चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

जनाबे मूसा बिन इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के फ़रज़न्द

मुताबिक़ तहरीर सय्यद हामिद हुसैन करारवी मतूफ़ी 1271 हिजरी महूलए ‘‘ लताएफ़ुश शरफ़ ’’ तीन थे।

अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी लिखते हैं ‘‘ अक़ब मुबरक़ा अज़ सय्यद अहमद अस्त व अक़ब अहमद अज़ मोहम्मद अरज अस्त ’’(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 438 ) सय्यद अहमद के तीन बेटे थे 1. सय्यद सालेह 2. सय्यद जलील 3. सय्यद मोहम्मद अरज मोहम्मद अरज के फ़रज़न्द अबू अब्दुल्लाह सय्यद अहमद ‘‘ नक़ीब अलकुम ’’ थे जिसके मानी रईसे आज़म , निगराने आला , सरबराह और क़ौम के हर दाख़ली और ख़ारजी अमर में तदबीर और साज़गारी पैदा करने वाले के हैं।(मजमउल बहरैन पृष्ठ 157 ) सादाते करारी ज़िला इलाहबाद का सिलसिला ए नसब आप ही की वसातत से इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) और इमाम अली रज़ा (अ.स.) तक पहुँचता है। सादाते करारी के मूरिसे आला सय्यद हसामुद्दीन आल्लाह मुक़ामहू , गर्वनर मथुरा ब अहदे फ़िरोज़ शाह तुग़लक थे। सय्यद रियाज़ुल हसन करारवी मुक़ीम कराची लिखते हैं कि ‘‘ आप ईरान से हिन्दुस्तान आ कर ज़ैद पुर ज़िला बारा बंकी में सुकूनत पज़ीर हुए थे। आपको पहले सूबे का गर्वनर फिर फ़ौज का कमान्डर बना दिया गया था। आप बहुत बड़े बहादुर और सख़ी थे। ’’ आपका सिलसिला नौ वास्तों से नक़ीब अलकु़म तक , फिर चार वास्तों से हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) तक पहुँचता है। आपने 717 हिजरी में जंगल काट कर ‘‘ करारी ’’ को आबाद किया जो तक़रीबन आढ़ाई सौ मवाज़ेआत पर मुश्तमिल है , जिन पर आपकी औलाद क़ाबिज़ और मुतासरिफ़ है।(किताब शजरह सादात करारी मोअल्लेफ़ा सय्यद रियाज़ हुसैन मरहूम पृष्ठ 17 -18 प्रकाशित लखनऊ 1927 0 )

सैय्यद हसामुद्दीन के कु़म से हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाने के मुताअल्लिक़ कहा जा सकता है कि चंगेज़ ख़ाँ ने जब ईरान फ़तेह करने के लिये लश्कर भेजा और उस लश्कर ने क़यामत ख़ेज़ तबाही मचाई थी , इसी मौक़े पर दीगर हज़रात की तरह आप भी हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए। (तारीख़ रौज़तुल पृष्ठ जिल्द 5 पृष्ठ 25 ता पृष्ठ 39 प्रकाशित लखनऊ में है कि चंगेज़ खाँ का लश्कर 615 हिजरी में फ़तेह ईरान के लिये निकला। इसकी हालत यह थी कि सैले हवादिस की तरह जिस तरफ़ गुज़रता था तबाहो बरबाद कर छोड़ता था , किसी ने किसी का हवाला देते हुए कहा है कि ‘‘ आमदन् दव कन्दन्द व सोख़तन्द व कुश्तन्द व बुरदन्द ’’ कि लश्कर वाले आए , उखाड़ा वछाड़ जलाया फूका , क़त्ल किया और सब लूट कर ले गए। पृष्ठ 2 चंगेज़ ख़ाँ के दस्त बुरद से ईरान का कोई शहर नुमाया क़रिया नहीं बचा। उसने क़त्लो ग़ारत का सिलसिला 621 हिजरी तक जारी रखा। यूँ तो हर जगह तबाही हुई और सब ही क़त्ल हुए लेकिन वह मुक़ामात जिनकी तबाही से हमारे दिलों को रूही सदमा पहुँचा , वह बलख़ , ख़ुरासान , सब्ज़ावार , नेशापूर और क़ुम जैसे शहर में , बलख़ में पचास हज़ार सादात थे जो क़त्ल हुए। ख़ुरासान में करीब सद हज़ार मोमिन मोवहिद शहीद साखतनद ’’ तक़रीबन एक लाख मोमिन क़त्ल हुए। पृष्ठ 36, सब्ज़ावार में सत्तर हज़ार क़त्ल किये गए। पृष्ठ 36, नेशापूर में तो मक़तूलीन की इतनी कसरत थी कि बारह दिन तक लाशों का शुमार होता रहा। हेरात में भी शदीद अन्धेर गर्दी थी , बेशुमार सादात क़त्ल किये गए। इन हंगामों में नेहायत बरबरियत का सबूत दिया गया , आग लगाई गई। अस्मतदरी की गई , पानी बन्द किया गया और बे दरेग़ क़त्ल व खूंरेज़ी से सर ज़मीने ईरान लालाज़ार बनाई गई। बाज़ मुक़ामात के तज़किरे में मज़कूर है कि ज़ालिम यह कहते थे कि राफ़्ज़ी लोग हैं इनका क़त्ल करना ‘‘ एैन सवाब व मुस्तलज़िम सवाब अस्त ’’ नेहायत सही अमल है और बे हद सवाब का मोजिब है। पृष्ठ 30, बहर हाल हालात से मुतासिर हो कर सादात ईरान से जान बचा कर निकल खड़े हुए और एतराफ़े आलम जहाँ जिसको सूझा वहां जा ठहरा पृष्ठ 39 साहबे उम्दतूल तालिब की तहरीर के मुताबिक़ हज़रत मूसा मबरक़ा की औलाद भी हिन्दुस्तान आई। बदरे मशअशा पृष्ठ 31 जहाँ तक मैं समझता हूँ सैय्यद हुसामुद्दीन का तशरीफ़ लाना भी इसी अहद से मुतअल्लिक़ है।

हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के फ़रज़न्दे अर्जुमन्द जनाब मूसा मुबरक़ा के मुख़्तसिर हालात

हज़रत मूसा मुबरक़ा (अ. र.) हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के फ़रज़न्द और हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) के बरादरे अज़ीज़ थे। आपकी कुन्नीयत अबू जाफ़र और अबू अहमद थी। आप कमाले हुस्नो जमाल की वजह से हमेशा चेहरे पर नक़ाब डाले रहते थे। इसी लिये आपके नाम के साथ ‘‘ मुबरक़ा ’’ भी मुस्तमिल होता है। आप बेहतरीन आलिमे दीन , सख़ी और बहादुर थे। आप 10 रजबुल मुरज्जब 217 हिजरी को मदीना ए मुनव्वरा में पैदा हुए फिर 38 साल की उम्र में 255 हिजरी में कूफ़े तशरीफ़ ले गए , फिर वहां से 256 हिजरी में क़ुम मुन्तक़िल हो गए। उलमा का बयान है कि यह पहले शख़्स हैं जिन्होंने सादाते रिज़विया से कु़म में मुस्तक़िल क़याम का इरादा किया।

अल्लामा शेख़ अब्बास कु़म्मी तहरीर फ़रमाते हैं कि जब आप कूफ़े से क़ुम पहुँचे तो वहा के रऊसा ने आपके मुस्तक़िल क़याम की मुख़ालेफ़त की और आपकी भर पूर कोशिशे क़याम के बावजूद आपको वहां टिकने न दिया , बिल आखि़र आप वहां से रवाना हो कर ‘‘ काशान ’’ पहुँचे , आपकी नस्ली अज़मत और तबलीग़ी सर गर्मियों की शोहरत की वजह से वहां के बाशिन्दों ने आपकी बड़ी आओ भगत की और पूरी इज़्ज़त व तौक़ीर के साथ इनको अपनी आंखों पर जगह दी , चुनान्चे इनके सरबराह अहमद बिन अब्दुल अज़ीज़ बिन दल्फ़ अजली ने दिलो जान से ख़ैर मक़दम किया और लिबासे फ़ाख़ेरा पहना कर उनके लिये शानदार घोड़े फ़राहम किये और एक हज़ार मिसक़ाल सोना , सालाना उनके लिये मुक़र्रर किया।

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि अहले काशान आपके वहां क़याम करने से इन्तेहाई ख़ुश थे और आपके क़याम को सारे काशान की ख़ुश क़िस्मती समझते थे लेकिन इसी दौरान में जब क़ुम वालों को होश आया और उनके बाज़ मोअजि़्ज़ हज़रात जो कि बाहर थे जैसे ‘‘ अबू अल सय्यद बिन अल हुसैन बिन अली बिन आदम ’’ जब क़ुम वापस पहुँचे और उन्हें इस हादसे अख़राज का हुक्म हुआ तो वह बेहद शर्मिन्दा हुए और उन लोगों की सख़्त मज़म्मत की जिनका इनके अख़्राज में हाथ था। ‘‘ फ़ार सल्वा रऊसा अल अरब ’’ फिर इन मोअज़्ज़ेज़ीन और अरब के रऊसा ने आपको वापस लाने के लिये एक जमीअत भेज दी , इसने उज़र व माज़ेरत के बाद आपको क़ुम वापस तशरीफ़ लाने पर आमादा कर लिया। चुनान्चे आप निहायत इज़्ज़त व एहतिराम के साथ क़ुम वापस तशरीफ़ लाए , इन हज़रात ने इनके लिये एक शानदार मकान और बहुत सी ज़रूरी चीज़ें और जाएदाद में उनको वाफ़िर हिस्सा दिया और बीस हज़ार दिरहम से नक़द खि़दमत की आपके क़ुम में मुस्तक़िल क़याम के बाद आपकी बहने , ज़ीनत उम्मे मोहम्मद ,मैमूना वग़ैरा भी पहुँच गई और आपकी लड़की बरेह भी जा पहुँची। यह बीबियां मुस्तक़िल वहीं मुक़ीम रहीं बिल आखि़र सब की सब हज़रत मासूमा ए क़ुम के गिर्दा गिर्द दफ़्न हुई।

आप अपने भाई इमाम अली नक़ी (अ.स.) के पैरो थे और उन्हें बेहद मानते थे और मसाएल के जवाब देने में बावक़्ते ज़रूरत उन्हीं से मद्द लिया करते थे जैसा कि यहिया इब्ने अक़सम के सवाल के जवाब में आपका इमाम अली नक़ी (अ.स.) की तरफ़ रूजू करने से ज़ाहिर है।(सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 1 पृष्ठ 591 ) आपके मुताअल्लिक़ जो यह कहा जाता है कि आप इमाम अली नक़ी (अ.स.) की मर्ज़ी के खि़लाफ़ एक दफ़ा मुतावक्लि से मिलने गए थे। ‘‘ ग़लत है ’’ क्यों कि इस ख़बर की रवायत याक़ूब बिन यासिर ने की है और वह मोवक्किल का आदमी था यानी ‘‘ यह हवाई उसी दुश्मन की उड़ाई हुई है ’’ इसकी कोई अस्लीयत नहीं।(बदर मशअशा अल्लामा नूरी व सफ़ीनतुल अल बहार 2 पृष्ठ 652 )

आपने शबे चार शम्बा 22 रबीउस्सानी 296 में ब उम्र 79 साल वफ़ात पाई। आपकी नमाज़े जनाज़ा अमीरे क़ुम अब्बास बिन अमरू ग़नवी ने पढ़ाई और आप इसी मुक़ाम पर दफ़्न हुए जिस जगह आपका रौज़ा बना हुआ है। एक रवायत की बिना पर यह वह जगह है जिस जगह मोहम्मद बिन अल हसन बिन अबी ख़ालिद अशरी मुलक़्क़ब ब ‘‘ शम्बूल ’’ का मकान था।(मन्थउल माल जिल्द 2 पृष्ठ 351 ) राक़िम अल हुरूफ़ ने 1966 ई 0 में आपके मज़ारे मुक़द्दस पर हाज़री दी और फ़ातेहा ख़्वानी की है।

मोअल्लिफ़ किताब (14 सितारे) का शजरहए नस्ब

मोवलिफ़ किताब और राक़िम अल हुरूफ़ का शजरह ए नस्ब यह है। सय्यद नजमुल हसन बिन सय्यद फ़ैज़ मोहम्मद बिन सय्यद तय्यब हुसैन इब्ने सय्यद अमीर हुसैन(क़ाज़ी शरीअत बअहदे मलका विक्टोरिया) बिन सय्यद शरीफ़ अली सय्यद रौशन अली बिन सय्यद फ़ैज़ महमूद बिन सय्यद शरीफ़ मोहम्मद बिन सय्यद ईसा इब्ने सय्यद मोहम्मद क़ाएम बिन रूह उल्लाह बिन सय्यद फ़ातेह उ बिन सय्यद शरीफ़ अली सय्यद रौशन अली बिन सय्यद फ़ैज़ महमूद बिन सय्यद शरीफ़ मोहम्मद बिन सय्यद ईसा इब्ने सय्यद मोहम्मद क़ाएम बिन रूह उल्लाह बिन सय्यद फ़तेह उल्लाह बिन सय्यद फ़ैज़ बिन सय्यद हाशिम बिन सय्यद याक़ूब बिन सय्यद इमामुद्दीन बिन सय्यद हैदर बिन सय्यद मोहम्मद बिन सय्यद फ़िरोज़ बिन सय्यद कुतुबुद्दीन बिन सय्यद इमामुद्दीन बिन सय्यद फ़ख़्रूद्दीन बिन सय्यद हुसामुद्दीन (मूरिसे आला सादात करारी) बिन सय्यद कमालुद्दीन (छहतीम) बिन सय्यद बदरूद्दीन बिन ताजुद्दीन (शहीद) बिन सय्यद यहिया बिन सय्यद अब्दुल अज़ीज़ बिन सय्यद इब्राहीम बिन सय्यद महमूद बिन सय्यद अब्दुल्लाह (ज़रबख़्श) बिन सय्यद याक़ूब बिन अबू अब्दुल्लाह सय्यद अहमद (नक़ीब अल क़ुम) बिन सय्यद अबू अली मोहम्मद ऊरूज बिन अबू अहमद सय्यद अबू अल मकारम बिन सय्यद मूसा मुबरक़ा बिन हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) बिन हज़रत इमाम अली रज़ ा (अलैहिस्सलाम)