चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.


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अबु अब्दुल्लाह हज़रत इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ स)

इसी इजमाल की हैं शरह , गोया जाफ़रे सादिक़

लक़ब जिसका किताब अल्लाह में ख़त्मे नबूवत है

बनाये सब से पहले , फ़िक़हा के आईन मौला ने

इन्हीं के दम से क़ायम आज इस्लामी शरीअत है

साबिर थरयानी ‘‘ कराची ’’

सादिक़ आले मोहम्मद , वह इमामे सादस

ज़ेबे सर जिसके इमामत का है मौरूसी ताज

है यह मौलूदे जिगर बन्द , मोहम्मद बाक़र

ख़ाना ए हस्ती , जिदअत को करेगा ताराज

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के छठे जानशीन और सिलसिलाए अस्मत की आठवीं कड़ी हैं। आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) थे और वालिदा माजिदा जनाबे उम्मे फ़रवा बिन्ते क़ासिम बिन मोहम्मद बिन अबी बक्र थीं। आप अपने आबाओ अजदाद की तरह इमाम मन्सूस , मासूम , आलिमें ज़माना और अफ़ज़ले काएनात थे।

अल्लामा हजर लिखते हैं कि हज़रत इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) अफ़ज़ल व अकमल थे। इसी बिना पर आपने अपने बा पके ख़लीफ़ा और वसी क़रार पाये।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 120 ) अल्लामा इब्ने ख़ल्क़ान तहरीर फ़रमाते हैं कि आप सादात अहलेबैत से थे व फ़ज़लह ‘‘ अश्हरान यज़कर ’’ इनकी अफ़ज़लियत व करम मोहताज बयान नहीं।(दफ़ायात अल अयान जिल्द 1 पृष्ठ 105 )

इमाम फ़ख़रूद्दीन राज़ी की तफ़सीर कबीर जिल्द 5 पृष्ठ 429 व जिल्द 6 पृष्ठ 783 प्रकाशित मिस्र बहवाला ए आयाए ततहीर और आरिफ़ समदानी अली हमदानी की मुवदतुल क़ुर्बा पृष्ठ 34 प्रकाशित बम्बई 1310 ई 0 और शाह अब्दुल अज़ीज़ की अश्रया ताअन 13 पृष्ठ 439 प्रकाशित लखनऊ 1309 की इबारत से मुस्तफ़ाद होता है कि आप भी अपने आबाओ अजदाद की तरह मासूम और महफ़ूज़ थी। वरासतु लबीव पृष्ठ 200 में है कि आपने इब्तिदा ए उम्र से आखि़र तक कोई गुनाह नहीं किया और इसी को महफ़ूज़ कहे हैं। इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ख़ुद इरशाद फ़रमाते हैं कि (नहन क़ौम मासूमन) हम हैं वही ख़ुदा के तरजुमान , हम हैं इल्मे ख़ुदा के ख़ज़ीनादार और हम ही लोग मासूम हैं। ख़ुदा ने हमारी इताअत का हुक्म दिया है और हमारी मासीयत से दुनिया वालों को रोका है।(आलाम अल वरा पृष्ठ 169 )

अल्लामा इब्ने तल्हा शाफ़ई लिखते हैं कि आप अहले बैत और रिसालत की अज़ीम तरीन फ़र्द थे और आप मुख़्तलिफ़ क़िस्म के उलूम से भर पूर थे। आप ही से क़ुरआन मजीद के मानी के चश्मे फूटते रहे हैं। आपके बहरे इल्म से उलूम के मोती रोले जाते हैं। आप ही से इल्मी अजाएब व कमालात का ज़हूर व इन्केशाफ़ हुआ।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 173 )

अल्लामा इब्ने हजर मक्की लिखते हैं कि उलमा ने आपसे इस दर्जा नक़ले उलूम किया जिसकी कोई हद नहीं। आपका आवाज़े इल्म तमाम अवसाद दयार में फैला हुआ था।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 120 )

मुल्ला जामी तहरीर फ़रमाते हैं कि आपके उलूम का अहाता व फ़हमो इदराक से बुलन्द है।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 180 )

अल्लामा मिस्र शेख़ मोहम्मद ख़ज़री बक लिखते हैं कि इनसे इमाम मालिक बिन अन्स , इमाम अबू हनीफ़ा और अकसर उलेमा ए मदीना ने रवायत की है मगर इमाम बुख़ारी , सहाए सित्ता में सब से ज़्यादा मुताबर्रिक समझी जाती है। वाज़े हो कि दीगर सहाह में आले मोहम्मद (स. अ.) से भी रवायत ली गई हैं। ज़रूरत थी कि इन सहाह का बुख़ारी से बुलन्द दर्जा दिया जाता मगर ऐसा नहीं हुआ।

बरीं अक़ल व दानिश बेबायद गिरीस्त

आपकी विलादत ब सआदत आप बतारीख़ 17 रबीउल अव्वल 83 हिजरी मुताबिक़ 702 ई 0 यौमे दो शम्बा मदीना ए मुनव्वरा में पैदा हुए।(इरशाद मुफ़ीद फ़ारसी पृष्ठ 413, आलाम अल वरा पृष्ठ 159, जामे अब्बासी पृष्ठ 60 वगै़राह) आपकी विलादत की तारीख़ को ख़ुदा वन्दे आलम ने बड़ी इज़्ज़त दे रखी है। अहादीस में है कि इस तारीख़ को रोज़ा रखना एक साल के रोज़े के बराबर है। विलादत के बाद एक दिन हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) ने फ़रमाया कि मेरा यह फ़रज़न्द इन चन्द मख़सूस अफ़राद में से है जिसनी वजह से ख़ुदा ने बन्दों पर एहसान फ़रमाया और यही मेरे बाद मेरा जानशीन होगा।(जन्नात अल ख़ुलूद पृष्ठ 27 )

अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि जब आप बतने मादर में थे तब कलाम फ़रमाते थे। विलादत के बाद आपने कलमाए शहादतैन ज़बान पर जारी फ़रमाया आप भी नाफ़ बुरीदा और ख़तना शुदा पैदा हुए हैं।(जिला अल उयून पृष्ठ 265 ) आप तमाम नबूवतों के ख़ुलासा थे।

इस्मे गिरामी , कुन्नियत , अलक़ाब

आपका इस्में गेरामी जाफ़र , आपकी कुन्नियत अबू अब्दुल्लाह , अबू इस्माईल और आपके अलक़ाब सादिक़ , फ़ाज़िल , ताहिर वग़ैरा हैं। अल्लामा मजलिसी रक़म तराज़ हैं कि आं हज़रत ने अपनी ज़ाहिरी ज़िन्दगी में हज़रत जाफ़र बिन मोहम्मद को लक़ब सादिक़ से मौसूम व मुलक़्क़ब फ़रमाया था और इसकी वजह बज़ाहिर यह थी कि अहले आसमान के नज़दीक़ आपका लक़ब पहले ही से ‘‘ सादिक़ ’’ था।(जिला अल उयून पृष्ठ 264 )

अल्लामा इब्ने ख़ल्क़ान का कहना है कि सिदक़ मक़ाल की वजह से आपके नामे नामी का जुज़ो ‘‘ सादिक़ ’’ क़रार पाया है।(वफ़यात उल अयान जिल्द 1 पृष्ठ 105 )

‘‘ जाफ़र ’’ के मुताअल्लिक़ उलेमा का बयान है कि जन्नत में जाफ़र नामी एक शीरी नहर है इसी की मुनासिबत से आपका यह लक़ब रखा गया है चूंकि आपका फ़ैज़े आम नहरे जारी की तरह था इसी लिये लक़ब से मुलक़्क़ब हुए।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 361 बहवाला तज़किरातुल उल ख़्वास उल उम्मता)

इमामे अहले सुन्नत अल्लामा वहीदुज़्ज़मा हैदराबादी तहरीर फ़रमाते हैं कि जाफ़र छोटी नहर या बड़ी वासेए (कुशादा) इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) मशहूर नाम हैं। बारह इमामों में से और बड़े सुक़्क़ा और फ़क़ीह और हाफ़िज़ थे। इमाम मालिक और इमामे अबू हनीफ़ा के शेख़ (हदीस) हैं और इमाम बुख़ारी को मालूम नहीं क्या शुबहा हो गया कि वह अपनी सही में इनसे रवायत नहीं करते और यहया बिन सईद क़तान ने बड़ी बेअदबी की है जो कहते हैं , ‘‘ फ़ी मनहू शैइनव मजालिद अहबा इला मिन्हा ’’ मेरे दिल में इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की तरफ़ से ख़लिश है। मैं इनसे बेहतर मजालिद को समझता हूँ हालांकि मजालिद को इमाम साहब के सामने क्या रूतबा है। ऐसी ही बातों की वजह से अहले सुन्नत बदनाम होते हैं कि उनको आइम्मा अहले बैत (अ.स.) से मोहब्बत और ऐतिक़ाद नहीं। अल्लाह ताअला इमाम बुख़ारी पर रहम न करे कि मरवान और इमरान बिन ख़्तान और कई ख़्वारिज से तो उन्होंने रवाएत की और जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) से जो इब्ने रसूल अल्लाह (स अ व व ) हैं इनकी रवाएत में शुब्हा करते हैं।(अनवारूल अलख़्ता पारा पृष्ठ 47 प्रकाशित हैदराबाद दकन)

अल्लामा इब्ने हजर मक्की अल्लामा शिब्लंजी रक़म तराज़ हैं कि अयाने आइम्मा में से एक जमाअत मिस्ल यहया बिन सईद इब्ने हजर , इमाम मालिक , इमाम शैफ़ान सूरी , सुफ़यान बिन ऐनिया , अबू हनीफ़ा , अय्यूब सजसतानी ने आपसे हदीस अख़्ज़ की , अबू हातिम का कौल है कि इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ऐसे सुक़्क़ा हैं (लायस अल अन्हा मसलह) कि आप ऐसे शख़्सों की निस्बत कुछ तहक़ीक़ और इस्तेफ़सार व तफ़हुस की ज़रूरत ही नहीं। आप रियासत की तलब से बे नियाज़ थे और हमेशा इबादत गुज़ारी में बसर करते रहे। उमर इब्ने मक़दाम का कहना है कि जब मैं इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) को देखता हूँ तो मुझे माअन ख़्याल होता है कि यह जौहरे रिसालत (स अ व व ) की असल बुनियाद हैं।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 120 नूरूल अबसार 131 हुलयतुल अबरार , तारीख़ आईम्मा पृष्ठ 433 )

बादशाहाने वक़्त

आपकी विलादत 83 हिजरी में हुई है इस वक़्त अब्दुल मलिक बिन मरवान बादशाहे वक़्त था फिर वलीद सुलेमान उमर बिन अब्दुल यज़ीद बिन अब्दुल मलिक , यज़ीद अल नाक़िस , इब्राहीम इब्ने वलीद और मरवान अल हेमार , अल्ल तरतीब ख़लीफ़ा मुक़र्रर हुए। मरवान अल हेमार के बाद सलतनते बनी उमय्या का चिराग़ गुल हो गया और बनी अब्बास का पहला बादशाह अबुल अब्बास , सफ़ाह और दूसरा मन्सूर दवानक़ी हुआ है। मुलाहेज़ा हो ,(आलाम अल वरा , तारीख़ इब्ने अलवरी व तारीख़े आइम्मा पृष्ठ 336 ) इसी मन्सूर ने अपनी हुकूमत के दो साल गुज़रने के बाद इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) को ज़हर से शहीद कर दिया। (अनवारूल हुसैनिया जिल्द पृष्ठ 50)

अब्दुल मलिक बिन मरवान के अहद में आपका एक मनाज़िरा

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) ने बे शुमार इल्मी मनाज़िरे फ़रमाए हैं आपने दहिरयों , क़दरियों काफ़िर और यहूदी व नसारा को हमेशा शिकस्ते फ़ाश दी है। किसी एक मनाज़िरे में भी आप पर कोई ग़लबा हासिल न कर सका। अहदे अब्दुल मलिक इब्ने मरवान का ज़िक्र है कि एक क़दरिया मज़हब का मनाज़िर इसके दरबार में आ कर उलमा से मनाज़िरे का ख़्वाहिश मन्द हुआ। बादशाह ने हसबे आदत अपने उलमा को तलब किया और उनसे कहा कि इस क़दरिये मनाज़िर से मनाज़िरा करो। उलमा ने उस से काफ़ी ज़ोर आज़माई की मगर वह मैदाने मनाज़िरे का खिलाड़ी इन से न हार सका और तमाम उलमा आजिज़ आ गए। इस्लाम की शिकस्त होते हुए देख कर अब्दुल मलिक इब्ने मरवान ने फ़ौरन एक ख़त इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) की खि़दमत में मदीना रवाना कर दिया और उसमें ताकीद की कि आप ज़रूर तशरीफ़ लायें। हज़रत मोहम्मद बाक़र (अ.स.) की खि़दमत में जब इसका ख़त पहुँचा तो आपने अपने फ़रज़न्द हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) से फ़रमाया कि बेटा मैं ज़ईफ़ हो चुका हूँ तुम मनाज़िरे के लिये शाम चले जाओ। हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) अपने पदरे बुर्ज़ुगवार के हस्ब उल हुक्म मदीना से रवाना हो कर शाम पहुँच गए। अब्दुल मलिक इब्ने मरवान ने जब इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) के बजाए इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) को देखा तो कहने लगा कि आप अभी कमसिन हैं और वह बड़ा पुराना मनाज़िर है , हो सकता है कि आप भी और उलमा की तरह शिकस्त खांए इस लिये मुनासिब नहीं कि मजालिसे मनाज़िरा फिर मुन्अक़िद की जाए। हज़रत ने फ़रमाया , बादशाह नू घबरा नहीं , अगर ख़ुदा ने चाहा तो मैं सिर्फ़ चन्द मिनट में मनाज़िरा ख़त्म कर दूंगा। आपके इरशाद की ताईद दरबारियों ने भी की और मौक़ा ए मनाज़िरे पर फ़रीक़ैन आ गए। चूंकि क़दरियों का एतेक़ाद है कि बन्दा ही सब कुछ है। ख़ुदा को बन्दों के मामले में कोई दख़ल नहीं है , और न ख़ुदा कुछ कर सकता है। यानी ख़ुदा के हुक्म और क़ज़ा व क़द्र व इरादों को बन्दों के किसी अमर में दख़ल नहीं। लेहाज़ा हज़रत ने इसकी पहल करने की ख़्वाहिश पर फ़रमाया कि मैं तुम से सिर्फ़ एक बात कहना चाहता हूँ और वह यह है कि तुम ‘‘ सूरा ए हम्द पढ़ो ’’ उसने पढ़ना शुरू किया। ज बवह ‘‘ इय्या का नाब्दो व इय्याका तस्तेईन ’’ पर पहुँचा , जिसका तरजुमा यह है कि ‘‘ मैं सिर्फ़ तेरी इबादत करता हूँ और बस तुझी से मद्द चाहता हूँ ’’ तो आपने फ़रमाया , ठहर जाओ और मुझे इसका जवाब दो कि जब ख़ुदा को तुम्हारे एतेक़ाद के मुताबिक़ तुम्हारे किसी मामले में दख़्ल देने का हक़ नही तो फिर तुम उससे मद्द क्यों मांगते हो। यह सुन कर वह ख़ामोश हो गया और कोई जवाब न दे सका। बिल आखि़र मजलिसे मनाज़ेरा बरख़्वास्त हो गई और बादशाह बेहद ख़ुश हुआ।(तफ़सीरे बुरहान जिल्द 1 पृष्ठ 33 )

अबु शाकिर देसानी का जवाब अबु शाकिर देसानी जो ला मज़हब था। हज़रत से कहने लगा कि क्या आप ख़ुदा का ताअर्रूफ़ करा सकते हैं और उसकी तरफ़ मेरी रहबरी फ़रमा सकते हैं। आपने एक ताऊस का अन्डा हाथ में ले कर फ़रमाया देखो इसकी बाहरी बनावट पर ग़ौर करो , और अन्दर की बहती हुई ज़र्दी और सफ़ैदी को बहुत ग़ौर से देखो और उस पर तवज्जो दो कि इसमें रंग बिरंग के तायर (पक्षी) क्यों कर पैदा हो जाते हैं। क्या तुम्हारी अक़्ले सलीम इसको तसलीम नहीं करती कि इस अंडे को अछूते अन्दाज़ में बनाने वाला और उससे पैदा करने वाला कोई है। यह सुन कर वह ख़ामोश हो गया और दहरियत से बाज़ आया। इसी देसानी का ज़िक्र है कि उसने एक दफ़ा आपके साहबी हश्शाम बिन हकम के ज़रिये से सवाल किया कि क्या यह मुम्किन है कि ख़ुदा सारी दुनिया को एक अंडे में समो दे और अंडा बढे न दुनिया घटे ? आपने फ़रमाया बेशक वह हर चीज़ पर क़ादिर है। उसने कहा कोई मिसाल ? फ़रमाया मिसाल के लिये आंख की छोटी पुतली काफ़ी है। इसमें सारी दुनियां समा जाती है न पुतली बढ़ती है न दुनिया घटती है।(उसूले काफ़ी पृष्ठ 433 जामए उल अख़बार)

इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) और हकीम इब्ने अयाश कल्बी

हश्शाम बिन अब्दुल मलिक बिन मरवान के अहदे हयात का एक वाक़ेया है कि हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) की खि़दमत में एक शख़्स ने हाज़िर हो कर अर्ज़ किया कि हकीम बिन अयाश कल्बी आप लोगों की हजो किया करता है। हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने फ़रमाया कि अगर तुझ को उसका कुछ कलाम याद हो तो बयान कर। उसने दो शेर सुनाये , जिसका हासिल यह है कि हमने ज़ैद को शाख़े दरख़्ते ख़ुरमा पर सूली दे दी , हालां कि हम ने नहीं देखा कोई मेहदी दार पर चढ़ाया गया हो और तुम ने अपनी बे वकूफ़ी से अली (अ.स.) को उस्मान के साथ क़यास कर लिया हालां कि अली (अ.स.) उस्मान से बेहतर और पाकीज़ा थे। यह सुन कर इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने दुआ की बारे इलाहा अगर यह हकीम कल्बी झूठा है तो इस पर अपनी मख़्लूक़ में से किसी दरिन्दे को मुसल्लत फ़रमा। चुनान्चे उनकी दुआ क़ुबूल हुई और हकिम कल्बी को राह में शेर ने हलाक कर दिया।(असाबा इब्ने हजर , असक़लानी जिल्द 2 पृष्ठ 80 )

मुल्ला जामी तहरीर फ़रमाते हैं कि जब हकीम कल्बी के हलाक होने की ख़बर इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) को पहुँची तो उन्होंने सजदे में जा कर कहा कि उस ख़ुदा ए बरतर का शुकरिया है कि जिसने हम से जो वायदा फ़रमाया उसे पूरा किया।(शवाहेदुन नबूवत सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 121 व नूरूल अबसार पृष्ठ 147 )

113, हिजरी में इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) का हज अल्लामा इब्ने हजर मक्की लिखते हैं कि आपने 113 हिजरी में हज किया और वहां ख़ुदा से दुआ की , ख़ुदा ने बिला फ़स्ल अंगूर और दो बेहतरीन रिदायें भिजवाईं। आपने अंगूर ख़ुद भी खाया और लोगों को भी खिलाया और रिदायें एक साएल को दे दीं।

इस वाक़िये की मुख़्तसर अल्फ़ाज़ में तफ़सील यह है कि बअस बिन सअद उसी सन् में हज के लिये गये। वह नमाज़े अस्र पढ़ कर एक दिन कोहे अबू क़बीस पर गए , वहां पहुँच कर देखा कि एक निहायत मुक़द्दस शख़्स मशग़ूले नमाज़ है। फिर नमाज़ के बाद वह सज्दे में गया और या रब या रब कह कर ख़ामोश हो गया। फिर या हय्यो या हय्यो कहा और चुप हो गया। फिर या अर रहमान निर्रहीम कह कर चुप हो गया। फिर बोला ख़ुदा मुझे अंगूर चाहिये और मेरी रिदा बोसिदा हो गई है , दो रिदाए चाहिये हैं। रावी ए हदीस बाअस कहता है कि यह अल्फ़ाज़ अभी तमाम न होने पाए थे कि एक ताज़ा अंगूरों से भरी हुई ज़म्बील(बहुत बड़ा टोकरा) आ मौजूद हुई और उस पर दो बेहतरीन चादरें रखी हुई थीं। उस आबिद ने जब अंगूर खाना चाहा तो मैंने अर्ज़ कि हुज़ूर मैं आमीन कह रहा था मुझे भी खिलाईये। उन्होंने हुक्म दिया , मैंने खाना शुरू किया। ख़ुदा की क़सम ऐसे अंगूर सारी उम्र ख़्वाब में भी नज़र न आये थे। फिर आपने एक चादर मुझे दी। मैंने कहा मुझे ज़रूरत नहीं है। उसके बाद आपने एक चादर पहन ली और एक ओढ़ ली , फिर पहाड़ से उतर कर मक़ामे सई की तरफ़ गये। मैं उनके साथ था। रास्ते में एक सायल ने कहा , मौला ! मुझे चादर दे दीजिये , ख़ुदा आपको जन्नत के लिबास से आरास्ता करेगा। आपने फ़ौरन दोनों चादरें उसके हवाले कर दीं। मैंने उस सायल से पूछा यह कौन हैं ? उसने कहा इमाम ज़माना हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ स )। यह सुन कर मैं उनके पीछे दौड़ा कि उन से मिल कर कुछ इस्तेफ़ादा करूं लेकिन फिर वह मुझे न मिल सके।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 121 व कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 66, मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 277 )

वलीद बिन यज़ीद और सादिक़े आले मोहम्मद (अ स)

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक (अ.स.) के वालिदे माजिद हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) को सन् 114 में शहीद करने के बाद हश्शाम बिन अब्दुल मलिक बिन मरवान 125 हिजरी में वासिले जहन्नम हुआ। उसके मरने के बाद वलीद बिन यज़ीद बिन अब्दुल मलिक बिन मरवान ख़लीफ़ा ए बनाया गया। यह ख़लीफ़ा ऊबाश , इख़्लाक़ी औसाफ़ से कोसों दूर , बे शर्म , मुन्हियात का मुरतकिब निहायत फ़ासिक़ो फ़ाजिर और अय्याश था। मय नोशी और लवाता में ख़ास शोहरत रखता था। निहायत जब्बार और कीना वर , जिस हांडी में खाता उसी मे सूराख़ करता। यह अपने बाप की कनीज़ों को भी इस्तेमाल किया करता था। एक दिन उसकी जमीला लड़की एक ख़ादेमा के पास बैठी थी उसने उसे पकड़ लिया और उसकी बुकारत (इज़्ज़त लूटना) ज़ायल कर दी। ख़ादेमा ने कहा कि यह तो मजूस का काम है। उसने जवाब दिया कि मलामत का ख़्याल करने वाले मग़मूम मर जाते हैं।

एक दिन हज के ज़माने में यह ख़ाना ए काबा की छत पर मय नोशी के लिये भी गया था। तारीख़ का यह मशहूर वाक़ेया है कि एक दिन उसने क़ुरआने मजीद से फ़ाल खोली , उसमें आयत ‘‘ ख़ाबा कल जब्बार अनीद ’’ निकला यह देख कर उसने ग़ुस्से में क़ुरआने मजीद को फेंक दिया , फिर उसे टांग कर तीरों से टुकड़े टुकड़े कर डाला और कहा ऐ क़ुरआन ! जब ख़ुदा के पास जाना तो कह देना ‘‘ मज़क़नी अल वलीद ’’ मुझे वलीद ने पारा पारा किया है।

एक दिन वलीद अपनी कनीज़ के साथ बैठा शराब पी रहा था। इतने में अज़ान की अवाज़ कान में आई। यह फ़ौरन मुबाशेरत (सम्भोग) में मशग़ूल हो गया। जब लोगों ने नमाज़ पढ़ाने के लिये कहा तो उस कनीज़ को अपना लिबास पहना कर शराब के नशे और जनाबत की हालत में नमाज़ पढ़ाने के लिये मस्जिद में भेज दिया और उसने नमाज़ पढ़ा दी।(तारीख़े ख़मीस , हबीब उस सैर , हज्जुल करामा , सिद्दीक़ हसन) यह ज़ाहिर है कि जो दीनो ईमान , नमाज़ व मस्जिद व क़ुरआने मजीद का एहतेराम न करता हो वह आले मोहम्मद (स अ व व ) का क्या एहतेराम कर सकता है। यही वजह है कि उसने अपने मुख़्तसर अहद में उनके साथ कोई रियायत नहीं की। तारीख़ में है कि हज़रत ज़ैद शहीद (र. अ.) के बेटे जनाबे यहीया को इसी के अहद में बुरी तरह शहीद किया गया और उनका सर वलीद के दरबार में लाया गया और जिस्म ख़ुरासान में सूली पर लटकाया गया।(तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 48 )

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) और जनाबे अबू हनीफ़ा नोमान बिन साबित कूफ़ी

फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) जो आलीमे इल्मे लदुन्नी थे। आपके फ़ैज़े सोहबत से अरबाबे अक़ल ने उलूम हासिल किये। आपकी ही एक कनीज़ ‘‘ हुसैनिया ’’ का ज़िक्र ज़बान ज़द ख़्वासो आम है कि उसने बादशाहे वक़्त के दरबार में चालीस उलेमा ए इस्लाम को चुप कर के दम बा खुद कर दिया था। आप ही के फ़ैज़े सोहबत से जनाबे नोमान बिन साबित ने इल्मी मदारिज हासिल किये थे और आपके लिये मनक़बते अज़ीम है।(हदाएक़ उल हनफ़िया पृष्ठ 18 प्रकाशित लखनऊ 1906 0 )

जनाबे नोमान बिन साबित 80 हिजरी में बा मक़ाम कूफ़ा पैदा हुए। आपकी कुन्नियत अबू हनीफ़ा थी। आप अजमी नस्ल के थे। आपको हारून रशीद अब्बासी के अहद में काफ़ी उरूज हासिल हुआ।(तारीख़े सग़ीर बुख़ारी सन् 174 व सीरतुन नोमान , शिब्ली पृष्ठ 17 )

आपको हश्शाम बिन अब्दुल मलिक बिन मरवान के ज़माने में ‘‘ इमामे आज़म ’’ का खि़ताब मिला। जब कि उन्होंने 123 हिजरी में जनाबे ज़ैद शहीद की बैयत की और हुकूमत की मुख़ालेफ़त कर के मोआफ़ेक़त की थी।

किताब मुस्तफ़ा शरह मौता में है कि अकाबिरे मोहद्देसीन मिस्ल अहमद बुख़ारी , इमाम मुस्लिम , तिरमिज़ी , निसाई , अबू दाऊद , इब्ने माजा ने आपकी रवायत पर भरोसा नहीं किया। आपकी वफ़ात 150 हिजरी में हुई है।(तारीख़े सग़ीर पृष्ठ 174 )

इसी तारीख़े सग़ीर में बा रवायत नईम बिन हमाद , मरवी है कि मैं सुफ़ियान सौरी की खि़दमत में हाज़िर था कि नागाह अबू हनीफ़ा साहब की वफ़ात की ख़बर सुनी गई तो सुफ़ियान ने ख़ुदा का शुक्र अदा किया और कहा कि वह शख़्स इस्लाम को तोड़ कर चकना चूर करता था। ‘‘ मा वल्द फ़िल इस्लाम अश्शाम मिन्हा ’’ इस्लाम में इस्से ज़्यादा शूम कोई पैदा नहीं हुआ।

इमाम अबू हनीफ़ा की शार्गिदी का मसला

यह तारीख़ी मुसल्लेमात से है कि जनाबे अबू हनीफ़ा हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) और इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के शार्गिद थे लेकिन अल्लामा तक़ीउद्दीन इब्ने तैमिया ने हम असर होने की वजह से इसमें कुन्केराना शुब्हा ज़ाहिर किया है। इनके शुब्हे को शम्सुल उलेमा अल्लामा शिब्ली नोमानी ने रद करने हुए तहरीर फ़रमाया है , ‘‘ अबू हनीफ़ा एक मुद्दत तक इस्तेफ़ादे की ग़र्ज़ से इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर रहे और फ़िक़ा व हदीस के मुताअल्लिक़ बहुत बड़ा ज़ख़ीरा हज़रत मम्दूह का फ़ैज़े सोहबत था। इमाम साहब ने उनके फ़रज़न्दे रशीद हज़रत जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की फ़ैज़े सोहबत से भी कुछ फ़ायदा उठाया , जिसका ज़िक्र उमूमन तारीख़ों में पाया जाता है। ’’ इब्ने तैमिया ने इससे इन्कार किया है और उसकी वजह यह ख़्याल है कि इमाम अबू हनीफ़ा इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के माअसर और हम असर थे। इस लिये उनकी शार्गिदी क्यों कर इख़्तेयार करते लेकिन इब्ने तैमिया की गुस्ताख़ी और ख़ीरा चश्मी है। इमाम अबू हनीफ़ा लाख मुजतहिद और फ़क़ीह हों लेकिन फ़ज़लो कमाल में उनको हज़रत जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) से क्या निसबत। हदीस व फ़िक़ा बल्कि तमाम मज़हबी उलूमे अहले बैत (अ.स.) के घर से निकले हैं। ‘‘ वा साहेबुल बैत अदरा बेमा फ़ीहा ’’ घर वाले ही घर की तमाम चीज़ों से वाक़िफ़ होते हैं।(सीरतुन नोमान पृष्ठ 45 तबआ आगरा)

जनाबे अबू हनीफ़ा का इम्तेहान तारीख़ में है कि हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की खि़दमत में अकसर हज़रत अबू हनीफ़ा नोमान बिन साबित हाज़िर हुआ करते थे और यह होता रहता था कि आप उनका इम्तेहान ले कर उन्हें फ़ायदा पहुँचा दिया करते थे। एक दफ़ा का ज़िक्र है कि जनाबे अबू हनीफ़ा हज़रत की खि़दमत मे हाज़िर हुए , तो आपने पूछा कि ऐ अबू हनीफ़ा मैंने सुना है कि तुम मसाएले दीनिया मे ‘‘ क़यास ’’ से काम लिया करते हो। अर्ज़ कि जी हां है तो ऐसा ही। आपने फ़रमाया कि ऐसा न किया करो क्यों कि ‘‘ अव्वल मन क़यास इब्लीस ’’ दीन में क़यास करना इब्लीस का काम है और उसी ने क़यास की पहल की है।

एक दफ़ा आपने पूछा कि ऐ अबू हनीफ़ा यह बताओ कि ख़ुदा वन्दे आलम ने आखों में नमकीनी , कानों में तल्ख़ी , नाक के नथनों में रूतूबत और लबों पर शीरीनी क्यों पैदा की ? उन्होंने बहुत ग़ौरो ख़ौज़ के बाद कहा , या हज़रत इसका इल्म मुझे नहीं है। आपने फ़रमाया , अच्छा मुझ से सुनो , आंखें चरबी का ढेला हैं , अगर उनमें शूरियत और नमकीनी न होती तो पिघल जातीं , कानों में तल्ख़ी इस लिये है कि कीड़े मकोड़े न घुस जायें। नाक में रूतूबत इस लिये है कि सांस की आमदो रफ़्त में सहूलियत हो और ख़ुशबू और बदबू महसूस हो , लबों में शीरीनी इस लिये है कि खाने पीने मे लज़्ज़त आये।

फिर आपने पूछा कि वह कौन सा कलमा है जिसका पहला हिस्सा कुफ़्र और दूसरा ईमान है ? उन्होंने अर्ज़ की मुझे इल्म नहीं। आपने फ़रमाया कि वह वही कलमा है जो तुम रात में पढ़ा करते हो , सुनो ! ला इलाहा कुफ्ऱ और इल्लल्लाह ईमान है।

फिर आपने पूछा कि औरत कमज़ोर है या मर्द , नीज़ यह कि हालते हमल में औरत को ख़ूने हैज़ क्यों नहीं आता ? उन्होंने कहा कि यह तो मालूम है कि औरत कमज़ोर है लेकिन यह नहीं मालूम कि इसे आलमे हमल में हैज़ क्यों नहीं आता। आपने फ़रमाया कि अच्छा अगर औरत कमज़ोर है तो क्या वजह है कि मीरास में उसको एक हिस्सा और मर्द को दो हिस्सा दिया जाता है। उन्होंने जवाब दिया मुझे मालूम नहीं। आपने फ़रमाया कि औरत का नफ़क़ा मर्द पर है और हुसूले आज़ूक़ा उसी के ज़िम्मे है इस लिये उसे दोहरा दिया गया और औरत को आलमे हमल में ख़ूने हैज़ इस लिये नहीं आता कि वह बच्चे के पेट में दाखि़ल हो कर ग़िज़ा बन जाता है।

इब्ने ख़ल्क़ान लिखते हैं कि एक दिन हज़रत की खि़दमत में जनाबे अबू हनीफ़ा साहब तशरीफ़ लाये तो आपने पूछा , ऐ अबू हनीफ़ा तुम इस मुजरिम के बारे में क्या फ़तवा देते हो , जिस ने हज के लिये एहराम बांधने के बाद हिरन के वह दांत तोड़ डाले हों जिनको रूबाई कहते हैं। ‘‘ फ़क़ाला या बिन रसूल मा आलमा मा फ़ीहा ’’ अर्ज़ की फ़रज़न्दे रसूल (अ.स.) मुझे इसका हुक्म मालूम नहीं ‘‘ फ़क़ाला अनता तदाहिर वला तालम ’’ आपने फ़रमाया कि इसी इल्मीयत पर फ़ख़्र करते और लोगों को धोका देतो हो , तुम्हें यह तक मालूम नहीं कि हिरन के रूबाईया होते ही नहीं।(अल मसाएद पृष्ठ 202 )

फिर आपने पूछा कि यह बताओ कि अक़्ल मन्द कौन है ? उन्होंने अर्ज़ कि जो अच्छे बुरे की पहचान करे और दोस्त दुश्मन में तमीज़ कर सके। आपने फ़रमाया कि यह सिफ़त और तमीज़ तो जानवरों में भी होती है। वह भी प्यार करते और मारते हैं। यानी अच्छे बुरे को जानते हैं। उन्होंने कहा फिर आप ही फ़रमायें। आपने इरशाद किया कि अक़्ल मन्द वह है जो दो नेकियों और दो बुराईयों में यह इम्तियाज़ कर सके कि कौन सी नेकी तरजीह देने के क़ाबिल और दो बुराईयों में कौन सी बुराई कम और कौन ज़्यादा है।(हयातुल हैवान , दमीरी जिल्द 2 पृष्ठ 85, 86 तारीख़ इब्ने ख़ल्क़ान जिल्द 1 पृष्ठ 105 मनाक़िब इब्ने शहरे आशोब पृष्ठ 41 नूरूल अबसार पृष्ठ 131 )

इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के बाज़ नसीहते व इरशादात

अल्लामा शिब्ली तहरीर फ़रमाते हैः

1. सईद वह है जो तन्हाई में अपने को लोगों से बे नियाज़ और ख़ुदा की तरफ़ झुका हुआ पाये।

2. जो शख़्स किसी बरादरे मोमिन का दिल ख़ुश करता है ख़ुदा वन्दे आलम उसके लिये एक फ़रिश्ता पैदा करता है जो उसकी तरफ़ से इबादत करता है और क़ब्र में मूनिसे तन्हाई , क़यामत में साबित क़दमी का बाएस , मन्ज़िले शफ़ाअत में और जन्नत में पहुँचाने में रहबर होगा।

3. नेकी का तकमेला यानी कमाल यह है कि इसमें जल्दी करो और उसे कम समझो और छुपा के करो।

4. अमले ख़ैर नेक नीयती से करने को सआदत कहते हैं।

5. तवाज़ो में ताख़ीर नफ़्स का धोखा है।

6. चार चीज़ें ऐसी हैं जिनकी क़िल्लत को कसरत समझना चाहिए। ( 1) आग , ( 2) दुश्मनी , ( 3) फ़क़ीरी , ( 4) मर्ज़।

7. किसी के साथ बीस दिन रहना अज़ीज़दारी के मुतारादिफ़ है।

8. शैतान के ग़ल्बे से बचने के लिये लोगों पर एहसान करो।

9. जब अपने किसी भाई के वहां जाओ तो सदरे मजलिस में बैठने के अलावा इसकी हर नेक ख़्वाहिश को मान लो।

10. लड़की रहमत नेकी और लड़का नेअमत है। ख़ुदा हर नेकी पर सवाब देता है और नेअमत पर सवाल करेगा।

11. जो तुम्हें इज़्ज़त की निगाह से देखे तो तुम भी उसकी इज़्ज़त करो , जो ज़लील समझे उससे ख़ुद्दारी बरतो। 12. बख़शिश से रोकना ख़ुदा से बदज़नी है।

1 3. दुनियां में लोग बाप दादा के ज़रिये से मुतअर्रिफ़ होते हैं और आख़ेरत में आमाल के ज़रिये से पहचाने जायेंगे।

14. इन्सान के बाल बच्चे उसके असीर और क़ैदी हैं नेअमत की वुसअत पर उन्हें वुसअत देनी चाहिये वरना ज़वाले नेअमत का अन्देशा है।

15. जिन चीज़ों से इज़्ज़त बढ़ती है इनमें तीन यह हैं , ( 1) ज़ालिम से बदला न लो। ( 2) उस पर करम गुस्तरी जो मुख़ालिफ़ हो। ( 3) जो इसका हमर्दद न हो उसके साथ हमदर्दी करे।

16. मोमिन वह है जो जादए हक़ से न हटे और ख़ुशी में बातिल की पैरवी न करे।

17. जो ख़ुदा की दी हुई नेअमत पर क़िनाअत करेगा , मुस्तग़नी रहेगा।

18. जो दूसरों की दौलत मंदी पर लल्चाई हुई नज़र डालेगा , वह हमेशा फ़क़ीर रहेगा।

19. जो राज़ी ब रज़ा ख़ुदा नहीं वह ख़ुदा पर इत्तेहाम तक़दीर लगा रहा है।

20. जो अपनी लग़ज़िश को नज़र अन्दाज़ करेगा वह दूसरों की लग़ज़िश को भी नज़र में न लायेगा।

21. जो किसी को बे पर्दा करने की सई करेगा ख़ुद बरहना हो जायेगा।

22. जो किसी पर ना हक़ तलवार खींचेगा तो नतीजे में ख़ुद मक़तूल होगा।

23. जो किसी के लिये कुआं खोदेगा ख़ुद उसमें गिरेगा। ‘‘ चाह कुन रा चाह दरपेश ’’।

24. जो शख़्स बे वकूफ़ों से राह रस्म रखेगा ज़लील होगा।

25. हक़ गोई करनी चाहिये ख़्वाह वह अपने लिये मुफ़ीद हो या मुज़िर।

26. चुग़ल ख़ोरी से बचो क्यों कि यह लोगों के दिलों में दुश्मनी और अदावत का बीज बोती है।

27. अच्छों से मिलो , बुरों के क़रीब न जाओ क्यों कि वह ऐसे पत्थर हैं जिनमें जोंक नहीं लगती , यानी उनसे फ़ायदा नहीं हो सकता।(नूरूल अबसार पृष्ठ 134 )

28. जब कोई नेअमत मिले तो बहुत ज़्यादा शुक्र करो ताकि इज़ाफ़ा हो।

29. जब रोज़ी तंग हो तो अस्तग़फ़ार ज़्यादा करो कि अब्वाबे रिज़्क़ खुल जाएं।

30. जब हुकूमत या ग़ैर हुकूमत की तरफ़ से कोई रंज पहुँचे तो ‘‘ ला हौल वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलीअल अज़ीम ’’ ज़्यादा कहो कि रंज दूर हो , ग़म काफ़ूर हो और ख़ुशी का वफ़ूर हो।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 274 से पृष्ठ 275 )

आपके बाज़ करामात

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) के करामात और ख्वारिक़ आदात और इल्मी मालूमाती वाक़ेआत से किताबें भरी पड़ी हैं। अल्लामा अरबली लिखते हैं कि अबू बसीर एक दिन हमाम ख़ाने के लिये अपने घर से बरामद हुए। रास्ते में चन्द ऐसे हज़रात मिले जो इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की ज़्यारत के लिये जा रहे थे। अबू बसीर साहबी सोच कर साथ हो गए कि अगर मैं हमाम से वापसी में जाऊंगा तो सआदते ज़ियारत में पीछे रह जाऊंगा। जब वहां पहुँचे तो इमाम (अ.स.) ने इशारतन फ़रमाया कि नबी और इमाम के घर में हालते जनाबत में दाखि़ल नहीं होना चाहिए। अबू बसीर ने माज़रत की और हमाम चले गए। (कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 97)

यूनुस बिन ज़िबयान कहते हैं कि हम लोग एक दिन हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुए तो आपने दौराने गुफ़्तुगू में फ़रमाया कि ज़मीन के ख़ज़ाने हमारे इख़्तेयार मे हैं। यह कह कर आपने पैर से ज़मीन पर एक ख़त खींचा और एक बालिश्त का डब्बा उठा कर हमें दिखलाया। इसमें बेहतरीन सोने की ईटें थीं। मैंने अर्ज़ की मौला , आपके क़ब्ज़े में सब कुछ है मगर आपके मानने वाले तकलीफ़ उठा रहे हैं। आपने फ़रमाया उनके लिये जन्नत है।(तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 183 )

आपका अख़्लाक़ और आदात व औसाफ़

अल्लामा इब्ने शहर आशोब तहरीर फ़रमाते हैं कि एक दिन इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) ने अपने एक ग़ुलाम को किसी काम से बाज़ार भेजा। जब उसकी वापसी में बहुत देर हुई तो आप उसको तलाश करने के लिये निकल पड़े , देखा एक जगह लेटा हुआ सो रहा है। आप उसे जगाने के बजाए उसके सरहाने बैठ गए और पंखा झलने लगे। जब वह बेदार हुआ तो आपने फ़रमाया यह तरीक़ा अच्छा नहीं है। रात सोने के लिये और दिन काम काज के लिये है। आइन्दा ऐसा न करना।(मनाक़िब इब्ने शहर आशोब जिल्द 5 पृष्ठ 52 )

अल्लामा मआसिर मौलाना अली नक़ी मुजतहिदुल असर रक़म तराज़ हैं , आप इसी सिलसिला ए असमत की एक कड़ी थे जिसे ख़ुदा वन्दे आलम ने नवए इन्सानी के लिए नमूना ए कामिल बना कर पैदा किया। उनके इख़्लाक़ व अवसाफ़ , ज़िन्दगी के हर शोबे में मेआरी हैसीयत रखते थे। ख़ास ख़ास अवसाफ़ जिनके मुताअल्लिक़ मुवर्रेख़ीन ने मख़्सूस तौर पर वाक़ेयात नक़ल किये हैं। मेहमां नवाज़ी , ख़ैरो ख़ैरात , मख़फ़ी तरीक़े पर ग़ुरबा की ख़बर गीरी , अज़ीज़ों के साथ हुस्ने सुलूक , अफ़ो जराएम , सब्र व तहम्मुल वग़ैरा हैं।

एक मरतबा एक हाजी मदीने में वारिद हुआ और मस्जिदे रसूल (स अ व व ) में सो गया आंख खुली तो उसे शुबा हुआ कि उसकी एक हज़ार की थैली मौजूद नहीं। उसने इधर उधर देखा किसी को न पाया। एक गोशा ए मस्जिद में इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) नमाज़ पढ़ रहे थे। वह आपको बिल्कुल न पहचानता था। आपके पास आ कर कहने लगा कि मेरी थैली तुम ने ले ली है। हज़रत ने पूछा उसमें क्या था ? उसने कहा एक हज़ार दीनार। हज़रत ने फ़रमाया मेरे साथ मेरे मकान तक आओ , वह आपके साथ हो गया। बैत उस शरफ़ में तशरीफ़ ला कर एक हज़ार दीनार इसके हवाले कर दिये। वह मस्जिद में वापस चला गया और अपना असबाब उठाने लगा , तो ख़ुद उसके दीनारो की थैली असबाब में नज़र आई , यह देख कर बहुत शर्मिन्दा हुआ और दौड़ता हुआ फिर इमाम (अ.स.) की खि़दमत में आया , उज़्र ख़्वाही करते हुए हज़ार दीनार वापस करना चाहा। हज़रत ने फ़रमाया , हम जो कुछ दे देते हैं वह फिर वापस नहीं लेते।

मौजूदा ज़माने में यह हालात सभी की आंखों से देखे हुए हैं कि जब यह अन्देशा मालूम होता है कि अनाज मुश्किल से मिलेगा तो जिसको जितना मुम्किन हो वह अनाज ख़रीद कर रख लेता है मगर इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के किरदार का एक वाक़ेया यह है कि एक मरतबा आप से आपके एक वकील माक़िब ने कहा कि हमें इस गरानी और क़हत की तकलीफ़ का कोई अन्देशा नहीं है। हमारे पास ग़ल्ले का इतना ज़ख़ीरा है जो बहुत अर्से तक के लिये काफ़ी होगा। हज़रत ने फ़रमाया यह तमाम ग़ल्ला फ़रोख़्त कर डालो इसके बाद जो हाल सब का होगा वह हमारा भी होगा , और जब ग़ल्ला फ़रोख़्त कर दिया गया तो फ़रमाया अब ख़ालिस गेहूँ की रोटी न पका करे , बल्कि आधे गेहूँ और आधे जौ की रोटी पकाई जाए। जहां तक मुम्किन हो हमें ग़रीबों का साथ देना चाहिये।

आपका क़ायदा था कि आप मालदारों से ज़्यादा ग़रीबों की इज़्ज़त करते थे। मज़दूरों की बड़ी क़दर फ़रमाते थे। ख़ुद भी तिजारत फ़रमाते थे और अकसर अपने बाग़ों में ब नफ़्से नफ़ीस मेहनत भी करते थे।

एक मरतबा आप बेलचा हाथ में लिये बाग़ में काम कर रहे थे और पसीने से तमाम जिस्म तर हो गया था। किसी ने कहा ये बेलचा मुझे इनायत फ़रमाइये कि मैं यह खि़दमत अन्जाम दूं। हज़रत (अ.स.) ने फ़रमाया , तलबे माश में धूप और गर्मी की तकलीफ़ सहना ऐब की बात नहीं। ग़ुलामों और कनीज़ों पर वही मेहरबानी रहती थी जो इस घराने की इम्तेआज़ी सिफ़त थी। इसका एक हैरत अंगेज़ नमूना यह है कि जिसे सफ़यान सूरी ने बयान किया है कि मैं एक मरतबा इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुआ देखा कि चेहरा ए मुबारक का रंग मुताग़य्यर है। मैंने सबब दरयाफ़्त किया तो फ़रमाया मैंने मना किया था कि कोई मकान के कोठे पर न चढ़े इस वक़्त जो मैं घर आया तो क्या देखा कि एक कनीज़ जो एक बच्चे की परवरिश पर मुतअय्यन थी उसे गोद में लिये ज़िने से ऊपर जा रही थी। मुझे देखा तो ऐसा ख़ौफ़ तारी हुआ कि बद हवासी में बच्चा उसके हाथ से छूट गया और इस सदमे से जान बाहक़ तसलीम हो गया। मुझे बच्चे के मरने का इतना सदमा नहीं जितना इसका रंज है कि इस कनीज़ पर इतना रोब हेरास क्यों तारी हुआ। फिर हज़रत ने इस कनीज़ को पुकार कर फ़रमाया , डर नहीं , मैंने तुमको राहे ख़ुदा में आज़ाद कर दिया। इसके बाद हज़रत बच्चे की तजहीज़ की तरफ़ मोतवज्जा हुए। (सादिके आले मोहम्मद (अ.स.) पृष्ठ 12, मुनाक़िब इब्ने शहरे आशोब जिल्द 5 पृष्ठ 54)

किताब मजानी अल अदब जिल्द 1 पृष्ठ 67 में है कि हज़रत के यहां कुछ महमान आए थे। हज़रत ने खाने के मौक़े पर अपनी कनीज़ को खाना लाने का हुक्म दिया। वह सालन का बड़ा प्याला ले कर जब दस्तरख़्वान के क़रीब पहुँची तो इत्तेफ़ाक़न प्याला उसके हाथ से छूट कर गिर गया। इसके गिरने से इमाम (अ.स.) और दीगर महमानों के कपड़े ख़राब हो गए। कनीज़ कांपने लगी और आपने ग़ुस्से के बजाए उसे राहे ख़ुदा में यह कह कर आज़ाद कर दिया कि तू जो मेरे ख़ौफ़ से कांपती है शायद यही आज़ाद करना कफ़्फ़ारा हो जाए। फिर उसी किताब के सफ़े 69 में है कि एक ग़ुलाम आपका हाथ धुला रहा था कि दफ़तन लोटा छूट कर तश्त में गिरा और पानी उड़ कर हज़रत के मुंह पर पड़ा। ग़ुलाम घबरा उठा हज़रत ने फ़रमाया डर नहीं जा मैंने तुझे राहे ख़ुदा में आज़ाद कर दिया।

किताब तोहफ़तुल अलज़राएर अल्लामा मजलिसी में है कि आपकी आदात में इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़्यारत के लिये जाना दाखि़ल था। आप अहदे सफ़ाह और ज़मानाए मन्सूर में भी ज़ियारत के लिये तशरीफ़ ले गए थे। करबला की आबादी से तक़रीबन चार सौ क़दम शुमाल की जानिब , नहरे अलक़मा के किनारे बाग़ों में शरीए सादिक़े आले मोहम्मद (अ.स.) इसी ज़माने से बना हुआ है।(तसवीरे अज़ा 10 पृष्ठ 60 प्रकाशित देहली 1919 0 )

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की इल्मी बुलन्दी

यह ज़ाहिर है कि इल्म ही इन्सान का वह जौहरे फ़ानी है जिसके बग़ैर हक़ीक़ी इम्तेआज़ हासिल नहीं होता। हज़रत आदम (अ.स.) ने इल्म के ज़रिये मलाएका पर फ़ज़ीलत हासिल की और आपके इस तरज़े अमल के ना ग़ुज़ीर तौर पर यह वाज़े हो गया कि मनसूस मिन अल्लाह को आलिमे जैय्यद होना लाज़मी है। हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) चूंकि सही तौर पर मनसूस थे लेहाज़ा आपका आलमे ज़माना होना लाज़मी था और यही वजह है कि आप इल्म के उन मदारिज पर फ़ाएज़ थे जिनके अर्श ए बुलन्द के पाए को परिन्दा पर नहीं मार सकता था।

सादिक़े आले मोहम्मद (अ.स.) की तसानीफ़

आपकी तसानीफ़ का शुमार नहीं किया जा सकता। तवारीख़ से मालूम होता है कि आप ने बेशुमार किताबें व रिसाले और मक़ालात से दुनियां वालों को फ़ैज़याब फ़रमाया है। आप चूंकि उलूम में ग़ैर महदूद थे। इस लिये आपकी किताबें हर इल्म में मिलती हैं। आपने इल्में दीन , इल्मे कीमिया , इल्मे रजज़ , इल्मे फ़ाल , इल्मे फ़लसफ़ा , इल्मे तबीइयात , इल्मे हैय्यत , इल्मे मन्तिक़ , इल्मे तिब , इल्मे समीयात , इल्मे तशरीह अल अजसाम व अफ़आल अल आज़ा , इल्म अल हयात वमा बाद अल तबयात वग़ैरा वग़ैरा पर ख़ामा फ़रसाई की है और लेक्चर दिये हैं। हम इस मक़ाम पर सिर्फ़ दो किताबों को ज़िक्र करना चाहते हैं। 1. किताबे जफ़रो जामोआ , 2. किताब अहले लिजिया।

अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स )

क्यों न झुकें सलाम को , फ़ौजे उलूम के परे

बज़्मे नकी़ में जौ़ फ़िशाँ आज है नूरे असकरी

वारिसे जु़ल्फ़िक़ार है सुल्बे में इनकी जलवा गर

ज़ात है इनकी मुज़दा ए , आमद दौरे हैदरी

साबिर थरयानी ‘‘ कराची ’’

बू मोहम्मद इमाम याज़ दहुम

जां नशीने रसूल अर्श मक़ाम

जिसके जद वजहे खि़लक़ते आलम

जिसके फ़रज़न्द से जहां को क़याम

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स अ व व ) के ग्यारहवें जां नशीन और सिलसिला ए इस्मत के 13 वीं कड़ी हैं। आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम अली नकी़ (अ.स.) थे और आपकी वालेदा माजेदा हदीसा ख़ातून थीं। मोहतरमा के मुताअल्लिक़ अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि आप अफ़ीफ़ा , करीमा , निहायत संजीदा और वरा व तक़वा से भर पूर थीं।(जिलाउल उयून पृष्ठ 295 )

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) अपने आबाओ अजदाद की तरह इमाम मन्सूस मासूम आलिमे ज़माना और अफ़ज़ले काएनात थे।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 ) आपको हसना सिफ़ाते इल्म व सख़ावत वग़ैरा अपने वालिद से विरसे मे मिले थे।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 461 )

अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ई का बयान है कि आपको ख़ुदा वन्दे आलम ने जिन फ़ज़ाएल व मनाक़िब और कमालात और बुलन्दी से सरफ़राज़ किया है इनमें मुकम्मिल दवाम मौजूद हैं। न वह नज़र अन्दाज़ किये जा सकते हैं और न इनमें कुहनगी आ सकती है और आपका एक अहम शरफ़ यह भी है कि इमाम मेहदी (अ.स.) आप ही के इकलौते फ़रज़न्द हैं जिन्हें परवर दिगारे आलम ने तवील उम्र अता की है।(मतालिब उल सुऊल पृष्ठ 292 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) की विलादत और बचपन के बाज हालात

उलमाए फ़रीक़ैन की अक्सरीयत का इत्तेफ़ाक़ है कि आप बातारीख़ 10 रबीउस्सानी 232 हिजरी यौमे जुमा ब वक़्ते सुबह बतने जनाबे हदीसा ख़ातून से ब मुक़ाम मदीना मुनव्वरा मुतवल्लिद हुए हैं। मुलाहेज़ा हो शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210 सवाएक़े मोहर्रेक़ पृष्ठ 124 नूरूल अबसार 110. जिलाउल उयून पृष्ठ 295, इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 दम ए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163। आपकी विलादत के बाद हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के रखे हुए नाम ‘‘ हसन बिन अली ’’ से मौसूम किया।(निहाबुल मोवद्दता)

आपकी कुन्नियत और आपके अल्क़ाब

आपकी कुन्नियत ‘‘ अबू मोहम्मद ’’ थी और आपके अल्क़ाब बेशुमार थे। जिनमें अस्करी , हादी , ज़की , खलिस , सिराज और इब्ने रज़ा ज़्यादा मशहूर हैं।(नूरूल अबसार पृष्ठ 150, शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210, दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 122 व मुनाक़िब इब्ने शहर आशोब जिल्द पृष्ठ 125 ) आपका लक़ब इसकरी इस लिये ज़्यादा मशहूर हुआ कि आप जिस महल्ले में ब मुक़ाम ‘‘ सरमन राय ’’ रहते थे उसे असकर कहा जाता था और ब ज़ाहिर इसकी वजह यह थी जब ख़लीफ़ा मोतसिम बिल्ला ने इस मुक़ाम पर लश्कर जमा किया था और ख़ुद भी क़याम पज़ीर था उसे ‘‘ असकर ’’ कहने लगे थे , और ख़लीफ़ा मुतावक्किल ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को मदीने से बुलवा कर यहीं मुक़ीम रहने पर मजबूर किया था। नीज़ यह भी था कि एक मरतबा ख़लीफ़ा ए वक़्त ने इमामे ज़माना को इसी मुक़ाम पर नव्वे हज़ार लशकर का मुआएना कराया था और आपने अपनी दो उंगलियां के दरमियान से अपने ख़ुदाई लशकर का मुताला करा दिया था। उन्हीं वजह की बिना पर इस मुका़म का नाम ‘‘ असकर ’’ हो गया था जहाँ इमाम अली नक़ी (अ.स.) और इमाम हसन असकरी (अ.स.) मुद्दतो मुक़ीम रह कर असकरी मशहूर हो गए।(बेहारूल अनवार जिल्द 12 पृष्ठ 154, दफ़यात अयान जिल्द 1 पृष्ठ 145, मजमूउल बहरैन पृष्ठ 322 दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163, तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 222 )

आपके अहदे हयात और बादशहाने वक़्त

आपकी विलादत 232 हिजरी में उस वक़्त हुई जब कि वासिक़ बिल्लाह बिन मोतसिम बादशाहे वक्त़ था जो 227 हिजरी में ख़लीफ़ा बना था।(तारीख़ अबूल फ़िदा) फिर 233 हिजरी में मुतावक्किल ख़लीफ़ा बना(तारीख़ इब्नुल वरा) जो हज़रत अली (अ.स.) और उनकी औलाद से सख़्त बुग़़्ज़ व कीना रखता था और उनकी मनक़स्त किया करता था।(हयातुल हैवान व तारीख़े कामिल) इसी ने 236 हिजरी में इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़्यारत को जुर्म क़रार दी और उनके मज़ार को ख़त्म करने की सई की।(तारीख़े कामिल) और इसी ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन मदीने से सरमन राय तलब करा लिया।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा) और आपको गिरफ़्तार करा के आपके मकान की तलाशी कराई।(दफ़अतिल अयान) फिर 247 हिजरी में मुन्तसर बिन मुतावक्किल ख़लीफ़ा ए वक़्त हुआ।(तारीख़े अबुल फ़िदा) फिर 248 हिजरी में मोतस्तईन ख़लीफ़ा बना।(अबूल फ़िदा) फिर 252 हिजरी में मुमताज़ बिल्ला ख़लीफ़ा हुआ।(अबुल फ़िदा) इसी ज़माने में अली नक़ी (अ.स.) को ज़हर से शहीद कर दिया गया।(नूरूल अबसार) फिर 255 हिजरी में मेंहदी बिल्लाह ख़लीफ़ा बना।(तारीख़ इब्ने अल वर्दी) फिर 256 हिजरी में मोतमिद बिल्ला ख़लीफ़ा हुआ।(तारीख़ अबुल फ़िदा) इसी ज़माने में 260 हिजरी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) ज़हर से शहीद हुए।(तारीख़े कामिल) इन तमाम खुल्फ़ा ने आपके साथ वही बरताव किया जो आले मोहम्मद (स अ व व ) के साथ बरताव किए जाने का दस्तूर चला आ रहा था।

चार माह की उम्र में मनसबे इमामत

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) कि उम्र जब चार माह के क़रीब हुई तो आपके वालिद अली नक़ी (अ.स.) ने अपने बाद के लिये मन्सबे इमामत की वसीअत की और फ़रमाया कि मेरे बाद यही मेरे जां नशीन होंगे और इस पर बहुत से लोगों को गवाह भी कर दिया।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 व दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 193 बहवाला ए उसूले काफ़ी)

अल्लामा इब्ने हजर मक्की का कहना है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) इमाम अली नक़ी (अ.स.) की औलाद में सब से ज़्यादा अज़िल अरफ़ा अला व अफ़ज़ल थे।

चार साल की उम्र में आपका सफ़रे ईराक़

मुतावक्किल अब्बासी जो आले मोहम्मद (स अ व व ) का हमेशा से दुश्मन था उसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) के वालिदे बुज़ुर्गवार इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन 239 हिजरी में मदीने से ‘‘ सरमन राय ’’ बुला लिया। आप ही के हमराह इमाम हसन असकरी (अ.स.) को भी जाना पड़ा। इस वक़्त आपकी उम्र चार साल चन्द माह की थी।(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 162 )

यूसुफ़े आले मोहम्मद(स. अ.) कुएं में

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) न जाने किस तरह अपने घर के कुएं में गिर गए। आपके गिरने से औरतों में कोहरामे अज़ीम बरपा हो गया। सब चीख़ने और चिल्लाने लगीं मगर हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) जो महवे नमाज़ थे मुतलक़ मुताअस्सिर न हुए और इतमिनान से नमाज़ का एख़तेताम किया। उसके बाद आपने फ़रमाया कि घबराओ नहीं हुज्जते ख़ुदा को कोई गज़न्द न पहुँचेगी। इसी दौरान में देखा कि पानी बलन्द हो रहा है और इमाम हसन असकरी (अ.स.) पानी में खेल रहे हैं।(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 179 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) और कमसिनी में उरूजे फ़िक्र

आले मोहम्मद (स अ व व ) जो तदब्बुरे क़ुरआनी और उरेजे फ़िक्र में ख़ास मक़ाम रखते हैं उनमें से एक बलन्द मक़ाम बुज़ुर्ग हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) हैं। उलमा ए फ़रीक़ैन ने लिखा है कि एक दिन आप एक ऐसी जगह खड़े रहे जिस जगह कुछ बच्चे खेल में मसरूफ़ थे। इत्तेफ़ाक़न उधर से आरिफ़े आले मोहम्मद (स अ व व ) जनाब बहलोल दाना गुज़रे। उन्होंने यह देख कर कि सब बच्चे खेल रहे हैं और एक ख़ूब सूरत सुखऱ् व सफ़ैद बच्चा खड़ा रो रहा है। उधर मुतावज्जे हुए और कहा ऐ नौनेहाल मुझे बड़ा अफ़सोस है कि तुम इस लिये रो रहे हो कि तुम्हारे पास वह खिलौने नहीं जो इन बच्चों के पास हैं। सुनो ! मैं अभी अभी तुम्हारे लिये खिलौने ले कर आता हूँ। यह कहना था कि आप कमसिनी के बवजूद बोले , अना न समझ। हम खेलने के लिये नहीं पैदा किये गए हैं। हम इल्मो इबादत के लिये ख़ल्क़ हुए हैं। उन्होंने पूछा कि तुम्हें यह क्यों कर मालूम हुआ कि ग़रज़े खि़लक़त इल्मो इबादत है। आपने फ़रमाया कि इसकी तरफ़ क़ुरआने मजीद रहबरी करता है। क्या तुमने नहीं पढ़ा कि ख़ुदा फ़रमाता है , ‘‘ अफ़सबतुम इन्नमा ख़लक़ना कुम अबसा ’’ क्या तुम ने यह समझ लिया है कि हम ने तुम को अबस(खेल कूद) के लिये पैदा किया है ? और क्या तुम हमारी तरफ़ पलट कर न आओगे। यह सुन कर बहलोल हैरान रह गए और यह कहने पर मजबूर हो गए कि ऐ फ़रज़न्द तुम्हें क्या हो गया था कि तुम रो रहे थे , तुम से गुनाह का तसव्वुर तो हो ही नहीं सकता क्यों कि तुम बहुत कमसिन हो। आपने फ़रमाया कि कमसिनी से क्या होता है , मैंने अपनी वालेदा को देखा है कि बड़ी लकड़ियों को जलाने के लिये छोटी लकड़ियां इस्तेमाल करती हैं। मैं डरता हूँ कि कहीं जहन्नम के बड़े ईंधन के लिये हम छोटे और कमसिन लोग इस्तेमाल न किये जाऐ।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 124, नूरूल अबसार पृष्ठ 150, तज़केरतुल मासूमीन पृष्ठ 230 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) के साथ बादशहाने वक़्त सुलूक और तरज़े अमल

जिस तरह आपके आबाओ अजदाद के वुजूद को उनके अहद के बादशाह अपनी सलतनत और हुक्मरानी की राह में रूकावट समझते रहे। उनका यह ख़्याल रहा कि दुनियां के क़ुलूब उनकी तरफ़ माएल हैं क्यों कि यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) और आमाले सालेह के ताजदार हैं लेहाज़ा उनको आवाम की नज़रों से दूर रखा जाए वरना इमकान क़वी है कि लोग उन्हें अपना बादशाहे वक़्त तसलीम कर लेंगे। इसके अलावा यह बुग़्ज़ो हसद भी था कि इनकी इज़्ज़त बादशाहे वक़्त के मुक़ाबले में ज़्यादा की जाती है और यह कि इमाम मेहदी (अ.स.) उन्हीं की नस्ल से होंगे जो सलतनतों का इन्के़लाब लाऐंगे। इन्ही तसव्वुरात ने जिस तरह आपके बुज़ुर्गों को चैन न लेने दिया और हमेशा मसाएब की अमाजगा बनाए रखा। इसी तरह आपके अहद के बादशाहों ने भी आपके साथ किया। अहदे वासिक़ में आपकी विलादत हुई और अहदे मुतवक्किल के कुछ अय्याम में बचपना गुज़ारा।

मुतवक्किल जो आले मोहम्मद (स अ व व ) का जानी दुश्मन था उसने सिर्फ इस जुर्म में कि आले मोहम्मद (स अ व व ) की तारीफ़ की है इब्ने सकीत शायर की ज़ुबान गुद्दी से खिंचवा ली।(अबुल फ़िदा जिल्द 2 पृष्ठ 14 ) उसने सब से पहले तो आप पर यह ज़ुल्म किया कि चार साल की उम्र में तरके वतन करने पर मजबूर किया यानी इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन मदीने से सामरा बुलवाया जिनके हमराह इमाम हसन असकरी (अ.स.) को लाज़मन जाना पड़ा। फिर वहां आपके घर के लोगों के कहने सुन्ने से तलाशी कराई और आपके वालिदे माजिद को जानवरों से फड़वा डालने की कोशिश की। ग़रज़ कि जो सई आले मोहम्मद (अ.स.) को सताने की मुमकिन थी , वह सब उसने अपने अहदे हयात में कर डाली। उसके बाद उसका बेटा मुस्तनसर ख़लीफ़ा हुआ। यह भी अपने बाप के नक्शे क़दम पर चल कर आले मोहम्मद (स अ व व ) को सताने की सुन्नत अदा करता रहा और इसकी मुसलसल कोशिश यही रही कि इन लोगों को सुकून नसीब न होने पाये। उसके बाद मुस्तईन का जब अहदे नव आया तो उसने आपके वालिदे माजिद को क़ैद ख़ाने में रखने के साथ साथ उसकी सई पैहम की कि किसी सूरत से इमाम हसन असकरी (अ.स.) को क़त्ल करा दे और इसके लिये उसने मुख़्तलिफ़ रास्ते तलाश किये।

मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक मरतबा उसने अपने शौक़ के मुताबिक़ एक निहायत ज़बरदस्त घोड़ा ख़रीदा लेकिन इत्तेफ़ाक़ से वह इस दर्जा सरकश निकला कि उसने बड़े बड़े लोगों को सवारी न दी और जो उसके क़रीब गया उसको ज़मीन पर दे मारा और टापों से कुचल डाला। एक दिन ख़लीफ़ा मुस्तईन बिल्लाह के एक दोस्त ने राय दी कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) को बुला कर हुक्म दिया जाय कि वह इस पर सवारी करें , अगर वह इस पर कामयाब हो गये तो घोड़ा ठीक हो जायेगा , और अगर कामयाब न हुए और कुचल डाले गए तो तेरा मक़सद हल हो जायेगा। चुनान्चे उसने ऐसा ही किया लेकिन अल्लाह रे शाने इमामत जब आप उसके क़रीब पहुँचे तो वह इस तरह भीगी बिल्ली बन गया कि जैसे कुछ जानता ही न हो। बादशाह यह देख कर हैरान रह गया और उसके पास इसके सिवा कोई चारा न था कि घोड़ा हज़रत के हवाले कर दे।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 210 )

फिर मुस्तईन के बाद जब मोतज़ बिल्लाह ख़लीफ़ा हुआ तो उसने भी आले मोहम्मद (स अ व व ) को सताने की सुन्नत जारी रखी और इसकी कोशिश करता रहा कि अहदे हाज़िर के इमाम ज़माना और फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) इमाम अली नक़ी (अ.स.) को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ कर दे। चुनान्चे यही हुआ और उसने 254 ई 0 में आपके वालिदे बुज़ुर्गवार को ज़हर से शहीद करा दिया। यह एक मुसीबत थी कि जिसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) को बे इन्तेहा मायूस कर दिया। इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत के बाद इमाम हसन असकरी (अ.स.) ख़तरात में महसूर हो गये , क्यो कि हुकूमत का रूख़ अब आप ही की तरफ़ रह गया था। आपको खटका लगा ही था कि हुकूमत की तरफ़ से अमल दरामद शुरू हो गया। मोतज़ ने एक शक़ीए अज़ली और नासबे अब्दी इब्ने यारिश की हिरासत और नज़र बन्दी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) को दे दिया। उसने उनको सताने में कोई दक़ीक़ा नहीं छोड़ा लेकिन आखि़र में वह आपका मोतक़िद बन गया। आपकी इबादत गुज़ारी और रोज़ा दारी ने उस पर ऐसा गहरा असर किया कि उसने आपकी खि़दमत में हाज़िर हो कर माफ़ी मांग ली और आपको दौलत सरा तक पहुँचा दिया।

अली बिन मोहम्मद ज़ियाद का बयान है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने मुझे एक ख़त तहरीर फ़रमाया जिसमें लिखा कि तुम ख़ाना नशीन हो जाओ क्यों कि एक बहुत बड़ा फ़ितना उठने वाला है। ग़रज़ कि थोड़े दिनों के बाद एक हंगामा ए अज़ीम बरपा हुआ और हुज्जाज बिन सुफ़यान ने मोतज़ को क़त्ल कर दिया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 127 )

फिर जब मेहदी बिल्लाह का अहद आया तो उसने भी बदस्तूर अपना अमल जारी रखा और हज़रत को सताने में हर क़िस्म की कोशिश करता रहा। एक दिन उसने सालेह बिन वसीफ़ नामी नासेबी के हवाले आपको कर दिया और हुक्म दिया कि हर मुम्किन तरीक़े से आपको सताये। सालेह के मकान के क़रीब एक बहुत ख़राब हुजरा था जिसमें आप क़ैद किये गए। सालेह बद बख़्त ने जहां और तरीक़े से सताया एक तरीक़ा यह भी था कि आपको खाना और पानी से भी हैरान और तंग रखता था। आखि़र ऐसा होता रहा कि आप तयम्मुम से नमाज़ अदा फ़रमाते रहे। एक दिन उसकी बीवी ने कहा कि ऐ दुश्मने ख़ुदा यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) हैं। इनके साथ रहम का बरताव कर। उसने कोई तवज्जो न की। एक दिन का ज़िक्र है , बनी अब्बासिया के एक गिरोह ने सालेह से जा कर दरख़्वास्त की कि हसन असकरी पर ज़ियादा ज़ुल्म किया जाना चाहिये। उसने जवाब दिया कि मैंने उनके ऊपर दो ऐसे शख़्सों को मुसल्लत कर दिया है जिनका ज़ुल्मों तशद्दुद में जवाब नहीं है लेकिन मैं क्या करूं कि उनके तक़वे और उनकी इबादत गुज़ारी से वह इस दर्जा मुताअस्सिर हो गये हैं कि जिसकी कोई हद नहीं। मैंने उनसे जवाब तलबी की तो उन्होंने क़ल्बी मजबूरी ज़ाहिर की। यह सुन कर वह लोग मायूस वापिस गये।(तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 223 )

ग़रज़ कि मेहदी का ज़ुल्म तशदद्दुद ज़ोरो पर था और यही नहीं कि वह इमाम हसन असकरी (अ.स.) पर सख़्ती करता था बल्कि यह कि वह उनके मानने वालों को बराबर क़त्ल करता रहता था। एक दिन आपके एक साहबी अहमद बिन मोहम्मद ने एक अरीज़े के ज़रिये से उसके ज़ुल्म की शिकायत की तो आपने तहरीर फ़रमाया कि घबराओ नहीं कि मेहदी की उम्र अब सिर्फ़ पांच दिन बाक़ी रह गई है। चुनान्चे छटे दिन उसे कमाले ज़िल्लत व ख़वारी के साथ क़त्ल कर दिया गया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 126 )

इसी के अहद में जब आप क़ैद ख़ाने में पहुँचे तो ईसा बिन फ़तेह से फ़रमाया कि तुम्हारी उम्र इस वक़्त 65 साल एक माह दो यौम की है। उसने नोट बुक निकाल कर उसकी तसदीक़ की। फिर आपने फ़रमाया कि ख़ुदा तुम्हें औलादे नरीना अता करेगा। वह ख़ुश हो कर कहने लगा मौला! क्या आपको ख़ुदा फ़रज़न्द न देगा ? आपने फ़रमाया ख़ुदा की क़सम अन्क़रीब मुझे मालिक ऐसा फ़रज़न्द देगा जो सारी कायनात पर हुकूमत करेगा और दुनियां को अदलो इंसाफ़ से भर देगा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 101 )

फिर जब उसके बाद मोतमिद ख़लीफ़ा हुआ तो उसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) पर ज़ुल्मो जौरो सितम व इस्तेबदाद का ख़ात्मा कर दिया।

इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत और इमाम हसन असकरी (अ.स.) का आग़ाज़े इमामत

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने अपने इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शादी नरजिस ख़ातून से कर दी जो क़ैसरे रोम की पोती और शमऊन वसी ए ईसा (अ.स.) की नस्ल से थीं।(जिला अल उयून पृष्ठ 298 ) इसके बाद आप 3 रजब 254 ई 0 को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ हुए। आपकी शहादत के बाद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की इमामत का आग़ाज़ हुआ। आपके तमाम मोतक़दीन ने आपको मुबारक बाद दी और आप से हर क़िस्म का इस्तेफ़ादा शुरू कर दिया। आपकी खि़दमत में आमदो रफ़्त और सवालात व जवाबात का सिलसिला जारी हो गया। आपने जवाबात में ऐसे हैरत अंगेज़ मालूमात का इन्केशाफ़ फ़रमाया कि लोग दंग रह गए। आपने इल्मे ग़ैब और इल्मे बिलमौत तक का सबूत पेश फ़रमाया और इसकी भी वज़ाहत की कि फ़लां शख़्स को इतने दिनों में मौत आ जायेगी।

अल्लामा मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक शख़्स ने अपने वालिद समेत हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की राह में बैठ कर यह सवाल करना चाहा कि बाप को पांच सौ दिरहम और बेटे को तीन सौ दिरहम अगर इमाम दें तो सारे काम हो जाऐ , यहां तक कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) इस रास्ते पर आ पहुँचे। इत्तेफ़ाक़ यह दोनों इमाम (अ.स.) को पहचानते न थे। इमाम (अ.स.) ख़ुद इन दोनों के क़रीब गए और उन से कहा कि तुम्हें आठ सौ दिरहम की ज़रूरत है। आओ मैं तुम्हें दे दूं। दोनों हमराह हो लिये और रक़म माहूद हासिल कर ली। इसी तरह एक और शख़्स क़ैद ख़ाने में था। उसने क़ैद की परेशानी की शिकायत इमाम (अ.स.) को लिख कर भेजी और तंग दस्ती का ज़िक्र शर्म की वजह से न किया। आपने तहरीर फ़रमाया कि तुम आज ही क़ैद ख़ाने से रिहा हो जाओगे और तुम ने जो शर्म से तंग दस्ती का ज़िक्र नहीं किया , इसके मुताअल्लिक़ मालूम करो कि मैं अपने मुक़ाम पर पहुँचते ही सौ दिनार भेज दूंगा। चुनान्चे ऐसा ही हुआ। इसी तरह एक शख़्स ने आपसे अपनी तंग दस्ती की शिकायत की। आपने ज़मीन कुरेद कर एक अशरफ़ी की थैली निकाली और उसके हवाले कर दी। इसमें सौ दीनार थे। इसी तरह एक शख़्स ने आपको तहरीर किया कि मिशक़ात के मानी क्या हैं ? नीज़ यह कि मेरी औरत हामेला है इससे जो फ़रज़न्द पैदा होगा उसका नाम रख दीजिए। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया कि मिशक़ात से मुराद क़ल्बे मोहम्मदे मुस्तफ़ा (स अ व व ) और आखि़र में लिख दिया ‘‘ अज़मुल्लाह अजरकुम व अख़लफ़ अलैक ’’ ख़ुदा तुम्हें अज्र दे और नेमुल बदल अता करे। चुनान्चे ऐसा ही हुआ कि उसके यहां मुर्दा लड़का पैदा हुआ। इसके बाद उसकी बीवी हामला हुई , फ़रज़न्दे नरीना मुतावल्लिद हुआ। मुलाहेज़ा हों।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 211 )

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि हसन इब्ने ज़रीफ़ नामी एक शख़्स ने हज़रत से मिलकर दरयाफ़्त किया कि क़ाएमे आले मोहम्मद (अ.स.) पोशीदा होने के बाद कब ज़ुहूर करेंगे ? आपने तहरीर फ़रमाया जब ख़ुदा की मसलहत होगी। इसके बाद लिखा कि तुम तप रबआ का सवाल करना भूल गए जिसे तुम मुझसे पूछना चाहते हो , तो देखो ऐसा करो कि जो इसमें मुबतिला हो उसके गले में आयत ‘‘ या नार कूनी बरदन सलामन अला इब्राहीम ’’ लिख कर लटका दो शिफ़ायाब हो जायेगा। अली बिन ज़ैद इब्ने हुसैन का कहना है कि मैं एक घोड़े पर सवार हो कर हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ तो आपने फ़रमाया कि इस घोड़े की उम्र सिर्फ़ एक रात बाक़ी रह गई है चुनान्चे वह सुबह होने से पहले मर गया। इस्माईल बिन मोहम्मद का कहना है कि मैं हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ और मैंने उनसे क़सम खा कर कहा कि मेरे पास एक दिरहम भी नहीं है। आपने मुस्कुरा कर फ़रमाया कि क़सम मत खाओ तुम्हारे घर दो सौ दीनार मदफ़ून हैं। यह सुन कर वह हैरान रह गया। फिर हज़रत ने गु़लाम को हुक्म दिया कि उन्हें अशरफ़ियां दे दो।

अब्दी रवायत करता है कि मैं अपने फ़रज़न्द को बसरे में बिमार छोड़ कर सामरा गया और वहां हज़रत को तहरीर किया कि मेरे फ़रज़न्द के लिया दुआ ए शिफ़ा फ़रमाएं। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया ‘‘ ख़ुदा उस पर रहमत नाज़िल फ़रमाए ’’ जिस दिन यह ख़त उसे मिला उसी दिन उसका फ़रज़न्द इन्तेक़ाल कर चुका था। मोहम्मद बिन अफ़आ कहता है कि मैंने हज़रत की खि़दमत में एक अरज़ी के ज़रिये से सवाल किया कि ‘‘ क्या आइम्मा को भी एहतेलाम होता है ? ’’ जब ख़त रवाना कर चुका तो ख़्याल हुआ कि एहतेलाम तो वसवसए शैतानी से हुआ करता है और इमाम (अ.स.) तक शैतान पहुँच नहीं सकता। बहर हाल जवाब आया कि इमाम नौम और बेदारी दोनों हालतों में वसवसाए शैतानी से दूर होते हैं जैसा कि तुम्हारे दिल में भी ख़्याल पैदा हुआ है , फिर एहतेलाम क्यों कर हो सकता है। जाफ़र बिन मोहम्मद का कहना है कि मैं एक दिन हज़रत की खि़दमत में हाज़िर था , दिल में ख़्याल आया कि मेरी औरत जो हामेला है अगर उससे फ़रज़न्दे नरीना पैदा हो तो बहुत अच्छा हो। आपने फ़रमाया कि ऐ जाफ़र लड़का नहीं लड़की पैदा होगी। चुनान्चे ऐसा ही हुआ।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 128 )

अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स )

क्यों न झुकें सलाम को , फ़ौजे उलूम के परे

बज़्मे नकी़ में जौ़ फ़िशाँ आज है नूरे असकरी

वारिसे जु़ल्फ़िक़ार है सुल्बे में इनकी जलवा गर

ज़ात है इनकी मुज़दा ए , आमद दौरे हैदरी

साबिर थरयानी ‘‘ कराची ’’

बू मोहम्मद इमाम याज़ दहुम

जां नशीने रसूल अर्श मक़ाम

जिसके जद वजहे खि़लक़ते आलम

जिसके फ़रज़न्द से जहां को क़याम

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स अ व व ) के ग्यारहवें जां नशीन और सिलसिला ए इस्मत के 13 वीं कड़ी हैं। आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम अली नकी़ (अ.स.) थे और आपकी वालेदा माजेदा हदीसा ख़ातून थीं। मोहतरमा के मुताअल्लिक़ अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि आप अफ़ीफ़ा , करीमा , निहायत संजीदा और वरा व तक़वा से भर पूर थीं।(जिलाउल उयून पृष्ठ 295 )

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) अपने आबाओ अजदाद की तरह इमाम मन्सूस मासूम आलिमे ज़माना और अफ़ज़ले काएनात थे।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 ) आपको हसना सिफ़ाते इल्म व सख़ावत वग़ैरा अपने वालिद से विरसे मे मिले थे।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 461 )

अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ई का बयान है कि आपको ख़ुदा वन्दे आलम ने जिन फ़ज़ाएल व मनाक़िब और कमालात और बुलन्दी से सरफ़राज़ किया है इनमें मुकम्मिल दवाम मौजूद हैं। न वह नज़र अन्दाज़ किये जा सकते हैं और न इनमें कुहनगी आ सकती है और आपका एक अहम शरफ़ यह भी है कि इमाम मेहदी (अ.स.) आप ही के इकलौते फ़रज़न्द हैं जिन्हें परवर दिगारे आलम ने तवील उम्र अता की है।(मतालिब उल सुऊल पृष्ठ 292 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) की विलादत और बचपन के बाज हालात

उलमाए फ़रीक़ैन की अक्सरीयत का इत्तेफ़ाक़ है कि आप बातारीख़ 10 रबीउस्सानी 232 हिजरी यौमे जुमा ब वक़्ते सुबह बतने जनाबे हदीसा ख़ातून से ब मुक़ाम मदीना मुनव्वरा मुतवल्लिद हुए हैं। मुलाहेज़ा हो शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210 सवाएक़े मोहर्रेक़ पृष्ठ 124 नूरूल अबसार 110. जिलाउल उयून पृष्ठ 295, इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 दम ए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163। आपकी विलादत के बाद हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के रखे हुए नाम ‘‘ हसन बिन अली ’’ से मौसूम किया।(निहाबुल मोवद्दता)

आपकी कुन्नियत और आपके अल्क़ाब

आपकी कुन्नियत ‘‘ अबू मोहम्मद ’’ थी और आपके अल्क़ाब बेशुमार थे। जिनमें अस्करी , हादी , ज़की , खलिस , सिराज और इब्ने रज़ा ज़्यादा मशहूर हैं।(नूरूल अबसार पृष्ठ 150, शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210, दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 122 व मुनाक़िब इब्ने शहर आशोब जिल्द पृष्ठ 125 ) आपका लक़ब इसकरी इस लिये ज़्यादा मशहूर हुआ कि आप जिस महल्ले में ब मुक़ाम ‘‘ सरमन राय ’’ रहते थे उसे असकर कहा जाता था और ब ज़ाहिर इसकी वजह यह थी जब ख़लीफ़ा मोतसिम बिल्ला ने इस मुक़ाम पर लश्कर जमा किया था और ख़ुद भी क़याम पज़ीर था उसे ‘‘ असकर ’’ कहने लगे थे , और ख़लीफ़ा मुतावक्किल ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को मदीने से बुलवा कर यहीं मुक़ीम रहने पर मजबूर किया था। नीज़ यह भी था कि एक मरतबा ख़लीफ़ा ए वक़्त ने इमामे ज़माना को इसी मुक़ाम पर नव्वे हज़ार लशकर का मुआएना कराया था और आपने अपनी दो उंगलियां के दरमियान से अपने ख़ुदाई लशकर का मुताला करा दिया था। उन्हीं वजह की बिना पर इस मुका़म का नाम ‘‘ असकर ’’ हो गया था जहाँ इमाम अली नक़ी (अ.स.) और इमाम हसन असकरी (अ.स.) मुद्दतो मुक़ीम रह कर असकरी मशहूर हो गए।(बेहारूल अनवार जिल्द 12 पृष्ठ 154, दफ़यात अयान जिल्द 1 पृष्ठ 145, मजमूउल बहरैन पृष्ठ 322 दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163, तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 222 )

आपके अहदे हयात और बादशहाने वक़्त

आपकी विलादत 232 हिजरी में उस वक़्त हुई जब कि वासिक़ बिल्लाह बिन मोतसिम बादशाहे वक्त़ था जो 227 हिजरी में ख़लीफ़ा बना था।(तारीख़ अबूल फ़िदा) फिर 233 हिजरी में मुतावक्किल ख़लीफ़ा बना(तारीख़ इब्नुल वरा) जो हज़रत अली (अ.स.) और उनकी औलाद से सख़्त बुग़़्ज़ व कीना रखता था और उनकी मनक़स्त किया करता था।(हयातुल हैवान व तारीख़े कामिल) इसी ने 236 हिजरी में इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़्यारत को जुर्म क़रार दी और उनके मज़ार को ख़त्म करने की सई की।(तारीख़े कामिल) और इसी ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन मदीने से सरमन राय तलब करा लिया।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा) और आपको गिरफ़्तार करा के आपके मकान की तलाशी कराई।(दफ़अतिल अयान) फिर 247 हिजरी में मुन्तसर बिन मुतावक्किल ख़लीफ़ा ए वक़्त हुआ।(तारीख़े अबुल फ़िदा) फिर 248 हिजरी में मोतस्तईन ख़लीफ़ा बना।(अबूल फ़िदा) फिर 252 हिजरी में मुमताज़ बिल्ला ख़लीफ़ा हुआ।(अबुल फ़िदा) इसी ज़माने में अली नक़ी (अ.स.) को ज़हर से शहीद कर दिया गया।(नूरूल अबसार) फिर 255 हिजरी में मेंहदी बिल्लाह ख़लीफ़ा बना।(तारीख़ इब्ने अल वर्दी) फिर 256 हिजरी में मोतमिद बिल्ला ख़लीफ़ा हुआ।(तारीख़ अबुल फ़िदा) इसी ज़माने में 260 हिजरी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) ज़हर से शहीद हुए।(तारीख़े कामिल) इन तमाम खुल्फ़ा ने आपके साथ वही बरताव किया जो आले मोहम्मद (स अ व व ) के साथ बरताव किए जाने का दस्तूर चला आ रहा था।

चार माह की उम्र में मनसबे इमामत

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) कि उम्र जब चार माह के क़रीब हुई तो आपके वालिद अली नक़ी (अ.स.) ने अपने बाद के लिये मन्सबे इमामत की वसीअत की और फ़रमाया कि मेरे बाद यही मेरे जां नशीन होंगे और इस पर बहुत से लोगों को गवाह भी कर दिया।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 व दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 193 बहवाला ए उसूले काफ़ी)

अल्लामा इब्ने हजर मक्की का कहना है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) इमाम अली नक़ी (अ.स.) की औलाद में सब से ज़्यादा अज़िल अरफ़ा अला व अफ़ज़ल थे।

चार साल की उम्र में आपका सफ़रे ईराक़

मुतावक्किल अब्बासी जो आले मोहम्मद (स अ व व ) का हमेशा से दुश्मन था उसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) के वालिदे बुज़ुर्गवार इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन 239 हिजरी में मदीने से ‘‘ सरमन राय ’’ बुला लिया। आप ही के हमराह इमाम हसन असकरी (अ.स.) को भी जाना पड़ा। इस वक़्त आपकी उम्र चार साल चन्द माह की थी।(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 162 )

यूसुफ़े आले मोहम्मद(स. अ.) कुएं में

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) न जाने किस तरह अपने घर के कुएं में गिर गए। आपके गिरने से औरतों में कोहरामे अज़ीम बरपा हो गया। सब चीख़ने और चिल्लाने लगीं मगर हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) जो महवे नमाज़ थे मुतलक़ मुताअस्सिर न हुए और इतमिनान से नमाज़ का एख़तेताम किया। उसके बाद आपने फ़रमाया कि घबराओ नहीं हुज्जते ख़ुदा को कोई गज़न्द न पहुँचेगी। इसी दौरान में देखा कि पानी बलन्द हो रहा है और इमाम हसन असकरी (अ.स.) पानी में खेल रहे हैं।(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 179 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) और कमसिनी में उरूजे फ़िक्र

आले मोहम्मद (स अ व व ) जो तदब्बुरे क़ुरआनी और उरेजे फ़िक्र में ख़ास मक़ाम रखते हैं उनमें से एक बलन्द मक़ाम बुज़ुर्ग हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) हैं। उलमा ए फ़रीक़ैन ने लिखा है कि एक दिन आप एक ऐसी जगह खड़े रहे जिस जगह कुछ बच्चे खेल में मसरूफ़ थे। इत्तेफ़ाक़न उधर से आरिफ़े आले मोहम्मद (स अ व व ) जनाब बहलोल दाना गुज़रे। उन्होंने यह देख कर कि सब बच्चे खेल रहे हैं और एक ख़ूब सूरत सुखऱ् व सफ़ैद बच्चा खड़ा रो रहा है। उधर मुतावज्जे हुए और कहा ऐ नौनेहाल मुझे बड़ा अफ़सोस है कि तुम इस लिये रो रहे हो कि तुम्हारे पास वह खिलौने नहीं जो इन बच्चों के पास हैं। सुनो ! मैं अभी अभी तुम्हारे लिये खिलौने ले कर आता हूँ। यह कहना था कि आप कमसिनी के बवजूद बोले , अना न समझ। हम खेलने के लिये नहीं पैदा किये गए हैं। हम इल्मो इबादत के लिये ख़ल्क़ हुए हैं। उन्होंने पूछा कि तुम्हें यह क्यों कर मालूम हुआ कि ग़रज़े खि़लक़त इल्मो इबादत है। आपने फ़रमाया कि इसकी तरफ़ क़ुरआने मजीद रहबरी करता है। क्या तुमने नहीं पढ़ा कि ख़ुदा फ़रमाता है , ‘‘ अफ़सबतुम इन्नमा ख़लक़ना कुम अबसा ’’ क्या तुम ने यह समझ लिया है कि हम ने तुम को अबस(खेल कूद) के लिये पैदा किया है ? और क्या तुम हमारी तरफ़ पलट कर न आओगे। यह सुन कर बहलोल हैरान रह गए और यह कहने पर मजबूर हो गए कि ऐ फ़रज़न्द तुम्हें क्या हो गया था कि तुम रो रहे थे , तुम से गुनाह का तसव्वुर तो हो ही नहीं सकता क्यों कि तुम बहुत कमसिन हो। आपने फ़रमाया कि कमसिनी से क्या होता है , मैंने अपनी वालेदा को देखा है कि बड़ी लकड़ियों को जलाने के लिये छोटी लकड़ियां इस्तेमाल करती हैं। मैं डरता हूँ कि कहीं जहन्नम के बड़े ईंधन के लिये हम छोटे और कमसिन लोग इस्तेमाल न किये जाऐ।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 124, नूरूल अबसार पृष्ठ 150, तज़केरतुल मासूमीन पृष्ठ 230 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) के साथ बादशहाने वक़्त सुलूक और तरज़े अमल

जिस तरह आपके आबाओ अजदाद के वुजूद को उनके अहद के बादशाह अपनी सलतनत और हुक्मरानी की राह में रूकावट समझते रहे। उनका यह ख़्याल रहा कि दुनियां के क़ुलूब उनकी तरफ़ माएल हैं क्यों कि यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) और आमाले सालेह के ताजदार हैं लेहाज़ा उनको आवाम की नज़रों से दूर रखा जाए वरना इमकान क़वी है कि लोग उन्हें अपना बादशाहे वक़्त तसलीम कर लेंगे। इसके अलावा यह बुग़्ज़ो हसद भी था कि इनकी इज़्ज़त बादशाहे वक़्त के मुक़ाबले में ज़्यादा की जाती है और यह कि इमाम मेहदी (अ.स.) उन्हीं की नस्ल से होंगे जो सलतनतों का इन्के़लाब लाऐंगे। इन्ही तसव्वुरात ने जिस तरह आपके बुज़ुर्गों को चैन न लेने दिया और हमेशा मसाएब की अमाजगा बनाए रखा। इसी तरह आपके अहद के बादशाहों ने भी आपके साथ किया। अहदे वासिक़ में आपकी विलादत हुई और अहदे मुतवक्किल के कुछ अय्याम में बचपना गुज़ारा।

मुतवक्किल जो आले मोहम्मद (स अ व व ) का जानी दुश्मन था उसने सिर्फ इस जुर्म में कि आले मोहम्मद (स अ व व ) की तारीफ़ की है इब्ने सकीत शायर की ज़ुबान गुद्दी से खिंचवा ली।(अबुल फ़िदा जिल्द 2 पृष्ठ 14 ) उसने सब से पहले तो आप पर यह ज़ुल्म किया कि चार साल की उम्र में तरके वतन करने पर मजबूर किया यानी इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन मदीने से सामरा बुलवाया जिनके हमराह इमाम हसन असकरी (अ.स.) को लाज़मन जाना पड़ा। फिर वहां आपके घर के लोगों के कहने सुन्ने से तलाशी कराई और आपके वालिदे माजिद को जानवरों से फड़वा डालने की कोशिश की। ग़रज़ कि जो सई आले मोहम्मद (अ.स.) को सताने की मुमकिन थी , वह सब उसने अपने अहदे हयात में कर डाली। उसके बाद उसका बेटा मुस्तनसर ख़लीफ़ा हुआ। यह भी अपने बाप के नक्शे क़दम पर चल कर आले मोहम्मद (स अ व व ) को सताने की सुन्नत अदा करता रहा और इसकी मुसलसल कोशिश यही रही कि इन लोगों को सुकून नसीब न होने पाये। उसके बाद मुस्तईन का जब अहदे नव आया तो उसने आपके वालिदे माजिद को क़ैद ख़ाने में रखने के साथ साथ उसकी सई पैहम की कि किसी सूरत से इमाम हसन असकरी (अ.स.) को क़त्ल करा दे और इसके लिये उसने मुख़्तलिफ़ रास्ते तलाश किये।

मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक मरतबा उसने अपने शौक़ के मुताबिक़ एक निहायत ज़बरदस्त घोड़ा ख़रीदा लेकिन इत्तेफ़ाक़ से वह इस दर्जा सरकश निकला कि उसने बड़े बड़े लोगों को सवारी न दी और जो उसके क़रीब गया उसको ज़मीन पर दे मारा और टापों से कुचल डाला। एक दिन ख़लीफ़ा मुस्तईन बिल्लाह के एक दोस्त ने राय दी कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) को बुला कर हुक्म दिया जाय कि वह इस पर सवारी करें , अगर वह इस पर कामयाब हो गये तो घोड़ा ठीक हो जायेगा , और अगर कामयाब न हुए और कुचल डाले गए तो तेरा मक़सद हल हो जायेगा। चुनान्चे उसने ऐसा ही किया लेकिन अल्लाह रे शाने इमामत जब आप उसके क़रीब पहुँचे तो वह इस तरह भीगी बिल्ली बन गया कि जैसे कुछ जानता ही न हो। बादशाह यह देख कर हैरान रह गया और उसके पास इसके सिवा कोई चारा न था कि घोड़ा हज़रत के हवाले कर दे।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 210 )

फिर मुस्तईन के बाद जब मोतज़ बिल्लाह ख़लीफ़ा हुआ तो उसने भी आले मोहम्मद (स अ व व ) को सताने की सुन्नत जारी रखी और इसकी कोशिश करता रहा कि अहदे हाज़िर के इमाम ज़माना और फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) इमाम अली नक़ी (अ.स.) को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ कर दे। चुनान्चे यही हुआ और उसने 254 ई 0 में आपके वालिदे बुज़ुर्गवार को ज़हर से शहीद करा दिया। यह एक मुसीबत थी कि जिसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) को बे इन्तेहा मायूस कर दिया। इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत के बाद इमाम हसन असकरी (अ.स.) ख़तरात में महसूर हो गये , क्यो कि हुकूमत का रूख़ अब आप ही की तरफ़ रह गया था। आपको खटका लगा ही था कि हुकूमत की तरफ़ से अमल दरामद शुरू हो गया। मोतज़ ने एक शक़ीए अज़ली और नासबे अब्दी इब्ने यारिश की हिरासत और नज़र बन्दी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) को दे दिया। उसने उनको सताने में कोई दक़ीक़ा नहीं छोड़ा लेकिन आखि़र में वह आपका मोतक़िद बन गया। आपकी इबादत गुज़ारी और रोज़ा दारी ने उस पर ऐसा गहरा असर किया कि उसने आपकी खि़दमत में हाज़िर हो कर माफ़ी मांग ली और आपको दौलत सरा तक पहुँचा दिया।

अली बिन मोहम्मद ज़ियाद का बयान है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने मुझे एक ख़त तहरीर फ़रमाया जिसमें लिखा कि तुम ख़ाना नशीन हो जाओ क्यों कि एक बहुत बड़ा फ़ितना उठने वाला है। ग़रज़ कि थोड़े दिनों के बाद एक हंगामा ए अज़ीम बरपा हुआ और हुज्जाज बिन सुफ़यान ने मोतज़ को क़त्ल कर दिया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 127 )

फिर जब मेहदी बिल्लाह का अहद आया तो उसने भी बदस्तूर अपना अमल जारी रखा और हज़रत को सताने में हर क़िस्म की कोशिश करता रहा। एक दिन उसने सालेह बिन वसीफ़ नामी नासेबी के हवाले आपको कर दिया और हुक्म दिया कि हर मुम्किन तरीक़े से आपको सताये। सालेह के मकान के क़रीब एक बहुत ख़राब हुजरा था जिसमें आप क़ैद किये गए। सालेह बद बख़्त ने जहां और तरीक़े से सताया एक तरीक़ा यह भी था कि आपको खाना और पानी से भी हैरान और तंग रखता था। आखि़र ऐसा होता रहा कि आप तयम्मुम से नमाज़ अदा फ़रमाते रहे। एक दिन उसकी बीवी ने कहा कि ऐ दुश्मने ख़ुदा यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) हैं। इनके साथ रहम का बरताव कर। उसने कोई तवज्जो न की। एक दिन का ज़िक्र है , बनी अब्बासिया के एक गिरोह ने सालेह से जा कर दरख़्वास्त की कि हसन असकरी पर ज़ियादा ज़ुल्म किया जाना चाहिये। उसने जवाब दिया कि मैंने उनके ऊपर दो ऐसे शख़्सों को मुसल्लत कर दिया है जिनका ज़ुल्मों तशद्दुद में जवाब नहीं है लेकिन मैं क्या करूं कि उनके तक़वे और उनकी इबादत गुज़ारी से वह इस दर्जा मुताअस्सिर हो गये हैं कि जिसकी कोई हद नहीं। मैंने उनसे जवाब तलबी की तो उन्होंने क़ल्बी मजबूरी ज़ाहिर की। यह सुन कर वह लोग मायूस वापिस गये।(तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 223 )

ग़रज़ कि मेहदी का ज़ुल्म तशदद्दुद ज़ोरो पर था और यही नहीं कि वह इमाम हसन असकरी (अ.स.) पर सख़्ती करता था बल्कि यह कि वह उनके मानने वालों को बराबर क़त्ल करता रहता था। एक दिन आपके एक साहबी अहमद बिन मोहम्मद ने एक अरीज़े के ज़रिये से उसके ज़ुल्म की शिकायत की तो आपने तहरीर फ़रमाया कि घबराओ नहीं कि मेहदी की उम्र अब सिर्फ़ पांच दिन बाक़ी रह गई है। चुनान्चे छटे दिन उसे कमाले ज़िल्लत व ख़वारी के साथ क़त्ल कर दिया गया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 126 )

इसी के अहद में जब आप क़ैद ख़ाने में पहुँचे तो ईसा बिन फ़तेह से फ़रमाया कि तुम्हारी उम्र इस वक़्त 65 साल एक माह दो यौम की है। उसने नोट बुक निकाल कर उसकी तसदीक़ की। फिर आपने फ़रमाया कि ख़ुदा तुम्हें औलादे नरीना अता करेगा। वह ख़ुश हो कर कहने लगा मौला! क्या आपको ख़ुदा फ़रज़न्द न देगा ? आपने फ़रमाया ख़ुदा की क़सम अन्क़रीब मुझे मालिक ऐसा फ़रज़न्द देगा जो सारी कायनात पर हुकूमत करेगा और दुनियां को अदलो इंसाफ़ से भर देगा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 101 )

फिर जब उसके बाद मोतमिद ख़लीफ़ा हुआ तो उसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) पर ज़ुल्मो जौरो सितम व इस्तेबदाद का ख़ात्मा कर दिया।

इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत और इमाम हसन असकरी (अ.स.) का आग़ाज़े इमामत

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने अपने इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शादी नरजिस ख़ातून से कर दी जो क़ैसरे रोम की पोती और शमऊन वसी ए ईसा (अ.स.) की नस्ल से थीं।(जिला अल उयून पृष्ठ 298 ) इसके बाद आप 3 रजब 254 ई 0 को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ हुए। आपकी शहादत के बाद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की इमामत का आग़ाज़ हुआ। आपके तमाम मोतक़दीन ने आपको मुबारक बाद दी और आप से हर क़िस्म का इस्तेफ़ादा शुरू कर दिया। आपकी खि़दमत में आमदो रफ़्त और सवालात व जवाबात का सिलसिला जारी हो गया। आपने जवाबात में ऐसे हैरत अंगेज़ मालूमात का इन्केशाफ़ फ़रमाया कि लोग दंग रह गए। आपने इल्मे ग़ैब और इल्मे बिलमौत तक का सबूत पेश फ़रमाया और इसकी भी वज़ाहत की कि फ़लां शख़्स को इतने दिनों में मौत आ जायेगी।

अल्लामा मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक शख़्स ने अपने वालिद समेत हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की राह में बैठ कर यह सवाल करना चाहा कि बाप को पांच सौ दिरहम और बेटे को तीन सौ दिरहम अगर इमाम दें तो सारे काम हो जाऐ , यहां तक कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) इस रास्ते पर आ पहुँचे। इत्तेफ़ाक़ यह दोनों इमाम (अ.स.) को पहचानते न थे। इमाम (अ.स.) ख़ुद इन दोनों के क़रीब गए और उन से कहा कि तुम्हें आठ सौ दिरहम की ज़रूरत है। आओ मैं तुम्हें दे दूं। दोनों हमराह हो लिये और रक़म माहूद हासिल कर ली। इसी तरह एक और शख़्स क़ैद ख़ाने में था। उसने क़ैद की परेशानी की शिकायत इमाम (अ.स.) को लिख कर भेजी और तंग दस्ती का ज़िक्र शर्म की वजह से न किया। आपने तहरीर फ़रमाया कि तुम आज ही क़ैद ख़ाने से रिहा हो जाओगे और तुम ने जो शर्म से तंग दस्ती का ज़िक्र नहीं किया , इसके मुताअल्लिक़ मालूम करो कि मैं अपने मुक़ाम पर पहुँचते ही सौ दिनार भेज दूंगा। चुनान्चे ऐसा ही हुआ। इसी तरह एक शख़्स ने आपसे अपनी तंग दस्ती की शिकायत की। आपने ज़मीन कुरेद कर एक अशरफ़ी की थैली निकाली और उसके हवाले कर दी। इसमें सौ दीनार थे। इसी तरह एक शख़्स ने आपको तहरीर किया कि मिशक़ात के मानी क्या हैं ? नीज़ यह कि मेरी औरत हामेला है इससे जो फ़रज़न्द पैदा होगा उसका नाम रख दीजिए। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया कि मिशक़ात से मुराद क़ल्बे मोहम्मदे मुस्तफ़ा (स अ व व ) और आखि़र में लिख दिया ‘‘ अज़मुल्लाह अजरकुम व अख़लफ़ अलैक ’’ ख़ुदा तुम्हें अज्र दे और नेमुल बदल अता करे। चुनान्चे ऐसा ही हुआ कि उसके यहां मुर्दा लड़का पैदा हुआ। इसके बाद उसकी बीवी हामला हुई , फ़रज़न्दे नरीना मुतावल्लिद हुआ। मुलाहेज़ा हों।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 211 )

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि हसन इब्ने ज़रीफ़ नामी एक शख़्स ने हज़रत से मिलकर दरयाफ़्त किया कि क़ाएमे आले मोहम्मद (अ.स.) पोशीदा होने के बाद कब ज़ुहूर करेंगे ? आपने तहरीर फ़रमाया जब ख़ुदा की मसलहत होगी। इसके बाद लिखा कि तुम तप रबआ का सवाल करना भूल गए जिसे तुम मुझसे पूछना चाहते हो , तो देखो ऐसा करो कि जो इसमें मुबतिला हो उसके गले में आयत ‘‘ या नार कूनी बरदन सलामन अला इब्राहीम ’’ लिख कर लटका दो शिफ़ायाब हो जायेगा। अली बिन ज़ैद इब्ने हुसैन का कहना है कि मैं एक घोड़े पर सवार हो कर हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ तो आपने फ़रमाया कि इस घोड़े की उम्र सिर्फ़ एक रात बाक़ी रह गई है चुनान्चे वह सुबह होने से पहले मर गया। इस्माईल बिन मोहम्मद का कहना है कि मैं हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ और मैंने उनसे क़सम खा कर कहा कि मेरे पास एक दिरहम भी नहीं है। आपने मुस्कुरा कर फ़रमाया कि क़सम मत खाओ तुम्हारे घर दो सौ दीनार मदफ़ून हैं। यह सुन कर वह हैरान रह गया। फिर हज़रत ने गु़लाम को हुक्म दिया कि उन्हें अशरफ़ियां दे दो।

अब्दी रवायत करता है कि मैं अपने फ़रज़न्द को बसरे में बिमार छोड़ कर सामरा गया और वहां हज़रत को तहरीर किया कि मेरे फ़रज़न्द के लिया दुआ ए शिफ़ा फ़रमाएं। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया ‘‘ ख़ुदा उस पर रहमत नाज़िल फ़रमाए ’’ जिस दिन यह ख़त उसे मिला उसी दिन उसका फ़रज़न्द इन्तेक़ाल कर चुका था। मोहम्मद बिन अफ़आ कहता है कि मैंने हज़रत की खि़दमत में एक अरज़ी के ज़रिये से सवाल किया कि ‘‘ क्या आइम्मा को भी एहतेलाम होता है ? ’’ जब ख़त रवाना कर चुका तो ख़्याल हुआ कि एहतेलाम तो वसवसए शैतानी से हुआ करता है और इमाम (अ.स.) तक शैतान पहुँच नहीं सकता। बहर हाल जवाब आया कि इमाम नौम और बेदारी दोनों हालतों में वसवसाए शैतानी से दूर होते हैं जैसा कि तुम्हारे दिल में भी ख़्याल पैदा हुआ है , फिर एहतेलाम क्यों कर हो सकता है। जाफ़र बिन मोहम्मद का कहना है कि मैं एक दिन हज़रत की खि़दमत में हाज़िर था , दिल में ख़्याल आया कि मेरी औरत जो हामेला है अगर उससे फ़रज़न्दे नरीना पैदा हो तो बहुत अच्छा हो। आपने फ़रमाया कि ऐ जाफ़र लड़का नहीं लड़की पैदा होगी। चुनान्चे ऐसा ही हुआ।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 128 )


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