चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ स )

क्यों न झुकें सलाम को , फ़ौजे उलूम के परे

बज़्मे नकी़ में जौ़ फ़िशाँ आज है नूरे असकरी

वारिसे जु़ल्फ़िक़ार है सुल्बे में इनकी जलवा गर

ज़ात है इनकी मुज़दा ए , आमद दौरे हैदरी

साबिर थरयानी ‘‘ कराची ’’

बू मोहम्मद इमाम याज़ दहुम

जां नशीने रसूल अर्श मक़ाम

जिसके जद वजहे खि़लक़ते आलम

जिसके फ़रज़न्द से जहां को क़याम

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स अ व व ) के ग्यारहवें जां नशीन और सिलसिला ए इस्मत के 13 वीं कड़ी हैं। आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम अली नकी़ (अ.स.) थे और आपकी वालेदा माजेदा हदीसा ख़ातून थीं। मोहतरमा के मुताअल्लिक़ अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि आप अफ़ीफ़ा , करीमा , निहायत संजीदा और वरा व तक़वा से भर पूर थीं।(जिलाउल उयून पृष्ठ 295 )

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) अपने आबाओ अजदाद की तरह इमाम मन्सूस मासूम आलिमे ज़माना और अफ़ज़ले काएनात थे।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 ) आपको हसना सिफ़ाते इल्म व सख़ावत वग़ैरा अपने वालिद से विरसे मे मिले थे।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 461 )

अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ई का बयान है कि आपको ख़ुदा वन्दे आलम ने जिन फ़ज़ाएल व मनाक़िब और कमालात और बुलन्दी से सरफ़राज़ किया है इनमें मुकम्मिल दवाम मौजूद हैं। न वह नज़र अन्दाज़ किये जा सकते हैं और न इनमें कुहनगी आ सकती है और आपका एक अहम शरफ़ यह भी है कि इमाम मेहदी (अ.स.) आप ही के इकलौते फ़रज़न्द हैं जिन्हें परवर दिगारे आलम ने तवील उम्र अता की है।(मतालिब उल सुऊल पृष्ठ 292 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) की विलादत और बचपन के बाज हालात

उलमाए फ़रीक़ैन की अक्सरीयत का इत्तेफ़ाक़ है कि आप बातारीख़ 10 रबीउस्सानी 232 हिजरी यौमे जुमा ब वक़्ते सुबह बतने जनाबे हदीसा ख़ातून से ब मुक़ाम मदीना मुनव्वरा मुतवल्लिद हुए हैं। मुलाहेज़ा हो शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210 सवाएक़े मोहर्रेक़ पृष्ठ 124 नूरूल अबसार 110. जिलाउल उयून पृष्ठ 295, इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 दम ए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163। आपकी विलादत के बाद हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के रखे हुए नाम ‘‘ हसन बिन अली ’’ से मौसूम किया।(निहाबुल मोवद्दता)

आपकी कुन्नियत और आपके अल्क़ाब

आपकी कुन्नियत ‘‘ अबू मोहम्मद ’’ थी और आपके अल्क़ाब बेशुमार थे। जिनमें अस्करी , हादी , ज़की , खलिस , सिराज और इब्ने रज़ा ज़्यादा मशहूर हैं।(नूरूल अबसार पृष्ठ 150, शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210, दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 122 व मुनाक़िब इब्ने शहर आशोब जिल्द पृष्ठ 125 ) आपका लक़ब इसकरी इस लिये ज़्यादा मशहूर हुआ कि आप जिस महल्ले में ब मुक़ाम ‘‘ सरमन राय ’’ रहते थे उसे असकर कहा जाता था और ब ज़ाहिर इसकी वजह यह थी जब ख़लीफ़ा मोतसिम बिल्ला ने इस मुक़ाम पर लश्कर जमा किया था और ख़ुद भी क़याम पज़ीर था उसे ‘‘ असकर ’’ कहने लगे थे , और ख़लीफ़ा मुतावक्किल ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को मदीने से बुलवा कर यहीं मुक़ीम रहने पर मजबूर किया था। नीज़ यह भी था कि एक मरतबा ख़लीफ़ा ए वक़्त ने इमामे ज़माना को इसी मुक़ाम पर नव्वे हज़ार लशकर का मुआएना कराया था और आपने अपनी दो उंगलियां के दरमियान से अपने ख़ुदाई लशकर का मुताला करा दिया था। उन्हीं वजह की बिना पर इस मुका़म का नाम ‘‘ असकर ’’ हो गया था जहाँ इमाम अली नक़ी (अ.स.) और इमाम हसन असकरी (अ.स.) मुद्दतो मुक़ीम रह कर असकरी मशहूर हो गए।(बेहारूल अनवार जिल्द 12 पृष्ठ 154, दफ़यात अयान जिल्द 1 पृष्ठ 145, मजमूउल बहरैन पृष्ठ 322 दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163, तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 222 )

आपके अहदे हयात और बादशहाने वक़्त

आपकी विलादत 232 हिजरी में उस वक़्त हुई जब कि वासिक़ बिल्लाह बिन मोतसिम बादशाहे वक्त़ था जो 227 हिजरी में ख़लीफ़ा बना था।(तारीख़ अबूल फ़िदा) फिर 233 हिजरी में मुतावक्किल ख़लीफ़ा बना(तारीख़ इब्नुल वरा) जो हज़रत अली (अ.स.) और उनकी औलाद से सख़्त बुग़़्ज़ व कीना रखता था और उनकी मनक़स्त किया करता था।(हयातुल हैवान व तारीख़े कामिल) इसी ने 236 हिजरी में इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़्यारत को जुर्म क़रार दी और उनके मज़ार को ख़त्म करने की सई की।(तारीख़े कामिल) और इसी ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन मदीने से सरमन राय तलब करा लिया।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा) और आपको गिरफ़्तार करा के आपके मकान की तलाशी कराई।(दफ़अतिल अयान) फिर 247 हिजरी में मुन्तसर बिन मुतावक्किल ख़लीफ़ा ए वक़्त हुआ।(तारीख़े अबुल फ़िदा) फिर 248 हिजरी में मोतस्तईन ख़लीफ़ा बना।(अबूल फ़िदा) फिर 252 हिजरी में मुमताज़ बिल्ला ख़लीफ़ा हुआ।(अबुल फ़िदा) इसी ज़माने में अली नक़ी (अ.स.) को ज़हर से शहीद कर दिया गया।(नूरूल अबसार) फिर 255 हिजरी में मेंहदी बिल्लाह ख़लीफ़ा बना।(तारीख़ इब्ने अल वर्दी) फिर 256 हिजरी में मोतमिद बिल्ला ख़लीफ़ा हुआ।(तारीख़ अबुल फ़िदा) इसी ज़माने में 260 हिजरी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) ज़हर से शहीद हुए।(तारीख़े कामिल) इन तमाम खुल्फ़ा ने आपके साथ वही बरताव किया जो आले मोहम्मद (स अ व व ) के साथ बरताव किए जाने का दस्तूर चला आ रहा था।

चार माह की उम्र में मनसबे इमामत

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) कि उम्र जब चार माह के क़रीब हुई तो आपके वालिद अली नक़ी (अ.स.) ने अपने बाद के लिये मन्सबे इमामत की वसीअत की और फ़रमाया कि मेरे बाद यही मेरे जां नशीन होंगे और इस पर बहुत से लोगों को गवाह भी कर दिया।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 व दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 193 बहवाला ए उसूले काफ़ी)

अल्लामा इब्ने हजर मक्की का कहना है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) इमाम अली नक़ी (अ.स.) की औलाद में सब से ज़्यादा अज़िल अरफ़ा अला व अफ़ज़ल थे।

चार साल की उम्र में आपका सफ़रे ईराक़

मुतावक्किल अब्बासी जो आले मोहम्मद (स अ व व ) का हमेशा से दुश्मन था उसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) के वालिदे बुज़ुर्गवार इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन 239 हिजरी में मदीने से ‘‘ सरमन राय ’’ बुला लिया। आप ही के हमराह इमाम हसन असकरी (अ.स.) को भी जाना पड़ा। इस वक़्त आपकी उम्र चार साल चन्द माह की थी।(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 162 )

यूसुफ़े आले मोहम्मद(स. अ.) कुएं में

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) न जाने किस तरह अपने घर के कुएं में गिर गए। आपके गिरने से औरतों में कोहरामे अज़ीम बरपा हो गया। सब चीख़ने और चिल्लाने लगीं मगर हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) जो महवे नमाज़ थे मुतलक़ मुताअस्सिर न हुए और इतमिनान से नमाज़ का एख़तेताम किया। उसके बाद आपने फ़रमाया कि घबराओ नहीं हुज्जते ख़ुदा को कोई गज़न्द न पहुँचेगी। इसी दौरान में देखा कि पानी बलन्द हो रहा है और इमाम हसन असकरी (अ.स.) पानी में खेल रहे हैं।(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 179 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) और कमसिनी में उरूजे फ़िक्र

आले मोहम्मद (स अ व व ) जो तदब्बुरे क़ुरआनी और उरेजे फ़िक्र में ख़ास मक़ाम रखते हैं उनमें से एक बलन्द मक़ाम बुज़ुर्ग हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) हैं। उलमा ए फ़रीक़ैन ने लिखा है कि एक दिन आप एक ऐसी जगह खड़े रहे जिस जगह कुछ बच्चे खेल में मसरूफ़ थे। इत्तेफ़ाक़न उधर से आरिफ़े आले मोहम्मद (स अ व व ) जनाब बहलोल दाना गुज़रे। उन्होंने यह देख कर कि सब बच्चे खेल रहे हैं और एक ख़ूब सूरत सुखऱ् व सफ़ैद बच्चा खड़ा रो रहा है। उधर मुतावज्जे हुए और कहा ऐ नौनेहाल मुझे बड़ा अफ़सोस है कि तुम इस लिये रो रहे हो कि तुम्हारे पास वह खिलौने नहीं जो इन बच्चों के पास हैं। सुनो ! मैं अभी अभी तुम्हारे लिये खिलौने ले कर आता हूँ। यह कहना था कि आप कमसिनी के बवजूद बोले , अना न समझ। हम खेलने के लिये नहीं पैदा किये गए हैं। हम इल्मो इबादत के लिये ख़ल्क़ हुए हैं। उन्होंने पूछा कि तुम्हें यह क्यों कर मालूम हुआ कि ग़रज़े खि़लक़त इल्मो इबादत है। आपने फ़रमाया कि इसकी तरफ़ क़ुरआने मजीद रहबरी करता है। क्या तुमने नहीं पढ़ा कि ख़ुदा फ़रमाता है , ‘‘ अफ़सबतुम इन्नमा ख़लक़ना कुम अबसा ’’ क्या तुम ने यह समझ लिया है कि हम ने तुम को अबस(खेल कूद) के लिये पैदा किया है ? और क्या तुम हमारी तरफ़ पलट कर न आओगे। यह सुन कर बहलोल हैरान रह गए और यह कहने पर मजबूर हो गए कि ऐ फ़रज़न्द तुम्हें क्या हो गया था कि तुम रो रहे थे , तुम से गुनाह का तसव्वुर तो हो ही नहीं सकता क्यों कि तुम बहुत कमसिन हो। आपने फ़रमाया कि कमसिनी से क्या होता है , मैंने अपनी वालेदा को देखा है कि बड़ी लकड़ियों को जलाने के लिये छोटी लकड़ियां इस्तेमाल करती हैं। मैं डरता हूँ कि कहीं जहन्नम के बड़े ईंधन के लिये हम छोटे और कमसिन लोग इस्तेमाल न किये जाऐ।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 124, नूरूल अबसार पृष्ठ 150, तज़केरतुल मासूमीन पृष्ठ 230 )

इमाम हसन असकरी (अ.स.) के साथ बादशहाने वक़्त सुलूक और तरज़े अमल

जिस तरह आपके आबाओ अजदाद के वुजूद को उनके अहद के बादशाह अपनी सलतनत और हुक्मरानी की राह में रूकावट समझते रहे। उनका यह ख़्याल रहा कि दुनियां के क़ुलूब उनकी तरफ़ माएल हैं क्यों कि यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) और आमाले सालेह के ताजदार हैं लेहाज़ा उनको आवाम की नज़रों से दूर रखा जाए वरना इमकान क़वी है कि लोग उन्हें अपना बादशाहे वक़्त तसलीम कर लेंगे। इसके अलावा यह बुग़्ज़ो हसद भी था कि इनकी इज़्ज़त बादशाहे वक़्त के मुक़ाबले में ज़्यादा की जाती है और यह कि इमाम मेहदी (अ.स.) उन्हीं की नस्ल से होंगे जो सलतनतों का इन्के़लाब लाऐंगे। इन्ही तसव्वुरात ने जिस तरह आपके बुज़ुर्गों को चैन न लेने दिया और हमेशा मसाएब की अमाजगा बनाए रखा। इसी तरह आपके अहद के बादशाहों ने भी आपके साथ किया। अहदे वासिक़ में आपकी विलादत हुई और अहदे मुतवक्किल के कुछ अय्याम में बचपना गुज़ारा।

मुतवक्किल जो आले मोहम्मद (स अ व व ) का जानी दुश्मन था उसने सिर्फ इस जुर्म में कि आले मोहम्मद (स अ व व ) की तारीफ़ की है इब्ने सकीत शायर की ज़ुबान गुद्दी से खिंचवा ली।(अबुल फ़िदा जिल्द 2 पृष्ठ 14 ) उसने सब से पहले तो आप पर यह ज़ुल्म किया कि चार साल की उम्र में तरके वतन करने पर मजबूर किया यानी इमाम अली नक़ी (अ.स.) को जबरन मदीने से सामरा बुलवाया जिनके हमराह इमाम हसन असकरी (अ.स.) को लाज़मन जाना पड़ा। फिर वहां आपके घर के लोगों के कहने सुन्ने से तलाशी कराई और आपके वालिदे माजिद को जानवरों से फड़वा डालने की कोशिश की। ग़रज़ कि जो सई आले मोहम्मद (अ.स.) को सताने की मुमकिन थी , वह सब उसने अपने अहदे हयात में कर डाली। उसके बाद उसका बेटा मुस्तनसर ख़लीफ़ा हुआ। यह भी अपने बाप के नक्शे क़दम पर चल कर आले मोहम्मद (स अ व व ) को सताने की सुन्नत अदा करता रहा और इसकी मुसलसल कोशिश यही रही कि इन लोगों को सुकून नसीब न होने पाये। उसके बाद मुस्तईन का जब अहदे नव आया तो उसने आपके वालिदे माजिद को क़ैद ख़ाने में रखने के साथ साथ उसकी सई पैहम की कि किसी सूरत से इमाम हसन असकरी (अ.स.) को क़त्ल करा दे और इसके लिये उसने मुख़्तलिफ़ रास्ते तलाश किये।

मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक मरतबा उसने अपने शौक़ के मुताबिक़ एक निहायत ज़बरदस्त घोड़ा ख़रीदा लेकिन इत्तेफ़ाक़ से वह इस दर्जा सरकश निकला कि उसने बड़े बड़े लोगों को सवारी न दी और जो उसके क़रीब गया उसको ज़मीन पर दे मारा और टापों से कुचल डाला। एक दिन ख़लीफ़ा मुस्तईन बिल्लाह के एक दोस्त ने राय दी कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) को बुला कर हुक्म दिया जाय कि वह इस पर सवारी करें , अगर वह इस पर कामयाब हो गये तो घोड़ा ठीक हो जायेगा , और अगर कामयाब न हुए और कुचल डाले गए तो तेरा मक़सद हल हो जायेगा। चुनान्चे उसने ऐसा ही किया लेकिन अल्लाह रे शाने इमामत जब आप उसके क़रीब पहुँचे तो वह इस तरह भीगी बिल्ली बन गया कि जैसे कुछ जानता ही न हो। बादशाह यह देख कर हैरान रह गया और उसके पास इसके सिवा कोई चारा न था कि घोड़ा हज़रत के हवाले कर दे।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 210 )

फिर मुस्तईन के बाद जब मोतज़ बिल्लाह ख़लीफ़ा हुआ तो उसने भी आले मोहम्मद (स अ व व ) को सताने की सुन्नत जारी रखी और इसकी कोशिश करता रहा कि अहदे हाज़िर के इमाम ज़माना और फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) इमाम अली नक़ी (अ.स.) को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ कर दे। चुनान्चे यही हुआ और उसने 254 ई 0 में आपके वालिदे बुज़ुर्गवार को ज़हर से शहीद करा दिया। यह एक मुसीबत थी कि जिसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) को बे इन्तेहा मायूस कर दिया। इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत के बाद इमाम हसन असकरी (अ.स.) ख़तरात में महसूर हो गये , क्यो कि हुकूमत का रूख़ अब आप ही की तरफ़ रह गया था। आपको खटका लगा ही था कि हुकूमत की तरफ़ से अमल दरामद शुरू हो गया। मोतज़ ने एक शक़ीए अज़ली और नासबे अब्दी इब्ने यारिश की हिरासत और नज़र बन्दी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) को दे दिया। उसने उनको सताने में कोई दक़ीक़ा नहीं छोड़ा लेकिन आखि़र में वह आपका मोतक़िद बन गया। आपकी इबादत गुज़ारी और रोज़ा दारी ने उस पर ऐसा गहरा असर किया कि उसने आपकी खि़दमत में हाज़िर हो कर माफ़ी मांग ली और आपको दौलत सरा तक पहुँचा दिया।

अली बिन मोहम्मद ज़ियाद का बयान है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने मुझे एक ख़त तहरीर फ़रमाया जिसमें लिखा कि तुम ख़ाना नशीन हो जाओ क्यों कि एक बहुत बड़ा फ़ितना उठने वाला है। ग़रज़ कि थोड़े दिनों के बाद एक हंगामा ए अज़ीम बरपा हुआ और हुज्जाज बिन सुफ़यान ने मोतज़ को क़त्ल कर दिया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 127 )

फिर जब मेहदी बिल्लाह का अहद आया तो उसने भी बदस्तूर अपना अमल जारी रखा और हज़रत को सताने में हर क़िस्म की कोशिश करता रहा। एक दिन उसने सालेह बिन वसीफ़ नामी नासेबी के हवाले आपको कर दिया और हुक्म दिया कि हर मुम्किन तरीक़े से आपको सताये। सालेह के मकान के क़रीब एक बहुत ख़राब हुजरा था जिसमें आप क़ैद किये गए। सालेह बद बख़्त ने जहां और तरीक़े से सताया एक तरीक़ा यह भी था कि आपको खाना और पानी से भी हैरान और तंग रखता था। आखि़र ऐसा होता रहा कि आप तयम्मुम से नमाज़ अदा फ़रमाते रहे। एक दिन उसकी बीवी ने कहा कि ऐ दुश्मने ख़ुदा यह फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) हैं। इनके साथ रहम का बरताव कर। उसने कोई तवज्जो न की। एक दिन का ज़िक्र है , बनी अब्बासिया के एक गिरोह ने सालेह से जा कर दरख़्वास्त की कि हसन असकरी पर ज़ियादा ज़ुल्म किया जाना चाहिये। उसने जवाब दिया कि मैंने उनके ऊपर दो ऐसे शख़्सों को मुसल्लत कर दिया है जिनका ज़ुल्मों तशद्दुद में जवाब नहीं है लेकिन मैं क्या करूं कि उनके तक़वे और उनकी इबादत गुज़ारी से वह इस दर्जा मुताअस्सिर हो गये हैं कि जिसकी कोई हद नहीं। मैंने उनसे जवाब तलबी की तो उन्होंने क़ल्बी मजबूरी ज़ाहिर की। यह सुन कर वह लोग मायूस वापिस गये।(तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 223 )

ग़रज़ कि मेहदी का ज़ुल्म तशदद्दुद ज़ोरो पर था और यही नहीं कि वह इमाम हसन असकरी (अ.स.) पर सख़्ती करता था बल्कि यह कि वह उनके मानने वालों को बराबर क़त्ल करता रहता था। एक दिन आपके एक साहबी अहमद बिन मोहम्मद ने एक अरीज़े के ज़रिये से उसके ज़ुल्म की शिकायत की तो आपने तहरीर फ़रमाया कि घबराओ नहीं कि मेहदी की उम्र अब सिर्फ़ पांच दिन बाक़ी रह गई है। चुनान्चे छटे दिन उसे कमाले ज़िल्लत व ख़वारी के साथ क़त्ल कर दिया गया।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 126 )

इसी के अहद में जब आप क़ैद ख़ाने में पहुँचे तो ईसा बिन फ़तेह से फ़रमाया कि तुम्हारी उम्र इस वक़्त 65 साल एक माह दो यौम की है। उसने नोट बुक निकाल कर उसकी तसदीक़ की। फिर आपने फ़रमाया कि ख़ुदा तुम्हें औलादे नरीना अता करेगा। वह ख़ुश हो कर कहने लगा मौला! क्या आपको ख़ुदा फ़रज़न्द न देगा ? आपने फ़रमाया ख़ुदा की क़सम अन्क़रीब मुझे मालिक ऐसा फ़रज़न्द देगा जो सारी कायनात पर हुकूमत करेगा और दुनियां को अदलो इंसाफ़ से भर देगा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 101 )

फिर जब उसके बाद मोतमिद ख़लीफ़ा हुआ तो उसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) पर ज़ुल्मो जौरो सितम व इस्तेबदाद का ख़ात्मा कर दिया।

इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत और इमाम हसन असकरी (अ.स.) का आग़ाज़े इमामत

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने अपने इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शादी नरजिस ख़ातून से कर दी जो क़ैसरे रोम की पोती और शमऊन वसी ए ईसा (अ.स.) की नस्ल से थीं।(जिला अल उयून पृष्ठ 298 ) इसके बाद आप 3 रजब 254 ई 0 को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ हुए। आपकी शहादत के बाद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की इमामत का आग़ाज़ हुआ। आपके तमाम मोतक़दीन ने आपको मुबारक बाद दी और आप से हर क़िस्म का इस्तेफ़ादा शुरू कर दिया। आपकी खि़दमत में आमदो रफ़्त और सवालात व जवाबात का सिलसिला जारी हो गया। आपने जवाबात में ऐसे हैरत अंगेज़ मालूमात का इन्केशाफ़ फ़रमाया कि लोग दंग रह गए। आपने इल्मे ग़ैब और इल्मे बिलमौत तक का सबूत पेश फ़रमाया और इसकी भी वज़ाहत की कि फ़लां शख़्स को इतने दिनों में मौत आ जायेगी।

अल्लामा मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक शख़्स ने अपने वालिद समेत हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की राह में बैठ कर यह सवाल करना चाहा कि बाप को पांच सौ दिरहम और बेटे को तीन सौ दिरहम अगर इमाम दें तो सारे काम हो जाऐ , यहां तक कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) इस रास्ते पर आ पहुँचे। इत्तेफ़ाक़ यह दोनों इमाम (अ.स.) को पहचानते न थे। इमाम (अ.स.) ख़ुद इन दोनों के क़रीब गए और उन से कहा कि तुम्हें आठ सौ दिरहम की ज़रूरत है। आओ मैं तुम्हें दे दूं। दोनों हमराह हो लिये और रक़म माहूद हासिल कर ली। इसी तरह एक और शख़्स क़ैद ख़ाने में था। उसने क़ैद की परेशानी की शिकायत इमाम (अ.स.) को लिख कर भेजी और तंग दस्ती का ज़िक्र शर्म की वजह से न किया। आपने तहरीर फ़रमाया कि तुम आज ही क़ैद ख़ाने से रिहा हो जाओगे और तुम ने जो शर्म से तंग दस्ती का ज़िक्र नहीं किया , इसके मुताअल्लिक़ मालूम करो कि मैं अपने मुक़ाम पर पहुँचते ही सौ दिनार भेज दूंगा। चुनान्चे ऐसा ही हुआ। इसी तरह एक शख़्स ने आपसे अपनी तंग दस्ती की शिकायत की। आपने ज़मीन कुरेद कर एक अशरफ़ी की थैली निकाली और उसके हवाले कर दी। इसमें सौ दीनार थे। इसी तरह एक शख़्स ने आपको तहरीर किया कि मिशक़ात के मानी क्या हैं ? नीज़ यह कि मेरी औरत हामेला है इससे जो फ़रज़न्द पैदा होगा उसका नाम रख दीजिए। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया कि मिशक़ात से मुराद क़ल्बे मोहम्मदे मुस्तफ़ा (स अ व व ) और आखि़र में लिख दिया ‘‘ अज़मुल्लाह अजरकुम व अख़लफ़ अलैक ’’ ख़ुदा तुम्हें अज्र दे और नेमुल बदल अता करे। चुनान्चे ऐसा ही हुआ कि उसके यहां मुर्दा लड़का पैदा हुआ। इसके बाद उसकी बीवी हामला हुई , फ़रज़न्दे नरीना मुतावल्लिद हुआ। मुलाहेज़ा हों।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 211 )

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि हसन इब्ने ज़रीफ़ नामी एक शख़्स ने हज़रत से मिलकर दरयाफ़्त किया कि क़ाएमे आले मोहम्मद (अ.स.) पोशीदा होने के बाद कब ज़ुहूर करेंगे ? आपने तहरीर फ़रमाया जब ख़ुदा की मसलहत होगी। इसके बाद लिखा कि तुम तप रबआ का सवाल करना भूल गए जिसे तुम मुझसे पूछना चाहते हो , तो देखो ऐसा करो कि जो इसमें मुबतिला हो उसके गले में आयत ‘‘ या नार कूनी बरदन सलामन अला इब्राहीम ’’ लिख कर लटका दो शिफ़ायाब हो जायेगा। अली बिन ज़ैद इब्ने हुसैन का कहना है कि मैं एक घोड़े पर सवार हो कर हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ तो आपने फ़रमाया कि इस घोड़े की उम्र सिर्फ़ एक रात बाक़ी रह गई है चुनान्चे वह सुबह होने से पहले मर गया। इस्माईल बिन मोहम्मद का कहना है कि मैं हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ और मैंने उनसे क़सम खा कर कहा कि मेरे पास एक दिरहम भी नहीं है। आपने मुस्कुरा कर फ़रमाया कि क़सम मत खाओ तुम्हारे घर दो सौ दीनार मदफ़ून हैं। यह सुन कर वह हैरान रह गया। फिर हज़रत ने गु़लाम को हुक्म दिया कि उन्हें अशरफ़ियां दे दो।

अब्दी रवायत करता है कि मैं अपने फ़रज़न्द को बसरे में बिमार छोड़ कर सामरा गया और वहां हज़रत को तहरीर किया कि मेरे फ़रज़न्द के लिया दुआ ए शिफ़ा फ़रमाएं। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया ‘‘ ख़ुदा उस पर रहमत नाज़िल फ़रमाए ’’ जिस दिन यह ख़त उसे मिला उसी दिन उसका फ़रज़न्द इन्तेक़ाल कर चुका था। मोहम्मद बिन अफ़आ कहता है कि मैंने हज़रत की खि़दमत में एक अरज़ी के ज़रिये से सवाल किया कि ‘‘ क्या आइम्मा को भी एहतेलाम होता है ? ’’ जब ख़त रवाना कर चुका तो ख़्याल हुआ कि एहतेलाम तो वसवसए शैतानी से हुआ करता है और इमाम (अ.स.) तक शैतान पहुँच नहीं सकता। बहर हाल जवाब आया कि इमाम नौम और बेदारी दोनों हालतों में वसवसाए शैतानी से दूर होते हैं जैसा कि तुम्हारे दिल में भी ख़्याल पैदा हुआ है , फिर एहतेलाम क्यों कर हो सकता है। जाफ़र बिन मोहम्मद का कहना है कि मैं एक दिन हज़रत की खि़दमत में हाज़िर था , दिल में ख़्याल आया कि मेरी औरत जो हामेला है अगर उससे फ़रज़न्दे नरीना पैदा हो तो बहुत अच्छा हो। आपने फ़रमाया कि ऐ जाफ़र लड़का नहीं लड़की पैदा होगी। चुनान्चे ऐसा ही हुआ।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 128 )