चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.


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ख़लीफ़ा मामून रशीद अब्बासी और हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स.)

हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) के वालिदे माजिद हज़रत इमाम मूसिए काज़िम (अ.स.) को 183 हिजरी में हारून रशीद अब्बासी ज़हर से शहीद कराने के बाद 193 हिजरी में फ़ौत हो गया। इसके मरने के बाद जमादील सानी 193 हिजरी में इसका बेटा अमीन ख़लीफ़ा हुआ। हारून चुंकि अपने बेटों में सलतनत तक़सीम कर चुका था और उसके उसूल मोअय्यन कर चुका था इस लिये एक के बजाय दो हुक्मरानें रशीदी हुदूदे सलतनत पर हुक्मरानी करने लगे। अमीन चुंकि निहायत ही लग़ों आदमी था इस लिये उसने अपने उसअते इख़्तेयार की वजह से मामून पर जबरो ताअद्दी शुरू कर दी बिल आखि़र दोनों भाईयों में जंग हुई और अमीन चार साल आठ माह सलतनत करने के बाद 23 मोहर्रम हराम 198 हिजरी में क़त्ल कर दिया गया।

अमीन के क़त्ल के बाद भी मामून चार साल तक मर्व में रहा। सलतनत का कारोबार तो फ़ज़ल बिन सुहेल के सुपुर्द कर रखा था और खुद आलमों फ़ाज़िलों से जो उसके दरबार में भरे रहते थे फ़लसफ़ी मुबाहिसों में मसरूफ़ रहता था। ईराक़ में फ़ज़ल का भाई , हसन बिन सुहेल गर्वनर बनाया गया था। अबूहज़ीरह में नसर बिन नशिस्त अक़ील ने बग़ावत की और वह पांच साल तक शाही फ़ौजों का मुक़ाबला करता रहा। ईराक़ में बद्दू , लुच्चों , बदमाशों को बुलाकर हसन बिन सुहेल के खि़लाफ़ अलमे बग़ावत बुलन्द कर दिया। यह हालत देख कर हज़रत अली (अ.स.) और हज़रत जाफ़र तैय्यार के बाज़ बुलन्द नज़र नौनिहालों ने शायद यह ख़्याल किया कि इनके हुकू़क़ वापस मिलने का वक़्त आ गया है। चुंनाचे जमादिल सानी 199 हिजरी मुताबिक़ 814 ई 0 में अबू अब्दुल्लाह बिन इब्राहीम बिन इस्माईल बिन इब्राहीम अल मारूफ़ बा तबा बिन हसन अली बिन अबी तालिब अलवी ने जो मज़हब ज़ैदिया रखते थे कूफ़े में ख़रूज किया और लोगों को आले रसूल की बैअत और मुताबेअत की दावत दी। इनकी मद्द पर बनी शैबान का मुअजि़्ज़ज़ सरदार अबुल सरयासरी बिय मन्सूर शैबानी जो हर समह के फ़ौजी सरदारों में से था उठ खड़ा हुआ उन्होंने अपनी मुत्तफ़ेक़ा अफ़वाज से हसन की फ़ौज को कूफ़े के बाहर शिकस्त दे कर तमाम जुनूबी ईराक़ पर क़ब्ज़ा कर लिया।

फ़तेह के दूसरे दिन मोहम्मद बिन इब्राहीम मर्गे मफ़ाजात से फ़ौत हो गये। अबू असराया ने इनकी जगह मोहम्मद निब ज़ैद शहीद को अमीर बना लिया। हसन ने फिर फ़ौज भेजी। अबुल सराया ने उसे भी मार कर फ़ना कर दिया। इसी दौरान अलवी हर चार जानिब से अबुल सरया की मद्द को जमा जो गए और जा बजा शहरों में फैल गये और अबुल सरया ने कूफ़े में इमाम रज़ा (अ.स.) के नाम दिरहम व दीनार ‘‘ मस्कूक ’’ कराए और बसरा वस्ता , मदाएन की तरफ़ फ़ौज रवाना की और ईराक़ के बहुत से शहरो क़रिए फ़तह कर लिये। अलवीयों की क़ूवत व शौकत बहुत बढ़ गई। उन्होंने अब्बासीयो के घर जो कूफ़े में थे फूंक दिये और जो अब्बासी मिला उसे क़त्ल कर डाला। इसके बाद मौसमे हज आया तो अबू असराया ने हुसैन बिन हसन इब्ने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को जिन्हें अफ़तस कहते हैं मक्का का गर्वनर मुक़र्रर किया और इब्राहीम बिन मूसा काज़िम को यमन का आमिल बनाया और फ़ारस पर इस्माईल बिन मूसा काफ़िम को गर्वनर किया और मदायन की तरफ़ मोहम्मद बिन सुलैमान बिन दाऊद हसन मुसन्ना को रवाना किया और हुक्म दिया कि जानिबे शरक़ी से बग़दाद पर हमला करें। इस तरह अबुल सरया की सलतनत बहुत वसी हो गई।

फ़ज़ल बिने सहल ने हरसमा को अबू सराया की सरकोबी के लिये रवाना किया और अबूल सराया नहरवान के क़रीब शिकस्त खा कर मारा गया और मोहम्मद बिने मोहम्मद बिने जै़द मामून के पास मर्व भेज दिये गये। अबू सराया का दौरा दौरा कुल दस माह रहा। अबू सराया के क़त्ल हो जाने के बाद हिजाज़ में लोेगों ने मोहम्मद बिने जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) को अमीरल मोमेनीन बनाया। अफतस ने भी उनकी बैअत कर ली और यमन में इब्राहीम बिने मूसिए काज़िम (अ.स.) ने सर उठाया। इसी तरह ईरान की सरहद से यमन तक तमाम मुल्क में ख़ाना जंगी फैल गई। अबुल सराया के क़त्ल के बाद हरसमा मग़रिब के हालात बयान करने को बादशाह की खि़दमत में मर्व हाज़िर हुआ क्यों कि वज़ीर इन तमाम हालात को बादशाह से मख़फ़ी रखता था। हालात बयान कर के वह बादशाह के पास से वापस आ रहा था कि वज़ीर ने रास्ते में उसे क़त्ल करा दिया। यह वाक़ेया 200 हिजरी का है। हरसूमा के क़त्ल की ख़बर सुन कर बग़दाद के सिपाहीयों ने जो उसे दोस्त रखते थे बग़दादियों में बग़ावत कर के हसन बिने सहल को निकाल दिया और मन्सूर बिन मेहदी को अपना गर्वनर बना लिया।

मामून को बाग़ियों की कसरत और अलवियों की तलबे खि़लाफ़त में उठने की ख़बर पहुँची तो घबरा गया और उसने यही मसलहत देखी कि इमाम अली रज़ा (अ.स.) को वली अहद बना ले। चुनान्चे उनको मदीने से बुला कर 2 रमज़ान 201 हिजरी मुताबिक़ 816 ई 0 को बवजूद उनके सख़्त इंकार के अपना वली अहद बना लिया। उनसे अपनी बेटी उम्मे हबीबा की शादी कर दी। उनका नाम दिरहमों दीनार में मस्कूक कराया। शाही वर्दी से अब्बसीयों का सियाह रंग दूर कर के बनी फ़ात्मा का सब्ज़ रंग इख़्तियार किया।( तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 61) इस वाक़िए तफ़सील कसीर किताबों में मौजूद है। हम मुख़सर अलफ़ाज़ में तहरीर करते हैं।

मामून रशीद की मजलिसे मुशाविरत

हालात से मुतासिर हो कर मामून रशीद ने एक मजलिसे मुशाविरत तलब की जिसमें उलमा , फ़ुज़ला , जुमआ और उमरा सभी को मदऊ किया। जब सब जमा हो गए तो असल राज़ दिल में रखते हुए उनसे यह कहा कि चूंकि शहरे ख़ुरासान में हमारी तरफ़ से कोई हाकिम नहीं है और इमाम रज़ा (अ.स.) से ज़्यादा लाएक़ कोई नहीं है इस लिये हम चाहते हैं कि इमाम रज़ा (अ.स.) को बुला कर वहां की ज़िम्मेदारी उनके सुपुर्द कर दें। मामून का मक़सद तो यह था कि उनको ख़लीफ़ा बना कर अलवियों की बग़ावत और उनकी चाबुक दस्ती को रोक दे लेकिन यह बात उसने मजलिसे मुशाविरत में ज़ाहिर नहीं कि बल्कि मुल्की ज़रूरत का हवाला दे कर उन्हें ख़ुरासान का हाकिम बनाना ज़ाहिर किया और लोगों ने तो इस पर जो भी राय दी हो लेकिन हसन बिने सहल और वज़ीरे आज़म फ़ज़ल बिने सहल इस पर राज़ी न हुए और यह कहा कि इस तरह खि़लाफ़त बनी अब्बास से आले मोहम्मद (अ.स.) की तरफ़ मुन्तक़िल हो जायेगी। मामून ने कहा मैंने जो कुछ सोचा है वह यही है और उस पर अमल करूंगा यह सुन कर वह लोग ख़ामोश हो गए। इतने में हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) के एक मोअजि़्ज़ज़ सहाबी , सुलेमान बिने इब्राहीम बिने मोहम्मद बिने दाऊद बिने क़ासिम बिने हैबत बिने अब्दुल्लाह बिने हबीब बिने शैख़ान बिने अरक़म खड़े हो गए और कहने लगे ऐ मामून रशीद ‘‘ रास्त मी गोई इमामी तरसम कि तू हज़रते इमाम रज़ा हमाना कुनी कि कूफ़ियान बा हज़रते इमाम हुसैन करदन्द ’’ तू सच कहता है लेकिन मैं डरता हूँ कि तू कहीं इनके साथ वही सुलूक न करे जो कूफ़ियों ने इमाम हुसैन (अ.स.) के साथ किया है। मामून रशीद ने कहा , ऐ सुलेमान ! तुम यह क्या सोच रहे हो ऐसा हरगिज़ नहीं हो सकता मैं उनकी अज़मत से वाक़िफ़ हूँ जो उन्हें सताएगा क़यामत में हज़रते रसूले करीम (स.अ.) हज़रते अली हकीम (अ.स.) को क्यों कर मुंह दिखाएगा तुम मुतमईन रहो इन्शा अल्लाह इनका एक बाल बीका न होगा। यह कह कर बा रवाएते अबू मख़नफ़ मामून रशीद ने क़ुराने मजीद पर हाथ रखा और क़सम खा कर कहा मैं हरगिज़ औलादे पैग़म्बर पर कोई ज़ुल्म न करूंगा। इसके बाद सुलेमान ने तमाम लोगों को कसम दे कर बैअत ले ली फिर उन्होंने एक बैअत नामा तैयार किया और उस पर अहले ख़ुरासान के दस्तख़त लिये। दस्तख़त करने वालों की तादाद चालीस हज़ार थी। बैअत नामा तैय्यार होने के बाद मामून रशीद ने सुलैमान को बैअत नामा समेत मदीने भेज दिया। सुलेमान क़ता मराहिल व तै मनाज़िल करते हुए मदीने मुनव्वरा पहुँचे और हज़रते इमाम रज़ा (अ.स.) से मुलाक़ात की। उनकी खि़दमत में मामून का पैग़ाम पहुँचाया और मजलिसे मशाविरत के सारे वाक़ियात बयान किये और बैअत नामा हज़रत की खि़दमत में पेश किया। हज़रत ने ज्यों ही उसको खोला और उसका सर नामा देखा सरे मुबारक हिला कर फ़रमाया कि यह मेरे लिये किसी तरह मुफ़ीद नहीं है। इस वक़्त आप आब दीदा थे। फिर आपने फ़रमाया कि मुझे जद्दे नाम दार ने ख़्वाब में नतीजा व अवाक़िब से आग़ाह कर दिया है। सुलैमान ने कहा मौला यह तो ख़ुशी का मौक़ा है। आप इस दर्जा परेशान क्यों हैं ? इरशाद फ़रमाया कि मैं इस दावत में अपनी मौत देख रहा हूँ। उन्होंने कहा मौला मैंने सब से बैअत ले ली है। कहा दुरूस्त है , लेकिन जद्दे नाम दार ने जो फ़रमाया है वह ग़लत नहीं हो सकता। मैं मामून के हाथों शहीद किया जाऊंगा।

बिल आखि़र आप पर कुछ दबाव पड़ा कि आप मर्व ख़ुरासान के लिये आज़िम हो गए। जब आप के अज़ीज़ों और वतन वालों को आपकी रवानगी का हाल मालूम हुआ बेपनाह रोए।

ग़रज़ कि आप रवाना हो गए। रास्ते में एक चश्मा ए आब के किनारे चन्द आहुओं को देखा कि वह बैठे हुए हैं , जब उनकी नज़रे हज़रत पर पड़ी सब दौड़ पड़े और ब चश्मे तर कहने लगे कि हुज़ूर ख़ुरासान न जायें कि दुश्मन बा लिबासे दोस्ती आपकी ताक में है और मलकुल मौत इस्तेग़बाल के लिये तैय्यार है। हज़रत ने फ़रमाया कि अगर मौत आनी है तो हर हाल में आयेगी। (कन्जु़ल अन्साब अबू मख़नफ़ 807 प्रकाशित बम्बई 1302 हिजरी )

एक रवायत में है कि मामून रशीद ने अपनी ग़रज़ के लिये जब हज़रत को ख़लीफ़ा ए वक़्त बनाने के लिये लिखा तो आपने इनकार कर दिया। फिर उसने तहरीर किया कि आप मेरी वली अहदी को क़ुबूल कीजिए। आपने इसे भी इन्कार कर दिया। जब वह आपकी तरफ़ से मायूस हो गया तो उसने 300 अफ़राद पर मुश्तमिल फ़ौज भेज दी और हुक्म दे दिया कि वह जिस हालत में हो और जहां हो उनको गिरफ़्तार कर के लाया जाए और उन्हें इतनी मोहलत न दी जाए कि वह किसी से मिल सकें। चुनान्चे फ़ौज ग़ालेबन फ़ज़ल बिने सहल वज़ीरे आज़म की क़यादत में मदीने पहुँची और इमाम (अ.स.) मस्जिद से गिरफ़्तार कर के मर्व ख़ुरासान के लिये रवाना हो गये। इतना मौक़ा न दिया कि इमाम (अ.स.) अपने अहलो अयाल से रूख़सत हो लेते।

मामून की तलबी से क़ब्ल इमाम (अ.स.) की रौज़ा ए रसूल पर फ़रयाद

अबू मख़नफ़ बिने लूत बिने यहया ख़ज़ाई का बयान है कि हज़रते इमाम मूसिए काज़िम (अ.स.) की शहादत के बाद 15 मोहर्रमुल हराम शबे यक शम्बा को हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) ने रौज़ा ए रसूले ख़ुदा (स.अ.) पर हाज़री दी। वहां मशग़ूले इबादत थे कि आंख लग गई , ख़्वाब में देखा कि हज़रत रसूले करीम (स.अ.) बा लिबासे स्याह तशरीफ़ लाये हैं और सख़्त परेशान हैं। इमाम (अ.स.) ने सलाम किया हुज़र ने जवाबे सलाम दे कर फ़रमाया , ऐ फ़रज़न्द ! मैं और अली (अ.स.) , फ़ात्मा (स.अ.) हसन (अ.स.) , हुसैन (अ.स.) सब तुम्हारे ग़म में नाला व गिरया हैं और हम ही नहीं फ़रज़न्द ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) व मोहम्मद बाक़र (अ.स.) , जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) और तुम्हारे पदर मूसिए काज़िम (अ.स.) सब ग़मगीन और रंजीदा हैं। ऐ फ़रज़न्द ! अन्क़रीब मामून रशीद तुम को ज़हर से शहीद कर देगा। यह देख कर आपकी आंख खुल गई और आप ज़ार ज़ार रोने लगे। फिर रौज़ा ए मुबारक से बाहर आए। एक जमाअत ने आपसे मुलाक़ात की और आपको परेशान देख कर पूछा कि मौला इज़तिराब की वजह क्या है ? फ़रमाया , अभी अभी जद्दे नाम दार ने मेरी शहादत की ख़बर दी है। अबुल सलत दुश्मन मुझे शहीद करना चाहते हैं और मैं खुदा पर पूरा भरोसा करता हूँ जो मरज़िए माबूद हो वही मेरी मरज़ी है इस ख़्वाब के थोड़े अर्से के बाद मामून रशीद का लशकर मदीने पहुँच गया और इमाम (अ.स.) को अपनी सियासी ग़रज़ पूरी करने के लिये वहां से दारूल खि़लाफ़त ‘‘ मर्व ’’ में ले आया।( कन्ज़ुल अन्साब पृष्ठ 86)

इमाम रज़ा (अ.स.) की मदीने से मर्व में तलबी

अल्लामा शिब्लन्जी लिखते है कि हालात की रौशनी में मामून ने अपने मुक़ाम पर यह क़तई फ़ैसला और अज़म बिल जज़म कर लेने के बाद कि इमाम रज़ा (अ.स.) को वली अहले खि़लाफ़त बनायेगा। अपने वज़ीरे आज़म फ़ज़ल बिन सहल को बुला कर भेजा और उससे कहा कि हमारी राए है कि हम इमाम रज़ा (अ.स.) को वली अहद सुपुर्द कर दे तुम भी इस पर सोच विचार करो और अपने भाई हसन बिन सहल से मशविरा करो। इन दोनों ने आपस में दबादलाए ख़यालात करने के बाद मामून की बारगाह में हाज़री दी। उनका मक़सद था कि मामून ऐसा न करे वरना खि़लाफ़त आले अब्बास से आले मोहम्मद (अ.स.) में चली जायेगी। उन लोगों ने अगर चे खुल कर मुख़ालफ़त न की लेकिन दबे लफ़्ज़ों में नाराज़गी का इज़हार किया। मामून ने कहा मेरा फ़ैसला अटल है और मैं तुम दोनों को हुक्म देता हूँ कि तुम मदीने जा कर इमाम रज़ा (अ.स.) को अपने हमराह लाओ। (हुक्मे हाकिम मर्गे मफ़ाजात) आखि़र कार यह दोनों इमाम रज़ा (अ.स.) की खि़दमत में मक़ामे मदीने मुनव्वरा हाज़िर हुए और उन्होंने बादशाह का पैग़ाम पहुँचाया। हज़रते इमाम अली रज़ा (अ.स.) ने इस अर्ज़ दाश्त को मुस्तरद कर दिया और फ़रमाया कि इस अम्र के लिये अपने को पेश करने के लिये माज़ूह हूँ लेकिन चूंकि बादशाह का हुक्म था कि उन्हें ज़रूर लाओ इस लिये उन दोनों ने बे इन्तेहा इसरार किया और आपके साथ उस वक़्त तक लगे रहे जब तक आपने मशरूत तौर पर वादा नहीं कर लिया।( नूरूल अबसार पृष्ठ 41)

इमाम रज़ा (अ.स.) की मदीने से रवानगी

तारीख़ अबुल फ़िदा में है कि जब अमीन क़त्ल हुआ तो मामून सलतनते अब्बासिया का मुस्तक़िल बादशाह बन गया। यह ज़ाहिर है कि अमीन के क़त्ल होने के बाद सलतनत मामून के पाए नाम हो गई मगर यह पहले कहा जा चुका है कि अमीन नाननहाल की तरफ़ से अरबीउन नस्ल था और मामून अजमिउन नस्ल था। अमीन के क़त्ल होने से ईराक़ की अरब का़ैम और अरकाने सलतनत के दिल मामून की तरफ़ से साफ़ नहीं हो सकते थे बल्कि वह ग़मो ग़स्से की कैफ़ीयत महसूस करते थे दूसरी तरफ़ खुद बनी अब्बास में से एक बडी़ जमाअत जो अमीन की तरफ़ दार थी इससे भी मामून को हर तरह का ख़तरा लगा हुआ था। औलादे फ़ात्मा (स.अ.) में से बहुत से लोग जो वक़्त्न फ़वक़्तन बनी अब्बास के मुक़ाबिल ख़ड़े होते रहते थे वह ख़्वाह क़त्ल कर दिये गये हों या जिला वतन किये गए हों या क़ैद रखे गए हों उनके मुआफ़िक़ एक जमाअत थी जो अगर चे हुकूमत का कुछ बिगाड़ न सकती थी मगर दिल ही दिल में हुकूमते बनी अब्बास से बेज़ार ज़रूर थी। ईरान में अबू मुस्लिम ख़ुरासानी ने बनी उमय्या के खि़लाफ़ जो इश्तेआल पैदा किया वह इन मज़ालिम को याद दिला कर जो बनी उमय्या के हाथों हज़रते इमाम हुसैन (अ.स.) और दूसरे बनी फ़ात्मा (स.अ.) के साथ किये गये थे। इस से ईरान में इस ख़ानदान के साथ हमदर्दी का पैदा होना फ़ितरी था। दरमियान में बनी अब्बास ने इससे ग़लत फ़ायदा उठाया मगर इतनी मुद्दत में कुछ ना कुछ ईरानियों की आंखें भी खुल गई होगीं कि उनसे कहा गया था क्या और इक़्तेदार किन लोगों ने हासिल कर लिया है। मुम्किन है कि ईरानी क़ौम के इन रूझानात का चर्चा मामून के कानो तक भी पहुँचा हो। अब जिस वक़्त की अमीन के क़त्ल के बाद वह अरब क़ौम पर और बनी अब्बास के ख़ानदान पर भरोसा नहीं कर सकता था और उसे हर वक़्त इस हल्क़े से बग़ावत का अन्देशा था तो उसे इसी सियासी मस्लहत इसी में मालूम हुई। अरब के खि़लाफ़ अजम और बनी अब्बास के खि़लाफ़ बनी फ़ात्मा को अपना बनाया जाए और चुंकि तरज़े अमल में ख़ुलूस समझा नहीं जा सकता और वह आम तबाए पर असर नहीं डाल सकता। अगर यह नुमाया हो जाए कि वह सीयासी मसलहतों की बिना पर है इस लिये ज़रूरत हुई कि मामून मज़हबी हैसियत से अपनी शियत नवाज़ी और विलाए अहले बैत के चर्चे अवाम में फैलाए और वह यह दिखलाए कि वह इन्तेहाई नेक नीयती पर क़ाएम है। ‘‘ अब हक़ बा हक़दार रसीद के मकूले को सच्चा बनाना चाहता है।’’

इस सिलसिले में जनाबे शेख़ सद्दूक़ आलाल्लाहो मुक़ामा ने फ़रमाया है कि इसने अपनी नज़र की हिक़ायत भी शाया की कि जब अमीन का और मेरा मुक़ाबला था और बहुत नाज़ुक हालत थी और यह उसी वक़्त मेरे खि़लाफ़ सीसतान और किरमान में भी बग़ावत हो गई थी और ख़ुरासान में भी बेचैनी फैली हुई थी और फ़ौज की तरफ़ से भी इतमिनान न था और उस वक़्त दुश्वार माहोल में मैंने खुदा से इलतिजा की और मन्नत मानी कि अगर यह सब झगड़े ख़त्म हो जायें और मैं बामे खिलाफ़त तक पहुँचू तो उसको उसके असली हक़दार यानी औलादे फ़ात्मा मे से जो इसका अहल है उस तक पहुँचा दूंगा। इसी नज़र के बाद मेरे सब काम बनने लगे और आखि़र तमाम दुश्मनों पर फ़तेह हासिल हुई यक़ीनी यह वाक़िया मामून की तरफ़ से इस लिये बयान किया गयाा कि इसका तर्ज़े अमल खुलूसे नियत और हुस्ने नियत पर मुबनी समझा जाए। यूं तो अहले बैत (अ.स.) के खुले दुश्मन सख़्त से सख़्त थे वह भी इनकी हक़ीक़त और फ़ज़ीलत से वाक़िफ़ थे। मगर शीयत के मानी यह जानना तो नहीं है बल्कि मोहब्बत रखना और इताअत करना है और मामून के तरज़े अमल से यह ज़ाहिर है कि वह इस दावाए शीयत और मोहब्बते अहले बैत का ढिंढोरा पीटने के बावजूद खुद इमाम की इताअत नहीं करना चाहता था बल्कि इमाम को अपना मंशा के मुताबिक़ चलाने की कोशिश थी। वली अहद बनने के बारे में आपके इख़्तेआरात को बिल्कुल सलब कर दिया गया और आपको मजबूर बना दिया गया था। इससे ज़ाहिर है कि यह वली अहदी की तफ़वीज भी एक हाकिमाना तशद्द था जो उस वक़्त इमाम के साथ किया जा रहा था।

इमाम रज़ा (अ.स.) का वली अहदी को क़ुबूल करना बिल्कुल वैसा ही था जैसा हारून के हुक्म से इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) का जेल ख़ाने में चला जाना। इस लिये जब इमाम रज़ा (अ.स.) मदीने से ख़ुरासान की तरफ़ रवाना हो रहे थे तो आपके रंजो सदमा और इस्तेराब की कोई हद न थी। रौज़ा ए रसूल से रूख़सत के वक़्त आपका वही आलम था जो हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का मदीने से रवानगी के वक़्त था। देखने वालों ने देखा कि आप बे ताबाना रौज़े के अन्दर जाते हैं और नालाओ आह के साथ उम्मत की शिकायत करते हैं। फिर बाहर निकल कर घर जाने का इरादा करते हैं और फिर दिल नहीं मानता फिर रौज़े से लिपट जाते हैं यही सूरत कई मरतबा हुई। रावी का बयान है कि मैं हज़रत के क़रीब गया तो फ़रमाया , ऐ महूल ! मैं अपने जद्दे अमजद के रौज़े से ब जब्र जुदा किया जा रहा हूँ , अब मुझको यहां आना नसीब न होगा।( सवानेह इमाम रज़ा ( . . ) जिल्द 3 पृष्ठ 7)

महूल शैबानी का बयान है कि जब वह ना गवार वक़्त पहुँच गया कि हज़रते इमाम रज़ा (अ.स.) अपने जद्दे बुज़ुर्गवार के रौज़ा ए अक़दस से हमेशा के लिये विदा हुए तो मैंने देखा कि आप बेताबान अन्दर जाते और बा नालाओ आह बाहर आते हैं और दिल में उम्मत की शिकायत करते हैं या बाहर आ कर गिरया ओ बुका फ़रमाते हैं और फिर अन्दर चले जाते हैं। आपने चन्द बार ऐसे ही किया और मुझसे न रहा गया और मैंने हाज़िर हो कर अर्ज़ की मौला इज़्तेराब की क्या वजह है ? फ़रमाया , ऐ महूल ! मैं अपने नाना के रौज़े से जबरन जुदा किया जा रहा हूँ। मुझे इसके बाद अब यहां आना न नसीब होगा। मैं इसी मुसाफ़िरत और ग़रीबुल वतनी में क़त्ल कर दिया जााऊंगा और हारून रशीद के मक़बरे में मदफ़ून हूंगा। उसके बाद आप दौलत सरा में तशरीफ़ लाए और सब को जमा कर के फ़रमाया कि मैं तुम से हमेशा के लिये रूख़सत हो रहा हूँ। यह सुन कर घर में एक अज़ीम कोहराम बरबा हो गया और सब छोटे बड़े रोने लगे। आपने सब को तसल्ली दी और कुछ दीनार आइज़्ज़ा में तक़सीम कर के राहे सफ़र इख़्तेयार फ़रमाया। एक रवायत की बिना पर आप मदीने से रवाना हो कर मक्के मोअज़्ज़मा पहुँचे और वहां तवाफ़ कर के ख़ाना ए काबा को रूख़सत फ़रमाया।

बाप की शमशीर का हमसर है बेटे का क़लम।

बाज़ुए हैदर की ताक़त , खा़मए शब्बर में है।।

फ़तेह ख़ैबर में है मुज़मर मक़सदे सुलहे हसन।

मक़सदे सुलहे हसन , फ़तहे दरे ख़ैबर में है।।

साबिर थरयानी (कराची)

वली ज़ुलमेनन , हज़रत हसन , आँ सरवरे ख़ूबां।

कि हर चीज़ अज़ अदम बाकु़दर तश मुमकिन ज़े इमकाँ शुद।।

ज़ेहे सौदाए बातिल , के तवानम , मदहे आँ शाहे।

कि मदाहश ख़ुदा , रावी पयम्बर , मदहे कु़रां शुद।।

हज़रत इमाम हसन (अ स ) , अमीरल मोमेनीन हज़रत अली (अ.स.) व सय्यदतुननिसां हज़रत फ़ात्मा (स अ व व ) के फ़रज़न्द और पैग़म्बरे ख़ुदा हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) व मोहसिने इस्लाम हज़रत ख़दीजतुल कुबरा के नवासे थे। आपको खु़दा वन्दे आलम ने मासूम मन्सूस अफ़ज़ले कायनात आलिमे इल्मे लदुन्नी क़रार दिया है।

आपकी विलादत

आप 15 रमज़ानुल मुबारक 3 हिजरी की शब को मदीनाए मुनव्वरा में पैदा हुये। विलादत से क़ब्ल उम्मे अफ़ज़ल ने ख़्वाब में देखा कि रसूले अकरम (स अ व व ) के जिस्मे मुबारक का एक टूकड़ा मेरे घर में आ पहुँचा है। ख़्वाब रसूले करीम (स अ व व ) से बयान किया। आपने फ़रमाया कि इसकी ताबीर यह है कि मेरे लख़्ते जिगर फ़ात्मा के बत्न से एक बच्चा पैदा होगा जिसकी परवरिश तुम करोगी। मुवर्रेखी़न का बयान है कि रसूल (स अ व व ) के घर में आपकी पैदाईश अपनी नवैय्यत की पहली ख़ुशी थी। आपकी विलादत ने रसूल (स अ व व ) के दामन में मक़तूलून् नसल होने का धब्बा साफ़ कर दिया और दुनियां के सामने सूरए कौसर की एक अमली और बुनियादी तफ़सीर पेश कर दी।

आपका नामे नामी

विलादत के बाद इस्मे गेरामी हम्ज़ा तजवीज़ हो रहा था लेकिन सरवरे कायनात (स अ व व ) ने बा हुक्मे खुदा मूसा (अ.स.) के वज़ीर हारून (अ.स.) के फ़रज़न्दों के शब्बीर व शब्बर नाम पर आपका नाम हसन और बाद में आपके भाई का नाम हुसैन रखा। बेहारूल अनवार में है कि इमाम हसन (अ.स.) की पैदाईश के बाद जिब्राईले अमीन ने सरवरे कायनात (स अ व व ) की खि़दमत में एक सफ़ैद रेशमी रूमाल पेश किया जिस पर हसन , हुसैन लिखा हुआ था। माहिरे इल्म अल नसब अल्लामा अबुल हुसैन का कहना है कि ख़ुदा वन्दे आलम ने दोनो शाहज़ादों का नाम अन्ज़ारे आलम से पोशीदा रखा था यानी इनसे पहले हसन और हुसैन नाम से कोई मोसूम नहीं था। किताबे आलमे अलवरी के मुताबिक़ यह नाम भी लौहे महफ़ूज़ में लिखा हुआ था।

ज़बाने रिसालत दहने इमामत में अल्ल शराए में है कि जब इमाम हसन (अ.स.) की विलादत हुई और आप सरवरे कायनात (स अ व व ) की खि़दमत में लाये गये तो रसूले करीम (स अ व व ) बे इन्तेहा खु़श हुये और उनके दहने मुबारक में अपनी ज़बाने अक़दस दे दी। बेहारूल अनवार में है कि आं हज़रत ने नौज़ायदा बच्चे को आग़ोश में ले कर प्यार किया और दाहिने कान में अज़ान और बांए में अक़ामत फ़रमाने के बाद अपनी ज़बान उनके मुंह में दे दी इमाम हसन (अ.स.) उसे चूसने लगे। इसके बाद आपने दुआ की ख़ुदाया इसको और इसकी औलाद को अपनी पनाह में रखना। बाज़ लोगों का कहना है कि इमाम हसन (अ.स.) को लोआबे दहने रसूल (स अ व व ) कम और इमाम हुसैन (अ.स.) को ज़्यादा चूसने का मौक़ा दस्तियाब हुआ था। इसी लिये इमामत नसले इमाम हुसैन (अ.स.) में मुस्तक़र हो गई।

आपका अक़ीक़ा

आपकी विलादत के सातवें दिन सरवरे कायनात ने खुद अपने दस्ते मुबारक से अक़ीक़ा फ़रमाया और बालों के मुंडवा कर उसके हम वज़न चांदी तसद्दुक़ की।(असद उल ग़ाबेता जिल्द 3 पृष्ठ 13 ) अल्लामा कमालुद्दीन का बयान है कि अक़ीक़े के सिलसिले में दुम्बा ज़ब्हा किया गया था।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 220 ) काफ़ी कुलैनी में है कि सरवरे कायनात (स अ व व ) ने अक़ीक़े के वक़्त जो दुआ पढ़ी थी उसमें यह इबारत भी थीः अल्लाह हुम्मा अज़महा बाअज़मा लहमहा , बिल हमा , दमहा बदमहा वशअरहा , बशराही , अल्लाहा हुम्मा अज अलहा वक़आ लम हमीदिन वालेही

तरजुमाः

खु़दाया इसकी हड्डी मौलूद की हड्डी के ऐवज़ , इसका गोश्त उसके गोश्त के एवज़ , इसका ख़ून उसके खून के ऐवज़ , इसका बाल उसके बाल के ऐवज़ क़रार दे और इसे मोहम्मद व आले मोहम्मद (स अ व व ) के लिये हर बला से नजात का ज़रिया बना दे। इमामे शाफ़ेई का कहना है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने इमामे हसन (अ.स.) का अक़ीक़ा कर के इसके सुन्नत होने की दाएमी बुनियाद डाल दी।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 220 ) बाज़ माआसेरीन ने लिखा है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने आपका ख़त्ना भी कराया था लेकिन मेरे नज़दीक यह सही नहीं है क्यो कि इमामत की शान से मख़्तून पैदा होना भी है।

कुन्नियत व अलक़ाब

आपकी कुन्नियत सिर्फ़ अबू मोहम्मद थी और आपके अलक़ाब बहुत कसीर हैं जिनमें तय्यब , तक़ी , सिब्त व सय्यद ज़्यादा मशहूर हैं। (मोहम्मद बिन तलहा शाफ़ेई का बयान है कि आपका सय्यद लक़ब खुद सरवरे कायनात का अता करदा है।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 221 )

ज़्यारते आशूरा से मालूम होता है कि आपका लक़ब नासेह और अमीन भी था।

इमामे हसन (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम (स .अ.व.व. ) की नज़र में

यह मुसल्लेमा हक़ीक़त है कि इमाम हसन (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम (स अ व व ) के नवासे थे लेकिन कु़रआने मजीद ने उन्हें फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) का दरजा दिया है और अपने दामन में जा बजा आपके तज़किरे को जगह दी है। ख़ुद सरवरे कायनात (स अ व व ) ने बे शुमार आहादीस आपके मुताअल्लिक़ इरशाद फ़रमाई हैं। एक हदीस में है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने इरशाद फ़रमाया है कि मैं हसनैन को दोस्त रखता हूं और जो उन्हें दोस्त रखे उसे भी क़द्र की निगाह से देखता हूँ। एक सहाबी का बयान है कि मैंने रसूले करीम (स अ व व ) को इस हाल में देखा है कि वह एक कंधे पर इमामे हसन (अ.स.) और एक पर इमामे हुसैन (अ.स.) को बिठाए हुए लिये जा रहे हैं और बारी बारी दोनों का मुंह चूमते जाते हैं। एक सहाबी का बयान है कि एक दिन आं हज़रत (स अ व व ) नमाज़ पढ़ रहे थे और हसनैन आपकी पुश्त पर सवार हो गये किसी ने रोकना चाहा तो हज़रत ने इशारे से मना फ़रमाया।(असाबा जिल्द 2 पृष्ठ 12 ) एक सहाबी का बयान है कि मैं उस दिन से इमाम हसन (अ.स.) को बहुत ज़्यादा दोस्त रखने लगा हूँ जिस दिन मैंने रसूले करीम (स अ व व ) की आग़ोश में बैठ कर उन्हें उनकी दाढ़ी से खेलते हुए देखा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 113 ) एक दिन सरवरे कायनात (स अ व व ) इमाम हसन (अ.स.) को कंधे पर सवार किये हुए कहीं लिये जा रहे थे , एक सहाबी ने कहा कि ऐ साहब ज़ादे तुम्हारी सवारी किस क़द्र अच्छी है , यह सुन कर आं हज़रत (स अ व व ) ने फ़रमाया कहो कि किस क़द्र अच्छा सवार है।(असद अल ग़ाब्बा जिल्द 3 पृष्ठ 15 बाहवाला तिरमिज़ी) इमाम बुख़ारी और इमाम मुस्लिम लिखते हैं कि एक दिन रसूले खुदा (स अ व व ) इमाम हसन (अ.स.) को कांधे पर बिठाए हुए फ़रमा रहे थे ख़ुदाया मैं इसे दोस्त रखता हूँ तू भी इससे मुहब्बत कर। हाफ़िज़ अबू नईम , अबू बक्र से रवायत करते हैं कि एक दिन आं हज़रत (स अ व व ) नमाज़े जमाअत पढ़ा रहे थे कि नागाह इमाम हसन (अ.स.) आ गये और वह दौड़ कर पुश्ते रसूल (स अ व व ) पर सवार हो गये यह देख कर रसूल (स अ व व ) ने निहायत नरमी के साथ सर उठाया। इख्तेतामे नमाज़ पर आपसे इसका तज़किरा किया गया तो फ़रमाया यह मेरा गुले उम्मीद है।

इब्नी हाज़ा सय्यद यह मेरा बेटा सरदार है और देखो यह अनक़रीब दो बड़े गिरोहों में सुलह करायेगा। इमाम निसाई अब्दुल्लाह इब्ने शद्दाद से रवायत करते हैं कि एक दिन नमाज़े इशा पढ़ाने के लिये आं हज़रत (स अ व व ) तशरीफ़ लाये आपकी आग़ोश में इमाम हसन (अ.स.) थे आं हज़रत नमाज़ में मशग़ूल हो गये जब सजदे में गये तो इतना तूल कर दिया कि मैं यह समझने लगा कि शायद आप पर वही नाज़िल होने लगी है। इख़्तेतामे नमाज़ पर आपसे इसका तज़किरा किया गया तो फ़रमाया कि मेरा फ़रज़न्द मेरी पुश्त पर आ गया था , मैंने यह न चाहा कि उसे उस वक़्त तक पुश्त से उतारूं जब तक कि वह खुद न उतर जाये , इस लिये सजदे को तूल देना पड़ा। हकीम तिरमिजी़ और निसाई व अबू दाऊद ने लिखा है कि आं हज़रत (स अ व व ) एक दिन महवे ख़ुत्बा थे कि हसनैन (अ.स.) आ गये और हसन (अ.स.) के पांव अबा के दामन में इस तरह उलझे कि ज़मीन पर गिर पडे़ , यह देख कर आं हज़रत (स अ व व ) ने ख़ुतबा तर्क कर दिया और मिम्बर से उतर कर आग़ोश में उठा लिया और मिम्बर पर ले जा कर ख़ुत्बा शुरू फ़रमाया।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 223 )

इमाम हसन (अ.स.) की सरदारीए जन्नत

आले मोहम्मद (अ.स.) की सरदारी मुसल्लेमात में से है , उलेमाए इस्लाम का इस पर इत्तेफ़ाक़ है कि सरवरे कायनात (स अ व व ) ने इरशाद फ़रमाया हैःالحسن والحسین سیدا شباب اهل الجنة و ابوهما خیر منهما

हसन (अ.स.) और हुसैन (अ.स.) जवानाने बहिश्त के सरदार हैं और उनके वालिदे बुज़ुर्गवार यानी अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) इन दोनों से बेहतर हैं। जनाबे हुज़ैफ़ाए यमानी का बयान है कि मैंने आं हज़रत (स अ व व ) को एक दिन बहुत ही मसरूर पा कर अर्ज़ कि मौला आज इफ़राते शादमानी की क्या वजह है ? इरशाद फ़रमाया कि मुझे आज जिब्राईल ने यह बशारत दी है कि मेरे दोनों फ़रज़न्द हसन (अ.स.) व हुसैन (अ.स.) जवानाने बेहिशत के सरदार हैं और उनके वालिद अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) उनसे बेहतर हैं।(कन्ज़ुल आमाल जिल्द 7 पृष्ठ 107, सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 117 ) इस हदीस से इसकी भी वज़ाहत हो गई है कि हज़रत अली (अ.स.) सिर्फ़ सय्यद ही न थे बल्कि फ़रज़न्दाने सियादत के बाप थे।

जज़बाए इस्लाम की फ़रावानी

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि एक दिन अबू सुफ़ियान हज़रत अली (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हो कर कहने लगा कि आप आं हज़रत (स अ व व ) से सिफ़ारिश कर के एक ऐसा मोहायदा लिखवा दीजिए जिसके रू से मैं अपने मक़सद में कामयाब हो सकूं। आप ने फ़रमाया कि आं हज़रत (स अ व व ) जो कह चुके हैं अब उसमें बाल बराबर फ़र्क़ न होगा। उसने इमाम हसन (अ.स.) से सिफ़ारिश की ख़्वाहिश की। आपकी उम्र अगरचे उस वक़्त सिर्फ़ 4 साल की थी लेकिन आप ने उस वक़्त ऐसी र्जुअत का सबूत दिया जिसका तज़किरा ज़बाने तारीख़ पर है। लिखा है कि अबू सुफ़ियान की तलब सिफ़ारिश पर आपने दौड़ कर उसकी दाढ़ी पकड़ ली और नाक मरोड़ कर कहा कलमा ए शहादत ज़बान पर जारी करो। तुम्हारे लिये सब कुछ है। यह देख कर अमीरूल मोमेनीन (अ.स.) मसरूर हो गये।(मनाक़िबे आले अबू तालिब जिल्द 4 पृष्ठ 46 )

इमाम हसन (अ.स.) और तरजुमानी वही

अल्लामा मजलिसी तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम हसन (अ.स.) का यह तरीका था कि आप इन्तेहाई कम सिनी के आलम में अपने नाना पर नाज़िल होने वाली वही मन अन अपनी वालेदा माजेदा को सुना दिया करते थे। एक दिन हज़रत अली (अ.स.) ने फ़रमाया कि ऐ बिन्ते रसूल मेरा जी चाहता है कि हसन को तरजुमानीए वही खुद करते हुए देखूं और सुनूं सय्यदा (स अ व व ) ने इमाम हसन (अ.स.) के पहुँचने का वक़्त बता दिया। एक दिन अमीरल मोमेनीन (अ.स.) हसन (अ.स.) से पहले दाखि़ले ख़ाना हो गये और गोशा ख़ाना में छुप कर बैठ गए। इमाम हसन (अ.स.) हसबे मामूल तशरीफ़ लाये और मां की आग़ोश में बैठ कर वही सुनानी शुरू कर दी , लेकिन थोड़ी देर के बाद अर्ज़ कि , ‘‘ या अमाह क़द तलजलज लेसानी व कुल बयानी लाअल सय्यदी यरानी ’’ मादरे गेरामी आज वही तरजुमानी में लुक़नत और बयाने मक़सद में रूकावट हो रही है मुझे ऐसा मालूम होता है कि जैसे मेरे बुजु़र्ग मोहतरम मुझे देख रहे हों। यह सुन कर हज़रत अमीरल मोमेनीन (अ.स.) ने दौड़ कर इमाम हसन (अ.स.) को आग़ोश में उठा लिया और बोसा देने लगे।(बेहारूल अनवार जिल्द 10 पृष्ठ 193 )

हज़रत इमाम हसन (अ.स.) का बचपन में लौहे महफ़ूज़ का मुतालेआ करना।

इमाम बुख़ारी रक़म तराज़ हैं कि एक दिन कुछ सदक़े की खजूरें आईं हुई थीं इमाम हसन (अ.स.) इसके ढेर से खेल रहे थे और खेल ही के तौर पर इमाम हसन (अ.स.) ने दहने अक़दस में रख ली , यह देख कर आं हज़रत (स अ व व ) ने फ़रमाया , ऐ हसन क्या तुम्हें मालूम नहीं है कि हम लोगों पर सदक़ा हराम है।(सही बुखारी पारा 6 पृष्ठ 25 )

हज़रत हुज्जतुल इस्लाम शहीदे सालिस का़ज़ी नूर उल्लाह शूशतरी फ़रमाते हैं कि इमाम पर अगरचे वही नाज़ील नहीं होती लेकिन उसको इल्हाम होता है और वह लौहे महफ़ूज़ का मुतालेआ करता है जिस पर अल्लामा इब्ने हजरे असक़लानी का वह क़ौल दलालत करता है जो उन्होंने सही बुखा़री की इस रवायत की शरह में लिखा है जिसमें आं हज़रत (स अ व व ) ने इमाम हसन (अ.स.) के शीरख़्वारगी के आलम में सदक़े की खजूर के मुंह में रख लेने पर ऐतेराज़ फ़रमाया था। ‘‘ कख़ कख़ अमा ताअलम अनल सदक़तः अलैना हराम ’’ थूकू थूकू क्या तुम्हें मालूम नहीं कि हम लोगों पर सदक़ा हराम है और जिस शख़्स ने यह ख़्याल किया कि इमाम हसन (अ.स.) उस वक़्त दूध पीते थे , आप पर अभी शरई पाबन्दी न थी आं हज़रत (स अ व व ) ने उन पर क्यों एतेराज़ किया। इसका जवाब अल्लामा असक़लानी ने अपनी फ़तेह अलबारी शरह सही बुखा़री में दिया है कि इमाम हसन (अ.स.) और दूसरे बच्चे बराबर नहीं हो सकते। क्यों कि ‘‘انا الحسن یتلالع لوح المحفوظ ’’ इमाम हसन (अ.स.) शीर ख़्वारगी के आलम में भी लौहे महफ़ूज़ का मुतालेआ किया करते थे।(हक़ाएक़ुल हक़ पृष्ठ 127 )

ख़लीफ़ाए अव्वल को मिम्बरे रसूल (स .अ.व.व. ) से उतरने का हुक्म

अल्लामा इब्ने हसर और इमामे सियूती रक़मतराज़ हैं कि इमाम हसन (अ.स.) एक दिन मस्जिदे रसूल (स अ व व ) से गुज़रे। आपने देखा कि हज़रत अबू बक्र मिम्बरे रसूल (स अ व व ) पर बैठे हुये है आप से रहा न गया और आप मिम्बर के क़रीब तशरीफ़ ले जा कर फ़रमाने लगेانزل ممنر ابی

मेरे बाप के मिम्बरे से उतर आओ , यह तुम्हारे बैठने की जगह नहीं है , यह सुन कर वह मिम्बर से उतर आये और इमाम हसन (अ.स.) को अपनी आग़ोश में बैठा लिया।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 105, तारीलख अल ख़ोल्फ़ा पृष्ठ 55, रियाज़ुन नज़रा पृष्ठ 128 )

इमाम हसन (अ.स.) का बचपन और मसाएले इल्मिया

यह मुसल्लेमात से है कि हज़रात आइम्मा ए मासूमीन (अ.स.) को इल्मे लदुन्नी हुआ करता था। वह दुनिया में तहसीले इल्म के मोहताज नहीं हुआ करते थे। यही वजह है कि वह बचपन में ही ऐसे मसाएले इल्मिया से वाक़िफ़ होते थे जिनसे दुनिया के आम उलेमा अपनी ज़िन्दगी के आख़री उम्र तक बे बहरा रहते थे। इमाम हसन (अ.स.) जो ख़ानवादाए रिसालत की एक फ़र्द अकमल और सिलसिले असमत की एक मुस्तहकम कड़ी थे कि बचपन के हालात व वाक़ेयात देखे जायें तो मेरे दावे का सबूत मिल सकेगा।

पहला वाकिआ

मनाक़िब इब्ने शहरे आशोब में ब हवाले शरह अख़बारे क़ाज़ी नोमान मरक़ूम है कि एक सायल हज़रत अबू बक्र की खि़दमत में आया और उसने सवाल किया कि मैंने हालाते अहराम में शुतर मुर्ग़ के चन्द अन्डे भून कर खा लिये हैं बताइये कि मुझ पर क्या कफ़्फ़ारा वाजिब उल अदा हुआ ? सवाल का जवाब चूंकि उनके बस का न था , इस लिये अरक़े निदामत पेशानिये खि़लाफ़त पर आ गया। इरशाद हुआ कि इसे अब्दुल रहमान बिन औफ़ के पास ले जाओ। जो उनसे सवाल दोहराया तो वह भी ख़ामोश हो गये और कहा कि इसका हल तो अमीरल मोमेनीन (अ.स.) कर सकते हैं। साएल हज़रत अली (अ.स.) की खिदमत में लाया गया। आपने साएल से फ़रमाया कि मेरे दो छोटे बच्चे जो सामने नज़र आ रहे हैं उनसे दरयाफ़्त कर ले। साएल इमामे हसन (अ.स.) की तरफ़ मुतवज्जे हुआ और मसला दोहराया , इमामे हसन (अ.स.) ने जवाब दिया कि तूने जितने अन्डे खाए हैं उतनी ही ऊंटनियां ले कर उन्हें हामेला करा और उन से जो बच्चे पैदा हों उन्हें राहे ख़ुदा में हदियाए खा़ना काबा कर दे। अमीरल मोमेनीन (अ.स.) ने हंस कर फ़रमाया कि बेटा जवाब तो बिल्कुल सही है लेकिन यह तो बताओ कि क्या ऐसा नहीं है कि कुछ हमल ज़ाया हो जाते हैं और कुछ बच्चे मर जाते हैं। अर्ज़ कि बाबा जान बिल्कुल दुरूस्त है , मगर ऐसा भी तो होता है कि कुछ अन्डे भी ख़राब और गन्दे निकल जाते हैं। यह सुन कर साएल पुकार उठा कि एक मरतबा अपने अहद में सुलैमान बिन दाऊद ने भी यही जवाब दिया था जैसा कि मैंने अपनी किताबो में देखा है।

दूसरा वाकिआ

एक रोज़ अमीरल मोमेनीन (अ.स.) मक़ामे रहबा में तशरीफ़ फ़रमा थे और हसनैन (अ.स.) वहां मौजूद थे , नागाह एक शख़्स आ कर कहने लगा कि मैं आपकी रियाया और अहले बलद(शहरी) हूं। हज़रत ने फ़रमाया कि तू झूठ बोलता है , तू न तो मेरी रियाया में से है और न मेरे शहर का शहरी है , बल्कि तू बादशाहे रोम का फ़रसतादा है। तुझे उसने माविया के पास चन्द मसाएल दरयाफ़्त करने के लिये भेजा था और उसने मेरे पास भेज दिया है। उसने कहा या हज़रत आपका इरशाद बिल्कुल बजा है मुझे माविया ने पोशीदा तौर पर आपके पास भेजा है और इसका हाल ख़ुदा वन्दे आलम के सिवा किसी को मालूम नहीं है , मगर आप बा इल्मे इमामत समझ गये। आप ने फ़रमाया की अच्छा अब इन मसाएल के जवाबात इन दो बच्चों में से किसी एक से भी पूछ ले। यह इमाम हसन (अ.स.) की तरफ़ मुतवज्जे हो कर चाहता था कि सवाल करे कि इमाम हसन (अ.स.) ने फ़रमाया कि ऐ शख़्स तू यह दरियाफ़्त करने आया है कि , 1. हक़ो बातिल में कितना फ़ासला है ?, 2. ज़मीन व आसमान तक कितनी मसाफ़त है ?, 3. मशरिक़ व मग़रिब में कितनी दूरी है ?. 4. का़ैस क़ज़ा क्या चीज़ है ?, 5. मख़नस किसे कहते हैं ?, 6. वह दस चीज़ें क्या हैं जिनमें से हर एक को ख़ुदा वन्दे आलम ने दूसरे से सख़्त और फ़ाएक़ पैदा किया है ?.

सुन हक़ व बातिल में चार अंगुश्त का फ़र्क़ व फ़ासला है। अक्सर व बेशतर जो कुछ आंख से देखा है और जो कुछ कान से सुना व बातिल है। (आंख से देखा हुआ यक़ीनी , कान से सुना हुआ मोहताजे तहक़ीक़) ज़मीन और आसमान के दरमियान इतनी मसाफ़त है कि मज़लूम की आह और आंख की रौशनी पहुँच जाती है। मशरिक़ व मग़रिब में इतना फ़ासला है कि सूरज एक दिन में तय कर लेता है और कौसे क़ज़ा असल में कौसे ख़ुदा है। इस लिये कि क़ज़ह शैतान का नाम है। यह फ़रावनी रिज़्क़ और अहले ज़मीन के लिये ग़र्क़ से अमान की अलामत है इस लिये अगर यह ख़ुश्की में नमूदार होती है तो बारिश के अलामात से समझी जाती है और बारिश में निकलती है तो ख़त्मे बारान की अलामात में से शुमार की जाती है। मुख़न्नस वह है जिसके मुताअल्लिक़ यह मालूम न हो कि वह मर्द है या औरत और जिसके जिस्म में दोनों के आज़ा हों। इसके हुक्म यह है कि ता हदे बुलूग़ इन्तेज़ार करे , अगर मोहतलिम हो तो मर्द और हायज़ हो और पिस्तान उभर आयें तो औरत। अगर इससे मसला हल न हो तो देखना चाहिये कि उसके पेशाब की धार सीधी जाती है कि नहीं , अगर वह सीधी जाती है तो मर्द वरना औरत। और वह दस चीज़ें जिनमें से एक दूसरे पर ग़ालिब व क़वी हैं वह यह हैं कि ख़ुदा ने सब से ज़्यादा सख़्त पत्थर को पैदा किया है मगर इस से ज़्यादा सख़्त लौहा है जो पत्थर को भी काट देता है , उससे ज़्यादा सख़्त क़वी आग है जो लोहे को पिघला देती है और आग से ज़्यादा सख़्त क़वी पानी है जो आग को बूझा देता है और इससे ज़्यादा सख़्त क़वी अब्र है जो पानी को अपने कंधों पर उठाए फिरता है और उससे ज़्यादा क़वी हवा है जो अब्र को उड़ाये फिरती है और हवा से ज़्यादा सख़्त व क़वी फ़रिश्ता है जिसकी हवा महकूम है और उससे ज़्यादा सख़्त व क़वी मलकुल मौत है जो फ़रिशताए बाद की भी रूह क़ब्ज़ कर लेंगे और मलकुल मौत से भी ज़्यादा सख़्त व क़वी मौत है जो मलकुल मौत को भी मात डालेगी और मौत से भी ज़्यादा सख़्त क़वी हुक्मे ख़ुदा है। यह जवाबात सुन कर साएल फ़ड़क उठा।

तीसरी वाकिआ

हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) से मनक़ूल है कि एक मरतबा लोगों ने देखा कि एक शख़्स के हाथ में खून आलूदा छुरी है और उसी जगह एक शख़्स ज़ब्ह किया हुआ पड़ा है। जब उससे पूछा गया कि तूने उसे क़त्ल किया है तो उसने कहा हां। लोग उसे जसदे मक़तूल समेत जनाबे अमीरल मोमेनीन (अ.स.) की खि़दमत में चले। इतने में एक शख़्त दौड़ता हुआ आया और कहने लगा कि इसे छोड़ दों , इस मक़तूल का क़ातिल मैं हूँ। उन लोंगों ने उसे भी साथ ले लिया और हज़रत के पास ले गये। सारा क़िस्सा बयान किया गया। आपने पहले शख़्स से पूछा कि जब तू इसका क़ातिल नहीं था तो क्या वजह है कि अपने को इस का क़ातिल बयान किया। उसने कहा मौला मैं क़स्साब हूँ। गोसफ़न्द ज़ब्ह कर रहा था कि मुझे पेशाब की हाजत हुई। इस तरह ख़ून आलूदा छुरी लिये हुये उस ख़राबे में चला गया , वहां देखा की वह मक़तूल ताज़ा ज़िब्हा किया हुआ पड़ा है , इतने में लोग आ गये और मुझे पकड़ लिया। मैंने यह ख़्याल करते हुये कि इस वक़्त जब कि क़त्ल के सारे क़राएन मौजूद हैं मेरे इन्कार को कौन बावर करेगा। मैंने इक़रार कर लिया। फिर आपने दूसरे से पूछा कि तू इसका क़ातिल है ? उसने कहा जी हंा मैं ही उसे क़त्ल कर के चला गया था। जब देखा कि एक क़स्साब की ना हक़ जान चली जायेगी , तो हाज़िर हो गया। आपने फ़रमाया मेरे फ़रज़न्द हसन को बुलाओ वही इस मक़सद का फ़ैसला सुनायेंगे। इमाम हसन (अ.स.) आये सारा क़िस्सा सुना। फ़रमाया दोनों को छोड़ दो यह क़स्साब बे कु़सूर है और यह शख़्स अगरचे का़तिल है मगर उसने एक नफ़्स को क़त्ल किया तो दूसरे नफ़्स (क़स्साब) को बचा कर उसे हयात दी और उसकी जान बचा ली , और हुक्मे क़ुरआन है कि ! ‘‘ मन अययाहा फ़ाक़ानमा अहया अन्नास जमीअन ’’ जिसने एक नफ़्स की जान बचाई उसने गोया तमाम लोगों की जान बचाई। लेहाज़ा उस मक़तूल का ख़ून बहा बैतुलमाल से दे दिया जाये।

चौथा वाकिआ

अली इब्ने इब्राहीम क़ुम्मी ने अपनी तफ़सीर मे लिखा कि शाहे रोम ने जब हज़रत अली (अ.स.) के मुक़ाबले में माविया की चीरा दस्तियों से आगाही हासिल की तो दोनों को लिखा कि मेरे पास एक एक नुमाइन्दा भेज दें। हज़रत अली (अ.स.) की तरफ़ से इमाम हसन (अ.स.) और माविया की तरफ़ से यज़ीद की रवानगी अमल में आई। यज़ीद ने वहां पहुँच कर शाहे रोम की दस्त बोसी की और इमाम हसन (अ.स.) ने जाते ही कहा कि ख़ुदा का शुक्र है मैं यहूदी , नसरानी , मजूसी वग़ैरा नहीं हूँ बल्कि ख़ालिस मुसलमान हूँ। शाहे रोम ने चन्द तसावीर निकालीं। यज़ीद ने कहा कि मैं इन में से एक को भी नहीं पहचानता और न बता सकता हूं कि यह किन हज़रात की शक्लें हैं। हज़रत इमाम हसन (अ.स.) ने , हज़रत आदम (अ स ) , हज़रत नूह (अ स ) , हज़रत इब्राहीम (अ.स.) और शुऐब (अ.स.) व याहीया (अ.स.) की तसवीरें देख कर शक्लें पहचान लीं और एक तसवीर देख कर आप रोने लगे। बादशाह ने पूछा यह किसी तसवीर है ? फ़रमाया मेरे जद्दे नामदार की। इसके बाद बादशाह ने सवाल किया कि वह कौन से जान दार हैं जो अपनी मां के पेट से पैदा नहीं हुए ? आपने फ़रमाया कि ऐ बादशाह , वह सात 7 जानदार हैं। 1. आदम , 2. हव्वा , 3. दुम्बाए इब्राहीम , 4. नाक़ा ए सालेह , 5. इबलीस , 6. मुसवी अज़दहा , 7. वह कव्वा जिसने क़ाबील की दफ़्ने हाबील की तरफ़ रहबरी की। बादशाह ने यह तबह्हुरे इल्मी देख कर बड़ी इज़्ज़त की और ताहएफ़ के साथ वापस किया।

इमाम हसन (अ.स.) और तफ़सीरे क़ुरआन

अल्लामा इब्ने तल्हा शाफ़ेई बा हवाला ए तफ़सीर वसीत वाहिदी लिखते हैं कि एक शख़्स ने इब्ने अब्बास और इब्ने उमर से एक आयत से मुताअल्लिक़ ‘‘ शाहिद व मशहूद ’’ के मानी दरयाफ़्त किये। इब्ने अब्बास ने शाहिद से यौमे जुमा और मशहूद से यौमे अरफ़ा बताया और इब्ने उमर ने यौमे जुमा और यौमुल नहर कहा। इसके बाद वह शख़्स इमाम हसन (अ.स.) के पास पहुँचा। आपने शाहिद से रसूले ख़ुदा (स अ व व ) और मशहूद से यौमे क़यामत फ़रमाया और दलील से आयत पढ़ी। 1. ‘‘ या अय्योहन नबी अना अरसलनाका शाहिदो मुबशशिरो नज़ीरा ’’ ऐ नबी हम ने तुम को शाहिदो मुबशशिर और नज़ीर बना कर भेजा। 2. ‘‘ ज़ालेका यौमे मजमूआ लहा अन्नास व ज़ालेका यौमे मशहूद ’’ क़यामत का वह दिन होगा , जिसमें तमाम लोग एक मक़ाम पर जमा कर दिये जायेंगे और यही यौमे मशहूर है। साएल ने सब के जवाब सुन्ने के बाद कहा ‘‘ फ़काना का़ैल अल हसन अहसन ’’ इमाम हसन (अ.स.) का जवाब दोनों से कहीं बेहतर है।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 225 )

इमाम हसन (अ.स.) की साया ए रहमत से महरूमी

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि इमाम हसन (अ.स.) की उम्र जब सात 7 , साल पांच 5 , माह और तेरह 13 दिन की हुई तो आपके सर से रहमतुल लिल आलेमीन का साया 28 सफ़र 11 हिजरी को उठ गया। अभी आप नाना का सोग मनाने से फ़राग़त हासिल न कर सके थे कि 3 जमादिउस्सानी 11 हिजरी को आपकी वालेदा माजेदा हज़रत फ़ात्मा ज़हरा (स अ व व ) ने भी इन्तेक़ाल फ़रमाया। इस गाम बालाए ग़म ने इमाम हसन (अ.स.) को बे इन्तेहा सदमा पहुँचाया।

मुशहबेहते रसूल (स अ व व )

अल्लामा अली मुत्तक़ी तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रते अली (अ.स.) फ़रमाया करते थे कि हसन रसूले करीम (स. अ.) की शक्लो शबाहत से बहुत ज़्यादा मुशाबेह है। अनस बिने मालिक का बयान है कि इमाम हसन (अ.स.) के जिस्म का निस्फ़ बालाई हिस्सा रसूल अल्लाह (स अ व व ) से और निस्फ़ हिस्सा ज़ेरी अमीरल मोमेनीन (अ.स.) से मुशाबेहत है।

एक रवायत में है कि आं हज़रत (स अ व व ) फ़रमाया करते थे कि हसन में ख़ुदा ने हैबत और सरदारी और हुसैन में जुर्रत व हिम्मत वदीअत की है।(कन्ज़ुल आमाल जिल्द 7 पृष्ठ 107 )

इमाम हसन (अ.स.) की इबादत

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) फ़रमाते हैं कि इमाम हसन (अ.स.) ज़बरदस्त आबिद बेमिसाल ज़ाहिद , अफ़ज़ल तरीन आलिम थे। आप ने जब भी हज फ़रमाया पैदल फ़रमाया। कभी कभी पा बरहैना हज को जाते थे। आप अकसर मौत , अज़ाबे क़ब्र , सिरात और बेअसत व नशूर को याद कर के रोया करते थे। जब आप वज़ू करते थे तो आपके चेहरे का रंग ज़र्द हो जाया करता था और जब नमाज़ के लिये खड़े होते थे तो बेद की मिस्ल कांपने लगते थे। आपका मामूल था कि जब दरवाज़ए मस्जिद पर पहुँचते तो खुदा को मुख़ातिब करके कहते , मेरे पालने वाले तेरा गुनाहगार बन्दा तेरी बारगाह में आया है ऐ रहमानों रहीम अपनी अच्छाईयों के सदक़े में मुझ जैसे बुराई करने वाले को माफ़ कर दे। आप जब नमाज़े सुबह से फ़ारिग़ होते थे तो उस वक़्त तक वजा़एफ़ में मशगू़ल रहते थे जब तक सूरज तुलू न हो जाये।(रौज़ातुल वाएज़ीन व बेहारूल अनवार)

आपका ज़ोहद

इमाम शाफ़ेई लिखते हैं कि इमाम हसन (अ.स.) ने अक्सर अपना सारा माल राहे ख़ुदा में तक़सीम कर दिया और बाज़ मरतबा निस्फ़ माल तक़सीम फ़रमाया। वह अज़ीम ज़ाहिदो परहेज़गार थे।

आपकी सख़ावत

मुवर्रेख़ीन लिखते हैं कि एक शख़्स ने हज़रत इमाम हसन (अ.स.) से कुछ मांगा। दस्त सवाल दराज़ होना था कि आपने 50,000 (पचास हज़ार) दिरहम और 500 (पांच सौ) अशर्फि़यां दे दीं और फ़रमाया कि मज़दूर ला कर इसे उठा ले जा। इसके आपने मज़दूर की मज़दूरी में अपना चोग़ा बख़्श दिया।(मरातुल जनान 123 ) एक मरतबा आपने एक साएल को ख़ुदा से दुआ करते हुए सुना , ख़ुदाया मुझे दस हज़ार दिरहम अता फ़रमा। आपने घर पहुँच कर मतलूबा रक़म भिजवा दी।(नूरूल अबसार पृष्ठ 122 )

आपसे किसी ने पूछा कि आप तो फ़ाक़ा करते हैं लेकिन साएल को महरूम वापस नहीं फ़रमाते। इरशाद फ़रमाया कि मैं खु़दा से मांगने वाला हूँ उसने मुझे देने की आदत डाल रखी है , और मैंने लोगों को देने की आदत डाली है। मैं डरता हूँ कि अगर अपनी आदत बदल दूं तो कहीं ख़ुदा भी अपनी आदत न बदल दे और मुझे भी महरूम कर दे।(सफ़ा 123 )

तवक्कुल के मुताअल्लिक़ आपका इरशाद

इमामे शाफ़ेई का बयान है कि किसी ने इमाम हसन (अ.स.) से अर्ज़ की कि अबूज़रे ग़फ़्फ़ारी फ़रमाया करते थे कि मुझे तवंगरी से ज़्यादा नादारी और सेहत से ज़्यादा बीमारी पसन्द है। आपने फ़रमाया कि ख़ुदा अबू ज़र पर रहम करे उनका कहना दुरूस्त है लेकिन मैं तो कहता हूँ कि जो शख़्स के क़ज़ा व क़द्र पर तवक्कल करे वह हमेशा इसी चीज़ को पसन्द करेगा जिसे खु़दा उसके लिये पसन्द करे।(मरातुल जेना जिल्द 1 पृष्ठ 125 )

इमाम हसन (अ.स.) हिल्म और अख़्लाक़ के मैदान में

अल्लामा इब्ने शहरे आशोब तहरीर फ़रमाते हैं कि एक दिन हज़रत इमाम हसन (अ.स.) घोड़े पर सवार कहीं तशरीफ़ लिये जा रहे थे , रास्ते में माविया के तरफ़दारों का एक शामी सामने आ पड़ा। उसने हज़रत को गालियां देनी शुरू कर दी। आपने उसका मुतलक़न कोई जवाब न दिया। जब वह अपनी जैसी कर चुका तो आप उसके क़रीब गये और उसको सलाम कर के फ़रमाया कि भाई शायद तू मुसाफ़िर है , सुन अगर तुझे सवारी की ज़रूरत हो , तो मैं तुझे सवारी दे दूं। अगर तू भूखा हो तो खाना खिला दूं। अगर तुझे कपड़े दरकार हों तो कपड़े दे दूं। अगर तुझे रहने को जगह चाहिये तो मकान का इन्तेज़ामक र दूं। अगर दौलत की ज़रूरत है तो तुझे इतना दे दूं कि तू ख़ुश हाल हो जाये। यह सुन कर शामी बे इन्तेहा शरमिन्दा हुआ और कहने लगा कि मैं गवाही देता हूँ कि आप ज़मीने ख़ुदा पर ख़लीफ़ा हैं। मौला मैं तो आपको और आपके बाप दादा के सख़्त नफ़रत और हिक़ारत की नज़र से देखता था लेकिन आज आपके इख़्लाक़ ने मुझे आपका गिरवीदा बना दिया। अब मैं आपके क़दमों से दूर न जाऊंगा और ता हयात आपकी खि़दमत में रहूँगा।(मुनाक़िब जिल्द 4 पृष्ठ 53 व कामिल मबरूज 2 पृष्ठ 86 )

एहसान का बदला एहसान

अबुल हसन मदाईनी का बयान है कि एक मरतबा इमाम हसन (अ स ) , इमाम हुसैन (अ.स.) और अब्दुल्लाह बिन जाफ़रे तय्यार हज को जाते हुए भूख और प्यास की हालत में एक ज़ईफ़ा के झोपड़े में जा पहुँचे और उससे खाने पीने की चीज़ तलब फ़रमाई। उसने अर्ज़ की कि मेरे पास एक बकरी है उसका दूध दूह कर प्यास बुझाई जा सकती है , उन्होंने दूध पी लिया लेकिन गुरसनगी से तसल्ली न हुई तो उससे फ़रमाया कि कुछ खाने का बन्दो बस्त भी हो सकता है। उसने कहा मेरे पास तो बस यही एक बकरी है लेकिन मैं क़सम देती हूँ कि आप इसे ज़ब्ह कर के तनावुल फ़रमा लें। बकरी ज़ब्ह की गई गोश्त भूना गया और सब ने खा लिया और इसके बाद क़दरे आराम कर के वह लोग रवाना हो गये। जब शाम को उसका शौहर आया तो उस औरत ने सारा वाक़िया सुनाया। शौहर ने पूछा वह कौन लोग थे ? कहा मालूम नहीं , जाते वक़्त यह कहा था कि हम मदीने के रहने वाले है। शौहर ने कहा ख़ुदा की बन्दी यह तो बता कि अब हमारा गुज़ारा किस तरह होगा। ग़रज़ कि थोड़े ही अरसे में उन लोगों को क़हत का सामना करना पड़ा और यह सख़्त मुसिबतों में मुब्तिला हो कर भीख मांगते हुए मदीने जा पहुँचे। एक गली से गुज़र रहे थे कि नागाह इमाम हसन (अ.स.) की निगाह उस औरत पर जा पड़ी। आप ने उसे बुलवा कर बकरी वाला वाक़िया याद दिलाया और उसको एक हज़ार बकरियां और एक हज़ार अशर्फि़यां इनायत फ़रमा दीं और उसे इमाम हुसैन (अ.स.) की खि़दमत में भेज दिया , उन्होंने भी उसे इसी क़द्र बकरियां वग़ैरा अता फ़रमाई फिर अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र को इत्तेला दी गई उन्होंने भी उसी के लगभग उसे दे दिया। वह माला माल हो कर अपने घर वापस चली गई।(नूरूल अबसार पृष्ठ 121 व मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 229 )

बाप की शमशीर का हमसर है बेटे का क़लम।

बाज़ुए हैदर की ताक़त , खा़मए शब्बर में है।।

फ़तेह ख़ैबर में है मुज़मर मक़सदे सुलहे हसन।

मक़सदे सुलहे हसन , फ़तहे दरे ख़ैबर में है।।

साबिर थरयानी (कराची)

वली ज़ुलमेनन , हज़रत हसन , आँ सरवरे ख़ूबां।

कि हर चीज़ अज़ अदम बाकु़दर तश मुमकिन ज़े इमकाँ शुद।।

ज़ेहे सौदाए बातिल , के तवानम , मदहे आँ शाहे।

कि मदाहश ख़ुदा , रावी पयम्बर , मदहे कु़रां शुद।।

हज़रत इमाम हसन (अ स ) , अमीरल मोमेनीन हज़रत अली (अ.स.) व सय्यदतुननिसां हज़रत फ़ात्मा (स अ व व ) के फ़रज़न्द और पैग़म्बरे ख़ुदा हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) व मोहसिने इस्लाम हज़रत ख़दीजतुल कुबरा के नवासे थे। आपको खु़दा वन्दे आलम ने मासूम मन्सूस अफ़ज़ले कायनात आलिमे इल्मे लदुन्नी क़रार दिया है।

आपकी विलादत

आप 15 रमज़ानुल मुबारक 3 हिजरी की शब को मदीनाए मुनव्वरा में पैदा हुये। विलादत से क़ब्ल उम्मे अफ़ज़ल ने ख़्वाब में देखा कि रसूले अकरम (स अ व व ) के जिस्मे मुबारक का एक टूकड़ा मेरे घर में आ पहुँचा है। ख़्वाब रसूले करीम (स अ व व ) से बयान किया। आपने फ़रमाया कि इसकी ताबीर यह है कि मेरे लख़्ते जिगर फ़ात्मा के बत्न से एक बच्चा पैदा होगा जिसकी परवरिश तुम करोगी। मुवर्रेखी़न का बयान है कि रसूल (स अ व व ) के घर में आपकी पैदाईश अपनी नवैय्यत की पहली ख़ुशी थी। आपकी विलादत ने रसूल (स अ व व ) के दामन में मक़तूलून् नसल होने का धब्बा साफ़ कर दिया और दुनियां के सामने सूरए कौसर की एक अमली और बुनियादी तफ़सीर पेश कर दी।

आपका नामे नामी

विलादत के बाद इस्मे गेरामी हम्ज़ा तजवीज़ हो रहा था लेकिन सरवरे कायनात (स अ व व ) ने बा हुक्मे खुदा मूसा (अ.स.) के वज़ीर हारून (अ.स.) के फ़रज़न्दों के शब्बीर व शब्बर नाम पर आपका नाम हसन और बाद में आपके भाई का नाम हुसैन रखा। बेहारूल अनवार में है कि इमाम हसन (अ.स.) की पैदाईश के बाद जिब्राईले अमीन ने सरवरे कायनात (स अ व व ) की खि़दमत में एक सफ़ैद रेशमी रूमाल पेश किया जिस पर हसन , हुसैन लिखा हुआ था। माहिरे इल्म अल नसब अल्लामा अबुल हुसैन का कहना है कि ख़ुदा वन्दे आलम ने दोनो शाहज़ादों का नाम अन्ज़ारे आलम से पोशीदा रखा था यानी इनसे पहले हसन और हुसैन नाम से कोई मोसूम नहीं था। किताबे आलमे अलवरी के मुताबिक़ यह नाम भी लौहे महफ़ूज़ में लिखा हुआ था।

ज़बाने रिसालत दहने इमामत में अल्ल शराए में है कि जब इमाम हसन (अ.स.) की विलादत हुई और आप सरवरे कायनात (स अ व व ) की खि़दमत में लाये गये तो रसूले करीम (स अ व व ) बे इन्तेहा खु़श हुये और उनके दहने मुबारक में अपनी ज़बाने अक़दस दे दी। बेहारूल अनवार में है कि आं हज़रत ने नौज़ायदा बच्चे को आग़ोश में ले कर प्यार किया और दाहिने कान में अज़ान और बांए में अक़ामत फ़रमाने के बाद अपनी ज़बान उनके मुंह में दे दी इमाम हसन (अ.स.) उसे चूसने लगे। इसके बाद आपने दुआ की ख़ुदाया इसको और इसकी औलाद को अपनी पनाह में रखना। बाज़ लोगों का कहना है कि इमाम हसन (अ.स.) को लोआबे दहने रसूल (स अ व व ) कम और इमाम हुसैन (अ.स.) को ज़्यादा चूसने का मौक़ा दस्तियाब हुआ था। इसी लिये इमामत नसले इमाम हुसैन (अ.स.) में मुस्तक़र हो गई।

आपका अक़ीक़ा

आपकी विलादत के सातवें दिन सरवरे कायनात ने खुद अपने दस्ते मुबारक से अक़ीक़ा फ़रमाया और बालों के मुंडवा कर उसके हम वज़न चांदी तसद्दुक़ की।(असद उल ग़ाबेता जिल्द 3 पृष्ठ 13 ) अल्लामा कमालुद्दीन का बयान है कि अक़ीक़े के सिलसिले में दुम्बा ज़ब्हा किया गया था।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 220 ) काफ़ी कुलैनी में है कि सरवरे कायनात (स अ व व ) ने अक़ीक़े के वक़्त जो दुआ पढ़ी थी उसमें यह इबारत भी थीः अल्लाह हुम्मा अज़महा बाअज़मा लहमहा , बिल हमा , दमहा बदमहा वशअरहा , बशराही , अल्लाहा हुम्मा अज अलहा वक़आ लम हमीदिन वालेही

तरजुमाः

खु़दाया इसकी हड्डी मौलूद की हड्डी के ऐवज़ , इसका गोश्त उसके गोश्त के एवज़ , इसका ख़ून उसके खून के ऐवज़ , इसका बाल उसके बाल के ऐवज़ क़रार दे और इसे मोहम्मद व आले मोहम्मद (स अ व व ) के लिये हर बला से नजात का ज़रिया बना दे। इमामे शाफ़ेई का कहना है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने इमामे हसन (अ.स.) का अक़ीक़ा कर के इसके सुन्नत होने की दाएमी बुनियाद डाल दी।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 220 ) बाज़ माआसेरीन ने लिखा है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने आपका ख़त्ना भी कराया था लेकिन मेरे नज़दीक यह सही नहीं है क्यो कि इमामत की शान से मख़्तून पैदा होना भी है।

कुन्नियत व अलक़ाब

आपकी कुन्नियत सिर्फ़ अबू मोहम्मद थी और आपके अलक़ाब बहुत कसीर हैं जिनमें तय्यब , तक़ी , सिब्त व सय्यद ज़्यादा मशहूर हैं। (मोहम्मद बिन तलहा शाफ़ेई का बयान है कि आपका सय्यद लक़ब खुद सरवरे कायनात का अता करदा है।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 221 )

ज़्यारते आशूरा से मालूम होता है कि आपका लक़ब नासेह और अमीन भी था।

इमामे हसन (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम (स .अ.व.व. ) की नज़र में

यह मुसल्लेमा हक़ीक़त है कि इमाम हसन (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम (स अ व व ) के नवासे थे लेकिन कु़रआने मजीद ने उन्हें फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) का दरजा दिया है और अपने दामन में जा बजा आपके तज़किरे को जगह दी है। ख़ुद सरवरे कायनात (स अ व व ) ने बे शुमार आहादीस आपके मुताअल्लिक़ इरशाद फ़रमाई हैं। एक हदीस में है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने इरशाद फ़रमाया है कि मैं हसनैन को दोस्त रखता हूं और जो उन्हें दोस्त रखे उसे भी क़द्र की निगाह से देखता हूँ। एक सहाबी का बयान है कि मैंने रसूले करीम (स अ व व ) को इस हाल में देखा है कि वह एक कंधे पर इमामे हसन (अ.स.) और एक पर इमामे हुसैन (अ.स.) को बिठाए हुए लिये जा रहे हैं और बारी बारी दोनों का मुंह चूमते जाते हैं। एक सहाबी का बयान है कि एक दिन आं हज़रत (स अ व व ) नमाज़ पढ़ रहे थे और हसनैन आपकी पुश्त पर सवार हो गये किसी ने रोकना चाहा तो हज़रत ने इशारे से मना फ़रमाया।(असाबा जिल्द 2 पृष्ठ 12 ) एक सहाबी का बयान है कि मैं उस दिन से इमाम हसन (अ.स.) को बहुत ज़्यादा दोस्त रखने लगा हूँ जिस दिन मैंने रसूले करीम (स अ व व ) की आग़ोश में बैठ कर उन्हें उनकी दाढ़ी से खेलते हुए देखा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 113 ) एक दिन सरवरे कायनात (स अ व व ) इमाम हसन (अ.स.) को कंधे पर सवार किये हुए कहीं लिये जा रहे थे , एक सहाबी ने कहा कि ऐ साहब ज़ादे तुम्हारी सवारी किस क़द्र अच्छी है , यह सुन कर आं हज़रत (स अ व व ) ने फ़रमाया कहो कि किस क़द्र अच्छा सवार है।(असद अल ग़ाब्बा जिल्द 3 पृष्ठ 15 बाहवाला तिरमिज़ी) इमाम बुख़ारी और इमाम मुस्लिम लिखते हैं कि एक दिन रसूले खुदा (स अ व व ) इमाम हसन (अ.स.) को कांधे पर बिठाए हुए फ़रमा रहे थे ख़ुदाया मैं इसे दोस्त रखता हूँ तू भी इससे मुहब्बत कर। हाफ़िज़ अबू नईम , अबू बक्र से रवायत करते हैं कि एक दिन आं हज़रत (स अ व व ) नमाज़े जमाअत पढ़ा रहे थे कि नागाह इमाम हसन (अ.स.) आ गये और वह दौड़ कर पुश्ते रसूल (स अ व व ) पर सवार हो गये यह देख कर रसूल (स अ व व ) ने निहायत नरमी के साथ सर उठाया। इख्तेतामे नमाज़ पर आपसे इसका तज़किरा किया गया तो फ़रमाया यह मेरा गुले उम्मीद है।

इब्नी हाज़ा सय्यद यह मेरा बेटा सरदार है और देखो यह अनक़रीब दो बड़े गिरोहों में सुलह करायेगा। इमाम निसाई अब्दुल्लाह इब्ने शद्दाद से रवायत करते हैं कि एक दिन नमाज़े इशा पढ़ाने के लिये आं हज़रत (स अ व व ) तशरीफ़ लाये आपकी आग़ोश में इमाम हसन (अ.स.) थे आं हज़रत नमाज़ में मशग़ूल हो गये जब सजदे में गये तो इतना तूल कर दिया कि मैं यह समझने लगा कि शायद आप पर वही नाज़िल होने लगी है। इख़्तेतामे नमाज़ पर आपसे इसका तज़किरा किया गया तो फ़रमाया कि मेरा फ़रज़न्द मेरी पुश्त पर आ गया था , मैंने यह न चाहा कि उसे उस वक़्त तक पुश्त से उतारूं जब तक कि वह खुद न उतर जाये , इस लिये सजदे को तूल देना पड़ा। हकीम तिरमिजी़ और निसाई व अबू दाऊद ने लिखा है कि आं हज़रत (स अ व व ) एक दिन महवे ख़ुत्बा थे कि हसनैन (अ.स.) आ गये और हसन (अ.स.) के पांव अबा के दामन में इस तरह उलझे कि ज़मीन पर गिर पडे़ , यह देख कर आं हज़रत (स अ व व ) ने ख़ुतबा तर्क कर दिया और मिम्बर से उतर कर आग़ोश में उठा लिया और मिम्बर पर ले जा कर ख़ुत्बा शुरू फ़रमाया।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 223 )

इमाम हसन (अ.स.) की सरदारीए जन्नत

आले मोहम्मद (अ.स.) की सरदारी मुसल्लेमात में से है , उलेमाए इस्लाम का इस पर इत्तेफ़ाक़ है कि सरवरे कायनात (स अ व व ) ने इरशाद फ़रमाया हैःالحسن والحسین سیدا شباب اهل الجنة و ابوهما خیر منهما

हसन (अ.स.) और हुसैन (अ.स.) जवानाने बहिश्त के सरदार हैं और उनके वालिदे बुज़ुर्गवार यानी अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) इन दोनों से बेहतर हैं। जनाबे हुज़ैफ़ाए यमानी का बयान है कि मैंने आं हज़रत (स अ व व ) को एक दिन बहुत ही मसरूर पा कर अर्ज़ कि मौला आज इफ़राते शादमानी की क्या वजह है ? इरशाद फ़रमाया कि मुझे आज जिब्राईल ने यह बशारत दी है कि मेरे दोनों फ़रज़न्द हसन (अ.स.) व हुसैन (अ.स.) जवानाने बेहिशत के सरदार हैं और उनके वालिद अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) उनसे बेहतर हैं।(कन्ज़ुल आमाल जिल्द 7 पृष्ठ 107, सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 117 ) इस हदीस से इसकी भी वज़ाहत हो गई है कि हज़रत अली (अ.स.) सिर्फ़ सय्यद ही न थे बल्कि फ़रज़न्दाने सियादत के बाप थे।

जज़बाए इस्लाम की फ़रावानी

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि एक दिन अबू सुफ़ियान हज़रत अली (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हो कर कहने लगा कि आप आं हज़रत (स अ व व ) से सिफ़ारिश कर के एक ऐसा मोहायदा लिखवा दीजिए जिसके रू से मैं अपने मक़सद में कामयाब हो सकूं। आप ने फ़रमाया कि आं हज़रत (स अ व व ) जो कह चुके हैं अब उसमें बाल बराबर फ़र्क़ न होगा। उसने इमाम हसन (अ.स.) से सिफ़ारिश की ख़्वाहिश की। आपकी उम्र अगरचे उस वक़्त सिर्फ़ 4 साल की थी लेकिन आप ने उस वक़्त ऐसी र्जुअत का सबूत दिया जिसका तज़किरा ज़बाने तारीख़ पर है। लिखा है कि अबू सुफ़ियान की तलब सिफ़ारिश पर आपने दौड़ कर उसकी दाढ़ी पकड़ ली और नाक मरोड़ कर कहा कलमा ए शहादत ज़बान पर जारी करो। तुम्हारे लिये सब कुछ है। यह देख कर अमीरूल मोमेनीन (अ.स.) मसरूर हो गये।(मनाक़िबे आले अबू तालिब जिल्द 4 पृष्ठ 46 )

इमाम हसन (अ.स.) और तरजुमानी वही

अल्लामा मजलिसी तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम हसन (अ.स.) का यह तरीका था कि आप इन्तेहाई कम सिनी के आलम में अपने नाना पर नाज़िल होने वाली वही मन अन अपनी वालेदा माजेदा को सुना दिया करते थे। एक दिन हज़रत अली (अ.स.) ने फ़रमाया कि ऐ बिन्ते रसूल मेरा जी चाहता है कि हसन को तरजुमानीए वही खुद करते हुए देखूं और सुनूं सय्यदा (स अ व व ) ने इमाम हसन (अ.स.) के पहुँचने का वक़्त बता दिया। एक दिन अमीरल मोमेनीन (अ.स.) हसन (अ.स.) से पहले दाखि़ले ख़ाना हो गये और गोशा ख़ाना में छुप कर बैठ गए। इमाम हसन (अ.स.) हसबे मामूल तशरीफ़ लाये और मां की आग़ोश में बैठ कर वही सुनानी शुरू कर दी , लेकिन थोड़ी देर के बाद अर्ज़ कि , ‘‘ या अमाह क़द तलजलज लेसानी व कुल बयानी लाअल सय्यदी यरानी ’’ मादरे गेरामी आज वही तरजुमानी में लुक़नत और बयाने मक़सद में रूकावट हो रही है मुझे ऐसा मालूम होता है कि जैसे मेरे बुजु़र्ग मोहतरम मुझे देख रहे हों। यह सुन कर हज़रत अमीरल मोमेनीन (अ.स.) ने दौड़ कर इमाम हसन (अ.स.) को आग़ोश में उठा लिया और बोसा देने लगे।(बेहारूल अनवार जिल्द 10 पृष्ठ 193 )

हज़रत इमाम हसन (अ.स.) का बचपन में लौहे महफ़ूज़ का मुतालेआ करना।

इमाम बुख़ारी रक़म तराज़ हैं कि एक दिन कुछ सदक़े की खजूरें आईं हुई थीं इमाम हसन (अ.स.) इसके ढेर से खेल रहे थे और खेल ही के तौर पर इमाम हसन (अ.स.) ने दहने अक़दस में रख ली , यह देख कर आं हज़रत (स अ व व ) ने फ़रमाया , ऐ हसन क्या तुम्हें मालूम नहीं है कि हम लोगों पर सदक़ा हराम है।(सही बुखारी पारा 6 पृष्ठ 25 )

हज़रत हुज्जतुल इस्लाम शहीदे सालिस का़ज़ी नूर उल्लाह शूशतरी फ़रमाते हैं कि इमाम पर अगरचे वही नाज़ील नहीं होती लेकिन उसको इल्हाम होता है और वह लौहे महफ़ूज़ का मुतालेआ करता है जिस पर अल्लामा इब्ने हजरे असक़लानी का वह क़ौल दलालत करता है जो उन्होंने सही बुखा़री की इस रवायत की शरह में लिखा है जिसमें आं हज़रत (स अ व व ) ने इमाम हसन (अ.स.) के शीरख़्वारगी के आलम में सदक़े की खजूर के मुंह में रख लेने पर ऐतेराज़ फ़रमाया था। ‘‘ कख़ कख़ अमा ताअलम अनल सदक़तः अलैना हराम ’’ थूकू थूकू क्या तुम्हें मालूम नहीं कि हम लोगों पर सदक़ा हराम है और जिस शख़्स ने यह ख़्याल किया कि इमाम हसन (अ.स.) उस वक़्त दूध पीते थे , आप पर अभी शरई पाबन्दी न थी आं हज़रत (स अ व व ) ने उन पर क्यों एतेराज़ किया। इसका जवाब अल्लामा असक़लानी ने अपनी फ़तेह अलबारी शरह सही बुखा़री में दिया है कि इमाम हसन (अ.स.) और दूसरे बच्चे बराबर नहीं हो सकते। क्यों कि ‘‘انا الحسن یتلالع لوح المحفوظ ’’ इमाम हसन (अ.स.) शीर ख़्वारगी के आलम में भी लौहे महफ़ूज़ का मुतालेआ किया करते थे।(हक़ाएक़ुल हक़ पृष्ठ 127 )

ख़लीफ़ाए अव्वल को मिम्बरे रसूल (स .अ.व.व. ) से उतरने का हुक्म

अल्लामा इब्ने हसर और इमामे सियूती रक़मतराज़ हैं कि इमाम हसन (अ.स.) एक दिन मस्जिदे रसूल (स अ व व ) से गुज़रे। आपने देखा कि हज़रत अबू बक्र मिम्बरे रसूल (स अ व व ) पर बैठे हुये है आप से रहा न गया और आप मिम्बर के क़रीब तशरीफ़ ले जा कर फ़रमाने लगेانزل ممنر ابی

मेरे बाप के मिम्बरे से उतर आओ , यह तुम्हारे बैठने की जगह नहीं है , यह सुन कर वह मिम्बर से उतर आये और इमाम हसन (अ.स.) को अपनी आग़ोश में बैठा लिया।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 105, तारीलख अल ख़ोल्फ़ा पृष्ठ 55, रियाज़ुन नज़रा पृष्ठ 128 )

इमाम हसन (अ.स.) का बचपन और मसाएले इल्मिया

यह मुसल्लेमात से है कि हज़रात आइम्मा ए मासूमीन (अ.स.) को इल्मे लदुन्नी हुआ करता था। वह दुनिया में तहसीले इल्म के मोहताज नहीं हुआ करते थे। यही वजह है कि वह बचपन में ही ऐसे मसाएले इल्मिया से वाक़िफ़ होते थे जिनसे दुनिया के आम उलेमा अपनी ज़िन्दगी के आख़री उम्र तक बे बहरा रहते थे। इमाम हसन (अ.स.) जो ख़ानवादाए रिसालत की एक फ़र्द अकमल और सिलसिले असमत की एक मुस्तहकम कड़ी थे कि बचपन के हालात व वाक़ेयात देखे जायें तो मेरे दावे का सबूत मिल सकेगा।

पहला वाकिआ

मनाक़िब इब्ने शहरे आशोब में ब हवाले शरह अख़बारे क़ाज़ी नोमान मरक़ूम है कि एक सायल हज़रत अबू बक्र की खि़दमत में आया और उसने सवाल किया कि मैंने हालाते अहराम में शुतर मुर्ग़ के चन्द अन्डे भून कर खा लिये हैं बताइये कि मुझ पर क्या कफ़्फ़ारा वाजिब उल अदा हुआ ? सवाल का जवाब चूंकि उनके बस का न था , इस लिये अरक़े निदामत पेशानिये खि़लाफ़त पर आ गया। इरशाद हुआ कि इसे अब्दुल रहमान बिन औफ़ के पास ले जाओ। जो उनसे सवाल दोहराया तो वह भी ख़ामोश हो गये और कहा कि इसका हल तो अमीरल मोमेनीन (अ.स.) कर सकते हैं। साएल हज़रत अली (अ.स.) की खिदमत में लाया गया। आपने साएल से फ़रमाया कि मेरे दो छोटे बच्चे जो सामने नज़र आ रहे हैं उनसे दरयाफ़्त कर ले। साएल इमामे हसन (अ.स.) की तरफ़ मुतवज्जे हुआ और मसला दोहराया , इमामे हसन (अ.स.) ने जवाब दिया कि तूने जितने अन्डे खाए हैं उतनी ही ऊंटनियां ले कर उन्हें हामेला करा और उन से जो बच्चे पैदा हों उन्हें राहे ख़ुदा में हदियाए खा़ना काबा कर दे। अमीरल मोमेनीन (अ.स.) ने हंस कर फ़रमाया कि बेटा जवाब तो बिल्कुल सही है लेकिन यह तो बताओ कि क्या ऐसा नहीं है कि कुछ हमल ज़ाया हो जाते हैं और कुछ बच्चे मर जाते हैं। अर्ज़ कि बाबा जान बिल्कुल दुरूस्त है , मगर ऐसा भी तो होता है कि कुछ अन्डे भी ख़राब और गन्दे निकल जाते हैं। यह सुन कर साएल पुकार उठा कि एक मरतबा अपने अहद में सुलैमान बिन दाऊद ने भी यही जवाब दिया था जैसा कि मैंने अपनी किताबो में देखा है।

दूसरा वाकिआ

एक रोज़ अमीरल मोमेनीन (अ.स.) मक़ामे रहबा में तशरीफ़ फ़रमा थे और हसनैन (अ.स.) वहां मौजूद थे , नागाह एक शख़्स आ कर कहने लगा कि मैं आपकी रियाया और अहले बलद(शहरी) हूं। हज़रत ने फ़रमाया कि तू झूठ बोलता है , तू न तो मेरी रियाया में से है और न मेरे शहर का शहरी है , बल्कि तू बादशाहे रोम का फ़रसतादा है। तुझे उसने माविया के पास चन्द मसाएल दरयाफ़्त करने के लिये भेजा था और उसने मेरे पास भेज दिया है। उसने कहा या हज़रत आपका इरशाद बिल्कुल बजा है मुझे माविया ने पोशीदा तौर पर आपके पास भेजा है और इसका हाल ख़ुदा वन्दे आलम के सिवा किसी को मालूम नहीं है , मगर आप बा इल्मे इमामत समझ गये। आप ने फ़रमाया की अच्छा अब इन मसाएल के जवाबात इन दो बच्चों में से किसी एक से भी पूछ ले। यह इमाम हसन (अ.स.) की तरफ़ मुतवज्जे हो कर चाहता था कि सवाल करे कि इमाम हसन (अ.स.) ने फ़रमाया कि ऐ शख़्स तू यह दरियाफ़्त करने आया है कि , 1. हक़ो बातिल में कितना फ़ासला है ?, 2. ज़मीन व आसमान तक कितनी मसाफ़त है ?, 3. मशरिक़ व मग़रिब में कितनी दूरी है ?. 4. का़ैस क़ज़ा क्या चीज़ है ?, 5. मख़नस किसे कहते हैं ?, 6. वह दस चीज़ें क्या हैं जिनमें से हर एक को ख़ुदा वन्दे आलम ने दूसरे से सख़्त और फ़ाएक़ पैदा किया है ?.

सुन हक़ व बातिल में चार अंगुश्त का फ़र्क़ व फ़ासला है। अक्सर व बेशतर जो कुछ आंख से देखा है और जो कुछ कान से सुना व बातिल है। (आंख से देखा हुआ यक़ीनी , कान से सुना हुआ मोहताजे तहक़ीक़) ज़मीन और आसमान के दरमियान इतनी मसाफ़त है कि मज़लूम की आह और आंख की रौशनी पहुँच जाती है। मशरिक़ व मग़रिब में इतना फ़ासला है कि सूरज एक दिन में तय कर लेता है और कौसे क़ज़ा असल में कौसे ख़ुदा है। इस लिये कि क़ज़ह शैतान का नाम है। यह फ़रावनी रिज़्क़ और अहले ज़मीन के लिये ग़र्क़ से अमान की अलामत है इस लिये अगर यह ख़ुश्की में नमूदार होती है तो बारिश के अलामात से समझी जाती है और बारिश में निकलती है तो ख़त्मे बारान की अलामात में से शुमार की जाती है। मुख़न्नस वह है जिसके मुताअल्लिक़ यह मालूम न हो कि वह मर्द है या औरत और जिसके जिस्म में दोनों के आज़ा हों। इसके हुक्म यह है कि ता हदे बुलूग़ इन्तेज़ार करे , अगर मोहतलिम हो तो मर्द और हायज़ हो और पिस्तान उभर आयें तो औरत। अगर इससे मसला हल न हो तो देखना चाहिये कि उसके पेशाब की धार सीधी जाती है कि नहीं , अगर वह सीधी जाती है तो मर्द वरना औरत। और वह दस चीज़ें जिनमें से एक दूसरे पर ग़ालिब व क़वी हैं वह यह हैं कि ख़ुदा ने सब से ज़्यादा सख़्त पत्थर को पैदा किया है मगर इस से ज़्यादा सख़्त लौहा है जो पत्थर को भी काट देता है , उससे ज़्यादा सख़्त क़वी आग है जो लोहे को पिघला देती है और आग से ज़्यादा सख़्त क़वी पानी है जो आग को बूझा देता है और इससे ज़्यादा सख़्त क़वी अब्र है जो पानी को अपने कंधों पर उठाए फिरता है और उससे ज़्यादा क़वी हवा है जो अब्र को उड़ाये फिरती है और हवा से ज़्यादा सख़्त व क़वी फ़रिश्ता है जिसकी हवा महकूम है और उससे ज़्यादा सख़्त व क़वी मलकुल मौत है जो फ़रिशताए बाद की भी रूह क़ब्ज़ कर लेंगे और मलकुल मौत से भी ज़्यादा सख़्त व क़वी मौत है जो मलकुल मौत को भी मात डालेगी और मौत से भी ज़्यादा सख़्त क़वी हुक्मे ख़ुदा है। यह जवाबात सुन कर साएल फ़ड़क उठा।

तीसरी वाकिआ

हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) से मनक़ूल है कि एक मरतबा लोगों ने देखा कि एक शख़्स के हाथ में खून आलूदा छुरी है और उसी जगह एक शख़्स ज़ब्ह किया हुआ पड़ा है। जब उससे पूछा गया कि तूने उसे क़त्ल किया है तो उसने कहा हां। लोग उसे जसदे मक़तूल समेत जनाबे अमीरल मोमेनीन (अ.स.) की खि़दमत में चले। इतने में एक शख़्त दौड़ता हुआ आया और कहने लगा कि इसे छोड़ दों , इस मक़तूल का क़ातिल मैं हूँ। उन लोंगों ने उसे भी साथ ले लिया और हज़रत के पास ले गये। सारा क़िस्सा बयान किया गया। आपने पहले शख़्स से पूछा कि जब तू इसका क़ातिल नहीं था तो क्या वजह है कि अपने को इस का क़ातिल बयान किया। उसने कहा मौला मैं क़स्साब हूँ। गोसफ़न्द ज़ब्ह कर रहा था कि मुझे पेशाब की हाजत हुई। इस तरह ख़ून आलूदा छुरी लिये हुये उस ख़राबे में चला गया , वहां देखा की वह मक़तूल ताज़ा ज़िब्हा किया हुआ पड़ा है , इतने में लोग आ गये और मुझे पकड़ लिया। मैंने यह ख़्याल करते हुये कि इस वक़्त जब कि क़त्ल के सारे क़राएन मौजूद हैं मेरे इन्कार को कौन बावर करेगा। मैंने इक़रार कर लिया। फिर आपने दूसरे से पूछा कि तू इसका क़ातिल है ? उसने कहा जी हंा मैं ही उसे क़त्ल कर के चला गया था। जब देखा कि एक क़स्साब की ना हक़ जान चली जायेगी , तो हाज़िर हो गया। आपने फ़रमाया मेरे फ़रज़न्द हसन को बुलाओ वही इस मक़सद का फ़ैसला सुनायेंगे। इमाम हसन (अ.स.) आये सारा क़िस्सा सुना। फ़रमाया दोनों को छोड़ दो यह क़स्साब बे कु़सूर है और यह शख़्स अगरचे का़तिल है मगर उसने एक नफ़्स को क़त्ल किया तो दूसरे नफ़्स (क़स्साब) को बचा कर उसे हयात दी और उसकी जान बचा ली , और हुक्मे क़ुरआन है कि ! ‘‘ मन अययाहा फ़ाक़ानमा अहया अन्नास जमीअन ’’ जिसने एक नफ़्स की जान बचाई उसने गोया तमाम लोगों की जान बचाई। लेहाज़ा उस मक़तूल का ख़ून बहा बैतुलमाल से दे दिया जाये।

चौथा वाकिआ

अली इब्ने इब्राहीम क़ुम्मी ने अपनी तफ़सीर मे लिखा कि शाहे रोम ने जब हज़रत अली (अ.स.) के मुक़ाबले में माविया की चीरा दस्तियों से आगाही हासिल की तो दोनों को लिखा कि मेरे पास एक एक नुमाइन्दा भेज दें। हज़रत अली (अ.स.) की तरफ़ से इमाम हसन (अ.स.) और माविया की तरफ़ से यज़ीद की रवानगी अमल में आई। यज़ीद ने वहां पहुँच कर शाहे रोम की दस्त बोसी की और इमाम हसन (अ.स.) ने जाते ही कहा कि ख़ुदा का शुक्र है मैं यहूदी , नसरानी , मजूसी वग़ैरा नहीं हूँ बल्कि ख़ालिस मुसलमान हूँ। शाहे रोम ने चन्द तसावीर निकालीं। यज़ीद ने कहा कि मैं इन में से एक को भी नहीं पहचानता और न बता सकता हूं कि यह किन हज़रात की शक्लें हैं। हज़रत इमाम हसन (अ.स.) ने , हज़रत आदम (अ स ) , हज़रत नूह (अ स ) , हज़रत इब्राहीम (अ.स.) और शुऐब (अ.स.) व याहीया (अ.स.) की तसवीरें देख कर शक्लें पहचान लीं और एक तसवीर देख कर आप रोने लगे। बादशाह ने पूछा यह किसी तसवीर है ? फ़रमाया मेरे जद्दे नामदार की। इसके बाद बादशाह ने सवाल किया कि वह कौन से जान दार हैं जो अपनी मां के पेट से पैदा नहीं हुए ? आपने फ़रमाया कि ऐ बादशाह , वह सात 7 जानदार हैं। 1. आदम , 2. हव्वा , 3. दुम्बाए इब्राहीम , 4. नाक़ा ए सालेह , 5. इबलीस , 6. मुसवी अज़दहा , 7. वह कव्वा जिसने क़ाबील की दफ़्ने हाबील की तरफ़ रहबरी की। बादशाह ने यह तबह्हुरे इल्मी देख कर बड़ी इज़्ज़त की और ताहएफ़ के साथ वापस किया।

इमाम हसन (अ.स.) और तफ़सीरे क़ुरआन

अल्लामा इब्ने तल्हा शाफ़ेई बा हवाला ए तफ़सीर वसीत वाहिदी लिखते हैं कि एक शख़्स ने इब्ने अब्बास और इब्ने उमर से एक आयत से मुताअल्लिक़ ‘‘ शाहिद व मशहूद ’’ के मानी दरयाफ़्त किये। इब्ने अब्बास ने शाहिद से यौमे जुमा और मशहूद से यौमे अरफ़ा बताया और इब्ने उमर ने यौमे जुमा और यौमुल नहर कहा। इसके बाद वह शख़्स इमाम हसन (अ.स.) के पास पहुँचा। आपने शाहिद से रसूले ख़ुदा (स अ व व ) और मशहूद से यौमे क़यामत फ़रमाया और दलील से आयत पढ़ी। 1. ‘‘ या अय्योहन नबी अना अरसलनाका शाहिदो मुबशशिरो नज़ीरा ’’ ऐ नबी हम ने तुम को शाहिदो मुबशशिर और नज़ीर बना कर भेजा। 2. ‘‘ ज़ालेका यौमे मजमूआ लहा अन्नास व ज़ालेका यौमे मशहूद ’’ क़यामत का वह दिन होगा , जिसमें तमाम लोग एक मक़ाम पर जमा कर दिये जायेंगे और यही यौमे मशहूर है। साएल ने सब के जवाब सुन्ने के बाद कहा ‘‘ फ़काना का़ैल अल हसन अहसन ’’ इमाम हसन (अ.स.) का जवाब दोनों से कहीं बेहतर है।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 225 )

इमाम हसन (अ.स.) की साया ए रहमत से महरूमी

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि इमाम हसन (अ.स.) की उम्र जब सात 7 , साल पांच 5 , माह और तेरह 13 दिन की हुई तो आपके सर से रहमतुल लिल आलेमीन का साया 28 सफ़र 11 हिजरी को उठ गया। अभी आप नाना का सोग मनाने से फ़राग़त हासिल न कर सके थे कि 3 जमादिउस्सानी 11 हिजरी को आपकी वालेदा माजेदा हज़रत फ़ात्मा ज़हरा (स अ व व ) ने भी इन्तेक़ाल फ़रमाया। इस गाम बालाए ग़म ने इमाम हसन (अ.स.) को बे इन्तेहा सदमा पहुँचाया।

मुशहबेहते रसूल (स अ व व )

अल्लामा अली मुत्तक़ी तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रते अली (अ.स.) फ़रमाया करते थे कि हसन रसूले करीम (स. अ.) की शक्लो शबाहत से बहुत ज़्यादा मुशाबेह है। अनस बिने मालिक का बयान है कि इमाम हसन (अ.स.) के जिस्म का निस्फ़ बालाई हिस्सा रसूल अल्लाह (स अ व व ) से और निस्फ़ हिस्सा ज़ेरी अमीरल मोमेनीन (अ.स.) से मुशाबेहत है।

एक रवायत में है कि आं हज़रत (स अ व व ) फ़रमाया करते थे कि हसन में ख़ुदा ने हैबत और सरदारी और हुसैन में जुर्रत व हिम्मत वदीअत की है।(कन्ज़ुल आमाल जिल्द 7 पृष्ठ 107 )

इमाम हसन (अ.स.) की इबादत

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) फ़रमाते हैं कि इमाम हसन (अ.स.) ज़बरदस्त आबिद बेमिसाल ज़ाहिद , अफ़ज़ल तरीन आलिम थे। आप ने जब भी हज फ़रमाया पैदल फ़रमाया। कभी कभी पा बरहैना हज को जाते थे। आप अकसर मौत , अज़ाबे क़ब्र , सिरात और बेअसत व नशूर को याद कर के रोया करते थे। जब आप वज़ू करते थे तो आपके चेहरे का रंग ज़र्द हो जाया करता था और जब नमाज़ के लिये खड़े होते थे तो बेद की मिस्ल कांपने लगते थे। आपका मामूल था कि जब दरवाज़ए मस्जिद पर पहुँचते तो खुदा को मुख़ातिब करके कहते , मेरे पालने वाले तेरा गुनाहगार बन्दा तेरी बारगाह में आया है ऐ रहमानों रहीम अपनी अच्छाईयों के सदक़े में मुझ जैसे बुराई करने वाले को माफ़ कर दे। आप जब नमाज़े सुबह से फ़ारिग़ होते थे तो उस वक़्त तक वजा़एफ़ में मशगू़ल रहते थे जब तक सूरज तुलू न हो जाये।(रौज़ातुल वाएज़ीन व बेहारूल अनवार)

आपका ज़ोहद

इमाम शाफ़ेई लिखते हैं कि इमाम हसन (अ.स.) ने अक्सर अपना सारा माल राहे ख़ुदा में तक़सीम कर दिया और बाज़ मरतबा निस्फ़ माल तक़सीम फ़रमाया। वह अज़ीम ज़ाहिदो परहेज़गार थे।

आपकी सख़ावत

मुवर्रेख़ीन लिखते हैं कि एक शख़्स ने हज़रत इमाम हसन (अ.स.) से कुछ मांगा। दस्त सवाल दराज़ होना था कि आपने 50,000 (पचास हज़ार) दिरहम और 500 (पांच सौ) अशर्फि़यां दे दीं और फ़रमाया कि मज़दूर ला कर इसे उठा ले जा। इसके आपने मज़दूर की मज़दूरी में अपना चोग़ा बख़्श दिया।(मरातुल जनान 123 ) एक मरतबा आपने एक साएल को ख़ुदा से दुआ करते हुए सुना , ख़ुदाया मुझे दस हज़ार दिरहम अता फ़रमा। आपने घर पहुँच कर मतलूबा रक़म भिजवा दी।(नूरूल अबसार पृष्ठ 122 )

आपसे किसी ने पूछा कि आप तो फ़ाक़ा करते हैं लेकिन साएल को महरूम वापस नहीं फ़रमाते। इरशाद फ़रमाया कि मैं खु़दा से मांगने वाला हूँ उसने मुझे देने की आदत डाल रखी है , और मैंने लोगों को देने की आदत डाली है। मैं डरता हूँ कि अगर अपनी आदत बदल दूं तो कहीं ख़ुदा भी अपनी आदत न बदल दे और मुझे भी महरूम कर दे।(सफ़ा 123 )

तवक्कुल के मुताअल्लिक़ आपका इरशाद

इमामे शाफ़ेई का बयान है कि किसी ने इमाम हसन (अ.स.) से अर्ज़ की कि अबूज़रे ग़फ़्फ़ारी फ़रमाया करते थे कि मुझे तवंगरी से ज़्यादा नादारी और सेहत से ज़्यादा बीमारी पसन्द है। आपने फ़रमाया कि ख़ुदा अबू ज़र पर रहम करे उनका कहना दुरूस्त है लेकिन मैं तो कहता हूँ कि जो शख़्स के क़ज़ा व क़द्र पर तवक्कल करे वह हमेशा इसी चीज़ को पसन्द करेगा जिसे खु़दा उसके लिये पसन्द करे।(मरातुल जेना जिल्द 1 पृष्ठ 125 )

इमाम हसन (अ.स.) हिल्म और अख़्लाक़ के मैदान में

अल्लामा इब्ने शहरे आशोब तहरीर फ़रमाते हैं कि एक दिन हज़रत इमाम हसन (अ.स.) घोड़े पर सवार कहीं तशरीफ़ लिये जा रहे थे , रास्ते में माविया के तरफ़दारों का एक शामी सामने आ पड़ा। उसने हज़रत को गालियां देनी शुरू कर दी। आपने उसका मुतलक़न कोई जवाब न दिया। जब वह अपनी जैसी कर चुका तो आप उसके क़रीब गये और उसको सलाम कर के फ़रमाया कि भाई शायद तू मुसाफ़िर है , सुन अगर तुझे सवारी की ज़रूरत हो , तो मैं तुझे सवारी दे दूं। अगर तू भूखा हो तो खाना खिला दूं। अगर तुझे कपड़े दरकार हों तो कपड़े दे दूं। अगर तुझे रहने को जगह चाहिये तो मकान का इन्तेज़ामक र दूं। अगर दौलत की ज़रूरत है तो तुझे इतना दे दूं कि तू ख़ुश हाल हो जाये। यह सुन कर शामी बे इन्तेहा शरमिन्दा हुआ और कहने लगा कि मैं गवाही देता हूँ कि आप ज़मीने ख़ुदा पर ख़लीफ़ा हैं। मौला मैं तो आपको और आपके बाप दादा के सख़्त नफ़रत और हिक़ारत की नज़र से देखता था लेकिन आज आपके इख़्लाक़ ने मुझे आपका गिरवीदा बना दिया। अब मैं आपके क़दमों से दूर न जाऊंगा और ता हयात आपकी खि़दमत में रहूँगा।(मुनाक़िब जिल्द 4 पृष्ठ 53 व कामिल मबरूज 2 पृष्ठ 86 )

एहसान का बदला एहसान

अबुल हसन मदाईनी का बयान है कि एक मरतबा इमाम हसन (अ स ) , इमाम हुसैन (अ.स.) और अब्दुल्लाह बिन जाफ़रे तय्यार हज को जाते हुए भूख और प्यास की हालत में एक ज़ईफ़ा के झोपड़े में जा पहुँचे और उससे खाने पीने की चीज़ तलब फ़रमाई। उसने अर्ज़ की कि मेरे पास एक बकरी है उसका दूध दूह कर प्यास बुझाई जा सकती है , उन्होंने दूध पी लिया लेकिन गुरसनगी से तसल्ली न हुई तो उससे फ़रमाया कि कुछ खाने का बन्दो बस्त भी हो सकता है। उसने कहा मेरे पास तो बस यही एक बकरी है लेकिन मैं क़सम देती हूँ कि आप इसे ज़ब्ह कर के तनावुल फ़रमा लें। बकरी ज़ब्ह की गई गोश्त भूना गया और सब ने खा लिया और इसके बाद क़दरे आराम कर के वह लोग रवाना हो गये। जब शाम को उसका शौहर आया तो उस औरत ने सारा वाक़िया सुनाया। शौहर ने पूछा वह कौन लोग थे ? कहा मालूम नहीं , जाते वक़्त यह कहा था कि हम मदीने के रहने वाले है। शौहर ने कहा ख़ुदा की बन्दी यह तो बता कि अब हमारा गुज़ारा किस तरह होगा। ग़रज़ कि थोड़े ही अरसे में उन लोगों को क़हत का सामना करना पड़ा और यह सख़्त मुसिबतों में मुब्तिला हो कर भीख मांगते हुए मदीने जा पहुँचे। एक गली से गुज़र रहे थे कि नागाह इमाम हसन (अ.स.) की निगाह उस औरत पर जा पड़ी। आप ने उसे बुलवा कर बकरी वाला वाक़िया याद दिलाया और उसको एक हज़ार बकरियां और एक हज़ार अशर्फि़यां इनायत फ़रमा दीं और उसे इमाम हुसैन (अ.स.) की खि़दमत में भेज दिया , उन्होंने भी उसे इसी क़द्र बकरियां वग़ैरा अता फ़रमाई फिर अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र को इत्तेला दी गई उन्होंने भी उसी के लगभग उसे दे दिया। वह माला माल हो कर अपने घर वापस चली गई।(नूरूल अबसार पृष्ठ 121 व मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 229 )

बाप की शमशीर का हमसर है बेटे का क़लम।

बाज़ुए हैदर की ताक़त , खा़मए शब्बर में है।।

फ़तेह ख़ैबर में है मुज़मर मक़सदे सुलहे हसन।

मक़सदे सुलहे हसन , फ़तहे दरे ख़ैबर में है।।

साबिर थरयानी (कराची)

वली ज़ुलमेनन , हज़रत हसन , आँ सरवरे ख़ूबां।

कि हर चीज़ अज़ अदम बाकु़दर तश मुमकिन ज़े इमकाँ शुद।।

ज़ेहे सौदाए बातिल , के तवानम , मदहे आँ शाहे।

कि मदाहश ख़ुदा , रावी पयम्बर , मदहे कु़रां शुद।।

हज़रत इमाम हसन (अ स ) , अमीरल मोमेनीन हज़रत अली (अ.स.) व सय्यदतुननिसां हज़रत फ़ात्मा (स अ व व ) के फ़रज़न्द और पैग़म्बरे ख़ुदा हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) व मोहसिने इस्लाम हज़रत ख़दीजतुल कुबरा के नवासे थे। आपको खु़दा वन्दे आलम ने मासूम मन्सूस अफ़ज़ले कायनात आलिमे इल्मे लदुन्नी क़रार दिया है।

आपकी विलादत

आप 15 रमज़ानुल मुबारक 3 हिजरी की शब को मदीनाए मुनव्वरा में पैदा हुये। विलादत से क़ब्ल उम्मे अफ़ज़ल ने ख़्वाब में देखा कि रसूले अकरम (स अ व व ) के जिस्मे मुबारक का एक टूकड़ा मेरे घर में आ पहुँचा है। ख़्वाब रसूले करीम (स अ व व ) से बयान किया। आपने फ़रमाया कि इसकी ताबीर यह है कि मेरे लख़्ते जिगर फ़ात्मा के बत्न से एक बच्चा पैदा होगा जिसकी परवरिश तुम करोगी। मुवर्रेखी़न का बयान है कि रसूल (स अ व व ) के घर में आपकी पैदाईश अपनी नवैय्यत की पहली ख़ुशी थी। आपकी विलादत ने रसूल (स अ व व ) के दामन में मक़तूलून् नसल होने का धब्बा साफ़ कर दिया और दुनियां के सामने सूरए कौसर की एक अमली और बुनियादी तफ़सीर पेश कर दी।

आपका नामे नामी

विलादत के बाद इस्मे गेरामी हम्ज़ा तजवीज़ हो रहा था लेकिन सरवरे कायनात (स अ व व ) ने बा हुक्मे खुदा मूसा (अ.स.) के वज़ीर हारून (अ.स.) के फ़रज़न्दों के शब्बीर व शब्बर नाम पर आपका नाम हसन और बाद में आपके भाई का नाम हुसैन रखा। बेहारूल अनवार में है कि इमाम हसन (अ.स.) की पैदाईश के बाद जिब्राईले अमीन ने सरवरे कायनात (स अ व व ) की खि़दमत में एक सफ़ैद रेशमी रूमाल पेश किया जिस पर हसन , हुसैन लिखा हुआ था। माहिरे इल्म अल नसब अल्लामा अबुल हुसैन का कहना है कि ख़ुदा वन्दे आलम ने दोनो शाहज़ादों का नाम अन्ज़ारे आलम से पोशीदा रखा था यानी इनसे पहले हसन और हुसैन नाम से कोई मोसूम नहीं था। किताबे आलमे अलवरी के मुताबिक़ यह नाम भी लौहे महफ़ूज़ में लिखा हुआ था।

ज़बाने रिसालत दहने इमामत में अल्ल शराए में है कि जब इमाम हसन (अ.स.) की विलादत हुई और आप सरवरे कायनात (स अ व व ) की खि़दमत में लाये गये तो रसूले करीम (स अ व व ) बे इन्तेहा खु़श हुये और उनके दहने मुबारक में अपनी ज़बाने अक़दस दे दी। बेहारूल अनवार में है कि आं हज़रत ने नौज़ायदा बच्चे को आग़ोश में ले कर प्यार किया और दाहिने कान में अज़ान और बांए में अक़ामत फ़रमाने के बाद अपनी ज़बान उनके मुंह में दे दी इमाम हसन (अ.स.) उसे चूसने लगे। इसके बाद आपने दुआ की ख़ुदाया इसको और इसकी औलाद को अपनी पनाह में रखना। बाज़ लोगों का कहना है कि इमाम हसन (अ.स.) को लोआबे दहने रसूल (स अ व व ) कम और इमाम हुसैन (अ.स.) को ज़्यादा चूसने का मौक़ा दस्तियाब हुआ था। इसी लिये इमामत नसले इमाम हुसैन (अ.स.) में मुस्तक़र हो गई।

आपका अक़ीक़ा

आपकी विलादत के सातवें दिन सरवरे कायनात ने खुद अपने दस्ते मुबारक से अक़ीक़ा फ़रमाया और बालों के मुंडवा कर उसके हम वज़न चांदी तसद्दुक़ की।(असद उल ग़ाबेता जिल्द 3 पृष्ठ 13 ) अल्लामा कमालुद्दीन का बयान है कि अक़ीक़े के सिलसिले में दुम्बा ज़ब्हा किया गया था।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 220 ) काफ़ी कुलैनी में है कि सरवरे कायनात (स अ व व ) ने अक़ीक़े के वक़्त जो दुआ पढ़ी थी उसमें यह इबारत भी थीः अल्लाह हुम्मा अज़महा बाअज़मा लहमहा , बिल हमा , दमहा बदमहा वशअरहा , बशराही , अल्लाहा हुम्मा अज अलहा वक़आ लम हमीदिन वालेही

तरजुमाः

खु़दाया इसकी हड्डी मौलूद की हड्डी के ऐवज़ , इसका गोश्त उसके गोश्त के एवज़ , इसका ख़ून उसके खून के ऐवज़ , इसका बाल उसके बाल के ऐवज़ क़रार दे और इसे मोहम्मद व आले मोहम्मद (स अ व व ) के लिये हर बला से नजात का ज़रिया बना दे। इमामे शाफ़ेई का कहना है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने इमामे हसन (अ.स.) का अक़ीक़ा कर के इसके सुन्नत होने की दाएमी बुनियाद डाल दी।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 220 ) बाज़ माआसेरीन ने लिखा है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने आपका ख़त्ना भी कराया था लेकिन मेरे नज़दीक यह सही नहीं है क्यो कि इमामत की शान से मख़्तून पैदा होना भी है।

कुन्नियत व अलक़ाब

आपकी कुन्नियत सिर्फ़ अबू मोहम्मद थी और आपके अलक़ाब बहुत कसीर हैं जिनमें तय्यब , तक़ी , सिब्त व सय्यद ज़्यादा मशहूर हैं। (मोहम्मद बिन तलहा शाफ़ेई का बयान है कि आपका सय्यद लक़ब खुद सरवरे कायनात का अता करदा है।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 221 )

ज़्यारते आशूरा से मालूम होता है कि आपका लक़ब नासेह और अमीन भी था।

इमामे हसन (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम (स .अ.व.व. ) की नज़र में

यह मुसल्लेमा हक़ीक़त है कि इमाम हसन (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम (स अ व व ) के नवासे थे लेकिन कु़रआने मजीद ने उन्हें फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) का दरजा दिया है और अपने दामन में जा बजा आपके तज़किरे को जगह दी है। ख़ुद सरवरे कायनात (स अ व व ) ने बे शुमार आहादीस आपके मुताअल्लिक़ इरशाद फ़रमाई हैं। एक हदीस में है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने इरशाद फ़रमाया है कि मैं हसनैन को दोस्त रखता हूं और जो उन्हें दोस्त रखे उसे भी क़द्र की निगाह से देखता हूँ। एक सहाबी का बयान है कि मैंने रसूले करीम (स अ व व ) को इस हाल में देखा है कि वह एक कंधे पर इमामे हसन (अ.स.) और एक पर इमामे हुसैन (अ.स.) को बिठाए हुए लिये जा रहे हैं और बारी बारी दोनों का मुंह चूमते जाते हैं। एक सहाबी का बयान है कि एक दिन आं हज़रत (स अ व व ) नमाज़ पढ़ रहे थे और हसनैन आपकी पुश्त पर सवार हो गये किसी ने रोकना चाहा तो हज़रत ने इशारे से मना फ़रमाया।(असाबा जिल्द 2 पृष्ठ 12 ) एक सहाबी का बयान है कि मैं उस दिन से इमाम हसन (अ.स.) को बहुत ज़्यादा दोस्त रखने लगा हूँ जिस दिन मैंने रसूले करीम (स अ व व ) की आग़ोश में बैठ कर उन्हें उनकी दाढ़ी से खेलते हुए देखा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 113 ) एक दिन सरवरे कायनात (स अ व व ) इमाम हसन (अ.स.) को कंधे पर सवार किये हुए कहीं लिये जा रहे थे , एक सहाबी ने कहा कि ऐ साहब ज़ादे तुम्हारी सवारी किस क़द्र अच्छी है , यह सुन कर आं हज़रत (स अ व व ) ने फ़रमाया कहो कि किस क़द्र अच्छा सवार है।(असद अल ग़ाब्बा जिल्द 3 पृष्ठ 15 बाहवाला तिरमिज़ी) इमाम बुख़ारी और इमाम मुस्लिम लिखते हैं कि एक दिन रसूले खुदा (स अ व व ) इमाम हसन (अ.स.) को कांधे पर बिठाए हुए फ़रमा रहे थे ख़ुदाया मैं इसे दोस्त रखता हूँ तू भी इससे मुहब्बत कर। हाफ़िज़ अबू नईम , अबू बक्र से रवायत करते हैं कि एक दिन आं हज़रत (स अ व व ) नमाज़े जमाअत पढ़ा रहे थे कि नागाह इमाम हसन (अ.स.) आ गये और वह दौड़ कर पुश्ते रसूल (स अ व व ) पर सवार हो गये यह देख कर रसूल (स अ व व ) ने निहायत नरमी के साथ सर उठाया। इख्तेतामे नमाज़ पर आपसे इसका तज़किरा किया गया तो फ़रमाया यह मेरा गुले उम्मीद है।

इब्नी हाज़ा सय्यद यह मेरा बेटा सरदार है और देखो यह अनक़रीब दो बड़े गिरोहों में सुलह करायेगा। इमाम निसाई अब्दुल्लाह इब्ने शद्दाद से रवायत करते हैं कि एक दिन नमाज़े इशा पढ़ाने के लिये आं हज़रत (स अ व व ) तशरीफ़ लाये आपकी आग़ोश में इमाम हसन (अ.स.) थे आं हज़रत नमाज़ में मशग़ूल हो गये जब सजदे में गये तो इतना तूल कर दिया कि मैं यह समझने लगा कि शायद आप पर वही नाज़िल होने लगी है। इख़्तेतामे नमाज़ पर आपसे इसका तज़किरा किया गया तो फ़रमाया कि मेरा फ़रज़न्द मेरी पुश्त पर आ गया था , मैंने यह न चाहा कि उसे उस वक़्त तक पुश्त से उतारूं जब तक कि वह खुद न उतर जाये , इस लिये सजदे को तूल देना पड़ा। हकीम तिरमिजी़ और निसाई व अबू दाऊद ने लिखा है कि आं हज़रत (स अ व व ) एक दिन महवे ख़ुत्बा थे कि हसनैन (अ.स.) आ गये और हसन (अ.स.) के पांव अबा के दामन में इस तरह उलझे कि ज़मीन पर गिर पडे़ , यह देख कर आं हज़रत (स अ व व ) ने ख़ुतबा तर्क कर दिया और मिम्बर से उतर कर आग़ोश में उठा लिया और मिम्बर पर ले जा कर ख़ुत्बा शुरू फ़रमाया।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 223 )

इमाम हसन (अ.स.) की सरदारीए जन्नत

आले मोहम्मद (अ.स.) की सरदारी मुसल्लेमात में से है , उलेमाए इस्लाम का इस पर इत्तेफ़ाक़ है कि सरवरे कायनात (स अ व व ) ने इरशाद फ़रमाया हैःالحسن والحسین سیدا شباب اهل الجنة و ابوهما خیر منهما

हसन (अ.स.) और हुसैन (अ.स.) जवानाने बहिश्त के सरदार हैं और उनके वालिदे बुज़ुर्गवार यानी अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) इन दोनों से बेहतर हैं। जनाबे हुज़ैफ़ाए यमानी का बयान है कि मैंने आं हज़रत (स अ व व ) को एक दिन बहुत ही मसरूर पा कर अर्ज़ कि मौला आज इफ़राते शादमानी की क्या वजह है ? इरशाद फ़रमाया कि मुझे आज जिब्राईल ने यह बशारत दी है कि मेरे दोनों फ़रज़न्द हसन (अ.स.) व हुसैन (अ.स.) जवानाने बेहिशत के सरदार हैं और उनके वालिद अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) उनसे बेहतर हैं।(कन्ज़ुल आमाल जिल्द 7 पृष्ठ 107, सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 117 ) इस हदीस से इसकी भी वज़ाहत हो गई है कि हज़रत अली (अ.स.) सिर्फ़ सय्यद ही न थे बल्कि फ़रज़न्दाने सियादत के बाप थे।

जज़बाए इस्लाम की फ़रावानी

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि एक दिन अबू सुफ़ियान हज़रत अली (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हो कर कहने लगा कि आप आं हज़रत (स अ व व ) से सिफ़ारिश कर के एक ऐसा मोहायदा लिखवा दीजिए जिसके रू से मैं अपने मक़सद में कामयाब हो सकूं। आप ने फ़रमाया कि आं हज़रत (स अ व व ) जो कह चुके हैं अब उसमें बाल बराबर फ़र्क़ न होगा। उसने इमाम हसन (अ.स.) से सिफ़ारिश की ख़्वाहिश की। आपकी उम्र अगरचे उस वक़्त सिर्फ़ 4 साल की थी लेकिन आप ने उस वक़्त ऐसी र्जुअत का सबूत दिया जिसका तज़किरा ज़बाने तारीख़ पर है। लिखा है कि अबू सुफ़ियान की तलब सिफ़ारिश पर आपने दौड़ कर उसकी दाढ़ी पकड़ ली और नाक मरोड़ कर कहा कलमा ए शहादत ज़बान पर जारी करो। तुम्हारे लिये सब कुछ है। यह देख कर अमीरूल मोमेनीन (अ.स.) मसरूर हो गये।(मनाक़िबे आले अबू तालिब जिल्द 4 पृष्ठ 46 )

इमाम हसन (अ.स.) और तरजुमानी वही

अल्लामा मजलिसी तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम हसन (अ.स.) का यह तरीका था कि आप इन्तेहाई कम सिनी के आलम में अपने नाना पर नाज़िल होने वाली वही मन अन अपनी वालेदा माजेदा को सुना दिया करते थे। एक दिन हज़रत अली (अ.स.) ने फ़रमाया कि ऐ बिन्ते रसूल मेरा जी चाहता है कि हसन को तरजुमानीए वही खुद करते हुए देखूं और सुनूं सय्यदा (स अ व व ) ने इमाम हसन (अ.स.) के पहुँचने का वक़्त बता दिया। एक दिन अमीरल मोमेनीन (अ.स.) हसन (अ.स.) से पहले दाखि़ले ख़ाना हो गये और गोशा ख़ाना में छुप कर बैठ गए। इमाम हसन (अ.स.) हसबे मामूल तशरीफ़ लाये और मां की आग़ोश में बैठ कर वही सुनानी शुरू कर दी , लेकिन थोड़ी देर के बाद अर्ज़ कि , ‘‘ या अमाह क़द तलजलज लेसानी व कुल बयानी लाअल सय्यदी यरानी ’’ मादरे गेरामी आज वही तरजुमानी में लुक़नत और बयाने मक़सद में रूकावट हो रही है मुझे ऐसा मालूम होता है कि जैसे मेरे बुजु़र्ग मोहतरम मुझे देख रहे हों। यह सुन कर हज़रत अमीरल मोमेनीन (अ.स.) ने दौड़ कर इमाम हसन (अ.स.) को आग़ोश में उठा लिया और बोसा देने लगे।(बेहारूल अनवार जिल्द 10 पृष्ठ 193 )

हज़रत इमाम हसन (अ.स.) का बचपन में लौहे महफ़ूज़ का मुतालेआ करना।

इमाम बुख़ारी रक़म तराज़ हैं कि एक दिन कुछ सदक़े की खजूरें आईं हुई थीं इमाम हसन (अ.स.) इसके ढेर से खेल रहे थे और खेल ही के तौर पर इमाम हसन (अ.स.) ने दहने अक़दस में रख ली , यह देख कर आं हज़रत (स अ व व ) ने फ़रमाया , ऐ हसन क्या तुम्हें मालूम नहीं है कि हम लोगों पर सदक़ा हराम है।(सही बुखारी पारा 6 पृष्ठ 25 )

हज़रत हुज्जतुल इस्लाम शहीदे सालिस का़ज़ी नूर उल्लाह शूशतरी फ़रमाते हैं कि इमाम पर अगरचे वही नाज़ील नहीं होती लेकिन उसको इल्हाम होता है और वह लौहे महफ़ूज़ का मुतालेआ करता है जिस पर अल्लामा इब्ने हजरे असक़लानी का वह क़ौल दलालत करता है जो उन्होंने सही बुखा़री की इस रवायत की शरह में लिखा है जिसमें आं हज़रत (स अ व व ) ने इमाम हसन (अ.स.) के शीरख़्वारगी के आलम में सदक़े की खजूर के मुंह में रख लेने पर ऐतेराज़ फ़रमाया था। ‘‘ कख़ कख़ अमा ताअलम अनल सदक़तः अलैना हराम ’’ थूकू थूकू क्या तुम्हें मालूम नहीं कि हम लोगों पर सदक़ा हराम है और जिस शख़्स ने यह ख़्याल किया कि इमाम हसन (अ.स.) उस वक़्त दूध पीते थे , आप पर अभी शरई पाबन्दी न थी आं हज़रत (स अ व व ) ने उन पर क्यों एतेराज़ किया। इसका जवाब अल्लामा असक़लानी ने अपनी फ़तेह अलबारी शरह सही बुखा़री में दिया है कि इमाम हसन (अ.स.) और दूसरे बच्चे बराबर नहीं हो सकते। क्यों कि ‘‘انا الحسن یتلالع لوح المحفوظ ’’ इमाम हसन (अ.स.) शीर ख़्वारगी के आलम में भी लौहे महफ़ूज़ का मुतालेआ किया करते थे।(हक़ाएक़ुल हक़ पृष्ठ 127 )

ख़लीफ़ाए अव्वल को मिम्बरे रसूल (स .अ.व.व. ) से उतरने का हुक्म

अल्लामा इब्ने हसर और इमामे सियूती रक़मतराज़ हैं कि इमाम हसन (अ.स.) एक दिन मस्जिदे रसूल (स अ व व ) से गुज़रे। आपने देखा कि हज़रत अबू बक्र मिम्बरे रसूल (स अ व व ) पर बैठे हुये है आप से रहा न गया और आप मिम्बर के क़रीब तशरीफ़ ले जा कर फ़रमाने लगेانزل ممنر ابی

मेरे बाप के मिम्बरे से उतर आओ , यह तुम्हारे बैठने की जगह नहीं है , यह सुन कर वह मिम्बर से उतर आये और इमाम हसन (अ.स.) को अपनी आग़ोश में बैठा लिया।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 105, तारीलख अल ख़ोल्फ़ा पृष्ठ 55, रियाज़ुन नज़रा पृष्ठ 128 )

इमाम हसन (अ.स.) का बचपन और मसाएले इल्मिया

यह मुसल्लेमात से है कि हज़रात आइम्मा ए मासूमीन (अ.स.) को इल्मे लदुन्नी हुआ करता था। वह दुनिया में तहसीले इल्म के मोहताज नहीं हुआ करते थे। यही वजह है कि वह बचपन में ही ऐसे मसाएले इल्मिया से वाक़िफ़ होते थे जिनसे दुनिया के आम उलेमा अपनी ज़िन्दगी के आख़री उम्र तक बे बहरा रहते थे। इमाम हसन (अ.स.) जो ख़ानवादाए रिसालत की एक फ़र्द अकमल और सिलसिले असमत की एक मुस्तहकम कड़ी थे कि बचपन के हालात व वाक़ेयात देखे जायें तो मेरे दावे का सबूत मिल सकेगा।

पहला वाकिआ

मनाक़िब इब्ने शहरे आशोब में ब हवाले शरह अख़बारे क़ाज़ी नोमान मरक़ूम है कि एक सायल हज़रत अबू बक्र की खि़दमत में आया और उसने सवाल किया कि मैंने हालाते अहराम में शुतर मुर्ग़ के चन्द अन्डे भून कर खा लिये हैं बताइये कि मुझ पर क्या कफ़्फ़ारा वाजिब उल अदा हुआ ? सवाल का जवाब चूंकि उनके बस का न था , इस लिये अरक़े निदामत पेशानिये खि़लाफ़त पर आ गया। इरशाद हुआ कि इसे अब्दुल रहमान बिन औफ़ के पास ले जाओ। जो उनसे सवाल दोहराया तो वह भी ख़ामोश हो गये और कहा कि इसका हल तो अमीरल मोमेनीन (अ.स.) कर सकते हैं। साएल हज़रत अली (अ.स.) की खिदमत में लाया गया। आपने साएल से फ़रमाया कि मेरे दो छोटे बच्चे जो सामने नज़र आ रहे हैं उनसे दरयाफ़्त कर ले। साएल इमामे हसन (अ.स.) की तरफ़ मुतवज्जे हुआ और मसला दोहराया , इमामे हसन (अ.स.) ने जवाब दिया कि तूने जितने अन्डे खाए हैं उतनी ही ऊंटनियां ले कर उन्हें हामेला करा और उन से जो बच्चे पैदा हों उन्हें राहे ख़ुदा में हदियाए खा़ना काबा कर दे। अमीरल मोमेनीन (अ.स.) ने हंस कर फ़रमाया कि बेटा जवाब तो बिल्कुल सही है लेकिन यह तो बताओ कि क्या ऐसा नहीं है कि कुछ हमल ज़ाया हो जाते हैं और कुछ बच्चे मर जाते हैं। अर्ज़ कि बाबा जान बिल्कुल दुरूस्त है , मगर ऐसा भी तो होता है कि कुछ अन्डे भी ख़राब और गन्दे निकल जाते हैं। यह सुन कर साएल पुकार उठा कि एक मरतबा अपने अहद में सुलैमान बिन दाऊद ने भी यही जवाब दिया था जैसा कि मैंने अपनी किताबो में देखा है।

दूसरा वाकिआ

एक रोज़ अमीरल मोमेनीन (अ.स.) मक़ामे रहबा में तशरीफ़ फ़रमा थे और हसनैन (अ.स.) वहां मौजूद थे , नागाह एक शख़्स आ कर कहने लगा कि मैं आपकी रियाया और अहले बलद(शहरी) हूं। हज़रत ने फ़रमाया कि तू झूठ बोलता है , तू न तो मेरी रियाया में से है और न मेरे शहर का शहरी है , बल्कि तू बादशाहे रोम का फ़रसतादा है। तुझे उसने माविया के पास चन्द मसाएल दरयाफ़्त करने के लिये भेजा था और उसने मेरे पास भेज दिया है। उसने कहा या हज़रत आपका इरशाद बिल्कुल बजा है मुझे माविया ने पोशीदा तौर पर आपके पास भेजा है और इसका हाल ख़ुदा वन्दे आलम के सिवा किसी को मालूम नहीं है , मगर आप बा इल्मे इमामत समझ गये। आप ने फ़रमाया की अच्छा अब इन मसाएल के जवाबात इन दो बच्चों में से किसी एक से भी पूछ ले। यह इमाम हसन (अ.स.) की तरफ़ मुतवज्जे हो कर चाहता था कि सवाल करे कि इमाम हसन (अ.स.) ने फ़रमाया कि ऐ शख़्स तू यह दरियाफ़्त करने आया है कि , 1. हक़ो बातिल में कितना फ़ासला है ?, 2. ज़मीन व आसमान तक कितनी मसाफ़त है ?, 3. मशरिक़ व मग़रिब में कितनी दूरी है ?. 4. का़ैस क़ज़ा क्या चीज़ है ?, 5. मख़नस किसे कहते हैं ?, 6. वह दस चीज़ें क्या हैं जिनमें से हर एक को ख़ुदा वन्दे आलम ने दूसरे से सख़्त और फ़ाएक़ पैदा किया है ?.

सुन हक़ व बातिल में चार अंगुश्त का फ़र्क़ व फ़ासला है। अक्सर व बेशतर जो कुछ आंख से देखा है और जो कुछ कान से सुना व बातिल है। (आंख से देखा हुआ यक़ीनी , कान से सुना हुआ मोहताजे तहक़ीक़) ज़मीन और आसमान के दरमियान इतनी मसाफ़त है कि मज़लूम की आह और आंख की रौशनी पहुँच जाती है। मशरिक़ व मग़रिब में इतना फ़ासला है कि सूरज एक दिन में तय कर लेता है और कौसे क़ज़ा असल में कौसे ख़ुदा है। इस लिये कि क़ज़ह शैतान का नाम है। यह फ़रावनी रिज़्क़ और अहले ज़मीन के लिये ग़र्क़ से अमान की अलामत है इस लिये अगर यह ख़ुश्की में नमूदार होती है तो बारिश के अलामात से समझी जाती है और बारिश में निकलती है तो ख़त्मे बारान की अलामात में से शुमार की जाती है। मुख़न्नस वह है जिसके मुताअल्लिक़ यह मालूम न हो कि वह मर्द है या औरत और जिसके जिस्म में दोनों के आज़ा हों। इसके हुक्म यह है कि ता हदे बुलूग़ इन्तेज़ार करे , अगर मोहतलिम हो तो मर्द और हायज़ हो और पिस्तान उभर आयें तो औरत। अगर इससे मसला हल न हो तो देखना चाहिये कि उसके पेशाब की धार सीधी जाती है कि नहीं , अगर वह सीधी जाती है तो मर्द वरना औरत। और वह दस चीज़ें जिनमें से एक दूसरे पर ग़ालिब व क़वी हैं वह यह हैं कि ख़ुदा ने सब से ज़्यादा सख़्त पत्थर को पैदा किया है मगर इस से ज़्यादा सख़्त लौहा है जो पत्थर को भी काट देता है , उससे ज़्यादा सख़्त क़वी आग है जो लोहे को पिघला देती है और आग से ज़्यादा सख़्त क़वी पानी है जो आग को बूझा देता है और इससे ज़्यादा सख़्त क़वी अब्र है जो पानी को अपने कंधों पर उठाए फिरता है और उससे ज़्यादा क़वी हवा है जो अब्र को उड़ाये फिरती है और हवा से ज़्यादा सख़्त व क़वी फ़रिश्ता है जिसकी हवा महकूम है और उससे ज़्यादा सख़्त व क़वी मलकुल मौत है जो फ़रिशताए बाद की भी रूह क़ब्ज़ कर लेंगे और मलकुल मौत से भी ज़्यादा सख़्त व क़वी मौत है जो मलकुल मौत को भी मात डालेगी और मौत से भी ज़्यादा सख़्त क़वी हुक्मे ख़ुदा है। यह जवाबात सुन कर साएल फ़ड़क उठा।

तीसरी वाकिआ

हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) से मनक़ूल है कि एक मरतबा लोगों ने देखा कि एक शख़्स के हाथ में खून आलूदा छुरी है और उसी जगह एक शख़्स ज़ब्ह किया हुआ पड़ा है। जब उससे पूछा गया कि तूने उसे क़त्ल किया है तो उसने कहा हां। लोग उसे जसदे मक़तूल समेत जनाबे अमीरल मोमेनीन (अ.स.) की खि़दमत में चले। इतने में एक शख़्त दौड़ता हुआ आया और कहने लगा कि इसे छोड़ दों , इस मक़तूल का क़ातिल मैं हूँ। उन लोंगों ने उसे भी साथ ले लिया और हज़रत के पास ले गये। सारा क़िस्सा बयान किया गया। आपने पहले शख़्स से पूछा कि जब तू इसका क़ातिल नहीं था तो क्या वजह है कि अपने को इस का क़ातिल बयान किया। उसने कहा मौला मैं क़स्साब हूँ। गोसफ़न्द ज़ब्ह कर रहा था कि मुझे पेशाब की हाजत हुई। इस तरह ख़ून आलूदा छुरी लिये हुये उस ख़राबे में चला गया , वहां देखा की वह मक़तूल ताज़ा ज़िब्हा किया हुआ पड़ा है , इतने में लोग आ गये और मुझे पकड़ लिया। मैंने यह ख़्याल करते हुये कि इस वक़्त जब कि क़त्ल के सारे क़राएन मौजूद हैं मेरे इन्कार को कौन बावर करेगा। मैंने इक़रार कर लिया। फिर आपने दूसरे से पूछा कि तू इसका क़ातिल है ? उसने कहा जी हंा मैं ही उसे क़त्ल कर के चला गया था। जब देखा कि एक क़स्साब की ना हक़ जान चली जायेगी , तो हाज़िर हो गया। आपने फ़रमाया मेरे फ़रज़न्द हसन को बुलाओ वही इस मक़सद का फ़ैसला सुनायेंगे। इमाम हसन (अ.स.) आये सारा क़िस्सा सुना। फ़रमाया दोनों को छोड़ दो यह क़स्साब बे कु़सूर है और यह शख़्स अगरचे का़तिल है मगर उसने एक नफ़्स को क़त्ल किया तो दूसरे नफ़्स (क़स्साब) को बचा कर उसे हयात दी और उसकी जान बचा ली , और हुक्मे क़ुरआन है कि ! ‘‘ मन अययाहा फ़ाक़ानमा अहया अन्नास जमीअन ’’ जिसने एक नफ़्स की जान बचाई उसने गोया तमाम लोगों की जान बचाई। लेहाज़ा उस मक़तूल का ख़ून बहा बैतुलमाल से दे दिया जाये।

चौथा वाकिआ

अली इब्ने इब्राहीम क़ुम्मी ने अपनी तफ़सीर मे लिखा कि शाहे रोम ने जब हज़रत अली (अ.स.) के मुक़ाबले में माविया की चीरा दस्तियों से आगाही हासिल की तो दोनों को लिखा कि मेरे पास एक एक नुमाइन्दा भेज दें। हज़रत अली (अ.स.) की तरफ़ से इमाम हसन (अ.स.) और माविया की तरफ़ से यज़ीद की रवानगी अमल में आई। यज़ीद ने वहां पहुँच कर शाहे रोम की दस्त बोसी की और इमाम हसन (अ.स.) ने जाते ही कहा कि ख़ुदा का शुक्र है मैं यहूदी , नसरानी , मजूसी वग़ैरा नहीं हूँ बल्कि ख़ालिस मुसलमान हूँ। शाहे रोम ने चन्द तसावीर निकालीं। यज़ीद ने कहा कि मैं इन में से एक को भी नहीं पहचानता और न बता सकता हूं कि यह किन हज़रात की शक्लें हैं। हज़रत इमाम हसन (अ.स.) ने , हज़रत आदम (अ स ) , हज़रत नूह (अ स ) , हज़रत इब्राहीम (अ.स.) और शुऐब (अ.स.) व याहीया (अ.स.) की तसवीरें देख कर शक्लें पहचान लीं और एक तसवीर देख कर आप रोने लगे। बादशाह ने पूछा यह किसी तसवीर है ? फ़रमाया मेरे जद्दे नामदार की। इसके बाद बादशाह ने सवाल किया कि वह कौन से जान दार हैं जो अपनी मां के पेट से पैदा नहीं हुए ? आपने फ़रमाया कि ऐ बादशाह , वह सात 7 जानदार हैं। 1. आदम , 2. हव्वा , 3. दुम्बाए इब्राहीम , 4. नाक़ा ए सालेह , 5. इबलीस , 6. मुसवी अज़दहा , 7. वह कव्वा जिसने क़ाबील की दफ़्ने हाबील की तरफ़ रहबरी की। बादशाह ने यह तबह्हुरे इल्मी देख कर बड़ी इज़्ज़त की और ताहएफ़ के साथ वापस किया।

इमाम हसन (अ.स.) और तफ़सीरे क़ुरआन

अल्लामा इब्ने तल्हा शाफ़ेई बा हवाला ए तफ़सीर वसीत वाहिदी लिखते हैं कि एक शख़्स ने इब्ने अब्बास और इब्ने उमर से एक आयत से मुताअल्लिक़ ‘‘ शाहिद व मशहूद ’’ के मानी दरयाफ़्त किये। इब्ने अब्बास ने शाहिद से यौमे जुमा और मशहूद से यौमे अरफ़ा बताया और इब्ने उमर ने यौमे जुमा और यौमुल नहर कहा। इसके बाद वह शख़्स इमाम हसन (अ.स.) के पास पहुँचा। आपने शाहिद से रसूले ख़ुदा (स अ व व ) और मशहूद से यौमे क़यामत फ़रमाया और दलील से आयत पढ़ी। 1. ‘‘ या अय्योहन नबी अना अरसलनाका शाहिदो मुबशशिरो नज़ीरा ’’ ऐ नबी हम ने तुम को शाहिदो मुबशशिर और नज़ीर बना कर भेजा। 2. ‘‘ ज़ालेका यौमे मजमूआ लहा अन्नास व ज़ालेका यौमे मशहूद ’’ क़यामत का वह दिन होगा , जिसमें तमाम लोग एक मक़ाम पर जमा कर दिये जायेंगे और यही यौमे मशहूर है। साएल ने सब के जवाब सुन्ने के बाद कहा ‘‘ फ़काना का़ैल अल हसन अहसन ’’ इमाम हसन (अ.स.) का जवाब दोनों से कहीं बेहतर है।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 225 )

इमाम हसन (अ.स.) की साया ए रहमत से महरूमी

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि इमाम हसन (अ.स.) की उम्र जब सात 7 , साल पांच 5 , माह और तेरह 13 दिन की हुई तो आपके सर से रहमतुल लिल आलेमीन का साया 28 सफ़र 11 हिजरी को उठ गया। अभी आप नाना का सोग मनाने से फ़राग़त हासिल न कर सके थे कि 3 जमादिउस्सानी 11 हिजरी को आपकी वालेदा माजेदा हज़रत फ़ात्मा ज़हरा (स अ व व ) ने भी इन्तेक़ाल फ़रमाया। इस गाम बालाए ग़म ने इमाम हसन (अ.स.) को बे इन्तेहा सदमा पहुँचाया।

मुशहबेहते रसूल (स अ व व )

अल्लामा अली मुत्तक़ी तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रते अली (अ.स.) फ़रमाया करते थे कि हसन रसूले करीम (स. अ.) की शक्लो शबाहत से बहुत ज़्यादा मुशाबेह है। अनस बिने मालिक का बयान है कि इमाम हसन (अ.स.) के जिस्म का निस्फ़ बालाई हिस्सा रसूल अल्लाह (स अ व व ) से और निस्फ़ हिस्सा ज़ेरी अमीरल मोमेनीन (अ.स.) से मुशाबेहत है।

एक रवायत में है कि आं हज़रत (स अ व व ) फ़रमाया करते थे कि हसन में ख़ुदा ने हैबत और सरदारी और हुसैन में जुर्रत व हिम्मत वदीअत की है।(कन्ज़ुल आमाल जिल्द 7 पृष्ठ 107 )

इमाम हसन (अ.स.) की इबादत

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) फ़रमाते हैं कि इमाम हसन (अ.स.) ज़बरदस्त आबिद बेमिसाल ज़ाहिद , अफ़ज़ल तरीन आलिम थे। आप ने जब भी हज फ़रमाया पैदल फ़रमाया। कभी कभी पा बरहैना हज को जाते थे। आप अकसर मौत , अज़ाबे क़ब्र , सिरात और बेअसत व नशूर को याद कर के रोया करते थे। जब आप वज़ू करते थे तो आपके चेहरे का रंग ज़र्द हो जाया करता था और जब नमाज़ के लिये खड़े होते थे तो बेद की मिस्ल कांपने लगते थे। आपका मामूल था कि जब दरवाज़ए मस्जिद पर पहुँचते तो खुदा को मुख़ातिब करके कहते , मेरे पालने वाले तेरा गुनाहगार बन्दा तेरी बारगाह में आया है ऐ रहमानों रहीम अपनी अच्छाईयों के सदक़े में मुझ जैसे बुराई करने वाले को माफ़ कर दे। आप जब नमाज़े सुबह से फ़ारिग़ होते थे तो उस वक़्त तक वजा़एफ़ में मशगू़ल रहते थे जब तक सूरज तुलू न हो जाये।(रौज़ातुल वाएज़ीन व बेहारूल अनवार)

आपका ज़ोहद

इमाम शाफ़ेई लिखते हैं कि इमाम हसन (अ.स.) ने अक्सर अपना सारा माल राहे ख़ुदा में तक़सीम कर दिया और बाज़ मरतबा निस्फ़ माल तक़सीम फ़रमाया। वह अज़ीम ज़ाहिदो परहेज़गार थे।

आपकी सख़ावत

मुवर्रेख़ीन लिखते हैं कि एक शख़्स ने हज़रत इमाम हसन (अ.स.) से कुछ मांगा। दस्त सवाल दराज़ होना था कि आपने 50,000 (पचास हज़ार) दिरहम और 500 (पांच सौ) अशर्फि़यां दे दीं और फ़रमाया कि मज़दूर ला कर इसे उठा ले जा। इसके आपने मज़दूर की मज़दूरी में अपना चोग़ा बख़्श दिया।(मरातुल जनान 123 ) एक मरतबा आपने एक साएल को ख़ुदा से दुआ करते हुए सुना , ख़ुदाया मुझे दस हज़ार दिरहम अता फ़रमा। आपने घर पहुँच कर मतलूबा रक़म भिजवा दी।(नूरूल अबसार पृष्ठ 122 )

आपसे किसी ने पूछा कि आप तो फ़ाक़ा करते हैं लेकिन साएल को महरूम वापस नहीं फ़रमाते। इरशाद फ़रमाया कि मैं खु़दा से मांगने वाला हूँ उसने मुझे देने की आदत डाल रखी है , और मैंने लोगों को देने की आदत डाली है। मैं डरता हूँ कि अगर अपनी आदत बदल दूं तो कहीं ख़ुदा भी अपनी आदत न बदल दे और मुझे भी महरूम कर दे।(सफ़ा 123 )

तवक्कुल के मुताअल्लिक़ आपका इरशाद

इमामे शाफ़ेई का बयान है कि किसी ने इमाम हसन (अ.स.) से अर्ज़ की कि अबूज़रे ग़फ़्फ़ारी फ़रमाया करते थे कि मुझे तवंगरी से ज़्यादा नादारी और सेहत से ज़्यादा बीमारी पसन्द है। आपने फ़रमाया कि ख़ुदा अबू ज़र पर रहम करे उनका कहना दुरूस्त है लेकिन मैं तो कहता हूँ कि जो शख़्स के क़ज़ा व क़द्र पर तवक्कल करे वह हमेशा इसी चीज़ को पसन्द करेगा जिसे खु़दा उसके लिये पसन्द करे।(मरातुल जेना जिल्द 1 पृष्ठ 125 )

इमाम हसन (अ.स.) हिल्म और अख़्लाक़ के मैदान में

अल्लामा इब्ने शहरे आशोब तहरीर फ़रमाते हैं कि एक दिन हज़रत इमाम हसन (अ.स.) घोड़े पर सवार कहीं तशरीफ़ लिये जा रहे थे , रास्ते में माविया के तरफ़दारों का एक शामी सामने आ पड़ा। उसने हज़रत को गालियां देनी शुरू कर दी। आपने उसका मुतलक़न कोई जवाब न दिया। जब वह अपनी जैसी कर चुका तो आप उसके क़रीब गये और उसको सलाम कर के फ़रमाया कि भाई शायद तू मुसाफ़िर है , सुन अगर तुझे सवारी की ज़रूरत हो , तो मैं तुझे सवारी दे दूं। अगर तू भूखा हो तो खाना खिला दूं। अगर तुझे कपड़े दरकार हों तो कपड़े दे दूं। अगर तुझे रहने को जगह चाहिये तो मकान का इन्तेज़ामक र दूं। अगर दौलत की ज़रूरत है तो तुझे इतना दे दूं कि तू ख़ुश हाल हो जाये। यह सुन कर शामी बे इन्तेहा शरमिन्दा हुआ और कहने लगा कि मैं गवाही देता हूँ कि आप ज़मीने ख़ुदा पर ख़लीफ़ा हैं। मौला मैं तो आपको और आपके बाप दादा के सख़्त नफ़रत और हिक़ारत की नज़र से देखता था लेकिन आज आपके इख़्लाक़ ने मुझे आपका गिरवीदा बना दिया। अब मैं आपके क़दमों से दूर न जाऊंगा और ता हयात आपकी खि़दमत में रहूँगा।(मुनाक़िब जिल्द 4 पृष्ठ 53 व कामिल मबरूज 2 पृष्ठ 86 )

एहसान का बदला एहसान

अबुल हसन मदाईनी का बयान है कि एक मरतबा इमाम हसन (अ स ) , इमाम हुसैन (अ.स.) और अब्दुल्लाह बिन जाफ़रे तय्यार हज को जाते हुए भूख और प्यास की हालत में एक ज़ईफ़ा के झोपड़े में जा पहुँचे और उससे खाने पीने की चीज़ तलब फ़रमाई। उसने अर्ज़ की कि मेरे पास एक बकरी है उसका दूध दूह कर प्यास बुझाई जा सकती है , उन्होंने दूध पी लिया लेकिन गुरसनगी से तसल्ली न हुई तो उससे फ़रमाया कि कुछ खाने का बन्दो बस्त भी हो सकता है। उसने कहा मेरे पास तो बस यही एक बकरी है लेकिन मैं क़सम देती हूँ कि आप इसे ज़ब्ह कर के तनावुल फ़रमा लें। बकरी ज़ब्ह की गई गोश्त भूना गया और सब ने खा लिया और इसके बाद क़दरे आराम कर के वह लोग रवाना हो गये। जब शाम को उसका शौहर आया तो उस औरत ने सारा वाक़िया सुनाया। शौहर ने पूछा वह कौन लोग थे ? कहा मालूम नहीं , जाते वक़्त यह कहा था कि हम मदीने के रहने वाले है। शौहर ने कहा ख़ुदा की बन्दी यह तो बता कि अब हमारा गुज़ारा किस तरह होगा। ग़रज़ कि थोड़े ही अरसे में उन लोगों को क़हत का सामना करना पड़ा और यह सख़्त मुसिबतों में मुब्तिला हो कर भीख मांगते हुए मदीने जा पहुँचे। एक गली से गुज़र रहे थे कि नागाह इमाम हसन (अ.स.) की निगाह उस औरत पर जा पड़ी। आप ने उसे बुलवा कर बकरी वाला वाक़िया याद दिलाया और उसको एक हज़ार बकरियां और एक हज़ार अशर्फि़यां इनायत फ़रमा दीं और उसे इमाम हुसैन (अ.स.) की खि़दमत में भेज दिया , उन्होंने भी उसे इसी क़द्र बकरियां वग़ैरा अता फ़रमाई फिर अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र को इत्तेला दी गई उन्होंने भी उसी के लगभग उसे दे दिया। वह माला माल हो कर अपने घर वापस चली गई।(नूरूल अबसार पृष्ठ 121 व मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 229 )


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