चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.


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अबु जाफ़र हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर ( अ स )

बाक़रे आले मोहम्मद और ज़ैनुल आबेदीन

किस तरह ज़िन्दा रहे गोया है राज़े किबरिया

करबला की हर बला हर इब्तेला को झेल कर

ज़िन्दगी इनकी हक़ीक़त में है ज़िन्दा मोजेज़ा

साबिर थरयानी (कराची)

हुआ पैदा जहां में , आज वह हमनामे पैग़म्बर

लक़ब बाक़िर है जिसका और कुन्नियत अबु जाफ़र

इमामुल तमुत्तकीं , मन्सूस और मासूम आलम में

नबी का पांचवां नायब , हमारा पांचवां रहबर

हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के पांचवें जा नशीन , हमारे पांचवें इमाम और सिलसिला ए अस्मत की सातवीं कड़ी थे। आपके वालिदे माजिद सय्यदुस साजेदीन हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) थे और वालेदा माजेदा उम्मे अब्दुल फातेमा बिन्ते हज़रत इमाम हसन (अ.स.) थीं। उलमा का इत्तेफ़ाक़ है कि आप बाप और मां दोनों की तरफ़ से अलवी और नजीबुत तरफ़ैन हाशमी थे। नसब का यह शरफ़ किसी को भी नहीं मिला।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 120 व मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 269 ) आप अपने आबाओ की तरह इमाम मन्सूस , मासूम , इल्मे ज़माना और अफ़ज़ले काएनात थे यानी ख़ुदा की तरफ़ से आप इमाम मासूम और अपने अहदे इमामत में सब से बडे़ आलिम और काएनात में सब से अफ़ज़ल थे।

अल्लामा इब्ने हजर मक्की लिखते हैं कि आप इबादत इल्म और ज़ोहद वग़ैरा में हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की जीती जागती तस्वीर थे।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 120 ) अल्लामा मोहम्मद तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि आप इल्म ज़ोहद , तक़वा तहारत सफ़ाए क़ल्ब और दीगर महासिन व फ़ज़ाउल में इस दर्जा पर फ़ाएज़ थे कि यह सिफ़ात खुद इनकी तरफ़ इन्तेसाब से मुम्ताज़ क़रार पाया।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 269 )

अल्लामा इब्ने साद का कहना है कि आप ताबेईन के तीसरे तबक़े में से थे और बहुत बड़े आलम , आबिद और सुक़्क़ा थे। इब्ने शाहब ज़हरी और इमाम निसाई ने आपको सुक़्क़ा फ़क़ीह लिखा है। फ़कु़हा की बड़ी जमाअत ने आप से रवायत की है। अता का बयान है कि उलमा को अज़रूए इल्म किसी के सामने इस क़दर अपने आप का झूठा समझते हुए नहीं देखा जिस तरह कि वह अपने आपको इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) के रू ब रू समझते थे। मैंने हाकिम जैसे आलिम को उनके सामने सिपर अन्दाख़्ता देखा है।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 446 )

साहबे रौज़तुल पृष्ठ का कहना है कि हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) के फ़ज़ाएल लिखने के लिये एक अलाहेदा किताब दरकार है। ख़्वाजा मोहम्मद पारसा लिखते हैं कि ‘‘ इमाम बारआ मजमुए जलालहू व कमालहू ’’ आप अज़ीमुश्शान इमाम व पेशवा और जामेए सफ़ात जलाल व कमाल थे।(फ़सल अल ख़ताब)

अल्लामा शेख़ मोहम्मद खि़ज़री लिखते हैं कि इमाम मोहम्मदे बाक़िर (अ.स.) अपने ज़माने में बनी हाशिम के सरदार थे।(तारीख़े फ़क़ा पृष्ठ 179 प्रकाशित कराची)

आपकी विलादत बा सआदत

हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) ब तारीख़ यकुम रजबुल मुरज्जब 57 हिजरी यौमे जुमा मदीना ए मुनव्वरा में पैदा हुए।(अल्लामा अलवरी पृष्ठ 155 व जलाल उल उयून पृष्ठ 26 व जनातुल ख़लूद पृष्ठ 25 )

अल्लामा मजलिसी फ़रमाते हैं कि जब आप बतने मादर में तशरीफ़ लाए तो आबाओ अजदाद की तरह आपके घर में आवाज़े गै़बी आने लगी और जब नौ माह के हुए तो फ़रिश्तों की बेइन्तेहा आवाज़ें आने लगीं और शबे विलादत एक नूर साते हुआ। विलादत के बाद क़िबला रूख़ हो कर आसमान की तरफ़ रूख़ फ़रमाया और(आदम की मानिन्द) तीन बार छींकने के बाद हम्दे खुदा बजा लाए , एक शबाना रोज़ दस्ते मुबारक से नूर साते रहा। आप ख़तना करदा , नाफ़ बुरीदा , तमाम अलाइशों से पाक और साफ़ मुतवल्लिद हुए थे।(जलाल अल उयून पृष्ठ 259 )

इस्मे गिरामी ,कुन्नियत और अलक़ाब

आपका इस्मे गिरामी ‘‘ लौहे महफ़ूज़ ’’ के मुताबिक़ और सरवरे काएनात (स. अ.) की ताय्युन के मुआफ़िक़ ‘‘ मोहम्मद ’’ था। आपकी कुन्नियत ‘‘ अबू जाफ़र ’’ थी और आपके अलक़ाब कसीर थे जिनमें बाक़िर , शाकिर , हादी ज़्यादा मशहूर हैं।(मतालेबुस सूऊल शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 181 )

बाक़िर की वजह तसमिया

बाक़िर बक़रह से मुशतक और इसी का इस्म फ़ाएल है इसके मानी शक करने और वसअत देने के हैं।(अलमन्जिद पृष्ठ 41 ) हज़रत इमाम मोहम्मदे बाक़िर (अ.स.) को इस लक़ब से इस लिये मुलक़्क़ब किया गया था कि आपने उलूम व मआरिफ़ को नुमाया फ़रमाया और हक़ाएक़ अहकाम व हिकमत व लताएफ़ के वह सरबस्ता ख़ज़ाने ज़ाहिर फ़रमाए जो लोगों पर ज़ाहिरो हुवैदा न थे।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 10, मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 269, शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 181 )

जौहरी ने अपनी सहाह में लिखा है कि ‘‘ तवससया फ़िल इल्म ’’ को बक़रह कहते है। इसी लिये इमाम मोहम्मद बिन अली को बाक़िर से मुलक़्क़ब किया जाता है। अल्लामा सिब्ते इब्ने जौज़ी का कहना है कि कसरते सुजूद की वजह से चुंकि आपकी पेशानी वसी थी इस लिये आपको बाक़िर कहा जाता है और एक वजह यह भी है कि जामिय्यत इलमिया की वजह से आपको यह लक़ब दिया गया है। शहीदे सालिस अल्लामा नूर उल्लाह शुश्तरी का कहना है कि आँ हज़रत (स. अ.) ने इरशाद फ़रमाया है कि इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) उलूमो मारिफ़ को इस तरह शिग़ाफ़ता करेंगे जिस तरह ज़ेराअत के लिये ज़मीन शिग़ाफ़ता की जाती है।(मजालिस अल मोमेनीन पृष्ठ 117 )

बादशाहाने वक़्त

आप 57 हिजरी में मावीया इब्ने अबी सुफ़ियान के अहद में पैदा हुए 60 हिजरी में यज़ीद बिन मावीयाा बादशाहे वक़्त रहा 64 हिजरी में मावीया बिन यज़ीद और मरवान बिन हकम बादशाह रहे। 65 हिजरी से 86 हिजरी तक अब्दुल्ल मलिक बिन मरवान ख़लीफ़ा ए वक़्त रहा। फिर 86 से 96 हिजरी तक वलीद बिन अब्दुल मलिक ने हुक्मरानी की। इसी ने 95 हिजरी में आपके वालिदे माजिद को दर्जए शहादत पर फ़ाएज़ कर दिया। इसी 95 हिजरी से आपकी इमामत का आग़ाज़ हुआ और 114 हिजरी तक आप फ़राएज़े इमामत अदा फ़रमाते रहे। इसी दौरान वलीद अब्दुल मलिक के बाद सलमान बिन अब्दुल मलिक , उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ , यज़ीद इब्ने अब्दुल मलिक और हश्शाम बिन अब्दुल मलिक बादशाहे वक़्त रहे।(अलाम अल वरा पृष्ठ 156 )

वाक़ेए करबला में इमाम मोहम्मदे बाक़िर (अ.स.) का हिस्सा

आपकी उमर अभी ढाई साल की थी कि आपको हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के हम्राह वतने अज़ीज़ मदीना ए मुनव्वरा छोड़ना पड़ा। फिर मदीना से मक्का और वहां से करबला तक की सऊबते सफ़र बरदाश्त करना पड़ी। इसके बाद वाक़ेए करबला के मसाएब देखे , कूफ़ाओ शाम के बाज़ारों और दरबारों का हाल देखा। एक साल शाम में क़ैद रहे फिर वहां से छूट कर 8 रबीउल अव्वल 62 हिजरी को मदीना ए मुनव्वरा वापस हुए। जब आपकी उमर चार साल की हुई तो आप एक दिन कुंए में गिर गए। ख़ुदा ने आपको डूबने से बचा लिया और जब आप पानी से बरामद हुए तो आपके कपड़े और आपका बदन तक भीगा हुआ न था।(मुनाक़िब जिल्द 4 पृष्ठ 109 )

हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) और जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी की बाहमी मुलाक़ात

यह मुसल्लेमा हक़ीक़त है कि हज़रत मोहम्मद (स. अ.) ने अपनी ज़ाहेरी ज़िन्दगी के एख़्तेमाम पर इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) की विलादत से तक़रीबन 46 साल पहले जाबिर बिन अब्दुल्लाह अन्सारी के ज़रिए से इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) को सलाम कहलाया था। इमाम (अ.स.) का यह शरफ़ इस दरजे मुम्ताज़ है कि आले मोहम्मद (स. अ.) में से कोई भी इसकी हमसरी नहीं कर सकता।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 272 )

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि सरवरे काएनात(स. अ.) एक दिन अपनी आग़ोशे मुबारक में हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) को लिये हुए प्यार कर रहे थे नागाह आपके साहबी ए ख़ास जाबिर बिन अब्दुल्लाह हाज़िर हुए। हज़रत ने जाबिर को देख कर फ़रमाया ऐ जाबिर मेरे इस फ़रज़न्द की नस्ल से एक बच्चा पैदा होगा जो इल्मो हिकमत से भर पूर होगा। ऐ जाबिर ! तुम उसका ज़माना पाओगे और उस वक़्त तक ज़िन्दा रहोगे जब तक वह सतहे अर्ज़ पर न आ जाये। ऐ जाबिर ! देखो जब तुम उस से मिलना तो उसे मेरा सलाम कह देना। जाबिर ने इस ख़बर और इस पेशीनगोई को कमाले मसर्रत के साथ सुना और उसी वक़्त से इस बहज़त आफ़रीं साअत का इन्तेज़ार करना शुरू कर दिया। यहां तक कि चश्मे इंतेज़ार पत्थरा गई और आंखों का नूर जाता रहा। जब तक आप बीना थे हर मजलिस व महफ़िल में तलाश करते रहे और जब नूरे नज़र जाता रहा तो ज़बान से पुकारना शुरू कर दिया। आपकी ज़बान पर जब हर वक़्त इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) का नाम रहने लगा तो लोग यह कहने लगे कि जाबिर का दिमाग़ जा़ैफ़े पीरी की वजह से अज़कार रफता हो गया है लेकिन बहर हाल वह वक़्त आ ही गया कि आप पैग़ामे अहमदी और सलामे मोहम्मदी पहुँचाने में कामयाब हो गए। रावी का बयान है कि हम जनाबे जाबिर के पास बैठे हुए थे कि इतने में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) तशरीफ़ लाए आपके हमराह आपके फ़रज़न्द इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) भी थे। इमाम (अ.स.) ने अपने फ़रज़न्द अरजुमन्द से फ़रमाया कि चचा जाबिर बिन अब्दुल्लाह अनसारी के सर का बोसा दो। उन्होंने फ़ौरन तामील इरशाद फ़रमाया , जाबिर ने इनको अपने सीने से लगा लिया और कहा कि इब्ने रसूल (अ.स.) आपको आपके जद्दे नाम दार हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा(स. अ.) ने सलाम फ़रमाया है। हज़रत ने कहा ऐ जाबिर इन पर और तुम पर मेरी तरफ़ से भी सलाम हो। इसके बाद जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अनसारी ने आप से शफ़ाअत के लिये ज़मानत की दरख़्वास्त की। आपने उसे मनज़ूर फ़रमाया और कहा कि मैं तुम्हारे जन्नत में जाने का ज़ामिन हूँ।

(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 120 वसीला अल नजात पृष्ठ 338 मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 373 शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 181, नूरूल अबसार पृष्ठ 14, रेजाल कशी पृष्ठ 27 तारीख़ तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 96 मजालिस अल मोमेनीन पृष्ठ 117 )

अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ेई का बयान है कि आँ हज़रत ने यह भी फ़रमाया था कि ‘‘ अन बकारक बादा रौयते ही यसरा ’’ कि ऐ जाबिर मेरा पैग़ाम पहुँचाने के बाद बहुत थोड़ा ज़िन्दा रहोगे चुनान्चे ऐसा ही हुआ।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 273 )

सात साल की उम्र में इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) का हज्जे ख़ाना ए काबा

अल्लामा जामी तहरीर फ़रमाते हैं कि रावी बयान करता है कि मैं हज के लिये जा रहा था , रास्ता पुर ख़तर और इन्तेहाई तारीक था। जब मैं लक़ो दक़ सहरा में पहुँचा तो एक तरफ़ से कुछ रौशनी की किरन नज़र आई मैं उसकी तरफ़ देख ही रहा था कि नागाह एक सात साल का लड़का मेरे क़रीब आ पहुँचा। मैंने सलाम का जवाब देने के बाद उस से पूछा कि आप कौन हैं ? कहां से आ रहे हैं और कहां का इरादा है और आपके पास ज़ादे राह क्या है ? उसने जवाब दिया , सुनो में ख़ुदा की तरफ़ से आ रहा हूँ और ख़ुदा की तरफ़ जा रहा हूँ। मेरा ज़ादे राह ‘‘ तक़वा ’’ है मैं अरबी उल नस्ल , कुरैशी ख़ानदान का अलवी नजा़द हूँ। मेरा नाम मोहम्मद बिन अली बिन हुसैन बिन अली बिन अबी तालिब है। यह कह कर वह नज़रों से ग़ायब हो गए और मुझे पता न चल सका कि आसमान की तरफ़ परवाज़ कर गये या ज़मीन में समा गये।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 183 )

हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) और इस्लाम में सिक्के की इब्तेदा

मुवर्रिख़ शहीर ज़ाकिर हुसैन तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 42 में लिखते हैं कि अब्दुल मलिक बिन मरवान ने 75 हिजरी में इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) की सलाह से इस्लामी सिक्का जारी किया। इससे पहले रोम व ईरान का सिक्का इस्लामी ममालिक में भी जारी था।

इस वाक़िये की तफ़सील अल्लामा दमीरी के हवाले से यह है कि एक दिन अल्लामा किसाई से ख़लीफ़ा हारून रशीद अब्बासी ने पूछा कि इस्लाम में दिरहम व दीनार के सिक्के कब और क्यों कर राएज हुए ? उन्होंने कहा कि सिक्कों का इजरा ख़लीफ़ा अब्दुल मलिक बिन मरवान ने किया है लेकिन इसकी तफ़सील से ना वाक़िफ़ हूँ और मुझे नहीं मालूम कि इनके इजरा और ईजाद की ज़रूरत क्यों महसूस हुई। हारून रशीद ने कहा कि बात यह है कि ज़माना ए साबिक़ में जो कागज़ वग़ैरा ममालिके इस्लाकिया में मुस्तमिल होते थे वह मिस्र में तैय्यार हुआ करते थे जहां उस वक़्त नसरानियो की हुकूमत थी और वह तमाम के तमाम बादशाहे रूम के मज़हब पर थे। वहां के कागज़ पर जो ज़र्ब यानी (ट्रेड मार्क) होता था। उसमें ब ज़बाने रोम (अब इब्न रूहुल क़ुदस) लिखा होता था। ‘‘ फ़लम यज़ल ज़ालेका कज़ालेका फ़ी सदरूल इस्लाम कल्लाह बेमआनी अलेहा काना अलैहा ’’ और यही चीज़ इस्लाम में जितने दौर गुज़रे थे सब में रायज थी। यहां तक कि जब अब्दुल मलिक बिन मरवान का ज़माना आया तो चूंकि वह बड़ा जे़हीन और होशियार था लेहाज़ा उसने तरजुमा करा के गर्वनरे मिस्र को लिखा कि तुम रूमी ट्रेड मार्क को मौकूफ़ व मतरूक कर दो यानी कागज़ कपड़े वग़ैरा जो अब तय्यार हों उनमें यह निशान न लगने दो बल्कि उन पर यह लिखवाओ ‘‘ शहद अल्लाह अन्हा ला इलाहा इला हनो ’’ चुनान्चे इस अमल पर अमल दरामद किया गया। जब इन नये मार्क के कागज़ों का जिन पर कलमाए तौहीद सब्त था रवाज पाया तो क़ैसरे रोम को बे इन्तेहा नागवार गुज़रा। उसने तोहफ़े तवाएफ़ भेज कर अब्दुल मलिक बिन मरवान ख़लीफ़ा ए वक़्त को लिखा कि कागज़ वग़ैरा पर जो मार्क पहले था वही बदस्तूर जारी करो। अब्दुल मलिक ने हदिये लेने से इन्कार कर दिया और सफ़ीर को तोहफ़ों और हदाया समैत वापस भेज दिया और उसके ख़त का जवाब तक न दिया।

क़ैसरे रोम ने तहाएफ़ को दुगना कर के भेजा और लिखा कि तुमने मेरे तहाएफ़ कम समझ कर वापस कर दिया इस लिये अब इज़ाफ़ा कर के भेज रहा हूँ इसे क़ुबूल कर लो और कागज़ से नया मार्क हटा दो। अब्दुल मकिल ने फिर हदीये वापस किये और मिसले साबिक़ कोई जवाब न दिया। इसके बाद क़ैसरे रोम ने तीसरी मरतबा ख़त लिखा और तहाएफ़ व हदाया भेजे और ख़त में लिखा कि तुम ने मेरे ख़तों के जवाबात नहीं दिये और न मेरी बात क़ुबूल की। अब मैं क़सम खा कर कहता हूँ कि अगर तुम ने अब भी रूमी ‘‘ ट्रेड मार्क ’’ को अज़ सरे नौ रवाज न दिया और तौहीद के जुमले कागज़ से न हटाय तो मैं तुम्हारे रसूल को गालियां , सिक्का ए दिरहम व दीनार पर नक़्श करा के तमाम ममालिके इस्लामिया में रायज करूंगा और तुम कुछ न कर सकोगे। देखो अब जो मैंने लिखा है उसे पढ़ कर ‘‘ अर फ़स जबिनेका अरक़न ’’ अपनी पेशानी का पसीना पोछ डालो और जो मैं कहता हूँ उस पर अमल करो ताकि हमारे और तुम्हारे दरमियान जो रिश्ताए मोहब्बत क़ायम है बदस्तूर बाक़ी रहे।

अब्दुल मलिक इब्ने मरवान ने जिस वक़्त इस ख़त को पढ़ा उस के पाओं तले से ज़मीन निकल गई। हाथ के तोते उड़ गये और नज़रो में दुनिया तारीक हो गई। उसने कमाले इज़तेराब में उलेमा , फ़ुज़ला , अहले राय और सियासत दोनों को फ़ौरन जमा कर के उनसे मशविरा तलब किया और कहा कि ऐसी बात सोचो की सांप भी मर जाय और लाठी भी न टूटे या सरासर इस्लाम कामयाब हो जाय। सब ने सर तोड़ कर बहुत देर तक ग़ौर किया लेकिन कोई ऐसी राय न दे सके जिस पर अलम किया जा सकता। ‘‘ फ़ल्म यहजद अन्दा अहदा मिन्हुम राया यामल बेही ’’ जब बादशाह उनकी किसी राय से मुतमईन न हो सका तो और ज़्यादा परेशान हुआ और दिल में कहने लगा मेरे पालने वाले अब क्या करूं। अभी वह इसी तरद्दुद में बैठा था कि उसका वज़ीरे आज़म इब्ने ‘‘ ज़न्बआ ’’ बोल उठा। बादशाह तू यक़ीनन जानता है कि इस अहम मौक़े पर इस्लाम की मुश्किल कुशाई कौन कर सकता है लेकिन अमदन उसकी तरफ़ रूख़ नहीं करता। बादशाह ने कहा , ‘‘ वैहका मन ’’ ख़ुदा तुझसे समझे , बता तो सही वह कौन हैं ? वज़ीरे आज़म ने अर्ज़ की ‘‘ एलैका बिल बाक़िर मिन अहले बैतुन नबी ’’ मैं फ़रज़न्दे रसूल (स. अ.) इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) की तरफ़ इशारा कर रहा हूँ और वही इस आड़े वक़्त में काम आ सकते हैं। अब्दुल मलिक बिन मरवान ने ज्यों ही आपका नाम सुना ‘‘ क़ाला सदक़त ’’ कहने लगा , ख़ुदा की क़सम तुम ने सच कहा और सही रहबरी की है।

इसके बाद उसी वक़्त फ़ौरन अपने आमिले मदीने को लिखा कि इस वक़्त इस्लाम पर एक सख़्त मुसिबत आ गई है , और इसका दफ़आ होना इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) के बग़ैर ना मुमकिन है , लेहाज़ा जिस तरह हो सके उन्हें राज़ी कर के मेरे पास भेज दो , देखो इस सिलसिले में जो मसारिफ़ होंगे , वह हुकूमत के ज़िम्मे होंगे।

अब्दुल मलिक ने दरख़्वास्त तलबी , मदीने इरसाल करने के बाद शाहे रोम के सफ़ीर को नज़र बन्द कर दिया और हुक्म दिया कि जब तक मैं इस मसले को हल न कर सकूँ इसे राजधानी से जाने न देना।

हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) की खि़दमत में अब्दुल मलिक बिन मरवान का पैग़ाम पहुँचा और आप फ़ौरन आज़िमे सफ़र हो गये और अहले मदीना से फ़रमाया कि चूंकि इस्लाम का काम है लेहाज़ा मैं अपने तमाम कामों पर इस सफ़र को तरजीह देता हूँ। अलग़रज़ आप वहां से रवाना हो कर अब्दुल मकिल के पास पहुँचे। चुंकि वह सख़्त परेशान था इस लिये उसने आप के इस्तक़बाल के फ़ौरन बाद अर्ज़े मुद्दआ कर दिया। इमाम (अ.स.) ने मुस्कुराते हुए फ़रमाया , ‘‘ ला याज़म हाज़ा अलैका फ़ानहु लैसा बे शैइन ’’ ऐ बादशाह घबरा नहीं यह बहुत ही मामूली सी बात है। मैं इसे अभी चुटकी बजाते हल किए देता हूँ। बादशाह सुन मुझे बा इल्मे इमामत मालूम है कि ख़ुदाये क़ादिरो तवाना क़ैसरे रोम को इस फ़ेले क़बीह पर क़ुदरत ही न देगा और फिर ऐसी सूरत में जब कि उसने तेरे हाथों में उस से ओहदा बर होने की ताक़त दे रखी है। बादशाह ने अर्ज़ किया , यब्ना रसूल अल्लाह (स. अ.) वह कौन सी ताक़त है जो मुझे नसीब है और जिसके ज़रिये से मैं कामयाबी हासिल कर सकता हूँ ?

हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) ने फ़रमाया कि तुम इसी वक़्त हक़ाक और कारीगरों को बुलाओ और उनसे दिरहम और दीनार के सिक्के ढलवाओ और मुमालिके इस्लामिया में रायज कर दो। उसने पूछा की उनकी क्या शक्लो सूरत होगी और वह किस तरह ढलेंगे ? इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया कि सिक्के के एक तरफ़ कलमा ए तौहीद दूसरी तरफ़ पैग़म्बरे इस्लाम का नामे पसमी और ज़र्ब सिक्के का सन् लिखा जाए। उसके बाद उसके औज़ान बतायें आपने कहा कि दिरहम के तीन सिक्के इस वक़्त जारी हैं एक बग़ली जो दस मिसक़ाल के दस होते हैं। दूसरे समरी ख़फ़ाक़ जो छः मिसक़ाल के दस होते हैं। तीसरे पांच मिसक़ाल के दस यह कुल 21 मिसक़ाल होते हैं। इसको तीन पर तक़सीम करने पर हासिले तक़सीम 7 सात मिसका़ल हुए। इसी सात मिसक़ाल के दस दिरहम बनवां और इसी सात मिसक़ाल की क़ीमत के सोने के दीनार तैय्यार कर जिसका खुरदा दस दिरहम हो। सिक्का दिरहम का नक़्श चूंकि फ़ारसी में है इसी लिये इसी फ़ारसी में रहने दिया जाय और दीनार का सिक्का रूमी हरफ़ों में है लेहाज़ा उसे रूमी ही हरफ़ों में कन्दा कराया जाय और ढालने की मशीन ‘‘ साचा ’’ शीशे का बनाया जाय ताकि सब हम वज़न तैय्यार हो सकें।

अब्दुल मलिक ने आपके हुक्म के मुताबिक़ तमाम सिक्के ढलवा लिये और सब काम दुरूस्त कर लिया। इसके बाद हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हो कर दरयाफ़्त किया कि अब क्या करूं ? ‘‘ अमरहा मोहम्मद बिन अली ’’ आपने हुक्म दिया कि इन सिक्कों को तमाम ममालिके इस्लामिया में रायज कर दे और साथ ही एक हुक्म नाफ़िज़ कर दे जिसमें यह हो कि इसी सिक्के को इस्तेमाल किया जाय और रूमी सिक्के खि़लाफ़े क़ानून क़रार दिये गये। अब जो खि़लाफ़ वरज़ी करेगा उसे सख़्त सज़ा दी जायेगी और ब वक़्ते ज़रूरत उसे क़त्ल भी किया जायेगा। अब्दुल बिन मरवान ने तामीले इरशाद के बाद सफ़ीरे रूम को रिहा कर के कहा कि अपने बादशाह से कहना कि हमने अपने सिक्के ढलवा कर रायज कर दिये और तुम्हारे सिक्के को ग़ैर क़ानूनी क़रार दे दिया। अब तुम से जो हो सके कर लो।

सफ़ीरे रोम यहां से रिहा हो कर जब अपने क़ैसर के पास पहुँचा और उस से सारी दास्तान बताई तो वह हैरान रह गया और सर डाल कर देर तक खा़मोश बैठा सोचता रहा। लोगों ने कहा , बादशाह तूने जो कहा था कि मैं मुसलमानों के पैग़म्बर को सिक्कों पर गालियां कन्दा कर दूंगा। अब इस पर अमल क्यों नहीं करते ? उसने कहा अब गालियां कन्दा कर के क्या कर लूगां। अब तो उनके ममालिक में मेरा सिक्का ही नहीं चल रहा और लेन देन ही नहीं हो रहा है।(हयातुल हैवान दमीरी अल मतूफ़ी 808 हिजरी जिल्द 1 पृष्ठ 63 तबआ मिस्र 136 हिजरी)

वलीद बिन अब्दुल मलिक की आले मोहम्मद (अ.स.) पर ज़ुल्म आफ़रीनी

तारीख़े अबुल फ़िदा में है कि हिजरी 86 में वलीद बिन अब्दुल मलिक इब्ने मरवान ख़लीफ़ा मुक़र्रर हुआ। तारीख़े कामिल में है कि 91 हिजरी में उसने हज्जे काबा अदा किया। मुवर्रेख़ीने इस्लाम का बयान है कि जब वलीद बिन अब्दुल मलिक हज से फ़ारिग़ हो कर मदीना ए मुनव्वरा आया तो एक दिन मिम्बरे रसूल (स अ ) पर ख़ुत्बा देते हुए उसकी नज़र इमाम हसन (अ.स.) के बेटे हसने मुसन्ना पर पड़ी हसने मुसन्ना पर पड़ी जो ख़ाना ए सय्यदा में बैठे हुए आयना देख रहे थे। ख़ुत्बे से फ़राग़त के बाद उसने उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ को तलब कर के कहा कि तुमने हसन बिन हसन (अ.स.) वग़ैरा को क्यों अब तक इस मकान में रहने दिया और क्यों न उनको यहां से निकाल बाहर किया। मैं नहीं चाहता कि आइन्दा फिर इन लोगों को यहां देखूं। ज़रूरत है कि यह मकान इन से ख़ाली करा लिया जाय और इसे ख़रीद कर मस्जिद में शामिल कर दिया जाय। हसन मुसन्ना और फातेमा बिन्ते इमाम हुसैन (अ.स.) और उनकी औलाद ने घर छोड़ने से इन्कार किया। वलीद ने हुक्म दिया कि मकान को उन लोगों पर गिरा दो। फिर लोगों ने ज़बर दस्ती असबाब निकाल कर फेकना और उसे उजाड़ना शुरू कर दिया। मजबूरन यह हज़रात मुख़द्देराते आलियात समैत रोजे़ रौशन में घर से निकल कर बैरूने मदीना सुकूनत पज़ीर हुए। कुछ दिनों के बाद इसी क़िस्म का वाक़िया जनाबे हफ़सा के मकान का भी पेश आया जो औलादे हज़रत उमर के क़ब्ज़े में था। चुनान्चे जब उन से कहा गया कि घर से बाहर निकलो तो उन्होंने मन्ज़ूर न किया और उसकी क़िमत भी क़ुबूल न की। हज्जाज बिन यूसुफ़ उस वक़्त मदीने में मौजूद था उसने चाहा कि मकान को गिरा दे मगर जब इस बात की इत्तेला वलीद बिन अब्दुल मलीक को हुई तो उसने उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ आमिले मदीना को लिखा कि औलादे उमर बिन ख़त्ताब की रज़ा जोई में कमी न करो और उनका एहतेराम मल्हूफ़े ख़ातिर रखो। अगर वह मकान फ़रोख़्त करने पर राज़ी न हो तो उनके रहने के लिये मकान का एक हिस्सा छोड़ दो और उनकी आमदो रफ़्त के लिये मस्जिद की जानिब एक दरवाज़ा भी रहने दो।

(किताब जज़बुल क़ुलूब पृष्ठ 173 व वफ़ा अल वफ़ा जिल्द 1 पृष्ठ 363)

आपके वालिदे माजिद की वफ़ात हसरते आयात

जब आपकी उम्र तक़रीबन 38 साल की हुई तो वलीद बिन अब्दुल मलिक ने आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को 95 हिजरी में ज़हरे दग़ा से शहीद कर दिया। आपने फ़राएज़े तजहीज़ो तकफ़ीन सर अंजाम दिये। आप ही ने नमाज़ पढ़ाई। मुल्ला जामी लिखते हैं ंकि हज़रत इमाम ज़ैनुल अबेदीन (अ.स.) ने अपने बाद आपको अपना वसी मुक़र्रर फ़रमाया क्यों कि आप ही तमाम औलादे में अफ़ज़ल व अरफ़ा थे। उलेमा का बयान है कि अपने वालिदे माजिद की ज़ाहिरी वफ़ात के बाद इमाम इमामे ज़माना क़रार पााए आर आप दरजाए इमामत के फ़राएज़ की अदायगी की ज़िम्मेदारी आयद हो गई।

हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) की इल्मी हैसियत

किसी मासूम की इल्मी हैसियत पर रौशनी डालना बहुत दुश्वार है क्यों कि मासूम और इमामे ज़माना को इल्मे लदुन्नी होता है। वह ख़ुदा की बारगाह से इल्मी सलाहियतों से भरपूर पैदा होता है हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) चूंकि इमामे ज़माना मासूमे अज़ली थे इस लिये आपके इल्मी कमालात , इल्मी कारनामे और आपकी इल्मी हैसियत की वज़ाहत नामुम्किन है। ताहम मैं उन वाक़ियात में से कुछ वाक़ेयात लिखता हूँ जिनर उलमा ने उबूर हासिल कर सके हैं।

अल्लामा इब्ने शहरे आशोब लिखते हैं कि हज़रत का ख़ुद इरशाद है कि ‘‘ अलमना मन्तिक़ अल तैरो अवतैना मिन कुल्ले शैइन ’’ हमें ताएरों तक की ज़बान सिखाई गई है और हमे हर चीज़ का इल्म अता किया गया है।(मनाक़िब इब्ने शहरे आशोब जिल्द 5 पृष्ठ 11 )

रौज़ातुल पृष्ठ में है कि ‘‘ बा ख़ुदा सौगन्द कि माख़ाजनाने खुदाएम दर आसमान व ज़मीन ’’ ख़ुदा की क़सम हम ज़मीन और आसमान में ख़ुदा वन्दे आलम के ख़ाज़िने इल्म हैं और हम ही शजराए नबूवत और मादने हिकमत हैं। वही हमारे यहां आती रही और फ़रिश्तें हमारे यहां आते रहते हैं। यही वजह है कि दुनिया के ज़ाहिरी अरबाबे इक़तेदार हम से जलते और हसद करते हैं। लिसानुल वाएज़ीन में है कि अबू मरीयम अब्दुल ग़फ़्फ़ार का कहना है कि मैं एक दिन हज़रत मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ परदाज़ हुआ कि 1. मौला कौन सा इस्लाम बेहतर है ? फ़रमाया , जिससे अपने बरादरे मोमिन को तकलीफ़ न पहुँचे। 2. कौन सा ख़ुल्क़ बेहतर है ? फ़रमाया , सब्र और माफ़ कर देना। 3. कौन सा मोमिन कामिल है ? फ़रमाया जिसका इख़्लाक़ बेहतर हो। 4. कौन सा जेहाद बेहतर है ? फ़रमाया , जिसमें अपना ख़ून बह जाऐ। 5. कौन सी नमाज़ बेहतर है ? फ़रमाया , जिसका क़ुनूत तवील हो। 6. कौन सा सदक़ा बेहतर है ? फ़रमाया , जिससे नाफ़रमानी से निजात मिले। 7. बादशाहाने दुनिया के पास जाने में क्या राय है ? फ़रमाया , मैं अच्छा नहीं समझता। 8. पूछा क्यों ? फ़रमाया , इस लिये की बादशाहों के पास की आमदो रफ़्त से तीन बातें पैदा होती हैं , 1. मोहब्बते दुनिया , 2. फ़रामोशिए मर्ग , 3. क़िल्लते रज़ाए ख़ुदा। 9. पूछा फिर मैं न जाऊं ? फ़रमाया , मैं तलबे दुनिया से मना नहीं करता अलबत्ता तलबे मआसी से रोकता हूँ।

अल्लामा तबरीसी लिखते हैं कि यह मुसल्लेमा हक़ीक़त है और इसकी शोहरते आम्मा कि आप इल्मो ज़ोहद और शरफ़ में सारी दुनिया से फ़ौकी़यत ले गये। आपसे इल्मे क़ुरआन इल्मे इल आसार , इल्मे अल सुनन और हर क़िस्म के उलूम , हुक्मे आदाब वग़ैरा में कोई भी फ़ौक़ नहीं गया। हत्ता कि आले रसूल (स. अ.) में भी अबुल आइम्मा के अलावा आपके बराबर उलूम के मज़ाहिरे में कोई नहीं हुआ। बड़े बड़े सहाबा और नुमायां ताबेईन और अज़ीमुल क़द्र फ़ुक़हा आपके सामने ज़ानुए अदब तह करते रहे। आपको आं हज़रत (स अ ) ने जाबिर बिन अब्दुल्लाह अन्सारी के ज़रिए से सलाम कहलाया था और इसकी पेशीन गोई फ़रमाई थी कि यह मेरा फ़रज़न्द ‘‘ बेक़ारूल उलूम ’’ होगा। इल्म की गुत्थियों को इस तरह सुलझायेगा कि दुनियां हैरान रह जायेगी। आलाम उल वरा पृष्ठ 157 , अल्लामा शेख़ मुफ़ीद , अल्लामा शिब्लन्जी तहरीर फ़रमाते हैं कि इल्मे दीन , इल्मे अहादीस , इल्मे सुनन और तफ़सीरे कु़रआन व इल्म अल सीरत व उलूमो फ़ुनून , अदब वगै़रा के ज़ख़ीरे जिस क़द्र इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) से ज़ाहिर हुय इतने इमाम हुसैन (अ.स.) और इमाम हसन (अ.स.) की औनाद में से किसी से ज़ाहिर नहीं हुए। मुलाहेज़ा हो किताब अल इरशाद पृष्ठ 286 , नूरूल अबसार पृष्ठ 131 अरजहुल मतालिब पृष्ठ 447 , अल्लामा इब्ने हजर मक्की लिखते हैं कि हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) के इल्मी फ़यूज़ व बरकात और कमालात व एहसानात से उस शख़्स के अलावा जिसकी बसीरत ज़ाइल हो गई हो , जिसका दिमाग़ ख़राब हो गया हो और जिसकी तबीयत व तीनत फ़ासिद हो गई हो। कोई शख़्स इन्कार नहीं कर सकता। इसी वजह से आपके बारे में कहा जाता है कि आप ‘‘ बाक़रूल उलूम ’’ इल्म के फैलाने वाले और जामेउल उलूम हैं। आप ही उलूमे मआरिफ़ में शोहरते आम्मा हासिल करने और उसके मदारिज बुलन्द करने वाले हैं। आपका दिल साफ़ , इल्मो अमल रौशन व ताबिन्दा , नफ़्स पाक और खि़ल्क़त शरीफ़ थी। आपके कुल अवक़ात इताअते ख़ुदावन्दी में बसर होते थे। जिनके बयान करने से वसफ़ करने वालों की ज़बानें गूंगी और आजिजा़ मांदा हैं। आपके ज़ोहद व तक़वा आपके उलूमो मआरिफ़ आपके इबादात व रियाज़ात और आपके हिदायात व कमालात इस कसरत से हैं कि उनका बयान इस किताब में ना मुम्किन हैं।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 120 )

अल्लामा इब्ने ख़ल्दून लिखते हैं कि इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) अल्लामा ज़मान और सरदारे कबीर उस शान थे। आप उलूम में बड़े तवाहुर और वसीउल इत्तेला थे।(वफ़यात उल अयान , जिल्द 1 पृष्ठ 450 )

अल्लामा ज़हबी लिखते हैं कि आप बनी हाशिम के सरदार और मुतबहे इल्मी की वजह से बाक़िर मशहूर थे। आप इल्म की तह तक पहुँच गये थे। आपने इसके दक़ाएक़ को अच्छी तरह समझ लिया था।(तज़केयल हफ़्फ़ाज़ जिल्द 1 पृष्ठ 111 )

अल्लामा शबरावी लिखते हैं कि इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) के इल्मी तज़किरे दुनिया में मशहूर हुए और आपकी मदहो सना में बा कसरत शेर लिखे गये। मालिक ज़ेहनी ने यह तीन शेर लिखे हैं।

तरजुमा:- जब लोग क़ुरआने मजीद का इल्म हासिल करना चाहें तो पूरा क़बीला ए क़ुरैश उसके बताने से आजिज़ रहेगा क्यों कि वह खुद मोहताज हैं और अगर फ़रज़न्दे रसूल (स. अ.) इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) के मुहं से कोई बात निकल जाय तो बे हदो हिसाब मसाएल व तहक़ीक़ात के ज़ख़ीरे मोहय्या कर देंगे। यह हज़रात वह सितारे हैं जो हर क़िस्म की तारीकियों में चलने वालों के लिये चमकते हैं और उनके अनवार से लोग रास्ते पाते हैं।(इलतहाफ़ पृष्ठ 42 व तारीख़ुल आइम्मा पृष्ठ 413 )

अल्लामा शहरे आशोब का बयान है कि सिर्फ़ एक रावी मोहम्मद बिन मुस्लिम ने आप से तीस हज़ार (30,000) हदीसें रवायत की हैं।(मनाक़िब जिल्द 5 पृष्ठ 11 )

अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स )

क्यों न झुकें सलाम को , फ़ौजे उलूम के परे

बज़्मे नकी़ में जौ़ फ़िशाँ आज है नूरे असकरी

वारिसे जु़ल्फ़िक़ार है सुल्बे में इनकी जलवा गर

ज़ात है इनकी मुज़दा ए , आमद दौरे हैदरी

साबिर थरयानी ‘‘ कराची ’’

बू मोहम्मद इमाम याज़ दहुम

जां नशीने रसूल अर्श मक़ाम

जिसके जद वजहे खि़लक़ते आलम

जिसके फ़रज़न्द से जहां को क़याम

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स अ व व ) के ग्यारहवें जां नशीन और सिलसिला ए इस्मत के 13 वीं कड़ी हैं। आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम अली नकी़ (अ.स.) थे और आपकी वालेदा माजेदा हदीसा ख़ातून थीं। मोहतरमा के मुताअल्लिक़ अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि आप अफ़ीफ़ा , करीमा , निहायत संजीदा और वरा व तक़वा से भर पूर थीं।(जिलाउल उयून पृष्ठ 295 )

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) अपने आबाओ अजदाद की तरह इमाम मन्सूस मासूम आलिमे ज़माना और अफ़ज़ले काएनात थे।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 ) आपको हसना सिफ़ाते इल्म व सख़ावत वग़ैरा अपने वालिद से विरसे मे मिले थे।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 461 )

अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ई का बयान है कि आपको ख़ुदा वन्दे आलम ने जिन फ़ज़ाएल व मनाक़िब और कमालात और बुलन्दी से सरफ़राज़ किया है इनमें मुकम्मिल दवाम मौजूद हैं। न वह नज़र अन्दाज़ किये जा सकते हैं और न इनमें कुहनगी आ सकती है और आपका एक अहम शरफ़ यह भी है कि इमाम मेहदी (अ.स.) आप ही के इकलौते फ़रज़न्द हैं जिन्हें परवर दिगारे आलम ने तवील उम्र अता की है।(मतालिब उल सुऊल पृष्ठ 292 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) की विलादत और बचपन के बाज हालात

उलमाए फ़रीक़ैन की अक्सरीयत का इत्तेफ़ाक़ है कि आप बातारीख़ 10 रबीउस्सानी 232 हिजरी यौमे जुमा ब वक़्ते सुबह बतने जनाबे हदीसा ख़ातून से ब मुक़ाम मदीना मुनव्वरा मुतवल्लिद हुए हैं। मुलाहेज़ा हो शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210 सवाएक़े मोहर्रेक़ पृष्ठ 124 नूरूल अबसार 110. जिलाउल उयून पृष्ठ 295, इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 दम ए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163। आपकी विलादत के बाद हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के रखे हुए नाम ‘‘ हसन बिन अली ’’ से मौसूम किया।(निहाबुल मोवद्दता)

आपकी कुन्नियत और आपके अल्क़ाब

आपकी कुन्नियत ‘‘ अबू मोहम्मद ’’ थी और आपके अल्क़ाब बेशुमार थे। जिनमें अस्करी , हादी , ज़की , खलिस , सिराज और इब्ने रज़ा ज़्यादा मशहूर हैं।(नूरूल अबसार पृष्ठ 150, शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210, दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 122 व मुनाक़िब इब्ने शहर आशोब जिल्द पृष्ठ 125 ) आपका लक़ब इसकरी इस लिये ज़्यादा मशहूर हुआ कि आप जिस महल्ले में ब मुक़ाम ‘‘ सरमन राय ’’ रहते थे उसे असकर कहा जाता था और ब ज़ाहिर इसकी वजह यह थी जब ख़लीफ़ा मोतसिम बिल्ला ने इस मुक़ाम पर लश्कर जमा किया था और ख़ुद भी क़याम पज़ीर था उसे ‘‘ असकर ’’ कहने लगे थे , और ख़लीफ़ा मुतावक्किल ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को मदीने से बुलवा कर यहीं मुक़ीम रहने पर मजबूर किया था। नीज़ यह भी था कि एक मरतबा ख़लीफ़ा ए वक़्त ने इमामे ज़माना को इसी मुक़ाम पर नव्वे हज़ार लशकर का मुआएना कराया था और आपने अपनी दो उंगलियां के दरमियान से अपने ख़ुदाई लशकर का मुताला करा दिया था। उन्हीं वजह की बिना पर इस मुका़म का नाम ‘‘ असकर ’’ हो गया था जहाँ इमाम अली नक़ी (अ.स.) और इमाम हसन असकरी (अ.स.) मुद्दतो मुक़ीम रह कर असकरी मशहूर हो गए।(बेहारूल अनवार जिल्द 12 पृष्ठ 154, दफ़यात अयान जिल्द 1 पृष्ठ 145, मजमूउल बहरैन पृष्ठ 322 दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163, तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 222 )

आपके अहदे हयात और बादशहाने वक़्त

आपकी विलादत 232 हिजरी में उस वक़्त हुई जब कि वासिक़ बिल्लाह बिन मोतसिम बादशाहे वक्त़ था जो 227 हिजरी में ख़लीफ़ा बना था।(तारीख़ अबूल फ़िदा) फिर 233 हिजरी में मुतावक्किल ख़लीफ़ा बना(तारीख़ इब्नुल वरा) जो हज़रत अली (अ.स.) और उनकी औलाद से सख़्त बुग़़्ज़ व कीना रखता था और उनकी मनक़स्त किया करता था।(हयातुल हैवान व तारीख़े कामिल) इसी ने 236 हिजरी में इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़्यारत को जुर्म क़रार दी और उनके मज़ार को ख़त्म करने की सई की।(तारीख़े कामिल) और इसी ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन मदीने से सरमन राय तलब करा लिया।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा) और आपको गिरफ़्तार करा के आपके मकान की तलाशी कराई।(दफ़अतिल अयान) फिर 247 हिजरी में मुन्तसर बिन मुतावक्किल ख़लीफ़ा ए वक़्त हुआ।(तारीख़े अबुल फ़िदा) फिर 248 हिजरी में मोतस्तईन ख़लीफ़ा बना।(अबूल फ़िदा) फिर 252 हिजरी में मुमताज़ बिल्ला ख़लीफ़ा हुआ।(अबुल फ़िदा) इसी ज़माने में अली नक़ी (अ.स.) को ज़हर से शहीद कर दिया गया।(नूरूल अबसार) फिर 255 हिजरी में मेंहदी बिल्लाह ख़लीफ़ा बना।(तारीख़ इब्ने अल वर्दी) फिर 256 हिजरी में मोतमिद बिल्ला ख़लीफ़ा हुआ।(तारीख़ अबुल फ़िदा) इसी ज़माने में 260 हिजरी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) ज़हर से शहीद हुए।(तारीख़े कामिल) इन तमाम खुल्फ़ा ने आपके साथ वही बरताव किया जो आले मोहम्मद (स अ व व ) के साथ बरताव किए जाने का दस्तूर चला आ रहा था।

चार माह की उम्र में मनसबे इमामत

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) कि उम्र जब चार माह के क़रीब हुई तो आपके वालिद अली नक़ी (अ.स.) ने अपने बाद के लिये मन्सबे इमामत की वसीअत की और फ़रमाया कि मेरे बाद यही मेरे जां नशीन होंगे और इस पर बहुत से लोगों को गवाह भी कर दिया।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 व दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 193 बहवाला ए उसूले काफ़ी)

अल्लामा इब्ने हजर मक्की का कहना है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) इमाम अली नक़ी (अ.स.) की औलाद में सब से ज़्यादा अज़िल अरफ़ा अला व अफ़ज़ल थे।

चार साल की उम्र में आपका सफ़रे ईराक़

मुतावक्किल अब्बासी जो आले मोहम्मद (स अ व व ) का हमेशा से दुश्मन था उसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) के वालिदे बुज़ुर्गवार इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन 239 हिजरी में मदीने से ‘‘ सरमन राय ’’ बुला लिया। आप ही के हमराह इमाम हसन असकरी (अ.स.) को भी जाना पड़ा। इस वक़्त आपकी उम्र चार साल चन्द माह की थी।(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 162 )

यूसुफ़े आले मोहम्मद(स. अ.) कुएं में

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) न जाने किस तरह अपने घर के कुएं में गिर गए। आपके गिरने से औरतों में कोहरामे अज़ीम बरपा हो गया। सब चीख़ने और चिल्लाने लगीं मगर हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) जो महवे नमाज़ थे मुतलक़ मुताअस्सिर न हुए और इतमिनान से नमाज़ का एख़तेताम किया। उसके बाद आपने फ़रमाया कि घबराओ नहीं हुज्जते ख़ुदा को कोई गज़न्द न पहुँचेगी। इसी दौरान में देखा कि पानी बलन्द हो रहा है और इमाम हसन असकरी (अ.स.) पानी में खेल रहे हैं।(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 179 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) और कमसिनी में उरूजे फ़िक्र

आले मोहम्मद (स अ व व ) जो तदब्बुरे क़ुरआनी और उरेजे फ़िक्र में ख़ास मक़ाम रखते हैं उनमें से एक बलन्द मक़ाम बुज़ुर्ग हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) हैं। उलमा ए फ़रीक़ैन ने लिखा है कि एक दिन आप एक ऐसी जगह खड़े रहे जिस जगह कुछ बच्चे खेल में मसरूफ़ थे। इत्तेफ़ाक़न उधर से आरिफ़े आले मोहम्मद (स अ व व ) जनाब बहलोल दाना गुज़रे। उन्होंने यह देख कर कि सब बच्चे खेल रहे हैं और एक ख़ूब सूरत सुखऱ् व सफ़ैद बच्चा खड़ा रो रहा है। उधर मुतावज्जे हुए और कहा ऐ नौनेहाल मुझे बड़ा अफ़सोस है कि तुम इस लिये रो रहे हो कि तुम्हारे पास वह खिलौने नहीं जो इन बच्चों के पास हैं। सुनो ! मैं अभी अभी तुम्हारे लिये खिलौने ले कर आता हूँ। यह कहना था कि आप कमसिनी के बवजूद बोले , अना न समझ। हम खेलने के लिये नहीं पैदा किये गए हैं। हम इल्मो इबादत के लिये ख़ल्क़ हुए हैं। उन्होंने पूछा कि तुम्हें यह क्यों कर मालूम हुआ कि ग़रज़े खि़लक़त इल्मो इबादत है। आपने फ़रमाया कि इसकी तरफ़ क़ुरआने मजीद रहबरी करता है। क्या तुमने नहीं पढ़ा कि ख़ुदा फ़रमाता है , ‘‘ अफ़सबतुम इन्नमा ख़लक़ना कुम अबसा ’’ क्या तुम ने यह समझ लिया है कि हम ने तुम को अबस(खेल कूद) के लिये पैदा किया है ? और क्या तुम हमारी तरफ़ पलट कर न आओगे। यह सुन कर बहलोल हैरान रह गए और यह कहने पर मजबूर हो गए कि ऐ फ़रज़न्द तुम्हें क्या हो गया था कि तुम रो रहे थे , तुम से गुनाह का तसव्वुर तो हो ही नहीं सकता क्यों कि तुम बहुत कमसिन हो। आपने फ़रमाया कि कमसिनी से क्या होता है , मैंने अपनी वालेदा को देखा है कि बड़ी लकड़ियों को जलाने के लिये छोटी लकड़ियां इस्तेमाल करती हैं। मैं डरता हूँ कि कहीं जहन्नम के बड़े ईंधन के लिये हम छोटे और कमसिन लोग इस्तेमाल न किये जाऐ।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 124, नूरूल अबसार पृष्ठ 150, तज़केरतुल मासूमीन पृष्ठ 230 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) के साथ बादशहाने वक़्त सुलूक और तरज़े अमल

जिस तरह आपके आबाओ अजदाद के वुजूद को उनके अहद के बादशाह अपनी सलतनत और हुक्मरानी की राह में रूकावट समझते रहे। उनका यह ख़्याल रहा कि दुनियां के क़ुलूब उनकी तरफ़ माएल हैं क्यों कि यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) और आमाले सालेह के ताजदार हैं लेहाज़ा उनको आवाम की नज़रों से दूर रखा जाए वरना इमकान क़वी है कि लोग उन्हें अपना बादशाहे वक़्त तसलीम कर लेंगे। इसके अलावा यह बुग़्ज़ो हसद भी था कि इनकी इज़्ज़त बादशाहे वक़्त के मुक़ाबले में ज़्यादा की जाती है और यह कि इमाम मेहदी (अ.स.) उन्हीं की नस्ल से होंगे जो सलतनतों का इन्के़लाब लाऐंगे। इन्ही तसव्वुरात ने जिस तरह आपके बुज़ुर्गों को चैन न लेने दिया और हमेशा मसाएब की अमाजगा बनाए रखा। इसी तरह आपके अहद के बादशाहों ने भी आपके साथ किया। अहदे वासिक़ में आपकी विलादत हुई और अहदे मुतवक्किल के कुछ अय्याम में बचपना गुज़ारा।

मुतवक्किल जो आले मोहम्मद (स अ व व ) का जानी दुश्मन था उसने सिर्फ इस जुर्म में कि आले मोहम्मद (स अ व व ) की तारीफ़ की है इब्ने सकीत शायर की ज़ुबान गुद्दी से खिंचवा ली।(अबुल फ़िदा जिल्द 2 पृष्ठ 14 ) उसने सब से पहले तो आप पर यह ज़ुल्म किया कि चार साल की उम्र में तरके वतन करने पर मजबूर किया यानी इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन मदीने से सामरा बुलवाया जिनके हमराह इमाम हसन असकरी (अ.स.) को लाज़मन जाना पड़ा। फिर वहां आपके घर के लोगों के कहने सुन्ने से तलाशी कराई और आपके वालिदे माजिद को जानवरों से फड़वा डालने की कोशिश की। ग़रज़ कि जो सई आले मोहम्मद (अ.स.) को सताने की मुमकिन थी , वह सब उसने अपने अहदे हयात में कर डाली। उसके बाद उसका बेटा मुस्तनसर ख़लीफ़ा हुआ। यह भी अपने बाप के नक्शे क़दम पर चल कर आले मोहम्मद (स अ व व ) को सताने की सुन्नत अदा करता रहा और इसकी मुसलसल कोशिश यही रही कि इन लोगों को सुकून नसीब न होने पाये। उसके बाद मुस्तईन का जब अहदे नव आया तो उसने आपके वालिदे माजिद को क़ैद ख़ाने में रखने के साथ साथ उसकी सई पैहम की कि किसी सूरत से इमाम हसन असकरी (अ.स.) को क़त्ल करा दे और इसके लिये उसने मुख़्तलिफ़ रास्ते तलाश किये।

मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक मरतबा उसने अपने शौक़ के मुताबिक़ एक निहायत ज़बरदस्त घोड़ा ख़रीदा लेकिन इत्तेफ़ाक़ से वह इस दर्जा सरकश निकला कि उसने बड़े बड़े लोगों को सवारी न दी और जो उसके क़रीब गया उसको ज़मीन पर दे मारा और टापों से कुचल डाला। एक दिन ख़लीफ़ा मुस्तईन बिल्लाह के एक दोस्त ने राय दी कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) को बुला कर हुक्म दिया जाय कि वह इस पर सवारी करें , अगर वह इस पर कामयाब हो गये तो घोड़ा ठीक हो जायेगा , और अगर कामयाब न हुए और कुचल डाले गए तो तेरा मक़सद हल हो जायेगा। चुनान्चे उसने ऐसा ही किया लेकिन अल्लाह रे शाने इमामत जब आप उसके क़रीब पहुँचे तो वह इस तरह भीगी बिल्ली बन गया कि जैसे कुछ जानता ही न हो। बादशाह यह देख कर हैरान रह गया और उसके पास इसके सिवा कोई चारा न था कि घोड़ा हज़रत के हवाले कर दे।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 210 )

फिर मुस्तईन के बाद जब मोतज़ बिल्लाह ख़लीफ़ा हुआ तो उसने भी आले मोहम्मद (स अ व व ) को सताने की सुन्नत जारी रखी और इसकी कोशिश करता रहा कि अहदे हाज़िर के इमाम ज़माना और फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) इमाम अली नक़ी (अ.स.) को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ कर दे। चुनान्चे यही हुआ और उसने 254 ई 0 में आपके वालिदे बुज़ुर्गवार को ज़हर से शहीद करा दिया। यह एक मुसीबत थी कि जिसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) को बे इन्तेहा मायूस कर दिया। इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत के बाद इमाम हसन असकरी (अ.स.) ख़तरात में महसूर हो गये , क्यो कि हुकूमत का रूख़ अब आप ही की तरफ़ रह गया था। आपको खटका लगा ही था कि हुकूमत की तरफ़ से अमल दरामद शुरू हो गया। मोतज़ ने एक शक़ीए अज़ली और नासबे अब्दी इब्ने यारिश की हिरासत और नज़र बन्दी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) को दे दिया। उसने उनको सताने में कोई दक़ीक़ा नहीं छोड़ा लेकिन आखि़र में वह आपका मोतक़िद बन गया। आपकी इबादत गुज़ारी और रोज़ा दारी ने उस पर ऐसा गहरा असर किया कि उसने आपकी खि़दमत में हाज़िर हो कर माफ़ी मांग ली और आपको दौलत सरा तक पहुँचा दिया।

अली बिन मोहम्मद ज़ियाद का बयान है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने मुझे एक ख़त तहरीर फ़रमाया जिसमें लिखा कि तुम ख़ाना नशीन हो जाओ क्यों कि एक बहुत बड़ा फ़ितना उठने वाला है। ग़रज़ कि थोड़े दिनों के बाद एक हंगामा ए अज़ीम बरपा हुआ और हुज्जाज बिन सुफ़यान ने मोतज़ को क़त्ल कर दिया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 127 )

फिर जब मेहदी बिल्लाह का अहद आया तो उसने भी बदस्तूर अपना अमल जारी रखा और हज़रत को सताने में हर क़िस्म की कोशिश करता रहा। एक दिन उसने सालेह बिन वसीफ़ नामी नासेबी के हवाले आपको कर दिया और हुक्म दिया कि हर मुम्किन तरीक़े से आपको सताये। सालेह के मकान के क़रीब एक बहुत ख़राब हुजरा था जिसमें आप क़ैद किये गए। सालेह बद बख़्त ने जहां और तरीक़े से सताया एक तरीक़ा यह भी था कि आपको खाना और पानी से भी हैरान और तंग रखता था। आखि़र ऐसा होता रहा कि आप तयम्मुम से नमाज़ अदा फ़रमाते रहे। एक दिन उसकी बीवी ने कहा कि ऐ दुश्मने ख़ुदा यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) हैं। इनके साथ रहम का बरताव कर। उसने कोई तवज्जो न की। एक दिन का ज़िक्र है , बनी अब्बासिया के एक गिरोह ने सालेह से जा कर दरख़्वास्त की कि हसन असकरी पर ज़ियादा ज़ुल्म किया जाना चाहिये। उसने जवाब दिया कि मैंने उनके ऊपर दो ऐसे शख़्सों को मुसल्लत कर दिया है जिनका ज़ुल्मों तशद्दुद में जवाब नहीं है लेकिन मैं क्या करूं कि उनके तक़वे और उनकी इबादत गुज़ारी से वह इस दर्जा मुताअस्सिर हो गये हैं कि जिसकी कोई हद नहीं। मैंने उनसे जवाब तलबी की तो उन्होंने क़ल्बी मजबूरी ज़ाहिर की। यह सुन कर वह लोग मायूस वापिस गये।(तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 223 )

ग़रज़ कि मेहदी का ज़ुल्म तशदद्दुद ज़ोरो पर था और यही नहीं कि वह इमाम हसन असकरी (अ.स.) पर सख़्ती करता था बल्कि यह कि वह उनके मानने वालों को बराबर क़त्ल करता रहता था। एक दिन आपके एक साहबी अहमद बिन मोहम्मद ने एक अरीज़े के ज़रिये से उसके ज़ुल्म की शिकायत की तो आपने तहरीर फ़रमाया कि घबराओ नहीं कि मेहदी की उम्र अब सिर्फ़ पांच दिन बाक़ी रह गई है। चुनान्चे छटे दिन उसे कमाले ज़िल्लत व ख़वारी के साथ क़त्ल कर दिया गया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 126 )

इसी के अहद में जब आप क़ैद ख़ाने में पहुँचे तो ईसा बिन फ़तेह से फ़रमाया कि तुम्हारी उम्र इस वक़्त 65 साल एक माह दो यौम की है। उसने नोट बुक निकाल कर उसकी तसदीक़ की। फिर आपने फ़रमाया कि ख़ुदा तुम्हें औलादे नरीना अता करेगा। वह ख़ुश हो कर कहने लगा मौला! क्या आपको ख़ुदा फ़रज़न्द न देगा ? आपने फ़रमाया ख़ुदा की क़सम अन्क़रीब मुझे मालिक ऐसा फ़रज़न्द देगा जो सारी कायनात पर हुकूमत करेगा और दुनियां को अदलो इंसाफ़ से भर देगा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 101 )

फिर जब उसके बाद मोतमिद ख़लीफ़ा हुआ तो उसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) पर ज़ुल्मो जौरो सितम व इस्तेबदाद का ख़ात्मा कर दिया।

इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत और इमाम हसन असकरी (अ.स.) का आग़ाज़े इमामत

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने अपने इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शादी नरजिस ख़ातून से कर दी जो क़ैसरे रोम की पोती और शमऊन वसी ए ईसा (अ.स.) की नस्ल से थीं।(जिला अल उयून पृष्ठ 298 ) इसके बाद आप 3 रजब 254 ई 0 को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ हुए। आपकी शहादत के बाद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की इमामत का आग़ाज़ हुआ। आपके तमाम मोतक़दीन ने आपको मुबारक बाद दी और आप से हर क़िस्म का इस्तेफ़ादा शुरू कर दिया। आपकी खि़दमत में आमदो रफ़्त और सवालात व जवाबात का सिलसिला जारी हो गया। आपने जवाबात में ऐसे हैरत अंगेज़ मालूमात का इन्केशाफ़ फ़रमाया कि लोग दंग रह गए। आपने इल्मे ग़ैब और इल्मे बिलमौत तक का सबूत पेश फ़रमाया और इसकी भी वज़ाहत की कि फ़लां शख़्स को इतने दिनों में मौत आ जायेगी।

अल्लामा मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक शख़्स ने अपने वालिद समेत हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की राह में बैठ कर यह सवाल करना चाहा कि बाप को पांच सौ दिरहम और बेटे को तीन सौ दिरहम अगर इमाम दें तो सारे काम हो जाऐ , यहां तक कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) इस रास्ते पर आ पहुँचे। इत्तेफ़ाक़ यह दोनों इमाम (अ.स.) को पहचानते न थे। इमाम (अ.स.) ख़ुद इन दोनों के क़रीब गए और उन से कहा कि तुम्हें आठ सौ दिरहम की ज़रूरत है। आओ मैं तुम्हें दे दूं। दोनों हमराह हो लिये और रक़म माहूद हासिल कर ली। इसी तरह एक और शख़्स क़ैद ख़ाने में था। उसने क़ैद की परेशानी की शिकायत इमाम (अ.स.) को लिख कर भेजी और तंग दस्ती का ज़िक्र शर्म की वजह से न किया। आपने तहरीर फ़रमाया कि तुम आज ही क़ैद ख़ाने से रिहा हो जाओगे और तुम ने जो शर्म से तंग दस्ती का ज़िक्र नहीं किया , इसके मुताअल्लिक़ मालूम करो कि मैं अपने मुक़ाम पर पहुँचते ही सौ दिनार भेज दूंगा। चुनान्चे ऐसा ही हुआ। इसी तरह एक शख़्स ने आपसे अपनी तंग दस्ती की शिकायत की। आपने ज़मीन कुरेद कर एक अशरफ़ी की थैली निकाली और उसके हवाले कर दी। इसमें सौ दीनार थे। इसी तरह एक शख़्स ने आपको तहरीर किया कि मिशक़ात के मानी क्या हैं ? नीज़ यह कि मेरी औरत हामेला है इससे जो फ़रज़न्द पैदा होगा उसका नाम रख दीजिए। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया कि मिशक़ात से मुराद क़ल्बे मोहम्मदे मुस्तफ़ा (स अ व व ) और आखि़र में लिख दिया ‘‘ अज़मुल्लाह अजरकुम व अख़लफ़ अलैक ’’ ख़ुदा तुम्हें अज्र दे और नेमुल बदल अता करे। चुनान्चे ऐसा ही हुआ कि उसके यहां मुर्दा लड़का पैदा हुआ। इसके बाद उसकी बीवी हामला हुई , फ़रज़न्दे नरीना मुतावल्लिद हुआ। मुलाहेज़ा हों।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 211 )

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि हसन इब्ने ज़रीफ़ नामी एक शख़्स ने हज़रत से मिलकर दरयाफ़्त किया कि क़ाएमे आले मोहम्मद (अ.स.) पोशीदा होने के बाद कब ज़ुहूर करेंगे ? आपने तहरीर फ़रमाया जब ख़ुदा की मसलहत होगी। इसके बाद लिखा कि तुम तप रबआ का सवाल करना भूल गए जिसे तुम मुझसे पूछना चाहते हो , तो देखो ऐसा करो कि जो इसमें मुबतिला हो उसके गले में आयत ‘‘ या नार कूनी बरदन सलामन अला इब्राहीम ’’ लिख कर लटका दो शिफ़ायाब हो जायेगा। अली बिन ज़ैद इब्ने हुसैन का कहना है कि मैं एक घोड़े पर सवार हो कर हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ तो आपने फ़रमाया कि इस घोड़े की उम्र सिर्फ़ एक रात बाक़ी रह गई है चुनान्चे वह सुबह होने से पहले मर गया। इस्माईल बिन मोहम्मद का कहना है कि मैं हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ और मैंने उनसे क़सम खा कर कहा कि मेरे पास एक दिरहम भी नहीं है। आपने मुस्कुरा कर फ़रमाया कि क़सम मत खाओ तुम्हारे घर दो सौ दीनार मदफ़ून हैं। यह सुन कर वह हैरान रह गया। फिर हज़रत ने गु़लाम को हुक्म दिया कि उन्हें अशरफ़ियां दे दो।

अब्दी रवायत करता है कि मैं अपने फ़रज़न्द को बसरे में बिमार छोड़ कर सामरा गया और वहां हज़रत को तहरीर किया कि मेरे फ़रज़न्द के लिया दुआ ए शिफ़ा फ़रमाएं। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया ‘‘ ख़ुदा उस पर रहमत नाज़िल फ़रमाए ’’ जिस दिन यह ख़त उसे मिला उसी दिन उसका फ़रज़न्द इन्तेक़ाल कर चुका था। मोहम्मद बिन अफ़आ कहता है कि मैंने हज़रत की खि़दमत में एक अरज़ी के ज़रिये से सवाल किया कि ‘‘ क्या आइम्मा को भी एहतेलाम होता है ? ’’ जब ख़त रवाना कर चुका तो ख़्याल हुआ कि एहतेलाम तो वसवसए शैतानी से हुआ करता है और इमाम (अ.स.) तक शैतान पहुँच नहीं सकता। बहर हाल जवाब आया कि इमाम नौम और बेदारी दोनों हालतों में वसवसाए शैतानी से दूर होते हैं जैसा कि तुम्हारे दिल में भी ख़्याल पैदा हुआ है , फिर एहतेलाम क्यों कर हो सकता है। जाफ़र बिन मोहम्मद का कहना है कि मैं एक दिन हज़रत की खि़दमत में हाज़िर था , दिल में ख़्याल आया कि मेरी औरत जो हामेला है अगर उससे फ़रज़न्दे नरीना पैदा हो तो बहुत अच्छा हो। आपने फ़रमाया कि ऐ जाफ़र लड़का नहीं लड़की पैदा होगी। चुनान्चे ऐसा ही हुआ।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 128 )

अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स )

क्यों न झुकें सलाम को , फ़ौजे उलूम के परे

बज़्मे नकी़ में जौ़ फ़िशाँ आज है नूरे असकरी

वारिसे जु़ल्फ़िक़ार है सुल्बे में इनकी जलवा गर

ज़ात है इनकी मुज़दा ए , आमद दौरे हैदरी

साबिर थरयानी ‘‘ कराची ’’

बू मोहम्मद इमाम याज़ दहुम

जां नशीने रसूल अर्श मक़ाम

जिसके जद वजहे खि़लक़ते आलम

जिसके फ़रज़न्द से जहां को क़याम

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स अ व व ) के ग्यारहवें जां नशीन और सिलसिला ए इस्मत के 13 वीं कड़ी हैं। आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम अली नकी़ (अ.स.) थे और आपकी वालेदा माजेदा हदीसा ख़ातून थीं। मोहतरमा के मुताअल्लिक़ अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि आप अफ़ीफ़ा , करीमा , निहायत संजीदा और वरा व तक़वा से भर पूर थीं।(जिलाउल उयून पृष्ठ 295 )

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) अपने आबाओ अजदाद की तरह इमाम मन्सूस मासूम आलिमे ज़माना और अफ़ज़ले काएनात थे।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 ) आपको हसना सिफ़ाते इल्म व सख़ावत वग़ैरा अपने वालिद से विरसे मे मिले थे।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 461 )

अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ई का बयान है कि आपको ख़ुदा वन्दे आलम ने जिन फ़ज़ाएल व मनाक़िब और कमालात और बुलन्दी से सरफ़राज़ किया है इनमें मुकम्मिल दवाम मौजूद हैं। न वह नज़र अन्दाज़ किये जा सकते हैं और न इनमें कुहनगी आ सकती है और आपका एक अहम शरफ़ यह भी है कि इमाम मेहदी (अ.स.) आप ही के इकलौते फ़रज़न्द हैं जिन्हें परवर दिगारे आलम ने तवील उम्र अता की है।(मतालिब उल सुऊल पृष्ठ 292 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) की विलादत और बचपन के बाज हालात

उलमाए फ़रीक़ैन की अक्सरीयत का इत्तेफ़ाक़ है कि आप बातारीख़ 10 रबीउस्सानी 232 हिजरी यौमे जुमा ब वक़्ते सुबह बतने जनाबे हदीसा ख़ातून से ब मुक़ाम मदीना मुनव्वरा मुतवल्लिद हुए हैं। मुलाहेज़ा हो शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210 सवाएक़े मोहर्रेक़ पृष्ठ 124 नूरूल अबसार 110. जिलाउल उयून पृष्ठ 295, इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 दम ए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163। आपकी विलादत के बाद हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के रखे हुए नाम ‘‘ हसन बिन अली ’’ से मौसूम किया।(निहाबुल मोवद्दता)

आपकी कुन्नियत और आपके अल्क़ाब

आपकी कुन्नियत ‘‘ अबू मोहम्मद ’’ थी और आपके अल्क़ाब बेशुमार थे। जिनमें अस्करी , हादी , ज़की , खलिस , सिराज और इब्ने रज़ा ज़्यादा मशहूर हैं।(नूरूल अबसार पृष्ठ 150, शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210, दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 122 व मुनाक़िब इब्ने शहर आशोब जिल्द पृष्ठ 125 ) आपका लक़ब इसकरी इस लिये ज़्यादा मशहूर हुआ कि आप जिस महल्ले में ब मुक़ाम ‘‘ सरमन राय ’’ रहते थे उसे असकर कहा जाता था और ब ज़ाहिर इसकी वजह यह थी जब ख़लीफ़ा मोतसिम बिल्ला ने इस मुक़ाम पर लश्कर जमा किया था और ख़ुद भी क़याम पज़ीर था उसे ‘‘ असकर ’’ कहने लगे थे , और ख़लीफ़ा मुतावक्किल ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को मदीने से बुलवा कर यहीं मुक़ीम रहने पर मजबूर किया था। नीज़ यह भी था कि एक मरतबा ख़लीफ़ा ए वक़्त ने इमामे ज़माना को इसी मुक़ाम पर नव्वे हज़ार लशकर का मुआएना कराया था और आपने अपनी दो उंगलियां के दरमियान से अपने ख़ुदाई लशकर का मुताला करा दिया था। उन्हीं वजह की बिना पर इस मुका़म का नाम ‘‘ असकर ’’ हो गया था जहाँ इमाम अली नक़ी (अ.स.) और इमाम हसन असकरी (अ.स.) मुद्दतो मुक़ीम रह कर असकरी मशहूर हो गए।(बेहारूल अनवार जिल्द 12 पृष्ठ 154, दफ़यात अयान जिल्द 1 पृष्ठ 145, मजमूउल बहरैन पृष्ठ 322 दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163, तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 222 )

आपके अहदे हयात और बादशहाने वक़्त

आपकी विलादत 232 हिजरी में उस वक़्त हुई जब कि वासिक़ बिल्लाह बिन मोतसिम बादशाहे वक्त़ था जो 227 हिजरी में ख़लीफ़ा बना था।(तारीख़ अबूल फ़िदा) फिर 233 हिजरी में मुतावक्किल ख़लीफ़ा बना(तारीख़ इब्नुल वरा) जो हज़रत अली (अ.स.) और उनकी औलाद से सख़्त बुग़़्ज़ व कीना रखता था और उनकी मनक़स्त किया करता था।(हयातुल हैवान व तारीख़े कामिल) इसी ने 236 हिजरी में इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़्यारत को जुर्म क़रार दी और उनके मज़ार को ख़त्म करने की सई की।(तारीख़े कामिल) और इसी ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन मदीने से सरमन राय तलब करा लिया।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा) और आपको गिरफ़्तार करा के आपके मकान की तलाशी कराई।(दफ़अतिल अयान) फिर 247 हिजरी में मुन्तसर बिन मुतावक्किल ख़लीफ़ा ए वक़्त हुआ।(तारीख़े अबुल फ़िदा) फिर 248 हिजरी में मोतस्तईन ख़लीफ़ा बना।(अबूल फ़िदा) फिर 252 हिजरी में मुमताज़ बिल्ला ख़लीफ़ा हुआ।(अबुल फ़िदा) इसी ज़माने में अली नक़ी (अ.स.) को ज़हर से शहीद कर दिया गया।(नूरूल अबसार) फिर 255 हिजरी में मेंहदी बिल्लाह ख़लीफ़ा बना।(तारीख़ इब्ने अल वर्दी) फिर 256 हिजरी में मोतमिद बिल्ला ख़लीफ़ा हुआ।(तारीख़ अबुल फ़िदा) इसी ज़माने में 260 हिजरी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) ज़हर से शहीद हुए।(तारीख़े कामिल) इन तमाम खुल्फ़ा ने आपके साथ वही बरताव किया जो आले मोहम्मद (स अ व व ) के साथ बरताव किए जाने का दस्तूर चला आ रहा था।

चार माह की उम्र में मनसबे इमामत

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) कि उम्र जब चार माह के क़रीब हुई तो आपके वालिद अली नक़ी (अ.स.) ने अपने बाद के लिये मन्सबे इमामत की वसीअत की और फ़रमाया कि मेरे बाद यही मेरे जां नशीन होंगे और इस पर बहुत से लोगों को गवाह भी कर दिया।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 व दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 193 बहवाला ए उसूले काफ़ी)

अल्लामा इब्ने हजर मक्की का कहना है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) इमाम अली नक़ी (अ.स.) की औलाद में सब से ज़्यादा अज़िल अरफ़ा अला व अफ़ज़ल थे।

चार साल की उम्र में आपका सफ़रे ईराक़

मुतावक्किल अब्बासी जो आले मोहम्मद (स अ व व ) का हमेशा से दुश्मन था उसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) के वालिदे बुज़ुर्गवार इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन 239 हिजरी में मदीने से ‘‘ सरमन राय ’’ बुला लिया। आप ही के हमराह इमाम हसन असकरी (अ.स.) को भी जाना पड़ा। इस वक़्त आपकी उम्र चार साल चन्द माह की थी।(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 162 )

यूसुफ़े आले मोहम्मद(स. अ.) कुएं में

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) न जाने किस तरह अपने घर के कुएं में गिर गए। आपके गिरने से औरतों में कोहरामे अज़ीम बरपा हो गया। सब चीख़ने और चिल्लाने लगीं मगर हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) जो महवे नमाज़ थे मुतलक़ मुताअस्सिर न हुए और इतमिनान से नमाज़ का एख़तेताम किया। उसके बाद आपने फ़रमाया कि घबराओ नहीं हुज्जते ख़ुदा को कोई गज़न्द न पहुँचेगी। इसी दौरान में देखा कि पानी बलन्द हो रहा है और इमाम हसन असकरी (अ.स.) पानी में खेल रहे हैं।(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 179 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) और कमसिनी में उरूजे फ़िक्र

आले मोहम्मद (स अ व व ) जो तदब्बुरे क़ुरआनी और उरेजे फ़िक्र में ख़ास मक़ाम रखते हैं उनमें से एक बलन्द मक़ाम बुज़ुर्ग हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) हैं। उलमा ए फ़रीक़ैन ने लिखा है कि एक दिन आप एक ऐसी जगह खड़े रहे जिस जगह कुछ बच्चे खेल में मसरूफ़ थे। इत्तेफ़ाक़न उधर से आरिफ़े आले मोहम्मद (स अ व व ) जनाब बहलोल दाना गुज़रे। उन्होंने यह देख कर कि सब बच्चे खेल रहे हैं और एक ख़ूब सूरत सुखऱ् व सफ़ैद बच्चा खड़ा रो रहा है। उधर मुतावज्जे हुए और कहा ऐ नौनेहाल मुझे बड़ा अफ़सोस है कि तुम इस लिये रो रहे हो कि तुम्हारे पास वह खिलौने नहीं जो इन बच्चों के पास हैं। सुनो ! मैं अभी अभी तुम्हारे लिये खिलौने ले कर आता हूँ। यह कहना था कि आप कमसिनी के बवजूद बोले , अना न समझ। हम खेलने के लिये नहीं पैदा किये गए हैं। हम इल्मो इबादत के लिये ख़ल्क़ हुए हैं। उन्होंने पूछा कि तुम्हें यह क्यों कर मालूम हुआ कि ग़रज़े खि़लक़त इल्मो इबादत है। आपने फ़रमाया कि इसकी तरफ़ क़ुरआने मजीद रहबरी करता है। क्या तुमने नहीं पढ़ा कि ख़ुदा फ़रमाता है , ‘‘ अफ़सबतुम इन्नमा ख़लक़ना कुम अबसा ’’ क्या तुम ने यह समझ लिया है कि हम ने तुम को अबस(खेल कूद) के लिये पैदा किया है ? और क्या तुम हमारी तरफ़ पलट कर न आओगे। यह सुन कर बहलोल हैरान रह गए और यह कहने पर मजबूर हो गए कि ऐ फ़रज़न्द तुम्हें क्या हो गया था कि तुम रो रहे थे , तुम से गुनाह का तसव्वुर तो हो ही नहीं सकता क्यों कि तुम बहुत कमसिन हो। आपने फ़रमाया कि कमसिनी से क्या होता है , मैंने अपनी वालेदा को देखा है कि बड़ी लकड़ियों को जलाने के लिये छोटी लकड़ियां इस्तेमाल करती हैं। मैं डरता हूँ कि कहीं जहन्नम के बड़े ईंधन के लिये हम छोटे और कमसिन लोग इस्तेमाल न किये जाऐ।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 124, नूरूल अबसार पृष्ठ 150, तज़केरतुल मासूमीन पृष्ठ 230 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) के साथ बादशहाने वक़्त सुलूक और तरज़े अमल

जिस तरह आपके आबाओ अजदाद के वुजूद को उनके अहद के बादशाह अपनी सलतनत और हुक्मरानी की राह में रूकावट समझते रहे। उनका यह ख़्याल रहा कि दुनियां के क़ुलूब उनकी तरफ़ माएल हैं क्यों कि यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) और आमाले सालेह के ताजदार हैं लेहाज़ा उनको आवाम की नज़रों से दूर रखा जाए वरना इमकान क़वी है कि लोग उन्हें अपना बादशाहे वक़्त तसलीम कर लेंगे। इसके अलावा यह बुग़्ज़ो हसद भी था कि इनकी इज़्ज़त बादशाहे वक़्त के मुक़ाबले में ज़्यादा की जाती है और यह कि इमाम मेहदी (अ.स.) उन्हीं की नस्ल से होंगे जो सलतनतों का इन्के़लाब लाऐंगे। इन्ही तसव्वुरात ने जिस तरह आपके बुज़ुर्गों को चैन न लेने दिया और हमेशा मसाएब की अमाजगा बनाए रखा। इसी तरह आपके अहद के बादशाहों ने भी आपके साथ किया। अहदे वासिक़ में आपकी विलादत हुई और अहदे मुतवक्किल के कुछ अय्याम में बचपना गुज़ारा।

मुतवक्किल जो आले मोहम्मद (स अ व व ) का जानी दुश्मन था उसने सिर्फ इस जुर्म में कि आले मोहम्मद (स अ व व ) की तारीफ़ की है इब्ने सकीत शायर की ज़ुबान गुद्दी से खिंचवा ली।(अबुल फ़िदा जिल्द 2 पृष्ठ 14 ) उसने सब से पहले तो आप पर यह ज़ुल्म किया कि चार साल की उम्र में तरके वतन करने पर मजबूर किया यानी इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन मदीने से सामरा बुलवाया जिनके हमराह इमाम हसन असकरी (अ.स.) को लाज़मन जाना पड़ा। फिर वहां आपके घर के लोगों के कहने सुन्ने से तलाशी कराई और आपके वालिदे माजिद को जानवरों से फड़वा डालने की कोशिश की। ग़रज़ कि जो सई आले मोहम्मद (अ.स.) को सताने की मुमकिन थी , वह सब उसने अपने अहदे हयात में कर डाली। उसके बाद उसका बेटा मुस्तनसर ख़लीफ़ा हुआ। यह भी अपने बाप के नक्शे क़दम पर चल कर आले मोहम्मद (स अ व व ) को सताने की सुन्नत अदा करता रहा और इसकी मुसलसल कोशिश यही रही कि इन लोगों को सुकून नसीब न होने पाये। उसके बाद मुस्तईन का जब अहदे नव आया तो उसने आपके वालिदे माजिद को क़ैद ख़ाने में रखने के साथ साथ उसकी सई पैहम की कि किसी सूरत से इमाम हसन असकरी (अ.स.) को क़त्ल करा दे और इसके लिये उसने मुख़्तलिफ़ रास्ते तलाश किये।

मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक मरतबा उसने अपने शौक़ के मुताबिक़ एक निहायत ज़बरदस्त घोड़ा ख़रीदा लेकिन इत्तेफ़ाक़ से वह इस दर्जा सरकश निकला कि उसने बड़े बड़े लोगों को सवारी न दी और जो उसके क़रीब गया उसको ज़मीन पर दे मारा और टापों से कुचल डाला। एक दिन ख़लीफ़ा मुस्तईन बिल्लाह के एक दोस्त ने राय दी कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) को बुला कर हुक्म दिया जाय कि वह इस पर सवारी करें , अगर वह इस पर कामयाब हो गये तो घोड़ा ठीक हो जायेगा , और अगर कामयाब न हुए और कुचल डाले गए तो तेरा मक़सद हल हो जायेगा। चुनान्चे उसने ऐसा ही किया लेकिन अल्लाह रे शाने इमामत जब आप उसके क़रीब पहुँचे तो वह इस तरह भीगी बिल्ली बन गया कि जैसे कुछ जानता ही न हो। बादशाह यह देख कर हैरान रह गया और उसके पास इसके सिवा कोई चारा न था कि घोड़ा हज़रत के हवाले कर दे।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 210 )

फिर मुस्तईन के बाद जब मोतज़ बिल्लाह ख़लीफ़ा हुआ तो उसने भी आले मोहम्मद (स अ व व ) को सताने की सुन्नत जारी रखी और इसकी कोशिश करता रहा कि अहदे हाज़िर के इमाम ज़माना और फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) इमाम अली नक़ी (अ.स.) को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ कर दे। चुनान्चे यही हुआ और उसने 254 ई 0 में आपके वालिदे बुज़ुर्गवार को ज़हर से शहीद करा दिया। यह एक मुसीबत थी कि जिसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) को बे इन्तेहा मायूस कर दिया। इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत के बाद इमाम हसन असकरी (अ.स.) ख़तरात में महसूर हो गये , क्यो कि हुकूमत का रूख़ अब आप ही की तरफ़ रह गया था। आपको खटका लगा ही था कि हुकूमत की तरफ़ से अमल दरामद शुरू हो गया। मोतज़ ने एक शक़ीए अज़ली और नासबे अब्दी इब्ने यारिश की हिरासत और नज़र बन्दी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) को दे दिया। उसने उनको सताने में कोई दक़ीक़ा नहीं छोड़ा लेकिन आखि़र में वह आपका मोतक़िद बन गया। आपकी इबादत गुज़ारी और रोज़ा दारी ने उस पर ऐसा गहरा असर किया कि उसने आपकी खि़दमत में हाज़िर हो कर माफ़ी मांग ली और आपको दौलत सरा तक पहुँचा दिया।

अली बिन मोहम्मद ज़ियाद का बयान है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने मुझे एक ख़त तहरीर फ़रमाया जिसमें लिखा कि तुम ख़ाना नशीन हो जाओ क्यों कि एक बहुत बड़ा फ़ितना उठने वाला है। ग़रज़ कि थोड़े दिनों के बाद एक हंगामा ए अज़ीम बरपा हुआ और हुज्जाज बिन सुफ़यान ने मोतज़ को क़त्ल कर दिया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 127 )

फिर जब मेहदी बिल्लाह का अहद आया तो उसने भी बदस्तूर अपना अमल जारी रखा और हज़रत को सताने में हर क़िस्म की कोशिश करता रहा। एक दिन उसने सालेह बिन वसीफ़ नामी नासेबी के हवाले आपको कर दिया और हुक्म दिया कि हर मुम्किन तरीक़े से आपको सताये। सालेह के मकान के क़रीब एक बहुत ख़राब हुजरा था जिसमें आप क़ैद किये गए। सालेह बद बख़्त ने जहां और तरीक़े से सताया एक तरीक़ा यह भी था कि आपको खाना और पानी से भी हैरान और तंग रखता था। आखि़र ऐसा होता रहा कि आप तयम्मुम से नमाज़ अदा फ़रमाते रहे। एक दिन उसकी बीवी ने कहा कि ऐ दुश्मने ख़ुदा यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) हैं। इनके साथ रहम का बरताव कर। उसने कोई तवज्जो न की। एक दिन का ज़िक्र है , बनी अब्बासिया के एक गिरोह ने सालेह से जा कर दरख़्वास्त की कि हसन असकरी पर ज़ियादा ज़ुल्म किया जाना चाहिये। उसने जवाब दिया कि मैंने उनके ऊपर दो ऐसे शख़्सों को मुसल्लत कर दिया है जिनका ज़ुल्मों तशद्दुद में जवाब नहीं है लेकिन मैं क्या करूं कि उनके तक़वे और उनकी इबादत गुज़ारी से वह इस दर्जा मुताअस्सिर हो गये हैं कि जिसकी कोई हद नहीं। मैंने उनसे जवाब तलबी की तो उन्होंने क़ल्बी मजबूरी ज़ाहिर की। यह सुन कर वह लोग मायूस वापिस गये।(तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 223 )

ग़रज़ कि मेहदी का ज़ुल्म तशदद्दुद ज़ोरो पर था और यही नहीं कि वह इमाम हसन असकरी (अ.स.) पर सख़्ती करता था बल्कि यह कि वह उनके मानने वालों को बराबर क़त्ल करता रहता था। एक दिन आपके एक साहबी अहमद बिन मोहम्मद ने एक अरीज़े के ज़रिये से उसके ज़ुल्म की शिकायत की तो आपने तहरीर फ़रमाया कि घबराओ नहीं कि मेहदी की उम्र अब सिर्फ़ पांच दिन बाक़ी रह गई है। चुनान्चे छटे दिन उसे कमाले ज़िल्लत व ख़वारी के साथ क़त्ल कर दिया गया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 126 )

इसी के अहद में जब आप क़ैद ख़ाने में पहुँचे तो ईसा बिन फ़तेह से फ़रमाया कि तुम्हारी उम्र इस वक़्त 65 साल एक माह दो यौम की है। उसने नोट बुक निकाल कर उसकी तसदीक़ की। फिर आपने फ़रमाया कि ख़ुदा तुम्हें औलादे नरीना अता करेगा। वह ख़ुश हो कर कहने लगा मौला! क्या आपको ख़ुदा फ़रज़न्द न देगा ? आपने फ़रमाया ख़ुदा की क़सम अन्क़रीब मुझे मालिक ऐसा फ़रज़न्द देगा जो सारी कायनात पर हुकूमत करेगा और दुनियां को अदलो इंसाफ़ से भर देगा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 101 )

फिर जब उसके बाद मोतमिद ख़लीफ़ा हुआ तो उसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) पर ज़ुल्मो जौरो सितम व इस्तेबदाद का ख़ात्मा कर दिया।

इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत और इमाम हसन असकरी (अ.स.) का आग़ाज़े इमामत

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने अपने इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शादी नरजिस ख़ातून से कर दी जो क़ैसरे रोम की पोती और शमऊन वसी ए ईसा (अ.स.) की नस्ल से थीं।(जिला अल उयून पृष्ठ 298 ) इसके बाद आप 3 रजब 254 ई 0 को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ हुए। आपकी शहादत के बाद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की इमामत का आग़ाज़ हुआ। आपके तमाम मोतक़दीन ने आपको मुबारक बाद दी और आप से हर क़िस्म का इस्तेफ़ादा शुरू कर दिया। आपकी खि़दमत में आमदो रफ़्त और सवालात व जवाबात का सिलसिला जारी हो गया। आपने जवाबात में ऐसे हैरत अंगेज़ मालूमात का इन्केशाफ़ फ़रमाया कि लोग दंग रह गए। आपने इल्मे ग़ैब और इल्मे बिलमौत तक का सबूत पेश फ़रमाया और इसकी भी वज़ाहत की कि फ़लां शख़्स को इतने दिनों में मौत आ जायेगी।

अल्लामा मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक शख़्स ने अपने वालिद समेत हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की राह में बैठ कर यह सवाल करना चाहा कि बाप को पांच सौ दिरहम और बेटे को तीन सौ दिरहम अगर इमाम दें तो सारे काम हो जाऐ , यहां तक कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) इस रास्ते पर आ पहुँचे। इत्तेफ़ाक़ यह दोनों इमाम (अ.स.) को पहचानते न थे। इमाम (अ.स.) ख़ुद इन दोनों के क़रीब गए और उन से कहा कि तुम्हें आठ सौ दिरहम की ज़रूरत है। आओ मैं तुम्हें दे दूं। दोनों हमराह हो लिये और रक़म माहूद हासिल कर ली। इसी तरह एक और शख़्स क़ैद ख़ाने में था। उसने क़ैद की परेशानी की शिकायत इमाम (अ.स.) को लिख कर भेजी और तंग दस्ती का ज़िक्र शर्म की वजह से न किया। आपने तहरीर फ़रमाया कि तुम आज ही क़ैद ख़ाने से रिहा हो जाओगे और तुम ने जो शर्म से तंग दस्ती का ज़िक्र नहीं किया , इसके मुताअल्लिक़ मालूम करो कि मैं अपने मुक़ाम पर पहुँचते ही सौ दिनार भेज दूंगा। चुनान्चे ऐसा ही हुआ। इसी तरह एक शख़्स ने आपसे अपनी तंग दस्ती की शिकायत की। आपने ज़मीन कुरेद कर एक अशरफ़ी की थैली निकाली और उसके हवाले कर दी। इसमें सौ दीनार थे। इसी तरह एक शख़्स ने आपको तहरीर किया कि मिशक़ात के मानी क्या हैं ? नीज़ यह कि मेरी औरत हामेला है इससे जो फ़रज़न्द पैदा होगा उसका नाम रख दीजिए। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया कि मिशक़ात से मुराद क़ल्बे मोहम्मदे मुस्तफ़ा (स अ व व ) और आखि़र में लिख दिया ‘‘ अज़मुल्लाह अजरकुम व अख़लफ़ अलैक ’’ ख़ुदा तुम्हें अज्र दे और नेमुल बदल अता करे। चुनान्चे ऐसा ही हुआ कि उसके यहां मुर्दा लड़का पैदा हुआ। इसके बाद उसकी बीवी हामला हुई , फ़रज़न्दे नरीना मुतावल्लिद हुआ। मुलाहेज़ा हों।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 211 )

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि हसन इब्ने ज़रीफ़ नामी एक शख़्स ने हज़रत से मिलकर दरयाफ़्त किया कि क़ाएमे आले मोहम्मद (अ.स.) पोशीदा होने के बाद कब ज़ुहूर करेंगे ? आपने तहरीर फ़रमाया जब ख़ुदा की मसलहत होगी। इसके बाद लिखा कि तुम तप रबआ का सवाल करना भूल गए जिसे तुम मुझसे पूछना चाहते हो , तो देखो ऐसा करो कि जो इसमें मुबतिला हो उसके गले में आयत ‘‘ या नार कूनी बरदन सलामन अला इब्राहीम ’’ लिख कर लटका दो शिफ़ायाब हो जायेगा। अली बिन ज़ैद इब्ने हुसैन का कहना है कि मैं एक घोड़े पर सवार हो कर हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ तो आपने फ़रमाया कि इस घोड़े की उम्र सिर्फ़ एक रात बाक़ी रह गई है चुनान्चे वह सुबह होने से पहले मर गया। इस्माईल बिन मोहम्मद का कहना है कि मैं हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ और मैंने उनसे क़सम खा कर कहा कि मेरे पास एक दिरहम भी नहीं है। आपने मुस्कुरा कर फ़रमाया कि क़सम मत खाओ तुम्हारे घर दो सौ दीनार मदफ़ून हैं। यह सुन कर वह हैरान रह गया। फिर हज़रत ने गु़लाम को हुक्म दिया कि उन्हें अशरफ़ियां दे दो।

अब्दी रवायत करता है कि मैं अपने फ़रज़न्द को बसरे में बिमार छोड़ कर सामरा गया और वहां हज़रत को तहरीर किया कि मेरे फ़रज़न्द के लिया दुआ ए शिफ़ा फ़रमाएं। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया ‘‘ ख़ुदा उस पर रहमत नाज़िल फ़रमाए ’’ जिस दिन यह ख़त उसे मिला उसी दिन उसका फ़रज़न्द इन्तेक़ाल कर चुका था। मोहम्मद बिन अफ़आ कहता है कि मैंने हज़रत की खि़दमत में एक अरज़ी के ज़रिये से सवाल किया कि ‘‘ क्या आइम्मा को भी एहतेलाम होता है ? ’’ जब ख़त रवाना कर चुका तो ख़्याल हुआ कि एहतेलाम तो वसवसए शैतानी से हुआ करता है और इमाम (अ.स.) तक शैतान पहुँच नहीं सकता। बहर हाल जवाब आया कि इमाम नौम और बेदारी दोनों हालतों में वसवसाए शैतानी से दूर होते हैं जैसा कि तुम्हारे दिल में भी ख़्याल पैदा हुआ है , फिर एहतेलाम क्यों कर हो सकता है। जाफ़र बिन मोहम्मद का कहना है कि मैं एक दिन हज़रत की खि़दमत में हाज़िर था , दिल में ख़्याल आया कि मेरी औरत जो हामेला है अगर उससे फ़रज़न्दे नरीना पैदा हो तो बहुत अच्छा हो। आपने फ़रमाया कि ऐ जाफ़र लड़का नहीं लड़की पैदा होगी। चुनान्चे ऐसा ही हुआ।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 128 )


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