चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.


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मोहम्मद नफ़से ज़किया व इब्राहीम

हज़रत अब्दुल्लाह महज़ उस ज़माने में रूपोश हो गये थे और सहराई अरबों का भेस बदल कर रहने लगे थे। चुनान्चे उसी भेस में वह छुप कर एक मंज़िल पर जनाबे अब्दुल्लाह महज़ से मिले। उन्होंने बेटों से कहा कि इस ज़िल्लत की ज़िन्दगी से इज़्ज़त की मौत बेहतर है। मन्सूर उस ज़माने में कूफ़े में था। क़ैदी उसके सामने पेश हुये। चन्द रोज़ बाद ही यह लोग मरने लगे। क़यामत यह आई कि उनके मुरदों को भी क़ैद ख़ाने से बाहर न निकाला गया। वहीं मरते और सड़ते रहे। इससे वहां की हवा और ज़्यादा गन्दी हो गई और एक ऐसी वबा फैली कि हर रोज़ दो चार मरने लगे। हक़ीक़त यह है कि सादात कशी में बनी अब्बास के मज़ालिम बनी उमय्या से भी कहीं ज़्यादा बढ़ गये थे। बनी उमय्या ने अगर ऐसा किया तो गै़र हो कर क़दीमी दुश्मन बन कर यह तो अपने कहलाते थे माले दुनियां की तमा और हुकूमत की हिर्स ने उनकी आखों पर ऐसा परदा डाला कि नेक व बद की तमीज़ बाक़ी न रही और दुनियां के पीछे आख़ेरत को बिल्कुल भूल गये। बहर हाल ग़रीब सादात ने इस क़ैद ख़ाने में बड़ी इबरत नाक हालत में ज़िन्दगी बसर की लेकिन इस हालत में भी ख़ुदा की याद से ग़ाफ़िल न रहे। शबो रोज़ तिलावते कलामे पाक से काम रहता था। क़ैद ख़ाने की तारीकी में दिन के अवक़ात का चूंकि पता न चलता था , इस लिये अपनी तिलावत को पांच हिस्सों में तक़सीम कर दिया था और उन्हीं से अवक़ाते नमाज़ का पता लगाते थे। उनको इस क़ैद ख़ाने में कई कई वक़्त फ़ाके से गुज़र जाते थे और कोई पुरसाने हाल न था बल्कि खाने का क्या ज़िक्र पानी भी ज़रूरत भर न मिलता था।

अब इधर का हाल सुनों , मोहम्मद नफ़्से ज़किया ने बहुत जल्द एक फ़ौज फ़राहम कर के मन्सूर पर चढ़ाई की और मदीने पर क़ब्ज़ा कर लिया मगर चन्द ही रोज़ बाद मन्सूर की फ़ौजों ने फिर आ घेरा। मोहम्मद उनके मुक़ाबले की ताब न ला सके आखि़र शहीद हो गये। उनका सर काट कर के मन्सूर के पास भेज दिया गया। इस ज़ालिम ने इस सर को एक क़ैद ख़ाने में रख कर क़ैद ख़ाने में उनके बूढ़े बाप अब्दुल्लाह महज़ के पास भेज दिया। जनाबे अब्दुल्लाह उस वक़्त नमाज़ पढ़ रहे थे कि सर मुसल्ले के पास रखा गया। नमाज़ से फ़ारिग़ हो कर जब देखा तो जवान बेटे का सर रखा हुआ है। बे साख़्ता एक आह सीने से निकली , सर को छाती से लगा लिया और कहने लगे बेटा , शाबाश तुम बे शक उन्हीं वायदा वफ़ा करने वालों में से हो जिनकी तारीफ़ ख़ुदा ने क़ुरआन में की है। बेटा तुम ऐसे जवान थे कि तुम्हारी तलवार ने तुमको ज़िल्लत से बचा लिया और तुम्हारी परहेज़गारी ने तुम को गुनाहों से महफ़ूज़ रखा। फिर सर लाने वाले से कहा कि मन्सूर से कह देना कि हम तो मक़तूल हो ही चुके , अब तुम्हारी बारी है। अब हमारा और तुम्हारा इंसाफ़ ख़ुदा के यहां होगा। यह कह के एक ठंडी सांस भरी और दम निकल गया।

अब दूसरे भाई यानी इब्राहीम का हाल सुनो , यह भी मुद्दतों इधर उधर घूमते फिरे आखि़र उन्होंने भी एक फ़ौज जमा कर के मिस्र की हुकूमत हासिल कर ली। जिस ज़माने में नफ़्से ज़किया मन्सूर से लड़ रहे थे। उन्होंने भाई की मद्द को आना चाहा , मगर मन्सूर ने रास्ते बन्द कर रखे थे , मुम्किन न हुआ। मोहम्मद पर फ़तेह पाने के बाद मन्सूर ने इब्राहीम का भी ख़ात्मा कर दिया। सूरत यह हुई कि इब्राहीम अपने लशकर को साथ लिये कूफ़े की तरफ़ रवाना हुए। मक़ाम ‘‘ अल अहमरा ’’ में ख़ेमा ज़न थे कि मन्सूर का लशकर भी वहां पहुँच गया। दोनों लशकरों में सख़्त मुक़ाबला हुआ। सैकड़ों आदमी मारे गये। इब्राहीम की फ़तेह के आसार नुमायां हो चुके थे कि यका यक मामेला दिगर गूँ हो गया और इब्राहीम की फ़ौज ने भागते हुए दुश्मन का पीछा किया मगर नेक दिल इब्राहीम को उनकी तबाह हालत पर रहम आ गया , अपने सिपाहियों को ताअक़्कु़ब से रोक दिया। मन्सूर के सरदार ‘‘ ऐनी ’’ ने इस मौक़े से फ़ायदा उठाया और अपनी तितर बितर क़ुव्वत को जमा कर के फिर एक दम हमला कर दिया। इब्राहीम की फ़ौज को इस बलाए नागहानी की क्या ख़बर थी। वह अपनी फ़तेह देख कर अपनी कमरे खोल चुके थे कि शिकस्त खाई दुश्मन की फ़ौज फिर लौट पड़ी। अब इब्राहीम को मुक़ाबला करना दुश्वार हो गया। फ़ौज तितर बितर हो गई। मजबूरन तलवार ले कर ख़ुद मुक़ाबले को निकल पड़े। देर तक हाशमी शुजाअत के जौहर दिखाते रहे। आखि़र कहां तक लड़ते। दुश्मन ने चारों तरफ़ से घेर कर हलाक कर दिया। यह वाक़ेया 25 ज़िक़ादा 145 हिजरी का है। इब्राहीम वह शख़्स थे कि पूरे पांच बरस रूपोश रहे थे और मन्सूर बावजूद इतनी क़ुदरतो ताक़त के किसी तरह उनको गिरफ़्तार न कर सका था।

इब्राहीम और नफ़से ज़किया के क़त्ल होने के बाद भी मन्सूर के मज़ालिम सादात पर कम न हुए। जहां जिसको पाया बिना क़त्ल किये न छोड़ा। उस ज़माने में सादात की वह तबाही हुई कि बयान में नहीं आ सकती। अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि मन्सूर के ज़माने में बे शुमार औलादे अली (अ.स.) शहीद किये गये और बहुतों को दीवार में चिन्वा दिया गया। मन्सूर उस ज़माने में बग़दाद में महल बनवा रहा था। इसमें जहां औरो को ज़िन्दा चिनवा दिया था एक हसीन नौजवान को भी चुनवाया , वह चूंकि बहुत ही हसीनों ख़ूब सूरत था। उसके चेहरे पर मेमार की नज़र पड़ी तो बे साख़्ता उसका दिल रोने लगा। हुक्म से मजबूर था। दीवार में चुनते चुनते उसे मौक़ा मिल गया। बोला कि ऐ फ़रज़न्दे रसूल (अ.स.) आप घबरायें नहीं , मैं सांस के लिये सूराख़ छोड़ देता हूँ और रात को आ कर निकाल लूंगा। चुनांचे वह रात की तारीकी में दीवार के क़रीब आया और ईंटें हटा कर उस ना जवान बाग़े रिसालत को दीवार से निकाल दिया और कहा कि आप सिर्फ़ इतना कीजिये कि इस तरह ज़िन्दा बच कर किसी तरफ़ चले जाइये कि आपका पता निशान न मिल सके और ऐ फ़रज़न्दे रसूल (अ.स.) आप अपने नाना मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) से मेरी बख़्शिश की सिफ़ारिश फ़रमाईयेगा।

उन्होंने शुक्रिया अदा किया और कहा ऐ शेख़ अगर तुम से हो सके तो मेरी ज़ुल्फ़ों को तराश लो और किसी रात को मेरी दुखिया मां के पास फ़लां महल्ले में जा कर उन्हें मेरी ज़ुल्फ़ें दे कर कह दें कि मैं ज़िन्दा हूँ और अन्क़रीब मिलंूगा। इस मेमार का बयान है कि मैं उनकी ख़्वाहिश के मुताबिक़ उनके मकान पर पहुँचा तो उनकी माँ बैठी रो रही थीं। मैंने उन्हें सुबूते हयात के लिये ज़ुल्फ़ें दे कर नवेदे ज़िन्दगी सुनाई और वापस चला आया।(जिलाउल उयून पृष्ठ 269 प्रकाशित ईरान व सवानेह उमरी चहारदा मासूमीन हिस्सा 2 पृष्ठ 7 )

तवारीख़ में है कि जनाबे नफ़्से ज़किया के शहीद होने के बाद से जहां मज़ालिम का पूरा ज़ोर पैदा हो गया था वहां इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) भी महफ़ूज़ नहीं रह सके। इमाम शब्लन्जी लिखते हैं कि उनको क़त्ल कराने के बाद मन्सूर ने इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) को तलब किया और उनकी सख़्त तहदीद की और क़त्ल की खुले अल्फ़ाज़ मे धमकी दी।(नूरूल अबसार पृष्ठ 133 )

मन्सूर का हज और इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) पर बोहतान तराज़ी हालात की रौशनी में हर बा फ़हम इसका अन्दाज़ा कर सकता है कि हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की ज़िन्दगी किस दौर से गुज़र रही थी और मन्सूर किस ताक में था और किस तरह बहाना तलाश कर रहा था।

तारीख़े हबीबुस सियर में है कि 144 हिजरी में मन्सूर अब्बासी हज के लिये गया। मन्सूर ने हज से फ़राग़त की तो एक शख़्स ने उससे कहा कि इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) तुम्हारे खि़लाफ़ लोगों को भड़काते और उकसाते हैं। उसने इमाम (अ.स.) को बुला कर उनसे कहा कि मुझे ऐसा मालूम हुआ है कि आप मेरी हुकूमत के खि़लाफ़ प्रोपेगन्डा करते और लोगों को उकसाते और भड़काते हैं। आपने इरशाद फ़रमाया , ऐ बादशाह ! यह बिल्कुल ग़लत है और तूझे मेरे कहने पर यक़ीन न आये तो तू उस शख़्स को मेरे सामने तलब कर। मन्सूर ने उसे बुलाया। आपने फ़रमाया कि तूने मुझ पर क्यों बोहतान बांधा हैं ? उसने कहा कि मैंने सच कहा है। इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया कि क्या तू क़सम खा कर कह सकता है ? उसने कहा हां , फिर उसने ख़ुदा की क़सम खाई। आपने कहा इस तरह नहीं जिस तरह मैं कहूँ उस तरह क़सम खा। चुनान्चे आपने फ़रमाया कि अपनी ज़बान से यह कह कर क़सम खा ‘‘ बरत मिन हौल अल्लाह ’’ मैं ख़ुदा की क़ुव्वत व ताक़त से दूर हट कर अपने भरोसे पर क़सम खाता हूँ। उसने पहले तो हल्का सा इन्कार किया फिर वह क़सम खा गया। उसका नतीजा यह हुआ कि उसी जगह गिर कर हलाक हो गया।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 120 प्रकाशित मिस्र)

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) का दरबारे मन्सूर में एक तबीबे हिन्द से तबादला ए ख़यालात

अल्लामा रशीद उद्दीन अबू अब्दुल्लाह मोहम्मद बिन अली इब्ने शहरे आशोब माज़न्द्रानी अल मतूफ़ी 588 हिजरी ने दरबारे मन्सूर का एक अहम वाक़ेया नक़ल फ़रमाया है जिसमें मुफ़स्सल तौर पर यह वाज़े किया गया है कि एक तबीब जिसको अपनी क़ाबलियत पर बड़ा भरोसा और ग़ुरूर था वह इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के सामने किस तरह सिपर अन्दाख़्ता हो कर आपके कमालात का मोतरिफ़ हो गया। हम मौसूफ़ की अरबी इबारत का तरजुमा अपने फ़ाज़िल मआसर के अल्फ़ाज़ में पेश करते हैं।

एक बार हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) मन्सूर दवानक़ी के दरबार में तशरीफ़ फ़रमा थे। वहां एक तबीबे हिन्दी तिब की बाते बयान कर रहा था और हज़रत ख़ामोश बैठे सुन रहे थे। जब वह कह चुका तो हज़रत से मुख़ातिब हो कर कहने लगा। अगर कुछ पूछना चाहें तो शोक़ से पूछें। आपने फ़रमाया , मैं क्या पूछूँ , मुझे तुझ से ज़्यादा मालूम है। तबीब अगर यह बात है तो मैं भी कुछ सुनूं। इमाम (अ.स.) जब किसी मर्ज़ का ग़लबा हो तो उसका इलाज ज़िद से करना चाहिये यानी हार , गर्म का इलाज बारद सर्द से , तर का ख़ुश्क से , ख़ुश्क का तर से और हर हालत में अपने ख़ुदा पर भरोसा रखे। याद रख मेदा तमाम बिमारियों का घर है और परहेज़ सौ दवाओं की एक दवा है। जिस चीज़ का इंसान आदी हो जाता है उसके मिजाज़ के मुवाफ़िक़ और उसकी सेहत का सबब बन जाती है। तबीब बे शक आपने जो बयान फ़रमाया है असली तिब यही है। इमाम (अ.स.) यह न समझना चाहिये कि मैंने जो बयान किया है यह तिब की किताबें पढ़ कर हासिल किया है बल्कि यह उलूम मुझको ख़ुदा की तरफ़ से मिले हैं। अब बता तू ज़्यादा इल्म रखता है या मैं ? तबीब मैं। इमाम (अ.स.) अच्छा मैं चन्द सवाल करता हूँ उनका जवाब दे।

1. आंसुओं और रूतूबतों की जगह सर में क्यों है ?

2. सर पर बाल क्यों हैं ?

3. पेशानी बालों से खाली क्यों है ?

4. पेशानी पर ख़त और शिकन क्यों हैं ?

5. दोनों पल्कें आंखों के ऊपर क्यों हैं ?

6. नाक दोनों आंखों के दरमियान क्यों है ?

7. आंखें बादामी शक्ल की क्यों हैं ?

8. नाक का सूराख़ नीचे की तरफ़ क्यो है ?

9. मूंह पर दो होंठ क्यों बनाये गये हैं ?

10. सामने के दांत तेज़ और दाढ़ें चौड़ी क्यों है और उन दोनों के बीच में लम्बे दांत क्यों हैं ?

11. दोनों हथेलियां बालों से ख़ाली क्यों हैं ?

12. मर्दो के दाढ़ी क्यों होती है ?

13. नाख़ून और बालों में जान क्यों नहीं ?

14. दिल सनोबरी शक्ल का क्यों है ?

15. फ़ेफड़े के दो टुकड़े क्यों हैं और वह अपनी जगह हरकत क्यों करता हैं ?

16. जिगर की शक्ल मोहद्दब क्यों है ?

17. गुर्दे की शक्ल लोबिये के दाने की तरह क्यों होती है ?

18. घुटने आगे को झुकते हैं पीछे को क्यों नहीं झुकते ?

19. दोनों पावों के तलवे बीच से ख़ाली क्यों होते हैं ?

तबीब मैं इन बातों का जवाब नहीं दे सकता। इमाम (अ.स.) ख़ुदा के फ़ज़्ल से मैं इन सब सवालों का जवाब जानता हूँ। तबीब ने कहा कि बराऐ करम बयान फ़रमाइये।

इमाम (अ.स.) ने फरमायाः

1. सर अगर आंसुओं और रूतूबतों का मरकज़ न होता तो ख़ुश्की की वजह से टुकड़े टुकड़े हो जाता।

2. बाल इस लिये सर पर हैं कि उनकी जड़ों से तेल वग़ैरा दिमाग़ तक पहुँचता रहे और बहुत से दिमाग़ी अबख़रे निकलते रहें , दिमाग़ गर्मी और सर्दी से महफ़ूज़ रहे।

3. पेशानी बालों से इस लिये ख़ाली है कि इस जगह से आंखों में नूर पहुँचता है।

4. पेशानी में लकीरें इस लिये हैं कि सर से जो पसीना गिरे वह आंखों में न जा पाये। जब शिकनों में पसीना जमा हो तो इंसान उसे पोंछ कर फे़क दे जिस तरह ज़मीन पर पानी जारी होता है तो गढ़ों में जमा हो जाता है।

5. पलकें इस लिये आंखों पर क़रार दी गई हैं कि आफ़ताब की रौशनी इतनी उन पर पड़े जितनी ज़रूरत है और ब वक़्ते ज़रूरत बन्द हो कर आंखों की हिफ़ाज़त कर सके और सोने में मद्द दे सकें। तुम ने देखा होगा की जब इंसान ज़्यादा रौशनी में बलन्दी की तरफ़ किसी चीज़ को देखना चाहता है तो हाथ आंखों के ऊपर रख कर साया कर लेता है।

6. नाक को दोनों आंखों के बीच में इस लिये क़रार दिया गया है कि मजमा ए नूर से रौशनी तक़सीम हो कर बराबर दोनों आंखों को पहुँचे।

7. आंखों को बदामी शक्ल का इस लिये बनाया गया है कि बा वक़्ते ज़रूरत सलाई के ज़रिये से दवा , सुरमा वग़ैरा इसमें आसानी से पहुँच जायें। अगर आंख चकोर या गोल होती तो सलाई का उसमें फिरना मुश्किल होता। दवा उसमें ब ख़ूबी न पहुँच सकती और बीमारी दफ़ा न होती।।

8. नाक का सूराख़ नीचे को इस लिये बनाया कि दिमाग़ी रूतूबतें आसानी से निकल सकें अगर ऊपर को होता तो यह बात न होती और दिमाग़ तक किसी भी चीज़ की बू जल्दी से न पहुँच सकती।

9. होंठ इस लिये मुंह पर लगाये गये कि जो रूतूबतें दिमाग़ से मुंह मे आयें वह रूकी रहें और खाना भी इंसान के इख़्तियार में रहे , जब चाहे फेकें और थूक दे।

10. दाढ़ी मर्दों को इस लिये दी कि मर्द और औरत में तमीज़ हो जाय।

11. अगले दांत इस लिये तेज़ हैं कि किसी चीज़ का काटना सहल हो और दाढ़ों को चौड़ा इस लिये बनाया कि ग़िज़ा पीसना और चबाना आसान हो। इन दोनों के दरमियान लम्बे दांत इस लिये बनाये कि दोनों के इस्तेहकाम के बाएस हों जिस तरह मकान की मज़बूती के बाएस सुतून (खम्बे) होते हैं।

12. हथेलियों पर बाल इस लिये नहीं कि किसी चीज़ को छूने से इसकी नरमी , सख़्ती , गर्मी और सर्दी वग़ैरा आसानी से मालूम हो जाय। बालों की सूरत में यह बात हासिल न होती।

13. बाल और नाख़ूनों में जान इस लिये नहीं कि इन चीज़ों का बढ़ना बुरा मालूम होता है और नुक़्सान देह है , अगर इन में जान होती तो काटने में तकलीफ़ होती।

14. दिल सनोबरी शक्ल यानी सर पतला और दुम चौड़ी (निचला हिस्सा) इस लिये है कि आसानी से फे़फ़ड़े में दाखि़ल हो सके और उसकी हवा से ठंडक पाता रहे ताकि उसके बुख़ारात दिमाग़ की तरफ़ चढ़ कर बीमारियां पैदा न करें।

15. फे़फ़ड़े के दो टुकड़े इस लिये हुए कि दिल उनके दरमियान रहे और वह उसको हवा दें।

16. जिगर मोहद्दब इस लिये हुआ कि अच्छी तरह मेदे के ऊपर जगह पकड़े और अपनी गरानी व गर्मी से ग़िज़ा को हज़म करे।

17. गुर्दा लोबिये के दाने की शक्ल का इस लिये हुआ कि मनी यानी नुत्फ़ा इंसानी पुश्त की जानिब से इसमें आता है और उसके फ़ैलने और सुकड़ने की वजह से आहिस्ता आहिस्ता निकलना है जो सबबे लज़्ज़त है।

18. घुटने पीछे की तरफ़ इस लिये नहीं झुकते कि चलने में आसानी हो अगर ऐसा न होता तो आदमी चलते वक़्त गिर गिर पड़ता , आगे चलना आसान न होता।

19. दोनों पैरों के तलवों के बीच में जगह ख़ाली इस लिये है कि दोनों किनारों पर बोझ पड़ने से आसानी से पैर उठ सकें अगर ऐसा न होता और पूरे बदन का बोझ पेरों पर पड़ता तो सारे बदन का बोझ उठाना दुश्वार हो जाता।

यह जवाबात सुन कर हिन्दोस्तानी तबीब (हकीम , वैद्य) हैरान रह गया और कहने लगा कि आपने यह इल्म किससे सीखा है ? फ़रमाया अपने दादा से उन्होंने रसूले ख़ुदा (स अ व व ) से हासिल किया और उन्होंने ख़ुदा से सीखा है। उसने कहा , ‘‘ इन्ना अशहदो अन ला इलाहा इलल्लाह व अन मोहम्मदन रसूल अल्लाह व अब्दहू ’’ मैं गवाही देता हूँ कि ख़ुदा एक है और मोहम्मद (स अ व व ) उसके रसूल और अब्दे ख़ास हैं। ‘‘ व इन्नका आलमो अहले ज़माना ’’ और आप अपने ज़माने में सब से बडे आलिम हैं।(मनाक़िब इब्ने शहरे आशोब जिल्द 5 पृष्ठ 46 प्रकाशित बम्बई व सवानेह चहारदा मासूमीन हिस्सा 2 पृष्ठ 25 )

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) को बाल बच्चों समेत जला देने का मन्सूबा

तबीबे हिन्दी से गुफ़्तुगू के बाद इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) का आम शोहरा हो गया और लोगों के क़ुलूब पहले से ज़्यादा आपकी तरफ़ माएल हो गये। दोस्त और दुश्मन आपके इल्मी कमालात का ज़िक्र करने लगे। यह देख कर मन्सूर के दिल में आग लग गई और वह अपनी शरारत के तक़ाज़ों से मजबूर हो कर यह मन्सूबा बनाने लगा कि अब जल्द से जल्द इन्हें हलाक कर देना चाहिये। चुनान्चे उसने ज़ाहिरी क़द्रों मन्ज़ेलत के साथ आपको मदीना रवाना कर के हाकिमे मदीना हुसैन बिन ज़ैद को हुक्म दिया ‘‘ अन अहरक़ जाफ़र बिन मोहम्मद फ़ी दाराह ’’ इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) को बाल बच्चों समैत घर के अन्दर जला दिया जाए। यह हुक्म पा कर वालिये मदीना चन्द ग़ुन्डों के ज़रिये से रात के वक़्त जब कि सब महवे ख़्वाब थे , आपके मकान में आग लगवा दी और घर जलने लगा। आपके असहाब अगरचे उसे बुझाने की पूरी कोशिश कर रहे थे लेकिन आग बुझने को न आती थी। बिल आखि़र आप उन्हीं शोलों में कहते हुए कि ‘‘ अना इब्ने ईराक़ अल शरआ , अना इब्ने इब्राहीम अल ख़लील ’’ ऐ आग मैं वह हूँ जिसके आबाव अजदाद ज़मीनों आसमान की बुनियादों के सबब हैं और मैं ख़लीले ख़ुदा इब्राहीम नबी का फ़रज़न्द हूँ। निकल पड़े और अपनी अबा के दामन से आग बुझा दी।(तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 181 ब हवाला उसूले काफ़ी आक़ा ए क़ुलैनी अर रहमा)

147 हिजरी में मन्सूर का हज और इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के क़त्ल का अज़म बिल जज़म

अल्लामा शिब्लंजी और अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ेई रक़म तराज़ हैं कि 147 हिजरी में मन्सूर हज को गया। उसे चूंकि इमाम (अ.स.) के दुश्मनों की तरफ़ से बराबर यह ख़बर दी जा चुकि थी कि इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) तेरी मुख़ालेफ़त करते रहते हैं और तेरी हुकूमत का तख़्ता पलटने की कोशिश में हैं। लेहाज़ा उसने हज से फ़राग़त के बाद मदीने का क़स्द किया और वहां पहुँच कर अपने ख़ास हमदर्द ‘‘ रबी ’’ से कहा कि जाफ़र बिन मोहम्मद को बुलवा दो। रबी ने वायदे के ब वजूद टाल मटोल की। उसने फिर दूसरे दिन सख़्ती के साथ कहा कि उन्हें बुलवा। मैं कहता हूँ कि ख़ुदा मुझे क़त्ल करे अगर मैं उन्हें क़त्ल न कर सकूँ। रबी ने इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ कि मौला ! आपको मन्सूर बुला रहा है और उसके तेवर बहुत ख़राब हैं। मुझे यक़ीन है कि वह इस मुलाक़ात से आपको क़त्ल कर देगा। हज़रत ने फ़रमाया , ‘‘ ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अली उल अज़ीम ’’ यह इस दफ़ा न मुम्किन है। ग़रज़ कि रबी हज़रत को ले कर हाज़िरे दरबार हुआ। मन्सूर की नज़र जैसे ही आप पर पड़ी तो आग बबूला हो कर बोला , ‘‘ या अदू अल्लाह ’’ ऐ दुश्मने ख़ुदा तुमको अहले ईराक़ इमाम मानते हैं और तुम्हें ज़कात अम्वाल वग़ैरा देते हैं और मेरी तरफ़ उनका कोई ध्यान नहीं। याद रखो , मैं आज तुम्हें क़त्ल कर के छोड़ूगा और इसके लिये मैंने क़सम खा ली है। यह रंग देख कर इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने इरशाद फ़रमाया। ऐ अमीर , जनाबे सुलेमान (अ.स.) को अज़ीम सलतनत दी गई तो उन्होंने शुक्र किया। जनाबे अय्यूब को बला में मुब्तिला किया गया तो उन्होंने सब्र किया। जनाबे यूसुफ़ पर ज़ुल्म किया गया तो उन्होंने ज़ालिमों को माफ़ कर दिया। ऐ बादशाह ये सब अम्बिया थे और उन्हीं की तरफ़ तेरा नसब भी पहुँचता है तुझे तो उनकी पैरवी लाज़िम है यह सुन कर उसका ग़ुस्सा ठंडा हो गया।(नूरूल अबसार पृष्ठ 132, मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 276 )

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की दरबारे मन्सूर में सातवीं बार तलबी

147 हिजरी में हज से फ़राग़त के बाद जब मन्सूर अपने दारूल खि़लाफ़ा में पहुँचा तो मुशीरों ने मौक़े से इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) का ज़िक्र छेड़ा। मन्सूर जो इसी दौरान में उनसे मिल कर आया था उसने फ़ौरन हुक्म दे दिया कि इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की तलबी की जाय और उन्हें बुला कर मेरे सामने दरबार में पेश किया जाय। दावत नामा चला गया और इमाम (अ.स.) मदीने से चल कर दरबार में उस वक़्त पहुँचे जब उसे एक मक्खी सता रही थी और वह उसे बार बार हकंा रहा था। वह मुंह पर बैठी थी और मन्सूर उसे दफ़ा करता था लेकिन वह बाज़ न आती थी। मन्सूर इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की तरफ़ मुतावज्जे हो कर बोला , कि ज़रा यह बताइये कि ख़ुदा ने मक्खी को क्यों पैदा किया है ? हज़रत ने फ़रमाया ! ‘‘ लैज़ल बेही अल जब्बारता ’’ कि ख़ुदा ने मक्खी इस लिये पैदा की है कि उसके ज़रिये से जाबिरों को ज़लील करे व सर कशों का सर झुकाये।(नूरूल अबसार , पृष्ठ 144, मनाक़िब इब्ने शहरे आशोब जिल्द 3 पृष्ठ 40 )

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) और दरबार के शेर

एक दिन का ज़िक्र है कि मन्सूर ने बाबुल से सत्तर जादूगरों को बुला कर दरबार में बैठाये हुए था और उनसे कह दिया था कि मैं अन्क़रीब अपने एक दुश्मन को बुलाने वाला हूँ वह जब यहां पर आये तो तुम उसके साथ कोई ऐसा करतब करना जिससे वह ज़लील हो जाय। वहां पहुँच कर अपने देखा कि सत्तर मसनवी शेर दरबार में बैठे हुए हैं। आपको ग़ुस्सा आ गया और आपने उन शेरों की तरफ़ मुतव्वजे हो कर कहा कि अपने बनाने वालों को निगल लो। वह नक़ली शेर की तस्वीरें मुजस्सम हुईं और उन्होंने सब जादूगरों को निगल लिया। यह देख कर मन्सूर कांपने लगा , फिर थोड़ी देर के बाद बोला , ऐ इब्ने रसूल अल्लाह (अ.स.) इन शेरों को हुक्म दीजिये कि इन जादूगरों को उगल दें। आपने फ़रमाया यह नहीं हो सकता। अगर असाए मूसा ने सांपों को उगल दिया होता तो यक़ीन है कि यह भी उगल देते।(दमए साकेबा जिल्द 2 पृष्ठ 513 बा हवाला ए शरह शाफ़िया अबी फ़ारस)

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) को दरबार में क़त्ल किये जाने का बन्दो बस्त

अल्लामा दहर शती ब हवाला ए किताब मशारिको अनवार अल्लामा तबरीसी रक़म तराज़ हैं कि मन्सूर अब्बासी जब आपकी रूहानियत से आजिज़ आ गया और किसी मरतबा क़त्ल करने में कामयाबी न हासिल कर सका तो उसने सवालिये अफ़राद तलाश किये जो कुछ जानते और पहचानते ही न थे , बिल्कुल अल्लढ़ और कुन्दा ए ना तराश थे। उसने मालो दौलत दे कर इस अम्र पर राज़ी किया कि जब इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) की तरफ़ इशारा किया जाय तो वह उन्हें क़त्ल कर दें। प्रोग्राम मुरत्तब होने के बाद रात के वक़्त हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) को बुलाया गया। आप तशरीफ़ लाए , हुक्म था कि बिल्कुल तन्हा तशरीफ़ लायें। आप अकेले आये। जब आप दरबार में दाखि़ल हुए और उन लोगों की नज़रे आप पर पड़ीं जो तलवारें सूते हुए खड़े थे तो वह सब के सब तलवारें फें़क कर आपके क़दमों पर गिर पड़े। यह हाल देख कर मन्सूर ने कहा , इब्ने रसूल अल्लाह आप रात के वक़्त क्यों तशरीफ़ लाये हैं ? आपने फ़रमाया कि तूने मुझे गिरफ़्तार करा के मंगवाया है , अब कहता है क्यों आए हैं। उसने कहा माअज़ अल्लाह कहीं यह भी हो सकता है। आप तशरीफ़ तशरीफ़ ले जायें और क़याम गाह में आराम फ़रमायें। आप वापस चले गये। वहां से मदीना तशरीफ़ ले गये। इमाम (अ.स.) के चले जाने के बाद उन लोगों से पूछा गया कि तुमने खि़लाफ़ वरज़ी क्यों की और उन्हें क़त्ल क्यों नहीं किया ? उन्होंने जवाब दिया कि यह तो वह इमामे ज़माना हैं जो हमारी शबो रोज़ ख़बर गिरी करता है और हमेशा हमारी अपने बच्चों की तरह परवरिश करते हैं। यह सुन कर मन्सूर डर गया और उसे ख़्याल हुआ कि कहीं यह लोग मुझ से इसका बदला न लेने लगें इसी लिये उन्हें रात ही में रवाना कर दिया। ‘‘ सम क़त्ल बिल इसमा ’’ फिर आपको ज़हर से शहीद करा दिया।(दम ए साकेबा पृष्ठ 481 जिल्द 2 प्रकाशित नजफ़) अल्लामा अरबली का कहना है कि आपको क़ैद ख़ाने में ज़हर दिया गया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 100 ) रवायात से मालूम होता है कि आपको कई मरतबा ज़हर दिया गया।(जन्नातुल ख़ुलूद पृष्ठ 28 ) बिल आखि़र आप इस आख़ेरी ज़हर से शहीद हो गये , जो अंगूर के ज़रिये से दिया गया था।(जिलाउल उयून पृष्ठ 268 )

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की शहादत

उलेमा ए फ़रीक़ैन का इत्तेफ़ाक़ है कि ब तारीख़ 15 शव्वाल 148 हिजरी 65 साल की उम्र में आपने इस दारे फ़ानी से ब तरफ़े मुल्के जावेदानी रेहलत फ़रमाई।(इरशादे मुफ़ीद पृष्ठ 413 आलामु वुरा पृष्ठ 159 नूरूल अबसार पृष्ठ 132 मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 277 ) यौमे वफ़ात दोशम्बा था और मक़ामे दफ़्न जन्नतुल बक़ी है।

अल्लामा इब्ने हजर अल्लामा सिब्ते इब्ने जौज़ी अल्लामा शिब्लन्जी अल्लामा इब्ने तल्हा शाफ़ेई तहरीर फ़रमाते हैं कि ‘‘ माता मस्मूमन अय्यामल मन्सूर ’’ मन्सूर के ज़माने में आप ज़हर से शहीद हुए।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 121, ग़ाएतुल इख़्तेसार पृष्ठ 62 सहा अल अख़बार पृष्ठ 44, तज़किरा ए ख़वासुल उम्मता , नूरूल अबसार पृष्ठ 133, अरजहुल मतालिब पृष्ठ 450 )

उलेमा ए अहले तशीय का इत्तेफ़ाक़ है कि आपको मन्सूर दवानक़ी ने ज़हर से शहीद कराया था और नमाज़ हज़रत इमाम मूसी ए काज़िम (अ.स.) ने पढ़ाई थी। अल्लामा क़ुलैनी और अल्लामा मजलिसी का इरशाद है कि आपको निहायत क़ीमती कफ़न दिया गया और आपके मक़ामे वफ़ात पर हर शब चराग़ जलाया जाता रहा।(किताब काफ़ी व जिलाउल उयून मजलिसी पृष्ठ 269 )

आपकी औलाद

आपकी मुख़्तलिफ़ बीबीयों से दस औलादें थीं जिनमें से सात लड़के और तीन लड़कियां थीं। लड़कों के नाम यह हैं। 1. जनाबे इस्माईल , 2. हज़रत मूसी ए काज़िम (अ स ) , 3. अब्दुल्लाह , 4. इस्हाक़ , 5. मोहम्मद , 6. अब्बास , 7. अली , और लड़कियों के नाम यह हैं। 1. उम्मे फ़रवा , 2. असमा , 3. फ़ात्मा।(इरशाद व जन्नातुल ख़ुलूद) अल्लामा शिब्लंजी ने सात औलाद तहरीर किया है। जिन्में सिर्फ़ एक लड़की का हवाला दिया है जिसका नाम उम्मे फ़रवा था।(नूरूल अबसार पृष्ठ 133 )

आपकी ही औलाद से ख़ुल्फ़ा ए फ़ात्मिया गुज़रे हैं जिनकी सलतनत 267 हिजरी से 567 हिजरी तक 270 साल क़ायम रही। उनकी तादाद 14 थी।

फ़ात्मी ख़ुल्फ़ा

मुवर्रिख़ एहसान उल्लाह अब्बासी अपनी तारीख़े इस्लाम के पृष्ठ 422 में लिखते हैं कि तीसरी सदी हिजरी के आख़ीर में एक बड़ी ज़बर दस्त सलतनत अलवियों की मग़रिब में क़ायम हुई। बनू उमय्या और अब्बासियों के बाद हुदूदे आराजी के हिसाब से नीज़ इस एतेबार से कि अर्से तक बादशाहत क़ायम रही। अलवी सलतनत तीसरे दर्जे में शुमार होती है। बग़दाद से पछिचम अन्दलस तक अलवियों की बादशाहत थी। कुछ दिनों तक शाम , मक्का और मदीने में भी अलवियों का ज़ोर था। साल भर तक ख़ुत्बा ए बग़दाद में मुसतसिर अलवी का नाम लिया गया। अन्दलस ऐसी मुसतक़िल और ज़बर दस्त इस्लामी सलतनत अर्से तक अलवियों का एक सूबा रही।

सलातीने अलविया बा एतेबार ख़ुल्फ़ा ए अब्बासिया ज़्यादा पाबन्दे अहकामे शरिया थे। लहो लाब से उनको परहेज़ था। इस लिये ईसाई मुवर्रिख़ों ने ताअस्सुब की बिना पर अलवियां को मुताअस्सिब लिखा है। 250 सौ बरस से कुछ ज़्यादा अर्से तक यह ख़ान दान क़ायम रहा। चौदहवें बादशाह आज़द पर 567 हिजरी में इसका ख़ात्मा हुआ।

अल्लामा अली हैदर लिखते हैं कि यही सलातीने अलविया ख़ुल्फ़ा ए फ़ात्मीन के नाम से मशहूर हैं। यह हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की नस्ल से थे। इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के बड़े साहब ज़ादे जनाबे इस्माईल अपने वालिदे माजिद की ज़िन्दगी में इन्तेक़ाल फ़रमा गये थे मगर आपकी शादी हो चुकी थी जिनसे उनके बेटे हुसैन अल तक़ी और उनके बेटे अब्दुल्लाह अल मेहदी हुए जो ख़ुल्फ़ा ए फ़ात्मीन के बुज़ुर्ग थे। इसी वजह से इस ख़ान दान को इस्माईलिया कहते हैं। अशना अशरी फ़िरक़े के लोग इन लोगों को ‘‘ शिश इमामी ’’ (छ: इमामों को मानने वाले) भी कहते हैं क्यों कि यह लोग बारह इमामों में से सिर्फ़ 6 इमामों को मानते हैं और हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के बाद हज़रत इमाम मूसी ए काज़िम (अ.स.) को हुक्मे ख़ुदा और रसूल (स अ व व ) के खि़लाफ़ इमाम नहीं मानते बल्कि जनाबे इस्माईल के बेटे मोहम्मद को इमाम मानते हैं और इस अम्र के क़ायल हैं कि इमामत जनाबे इस्माईल ही के औलाद में क़यामत तक रहेगी। हिन्दुस्तान व पाकिस्तान के ‘‘ शिया बोहरों ’’ और आग़ा ख़ानी ख़ोजों का यही मज़हब है। मुवर्रिख़ ज़ाकिर हुसैन लिखते हैं कि 21 रबी उल अव्वल 297 हिजरी मुताबिक़ 909 ई 0 को यह सलतनत क़ायम हुई। इन्तेहाई उरूज के ज़माने की सलतनत बहरे ज़ुल्मात से सहराए शाम तक और बहरे रोम से सहरा ए अफ़रीक़ा तक फैल गई थी। मशरिक़ बलादिउल जज़ाएर , तून्स , तराबलीस , बरक़ा , मिस्र , शाम , यमन जज़ीरा ए सक़ीलह और बहरे रोम के बाज़ और जज़ीरा ए इसमें शामिल थे बल्कि बग़दाद व मूसल तक एक साल तक इनके नाम का ख़ुत्बा पढ़ा गया। इन बादशाहों को उलूम व फ़नून का भी कमाल शौक़ था। ख़ुद भी बड़े आलिम व फ़ाज़िल थे। उन्होंने मिस्र में हर क़िस्म की ऐसी तरक़्क़ी , रौनक़ और रौशनी फैलाई जो उन्हीं के ज़माने में मख़सूस थी। ना इनसे पहले मिस्र को यह दिन नसीब हुआ था ना इनके बाद हुआ। अस्टैलनली लैन पोल लिखता है कि ‘‘ ख़ानदाने फ़ात्मिया की दौलत व हशमत , शान व शौकत और तिजारत , बहरे रोम की ख़ुश हाली का बाएस साबित हुई। ’’ ज़ैल में इस ख़ान दान के चौदह बादशाहों के मुख़्तसर हालात लिखते हैं।

1. जनाबे अबू मोहम्मद अबीद उल्लाह उल मेहदी बिल्लाह आप 260 हिजरी मुताबिक़ 874 ई 0 में बामुक़ाम सल्मीह या कूफ़ा पैदा हुए और आपने सलतनते फ़ात्मीन की बुनियाद क़ायम की। 303 ई 0 से 306 ई 0 तक उन्होंने बनी फ़ात्मा को ख़ारजियों के हाथ से महफ़ूज़ रखने की ग़रज़ से ‘‘ क़ीरोवान ’’ के क़रीब एक मज़बूत शहर और मुस्तहकम क़िला तामीर कराया और उसका नाम ‘‘ महदीया ’’ रख कर किरदार अल हुकूमत क़रार दिया। क़ीरूवान और तराबस को फ़तेह कर के मिस्र की तरफ़ आए। यही ख़लीफ़ा मुक़तदर अब्बासी की तरफ़ से ‘‘ मूनिस ख़ादिम ’’ मुक़ाबला को आया लेकिन कामयाबी जनाबे अबीद उल्लाह ही को होई। आपने तमाम मग़रिबे अक़सा (मराकू) को मुसख़्ख़र कर के फ़ात्मी सलतनत में शामिल कर लिया। मग़रिबे अक़सा की फ़तह के बाद आप इन्दलस फ़तेह करने की तदबीरें कर रहे थे कि अजल आ गई। आपने अपनी सलतनत अपनी हयात ही में बहरे ज़ुल्मात और जज़ाएर ख़ालदात (कज़ीर) तक और बहरे रोम से सहराए अज़ीम अफ़रीक़ा तक फ़ैलाई थी। आपकी खि़लाफ़त ज़बरदस्त और मुस्तएदाना थी।

स्यूती ने लिखा है कि आपने दाद गुस्तरी और फ़य्याज़ी के साथ सलतनत की। लोग आपकी तरफ़ झुके हुए थे। आपका अहदे जुलूस रबीउल अव्वल 297 हिजरी था। आपकी तारीख़े वफ़ात 15 रबी उल अव्वल 322 हिजरी मुद्दते सलतनत 24 साल मुद्दते उम्र 62 साल थी। आप शहरे महदीया में दफ़्न किए गए।

2. जनाबे अल क़ासिम मोहम्मद नज़ार क़ाएम बेअमरिल्लाह बिन मेंहदी आपकी तारीख़े विलादत मोहर्रम 280 हिजरी मुताबिक़ 893 ई 0 तारीख़ जुलूस 15 रबी उल अव्वल 322 हिजरी मुद्दते सलतनत 12 साल 7 माह और मुद्दते उम्र 54 साल 9 माह थी। आप बड़े जंग आज़मूदह थे। अक्सर जंगों में ख़ुद फ़ौज ले कर जाया करते थे।

मिस्टर अमीर अली ने लिखा है कि यह पहले फ़ात्मी ख़लीफ़ा हैं जिन्होंने बहरे रोम पर हुकूमत व एक़तिदार हासिल करने की ग़रज़ से जहाज़ों का एक ज़बर दस्त बेड़ा तैय्यार किया। 224 हिजरी में मग़रिब अक़सा की बग़ावत फ़रो की और ‘‘ रीफ़ ’’ के बनों इदरीस को मुतीय किया। इटली के डाकू फ़ात्मी ख़लीफ़ा के बन्दरगाहों पर लूट मार कर जाया करते थे। इसके रद्दे अमल में आपका सिपह सालार जुनूबी इटली को गीटा तक ताराज करता हुआ शहर ‘‘ जनवा ’’ तक जा पहुँचा। इसने शहर को फ़तेह कर के बहुत से बाशिन्दों को गिरफ़्तार कर लिया। जनवा मुद्दत दराज़ तक ख़ुल्फ़ा ए फ़ात्मीन के क़ब्ज़े में रहा। इनकरवा (लोम बरीडी) का एक हिस्सा भी क़ब्ज़े में आ गया। यक़ीन है कि अगर आपकी अपनी सलतनत में बग़ावत न शुरू हो जाती तो आप पूरे मुल्क ‘‘ इटली ’’ को फ़तेह कर लेते। आपके इस बेड़े ने वापसी के मौक़े पर ‘‘ सारडेना ’’ पर हमला कर के फ़िरंगियों को बहुत सी शिकस्तें दीं फिर क़रक़ीसिया का रूख़ किया जो शाम के साहिल पर वाक़े है। यहां इसने अब्बासियों के जहाज़ को जला दिया और बहुत सा माले ग़नीमत ले कर ‘‘ महदिया ’’ की तरफ़ मरजाअत की। 333 हिजरी में आपके ख़ादिम ‘‘ ज़ैदान ’’ ने इसकनदरया फ़तेह कर लिया। फिर अहले सक़लिया ने बग़ावत की और शाहे क़ुस्तुनतुनिया के बेड़े को अपनी मद्द के लिये बुला लिया। सक़लिया के फ़ात्मी गवरनर ने क़ेला ‘‘ अबू असर ’’ और क़ेला ‘‘ बलूत ’’ फ़तेह कर के जर जन्नत का मोहासेरा कर लिया और आपके बेड़े ने रूमी बेड़े को तबाह कर डाला। आपके ज़माने में अबू यज़ीद खारजी ने बग़ावत की जो मुद्दत दराज़ तक जारी रही। इसी दौरान में बआमिरल्लाह ने बीमार हो कर इन्तेक़ाल किया।

3. जनाबे अबू ताहिर इस्माईली मन्सूर बिल्लाह बिन अल क़ायम आप 302 हिजरी में बा मुक़ाम क़ीरूवान पैदा हुए और 13 शव्वाल 334 हिजरी में सलतनते संभाली और शव्वाल 341 हिजरी में वफ़ात पाई। मुद्दते सलतनत सात साल 16 यौम थी। आपकी उम्र 39 साल थी।

आप बड़े बहादुर , अक़्लमन्द , मुस्तइद , मुस्तक़िल मिजाज़ , ख़ुश ख़ुल्क़ , अदीब लबीब , शायर ,मुक़र्रि , बलीग़ और निहायत मुन्तिज़म थे। आप पहले से सोचे बग़ैर ख़ुत्बा शुरू करते थे और दरिया की रवानी की तरह बयान करते चले जाते थे। आपका ऐसी हालत में बादशाह होतना कि अबू यज़ीद की बग़ावत से तमाम मुल्क में ग़दर मचा हुआ था , साहिले बहर के चन्दक़ेला बन्द शहरों और महदिया (पाए तख़्त) के सिवा कुछ भी क़ब्ज़े में न रह गया था। इन्दलिस के उमवी ख़लीफ़ा नासिर ने मग़रिबे अक़्सा पर क़ब्ज़ा कर लिया था। सलतनत का संभालना और अपने तमाम आबाई मुल्कों पर दोबारह क़ब्ज़ा कर लेना उन्ही का काम था। आपने बादशाह होते ही अबू यज़ीद से ऐसी जंग की कि वह बद हवास हो कर भागा। रबीउल अव्वल 335 हिजरी में उन्होंने अबू यज़ीद का तअक़्कु़ब किया और उसे दबाते चले गए। जंगल बियाबान चले गए , पहाड़ , वादी और दलदलों की कुछ परवाह न की , यहां तक कि उसके पीछे ‘‘ बिलासौदान ’’ के ऐसे वीराने में पहुँचे जहां पानी की एक मश्क एक अशरफ़ी को मिलती थी। ग़रज़ कि सख़्त लड़ाई के बाद अबू यज़ीद मारा गया।

साहेबे अख़्बार अल हक़ाएक़ लिखते हैं कि अबू यज़ीद मुलहद था। ख़ुदा ने उसके शर से अहले मग़रिब को निजात दिया दी। वह बहुत बड़ा ज़ालिम था। इसी बादशाहे मन्सूर ने ब मुक़ाम ‘‘ फ़तेह ’’ मन्सूरिया कि तामीर की और इसके गवर्नर ‘‘ हसन ’’ ने शहर ‘‘ रेओ ’’ के वस्त में मस्जिद बनवाई।

4. जनाबे अबू तमी मोअज़लउद्दीन अल्लाह बिन मन्सूर आप 11 रमज़ानुल मुबारक 313 हिजरी में ब मुक़ाम ‘‘ महदिया ’’ पैदा हुए। शव्वाल 341 हिजरी में सलतनत संभाली। 15 रबीउल आखि़र 356 हिजरी को क़ाहेरा में वफ़ात पाई। 23 साल 6 माह हुकूमत की , 45 साल 7 माह आपकी उम्र थी।

आप निहायत ज़ैरिक और बाहोश बादशाह थे। मुख़ालिफ़ों ने भी आपको बादशाह दाना , मुस्तइद , बहादुर , सख़ी , मुनसिफ़ , आदिल , करीमउल एख़लाक़ , साइन्स व फ़लसफ़े में माहिर , उलूम व फ़नून का बड़ा मुरब्बी , साहेबे अराए अमूर मम्लेकत से आगाह , इल्मे नुजूम व हय्यत का शाएक़ व माहिर लिखा है।

उलूम व फ़ुनून की क़द्र दानी के लेहाज़ से बाज़ मोवर्रेख़ों ने उन्हें मग़रिब का ‘‘ मामून ’’ लिखा है। माअज़ के अहदे हुकूमत में शुमाली अफ़रीक़ा ने आला दर्जे की तहज़ीब और खु़श हाली हासिल की। लोग फ़ारिग़ुल बाली और ख़ुश हाली में बसर करते थे। बादशाह ने मुल्क के अन्दरूनी फ़साद और हंगामें सख़्ती से फ़रो किए। इन्तेज़ाम असली उसूल की बुनियाद पर क़ाएम किया। तमाम कामों के वास्ते क़वाएद व ज़वाबित मुरत्तिब किए। अमन क़ाएम रखने के लिये फ़ौज के साथ मलेशिया भी क़रार दिया। फ़ौज और बेड़े को अज़सरे नव तरतीब दिया और तिजारत व सनत व हिरफ़त को भी पूरा फ़रोग़ दिया।

मुवर्रिख़ इब्ने ख़ल्दून ने लिखा है कि ‘‘ चूंकि मोइज़उद्दीन अल्लाह नरम मिजाज़ और रहम दिल थे और ख़ुदा ने एक अजीब व ग़रीब शऊर व लियाक़त इनको अता की थी। वह सरदार भी जो उनके आबाओ अजदाद के ख़ून के प्यासे थे वह चाहे दिल से ना हों लेकिन बा ज़ाहिर उस पर जान देते थे। माअज़ उनके साथ अच्छा बरताव करता था। ’’(तारीख़े इस्लाम मिस्टर ज़ाकिर हुसैन पृष्ठ 116 )

मुवर्रिख़ अब्बासी लिखते हैं सलतनत ने इसके ज़माने में ऊरूज पकड़ा। मिस्र , इस्कन्दरिया , मक्का और मदीना तमाम मुक़ामात अब्बासियों के तसर्रूफ़ से निकल कर उसकी सलतनत में शामिल हुए। शाम पर भी इसका दख़ल हो गया। क़ाहेरा इसका आबाद किया हुआ शहर अब तक मिस्र का दारूल ख़ेलाफ़ा है। इस बादशाह ने मिस्र को अपना दारूल ख़ेलाफ़ा क़रार दिया और फिर बराबर सलतनते इस्माईला का यही दारूल ख़ेलाफ़ा रहा।(तारीख़े इस्लाम पृष्ठ 464 ) इन्दलस के उमवी ख़लीफ़ा ‘‘ नासिरउद्दीन अल्लाह ’’ ने एक ऐसा बड़ा तिजारती जहाज़ बनवाया कि इस वक़्त तक दुनियां कि किसी सलतनत ने इतना बड़ा जहाज़ तैय्यार नहीं किया था। इस जहाज़ ने ‘‘ माअज़ुद्दीनउल्लाह ’’ के जहाज़ को लूट लिया तो आपने एक ज़बर दस्त बेड़ा तैय्यार करा के इन्दलिस पर हमला करने की ग़र्ज़ से रवाना कर दिया। उस बेड़े ने ‘‘ मरयह ’’ की लंगर गाह में घुस कर तमाम जहाज़ों को फ़ूंक दिया। पहले जहाज़ को गिरफ़्तार कर लिया और ख़ुश्की में उतार कर क़त्ल व ग़ारत गरी का बाज़ार गरम कर दिया और बहुत कुछ माले ग़नीमत ले कर वापस पलटा। इसके बाद भी यह उमवी और फ़ात्मी बादशाह आपस में लड़ कर आपनी क़ुव्वत ज़ाया करते रहे , वरना ऐसे ज़बर दस्त थे कि अगर इनमे इत्तेहाद होता तो इस वक़्त तमाम यूरोप को फ़तेह कर लेना कोई बड़ी बात न थी। 347 हिजरी के ख़त्म होते होते हुदूदे मिस्र से साहिल बहर उक़यानूस तक फिर तमाम ममालिक पर फ़ात्मी ख़लीफ़ा का क़ब्जा़ हो गया। 352 हिजरी में रूमियों से सख़्त लड़ाई हुई। मुसलमानों ने फ़तेह पाई और बहुत से रूमी गिरफ़्तार कर लिये गए। 351 हिजरी से 352 तक जज़ीरा ए सक़लिया से रूमियों की सलतनत बिल्कुल नीस्त व नाबूद कर दी गई। 359 हिजरी में यूरोप की फ़ौजों ने जुनूबी इटली के मुसलमानों पर चढ़ाई की मगर सब कोशिश बेसूद साबित हुईं। 357 हिजरी में अहले मिस्र की दरख़्वास्त पर इनकी फ़रियाद रसी करने के लिये ‘‘ अबू अल हसन जौहर ’’ को एक लाख से ज़्यादा सवार और बारह सौ से ज़्यादा माल के सन्दूक़ दे कर मिस्र की तरफ़ रवाना कर दिया। जौहर को पूरी कामयाबी नसीब हुई। ‘‘ शहर क़ाहिरया माज़िया ’’ को आबाद करके दारूल हुकूमत बना दिया। मिस्र से अब्बासियों का सिक्का और ख़ुत्बा मौकूफ़ कर के माजलदैन उल्लाह के नाम का सिक्का व ख़ुत्बा जारी किया। ‘‘ नमाज़ में हय्या अला ख़ैरिल अमल ’’ फिर से जारी किया गया नमाज़ में ‘‘ बिस्मिल्लिाह हिर्ररहमान निर्रहीम ’’ बा आवाज़े बुलन्द पढ़ने लगा और और ख़ुत्बे के बाद ‘‘ अल्लाह हुम्मा सल्ले अला मोहम्मदे मुस्तफ़ा (स अ व व ) व अला अली मुर्तुज़ा (अ.स.) व अला फ़ातेमतुल बुतूल (अ.स.) व अला अल हसन (अ.स.) व अल हुसैन (अ.स.) सिब्ते रसूल अल लज़ी अजहब अनल्लाहा अन्हुम रिजस व तहर हुम्मा ततहीरा व सल्लेअला आइम्मतुत ताहेरीन अबनाआ अमीरल मोमेनीन अलख़ ’’ पढ़ा जाने लगा और अहले बैत (अ.स.) के फ़ज़ाएल बयान होने लगे। इसके बाद जौहर ने बादशाह के हुक्म से ‘‘ जामए अज़हर ’’ तामीर की जो इस वक़्त अहले इस्लाम की सब से बड़ी यूनीवर्सीटी है। 364 हिजरी में ‘‘ ईदे ग़दीर ’’ मिस्र में पहली बार कमाले शान व शौकत से मनाई गई।

जौहर ने मिस्र फ़तेह करने के बाद शाम फ़तेह कर लिया और अब्बासियों का ख़ुत्बा मौकूफ़ करके फ़ात्मी बादशाह का ख़ुत्बा जारी कर दिया। 363 हिजरी में मक्का और मदीना में भी माअज़ के नाम का ख़ुत्बा मुस्तक़िल तौर पर जारी हो गया।

मुवर्रिख़ हबीब उस सियर ने लिखा है कि माअज़ ने ऐसी अदालत और सख़ावत के साथ सलतनत की कि इससे ज़्यादा ख़्याल में नहीं आ सकती। पन्द्रह हज़ार ऊँट और दस हज़ार ख़च्चर ज़र से लदे हुए अफ्रीक़ा से क़ाहेरा ले कर आए। उन्होंने ख़ज़ान्ची को हुक्म दे रखा था कि वह हर रोज़ चन्द सन्दूक़ पुर ज़र दरबार में ला कर रखे। चुनान्चे वह ऐसा ही करता रहा। बादशाह का हुक्म था कि हर मोहताज एक मुठ्ठी ज़र उस में से ले ले। मक़रयज़ी ने लिखा है कि माज़ का ख़ुत्बा तमाम ममालिके मग़रिब , मिस्र , शाम , हेजाज़ और बाज़ एराक़ के ईलाक़ों में पढ़ा जाता था।

5. जनाबे अबू मन्सूर नज़ार अज़ीज़ बिल्लाह बिन माअज़ आप 14 मोहर्रमुल हराम को महदिया में पैदा हुए। 15 रबीउस्सानी 365 हिजरी में तख़्त नशीं हुए और 28 रमज़ान 386 हिजरी में इन्तेक़ाल कर गए। आपकी सलतनत की मुद्दत 21 साल 5 -6 माह और आपकी उम्र 42 साल 8- 9 माह थी।

आप जवाद , करीम , शुजा , अक़ील , हलीम , साबिर , ख़ुश इख़्लाक़ और कसीरूल अफ़ू थे। दुशमन पर रहम करते थे और उसे माल व ज़र देते थे। आप आलिम व फ़ाज़िल और ज़बर दस्त अदीब व शायर थे। आपके एक फ़रज़न्द का ईद के दिन इन्तेक़ाल हो गया तो आपने चन्द अशआर कहे। जिनमें से वाज़े किया कि आले मोहम्मद (अ.स.) हमेशा मसाएब में मुब्तिला रहे हैं। लोगों की ईदें ख़ुशी में गुज़रती हैं और हमारी ईद मातम में।(यतीमुल अल दहर सालबी) आपको इमारतों की तामीर का बड़ा शौक़ था। मिस्र में बहुत सी इमारतें आपकी यादगार हैं। आपके अहद में हमस , हमात , शैहज़र और हलब फ़तेह हो कर फ़ात्मी सलतनत में शामिल हुए। मूसल , मदाएन , कूफ़ा , अन्बार वग़ैरह में आपके नाम का ख़ुत्बा और सिक्का जारी हुआ। यमन मे भी आपके नाम का ख़ुत्बा पढ़ा गया। आपके अहद में फ़ात्मी सलतनत दरिया ए फ़ुरात के किनारे बहरे ज़ुल्मात तक फ़ैली हुई थी और अरब का तमाम मग़रबी हिस्सा मिन्तहा ए यमन तक उसमें शामिल था। इन्देलिस से बनी उमय्या ने जो बाज़ इलाक़े मग़रिब अक़सा के दबा लिये थे आपने इन सब को वापिस ले लिया और 371 हिजरी में इससे सब लोगों को बरतरफ़ कर दिया। अजदुद दौला विलाबू यही से आपने दोस्ताना मरास्लत जारी थी। आपने 386 हिजरी में वफ़ात पाई जिससे फ़ात्मी ख़ुलफ़ा की अज़मत व शौकत को बड़ा नुकसान पहुँचा। मोर्वेख़ीन ने लिखा है कि इस बादशाह के अहद में लोगों के दिन ईद और रात शबे बारात की तरह गुज़र रहे थे।

6. अबू अली मन्सूर हाकिम ब अमर अल्लाह बिन अज़ीज़ आप 23 रबीउल अव्वल 375 हिजरी को क़ाहेरा में पैदा हुए। 28 रमज़ान 386 हिजरी को तख़्त नशीन हुए। 27 शव्वाल 411 हिजरी को इन्तेक़ाल फ़रमाया। 25 साल 29 दिन तक सलतनत की और 36 साल 7 माह की उम्र पाई। आप 11 साल की उम्र में बादशाह हुए। मुवर्रिख़ अब्बासी ने लिखा है कि यह बड़ा मुतशर्रह बादशाह था। उसने औरतों के लिये पर्दे में सख़्ती की , मुस्करात की ख़रीद फ़रोख़्त बन्द की। उसके वक़्त मे इन्तेज़ामें शहर भी अच्छा था। क़ाहेरा में मस्जिदे अज़हर इसी ने बनवाई।(तारीख़े इस्लाम पृष्ठ 425 ) इब्ने जूलाक़ ने लिखा है कि ख़लीफ़ा हाकिम सख़ी , शुजा , मुनसिफ़ , आलिम और साहेबे करामत था। साहेबे हबीब उस सियर ने लिखा है कि बादशाह आदिल और ख़ुदा तरस था। उसने मदरसे बनवाए। उनके लिये जागीर वक़्फ़ की और उनमें आलिम व फ़क़ीह मुक़र्रर किए। हुक्म था कि ख़लीफ़ा के वास्ते ज़मीन बोसी न की जाए। न सलाम के वक़्त हाथ चूमा जाए। आम इजाज़त थी कि जिसका दिल चाहे बादशाह से मिल कर बराहे रास्त शिकायत पेश करे।

यह ख़लीफ़ा आला दर्जे का हैसियत दां था इसकी किताब चार जिल्दों में थी। 27 शव्वाल 411 हिजरी में एक पहाड़ पर किसी दुश्मन ने तन्हा पाकर हलाक कर दिया। मिस्टर अमीर अली ने लिखा है कि हाकिम बड़ी फ़य्याज़ी तन्देही से इल्म और साईंस की तरक़्क़ी में कोशिश करते थे। शाम और मिस्र में उन्होंने बहुत सी मस्जिदे , कालिज और रसद ख़ाने तामीर कराए।

7. जनाबे अबू अल हसन अली ज़ाहिर ला अज़ाज़ दीन अल्लाह बिन हाकिम आप 10 रमज़ान 395 हिजरी बमुक़ाम क़ाहेरा पैदा हुए। 4 ज़ीक़ाद 411 हिजरी को तख़्त नशीन हुए। 15 शाबान 427 हिजरी को फ़ौत हुए। 15 साल 10 माह सलतनत की और 22 साल की उम्र पाई।

मुवर्रिख़ अब्बासी लिखते हैं कि यह बादशाह बड़ा नेक नाम था। इसकी नेक नामी सुन कर अमाएद ख़ुरासानी हज कर के फिरे , तो मिस्र होते हुए आए और वहां से खि़लअत लाए। महमूद सुबूक़तग़ीन को इसकी ख़बर लग गई , उसने फ़ौरन ख़लीफ़ा को बग़दाद मुत्तिला किया। हुज्जाज मिस्र से आ कर अभी बग़दाद पहुँचे ही थे कि ख़लीफ़ा ने उनसे बाज़ पुर्स की और उनकी खि़लअत जला दिए। इससे मालूम होता है कि महमूद को भी फ़ात्मी ख़ुलफ़ा से ख़ौफ़ था और यहीं से यह भी मालूम होता है कि दयालमा मुलूक ग़ज़नी सलजूक़ी वग़ैरा सब ख़ुलफ़ा बग़दाद की ख़ातिर इस लिये भी करते थे कि फ़ात्मी ख़ुलफ़ा से दूबदू मुक़ाबेला करने को मसालेहत के खि़लाफ़ जानते थे। सलातीन अलवी को ज़ोरे बाज़ू के अलावा वह जो इज़्ज़ते ख़ासो आम नज़रों में हासिल थी वह इन ग़ैर क़रशी अल नस्ल सलातीन के लिये बहुत ज़्यादा परेशान कुन थी।(तारीख़े इस्लाम पृष्ठ 425 )

आपने इस्माईल मज़हब को कमाले रौनक़ के साथ रवाज दिया। 418 हिजरी में क़ैसर से सुलह हुई और उसने अपने मुल्म में जनाब ज़ाहिर का ख़ुत्बा पढ़ने की मुसलमानों इजाज़त दे दी। कु़स्तुनतुनया में मस्जिद बनाई गई और इसमें मोअजि़्ज़न मुक़र्रर किया गया।

साहेबे हबीब उस सैर लिखते हैं कि आप अपने आबाओ अजदाद की तरह मुनसिफ़ और नेक सीरत थे , साहब रौज़तुस अल पृष्ठ का बयान है कि जनाबे ज़ाहिर की फ़रते सियासत और कमाले कयासत की वजह से तमाम फ़ितने फ़रो हो गए और दीन दुनियां के उमूर मुस्तक़ीम हो गए लेकिन आप ही के अहद से फ़ात्मी सलतनत का इनहेतात(ज़वाल) शुरू हो गया।

8. जनाबे अबू तमीम माअद मुस्तनसिर ब अम्र अल्लाह बिन ज़ाहिर आप जमादिउस्सानी 420 हिजरी में बामुक़ाम क़ाहेरा पैदा हुए। 15 शाबान 427 हिजरी में तख़्त नशीनी अमल में आई। 18 ज़िलहिज को आप की वफ़ात हुई। 60 साल 4 माह हुकूमत कर के 67 साल की उम्र में दुनियां से रेहलत की।

मुवर्रिख़ अब्बासी लिखते हैं कि क़ायम बिल्लाह अब्बासी ने वाली ए अफ़रीक़ा से साज़िश कर के उनको नुक़सान पहुँचाना चाहा लेकिन इसकी हिकमत कारगर न हुई और इसके बदले में मुसतनसर के इशारे से ‘‘ बसासीरी ’’ ने क़ाएम को बग़दाद में क़ैद कर के साल भर तक मुस्तनसर का नाम बग़दाद के ख़ुत्बे में क़ायम रखा। मुसतनसर के अहद में अब्बासियों का ख़ातमा हो जाता लेकिन तोग़रल बेग ने आ कर ‘‘ बसा सैरी ’’ को मग़लूब कर दिया और क़ायम बिल्लाह को बड़े एज़ाज़ के साथ फिर तख़्त पर बिठा दिया इसी सुलोह में अपने लिये रूकनुकदीन का खि़ताब हासिल किया।(तारीख़े इस्लाम पृष्ठ 426 ) 479 हिजरी में ‘‘ हसन बिन सबाह ’’ जो बाद में नजरिया इस्माईलीयों के पेशवा हुए , ताजिरो के लिबास में मुसतनसर के पास आए। सात साल तक मिस्र में रहे फिर मुसतनसर की तरफ़ से ख़ुरासान व बिलादे अजम दाई मुक़र्रर हुए। हसन ने पहले मख़्फ़ी तौर पर फिर एलानिया बिलादे अजम में इस्माईली दावत फ़ैलाना शुरू कर दी और क़िलों पर क़ब्ज़ा कर के हुकूमत क़ायम कर ली। रूख़्सत होते वक़्त उन्होंने मुस्तनसर से पूछा था कि आपके बाद मेरा इमाम कौन है ? मुसतनसर ने अपने साहबज़ादे नजा़र को बताया था। जनाबे मुसतनसर के तीन बेटे थे। 1. नज़ार , 2. अहमद मुस्तम्ली , 3. मोहम्मद।

9. जनाबे अबुल क़ासिम अहमद मुस्तम्ली बिल्लाह बिन मुस्तनसर आप 20 शाबान 467 हिजरी को पैदा हुए। 18 ज़िलहिज 487 हिजरी को बादशाह क़रार पाये। 17 सफ़र 495 हिजरी को 28 साल की उम्र में वफ़ात पाई मुद्दते सलतनत 7 साल 3 माह थी।

अगर चे जनाबे मुस्तन्सिर ब अमरे अल्लाह अपनी ज़िन्दगी में अपने बड़े बेटे जनाबे नज़ार को वली अहद मुक़र्रर किया था मगर वज़ीरे आज़म अफ़़ज़ल में और उनमें आपसी दुश्मनी थी इस लिये अफ़ज़ल ने नज़ार को हटा कर जनाबे अहमद को मुस्तम्ली के लक़ब से ख़लीफ़ा बना दिया। जनाबे नज़ार और अफ़ज़ल में जंग छिड़ गई। बिल आखि़र नज़ार गिरफ़्तार हो कर मुस्तमली के हवाले कर दिये गये। नज़ारी इस्माईली कहते हैं कि जनाबे नज़ार के फ़रज़न्द हादी क़ैद से निकल कर बिलादे अजम में चले गये थे और यहां जनाबे हादी से ‘‘ अल मौत ’’ के इस्माईली इमाम पैदा हुए। उस वक़्त से इस्माईलियों के दो फ़िरक़े हो गये। एक नज़ार , यह जो जनाबे नज़ार और उनकी औलाद को इमामे बरहक़ मानता है वह हसन बिन सियाह के मुक़ल्लिद और हिन्द पाक के आग़ा ख़ानी ख़ोजे हैं। दूसरी वह जो मुस्तमली और उनकी औलाद को इमामे बरहक़ मानते हैं और मस्त अलविया कहलाते हैं। वह शिया बोहरे हैं।

10. अबू अली मन्सूर अम्र बा अहकाम अल्लाह बिन मुस्तमली आप 13 मोहर्रमुल हराम 490 हिजरी मुताबिक़ 1096 ई 0 को पैदा हुए। 17 सफ़र 495 हिजरी को तख़्त नशीन हुए और 29 साल 8 माह हुकूमत कर के 34 साल की उम्र में 3 ज़ीक़ाद 524 हिजरी को वफ़ात पा गये। मुवर्रिख़ अब्बासी लिखते हैं कि इसके अहद में शिमाली ईसाई से बड़ी लड़ाई हुई और मुसलमान ग़ालिब आये। इन शिमाली ईसाईयों को अहले फ़िरंग लिखते हैं कि इस वक़्त में शाम में एक ख़ानदान नज़ारिया नाम का साहेबे हुकूमत हुआ और चंद मुल्क अलवियों के इस ख़ानदान के क़ब्ज़े में आ गया। इसकी कोई औलाद न थी इस लिये अपने चचा हाफ़िज़ को उसने वली अहद मुक़र्रर किया।(तारीख़े इस्लाम पृष्ठ 426 ) आपने जवान हो कर वज़ीरे आज़म अफ़ज़ल को क़त्ल कर दिया। आप करीम और जवाद थे , आपके ज़माने में आपकी और आपके मुताअल्लेक़ीन की कसरते जूदो अता से लोग कमाल ऐश व इत्मेनान में बसर करते थे। मिस्र में कोई शख़्स ज़माने या इफ़लास का शाकी नहीं मिलता था। आप हाफ़िज़े क़ुरआन भी थे। नज़ारिया फ़िरक़े के लोग मुस्तअलीयों और उनके इमामों से सख़्त दुश्मनी रखते थे और मुद्दत से जनाबे आमिर की ताक में थे। एक दिन 425 हिजरी में आपको हलाक कर दिया। मस्तअलीयों (बोहरों) का एतेक़ाद है कि जनाबे अम्र ने 2 साल चन्द माह के एक साहब ज़ादे अबुल क़ासिम तय्यब को छोड़ कर इन्तेक़ाल कियाा और अपने चचा ज़ाद भाई अब्दुल मजीद मम्यून बिन अबील क़ासिम मुस्तन्सिर को हाफ़िजु़द्दीन अल्लाह के लक़ब से उनका निगरां मुक़र्रर किया था कि खि़लाफ़ते ज़ाहेरिया का इन्तेज़ाम करें और जब तय्यब लायक़ हो जाय तो खि़लाफ़त उनके सिपुर्द कर दें मगर दो साल के बाद हाफ़िज़ ख़ुद ख़लीफ़ा बन गए और जनाबे तय्यब ने रूपोशी इख़्तेयार कर ली। इस अम्र की ख़बर पहले से इमाम अम्र ने अपने अकाबिर ‘‘ दाअता ’’ को दे दी थी और हुक्म दिया था कि शम्से इमामत के सतर में जाने का वक़्त आ गया है। जब हाफ़िज़ की नज़र में फ़र्क़ देखो उसी वक़्त मेरे फ़रज़न्द को ले कर रूपोशी इख़्तेयार करना और ऐसा ही हुआ। अब बोहरे हज़रात उन इमाम तय्यब की नस्ल दर नस्ल इमाम का हर ज़माने में वजूद होना वाजिब जानते हैं और यही उनका एतेक़ाद है।(तारीख़े इस्लाम मिस्टर ज़ाकिर हुसैन जिल्द 1 पृष्ठ 126 )

10. जनाबे अब्दुल मजीद मम्यून हाफ़िज़उद्दीन अल्लाह आप मोहर्रम 467 हिजरी में पैदा हुए। तीन ज़िक़ाद 524 हिजरी को तख़्त नशीन हुए और 19 साल 7 माह हुकूमत कर के 77 साल की उम्र में 5 जमादिल आखि़र 544 हिजरी को इन्तेक़ाल कर गये। आप नज़र बन्दी में बसर करते थे। आपका वज़ीर अहमद कुल उमूरे सलतनत पर हावी था यह अज़ीम अशना अशरी था और ब रवायत किरमानी हाफ़िज़ ने भी मज़हबे इसना अशअरी का इज़हार कर दिया था। वज़ीर अहमद ने बारहवें इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) के नाम का सिक्का और कुत्बा भी जारी कर दिया था। 15 मोहर्रम 526 हिजरी को वज़ीर अहमद क़त्ल कर दिया गया और 544 हिजरी में जनाबे हाफ़िज़ का इन्तेक़ाल हो गया। आपकी तमाम उम्र वज़ीरों की हुकूमत में गुज़री जो वह चाहते करा लेते। मक़रेज़ी ने लिखा है कि हाफ़िज़ मुदब्बिर , सियासत दां , कसीरूल मुदारात आरिफ़ और इल्मे नजूम में शाएक़ थे। आप पर हिल्म ग़ालिब था। आपको दर्दे कूलजं की शिकायत रहती थी। आपके तबीब ने एक तबल बन वाया था जिसकी आवाज़ से उन्हें फ़ाएदा पहुँचा था। हाफ़िज़ के बाद आपकी हस्बे वसीअत आपके बेटे ‘‘ अबू मन्सूर इस्माईल ’’ बादशाह हुए।

12. जनाबे अबू मन्सूर इस्माईल ज़फ़र बाअम्रअल्लाह बिन हाफ़िज़ आप 5 रबीउस्सानी 527 हिजरी को पैदा हुए और 5 जमादिउस्सानी 544 हिजरी को तख़्त नशीन हुए और 4 साल 7 माह हुकूमत कर के 21 साल 9 माह की उम्र में 15 मोहर्रमुल हराम 549 हिजरी को इन्तेक़ाल कर गए। आप ज़माना हुकूमत में बेबस थे। वज़ीर बादशाही करते थे। बग़ावतें , रक़ाबतें साज़िशें और फ़िरक़ा बंदियां फ़ैल गईं थी। मोहर्रम 549 हिजरी में आप क़त्ल कर दिये गए।

13. जनाबे अबू अल क़ासिम ईसा फ़ाएज़ ब नस्रअल्लाह बिन जा़फ़र आप 21 मोहर्रम 544 हिजरी में पैदा हुए। 15 मोहर्रम 549 हिजरी को तख़्त नशीन हुए और 6 साल 6 माह बराए नाम हुकूमत कर के 11 साल 6 माह की उम्र में 15 रजब 555 हिजरी को इन्तेक़ाल कर गए।

मुवर्रिख़ अब्बासी लिखते हैं कि अहले फ़िरंग से इसके वक़्त में भी लड़ाई रही। बेलादे ग़रबी पर अहले फ़िरंग का जो क़ब्ज़ा हो चुका था वह मुसतहकम हुआ और कुछ हिस्सा मुल्क उसने वापस भी ले लिया।(तारीख़े इस्लाम पृष्ठ 427 ) आप तमाम उम्र मर्ज़ सरह में मुब्तिला रहे।

सालेह बिन ज़ैरिक उनका वज़ीर था जो उस अहद में दर अस्ल बादशाही करता रहा था। वह बड़ा फ़ाज़िल सख़ी था और अहले इल्म से बड़ी मोहब्बत करता था। कातिब , अदीब और आला दर्जे का शायर था। अज़रूए फ़ज़ल व अक़ल व सियासत व ततबीर अपने ज़माने का सब से बड़ा शख़्स था। शकल में रोब दार सितवत में अज़ीम था। नीज़ बड़ा पक्का असना अशअरी था। खि़लाफ़ते जनाबे अमीर में ज़बर दस्त किताब लिखी। लोगों से मनाज़रे किए। वज़ीर होते ही शिया मज़हब का इज़हार किया। नेहायत ख़ूबी से हुकूमत की। आखि़र उम्र तक फ़िरंगियों से लड़ता रहा। तमाम मुमालिक के अहले इल्म इसके पास आते दुरे मक़सूद से दामन भर कर वापस जाते थे।

अल्लामा मक़रेज़ी(अलख़त्त जिल्द 4 पृष्ठ 81 ) में लिखा है कि सालेह बिन ज़ैरिक अरमनी क़ौम के अस्ना अशरी मज़हब का एक फ़कीर था। एक दिन ज़्यारते रौज़तुल अमीरल मोमेनीन (अ.स.) के लिये नजफ़े अशरफ़ गया। हज़रत ने उसी शब रौज़े के ख़ादिम ‘‘ सय्यद इब्ने मासूम ’’ से ख़्वाब में फ़रमाया कि तलाया बिन ज़रीक हमारे महबूबों में से हैं उससे कह दो कि वह मिस्र चला जाए। मैंने उसे मिस्र का वाली बना दिया है। सय्यद ने तलाए को बुला कर ख़्वाब बयान किया वह फ़ौरन मिस्र पहुँच कर सल्तनत का मुलाज़िम हो गया। फिर चन्द दिनों में मिस्र का बादशाह हो गया। इसका असली नाम तलाया बिन जै़रिक था। मिस्र में कारे नुमाया करने की वजह से इसका खि़ताब ‘‘ मलक सालेह ’’ हो गया।

(मोअल्लिफ़) मैं कहता हूँ कि मक़रेज़ी के इस बयान से सय्यद इस्माईल शहीद देहलवी के इस बयान की ताईद होती है जिसमें उन्होंने कहा है कि ‘‘ दुनियां के तमाम बादशाहों का तक़ररूर और तनज़्ज़ुल अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) करते हैं ’’ मुलाहेज़ा हो मौसूफ़ की किताब ‘‘ सिरातल मुस्तक़ीम ’’

14. अबू मोहम्मद अल्लाह आज़लुद्दीन अल्लाह बिन युसूफ़ बिन हाफ़िज़ आप 20 मोहर्रमुल हराम 546 हिजरी मुताबिक़ 1151 को पैदा हुए। 17 रजब 555 हिजरी को तख़्त नशीन हुए और 11 साल 6 माह बराए नाम हुकूमत की और 21 साल की उम्र में 10 मोहर्रमुल हराम 567 हिजरी में इन्तेक़ाल कर गए।

मुवर्रिख़ अब्बासी लिखते हैं कि इसके अहद में अहले फ़िरंग साहिल शरक़ी व ग़रबी से आते आते मिस्र तक पहुँच गए और मिस्र पर क़ाबिज़ हो गए। ग़ैर मुसलमानों का मिस्र पर क़ाबिज़ होना ‘‘ नूरूद्दीन मोहम्मद ’’ वाली शाम को बहुत गराँ गुज़रा। उसने मिसरियों की मद्द के लिये फ़ौज भेजी जो अहले फ़िरंग पर ग़ालिब आई। शामियों ने अहले फ़िरंग को निकाल बाहर कर दिया लेकिन ख़ुत्बे में आज़िद के बजाए ‘‘ मस्तज़ी बाअल्लाह ’’ अब्बासी का नाम दाखि़ल कर दिया। इसी ज़माने में ‘‘ आज़िद ’’ भी मर गया और इसके साथ ही सलातीने अलविया इस्माईल का ख़ात्मा हो गया और बनू मेहदी का नाम मिट गया।(तारीख़े इस्लाम पृष्ठ 427 )

आप 10 साल की उम्र में ख़लीफ़ा हुए। सालेह ने अपनी बेटी उनसे ब्याह दी और सालेह तमाम उमूरे सलतनत पर हावी रहा। मगर 19 रमज़ान 556 हिजरी को बेचारा क़त्ल कर दिया गया। ख़लीफ़ा ए आज़द ने उसकी वफ़ात के बाद अहले सुन्नत से एक शख़्स ‘‘ सलाहुद्दीन यूसुफ़ ’’ को वज़ीर बना लिया। उसने बेवफ़ाई की और तमाम उमूरे सलतनत पर हावी हो कर ख़लीफ़ा को बे दख़ल कर दिया और शिया क़ाज़ियों को माज़ूल कर तमाम मुल्क में शाफ़ई क़ाज़ी मुक़र्रर किए। इस वक़्त से मुल्के मिस्र में मज़हबे शिया ख़त्म होने लगा और मज़हबे मालकी और शाफ़ई ज़ोर पकड़ने लगा। मोहर्रम 567 हिजरी में सलाहुद्दीन ने ख़लीफ़ा ए आज़द ख़ुत्बा भी मिस्र से बन्द कर के मुस्तज़ी अब्बासी का ख़ुत्बा जारी कर दिया। ख़लीफ़ा आज़िदउद्दीन अल्लाह ने आशूर मोहर्रम 567 हिजरी को इन्तेक़ाल किया। आपकी वफ़ात से सलतनते फ़ात्मीन का सितारा जो मुमालिके अफ़रीक़ा व मिस्र में 270 साल से चमक रहा था बिल्कुल ग़ुरूब हो गया।

फ़ात्मी ख़ुलफ़ा के अहद में जो बरकतें मिस्र को नसीब हुई वह किसी बादशाह के अहद में नहीं हुए। उलूम फ़नून तिजारत व हिरफ़त सबको कमाले तरक़्क़ी हुई। शफ़ाख़ाने , मदरसे , मस्जिदें और रेफ़ाह आम की दूसरी बेशुमार इमारतें और औक़ाफ़ा मुद्दतों यादगार हैं। ‘‘ शिया युनीवर्सिटी ’’ जामए अज़हर इसी अहद की रहती दुनियां तक के लिये यादगार है। एक लाख तीस हज़ार किस्म की 16 लाख किताबों का कुतुब ख़ाना इसी अहद में मुरत्तब हुआ था। जामा मस्जिदें बनवाईं गईं थी। 1. जामा अज़हर , 2. जामा माज़िया , 3. जामा नूर , 4. जामा हाकिम जो अपनी शान व शौकत के लिहाज़ से बड़ी पुर अज़मत थी। उन्हीं के अहद में क़ाहेरा की ख़ास इमारत हुसैनिया (इमाम बाड़ा) थी जिसमें अय्यामे अज़ा में मजालिस मुनअक़िद की जाती थीं जिनमें बादशाह और रेआया सब शरीक होते थे।(तारीख़े इस्लाम मिस्टर ज़ाकिर हुसैन जिल्द 1 पृष्ठ 133 )

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1. यह अम्र क़ाबिले ज़िक्र है कि खि़लाफ़ते फ़ात्मीया के ख़त्म होते ही जामए अज़हर में शियों का दाख़ला ममनूआ क़रार दे दिया गया था जिसका सिलसिला अब तक बाक़ी रहा लेकिन अहदे जमाल अब्दुल नासिर में डा 0 शलतूत ने इस मुमानियत को ख़त्म करके शिया फ़िक़ह की किताबें शरहे लुमआ व तब्सेरतूल मुतालेमीन को दाखि़ले निसाब कर दिया।

अल ईज़ा इमाम शरक़ावी लिखते हैं कि ख़ुल्फ़ा ए बनी उमय्या 14 ख़ुलफ़ा ए बनी अब्बास 37 और ख़ुल्फ़ा ए बनी फ़ात्मा 15 थे और वह यह भी लिखते हैं कि फ़ात्मी ख़ुल्फ़ा में 650 हिजरी तक खि़लाफ़र रही ‘‘ काना यज़अन बक़ाए हाफ़ेहुम ऐला अन यस मूहालम हुदा फिल आखि़रूज़ ज़मान ’’ वह यह गुमान करते थे कि यह हुकूमत उन्हीं में उस वक़्त तक रहेगी जब तक ज़हुरे क़ायमे आले मोहम्मद न होगा। उनके ज़हुर के बाद उसे उनके सिपुर्द कर देगें।(तोहफ़तुल नाज़ेरीन बर हाशिया फ़तूह अल शाह वाक़दी जिल्द 1 पृष्ठ 118 प्रकाशित मिस्र 1386 हिजरी) मेरी नज़दीक इमाम शरक़ावी का ख़ुल्फ़ा ए बनी फ़ात्मा की तादाद 15 बताना दुरूस्त नहीं है। तमाम कुतुबे मुतबरा में 14 ही की तादाद है। मुलाहेज़ा हो नज़रह असना अशअरीया अल्लामा मिर्ज़ा मोहम्मद जिल्द 1 पृष्ठ 213, तारीख़े मज़हिब पृष्ठ 462 प्रकाशित कोएटा व तारीख़े इस्लाम व तरजुमा ए सलातीने इस्लाम लैनिन पोल पृष्ठ 89 प्रकाशित लाहौर)


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