चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

इमाम अली रज़ा (अ.स.) का हज और हारून रशीद अब्बासी

ज़माना ए हारून रशीद में हज़रत इमामे अली रज़ा (अ.स.) हज के लिये मक्के मुअज़्ज़मा तशरीफ़ ले गये। उसी साल हारून रशीद भी हज के लिये आया हुआ था। ख़ाना ए काबा में दाखि़ले के बाद इमाम अली रज़ा (अ.स.) एक दरवाज़े से और हारून रशीद दूसरे दरवाज़े से निकले । इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया कि यह दूसरे दरवाज़े से निकलने वाला जो हम से दूर जा रहा है , अनक़रीब तूस में दोनों एक जगह होंगे। एक रिवायत में है कि यहया बिने ख़ालिद बर मक्की को इमाम (अ.स.) ने मक्के में देखा कि वह रूमाल से गर्द की वजह से मुहं बन्द किये हुए जा रहा है। आप ने फ़रमाया कि उसे पता भी नहीं कि उसके साथ इमसाल क्या होने वाला है। यह अनक़रीब तबाही की मन्ज़िल में पहुँचा दिया जायेगा। चुनान्चे ऐसा ही हुआ।

रावी मुसाफ़िर का बयान है कि हज के मौक़े पर इमाम (अ.स.) ने हारून रशीद को देख कर अपने दोनों हाथों की अंगुलियां मिलाते हुए फ़रमाया कि मैं और यह इसी तरह एक हो जायेंगे। वह कहता है कि मैंने इस इरशाद का मतलब उस वक़्त समझा जब आपकी शहादत वाक़े हुई और दोनों एक मक़बरे में दफ़्न हुए। मूसा बिने इमरान का कहना है कि इसी साल हारून रशीद मदीने मुनव्वरा पहुँचा और इमाम (अ.स.) ने उसे खुत्बा देते हुए देख कर फ़रमाया कि अनक़रीब मैं और हारून एक ही मक़बरे में दफ़्न किये जायेंगे।( नूरूल अबसार पृष्ठ 144)

हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) का मुजद्दिदे मज़हबे इमामिया होना

अहादीस में हर सौ साल के बाद एक मुजद्दे इस्लाम के नुमूदो शुहूद का निशान मिलता है। यह ज़ाहिर है कि जो इस्लाम का मुजद्द होगा उसके तमाम मानने वाले उसी के मसलक पर गामज़न और उसी के उसूलो फ़ुरू के सराहने वाले होंगे और मुजद्द को जो बुनियादी मज़हब होगा उसके मानने वालों का भी वही मज़हब होगा। हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) जो क़तई तौर पर फ़रज़न्दे रसूले इस्लाम (स.अ.) थे वह उसी मसलक पर गामज़न थे। जिस मसलक की बुनियाद पैग़म्बरे इस्लाम और अली (अ.स.) ख़ैरूल अनाम का वुजूद ज़ी जूद था। यह मुसल्लेमात से है कि आले मोहम्मद (अ.स.) पैग़म्बर (अ.स.) के नक़्शे क़दम पर चलते थे और उन्हीं के ख़ुदाई मन्शा और बुनियादी मक़सद की तबलीग़ फ़रमाया करते थे यानी आले मोहम्मद (अ.स.) का मसलक वही था जो मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.) का मसलक था। अल्लामा इब्ने असीर जज़री अपनी किताब जामिउल उसूल में लिखते हैं कि हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) तीसरी सदी हिजरी में और सुक़्क़तुल इस्लाम अल्लामा क़ुलैनी चैथी सदी हिजरी में मज़हबे इमामिया के मुजद्दे थे। अल्लामा क़ौनवी और मुल्ला मुबीन ने उसी को दूसरी सदी के हवाले से तहरीर फ़रमाया है।( वसीलतुन निजात पृष्ठ 376 शरह जामे सग़ीर )

मुहद्दिस देहलवी शाह अब्दुल अज़ीज़ इब्ने असीर का कौल नक़ल करते हुए लिखते हैं कि इब्ने असीर जज़री साहबे जामिउल उसूल के हज़रत इमामे अली बिने मूसा रिज़ा (अ.स.) मुजद्दे मज़हबे इमामिया दरक़रन सालिस गुफ़्ता अस्त। इब्ने असीर जज़री साहबे जामिउल उसूल ने हज़रत इमामे रज़ा (अ.स.) को तीसरी सदी में मज़हबे इमामिया का मुजद्द होना ज़ाहिरो वाज़िह फ़रमाया है। (तोहफ़ा ए असना अशरया कीद 85 पृष्ठ 83) बाज़ उलेमाए अहले सुन्नत ने आप को दूसरी सदी का और बाज़ ने तीसरी सदी का मुजद्द बतलाया है। मेरे नज़दीक दोनों दुरूस्त हैं क्यों कि दूसरी सदी में इमामे रज़ा (अ.स.) की विलादत और तीसरी सदी के आग़ाज़ में आपकी शहादत हुई है।

हज़रत इमामे अली रज़ा (अ.स.) के अख़्लाक़ व आदात और शमाएल व ख़साएल

आपके इख़्लाक़ो आदात और शमाएल ओ ख़साएल का लिखना इस लिये दुश्वार है कि वह बेशुमार हैं। ‘‘ मुश्ते नमूना अज़ ख़ुरदारे ’’ यह है बहवाले अल्लामा शिबलिन्जी इब्राहीम बिने अब्बास तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत इमामे अली रज़ा (अ.स.) ने कभी किसी शख़्स के साथ गुफ़्तुगू करने में सख़्ती नहीं की और किसी बात को क़ता नहीं फ़रमाया। आपके मकारिमो आदात से था कि जब बात करने वाला अपनी बात ख़त्म कर लेता तब अपनी तरफ़ से आग़ाज़े कलाम फ़रमाते। किसी की हाजत रवाई और काम निकालने में हत्तल मक़दूर दरेग़ न फ़रमाते। कभी अपने हमनशीं के सामने पांव फ़ैला कर न बैठते और न अहले महफ़िल के रू ब रू तकिया लगा कर बैठते थे। कभी अपने ग़ुलामों को गाली न दी और चीज़ों का क्या ज़िक्र। मैंने कभी आपको थूकते और नाक साफ़ करते नहीं देखा। आप क़ह क़हा लगा कर हरगिज़ नहीं हंसते थे। ख़न्दा ज़नी के मौक़े पर आप तबस्सुम फ़रमाया करते थे। मुहासिने इख़्लाक़ और तवाज़ो व इन्केसारी की यह हालत थी कि दस्तरख़्वान पर साइस और दरबान तक को अपने साथ बिठा लेते । रातों को बहुत कम सोते और अक्सर रातों को शाम से सुबह तक शब्बेदारी करते थे और अक्सर औक़ात रोज़े से होते थे मगर तो आपसे कभी क़ज़ा नहीं हुए। इरशाद फ़रमाते थे कि हर माह में कम अज़ कम तीन रोज़े रख लेना ऐसा है जैसे कोई हमेशा रोज़े से रहे। आप कसरत से ख़ैरात किया करते थे और अकसर रात के तारीक परदे में इस इसतिहबाब को अदा फ़रमाया करते थे। मौसमे गर्मा में आपका फ़र्श जिस पर आप बैठ कर फ़तवा देते या मसाएल बयान किया करते बोरिया होता था और सरमा में कम्बल आपका यही तर्ज़े उस वक्त़ भी रहा जब आप वली अहदी हुकूमत थे। आपका लिबास घर में मोटा और ख़शन होता था और रफ़ए तान के लिये बाहर आप अच्छा लिबास पहनते थे। एक मरतबा किसी ने आप से कहा हुज़ूर इतना उम्दा लिबास क्यों इस्तेमाल फ़रमाते हैं ? आपने अन्दर का पैराहन दिखा कर फ़रमाया अच्छा लिबास दुनिया वालों के लिये और कम्बल का पैराहन ख़ुदा के लिये है। अल्लामा मौसूफ़ तहरीर फ़रमाते हैं कि एक मरतबा आप हम्माम में तशरीफ़ रखते थे कि एक शख़्स जुन्दी नामी आ गया और उसने भी नहाना शुरू किया। दौराने ग़ुस्ल में उसने इमामे रज़ा (अ.स.) से कहा कि मेरे जिस्म पर पानी डालिये आपने पानी डालना शुरू किया। इतने में एक शख़्स ने कहा ऐ जुन्दी ! फ़रज़न्दे रसूल (स.अ.) से खि़दमत ले रहा है , अरे यह इमामे रज़ा (अ.स.) हैं। यह सुनना था कि वह पैरों पर गिर पड़ा और माफ़ी मांगने लगा।( नूरूल अबसार पृष्ठ 38 व पृष्ठ 39)

एक मर्दे बलख़ी नाक़िल है कि मैं हज़रत के साथ एक सफ़र में था एक मक़ाम पर दस्तरख़्वान बिछा तो आपने तमाम ग़ुलामों को जिनमे हब्शी भी शामील थे , बुला कर बिठा लिया मैंने अर्ज़ किया मौला इन्हें अलाहिदा बिठाये तो क्या हर्ज़ है आपने फ़रमाया कि सब का रब एक है और मां बाप आदम ओ हव्वा भी एक हैं और जज़ा और सज़ा आमाल पर मौसूफ़ है , तो फिर तफ़रीक़ क्या। आपके एक ख़ादिम यासिर का कहना है कि आपका यह ताकीदी हुक्म था कि मेरे आने पर कोई ख़ादिम खाना खाने की हालत में मेरी ताज़ीम को न उठे। मुअम्मर बिने ख़लाद का बयान है कि जब भी दस्रख़्वान बिछता आप हर खाने में से एक एक लुक़मा निकाल लेते थे और उसे मिसकीनों और यतीमों को भेज दिया करते थे। शेख़ सुदूक़ तहरीर फ़रमाते हैं कि आपने एक सवाल का जवाब देते हुए फ़रमाया कि बुज़ुर्गी तक़वा से है जो मुसझे ज़्यादा मुत्तक़ी है वह मुझ से बेहतर है। एक शख़्स ने आपसे दरख़्वास्त की कि आप मुझे अपनी हैसियत के मुताबिक़ कुछ माल दुनियां से दीजिए। आपने फ़रमाया यह मुश्किल है। फिर उसने अर्ज़ की अच्छा मेरी हैसियत के मुताबिक़ इनायत कीजिये , फ़रमाया यह मुम्किन है। चुनान्चे आप ने उसे दो सौ अशरफ़ी इनायत फ़रमा दी। एक मरतबा नवीं ज़िलहिज्जा यौमे अर्फ़ा आपने राहे खु़दा में सारा घर लुटा दिया। यह देख कर फ़ज़्ल बिने सुहैल वज़ीरे मामून ने कहा , हज़रत यह तो ग़रामत यानी अपने आप को नुक़सान पहुँचाना है। आपने फ़रमाया यह ग़रामत नहीं ग़नीमत है मैं इसके इवज़ में खु़दा से नेकी और हसना लूंगा। आपके ख़ादिम यासिर का बयान है कि हम एक दिन मेवा खा रहे थे और खाने में ऐसा करते थे कि एक फल से कुछ खाते और कुछ फेंक देते थे हमारे इस अमल को आपने देख लिया और फ़रमाया नेमते ख़ुदा को ज़ाया न करो , ठीक से खाओ और जो बच जाए उसे किसी मोहताज को दे दो। आप फ़रमाया करते थे कि मज़दूर की मज़दूरी पहले तै करना चाहिये क्यों कि चुकाई हुई उजरत से ज़्यादा जो कुछ दिया जायेगा पाने वाला उसको इनाम समझेगा।

सूली का बयान है कि आप अक्सर ऊदे हिन्दी का बुख़ूर करते और मुश्क व गुलाब का पानी इस्तेमाल करते थे। इत्रयात का आपको बड़ा शौक़ था। नमाज़े सुबह अव्वल वक़्त पढ़ते उसके बाद सजदे में चले जाते थे और निहायत तूल देते थे फिर लोगों को नसीहत फ़रमाते।

सुलेमान बिन जाफ़र का कहना है कि आप अपने आबाओ अजदाद की तरह ख़ुरमें को बहुत पसन्द फ़रमाते थे। आप शबो रोज़ में एक हज़ार रकत नमाज़ पढ़ते थे। जब भी आप बिस्तर पर लेटते थे तो जब तक सो न जाते क़ुरआने मजीद के सूरे पढ़ा करते थे।

मूसा बिन सयार का बयान है कि आप अकसर अपने शियों की मय्यत में शिरकत फ़रमाते थे और कहा करते थे कि हर रोज़ शाम के वक़्त इमामे वक़्त के सामने आमाल पेश होते हैं , अगर कोई शिया गुनाहगार होता है तो इमाम उसके लिये असतग़फ़ार करते हैं।

अल्लामा तबरसी लिखते हैं कि आपके सामने जब भी कोई आता था आप पहचान लेते थे कि मोमिन है या मुनाफ़िक़ ( आलामुल वुरा तोफ़ाए रिज़विया , कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 122)

अल्लामा मोहम्मद रज़ा लिखते हैं कि आप हर सवाल का जवाब क़ुराने मजीद से देते थे और रोज़आना एक क़ुरआन ख़त्म करते थे।( जन्नातुल ख़ुलूद पृष्ठ 31)

हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) के बाज़ करामात

आपके क़ौलो फ़ेल से बेइन्तेहा करामत का ज़हूर हुआ है जिनमें से कुछ इस जगह लिखे जाते हैं अल्लामा मोमिन शिब्लन्जी रक़म तराज़ हैं।

1.एक दिन हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) ने अमीन और मामून पर नज़र डालते हुए फ़रमाया कि अन्क़रीब अमीन को मामून क़त्ल कर देगा , चुनान्चे ऐसा ही हुआ और अमीन अब्बासी 23 मोहर्रम 198 हिजरी को 4 साल 8 माह सलतनत करने के बाद मामून रशीद के हाथों क़त्ल हुआ।( तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 20 नूरूल अबसार )

2. हुसैन बिन मूसा का बयान है कि हम लोग एक मक़ाम पर बैठे हुए बातें कर रहे थे कि इतने में जाफ़र बिन उमर अल अलवी का गुज़र हुआ इसकी शक्ल व शबाहत और हैसीयत व हालत देख कर आपस में बातें करने लगे। हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) ने फ़रमाया अन्क़रीब दौलत मन्द और रईस हो जायेगा और इसकी हालत यकसर तबदील हो जायेगी। चुनान्चे ऐसा ही हुआ और वह एक माह के अन्दर मदीने का गर्वनर हुआ।

3. जाफ़र बिन सालेह से आपने फ़रमाया तेरी बीवी को दो जुड़वाँ बच्चे होगें। एक का नाम अली और दूसरे का नाम उम्मे उमर रखना। जब इसके यहां विलादत हुई तो ऐसा ही हुआ। जाफ़र बिन सालेह ने अपनी माँ से कहा , इमाम अली रज़ा (अ.स.) ने यह उम्मे उमर क्या नाम तजवीज़ फ़रमाया है ? इसने कहा तेरी दादी का नाम उम्मे उमर था हज़रत ने इसी के नाम पर मौसूम फ़रमाया है।

4. आपने एक शख़्स की तरफ़ देख कर फ़रमाया उसे मेरे पास बुला लाओ। जब वह लाया गया तो आपना फ़रमाया कि तू वसीयत कर ले अमरे हतमी के लिये तैयार हो जा ‘‘फ़मात अर जअल बादा सलासता अय्याम ’’ इसे फ़रमाने के तीन दिन बाद उस शख़्स का इन्तेक़ाल हो गया।( नूरूल अबसार पृष्ठ 139)

5. अल्लामा अब्दुर्रहमान रक़म तराज़ हैं कि एक शख़्स ख़ुरासान के इरादे से निकला , उसे उसकी लड़की ने एक हाला दिया कि फ़रोख़्त कर के फ़ीरोज़ा लेते आना। वह कहता है कि जब मैं मक़ाम मर्द में पहुँचा तो इमाम रज़ा (अ.स.) के एक ख़ादिम ने मुझ से कहा कि एक दोस्त दार अहले बैत का इन्तेक़ाल हो गया है इसके कफ़न की ज़रूरत है तू अपना हाला मेरे हाथ फ़रोख़्त कर दे ताकि मैं उसे इसके कफ़न के लिये इस्तेमाल करूँ। इस मर्दे कूफ़ी ने कहा कि मेरे पास कोई हाला बराए फ़रोख़्त नहीं है। ख़ादिम ने इमाम रज़ा (अ.स.) से वाक़ेया बयान किया। इस से जा कर मेरा सलाम कह दे और उसे मेरा पैग़ाम पहुँचा कर कह तेरी लड़की ने जो हाला बराए ख़रीद फ़ीरोज़ा दिया है वह फ़रोख़्त कर दे। उसने बड़ा ताज्जुब किया और हाला निकाल कर उसके हाथ में फ़रोख़्त कर डाला। उस कूफ़ी का बयान है कि मैंने यह सोच कर की वह बड़े बा कमाल हैं इन से चन्द सवालात करना चाहा और इसी इरादे से इनके मकान पर गया लेकिन इतना इज़देहाम था कि दरे दौलत तक न पहुँच सका। दूर खड़ा सोच ही रहा था कि एक ग़ुलामने एक पर्चा ला कर दे दिया और कहा कि इमाम रजा़ (अ.स.) ने यह पर्चा इनायत फ़रमाते हुए कहा है कि तेरे सवाल के जवाबात इस में मरक़ूम हैं। (चून निगाही करदम जवाबे मसाएले मन बूदे) जब मैंने उसे देखा तो वाक़िएन मेरे सवालात के जवाबात थे।

6. रियान बिन सलत का बयान है कि मैं हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुआ। मेरे दिल मे यह था कि मैं हज़रत से अपने लिये जामे और उनसे वह दिरहम मागूँगा जिस पर आपका इस्म गिरामी कन्दा होगा। मेरे हाज़िर होते ही आपने अपने गु़लाम से फ़रमाया कि यह जामे और सिक्का चाहते हैं इन्हें दो जामे और मेरे नाम के तीस सिक्के दे दो।

7. एक ताजिर को किरमान के रास्ते में डाकुओ ने पकड़ कर उसके मुहँ में इस दरजा बरफ़ भर दी कि उसकी ज़बान और उसका जबड़ा बेकार हो गया। उसने बहुत इलाज किया लेकिन कोई फ़ायदा न हुआ। एक दिन उसने सोचा कि मुझे इमाम रजा़ (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हो कर इलाज की दरख़्वास्त करनी चाहिये। यह सोच कर वह रात में सो गया , ख़्वाब में देखा कि मैं इमाम रज़ा (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हूँ। उन्होंने फ़रमाया कि कमूनी सआतर और नमक को पानी में भिगो कर तीन चार बार ग़रारा करो , इन्शा अल्लाह शिफ़ा हो जायेगी। जब मैं ख़्वाब से बेदार हो कर हाज़िरे खि़दमत हुआ तो हज़रत ने फ़रमाया तुम्हारा वही इलाज है जो मैंने तुम को ख़्वाब मे बतलाया है। वह कहता है कि मैंने अपना ख़्वाब उन से बयान नहीं किया था इसके बा वजूद आपने वही जवाब दिया।

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि हज़रत जो दवा बताई थी उसके अज्जा़ यह हैं।1. ज़ीरा किरमानी 2. सआतर नमक ( कशफ़ल ग़म्मा पृष्ठ 112)

8. अबु इस्माईल सिन्धी का बयान है कि मैं हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ परदाज़ हुआ कि मौला मुझे अरबी ज़बान नहीं आती। आपने उसके लबों पर दस्ते मुबारक फेर कर उसे अरबी में गोया बना दिया।

9. एक हाजी ने आप से बहुत से सवाल किये , आपने सबका जवाब दे कर फ़रमाया कि वह सवाल तुम ने नहीं किया जो एहराम के लिबास से मुताअल्लिक़ था जिसमें तुम्हे शक है। उसने कहा हां मौला उसे भूल गया था। आपने फ़रमाय उस मख़सूस लिबास में एहराम दुरूस्त है।

10. आपने ख़ाके ज़मीन सूँघ कर अपनी क़ब्र की जगह बता दी।

11. एक शख़्स मोतमिद का बयान है कि मैं हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) के पास खड़ा था कि चिड़ियों का एक झुंड इमाम (अ.स.) के पास आके चीख़ने लगा। इमाम (अ.स.) ने मुझसे कहा जानते हो यह क्या कहता है। मैंने कहा कि खु़दा और रसूल (स.अ.) और फ़रज़न्दे रसूल (स.अ.) ही इसे जान सकते हैं। आपने फ़रमाया इस झुंड का कहना यह है कि एक सांप आया हुआ है और वह मेरे बच्चों को खाना चाहता है। तुम जाओ और उसे तलाश कर के मार डालो। चुनान्चे मैं उस मक़ाम पर गया और सांप को मार डाला।( शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 199 से 201)

12. अल्लामा मोहम्मद रज़ा लिखते हैं कि एक मरतबा क़हत पड़ा , आपने दुआ की , एक अब्र नमूदार हुआ , लोग ख़ुश हो गये लेकिन आपने फ़रमाया कि यह टुकड़ा अब्र का फ़लां मक़ाम के लिये है। इसी तरह कई बार हुआ। आखि़र में आपने एक अब्र के टुकड़े के नमूदार होने पर फ़रमाया कि यह यहां बरसेगा। चुनान्चे ऐसा ही हुआ।( जन्नातुल ख़ुलूद पृष्ठ 31, उयून अख़्बारे रज़ा पृष्ठ 214)

13. अल्लामा तबरेसी तहरीर फ़रमाते हैं कि एक रोज़ आप अपनी ज़मींदारी पर तशरीफ़ ले गये। जाते वक़्त फ़रमाया कि मेरे हमराही को चाहिये कि बारिश का सामान ले ले। हसन बिन मूसा ने कहा कि हुज़ूर सख़्त गरमी है बारिश के तो आसार नहीं हैं। फ़रमाया बारिश ज़रूर होगी। चुनान्चे वहां पहुँचने के बाद ही बारिश का नुज़ूल शुरू हो गया और ख़ूब पानी बरसा।( आलामुल वुरा पृष्ठ 189)

हज़रत रसूले खु़दा (स.अ.) और जनाबे अली रज़ा (अ.स.) वाक़ए तमर सीहानी

14. अल्लामा इब्ने हजर मक्की , अल्लामा शिब्लन्जी , अल्लामा अब्दुल्लाह रक़म तराज़ हैं कि मोहम्मद बिन हबीब का बयान है कि मैंने ख़्वाब में हज़रत रसूल खुदा (स.अ.) को अपने शहर की उस मस्जिद में देखा जिसमें हाजी उतरते और नमाज़ वग़ैरा पढ़ा करते थे। मैंने हज़रत को सलाम किया और हज़रत के पास तबक़ देखा जिसमें निहायत उम्दा खजूरें रखी हुई थीं। मेरे सलाम पर हज़रत ने अट्ठारा दाने इस खजूर के मरहमत फ़रमाये। मैं इस ख़्वाब से बेदार हुआ तो समझा कि अब सिर्फ़ अट्ठराहा साल ज़िन्दा रहूँगा। इस ख़्वाब के बीस दिन के बाद हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स.) मदीने से तशरीफ़ लाये और इसी मस्जिद में उतरे जिसमें हज़रत रसूल (स.अ.) को मैंने ख़्वाब में देखा था। हज़रत के सामने एक तबक़ में देसी खजूरें रखी थीं। लोग हज़रत को सलाम करने के लिये दौड़े , मैं भी गया तो देखा कि हज़रत उसी जगह तशरीफ़ फ़रमा हैं जहां मैंने ख़्वाब में रसूले ख़ुदा (स.अ.) को तशरीफ़ फ़रमा देखा था। मैंने सलाम किया तो हज़रत ने जवाब दिया और अपने क़रीब बुला कर एक मुठ्ठी इस तबक़ की खजूरें मरहमत फ़रर्माईं मैंने गिनी तो वह भी अट्ठारा थीं। इसी क़द्र जितनी रसूले ख़ुदा (स.अ.) ने मुझे ख़्वाब मे दी थीं। मैंने अर्ज़ कि हुज़ूर और कुछ मरहमत हों तो फ़रमायें। आपने फ़रमाया ‘‘ लौ ज़ादेका रसूल अल्लाह लज़्दे नाक ’’ कि अगर रसूले ख़ुदा (स.अ.) तुम को ख़्वाब में इससे ज़्यादा दिये होते तो मैं भी ज़्यादा देता।( सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 122, नूरूल अबसार पृष्ठ 144, अरजहुल मतालिब पृष्ठ 454)