चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

उमूरे ख़ाना दारी और अज़वाजी ज़िन्दगी में

आपके बुज़ुर्गों ने अपनी बीबीयों को जिन हुदूद में रखा हुआ था उन्हीं हुदूद में आपने उम्मुल फ़ज़ल को भी रखा आपने इसके मुतालिक़ परवाह ना की कि आप की बीवी एक शहनशाहे वक़्त की बेटी है। चुनान्चे उम्मुल फ़ज़ल के होते हुए आपने हज़रत अम्मार यासिर की नस्ल से एक मोहतरम ख़ातून के साथ अक़्द भी फ़रमाया और क़ुदरत को नस्ले इमामत इसी ख़ातून से बाक़ी रखना मन्ज़ूर थी। यही इमाम नक़ी (अ.स.) की माँ हुईं। उम्मुल फ़ज़ल ने इसकी शिकायत अपने बाप के पास लिख कर भेजी , मामून के दिल के लिये भी यह कुछ कम तकलीफ़ देह अमर न था , मगर अब उसे अपने किए को निभाना था इस लिये उम्मुल फ़ज़ल को जवाब में लिखा कि मैंने तुम्हारा अक़्द अबू जाफ़र के साथ इस लिये नहीं किया कि उन पर किसी हलाले ख़ुदा को हराम करूं। ख़बरदार ! मुझसे अब इस क़िस्म की शिकायत न करना। यह जवाब दे कर हक़ीक़त में उसने अपनी खि़फ़्फ़त मिटाई है। हमारे सामने इस की नज़ीरें मौजूद हैं कि अगर मज़हबे हैसीयत से कोई बाएहतेराम ख़ातून हुई हैं तो इस की ज़िन्दगी में किसी दूसरी बीवी से निकाह नहीं किया गया , जैसे पैग़म्बरे इस्लाम (स अ व व ) के लिये जनाबे ख़दीजा (अ.स.) और हज़रत अली ए मुर्तुज़ा (अ.स.) के लिये जनाबे फ़ात्मा ज़हरा (अ.स.) मगर शंहशाहे दुनियां की बेटी को यह इम्तेआज़े दुनियां सिर्फ़ इस लिये कि वह एक बादशाह की बेटी हैं। इस्लाम की उस रूह के खि़लाफ़ था जिसके आले मोहम्मद (अ.स.) मुहाफ़िज़ थे। इस लिये इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) ने इसके खि़लाफ़ तर्ज़े अमल इख़्तेआर करना अपना फ़रीज़ा समझा। (सवानेह मोहम्मद तक़ी (अ.स.) जिल्द 2 पृष्ठ 11)

इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) और तैयुल अर्ज़

इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) अगर चे मदीना में क़याम फ़रमाते थे लेकिन फ़राएज़ की वुस्अत ने आपको मदीना ही के लिये महदूद नहीं रखा था। आप मदीना में रह कर अतराफ़े आलम के अक़ीदत मन्दों की ख़बर गीरी फ़रमाते थे यह ज़रूरी नहीं कि जिसके साथ करम गुस्तरी की जाए। वह आपके कवाएफ़ व हालात से भी आगाह हो। अक़ीदे का ताअल्लुक़ दिल की गहराई से है कि ज़मीनों आसमान ही नहीं सारी काएनात उनके ताबे होती है। उन्हें इसकी ज़रूरत नहीं पड़ती कि वह किसी सफ़र में तय मराहिल के लिये ज़मीन अपने क़दमों से नापा करें , उनके लिये यही बस है कि जब और जहां चाहें चश्में ज़दन में पहुँच जाएं और यह अक़लन मोहाल भी नहीं है। ऐसे ख़ासाने ख़ुदा के लिये इस क़िस्म के वाक़ियात क़ुरान मजीद में भी मिलते हैं। आसिफ़ बिन ख़्यावसी जनाबे सुलेमान (अ.स.) के लिए उलमा ने इस क़िस्म के वाक़िये का हवाला दिया है। उनमें से एक वाक़िया है कि आप मदीना मुनव्वरा से रवाना हो कर शाम पहुँचे , एक शख़्स को उस मुक़ाम पर इबादत में मसरूफ़ व मशग़ूल पाया जिस जगह इमाम हुसैन (अ.स.) का सरे मुबारक लटकाया गया था , आपने इससे कहा मेरे हमराह चलो वह रवाना हुआ अभी चन्द क़दम भी न चला था कि कूफ़े की मस्जिद में जा पहुँचा , वहीं नमाज़ अदा करने के बाद जो रवानगी हुई तो सिर्फ़ चन्द मिन्टों में मदीना मुनव्वरा जा पहुँचे और ज़्यारत व नमाज़ से फ़राग़त की गई , फिर वहां से चल कर चन्द लम्हों में मक्का ए मोअज़्ज़मा रसीदगी हो गई , तवाफ़ व दीगर इबादत से फ़राग़त के बाद आपने चश्मे ज़दन में उसे शाम की मस्जिद में पहुँचा दिया और ख़ुद नज़रों से ओझल हो कर मदीना ए मुनव्वरा जा पहुँचे , फिर जब दूसरा साल आया तो आप बदस्तूरे शाम की मस्जिद में तशरीफ़ ले गए और उस आबिद से कहा मेरे हम राह चलो चुनान्चे वह चल पड़ा , आपने चन्द लम्हों में उसे साले गुज़िश्ताा की तरह तमाम मुक़द्दस मक़ामात की ज़्यारत करा दी। पहले ही साल के वाक़िये से वह शख़्स बेइन्तेहा मुत्तअस्सिर था ही कि दूसरे साल भी ऐसा ही वाक़िया हो गया। अबकी मरतबा उसने मस्जिदे शाम वापस पहुँचते ही उनका दामन थाम लिया और क़सम दे कर पूछा कि फ़रमाईये आप इस करामात के मालिक कौन हैं ? आपने इरशाद फ़रमाया कि मैं मोहम्मद बिन अली इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) हूँ। इसने बड़ी अक़ीदत और ताज़ीम व तकरीम के मरासिम अदा किए। आपके वापस तशरीफ़ ले जाने के बाद यह ख़बर बिजली की तरह फैल गई। जब वालिये शाम मोहम्मद अब्दुल मलिक को इसकी इत्तेला मिली और यह भी पता चला कि लोग इस वाक़िये से इन्तेहाई मुताअस्सिर हो गए हैं तो आपने उस आबिद पर मुदयी नबूअत होने का इल्ज़ाम लगा कर उसे क़ैद करा दिया और फिर शाम से मुन्तक़िल कर के ईराक़ भिजवा दिया। उसने वाली को क़ैद ख़ाने से एक ख़त भेजा जिसमें लिखा की मैं बे ख़ता हूँ मुझे रिहा किया जाए , तो उसने ख़त की पुश्त पर लिखा कि जो शख़्स तूझे शाम से कूफ़े और कूफ़े से मदीने और वहां से मक्का और फिर वहां से शाम पहुँचा सकता है। अपनी रिहाई में उसी की तरफ़ रूजू कर। इस जवाब के दूसरे दिन यह शख़्स मुकम्मल सख़्ती के बवजूद सख़्त तरीन पहरे के होते हुए क़ैद ख़ाने से ग़ाएब हो गया। अली बिन ख़ालिद रावी का बयान है कि जब मैं क़ैद ख़ाने के फाटक पर पहुँचा तो देखा की तमाम ज़िम्मे दारान हैरान व परेशान हैं और कुछ पता नहीं चलता कि आबिदे शामी ज़मीन में समा गया या आसमान पर उठा लिया गया। अल्लामा मुफ़ीद (अ. र.) लिखते हैं कि इस वाक़िये से अली बिन ख़ालिद जो दूसरे मज़हब का पैरो था , इमामिया मसलक़ का मोतक़िद हो गया।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 205, नूरूल अबसार पृष्ठ 146, आलामु वुरा पृष्ठ 731, इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 481 )

हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के बाज़ करामात

साहबे तफ़सीर हुसैनी अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी का बयान है कि हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के करामात बेशुमार हैं।(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 438 ) में बाज़ तज़केरा मुख़्तलिफ़ कुतुब से करता हूँ।

अल्लाम अब्दुरर्रहमान जामी तहरीर फ़रमाते हैं कि 1. मामून रशीद के इन्तेक़ाल के बाद हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) ने इरशाद फ़रमाया कि अब तीस माह बाद मेरा भी इन्तेक़ाल होगा , चुनान्चे ऐसा ही हुआ।

2. एक शख़्स ने आपकी खि़दमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ किया कि एक मुसम्मता (उम्मुल हसन) ने आपसे दरख़्वास्त की है कि अपना कोई जामये कुहना (पुराने कपड़े) दीजिए ताकि मैं उसे कफ़न में रखूं। आपने फ़रमाया कि अब जामेय कुहना की ज़रूरत नहीं है। रावी का बयान है कि मैं वह जवाब ले कर जब वापस हुआ तो मालूम हुआ कि 13 14 दिन हो गए हैं वह इन्तेक़ाल कर चुकी है।

3. एक शख़्स उमय्या बिन अली कहता है कि मैं और हमाद बिन ईसा एक सफ़र में जाते हुए हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुए ताकि एक से रूख़सत हो लें , आपने इरशाद फ़रमाया कि , तुम आज अपना सफ़र मुलतवी करो , चुनान्चे हस्बे अल हुक्म ठहर गया , लेकिन मेरे साथी हमाद बिन ईसा ने कहा कि मैंने सारा सामाने सफ़र घर से निकाल रखा है अब अच्छा नहीं मालूम होता है कि सफ़र मुलतवी करूँ , यह कह कर वह रवाना हो गया और चलते चलते रात को एक वादी में जा पहुँचा और वहीं क़याम किया , रात के किसी हिस्से में एक अज़ीमुश्शान सेलाब आ गया और वह तमाम लोगों के साथ हमाद को भी बहा ले गया।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 202 )

4. अल्लामा अरबली तहरीर फ़रमाते हैं कि मिम्बर बिन ख़लाद का बयान है कि एक दिन मदीना मुनव्वरा में जब कि आप बहुत कमसिन थे मुझसे फ़रमाया कि चलो मेरे हमराह , चुनान्चे मैं साथ हो गया , हज़रत ने मदीने से बाहर एक वादी में जा कर मुझ से फ़रमाया कि तुम ठहरो मैं अभी आता हूँ , चुनान्चे आप नज़रों से ग़ायब हो गए और थोड़ी देर बाद वापस हुए , वापसी पर आप बेइन्तेहा मलूल और रंजीदा थे , मैंने पूछा फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) आपके चेहरा ए मुबारक से आसारे हुज़न व मलाल हुवैदा हैं। इरशाद फ़रमाया ! कि इसी वक़्त बग़दाद से वापस आ रहा हूँ वहां मेरे वालिदे माजिद हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) ज़हर से शहीद कर दिये गए हैं , मैं उन पर नमाज़ वग़ैरा अदा करने गया था।

5. क़ासिम बिन अब्दुर्रमान का बयान है कि बग़दाद में मैंने देखा किसी शख़्स के पास बराबर लोग आते जाते हैं और मैंने दरियाफ़्त किया कि जिसके पास आने जाने का ताता बंधा हुआ है यह कौन है ? लोगों ने कहा कि अबू जाफर बिन अली (अ.स.) हैं , अभी यह बातें हो ही रहीं थी कि आप नाक़े पर सवार उस तरफ़ से गुज़रे , क़ासिम कहता है कि उन्हें देख कर मैंने दिल में कहा कि लोग बड़े बेवकूफ़ हैं जो आपकी इमामत के क़ाएल हैं और आपकी इज़्ज़त व तौक़ीर करते हैं , यह तो बच्चे हैं और मेरे दिल मे इनकी कोई वक़त महसूस नहीं होती। मैं अपने दिल मे यही सोच रहा था कि आप ने क़रीब आ कर फ़रमाया कि , ऐ क़ासिम बिन अब्दुर्रहमान ! जो शख़्स हमारी इताअत से गुरेज़ाँ हैं वह जहन्नम में जायेगा। आपके इस फ़रमाने पर मैंने ख़्याल किया कि यह जादूगर हैं कि इन्होंने मेरे दिल के इरादे को मालूम कर लिया है। जैसे ही यह ख़्याल मेरे दिल में आया , आपने फ़रमाया कि तुम्हारा ख़्याल बिल्कुल ग़लत है तुम अपने अक़ीदे की इस्लाह करो। यह सुन कर मैंने आपकी इमामत का इक़रार किया और मुझे मानना पड़ा कि आप हुज्जतुल्लाह हैं।

6. क़ासिम इब्नुल हसन का बयान है कि मैं एक सफ़र में था , मक्का और मदीना के दरमियान एक मफ़लूक़ुल हाल ने मुझसे सवाल किया , मैंने उसे रोटी का एक टुकड़ा दे दिया। अभी थोड़ी देर गुज़री थी कि एक ज़बर दस्त आंधी आई और वह मेरी पगड़ी उड़ा ले गई। मैंने बड़ी तलाश की लेकिन वह दस्तयाब न हुई। जब मैं मदीने पहुँचा और हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) से मिलने गया तो आपने फ़रमाया , ऐ क़ासिम ! तुम्हारी पगड़ी हवा उड़ा ले गई। मैंने अर्ज़ कि जी हुज़ूर। आपने अपने ग़ुलाम को हुक्म दिया कि इनकी पगड़ी ले आओ। ग़ुलाम ने पगड़ी हाज़िर की। मैंने बड़े ताज्जुब से दरियाफ़्त किया कि मौला ! यह पगड़ी यहां कैसे पहुँची ? आपने फ़रमाया तुमने जो राहे ख़ुदा में रोटी का टुकड़ा दिया था , उसे ख़ुदा ने क़ुबूल फ़रमा लिया है। ऐ क़ासिम ! ख़ुदा वन्दे आलम यह नहीं चाहता कि जो उसकी राह में सदक़ा दे वह उसे नुक़सान पहुँचने दे।

7. उम्मुल फ़ज़ल ने हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की शिकायत अपने वालिद मामून रशीद अब्बासी को लिख कर भेजी , कि अबू जाफ़र मेरे होते हुए दूसरी शादी भी कर रहे हैं। उसने जवाब दिया कि मैंने तेरी शादी इस लिये नहीं की कि हलाले ख़ुदा को हराम कर दूँ। उन्हें क़ानूने ख़ुदा वन्दी इजाज़त देता है वह दूसरी शादी करें इसमें तेरा क्या दख़ल है। आइन्दा से इस क़िस्म की कोई शिकायत न करना और सुन तेरा फ़रीज़ा है कि तू अपने शौहर अबू जाफ़र को जिस तरह हो राज़ी रख। इस तमाम ख़तो किताबत की इत्तेला हज़रत को हो गई।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 120 )

अल्लामा शेख़ हुसैन बिन अब्दुल वहाब तहरीर फ़रमाते हैं कि एक दिन उम्मुल फ़ज़ल ने हज़रत (अ.स.) की एक बीवी को जो अम्मार यासीर की नस्ल से थीं , देखा तो मामून रशीद को कुछ इस अन्दाज़ से कहा कि वह हज़रत के क़त्ल पर आमादा हो गया मगर क़त्ल न कर सका।(अयुनूल मोजिज़ात पृष्ठ 154 प्रकाशित मुलतान)

हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के हिदायात व इरशादात

यह एक मुसल्लेमा हक़ीक़त है कि बहुत से बुज़ुर्ग मरतबा उलेमा ने आपसे उलूमे अहले बैत की तालीम हासिल की। आपके ऐसे मुख़्तसिर हाकिमाना मक़ूलों का भी एक ज़ख़ीरा है। जैसे आपके जद्दे बुज़ुर्गवार हज़रत अमीरल मोमेनीन इमाम अली बिन अबी तालिब (अ.स.) के कसरत से पाए जाते हैं। जनाबे अमीर (अ.स.) के बाद इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के मक़ूलों को एक ख़ास दर्जा हासिल है। बाज़ उलमा ने आपके मक़ूलों की तादाद कई हज़ार बताई है। अल्लामा शिबलन्जी ब हवाला ए फ़सूलुलप मोहिमा तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) का इरशाद है कि 1. ख़ुदा वन्दे आलम जिसे जो नेमत देता है ब इरादा दवाम देता है लेकिन उस से वह उस वक़्त ज़ाएल हो जाती है जब वह लोगों यानी मुस्तहक़ीन का देना बन्द कर देता है।

2. हर नेमते ख़ुदा वन्दी में मख़लूक़ का हिस्सा है। जब ख़ुदा किसी को अज़ीम नेमतें देता है तो लोगों की हाजतें भी कसीर हो जाती हैं। इस मौके़ पर अगर साहेबे नेअमत (मालदार) ओहदे बरआ हो सका तो ख़ैर ने नेअमत का ज़वाल लाज़मी है।

3. जो किसी को बड़ा समझता है उस से डरता है।

4. जिसकी ख़्वाहिशात ज़्यादा होंगी उसका जिस्म मोटा होगा।

5. सहीफ़ा ए हयाते मुस्लिम का सर नामा हुस्ने ख़ल्क़ है।

6. जो ख़ुदा के भरोसे पर लोगों से बेनियाज़ हो जायेगा लोग उसके मोहताज होंगे।

7. जो ख़ुदा से डरेगा लोग उसे दोस्त रखेगें।

8. इन्सान की तमाम ख़ुबीयों का मरकज़ ज़बान है।

9. इन्सान के कमालात का दारो मदार अक़ल के कमाल पर है।

10. इन्सान के लिये फ़ख़्र की ज़ीनत इफ़्फ़त है। ख़ुदाई इम्तेहान की ज़ीनत शुक्र है। हसब की ज़ीनत तवाज़ो और फ़रोतनी है। कलाम की ज़ीनत फ़साहत है। रवायत की ज़ीनत हाफ़ेज़ा है। इल्म की ज़ीनत इन्केसार है। वरा और तक़वा की ज़ीनत हुस्ने अदब है। क़नात की ज़ीनत ख़न्दा पेशानी है। वरा व परेहज़गारी की ज़ीनत तमाम मामेलात से कनारा कशी है।

11. ज़ालिम और ज़ालिम के मद्दगार और ज़ालिम के फे़ल को सराहने वाले एक ही ज़ुमरे में हैं यानी सब का दर्जा बराबर है।

12. जो ज़िन्दा रहना चाहता है उसे चाहिये कि बर्दाश्त करने के लिये अपने दिल को सब्र अज़मा बना ले।

13. ख़ुदा की रज़ा हासिल करने के लिये तीन चीज़ें होनी चाहियें , अव्वल अस्तग़फ़ार , दोम , नरमी और फ़रोतनी , सौम , कसरते सदक़ा।

14. जो जल्द बाज़ी से परहेज़ करेगा , लोगों से मशविरा लेगा , अल्लाह पर भरोसा रखेगा वह कभी शर्मिन्दा नहीं होगा।

15. अगर जाहिल ज़बान बन्द रखे तो इख़्तेलाफ़ात न हों।

16. तीन बातों से दिल मोह लिये जाते हैं , क. माशरे में इंसाफ़ , ख. मुसीबत में हमदर्दी , ग. परेशान ख़ातरी में तसल्ली।

17. जो किसी बुरी बात को अच्छी निगाह से देखेगा वह उसमें शरीक समझा जायेगा।

18. कुफ़राने नेअमत करने वाला ख़ुदा की नाराज़गी को दावत देता है।

19. जो तुम्हारे किसी अतिए पर शुक्रिया अदा करे गोया उसने तुम्हें उससे ज़्यादा दे दिया।

20. जो अपने भाई को पोशीदा तौर पर नसीहत करे वह उसका मोहसिन है और जो एलानिया नसीहत करे गोया उसके साथ बुराई की।

21. अक़लमन्दी और हिमाक़त जवानी के क़रीब तक एक दूसरे पर ग़लबा करते रहते हैं और जब अठ्ठारा साल पूरे हो जाते हैं तो इस्तक़लाल पैदा हो जाता है और राह मोअय्यन हो जाती है।

22. जब किसी बन्दे पर नेअमत का नुज़ूल हो वह इस नेअमत से मुताअस्सिर हो कर यह समझे कि यह ख़ुदा की इनायत और मेहरबानी है तो ख़ुदा वन्दे आलम शुक्र करने से पहले उसका नाम शाकिरों में लिख लेता है और जब कोई गुनाह करने के बाद यह महसूस करे कि मैं ख़ुदा के हाथ में हूँ वह जब और जिस तरह चाहे अज़ाब कर सकता है तो ख़ुदा वन्दे आलम उसे अस्तग़फ़ार से क़ब्ल बख़्श देता है।

23. शरीफ़ वह है जो आलिम है और अक़्लमन्द वह है जो मुत्तक़ी है।

24. जल्द बाज़ी कर के किसी अम्र को शोहरत न दो जब तक तकमील न हो जाए। 25. अपनी ख़्वाहिशात को इतना न बढ़ाओ कि दिल तंग हो जाओ।

26. अपने ज़ईफ़ों पर रहम करो और उन पर रहम के ज़रिए से अपने लिये रहम की ख़ुदा से दरख़्वास्त करो।

27. आम मौत से बूरी मौत वह है जो गुनाह के ज़रिए से हो , और आम ज़िन्दगी से ख़ैरो बरकत के साथ वाली ज़िन्दगी बेहतर है।

28. जो ख़ुदा के लिये अपने किसी भाई को फ़ाएदा पहुँचाए वह ऐसा है जैसे उसने अपने लिये जन्नत में घर बना लिया।

29. जो ख़ुदा पर एतमाद रखे और उस पर तवक़्कु़ल और भरोसा करे खु़दा उसे हर बुराई से बचाता है और उसकी हर क़िस्म के दुश्मन से हिफ़ाज़त करता है।

30. दीन इज़्ज़त है , इल्म ख़ज़ाना है और ख़ामोशी नूर है।

31. ज़ोहद कि इन्तेहा वरा और तक़वा है।

32. दीन को तबाह कर देने वाली चीज़ बिदअत है।

33. इन्सान को बादबाद करने वाली चीज़ लालच है।

34. हाकिम की सलाहियत पर रेआया की ख़ुशहाली का दारो मदार है।

35. दुआ के ज़रिए हर बला टल सकती है।

36. जो सब्रो ज़ब्त के साथ मैदान में आ जाए वह कामयाब होगा।

37. जो दुनियां में तक़वा का बीज बोएगा आख़ेरत में दिली मुरादों का फल पाएगा।

(नूरूल अबसार पृष्ठ 148 प्रकाशित मिस्र)

हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की एक रवायत

मुवर्रिख़े दमिश्क़ अल्लामा शम्सुद्दीन इब्ने तालून लिखते हैं कि हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) ने अपने आबाओ अजदाद से रवायत करते हुए इरशाद फ़रमाया है कि हज़रत अली (अ.स.) ने बयान फ़रमाया है कि जब आं हज़रत (स अ व व ) ने मुझे यमन की तरफ़ भेजा था तो चन्द ख़ास वसीअतें की थीं जिनमें एक यह थी ‘‘ या अली माख़ाबा मन इस्तेख़ारो लानदम मन इस्तेशार ’’ जो शख़्स अपने कामों में इस्तेख़ारा कर लिया करेगा वह ख़ाएब यासिर न होगा और जो अपने मुख़लिस दोस्तों से मशविरा किया करेगा वह नादिमो शर्मिन्दा न होगा मन इस्तेफ़ादा काफ़िल्लाह फ़क़त इस्तेफ़ाद बैतन फिल जन्नत जो अपने भाई को फ़ी सबीलिल्लाह फ़ाएदा पहुँचाएगा वह जन्नत में अपना घर बनवा लेगा।(अल मता अल असना अशर पृष्ठ 103 प्रकाशित बैरूत)

मामून की वफ़ात, मोतसिम की खि़लाफ़त और हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की गिरफ़्तारी

शादी के बाद हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) मदीने में क़दरे पुर सुकून ज़िन्दगी बसर कर रहे थे यानी आपको वह ख़दशा न था जो हुकूमते वक़्त की तरफ़ से आपके आबाओ अजदाद को हर वक़्त लगा रहता था और जिसके नतीजे में शहादत का दर्जा नसीब होता रहता था। आपको जो तकलीफ़ थी वह उम्मुल फ़ज़ल के शिकायती ख़ुतूत की थी जिनके ज़रिए से वह मामून की अनाने तवज्जा आपकी मुख़ालेफ़त की तरफ़ मोड़ना चाहती थीं। मामून चुंकि होशियार और अपने किए के निभाने का आदी था इस लिये उसने कोई परवाह नहीं की लेकिन इसके बाद वाले ख़लीफ़ा ने इसको पूरी अहमियत दे कर आपका काम तमाम कर दिया।

अल्लामा अली नक़ी लिखते हैं कि 218 हिजरी में मामून ने दुनियां को ख़ैर बाद कहा। अब मामून का भाई और उम्मुल फ़ज़ल का चचा मोतसिम जो इमाम रज़ा (अ.स.) के बाद वली अहद बनाया जा चुका था तख़्ते सलतनत पर बैठा और मोतसिम बिल्लाह अब्बासी के नाम से मशहूर हुआ , इसके बैठते ही इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के मुताअल्लिक़ उम्मुल फ़ज़ल के इसी तरह के शिकायती ख़ुतूत की रफ़्तार बढ़ गई , जिस तरह के उसने अपने बाप मामून को भेजे थे। मामून ने जो तमाम बनी अब्बासीयों की मुख़ालेफ़तों के बवजूद भी अपनी लड़की का निकाह इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के साथ कर दिया था इस लिये अपनी बात की पच और किए की लाज रखने की ख़ातिर उसने उन शिकायतों पर कोई तवज्जोह नही दी बल्कि मायूस कर देने वाले जवाब से बेटी की ज़बान बन्द कर दी मगर मोतसिम जो इमाम रज़ा (अ.स.) की वली अहदी का दाग़ अपने सीने पर लिये हुए था और इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) को दामाद बनाए जाने से तमाम बनी अब्बास के नुमाइन्दे की हैसियत से पहले ही इख़्तेलाफ़ करने वालों में पेश पेश रह चुका था। अब उम्मुल फ़ज़ल के शिकायती ख़ुतूत को अहमियत दे कर अपने इस इख़्तेलाफ़ को जो इस निकाह से था हक़ बा जानिब करना चाहता था। फिर सब से ज़्यादा इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की इल्मी मरजीयत आपके इख़लाक़ी असर का शोहरा जो हिजाज़ से बढ़ कर ईराक़ तक पहुँचा हुआ था , वह बिना मुख़ासेमत जो मोतसिम के बुज़ुर्गों को इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के बुज़ुर्गों से रह चुकि थी वह फिर इस सियासत की नामी और मन्सूबा की शिकस्त का महसूस हो जाना जो इस अक़्द का मुहर्रिक हुआ था जिसकी तशरीह पहले हो चुकि है। यह तमाम बातें थीं कि मोतसिम मुख़ालेफ़त के लिये अमादा हो गया। उसने अपनी सलतनत के दूसरे ही साल इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) को मदीने से बग़दाद की तरफ़ जबरन बुलवा भेजा। हाकिमे मदीना अब्दुल मलिक को इस बारे में ताक़िदी ख़त लिखा मजबूरन इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) अपने फ़रज़न्द हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) और उनकी वालेदा को मदीने में छोड़ कर बग़दाद की तरफ़ रवाना हो गए। मुल्ला मोहम्मद मुबीन फिरंगी महली कहते हैं कि जब मामून के बाद मोतसिम ख़लीफ़ा हुआ और उसने इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के फ़ज़ाएल का आवाज़ सुना तो बराए बुग़ुज़ व अनाद मदीना ए मुनव्वरा से ब मुक़ाम बग़दाद आपको तलब कर लिया। इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) जब मदीने से चलने लगे तो उन्होंने अपने फ़रज़न्द इमाम अली नक़ी (अ.स.) को अपना वसी और ख़लीफ़ा क़रार दे कर कुतुबे उलूमे इलाही और असारे जनाबे रिसालत पनाही उन्हें सुपुर्द फ़रमाया , उसके बाद मदीने से रवाना हो कर नवीं मोहर्रम ( 9 मोहर्रम) 220 हिजरी को बग़दाद पहुँचे और मोतसिम ने उसी साल उनको शहीद कर दिया।(वसीलाए नजात पृष्ठ 260 )

इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की नज़र बन्दी क़ैद और शहादत

मदीना ए रसूल (स अ व व ) से फ़रज़न्दे रसूल को तलब करने की ग़रज़ चुंकि नेक नीयती पर मुबनी न थी इस लिये अज़ीम शरफ़ के ब वजूद बाप हुकूमते वक़्त की किसी रियायत के क़ाबिल नहीं मतसव्वुर हुए। मोतसिम ने बग़दाद बुलवा कर आपको क़ैद कर दिया।

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि चूंकि मोतसिम ब खि़लाफ़त बानश्त आँ हज़रत रा अज़ मदीना ए तय्यबा ब दारूल खिलाफ़ा बग़दाद आवरदा जलस फ़रमूदा(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 112 ) एक साल तक आपने क़ैद की सख़्तियां सिर्फ़ इस जुर्म में बर्दाश्त कीं कि आप कमालाते इमामत के हामिल क्यों हैं और आपको ख़ुदा ने यह शरफ़ क्यों अता फ़रमाया है। बाज़ उलमा का कहना है कि आप पर इस क़दर सख़्तियां थीं और इतनी कड़ी निगरानी और नज़र बन्दी थी कि आप अक्सर अपनी ज़िन्दगी से बेज़ार हो जाते थे। बहरहाल वह वक़्त आ गया कि आप सिर्फ़ पच्चीस साल तीन माह 12 यौम की उम्र में क़ैद ख़ाने के अन्दर आखि़र ज़िक़ाद (ब तारीख़ 29 ज़िक़ादा सन् 220 हिजरी यौमे सह शम्बा) मोतसिम के ज़हर से शहीद हो गए।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 121, सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 123, रौज़तुल पृष्ठ जिल्द 3 पृष्ठ 16, आलामु वुरा पृष्ठ 205, इरशाद 480, अनवारे नोमानिया पृष्ठ 127, अनवारूल हुसैनिया पृष्ठ 54 ) आपकी शहादत के मुताअल्लिक़ मुल्ला मुबीन कहते हैं कि मोतसिम अब्बासी ने आपको ज़हर से शहीद किया।(वसीलतुन नजात पृष्ठ 297 ) अल्लामा इब्ने हजर मक्की लिखते हैं कि आपको इमाम रज़ा (अ.स.) की तरह ज़हर से शहीद किया गया।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 123 )

अल्लामा हुसैन काशफ़ी लिखते हैं कि ‘‘ गोयन्द ब ज़हर शहीद शुद ’’ कहते हैं कि ज़हर से शहीद हुए हैं।(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 438 ) मुल्ला जामी की किताब में है ‘‘ क़ीला मता मसमूमन ’’ कहा जाता है कि आपकी वफ़ात ज़हर से हुई।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 204 )

अल्लामा नेमत उल्ला जज़ायरी लिखते हैं ‘‘ माता मसमूमन क़द समेउल मोतसिम ’’ आप ज़हर से शहीद हुए हैं और यक़ीनन मोतसिम ने आपको ज़हर दिया है।(अनवारे नोमानिया पृष्ठ 195 ) यही कुछ अल्लामा तबरी ने भी तहरीर फ़रमाया है।(आलामुल वरा पृष्ठ 205 ) और अल्लामा अब्दुल रज़ा ने भी यही लिखा है।(अनवारूल हुसैनिया पृष्ठ 54 )

नवाब सिद्दीक़ हसन लिखते हैं कि मोहतसिम अब्बासी ने आपको ज़हर से मार दिया।(अल फ़राहुल आमी) अल्लामा शिब्लन्जी लिखते हैं कि ‘‘अना मता मसमूमन ’’ आप ज़हर से शहीद हुए है। ‘‘ यक़ाल इन उम्मुल फ़ज़ल बिनतुल मामून सख़्तहू बे मूराबीहा ’’ कहा जाता है कि आपको आपकी बीवी उम्मुल फ़ज़ल ने अपने बाप मामून के मुताबिक़ मोतसिम की मदद से ज़हर दे कर शहीद किया।(नूरूल अबसार पृष्ठ 147, अरजहुल मतालिब पृष्ठ 460 )

मतलब यह हुआ कि मामून रशीद ने इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के वालिदे माजिद इमाम रज़ा (अ.स.) को उसकी बेटी ने इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) को बक़ौले शिब्लन्जी शहीद कर के अपने वतीरे मुस्तमारता और उसूले ख़ानदानी को फ़रोग़ बख़्शा है।

अल्लामा मौसूफ़ लिखते हैं कि ‘‘ दख़्लत इम्रातहा उम्मुल फ़ज़ल अला क़सर अल मोतसिम ’’ कि इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) को शहीद कर के उनकी बीवी उम्मुल फ़ज़ल मोतसिम के पास चली गईं। बाज़ मआसेरीन लिखते हैं कि इमाम (अ.स.) ने शहादत के वक़्त उम्मुल फ़ज़ल के बदतरीन मुस्तक़बिल का ज़िक्र फ़रमाया था जिसके नतीजे में उसके नासूर हो गया था और वह आखि़र में दीवानी हो कर मरी।

मुख्तसर यह कि शहादत के बाद हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने आपकी तजहीज़ व तकफ़ीन में शिरकत की और नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और इसके बाद आप मुक़ाबिर क़ुरैश में अपने जद्दे नामदार हज़रत इमाम मूसिए काज़िम (अ.स.) के पहलू में दफ़्न किए गए। चुंकि आपके दादा का लक़ब काज़िम और आपका लक़ब जवाद भी था इस लिये उस शहर को आपकी शिरकत से ‘‘ काज़मैन ’’ और वहां के इस्टेशन को आपके दादा की शिरकत की रिआयत से ‘‘ जवादीन ’’ कहा जाता है।

इस मक़बरा ए क़ुरैश में जिसे काज़मैन के नाम से याद किया जाता है 356 हिजरी मुताबिक़ 998 ई 0 में मोअज़ उद्दौला और 452 हिजरी मुताबिक़ 1044 ई 0 जलालुद दौला शाहाने आल बोयह के जनाज़े ऐतिक़ाद मन्दी से दफ़्न किए गए। काज़मैन में जो शानदार रौज़ा बना हुआ है इस पर बहुत से तामीरी दौर गुज़रे लेकिन इसकी तामीरी तकमील शाह इस्माईल सफ़वी ने 966 हिजरी मुताबिक़ 1520 ई 0 में कराई। 1255 हिजरी मुताबिक़ 1856 में मोहम्मद शाह क़ाचार ने उसे जवाहेरात से मुरस्सा किया।

आपकी अज़वाज और औलाद

उलमा ने लिखा है कि हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के चन्द बीवीयां थीं जिनमें उम्मुल फ़ज़ल बिन्ते मामून रशीद अब्बासी और समाना ख़ातून यासरी नुमायां हैसीयत रखती थीं। जनाबा समाना ख़ातून जो कि हज़रत अम्मार यसीर की नस्ल से थी के अलावा किसी से कोई औलाद नहीं हुई। आपकी औलाद के बारे में उलमा का इत्तेफ़ाक़ है कि दो नरीना और दो ग़ैर नरीना थीं जिसके असमा यह हैं 1. हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) 2. जनाबे मूसा मुबर्रेक़ा (अ.स.) 3. जनाबे फ़ात्मा 4. जनाबे अमामह।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 493, सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 123, रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 438, नूरूल अबसार पृष्ठ 147, अनवारे नोमानिया पृष्ठ 127 कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 116, आलामुल वरा पृष्ठ 205 वगै़रह।)

सिलसिला ए सादा ते रिज़विया

हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स.) के हालात में बहवाले इमाम उल मोहद्देसीन हुज्जतुल इस्लाम हज़रत अल्लामा शेख़ मुफ़ीद (अ. र.) व अल्लामा मोतमिद तबरसी लिखा जा चुका है कि हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) के नरीना फ़रज़न्द , हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) थे। इन हज़रात की तहक़ीक़ पर ऐतिमाद व एतिक़ाद करने के बाद यह यक़ीनी तौर पर कहा जा सकता है कि हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) की नस्ल सिर्फ़ इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) से बढ़ी , बेटे की औलाद का दादा की तरफ़ इन्तेसाब ख़ुसूसन ऐसी हालत में जब कि बाप के अलावा दादा के कोई और औलाद न हो नेहायत मुनासिब है।

इसी लिये अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी , अल्लामा सय्यद नूरूल्लाह शूस्तरी(शहीदे सालिस) अल्लामा मजलिसी तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की औलाद को ‘‘ रिज़वी ’’ कहा जाता है।(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 438, मजालिस अल मोमेनीन व बेहारूल अनवार) अल्लामा मआसिर मौलाना सय्यद अली नक़ी मुजतहीदुल अस्र रक़म तराज़ हैं कि ‘‘ यह एक हक़ीकत है कि जितने सादात ‘‘ रिज़वी ’’ कहलाते हैं वह दरअस्ल तक़वी हैं यानी हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की औलाद हैं। अगर हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) की औलाद हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के अलावा किसी और फ़रज़न्द के ज़रिए से भी होती तो इम्तेआज़ के वह अपने को ‘‘ रिज़वी ’’ कहलाती और इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की औलाद अपने को तक़वी कहती , मगर चुंकि इमाम रज़ा (अ.स.) की नस्ल इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) से चली और हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) की शख़्सी शोहरत सलतनते अब्बासीया के वली अहद होने की वजह से जम्हूरे मुसल्लेमीन में बहुत हो चुकी थी , इस लिये तमाम औलाद को हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) की तरफ़ मन्सूब कर के तारूफ़ किया जाने लगा और रिज़वी के नाम से मशहूर हुए। ’’

हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की नस्ल दो बेटों से बढ़ी , एक इमाम अली नक़ी (अ.स.) और दूसरे मूसा मबरक़ा अलैह रहमह(किताब रहमतुल लिलअलेमीन जिल्द 2 पृष्ठ 145 ) इमाम अली नक़ी (अ.स.) की औलाद अपने को नक़वी और मूसा मुबरक़े की औलाद मज़कूरा वजह की बिना पर अपने को रिज़वी कहलाती है।