चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

अबु मोहम्मद हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ स )

बन के सज्जादे की ज़ीनत आये सज्जाद हज़ीं

चूमती है जिनके क़दमों को , इबादत की जबीं

दोस्त का क्या ज़िक्र है मूज़ी को यह कहना पड़ा

अनता ज़ैनुल आबेदीन , व अनता जै़नुल आबेदीन

(साबिर थरयानी , कराचीं)

मिसाले जद ख़ुद इमामे अवलिया

चूँ पदर मशहूर , दर सबरे रज़ा

दर इबादत ईं क़दर सर गर्म बूद

अन्ता ज़ैनुल आबेदीन आमद निदा

हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स. अ.) के चोथे जां नशीन , हमारे चौथे इमाम और चाहरदा मासूमीन (अ.स.) की छटे मोहतरम फ़र्द हैं। आपके वालिदे माजिद शहीदे करबला हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) थे और वालेदा माजेदा जनाबे शाहे ज़नान उर्फ़ शहर बानो थीं। आप अपने आबाओ अजदाद की तरह इमामे मन्सूस , मासूम , आलमे ज़माना और अफ़ज़ले कायनात थे। उलेमा का बयान है कि आप इल्म , ज़ोहद , इबादत में हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की जीती जागती तस्वीर थे।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 119 )

इमाम ज़हरी इब्ने अयनिया और इब्ने मुसय्यब का बयान है कि हम ने आपसे ज़्यादा किसी को अफ़ज़ले इबादत ग़ुज़ार और फ़क़ीह नहीं देखा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 126 )

एक शख़्स ने सईद बिन मुसय्यब से किसी का ज़िक्र करते हुए कहा कि वह बड़ा मुत्तक़ी है। इब्ने मुसय्यब ने पूछा , तुम ने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को देखा है ? उसने कहा नहीं। उन्होंने जवाब दिया ‘‘ मा रायता अहदन अवरा मिनहा ’’ मैंने उनसे ज़्यादा मुत्तक़ी और परहेज़गार किसी को नहीं देखा।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 267 )

इब्ने अबी शेबा का कहना है कि ‘‘ असहा इलासा नीद ’’ वह रवायत है जो ज़हरी इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) मन्सूब करे।(तबक़ात अल हफ़्फ़ाज़ ज़हबी अरजहुल मतालिब पृष्ठ 435 ) अल्लामा दमीरी फ़रमाते हैं कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) हदीस बयान करने में निहायत मोतमिद इलैहे और सादिक़ुल रवायत थे। आप बहुत बड़े आलिम और फ़िक़हे अहलेबैत में बे मिस्ल व बे नजी़र थे।(हयातुल हैवान जिल्द 1 पृष्ठ 121 तारीख़ इब्ने ख़ल्कान जिल्द 1 पृष्ठ 320 ) आप ऐसे पुर जलाल व जमाल थे कि जो भी आपको देखता था ताज़ीम करने पर मजबूर हो जाता था।(वसीलतुन नजात पृष्ठ 319 )

आपकी विलादत बा सआदत

आप बतारीख़ 15 जमादिउस सानी 38 हिजरी यौमे जुमा बक़ौले 15 जमादिल अव्वल 38 हिजरी यौमे पन्चशम्बा बा मक़ाम मदीनाए मुनव्वरा पैदा हुए।(आलामुल वुरा पृष्ठ 141 व मनाक़िब जिल्द 4 पृष्ठ 131 )

अल्लामा मजलिसी तहरीर फ़रमाते हैं कि जब जनाबे शहर बानो ईरान से मदीने के लिये रवाना हो रही थीं तो जनाबे रिसालत मआब (स. अ.) ने आलमे ख़्वाब में उनका अक़्द हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के साथ में पढ़ दिया था।(जिलाउल उयून पृष्ठ 256 ) और जबा आप वारिदे मदीना हुईं तो हज़रत अली (अ.स.) ने इमाम हुसैन (अ.स.) के सिपुर्द कर के फ़रमाया कि वह असमत परवर बीवी है कि जिसके बतन से तुम्हारे बाद अफ़ज़ले अवसिया और अफ़ज़ले कायनात होने वाला बच्चा पैदा होगा। चुनान्चे हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) पैदा हुए लेकिन अफ़सोस यह है कि आप अपनी मां की आग़ोश में परवरिश पाने का लुत्फ़ उठा न सके। ‘‘ मातत फ़ी नफ़ासहा बेही ’’ आपके पैदा होते ही ‘‘ मुद्दते नेफ़ास ’’ में जनाबे शहर बानो की वफ़ात हो गई।(क़मक़ाम जलाल अल उयून , उयून अख़्बारे रज़ा , दमए साकेबा जिल्द 1 पृष्ठ 426 )

कामिल मुबरद में है कि जनाबे शहर बानो , मारूफ़तुल नसब और बेहतरीन औरतों में थीं।

शेख़ मुफी़द तहरीर फ़रमाते हैं कि जनाबे शहर बानो , बादशाहे ईरान यज़द जरद बिन शहरयार बिन शेरविया इब्ने परवेज़ बिन हरमज़ बिन नौशेरवाने आदिल ‘‘ किसरा ’’ की बेटी थीं।(इरशाद पृष्ठ 391 व फ़ज़लुल ख़त्ताब)

अल्लामा तरयिही तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत अली (अ.स.) ने शहर बानो से पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है तो उन्होंने कहा ‘‘ शाहे जहां ’’ हज़रत ने फ़रमाया नहीं अब ‘‘ शहर बानो ’’ है।(मजमउल बहरैन पृष्ठ 570 )

नाम ,कुन्नियत , अल्क़ाब

आपका इस्मे गेरामी ‘‘ अली ’’ कुन्नियत ‘‘ अबू मोहम्मद ’’ ‘‘ अबुल हसन ’’ और ‘‘ अबुल क़ासिब ’’ था।

आपके अल्का़ब बेशुमार थे जिनमें ज़ैनुल आबेदीन , सय्यदुस साजेदीन , जुल शफ़नात , सज्जाद व आबिद ज़्यादा मशहूर हैं।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 261, शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 176, नूरूल अबसार पृष्ठ 126, अल फ़रा अल नामी , नवाब सिद्दीक़ हसन पृष्ठ 158 )

लक़ब ज़ैनुल आबेदीन की तौज़ीह

अल्लामा शिब्लन्जी का बयान है कि इमाम मालिक का कहना है कि आपको ज़ैनुल आबेदीन कसरते इबादत की वजह से कहा जाता है। नूरूल अबसार पृष्ठ 126 उलेमाए फ़रीक़ैन का इरशाद है कि हज़रत ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) एक शब नमाज़े तहज्जुद में मशग़ूल थे कि शैतान अज़दहे की शक्ल में आपके क़रीब आ गया और आपके पाए मुबारक के अंगूठे को मुंह में ले कर काटना शुरू किया , इमाम जो अमातन मशग़ूले इबादत थे और आपका रूजहाने कामिल बारगाहे ईज़दी की तरफ़ था। वह ज़रा भी उसके अमल से मुताअस्सिर न हुए और बदस्तूर नमाज़ में मुन्हमिक व मसरूफ़ व मशग़ूल रहे बिल आखि़र वह आजिज़ आ गया और इमाम ने अपनी नमाज़ भी तमाम कर ली। उसके बाद आपने शैतान मलऊन को तमाचा मार कर दूर हटा दिया। उस वक़्त हातिफ़े गै़बी ने अनतः ज़ैनुल आबेदीन की तीन बार आवाज़ दी और कहा बे शक तुम इबादत गुज़रों की जी़नत हो। उसी वक़्त से आपका यह लक़ब हो गया।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 262 शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 177 )

अल्लामा शहरे आशोब लिखते हैं कि इस अजदहे के दस सर थे और उसके दांत बहुत तेज़ और उसकी आंखें सुखऱ् थीं और वह मुसल्ले के क़रीब से ज़मीन फाड़ के निकला था।(मनाक़िब जिल्द 4 पृष्ठ 108 )

एक रवायत में इसकी वजह यह भी बयान कि गई है कि क़यामत में आपको इसी नाम से पुकारा जायेगा।(दएम साकेबा पृष्ठ 426 )

लक़ब सज्जाद की तौजीह

ज़हबी ने तबक़ात उल हफ़ाज़ में इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) के हवाले से लिखा है कि हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को सज्जाद इस लिये कहा जाता है कि आप तक़रीबन हर कारे ख़ैर पर सजदा फ़रमाया करते थे। जब आप ख़ुदा की किसी नेमत का ज़िक्र करते थे तो सजदा करते। जब कलामे खुदा की आयते ‘‘ सजदा ’’ पढ़ते तो सजदा करते। जब दो शख़्सों में सुलह कराते तो सजदा करते इसी का नतीजा था आपके मवाज़े सुजूद पर ऊंट के घट्टों की तरह घट्टे पड़ जाते थे फिर उन्हें कटवाना पड़ता था। इसी लिये आपका लक़ब ‘‘ ज़ुल शफ़नास ’’ यानी घट्टे वाले भी था।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 434 )

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की नसब बलन्दी

नसब और नस्ल बाप और मां की तरफ़ से देखे जाते हैं। इमाम (अ.स.) के वालिदे माजिद हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) और दादा हज़रत अली (अ.स.) और दादी फ़ात्मातुज़ ज़हरा बिन्ते रसूले ख़ुदा (स. अ.) हैं और आपकी वालेदा जनाबे शहर बानो बिन्ते यज़द जर्द इब्ने शहरयार इब्ने किसरा हैं। आप पैग़म्बरे इस्लाम (स. अ.) के पोते और नौशेरवाने आदिल के नवासे हैं। यह वह बादशाह है जिसके अहद में पैदा होने पर सरवरे कायनात (स. अ.) ने इज़हारे मसर्रत फ़रमाया है। इस सिलसिलाए नसब के मुताअल्लिक़ अबुल असवद दवाएली ने अपने अशआर में उसकी वज़ाहत की है कि इस से बेहतर और सिलसिला नामुम्किन है। उसका एक शेर यह है वा अन ग़ुलामन , बैन क़िसरा व हाशिम

ला करम मन यनतत , अलैहे अल तमाएम

इस फ़रज़न्द से बलन्द नसब कोई और नहीं हो सकता जो नौशेरवाने आदिल और फ़ख़्रे कायनात हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स. अ.) के दादा हाशिम की नसल से हो।(उसूले काफ़ी पृष्ठ 255 )

शेख़ सुलैमान कन्दूज़ी और दीगर उलेमाए इस्लाम लिखते हैं कि नौशेरवां आदिल की बरकत तो देखो कि उसी नस्ल को आले मोहम्मद (स. अ.) के नूर की हामिल क़रार दिया और आइम्मा ए ताहेरीन (अ.स.) की एक अज़ीम फ़र्द को उस लड़की से पैदा किया जो नौशेरवां की तरफ़ मन्सूब है। फिर तहरीर करते हैं कि इमाम हुसैन (अ.स.) की तमाम बीवीयों में यह शरफ़ सिर्फ़ जनाबे शहर बानो को नसीब हुआ जो हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की वालेदा माजेदा हैं।(नियाबुल मोअद्दता पृष्ठ 315 व फ़स्ल अल ख़ताब पृष्ठ 261 )

अल्लामा अबीदुल्लाह बा हवाला इब्ने ख़लक़ान लिखते हैं कि जनाब शहर बानो शाहाने फ़ारस के आख़री बादशाह ‘‘ यज़द जर्द ’’ की बेटी थीं और आप ही से इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) पैदा हुए हैं। जिनको ‘‘ अल ख़ैरतैन ’’ कहा जाता है क्यों कि हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) फ़रमाया करते थे कि खुदा वन्दे आलम ने अपने बन्दों में से दो गिरोह अरब और अजम को बेहतरीन क़रार दिया है और मैंने अरब से क़ुरैश और आजम से फ़ारस को मुन्तख़ब कर लिया है चूंकि अरब और अजम का इज्तेमा इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) में है इसी लिये आपको इब्नल ख़ैरतैन से याद किया जाता है।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 434 )

अल्लामा शहरे आशोब लिखते हैं कि जनाबे शहर बानों को ‘‘ सय्यदुन निसां ’’ कहा जाता है।(मनाक़िब जिल्द 4 पृष्ठ 131 )

जनाबे शहर बानों की तशरीफ़ आवरी की बहस

कहा जाता है कि अहदे उमरी में फ़तेह मदाएन के मौक़े पर जनाबे शहर बानों लशकरे इस्लाम के हाथ लगी थीं और वहां से अपनी दीगर बहनों के साथ मदीने पहुँच कर हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़ौजियत से मुशर्रफ़ हुईं।(रबीउल अबरार , ज़मख़्शरी) लेकिन मेरे नज़दीक यह बिल्कुल ग़लत है क्यों कि फ़तेह मदाएन सफ़र 16 , 17 हिजरी में हुई है जैसा कि तारीख़ अबुल फ़िदा , जिल्द 1 पृष्ठ 116 , तारीख़े कामिल जिल्द 2 पृष्ठ 197 , मोअज़्ज़मुल बलदान जिल्द 7 पृष्ठ 413 व फ़तहुल आज़म पृष्ठ 160 , तारीख़े इब्ने ख़ल्दून जिल्द 2 पृष्ठ 100 में है और यज़द जर्द जनाबे शहर बानों का बाप था 14 हिजरी के शुरू में एनाने हुक्मरानीका मालिक हुआ। जैसा कि तारीख़े तबरी जिल्द 2 पृष्ठ 169 , तारीख़े कामिल जिल्द 1 पृष्ठ 178 व तारीख़े अबुल फ़िदा जिल्द अव्वल पृष्ठ 56 में है और तख़्त नशीनी के वक़्त उसकी उम्र 21 साल की थी। जैसा कि तारीख़े तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 81 तारीख़े कामिल जिल्द 2 पृष्ठ 172 तारीख़ इब्ने ख़ल्दून जिल्द 2 पृष्ठ 91 , फ़तूहात इस्लामिया जिल्द 1 पृष्ठ 66 में है इस हिसाब से फ़तेह मदाइन के वक़्त उसकी उम्र ज़्यादा से ज़्यादा 22 साल की हो सकती है। मेरी समझ में नहीं आता कि एक अजमी जो गरम मुल्क का बाशिन्दा न हो वह ग़रीबों की तरह इतनी थोड़ी उम्र में क्यों कर मुबाशेरत के का़बिल बन सकता है यानी यह मुम्किन है कि एक इतने कम सिन शख़्स से ऐसी लड़की पैदा हो सके जो 16 हिजरी में फ़तेह मदाईन के वक़्त शादी के क़ाबिल हो। इस लिये लामोहाला यह मानना पड़ेगा यज़द जर्द की शादी 18 , 19 साल की उम्र में हुई होगी। अब ऐसी सूरत में इसकी शादी 18 , 19 साल की उम्र में तसलीम की जाए और यह भी मान लिया जाए कि जनाबे शहर बानों उसकी पहली औलाद थीं मदाएन के वक़्त जनाबे शहर बानों की उम्र 5 , 6 साल से ज़्यादा नहीं हो सकती। इसके अलावा हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) जो 4 हिजरी में पैदा हुए हैं उनकी शादी कम सिनी में बाहालते नाबालीग़ फिर ऐसी सूरत में जब कि इमाम हसन (अ.स.) की शादी न हुई हो जो इमाम हुसैन (अ.स.) से बडे़ थे , 16 हिजरी में फ़तेह मदाएन के बाद हज़रत अली (अ.स.) क्यों कर सकते हैं।

मुवर्रिख़ शहरी शमसुल उलमा , शिबली नोमानी हज़रत उमर का हाल लिखते हुए तहरीर फ़रमाते हैं कि इस मौक़े पर हज़रत शहर बानो का क़िस्सा जो ग़लत तौर पर मशहूर हो गया है इसे ज़िक्र करना ज़रूरी है। आम तौर पर मशहूर है कि जब फ़ारस फ़तेह हुआ तो यज़द जर्द शहनशाहे फ़ारस की बेटियां गिरफ़्तार हो कर मदीने में आईं हज़रत उमर ने आम लौंड़ियों की तरह बाज़ार में उनके बेचने का हुक्म दिया लेकिन हज़रत अली (अ.स.) ने मना किया कि ख़ानदाने शाही के साथ ऐसा सुलूक जाइज़ नहीं। इन लड़कियों की की़मत का अन्दाज़ा कराया जाए। फिर यह लड़कियां किस के एहतिमाम और सुपुर्दगी में दी जायं और उससे उनकी की़मत आला से आला शरह पर लगवा ली जाए। चुनान्चे हज़रत अली (अ.स.) ने ख़ुद उनको अपने एहतिमाम में लिया और एक इमाम हुसैन (अ.स.) को एक मोहम्मद बिन अबू बक्र को एक अब्दुल्लाह बिन उमर को इनाएत की। इस ग़लत क़िस्से की हक़ीक़त यह है कि ज़ैहमख़शरी ने जिसको फ़ने तारीख़ से कुछ वास्ता नहीं रबीउल अबरार में इसको लिखा और इब्ने ख़ल्का़न कने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के हाल में यह रवायत उसके हवाले से नक़ल कर दी लेकिन यह महज़ ग़लत है। अव्वलन तो ज़ैहमख़शरी के सिवा तबरी इब्ने असीर , याकू़बी बिलाज़री इब्ने क़तीबा वग़ैरा किसी ने इस वाक़िया को नहीं लिखा और ज़हमख़शरी का फ़न तारीख़ी में जो पाया है वह ज़ाहिर है। इसके अलावा तारीख़ी क़रायन इसके बिल्कुल खि़लाफ़ हैं। हज़रत उमर के अहद में यज़दो जरद और ख़ानदाने शाही पर मुसलमानों को मुतलक़ क़ाबू हासिल नहीं हुआ। मदाएन के मारके में यज़दो जर्द मय तमाम अहलो अयाल के दारूल सलतनत से निकला और हवान पहुँचा। जब मुसलमान हवान पर चढ़े तो वह असफ़हान भाग गया और फिर करमान वग़ैरा से टकराता फिरा। मरू में पहुँच कर 30- 31 हिजरी में जो हज़रत उस्मान की खि़लाफ़त का ज़माना था मारा गया। मुझको शुब्हा है कि ज़ैमख़शरी को यह भी मालूम था या नहीं कि यज़दो जर्द का क़त्ल किस अहद में हुआ। इसके अलावा जिस वक़्त का यह वाक़ेया बयान किया जाता है उस वक़्त इमाम हुसैन (अ.स.) की उम्र 12 साल थी क्यों कि जनाबे मम्दुह हिजरत के पांचवे साल पैदा हुए और फ़ारस 17 हिजरी में फ़तह हुआ इस लिये यह उम्र भी किसी क़दर मुस्तबअद है कि हज़रत अली (अ.स.) ने उनके नागालगी़ में उन पर इस क़िस्म की इनायत की होगी इसके अलावा वह एक शहनशाह की अवलाद की क़ीमत निहायत गरां क़रार पाई होगी और हज़रत अली (अ.स.) निहायत ज़ाहिदाना और फ़क़ीराना ज़िन्दगी बसर करते थे। ग़रज़ कि किसी हैसीयत से इस वाक़िये की सेहत पे गुमान नहीं हो सकता।(अल फ़ारूक़ पृष्ठ 172 )

मैंने तवारीख़ से जो इस्तेमबात किया है वह यह है कि अहदे उसमानी में अहले फ़ारस ने बग़ावत कर के अबीद उल्ला बिन उमर ‘‘ वाली फ़ारस ’’ फ़ारस को मार डाला और हुदूदे फ़ारस से लश्कर भी निकाल दिया। इस वक़्त फ़ारस की लशकरी छावनी का मुक़ाम ‘‘ अस्तख़र ’’ था। ईरान का आख़री बादशाह ‘‘यज़द जर्द ’’ अहले फ़ारस के साथ था। हज़रत उस्मान ने अब्दुल्लाह बिन आमिर को हुक्म दिया बसरा और अम्मान में लशकर को मिला कर फ़ारस पर चढ़ाई कर दो। चुनान्चे ऐसा ही किया गया। हुदूदे अस्तख़र में ज़बरदस्त और घमासान की जंग हुई और मुसलमान कामयाब हुए। अस्तख़र फ़तेह होने के बाद 31 हिजरी में यज़द जर्द ‘‘ रै ’’ वहां से ख़ुरासान और फिर ख़ुरासान से मरोजा पहुँचा। उसके हमराह चार हज़ार जर्रार सिपाही भी थे। मरोजा में वह ख़ाकान चीन की साज़िशी इमदाद की वजह से मारा गया और शहान अजम के गोरिस्तान ‘‘ अस्तख़र ’’ में दफ़्न हुआ। इसके बाद अहदे उस्मानी बदल गया और हज़रत अली (अ.स.) शेरे ख़ुदा का ज़माना आ गया।

जंगे जमल के बाद ईरान ख़ुरासान के मक़ाम ‘‘ मरौ ’’ में सख़्त बग़ावत हुई। उस वक़्त ईरान में बरावायत इरशाद मुफ़ीद व रौज़ातुल पृष्ठ हरीस इब्ने वजअफ़ी गर्वनर थे। हज़रत अली (अ.स.) ने मरौ के क़ज़िया नामरज़िया को ख़त्म करने के लिये इमदादी तौर पर खुलीद इब्ने क़ुर्रा यरबोई को रवाना किया , वहां जंग हुई और लशकरे इस्लाम कामयाब हुआ। हरीस इब्ने जाबिर जाअफ़ी ने यज़द जर्द इब्ने शहरयार इब्ने क़िसरा जो अहदे उस्मानी में मारा जा चुका था कि दो बेटियो शहर बानों और गीहान बानों को आम असीरों के साथ हज़रत अली (अ.स.) की खि़दमत में भेजा। शेरे ख़ुदा अली (अ.स.) ने शहर बानों को इमाम हुसैन (अ.स.) और गीहान बानों को मोहम्मद बिन अबी बक्र की ज़ौजियत में दे दिया। जैसा कि रौज़तुल पृष्ठ जिल्द 3 पृष्ठ 9 प्रकाशित निवल किशोर , इरशादे मुफ़ीद जिल्द 2 पृष्ठ 292 , आलाम अल वरा पृष्ठ 101 , उम्दतुल तालिब पृष्ठ 171 , जामेउल तवारीख़ पृष्ठ 149 , कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 89 , मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 261 , सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 120 , नूरूल अबसार पृष्ठ 126 , तोहफ़ाए सुलैमानिया , शरए इरशाद पृष्ठ 391 में मौजूद है उस वक़्त इमाम हुसैन (अ.स.) की उम्र और जनाबे शहर बानों की उम्र काफ़ी हो चुकि थी और इमाम हसन (अ.स.) की शादी हुये अरसा गुज़र चुका था। हज़रत अली (अ.स.) की खि़लाफ़त 35 हिजरी से 40 हिजरी तक रही। जनाबे शहर बानों से 38 हिजरी में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और गिहान बानों से क़ासिम बिन मोहम्मद पैदा हुए।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के बचपन का एक वाके़या

अल्लामा मजलिसी रक़मतराज़ है कि एक दिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) जब कि आपका बचपन था बीमार हुये। हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने फ़रमाया , बेटा ! अब तुम्हारी तबीयत कैसी है और तुम कोई चीज़ चाहते हो तो बयान करो ताकि मैं तुम्हारी ख़्वाहिश के मुताबिक़ उसे फ़राहम करने की कोशिश करूँ। आप ने अर्ज़ कि बाबा जान अब ख़ुदा के फ़ज़ल से अच्छा हूँ। मेरी ख़्वाहिश सिर्फ़ यह है कि ख़ुदा वन्दे आलम मेरा शुमार उन लोगों में करे जो परवरदिगारे आलम के क़ज़ा व क़दर के खि़लाफ़ कोई ख़्वाहिश नहीं रखते। यह सुन कर इमाम हुसैन (अ.स.) खु़श व मसरूर हो गये और फ़रमाने लगे बेटा तुम ने बड़ा मसर्रत अफ़ज़ा और मारेफ़त ख़ेज़ जवाब दिया है। तुम्हारा जवाब बिल्कुल हज़रत इब्राहीम (अ.स.) के जवाब से मिलता जुलता है। हज़रत इब्राहीम (अ.स.) को जब मिनजनीक़ में रख कर आग की तरफ़ फेंका गया था और आप फ़ज़ां में होते हुए आग की तरफ़ जा रहे थे तो हज़रत जिब्राईल (अ.स.) ने आप से पूछा था ‘‘ हल्लक हाजतः ’’ आपकी कोई हाजत व ख़्वाहिश है ? उस वक़्त उन्होंने जवाब दिया था , ‘‘ नाअम इमा इलैका फ़ला ’’ बेशक मुझे हाजत है लेकिन तुम से नहीं , अपने पालने वाले से है।(बेहारूल अनवार जिल्द 11 पृष्ठ 21 प्रकाशित ईरान)

आपके अहदे हयात के बादशाहाने वक़्त

आपकी विलादत बादशाहे दीनो ईमान हज़रत अली (अ.स.) के अहदे असमत में हुई। फिर इमाम हसन (अ.स.) का ज़माना रहा , फिर बनी उमय्या की ख़ालिस दुनियावी हुकूमत हो गई। सुलेह इमाम हसन (अ.स.) के बाद फिर 60 हिजरी तक माविया बिन अबी सुफ़ियान बादशाह रहा। उसके बाद उसका फ़ासिक़ व फ़ाजिर बेटा यज़ीद 64 हिजरी तक हुक्मरां रहा। 64 हिजरी में माविया बिन यज़ीद बिन माविया और मरवान बिन हकम हाकिम रहे। 64 हिजरी में वलीद बिन अब्दुल मलिक ने हुक्मरानी की और उसी ने 94 हिजरी में हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को ज़हरे दग़ा से शहीद कर दिया।(तारीखे़ आइम्मा पृष्ठ 392 व सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 12 व नूरूल अबसार पृष्ठ 128 )

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) का अहदे तफ़ूलियत और हज्जे बैतुल्लाह

अल्लामा मजलिसी तहरीर फ़रमाते हैं कि इब्राहीम बिन अदहम का बयान है कि मैं एक मरतबा हज के लिये जाता हुआ क़ज़ाए हाजत की ख़ातिर क़ाफ़िले से पीछे रह गया। अभी थोड़ी ही देर गुज़री थी कि मैंने एक नौ उम्र लड़के को इस जंगल में सफ़रे पामा देखा। उसे देख कर फिर ऐसी हालत में कि वह पैदल चल रहा था और उसके साथ कोई सामान न था और न उसका कोई साथी था। मैं हैरान हो गया फ़ौरन उसकी खि़दमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ परदाज़ हुआ। ‘‘ साहब ज़ादे ’’ यह लक़ो दक़ सहरा और तुम बिल्कुल तने तन्हा , यह मामेला क्या है ज़रा मुझे बताओ ? तो सही कि तुम्हारा ज़ादे राह और तुम्हारा राहेला कहां है और तुम कहां जा रहे हो ? इस नौ ख़ेज़ ने जवाब दिया।

ज़ादी तक़वा व राहलती रजाली व क़सादी मौलाया

मेरा ज़ादे राह तक़वा और परहेज़गारी है मेरी सवारी मेरे दोनों पैर हैं और मेरा मक़सूद मेरा पालने वाला है और मैं हज के लिये जा रहा हूँ। मैंने कहा कि आप तो बिल्कुल कमसिन हैं , हज आप पर वाजिब नहीं है। उस नौ ख़ेज़ ने जवाब दिया। बेशक तुम्हारा कहना दुरूस्त है लेकिन ऐ शेख़ मैं देखता हूँ कि मुझसे छोटे छोटे बच्चे भी मर जाते हैं इस लिये हज को ज़रूरी समझता हूँ कि कहीं ऐसा न हो कि इस फ़रीज़े की अदाएगी से पहले मर जाऊँ। मैंने पूछा ऐ साहब ज़ादे तुम ने खाने का क्या इंतेज़ाम किया है देख रहा हूँ कि तुम्हारे साथ खाने का कोई इन्तेज़ाम नहीं है। उसने जवाब दिया। ऐ शेख़ जब तुम किसी के यहां मेहमान जाते हो तो खाना अपने हमराह ले जाते हो ? मैंने कहा नहीं। फिर उसने फ़रमाया सुनो , मैं तो ख़ुदा का मेहमान हो कर जा रहा हूँ खाने का इन्तेज़ाम उसके ज़िम्मे है। मैंने कहा इतने लम्बे सफ़र को पैदल क्यो कर तय करोगे। उसने जवाब दिया कि मेरा काम कोशिश करना है और ख़ुदा का काम मंज़िले मक़सूद तक पहुँचाना है।

हम अभी बाहमी गुफ़्तुगू में ही मसरूफ़ थे कि नागाह एक ख़ूब सूरत जवान सफ़ैद लिबास पहने हुये आ पहुँचा और उसने इस नौ ख़ेज़ को गले से लगा लिया। यह देख कर मैंने उस जवाने राना से दरयाफ़्त किया यह नौ उम्र फ़रज़न्द कौन है ? उस नौजवान ने कहा कि यह हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) बिन इमाम हुसैन (अ.स.) बिन अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) हैं। यह सुन कर मैं उस जवाने राना के पास से इमाम की खि़दमत में हाज़िर हुआ और माज़ेरत ख़्वाही के बाद उनसे पूछा कि यह खूब सूरत जवान जिन्होंने आपको गले से लगाया यह कौन हैं ? उन्होंने फ़रमाया यह हज़रते खि़ज्र नबी (अ.स.) हैं। उनका फ़र्ज़ है कि रोज़ाना हमारी ज़्यारत के लिये आया करें। उसके बाद मैंने फिर सवाल किया और कहा कि आखि़र आप इस अज़ीम और तवील सफ़र को बिला ज़ाद और राहेला क्यों कर तय करेंगे। तो आपने फ़रमाया कि मैं ज़ाद और राहेला सब कुछ रखता हूँ और वह यह चार चीज़े हैं। 1. दुनिया अपनी तमाम मौजूदात समेत खुदा की ममलेकत है। 2. सारी मख़्लूक़ अल्लाह के बन्दे हैं। 3. असबाब और अरज़ाक़ ख़ुदा के हाथ में हैं। 4. क़ज़ाए खुदा हर ज़मीन में नाफ़िज़ है। यह सुन कर मैंने कहा ख़ुदा की क़सम आप ही का ज़ाद व राहेला सही तौर पर मुक़द्दस हस्तियों का सामाने सफ़र है।(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 437 )

उलेमा का बयान है कि आपने सारी उम्र में 25 (पच्चीस) हज पा पियादा किये हैं। आपने सवारी पर जब भी सफ़र किया है अपने जानवर को एक कोड़ा भी नहीं मारा।

आपका हुलिया ए मुबारक

इमाम शिब्लंजी लिखते हैं कि आपका रंग गन्दुम गूँ (सांवला) और क़द मियाना था। आप दुबले पतले क़िस्म के इंसान थे।(नूरूल अबसार पृष्ठ 126 व अख़बारूल अव्वल पृष्ठ 109 )

मुल्ला मुबीन तहरीर फ़रमाते हैं कि आप हुसनो जमाल , सूरतो कमाल में निहायत ही मुम्ताज़ थे। आपके चेहरे मुबारक पर जब किसी की नज़र पड़ती थी तो वह आपका एहतेराम करने और आपकी ताज़ीम करने पर मजबूर हो जाता था।(वसीलतुन नजात पृष्ठ 219 )

मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ेई रक़मतराज़ हैं कि आप साफ़ कपड़े पहनते थे और जब रास्ता चलते थे तो निहायत ख़ुशू के साथ राह रवी में आपके हाथ ज़ानू से बाहर नहीं जाते थे।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 226 व पृष्ठ 264 )

हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की शाने इबादत

जिस तरह आपकी इबादत गुज़ारी में पैरवी ना मुम्किन है इसी तरह आपकी शाने इबादत की रक़मतराजी़ भी दुश्वार है। एक वह हस्ती जिसका मक़सद माबूद की इबादत और ख़ालिक की मारेफ़त हो और जो अपनी हयात का मक़सद इताअते ख़ुदा वन्दी ही को समझता हो और इल्मो मारेफ़त में हद दरजा कमाल रखता हो उसकी शाने इबादत को सतेह क़िरतास (क़लम से नहीं लिखा जा सकता) पर क्यों कर लाया जा सकता है और ज़बाने क़लम इसकी तरजुमानी में किस तरह कामयाबी हासिल कर सकती है। यही वजह है कि उलेमा की बे इन्तेहा काहिशो काविश के बा वजूद आपकी शाने इबादत का मुज़ाहेरा नहीं हो सका। ‘‘ क़द बलिग़ मिनल इबादतः मअलम बलीग़ः अहादो ’’ आप इबादत की उस मंज़िल पर फ़ायज़ थे जिस पर कोई भी फ़ायज़ नहीं हुआ।(दमए साकेबा पृष्ठ 439 )

इस लिससिले में अरबाबे इल्म और साहेबाने क़लम जो कुछ कह और लिख सके हैं उनमें से बाज़ वाके़यात व हालात यह हैं।