चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

शहादते इमाम रज़ा (अ.स.) के मुताअल्लिक़ अबासलत हरवी का बयान

अल्लामा अब्दुर्रहमान जामी तहरीर फ़रमाते हैं कि अबू सलत हरवी का बयान है कि हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) ने एक दिन मुझ से फ़रमाया कि हारून रशीद के पांयती की गिर्द की मिट्टी लाओ। जब मैं मिट्टी लाया तो आपने उसे सूंघ पर फेंक दिया और फ़रमाया कि अन्क़रीब मेरी क़ब्र के लिये इसी मुक़ाम की ज़मीन खोदेंगे और ऐसा पत्थर निकल आएगा कि उसे न कोई काट सकेगा और न उखाड़ सकेगा। फिर फ़रमाया कि हारून रशीद के सरहाने की मिट्टी लाओ मैं मिट्टी ले आया तो आपने उसे सूंघ कर फ़रमाया कि इसी मुक़ाम पर मेरी क़ब्र होगी। फिर फ़रमाया ऐ अबू सलत कल मुझे मामून तलब करेगा। सुनो जब मैं जाने लगूं तो तुम यह देख लेना कि मेरे सर पर कोई चादर वगै़रा है या नहीं। अगर हो तो मुझ से कलाम न करना और अगर न हो तो मुझसे बातें करना। अबू सलत कहते हैं कि सुबह के वक़्त इमाम (अ.स.) फ़राग़त के बाद मामून के पयाम का इन्तेज़ार करने लगे। इतने में मैंने देखा कि मामून रशीद का क़ासिद आ गया इमाम (अ.स.) इसके हमराह रवाना हो गये। जिस वक़्त आप जा रहे थे आपके सरे मुबारक पर अज़ा क़िस्म कोई तौलिया कोई कपड़ा था। मैंने हस्बे हुक्म आप से कोई कलाम नहीं किया और वह तशरीफ़ ले गए। इस वक़्त मामून के सामने अंगूरों का एक तबक़ रखा हुआ था। इसने मरासिमे ताजी़म अदा करने के बाद कहा , इब्ने रसूल (स.अ.) आपने इस से बेहतर अंगूर कभी नहीं देखा होगा। आपने फ़रमाया कि बेहिश्त के अंगूर इससे कहीं बेहतर हैं फिर मामून ने एक ख़ोशये अंगूर उठाते हुए कहा। लीजिए तनावुल फ़रमाइये। आपने फ़रमाया ऐ बादशाह इसे खाने को इस वक़्त मेरा जी नहीं चाहता , लेहाज़ा मुझे माफ़ करो। मैं इस वक़्त नहीं खाऊंगा। मामून ने शदीद इसरार करते हुए कहा ‘‘ मारमोहत्तम नी वारी ’’ आप क्यों नहीं तनावुल करते क्या आपको मुझ पर भरोसा नहीं है और क्या आप मुझ पर इत्तेहाम लगाते और मुझसे बदगुमानी करते हैं। यह कहते हुए मामून ने एक खा़ेशा उठाया और उसे खाना शुरू किया। फिर एक और खोशा उठाया और उसे इमाम (अ.स.) की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा लीजिए तनावुल कीजिए। इमाम (अ.स.) ने उसके शदीद इसरार पर उसे ले लिया और उसमें से तीन दाने तनावुल फ़रमाये । इन अंगूरों को खाते ही जौहरे वजूद में इन्के़लाब पैदा हो गया। बक़िया अंगूरों को फेंकते हुए आप उठ खड़े हुए। मामून ने कहा कहां तशरीफ़ लिये जा रहे हैं ? आपने फ़रमाया कि ‘‘ बेअन्जा के फरसतादी ’’ जहां तूने भेजा है वहां जा रहा हूँ। उसके बाद आप सरे मुबारक पर चादर डाल कर रवाना हो गये।

अबु सलत हरवी कहते हैं कि इमाम (अ.स.) दरबार से रवाना हो कर दाखि़ले ख़ाना हुए और आपने मुझे हुक्म दिया कि दरवाज़ा बन्द कर दो। मैंने दरवाज़ा बन्द कर दिया। फिर आप बिस्तर पर लेट गए। आपक बिस्तर पर लेटना था कि मुझे रंजो अलम ने आ घेरा। तरह तरह के ख़्यालात पैदा होने लगे और मैं सख़्त हैरान हो कर परेशान हो गया। इमाम (अ.स.) बिस्तरे अलालत पर थे और मैं रंजो ग़म की हालत में बैठा हुआ था। नागाह मैंने घर के अन्दर एक ख़ूब सूरत नौजवान को देख कर उस से पूछा की आप कौन हैं ? और जब कि दरवाज़ा बन्द है आपको अन्दर किसने पहुँचा दिया। आपने इरशाद फ़रमाया मैं हुज्जते ख़ुदा मोहम्मद तक़ी (अ.स.) हूँ। मुझे बन्द मकान में वही लाया है जिसने चश्मे ज़दन में मदीने से यहां पहुँचाया है। मैं अपने पदरे बुज़ुर्गवार की खि़दमत के लिये हाज़िर हुआ हूँ। यह कह कर आप इमाम रज़ा (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुए। इमाम (अ.स.) ने जैसे ही आपको देखा फ़ौरन अपने सीने से लगाया। पेशानी का बोसा दिया और चुपके चुपके आप से कुछ बातें करने लगे। थोड़ी देर के बाद आपने देखा कि रूहे मुबारक मुफ़ारेक़त कर गई और इमाम (अ.स.) वफ़ात पा गए। आपके वफ़ात फ़रमाने के बाद हज़रत मोहम्मद बिन अली (अ.स.) ने ग़ुस्लो कफ़न और हुनूत का इन्तेज़ाम फ़रमाया। फिर क़ुदरती ताबूत मंगवा कर नमाज़ पढ़ने के बाद उसमे रखा। थोड़ी देर के बाद वह ताबूत आसमान की तरफ़ चला गया। अबू सलत कहते हैं कि यह देख कर मैंने अर्ज़ कि मौला अभी मामून वग़ैरा आते होंगे मैं उन्हें क्या जवाब दूंगा। आपने फ़रमाया यह ताबूत अभी वापस आ जायेगा। चुनान्चे मिस्ले साबिक़ छत शिग़ाफ़्ता हुई और ताबूत आ गया। आपने इमाम (अ.स.) को बदस्तूर बिस्तर पर लेटा दिया और मुझे हुक्म दिया कि अब दरवाज़ा खोल दो। मैंने दरवाज़ा खोल दिया तो मामून वग़ैरा दाखि़ले ख़ाना हुए और सब आहो बुका करने लगे। फिर तजहीज़ और तक़फ़ीन का अज़ सरे नौ इन्तेज़ाम हुआ और आप हारून रशीद के सरहाने दफ़्न कर दिये गए।( शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 212, रौज़तुल पृष्ठ जिल्द 3 पृष्ठ 16 अलामुल वुरा पृष्ठ 198)

अल्लामा बिन तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि मामून ने हर चन्द चाहा कि इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) से मिलें मगर आपके फ़ौरी चले जाने की वजह से मुलाक़ात न हो सकी।( मतालेबुल सूऊल पृष्ठ 288)

अल्लामा नेमत उल्लाह जज़ाएरी लिखते हैं कि इमाम (अ.स.) की शहादत के बाद जो ख़बर सब से पहले उड़ी वह यह थी कि इमाम रज़ा (अ.स.) को मामून ने धोखे से शहीद कर दिये।( तज़किरतुल मासूमीन )

अल्लामा नेमत उल्लाह जज़ाएरी तहरीर फ़रमाते हैं कि मामून रशीद ने आपको अनार और अंगूर के ज़रिए ज़हर दिया था। (अनवार नेमानी पृष्ठ 27) अल्लामा तबरसी फ़रमाते हैं कि अनार के अरक़ में ज़हर मिला कर इसमें धागा तर कर लिया और उस धागे को सोज़न के ज़रिए अंगूर में गुज़ार कर उन्हें मसमूम कर दिया था।( आलामुल वुरा पृष्ठ 199)

शहादते इमाम रज़ा (अ.स.) के मौक़े पर इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) का ख़ुरासान पहुँचना

अबू मखनफ़ का बयान है कि जब हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) को ख़ुरासान में ज़हर दे दिया और आप बिस्तरे अलालत पर करवटें लेने लगे तो ख़ुदा वन्दे आलम ने इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) को वहां भेजने का बन्दो बस्त किया। चुनान्चे इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) जब कि मस्जिदे मदीना में मशग़ूले इबादत थे एक हातिफ़े ग़ैबी ने आवाज़ दी कि ‘‘ अगरमी ख़्वाही पदर खुद रा ज़िन्दा दरयाबी क़दम दर्राह न ’’ अगर अपने वालिदे बुज़ुर्ग वार से उनकी ज़िन्दगी में मिलना चाहते हो तो फ़ौरन ख़ुरासान के लिये रवाना हो जाएं यह आवाज़ सुनना था कि आप मस्जिद से बरामद हो कर दाखि़ले ख़ाना हुए और आपने अपने आइज़्ज़ा अक़रूबा को शहादते पदरे बुज़ुर्गवार से आगाह किया। घर में कोहराम बरपा हो गया। उसके बाद आप वहां से रवाना हो कर एक साअत में ख़ुरासान पहुँचे। वहां पहुँच कर देखा कि दरबान ने दरवाज़ा बन्द कर रखा है। आपने फ़रमाया कि दरवाज़ा खोल दो। मैं अपने पदरे बुज़ुर्गवार की खि़दमत में जाना चाहता हूँ। आपकी आवाज़ सुनते ही इमाम (अ.स.) ख़ुद अपने बिस्तर से उठे और दरवाज़ा खोल कर इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) को अपने गले से लगाया और बेपनाह गिरया फ़रमाया। इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) पदरे बुज़ुर्गवार की बेबसी , बेकसी और ग़ुरबत पर आंसू बहाने लगे फिर इमाम (अ.स.) तबरूकाते इमामत फ़रज़न्द के सुपुर्द कर के राहिए मुल्के बक़ा हो गए। इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन। (कनज़ुल अनसाब पृष्ठ 95) अल्लामा शेख़ अब्बास क़ुम्मी बा हवाला आलामिल वुरा तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) को ज्यों ही ख़बर मिली , ख़ुरासान तशरीफ़ ले गए और अपने वालिद बुज़ुर्गवार को दफ़्न करके एक साअ में वापस और यहां पहुँच कर लोगों को हुक्म दिया कि इमाम (अ.स.) का मातम करें।( मुन्तहल आमाल जिल्द 2 पृष्ठ 312)

बहस व नज़र

इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है कि जिस तरह ख़लीफ़ा मामून ने हालात की रौशनी में अपने भाई की मातहती क़ुबूल कर ली। फिर उसे क़त्ल कर दिया और जिस तरह फ़ज़ल बिन सुहेल (जूल रियासतैन मालिक निसान व क़लम ‘‘ अल फ़ख़री ’’) को वज़ीरे जंग बनाया फिर उसे ब मुक़ाम सरख़स हमाम में क़त्ल करा दिया और जिस तरह ताहिर को वज़ीरे आज़म बनाया और उसी की वजह से इस्तक़रार खि़लाफ़त हासिल किया। फिर उसे क़त्ल करा दिया। बिल्कुल इसी तरह अपनी ज़रूरत के वक़्त हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) को खि़लाफ़त का वली अहद बनाया। इनके साथ अपनी लड़की की शादी की और काम निकलने केे बाद उन्हें अपने हाथों से शहीद कर दिया। यानी जब अलवियों का ज़ोर हुआ तो उनकी बग़ावत को रोक देने के लिये शदीद इन्कार के बवजूद इमाम रज़ा (अ.स.) को वली अहद बनाया और जब अब्बासीयों का ज़ोर बढ़ा तो उन्हें राज़ी करने के लिये इमाम रज़ा (अ.स.) को शहीद कर दिया। इसे कहते हैं सियासत जिसमें हर क़िस्म का हरबा इस्तेमाल करना जाएज़ है।

इमाम रज़ा (अ.स.) को किसने ज़हर दिया। इसके मुताअल्लिक़ अल्लामा शिब्ली नोमानी ने जो कुछ तहरीर फ़रमाया है उसका ख़ुलासा यह है कि तमाम मुवर्रेख़ीन व उलमाए अहले तशीय बिला इसतसना इस पर मुत्तफ़िक़ हैं कि इमाम रज़ा (अ.स.) को ख़ुद मामून ने ज़हर दिया है लेकिन मुवर्रेख़ीन अहले तसन्नुन में से एक मुवर्रिख़ ने मामून पर इस इल्ज़ाम के लगाने की जुर्रत नहीं की।( किताब अल मामून पृष्ठ 62)

मैं समझता हूँ कि अल्लामा शिब्ली इस मामले में या तो बिल्कुल मामून के साथ हुसने ज़न से काम ले रहे हैं या उन्हें इल्म ही न था। उन्होंने तो साफ़ साफ़ लिखा है कुतुब अहले तशीय हमारे पास नहीं हैं लेकिन यह नहीं लिखा है कि हम ने तमाम क़ुतुब अहले सुन्नत को देख लिया है।

मेरे ख़्याल से वह अपनी किताबों से भी न वाक़िफ़ थे और उनकी तंग नज़री ने उनसे मज़कूरा जुमले लिखवा दिए। मैं कहता हूँ कि बहुत से उलमा व मुवर्रेख़ीन अहले सुन्नत इस वाक़िए को अपनी किताबों में लिखा है बाज़ ने तो बड़ी तफ़सील के साथ वाक़िए शहादत और हादसए ज़हर ख़्वानी को तहरीर किया है और बहुतों ने इशारतन ‘‘ व कनायतन ’’ इस पर रौशनी डाली है। मिसाल के लिए मुलाहेजा़ हो।

1. तारीख़ रौज़तुल पृष्ठ जिल्द 16, 2. तारीख़ शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 202, 3. तारीख़े कामिल जिल्द 6 पृष्ठ 116, 4. तारीख़ मरूज अलज़हब मसूदी जिल्द 9 पृष्ठ 33, 5. तारीख़ नूरूल अबसार पृष्ठ 144, 6. तारीख़ अल फ़ख़री पृष्ठ 163, 7. मतालेबुल सूऊल पृष्ठ 288, 8. तारीख़ हबीब अल सियर जिल्द 2 जुज़ अव्वल पृष्ठ 51, 9. तारीख़े आले मोहम्मद पृष्ठ 64, 10. रवाहे अल मुस्तफ़ा पृष्ठ 174, 11. किताब इन्साब समानी , 12. ख़ुलासा तहज़ीब अल कमाल , 13. मुख़तसिर अख़बार अल खुलफ़ा , 14. तारीख़ तबरी फ़ारसी जिल्द 4 पृष्ठ 792, 15. तारीख़ इब्ने तूलून पृष्ठ 98, 16. इन्साब समानी , 17. अख़बार अल ख़ुलफ़ा , 18. तारीख़े इस्लाम ग़ुलाम रसूल महरिज 2 पृष्ठ 58........

मेरे नज़दीक मज़कूरह बाला हवाला जात की मौजूदगी में अल्लामा शिब्ली का यह कहना है कि एक सुन्नी मुवर्रिख़ ने भी मामून पर इस इल्जा़म लगाने की जुर्रत नही की। (अल मामून पृष्ठ 92)

और इब्ने ख़लदून और जस्टिस अमीर अली का यह फ़रमाना कि बाज़ लोगों का यह ख़्याल............ कि मामून ने खुद इमाम रज़ा (अ.स.) को ज़हर दे कर हलाक किया बिल्कुल लग़ो और फ़ुज़ूल है।( तारीख़े इस्लाम अमीर अली पृष्ठ 186) हद दर्जा मोहमल , लगव फ़ुज़ूल और न क़ाबिले ऐतबार है।

मैं इन मुनकिराने हक़ाएक़ से पूछता हूँ कि अगर मामून ने ख़ुद ज़हर नहीं दिया , तो क्या किसी एक तारीख़ में भी यह मौजूद है कि उसने वाक़िए क़त्ल की तहक़ीक़ात कराई ? हरगिज़ नहीं। नीज़ यह कि उसने आपकी वफ़ात को 24 घन्टे छुपाया क्यों ?( मक़ातिल अल तालबैन पृष्ठ 378 प्रकाशित नजफ़े अशरफ़ )

मैं यह सच कहता हूँ कि फ़रज़न्दे रसूल की जैसी शख़्सीयत के क़त्ल की तहक़ीक़ात न करानी और सिर्फ़ रो पीट कर मगरमच्छ के आँसुओं की तरह आंसू बहा कर अरबाबे नज़र की निगाहों में उसे इल्ज़ामे क़त्ल से बरी नहीं कर सकता।

मालूम होना चाहिये कि मामून को इमाम रज़ा (अ.स.) वली अहदी और फ़ज़ल बिन सहल की वज़ारते जंग पर तक़र्रूरी के बाद इस वक़्त तक सुकून नसीब नहीं हुआ जब तक वह इन दोनो को निस्त नाबूद नहीं कर सका। बग़दादियों की बग़ावत रोकने के लिये चुंकि इन दोनों को ख़त्म करना ज़रूरी था इस लिये उसने एक ही सफ़र में दोनों का ख़ात्मा कर दिया। इसके बाद अहले बग़दाद को देखा कि अब क्या चीज़ बाक़ी है जिसकी तुम शिकायत कर सकते हो। शिबली लिखता हैं कि इन दोनों के क़त्ल होने से अहले बग़दाद की शिकायतों को फ़ैसला हो गया।( अल मामून पृष्ठ 92) यानी इन दोनो के क़त्ल से मामून की ग़रज़ पूरी हो गई। अहले बग़दाद की बग़ावत का ख़ात्मा हो गया। अब्बासी क़ब्ज़े में आ गए और हुकूमत अज़ सरे नौ जम गई।