखते हैं कि इमाम हुसैन (अ.स.) को शिम्र ने शहीद किया है जो मबरूस था।(हयातुल हैवान जिल्द 1 पृष्ठ 51 )

काशफ़ी का बयान है कि जब सुबह का इब्तेदाई हिस्सा ज़ाहिर हो गया तो आसमान से आवाज़ आई या ख़लील उल्लाह अरक़बी , ऐ अल्लाह के बहादुर सिपाहियों तैय्यार हो जाओ , मौक़ा ए इम्तेहान और वक़्ते मौत आ रहा है। उसके बाद सुबह हो गई।(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 312, महीजुल एहज़ान पृष्ठ 102 )

सुबह आशूर

(तुलूए सुबहे महशर थी तुलूए सुबह आशूरा)

दस मोहर्रमुल हराम 61 हिजरी यौमे जुमा रात गुज़री , सुबह काज़िब का ज़ुहूर हुआ तो यज़ीदी काज़िबो और झूठों ने अपने लश्कर की तरतीब दे ली और सुबह सादिक़ का तुलू हुआ तो सादक़ैन ने नमाज़े सुबह का तहय्या किया। हज़रत अली अकबर (अ.स.) ने अज़ान कही और इमाम हुसैन (अ.स.) ने नमाज़े जमाअत पढ़ाई। अल्लाह के सच्चे बन्दे अभी मुस्से पर ही थे कि अस्सी हज़ार 80,000 के लशकर में हमला वर होने के आसार ज़ाहिर होने लगे। इमाम (अ.स.) मुसल्ले से उठ खड़े हुए और अपने 72 जांबाज़ों पर मुश्तमिल लशकर की तंज़ीम यूं फ़रमा दी। मैमना 20 बहादुर , मैसरा 20 बहादुर बाक़ी क़ल्बे लश्कर। मैमना के सरदार ज़ुहैरे क़ैन , मैसरा के हबीब इब्ने मज़ाहिर और अलमदारे लशकर हज़रत अब्बास (अ.स.) को क़रार दे दिया।(जलाल अल उयून पृष्ठ 201, अख़बारूल तवारीख़ पृष्ठ 203 ) इसके बाद हज़रत अब्बास (अ.स.) से फ़रमाया कि जंग छिड़ी ही चाहती है। भय्या एक दफ़ा पानी की और कोशीश कर लो , और सुनो सिर्फ़ अपने भाई भतीजों को जमा कर के कुआं खोदो , यानी असहाब को ज़हमत न दो। हज़रत अब्बास (अ.स.) ने कमाले जाफिशानी से कुआं खोदा लेकिन कोई नतीजा न निकला , फिर दूसरा कुआं खोदा वह भी बे सूद ही रहा।(दमउस साकेबा पृष्ठ 329 हालाते सुबह आशूर) इमाम हुसैन (अ.स.) ख़ेमे में थे और बक़ौले अब्दुल हमीद ऐडीटर रिसाला मौलवी देहली , ठीक 10 बजे लश्कर वालों को उमरे साद का अर्जन्ट हुक्म मिलता है कि हुसैन को क़त्ल करने के लिये आगे बढ़ो , टिड्डी दल फ़ौज ने हरकत की और तीन दिन के भूखे प्यासे थोड़े से मुसाफ़िरों को क़त्ल करने दुश्मनाने इस्लाम आगे बढ़े।(शहीदे आज़म पृष्ठ 166 प्रकाशित देहली) हज़रत ने घोड़ों की टापों की आवाज़ सुनी। रसूले ख़ुदा (स अ व व ) की ज़िरह ज़ेब तन की और खन्दक में आग देने का हुक्म दे कर आप असहाब की फ़हमाईश करने लगे।(नासिख़ जिल्द 6 पृष्ठ 245 ) इतने में दुश्मनों ने ख़ेमों को घेर लिया। बुरैर इब्ने ख़ज़ीर ने बाहर निकल कर उन्हें समझाया लेकिन कोई फ़ायदा न हुआ। फिर आप ख़ुद दुश्मनों के सामने आए और अपना ताअर्रूफ़ कराया और बरवाएते यह भी फ़रमाया कि मुझे छोड़ दो , मैं यहां से हिन्द ( 1) या किसी और तरफ़ चला जाऊँ। मगर उन्होंने एक न सुनीं , फिर आपने फ़रमाया कि यह बता दो कि मुझे किस जुर्म की बिना पर क़त्ल करना चाहते हो ? उन्होंने जवाब दिया नक़ तलक़ बुग़ज़न ले अबीका हम तुम्हें तुम्हारे बाप की दुश्मनी में क़त्ल कर रहे हैं।(नयाबुल मोवद्दता पृष्ठ 246 ) फिर आपने क़ुरआन मजीद को हकम क़रार दिया। लेकिन उन्होंने एक न मानी।(नासिख़ुल तवारीख़ जिल्द 6 पृष्ठ 250 ) फिर आपने बारगाहे ख़ुदा वन्दी में दस्ते दुआ बलन्द किया और आखि़र में बरवायते ‘‘ दमउस साकेबा पृष्ठ 328 ’’ अर्ज़ की अल्ला हुम्मा सलता ग़ुलामसकीफ़ ख़ुदाया इन पर क़बीला ए सक़ी़फ़ के एक ग़ुलाम (मुख़्तार) को मुसल्लत कर के उन्हें ज़ुल्म आफ़रीनी का मज़ा चखाए।

1. अल्लामा इब्ने क़तीबा लिखते हैं कि हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने इरशाद फ़रमाया ‘‘ अन लस्तुम बराज़ैन बारूहल इराक़ फ़ातिर कूनी लाज़हबा अल्ल सिनदह ’’ तुम अगर मेरे इराक़ पहुँचने पर राज़ी नहीं हो तो मुझे छोड़ दो मैं सिन्ध (हिन्द) चला जाऊँ। तफ़सील के लिये देखें , मुख़्तारे आले मोहम्मद प्रकाशित लाहौर 12 मना।

जनाबे हुर की आमद

इमाम हुसैन (अ.स.) के मवाएज़ का असर सिर्फ़ हुर पर पड़ा। उन्होंने इब्ने साद के पास जा कर आख़री इरादह मालूम किया फिर अपने घोड़े को ऐड़ दी और इमाम (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हो गए।(तारीख़े तबरी) इसके बाद घोड़े से उतर कर इमाम हुसैन (अ.स.) की रक़ाब को बोसा दिया।(रौज़ातुल अहबाब) इमाम ने हुर को माफ़ी दे कर जन्नत की बशारत दी।(तबरी) दमउस साकेबा पृष्ठ 330 में है कि हुर के साथ इसका बेटा भी था। हमीद इब्ने मुस्लिम का बयान है कि उमरे साद ने लश्करे हुसैनी पर सब से पहले तीर चलाया। इसके बाद तीरों की बारिश शुरू हुई। रौज़तुल अहबाब में है कि जनाबे हुर को क़सूर इब्ने कनाना और इरशाद मुफ़ीद में है कि अय्यूब मशरह ने एक कूफ़ी की मदद से शहीद किया। तफ़सील के लिये मुलाहेज़ा हों किताब ‘‘ बहत्तर सितारें ’’ मोअल्लेफ़ा हक़ीर प्रकाशित लाहौर।

इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके असहाब व आइज़्ज़ा की अर्श आफ़रीं जंग

अल्लामा ईसा अरबली लिखते हैं कि जनाबे हुर की शहादत के बाद उमरे साद के लश्कर से दो नाबकार मुबारज़ तलब हुए जिनके नाम निसयान व सालिम थे। इनके मुक़ाबले के लिये इमाम हुसैन (अ.स.) के लश्कर से जनाबे हबीब इब्ने मज़ाहिर और यज़ीद इब्ने हसीन बरामद हुए और इन दोनों को चन्द हमलों में फ़ना के घाट उतार दिया। इसके बाद माक़िल इब्ने यज़ीद सामने आया। जनाबे यज़ीद इब्ने हसीन और बक़ौले मजलिसी बुरैर इब्ने ख़जी़र हमादानी ने उसे क़त्ल कर डाला। फिर मज़ाहिम इब्ने हरीस सामने आया। उसे जनाबे नाफ़े इब्ने हिलाल ने क़त्ल कर दिया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 71 )

जंगे मग़लूबा

उमर इब्ने साद ने जनाबे हुसैनी बहादुरों की शाने शुजाअत देखी तो समझ गया कि इनसे इन्फ़ेरादी मुक़ाबला न मुम्किन है , लेहाज़ा इजतेमाई हमले का प्रोग्राम बनाया और अपने चीफ़ कमाडण्र को हुक्म दिया कि कसीर तादाद में कमान अन्दाज़ों को ला कर यक बारगी तीर बारानी कर दो। जिसका नतीजा यह हुआ कि इमाम हुसैन (अ.स.) का तक़रीबन तमाम लश्कर मजरूह हो गया। 32 या 40 या 22 या 50 असहाब इसी वक़्त शहीद हो गए।(मुलाहेज़ा हो तफ़सील के लिये बहत्तर सितारें मोअल्लेफ़ा हक़ीर)

जंगे मग़लूबा के बाद हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) अपने बहादुरों को ले कर जिनकी कुल तादाद 32 थी मैदान में निकल आए और इस बे जिगरी से लड़े कि लश्करे मुख़ालिफ़ के छक्के छूट गए। जिस तरफ़ हमला करते थे सफ़ें साफ़ हो जाती थीं और हमले में बेशुमार दुश्मन मौत के घाट उतार दिए। इन भूखे प्यासे बहादुर शेरों ने लश्कर में ऐसी हल चल मचा दी , जिस से अफ़सरान तक के हाथ पांव फुला दिए। बिल आखि़र लश्करे कूफ़ा के कमानीर उरवा बिन क़ैस ने उमर इब्ने साद को कहला भेजा कि जल्द लश्कर और ख़ुसूसन तीर अन्दाज़ भेजो क्यों कि इन थोड़े से अलवी बहादुरों ने हमारी दुरगत बना दी है।(तारीख़े कामिल जिल्द 4 पृष्ठ 35 तबरी जिल्द 6 पृष्ठ 250 बेहारूल अनवार जिल्द 6 पृष्ठ 299 ) उमर इब्ने साद ने फ़ौरन 500 कमानदारों को हसीन इब्ने नमीर के हमराह उरवा बिन क़ैस की कुमक में भेज दिया। इन रूबाहों ने पहुँचते ही तीर बारानी शुरू कर दी और इसका नतीजा यह हुआ कि इमाम हुसैन (अ.स.) के कई बहादुर काम आ गए और तक़रीबन कुल के कुल प्यादा हो गए। इसी दौरान उमर इब्ने साद ने आवाज़ दी कि आग लगाओ हम ख़ेमों को जलाऐंगें। यह देख कर इमाम हुसैन (अ.स.) ने शिम्र को पुकारा कि यह क्या बेहयाई की जा रही है। इतने में शबश इब्ने अरबी आ गया और उसने हरकते नाशाइस्ता से बाज़ रखा।(बेहारूल अनवार जिल्द 10 पृष्ठ 299 )

मुवर्रिख़ इब्ने असीर और अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि दौराने जंग में नमाज़े ज़ौहर का वक़्त आ गया तो अबू सुमामा समदी या सैदावी ने खि़दमते इमाम हुसैन (अ.स.) में अर्ज़ कि मौला अगरचे हम दुश्मनों में घिरे हुए हैं लेकिन दिल यही चाहता है कि नमाज़े ज़ोहर अदा कर ली जाए। इमाम (अ.स.) ने अबू समामा को दुआ दी और नमाज़ का तहय्या फ़रमाया। तीर चूंकि मुसलसल आ रहे थे इस लिये ज़ुहैर इब्ने क़ैन और साद इब्ने अब्दुल्लाह इमाम हुसैन (अ.स.) के सामने खड़े हो कर तीरों को सीनों पर लेने लगे। यहां तक कि इमाम हुसैन (अ.स.) ने नमाज़ तमाम फ़रमा ली। मुवर्रेख़ीन लिखते हैं कि तलवारों और नेज़ों के ज़ख़्म के अलावा 13 तीर सईद के सीने में पेवस्त हो गए। नमाज़ तमाम हुई और जनाबे सईद भी दुनियां से रूख़सत हो गए।(तारीख़े कामिल बेहारूल अनवार जिल्द 10 पृष्ठ 299 ) जंगे मग़लूबा के बाद जो 32 असहाब बचे उनमें से बाज़ के मुख़्तसर हालात दर्ज ज़ैल किये जाते हैं।

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के मशहूर असहाब और उनकी शहादत

हबीब इब्ने मज़ाहिर

जनाबे हबीब इब्ने मज़ाहिर इब्ने रेयाब इब्ने अश्तर जनजवान इब्ने फ़क़अस इब्ने तरीफ़ इब्ने उमर बिन क़ैस हरस इब्ने साअलबा , इब्ने दवान , इब्ने असद अबू क़ासिम असदी के बेटे इमाम हुसैन (अ.स.) के बचपने के दोस्त थे। उन्हें रिसालत माब (स अ व व ) के सहाबी होने का भी शरफ़ हासिल था। यह असहाबे अमीरल मोमेनीन (अ.स.) में भी थे और हर जंग में शरीक रहे। उन्होंने कूफ़े में हज़रत मुस्लिम इब्ने अक़ील का पूरा पूरा साथ दिया और यह शहादत के बाद करबला को पा पियादा रवाना हो कर इमाम हुसैन (अ.स.) की खि़दमत में पहुँचे थे। करबला पहुँच कर उन्होंने पूरी कोशिश की बनी असद से कुछ मद्द ले आयें लेकिन उमरे साद के लशकर ने रास्ते में मज़ाहेमत की। शबे आशूर एक शब की मोहलत के लिये जब हज़रत अब्बास (अ.स.) गए तो हबीब भी साथ थे। नमाज़े ज़ोहर आशूरा के मौक़े पर हसीन इब्ने नमीर की बद कलामी का जवाब हबीब ही ने दिया था और उसके कहने पर ‘‘ हुसैन की नमाज़ कु़बूल न होगी ’’ हबीब ने बढ़ कर घोड़े के मुंह पर तलवार लगाई थी फिर मैदान में मुसलसल लोगों से लड़ते और उन्हें क़त्ल करते रहे यहां तक कि बदील इब्ने हरीम अक़फ़ाई ने आप पर तलवार लगाई और बनी तमीम के एक शख़्स ने नैज़ा मारा और हसीन बिन नमीर ने सर काट लिया। हबीब की शहादत के बाद इमाम हुसैन (अ.स.) ने इन्तेहाई दर्द अंगेज़ लहजे में कहा , ऐ हबीब मैं तुम को और अपने असहाब को ख़ुदा से लूंगा।

ज़ुहैर इब्ने क़ैन

जनाबे ज़ुहैर क़ैन इब्ने क़ैस नमीरी बजल्ली के बेटे थे। यह क़ौम के सरदार और रईस थे। 60 हिजरी में इमाम हुसैन (अ.स.) के साथ हुए। शबे आशूर जब हज़रत अब्बास (अ.स.) एक शब की मोहलत के लिये आगे बढ़े तो आपके हमराह ज़ुहैर भी थे। इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़िन्दगी में जब शिम्र ने ख़ेमे के पास आ कर उसे जलाना चाहा था तो जनाबे जु़हैर ही ने इस से मुक़ाबला कर के इसे इस इरादे से बाज़ रखा था और नमाज़े ज़ोहर के लिये सईद के साथ ज़ुहैर ने भी इमाम हुसैन (अ.स.) की हिफ़ाज़त के लिये सीना तान दिया था। आपने मैदान में ज़बरदस्त जंग की बिल आखि़र कसीर इब्ने अब्दुल्ला शुएबी और महाजिर इब्ने औस तमीमी ने आप को शहीद कर दिया। शहादत के बाद इमाम हुसैन (अ.स.) लाश पर तशरीफ़ लाए और कहा ज़ुहैर ख़ुदा तुम पर रहमत नाज़िल करे और तुम्हारे क़ातिलों पर जो बन्दरों और रीछों की तरह मसख़ हो गए हैं लानत करे।

नाफ़े इब्ने हिलाल

जनाबे नाफ़े , हिलाल इब्ने नाफ़े इब्ने जमल इब्ने साद अशीरा इब्ने मद हज जमली के बेटे थे। आप शरीफ़ुन नफ़्स सरदारे का़ैम , बहादुर और क़ारीए क़ुरआन रावी उल हदीस थे। आप हर जंग में अमीरल मोमेनीन (अ.स.) के साथ रहे। करबला में जब हज़रत अब्बास (अ.स.) पानी की जद्दो जेहद के लिये नहरे फ़ुरात पर तशरीफ़ ले गये थे तो नाफ़े इब्ने हिलाल आपके साथ थे। मैदाने में कारज़ार करबला में नाफ़े इब्ने हिलाल ने 12 दुश्मनों को ज़हर से बुझे हुए तीर से क़त्ल किया फिर जब तीर ख़त्म हो गए तो तलवार से लड़ने लगे। बिल आखि़र तीर बारानी की गई और आपके दोनों बाज़ू टूट गए और आप गिरफ़्तार हो कर इब्ने साद के सामने लाए गए। फिर शिम्र के हाथों क़त्ल कर दिये गए।

मुस्लिम इब्ने औसजा

जनाबे मुस्लिम , औसजा इब्ने साद इब्ने सआलबा इब्ने दोदान इब्ने असद इब्ने हज़ीमा अबू हजल असदीसादी के बेटे थे। यह शरीफ़ तरीन मर्दुम , आबिदो ज़ाहिद और सहाबी ए रसूल थे। अकसर इस्लामी जंगों में शरीक रहे। कूफ़े में मुस्लिम बिन अक़ील की पूरी ताक़त से मद्द की आपके हमराह मदहज चार क़बीले तमीम व हमदान व कुन्दा व रबीआ थे। जनाबे हानी व मुस्लिम की शहादत के बाद अपने बाल बच्चों समेत करबला आ पहुँचे और इमाम हुसैन (अ.स.) के क़दमों में शरफ़े शहादत से सरफ़राज़ हुऐ मुवर्रेख़ीन का बयान है कि मुस्लिम इब्ने औसजा नेहायत दिलेरी के साथ जंग फ़रमा रहे थे कि मुस्लिम इब्ने अब्दुल्ला ज़ेआनी तऊन और अब्दुल्ला इब्ने ख़स्तकारह ने मिल कर आपको शहीद कर दिया।

आबिस शाकरी

जनाबे आबिस , अबू शबीब बिन शाकरी इब्ने रबीह बिन मालिक इब्ने साब इब्ने माविया बिन कसीर बिन मालिक इब्ने चश्म इब्ने हम्दानी के बेटे थे। आप निहायत बहादुर , रईस , आबिद शब ज़िन्दह दार और अमीरल मोमेनीन (अ.स.) के मुख़लिस तरीन मानने वाले थे। आपके क़बीला ए बनू शाकिर पर अमीरल मोमेनीन (अ.स.) को बड़ा एतमाद था। इसी वजह से जंगे सिफ़्फ़ीन मे फ़रमाया था कि अगर क़बीला ए बनी शाकिर के एक हज़ार अफ़राद मौजूद हों तो दुनियां में इस्लाम के सिवा कोई मज़हब बाक़ी न रहे। आबिस ने कूफ़े में जनाबे मुस्लिम का पूरा साथ दिया और जब जनाबे मुस्लिम कूफ़ा पहुँचे तो आपने सब से पहले ताअउन का यक़ीन दिलाया था। आप कूफ़े से जनाबे मुस्लिम का ख़त ले कर मक्का गए थे और वहीं से इमाम हुसैन (अ.स.) के साथ हो गए और यौमे आशूरा शहीद हो गए। आप मैदान में आए और मुबारज़ तलबी की मगर किसी मे दम न था कि आबिस से लड़ता बिल आखि़र इन पर इजतेमाई तौर पर पथराव किया फिर बेशुमार अफ़राद ने मिल कर उन्हें शहीद कर के सर काट लिया।

बुरैर हमादानी

जनाबे बुरैर इब्ने ख़ज़ीर हम्दानी मशरक़ी , बनू मशरिक़ के क़बीला ए हम्दान के एक मोअम्मर ताबेई थे। यह निहायत बहादुर आबिद और ज़ाहिद और बेमिस्ल क़ारीए क़ुरआन थे। इनका शुमार कूफ़े के शोरफ़ा में था। इन्होंने कूफ़े से मक्के जा कर इमाम हुसैन (अ.स.) की हमराही इख़्तेयार की थी और ता हयात साथ रहे। शबे आशूर पानी लाने में इन्होंने अज़ीम जद्दो जेहद की थी। मैदाने जंग में आपका मुक़ाबला यज़ीद इब्ने माक़ल से हुआ , आप ने उसे क़त्ल कर दिया। फिर रज़ी इब्ने मनक़ज़ अब्दी सामने आया। आपने ज़मीन पर दे मारा। इब्ने में क़ाअब इब्ने जाबिर अज़दी ने आपकी पुश्त में नेजा़ मारा और आपने उस रज़ी की नाक दांत से काट ली। जिसके सीने पर सवार थे। क़आब का नेज़ा बुरैर की पुश्त में रह गया और उसने तलवार से बुरैर को शहीद कर दिया।

इमाम हुसैन (अ.स.) के आइज़्ज़ा व अक़रेबा और औलाद की शहादत

असहाबे बावफ़ा और अन्साराने बासफ़ा की शहादत के बाद आपके आइज़्ज़ा व अक़रोबा यके बाद दीगरे मैदाने कारज़ार में आ कर शहीद हो गए। मेरे नज़दीक बनी हाशिम में सब से पहले जिसने शरफ़े शहादत हासिल किया वह अब्दुल्लाह इब्ने मुस्लिम इब्ने अक़ील थे।। आप हज़रत अली (अ.स.) की बेटी रूक़य्या बिन्ते सहबा बिन्ते उबाद बिन्ते रबिया बिन यहिया बिन अब्द बिन अल क़मा सअलबिया के फ़रज़न्द थे। आप मैदान में तशरीफ़ लाए और ऐसा शेराना हमला किया कि रूबाहों की हिम्मतें पस्त हो गईं। आपने तीन हमले फ़रमाऐ और 90 दुश्मनों को फ़िन्नार किया। दौराने जंग में उमर बिन सबीह सैदावी ने आपकी पेशानी पर तीर मारा। आपने फ़ितरत के तक़ाज़े पर तीर पहुँचने से पहले अपना हाथ पेशानी पर रख लिया और हाथ पेशानी से इस तरह पेवस्त हो गया कि फिर जुदा न हुआ। फिर उसने दूसरा तीर मारा जो साहब ज़ादे के दिल पर लगा और आप ज़मीन पर तशरीफ़ लाए।(नूरूल ऐन तरजुमा अबसारूल हुसैन पृष्ठ 76 ) आपको ख़ाको खूं में ग़लता देख कर आपके भाई मोहम्मद बिन मुस्लिम आगे बढ़े और उन्होंने भी ज़बरदस्त जंग की। बिल आखि़र अबू जरहम अज़वी और लक़ीत और इब्ने अयास जहमी ने आपको शहीद कर दिया।(बेहारूल अनवार जिल्द 10 पृष्ठ 302 ) इनके बाद जाफ़र बिन अक़ील इब्ने अबी तालिब मैदान में तशरीफ़ ले गए। आपने 15 ज़बरदस्त दुश्मनों को फ़ना के घाट उतारा। आखि़र में बशर बिन खोत ने आपको शहीद कर दिया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 82 ) इनके बाद जनाबे अब्दुर रहमान इब्ने अक़ील मैदान में तशरीफ़ लाए। आपने ज़बरदस्त जंग की और आपको दुश्मनों ने घेर लिया आखि़र कार उस्मान बिन ख़ालिद मलऊन की ज़र्बे शदीद से राहीए जन्नत हुए। इनके बाद अब्दुल्लाह अकबर बिन अक़ील मैदान में आए और ज़बरदस्त क़ेताल के बाद उस्मान बिन ख़ालिद के हाथों शहीद हुए। अबू मख़नफ़ के कहने के मुताबिक़ अब्दुल्लाह अकबर के बाद मूसा बिन अक़ील ने मैदान लिया और 70 आदमियों को क़त्ल कर के शहीद हुए। इनके बाद औन बिन अक़ील और जाफ़र बिन मोहम्मद बिन अक़ील और अहमद बिन मोहम्मद बिन अक़ील यके बाद दीगरे मैदान में तशरीफ़ लाए और कार हाए नुमाया कर के दर्जाए शहादत हासिल किया। इनके बाद औन बिन अब्दुल्लाह बिन जाफ़र मैदान में आए और 30 सवार 8 पियादों को क़त्ल करने के बाद अब्दुल्लाह इब्ने बत के हाथों शहीद हुए। आपके बाद जनाबे हसन मुसन्ना मैदान में तशरीफ़ लाए। आपने ज़बर दस्त जंग की और इस दर्जा ज़ख़्मी हो गए कि जां बर होने का कोई इम्कान न था। बिल आखि़र मक़तूलैन में डाल दिए गए। नतीजे पर उनका एक रिश्ते का मामू असमा बिन ख़रजा मकीनी बिन अबी हसान उन्हें उठा ले गए। इनके बाद जनाबे क़ासिम इब्ने हसन (अ.स.) मैदान में तशरीफ़ लाए। अगरचे आपकी उम्र अभी नाबालगी़ की हद से मुताजाविज़ न हुई थी लेकिन आपने ऐसी जंग की कि दुश्मनों की हिम्मते पस्त हो गईं। आपके मुक़ाबले में अरज़क़ शामी आया। आपने उसे पछाड़ दिया। इसके बाद चारों तरफ़ से हमले शुरू हो गए। आपने 70 दुश्मनों को क़त्ल किया आखि़र कार अमर बिन माद बिन उरवा बिन नफ़ील आज़दी की तेग़ से शहीद हुए। मुवर्रेख़ीन का बयान है कि आपका जिस्मे मुबारक ज़िन्दगी ही मे पामाले सुमे अस्पाँ हो गया था। उनके बाद अब्दुल्लाह इब्ने हसन (अ.स.) मैदान में आए और ज़बरदस्त जंग की , आपने 14 दुश्मानों को तहे तेग़ किया। आपको हानी इब्ने शीस ख़ज़रमी ने शहीद किया। उनके बाद अबू बक्र इब्ने हसन मैदान में आए आपना मैमना और मैसरे को तबाह कर दिया। आप 80 दुश्मानों को क़त्ल कर के शहीद हो गए। आपको बक़ौल अल्लामा समावी अब्दुल्ला इब्ने अक़बा ग़नवी ने शहीद किया है उनके बाद अहमद बिन हसन मैदान में आए। अगरचे आपकी उम्र 18 साल से कम थी लेकिन आपने यादगार जंग की और 60 सवारों को क़त्ल कर के दर्जा ए शहादत हासिल किया। उनके बाद अब्दुल्लाह असग़र मैदान में आए। आप हज़रत अली (अ.स.) के बेटे थे आपकी वालेदा लैला बिन्ते मसूद तमीमी थीं। आपने ज़बर दस्त जंग की और दर्जा ए शहादत हासिल किया। आप 21 दुश्मनों को क़त्ल कर के ब दस्ते अब्दुल्ला बिन उक़बा ग़नवी शहीद हुए।

बाज़ अक़वाल के बिना पर उनके बाद उमर बिन अली (अ.स.) मैदान में आए और शहीद हुए। तबरी का बयान है यह करबला में शहीद नहीं हुए। अकसर मुवर्रेख़ीन का कहना है कि अब्दुल्लाह असग़र के बाद अब्दुल्लाह बिन अली (अ.स.) असग़र मैदान में तशरीफ़ लाए। यह हज़रत अब्बास (अ.स.) के हक़ीक़ी भाई थे। उनकी उमर बवक़्ते शहादत 35 साल की थी। आपको हानी इब्ने सबीत खि़र्जरमी ने शहीद किया। उनके बाद हज़रत अब्बास (अ.स.) के दूसरे भाई उस्मान बिन अली (अ.स.) मैदान में आए। आपने रजज़ पढ़ा और ज़बरदस्त जंग की। दौराने क़ताल में ख़ूली इब्ने यज़ीद असबही ने पेशानी पर एक तीर मारा जिसकी वजह से आप ज़मीन पर आ गए। फिर एक शख़्स जो क़बीला ए अबानबिन दारिम का था ने आपका सर काट लिया। शहादत के वक़्त आपकी उम्र 23 साल थी। इनके बाद हज़रत अब्बास (अ.स.) के तीसरे हक़ीक़ी भाई मैदान में तशरीफ़ लाए और बक़ौले अबुल फर्ज बदस्ते ख़ूली इब्ने यज़ीद और बरवाएते अबू मख़न्नफ़ बा ज़रबे हानी इब्ने सबीत अल ख़ज़रमी शहीद हुए। शहादत के वक़्त आपकी उम्र 21 साल थी। इनके बाद फ़ज़ल बिन अब्बास बिन अली (अ.स.) मैदान में तशरीफ़ लाए और मशग़ूले कारज़ार हो गए। आपने 250 दुश्मानों को क़त्ल किया और बिल आखि़र चारों तरफ़ से हमला कर के आपको शहीद कर दिया गया। इनके बाद हज़रत अब्बास (अ.स.) के दूसरे बेटे क़ासिम इब्ने अब्बास (अ.स.) मैदान में तशरीफ़ लाए। आपकी उम्र बक़ौले इमाम असफ़रानी 19 साल की थी। आपने 800 दुश्मानों को फ़ना के घाट उतार दिया। इसके बाद इमाम हुसैन (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हो कर पानी मांगा। पानी न मिलने पर आप फिर वापस गए और 20 सवारों को क़त्ल कर के शहीद हो गए।

अलमदारे करबला हज़रते अब्बास (अ.स.) की शहादत

इन बनी हाशिम के बहादुर नौ निहालो की शहादत के बाद हज़रते अब्बास (अ.स.) अलमदार मैदान में हुसूले आब के लिये तशरीफ़ लाए और कारे नुमायां कर के शहीद हो गए। आपके तफ़सीली हालात के लिये मुलाहेज़ा हो किताबे ज़िकरूल अब्बास 1 मोवल्लेफ़ा नजमुल हसन करारवी , मतबुआ लाहौर।

आपके मुख़्तसर हालात

यह हैं कि आप 4 शाबान 26 हिजरी मुताबिक़ 18 मई 647 ई 0 यौमे सह शम्बा को मदीना ए मुनव्वरा में पैदा हुए। आप इमाम हुसैन (अ.स.) के मुस्तक़िल अलमबरदार थे। आपको करबला में जंग करने की इजाज़त नहीं दी गई सिर्फ़ पानी लाने का हुक्म दिया गया था। आप कमाले वफ़ादारी की वजह से नहरे फ़ुरात में दाखि़ल हो कर प्यासे बरामद गए थे। आपका दाहिना हाथ ख़ेमे में पानी पहुँचाने की सई में जै़द इब्ने वरक़ा की तलवार से कट गया था , और बायां हाथ हकीम इब्ने तुफ़ैल की तलवार से कटा , फिर एक तीर मशकीज़े पर लगा और सारी पानी बह गया। फिर एक तीर आपके सीने में लगा। इसके बाद लौहे का गुर्ज़ सर पर पड़ा और आप ज़मीन पर आ गए। आपने इमामा हुसैन (अ.स.) को आवाज़ दी , इमाम हुसैन (अ.स.) ने कमर थाम कर आवाज़ दी ‘‘ अलाअन अन कसरा ज़हरी ’’ हाय मेरी कमर टूट गई। आपका लक़ब सक़्क़ा और कुन्नियत अबू फ़ज़ल थी। आप भी यौमे आशूरा शहीद हो गए। आपकी तारीख़े शहादत मौलाना रोम ने मिसरा ‘‘ सर दीं रा बुरीद बे दीने ’’ से निकाली है। शहादत के वक़्त आपकी उम्र 34 साल चन्द माह थी।

1. कराची के एक मौलवी साहब ने अपने एक रिसाले में जो हज़रत अब्बास (अ.स.) के हालात पर मुश्तमिल है ज़िकरूल अब्बास पर बे सरो पा एतराज़ात किए हैं हम उनके साठ साल से उपर हो जाने की वजह से उनके एतराज़ात का जवाब देना पसन्द नहीं करते।

हज़रत अली अकबर (अ.स.) की शहादत

हज़रत अब्बास (अ.स.) की शहादत के बाद हज़रत अली अकबर (अ.स.) ने इज़्ने जिहाद की सई बलीग़ की। बिल आखि़र आप कामयाब हो कर मैदाने करबला में तशरीफ़ लाए। आपको इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपने हाथों से आरास्ता किया , हज़रत अली (अ.स.) की तलवार हिमाएल की ज़िरह पहनाई और पैग़म्बरे इस्लाम की सवारी के घोड़े पर सवार फ़रमाया जिसका नाम उक़ाब या मुरतजिज़ था। आपकी रवानगी के वक़्त इमाम हुसैन (अ.स.) ने बारगाहे अहदियत में हाथों को बुलन्द कर के कहा ‘‘ मेरे पालने वाले अब तेरी राह में मेरा वह फ़रज़न्द क़ुरबान होने जा रहा है जो सूरत और सीरत में तेरे रसूल (स अ व व ) से बहुत मुशाबेह है। मेरे मौला जब मैं नाना की ज़ियारत का मुश्ताक़ होता था तो इसकी सूरत देख लिया करता था , मालिक इसकी तू ही मदद फ़रमाना ’’ उलमा ने लिखा है कि मैदान में पहुँचने के बाद हज़रत अली अकबर ने रजज़ पढ़ी और मुक़ाबला शुरू हो गया और ऐसी ज़बरदस्त जंग हुई कि दुश्मनों के दांतों पसीने आ गए। सफ़ें की सफ़ें उलट गईं। एक सौ बीस दुश्मन फ़िन्नार वस सक़र हो गए। हज़रत अली अकबर (अ.स.) जो तीन दिन के भूखे और प्यासे थे बाप की खि़दमत में हाज़िर हुए और अर्ज़ की बाबा जान , प्यास मारे डालती है , पानी की कोई सबील कर दीजिए। इमाम हुसैन (अ.स.) के पास पानी कहां था जो ज़ख़्मों से चूर अली अकबर जैसे बेटे की आख़री ख़्वाहिश पूरी फ़रमाते। आपने कहा बेटा पानी तो थोड़ी ही देर में नाना जान पिलायेंगे अलबत्ता अपनी ज़बान मेरे मुंह में दे दो। अली अकबर ने बेचैनी में अपनी ज़बान तो मुंह में दे दी लेकिन फ़ौरन ही खेंच ली और कहा बाबा जान ‘‘ लिसानाका ऐबस मन लस्सानी ’’ आपकी ज़बान तो मेरी ज़बान से भी ज़्यादा ख़ुश्क़ है फिर इमाम हुसैन (अ.स.) ने रसूले करीम (स अ व व ) की एक अंगूठी अली अकबर (अ.स.) के मुंह मे दी और फ़रमाया बेटा जाओ ख़ुदा हाफ़िज़।

हज़रत अली अकबर (अ.स.) दोबारा मैदान में पहुँचे तारिक़ इब्ने शीस जिससे उमरे साद ने हुकूमते ‘‘ रै ’’ और ‘‘ मूसल ’’ का वायदा किया था अली अकबर (अ.स.) के मुक़ाबले में आ गया। आपने कमाले जवां मरदी से इस पर नैज़े का वार किया नैज़ा उसके सीने पर लग कर पुश्त में से दो बालिश्त बाहर निकल गया।। इसके मरते ही उसका बेटा उमर तारिक़ मैदान में आ गया। आपने उसे भी क़त्ल कर दिया। फिर तल्हा इब्ने तारिक़ सामने आया आपने इसका गरेबान पकड़ कर उसे पछाड़ दिया। यह देख कर उमरे साद ने मिसला इब्ने ग़ालिब को मुक़ाबले का हुक्म दिया वह अली अकबर (अ.स.) के सामने आ कर दो टुकड़े हो गया। उसके क़त्ल होने से हल चल मच गई। उमरे साद ने मोहकम इब्ने तुफ़ैल... और इब्ने नौफ़िल को दो हज़ार सवारों के साथ अली अकबर (अ.स.) पर हमला करने का हुक्म दिया। अली अकबर (अ.स.) ने निहायत दिलेरी से हमले का जवाब दिया और प्यास से बेचैन हो कर इमाम हुसैन (अ.स.) की खि़दमत में फिर हाज़िर हुए और पानी का सवाल किया , आपने फ़रमाया बेटा अब तुम्हें साक़ीए कौसर ही सेराब करेंगे। नूरे नज़र जाने पदर जल्द जाओ , रसूले करीम (स अ व व ) इन्तेज़ार फ़रमा रहे हैं। हज़रत अली अकबर (अ.स.) मैदान में वापस आए। दुश्मनों ने यूरिश कर दी , आपने शेरे गुरिसना की तरह हमले किये और थोड़ी ही देर में अस्सी दुश्मनों को क़त्ल कर डाला।

बिल आखि़र मुनकज़ बिन मुर्रा अब्दी और इब्ने नमीर ने सीने मे नैज़ा मारा। आपके हाथ से ऐनाने सिपर छूट गई और आप घोड़े की गिरदन से लिपट गए। घोड़ा जिस तरफ़ से गुज़रता था आपके जिस्म पर तलवारें लगती थीं। यहां तक कि आपका जिस्म पारा पारा हो गया। आपने आवाज़ दी ‘‘ या अबाताहो अदरिकनी ’’ बाबा जान ख़बर लिजिए। इमाम हुसैन (अ.स.) दौड़ कर पहुँचे लेकिन आप से पहले हज़रत ज़ैनब पहुँच गईं। उलेमा ने लिखा है कि ज़ैनब ने वहां पहुँच कर अपने को अली अकबर पर गिरा दिया था। इमाम हुसैन (अ.स.) ने उन्हें ख़ेमे में पहुँचाया और अली अकबर के चेहरे से ख़ून साफ़ किया और कहा कि ऐ बेटे तेरे बाद इस ज़िन्दगानीए दुनिया पर ख़ाक है फिर आपने अली अकबर को ख़ेमे में ले जाने की कोशिश की लेकिन हर क़िस्म के ज़ौफ़ ने कामयाब न होने दिया , बिल आखि़र बच्चों को आवाज़ दी , बच्चों आओ मेरी मद्द करो। चुनान्चे बच्चों की इमदाद से अली अकबर का लाशा ख़ेमे के क़रीब लाया गया और मुख़द्देराते असमत मे कोहरामे अज़ीम बरपा हो गया। रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 368, कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 75 अबसारूल ऐन पृष्ठ 34, अल्लामा समावी लिखते हैं कि हज़रत अली अकबर का असली नाम अली लक़ब अकबर और कुन्नियत अबुल हसन थी। आपकी उम्र शहादत के वक़्त 18 साल थी।(नूरूल ऐन तरजुमा अबसारूल ऐन पृष्ठ 34 )

हज़रत अली असग़र (अ.स.) की शहादत

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि जब इमाम हुसैन (अ.स.) बे यारो मद्दगार हो गए तो आप ख़ुद बा क़स्दे शहादत मैदान के लिये चले और वहां पहुँच कर आपने ‘‘ हल मिन नासेरिन यनसेरना ’’ की आवाज़ बलन्द की। जिनों के एक गिरोहे अज़ीम ने सआदते नुसरत हासिल करने की ख़्वाहिश की आपने उन्हें दुआ ए ख़ैर से याद फ़रमाया और नुसरत क़ुबूल करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि मुझे शरफ़े शहादत हासिल करना है और मैंने आवाज़े इस्तेग़ासा इतमामे हुज्जत के लिये बुलन्द किया है। मेरा मक़सद यह है कि दुश्मनाने ख़ुदा व रसूल (स अ व व ) के लिये मेरी मद्द न करने का कोई बहाना बाक़ी न रहे। अभी आप जिनों से बाते कर रहे थे कि नागाह हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) अपनी कमाले अलालत के बा वजूद एक असा लिये हुए ख़ेमे से बाहर निकल आए। इमाम हुसैन (अ.स.) ने जनाबे उम्मे कुलसूम को आवाज़ दी , बहन फ़ौरन आबिदे बिमार को रोको , कहीं ऐसा न हो कि सादात का सिलसिला ए नसल व नस्ब ही ख़त्म हो जाए। सय्यदुश शोहदा ने आवाज़े इस्तेग़ासा का असर जब अपने ख़ेमों के बाशिन्दों पर देखा तो फ़ौरन वापस तशरीफ़ ला कर सबको समझाया और अपनी मौत का हवाला दे कर इसरारे इमामत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के सिपुर्द फ़रमाया। आप रवाना होना ही चाहते थे कि बा रवायत जनाबे सकीना घोड़े के सुम से लिपट गईं। इमाम हुसैन (अ.स.) ने सीने से लगाया , रूख़सार का बोसा दिया , सब्र की तलक़ीन की और जनाबे ज़ैनब को सकीना की निगाह दाश्त की हिदायत फ़रमाई। उसके बाद हज़रत अली असग़र को जिन्होंने अपने को झूले से गिरा दिया था इमाम हुसैन (अ.स.) ने बढ़ कर अपनी आग़ोश में लिया और मक़तल की तरफ़ रवाना हो गये।

मैदान मे पहुँच कर आप एक टीले पर बुलन्द हुए और आपने क़ौमे अशक़िया को मुख़ातिब कर के कहा कि देखो मैं अपने छ महीने के बच्चे को पानी पिलाने लाया हूँ। इसकी माँ का दूध ख़ुश्क हो गया और इसकी ज़बान सूख गई है , ख़ुदारा इसे पानी पिला कर इसकी जान बचा लो , और सुनो अगर मैं तुम्हारें ज़ौमे नाक़िस में गुनाहगार हो सकता हूँ तो मेरे इस मासूम बच्चे में गुनाह की सलाहियत नहीं हैं। यह तो बे ख़ता है इस सदाए पुर तासीर का असर यह हुआ कि लशकर का मिजाज़ बिगड़ने लगा , शक़ीउल क़ल्ब लशकरी रो पड़े। उमरे साद ने जब यह देखा तो फ़ौरन हुरमुला इब्ने काहिल अज़दी को हुक्म दिया , ‘‘ अक़ता कलामुल हुसैन ’’ हुसैन के कलाम को नोके तीर से क़ता कर दे। हुरमुला ने तीरे सेह शोबा चिल्ला ए कमान में जोड़ा और अली असग़र के गले की तरफ़ फेंका। तीर जो ज़हर से बुझा हुआ था अली असग़र के गले पर लगा और उसने अली असग़र के गले के साथ साथ इमाम हुसैन (अ.स.) का बाज़ू भी छेद दिया। इमाम हुसैन (अ.स.) ने बच्चे को सीने से लगा कर उसके ख़ून से चुल्लू भर लिया और चाहा कि आसमान की तरफ़ फेंकें , आसमान से जवाब आया , यह ख़ूने ना हक़ है इसे इस तरफ़ न फेकिये वरना क़यामत तक के लिये बारिश का सिलसिला बन्द हो जायेगा। आपने चाहा कि उसे ज़मीन की तरफ़ ही फेंक दें , उधर से भी जवाब मिल गया। तो आपने उसे अपने चेहरा ए मुबारक पर मल लिया और फ़रमाया , ‘‘ हकज़ा लाती जद्दी रसूल अल्लाह ’’ मैं इसी तरह अपने जद्दे नामदार हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) की खि़दमत में पहुँचूगा।(अबसारूल ऐन व अनवारूल शहादत) इसके बाद आपने एक नन्हीं सी क़ब्र खोदी और उसमें हज़रत अली असग़र को दफ़्न फ़रमा दिया।

नन्हीं सी क़ब्र खोद के असग़र को गाड़ के

शब्बीर , उठ खड़े हुए , दामन को झाड़ के

इमाम हुसैन (अ.स.) की रूख़सती

हज़रत अली असग़र की शहादत के बाद न सरकार है न दरबार न लशकर है न अलमदार , अली असग़र को नन्हीं सी क़ब्र खोद कर दफ़्न फ़रमाते हैं और अकेले हरम के ख़ेमों की तरफ़ आते हैं और अहले बैत से रूख़सत होते हैं और फ़रमाते हैं ऐ ज़ैनब , ऐ उम्मे कुलसूम , ऐ रूक़य्या , ऐ रबाब , ऐ सकीना अलैकुम मिन्नी अस्सलाम , सलामे अलविदा यह मेरी आख़री रूख़सती है। ऐ बहनों , ऐ बीबियों , ऐ बेटियों बस ख़ुदा हाफ़िज़ो नासिर है और वही हामियों मद्दगार है।

बहन ज़ैनब देखो , हर मुसीबत में हर बला में ख़ुदा को याद रखना , अपने रहीमो करीम ख़ालीक़ को न भूलना। एनाने सब्र को हाथ से न छोड़ना। राहे इलाही में हर एक रंज व मुसिबत को राहत समझना। रस्सी से हाथ बंधे तो उफ़ न करना , चादर छिने तो ग़म न खाना। अम्मा के सब्र और बाबा के हिल्म के जौहर दिखलाना। नाना रसूल (स अ व व ) तुम्हारे मद्दगार और ख़ुदा तुम्हारा हामी है। हां लुटने के लिये तय्यार हो जाओ। क़ैद होने के लिये कमरों को कस लो। चादरों को अच्छी तरह से ओढ़ लो। मक़नों को मज़मूती से बांध लो। ऐ बहन ज़ैनब यह यतीम बच्चे , यह असीराने अहलेबैत (अ.स.) का काफ़ला बस तुम्हारे साथ है। बीमारे करबला सय्यदे सज्जाद ज़ैनुल आबेदीन को ग़श से जगा दो , होशियार कर दो। अब तौक़ो ज़जीर पहन्ने और असीर होने का वक़्त आ गया है। बेड़ियां पहन्ने और कांटों पर पैदल चलने का ज़माना क़रीब है। अब जंगल के कांटों भरे रास्ते हैं और सहरा नवरदी है। कभी कूफ़ा व शाम के बाज़ार हैं और लोगों का हुजूम है , तमाशईयों का मजमा है , मां बहनों के नंगे सर हैं और ज़ैनुल आबदीन हैं। यज़ीद और इब्ने ज़ियाद के दरबार में शिम्र के ताज़याने हैं और हमारा लाडला बीमार है। ऐ ज़ैनुल आबेदीन !

प्यासा गला कटाया यह ओहदा है बाप का

पहनो गले में तौक़ यह हिस्सा है आप का

बस हमारे बाद दुनियां के इमाम तुम हो। ऐ जाने पदर इस कश्ती की मल्लाही अब तेरी ज़ात पर है। देखना आपकी मेहनत राएगां ना जाने पाऐ , अन्नाने सब्र व तहम्मुल हाथ से न छूटे। करबला से कूफ़ा और कूफ़े से शाम तक माँ बहनों के साथ , बेड़ियां पहने , तौक़ डाले , नंगे पांव जाओ , सब्रो रज़ा ए इलाही के जौहर दिखलाओ। तौहीद के ख़ुत्बे पढ़ो , हिदायत के रास्ते बताओ। हां हां बेटा देखना बेड़ी पहन कर सिलसिला ए सब्र छूट न जाए। बस हम राहे रज़ा सर से क़ता करने को तैय्यार हैं और तुम अपने पैरों से तय करना। राहे इलाही में ख़ार दार तौक़ को फूलों को हार समझना और इश्क़े इलाही में लौहे की तप्ती बेड़ियों को मोहब्बते ख़ुदा की जंजीरे जनाना। यह फ़रमाने के बाद इमाम हुसैन (अ.स.) फटे पुराने कपड़े मांगते हैं , पोशाक के नीचे पहनते हैं , उन्हें भी जगह जगह से चाक फ़रमा देते हैं। सबब पूछा जाता है तो फ़रमाते हैं कि मेरे शहीद हो जाने के बाद यह ज़ालिम शक़ी मेरा लिबास भी लूटेंगें और कपड़े भी उतारेंगे। शायद यह फटे पुराने कपड़े नीचे देख कर छोड़ दें और इस तरह मेरी लाश बरहनगी से बच जाए।(तारीख़े कामिल जिल्द 4 पृष्ठ 40 व तबरी पृष्ठ 34 )

बहन के रूख़सत फ़रमा कर , बीबीयों को अलविदा कह कर , माँ की कनीज़ फ़िज़्ज़ा , पालने वाली को भी सलाम कर के बाली सकीना सीने पर सोने वाली लाडली बेटी को छाती से लगा कर मुह चूमते और फ़रमाते थे , बेटी तुम को ख़ुदा के सिपुर्द किया। ख़ेमे का परदा उठा , बाहर तशरीफ़ लाए , बहन ने रक़ाब थामी , ज़ुल्जना पर सवार हुए और मैदाने कारज़ार पर रवाना हो गए।(नामूसे इस्लाम)

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) मैदाने जंग में

जब आपके 72 असहाब व अन्सार और बनी हाशिम क़ुरबान गाहे इस्लाम पर चढ़ चुके तो आप ख़ुद अपनी क़ुरबानी पेश करने के लिये मैदाने कारज़ार में आ पहुँचे। लशकरे यज़ीद जो हज़ारों की तादाद में था , अस्हाबे बावफ़ा और बहादुराने बनी हाशिम के हाथों वासीले जहन्नम हो चुका था। इमाम हुसैन (अ.स.) जब मैदान में पहुँचे तो दुश्मनों के लशकर में से तीस हज़ार सवार व पियादे बाक़ी थे यानि सिर्फ़ एक प्यासे को तीस हज़ार दुश्मनों से लड़ना था।(कशफ़ुल ग़म्मा) मैदान पहुँचने के बाद आपने सब से पहले दुश्मनों को मुख़ातिब कर के एक ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया। आपने कहा , ऐ ज़ालिमों ! मेरे क़त्ल से बाज़ आओ , मेरे ख़ून से हाथ न रंगो , तुम जानते हो मैं तुम्हारे नबी का नवासा हूँ। मेरे बाबा अली (अ.स.) साबिक़े इस्लाम हैं , मेरी माँ फ़ात्मा ज़हरा (स अ व व ) तुम्हारे नबी (स अ व व ) की बेटी हैं और तुम जानते हो कि मेरे नाना रसूल अल्लाह (स अ व व ) ने मुझे और मेरे भाई हसन (अ.स.) को सरदारे जवानाने जन्नत फ़रमाया है। अफ़सोस तुम कैसी बुरी क़ौम और कैसी बुरी उम्मत हो कि न तुम को ख़ुदा का ख़ौफ़ है न रसूल (स अ व व ) से शर्म है। तुम अपने नबी की औलादों और अपने रसूल (स अ व व ) की आल का ख़ून बहाते हो और मेरे ख़ूने ना हक़ पर आमादा होते हो , हालांकि न मैंने किसी को क़त्ल किया है न किसी का माल छिना है कि जिसके बदले में तुम मुझको क़त्ल करते हो। मैं तो दुनियां से बे ताअल्लुक़ अपने नाना रसूल (स अ व व ) की क़ब्र पर मुजाविर बना बैठा था। तुम ने मुझे हिदायत के लिये बुलाया और मुझे न नाना की क़ब्र पर बैठने दिया न ख़ुदा के घर में रहने दिया। सुनो अब भी हो सकता है कि मुझे इसका मौक़ा दे दो कि मैं नाना की क़ब्र पर बैठूं या ख़ाना ए ख़ुदा में पनाह ले लूं। इसके बाद आपने इतमामे हुज्जत के लिये उमरे साद को बुलाया और उससे फ़रमाया , 1. तुम मेरे क़त्ल से बाज़ आओ। 2. मुझे पानी दे दो। 3. अगर यह मन्ज़ूर न हो तो फिर मेरे मुक़ाबले के लिये एक एक शख़्स को भेजो। उसने जवाब दिया आपकी तीसरी दरख़्वास्त मन्ज़ूर की जाती है और आपसे लड़ने के लिये एक एक शख़्स मुक़ाबले में आएगा।(रौज़तुल शोहदा)

इमाम हुसैन (अ.स.) की नबर्द आज़माई

मोहाएदे के मुताबिक़ आपसे लड़ने के लिये लश्करे शाम से एक एक शख़्स आने लगा और आप उसे फ़ना के घाट उतारने लगे। सब से पहले जो शख़्स मुक़ाबले के लिये निकला वह ख़मीम इब्ने क़हतबा था आपने इस पर बरक़ ख़ातिफ़ की तरह हमला किया और उसे तबाह व बरबाद कर डाला। यह सिलसिला ए जंग थोड़ी देर जारी रहा और मुद्दते क़लील में कुश्तों के पुश्ते लग गए और मक़तूलीन की तादाद हदे शुमार से बाहर हो गई। यह देख कर उमरे साद ने लश्कर वालों को पुकार कर कहा क्या देखते हो सब मिल कर यक बारगी हमला कर दो। यह अली का शेर है इससे इनफ़ेरादी मुक़ाबले में कामयाबी क़त्अन न मुम्किन है। उमरे साद की इस आवाज़ ने लश्कर के हौसले बुलन्द कर दिये और सब ने मिल कर यक बारगी हमले का फ़ैसला किया। आपने लश्कर के मैमना और मैसरा को तबाह कर दिया। आपके पहले हमले में एक हज़ार नौ सौ पचास दुश्मन क़त्ल हुए और मैदान ख़ाली हो गया। अभी आप सुकून न लेने पाए थे कि अठ्ठाइस हज़ार दुश्मनों ने फिर हमला कर दिया। इस तादाद मे चार हज़ार कमान दार थे। अब सूरत यह हुई कि सवार प्यादे और कमान दारों ने हम आहंग व हम हमल हो कर मुसलसल मुतावातिर हमले शुरू कर दिये। इस मौक़े पर आपने जो शुजाअत का जौहर दिखाया इसके मुताअल्लिक़ मुवर्रेख़ीन का कहना है कि सर बरसने लगे , धड़ गिरने लगे और आसमान थरथराया , ज़मीं कांपी , सफ़ें उल्टीं , परे दरहम बरहम हो गए।

अल्लाह रे हुसैन का वो आख़री जिहाद , हर वार पर अली ए वली दे रहे थे दाद

कभी मैसरा को उलटते थे कभी मैमना को तौड़ते हैं कभी क़ल्बे लश्कर में दरआते हैं कभी जिनाहे लश्कर पर हमला फ़रमाते हैं। शामी कट रहे हैं कूफ़ी गिर रहे हैं। लाशों के ढेर लग रहे हैं। हमले करते हुए फ़ौजों को भगाते हुए नहर की तरफ़ पहुँच जाते हैं। भाई की लाश तराई पर पड़ी नज़र आती है। आप पुकार कर कहते हैं , ऐ अब्बास तुम ने यह हमले न देखे , यह सफ़ आराई न देखी अफ़सोस तुम ने मेरी तन्हाई न देखी।

अल्लामा असफ़रानी का कहना है कि इमाम हुसैन (अ.स.) दुश्मनों पर हमला करते थे तो लशकर इस तरह से भागता था जिस तरह से टिड्डियां मुन्तशिर हो जाती हैं। नूरूल एैन में एक मुक़ाम पर लिखा है कि इमाम हुसैन (अ.स.) बहादुर शेर की तरह हमला फ़रमाते और सफ़ों को दरहम बरहम कर देते थे और दुश्मनों को इस तरह काट कर फेंक देते थे जिस तरह तेज़ धार आले से खेती कटती है।

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि ‘‘ आँ हज़रत हमलागरां अफ़गन्द हर कि बाद कोशीद शरबते मर्ग नोशीद व बहर जानिब कि ताख़त गिरोहे रा बख़ाक अन्दाख़्त ’’ कोई आपके अज़ीमुश्शान हमले की कोई ताब न ला सकता था , जो आपके सामने आता था शरबते मर्ग से सेराब होता था और आप जिस जानिब हमला करते थे गिरोह के गिरोह को ख़ाक में मिला देते थे।(कशफ़ुल ग़म्मा)

मुवर्रीख़ इब्ने असीर का बयान है कि जब इमाम हुसैन (अ.स.) को यौमे आशुरा दाहिने और बाऐं जानिब से घेर लिया गया तो आपने दाईं जानिब हमला कर के सब को भगा दिया। फिर पलट कर बाईं जानिब हमला करते हुए तो सब को मार कर हटा दिया। ख़ुदा की क़सम। हुसैन (अ.स.) से बढ़ कर किसी शख़्स को ऐसा क़वी दिल , साबित क़दम बहादुर नहीं देखा गया जो शिकस्ता दिल हो , सदमे उठाए हुए हो , बेटों अज़ीज़ों और दोस्त अहबाब के दाग़ भी खाए हुए हो और फिर हुसैन (अ.स.) की सी साबित क़दमी और बे जिगरी से जंग कर सके। ब ख़ुदा दुश्मनों की फ़ौज के सवार और प्यादे हुसैन (अ.स.) के सामने इस तरह भागते थे जिस तरह भेड़ बकरियों के ग़ल्ले शेर के हमले से भागते हैं। हुसैन (अ.स.) जंग कर रहे थे ‘‘ इज़न ख़रजता ज़ैनब ’’ कि जनाबे ज़ैनब ख़ेमे से निकल आईं और फ़रमाया , काश आसमान ज़मीन पर गिर पड़ता। ऐ उमरे साद तू देख रहा है और अबू अब्दुल्लाह क़त्ल किये जा रहे हैं। यह सुन कर उमरे साद रो पड़ा। आंसू दाढ़ी पर बहने लगे और उसने मुंह फेर लिया। इमाम हुसैन (अ.स.) उस वक़्त ख़ज का झुब्बा पहने हुए थे , सर पर अमामा बंधा हुआ था और वसमा का खि़ज़ाब लगाए हुए थे। हुसैन (अ.स.) ने घोड़े से गिर कर भी उसी तरह जंग फ़रमाई जिस तरह जंग जू बहादुर सवार जंग करते थे , हमलों को रोकते थे और सवारों के पैरों पर हमले फ़रमाते थे। ऐ ज़ालिमों ! मेरे क़त्ल पर तुम ने ऐका कर लिया है। क़सम ख़ुदा की तुम मेरे क़त्ल से ऐसा गुनाह कर रहे हो जिसके बाद किसी के क़त्ल से भी इतने गुनाह गार न होगे। तुम मुझे ज़लील कर रहे हो और ख़ुदा मुझे इज़्ज़त दे रहा है और सुनो वह दिन दूर नहीं कि मेरा ख़ुदा तुम से अचानक बदला ले लेगा। तुम्हें तबाह कर देगा , तुम्हारा ख़ून बहाएगा , तुम्हें सख़्त अज़ाब में मुब्तिला कर देगा।(तारीख़े कामिल जिल्द 4 पृष्ठ 40 )

मिस्टर जेम्स कारकरन इमाम हुसैन (अ.स.) की बहादुरी का ज़िक्र करते हुए वाक़ेए करबला के हवाले से लिखते हैं कि ‘‘ दुनियां में रूस्तम का नाम बहादुरी मे मशहूर है लेकिन कई शख़्स ऐसे गुज़रे हैं कि इनके सामने रूस्तम का नाम लेने के क़ाबिल नहीं। चुनान्चे अव्वल दर्जे में हुसैन इब्ने अली (अ.स.) हैं क्यों कि मैदाने करबला में गर्म रेत पर और भूख के आलम में जिस शख़्स ने ऐसा ऐसा काम किया हो , उसके सामने रूसतम का नाम वही शख़्स लेता है जो तारीख़ से वाक़िफ़ नहीं है। किसके क़लम को क़ुदरत है कि इमाम हुसैन (अ.स.) का हाल लिखे , किसकी ज़बान मे ताक़त है कि इन बहत्तर बुज़ुर्गवारों की साबित क़दमी और तेवरे शुजाअत और हज़ारों खू ख़्वार सवारों के जवाब देने और एक एक के हलाक हो जाने के बाब में ऐसी तारीफ़ करे , जैसी होनी चाहिये। किस के बस की बात है जो इन पर वाक़े होने वाले हालात का तसव्वुर कर सके। लश्कर में घिर जाने के बाद से शहादत तक के हालात अजीब व ग़रीब क़िस्म की बहादुरी को पेश करते हैं। यह सच है कि एक की दवा , दो मश्हूर हैं और मुबालग़ा की यही हद है कि जब किसी हाल में यह कहा जाता है कि तुम ने चार तरफ़ से घेर लिया लेकिन हुसैन (अ.स.) और बहत्तर तन को आठ क़िस्म के दुश्मनों ने तंग किया था। चार तरफ़ से यज़ीदी फ़ौज जो आंधी की तरह तीर बरसा रही थी। पांचवा दुश्मन अरब की धूप , छठा दुश्मन गर्म रेत जो तनूर के ज़र्रात की मानिन्द जान लेवा हरकतें कर रहे थे। पस जिन्होंने ऐसे मारके में हज़ारों काफ़िरों का मुक़ाबला किया हो इन पर बहादुरी का ख़ात्मा हो चुका , ऐेसे लोगों से बहादुरी में कोई फ़ौक़ीयत नहीं रखता। ’’(तारीख़े चीन दफ़्तर दोम बाब 16 जिल्द 2 )

इमाम हुसैन (अ.स.) अपने मक़तूल बहादुरों को पुकारते हुए

भूख और प्यास के आलम में नबर्द आज़माई की भी कोई हद होती है। आखि़र कार जब इमाम हुसैन (अ.स.) का जिस्मे मुबारक तीरों से मिस्ले साही हो गया और आप बे हद ज़ख़्मी हो गए तो आप अपने बहादुर मक़तूलों की तरफ़ मुतवज्जा हो कर फ़रमाने लगे , ‘‘ ऐ बहादुर शेरो उठो और हुसैन की मद्द करो , बेशक तुम ने बड़ी मद्द की और तुम मेरी हिमायत में सर से गुज़र गए हो , जान से बे नियाज़ हो गए हो लेकिन सुनो अब वक़्त व हालात का तक़ाज़ा यह है कि इस वक़्त मेरी मद्द करो ’’ लेकिन अफ़सोस जान से गुज़र जाने वाले हयाते ज़ाहिरी से महरूम क्यों कर मद्द करते। बाज़ रवायतों में है कि आपकी आवाज़ पर ज़ाफ़र जिन ने लब्बैक कही और इमदाद की दरख़्वास्त की। आपने यह कह कर उसे मुस्तरद कर दिया कि मैं इम्तिहान देने के लिये आया हूँ और इतमामे हुज्जत के लिये सदाए इम्दाद बुलन्द की है वरना मुझे मद्द की ज़रूरत नहीं है। एक रवायत में है कि फिर फ़रिश्तों ने मदद करना चाही उन्हें भी जवाब दे दिया। एक और रवायत में है कि हुसैन (अ.स.) की इस आख़री पुकार पर कटी हुई गरदनों से लब्बैक की आवाज़ आई।

बारगाहे अहदीयत में इमाम हुसैन (अ.स.) के दिल की अवाज़

हुसैन (अ.स.) यको तन्हा , बे यारो मद्दगार , जलती हुई ज़मीन पर दुश्मनों के झुन्ड में खड़े हैं और नाना रसूले (स अ व व ) अरबी का अमामा जिसके पेच कटे हुए ख़ून से भरा हुआ सर पर है , पै रहने अहमदी ज़ैबे तन है लेकिन तीरों से छलनी और ख़ून से रंगीन है। क़बा का दामन अली अकबर के ख़ून से लाल , चेहरा ए अनवर अली असग़र के ख़ून से गुलनार है , पेशानी मुबारक से ख़ून टपक रहा है और अब्बास (अ.स.) के ग़म से कमर टूट चुकी है। प्यास से कलेजा फुक रहा है , अन्सार की लाशें सामने पड़ीं हैं , बराबर का बेटा कड़ियल जवान , शबीहे पयम्बर सीने पर बर्छी खाए ख़ून से नाहाए सो रहा है। भाई की निशानी क़ासिम इब्ने हसन (अ.स.) ख़ून की मेंहदी लगाए उरूसे मौत से हम कनार आराम कर रहा है। बहन के लाडले दाग़ दे कर चले जा चुके हैं। लश्कर की ज़ीनत , बच्चों की ढारस , सकीना का सक्का , अली का शेर , क़ूव्वते बाज़ू , शाने कटाए नहर की तराई पर पड़ा है। 6 माह की जान तीरे सेह शोबा की नज़र हो चुकी है। क़त्ल गाह मेना का नक़्शा पेश कर रहा है , ख़्याम से भूखे प्यासे बच्चों के रोने बिल बिलाने की जिगर सोज़ आवाज़ें आ रही हैं। बीबीयों के रोने और फ़रियाद करने की आवाज़ें दिल को जला रही हैं लेकिन अल्लाह रे हुसैन (अ.स.) का जज़्बा ए क़ुर्बानी , यह इश्क़े ख़ुदा का मतवाला , इस्लाम का फ़रेफ़ता , तौहीद का शेफ़ता , सब्रो रज़ा का मुजस्समा , यादे ख़ुदा में महो और मुनाजात में मशग़ूल है। जैसे जैसे मसाएब व आलाम बढ़ते जाते हैं चेहरा शग़ुफ़्ता होता जाता है। आप फ़रमाते हैं , मेरे पालने वाले मैं अपनी ज़िन्दगी से उस मौत को पसन्द करता हूँ जो तेरी राह में हो। मेरे मौला मुझे इसमें ख़ुशी महसूस होती है कि मैं सत्तर मरतबा तेरी बारगाह में शहीद किया जाऊ और इस क़त्ल पर फ़ख़्र करता हूं जिस में तेरे दीन की नुसरत का राज़ मुज़मिर हो। इसके बाद आप अर्ज़ करते हैं , तरकतुल नास तरानी हवाक व अतीमतुल अयाल लकी अराक 1. मेरे मालिक तू जानता है और बेहतर जानता है कि मैंने तेरी मोहब्बत में सब से हाथ उठा लिया है और फ़क़त तेरे दीदार के शौक़ में अहलो अयाल को छोड़ दिया और बच्चों को यतीम बना दिया। 2. मालिक अगर तेरे दीदारे इश्क़ में मेरे टुकड़े कर दिए जाएं तब भी मेरा दिल तेरे सिवा किसी और की तरफ़ झुक नहीं सकता। यह कह कर आपने तलवार नियाम में रख ली क्यों कि सदा ए आसमानी आ गई थी कि ‘‘ अपना वादा ए तिफ़ली पूरा करो ’’ आपके हाथों का रूकना था कि सारा लश्कर मुसलसल हमले पर आमादा हो गया और चालीस हज़ार अफ़राद ने आपको घेरे में ले कर वार करना शुरू कर दिया।

इमाम हुसैन (अ.स.) अर्शे ज़ीन से फ़रशे ज़मीन पर

आप पर मुसलसल वार हो रहे थे कि नागाह एक पत्थ्र पेशानिये अक़दस पर लगा इसके फ़ौरन बाद अबवाल हतूफ़ जाफ़ई मलऊन ने जबीने मुबारक पर तीर मारा आपने उसे निकाल कर फेंक दिया और ख़ून पोछने के लिये आप अपना दामन उठाना ही चाहते थे कि सीना ए अक़दस पर एक तीरे सह शोबा पेवस्त हो गया , जो ज़हर में बुझा हुआ था। इसके बाद सालेह इब्ने वहब लईन ने आपके पहलू पर अपनी पूरी ताक़त से एक नेज़ा मारा जिसकी ताब न ला कर आप ज़मीने गर्म पर दाहिने रूख़सार के भल गिरे , ज़मीन पर गिरने के बाद आप फिर उठ खड़े हुए , वरआ इब्ने शरीक लईन ने आपके दायें शाने पर तलवार लगाई और दूसरे मलऊन ने दाहिने तरफ़ वार किया। आप फिर ज़मीन पर गिर पड़े , इतने में सिनान बिन अनस ने हज़रत के ‘‘ तरकूह ’’ हसली पर नैज़ा मारा और उसको खैंच कर दूसरी दफ़ा सीना ए अक़दस पर लगाया। फिर इसी ने एक तीर हज़रत के गुलू ए मुबारक पर मारा इन पैहम ज़रबात से हज़रत कमाले बेचैनी से उठ बैठे और आपने तीर को अपने हाथो से खींचा और ख़ून रीशे मुबारक पर मला। इसके बाद मालिक बिन नसर कन्दी लईन ने सरपर तलवार लगाई और वरह इब्ने शरीक ने शाने पर तलवार का वार किया। हसीन बिन नमीर ने दहने अक़दस पर तीर मारा। अबू अय्यूब ग़नवी ने हलक़ पर हमला किया। नसर बिन हरशा ने जिस्म पर तलवार लगाई इब्ने वहब ने सीना ए मुबारक पर नैज़ा मारा। यह देख कर उमरे साद ने आवाज़ दी अब देर क्या है इनका सर फ़ौरन काट लो। सर काटने के लिये शीस इब्ने रबी बढ़ा। इमाम हुसैन (अ.स.) ने इसके चेहरे पर नज़र की उसने हुसैन (अ.स.) की आंखों में रसूल (स अ व व ) की तसवीर देखी और कांप उठा। फिर सिनान बिन अनस आगे बढ़ा। इसके जिस्म में राशा पड़ गया। वह भी सरे मुबारक न काट सका। यह देख कर शिमरे मलऊन ने कहा , यह काम सिर्फ़ मुझसे हो सकता है और वह ख़न्जर लिये हुए इमाम हुसैन (अ.स.) के क़रीब आ कर सीना ए मुबारक पर सवार हो गया। आपने पूछा तू कौन है ? उसने कहा मैं शिम्र हूँ। फ़रमाया , तू मुझे नहीं पहचानता ? इसने कहा ‘‘ अच्छी तरह जानता हूँ ’’ तुम अली व फ़ात्मा के बेटे और मोहम्मद (स अ व व ) के नवासे हो। आपने फ़रमाया फिर मुझे क्यों ज़बह करता है ? इसने जवाब दिया इस लिये कि मुझे यज़ीद की तरफ़ से मालो दौलत मिलेगा।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 79 )

इसके बाद आपने अपने दोस्तों को याद फ़रमाया और सलामे आख़री के जुमले अदा किये। ऐ शिम्र मुझे इजाज़त दे दे कि मैं अपने ख़ालिक़ की आख़री नमाज़े अस्र अदा कर लूँ। इसने इजाज़त दी , आप सजदे में तशरीफ़ ले गए।(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 277 ) और शिम्र ने आपके गुलू ए मुबारक को कुन्द ख़न्जर की बारह ज़र्बों से क़ता कर के सरे अक़दस को नैज़े पर बुलन्द कर दिया। हज़रत ज़ैनब ख़ैमे से निकल पड़ीं , ज़मीन कांपने लगी , आलम में तारीकी छा गई , लोगों के बदन में कप कपीं पड़ गई। आसमान ख़ूं के आंसू रोने लगा। जो शफ़क़ की सूरत में रहती दुनियां तक क़ायम रहेगा।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 116 ) इसके बाद उमरे साद ने खूली बिन यज़ीद और हमीद बिन मुस्लिम के हाथों सरे मुबारक करबला से कूफ़े इब्ने ज़ियाद के पास भेज दिया।(अल हुसैन अज उमर बिन नसर पृष्ठ 154 ) इमाम हुसैन (अ.स.) के सरे बुरिदा के बाद आपका लिबास लूटा गया। अखि़नस बिन मुरसिद अमामा ले गया , इस्हाक़ इब्ने हशूआ क़मीस पैराहन ले गया। अबहर बिन क़ाब पैजामा ले गया। असवद बिन ख़ालिद नालैन ले गया , अब्दुल्लाह बिन असीद कुलाह ले गया , बज़दल बिन सलीम अंगुशतरी ले गया। क़ैस बिन अशअस पटका ले गया। उमर बिन साद ज़िरह ले गया , जमीह बिन ख़लक़ अज़दी तलवार ले गया। अल्लाह रे ज़ुल्म एक कमर बन्द के लिये जमाल मलऊन ने हाथ क़ता कर दिया। एक अंगूठी के लिये बुज़दिल ने उंगली काट डाली।

इसके बाद दीगर शोहदा के सर काटे गाए , और लाशों पर घोड़े दौड़ाने के लिये उमरे साद ने लशकरियों को हुक्म दिया दस अफ़राद इस अहम जुर्म खुदाई के लिये तैयार हो गए। जिनके नाम यह है , इस्हाक बिन हवीया , अखनस बिन मरसद , हकीम बिन तुफ़ैल , उमरो बिन सबीह , सालिम बिन खसीमह , सालेह बिन वहब , वाएज़ बिन ताग़म , हानि बिन मसबत , असीद बिन मालिक। तवारीख़ में है कि ‘‘ फ़ला सवाअल हुसैन ब हवाफ़र ख़ैवलाहुम हत्ती रजू अज़हरा वहमदहू ’’ इमाम हुसैन (अ.स.) की लाश को इस तरह घोड़ों की टापों से पामाल किया कि आपका सीना और पुश्त टुकड़े टुकड़े हो गई। बाज़ मुवर्रेख़ीन का कहना है कि जब इन लोगों ने चाहा कि जिस्म को इस तरह पामाल कर दें कि बिल्कुल ना पैद हो जाए तो जंगल से एक शेर निकला और उसने लाशा पामाल होने से बचा लिया।(दमए साकेबा पृष्ठ 350 ) अल्लामा इब्ने हजर मक्की लिखते हैं कि हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत के फ़ौरन बाद , जो मिट्टी रसूले ख़ुदा (स अ व व ) जनाबे उम्मे सलमा को दे गए थे ख़ून से लाल हो गई।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 115 ) और रसूले ख़ुदा उम्मे सलमा के ख़्वाब में मदीने पहुँचे , उनकी हालत यह थी कि वह बाल बिखरा ए हुए , सर पर ख़ाक डाले हुए थे। उम्मे सलमा ने पूछा कि आप का यह क्या हाल है फ़रमाया ‘‘ शहादता क़तलन हुसैना अनफ़ा ’’ मैं अभी अभी हुसैन के क़त्ल गाह में था और अपनी आंखों से उसे ज़बह होते हुए देखा है।(सही तिरमिज़ी जिल्द 2 पृष्ठ 306, मुस्तदरिक हाकिम जिल्द 4 पृष्ठ 19 तहज़ीबुल तहज़ीब जिल्द 2 पृष्ठ 356 ज़ख़ाएरूल ओक़बा पृष्ठ 148 )

शामे ग़रीबा

शहादते इमाम हुसैन (अ.स.) के बाद अस्पे वफ़ा दार ने अपनी पेशानी इमाम हुसैन (अ.स.) के ख़ून मे रंगीन कर के अहले हरम में ख़बरे शहादत पहुँचा दी थी जिसकी वजह से ख़ेमें में कोहरामे अज़ीम बपा ही था कि दुश्मनों ने ख़ेमों का रूख़ किया और पहुँचते ही ख़ैमों में आग लगा दी और सामान लूटना शुरू कर दिया। अहले बैते रसूल (स अ व व ) फ़रियादों फ़ुग़ां की आवाज़े बलन्द कर रहे थे और कोई फ़रयाद रस और पुरसाने हाल न था। तमाम बीबीयों के सरों से चादरें छीन लीं। फ़ात्मा बिन्ते हुसैन (अ.स.) के पैरों से छागलें उतार लीं और हज़रत ज़ैनब व उम्मे कुलसूम के कानों से गोशवारे खींच लिये। सय्यदे सज्जाद (अ.स.) के नीचे से बिस्तर खींच कर उन्हें ज़मीन पर डाल दिया। ग़रज़ कि एक ऐसा हशर बरपा कर दिया गया जो न किसी के हाथ कभी रवा रखा गया था और न इससे क़ब्ल सुनने में आया था। इन हालात को देख कर एक औरत जो क़बीला ए बकर इब्ने वाएल से थी एक तलवार का टुकड़ा ले कर इन मुख़ालिफ़ों पर हमलावर हुई जो आले रसूल (स अ व व ) को लूट रहे थे। बाज़ रवाएतों में है कि एक बच्चे के कुर्ते में आग लगी हुई थी और वह बाहर की तरफ़ भाग रहा था , जैसे हवा लगती थी आग भड़क जाती थी , यह हाल देख कर एक दुश्मन ने तरस खाया , और बढ़ कर दामन से आग बुझ़ा दी , नौनिहाल ने जब उसे अपने ऊपर मेहरबान पाया तो पूछने लगा कि ऐ शेख़ नजफ़ का रास्ता किधर है ? उसने कहा ऐ फ़रज़न्द इस कमसिनी में नजफ़ का रास्ता क्यों पूछते हो ? फ़रमाया मैं अपने नाना के पास जा कर उनके सामने फ़रयाद करूंगा।(किताब तौज़ीह में यह वाक़ेया जनाबे सकीना की तरफ़ मन्सूब है)

अल ग़रज ज़ल्मों जौर की इन्तेहा हो रही थी किसी बीबी की पुश्त पर ताज़याने लगाए जा रहे थे किसी के रूख़सार पर तमाचे लगा रहे थे किसी की पीठ पर नै़ज़े की अनी चुभोई जा रही थी। जब सब कुछ लूटा जा चुका , ख़ैमे जल चुके और शाम आ गई तो वहीं के जले भुने ग़ल्ले के दानों से और ब रवाएते हुर की बीवी दाना पानी लाई और फ़ाक़ा शिकनी की गई।

इसके बाद हज़रत ज़ैनब ने जनाबे उम्मे कुलसूम से फ़रमाया कि बहन अब रात हो चुकी है , तारीकी छाई हुई है , तुम सब औरतों और बच्चों को एक जगह जमा करो , उनकी हिफ़ाज़त में मैं रात भर पहरा दूंगी। हज़रत उम्मे कुलसूम ने सब बीबीयों को जमा कर लिया लेकिन उन्हें जनाबे सकीना न मिलीं , आपने जनाबे ज़ैनब से अर्ज़े वाक़िया किया , जनाबे ज़ैनब मक़तल की तरफ़ हज़रत सकीना को तलाश करने के लिये निकलीं। एक नशेब से सकीना के रोने की आवाज़ आई , जा कर देखा कि सकीना बाप के सीने से लिपटी हुई गिरया कर रही है। जनाबे ज़ैनब उन्हें ख़ेमे में ले आईं। जनाबे सकीना का बयान है कि उस वक़्त बाबा की कटी हुई गरदन से यह आवाज़ आ रही थी

शिअती मा अन शरबतुम , मा अज़बे फ़ाज़ करूनी

औ समअतुम बेग़रीब ओ शहीद फ़ानद बूनी

व अनल सिब्तल लज़ी , मन ग़ैरे जुर्मिन क़तलूनी

व मजब्र द्दल ख़ल्ल बाअदल क़त्ल सहक़ूनी

लैताकुम फ़ी यौमे आशूरा , जमीआ तन्ज़रूनी

कैफ़ा असतसक़ी लुतफ़ली फ़ा बवाअन यरहमूनी

तरजुमाः ऐ मेरे शियों ! जब ठन्डा पानी पीना तो मुझे याद करना और जब किसी ग़रबी या शहीद के वाक़ेआत सुनना तो मुझ पर गिरया करना। ऐ मेरे दोस्तों सुनो मैं रसूल (स अ व व ) का वह मज़लूम नवासा हूँ जिसे बिला जुर्म व ख़ता दुश्मनों ने क़त्ल कर दिया और फिर क़त्ल के बाद उसकी लाश पर घोड़े दौड़ा दिये। ऐ मेरे शियों ! काश तुम आज आशूरा के दिन होते तो यह रूह फ़रसा मनाज़िर देखते कि मैं अपने प्यासे बच्चे अली असग़र के लिये किसी तरह पानी मांग रहा था और यह संग दिल किस दिलेरी और बे बाकी से इन्कार कर रहे थे।

ग़रज़ कि हज़रत ज़ैनब जनाबे सकीना को बाप के सीने से समझा बुझा कर उठा लाईं और उन्हें जनाबे उम्मे कुलसूम के सिपुर्द कर के तिलाया फिरना शुरू कर दिया।(दमए साकेबा)

रात का काफ़ी हिस्सा गुज़रने के बाद जनाबे ज़ैनब ने देखा कि एक सवार घोड़ा बढ़ाये चला आ रहा है। आपने बढ़ कर उससे कहा कि हम आले रसूल (स अ व व ) हैं हमारे छोटे बड़े , बूढ़े , जवान जब आज ही क़त्ल किये जा चुके हैं। अब हमारे छोटे छोटे बच्चे अभी रोते रोते सो गए हैं। ऐ सवार अगर तुझे हम को ज़्यादा लूटना मक़सूद है तो सुबह आ जाना और जो कुछ हमारे पास रह गया है उसे भी लूट लेना , लेकिन देख इन बच्चों को न सता और उन्हें सोने दे। ख़ुदा के लिये इस वक़्त चला जा , लेकिन सवार ने एक न सुनी और घोड़े के क़दम बराबर बढ़ते ही रहे। आखि़र ज़ैनब भी शेरे ख़ुदा की बेटी थीं , उन्हें जलाल आ गया और उन्होंने लजामे फ़रस पर बढ़ कर हाथ डाल दिया , और कहा कि मैं क्या कहती हूँ और तू क्या करता है। यह हाल देख कर सवार घोड़े से उतर पड़ा और ज़ैनब को सीने से लगा कर कहने लगा , ऐ बेटी मैं तेरा बाप अली हूँ , बेटी तेरी हिफ़ाज़त के लिये आया हूँ , ऐ जाने पदर तू बच्चों में जा मैं तेरी हिफ़ाज़त करूंगा। ज़ैनब ने फ़रियादो फ़ुग़ा शुरू कर दी और तमाम वाक़ियात बयान किये। अल ग़रज़ जब यह अश्र आफ़रीं रात तमाम हुई तो हुक्मे उमरे साद से लशकरियों ने आ कर आले रसूल (स अ व व ) को घेर लिया और बिला महमिल व कजावे के नाक़ों पर सवार होने को कहा। चारो नाचार रसूल ज़ादियां नाक़ों पर सवार हुईं। हाल यह था कि सर खुले हुए थे , बाल बिखरे हुए थे और आंखों से आंसू जारी थे। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की अलालत की वजह से चूंकि ताबो तवां न रखते थे , इस लिये सवार होने से परेशानी थी। शिम्र ने ताज़ियाने से अज़ीयत पहुँचाई और फ़िज़्ज़ा ने दौड़ कर इमाम (अ.स.) को मदद दी और आप नाक़े पर सवार हो गए लेकिन ताक़त न होने की वजह से नाक़े की पुश्त पर संभलना दुश्वार था इस लिये दुश्मनाने इस्लाम ने आप के पैरों को नाक़े के पेट से मिला कर बांध दिया।

(असरारूल शहादत)

फिर उसके बाद उस काफ़िले को ले कर कूफ़े के लिये रवाना हुए और ग़ज़ब यह किया कि इन रसूल ज़ादियों को मक़तल की तरफ़ से गुज़ारा। मुवर्रेख़ीन का बयान है कि जैसे ही यह हुसैनी काफ़िला मक़तल में पहुँचा हश्र का समा पेश हो गया। ज़ैनब ने अपने को नाक़े से गिरा दिया और फ़रयादों फ़ुगां करने लगीं। आपने कहा ऐ मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) जिन पर मलाएका आसमान से दुरूद भेजते हैं देखिये यह हुसैन (अ.स.) ख़ाको ख़ून में आलूदा टुकड़े टुकड़े हो कर चटीयल मैदान में पड़े हैं। आपकी बेटियां और नवासियां क़ैदी हैं। आप की अवलाद मक़तूल है और हवा उन पर खाक उड़ा रही है।

यह दर्दनाक मरसिया सुन कर दोस्त व दुश्मन कोई ऐसा न था जो रोने न लगा हो। उस वक़्त उन लोगों को महसूस हुआ कि वह किस क़द्र शदीद गुनाह के मुरतकिब हुए हैं लेकिन अब क्या हो सकता था।(अल हुसैन अबू नसर पृष्ठ 155 ) दम उस साकेबा में है कि जनाबे ज़ैनब की फ़रियाद से जानवर भी रोने लगे और उनकी आखों से आंसू टपक रहे थे। इस तरह हज़रत उम्मे कुलसूम भी नौहा ओ फ़रियाद कर रही थीं और जनाबे सकीना भी महवे गिरयाओ मातम थीं। बिल आखि़र दुश्मनों के तशद्दुद से यह काफ़ेला आगे बढ़ गया और आले रसूल की लाशें बे गोरो कफ़न ज़मीने गर्म करबला पर पड़ी रहीं। चंद दिनों के बाद बनी असद ने उन पर नमाज़ें पढ़ीं और उन्हें सिपुर्दे ख़ाक कर दिया।

सुबह ग्यारह मुहर्रम

वाक़ेया यह है कि अली (अ.स.) की बेटियां रसूल (स अ व व ) की नवासियां बे महमिल व अमारी के नाक़ों पर सवार कर के दरबारे कूफ़ा में दाखि़ल की गईं , फिर एक हफ़्ता उन्हें कूफ़े के क़ैद ख़ाने में रखा गया। इसके बाद इन ग़रीबों को बारह रबीउल अव्वल 61 हिजरी यौमे चहार शम्बा को शाम पहुँचा दिया गया और वहां एक साल क़ैद में रखा गया। फिर वहां से रिहाई के बाद आले रसूल (स अ व व ) 20 सफ़र 62 हिजरी करबला होते हुए आठ रबीउल अव्वल 62 हिजरी वारिदे मदीना मुनव्वरा हुए।

इस इजमाल की मुख़्तसर अलफ़ाज़ में तफ़सील यह है कि ग्यारहवीं मोहर्रम यौमे शम्बा को शिम्र बिन ज़िलजौशन ने हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) से कहा कि अब तुम्हें औरतों और बच्चों समैत दरबारे इब्ने ज़ियाद में चलना होगा जो कूफ़े मे है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने फ़रमाया कि मैं सानीये ज़हरा से अर्ज़ करता हूँ। चुनान्चे उन्होंने फूफी से अर्ज़ कि। ज़ैनब बिन्ते अली (अ.स.) को जलाल आ गया। फ़ौरन भाई की वसीअत याद आ गई सर झुका कर कहा , बेटा हर मुसीबत बर्दाश्त करूंगी।

फिर रवानगी का बन्दो बस्त शुरू हो गया बे महमिल व अमारी के नाक़ों पर सर बरैहना मुख़्देराते अस्मत व तहारत सवार की गईं। सरों को ब रवायते नैजों पर बुलन्द किया गया और शोहदा के लाशों को ज़मीने गर्म पर छोड़ कर काफ़ला कूफ़ा के लिये रवाना हो गया। बाज़ारो कूफ़ा में दाख़ले के वक़्त हज़रत ज़ैनब (स अ व व ) की फ़रियादी आवाज़ को मानन्द करने के लिये बाजों की आवाज़ तेज़ करा दी गई। ब रवायते हज़रत ज़ैनब ने मातम शुरू कर दिया फिर इनके हाथ पसे गरदन से बांध दिये गए। कूफ़े में दाखि़ला हुआ। बाज़ारे कूफ़ा में हज़रत ज़ैनब व उम्मे कुलसूल , हज़रत फ़ात्मा बिन्ते हुसैन और हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने ज़बर दस्त तक़रीर की और वाक़िये पर भरपूर रौशनी डाली। दारूल अमारा के दरवाज़े पर सरे मुस्लिम बिन अक़ील (अ.स.) लटका हुआ देखा गया। इब्ने ज़ियाद ने मुख़्तार को क़ैद ख़ाने से बुलाया और सरे हुसैन (अ.स.) तश्ते तिला में रख कर उनके सामने लाया गया , फिर छड़ी से दनदाने मुबारक इमाम हुसैन (अ.स.) के साथ बे अदबी की गई। एक हफ़्ता कूफ़े के क़ैद ख़ाने में मुख़द्देराते अस्मत व तहारत को क़ैद रखने के बाद हुसैनी काफ़ले को शाम के लिये रवाना कर दिया गया। जो ब रवायते 36 दिन में और ब रवाएते 16 रबीउल अव्वल 61 हिजरी चहार शम्बा के दिन शाम पहुँचा। जब शाम की राजधानी दमिश्क़ में जहां यज़ीद का दरबार लगता था दाख़ले का मौक़ा आया तो तीन दिन तक इस काफ़ले को ‘‘ बाब अल साअत ’’ पर ठहराया गया क्यों कि दरबार के सजने में तीन दिन की ज़रूरत बाक़ी थी। फिर दरबार में दाखि़ला हुआ। हज़ारों कुर्सी नशीन आले मोहम्मद (स अ व व ) की मुख़्दद्देरात( औरतों) का तमाशा देखने के लिये जमा थे। यज़ीद ने हज़रते ज़ैनब से कलाम करना चाहा। जनाबे फ़िज़्ज़ा ने मज़हमत की। फिर यज़ीद की ताना ज़नी पर बिन्ते अली ने दुख दर्द से भरे हुए अलफ़ाज़ में ज़बरदस्त तक़रीर की। दरबार में हलचल मची और मुख़्द्देराते असमत व तहारत को ऐसे क़ैद खाने में भेज दिया गया जिसमें धूप और औस से बचाव का कोई इन्तेज़ाम न था फिर इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने मस्जिदे दमिश्क़ में यादगार ख़ुतबा दिया जो अज़ान के ज़रिए से मुनक़ेता कर दिया गया।(बिहार जिल्द 10 पृष्ठ 233 )

अल ग़रज़ यह हुसैनी काफ़िला तक़रीबन एक साल इस क़ैद ख़ाने में पड़ा रहा। इसी दौरान में हज़रत सकीना का इन्तेक़ाल भी हो गया। क़ुतूबे मक़ातिल से क़ैद ख़ाने में हिन्दा ज़ौजा ए यज़ीद के आने का भी पता मिलता है। काफ़ी वक़्त गुज़रने के बाद यह काफ़िला रिहा किया गया। एक ख़ाली मकान में मुख़्द्देराते तहारत ने एक हफ़्ता नौहा व मातम किया और शाम की औरतों से ताज़ीयत क़ुबूल की। फिर बशीर बिन जज़लम की रहनुमाई में यह काफ़िला 20 सफ़र 62 हिजरी को करबला पहुँचा। हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह अन्सारी जो सहाबिये रसूल और क़ब्रे हुसैन (अ.स.) के मुजाविरे अव्वल थे उन्होंने फ़रयादो फ़ुग़ा की हालत में इन्तेहाई रंजो ग़म के साथ इस काफ़िले का इस्तक़बाल किया। ज़ैनब ने क़ब्रे इमाम हुसैन (अ.स.) पर अपने को गिरा दिया। बरावएते तीन दिन तक फ़रयादो फ़ुग़ा और नौहा मातम के बाद यह काफ़ला मदीना ए मुनव्वरा को रवाना हुआ। क़रीबे मदीना काफ़िला ठहरा। बशीर ने ख़बरे ग़म अहले मदीना तक पहुँचाई , ज़ूक़ दर ज़ूक़ अहले मदीना क़ाफ़िले के मुस्तक़र पर सरो पा बरैहना रोते पीटते जमा हो गए। मोहम्मद हनफ़िया भी आए , अब्दुल्लाह बिन जाफ़र भी आए और उम्मे सलमा भी आईं। उम्मे सलमा के एक हाथ में फ़ात्मा सुग़रा का हाथ था और एक हाथ में वह शीशी थी जो रसूले ख़ुदा दे गए थे और इसमें करबला की मिट्टी ख़ून हो गई थी। काफ़िला दाखि़ले मदीना हुआ। हज़रत उम्मे कुलसूम ने मरसिया पढ़ा जिसका पहला शेर यह है।

मदीनातो जद्देना ला तक़बलीना ,

फ़बल हसराते वाएहज़ान जैना

तरजुमाः- ऐ हमारे नाना के मदीने तू हमें क़ुबूल न कर (क्यों कि हम क़ुबूल किए जाने के क़ाबिल नहीं हैं) हम यहां हसरतों मुसीबतों और अन्दोह ग़म के साथ वापस आऐ हैं।

मदीने में दाखि़ले के बाद रौज़ा ए रसूल (स अ व व ) पर बेपनाह फ़रयादो फ़ुग़ां की गई 15 शबाना रोज़ बनी हाशिम के घरों में चुल्हा नहीं जला और इनके घरो से धुआं नहीं उठा। इस वाके़ए हाल के बाद हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) चालिस साल ज़िन्दा रहे और शबो रोज़ गिरया ओ ज़ारी फ़रमाते रहे। यही हाल हज़रत ज़ैनब , उम्मे कुलसूम और हज़रत फ़ात्मा नीज़ दीगर तमाम शुरकाए गिरदाब व मसाएब का रहा ता ज़िन्दगी इनके आंसू सूखे नहीं।

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की बहन जनाबे ज़ैनब व जनाबे कुलसूम के मुख़्तसर हालात विलादत ,वफ़ात और मदफ़न

जनाबे ज़ैनब व उम्मे कुलसूम हज़रत रसूले ख़ुदा (स अ व व ) और जनाबे ख़दीजतुल कुबरा (स अ व व ) की नवासीयां , हज़रत अबू तालिब (अ.स.) व फ़ात्मा बिन्ते असद (स अ व व ) की पोतियां हज़रत अली (अ.स.) व फ़ात्मा ज़हरा (स अ व व ) की बेटियां इमाम हसन (अ.स.) व इमाम हुसैन (अ.स.) की हकी़की़ और हज़रत अब्बास (अ.स.) व जनाबे मोहम्मदे हनफ़िया की अलाती बहनें थीं। इस सिलसिले के पेशे नज़र जिसकी बालाई सतह में हज़रत हमज़ा , हज़रत जाफ़रे तैय्यार , हज़रत अब्दुल मुत्तलिब और हज़रत हाशिम भी हैं। इन दोनों बहनों की अज़मत बहुत नुमाया हो जाती है।

यह वाक़ेया है कि जिस तरह इनके आबाओ अजदाद , माँ बाप और भाई बे मिस्ल व बे नज़ीर हैं इसी तरह यह दो बहने भी बे मिस्ल व बे नज़ीर हैं। ख़ुदा ने इन्हें जिन ख़ानदानी सेफ़ात से नवाज़ा है इसका मुक़तज़ा यह है कि मैं यह कहूं कि जिस तरह अली (अ.स.) व फ़ात्मा ज़हरा (स अ व व ) के फ़रज़न्द ला जवाब हैं इसी तरह इनकी दुख़्तरान ला जवाब हैं , बेशक जनाबे ज़ैनब व उम्मे कुलसूम मासूम न थीं लेकिन इनके महफ़ूज़ होने में कोई शुब्हा नहीं जो मासूम के मुतरादिफ़ है। हम ज़ैल में दोनों बहनों का मुख़्तसर अलफ़ाज़ में अलग अलग ज़िक्र करते हैं।

हज़रत ज़ैनब की विलादत

मुवर्रेख़ीन का इत्तेफ़ाक़ है कि हज़रत ज़ैनब बिन्ते अमीरल मोमेनीन (अ.स.) 5 जमादिल अव्वल 6 हिजरी को मदीना मुनव्वरा में पैदा हुईं जैसा कि ‘‘ ज़ैनब अख़त अल हुसैन ’’ अल्लामा मोहम्मद हुसैन अदीब नजफ़े अशरफ़ पृष्ठ 14 ‘‘ बतालता करबला ’’ डा 0 बिन्ते अशाती अन्दलसी पृष्ठ 27 प्रकाशित बैरूत ‘‘ सिलसिलातुल ज़हब ’’ पृष्ठ 19 व किताबुल बहरे मसाएब और ख़साएसे ज़ैनबिया इब्ने मोहम्मद जाफ़र अल जज़ारी से ज़ाहिर है। मिस्टर ऐजाज़ुर्रहमान एम 0 ए 0 लाहौर ने किताब ‘‘ जै़नब ’’ के पृष्ठ 7 पर 5 हिजरी लिखा है जो मेरे नज़दीक सही नहीं। एक रवायत में माहे रजब व शाबान एक में माहे रमज़ान का हवाला भी मिलता है। अल्लामा महमूदुल हुसैन अदीब की इबारत का मतन यह है। ‘‘ फ़क़द वलदत अक़ीलह ज़ैनब फ़िल आम अल सादस लिल हिजरत अला माअ तफ़क़ा अलमोरेखून अलैह ज़ालेका यौमल ख़ामस मिन शहरे जमादिल अव्वल अलख़ ’’ हज़रत ज़ैनब (स अ व व ) जमादील अव्वल 6 हिजरी में पैदा हुईं। इस पर मुवर्रेख़ीन का इत्तेफ़ाक़ है। मेरे नज़दीक यही सही है। यही कुछ अल वक़ाएक़ व अल हवादिस जिल्द 1 पृष्ठ 113 प्रकाशित क़ुम 1341 ई 0 में भी है।

हज़रत ज़ैनब की विलादत पर हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) का ताअस्सुर वक्त़े विलादत के मुताअल्लिक़ जनाबे आक़ाई सय्यद नूरूद्दीन बिन आक़ाई सय्यद मोहम्मद जाफ़र अल जज़ाएरी ख़साएस ज़ैनबिया में तहरीर फ़रमाते हैं कि जब हज़रत ज़ैनब (स अ व व ) मुतावल्लिद हुईं और उसकी ख़बर हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) को पहुँची तो हुज़ूर जनाबे फ़ात्मा ज़हरा (स अ व व ) के घर तशरीफ़ लाए और फ़रमाया कि ऐ मेरी राहते जान , बच्ची को मेरे पास लाओ , जब बच्ची रसूल (स अ व व ) की खि़दमत में लाई गई तो आपने उसे सीने से लगाया और उसके रूख़सार पर रूख़सार रख कर बे पनाह गिरया किया यहां तक की आपकी रीशे मुबारक आंसुओं से तर हो गई। जनाबे सय्यदा ने अर्ज़ कि बाबा जान आपको ख़ुदा कभी न रूलाए , आप क्यों रो पड़े इरशाद हुआ कि ऐ जाने पदर , मेरी यह बच्ची तेरे बाद मुताअद्दि तकलीफ़ों और मुख़तलिफ़ मसाएब में मुबतिला होगी। जनाबे सय्यदा यह सुन कर बे इख़्तियार गिरया करने लगीं और उन्होंने पूछा कि इसके मसाएब पर गिरया करने का क्या सवाब होगा ? फ़रमाया वही सवाब होगा जो मेरे बेटे हुसैन के मसाएब के मुतासिर होने वाले का होगा इसके बाद आपने इस बच्ची का नाम ज़ैनब रखा।(इमाम मुबीन पृष्ठ 164 प्रकाशित लाहौर) बरवाएते ज़ैनब इबरानी लफ़्ज़ है जिसके मानी बहुत ज़्यादा रोने वाली हैं। एक रवायत में है कि यह लफ़्ज़ जै़न और अब से मुरक्कब है। यानी बाप की ज़ीनत फिर कसरते इस्तेमाल से ज़ैनब हो गया। एक रवायत में है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने यह नाम ब हुक्मे रब्बे जलील रखा था जो ब ज़रिए जिब्राईल पहुँचा था।

विलादते ज़ैनब पर अली बिन अबी तालिब (अ.स.) का ताअस्सुर

डा 0 बिन्तुल शातमी अन्दलिसी अपनी किताब ‘‘बतलतै करबला ज़ैनब बिन्ते अल ज़हरा ’’ प्रकाशित बैरूत के पृष्ठ 29 पर रक़म तराज़ हैं कि हज़रत ज़ैनब की विलादत पर जब जनाबे सलमाने फ़ारसी ने असद उल्लाह हज़रत अली (अ.स.) को मुबारक बाद दी तो आप रोने लगे और आपने उन हालात व मसाएब का तज़किरा फ़रमाया जिनसे जनाबे ज़ैनब बाद में दो चार होने वाली थीं।

हज़रत ज़ैनब की वफ़ात

मुवर्रेख़ीन का इत्तेफ़ाक़ है कि हज़रत ज़ैनब (स अ व व ) जब बचपन जवानी और बुढ़ापे की मंज़िल तय करने और वाक़े करबला के मराहिल से गुज़रने के बाद क़ैद ख़ाना ए शाम से छुट कर मदीने पहुँची तो आपने वाक़ेयाते करबला से अहले मदीना को आगाह किया और रोने पीटने , नौहा व मातम को अपना शग़ले ज़िन्दगी बना लिया। जिससे हुकूमत को शदीद ख़तरा ला हक़ हो गया। जिसके नतीजे में वाक़िये ‘‘ हर्रा ’’ अमल में आया। बिल आखि़र आले मोहम्मद (स अ व व ) को मदीने से निकाल दिया गया।

अबीदुल्लाह वालीए मदीना अल मतूफ़ी 277 अपनी किताब अख़बारूल ज़ैनबिया में लिखता है कि जनाबे ज़ैनब मदीने में अकसर मजलिसे अज़ा बरपा करती थीं और ख़ुद ही ज़ाकरी फ़रमाती थीं। उस वक़्त के हुक्कामे को रोना रूलाना गवारा न था कि वाक़िये करबला खुल्लम खुल्ला तौर पर बयान किया जाय। चुनान्चे उरवा बिन सईद अशदक़ वाली ए मदीना ने यज़ीद को लिखा कि मदीने में जनाबे ज़ैनब की मौजूदगी लोगों में हैजान पैदा कर रही है। उन्होंने और उनके साथियों ने तुझ से ख़ूने हुसैन (अ.स.) के इन्तेक़ाम की ठान ली है। यज़ीद ने इत्तेला पा कर फ़ौरन वाली ए मदीना को लिखा कि ज़ैनब और उनके साथियों को मुन्तशर कर दे और उनको मुख़तलिफ़ मुल्कों में भेज दे।(हयात अल ज़हरा)

डा 0 बिन्ते शातमी अंदलसी अपनी किताब ‘‘ बतलतए करबला ज़ैनब बिन्ते ज़हरा ’’ प्रकाशित बैरूत के पृष्ठ 152 में लिखती हैं किे हज़रत ज़ैनब वाक़िये करबला के बाद मदीने पहुँच कर यह चाहती थीं कि ज़िन्दगी के सारे बाक़ी दिन यहीं गुज़ारें लेकिन वह जो मसाएबे करबला बयान करती थीं वह बे इन्तेहा मोअस्सिर साबित हुआ और मदीने के बाशिन्दों पर इसका बे हद असर हुआ। ‘‘ फ़क़तब वलैहुम बिल मदीनता इला यज़ीद अन वुजूद हाबैन अहलिल मदीनता महीज अल ख़वातिर ’’ इन हालात से मुताअस्सिर हो कर वालीए मदीना ने यज़ीद को लिखा कि जनाबे ज़ैनब का मदीने में रहना हैजान पैदा कर रहा है। उनकी तक़रीरों से अहले मदीना में बग़ावत पैदा हो जाने का अन्देशा है। यज़ीद को जब वालीए मदीना का ख़त मिला तो उसने हुक्म दिया कि इन सब को मुमालिको अम्सार में मुन्तशिर कर दिया जाय। इसके हुक्म आने के बाद वालीए मदीना ने हज़रते ज़ैनब से कहला भेजा कि आप जहां मुनासिब समझें यहां से चली जायें। यह सुनना था कि हज़रते ज़ैनब को जलाल आ गया और कहा कि ‘‘ वल्लाह ला ख़रजन व अन अर यक़त दमायना ’’ ख़ुदा की क़सम हम हरगिज़ यहां से न जायेंगे चाहे हमारे ख़ून बहा दिये जायें। यह हाल देख कर ज़ैनब बिन्ते अक़ील बिन अबी तालिब ने अर्ज़ कि ऐ मेरी बहन ग़ुस्से से काम लेने का वक़्त नहीं है बेहतर यही है कि हम किसी और शहर में चले जायें। ‘‘ फ़ख़्रहत ज़ैनब मन मदीनतः जदहा अल रसूल सुम्मा लम हल मदीना बादे ज़ालेका इबादन ’’ फिर हज़रत ज़ैनब मदीना ए रसूल से निकल कर चली गईं। उसके बाद से फिर मदीने की शक्ल न देखी। वह वहां से निकल कर मिस्र पहुँची लेकिन वहां ज़ियादा दिन ठहर न सकीं। ‘‘ हकज़ा मुन्तकलेतः मन बलदाली बलद ला यतमईन बहा अल्ल अर्ज़ मकान ’’ इसी तरह वह ग़ैर मुतमईन हालात में परेशान शहर बा शहर फिरती रहीं और किसी एक जगह मकान में सुकूनत इख़्तेयार न कर सकीं। अल्लामा मोहम्मद अल हुसैन अल अदीब अल नजफ़ी लिखते हैं ‘‘ व क़ज़त अल अक़ीलता ज़ैनब हयातहाबाद अख़यहा मुन्तक़लेत मन मल्दाली बलद तकस अलन्नास हना व हनाक ज़ुल्म हाज़ा अल इन्सान इला रख़या अल इन्सान ’’ कि हज़रत ज़ैनब अपने भाई की शहादत के बाद सुकून से न रह सकीं वह एक शहर से दूसरे शहर में सर गरदां फिरती रहीं और हर जगह ज़ुल्मे यज़ीद को बयान करती रहीं और हक़ व बातिल की वज़ाहत फ़रमाती रहीं और शहादते हुसैन (अ.स.) पर तफ़सीली रौशनी डालती रहीं।(ज़ैनब अख्तल हुसैन पृष्ठ 44 ) यहां तक कि आप शाम पहुँची और वहां क़याम किया क्यों कि बा रवायते आपके शौहर अब्दुल्लाह बिन जाफ़रे तय्यार की वहां जायदाद थी वहीं आपका इन्तेक़ाल ब रवायते अख़बारूल ज़ैनबिया व हयात अल ज़हरा रोज़े शम्बा इतवार की रात 14 रजब 62 हिजरी को हो गया। यही कुछ किताब ‘‘ बतलतए करबला ’’ के पृष्ठ 155 में है। बा रवाएते ख़साएसे ज़ैनबिया क़ैदे शाम से रिहाई के चार महीने बाद उम्मे कुलसूम का इन्तेक़ाल हुआ और उसके दो महीने बीस दिन बाद हज़रते ज़ैनब की वफ़ात हुई। उस वक़्त आपकी उम्र 55 साल की थी। आपकी वफ़ात या शहादत के मुताअल्लिक़ मशहूर है कि एक दिन आप उस बाग़ में तशरीफ़ ले गईं जिसके एक दरख़्त में हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का सर टांगा गया था। इस बाग़ को देख कर आप बेचैन हो गईं। हज़रत ज़ुहूर जारज पूरी मुक़ीम लाहौर लिखते हैं।

करवां शाम की सरहद में जो पहुँचा सरे शाम

मुत्तसिल शहर से था बाग़ , किया उसमें क़याम

देख कर बाग़ को , रोने लगी हमशीरे इमाम

वाक़ेया पहली असीरी का जो याद आया तमाम

हाल तग़ईर हुआ , फ़ात्मा की जाई का

शाम में लटका हुआ देखा था सर भाई का

बिन्ते हैदर गई , रोती हुई नज़दीके शजर

हाथ उठा कर यह कहा , ऐ शजरे बर आवर

तेरा एहसान है , यह बिन्ते अली के सर पर

तेरी शाख़ों से बंधा था , मेरे माजाये का सर

ऐ शजर तुझको ख़बर है कि वह किस का था

मालिके बाग़े जिनां , ताजे सरे तूबा था

रो रही थी यह बयां कर के जो वह दुख पाई

बाग़बां बाग़ में था , एक शकी़ ए अज़ली

बेलचा लेके चला , दुश्मने औलादे नबी

सर पे इस ज़ोर से मारा , ज़मीं कांप गई

सर के टुकड़े हुए रोई न पुकारी ज़ैनब

ख़ाक पर गिर के सुए ख़ुल्द सिधारीं ज़ैनब

हज़रत ज़ैनब का मदफ़न

अल्लामा मोहम्मद अल हुसैन अल अदीब अल नजफ़ी तहरीर फ़रमाते हैं। ‘‘ क़द अख़तलफ़ अल मुरखून फ़ी महल व फ़नहा बैनल मदीनता वश शाम व मिस्र व अली बेमा यग़लब अन तन वल तहक़ीक़ अलैहा अन्नहा मदफ़नता फ़िश शाम व मरक़दहा मज़ार अला लौफ़ मिनल मुसलेमीन फ़ी कुल आम ’’ ‘‘ मुवर्रेख़ीन उनके मदफ़न यानी दफ़्न की जगह में इख़्तेलाफ़ किया है कि आया मदीना है या शाम या मिस्र लेकिन तहक़ीक़ यह है कि वह शाम में दफ़्न हुई हैं और उनके मरक़दे अक़दस और मज़ारे मुक़द्दस की हज़ारों मुसलमान अक़ीदत मन्द हर साल ज़्यारत किया करते हैं। ’’(ज़ैनब अख़्तल हुसैन पृष्ठ 50 नबा नजफ़े अशरफ़) यही कुछ मोहम्मद अब्बास एम 0 ए 0 जोआईट एडीटर पीसा अख़बार ने अपनी किताब ‘‘ मशहिरे निसवां ’’ प्रकाशित लाहौर 1902 ई 0 के पृष्ठ 621 मे और मिया एजाज़ुल रहमान एम 0 ए 0 ने अपनी किताब ‘‘ ज़ैनब रज़ी अल्लाह अन्हा ’’ के पृष्ठ 81 प्रकाशित लाहौर 1958 ई 0 में लिखा है।

शाम में जहां जनाबे ज़ैनब का मज़ारे मुक़द्दस है उसे ‘‘ ज़ैनबिया ’’ कहते हैं। नाचीज़ को शरफ़े ज़ियारत 1966 ई 0 में नसीब हुआ।

हज़रत उम्मे कुलसूम की विलादत ,वफ़ात और उनका मदफ़न

तारीख़ के औराक़ शाहीद हैं कि हज़रते उम्मे कुलसूम अपनी बहन हज़रते ज़ैनब के कारनामों में बराबर की शरीक थीं। वह तारीख़ में अपनी बहन के दोश ब दोश नज़र आती हैं वह मदीने की ज़िन्दगी , करबला के वाक़ेयात , दोबारा गिरफ़्तारी और मदीने से अख़राज सब में हज़रते ज़ैनब के साथ रहीं। उनकी विलादत 9 हिजरी में हुई। उनका अक़्द 1. मोहम्मद बिन जाफ़र बिन अबी तालिब से हुआ। उनकी वफ़ात हज़रत ज़ैनब से दो महीने 20 दिन पहले हुईं। वह शाम में दफ़्न हैं।(ख़साएसे ज़ैनबिया)

(मोअज़्ज़म अल बलदान याकूत हम्वी जिल्द 4 पृष्ठ 216 ) उनका मज़ार और सकीना बिन्तुल हुसन (अ.स.) का मज़ार शाम में एक ही इमारत में वाक़े है। उनकी उम्र 51 साल की थी। इनकी औलाद का तारीख़ में पता नहीं मिलता। अलबत्ता हज़रते ज़ैनब के अब्दुल्लाह बिन जाफ़रे तय्यार से चार फ़रज़न्द अली , मोहम्मद , औन , अब्बास और एक दुख़्तर उम्मे कुलसूम का ज़िक्र मिलता हैं।(ज़ैनब अख़्तल हुसैन पृष्ठ 55 व सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 8 पृष्ठ 558 )

हाशिया 1. हज़रत उम्मे कुलसूम के साथ उमर बिन ख़त्ताब के अक़्द का फ़साना तौहीने आले मोहम्मद (स अ व व) का एक दिल सोज़ बाब है। इसकी रद के लिये मुलाहेज़ा हों मुक़द्देमा अहयाउल ममात अल्लामा जलालउद्दीन सियूती मतबूआ लाहौर।

18- आपकाइरशादेगिरामी

(उलमा के दरमियान इख़तेलाफ़े फ़तवा के बारे में और इसी में अहल राय की मज़म्मत और क़ुरआन की मरजईयत का ज़िक्र किया गया है)

मज़म्मत अहल राय- उन लोगों का आलम यह है के एक शख़्स के पस किसी मसले का फ़ैसला आता है तो वह अपनी राय से फ़ैसला कर देता है और फ़िर यही क़ज़िया बअय्यना दूसरे के पास जाता है तो वह उसके खि़लाफ़ फ़ैसला कर देता है। इसके बाद तमाम क़ज़ात इस हाकिम के पास जमा होते हैं जिसने इन्हें क़ाज़ी बनाया है तो वह सबकी राय से ताईद कर देता है जबके सबका ख़ुदा एक, नबी एक और किताब एक है तो क्या ख़ुदा ही ने इन्हें इख़्तेलाफ़ का हुक्म दिया है और यह इसी की इताअत कर रहे हैं या उसने उन्हें इख़्तेलाफ़ से मना किया है मगर फ़िर भी इसकी मुख़ालेफ़त कर रहे हैं? या ख़ुदा ने दीने नाक़िस नाज़िल किया है और उनसे इसकी तकमील के लिये मदद मांगी है या यह सब ख़ुद इसकी ख़ुदाई ही में शरीक हैं और इन्हें यह हक़ हासिल है के यह बात कहें और ख़ुदा का फ़र्ज़ है के वह क़ुबूल करे या ख़ुदा ने दीने कामिल नाज़िल किया था और रसूले अकरम (स) ने इसकी तबलीग़ और अदायगी में कोताही कर दी है, जबके इसका एलान है के हमने किताब में किसी तरह की कोताही नहीं की है और इसमें हर शै का बयान मौजूद है -2-। और यह भी बता दिया है के इसका एक हिस्सा दूसरे की तस्दीक़ करता है और इसमें किसी तरह का इख़्तेलाफ़ नहीं है। यह क़ुरआन ग़ैर ख़ुदा की तरफ़ से होता तो इसमें बेपनाह इख़्तेलाफ़ात होता। यह क़ुरआन वह है जिसका ज़ाहिर ख़ूबसूरत और बातिन अमीक़ और गहराए। इसके अजाएब फ़ना होने वाले नहीं हैं और तारीकियों का ख़ात्मा इसके अलावा और किसी कलाम से नहीं हो सकता है।

19- आपका इरशादे गिरामी

(जिसे उस वक़्त फ़रमाया जब मिम्बरे कूफ़े पर ख़ुत्बा दे रहे थे और अशअस बिन क़ैस ने टोक दिया के यह बयान आप ख़ुद अपने खि़लाफ़ दे रहे हैं। आपने पहले निगाहों को नीचा करके सुकूत फ़रमाया और फिर पुरजलाल अन्दाज़ से फ़रमाया)

तुझे क्या ख़बर के कौन सी बात मेरे मवाफ़िक़ है और कौन सी मेरे खि़लाफ़ है। तुझ पर ख़ुदा और तमाम लाअनत करने वालों की लानत, तू सुख़न बाफ़ और ताने बाने दुरूस्त करने वाले का फ़रज़न्द है। तू मुनाफ़िक़ है और तेरा बाप खुला हुआ काफ़िर था। ख़ुदा की क़सम तू एक मरतबा कुफ्ऱ का क़ैदी बना और दूसरी मरतबा इस्लाम का। लेकिन न तेरा माल काम आया न हसब। और जो शख़्स भी अपनी क़ौम की तरफ़ तलवार को रास्ता बताएगा और मौत को खींच कर लाएगा वह इस बात का हक़दार है के क़रीब वाले उससे नफ़रत करें और दूर वाले इस पर भरोसा न करें।

सय्यद रज़ी - - इमाम (अ) का मक़सद यह है के अशअत बिन क़ैस एक मरतबा दौरे कुफ्ऱ में क़ैदी बना था और दूसरी मरतबा इस्लाम लाने के बाद। तलवार की रहनुमाई का मक़सद यह है के जब यमामा में ख़ालिद बिन वलीद ने चढ़ाई की तो उसने अपनी क़ौम से ग़द्दारी की और सबको ख़ालिद की तलवार के हवाले कर दिया जिसके बाद इसका लक़ब “उरफ़ुल नार”हो गया जो उस दौर में हर ग़द्दार का लक़ब हुआ करता था।

20- आपका इरशादे गिरामी

(जिसमें ग़फ़लत से बेदार किया गया है और ख़ुदा की तरफ़ दौड़कर आने की दावत दी गई है।)

यक़ीनन जिन हालात को तुमसे पहले मरने वालों ने देख लिया है अगर तुम भी देख लेते तो परेशान व मुज़तरिब हो जाते और बात सुनने और इताअत करने के लिये तैयार हो जाते लेकिन मुश्किल यह है के अभी वह चीज़ तुम्हारे लिये पस हिजाब हैं और अनक़रीब यह परदा उठने वाला है। बेशक तुम्हें सब कुछ दिखाया जा चुका है अगर तुम निगाह बीना रखते हो और सब कुछ सुनाया जा चुका है अगर तुम गोश शनवार रखते हो और तुम्हें हिदायत दी जा चुकी है अगर तुम हिदायत हासिल करना चाहो और मैं बिल्कुल बरहक़ कह रहा हूँ के अनक़रीब तुम्हारे सामने खुल कर आ चुकी हैं और तुम्हें इस क़दर डराया जा चुका है जो बक़द्र काफ़ी है और ज़ाहिर है के आसमानी फ़रिश्तों के बाद इलाही पैग़ाम को इन्सान ही पहुंचाने वाला है।

21- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जो एक कलमा है लेकिन तमाम मोअज़त व हिकमत को अपने अन्दर समेटे हुए है)

बेशक मन्ज़िले मक़सूद तुम्हारे सामने है और साअते मौत तुम्हारे तआक़ब में है और तुम्हें अपने साथ लेकर चल रही है। अपना बोझ हल्का कर लो -1- ताके पहले वालों से मुलहक़ हो जाओ के अभी तुम्हारे साबेक़ीन से तुम्हारा इन्तेज़ार कराया जा रहा है।

सय्यद रज़ी- - इस कलाम का कलामे ख़ुदा व कलामे रसूल (स) के बाद किसी कलाम के साथ रख दिया जाए तो इसका पल्ला भारी ही रहेगा और यह सबसे आगे निकल जाएगा। “तख़फ़फ़वा तलहक़वा”से ज्यादा मुख़्तसर और बलीग़ कलाम तो कभी देखा और सुना ही नहीं गया है। इस कलमे में किस क़द्र गहराई पाई जाती है और इस हिकमत का चश्मा किस क़द्र शफ़फाफ़ है। हमने किताबे ख़साएस में इसकी क़द्र व क़ीमत और अज़मत व शराफ़त पर मुकम्मल तब्सिरा किया है।

(( इसमें कोई शक नहीं है के गुनाह इन्सानी ज़िन्दगी के लिए एक बोझ की हैसियत रखता है और यही बोझ है जो इन्सान को आगे नहीं बढ़ने देता है और वह इसी दुनियादारी में मुब्तिला रह जाता है वरना इन्सान का बोझ हल्का हो जाए तो तेज़ क़दम बढ़ाकर उन साबेक़ीन से मुलहक़ हो सकता है जो नेकियों की तरफ़ सबक़त करते हुए बलन्दतरीन मन्ज़िलों तक पहुंच गये हैं। अमीरूल मोमेनीन (अ) की दी हुई यह मिसाल वह है जिसका तजुरबा हर इन्सान की ज़िन्दगी में बराबर सामने आता रहता है के क़ाफ़िले में जिसका बोझ ज़्यादा होता है वह पीछे रह जाता है और जिसका बोझ हल्का होता है वह आगे बढ़ जाता है। सिर्फ़ मुश्किल यह है के इन्सान को गुनाहों के बोझ होने का एहसास नहीं है। शायर ने क्या ख़ुब कहा है- चलने न दिया बारे गुनह न पैदल ताबूत में कान्धों पे सवार आया हूँ। ))

22- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जब आपको ख़बर दी गई के कुछ लोगों ने आपकी बैअत तोड़ दी है)

आगाह हो जाओ के शैतान ने अपने गिरोह को भड़काना शुरू कर दिया है और फ़ौज को जमा कर लिया है ताके ज़ुल्म अपनी मन्ज़िल पर पलट आए और बातिल अपने मरकज़ की तरफ़ वापस आ जाए। ख़ुदा की क़सम उन लोगों ने मुझ पर कोई सच्चा इल्ज़ाम लगाया है और न मेरे और अपने दरम्यान कोई इन्साफ़ किया है। यह मुझसे उस हक़ का मुतालबा कर रहे हैं जो ख़ुद इन्होंने नज़रअन्दाज़ किया है और उस ख़ून का तक़ाज़ा कर रहे हैं जो ख़ुद इन्होंने बहाया है। फ़िर अगर मैं इनके साथ शरीक था तो इनका भी तो एक हिस्सा था और वह तन्हा मुजरिम थे तो ज़िम्मेदारी भी उन्हीं पर है। बेशक इनकी अज़ीमतरीन दलील भी इन्हीं के खि़लाफ़ है। यह उस माँ से दूध पीना चाहते हैं जिसका दूध ख़त्म हो चुका है और उस बिदअत को ज़िन्दा करना चाहते हैं जो मर चुकी है। हाए किस क़दर नामुराद यह जंग का दाई है। कौन पुकार रहा है और किस मक़सद के लिये इसकी बात सुनी जा रही है? मैं इस बात से ख़ुश हू के परवरदिगार की हुज्जत इनपर तमाम हो चुकी है और वह इनके हालात से बाख़बर है।

अब अगर इन लोगों ने हक़ का इन्कार किया है तो मैं इन्हें तलवार की बाढ़ अता करूंगा के वही बातिल की बीमारी से शिफ़ा देने वाली और हक़ की वाक़ई मददगार है। हैरतअंगेज़ बात है के यह लोग मुझे नेज़ाबाज़ी के मैदान में निकलने और तलवार की जंग सहने की दावत दे रहे हैं- रोने वालियां इनके ग़म में रोएं। मुझे तो कभी भी जंग से ख़ौफ़ज़दा नहीं किया जा सका है और न मैं शमशीरज़नी से मरऊब हुआ हूँ। मैं तो अपने परवरदिगार की तरफ़ से मन्ज़िले यक़ीन पर हँ और मुझे दीन के बारे में किसी तरह कोई शक नहीं है।

((तारीख़ का मसला है के उस्मान ने अपने दौरे हुकूमत में अपने पेशरौ तमाम हुक्काम के खि़लाफ़ अक़रबा परस्ती और बैतुलमाल की बे-बुनियाद तक़सीम का बाज़ार गर्म कर दिया था और यही बात उनके क़त्ल का बुनियादी सबब बन गयी। ज़ाहिर है के उनके क़त्ल के बाद यह बिदअत भी मुरदा हो चुकी थी लेकिन तलहा ने अमीरूलमोमेनीन (अ) से बसरा की गवरनरी और ज़ुबैर ने कूफ़े की गवरनरी का मतालबा करके फिर इस बिदअत को ज़िन्दा करना चाहा जो एक इमामे मासूम (अ) किसी क़ीमत पर बरदाश्त नहीं कर सकता है चाहे उसकी कितनी ही बड़ी क़ीमत क्यों न अदा करना पड़े।

इब्ने अबील हदीद के नज़दीक दाई से मुराद तलहा, ज़ुबैर और आईशा हैं जिन्होंने आप (अ) के खि़लाफ़ जंग की आग भड़काई थी लेकिन अन्जाम कार सबको नाकाम और नामुराद होना पड़ा और कोई नतीजा हाथ न आया जिसकी तरफ़ आपने तहक़ीर आमेज़ लहजे में इशारा किया है और साफ़ वाज़ेअ कर दिया है के मैं जंग से डरने वाला नहीं हूँ, तलवार मेरा तकिया है और यक़ीन मेरा सहारा। इसके बाद मुझे किस चीज़ से ख़ौफ़ज़दा किया जा सकता है।))

23- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें फ़ोक़रा को ज़ोहद और सरमायेदारों को शफ़क़त की हिदायत दी गई है)

अम्मा बाद!- इन्सान के मक़सूम में कम या ज़्यादा जो कुछ भी होता है उसका अम्र आसमान से ज़मीन की तरफ़ बारिश के क़तरात की तरह नाज़िल होता है। लेहाज़ा अगर कोई शख़्स अपने भाई के पास अहल व माल या नफ़्स की फ़रावानी देखे तो इसके लिये फ़ितना न बने।

के मर्दे मुस्लिम के किरदार में अगर ऐसी पस्ती नहीं है जिसके ज़ाहिर हो जाने के बाद जब भी उसका ज़िक्र किया जाए उसकी निगाह शर्म से झुक जाए और पस्त लोगों के हौसले उससे बलन्द हो जाएं तो इसकी मिसाल उस कामयाब जवारी की है जो जुए के तीरों का पाँसा फेंक कर पहले ही मरहले में कामयाबी का इन्तज़ार करता है जिससे फ़ायदा हासिल हो और गुज़िश्ता फसाद की तलाफ़ी हो जाए।

यही हाल उस मर्दे मुसलमान का है जिसका दामन ख़यानत से पाक हो के वह हमेशा परवरदिगार से दो में से एक नेकी का उम्मीदवार रहता है या दाई अजल आजाए तो जो कुछ इसकी बारगाह में है वह इस दुनिया से कहीं ज़्यादा बेहतर है या रिज़क़े ख़ुदा हासिल हो जाए तो वह साहबे अहल व माल भी होगा और इसका दीन और वक़ार भी बरक़रार रहेगा। याद रखो माल और औलाद दुनिया की खेती हैं और अमले स्वालेह आख़ेरत की खेती है और कभी भी परवररिगार बाज़ अक़वाम के लिये दोनों को जमा कर देता है। लेहाज़ा ख़ुदा से इस तरह डरो जिस तरह उसने डरने का हुक्म दिया है और इसका ख़ौफ़ इस तरह पैदा करो के कुछ मारेफ़त न करना पड़े, अमल करो तो दिखाने सुनाने से अलग रखो के जो शख़्स भी ग़ैरे ख़ुदा के वास्ते अमल करता है ख़ुदा उसी शख़्स के हवाले कर देता है। मैं परवरदिगार से शहीदों की मन्ज़िल, नेक बन्दों की सोहबत और अम्बियाए कराम की रिफ़ाक़त की दुआ करता हूं।

ऐ लोगो! याद रखो के कोई शख़्स किसी क़द्र भी साहबे माल क्यों न हो जाए, अपने क़बीले और उन लोगों के हाथ और ज़बान के ज़रिये दफ़ाअ करने से बेनियाज़ नहीं हो सकता है। यह लोग इन्सान के बेहतरीन मुहाफ़िज़ होते हैं। इसकी परागन्दगी के दूर करने वाले और मुसीबत के नज़ूल के वक़्त इसके हाल पर मेहरबान होते हैं। परवरदिगार बन्दे के लिए जो ज़िक्रे ख़ैर लोगों के दरमियान क़रार देता है वह उस माल से कहीं ज़्यादा बेहतर होता है जिसके वारिस दूसरे अफ़राद हो जाते हैं।

((अगरचे इस्लाम ने बज़ाहिर फ़क़ीर को ग़नी के माल में या रिश्तेदार को रिश्तेदार के माल में शरीक नहीं बनाया है लेकिन उसका यह फ़ैसला के तमाम अमलाके दुनिया का मालिके हक़ीक़ी परवरदिगार है और इसके एतबार से तमाम बन्दे एक जैसे हैं। सब उसके बन्दे हैं और सबके रिज़्क़ की ज़िम्मादारी इसी की ज़ाते अक़दस पर है। इस अम्र की अलामत है के उसने हर ग़नी के माल में एक हिस्सा फ़क़ीरों और मोहताजों का ज़रूर क़रार दिया है और इसे जबरन वापस नहीं लिया है बल्के ख़ुद ग़नी को इनफ़ाक़ का हुक्म दिया है ताके माल इसके इख़्तेयार से फ़क़ीर तक जाए। इस तरह वह आखि़रत में अज्र व सवाब का हक़दार हो जाएगा और दुनिया में फ़ोक़रा के दिल में इसकी जगह बन जायेगी जो साहेबाने ईमान का शरफ़ है के परवरदिगार लोगों के दिलों में इनकी मोहब्बत क़रार दे देता है। फिर इस इनफ़ाक में किसी तरह का नुक़सान भी नहीं है। माल यूँ ही बाक़ी रह गया तो भी दूसरों ही के काम आएगा तो क्यों न ऐसा हो के उसी के काम आ जाए जिसके ज़ोरे बाज़ू ने जमा किया है और फिर वह जमाअत भी हाथ आ जाए जो किसी वक़्त भी काम आ सकती है। जिगर जिगर होता है और दिगर दिगर होता है।))

आगाह हो जाओ के तुमसे कोई शख़्स भी अपने अक़रबा को मोहताज देखकर इस माल से हाजत बरआरी करने से गुरेज़ न करे जो बाक़ी रह जाए तो बढ़ नहीं जाएगा और ख़र्च कर दिया जाए कम नहीं हो जाएगा। इसलिये जो शख़्स भी अपने अशीरा और क़बीला से अपना हाथ रोक लेता है तो इस क़बीले से एक हाथ रूक जाता है और ख़ुद इसके लिये बेशुमार हाथ रूक जाते हैं। और जिसके मिज़ाज में नरमी होती है वह क़ौम की मोहब्बत को हमेशा के लिये हासिल कर लेता है।

सय्यद रज़ी- इस मक़ाम पर ग़फ़ीरा कसरत के मानी में है जिस तरह जमा कसीर को जमा कशीर कहा जाता है। बाज़ रवायत में ग़फ़ीरा के बजाए इफ़वह है जो मुन्तख़ब और पसन्दीदा शै के मानी है, इस्तेमाल होता है। “अफ़वतिल तआम”पसन्दीदा खाने को कहा जाता है और इमाम अलैहिस्सलाम ने इस मक़ाम पर बेहतरीन नुक्ते की तरफ़ इशारा फ़रमाया है के अगर किसी ने अपना हाथ अशीरा से खींच लिया तो गोया के एक हाथ कम हो गया। लेकिन जब इसे इनकी नुसरत और इमदाद की ज़रूरत होगी और वह हाथ खींच लेंेगे और उसकी आवाज़ पर लब्बैक नहीं कहेंगे तो बहुत से बढ़ने वाले हाथों और उठने वाले क़दमों से महरूम हो जाएगा।

24-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें इताअते ख़ुदा की दावत दी गई है)

मेरी जान की क़सम। मैं हक़ की मुख़ालफ़त करने वालों और गुमराही में बैठने वालों से जेहाद करने में न कोई नरमी कर सकता हूँ और न सुस्ती। अल्लाह के बन्दों! अल्लाह से डरो और उसके ग़ज़ब से फ़रार करके उसकी रहमत में पनाह लो। उस रास्ते पर चलो जो उसने बना दिया है और उन एहकाम पर अमल करो जिन्हें तुम से मरबूत कर दिया गया है। इसके बाद अली (अ) तुम्हारी कामयाबी का आखि़रत में बहरहाल ज़िम्मेदार है चाहे दुनिया में हासिल न हो सके।((अमीरूल मोमेनीन (अ) की खि़लाफ़त का जाएज़ा लिया जाए तो मसाएब व मुश्किलात में सरकारे दो आलम (स) के दौरे रिसालत से कुछ कम नहीं है। आपने तेरा साल मक्के में मुसीबते बरदाश्त कीं और दस साल मदीने में जंगों का मुक़ाबला करते रहे और यही हाल मौलाए कायनात (अ) का रहा। ज़िलहिज्जा35 हि0 में खि़लाफ़त मिली और माहे मुबारक 40 हि0 में शहीद हो गए। कुल दौरे हुकूमत 4 साल 9 माह 2 दिन रहा और इसमें भी तीन बड़े-बड़े मारके हुए और छोटी-छोटी झड़पें मुसलसल होती रहीं। जहां इलाक़ों पर क़ब्ज़ा किया जा रहा था और चाहने वालों को अज़ीयत दी जा रही थी। माविया ने अम्र व आस के मश्विरे से बुसर बिन अबी अरताह को तलाश कर लिया था और इस जल्लाद को मुतलक़ुल अनान बनाकर छोड़ दिया था। ज़ाहिर है के “पागल कुत्ते”को आज़ाद छोड़ दिया जाए तो शहरवालों का क्या हाल होगा और इलाक़े के अम्नो अमान में क्या बाक़ी रह जाएगा।))

(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

25- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

जब आपको मुसलसल ख़बर दी गई के मआविया के साथियों ने शहरों पर क़ब्ज़ा कर लिया है और आपके दो आमिले यमन अब्दुल्लाह बिन अब्बास और सईद बिन नमरान, बुसर बिन अबी अरताह के मज़ालिम से परेशान होकर आपकी खि़दमत में आ गए। तो आपने असहाब की कोताही जेहाद से बददिल होकर मिम्बर पर खड़े होकर यह ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया। अब यही कूफ़ा है जिसका बस्त व कशाद मेरे हाथ में है। ऐ कूफ़ा अगर तू ऐसा ही रहा और यूँ ही तेरी आन्धियाँ चलती रहीं तो ख़ुदा तेरा बुरा करेगा। (इसके बाद शाएर के “शेर की तमसील बयान फ़रमाई) ऐ अमरो! तेरे अच्छे बाप की क़सम, मुझे तो उस बरतन की तह में लगी हुई चिकनाई ही मिली है। इसके बाद फ़रमाया, मुझे ख़बर दी गई है के बुसर यमन तक आ गया है और ख़ुदा की क़सम मेरा ख़याल यह है के अनक़रीब यह लोग तुमसे इक़तेदार को छीन लेंगे। इसलिये यह अपने बातिल पर मुत्तहिद हैं और तुम अपने हक़ पर मुत्तहिद नहीं हो। यह अपने पेशवा की बातिल में इताअत करते हैं और तुम अपने इमाम की हक़ में भी नाफ़रमानी करते हो। यह अपने मालिक की अमानत उसके हवाले कर देते हैं और तुम ख़यानत करते हो। यह अपने शहरों में अमन व अमान रखते हैं और तुम अपने शहर में भी फ़साद करते हो।

((ज़रा जाए ख़त की क़ाबलीयत मुलाहेज़ा फ़रमाएं- फ़रमाते हैं के कूफ़े वाले इस लिये नहीं इताअत करते थे के इनकी निगाह तनक़ीदी और बसीरत आमेज़ थी और शाम ववाले अहमक़ और जाहिल थे इसलिये इताअत कर लेते थे। इन क़ाबेलीयत मआब से कौन दरयाफ़्त करे के कूफ़ावालों ने मौलाए कायनात (अ) के किस ऐ़ब की बिना पर इताअत छोड़ दी थी और किस तनक़ीदी नज़र से आप की ज़िन्दगी को देख लिया था। हक़ीक़ते अम्र यह है के कूफ़े व शाम दोनों ज़मीर फ़रोश थे। शाम वालों को ख़रीदार मिल गया था और कूफ़े में हज़रत अली (अ) ने यह तरीक़ाएकार इख़्तेयार कर लिया था के मुँह मांगी क़ीमत नहीं अता की थी लेहाज़ा बग़ावत का होना नागुज़ीर था और यह कोई हैरतअंगेज़ अम्र नहीं है।))

मैं तो तुम में से किसी को लकड़ी के प्याले का भी अमीन बनाऊं तो यह ख़ौफ़ रहेगा के वह कुन्डा लेकर भाग जाएगा। -1- ख़ुदाया मैं इनसे तंग आ गया हूँ और यह मुझसे तंग आ गए हैं। मैं इनसे उकता गया हूँ और यह मुझसे उकता गये हैं। लेहाज़ा मुझे इनसे बेहतर क़ौम इनायत कर दे और इन्हें मुझसे “बदतर”हाकिम दे दे और इनके दिलों को यूँ पिघला दे जिस तरह पानी में नमक भिगोया जाता है। ख़ुदा की क़सम मैं यह पसन्द करता हूँ के इन सब के बदले मुझे बनी फ़रास बिन ग़नम के हरफ़ एक हजार शाही मिल जाएं, जिनके बारे में इनके शाएर ने कहा थाः- “इस वक़्त में अगर तू इन्हें आवाज़ देगा तो ऐसे शहसवार सामने आएंगे जिनकी तेज़ रफ़्तारी गर्मियों के बादलों से ज़्यादा सरीहतर होगी”

सय्यद रज़ी - अरमिया रमी की जमा है जिसके मानी बादल हैं और हमीम गर्मी के ज़माने के मानी में हैं, शायर ने गर्मी के बादलों का ज़िक्र इसलिये किया है कि इनकी रफ़तार तेज़ औश्र सुबकतर होती है इसलिये के इनमें पानी नहीं होता है। बादल की रफ़तार उस वक़्त सुस्त हो जाती है जब उसमें पानी भर जाता है और यह आम तौर से सरदी के ज़माने में होता है। शायर ने अपनी क़ौम को आवाज़ पर लब्बैक कहने और मज़लूम की फ़रयाद रसी में सुबक रफ़तारी का ज़िक्र किया है जिसकी दलील “लौ दऔतो”है।

26- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें बासत से पहले अरब की हालत का ज़िक्र किया गया है और फिर अपनी बैअत से पहले के हालात का तज़किरा किया गया है)

यक़ीनन अल्लाह ने हज़रत मोहम्मद (स) को आलमीन के अज़ाबे इलाही से डराने वाला और तन्ज़ील का अमानतदार बनाकर उस वक़्त भेजा है जब तुम गिरोहे अरब बदतरीन दीन के मालिक और बदतरीन इलाक़े के रहने वाले थे। न हमवार पत्थरों और ज़हरीले सांपों के दरमियान बूदोबाश रखते थे। गन्दा पानी पीते थे और ग़लीज़ ग़िज़ा इस्तेमाल करते थे। आपस में एक दूसरे का ख़ून बहाते थे और क़राबतदारों से बेतआल्लुक़ी रखते थे। बुत तुम्हारे दरम्यान नसब थे और गुनाह तुम्हें घेरे हुए थे।

(बैयत के हंगाम)

मैंने देखा के सिवाए मेरे घरवालों के कोई मेरा मददगार नहीं है तो मैंने उन्हें मौत के मुंह में दे देने से गुरेज़ किया और इस हाल में चश्मपोशी की के आंखों में ख़स्द ख़ाशाक था। मैंने ग़म व ग़ुस्से के घूंट पिये और गुलू गिरफ्तगी और हन्ज़ाल से ज़्यादा तल्क़ हालात पर सब्र किया।

याद रखो! अमर व आस ने माविया की बैयत उस वक़्त तक नहीं की जब तक के बैयत की क़ीमत नहीं तय कर ली। ख़ुदा ने चाहा तो बैयत करने वाले का सौदा कामयाब न होगा और बैयत लेने वाले को भी सिर्फ़ रूसवाई ही नसीब होगी। लेहाज़ा जंग का सामान संभाल लो और इसके असबाब मुहैया कर लो के इसके शोले भड़क उट्ठे हैं और लपटें बलन्द हो चुकी हैं और देखो सब्र को अपना शआर बना लो के यह नुसरत व कामरानी का बेहतरीन ज़रिया है।

((किसी क़ौम के लिये डूब मरने की बात है के उसका मासूम रहनुमा उससे इस क़द्र आजिज़ आ जाए के उसके हक़ में दरपरदा बद्दुआ करने के लिये तैयार हो जाए और उसे दुशमन के हाथ फ़रोख़्त कर देने पर आमादा हो जाए।

अहले कूफ़ा की बदबख़्ती की आखि़री मन्ज़िल थी के वह अपने मासूम रहनुमा को भी तहफ़्फ़ुज़ फ़राहम न कर सके और इनके दरम्यान इनका रहनुमा ऐन हालते सजदा में शहीद कर दिया गया। कूफ़े का क़यास मदीने के हालात पर नहीं किया जा सकता है। मदीने ने अपने हाकिम का साथ नहीं दिया इस लिये के वह ख़ुद इसके हरकात से आजिज़ थे और मुसलसल एहतेजाज कर चुके थे लेकिन कूफ़े में ऐसा कुछ नहीं था या वाजे़अ लफ़्ज़ों में यूँ कहा जा सकता है के मदीने के हुक्काम के क़ातिल अपने अमल पर मुतमईन थे और उन्हें किसी तरह की शर्मिन्दगी का एहसास नहीं था लेकिन कूफ़े में जब अमीरूल मोमेनीन (अ) ने अपने क़ातिल से दरयाफ़त किया के क्या मैं तेरा कोई बुरा इमाम था? तो उसने बरजस्ता यही जवाब दिया के आप किसी जहन्नुम में जाने वाले को रोक नहीं सकते हैं। गोया मदीने से कूफ़े तक के हालात से यह बात बिल्कुल वाज़ेअ हो जाती है के मदीने के मक़तूल अपने ज़ुल्म के हाथों क़त्ल हुए थे और कूफ़े का शहीद अपने अद्लो इन्साफ़ की बुनियाद पर शहीद हुआ है और ऐसे ही शहीद को यह कहने का हक़ है के “फ़ुज़्तो बे रब्बिल काबा” (परवरदिगारे काबा की क़सम मैं कामयाब हो गया)))

27-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जो उस वक़्त इरशाद फ़रमाया जब आपको ख़बर मिली के माविया के लशकर ने अनबार पर हमला कर दिया है। इस ख़ुतबे में जेहाद की फ़ज़ीलत का ज़िक्र करके लोगों को जंग पर आमादा किया गया है और अपनी जंगी महारत का तज़किरा करके नाफ़रमानी की ज़िम्मेदारी लशकरवालों पर डाली गई है)

अम्मा बाद! जेहाद जन्नत के दरवाज़ों में से एक दरवाज़ा है जिसे परवरदिगार ने अपने मख़सूस औलिया के लिये खोला है। यह तक़वा का लिबास और अल्लाह की महफ़ूज़ व मुस्तहकम ज़िरह और मज़बूत सिपर है। जिसने एराज़ करते हुए नज़रअन्दाज़ कर दिया उसे अल्लाह ज़िल्लत का लिबास पिन्हा देगा और उस पर मुसीबत हावी हो जाएगी और उसे ज़िल्लत व ख़्वारी के साथ ठुकरा दिया जाएगा और उसके दिल पर ग़फ़लत का परदा डाल दिया जाएगा और जेहाद को वाज़ेअ करने की बिना पर हक़ उसके हाथ से निकल जाएगा और उसे ज़िल्लत बरदाश्त करना पड़ेगा और वह इन्साफ़ से महरूम हो जाएगा। (((माविया ने अमीरूलमोमेनीन (अ0) की खि़लाफ़त के खि़लाफ़ बग़ावत का एलान करके पहले सिफ़्फ़ीन का मैदाने कारज़ार गरम किया। उसके बाद हर इलाक़े में फ़ितना व फ़साद की आगणन भड़काई ताके आपको एक लम्हे के लिये सुकून नसीब न हो सके और आप अपने निज़ामे अद्ल व इन्साफ़ को सुकून के साथ राएज न कर सकें। माविया के इन्हीं हरकात में से एक काम यह भी था के बनी ग़ामद के एक शख़्स सुफ़यान बिन औफ़ को छः हज़ार लशकर देकर रवाना कर दिया के इराक़ के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों पर ग़ारत का काम शुरू कर दे। चुनान्चे इसने अनबा पर हमला कर दिया जहाँ हज़रत (अ0) का मुख़्तसर सरहदी हिफ़ाज़ती दस्ता था और वह इस लशकर से मुक़ाबला न कर सका सिर्फ़ चन्द अफ़राद साबित क़दम रहे। बाक़ी सब भाग खड़े हुए और इसके बाद सुफ़ियान का लशकर आबादी में दाखि़ल हो गया और बेहद लूट मचाई। जिसकी ख़बर ने हज़रत (अ) को बेचैन कर दिया और आपने मिम्बर पर आकर क़ौम को ग़ैरत दिलाई लेकिन कोई लशकर तैयार न हो सका जिसके बाद आप ख़ुद रवाना हो गए और इस सूरते हाल को देख कर चन्द अफ़राद को ग़ैरत आ गई और एक लशकर सुफ़ियान के मुक़ाबले के लिये सईद बिन क़ैस की क़यादत में रवाना हो गया मगर इत्तेफ़ाक़ से उस वक़्त सुफ़ियान का लशकर वापस जा चुका था और लशकर जंग किये बग़ैर वापस आ गया और आपने नासाज़िए मिज़ाज के बावजूद ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया। बाज़ हज़रात का ख़याल है के यह ख़ुत्बा कूफ़े वापस आने के बाद इरशाद फ़रमाया है और बाज़ का कहना है के मक़ामे नख़ीला ही पर इरशाद फ़रमाया था बहरहाल सूरत वाक़ेअन इन्तेहाई अफ़सोसनाक और दर्दनाक थी और इस्लाम में इसकी बेशुमार मिसालें पाई जाती हैं))) आगाह हो जाओ के मैंने तुम लोगों को इस क़ौम से जेहाद करने के लिये दिन में पुकारा और रात में आवाज़ दी। ख़ुफ़िया तरीक़े से दावत दी और अलल एलान आमादा किया और बराबर समझाया के इनके हमला करने से पहले तुम मैदान में निकल आओ के ख़ुदा की क़सम जिस क़ौम से उसके घर के अन्दर जंग की जाती है उसका हिस्सा ज़िल्लत के अलावा कुछ नहीं होता है लेकिन तुमने टाल मटोल किया और सुस्ती का मुज़ाहेरा किया। यहां तक के तुम पर मुसलसल हमले शुरू हो गए और तुम्हारे इलाक़ों पर क़ब्ज़ा कर लिया गया। देखो यह बनी ग़ामिद के आदमी (सुफ़यान बिन औफ़) की फ़ौज अनबार में दाखि़ल हो गई है और उसने हेसान बिन हेसान बकरी को क़त्ल कर दिया है और तुम्हारे सिपाहियों को उनके मराकज़ से निकाल बाहर कर दिया है और मुझे तो यहाँ तक ख़बर मिली है के दुशमन का एक सिपाही मुसलमान या मुसलमानों के मुआहेदे में रहने वाली औरत के पास वारिद होता था। और उसके पैरों के कड़े , हाथ के कंगन, गले के गुलूबन्द और कान के गोशवारे उतार लिया था और वह सिवाए इन्नालिल्लाह पढ़ने और रहमो करम की दरख़्वास्त करने के कुछ नहीं कर सकती थी और वह सारा साज़ोसामान लेकर चला जाता था न कोई ज़ख़्म खाता था और न किसी तरह का ख़ून बहता था। इस सूरतेहाल के बाद अगर कोई मर्दे मुसलमान सदमे से मर भी जाए तो क़ाबिले मलामत नहीं है बल्के मेरे नज़दीक हक़ ब जानिब है। किस क़द्र हैरतअंगेज़ और ताअज्जुबख़ेज़ सूरते हाल है। ख़ुदा की क़सम यह बात दिल को मुर्दा बना देने वाली है व ग़म को समेटने वाली है के यह लोग अपने बातिल पर इकट्ठा और मुज्तहिद हैं और तुम अपने हक़ पर भी मुत्तहिद नहीं हो। तुम्हारा बुरा हो, क्या अफ़सोसनाक हाल है तुम्हारा। के तुम तीरअन्दाज़ों का मुस्तक़िल निशाना बन गए हो। तुम पर हमला किया जा रहा है और तुम हमला नहीं करते हो। तुमसे जंग की जा रही है और तुम बाहर नहीं निकलते हो। लोग ख़ुदा की नाफ़रमानी कर रहे हैं और तुम इस सूरतेहाल से ख़ुश हो। मैं तुम्हें गरमी में जेहाद के लिये निकलने की दावत देता हूँ तो कहते हो के शदीद गर्मी है, थोड़ी मोहलत दे दीजिये के गर्मी गुज़र जाए। इसके बाद सर्दी में बुलाता हूँ तो कहते हो सख़्त जाड़ा पड़ रहा है ज़रा ठहर जाइये के सर्दी ख़त्म हो जाए, हालाँके यह सब जंग से फ़रार करने के बहाने हैं वरना जो क़ौम सर्दी और गर्मी से फ़रार करती हो वह तलवारों से किस क़द्र फ़रार करेंगी। ऐ मर्दों की शक्ल व सूरत वालों और वाक़ेअन नामर्दों! तुम्हारी फ़िक्रें बच्चों जैसी और तुम्हारी अक़्लें हुजलानशीन औरतों जैसी हैं। मेरी दिली ख़्वाहिश थी के काश मैं तुम्हें न देखता और तुमसे मुताअर्रूफ़ न होता। जिसका नतीजा सिर्फ़ निदामत और रन्ज व अफ़सोस है। अल्लाह तुम्हें ग़ारत कर दे तुमने मेरे दिल को पीप से भर दिया है और मेरे सीने को रंजो ग़म से छलका दिया है। तुमने हर साँस में हम व ग़म के घूँट पिलाए हैं और अपनी नाफ़रमानी और सरकशी से मेरी राय को भी बेकार व बे असर बना दिया है यहाँ तक के अब क़ुरैश वाले यह कहने लगे हैं के फ़रज़न्दे अबूतालिब बहादुर तो हैं लेकिन इन्हें फ़नूने जंग का इल्म नहीं है। अल्लाह इनका भला करे, क्या इनमें कोई भी ऐसा है जो मुझसे ज़्यादा जंग का तजुर्बा रखता हो और मुझसे पहले से कोई मक़ाम रखता हो, मैंने जेहाद के लिये उस वक़्त क़याम किया है जब मेरी उम्र20 साल भी नहीं थी और अब तो 60 से ज़्यादा हो चुकी है। लेकिन क्या किया जाए। जिसकी इताअत नहीं की जाती है उसकी राय कोई राय नहीं होती है। (((किसी क़ौम की ज़िल्लत व रूसवाई के लिये इन्तेहाई काफ़ी है के उनका सरबराह हज़रत अली (अ0) बिन अबूतालिब जैसा इन्सान हो और वह उनसे इस क़दर बददिल हो के इनकी शक्लों को देखना भी गवारा न करता हो। ऐसी क़ौम दुनिया में ज़िन्दा रहने के क़ाबिल नहीं है और आखि़रत में भी इसका अन्जाम जहन्नम के अलावा कुछ नहीं है। इस मक़ाम पर मौलाए कायनात (अ0) ने एक और नुक्ते की तरफ़ भी इशारा किया है के तुम्हारी नाफ़रमानी और सरकशी ने मेरी राय को भी बरबाद कर दिया है और हक़ीक़ते अम्र यह है के राहनुमा और सरबराह किसी क़द्र भी ज़की और अबक़री क्यों न हो , अगर क़ौम इसकी इताअत से इन्कार कर दे तो नाफ़हम इन्सान यही ख़याल करता है के शायद यह राय और हुक्म क़ाबिले अहले सनअत न था इसीलिये क़ौम ने इसे नज़रअन्दाज़ कर दिया है। ख़ुसूसियत के साथ अगर काम ही इज्तेमाई हो तो इज्तेमाअ का इन्हेराफ़ काम को भी मुअत्तल कर देता है और इसके नताएज बहरहाल नामुनासिब और ग़लत होते हैं जिसका तजुर्बा मौलाए कायनात (अ0) के सामने आया के क़ौम ने आपके हुक्म के मुताबिक़ जेहाद करने से इनकार कर दिया और गर्मी व सर्दी के बहाने बनाना शुरू कर दे और इसके नतीजे में दुश्मनों ने यह कहना शुरू कर दिया के अली (अ0) फ़नूने जंग से बाख़बर नहीं हैं हालांके अली (अ0) से ज़्यादा इस्लाम में कोई माहिरे जंग व जेहाद नहीं था जिसने अपनी सारी ज़िन्दगी इस्लामी मुजाहेदात के मैदानों में गुज़ारी थी और मुसलसल तेग़ आज़माई का सबूत दिया था और जिसकी तरफ़ ख़ुद आपने भी इशारा फ़रमाया है और अपनी तारीख़े हयात को इसका गवाह क़रार दिया है। दुश्मनों के तानों से एक बात बहरहाल वाज़ेअ हो जाती है के दुश्मनों को आपकी ज़ाती शुजाअत का इक़रार था और फ़न्ने जंग की नावाक़फ़ीयत से मुराद क़ौम का बेक़ाबू हो जाना था और खुली हुई बात है के अली (अ0) इस तरह क़ौम को क़ाबू में नहीं कर सकते थे जिस तरह माविया जैसे दीन व ज़मीर के ख़रीदार इस कारोबार को अन्जाम दे रहे थे और हर दीन व बेदीनी के ज़रिये क़ौम को अपने क़ाबू में रखना चाहते थे और इनका मन्षा सिफ़ यह था के लशकर वालों को ऊंट और ऊंटनी का फ़र्क़ मालूम न हो सके।)))

28- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जो उस ख़ुतबे की एक फ़ज़ीलत की हैसियत रखता है जिसका आग़ाज़ “अलहम्दो लिल्लाह ग़ैरे मक़नूत मन रहमत’से हुआ और इसमें ग्यारह तम्बीहात हैं)

अम्माबाद! यह दुनिया पीठ फेर चुकी है और इसने अपने विदा का एलान कर दिया है और आख़ेरत सामने आ रही है और इसके आसार नुमाया हो गए हैं। याद रखो के आज मैदाने अमल है और कल मुक़ाबला होगा जहाँ सबक़त करने वाले का इनआम जन्नत होगा और बदअमली का अन्जाम जहन्नम होगा। क्या अब भी कोई ऐसा नहीं है जो मौत से पहले ख़ताओं से तौबा कर ले और सख़्ती के दिन से पहले अपने नफ़्स के लिये अमल कर ले। याद रखो के तुम आज उम्मीदों के दिनों में हो जिसके पीछे मौत लगी हुई है तो जिस शख़्स ने उम्मीद के दिनों में मौत आने से पहले अमल कर लिया उसे इसका अमल यक़ीनन फ़ाएदा पहुँचाएगा और मौत कोई नुक़सान नहीं पहुँचाएगी, लेकिन जिसने मौत से पहले उम्मीद के दिनों में अमल नहीं किया उसने अमल की मन्ज़िल में घाटा उठाया और इसकी मौत भी नुक़सानदेह हो गई। आगाह हो जाओ- तुम लोग राहत के हालात में इसी तरह अमल करो जिस तरह ख़ौफ़ के आलम में करते हो, के मैंने जन्नत जैसा कोई मतलूब नहीं देखा है जिसके तलबगार सब सो रहे हैं और जहन्नम जैसा कोई ख़तरा नहीं देखा है जिससे भागने वाले सब ख़्वाबे ग़फ़लत में पड़े हुए हैं। याद रखो के जिसे हक़ फ़ायदा न पहुँचा सके उसे बातिल ज़रूर नुक़सान पहुंचाएगा और जिसे हिदायत सीधे रास्ते पर न ला सकेगी इसे गुमराही बहरहाल खींच कर हलाकत तक पहुँचा देगी। आगाह हो जाओ के तुम्हें कोच का हुक्म मिल चुका है और तुम्हें ज़ादे सफ़र भी बताया जा चुका है और तुम्हारे लिये सबसे बड़ा ख़ौफ़नाक ख़तरा दो चीज़ों का है। ख़्वाहिशात का इत्तेबाअ और उम्मीदों का तूलानी होना। लेहाज़ा जब तक दुनिया में हुआ इस दुनिया से वह ज़ादे राह हासिल कर लो जिसके ज़रिये कल अपने नफ़्स का तहफ़्फ़ुज़ कर सको। सय्यद रज़ी- अगर कोई ऐसा कलाम हो सकता है जो इन्सान की गर्दन पकड़ कर इसे ज़ोहद की मन्ज़िल तक पहुँचा दे और उसे अमल आखि़रत पर मजबूर कर दे तो वह यही कलाम है। (((ज़माने के हालात का जाएज़ा लिया जाए तो अन्दाज़ा होगा के शायद इस दुनिया के इससे बड़ी कोई हक़ीक़त और सिदाक़त नहीं है। जिस शख़्स से पूछिये वह जन्नत का मुशताक है और जिस शख़्स को देखिये वह जहन्नुम के नाम से पनाह मांगता है। लेकिन मन्ज़िले अमल में दोनों इस तरह सो रहे हैं जैसे के यह माषूक़ अज़ ख़ुद घर आने वाला है और यह ख़तरा अज़ख़ुद टल जाने वाला है। न जन्नत के आशिक़ जन्नत के लिये कोई अमल कर रहे हैं और न जहन्नम से ख़ौफ़ज़दा इससे बचने का इन्तेज़ाम कर रहे हैं बल्कि दोनों का ख़याल यह है के मन्सब में कुछ अफ़राद ऐसे हैं जिन्होंने इस बात का ठेका ले लिया है के वह जन्नत का इन्तेज़ाम भी करेंगे और जहन्नम से बचाने का बन्दोबस्त भी करेंगे और इस सिलसिले में हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है। हालाँके दुनिया के चन्द रोज़ा माषूक़ का मामला इससे बिल्कुल मुख़तलिफ़ है। यहाँ कोई दूसरे पर भरोसा नहीं करता है। दौलत के लिये सब ख़ुद दौड़ते हैं, शोहरत के लिये सब ख़ुद मरते हैं, औरत के लिये सब ख़ुद दीवाने बनते हैं, ओहदे के लिये सब ख़ुद रातों की नीन्द हराम करते हैं, ख़ुदा जाने यह अबदी माषूक़ जन्नत जैसा महबूब है जिसका मामला दूसरों के रहमो करम पर छोड़ दिया जाता है और इन्सान ग़फ़लत की नींद सो जाता है। काश यह इन्सान वाक़ेअन मुशताक और ख़ौफ़ज़दा होता तो यक़ीनन इसका यह किरदार न होता। “फ़ाअतबरू या ऊलिल अबसार”)) यह कलाम दुनिया की उम्मीदों को क़ता करने और वाअज़ व नसीहत क़ुबूल करने के जज़्बात को मुष्तअल करने के लिये काफ़ी होता। ख़ुसूसियत के साथ हज़रत का यह इरशाद के “आज मैदाने अमल है और कल मुक़ाबला, इसके बाद मन्ज़िले मक़सूद जन्नत है और अन्जाम जहन्नम।”इसमें अल्फ़ाज़ की अज़मत मानी की क़द्रो मन्ज़ेलत तहशील की सिदाक़त और तस्बीह की वाक़ेअत के साथ वह अजीबो ग़रीब राज़े निजात और लताफ़त मफ़हूम है जिसका अन्दाज़ा नहीं किया जा सकता है। फिर हज़रत (अ0) ने जन्नत व जहन्नम के बारे में “सबक़ा”और “ग़ायत”का लफ़्ज़ इस्तेमाल किया है जिसमें सिर्फ़ लफ़्ज़ी इख़्तेलाफ़ नहीं है बल्के वाक़ेअन मानवी इफ़तेराक़ व इम्तेयाज़ पाया जाता है के न जहन्नम को सबक़ा (मन्ज़िल) कहा जा सकता है और न जन्नत को ग़ायत (अन्जाम) जहाँ तक इन्सान ख़ुद ब ख़ुद पहुंच जाएगा बल्कि जन्नत के लिये दौड़ धूप करना होगी जिसके बाद इनआम मिलने वाला है और जहन्नम बदअमली के नतीजे में ख़ुद ब ख़ुद सामने आ जाएगा। इसके लिये किसी इष्तेयाक़ और मेहनत की ज़रूरत नहीं है। इसी बुनियाद पर आपने जहन्नम को ग़ायत (अन्जाम) क़रार दिया है जिस तरह के क़ुरआन मजीद ने “मसीर”से ताबीर किया है, “फान मसीर कुम एलन्नार”। हक़ीक़तनइ स नुक्ते पर ग़ौर करने की ज़रूरत है के इसका बातिन इन्तेहाई अजीब व ग़रीब और इसकी गहराई इन्तेहाई लतीफ़ है और यह तन्हा इस कलाम की बात नहीं है। हज़रत के कलमात में आम तौर से यही बलाग़त पाई जाती है और इसके मआनी में इसी तरह की लताफ़त और गहराई नज़र आती है। बाज़ रिवायात में जन्नत के लिये सबक़त के बजाए सुबक़त का लफ़्ज़ इस्तेमाल हुआ है जिसके मानी इनआम के हैं और खुली हुई बात है के इनआम भी किसी मज़मूम अमल पर नहीं मिलता है बल्के इसका ताअल्लुक़ भी क़ाबिले तारीफ़ आमाल ही से होता है लेहाज़ा अमल बहरहाल ज़रूरी है और अमल का क़ाबिले तारीफ़ होना भी लाज़मी है।

29- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जब तहकीम के बाद माविया के सिपाही ज़हाक बिन क़ैस ने हज्जाज के क़ाफ़िले पर हमला करवा दिया और हज़रत को इसकी ख़बर दी गई तो आप (अ0) ने लोगों को जेहाद पर आमादा करने के लिये यह ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया)

ऐ वह लोग! जिनके जिस्म एक जगह पर हों और ख़्वाहिशात अलग-अलग हों। तुम्हारा कलाम तो सख़्त तरीन पत्थर को भी नर्म कर सकता है लेकिन तुम्हारे बारे में पुरउम्मीद बना देते हैं। तुम महफ़िलों में बैठकर ऐसी-ऐसी बातें करते हो के ख़ुदा की पनाह लेकिन जब जंग का नक़्षा सामने आता है तो कहते हो “दूर बाश दूर”हक़ीक़ते अम्र यह है के जो तुमको पुकारेगा उसकी पुकार कभी कामयाब न होगी और जो तुम्हें बरदाश्त करेगा उसके दिल को कभी सुकून न मिलेगा। तुम्हारे पास सिर्फ बहाने हैं और ग़लत सलत हवाले और फिर मुझसे ताख़ीरे जंग की फ़रमाइश जैसे कोई नादहन्द क़र्ज़ को टालना चाहता है। याद रखो ज़लील आदमी ज़िल्लत को नहीं रोक सकता है और हक़ मेहनत के बग़ैर हासिल नहीं किया हो सकता है। तुम जब अपने घर का दिफ़ाअ न कर सकोगे तो किसके घर का दिफ़ाअ करोगे और जब मेरे साथ्ज्ञ जेहाद न करोगे तो किसके साथ जेहाद करोगे। ख़ुदा की क़सम वह फ़रेब खोरदा है जो तुम्हारे धोके में आ जाए और जो तुम्हारे सहारे कामयाबी चाहेगा इसे सिर्फ नाकामी का तीर हाथ आएगा।

(((माविया का एक मुस्तक़िल मुक़द्दर यह भी था के अमीरूल मोमेनीन (अ0) किसी आन चैन से न बैठने पाएं कहीं ऐसा न हो के आप वाक़ई इस्लाम क़ौम के सामने पेश कर दें और अमवी उफ़कार का जनाज़ा निकल जाए। इसलिये वह मुसलसल रेशा रवानियों में लगा रहता था। आखि़र एक मरतबा ज़हाक बिन क़ैस को चार हज़ार का लशकर देकर रवाना कर दिया और उसने सारे इलाक़े में कुश्त व ख़ून शुरू कर दिया। आपने मिम्बर पर आकर क़ौम को ग़ैरत दिलाई लेकिन कोई खातिर ख़्वाह असर नहीं हुआ और लोग जंग से किनाराकशी करते रहे। यहाँ तक के हजर बिन अदी चार हज़ार सिपाहियों को लेकर निकल पड़े और मुक़ाम तदमर पर दोनों का सामना हो गया। लेकिन माविया का लशकर भाग खड़ा हुआ और सिर्फ़ 19 अफ़राद माविया के काम आए जबके हजर के सिपाहियों में दो अफ़राद ने जामे शहादत नौश फ़रमाया।)))

और जिसने तुम्हारे ज़रिये तीर फेंका उसने वह तीर फेंका जिसका पैकान टूट चुका है और सूफार ख़त्म हो चुका है। ख़ुदा की क़सम मैं इन हालात में तुम्हारे क़ौल की तस्दीक़ कर सकता हूँ और न तुम्हारी नुसरत की उम्मीद रखता हूँ और न तुम्हारे ज़रिये किसी दुशमन को तहदीद कर सकता हूँ। आखि़र तुम्हें क्या हो गया है? तुम्हारी दवा क्या है? तुम्हारा इलाज क्या है? आखि़र वह लोग भी तो तुम्हारे ही जैसे इन्सान हैं, यह बग़ैर इल्म की बातें कब तक और यह बग़ैर तक़वा की ग़फ़लते ताबके और बग़ैर हक़ के बलन्दी की ख़्वाहिश कहाँ तक?

18- आपकाइरशादेगिरामी

(उलमा के दरमियान इख़तेलाफ़े फ़तवा के बारे में और इसी में अहल राय की मज़म्मत और क़ुरआन की मरजईयत का ज़िक्र किया गया है)

मज़म्मत अहल राय- उन लोगों का आलम यह है के एक शख़्स के पस किसी मसले का फ़ैसला आता है तो वह अपनी राय से फ़ैसला कर देता है और फ़िर यही क़ज़िया बअय्यना दूसरे के पास जाता है तो वह उसके खि़लाफ़ फ़ैसला कर देता है। इसके बाद तमाम क़ज़ात इस हाकिम के पास जमा होते हैं जिसने इन्हें क़ाज़ी बनाया है तो वह सबकी राय से ताईद कर देता है जबके सबका ख़ुदा एक, नबी एक और किताब एक है तो क्या ख़ुदा ही ने इन्हें इख़्तेलाफ़ का हुक्म दिया है और यह इसी की इताअत कर रहे हैं या उसने उन्हें इख़्तेलाफ़ से मना किया है मगर फ़िर भी इसकी मुख़ालेफ़त कर रहे हैं? या ख़ुदा ने दीने नाक़िस नाज़िल किया है और उनसे इसकी तकमील के लिये मदद मांगी है या यह सब ख़ुद इसकी ख़ुदाई ही में शरीक हैं और इन्हें यह हक़ हासिल है के यह बात कहें और ख़ुदा का फ़र्ज़ है के वह क़ुबूल करे या ख़ुदा ने दीने कामिल नाज़िल किया था और रसूले अकरम (स) ने इसकी तबलीग़ और अदायगी में कोताही कर दी है, जबके इसका एलान है के हमने किताब में किसी तरह की कोताही नहीं की है और इसमें हर शै का बयान मौजूद है -2-। और यह भी बता दिया है के इसका एक हिस्सा दूसरे की तस्दीक़ करता है और इसमें किसी तरह का इख़्तेलाफ़ नहीं है। यह क़ुरआन ग़ैर ख़ुदा की तरफ़ से होता तो इसमें बेपनाह इख़्तेलाफ़ात होता। यह क़ुरआन वह है जिसका ज़ाहिर ख़ूबसूरत और बातिन अमीक़ और गहराए। इसके अजाएब फ़ना होने वाले नहीं हैं और तारीकियों का ख़ात्मा इसके अलावा और किसी कलाम से नहीं हो सकता है।

19- आपका इरशादे गिरामी

(जिसे उस वक़्त फ़रमाया जब मिम्बरे कूफ़े पर ख़ुत्बा दे रहे थे और अशअस बिन क़ैस ने टोक दिया के यह बयान आप ख़ुद अपने खि़लाफ़ दे रहे हैं। आपने पहले निगाहों को नीचा करके सुकूत फ़रमाया और फिर पुरजलाल अन्दाज़ से फ़रमाया)

तुझे क्या ख़बर के कौन सी बात मेरे मवाफ़िक़ है और कौन सी मेरे खि़लाफ़ है। तुझ पर ख़ुदा और तमाम लाअनत करने वालों की लानत, तू सुख़न बाफ़ और ताने बाने दुरूस्त करने वाले का फ़रज़न्द है। तू मुनाफ़िक़ है और तेरा बाप खुला हुआ काफ़िर था। ख़ुदा की क़सम तू एक मरतबा कुफ्ऱ का क़ैदी बना और दूसरी मरतबा इस्लाम का। लेकिन न तेरा माल काम आया न हसब। और जो शख़्स भी अपनी क़ौम की तरफ़ तलवार को रास्ता बताएगा और मौत को खींच कर लाएगा वह इस बात का हक़दार है के क़रीब वाले उससे नफ़रत करें और दूर वाले इस पर भरोसा न करें।

सय्यद रज़ी - - इमाम (अ) का मक़सद यह है के अशअत बिन क़ैस एक मरतबा दौरे कुफ्ऱ में क़ैदी बना था और दूसरी मरतबा इस्लाम लाने के बाद। तलवार की रहनुमाई का मक़सद यह है के जब यमामा में ख़ालिद बिन वलीद ने चढ़ाई की तो उसने अपनी क़ौम से ग़द्दारी की और सबको ख़ालिद की तलवार के हवाले कर दिया जिसके बाद इसका लक़ब “उरफ़ुल नार”हो गया जो उस दौर में हर ग़द्दार का लक़ब हुआ करता था।

20- आपका इरशादे गिरामी

(जिसमें ग़फ़लत से बेदार किया गया है और ख़ुदा की तरफ़ दौड़कर आने की दावत दी गई है।)

यक़ीनन जिन हालात को तुमसे पहले मरने वालों ने देख लिया है अगर तुम भी देख लेते तो परेशान व मुज़तरिब हो जाते और बात सुनने और इताअत करने के लिये तैयार हो जाते लेकिन मुश्किल यह है के अभी वह चीज़ तुम्हारे लिये पस हिजाब हैं और अनक़रीब यह परदा उठने वाला है। बेशक तुम्हें सब कुछ दिखाया जा चुका है अगर तुम निगाह बीना रखते हो और सब कुछ सुनाया जा चुका है अगर तुम गोश शनवार रखते हो और तुम्हें हिदायत दी जा चुकी है अगर तुम हिदायत हासिल करना चाहो और मैं बिल्कुल बरहक़ कह रहा हूँ के अनक़रीब तुम्हारे सामने खुल कर आ चुकी हैं और तुम्हें इस क़दर डराया जा चुका है जो बक़द्र काफ़ी है और ज़ाहिर है के आसमानी फ़रिश्तों के बाद इलाही पैग़ाम को इन्सान ही पहुंचाने वाला है।

21- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जो एक कलमा है लेकिन तमाम मोअज़त व हिकमत को अपने अन्दर समेटे हुए है)

बेशक मन्ज़िले मक़सूद तुम्हारे सामने है और साअते मौत तुम्हारे तआक़ब में है और तुम्हें अपने साथ लेकर चल रही है। अपना बोझ हल्का कर लो -1- ताके पहले वालों से मुलहक़ हो जाओ के अभी तुम्हारे साबेक़ीन से तुम्हारा इन्तेज़ार कराया जा रहा है।

सय्यद रज़ी- - इस कलाम का कलामे ख़ुदा व कलामे रसूल (स) के बाद किसी कलाम के साथ रख दिया जाए तो इसका पल्ला भारी ही रहेगा और यह सबसे आगे निकल जाएगा। “तख़फ़फ़वा तलहक़वा”से ज्यादा मुख़्तसर और बलीग़ कलाम तो कभी देखा और सुना ही नहीं गया है। इस कलमे में किस क़द्र गहराई पाई जाती है और इस हिकमत का चश्मा किस क़द्र शफ़फाफ़ है। हमने किताबे ख़साएस में इसकी क़द्र व क़ीमत और अज़मत व शराफ़त पर मुकम्मल तब्सिरा किया है।

(( इसमें कोई शक नहीं है के गुनाह इन्सानी ज़िन्दगी के लिए एक बोझ की हैसियत रखता है और यही बोझ है जो इन्सान को आगे नहीं बढ़ने देता है और वह इसी दुनियादारी में मुब्तिला रह जाता है वरना इन्सान का बोझ हल्का हो जाए तो तेज़ क़दम बढ़ाकर उन साबेक़ीन से मुलहक़ हो सकता है जो नेकियों की तरफ़ सबक़त करते हुए बलन्दतरीन मन्ज़िलों तक पहुंच गये हैं। अमीरूल मोमेनीन (अ) की दी हुई यह मिसाल वह है जिसका तजुरबा हर इन्सान की ज़िन्दगी में बराबर सामने आता रहता है के क़ाफ़िले में जिसका बोझ ज़्यादा होता है वह पीछे रह जाता है और जिसका बोझ हल्का होता है वह आगे बढ़ जाता है। सिर्फ़ मुश्किल यह है के इन्सान को गुनाहों के बोझ होने का एहसास नहीं है। शायर ने क्या ख़ुब कहा है- चलने न दिया बारे गुनह न पैदल ताबूत में कान्धों पे सवार आया हूँ। ))

22- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जब आपको ख़बर दी गई के कुछ लोगों ने आपकी बैअत तोड़ दी है)

आगाह हो जाओ के शैतान ने अपने गिरोह को भड़काना शुरू कर दिया है और फ़ौज को जमा कर लिया है ताके ज़ुल्म अपनी मन्ज़िल पर पलट आए और बातिल अपने मरकज़ की तरफ़ वापस आ जाए। ख़ुदा की क़सम उन लोगों ने मुझ पर कोई सच्चा इल्ज़ाम लगाया है और न मेरे और अपने दरम्यान कोई इन्साफ़ किया है। यह मुझसे उस हक़ का मुतालबा कर रहे हैं जो ख़ुद इन्होंने नज़रअन्दाज़ किया है और उस ख़ून का तक़ाज़ा कर रहे हैं जो ख़ुद इन्होंने बहाया है। फ़िर अगर मैं इनके साथ शरीक था तो इनका भी तो एक हिस्सा था और वह तन्हा मुजरिम थे तो ज़िम्मेदारी भी उन्हीं पर है। बेशक इनकी अज़ीमतरीन दलील भी इन्हीं के खि़लाफ़ है। यह उस माँ से दूध पीना चाहते हैं जिसका दूध ख़त्म हो चुका है और उस बिदअत को ज़िन्दा करना चाहते हैं जो मर चुकी है। हाए किस क़दर नामुराद यह जंग का दाई है। कौन पुकार रहा है और किस मक़सद के लिये इसकी बात सुनी जा रही है? मैं इस बात से ख़ुश हू के परवरदिगार की हुज्जत इनपर तमाम हो चुकी है और वह इनके हालात से बाख़बर है।

अब अगर इन लोगों ने हक़ का इन्कार किया है तो मैं इन्हें तलवार की बाढ़ अता करूंगा के वही बातिल की बीमारी से शिफ़ा देने वाली और हक़ की वाक़ई मददगार है। हैरतअंगेज़ बात है के यह लोग मुझे नेज़ाबाज़ी के मैदान में निकलने और तलवार की जंग सहने की दावत दे रहे हैं- रोने वालियां इनके ग़म में रोएं। मुझे तो कभी भी जंग से ख़ौफ़ज़दा नहीं किया जा सका है और न मैं शमशीरज़नी से मरऊब हुआ हूँ। मैं तो अपने परवरदिगार की तरफ़ से मन्ज़िले यक़ीन पर हँ और मुझे दीन के बारे में किसी तरह कोई शक नहीं है।

((तारीख़ का मसला है के उस्मान ने अपने दौरे हुकूमत में अपने पेशरौ तमाम हुक्काम के खि़लाफ़ अक़रबा परस्ती और बैतुलमाल की बे-बुनियाद तक़सीम का बाज़ार गर्म कर दिया था और यही बात उनके क़त्ल का बुनियादी सबब बन गयी। ज़ाहिर है के उनके क़त्ल के बाद यह बिदअत भी मुरदा हो चुकी थी लेकिन तलहा ने अमीरूलमोमेनीन (अ) से बसरा की गवरनरी और ज़ुबैर ने कूफ़े की गवरनरी का मतालबा करके फिर इस बिदअत को ज़िन्दा करना चाहा जो एक इमामे मासूम (अ) किसी क़ीमत पर बरदाश्त नहीं कर सकता है चाहे उसकी कितनी ही बड़ी क़ीमत क्यों न अदा करना पड़े।

इब्ने अबील हदीद के नज़दीक दाई से मुराद तलहा, ज़ुबैर और आईशा हैं जिन्होंने आप (अ) के खि़लाफ़ जंग की आग भड़काई थी लेकिन अन्जाम कार सबको नाकाम और नामुराद होना पड़ा और कोई नतीजा हाथ न आया जिसकी तरफ़ आपने तहक़ीर आमेज़ लहजे में इशारा किया है और साफ़ वाज़ेअ कर दिया है के मैं जंग से डरने वाला नहीं हूँ, तलवार मेरा तकिया है और यक़ीन मेरा सहारा। इसके बाद मुझे किस चीज़ से ख़ौफ़ज़दा किया जा सकता है।))

23- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें फ़ोक़रा को ज़ोहद और सरमायेदारों को शफ़क़त की हिदायत दी गई है)

अम्मा बाद!- इन्सान के मक़सूम में कम या ज़्यादा जो कुछ भी होता है उसका अम्र आसमान से ज़मीन की तरफ़ बारिश के क़तरात की तरह नाज़िल होता है। लेहाज़ा अगर कोई शख़्स अपने भाई के पास अहल व माल या नफ़्स की फ़रावानी देखे तो इसके लिये फ़ितना न बने।

के मर्दे मुस्लिम के किरदार में अगर ऐसी पस्ती नहीं है जिसके ज़ाहिर हो जाने के बाद जब भी उसका ज़िक्र किया जाए उसकी निगाह शर्म से झुक जाए और पस्त लोगों के हौसले उससे बलन्द हो जाएं तो इसकी मिसाल उस कामयाब जवारी की है जो जुए के तीरों का पाँसा फेंक कर पहले ही मरहले में कामयाबी का इन्तज़ार करता है जिससे फ़ायदा हासिल हो और गुज़िश्ता फसाद की तलाफ़ी हो जाए।

यही हाल उस मर्दे मुसलमान का है जिसका दामन ख़यानत से पाक हो के वह हमेशा परवरदिगार से दो में से एक नेकी का उम्मीदवार रहता है या दाई अजल आजाए तो जो कुछ इसकी बारगाह में है वह इस दुनिया से कहीं ज़्यादा बेहतर है या रिज़क़े ख़ुदा हासिल हो जाए तो वह साहबे अहल व माल भी होगा और इसका दीन और वक़ार भी बरक़रार रहेगा। याद रखो माल और औलाद दुनिया की खेती हैं और अमले स्वालेह आख़ेरत की खेती है और कभी भी परवररिगार बाज़ अक़वाम के लिये दोनों को जमा कर देता है। लेहाज़ा ख़ुदा से इस तरह डरो जिस तरह उसने डरने का हुक्म दिया है और इसका ख़ौफ़ इस तरह पैदा करो के कुछ मारेफ़त न करना पड़े, अमल करो तो दिखाने सुनाने से अलग रखो के जो शख़्स भी ग़ैरे ख़ुदा के वास्ते अमल करता है ख़ुदा उसी शख़्स के हवाले कर देता है। मैं परवरदिगार से शहीदों की मन्ज़िल, नेक बन्दों की सोहबत और अम्बियाए कराम की रिफ़ाक़त की दुआ करता हूं।

ऐ लोगो! याद रखो के कोई शख़्स किसी क़द्र भी साहबे माल क्यों न हो जाए, अपने क़बीले और उन लोगों के हाथ और ज़बान के ज़रिये दफ़ाअ करने से बेनियाज़ नहीं हो सकता है। यह लोग इन्सान के बेहतरीन मुहाफ़िज़ होते हैं। इसकी परागन्दगी के दूर करने वाले और मुसीबत के नज़ूल के वक़्त इसके हाल पर मेहरबान होते हैं। परवरदिगार बन्दे के लिए जो ज़िक्रे ख़ैर लोगों के दरमियान क़रार देता है वह उस माल से कहीं ज़्यादा बेहतर होता है जिसके वारिस दूसरे अफ़राद हो जाते हैं।

((अगरचे इस्लाम ने बज़ाहिर फ़क़ीर को ग़नी के माल में या रिश्तेदार को रिश्तेदार के माल में शरीक नहीं बनाया है लेकिन उसका यह फ़ैसला के तमाम अमलाके दुनिया का मालिके हक़ीक़ी परवरदिगार है और इसके एतबार से तमाम बन्दे एक जैसे हैं। सब उसके बन्दे हैं और सबके रिज़्क़ की ज़िम्मादारी इसी की ज़ाते अक़दस पर है। इस अम्र की अलामत है के उसने हर ग़नी के माल में एक हिस्सा फ़क़ीरों और मोहताजों का ज़रूर क़रार दिया है और इसे जबरन वापस नहीं लिया है बल्के ख़ुद ग़नी को इनफ़ाक़ का हुक्म दिया है ताके माल इसके इख़्तेयार से फ़क़ीर तक जाए। इस तरह वह आखि़रत में अज्र व सवाब का हक़दार हो जाएगा और दुनिया में फ़ोक़रा के दिल में इसकी जगह बन जायेगी जो साहेबाने ईमान का शरफ़ है के परवरदिगार लोगों के दिलों में इनकी मोहब्बत क़रार दे देता है। फिर इस इनफ़ाक में किसी तरह का नुक़सान भी नहीं है। माल यूँ ही बाक़ी रह गया तो भी दूसरों ही के काम आएगा तो क्यों न ऐसा हो के उसी के काम आ जाए जिसके ज़ोरे बाज़ू ने जमा किया है और फिर वह जमाअत भी हाथ आ जाए जो किसी वक़्त भी काम आ सकती है। जिगर जिगर होता है और दिगर दिगर होता है।))

आगाह हो जाओ के तुमसे कोई शख़्स भी अपने अक़रबा को मोहताज देखकर इस माल से हाजत बरआरी करने से गुरेज़ न करे जो बाक़ी रह जाए तो बढ़ नहीं जाएगा और ख़र्च कर दिया जाए कम नहीं हो जाएगा। इसलिये जो शख़्स भी अपने अशीरा और क़बीला से अपना हाथ रोक लेता है तो इस क़बीले से एक हाथ रूक जाता है और ख़ुद इसके लिये बेशुमार हाथ रूक जाते हैं। और जिसके मिज़ाज में नरमी होती है वह क़ौम की मोहब्बत को हमेशा के लिये हासिल कर लेता है।

सय्यद रज़ी- इस मक़ाम पर ग़फ़ीरा कसरत के मानी में है जिस तरह जमा कसीर को जमा कशीर कहा जाता है। बाज़ रवायत में ग़फ़ीरा के बजाए इफ़वह है जो मुन्तख़ब और पसन्दीदा शै के मानी है, इस्तेमाल होता है। “अफ़वतिल तआम”पसन्दीदा खाने को कहा जाता है और इमाम अलैहिस्सलाम ने इस मक़ाम पर बेहतरीन नुक्ते की तरफ़ इशारा फ़रमाया है के अगर किसी ने अपना हाथ अशीरा से खींच लिया तो गोया के एक हाथ कम हो गया। लेकिन जब इसे इनकी नुसरत और इमदाद की ज़रूरत होगी और वह हाथ खींच लेंेगे और उसकी आवाज़ पर लब्बैक नहीं कहेंगे तो बहुत से बढ़ने वाले हाथों और उठने वाले क़दमों से महरूम हो जाएगा।

24-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें इताअते ख़ुदा की दावत दी गई है)

मेरी जान की क़सम। मैं हक़ की मुख़ालफ़त करने वालों और गुमराही में बैठने वालों से जेहाद करने में न कोई नरमी कर सकता हूँ और न सुस्ती। अल्लाह के बन्दों! अल्लाह से डरो और उसके ग़ज़ब से फ़रार करके उसकी रहमत में पनाह लो। उस रास्ते पर चलो जो उसने बना दिया है और उन एहकाम पर अमल करो जिन्हें तुम से मरबूत कर दिया गया है। इसके बाद अली (अ) तुम्हारी कामयाबी का आखि़रत में बहरहाल ज़िम्मेदार है चाहे दुनिया में हासिल न हो सके।((अमीरूल मोमेनीन (अ) की खि़लाफ़त का जाएज़ा लिया जाए तो मसाएब व मुश्किलात में सरकारे दो आलम (स) के दौरे रिसालत से कुछ कम नहीं है। आपने तेरा साल मक्के में मुसीबते बरदाश्त कीं और दस साल मदीने में जंगों का मुक़ाबला करते रहे और यही हाल मौलाए कायनात (अ) का रहा। ज़िलहिज्जा35 हि0 में खि़लाफ़त मिली और माहे मुबारक 40 हि0 में शहीद हो गए। कुल दौरे हुकूमत 4 साल 9 माह 2 दिन रहा और इसमें भी तीन बड़े-बड़े मारके हुए और छोटी-छोटी झड़पें मुसलसल होती रहीं। जहां इलाक़ों पर क़ब्ज़ा किया जा रहा था और चाहने वालों को अज़ीयत दी जा रही थी। माविया ने अम्र व आस के मश्विरे से बुसर बिन अबी अरताह को तलाश कर लिया था और इस जल्लाद को मुतलक़ुल अनान बनाकर छोड़ दिया था। ज़ाहिर है के “पागल कुत्ते”को आज़ाद छोड़ दिया जाए तो शहरवालों का क्या हाल होगा और इलाक़े के अम्नो अमान में क्या बाक़ी रह जाएगा।))

(आप ये किताब अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

25- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

जब आपको मुसलसल ख़बर दी गई के मआविया के साथियों ने शहरों पर क़ब्ज़ा कर लिया है और आपके दो आमिले यमन अब्दुल्लाह बिन अब्बास और सईद बिन नमरान, बुसर बिन अबी अरताह के मज़ालिम से परेशान होकर आपकी खि़दमत में आ गए। तो आपने असहाब की कोताही जेहाद से बददिल होकर मिम्बर पर खड़े होकर यह ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया। अब यही कूफ़ा है जिसका बस्त व कशाद मेरे हाथ में है। ऐ कूफ़ा अगर तू ऐसा ही रहा और यूँ ही तेरी आन्धियाँ चलती रहीं तो ख़ुदा तेरा बुरा करेगा। (इसके बाद शाएर के “शेर की तमसील बयान फ़रमाई) ऐ अमरो! तेरे अच्छे बाप की क़सम, मुझे तो उस बरतन की तह में लगी हुई चिकनाई ही मिली है। इसके बाद फ़रमाया, मुझे ख़बर दी गई है के बुसर यमन तक आ गया है और ख़ुदा की क़सम मेरा ख़याल यह है के अनक़रीब यह लोग तुमसे इक़तेदार को छीन लेंगे। इसलिये यह अपने बातिल पर मुत्तहिद हैं और तुम अपने हक़ पर मुत्तहिद नहीं हो। यह अपने पेशवा की बातिल में इताअत करते हैं और तुम अपने इमाम की हक़ में भी नाफ़रमानी करते हो। यह अपने मालिक की अमानत उसके हवाले कर देते हैं और तुम ख़यानत करते हो। यह अपने शहरों में अमन व अमान रखते हैं और तुम अपने शहर में भी फ़साद करते हो।

((ज़रा जाए ख़त की क़ाबलीयत मुलाहेज़ा फ़रमाएं- फ़रमाते हैं के कूफ़े वाले इस लिये नहीं इताअत करते थे के इनकी निगाह तनक़ीदी और बसीरत आमेज़ थी और शाम ववाले अहमक़ और जाहिल थे इसलिये इताअत कर लेते थे। इन क़ाबेलीयत मआब से कौन दरयाफ़्त करे के कूफ़ावालों ने मौलाए कायनात (अ) के किस ऐ़ब की बिना पर इताअत छोड़ दी थी और किस तनक़ीदी नज़र से आप की ज़िन्दगी को देख लिया था। हक़ीक़ते अम्र यह है के कूफ़े व शाम दोनों ज़मीर फ़रोश थे। शाम वालों को ख़रीदार मिल गया था और कूफ़े में हज़रत अली (अ) ने यह तरीक़ाएकार इख़्तेयार कर लिया था के मुँह मांगी क़ीमत नहीं अता की थी लेहाज़ा बग़ावत का होना नागुज़ीर था और यह कोई हैरतअंगेज़ अम्र नहीं है।))

मैं तो तुम में से किसी को लकड़ी के प्याले का भी अमीन बनाऊं तो यह ख़ौफ़ रहेगा के वह कुन्डा लेकर भाग जाएगा। -1- ख़ुदाया मैं इनसे तंग आ गया हूँ और यह मुझसे तंग आ गए हैं। मैं इनसे उकता गया हूँ और यह मुझसे उकता गये हैं। लेहाज़ा मुझे इनसे बेहतर क़ौम इनायत कर दे और इन्हें मुझसे “बदतर”हाकिम दे दे और इनके दिलों को यूँ पिघला दे जिस तरह पानी में नमक भिगोया जाता है। ख़ुदा की क़सम मैं यह पसन्द करता हूँ के इन सब के बदले मुझे बनी फ़रास बिन ग़नम के हरफ़ एक हजार शाही मिल जाएं, जिनके बारे में इनके शाएर ने कहा थाः- “इस वक़्त में अगर तू इन्हें आवाज़ देगा तो ऐसे शहसवार सामने आएंगे जिनकी तेज़ रफ़्तारी गर्मियों के बादलों से ज़्यादा सरीहतर होगी”

सय्यद रज़ी - अरमिया रमी की जमा है जिसके मानी बादल हैं और हमीम गर्मी के ज़माने के मानी में हैं, शायर ने गर्मी के बादलों का ज़िक्र इसलिये किया है कि इनकी रफ़तार तेज़ औश्र सुबकतर होती है इसलिये के इनमें पानी नहीं होता है। बादल की रफ़तार उस वक़्त सुस्त हो जाती है जब उसमें पानी भर जाता है और यह आम तौर से सरदी के ज़माने में होता है। शायर ने अपनी क़ौम को आवाज़ पर लब्बैक कहने और मज़लूम की फ़रयाद रसी में सुबक रफ़तारी का ज़िक्र किया है जिसकी दलील “लौ दऔतो”है।

26- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें बासत से पहले अरब की हालत का ज़िक्र किया गया है और फिर अपनी बैअत से पहले के हालात का तज़किरा किया गया है)

यक़ीनन अल्लाह ने हज़रत मोहम्मद (स) को आलमीन के अज़ाबे इलाही से डराने वाला और तन्ज़ील का अमानतदार बनाकर उस वक़्त भेजा है जब तुम गिरोहे अरब बदतरीन दीन के मालिक और बदतरीन इलाक़े के रहने वाले थे। न हमवार पत्थरों और ज़हरीले सांपों के दरमियान बूदोबाश रखते थे। गन्दा पानी पीते थे और ग़लीज़ ग़िज़ा इस्तेमाल करते थे। आपस में एक दूसरे का ख़ून बहाते थे और क़राबतदारों से बेतआल्लुक़ी रखते थे। बुत तुम्हारे दरम्यान नसब थे और गुनाह तुम्हें घेरे हुए थे।

(बैयत के हंगाम)

मैंने देखा के सिवाए मेरे घरवालों के कोई मेरा मददगार नहीं है तो मैंने उन्हें मौत के मुंह में दे देने से गुरेज़ किया और इस हाल में चश्मपोशी की के आंखों में ख़स्द ख़ाशाक था। मैंने ग़म व ग़ुस्से के घूंट पिये और गुलू गिरफ्तगी और हन्ज़ाल से ज़्यादा तल्क़ हालात पर सब्र किया।

याद रखो! अमर व आस ने माविया की बैयत उस वक़्त तक नहीं की जब तक के बैयत की क़ीमत नहीं तय कर ली। ख़ुदा ने चाहा तो बैयत करने वाले का सौदा कामयाब न होगा और बैयत लेने वाले को भी सिर्फ़ रूसवाई ही नसीब होगी। लेहाज़ा जंग का सामान संभाल लो और इसके असबाब मुहैया कर लो के इसके शोले भड़क उट्ठे हैं और लपटें बलन्द हो चुकी हैं और देखो सब्र को अपना शआर बना लो के यह नुसरत व कामरानी का बेहतरीन ज़रिया है।

((किसी क़ौम के लिये डूब मरने की बात है के उसका मासूम रहनुमा उससे इस क़द्र आजिज़ आ जाए के उसके हक़ में दरपरदा बद्दुआ करने के लिये तैयार हो जाए और उसे दुशमन के हाथ फ़रोख़्त कर देने पर आमादा हो जाए।

अहले कूफ़ा की बदबख़्ती की आखि़री मन्ज़िल थी के वह अपने मासूम रहनुमा को भी तहफ़्फ़ुज़ फ़राहम न कर सके और इनके दरम्यान इनका रहनुमा ऐन हालते सजदा में शहीद कर दिया गया। कूफ़े का क़यास मदीने के हालात पर नहीं किया जा सकता है। मदीने ने अपने हाकिम का साथ नहीं दिया इस लिये के वह ख़ुद इसके हरकात से आजिज़ थे और मुसलसल एहतेजाज कर चुके थे लेकिन कूफ़े में ऐसा कुछ नहीं था या वाजे़अ लफ़्ज़ों में यूँ कहा जा सकता है के मदीने के हुक्काम के क़ातिल अपने अमल पर मुतमईन थे और उन्हें किसी तरह की शर्मिन्दगी का एहसास नहीं था लेकिन कूफ़े में जब अमीरूल मोमेनीन (अ) ने अपने क़ातिल से दरयाफ़त किया के क्या मैं तेरा कोई बुरा इमाम था? तो उसने बरजस्ता यही जवाब दिया के आप किसी जहन्नुम में जाने वाले को रोक नहीं सकते हैं। गोया मदीने से कूफ़े तक के हालात से यह बात बिल्कुल वाज़ेअ हो जाती है के मदीने के मक़तूल अपने ज़ुल्म के हाथों क़त्ल हुए थे और कूफ़े का शहीद अपने अद्लो इन्साफ़ की बुनियाद पर शहीद हुआ है और ऐसे ही शहीद को यह कहने का हक़ है के “फ़ुज़्तो बे रब्बिल काबा” (परवरदिगारे काबा की क़सम मैं कामयाब हो गया)))

27-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जो उस वक़्त इरशाद फ़रमाया जब आपको ख़बर मिली के माविया के लशकर ने अनबार पर हमला कर दिया है। इस ख़ुतबे में जेहाद की फ़ज़ीलत का ज़िक्र करके लोगों को जंग पर आमादा किया गया है और अपनी जंगी महारत का तज़किरा करके नाफ़रमानी की ज़िम्मेदारी लशकरवालों पर डाली गई है)

अम्मा बाद! जेहाद जन्नत के दरवाज़ों में से एक दरवाज़ा है जिसे परवरदिगार ने अपने मख़सूस औलिया के लिये खोला है। यह तक़वा का लिबास और अल्लाह की महफ़ूज़ व मुस्तहकम ज़िरह और मज़बूत सिपर है। जिसने एराज़ करते हुए नज़रअन्दाज़ कर दिया उसे अल्लाह ज़िल्लत का लिबास पिन्हा देगा और उस पर मुसीबत हावी हो जाएगी और उसे ज़िल्लत व ख़्वारी के साथ ठुकरा दिया जाएगा और उसके दिल पर ग़फ़लत का परदा डाल दिया जाएगा और जेहाद को वाज़ेअ करने की बिना पर हक़ उसके हाथ से निकल जाएगा और उसे ज़िल्लत बरदाश्त करना पड़ेगा और वह इन्साफ़ से महरूम हो जाएगा। (((माविया ने अमीरूलमोमेनीन (अ0) की खि़लाफ़त के खि़लाफ़ बग़ावत का एलान करके पहले सिफ़्फ़ीन का मैदाने कारज़ार गरम किया। उसके बाद हर इलाक़े में फ़ितना व फ़साद की आगणन भड़काई ताके आपको एक लम्हे के लिये सुकून नसीब न हो सके और आप अपने निज़ामे अद्ल व इन्साफ़ को सुकून के साथ राएज न कर सकें। माविया के इन्हीं हरकात में से एक काम यह भी था के बनी ग़ामद के एक शख़्स सुफ़यान बिन औफ़ को छः हज़ार लशकर देकर रवाना कर दिया के इराक़ के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों पर ग़ारत का काम शुरू कर दे। चुनान्चे इसने अनबा पर हमला कर दिया जहाँ हज़रत (अ0) का मुख़्तसर सरहदी हिफ़ाज़ती दस्ता था और वह इस लशकर से मुक़ाबला न कर सका सिर्फ़ चन्द अफ़राद साबित क़दम रहे। बाक़ी सब भाग खड़े हुए और इसके बाद सुफ़ियान का लशकर आबादी में दाखि़ल हो गया और बेहद लूट मचाई। जिसकी ख़बर ने हज़रत (अ) को बेचैन कर दिया और आपने मिम्बर पर आकर क़ौम को ग़ैरत दिलाई लेकिन कोई लशकर तैयार न हो सका जिसके बाद आप ख़ुद रवाना हो गए और इस सूरते हाल को देख कर चन्द अफ़राद को ग़ैरत आ गई और एक लशकर सुफ़ियान के मुक़ाबले के लिये सईद बिन क़ैस की क़यादत में रवाना हो गया मगर इत्तेफ़ाक़ से उस वक़्त सुफ़ियान का लशकर वापस जा चुका था और लशकर जंग किये बग़ैर वापस आ गया और आपने नासाज़िए मिज़ाज के बावजूद ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया। बाज़ हज़रात का ख़याल है के यह ख़ुत्बा कूफ़े वापस आने के बाद इरशाद फ़रमाया है और बाज़ का कहना है के मक़ामे नख़ीला ही पर इरशाद फ़रमाया था बहरहाल सूरत वाक़ेअन इन्तेहाई अफ़सोसनाक और दर्दनाक थी और इस्लाम में इसकी बेशुमार मिसालें पाई जाती हैं))) आगाह हो जाओ के मैंने तुम लोगों को इस क़ौम से जेहाद करने के लिये दिन में पुकारा और रात में आवाज़ दी। ख़ुफ़िया तरीक़े से दावत दी और अलल एलान आमादा किया और बराबर समझाया के इनके हमला करने से पहले तुम मैदान में निकल आओ के ख़ुदा की क़सम जिस क़ौम से उसके घर के अन्दर जंग की जाती है उसका हिस्सा ज़िल्लत के अलावा कुछ नहीं होता है लेकिन तुमने टाल मटोल किया और सुस्ती का मुज़ाहेरा किया। यहां तक के तुम पर मुसलसल हमले शुरू हो गए और तुम्हारे इलाक़ों पर क़ब्ज़ा कर लिया गया। देखो यह बनी ग़ामिद के आदमी (सुफ़यान बिन औफ़) की फ़ौज अनबार में दाखि़ल हो गई है और उसने हेसान बिन हेसान बकरी को क़त्ल कर दिया है और तुम्हारे सिपाहियों को उनके मराकज़ से निकाल बाहर कर दिया है और मुझे तो यहाँ तक ख़बर मिली है के दुशमन का एक सिपाही मुसलमान या मुसलमानों के मुआहेदे में रहने वाली औरत के पास वारिद होता था। और उसके पैरों के कड़े , हाथ के कंगन, गले के गुलूबन्द और कान के गोशवारे उतार लिया था और वह सिवाए इन्नालिल्लाह पढ़ने और रहमो करम की दरख़्वास्त करने के कुछ नहीं कर सकती थी और वह सारा साज़ोसामान लेकर चला जाता था न कोई ज़ख़्म खाता था और न किसी तरह का ख़ून बहता था। इस सूरतेहाल के बाद अगर कोई मर्दे मुसलमान सदमे से मर भी जाए तो क़ाबिले मलामत नहीं है बल्के मेरे नज़दीक हक़ ब जानिब है। किस क़द्र हैरतअंगेज़ और ताअज्जुबख़ेज़ सूरते हाल है। ख़ुदा की क़सम यह बात दिल को मुर्दा बना देने वाली है व ग़म को समेटने वाली है के यह लोग अपने बातिल पर इकट्ठा और मुज्तहिद हैं और तुम अपने हक़ पर भी मुत्तहिद नहीं हो। तुम्हारा बुरा हो, क्या अफ़सोसनाक हाल है तुम्हारा। के तुम तीरअन्दाज़ों का मुस्तक़िल निशाना बन गए हो। तुम पर हमला किया जा रहा है और तुम हमला नहीं करते हो। तुमसे जंग की जा रही है और तुम बाहर नहीं निकलते हो। लोग ख़ुदा की नाफ़रमानी कर रहे हैं और तुम इस सूरतेहाल से ख़ुश हो। मैं तुम्हें गरमी में जेहाद के लिये निकलने की दावत देता हूँ तो कहते हो के शदीद गर्मी है, थोड़ी मोहलत दे दीजिये के गर्मी गुज़र जाए। इसके बाद सर्दी में बुलाता हूँ तो कहते हो सख़्त जाड़ा पड़ रहा है ज़रा ठहर जाइये के सर्दी ख़त्म हो जाए, हालाँके यह सब जंग से फ़रार करने के बहाने हैं वरना जो क़ौम सर्दी और गर्मी से फ़रार करती हो वह तलवारों से किस क़द्र फ़रार करेंगी। ऐ मर्दों की शक्ल व सूरत वालों और वाक़ेअन नामर्दों! तुम्हारी फ़िक्रें बच्चों जैसी और तुम्हारी अक़्लें हुजलानशीन औरतों जैसी हैं। मेरी दिली ख़्वाहिश थी के काश मैं तुम्हें न देखता और तुमसे मुताअर्रूफ़ न होता। जिसका नतीजा सिर्फ़ निदामत और रन्ज व अफ़सोस है। अल्लाह तुम्हें ग़ारत कर दे तुमने मेरे दिल को पीप से भर दिया है और मेरे सीने को रंजो ग़म से छलका दिया है। तुमने हर साँस में हम व ग़म के घूँट पिलाए हैं और अपनी नाफ़रमानी और सरकशी से मेरी राय को भी बेकार व बे असर बना दिया है यहाँ तक के अब क़ुरैश वाले यह कहने लगे हैं के फ़रज़न्दे अबूतालिब बहादुर तो हैं लेकिन इन्हें फ़नूने जंग का इल्म नहीं है। अल्लाह इनका भला करे, क्या इनमें कोई भी ऐसा है जो मुझसे ज़्यादा जंग का तजुर्बा रखता हो और मुझसे पहले से कोई मक़ाम रखता हो, मैंने जेहाद के लिये उस वक़्त क़याम किया है जब मेरी उम्र20 साल भी नहीं थी और अब तो 60 से ज़्यादा हो चुकी है। लेकिन क्या किया जाए। जिसकी इताअत नहीं की जाती है उसकी राय कोई राय नहीं होती है। (((किसी क़ौम की ज़िल्लत व रूसवाई के लिये इन्तेहाई काफ़ी है के उनका सरबराह हज़रत अली (अ0) बिन अबूतालिब जैसा इन्सान हो और वह उनसे इस क़दर बददिल हो के इनकी शक्लों को देखना भी गवारा न करता हो। ऐसी क़ौम दुनिया में ज़िन्दा रहने के क़ाबिल नहीं है और आखि़रत में भी इसका अन्जाम जहन्नम के अलावा कुछ नहीं है। इस मक़ाम पर मौलाए कायनात (अ0) ने एक और नुक्ते की तरफ़ भी इशारा किया है के तुम्हारी नाफ़रमानी और सरकशी ने मेरी राय को भी बरबाद कर दिया है और हक़ीक़ते अम्र यह है के राहनुमा और सरबराह किसी क़द्र भी ज़की और अबक़री क्यों न हो , अगर क़ौम इसकी इताअत से इन्कार कर दे तो नाफ़हम इन्सान यही ख़याल करता है के शायद यह राय और हुक्म क़ाबिले अहले सनअत न था इसीलिये क़ौम ने इसे नज़रअन्दाज़ कर दिया है। ख़ुसूसियत के साथ अगर काम ही इज्तेमाई हो तो इज्तेमाअ का इन्हेराफ़ काम को भी मुअत्तल कर देता है और इसके नताएज बहरहाल नामुनासिब और ग़लत होते हैं जिसका तजुर्बा मौलाए कायनात (अ0) के सामने आया के क़ौम ने आपके हुक्म के मुताबिक़ जेहाद करने से इनकार कर दिया और गर्मी व सर्दी के बहाने बनाना शुरू कर दे और इसके नतीजे में दुश्मनों ने यह कहना शुरू कर दिया के अली (अ0) फ़नूने जंग से बाख़बर नहीं हैं हालांके अली (अ0) से ज़्यादा इस्लाम में कोई माहिरे जंग व जेहाद नहीं था जिसने अपनी सारी ज़िन्दगी इस्लामी मुजाहेदात के मैदानों में गुज़ारी थी और मुसलसल तेग़ आज़माई का सबूत दिया था और जिसकी तरफ़ ख़ुद आपने भी इशारा फ़रमाया है और अपनी तारीख़े हयात को इसका गवाह क़रार दिया है। दुश्मनों के तानों से एक बात बहरहाल वाज़ेअ हो जाती है के दुश्मनों को आपकी ज़ाती शुजाअत का इक़रार था और फ़न्ने जंग की नावाक़फ़ीयत से मुराद क़ौम का बेक़ाबू हो जाना था और खुली हुई बात है के अली (अ0) इस तरह क़ौम को क़ाबू में नहीं कर सकते थे जिस तरह माविया जैसे दीन व ज़मीर के ख़रीदार इस कारोबार को अन्जाम दे रहे थे और हर दीन व बेदीनी के ज़रिये क़ौम को अपने क़ाबू में रखना चाहते थे और इनका मन्षा सिफ़ यह था के लशकर वालों को ऊंट और ऊंटनी का फ़र्क़ मालूम न हो सके।)))

28- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जो उस ख़ुतबे की एक फ़ज़ीलत की हैसियत रखता है जिसका आग़ाज़ “अलहम्दो लिल्लाह ग़ैरे मक़नूत मन रहमत’से हुआ और इसमें ग्यारह तम्बीहात हैं)

अम्माबाद! यह दुनिया पीठ फेर चुकी है और इसने अपने विदा का एलान कर दिया है और आख़ेरत सामने आ रही है और इसके आसार नुमाया हो गए हैं। याद रखो के आज मैदाने अमल है और कल मुक़ाबला होगा जहाँ सबक़त करने वाले का इनआम जन्नत होगा और बदअमली का अन्जाम जहन्नम होगा। क्या अब भी कोई ऐसा नहीं है जो मौत से पहले ख़ताओं से तौबा कर ले और सख़्ती के दिन से पहले अपने नफ़्स के लिये अमल कर ले। याद रखो के तुम आज उम्मीदों के दिनों में हो जिसके पीछे मौत लगी हुई है तो जिस शख़्स ने उम्मीद के दिनों में मौत आने से पहले अमल कर लिया उसे इसका अमल यक़ीनन फ़ाएदा पहुँचाएगा और मौत कोई नुक़सान नहीं पहुँचाएगी, लेकिन जिसने मौत से पहले उम्मीद के दिनों में अमल नहीं किया उसने अमल की मन्ज़िल में घाटा उठाया और इसकी मौत भी नुक़सानदेह हो गई। आगाह हो जाओ- तुम लोग राहत के हालात में इसी तरह अमल करो जिस तरह ख़ौफ़ के आलम में करते हो, के मैंने जन्नत जैसा कोई मतलूब नहीं देखा है जिसके तलबगार सब सो रहे हैं और जहन्नम जैसा कोई ख़तरा नहीं देखा है जिससे भागने वाले सब ख़्वाबे ग़फ़लत में पड़े हुए हैं। याद रखो के जिसे हक़ फ़ायदा न पहुँचा सके उसे बातिल ज़रूर नुक़सान पहुंचाएगा और जिसे हिदायत सीधे रास्ते पर न ला सकेगी इसे गुमराही बहरहाल खींच कर हलाकत तक पहुँचा देगी। आगाह हो जाओ के तुम्हें कोच का हुक्म मिल चुका है और तुम्हें ज़ादे सफ़र भी बताया जा चुका है और तुम्हारे लिये सबसे बड़ा ख़ौफ़नाक ख़तरा दो चीज़ों का है। ख़्वाहिशात का इत्तेबाअ और उम्मीदों का तूलानी होना। लेहाज़ा जब तक दुनिया में हुआ इस दुनिया से वह ज़ादे राह हासिल कर लो जिसके ज़रिये कल अपने नफ़्स का तहफ़्फ़ुज़ कर सको। सय्यद रज़ी- अगर कोई ऐसा कलाम हो सकता है जो इन्सान की गर्दन पकड़ कर इसे ज़ोहद की मन्ज़िल तक पहुँचा दे और उसे अमल आखि़रत पर मजबूर कर दे तो वह यही कलाम है। (((ज़माने के हालात का जाएज़ा लिया जाए तो अन्दाज़ा होगा के शायद इस दुनिया के इससे बड़ी कोई हक़ीक़त और सिदाक़त नहीं है। जिस शख़्स से पूछिये वह जन्नत का मुशताक है और जिस शख़्स को देखिये वह जहन्नुम के नाम से पनाह मांगता है। लेकिन मन्ज़िले अमल में दोनों इस तरह सो रहे हैं जैसे के यह माषूक़ अज़ ख़ुद घर आने वाला है और यह ख़तरा अज़ख़ुद टल जाने वाला है। न जन्नत के आशिक़ जन्नत के लिये कोई अमल कर रहे हैं और न जहन्नम से ख़ौफ़ज़दा इससे बचने का इन्तेज़ाम कर रहे हैं बल्कि दोनों का ख़याल यह है के मन्सब में कुछ अफ़राद ऐसे हैं जिन्होंने इस बात का ठेका ले लिया है के वह जन्नत का इन्तेज़ाम भी करेंगे और जहन्नम से बचाने का बन्दोबस्त भी करेंगे और इस सिलसिले में हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है। हालाँके दुनिया के चन्द रोज़ा माषूक़ का मामला इससे बिल्कुल मुख़तलिफ़ है। यहाँ कोई दूसरे पर भरोसा नहीं करता है। दौलत के लिये सब ख़ुद दौड़ते हैं, शोहरत के लिये सब ख़ुद मरते हैं, औरत के लिये सब ख़ुद दीवाने बनते हैं, ओहदे के लिये सब ख़ुद रातों की नीन्द हराम करते हैं, ख़ुदा जाने यह अबदी माषूक़ जन्नत जैसा महबूब है जिसका मामला दूसरों के रहमो करम पर छोड़ दिया जाता है और इन्सान ग़फ़लत की नींद सो जाता है। काश यह इन्सान वाक़ेअन मुशताक और ख़ौफ़ज़दा होता तो यक़ीनन इसका यह किरदार न होता। “फ़ाअतबरू या ऊलिल अबसार”)) यह कलाम दुनिया की उम्मीदों को क़ता करने और वाअज़ व नसीहत क़ुबूल करने के जज़्बात को मुष्तअल करने के लिये काफ़ी होता। ख़ुसूसियत के साथ हज़रत का यह इरशाद के “आज मैदाने अमल है और कल मुक़ाबला, इसके बाद मन्ज़िले मक़सूद जन्नत है और अन्जाम जहन्नम।”इसमें अल्फ़ाज़ की अज़मत मानी की क़द्रो मन्ज़ेलत तहशील की सिदाक़त और तस्बीह की वाक़ेअत के साथ वह अजीबो ग़रीब राज़े निजात और लताफ़त मफ़हूम है जिसका अन्दाज़ा नहीं किया जा सकता है। फिर हज़रत (अ0) ने जन्नत व जहन्नम के बारे में “सबक़ा”और “ग़ायत”का लफ़्ज़ इस्तेमाल किया है जिसमें सिर्फ़ लफ़्ज़ी इख़्तेलाफ़ नहीं है बल्के वाक़ेअन मानवी इफ़तेराक़ व इम्तेयाज़ पाया जाता है के न जहन्नम को सबक़ा (मन्ज़िल) कहा जा सकता है और न जन्नत को ग़ायत (अन्जाम) जहाँ तक इन्सान ख़ुद ब ख़ुद पहुंच जाएगा बल्कि जन्नत के लिये दौड़ धूप करना होगी जिसके बाद इनआम मिलने वाला है और जहन्नम बदअमली के नतीजे में ख़ुद ब ख़ुद सामने आ जाएगा। इसके लिये किसी इष्तेयाक़ और मेहनत की ज़रूरत नहीं है। इसी बुनियाद पर आपने जहन्नम को ग़ायत (अन्जाम) क़रार दिया है जिस तरह के क़ुरआन मजीद ने “मसीर”से ताबीर किया है, “फान मसीर कुम एलन्नार”। हक़ीक़तनइ स नुक्ते पर ग़ौर करने की ज़रूरत है के इसका बातिन इन्तेहाई अजीब व ग़रीब और इसकी गहराई इन्तेहाई लतीफ़ है और यह तन्हा इस कलाम की बात नहीं है। हज़रत के कलमात में आम तौर से यही बलाग़त पाई जाती है और इसके मआनी में इसी तरह की लताफ़त और गहराई नज़र आती है। बाज़ रिवायात में जन्नत के लिये सबक़त के बजाए सुबक़त का लफ़्ज़ इस्तेमाल हुआ है जिसके मानी इनआम के हैं और खुली हुई बात है के इनआम भी किसी मज़मूम अमल पर नहीं मिलता है बल्के इसका ताअल्लुक़ भी क़ाबिले तारीफ़ आमाल ही से होता है लेहाज़ा अमल बहरहाल ज़रूरी है और अमल का क़ाबिले तारीफ़ होना भी लाज़मी है।

29- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जब तहकीम के बाद माविया के सिपाही ज़हाक बिन क़ैस ने हज्जाज के क़ाफ़िले पर हमला करवा दिया और हज़रत को इसकी ख़बर दी गई तो आप (अ0) ने लोगों को जेहाद पर आमादा करने के लिये यह ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया)

ऐ वह लोग! जिनके जिस्म एक जगह पर हों और ख़्वाहिशात अलग-अलग हों। तुम्हारा कलाम तो सख़्त तरीन पत्थर को भी नर्म कर सकता है लेकिन तुम्हारे बारे में पुरउम्मीद बना देते हैं। तुम महफ़िलों में बैठकर ऐसी-ऐसी बातें करते हो के ख़ुदा की पनाह लेकिन जब जंग का नक़्षा सामने आता है तो कहते हो “दूर बाश दूर”हक़ीक़ते अम्र यह है के जो तुमको पुकारेगा उसकी पुकार कभी कामयाब न होगी और जो तुम्हें बरदाश्त करेगा उसके दिल को कभी सुकून न मिलेगा। तुम्हारे पास सिर्फ बहाने हैं और ग़लत सलत हवाले और फिर मुझसे ताख़ीरे जंग की फ़रमाइश जैसे कोई नादहन्द क़र्ज़ को टालना चाहता है। याद रखो ज़लील आदमी ज़िल्लत को नहीं रोक सकता है और हक़ मेहनत के बग़ैर हासिल नहीं किया हो सकता है। तुम जब अपने घर का दिफ़ाअ न कर सकोगे तो किसके घर का दिफ़ाअ करोगे और जब मेरे साथ्ज्ञ जेहाद न करोगे तो किसके साथ जेहाद करोगे। ख़ुदा की क़सम वह फ़रेब खोरदा है जो तुम्हारे धोके में आ जाए और जो तुम्हारे सहारे कामयाबी चाहेगा इसे सिर्फ नाकामी का तीर हाथ आएगा।

(((माविया का एक मुस्तक़िल मुक़द्दर यह भी था के अमीरूल मोमेनीन (अ0) किसी आन चैन से न बैठने पाएं कहीं ऐसा न हो के आप वाक़ई इस्लाम क़ौम के सामने पेश कर दें और अमवी उफ़कार का जनाज़ा निकल जाए। इसलिये वह मुसलसल रेशा रवानियों में लगा रहता था। आखि़र एक मरतबा ज़हाक बिन क़ैस को चार हज़ार का लशकर देकर रवाना कर दिया और उसने सारे इलाक़े में कुश्त व ख़ून शुरू कर दिया। आपने मिम्बर पर आकर क़ौम को ग़ैरत दिलाई लेकिन कोई खातिर ख़्वाह असर नहीं हुआ और लोग जंग से किनाराकशी करते रहे। यहाँ तक के हजर बिन अदी चार हज़ार सिपाहियों को लेकर निकल पड़े और मुक़ाम तदमर पर दोनों का सामना हो गया। लेकिन माविया का लशकर भाग खड़ा हुआ और सिर्फ़ 19 अफ़राद माविया के काम आए जबके हजर के सिपाहियों में दो अफ़राद ने जामे शहादत नौश फ़रमाया।)))

और जिसने तुम्हारे ज़रिये तीर फेंका उसने वह तीर फेंका जिसका पैकान टूट चुका है और सूफार ख़त्म हो चुका है। ख़ुदा की क़सम मैं इन हालात में तुम्हारे क़ौल की तस्दीक़ कर सकता हूँ और न तुम्हारी नुसरत की उम्मीद रखता हूँ और न तुम्हारे ज़रिये किसी दुशमन को तहदीद कर सकता हूँ। आखि़र तुम्हें क्या हो गया है? तुम्हारी दवा क्या है? तुम्हारा इलाज क्या है? आखि़र वह लोग भी तो तुम्हारे ही जैसे इन्सान हैं, यह बग़ैर इल्म की बातें कब तक और यह बग़ैर तक़वा की ग़फ़लते ताबके और बग़ैर हक़ के बलन्दी की ख़्वाहिश कहाँ तक?


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