चौदह सितारे

चौदह सितारे5%

चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे
  • प्रारंभ
  • पिछला
  • 54 /
  • अगला
  • अंत
  •  
  • डाउनलोड HTML
  • डाउनलोड Word
  • डाउनलोड PDF
  • विज़िट्स: 257697 / डाउनलोड: 9987
आकार आकार आकार
चौदह सितारे

चौदह सितारे

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.


1

2

3

4

5

6

7

8

9

10

11

12

13

14

15

16

17

18

19

आपकी हालत वज़ू के वक़्त

वज़ू नमाज़ के लिये मुक़द्दमे की हैसियत रखता है और इसी पर नमाज़ का दारो मदार होता है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) जिस वक़्त वज़ू का इरादा फ़रमाते थे आपके रगो पै में ख़ौफ़े ख़ुदा के असरात नुमायां हो जाते थे। अल्लामा मोहम्मद तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि जब आप वज़ू का क़ज़्द फ़रमाते थे और वज़ू के लिये बैठते थे तो आपके चेहरे मुबारक का रंग ज़र्द हो जाया करता था। यह हालत बार बार देखने के बाद उनके घर वालों ने पूछा कि वज़ू के वक़्त आपके चेहरे का रंग ज़र्द क्यों पड़ जाता है तो आपने फ़रमाया कि उस वक़्त मेरा तसव्वुरे कामिल अपने ख़ालिक़ व माबूद की तरफ़ होता है। इस लिये उसकी जलालत के रोब से मेरा यह हाल हो जाया करता है।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 262 )

आलमे नमाज़ में आपकी हालत

अल्लामा तबरेसी लिखते हैं कि आपको इबादत गुज़ारी में इम्तियाज़े कामिज हासिल था। रात भर जागने की वजह से आपका सारा बदन ज़र्द रहा करता था और ख़ौफ़े ख़ुदा में रोते रोते आपकी आंखें फूल जाया करती थीं और नमाज़ में ख़ड़े ख़ड़े आपके पांव सूज जाया करते थे।(आलाम अल वरा पृष्ठ 153 ) और पेशानी पर घट्टे रहा करते थे और आपकी नाक का सिरा ज़ख़्मी रहा करता था।(दमए साकेबा पृष्ठ 439 )

अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि जब आप नमाज़ के लिये मुसल्ले पर खड़े हुआ करते थे तो लरज़ा बर अन्दाम हो जाया करते थे। लोगों ने बदन में कपकपी और जिस्म में थरथरी का सबब पूछा तो इरशाद फ़रमाया कि मैं उस वक़्त ख़ुदा की बारगाह में होता हूँ और उसकी जलालत मुझ़े अज़ खुद रफ़ता कर देती और मुझ पर ऐसी हालत तारी कर देती है।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 226 )

एक मरतबा आपके घर में आग लग गई और आप नमाज़ में मशगू़ल थे। अहले महल्ला और घर वालों ने बे हद शोर मचाया और हज़रत को पुकारा ‘‘ हुज़ूर आग लगी हुई है ’’ मगर आपने सरे नियाज़ सजदे बे नियाज़ से न उठाया। आग बुझा दी गई। नमाज़ ख़त्म होने पर लोगों ने आप से पूछा कि हुज़ूर आग का मामेला था , हम ने इतना शोर मचाया लेकिन आपने कोई तवज्जो न फ़रमाई। आपने इरशाद फ़रमाया ‘‘ हाँ ’’ मगर जहन्नम की आग के डर से नमाज़ तोड़ कर उस आग की तरफ़ मुतवज्जे न हो सका।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 177 )

अल्लामा शेख़ सब्बान मालकी लिखते हैं कि जब आप वज़ू के लिये बैठते थे तब की से कांपने लगते थे और जब तेज़ हवा चलती थी तो आप ख़ौफ़े ख़ुदा से लाग़र हो जाने की वजह से गिर कर बेहोश हो जाया करते थे।(असआफ़ अल राग़ेबीन बर हाशिया ए नुरूल अबसार पृष्ठ 200 )

इब्ने तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि हज़रत इमाम जै़नुल आबेदीन (अ.स.) नमाज़े शब सफ़र व हज़र दोनों में पढ़ा करते थे और कभी उसे क़ज़ा नहीं होने देते थे।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 263 )

अल्लामा मोहम्मद बाक़र बेहारूल अनवार के हवाले से तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम जै़नुल आबेदीन (अ.स.) एक दिन नमाज़ में मसरूफ़ व मशग़ूल थे कि इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) कुएं में गिर पड़े। बच्चे के गेहरे कुएं में गिरने से उनकी मां बेचैन हो कर रोने लगीं और कुएं के गिर्द पीट पीट कर चक्कर लगाने लगीं और कहने लगीं इब्ने रसूल (अ.स.) मोहम्मद बाक़र (अ.स.) ग़र्क़ हो गये हैं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने बच्चे के कुएं में गिरने की कोई परवाह न की और इतमीनान से नमाज़ तमाम फ़रमाई। उसके बाद आप कुएं के क़रीब आए और पानी की तरफ़ देखा फिर हाथ बढ़ा कर बिला रस्सी के गहरे कुएं से बच्चे को निकाल लिया। बच्चा हंसता हुआ बरामद हुआ। कु़दरते ख़ुदा वन्दी देखिये उस वक़्त न बच्चे के कपड़े भीगे थे और न बदन तर था।(दमए साकेबा पृष्ठ 430, मनाक़िब जिल्द 4 पृष्ठ 109 )

इमाम शिब्लन्जी तहरीर फ़रमाते हैं कि ताऊस रावी का बयान है कि मैंने एक शब हजरे असवद के क़रीब जा कर देखा कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) बारगाहे ख़ालिक़ में मुसलसल सजदा रेज़ी कर रहे हैं। मैं उसी जगह ख़डा़ हो गया। मैंने देखा कि आपने एक सजदे को बे हद तूल दे दिया है , यह देख कर मैंने कान लगाया तो सुना कि आप सजदे में फ़रमा रहे हैं , ‘‘ अब्देका बे फ़सनाएक मिसकीनेका बेफ़ासनाएक़ साएलेका बेफ़नाएक फ़क़ीरेका बेफ़नाएक ’’ यह सुन कर मैंने भी इन्ही कलेमात के ज़रिए ये दुआ माँगनी शुरू कर दी , फ़वा अल्लाह। ख़ुदा की क़सम मैंने जब भी उन कलामात के ज़रिये से दुआ मांगी फ़ौरन क़ुबूल हुई।(नूरूल अबसार पृष्ठ 126 प्रकाशित मिस्र इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 296 )

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की शबाना रोज़ एक हज़ार रकअतें

उलेमा का बयान है कि आप शबो रोज़ में एक हज़ार रकअतें अदा फ़रमाया करते थे।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 119 मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 267 ) चूंकि आपके सजदों का कोई शुमार न था इसी लिये आपके आज़ाए सुजूद ‘‘ सफ़ना बईर ’’ ऊँट के घट्टे की तरह हो जाया करते थे और साल में कई मरतबा काटे जाते थे।(अल फ़रआ अल नामी पृष्ठ 158 व दमए साकेबा , कशफ़ल ग़म पृष्ठ 90 )

अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि आपके मक़ामाते सुजूद के घट्टे साल में दो बार काटे जाते थे हर मरतबा पांच तह निकलती थीं।(बेहारूल अनवार जिल्द 2 पृष्ठ 3 )

अल्लामा दमीरी मुवर्रिख़ इब्ने असाकर के हवाले से लिखते हैं कि दमिशक़ में हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के नाम से मौसूम एक मस्जिद है जिसे ‘‘ जामेए दमिशक़ ’’ कहते हैं।(हयातुल हैवान जिल्द 1 पृष्ठ 121 )

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) मन्सबे इमामत पर फ़ाएज़ होने से पहले

अगरचे हमारा अक़ीदा यह है कि इमाम बतने मादर से इमामत की तमाम सलाहियतों से भर पूर आता है। ताहम फ़राएज़ की अदाएगी की ज़िम्मेदारी इसी वक़्त होती है जब वह इमामे ज़माना की हैसियत से काम शुरू करें , यानी ऐसा वक़्त आजाए जब काएनाती अरज़ी पर कोई भी उस से अफ़ज़ल व इल्म में बरतर व अकमल न हो। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) अगरचे वक़्ते विलादत ही से इमाम थे लेकिन फ़राएज़ की अदाएगी की ज़िम्मेदारी आप पर उस वक़्त आएद हुई जब आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) दर्जए शहादत पर फ़ाएज़ हो कर हयाते ज़ाहेरी से महरूम हो गए।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की विलादत 38 हिजरी में हुई जब कि हज़रत अली (अ.स.) इमामे ज़माना थे। दो साल उनकी ज़ाहिरी ज़िन्दगी में आपने हालते तफ़ूलियत में अय्यामे हयात गुज़ारे फिर 50 हिजरी तक इमामे हसन (अ.स.) का ज़माना रहा फिर आशुरा 61 हिजरी तक इमाम हुसैन (अ.स.) फ़राएज़े इमामत की अंजाम देही फ़रमाते रहे। आशूर की दो पहर के बाद सारी ज़िम्मेदारी आप पर आएद हो गईं। इस अज़ीम ज़िम्मेदारी से क़ब्ल के वाक़ेयात का पता सराहत के साथ नहीं मिलता अलबत्ता आपकी इबादत गुज़ारी और आपके इख़्लाक़ी कार नामे बाज़ किताबों में मिलते हैं बहर सूरत हज़रत अली (अ.स.) के आख़री अय्यामे हयात के वाक़ेयात और इमाम हसन (अ.स.) के हालात से मुताअस्सिर होता एक लाज़मी अमर है। फिर इमाम हसन (अ.स.) के साथ तो 22- 23 साल गुज़ारे थे यक़ीनन इमाम हसन (अ.स.) के जुमला मामलात में आप ने बड़े बेटे की हैसियत से साथ दिया ही होगा लेकिन मक़सदे हुसैन (अ.स.) के फ़रोग़ देने में आपने अपने अहदे इमामत के आगा़ज़ होने पर इन्तेहाई कमाल कर दिया।

वाक़ेए करबला के सिलसिले में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) का शानदार किरदार

28 रज़ब 60 हिजरी को आप हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के हमराह मदीने से रवाना हो कर मक्का मोअज़्ज़मा पहुँचे चार माह क़याम के बाद वहां से रवाना हो कर 2 मोहर्रमुल हराम को वारिदे करबला हुए। वहां पहुँचते ही या पहुँचने से पहले आप अलील हो गए और आपकी अलालत ने इतनी शिद्दत एख़तियार की आप इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत के वक़्त इस क़ाबिल न हो सके कि मैदान में जा कर दर्जए शहादत हासिल करते। ताहम हर अहम मौक़े पर आपने जज़बाते नुसरत को बरूए कार लाने की सई की। जब कोई आवाज़े इस्तेग़ासा कान में आई आप उठ बैठे और मैदाने में कारज़ार में शिद्दते मर्ज़ के बावजूद जा पहुचने की सईए बलीग़ की। इमाम हुसैन (अ.स.) के इस्तेग़ासा पर तो आप ख़ेमे से बाहर निकल आए एक चोबा ए खे़मा ले कर मैदान का अजम कर दिया नागाह इमाम हुसैन (अ.स.) की नज़र आप पर पड़ गई और उन्होंने जंगाह से बक़ौले हज़रते ज़ैनब (स. अ.) को आवाज़ दी ‘‘ बहन सय्यदे सज्जाद को रोको वरना नस्ले मोहम्मद (स. अ.) का ख़ातमा हो जाएगा ’’ हुक्मे इमाम से ज़ैनब (स. अ.) ने सय्यदे सज्जाद (अ.स.) को मैदान में जाने से रोक लिया। यही वजह है कि सय्यदों का वजूद नज़र आ रहा है। अगर इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) अलील हो कर शहीद होने से न बच जाते तो नस्ले रसूल (स. अ.) सिर्फ़ इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) में महदूद रह जाती। इमाम सालबी लिखते हैं कि मर्ज़ और अलालत की वजह से आप दर्जए शहादत पर फ़ाएज़ न हो सके।(नूरूल अबसार पृष्ठ 126 )

शहादते इमाम हुसैन (अ.स.) के बाद जब खेमों में आग लगाई तो आप उन्हीं ख़ेमों में से एक ख़ेमे में बदस्तूर पड़े हुए थे। हमारी हज़ार जानें क़ुर्बान हो जायें हज़रत ज़ैनब बिन्ते अली (अ.स.) पर कि उन्होंने अहद फ़राएज़ की अदाएगी के सिलसिले में सब से पहला फ़रीज़ा इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के तहफ़्फ़ुज़ का अदा फ़रमाया और इमाम को बचा लिया। अलग़रज़ रात गुज़री और सुबह नमूदार हुई , दुश्मनों ने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को इस तरह झिंझोड़ा कि आप अपनी बिमारी भूल गये। आपसे कहा गया कि नाक़ों पर सब को सवार करो और इब्ने ज़्याद के दरबार में चलो। सब को सवार करने के बाद आले मोहम्मद (अ.स.) का सारेबान फूफियों , बहनों और तमाम मुख़द्देरात को लिये दाखि़ले दरबार हुआ। हालत यह थी कि औरतें और बच्चे रस्सीयों में बंधे हुए और इमाम लोहे में जकड़े हुए दरबार में पहुँच गये। आप चूंकि नाक़े की बरैहना पुश्त पर संभल न सकते थे इस लिये आपके पैरों को नाक़े की पुश्त से बांध दिया गया था। दरबारे कूफ़ा में दाखि़ल होने के बाद आप और मुख़द्देराते अस्मत क़ैद ख़ाने में बन्द कर दिये गये। सात रोज़ के बाद आप सब को लिये हुए शाम की तरफ़ रवाना हुए और 19 मंज़िले तय कर के तक़रीबन 36 यौम (दिनों) में वहां पहुँचे।

कामिल बहाई में है कि 16 रबीउल अव्वल 61 हिजरी को आप दमिश्क़ पहुँचे हैं। अल्लाह रे सब्रे इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) बहनों और फुफियों का साथ और लबे शिकवा पर सकूत की मोहर हुदूदे शाम का एक वाक़ेया यह है आपके हाथों में हथकड़ी , पैरों में बेड़ी और गले मे ख़ारदार तौक़े आहनी पड़ा हुआ था , इस पर मुस्तज़ाद यह कि लोग आप पर आग बरसा रहे थे। इसी लिये आपने बाद वाक़ेय करबला एक सवाल के जवाब में ‘‘ अश्शाम , अश्शाम , अश्शाम ’’ फ़रमाया था।(तहफ़्फ़ुज़े हुसैनिया अल्लामा बसतामी)

शाम पहुँचने के कई घन्टों या दिनों के बाद आप आले मोहम्मद (अ.स.) को लिये हुए सरहाय शोहदा समेत दाखि़ले दरबार हुए फिर क़ैद ख़ाने में बन्द कर दिये गये। तक़रीबन एक साल क़ैद की मशक़्क़तें झेलीं। क़ैद खा़ना भी ऐसा था कि जिसमें तमाज़ते आफ़ताबी की वजह से इन लोगों के चेहरों की खालें मुताग़य्यर हो गई थी। लहूफ़ मुद्दते क़ैद के बाद आप सब को लिये हुए 20 सफ़र 62 हिजरी को वारिदे करबला हुए। आपके हमराह सरे हुसैन (अ.स.) भी कर दिया गया था।

आपने उसे पदरे बुजु़र्गवार के जिस्में मुबारक से मुलहक़ किया(नासिख़ुल तवारीख़) 8 रबीउल अव्वल 62 हिजरी को आप इमाम हुसैन (अ.स.) का लुटा हुआ काफ़िला लिए हुए , मदीने मुनव्वरा पहुँचे , वहां के लोगों ने आहो जा़री और कमालो रंज से आपका इस्तेक़बाल किया। 15 शाबाना रोज़ नौहा व मातम होता रहा।(तफ़सीली वाक़ेआत के लिये कुतुब मक़ातिल व सैर मुलाहेज़ा किजिए)

इस अज़ीम वाक़ेया का असर यह हुआ की ज़ैनब (अ.स.) के बाल इस तरह सफ़ेद हो गये थे कि जानने वाले उन्हें पहचान न सके।(अहसन अलक़सस पृष्ठ 182 प्रकाशित नजफ़) रूबाब ने साय में बैठना छोड़ दिया , इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) गिरया फ़रमाते रहे।(जलालुल ऐन पृष्ठ 256 ) अहले मदीना यज़ीद की बैअत से अलाहेदा हो कर बाग़ी हुए बिल आखि़र वाक़ेए हर्रा की नौबत आ गई।

वाक़ेए करबला और हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के ख़ुतबात

मारकाए करबला की ग़मगीन दास्तान तारीख़े इस्लाम ही नहीं तारीख़े आलम का अफ़सोस नाक सानेहा है। हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) अव्वल से आखि़र तक इस होशरूबा और रूह फ़रसा वाक़ेए में अपने बाप के साथ रहे और बाप की शहादत के बाद खु़द इस अलमिया के हीरो बने और फिर जब तक ज़िन्दा रहे इस सानेहा का मातम करते रहे। 10 मोहर्रम 61 हिजरी का यह अन्दोह नाक हादसा जिसमें 18 बनी हाशिम और 72 असहाब व अनसार काम आए। हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) मुदतुल उम्र घुलता रहा और मरते दम तक इसकी याद फ़रामोश न हुई और इसका सदमाए जां काह दूर न हुआ। आप यूं तो इस वाक़ेए के बाद चालिस साल ज़िन्दा रहे मगर लुत्फ़े ज़िन्दगी से महरूम रहे और किसी ने आपको बशशाशा और फ़रहानाक न देखा। इस जान का वाक़ेए करबला के सिलसिले में आपने जो जाबजा ख़ुत्बे इरशाद फ़रमाये हैं उनका तरजुमा दर्जे ज़ैल है।

कूफ़े में आपका ख़ुत्बा

किताब लहूफ़ पृष्ठ 68 में है कि कूूफ़ा पहुँचने के बाद इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने लोगों को ख़ामोश रहने का इशारा किया , सब ख़ामोश हो गये , आप खड़े हुए ख़ुदा की हम्दो सना की। हज़रत बनी सालिम का ज़िक्र किया उन पर सलवात भेजी फिर इरशाद फ़रमाया , ऐ लोगों ! जो मुझे पहचानता है वह तो पहचानता ही है , जो नहीं पहचानता उसे मैं बताता हूँ। मैं अली इब्नुल हुसैन बिन अली बिन अबी तालिब (अ.स.) हूँ। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसकी बेहुरमती की गई , जिसका सामान लूट लिया गया , जिसके अहलो अयाल क़ैद कर दिये गये। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जो साहिले फ़ुरात पर ज़ब्हा कर दिया गया और बग़ैर कफ़न व दफ़न छोड़ दिया गया और शहादते हुसैन (अ.स.) हमारे फ़ख़्र के लिये काफ़ी है। ऐ लोगों ! मैं तुम्हे ख़ुदा की क़सम देता हूँ ज़रा सोचो तुम ने ही मेरे पदरे बुज़ुर्गवार को ख़त लिखा और फिर तुम ने ही उनको धोखा दिया , तुम ने ही उनके साथ अहदो पैमान किया और उनकी बैअत की और फिर तुम ने ही उनको शहीद कर दिया। तुम्हारा बुरा हो कि तुम ने अपने लिये हलाकत का सामान इकठ्ठा कर लिया , तुम्हारी राहें किस क़द्र बुरी हैं , तुम किन आख़ों से रसूल (स. अ.) को देखोगे। जब रसूल बाज़ पुर्स करेंगे कि तुम लोगों ने मेरी इतरत को क़त्ल किया और मेरे अहले हरम को ज़लील किया ‘‘ इस लिये तुम मेरी उम्मत से नहीं ’’।

मस्जिदे दमिश्क़ (शाम) में आपका ख़ुत्बा

मक़तल अबी मख़नफ़ पृष्ठ 135 , बेहारूल अनवार जिल्द 10 पृष्ठ 233 , रियाज़ुल कु़द्स जिल्द 2 पृष्ठ 328 और रौज़ातुल अहबाब वग़ैरा में है कि जब हज़रत ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) अहले हरम समेत दरबारे यज़ीद में दाखिल किये गये और उनको मिम्बर पर जाने का मौक़ा मिला तो आप मिम्बर पर तशरीफ़ ले गये और अम्बिया की तरह शीरी ज़बान में निहायत फ़साहत व बलाग़त के साथ ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया। ऐ लोगों ! जो मुझे पहचानता है वह तो पहचानता ही है , जो नहीं पहचानता उसे मैं बताता हूँ कि मैं कौन हूँ सुनो मैं अली बिन हुसैन बिन अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) हूँ। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसने हज किये हैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसने तवाफ़े काबा किया है और सई की है। मैं पिसरे ज़मज़म व पृष्ठ हूँ मैं फ़रज़न्दे फ़ात्मा ज़हरा (स. अ.) हूँ मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जो पसे गरदन से ज़िब्हा किया गया। मैं उस प्यासे का फ़रज़न्द हूँ जो प्यासा ही दुनिया से उठा। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिस पर लोगों ने पानी बन्द कर दिया हालां कि तमाम मख़लूक़ात पर पानी जायज़ क़रार दिया। मैं मोहम्मदे मुस्तफ़ा (स. अ.) का फ़रज़न्द हूँ। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जो करबला में शहीद किया गया। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसके अनसार ज़मीन में आराम की निन्द सो गये मैं उसका पिसर हूँ जिसके अहले हरम क़ैद कर दिये गये। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसके बच्चे बग़ैर जुर्मों ख़ता ज़िब्हा कर डाले गये। मैं उसका बेटा हूँ जिसके ख़ेमों में आग लगा दी गई। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जो ज़मीने करबला पर शहीद कर दिया गया। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसको न ग़ुस्ल दिया गया और न कफ़न। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसका सर नोके नैज़ा पर बुलन्द किया गया। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसके अहले हरम की करबला में बेहुरमी की गई। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसका जिस्म ज़मीने करबला पर छोड़ दिया गया और सर दूसरे मक़ामात पर नोके नैज़ा पर बुलन्द कर के फिराया गया। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसके इर्द गिर्द सिवाए दुश्मन के कोई और न था। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसके अहले हरम को क़ैद कर के शाम तक फिराया गया। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जो बे यारो मददगार था। फिर इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया लोगों ख़ुदा ने हम को पाँच चीजो से फ़ज़ीलत बख़्शी है। 1. ख़ुदा की क़सम हमारे ही घर से फ़रिश्तों की आमदो रफ़्त रही और हम ही मादने नबूवत व रिसालत हैं। 2. हमारी ही शान में क़ुरआन की आयतें नाज़िल कीं और हम ने लोगों की हिदायत की। 3. शुजाअत हमारे ही घर की कनीज़ है , हम कभी किसी की क़ुव्वत व ताक़त से नहीं डरे और फ़साहत हमारा ही हिस्सा है। जब फ़सहा (ज्ञानी) फ़क़रो मुबाहात करे। 4. हम ही सिरातल मुस्तक़ीम और हिदायत का मरकज़ हैं और इसके लिये इल्म का सर चश्मा हैं जो इल्म हासिल करना चाहे और दुनियां के मोमेनीन के दिलों में हमरी मोहब्बत है। 5. हमारे ही मरतबे आसमानों और ज़मीनों में बुलन्द हैं। अगर हम न होते तो ख़ुदा दुनिया ही को पैदा न करता। हर फ़ख़्र हमारे फ़़ख़्र के सामने पस्त है। हमारे दोस्त रोज़े क़यामत सेरो सेराब होंगे और हमारे दुश्मन रोज़े क़यामत बद बख़्ती में होंगे। जब लोगों ने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) का कलाम सुना तो चीख़ मार कर रोने और पीटने लगे और उनकी आवाज़ें बे साख़्ता बुलन्द होने लगीं। यह हाल देख कर यज़ीद घबरा उठा कि कहीं कोई फ़ितना न खडा़ हो जाये। इसके लिये उसने रद्दे अमल में फ़ौरन मोअजि़्ज़न को हुक्म दिया कि अज़ान शुरू कर के इमाम के ख़ुत्बे को मुन्क़ता कर दे। जब मोअजि़्ज़न गुलदस्ता ए अज़ान पर गया और कहा ‘‘ अल्लाहो अकबर ’’ (ख़ुदा की ज़ात सब से बुज़ुर्ग व बरतर है) इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया तुने एक बड़ी ज़ात की बढ़ाई बयान की एक अज़ीमुश्शान ज़ात की अज़मत का इज़हार किया और जो कुछ कहा हक़ कहा। फिर मोअजि़्ज़न ने काह ‘‘ अश हदोअन ला इलाहा अल्लल्लाह ’’ (मैं गवाही देता हूँ कि नहीं कोई माबूद सिवाए अल्ला के) इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया कि मैं भी इस मक़सद की हर गवाह के साथ गवाही देता हूँ और हर इन्कार करने वाले के खि़लाफ़ इक़रार करता हूँ। फिर मोअजि़्ज़न ने कहा ‘‘ अश हदो अन्ना मोहम्मदन रसूल अल्लाह ’’ (मैं गवाही देता हूँ कि मोहम्मद मुस्तफ़ा (स. अ.) अल्लाह के रसूल हैं) ‘‘ फ़बका अलीउन ’’ यह सुन कर हज़रत अली बिन हुसैन (अ.स.) रो पड़े और फ़रमाया ऐ यज़ीद मैं तुझे ख़ुदा का वास्ता दे कर पूछता हूँ बता हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स. अ.) मेरे नाना थे या तेरे ? यज़ीद ने कहा आपके। आपने फ़रमाया , फिर क्यों तूने उनके अहले बैत को शहीद किया ? यज़ीद ने कोई जवाब नहीं दिया और अपने महल में यह कहता हुआ चला गया ‘‘ ला हाजतः ली बिल सलवातः ’’ मुझे नमाज़ से कोई वास्ता नहीं है। इसके बाद मिन्हाल बिन उमर खड़े हुए और कहा ऐ फ़रज़न्दे रसूल (अ.स.) आपका क्या हाल है ? फ़रमाया ऐ मिन्हाल ऐसे शख़्स का क्या हाल पूछते हो जिसका बाप निहायत बे दर्दी से शहीद कर दिया गया। जिसके मद्दगार ख़त्म कर दिये गये हों , जो अपने चारों तरफ़ अहले हरम को क़ैद देख रहा हो जिनका न परदा रह गया न चादरें रह गई , जिनका न कोई मद्दगार है। तुम तो देख ही रहे हो कि मैं मुक़य्यद हूँ , ज़लील रूसवा किया गया हूँ , ना कोई मेरा नासिर है न मद्दगार मैं और मेरे अहले बैत लिबासे कुहना में मलबूस हैं , हम पर नये लिबास हराम कर दिये गये हैं। अब जो मेरा हाल पूछते हो तो मैं तुम्हारे सामने मौजूद हूँ तुम देख ही रहे हो हमारे दुश्मन हमें बुरा भला कहते हैं और हम सुब्हो शाम मौत का इन्तेज़ार करते हैं। फिर फ़रमाया अरब व अजम इस पर फ़ख्र करते हैं कि हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स. अ.) इन में से थे और क़ुरैश अरब पर इस लिये फ़ख़्र करते हैं कि आं हज़रत (स अ व व ) क़ुरैश थे और हम इन के अहले बैत हैं लेकिन हम को क़त्ल किया गया , हम पर ज़ुल्म किया गया , हम पर मुसीबतों के पहाड़ टूट गये और हम को क़ैद कर के दर बदर फिराया गया गोया हमारा हसब बहुत गिरा हुआ है और बहुत ज़लील है , गोया हम इज़्ज़तों की बुलन्दी पर नहीं चढ़े और बुज़ुर्गियों के फ़रश पर जलवा अफ़रोज़ नहीं हुए। आज गोया तमाम यज़ीद और इसके लशकर का हो गया आले मुस्तफ़ा (स अ व व ) यज़ीद की अदना ग़ुलाम हो गई है। यह सुनना था कि हर तरफ़ से रोने पीटने की सदाए बुलन्द हो गईं। यज़ीद बहुत ख़ाएफ़ हुआ कि कोई फ़ितना न खड़ा हो जाए इसने इस शख़्स से कहा जिसने इमाम को मिम्बर पर तशरीफ़ ले जाने को गया था , ‘‘ वयहका अरदत बसअव दह ज़वाली मलकी ’’ तेरा बुरा हो तू इनको मिम्बर पर बिठा कर मेरी सलतनत ख़त्म करना चाहता है। इसने जवाब दिया , ब खु़दा मैं यह न जानता था कि यह लड़का इतनी बुलन्द गुफ़्तुगू करेगा। यज़ीद ने कहा ‘‘ क्या तू नहीं जानता कि यह अहले बैते नबूवत और मादने रिसालत की एक फ़रद है ’’ यह सुन कर मोअजि़्ज़न से न रहा गया और उसने कहा कि ऐ यज़ीद ! ‘‘ अज़कान कज़ालका फ़लम्मा क़लत अबाह ’’ जब तू यह जानता था तो तूने इनके पदरे बुज़ुर्गवार को क्यों शहीद किया ? मोअजि़्ज़न की गुफ़्तुगू सुन कर यज़ीद बरहम हो गया ‘‘ फ़मर बज़र अनक़ह ’’ और मोअजि़्ज़न की गरदन मार देने का हुक्म दिया।

मदीने के क़रीब पहुँच कर आपका ख़ुत्बा

मक़तल अबी मख़नफ़ पृष्ठ 88 में है कि एक साल तक क़ैद खा़ने शाम की सऊबत बरदाश्त करने के बाद जब अहले बैते रसूल (अ.स.) की रिहाई हुई और यह काफ़ला करबला होता हुआ मदीना की तरफ़ चला तो क़रीबे मदीना पहुँच कर इमाम (अ.स.) ने लोगों को ख़ामोश हो जाने का इशारा किया सब के सब ख़ामोश हो गये , आपने फ़रमाया:

हम्द उस ख़ुदा की जो तमाम दुनिया का परवरदिगार है , रोज़े जज़ा का मालिक है। तमाम मख़्लूक़ात का पैदा करने वाला है जो इतना दूर है बुलन्द आसमान से भी बुलन्द है और इतना क़रीब है कि सामने मौजूद है और हमारी बातों को सुनता है। हम ख़ुदा की तारीफ़ करते हैं और उसका शुक्र बजा लाते हैं। अज़ीम हादसों , ज़माने की हौलनांक गरदिशों , दर्द नाक ग़मों , ख़तरनाक आफ़तों शदीद तकलीफ़ों और क़ल्बो जिगर को हिला देने वाली मुसीबतों के नाज़िल होने के वक़्त ऐ लोगों ! खु़दा और सिर्फ़ खु़दा के लिये हम्द है। हम बड़े बड़े मसाएब में मुबतिला किए गए , दीवारे इस्लाम में बहुत बड़ा रखना (शिग़ाफ़) पड़ गया। हज़रत अबू अब्दुल्लाह हुसैन (अ.स.) और उनके अहले बैत शहीद कर दिये गये। इनकी औरतें और बच्चे क़ैद कर दिये गये और लशकरे यज़ीद ने इनके सर हाय मुबारक को बुलन्द नैज़ों पर रख कर शहरों में फिराया। यह वह मुसीबत है जिसके बराबर कोई मुसीबत नहीं। ऐ लोगों ! तुम में से कौन मर्द है जो शहादते हुसैन (अ.स.) के बाद खु़श रहे या कौन सा दिल है जो शहादते हुसैन (अ.स.) से ग़मगीन न हो या कौन सी आंख है जो आंसू को रोक सके। शहादते हुसैन (अ.स.) पर सातों आसमान रोए। समन्दर और उसकी मौजे रोईं , आसमान और उसके अरकान रोए , ज़मीन और उसके अतराफ़ रोए। दरख़्त और उसकी शाख़ें रोईं , मछलियां और समन्दर के गिरदाब रोए। मलाएक मुक़रेबीन और तमाम आसमान वाले रोए। ऐ लोगों ! कौन सा क़ल्ब है जो शहादते हुसैन (अ.स.) की ख़बर सुन कर फट न जाए। कौन सा क़ल्ब है जो महज़ून न हो। कौन सा कान है जो इस मुसीबत को सुन कर जिससे दीवारे इस्लाम में रखना पड़ा , बहरा न हो। ऐ लोगों ! हमारी यह हालत थी कि हम कशाँ कशाँ फिराये जाते थे। दर बदर ठुकराए जाते थे। ज़लील किए गये शहरों से दूर थे गोया हम को औलादे तुर्क दकाबिल समझ लिया गया था हालां कि न हम ने कोई जुर्म किया था न किसी की बुराई का इरतेक़ाब किया था न दीवारे इस्लाम में कोई रखना डाला था और न इन चीज़ों के खि़लाफ़ किया था जो हम ने अपने आबाओ अजदाद से सुना था , ख़ुदा की क़सम अगर हज़रत नबी (स. अ.) भी इन लोगों (लशकरे यज़ीद) को हम से जंग करने के लिये मना करते तो यह न मानते जैसे कि हज़रत नबी (स. अ.) ने हमारी वसीअत का ऐलान किया और इन लोगों ने न माना बल्कि जितना उन्होंने किया है इस से ज़्यादा सुलूक करते। हम ख़ुदा के लिये हैं और खुदा की तरफ़ हमारी बशाग़त है।

रौज़ा ए रसूल (स. अ.) पर इमाम (अ.स.) की फ़रयाद

मक़तल अबी मख़नफ़ पृष्ठ 143 में है कि यह लुटा हुआ काफ़िला मदीने में दाखि़ल हुआ तो हज़रत उम्मे कुलसूम (अ.स.) गिरयाओ बुका करती हुई मस्जिदे नबवी में दाखि़ल हुईं और अर्ज़ कि , ऐ नाना आप पर मेरा सलाम हो ‘‘ अनी नाऐतहू अलैका वलदक अल हुसैन ’’ मैं आपको आपके फ़रज़न्द हुसैन (अ.स.) की ख़बरे शहादत सुनाती हूँ। यह कहना था कि क़ब्रे रसूल (स. अ.) गिरये की सदा बुलन्द हुई और तमाम लोग रोने लगे फिर हज़रत ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) अपने नाना की क़बे्र मुबारक पर तशरीफ़ लाए और अपने रूख़सार क़बे्र मुताहर से रगड़ते हुए यूँ फ़रयाद करने लगे।

اناجیک یاجداه یاخیرمرسل

اناجیک محزوناعلیک موجلا

سبیناکماتسبی الاماء ومسنا

حبیبک مقتول ونسلک ضائع

اسیرا ومالی حامیا ومدافع

من الضرمالاتحمله الاصابع

तरजुमा:

मैं आपसे फ़रयाद करता हूँ ऐ नाना , ऐ तमाम रसूलों में सब से बेहतर आपका महबूब हुसैन (अ.स.) शहीद कर दिया गया और आपकी नस्ल तबाह व बरबाद कर दी गई। ऐ नाना हम सब को इस तरह क़ैद किया गया जिस तरह लावारिस कनीज़ों को कै़द किया जाता है। ऐ नाना हम पर इतने मसाएब ढाए गए जो उंगलियों पर गिने नहीं जा सकते।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और ख़ाके शिफ़ा

मिसबाह उल मुजतहिद में है कि हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के पास एक कपड़े में बंधी हुई थोड़ी सी ख़ाके शिफ़ा रहा करती थी।(मुनाक़िब जिल्द 2 पृष्ठ 329 प्रकाशित मुलतान)

हज़रत के हमराह ख़ाके शिफ़ा का हमेशा रहना तीन हाल से ख़ाली न था या उसे तबर्रूक समझते थे या उस पर नमाज़ में सजदा करते थे या उसे ब हैसीयत मुहाफ़िज़ रखते थे और लोगों को बताना मक़सूद रहता था कि जिसके पास ख़ाके शिफ़ा हो वह जुमला मसाएब व अलाम से महफ़ूज़ रहता है और इसका माल चोरी नहीं होता जैसा कि अहादीस से वाज़े है।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और मोहम्मदे हनफ़िया के दरमियान हजरे असवद का फ़ैसला

आले मोहम्मद (अ.स.) के मदीने पहुँचने के बाद इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के चचा मोहम्मद हनफ़िया ने बरावयते अहले इस्लाम से ख़्वाहिश की कि मुझे तबर्रूकाते इमामत दे दो कि मैं बुर्ज़ग ख़ानदान और इमामत का अहल व हक़दार हूँ। आपने फ़रमाया कि हजरे असवद के पास चलो वह फ़ैसला कर देगा। जब यह हज़रत उसके पास पहुँचे तो वह ब हुक्मे ख़ुदा यूं बोला , ‘‘ इमामत ज़ैनुल आबेदीन का हक़ है ’’ इस फ़ैसले को दोनों ने तसलीम कर लिया।(शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 176 )

कामिल मबरद में है कि इस वाक़िये के बाद से मोहम्मद हनफ़िया इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की बड़ी इज़्ज़त करते थे। एक दिन अबू ख़ालिद काबली ने उनसे इसकी वजह पूछी तो कहा हजरे असवद ने खि़लाफ़त का इनके हक़ में फ़ैसला दे दिया है और यह इमामे ज़माना हैं यह सुन कर वह मज़हबे इमाम का क़ाएल हो गया।(मुनाक़िब जिल्द 2 पृष्ठ 326 )

सुबूते इमामत में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) का कन्करी पर मुहर लगाना

उसूले काफ़ी में है कि एक औरत जिसकी उम्र 113 साल की हो चुकी थी एक दिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के पास आई उसके पास वह कन्करी थी जिस पर हज़रत अली (अ.स.) इमाम हसन (अ.स.) इमाम हुसैन (अ.स.) की मोहरे इमामत लगी हुई थी। उसके आते ही बिला कहे हुये आपने फ़रमाया कि वह कन्करी ला जिस पर मेरे आबाओ अजदाद की मोहरें लगी हुई हैं उस पर मैं भी मोहर कर दूँ। चुनान्चे उस ने कन्करी दे दी। आपने उसे मोहर कर के वापस कर दी और उसकी जवानी भी पलटा दी। वह ख़ुश व खुर्रम वापस चली गई।(दमए साकेबा जिल्द 2 पृष्ठ 436 )

वाक़ेए हुर्रा और इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.)

मुस्तनद तवारीख़ में है कि करबला के बेगुनाह क़त्ल ने इस्लाम में एक तहलका डाल दिया। ख़ुसूसन ईरान में एक कौमी जोश पैदा कर दिया जिसने बाद में बनी अब्बास को बनी उमय्या के ग़ारत करने में बड़ी मद्द दी चुंकि यज़ीद तारेकुस्सलात और शराबी था और बेटी बहन से निकाह करता और कुत्तों से खेलता था , उसकी मुलहिदाना हरकतों और इमाम हुसैन (अ.स.) के शहीद करने से मदीने में इस क़द्र जोश फैला कि 62 हिजरी में अहले मदीना ने यज़ीद की मोअत्तली का ऐलान कर दिया और अब्दुल्लाह बिन हनज़ला को अपना सरदार बना कर यजी़द के गर्वनर उस्मान बिन मोहम्मद बिन अबी सुफ़ियान को मदीने से निकाल दिया। स्यूती तारीख़ अल ख़ुलफ़ा में लिखता है कि ग़सील उल मलायका (हनज़ला) कहते हैं कि हम ने उस वक़्त तक यज़ीद की खि़लाफ़त से इन्कार नहीं किया जब तक हमें यह यक़ीन नहीं हो गया कि आसमान से पत्थर बरस पड़ेंगे। ग़ज़ब है कि लोग मां बहनों और बेटियां से निकाह करें , ऐलानियां शराब पियें और नमाज़ छोड़ बैठें।

यज़ीद ने मुस्लिम बिन अक़बा को जो ख़ूं रेज़ी की कसरत के सबब (मुसरिफ़) के नाम से मशहूर है फ़ौजे कसीर दे कर अहले मदीना की सरकोबी को रवाना किया। अहले मदीना ने बाब अल तैबा के क़रीब मक़ामे ‘‘ हुर्रा ’’ पर शामियों का मुक़ाबला किया। घमासान का रन पड़ा , मुसलमानों की तादाद शामियों से बहुत कम थी इस के बावजूद उन्होंने दादे मरदानगी दी मगर आखि़र शिकस्त खाई। मदीने के चीदा चीदा बहादुर रसूल अल्लाह (स. अ.) के बड़े बड़े सहाबी , अन्सार व महाजिर इस हंगामे आफ़त में शहीद हुए। शामी घरों में घुस गये। मज़ारात को उनकी ज़ीनत और आराईश की ख़ातिर मिसमार कर दिया। हज़ारों औरतों से बदकारी की। हज़ारों बाकरा लड़कियों का बकारत (बलात्कार) कर डाला। शहर को लूट लिया। तीन दिन क़त्ले आम कराया दस हज़ार से ज़्यादा बाशिन्दगाने मदीना जिन में सात सौ महाजिर और अन्सार और इतने ही हामेलान व हाफ़ेज़ाने क़ुरआन व उलेमा व सुलोहा मोहद्दिस थे इस वाक़िये में मक़्तूल हुए। हज़ारों लड़के लड़कियां गु़लाम बनाई गईं और बाक़ी लोगों से बशर्ते क़ुबूले ग़ुलामी यज़ीद की बैयत ली गई। मस्जिदे नबवी और हज़रत के हरमे मोहतरम में घोड़े बंधवाये गए। यहां तक कि लीद का अम्बार लग गए। यह वाक़िया जो तारीख़े इस्लाम में वाक़ेए हर्रा के नाम से मशहूर है 27 ज़िलहिज 63 हिजरी को हुआ था। इस वाक़िये पर मौलवी अमीर अली लिखते हैं कि कुफ़्र व बुत परस्ती ने फिर ग़लबा पाया। एक फ़िरंगी मोवरिख़ लिखता है कि कुफ्ऱ का दोबारा जन्म लेना इस्लाम के लिये सख़्त ख़ौफ़ नाक और तबाही बख़्श साबित हुआ। बक़ीया तमाम मदीने को यज़ीद का ग़ुलाम बनाया गया। जिसने इन्कार किया उसका सर उतार लिया। इस रूसवाई से सिर्फ़ दो आदमी बचे ‘‘ अली बिन हुसैन (अ.स.) और अली बिन अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास ’’ इन से यज़ीद की बैयत भी नहीं ली गई। मदारिस शिफ़ाख़ाने और दीगर रेफ़ाहे आम की इमारतें जो ख़ुल्फ़ा के ज़माने में बनाई गईं थीं बन्द कर दी गईं या मिस्मार कर दी गईं और अरब फिर एक वीराना बन गया। इसके चन्द मुद्दत बाद अली बिन हुसैन (अ.स.) के पोते जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने अपने जद्दे माजिद अली ए मुर्तुज़ा (अ.स.) का मक़तब फिर मदीना में जारी किया मगर यह सहरा में सिर्फ़ एक ही सच्चा नख़लिस्तान था इसके चारों तरफ़ जु़ल्मत व ज़लालत छाई हुई थी। मदीना फिर कभी न संभला। बनी उमय्या के अहद में मदीना ऐसी उजडी़ बस्ती हो गया कि जब मन्सूरे अब्बासी ज़्यारत को मदीने में आया तो उसे एक रहनुमा की ज़रूरत पड़ी। हवास को वह मकानात बताए जहां इब्तेदाई ज़माने के बुर्ज़ुगाने इस्लाम रहा करते थे।(तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 36, तारीख़े अबुल फ़िदा जिल्द 1 पृष्ठ 191, तारीख़ फ़ख़्री पृष्ठ 86, तारीख़े कामिल जिल्द 4 पृष्ठ 49, सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 132 )

वाक़ेए हुर्रा और आपकी क़याम गाह

तवारीख़ से मालूम होता है कि आपकी एक छोटी सी जगह ‘‘मुन्बा ’’ नामी थी जहां खेती बाड़ी का काम होता था। वाक़ेए हुर्रा के मौक़े पर शहरे मदीना से निकल कर अपने गाँव चले गये थे।(तारीख़े कामिल जिल्द 4 पृष्ठ 45 ) यह वही जगह है , जहाँ हज़रत अली (अ.स.) ख़लीफ़ा उस्मान के अहद में क़याम पज़ीर थे।(अक़दे फ़रीद जिल्द 2 पृष्ठ 216 )

ख़ानदानी दुश्मन मरवान के साथ आपकी करम गुस्तरी

वाक़ेए हुर्रा के मौक़े पर जब मरवान ने अपनी और अपने अहलो अयाल की तबाही और बरबादी का यक़ीन कर लिया तो अब्दुल्लाह इब्ने उमर के पास जा कर कहने लगा कि हमारी मुहाफ़ज़त करो। हुकूमत की नज़र मेरी तरफ़ से भी फिरी हुई है मैं जान और औरतों की बेहुरमती से डरता हूँ। उन्होंने साफ़ इन्कार कर दिया। उस वह इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के पास आया और उसने अपनी और अपने बच्चों की तबाही व बरबादी का हवाला दे कर हिफ़ाज़त की दरख़्वास्त की हज़रत ने यह ख़्याल किए बग़ैर कि यह ख़ानदानी हमारा दुश्मन है और इसने वाक़ेए करबला के सिलसिले में पूरी दुश्मनी का मुज़ाहेरा किया है। आपने फ़रमाया बेहतर है कि अपने बच्चों को मेरे पास बमुक़ाम मुनबा भेज दो , जहां पर मेरे बच्चे रहेंगे तुम्हारे भी रहेंगे। चुनान्चे वह अपने बाल बच्चों को जिन में हज़रत उसमान की बेटी आयशा भी थी आपके पास पहुँचा गया और आपने सब की मुकम्मल हिफ़ाज़त फ़रमाई।(तारीख़े कामिल जिल्द 4 पृष्ठ 45 )

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और मुस्लिम बिन अक़बा

अल्लामा मसूदी लिखते हैं कि मदीने के इन हंगामी हालात में एक दिन मुस्लिम बिन अक़बा ने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को बुला भेजा। अभी वह पहुँचे न थे कि उसने अपने पास के बैठने वालों से आपकी ख़ानदानी बुराई शुरू की और न जाने क्या क्या कह डाला लेकिन अल्लाह रे आपका रोब व जलाल कि ज्यों ही आप उसके पास पहुँचे वह ब सरो क़द ताज़ीम के लिये खड़ा हो गया। बात चीत के बाद जब आप तशरीफ़ ले गये तो किसी ने मुस्लिम से कहा कि तूने इतनी शानदार ताज़ीम क्यो कि उसने जवाब दिया , मैं क़सदन व इरादतन ऐसा नहीं किया बल्कि उनके रोब व जलाल की वजह से मजबूरन ऐसा किया है।

(मरूजुल ज़हब मसउदी बर हाशिया तारीख़े कामिल जिल्द 6 पृष्ठ 106 )

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) से बैअत का सवाल न करने की वजह

मुवर्रेख़ीन का इत्तेफ़ाक़ है कि वाक़ेए हर्रा में मदीने का कोई शख़्स ऐसा न था जो यज़ीद की बैअत न करे और क़त्ल होने से बच जाए लेकिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) बैअत न करने के बावजूद महफ़ूज़ रहे , बल्कि उसे यूं कहा जाए कि आप से बैअत तलब ही नहीं की गई। अल्लामा जलालउद्दीन हुसैनी मिसरी अपनी किताब ‘‘ अल हुसैन ’’ में लिखते हैं कि यज़ीद का हुक्म था कि सब से बैअत लेना। अली इब्नुल हुसैन को (अ.स.) को न छेड़ना वरना वह भी सवाले बैअत पर हुसैनी किरदार पेश करेंगे और एक नया हंगामा खड़ा हो जायेगा।

दुश्मने अज़ली हसीन बिन नमीर के साथ आपकी करम नवाज़ी

मदीने को तबाह बरबाद करने के बाद मुस्लिम बिन अक़बह इब्तिदाए 64 हिजरी में मदीने से मक्का को रवाना हो गया। इत्तेफ़ाक़न राह में बीमार हो कर वह गुमराह , राहिए जहन्नम हो गया मरते वक़्त उस ने हसीन बिन नमीर को अपना जा नशीन मुक़र्रर कर दिया। उसने वहां पहुँच कर ख़ाना ए काबा पर संग बारी की और उस में आग लगा दी , उसके बाद मुकम्मिल मुहासरा कर के अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर को क़त्ल करना चाहा। इस मुहासरे को चालीस दिन गुज़रे थे कि यज़ीद पलीद वासिले जहन्नम हो गया। उसके मरने की ख़बर से इब्ने ज़ुबैर ने ग़लबा हासिल कर लिया और यह वहां से भाग कर मदीना जा पहुँचा।

मदीने के दौरान क़याम में इस मलऊन ने एक दिन ब वक़्ते शब चन्द सवारों को ले कर फ़ौज के ग़िज़ाई सामान की फ़राहमी के लिये एक गाँव की राह पकड़ी। रास्ते में उसकी मुलाक़ात हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) से हो गई , आपके हमराह कुछ ऊटँ थे जिन पर ग़िज़ाई सामान लदा हुआ था। उसने आप से वह ग़ल्ला ख़रीदना चाहा , आपने फ़रमाया कि अगर तुझे ज़रूरत है तो यूं ही ले ले हम इसे फ़रोख़्त नहीं कर सकते (क्यों कि मैं इसे फ़ुक़राए मदीना के लाया हूँ) उसने पूछा की आपका नाम क्या है ? आपने फ़रमाया ‘‘ अली इब्नुल हुसैन ’’ कहते हैं। फिर आपने उससे नाम दरयाफ़्त किया तो उसने कहा मैं हसीन बिन नमीर हूँ। अल्लाह रे आपकी करम नवाज़ी , आपने यह जानने के बावजूद कि यह मेरे बाप के क़ातिलों में से है उसे सारा ग़ल्ला दे दिया (और फ़ुक़रा के लिये दूसरा बन्दो बस्त फ़रमाया) उसने जब आपकी यह करम गुस्तरी देखी और अच्छी तरह पहचान भी लिया तो कहने लगा कि यज़ीद का इन्तेक़ाल हो चुका है आपसे ज़्यादा मुस्तहक़े खि़लाफ़त कोई नहीं। आप मेरे साथ तशरीफ़ ले चलें मैं आपको तख़्ते खि़लाफ़त पर बैठा दूंगा। आप ने फ़रमाया कि मैं ख़ुदा वन्दे आलम से अहद कर चुका हूँ कि ज़ाहिरी खि़लाफ़त क़बूल न करूंगा। यह फ़रमा कर आप अपने दौलत सरा को तशरीफ़ ले गये।(तरीख़े तबरी फ़ारसी पृष्ठ 644 )

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और फ़ुक़राऐ मदीना की किफ़ालत

अल्लामा इब्ने तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि हज़रत ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) फ़ुक़राए मदीना के 100 घरों की किफ़ालत फ़रमाते थे और सारा सामान उन के घर पहुँचाया करते थे। उनमे बहुत ज़्यादा ऐसे घराने थे जिनमें आप यह भी मालम न होने देते थे कि यह सामान ख़ुरदोनोश रात को कौन दे जाता है। आपका उसूल यह था कि बोरियाँ पुश्त पर लाद कर घरों में रोटी और आटा वग़ैरा पहुँचाते थे और यह सिलसिला ता बहयात जारी रहा। बाज़ मोअज़्ज़ेज़ीन का कहना है कि हमने अहले मदीना को यह कहते सुना है कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की ज़िन्दगी तक हम ख़ुफ़िया ग़िज़ाई रसद से महरूम नहीं हुए।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 265, नुरूल अबसार पृष्ठ 126 )

हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और खेती

अहादीस में है कि ज़राअत (खेती) व काश्त कारी सुन्नत है। हज़रत इदरीस के अलावा कि वह ख़य्याती करते थे। तक़रीबन जुमला अम्बिया ज़राअत किया करते थे। हज़रात आइम्माए ताहेरीन (अ.स.) का भी यही पेशा रहा है लेकिन यह हज़रात इस काश्त कारी से ख़ुद फ़ायदा नहीं उठाते थे बल्कि इस से ग़ुरबा , फ़ुक़रा और तयूर के लिये रोज़ी फ़राहम किया करते थे। हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) फ़रमाते हैं ‘‘ माअजरा अलज़रा लतालब अलफ़ज़ल फ़ीह वमाअज़रा अलालैतना वलहू अल फ़क़ीरो जुल हाजता वलैतना वल मना अलक़बरता ख़सता मन अल तैर ’’ मैं अपना फ़ायदा हासिल करते के लिये ज़राअत नहीं किया करता बल्कि मैं इस लिये ज़राअत करता हूँ कि इस से ग़रीबों , फ़क़ीरों मोहताजों और ताएरों ख़ुसूसन कु़बर्रहू को रोज़ी फ़राहम करूँ।(सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 1 पृष्ठ 549 )

वाज़े हो कि कु़बरहू वह ताएर हैं जो अपने महले इबादत में कहा करता है ‘‘ अल्लाह हुम्मा लाअन मबग़ज़ी आले मोहम्मद ’’ ख़ुदाया उन लोगों पर लानत कर जो आले मोहम्मद (स अ व व ) से बुग़्ज़ रखते हैं।(लबाब अल तावील बग़वी)

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और फ़ित्नाए इब्ने ज़ुबैर

मुवर्रिख़ मि0 ज़ाकिर हुसैन लिखते हैं कि अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर जो आले मोहम्मद (स. अ.) का शदीद दुश्मन था 3 हिजरी में हज़रत अबू बकर की बड़ी साहब ज़ादी असमा के बतन से पैदा हुआ , इसे खि़लाफ़त की बड़ी फ़िक्र थी। इसी लिये जंगे जमल में मैदान गरम करने में उसने पूरी सई से काम लिया था। यह शख़्स इन्तेहाई कन्जूस और बनी हाशिम का सख़्त दुश्मन था और उन्हें बहुत सताता था। बरवाएते मसूदी उसने जाफ़र बिन अब्बास से कहा कि मैं चालीस बरस से तुम बनी हाशिम से दुश्मनी रखता हूँ। इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत के बाद 61 हिजरी में मक्का में और रजब 64 हिजरी में मुल्के शाम के बाज़ इलाक़ों के अलावा तमाम मुमालिके इस्लाम में इसकी बैअत कर ली गई। अक़दुल फ़रीद और मरूज उज़ ज़हब में है कि जब इसकी कु़व्वत बहुत बढ़ गई तो उसने ख़ुतबे में हज़रत अली (अ.स.) की मज़म्मत की और चालीस रोज़ तक ख़ुत्बे में दुरूद नहीं पढ़ा और मोहम्मद हनफ़िया और इब्ने अब्बास और दीगर बनी हाशिम को बैअत के लिये बुलाया उन्होंने इन्कार किया तो बरसरे मिम्बर उनको गालियां दीं और ख़ुत्बे से रसूल अल्लाह (स. अ.) का नाम निकाल डाला और जब इसके बारे में इस पर एतिराज़ किया गया तो जवाब दिया कि इस से बनी हाशिम बहुत फ़ुलते हैं , मैं दिल में कह लिया करता हूँ। इसके बाद उस ने मोहम्मद हनफ़िया और इब्ने अब्बास को हब्से बेजा में मय 15 बनी हाशिम के क़ैद कर दिया और लकड़िया क़ैद ख़ाने के दरवाज़े पर चिन दीं और कहा कि अगर बैअत न करोगे तो मैं आग लगा दूंगा। जिस तरह बनी हाशिम के इन्कारे बैअत पर लकड़िया चिनवा दी गई थीं। इतने में वह फ़ौज वहां पहुँच गई जिसे मुख़्तार ने उनकी मदद के लिये अब्दुल्लाह जदली की सर करदगी में भेजी थी और उसने इन मोहतरम लोगों को बचा लिया और वहां से ताएफ़ पहुँचा दिया।(अक़दे फ़रीद व मसूदी)

उन्हीं हालात की बिना पर हज़रत ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) अकसर फ़ित्नाए इब्ने ज़ुबैर का ज़िक्र फ़रमाते थे। आलिमे अहले सुन्न्त अल्लामा शिबली लिखते हैं कि अबू हमज़ा शुमाली का बयान है कि एक दिन हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ और चाहा कि आपसे मुलाक़ात करूँ लेकिन चूंकि आप घर के अन्दर थे , इस लिये सुए अदब समझते हुए मैंने आवाज़ न दी। थोड़ी देर के बाद ख़ुद बाहर तशरीफ़ लाए और मुझे हमराह ले कर एक जानिब रवाना हो गए। रास्ते में आपने एक दिवार की तरफ़ इशारा करते हुए फ़रमाया , ऐ अबू हमज़ा ! मैं एक दिन सख़्त रंजो अलम में इस दीवार से टेक लगाए खड़ा था और सोच रहा था कि इब्ने ज़ुबैर के फ़ितने से बनी हाशिम को क्यों कर बचाया जाए। इतने में एक शरीफ़ और मुकद्दस बुज़ुर्ग साफ़ सुथरे कपड़े पहने हुए मेरे पास आए और कहने लगे आखि़र क्यों परेशान खड़े हैं ? मैंने कहा मुझे फ़ितनाए इब्ने ज़ुबैर का ग़म और उसकी फ़िक्र है। वह बोले , ऐ अली इब्नुल हुसैन (अ.स.) ! घबराओ नहीं जो ख़ुदा से डरता है , ख़ुदा उसकी मद्द करता है। जो उससे तलब करता है वह उसे देता है। यह कह कर वह मुक़द्दस शख़्स मेरी नज़रों से ग़ाएब हो गये और हातिफ़े ग़ैबी ने आवाज़ दी। ‘‘ हाज़ल खि़ज़्र ना हबाक़ा ’’ कि यह जो आपसे बातें कर रहे थे वह जनाबे खि़ज्ऱ (अ.स.) थे।(नुरूल अबसार पृष्ठ 129, मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 264, शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 178 ) वाज़े हो कि यह रवायत बरादराने अहले सुन्नत की है। हमारे नज़दीक इमाम कायनात की हर चीज़ से वाक़िफ़ होता है।

अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स )

क्यों न झुकें सलाम को , फ़ौजे उलूम के परे

बज़्मे नकी़ में जौ़ फ़िशाँ आज है नूरे असकरी

वारिसे जु़ल्फ़िक़ार है सुल्बे में इनकी जलवा गर

ज़ात है इनकी मुज़दा ए , आमद दौरे हैदरी

साबिर थरयानी ‘‘ कराची ’’

बू मोहम्मद इमाम याज़ दहुम

जां नशीने रसूल अर्श मक़ाम

जिसके जद वजहे खि़लक़ते आलम

जिसके फ़रज़न्द से जहां को क़याम

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स अ व व ) के ग्यारहवें जां नशीन और सिलसिला ए इस्मत के 13 वीं कड़ी हैं। आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम अली नकी़ (अ.स.) थे और आपकी वालेदा माजेदा हदीसा ख़ातून थीं। मोहतरमा के मुताअल्लिक़ अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि आप अफ़ीफ़ा , करीमा , निहायत संजीदा और वरा व तक़वा से भर पूर थीं।(जिलाउल उयून पृष्ठ 295 )

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) अपने आबाओ अजदाद की तरह इमाम मन्सूस मासूम आलिमे ज़माना और अफ़ज़ले काएनात थे।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 ) आपको हसना सिफ़ाते इल्म व सख़ावत वग़ैरा अपने वालिद से विरसे मे मिले थे।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 461 )

अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ई का बयान है कि आपको ख़ुदा वन्दे आलम ने जिन फ़ज़ाएल व मनाक़िब और कमालात और बुलन्दी से सरफ़राज़ किया है इनमें मुकम्मिल दवाम मौजूद हैं। न वह नज़र अन्दाज़ किये जा सकते हैं और न इनमें कुहनगी आ सकती है और आपका एक अहम शरफ़ यह भी है कि इमाम मेहदी (अ.स.) आप ही के इकलौते फ़रज़न्द हैं जिन्हें परवर दिगारे आलम ने तवील उम्र अता की है।(मतालिब उल सुऊल पृष्ठ 292 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) की विलादत और बचपन के बाज हालात

उलमाए फ़रीक़ैन की अक्सरीयत का इत्तेफ़ाक़ है कि आप बातारीख़ 10 रबीउस्सानी 232 हिजरी यौमे जुमा ब वक़्ते सुबह बतने जनाबे हदीसा ख़ातून से ब मुक़ाम मदीना मुनव्वरा मुतवल्लिद हुए हैं। मुलाहेज़ा हो शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210 सवाएक़े मोहर्रेक़ पृष्ठ 124 नूरूल अबसार 110. जिलाउल उयून पृष्ठ 295, इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 दम ए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163। आपकी विलादत के बाद हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के रखे हुए नाम ‘‘ हसन बिन अली ’’ से मौसूम किया।(निहाबुल मोवद्दता)

आपकी कुन्नियत और आपके अल्क़ाब

आपकी कुन्नियत ‘‘ अबू मोहम्मद ’’ थी और आपके अल्क़ाब बेशुमार थे। जिनमें अस्करी , हादी , ज़की , खलिस , सिराज और इब्ने रज़ा ज़्यादा मशहूर हैं।(नूरूल अबसार पृष्ठ 150, शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210, दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 122 व मुनाक़िब इब्ने शहर आशोब जिल्द पृष्ठ 125 ) आपका लक़ब इसकरी इस लिये ज़्यादा मशहूर हुआ कि आप जिस महल्ले में ब मुक़ाम ‘‘ सरमन राय ’’ रहते थे उसे असकर कहा जाता था और ब ज़ाहिर इसकी वजह यह थी जब ख़लीफ़ा मोतसिम बिल्ला ने इस मुक़ाम पर लश्कर जमा किया था और ख़ुद भी क़याम पज़ीर था उसे ‘‘ असकर ’’ कहने लगे थे , और ख़लीफ़ा मुतावक्किल ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को मदीने से बुलवा कर यहीं मुक़ीम रहने पर मजबूर किया था। नीज़ यह भी था कि एक मरतबा ख़लीफ़ा ए वक़्त ने इमामे ज़माना को इसी मुक़ाम पर नव्वे हज़ार लशकर का मुआएना कराया था और आपने अपनी दो उंगलियां के दरमियान से अपने ख़ुदाई लशकर का मुताला करा दिया था। उन्हीं वजह की बिना पर इस मुका़म का नाम ‘‘ असकर ’’ हो गया था जहाँ इमाम अली नक़ी (अ.स.) और इमाम हसन असकरी (अ.स.) मुद्दतो मुक़ीम रह कर असकरी मशहूर हो गए।(बेहारूल अनवार जिल्द 12 पृष्ठ 154, दफ़यात अयान जिल्द 1 पृष्ठ 145, मजमूउल बहरैन पृष्ठ 322 दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163, तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 222 )

आपके अहदे हयात और बादशहाने वक़्त

आपकी विलादत 232 हिजरी में उस वक़्त हुई जब कि वासिक़ बिल्लाह बिन मोतसिम बादशाहे वक्त़ था जो 227 हिजरी में ख़लीफ़ा बना था।(तारीख़ अबूल फ़िदा) फिर 233 हिजरी में मुतावक्किल ख़लीफ़ा बना(तारीख़ इब्नुल वरा) जो हज़रत अली (अ.स.) और उनकी औलाद से सख़्त बुग़़्ज़ व कीना रखता था और उनकी मनक़स्त किया करता था।(हयातुल हैवान व तारीख़े कामिल) इसी ने 236 हिजरी में इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़्यारत को जुर्म क़रार दी और उनके मज़ार को ख़त्म करने की सई की।(तारीख़े कामिल) और इसी ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन मदीने से सरमन राय तलब करा लिया।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा) और आपको गिरफ़्तार करा के आपके मकान की तलाशी कराई।(दफ़अतिल अयान) फिर 247 हिजरी में मुन्तसर बिन मुतावक्किल ख़लीफ़ा ए वक़्त हुआ।(तारीख़े अबुल फ़िदा) फिर 248 हिजरी में मोतस्तईन ख़लीफ़ा बना।(अबूल फ़िदा) फिर 252 हिजरी में मुमताज़ बिल्ला ख़लीफ़ा हुआ।(अबुल फ़िदा) इसी ज़माने में अली नक़ी (अ.स.) को ज़हर से शहीद कर दिया गया।(नूरूल अबसार) फिर 255 हिजरी में मेंहदी बिल्लाह ख़लीफ़ा बना।(तारीख़ इब्ने अल वर्दी) फिर 256 हिजरी में मोतमिद बिल्ला ख़लीफ़ा हुआ।(तारीख़ अबुल फ़िदा) इसी ज़माने में 260 हिजरी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) ज़हर से शहीद हुए।(तारीख़े कामिल) इन तमाम खुल्फ़ा ने आपके साथ वही बरताव किया जो आले मोहम्मद (स अ व व ) के साथ बरताव किए जाने का दस्तूर चला आ रहा था।

चार माह की उम्र में मनसबे इमामत

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) कि उम्र जब चार माह के क़रीब हुई तो आपके वालिद अली नक़ी (अ.स.) ने अपने बाद के लिये मन्सबे इमामत की वसीअत की और फ़रमाया कि मेरे बाद यही मेरे जां नशीन होंगे और इस पर बहुत से लोगों को गवाह भी कर दिया।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 व दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 193 बहवाला ए उसूले काफ़ी)

अल्लामा इब्ने हजर मक्की का कहना है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) इमाम अली नक़ी (अ.स.) की औलाद में सब से ज़्यादा अज़िल अरफ़ा अला व अफ़ज़ल थे।

चार साल की उम्र में आपका सफ़रे ईराक़

मुतावक्किल अब्बासी जो आले मोहम्मद (स अ व व ) का हमेशा से दुश्मन था उसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) के वालिदे बुज़ुर्गवार इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन 239 हिजरी में मदीने से ‘‘ सरमन राय ’’ बुला लिया। आप ही के हमराह इमाम हसन असकरी (अ.स.) को भी जाना पड़ा। इस वक़्त आपकी उम्र चार साल चन्द माह की थी।(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 162 )

यूसुफ़े आले मोहम्मद(स. अ.) कुएं में

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) न जाने किस तरह अपने घर के कुएं में गिर गए। आपके गिरने से औरतों में कोहरामे अज़ीम बरपा हो गया। सब चीख़ने और चिल्लाने लगीं मगर हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) जो महवे नमाज़ थे मुतलक़ मुताअस्सिर न हुए और इतमिनान से नमाज़ का एख़तेताम किया। उसके बाद आपने फ़रमाया कि घबराओ नहीं हुज्जते ख़ुदा को कोई गज़न्द न पहुँचेगी। इसी दौरान में देखा कि पानी बलन्द हो रहा है और इमाम हसन असकरी (अ.स.) पानी में खेल रहे हैं।(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 179 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) और कमसिनी में उरूजे फ़िक्र

आले मोहम्मद (स अ व व ) जो तदब्बुरे क़ुरआनी और उरेजे फ़िक्र में ख़ास मक़ाम रखते हैं उनमें से एक बलन्द मक़ाम बुज़ुर्ग हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) हैं। उलमा ए फ़रीक़ैन ने लिखा है कि एक दिन आप एक ऐसी जगह खड़े रहे जिस जगह कुछ बच्चे खेल में मसरूफ़ थे। इत्तेफ़ाक़न उधर से आरिफ़े आले मोहम्मद (स अ व व ) जनाब बहलोल दाना गुज़रे। उन्होंने यह देख कर कि सब बच्चे खेल रहे हैं और एक ख़ूब सूरत सुखऱ् व सफ़ैद बच्चा खड़ा रो रहा है। उधर मुतावज्जे हुए और कहा ऐ नौनेहाल मुझे बड़ा अफ़सोस है कि तुम इस लिये रो रहे हो कि तुम्हारे पास वह खिलौने नहीं जो इन बच्चों के पास हैं। सुनो ! मैं अभी अभी तुम्हारे लिये खिलौने ले कर आता हूँ। यह कहना था कि आप कमसिनी के बवजूद बोले , अना न समझ। हम खेलने के लिये नहीं पैदा किये गए हैं। हम इल्मो इबादत के लिये ख़ल्क़ हुए हैं। उन्होंने पूछा कि तुम्हें यह क्यों कर मालूम हुआ कि ग़रज़े खि़लक़त इल्मो इबादत है। आपने फ़रमाया कि इसकी तरफ़ क़ुरआने मजीद रहबरी करता है। क्या तुमने नहीं पढ़ा कि ख़ुदा फ़रमाता है , ‘‘ अफ़सबतुम इन्नमा ख़लक़ना कुम अबसा ’’ क्या तुम ने यह समझ लिया है कि हम ने तुम को अबस(खेल कूद) के लिये पैदा किया है ? और क्या तुम हमारी तरफ़ पलट कर न आओगे। यह सुन कर बहलोल हैरान रह गए और यह कहने पर मजबूर हो गए कि ऐ फ़रज़न्द तुम्हें क्या हो गया था कि तुम रो रहे थे , तुम से गुनाह का तसव्वुर तो हो ही नहीं सकता क्यों कि तुम बहुत कमसिन हो। आपने फ़रमाया कि कमसिनी से क्या होता है , मैंने अपनी वालेदा को देखा है कि बड़ी लकड़ियों को जलाने के लिये छोटी लकड़ियां इस्तेमाल करती हैं। मैं डरता हूँ कि कहीं जहन्नम के बड़े ईंधन के लिये हम छोटे और कमसिन लोग इस्तेमाल न किये जाऐ।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 124, नूरूल अबसार पृष्ठ 150, तज़केरतुल मासूमीन पृष्ठ 230 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) के साथ बादशहाने वक़्त सुलूक और तरज़े अमल

जिस तरह आपके आबाओ अजदाद के वुजूद को उनके अहद के बादशाह अपनी सलतनत और हुक्मरानी की राह में रूकावट समझते रहे। उनका यह ख़्याल रहा कि दुनियां के क़ुलूब उनकी तरफ़ माएल हैं क्यों कि यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) और आमाले सालेह के ताजदार हैं लेहाज़ा उनको आवाम की नज़रों से दूर रखा जाए वरना इमकान क़वी है कि लोग उन्हें अपना बादशाहे वक़्त तसलीम कर लेंगे। इसके अलावा यह बुग़्ज़ो हसद भी था कि इनकी इज़्ज़त बादशाहे वक़्त के मुक़ाबले में ज़्यादा की जाती है और यह कि इमाम मेहदी (अ.स.) उन्हीं की नस्ल से होंगे जो सलतनतों का इन्के़लाब लाऐंगे। इन्ही तसव्वुरात ने जिस तरह आपके बुज़ुर्गों को चैन न लेने दिया और हमेशा मसाएब की अमाजगा बनाए रखा। इसी तरह आपके अहद के बादशाहों ने भी आपके साथ किया। अहदे वासिक़ में आपकी विलादत हुई और अहदे मुतवक्किल के कुछ अय्याम में बचपना गुज़ारा।

मुतवक्किल जो आले मोहम्मद (स अ व व ) का जानी दुश्मन था उसने सिर्फ इस जुर्म में कि आले मोहम्मद (स अ व व ) की तारीफ़ की है इब्ने सकीत शायर की ज़ुबान गुद्दी से खिंचवा ली।(अबुल फ़िदा जिल्द 2 पृष्ठ 14 ) उसने सब से पहले तो आप पर यह ज़ुल्म किया कि चार साल की उम्र में तरके वतन करने पर मजबूर किया यानी इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन मदीने से सामरा बुलवाया जिनके हमराह इमाम हसन असकरी (अ.स.) को लाज़मन जाना पड़ा। फिर वहां आपके घर के लोगों के कहने सुन्ने से तलाशी कराई और आपके वालिदे माजिद को जानवरों से फड़वा डालने की कोशिश की। ग़रज़ कि जो सई आले मोहम्मद (अ.स.) को सताने की मुमकिन थी , वह सब उसने अपने अहदे हयात में कर डाली। उसके बाद उसका बेटा मुस्तनसर ख़लीफ़ा हुआ। यह भी अपने बाप के नक्शे क़दम पर चल कर आले मोहम्मद (स अ व व ) को सताने की सुन्नत अदा करता रहा और इसकी मुसलसल कोशिश यही रही कि इन लोगों को सुकून नसीब न होने पाये। उसके बाद मुस्तईन का जब अहदे नव आया तो उसने आपके वालिदे माजिद को क़ैद ख़ाने में रखने के साथ साथ उसकी सई पैहम की कि किसी सूरत से इमाम हसन असकरी (अ.स.) को क़त्ल करा दे और इसके लिये उसने मुख़्तलिफ़ रास्ते तलाश किये।

मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक मरतबा उसने अपने शौक़ के मुताबिक़ एक निहायत ज़बरदस्त घोड़ा ख़रीदा लेकिन इत्तेफ़ाक़ से वह इस दर्जा सरकश निकला कि उसने बड़े बड़े लोगों को सवारी न दी और जो उसके क़रीब गया उसको ज़मीन पर दे मारा और टापों से कुचल डाला। एक दिन ख़लीफ़ा मुस्तईन बिल्लाह के एक दोस्त ने राय दी कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) को बुला कर हुक्म दिया जाय कि वह इस पर सवारी करें , अगर वह इस पर कामयाब हो गये तो घोड़ा ठीक हो जायेगा , और अगर कामयाब न हुए और कुचल डाले गए तो तेरा मक़सद हल हो जायेगा। चुनान्चे उसने ऐसा ही किया लेकिन अल्लाह रे शाने इमामत जब आप उसके क़रीब पहुँचे तो वह इस तरह भीगी बिल्ली बन गया कि जैसे कुछ जानता ही न हो। बादशाह यह देख कर हैरान रह गया और उसके पास इसके सिवा कोई चारा न था कि घोड़ा हज़रत के हवाले कर दे।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 210 )

फिर मुस्तईन के बाद जब मोतज़ बिल्लाह ख़लीफ़ा हुआ तो उसने भी आले मोहम्मद (स अ व व ) को सताने की सुन्नत जारी रखी और इसकी कोशिश करता रहा कि अहदे हाज़िर के इमाम ज़माना और फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) इमाम अली नक़ी (अ.स.) को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ कर दे। चुनान्चे यही हुआ और उसने 254 ई 0 में आपके वालिदे बुज़ुर्गवार को ज़हर से शहीद करा दिया। यह एक मुसीबत थी कि जिसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) को बे इन्तेहा मायूस कर दिया। इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत के बाद इमाम हसन असकरी (अ.स.) ख़तरात में महसूर हो गये , क्यो कि हुकूमत का रूख़ अब आप ही की तरफ़ रह गया था। आपको खटका लगा ही था कि हुकूमत की तरफ़ से अमल दरामद शुरू हो गया। मोतज़ ने एक शक़ीए अज़ली और नासबे अब्दी इब्ने यारिश की हिरासत और नज़र बन्दी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) को दे दिया। उसने उनको सताने में कोई दक़ीक़ा नहीं छोड़ा लेकिन आखि़र में वह आपका मोतक़िद बन गया। आपकी इबादत गुज़ारी और रोज़ा दारी ने उस पर ऐसा गहरा असर किया कि उसने आपकी खि़दमत में हाज़िर हो कर माफ़ी मांग ली और आपको दौलत सरा तक पहुँचा दिया।

अली बिन मोहम्मद ज़ियाद का बयान है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने मुझे एक ख़त तहरीर फ़रमाया जिसमें लिखा कि तुम ख़ाना नशीन हो जाओ क्यों कि एक बहुत बड़ा फ़ितना उठने वाला है। ग़रज़ कि थोड़े दिनों के बाद एक हंगामा ए अज़ीम बरपा हुआ और हुज्जाज बिन सुफ़यान ने मोतज़ को क़त्ल कर दिया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 127 )

फिर जब मेहदी बिल्लाह का अहद आया तो उसने भी बदस्तूर अपना अमल जारी रखा और हज़रत को सताने में हर क़िस्म की कोशिश करता रहा। एक दिन उसने सालेह बिन वसीफ़ नामी नासेबी के हवाले आपको कर दिया और हुक्म दिया कि हर मुम्किन तरीक़े से आपको सताये। सालेह के मकान के क़रीब एक बहुत ख़राब हुजरा था जिसमें आप क़ैद किये गए। सालेह बद बख़्त ने जहां और तरीक़े से सताया एक तरीक़ा यह भी था कि आपको खाना और पानी से भी हैरान और तंग रखता था। आखि़र ऐसा होता रहा कि आप तयम्मुम से नमाज़ अदा फ़रमाते रहे। एक दिन उसकी बीवी ने कहा कि ऐ दुश्मने ख़ुदा यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) हैं। इनके साथ रहम का बरताव कर। उसने कोई तवज्जो न की। एक दिन का ज़िक्र है , बनी अब्बासिया के एक गिरोह ने सालेह से जा कर दरख़्वास्त की कि हसन असकरी पर ज़ियादा ज़ुल्म किया जाना चाहिये। उसने जवाब दिया कि मैंने उनके ऊपर दो ऐसे शख़्सों को मुसल्लत कर दिया है जिनका ज़ुल्मों तशद्दुद में जवाब नहीं है लेकिन मैं क्या करूं कि उनके तक़वे और उनकी इबादत गुज़ारी से वह इस दर्जा मुताअस्सिर हो गये हैं कि जिसकी कोई हद नहीं। मैंने उनसे जवाब तलबी की तो उन्होंने क़ल्बी मजबूरी ज़ाहिर की। यह सुन कर वह लोग मायूस वापिस गये।(तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 223 )

ग़रज़ कि मेहदी का ज़ुल्म तशदद्दुद ज़ोरो पर था और यही नहीं कि वह इमाम हसन असकरी (अ.स.) पर सख़्ती करता था बल्कि यह कि वह उनके मानने वालों को बराबर क़त्ल करता रहता था। एक दिन आपके एक साहबी अहमद बिन मोहम्मद ने एक अरीज़े के ज़रिये से उसके ज़ुल्म की शिकायत की तो आपने तहरीर फ़रमाया कि घबराओ नहीं कि मेहदी की उम्र अब सिर्फ़ पांच दिन बाक़ी रह गई है। चुनान्चे छटे दिन उसे कमाले ज़िल्लत व ख़वारी के साथ क़त्ल कर दिया गया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 126 )

इसी के अहद में जब आप क़ैद ख़ाने में पहुँचे तो ईसा बिन फ़तेह से फ़रमाया कि तुम्हारी उम्र इस वक़्त 65 साल एक माह दो यौम की है। उसने नोट बुक निकाल कर उसकी तसदीक़ की। फिर आपने फ़रमाया कि ख़ुदा तुम्हें औलादे नरीना अता करेगा। वह ख़ुश हो कर कहने लगा मौला! क्या आपको ख़ुदा फ़रज़न्द न देगा ? आपने फ़रमाया ख़ुदा की क़सम अन्क़रीब मुझे मालिक ऐसा फ़रज़न्द देगा जो सारी कायनात पर हुकूमत करेगा और दुनियां को अदलो इंसाफ़ से भर देगा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 101 )

फिर जब उसके बाद मोतमिद ख़लीफ़ा हुआ तो उसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) पर ज़ुल्मो जौरो सितम व इस्तेबदाद का ख़ात्मा कर दिया।

इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत और इमाम हसन असकरी (अ.स.) का आग़ाज़े इमामत

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने अपने इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शादी नरजिस ख़ातून से कर दी जो क़ैसरे रोम की पोती और शमऊन वसी ए ईसा (अ.स.) की नस्ल से थीं।(जिला अल उयून पृष्ठ 298 ) इसके बाद आप 3 रजब 254 ई 0 को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ हुए। आपकी शहादत के बाद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की इमामत का आग़ाज़ हुआ। आपके तमाम मोतक़दीन ने आपको मुबारक बाद दी और आप से हर क़िस्म का इस्तेफ़ादा शुरू कर दिया। आपकी खि़दमत में आमदो रफ़्त और सवालात व जवाबात का सिलसिला जारी हो गया। आपने जवाबात में ऐसे हैरत अंगेज़ मालूमात का इन्केशाफ़ फ़रमाया कि लोग दंग रह गए। आपने इल्मे ग़ैब और इल्मे बिलमौत तक का सबूत पेश फ़रमाया और इसकी भी वज़ाहत की कि फ़लां शख़्स को इतने दिनों में मौत आ जायेगी।

अल्लामा मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक शख़्स ने अपने वालिद समेत हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की राह में बैठ कर यह सवाल करना चाहा कि बाप को पांच सौ दिरहम और बेटे को तीन सौ दिरहम अगर इमाम दें तो सारे काम हो जाऐ , यहां तक कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) इस रास्ते पर आ पहुँचे। इत्तेफ़ाक़ यह दोनों इमाम (अ.स.) को पहचानते न थे। इमाम (अ.स.) ख़ुद इन दोनों के क़रीब गए और उन से कहा कि तुम्हें आठ सौ दिरहम की ज़रूरत है। आओ मैं तुम्हें दे दूं। दोनों हमराह हो लिये और रक़म माहूद हासिल कर ली। इसी तरह एक और शख़्स क़ैद ख़ाने में था। उसने क़ैद की परेशानी की शिकायत इमाम (अ.स.) को लिख कर भेजी और तंग दस्ती का ज़िक्र शर्म की वजह से न किया। आपने तहरीर फ़रमाया कि तुम आज ही क़ैद ख़ाने से रिहा हो जाओगे और तुम ने जो शर्म से तंग दस्ती का ज़िक्र नहीं किया , इसके मुताअल्लिक़ मालूम करो कि मैं अपने मुक़ाम पर पहुँचते ही सौ दिनार भेज दूंगा। चुनान्चे ऐसा ही हुआ। इसी तरह एक शख़्स ने आपसे अपनी तंग दस्ती की शिकायत की। आपने ज़मीन कुरेद कर एक अशरफ़ी की थैली निकाली और उसके हवाले कर दी। इसमें सौ दीनार थे। इसी तरह एक शख़्स ने आपको तहरीर किया कि मिशक़ात के मानी क्या हैं ? नीज़ यह कि मेरी औरत हामेला है इससे जो फ़रज़न्द पैदा होगा उसका नाम रख दीजिए। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया कि मिशक़ात से मुराद क़ल्बे मोहम्मदे मुस्तफ़ा (स अ व व ) और आखि़र में लिख दिया ‘‘ अज़मुल्लाह अजरकुम व अख़लफ़ अलैक ’’ ख़ुदा तुम्हें अज्र दे और नेमुल बदल अता करे। चुनान्चे ऐसा ही हुआ कि उसके यहां मुर्दा लड़का पैदा हुआ। इसके बाद उसकी बीवी हामला हुई , फ़रज़न्दे नरीना मुतावल्लिद हुआ। मुलाहेज़ा हों।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 211 )

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि हसन इब्ने ज़रीफ़ नामी एक शख़्स ने हज़रत से मिलकर दरयाफ़्त किया कि क़ाएमे आले मोहम्मद (अ.स.) पोशीदा होने के बाद कब ज़ुहूर करेंगे ? आपने तहरीर फ़रमाया जब ख़ुदा की मसलहत होगी। इसके बाद लिखा कि तुम तप रबआ का सवाल करना भूल गए जिसे तुम मुझसे पूछना चाहते हो , तो देखो ऐसा करो कि जो इसमें मुबतिला हो उसके गले में आयत ‘‘ या नार कूनी बरदन सलामन अला इब्राहीम ’’ लिख कर लटका दो शिफ़ायाब हो जायेगा। अली बिन ज़ैद इब्ने हुसैन का कहना है कि मैं एक घोड़े पर सवार हो कर हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ तो आपने फ़रमाया कि इस घोड़े की उम्र सिर्फ़ एक रात बाक़ी रह गई है चुनान्चे वह सुबह होने से पहले मर गया। इस्माईल बिन मोहम्मद का कहना है कि मैं हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ और मैंने उनसे क़सम खा कर कहा कि मेरे पास एक दिरहम भी नहीं है। आपने मुस्कुरा कर फ़रमाया कि क़सम मत खाओ तुम्हारे घर दो सौ दीनार मदफ़ून हैं। यह सुन कर वह हैरान रह गया। फिर हज़रत ने गु़लाम को हुक्म दिया कि उन्हें अशरफ़ियां दे दो।

अब्दी रवायत करता है कि मैं अपने फ़रज़न्द को बसरे में बिमार छोड़ कर सामरा गया और वहां हज़रत को तहरीर किया कि मेरे फ़रज़न्द के लिया दुआ ए शिफ़ा फ़रमाएं। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया ‘‘ ख़ुदा उस पर रहमत नाज़िल फ़रमाए ’’ जिस दिन यह ख़त उसे मिला उसी दिन उसका फ़रज़न्द इन्तेक़ाल कर चुका था। मोहम्मद बिन अफ़आ कहता है कि मैंने हज़रत की खि़दमत में एक अरज़ी के ज़रिये से सवाल किया कि ‘‘ क्या आइम्मा को भी एहतेलाम होता है ? ’’ जब ख़त रवाना कर चुका तो ख़्याल हुआ कि एहतेलाम तो वसवसए शैतानी से हुआ करता है और इमाम (अ.स.) तक शैतान पहुँच नहीं सकता। बहर हाल जवाब आया कि इमाम नौम और बेदारी दोनों हालतों में वसवसाए शैतानी से दूर होते हैं जैसा कि तुम्हारे दिल में भी ख़्याल पैदा हुआ है , फिर एहतेलाम क्यों कर हो सकता है। जाफ़र बिन मोहम्मद का कहना है कि मैं एक दिन हज़रत की खि़दमत में हाज़िर था , दिल में ख़्याल आया कि मेरी औरत जो हामेला है अगर उससे फ़रज़न्दे नरीना पैदा हो तो बहुत अच्छा हो। आपने फ़रमाया कि ऐ जाफ़र लड़का नहीं लड़की पैदा होगी। चुनान्चे ऐसा ही हुआ।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 128 )

अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स )

क्यों न झुकें सलाम को , फ़ौजे उलूम के परे

बज़्मे नकी़ में जौ़ फ़िशाँ आज है नूरे असकरी

वारिसे जु़ल्फ़िक़ार है सुल्बे में इनकी जलवा गर

ज़ात है इनकी मुज़दा ए , आमद दौरे हैदरी

साबिर थरयानी ‘‘ कराची ’’

बू मोहम्मद इमाम याज़ दहुम

जां नशीने रसूल अर्श मक़ाम

जिसके जद वजहे खि़लक़ते आलम

जिसके फ़रज़न्द से जहां को क़याम

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स अ व व ) के ग्यारहवें जां नशीन और सिलसिला ए इस्मत के 13 वीं कड़ी हैं। आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम अली नकी़ (अ.स.) थे और आपकी वालेदा माजेदा हदीसा ख़ातून थीं। मोहतरमा के मुताअल्लिक़ अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि आप अफ़ीफ़ा , करीमा , निहायत संजीदा और वरा व तक़वा से भर पूर थीं।(जिलाउल उयून पृष्ठ 295 )

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) अपने आबाओ अजदाद की तरह इमाम मन्सूस मासूम आलिमे ज़माना और अफ़ज़ले काएनात थे।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 ) आपको हसना सिफ़ाते इल्म व सख़ावत वग़ैरा अपने वालिद से विरसे मे मिले थे।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 461 )

अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ई का बयान है कि आपको ख़ुदा वन्दे आलम ने जिन फ़ज़ाएल व मनाक़िब और कमालात और बुलन्दी से सरफ़राज़ किया है इनमें मुकम्मिल दवाम मौजूद हैं। न वह नज़र अन्दाज़ किये जा सकते हैं और न इनमें कुहनगी आ सकती है और आपका एक अहम शरफ़ यह भी है कि इमाम मेहदी (अ.स.) आप ही के इकलौते फ़रज़न्द हैं जिन्हें परवर दिगारे आलम ने तवील उम्र अता की है।(मतालिब उल सुऊल पृष्ठ 292 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) की विलादत और बचपन के बाज हालात

उलमाए फ़रीक़ैन की अक्सरीयत का इत्तेफ़ाक़ है कि आप बातारीख़ 10 रबीउस्सानी 232 हिजरी यौमे जुमा ब वक़्ते सुबह बतने जनाबे हदीसा ख़ातून से ब मुक़ाम मदीना मुनव्वरा मुतवल्लिद हुए हैं। मुलाहेज़ा हो शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210 सवाएक़े मोहर्रेक़ पृष्ठ 124 नूरूल अबसार 110. जिलाउल उयून पृष्ठ 295, इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 दम ए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163। आपकी विलादत के बाद हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के रखे हुए नाम ‘‘ हसन बिन अली ’’ से मौसूम किया।(निहाबुल मोवद्दता)

आपकी कुन्नियत और आपके अल्क़ाब

आपकी कुन्नियत ‘‘ अबू मोहम्मद ’’ थी और आपके अल्क़ाब बेशुमार थे। जिनमें अस्करी , हादी , ज़की , खलिस , सिराज और इब्ने रज़ा ज़्यादा मशहूर हैं।(नूरूल अबसार पृष्ठ 150, शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210, दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 122 व मुनाक़िब इब्ने शहर आशोब जिल्द पृष्ठ 125 ) आपका लक़ब इसकरी इस लिये ज़्यादा मशहूर हुआ कि आप जिस महल्ले में ब मुक़ाम ‘‘ सरमन राय ’’ रहते थे उसे असकर कहा जाता था और ब ज़ाहिर इसकी वजह यह थी जब ख़लीफ़ा मोतसिम बिल्ला ने इस मुक़ाम पर लश्कर जमा किया था और ख़ुद भी क़याम पज़ीर था उसे ‘‘ असकर ’’ कहने लगे थे , और ख़लीफ़ा मुतावक्किल ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को मदीने से बुलवा कर यहीं मुक़ीम रहने पर मजबूर किया था। नीज़ यह भी था कि एक मरतबा ख़लीफ़ा ए वक़्त ने इमामे ज़माना को इसी मुक़ाम पर नव्वे हज़ार लशकर का मुआएना कराया था और आपने अपनी दो उंगलियां के दरमियान से अपने ख़ुदाई लशकर का मुताला करा दिया था। उन्हीं वजह की बिना पर इस मुका़म का नाम ‘‘ असकर ’’ हो गया था जहाँ इमाम अली नक़ी (अ.स.) और इमाम हसन असकरी (अ.स.) मुद्दतो मुक़ीम रह कर असकरी मशहूर हो गए।(बेहारूल अनवार जिल्द 12 पृष्ठ 154, दफ़यात अयान जिल्द 1 पृष्ठ 145, मजमूउल बहरैन पृष्ठ 322 दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163, तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 222 )

आपके अहदे हयात और बादशहाने वक़्त

आपकी विलादत 232 हिजरी में उस वक़्त हुई जब कि वासिक़ बिल्लाह बिन मोतसिम बादशाहे वक्त़ था जो 227 हिजरी में ख़लीफ़ा बना था।(तारीख़ अबूल फ़िदा) फिर 233 हिजरी में मुतावक्किल ख़लीफ़ा बना(तारीख़ इब्नुल वरा) जो हज़रत अली (अ.स.) और उनकी औलाद से सख़्त बुग़़्ज़ व कीना रखता था और उनकी मनक़स्त किया करता था।(हयातुल हैवान व तारीख़े कामिल) इसी ने 236 हिजरी में इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़्यारत को जुर्म क़रार दी और उनके मज़ार को ख़त्म करने की सई की।(तारीख़े कामिल) और इसी ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन मदीने से सरमन राय तलब करा लिया।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा) और आपको गिरफ़्तार करा के आपके मकान की तलाशी कराई।(दफ़अतिल अयान) फिर 247 हिजरी में मुन्तसर बिन मुतावक्किल ख़लीफ़ा ए वक़्त हुआ।(तारीख़े अबुल फ़िदा) फिर 248 हिजरी में मोतस्तईन ख़लीफ़ा बना।(अबूल फ़िदा) फिर 252 हिजरी में मुमताज़ बिल्ला ख़लीफ़ा हुआ।(अबुल फ़िदा) इसी ज़माने में अली नक़ी (अ.स.) को ज़हर से शहीद कर दिया गया।(नूरूल अबसार) फिर 255 हिजरी में मेंहदी बिल्लाह ख़लीफ़ा बना।(तारीख़ इब्ने अल वर्दी) फिर 256 हिजरी में मोतमिद बिल्ला ख़लीफ़ा हुआ।(तारीख़ अबुल फ़िदा) इसी ज़माने में 260 हिजरी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) ज़हर से शहीद हुए।(तारीख़े कामिल) इन तमाम खुल्फ़ा ने आपके साथ वही बरताव किया जो आले मोहम्मद (स अ व व ) के साथ बरताव किए जाने का दस्तूर चला आ रहा था।

चार माह की उम्र में मनसबे इमामत

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) कि उम्र जब चार माह के क़रीब हुई तो आपके वालिद अली नक़ी (अ.स.) ने अपने बाद के लिये मन्सबे इमामत की वसीअत की और फ़रमाया कि मेरे बाद यही मेरे जां नशीन होंगे और इस पर बहुत से लोगों को गवाह भी कर दिया।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 व दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 193 बहवाला ए उसूले काफ़ी)

अल्लामा इब्ने हजर मक्की का कहना है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) इमाम अली नक़ी (अ.स.) की औलाद में सब से ज़्यादा अज़िल अरफ़ा अला व अफ़ज़ल थे।

चार साल की उम्र में आपका सफ़रे ईराक़

मुतावक्किल अब्बासी जो आले मोहम्मद (स अ व व ) का हमेशा से दुश्मन था उसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) के वालिदे बुज़ुर्गवार इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन 239 हिजरी में मदीने से ‘‘ सरमन राय ’’ बुला लिया। आप ही के हमराह इमाम हसन असकरी (अ.स.) को भी जाना पड़ा। इस वक़्त आपकी उम्र चार साल चन्द माह की थी।(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 162 )

यूसुफ़े आले मोहम्मद(स. अ.) कुएं में

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) न जाने किस तरह अपने घर के कुएं में गिर गए। आपके गिरने से औरतों में कोहरामे अज़ीम बरपा हो गया। सब चीख़ने और चिल्लाने लगीं मगर हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) जो महवे नमाज़ थे मुतलक़ मुताअस्सिर न हुए और इतमिनान से नमाज़ का एख़तेताम किया। उसके बाद आपने फ़रमाया कि घबराओ नहीं हुज्जते ख़ुदा को कोई गज़न्द न पहुँचेगी। इसी दौरान में देखा कि पानी बलन्द हो रहा है और इमाम हसन असकरी (अ.स.) पानी में खेल रहे हैं।(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 179 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) और कमसिनी में उरूजे फ़िक्र

आले मोहम्मद (स अ व व ) जो तदब्बुरे क़ुरआनी और उरेजे फ़िक्र में ख़ास मक़ाम रखते हैं उनमें से एक बलन्द मक़ाम बुज़ुर्ग हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) हैं। उलमा ए फ़रीक़ैन ने लिखा है कि एक दिन आप एक ऐसी जगह खड़े रहे जिस जगह कुछ बच्चे खेल में मसरूफ़ थे। इत्तेफ़ाक़न उधर से आरिफ़े आले मोहम्मद (स अ व व ) जनाब बहलोल दाना गुज़रे। उन्होंने यह देख कर कि सब बच्चे खेल रहे हैं और एक ख़ूब सूरत सुखऱ् व सफ़ैद बच्चा खड़ा रो रहा है। उधर मुतावज्जे हुए और कहा ऐ नौनेहाल मुझे बड़ा अफ़सोस है कि तुम इस लिये रो रहे हो कि तुम्हारे पास वह खिलौने नहीं जो इन बच्चों के पास हैं। सुनो ! मैं अभी अभी तुम्हारे लिये खिलौने ले कर आता हूँ। यह कहना था कि आप कमसिनी के बवजूद बोले , अना न समझ। हम खेलने के लिये नहीं पैदा किये गए हैं। हम इल्मो इबादत के लिये ख़ल्क़ हुए हैं। उन्होंने पूछा कि तुम्हें यह क्यों कर मालूम हुआ कि ग़रज़े खि़लक़त इल्मो इबादत है। आपने फ़रमाया कि इसकी तरफ़ क़ुरआने मजीद रहबरी करता है। क्या तुमने नहीं पढ़ा कि ख़ुदा फ़रमाता है , ‘‘ अफ़सबतुम इन्नमा ख़लक़ना कुम अबसा ’’ क्या तुम ने यह समझ लिया है कि हम ने तुम को अबस(खेल कूद) के लिये पैदा किया है ? और क्या तुम हमारी तरफ़ पलट कर न आओगे। यह सुन कर बहलोल हैरान रह गए और यह कहने पर मजबूर हो गए कि ऐ फ़रज़न्द तुम्हें क्या हो गया था कि तुम रो रहे थे , तुम से गुनाह का तसव्वुर तो हो ही नहीं सकता क्यों कि तुम बहुत कमसिन हो। आपने फ़रमाया कि कमसिनी से क्या होता है , मैंने अपनी वालेदा को देखा है कि बड़ी लकड़ियों को जलाने के लिये छोटी लकड़ियां इस्तेमाल करती हैं। मैं डरता हूँ कि कहीं जहन्नम के बड़े ईंधन के लिये हम छोटे और कमसिन लोग इस्तेमाल न किये जाऐ।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 124, नूरूल अबसार पृष्ठ 150, तज़केरतुल मासूमीन पृष्ठ 230 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) के साथ बादशहाने वक़्त सुलूक और तरज़े अमल

जिस तरह आपके आबाओ अजदाद के वुजूद को उनके अहद के बादशाह अपनी सलतनत और हुक्मरानी की राह में रूकावट समझते रहे। उनका यह ख़्याल रहा कि दुनियां के क़ुलूब उनकी तरफ़ माएल हैं क्यों कि यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) और आमाले सालेह के ताजदार हैं लेहाज़ा उनको आवाम की नज़रों से दूर रखा जाए वरना इमकान क़वी है कि लोग उन्हें अपना बादशाहे वक़्त तसलीम कर लेंगे। इसके अलावा यह बुग़्ज़ो हसद भी था कि इनकी इज़्ज़त बादशाहे वक़्त के मुक़ाबले में ज़्यादा की जाती है और यह कि इमाम मेहदी (अ.स.) उन्हीं की नस्ल से होंगे जो सलतनतों का इन्के़लाब लाऐंगे। इन्ही तसव्वुरात ने जिस तरह आपके बुज़ुर्गों को चैन न लेने दिया और हमेशा मसाएब की अमाजगा बनाए रखा। इसी तरह आपके अहद के बादशाहों ने भी आपके साथ किया। अहदे वासिक़ में आपकी विलादत हुई और अहदे मुतवक्किल के कुछ अय्याम में बचपना गुज़ारा।

मुतवक्किल जो आले मोहम्मद (स अ व व ) का जानी दुश्मन था उसने सिर्फ इस जुर्म में कि आले मोहम्मद (स अ व व ) की तारीफ़ की है इब्ने सकीत शायर की ज़ुबान गुद्दी से खिंचवा ली।(अबुल फ़िदा जिल्द 2 पृष्ठ 14 ) उसने सब से पहले तो आप पर यह ज़ुल्म किया कि चार साल की उम्र में तरके वतन करने पर मजबूर किया यानी इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन मदीने से सामरा बुलवाया जिनके हमराह इमाम हसन असकरी (अ.स.) को लाज़मन जाना पड़ा। फिर वहां आपके घर के लोगों के कहने सुन्ने से तलाशी कराई और आपके वालिदे माजिद को जानवरों से फड़वा डालने की कोशिश की। ग़रज़ कि जो सई आले मोहम्मद (अ.स.) को सताने की मुमकिन थी , वह सब उसने अपने अहदे हयात में कर डाली। उसके बाद उसका बेटा मुस्तनसर ख़लीफ़ा हुआ। यह भी अपने बाप के नक्शे क़दम पर चल कर आले मोहम्मद (स अ व व ) को सताने की सुन्नत अदा करता रहा और इसकी मुसलसल कोशिश यही रही कि इन लोगों को सुकून नसीब न होने पाये। उसके बाद मुस्तईन का जब अहदे नव आया तो उसने आपके वालिदे माजिद को क़ैद ख़ाने में रखने के साथ साथ उसकी सई पैहम की कि किसी सूरत से इमाम हसन असकरी (अ.स.) को क़त्ल करा दे और इसके लिये उसने मुख़्तलिफ़ रास्ते तलाश किये।

मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक मरतबा उसने अपने शौक़ के मुताबिक़ एक निहायत ज़बरदस्त घोड़ा ख़रीदा लेकिन इत्तेफ़ाक़ से वह इस दर्जा सरकश निकला कि उसने बड़े बड़े लोगों को सवारी न दी और जो उसके क़रीब गया उसको ज़मीन पर दे मारा और टापों से कुचल डाला। एक दिन ख़लीफ़ा मुस्तईन बिल्लाह के एक दोस्त ने राय दी कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) को बुला कर हुक्म दिया जाय कि वह इस पर सवारी करें , अगर वह इस पर कामयाब हो गये तो घोड़ा ठीक हो जायेगा , और अगर कामयाब न हुए और कुचल डाले गए तो तेरा मक़सद हल हो जायेगा। चुनान्चे उसने ऐसा ही किया लेकिन अल्लाह रे शाने इमामत जब आप उसके क़रीब पहुँचे तो वह इस तरह भीगी बिल्ली बन गया कि जैसे कुछ जानता ही न हो। बादशाह यह देख कर हैरान रह गया और उसके पास इसके सिवा कोई चारा न था कि घोड़ा हज़रत के हवाले कर दे।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 210 )

फिर मुस्तईन के बाद जब मोतज़ बिल्लाह ख़लीफ़ा हुआ तो उसने भी आले मोहम्मद (स अ व व ) को सताने की सुन्नत जारी रखी और इसकी कोशिश करता रहा कि अहदे हाज़िर के इमाम ज़माना और फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) इमाम अली नक़ी (अ.स.) को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ कर दे। चुनान्चे यही हुआ और उसने 254 ई 0 में आपके वालिदे बुज़ुर्गवार को ज़हर से शहीद करा दिया। यह एक मुसीबत थी कि जिसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) को बे इन्तेहा मायूस कर दिया। इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत के बाद इमाम हसन असकरी (अ.स.) ख़तरात में महसूर हो गये , क्यो कि हुकूमत का रूख़ अब आप ही की तरफ़ रह गया था। आपको खटका लगा ही था कि हुकूमत की तरफ़ से अमल दरामद शुरू हो गया। मोतज़ ने एक शक़ीए अज़ली और नासबे अब्दी इब्ने यारिश की हिरासत और नज़र बन्दी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) को दे दिया। उसने उनको सताने में कोई दक़ीक़ा नहीं छोड़ा लेकिन आखि़र में वह आपका मोतक़िद बन गया। आपकी इबादत गुज़ारी और रोज़ा दारी ने उस पर ऐसा गहरा असर किया कि उसने आपकी खि़दमत में हाज़िर हो कर माफ़ी मांग ली और आपको दौलत सरा तक पहुँचा दिया।

अली बिन मोहम्मद ज़ियाद का बयान है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने मुझे एक ख़त तहरीर फ़रमाया जिसमें लिखा कि तुम ख़ाना नशीन हो जाओ क्यों कि एक बहुत बड़ा फ़ितना उठने वाला है। ग़रज़ कि थोड़े दिनों के बाद एक हंगामा ए अज़ीम बरपा हुआ और हुज्जाज बिन सुफ़यान ने मोतज़ को क़त्ल कर दिया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 127 )

फिर जब मेहदी बिल्लाह का अहद आया तो उसने भी बदस्तूर अपना अमल जारी रखा और हज़रत को सताने में हर क़िस्म की कोशिश करता रहा। एक दिन उसने सालेह बिन वसीफ़ नामी नासेबी के हवाले आपको कर दिया और हुक्म दिया कि हर मुम्किन तरीक़े से आपको सताये। सालेह के मकान के क़रीब एक बहुत ख़राब हुजरा था जिसमें आप क़ैद किये गए। सालेह बद बख़्त ने जहां और तरीक़े से सताया एक तरीक़ा यह भी था कि आपको खाना और पानी से भी हैरान और तंग रखता था। आखि़र ऐसा होता रहा कि आप तयम्मुम से नमाज़ अदा फ़रमाते रहे। एक दिन उसकी बीवी ने कहा कि ऐ दुश्मने ख़ुदा यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) हैं। इनके साथ रहम का बरताव कर। उसने कोई तवज्जो न की। एक दिन का ज़िक्र है , बनी अब्बासिया के एक गिरोह ने सालेह से जा कर दरख़्वास्त की कि हसन असकरी पर ज़ियादा ज़ुल्म किया जाना चाहिये। उसने जवाब दिया कि मैंने उनके ऊपर दो ऐसे शख़्सों को मुसल्लत कर दिया है जिनका ज़ुल्मों तशद्दुद में जवाब नहीं है लेकिन मैं क्या करूं कि उनके तक़वे और उनकी इबादत गुज़ारी से वह इस दर्जा मुताअस्सिर हो गये हैं कि जिसकी कोई हद नहीं। मैंने उनसे जवाब तलबी की तो उन्होंने क़ल्बी मजबूरी ज़ाहिर की। यह सुन कर वह लोग मायूस वापिस गये।(तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 223 )

ग़रज़ कि मेहदी का ज़ुल्म तशदद्दुद ज़ोरो पर था और यही नहीं कि वह इमाम हसन असकरी (अ.स.) पर सख़्ती करता था बल्कि यह कि वह उनके मानने वालों को बराबर क़त्ल करता रहता था। एक दिन आपके एक साहबी अहमद बिन मोहम्मद ने एक अरीज़े के ज़रिये से उसके ज़ुल्म की शिकायत की तो आपने तहरीर फ़रमाया कि घबराओ नहीं कि मेहदी की उम्र अब सिर्फ़ पांच दिन बाक़ी रह गई है। चुनान्चे छटे दिन उसे कमाले ज़िल्लत व ख़वारी के साथ क़त्ल कर दिया गया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 126 )

इसी के अहद में जब आप क़ैद ख़ाने में पहुँचे तो ईसा बिन फ़तेह से फ़रमाया कि तुम्हारी उम्र इस वक़्त 65 साल एक माह दो यौम की है। उसने नोट बुक निकाल कर उसकी तसदीक़ की। फिर आपने फ़रमाया कि ख़ुदा तुम्हें औलादे नरीना अता करेगा। वह ख़ुश हो कर कहने लगा मौला! क्या आपको ख़ुदा फ़रज़न्द न देगा ? आपने फ़रमाया ख़ुदा की क़सम अन्क़रीब मुझे मालिक ऐसा फ़रज़न्द देगा जो सारी कायनात पर हुकूमत करेगा और दुनियां को अदलो इंसाफ़ से भर देगा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 101 )

फिर जब उसके बाद मोतमिद ख़लीफ़ा हुआ तो उसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) पर ज़ुल्मो जौरो सितम व इस्तेबदाद का ख़ात्मा कर दिया।

इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत और इमाम हसन असकरी (अ.स.) का आग़ाज़े इमामत

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने अपने इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शादी नरजिस ख़ातून से कर दी जो क़ैसरे रोम की पोती और शमऊन वसी ए ईसा (अ.स.) की नस्ल से थीं।(जिला अल उयून पृष्ठ 298 ) इसके बाद आप 3 रजब 254 ई 0 को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ हुए। आपकी शहादत के बाद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की इमामत का आग़ाज़ हुआ। आपके तमाम मोतक़दीन ने आपको मुबारक बाद दी और आप से हर क़िस्म का इस्तेफ़ादा शुरू कर दिया। आपकी खि़दमत में आमदो रफ़्त और सवालात व जवाबात का सिलसिला जारी हो गया। आपने जवाबात में ऐसे हैरत अंगेज़ मालूमात का इन्केशाफ़ फ़रमाया कि लोग दंग रह गए। आपने इल्मे ग़ैब और इल्मे बिलमौत तक का सबूत पेश फ़रमाया और इसकी भी वज़ाहत की कि फ़लां शख़्स को इतने दिनों में मौत आ जायेगी।

अल्लामा मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक शख़्स ने अपने वालिद समेत हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की राह में बैठ कर यह सवाल करना चाहा कि बाप को पांच सौ दिरहम और बेटे को तीन सौ दिरहम अगर इमाम दें तो सारे काम हो जाऐ , यहां तक कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) इस रास्ते पर आ पहुँचे। इत्तेफ़ाक़ यह दोनों इमाम (अ.स.) को पहचानते न थे। इमाम (अ.स.) ख़ुद इन दोनों के क़रीब गए और उन से कहा कि तुम्हें आठ सौ दिरहम की ज़रूरत है। आओ मैं तुम्हें दे दूं। दोनों हमराह हो लिये और रक़म माहूद हासिल कर ली। इसी तरह एक और शख़्स क़ैद ख़ाने में था। उसने क़ैद की परेशानी की शिकायत इमाम (अ.स.) को लिख कर भेजी और तंग दस्ती का ज़िक्र शर्म की वजह से न किया। आपने तहरीर फ़रमाया कि तुम आज ही क़ैद ख़ाने से रिहा हो जाओगे और तुम ने जो शर्म से तंग दस्ती का ज़िक्र नहीं किया , इसके मुताअल्लिक़ मालूम करो कि मैं अपने मुक़ाम पर पहुँचते ही सौ दिनार भेज दूंगा। चुनान्चे ऐसा ही हुआ। इसी तरह एक शख़्स ने आपसे अपनी तंग दस्ती की शिकायत की। आपने ज़मीन कुरेद कर एक अशरफ़ी की थैली निकाली और उसके हवाले कर दी। इसमें सौ दीनार थे। इसी तरह एक शख़्स ने आपको तहरीर किया कि मिशक़ात के मानी क्या हैं ? नीज़ यह कि मेरी औरत हामेला है इससे जो फ़रज़न्द पैदा होगा उसका नाम रख दीजिए। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया कि मिशक़ात से मुराद क़ल्बे मोहम्मदे मुस्तफ़ा (स अ व व ) और आखि़र में लिख दिया ‘‘ अज़मुल्लाह अजरकुम व अख़लफ़ अलैक ’’ ख़ुदा तुम्हें अज्र दे और नेमुल बदल अता करे। चुनान्चे ऐसा ही हुआ कि उसके यहां मुर्दा लड़का पैदा हुआ। इसके बाद उसकी बीवी हामला हुई , फ़रज़न्दे नरीना मुतावल्लिद हुआ। मुलाहेज़ा हों।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 211 )

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि हसन इब्ने ज़रीफ़ नामी एक शख़्स ने हज़रत से मिलकर दरयाफ़्त किया कि क़ाएमे आले मोहम्मद (अ.स.) पोशीदा होने के बाद कब ज़ुहूर करेंगे ? आपने तहरीर फ़रमाया जब ख़ुदा की मसलहत होगी। इसके बाद लिखा कि तुम तप रबआ का सवाल करना भूल गए जिसे तुम मुझसे पूछना चाहते हो , तो देखो ऐसा करो कि जो इसमें मुबतिला हो उसके गले में आयत ‘‘ या नार कूनी बरदन सलामन अला इब्राहीम ’’ लिख कर लटका दो शिफ़ायाब हो जायेगा। अली बिन ज़ैद इब्ने हुसैन का कहना है कि मैं एक घोड़े पर सवार हो कर हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ तो आपने फ़रमाया कि इस घोड़े की उम्र सिर्फ़ एक रात बाक़ी रह गई है चुनान्चे वह सुबह होने से पहले मर गया। इस्माईल बिन मोहम्मद का कहना है कि मैं हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ और मैंने उनसे क़सम खा कर कहा कि मेरे पास एक दिरहम भी नहीं है। आपने मुस्कुरा कर फ़रमाया कि क़सम मत खाओ तुम्हारे घर दो सौ दीनार मदफ़ून हैं। यह सुन कर वह हैरान रह गया। फिर हज़रत ने गु़लाम को हुक्म दिया कि उन्हें अशरफ़ियां दे दो।

अब्दी रवायत करता है कि मैं अपने फ़रज़न्द को बसरे में बिमार छोड़ कर सामरा गया और वहां हज़रत को तहरीर किया कि मेरे फ़रज़न्द के लिया दुआ ए शिफ़ा फ़रमाएं। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया ‘‘ ख़ुदा उस पर रहमत नाज़िल फ़रमाए ’’ जिस दिन यह ख़त उसे मिला उसी दिन उसका फ़रज़न्द इन्तेक़ाल कर चुका था। मोहम्मद बिन अफ़आ कहता है कि मैंने हज़रत की खि़दमत में एक अरज़ी के ज़रिये से सवाल किया कि ‘‘ क्या आइम्मा को भी एहतेलाम होता है ? ’’ जब ख़त रवाना कर चुका तो ख़्याल हुआ कि एहतेलाम तो वसवसए शैतानी से हुआ करता है और इमाम (अ.स.) तक शैतान पहुँच नहीं सकता। बहर हाल जवाब आया कि इमाम नौम और बेदारी दोनों हालतों में वसवसाए शैतानी से दूर होते हैं जैसा कि तुम्हारे दिल में भी ख़्याल पैदा हुआ है , फिर एहतेलाम क्यों कर हो सकता है। जाफ़र बिन मोहम्मद का कहना है कि मैं एक दिन हज़रत की खि़दमत में हाज़िर था , दिल में ख़्याल आया कि मेरी औरत जो हामेला है अगर उससे फ़रज़न्दे नरीना पैदा हो तो बहुत अच्छा हो। आपने फ़रमाया कि ऐ जाफ़र लड़का नहीं लड़की पैदा होगी। चुनान्चे ऐसा ही हुआ।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 128 )


23

24

25

26

27

28

29

30

31

32

33

34

35

36

37

38

39

40

41

42

43

44

45

46

47

48

49

50

51

52