चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

क़ायमे आले मोहम्मद अबुल क़ासिम हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी ( अ स ) साहेबुज़्ज़मान

है यही ख़ालिक़ की अदालत का तक़ाज़ा दम ब दम

जान लेवा है अगर कोई , तो जां परवर भी हो

छुप के जब जब परदे में बहकाता है इबलीसे लईं

है तक़ाज़ा अद्ल का , परदे में एक रहबर भी हो।।

साबिर थरयानी ‘‘कराची ’’

या इलाही मेहदियम , अज़ ग़ैब आर

त बगरदुद , दर जहाँ अदल आशकार

इमामे ज़माना हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) सिलसिलए अस्मते मोहम्मदिया की चौदहवीं और सिल्के इमामते अलविया की बारहवीं कड़ीं हैं। आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) और वालेदा माजेदा नरजिस ख़ातून 1 थीं।

आप अपने आबाओ अजदाद की तरह इमामे मन्सूस , मासूम , आलमे ज़माना और अफ़ज़ले कायनात हैं। आप बचपन ही में इल्मों हिकमत से भर पूर थे।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 124 )

आपको पांच साल की उम्र में वैसी ही हिकमत दे दी गई थी जैसी हज़रते यहिया को मिली थी , और आप बतने मादर में उसी तरह इमाम क़रार दिये गये थे जिस तरह हज़रत ईसा (अ.स.) नबी क़रार पाये थे।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 130 )

आप अम्बिया से बेहतर हैं।(एसआफ़ुल राग़ेबीन पेज न 128 ) आपके मुताअल्लिक़ हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) ने बेशुमार पेशीन गोईयां फ़रमाई हैं और इसकी वज़ाहत की है कि आप हुज़ूर की इतरत और हज़रत फ़ात्मा ज़हरा (स अ व व ) की औलाद से होंगे। मुलाहेज़ा हों(जामए सग़ीर सियूती पृष्ठ 160 प्रकाशित मिस्र व मसनद अहमद बिन हम्बल जिल्द 1 पृष्ठ 84 प्रकाशित मिस्र व कन्ज़ुल हक़ाएक़ पृष्ठ 122 व मुस्तदरिक जिल्द 4 पृष्ठ 520 व मिशकात शरीफ़)

आपने यह भी फ़रमाया कि इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़ुहूर आखि़र ज़माने में होगा और हज़रते ईसा (अ.स.) उनके पीछे नमाज़ पढ़ेंगे। मुलाहेजा़ हो सही बुख़ारी पारा 1 4 पृष्ठ 399 व सही मुस्लिम जिल्द 2 पृष्ठ 95 सही तिर्मिज़ी पृष्ठ 270 व सही अबू दाऊद जिल्द 2 पृष्ठ 210 व सही इब्ने माजा पृष्ठ 204 व पृष्ठ 209 व जामए सग़ीर पृष्ठ 134 व अनवारूल हक़ाएक़ पृष्ठ 90) आपने यह भी कहा है कि इमाम मेहदी (अ.स.) मेरे ख़लीफ़ा की हैसियत से ज़हूर करेंगे और यख़तमुद्दीन बेही कमा फ़तेह बना जिस तरह मेरे ज़रिये से दीने इस्लाम का आग़ाज़ हुआ उसी तरह उनके ज़रिये से मुहरे एख़तेताम लगा दी जायेगी। मुलाहेज़ा हो कन्ज़ुल हक़ाएक़ पृष्ठ 209 । आपने इसकी भी वज़ाहत फ़रमाई है कि इमाम मेहदी (अ.स.) का असल नाम मेरे नाम की तरह मोहम्मद और कुन्नियत मेरी कुन्नियत की तरह अबुल का़सिम होगी। वह जब ज़हूर करेंगे तो सारी दुनिया को अदल व इन्साफ़ से उसी तरह पुर कर देंगे जिस तरह वह उस वक़्त ज़ुल्म व जौर से भरी होगी। मुलाहेज़ा हो , जामए सग़ीर पृष्ठ 104 व मुस्तदरिक इमाम हाकिम पृष्ठ 422 व 495 । ज़हूर के बाद उनकी फ़ौरन बैअत करनी चाहिये क्यों कि वह ख़ुदा के ख़लीफ़ा होंगे।(सनन इब्ने माजा उर्दू पृष्ठ 261 प्रकाशित किराची 1377 हिजरी)

हाशिया : 1. नरजिस एक यमनी बूटी को कहते हैं जिसके फूल की शोअरा आंखों से तशबीह देते हैं।(अल मुंजद पृष्ठ 835 ) मुन्तहुल अदब जिल्द 4 पृष्ठ 2227 में है कि यह जुमला दख़ील और मआरब यानी किसी दूसरी ज़बान से लाया गया है। सराह पृष्ठ 425 और अल मआत सिद्दीक़ हसन पृष्ठ 47 में है कि यह लफ़्ज़ नरजिस , नरगिस से मआरब है जो कि फ़ारसी है। रिसाला आजकल लखनऊ के सालनामा 1947 ई. के पृष्ठ 118 में है कि यह लफ़्ज़ यूनानी नरकोस से मआरब है। जिसे लातीनी में नरकसस और अंग्रेज़ी में नरसेसिस कहते हैं।

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की विलादत ब सआदत

मुवर्रेख़ीन का इत्तेफ़ाक़ है कि आपकी विलादत ब सअदत 15 शाबान 225 हिजरी यौमे जुमा बवक़्ते तुलूए फ़जर वाक़े हुई है। जैसा कि दफ़यातुल अयान , रौज़तुल अहबाब , तारीख़ इब्नुल वरदी , नियाबुल मोवद्दता ,, तारीख़े कामिल , तबरी , कशफ़ुल ग़म्मा , जिलाउल उयून , उसूले काफ़ी ,, नूरूल अबसार , इरशाद , जामए अब्बासी , आलामु वुरा और अनवारूल हुसैनिया वग़ैरा में मौजूद है।

बाज़ उलेमा का कहना है कि विलादत का सन् 256 हिजरी और माद्दए तारीख़ नूर है। यानी आप शबे बराअत के एख़तेताम पर बवक़्ते सुबहे सादिक़ आलमे ज़हूर व शहूद में तशरीफ़ लाये हैं।

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की फुफी जनाबे हकीमा ख़ातून का बयान है कि एक रोज़ मैं हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) के पास गई तो आपने फ़रमाया कि ऐ फुफी आप आज हमारे ही घर में रहिये , क्यों कि ख़ुदा वन्दे आलम मुझे आज एक वारिस अता फ़रमायेगा। मैंने कहा यह फ़रज़न्द किस के बतन से होगा ? आपने फ़रमाया कि बतने नरजिस से मुतावल्लिद हो गा। जनाबे हकीमा ने कहा ! बेटे मैं तो नरजिस में कुछ भी हमल के आसार नहीं पाती , इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया कि ऐ फुफी नरजिस की मिसाल मादरे मूसा जैसी है , जिस तरह हज़रते मूसा का हमल विलादत के वक़्त से पहले ज़ाहिर नहीं हुआ उसी तरह मेरे फ़रज़न्द का हमल भी बर वक़्त ज़ाहिर होगा। ग़रज़ कि इमाम के फ़रमाने से उस वक़्त वहीं रही। जब आधी रात गुज़र गई तो मैं उठी और नमाज़े तहज्जुद में मशग़ूल हो गई , और नरजिस उठ कर नमाज़े तहज्जुद पढ़ने लगी। उसके बाद मेरे दिल में यह ख़्याल गुज़रा कि सुबह क़रीब है और इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने जो कहा था वह अभी तक ज़ाहिर नहीं हुआ। इस ख़्याल के दिल में आते ही इमाम (अ.स.) ने अपने हुजरे से आवाज़ दी , ऐ फुफी ! जल्दी न किजिये , हुज्जते ख़ुदा के ज़हूर का वक़्त बिलकुल क़रीब है। यह सुन कर मैं नरजिस के हुजरे की तरफ़ पलटी , नरजिस मुझे रास्ते में ही मिलीं , मगर उनकी हालत उस वक़्त मुताग़य्यर थी। वह लरज़ा बर अन्दाम थीं और उनका सारा जिस्म कांप रहा था।(अल बशरा , शराह मोअद्दतुल क़ुरबा पृष्ठ 139 )

मैंने यह देख कर उनको अपने सीने से लिपटा लिया और सूरा ए क़ुल हो वल्लाह , इन्ना अनज़लना व आयतल कुरसी पढ़ कर उन पर दम किया। बतने मादर से बच्चे की आवाज़ आने लगी , यानी मैं जो कुछ पढ़ती थी वह बच्चा भी बतने मादर में वही कुछ पढ़ता था। उसके बाद मैंने देखा कि तमाम हुजरा रौशन व मुनव्वर हो गया। अब जो मैं देखती हूं तो एक मौलूद मसऊद ज़मीन पर सजदे में पड़ा हुआ है। मैंने बच्चे को उठा लिया। हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने अपने हुजरे से आवाज़ दी ऐ फुफी ! मेरे फ़रज़न्द को मेरे पास लाईये। मैं ले गई , आपने उसे अपनी गोद में बिठा लिया और ज़बान दर दहाने वै क़रद और अपनी ज़बान बच्चे के मूँह में दे दी और कहा कि ऐ फ़रज़न्द , ख़ुदा के हुक्म से बात करो , बच्चे ने इस आयत बिस्मिल्लाह हिर रहमानिर रहीम व नर यदान नमन अल्ल लज़ीना असतज़अफ़रा फ़िल अर्ज़ व नजअल हुम अल वारीसैन की तिलावत की जिसक तरजुमा यह है , कि हम चाहते हैं कि एहसान करें उन लोगों पर जो ज़मीन पर कमज़ोर कर दिये गए हैं और उनको इमाम बनायें और उन्हीं को रूए ज़मीन का वारिस क़रार दें।

इसके बाद कुछ सब्ज़ तारों ने आकर हमें घेर लिया , इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने उन मे से एक तारे को बुलाया और बच्चे को देते हुए कहा ख़दह फ़ा हिफ़ज़हू इसको ले जा कर इसकी हिफ़ाज़त करो यहां तक कि ख़ुदा इसके बारे में कोई हुक्म दे। क्यो कि ख़ुदा अपने हुक्म को पूरा कर के रहेगा। मैंने इमाम हसन असकरी (अ.स.) से पूछा कि यह तारा कौन था और दूसरे तारे कौन थे ? आपने फ़रमाया कि यह जिब्राईल थे और वह दूसरे फ़रिश्तगाने रहमत थे। इसके बाद फ़रमाया कि ऐ फुफी इस फ़रज़न्द को उसकी माँ के पास ले आओ ताकि उसकी आंखें खुनुक हों और महजून व मग़मूम न हो और यह जान ले कि ख़ुदा का वादा हक़ है। व अकसरहुम ला यालमून लेकिन अकसर लोग इसे नहीं जानते इसके बाद इस मौलूदे मसऊद को उसकी माँ के पास पहुँचा दिया गया।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 212 प्रकाशित लखनऊ 1905 0 )

अल्लामा हायरी लिखते हैं कि विलादत के बाद आपको जिब्राईल परवरिश के लिये उड़ा ले गये।(ग़ायतुल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 75 )

किताब शवाहेदुन नबूवत और वफ़यातुल अयान व रौज़ातुल अहबाब में है कि जब आप पैदा हुए तो मख़्तून और नाफ़ बुरीदा थे और आपके दाहिने बाज़ू पर यह आयत मन्कूश थी। जाअल अक़्क़ो वा ज़ाहाक़ल बातिल इन्नल बातेला काना ज़हूक़ा यानी हक़ आया और बातिल मिट गया और बातिल मिटने ही के का़बिल था। यह क़ुदरती तौर पर बहरे मुताक़ारिब के दो मिसरे बन गये हैं। हज़रत नसीम अमरोहवी ने इस पर क्या ख़ूब तज़मीन की है। वह लिखते हैं

चश्मो , चराग़ दीदए नरजिस

ऐने ख़ुदा की आँख का तारा

बदरे कमाल , नीमए शाबान

चौदहवां अख़्तर औज बक़ा का

हामिए मिल्लत माहिए बिदअत

कुफ्र मिटाने ख़ल्क़ में आया

वक़्ते विलादत माशा अल्लाह

कु़रआन सूरत देख के बोला

जाअल अक़्क़ो वल हक़्क़ुल बातिल

इन्नल बातेला काना ज़हुक़ा

मोहद्दिस देहलवी शेख़ अब्दुल हक़ अपनी किताब मनाक़िबे आइम्मा अतहार में लिखते हैं कि हकीमा ख़ातून जब नरजिस के पास आईं तो देखा कि एक मौलूद पैदा हुआ है। जो मख़तून और मफ़रूग़ मुंह है यानी जिसका ख़तना किया हुआ है और नहलाने धुलाने के कामों से जो मौलूद के साथ होते हैं बिलकुल मुसतग़नी है। हकीमा ख़ातून बच्चे को इमाम हसन असकरी (अ.स.) के पास लाईं , इमाम ने बच्चे को लिया और उसकी पुश्ते अक़दस और चश्मे मुबारक पर हाथ फेरा। अपनी ज़बाने मुतहत उनके मुंह में डाली और दाहिने कान में अज़ान और बाएं में अक़ामत कही। यही मज़मून फ़सल अल ख़त्ताब और बेहारूल अनवार में भी है। किताब रौज़तुल अहबाब और नियाबुल मोवद्दता में है कि आपकी विलादत बमुक़ाम सरमन राय ‘‘सामरह मे हुई है।

किताब कशफ़ल ग़म्मा पृष्ठ 120 में है कि आपकी विलादत छिपाई गई और पूरी सई की गई कि आपकी पैदाईश किसी को मालूम न हो सके। किताब दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 194 में है कि आपकी विलादत इस लिये छिपाई गई कि बादशाहे वक़्त पूरी ताक़त के साथ आपकी तलाश में था। इस किताब के पृष्ठ 192 में है कि इसका मक़सद यह था कि हज़रते हुज्जत को क़त्ल कर के नस्ले रिसालत का ख़ात्मा कर दे।

तारीख़े अबूल फ़िदा में है कि बादशाहे वक़्त मोतज़ बिल्लाह था। तज़किरए ख़वासुल उम्मता में है कि उसी के अहद में इमाम अली नकी़ (अ.स.) को ज़हर दिया गया था। मोतज़ के बारे में मुवर्रेख़ीन की राय कुछ अच्छी नहीं है। तरजुमा तारीख़ अल खुलफ़ा अल्लामा सियूती के पृष्ठ 363 में है कि उसने अपनी खि़लाफ़त में अपने भाई को वली अहदी से माज़ूल करने के बाद कोड़े लगवाये थे और ता हयात क़ैद में रखा था। अकसर तवारीख़ में है कि बादशाहे वक़्त मोतमिद बिन मुतावक्किल था जिसने इमाम हसन असकरी (अ.स.) को ज़हर से शहीद किया। तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 67 में है कि ख़लीफ़ा मोतमिद बिन मुतावक्किल कमज़ोर मतलून मिज़ाज और ऐश पसन्द था। यह अय्याशी और शराब नोशी में बसर करता था। इसी किताब के पृष्ठ 29 में है कि मोतमिद हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) को ज़हर से शहीद करने के बाद हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) को क़त्ल करने के दरपए हो गया था।

आपका नसब नामा

आपका पदरी नसब नामा यह है। मोहम्मद बिन हसन बिन अली बिन मोहम्मद बिन अली इब्ने मूसा इब्ने जाफ़र बिन मोहम्मद बिन अली बिन हुसैन बिन अली व फ़ात्मा बिन्ते रसूल अल्लाह (स अ व व ) यानी आप फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) , दिल बन्दे अली (अ.स.) और नूरे नज़र बुतूल (स अ व व ) हैं। इमाम अहमद बिन हम्बल का कहना है कि इस सिलसिलाए नसब के असमा को अगर किसी मजनून पर दम कर दिया जाए तो उसे यक़ीनन शिफ़ा हासिल होगी।(मसनद इमाम रज़ा पृष्ठ 7 ) आपका सिलसिलाए नसब मां की तरफ़ से हज़रत शमऊन बिन हमून अल सफ़आ वसी हज़रत ईसा तक पहुँचता है।

अल्लामा मजलिसी और अल्लामा तबरी लिखते हैं कि आपकी वालेदा जनाब नरजिस ख़ातून थीं। जिनका नाम मलीका भी था। नरजिस ख़ातून यशूआ की बेटी थीं जो राम के बादशाह क़ैसर के फ़रज़न्द थे सिनका सिलसिलाए नसब वसीए हज़रते ईसा (अ.स.) जनाब शमऊन तक पहुँचता है। 13 साल की उम्र मे क़ैसरे रोम ने चाहा था कि नरजिस का अक़्द अपने भतीजे से कर दे लेकिन बाज़ क़ुदरती कु़दरती हालात की वजह से वह इस मक़सद में कामयाब न हो सका। बिल आखि़र एक ऐसा वक़्त आ गया कि आलमे अरवाह में हज़रते ईसा (अ.स.) , जनाबे शमऊन हज़रते मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) जनाबे अमीरल मोमेनीन (अ.स.) और जनाबे फ़ात्मा (स अ व व ) बमक़ाम क़सरे क़ैसर जमा हुए। जनाबे सय्यदा(स. अ.) ने नरजिस ख़ातून को इस्लाम की तलक़ीन की और आं हज़रत (स अ व व ) बतवस्सुत हज़रत ईसा (अ.स.) जनाबे शमऊन से इमाम हसन असकरी (अ.स.) के लिये नरजिस ख़ातून की ख़्वास्गारी की , निस्बत की तकमील के बाद हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) ने एक नूरी मिम्बर पर बैठ कर अक़्द पढ़ा और कमाले मसर्रत के साथ यह महफ़िले निशात बरख़्वास्त हो गई। जिसकी इत्तेला जनाबे नरजिस को ख़्वाब के तौर पर हुई। बिल आखि़र वह वक़्त आया कि जनाबे नरजिस ख़ातून हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की खि़दमत में आ पहुँची और आपके बतने मुबारक से नूरे ख़ुदा का ज़हूर हुआ।(किताब जिलाउल उयून पृष्ठ 298 व ग़ाएतुल मक़सूद पृष्ठ 175 )

आपका इस्मे गिरामी

आपका नामे नामी व इस्मे गिरामी मोहम्मद और मशहूर लक़ब मेहदी है। उलेमा का कहना है कि आपका नाम ज़बान पर जारी करने की मुमानिअत है।

अल्लामा मजलिसी इसकी ताईद करते हुए फ़रमाते हैं कि हिकमत आन मख़्फ़ी अस्त इसकी वजह पोशीदा और ग़ैर मालूम है।(जिलाउल उयून)

उलेमा का बयान है कि आपका यह नाम खुद हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) ने रखा था। मुलाहेज़ा हो रोज़ातुल अहबाब व नियाबुल मोअद्दता।

मुवर्रिख़े आज़म मिस्टर जा़किर हुसैन तारीखे़ इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 31 में लिखते हैं कि आं हज़रत (स अ व व ) ने फ़रमाया कि मेरे बाद बारह 12 ख़लीफ़ा क़ुरैश से होंगे। आपने फ़रमाया कि आखि़री ज़माने में जब दुनिया ज़ुल्मो जौर से भर जायेगी , तो मेरी औलाद में से मेहदी का ज़हूर होगा जो ज़ुल्मो जौर को दूर कर के दुनिया को अदलो इन्साफ़ से भर देगा। शिर्क व कुफ़्र को दुनिया से नाबूद कर देगा। नाम मोहम्मद और लक़ब मेहदी होगा। हज़रत ईसा (अ.स.) आसमान से उतर कर उसकी नुसरत करेंगे और उसके पीछे नमाज़ पढ़ेंगे और दज्जाल को क़त्ल करेंगे।

आपकी कुन्नियत

इस पर उलमाए फ़रीक़ैन का इत्तेफ़ाक़ है कि आपकी कुन्नियत अबुल का़सिम और अबू अब्दुल्लाह थी और इस पर भी उलेमा मुत्तफ़िक़ हैं कि अबुल क़ासिम कुन्नियत ख़ुद सरवरे कायनात की तजवीज़ करदा है। हुलाहेजा़ हां(जामेए सग़ीर पृष्ठ 104, तज़किराए ख़वास अल उम्मता , पृष्ठ 204, रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 439, सवाऐक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 134, शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 312, कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 130, जिलाउल उयून पृष्ठ 298 )

यह मुसल्लेमात से है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने इरशाद फ़रमाया है कि मेहदी का नाम मेरा नाम और उनकी कुन्नियत मेरी कुन्नियत होगी। लेकिन इस रवायत में बाज़ अहले इस्लाम ने यह इज़ाफ़ा किया है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने यह भी फ़रमाया है कि मेहदी के बाप का नाम मेरे वालिदे मोहतरम का नाम होगा। मगर हमारे रावियों ने इसकी रवायत नहीं की और ख़ुद तिरमिज़ी शरीफ़ में भी इस्मे अबीहा इस्मे अबी नहीं है। ताहम बक़ौल साहेबुल मनाक़िब अल्लामा कन्जी शाफ़ेई यह कहा जा सकता है कि रवायत में लफ़्ज़ अबीहा से मुराद अबू अब्दुल्लाह अल हुसैन हैं यानी इससे इस अम्र की तरफ़ इशारा है कि इमाम मेहदी (अ.स.) हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की औलाद से हैं।

आपके अलक़ाब

आपके अलक़ाब मेहदी , हुज्जत उल्लाह , ख़लफ़े अलसालेह , साहेबुल असर व साहेबुल अमर वल ज़मान , अल क़ायम , अल बाक़ी और अल मुन्तज़र हैं। मुलाहेज़ा हो तज़किराए ख़वासुलमता पृष्ठ 204 , रौज़ातुल शोहदा पृष्ठ 439 , कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 131 सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 124 , मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 294 , आलामु वुरा पृष्ठ 24 हज़रत दानियाल नबी ने हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की विलादत से 1420 साल पहले आप का लक़ब मुन्तज़िर क़रार दिया है। मुलाहेज़ा हो किताब व दानियाल बाब 12 आएत 12 । अल्लामा इब्ने हजर मक्की अल मुन्तज़िर की शरह करते हुए लिखते हैं कि उन्हें मुन्तज़िर यानी जिसका इन्तेज़ार किया जाए इस लिये कहते हैं कि वह सरदाब में गा़एब हो गए हैं और यह मालूम नहीं होता कि कहां चले गए। मतलब यह है कि लोग उनका इन्तेज़ार कर रहे हैं। शैख़ अल ऐराक़ैन अल्लामा शैख़ अब्दुल रसा तहरीर फ़रमाते हैं कि आपको मुन्तज़र इस लिये कहते हैं कि आप की ग़ैबत की वजह से आपके मुख़लिस आपका इन्तेज़ार कर रहे हैं। मुलाहेज़ा हो।(अनवारूल हुसैनिया जिल्द 2 पृष्ठ 57 प्रकाशित बम्बई)

आपका हुलिया मुबारक

किताब अक्मालुद्दीन में शेख़ सदूक़ तहरीर फ़रमाते हैं कि सरवरे काएनात (स अ व व ) का इरशाद है कि इमाम मेहदी (अ.स.) शक्ल व शबाहत ख़ल्क़ व ख़लक़ ख़साएल , अक़वाल व अफ़आल में मेरे मुशाबे होंगे। आपके हुलिये के मुताअल्लिक़ उलमा ने लिखा है कि आपका रंग गन्दुम गून , क़द मियाना है। आपकी पेशानी खुली हुई और आपके अबरू घने और बाहम पेवस्ता हैं , आपकी नाक बारीक और बुलन्द है आपकी आंखें बड़ी और आपका चेहरा नेहायत नूरानी है। आपके दाहिने रूख़सार पर एक तिल है कानहू कौकब दुर जो सितारे की मानिन्द चमकता है। आपके दांत चमकदार खुले हुए हैं आपकी ज़ुल्फ़ें कन्धों तक बड़ी रहती हैं। आपका सीना चौड़ा और आपके कन्धे खुले हुए हैं। आपकी पुश्त पर इसी तरह की मुहरे इमामत सब्त है जिस तरह पुश्ते रिसालत माब (स अ व व ) पर मुहरे नबूअत सबत थी।(अलाम अल वरा पृष्ठ 265, व ग़ाएत अल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 64, नूरूल अबसार पृष्ठ 152 )

तीन साल की उम्र में हुज्जतुल्लाह होने का दावा

किताब तवारीख़ व सैर से मालूम होता है कि आप की परवरिश का काम जनाबे जिब्राईल (अ.स.) के सिपुर्द था और वही आपकी परवरिश व परदाख्त करते थे। ज़ाहिर है कि जो बच्चा विलादत के वक़्त कलाम कर चुका हो और जिसकी परवरिश जिब्राईल जैसे मुक़र्रब फ़रिश्ते के सिपुर्द हो वह यक़ीनन दुनियां में चन्द दिन गुज़ारने के बाद बहरे सूरत इस सलाहियत का मालिक हो सकता है कि वह अपनी ज़बान से हुज्जतुल्लाह होने का दावा कर सके।

अल्लामा अरबली लिखते हैं अहमद इब्ने इसहाक़ और साद अल अशकरी एक दिन हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुए और उन्होंने ख़्याल किया कि आज इमाम (अ.स.) से यह दरयाफ़्त करेंगे कि आप के बाद हुज्जतुल्लाह फ़िल अर्ज़ कौन होगा। जब सामना हुआ तो इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने फ़रमाया कि ऐ अहमद ! तुम जो दिल में ले कर आये हो मैं उसका जवाब तुम्हे देता हूँ , यह फ़रमा कर आप अपने मक़ाम से उठे और अन्दर जा कर यूं वापस आये कि आप के कंधे पर एक नेहायत ख़ूब सूरत बच्चा था जिसकी उम्र तीन साल की थी। आपने फ़रमाया ऐ अहमद ! मेरे बाद हुज्जते ख़ुदा यह होगा। इसका नाम मोहम्मद और इसकी कुन्नियत अबुल क़ासिम है यह खि़ज़्र की तरह ज़िन्दा रहेगा और ज़ुलक़रनैन की तरह सारी दुनियां पर हुकूमत करेगा। अहमद इब्ने इसहाक़ ने कहा मौला ! कोई ऐसी अलामत बता दीजिए कि जिससे दिल को इत्मीनाने कामिल हो जाए। आपने इमाम मेहदी (अ.स.) की तरफ़ मुतावज्जा हो कर फ़रमाया , बेटा इसको तुम जवाब दो। इमाम मेहदी (अ.स.) ने कमसिनी के बवजूद बज़बाने फ़सीह फ़रमाया अना हुज्जतुल्लाह व अना बक़ीयतुल्लाह मैं ही ख़ुदा की हुज्जत और हुक्मे ख़ुदा से बाक़ी रहने वाला हूँ। एक वह दिन आयेगा जिसमे मैं दुश्मनाने ख़ुदा से बदला लूंगा , यह सुन कर अहमद ख़ुश व मसरूय व मुतमईन हो गए।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 138 )

पांच साल की उम्र मे ख़ासुल ख़ास असहाब से आपकी मुलाक़ात

याक़ूब बिन मनक़ूस व मोहम्मद बिन उस्मान उमरी व अबी हाशिम जाफ़री और मूसा बिन जाफ़र बिन वहब बग़दादी का बयान है कि हम हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुए और हम ने अर्ज़ कि मौला ! आपके बाद अमरे इमामत किस के सुपुर्द होगा और कौन हुज्जते ख़ुदा क़रार पाऐगा। आपने फ़रमाया कि मेरा फ़रज़न्द मोहम्मद मेरे बाद हुज्जतुल्लाह फ़िल अर्ज़ होगा। हम ने अर्ज़ कि मौला हमे उनकी ज़ियारत करा दीजीए। आपने फ़रमाया वह पर्दा जो सामने आवेख़्ता है उसे उठाओ। हम ने पर्दा उठाया तो उस से एक नेहायत ख़ूब सूरत बच्चा जिसकी उमर पाँच साल थी बरामद हुआ और वह आ कर इमाम हसन असकरी (अ.स.) की आग़ोश में बैठ गया। यही मेरा फ़रज़न्द मेरे बाद हुज्जतुल्लाह होगा। मोहम्मद बिन उस्मान का कहना है कि हम इस वक़्त चालीस अफ़राद थे और हम सब ने उनकी ज़ियारत की। इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने अपने फ़रज़न्द इमाम मेहदी (अ.स.) को हुक्म दिया कि वह अन्दर चले जाएं और हम से फ़रमाया शुमा ऊरा नख़्वही दीद ग़ैर अज़ इमरोज़ कि अब तुम आज के बाद फिर उसे न देख सकोगे। चुनान्चे ऐसा ही हुआ फिर ग़ैबत शुरू हो गई।।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 139 व शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 213 )

अल्लामा तबरसी किताब आलामुल वुरा के पृष्ठ 243 में तहरीर फ़रमाते हैं कि आइम्मा के नज़दीक मोहम्मद और उसमान उमरी दोनों सुक़ह हैं। फिर इसी सफ़ह पर तहरीर फ़रमाते हैं कि अबू हारून का कहना है कि मैंने बचपन में साहेबुज़्ज़मान को देखा है। ‘‘कानहू अलक़मर लैलता अलबदर इनका चेहरा चौदवीं रात के चांद की तरह चमकता था।

इमाम मेहदी (अ.स.) नबूवत के आईने में

अल्लामा तबरसी बहवाला हज़रात मासूमीन (अ.स.) तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) में बहुत से अम्बिया के हालात व कैफ़ियात नज़र आते हैं और जिन वाक़ेयात से मुख़तलिफ़ अम्बिया को दो चार होना पड़ा वह तमाम वाक़ियात आपकी ज़ात सतूदा पेज न.त में दिखाई देते हैं। मिसाल के लिए हज़रत नूह (अ स ) , हज़रत इब्राहीम (अ.स.) हज़रत मूसा (अ.स.) हज़रत ईसा (अ.स.) हज़रत अय्यूब (अ.स.) हज़रत युनूस (अ.स.) हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) को ले लीजिए और उनके हालात पर ग़ौर कीजिए। आपको हज़रत नूह (अ.स.) की तवील ज़िन्दगी नसीब होगी। हज़रत इब्राहीम (अ.स.) की तरह आपकी विलादत छिपाई गई और लोगों से किनारा कश हो कर रूपोश होना पड़ा। हज़रत मूसा (अ.स.) की तरफ हुज्जत के ज़मीन से उठ जाने का ख़ौफ़ ला हक़ हुआ और उन्ही कि विलादत की तरह आपकी विलादत भी पोशीदा रखी गई और उन्हीं के मानने वालों की तरह आपके मानने वालों को आपकी ग़ैबत के बाद सताया गया। हज़रत ईसा (अ.स.) की तरह आपके बारे में लोगों ने इख़्तेलाफ़ किया। हज़रत अय्यूब (अ.स.) की तरह तमाम इम्तेहानात के बाद आपकी फ़र्ज़ व कशाइश नसीब होगी। हज़रत युसुफ़ (अ.स.) की तरह अवाम व ख़वास से आपकी ग़ैबत होगी। हज़रत यूनुस (अ.स.) की तरह ग़ैबत के बाद आपका ज़हूर होगा। यानी जिस तरह वह अपनी क़ौम से ग़ाएब हो कर बुढ़ापे के बावजूद नौजवान थे उसी तरह आपका जब ज़हूर होगा तो आप चालीस साल के जवान होंगे और हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) की तरह आप साहेबुल सैफ़ होंगे।(आलामु वुरा पृष्ठ 264 प्रकाशित बम्बई 1312 हिजरी)

इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शहादत

इमाम मेहदी (अ.स.) की उम्र अभी सिर्फ़ पाँच साल की हुई थी कि ख़लीफ़ा मोतमिद बिन मुतावक्किल अब्बासी ने मुद्दतों क़ैद रखने के बाद इमाम हसन असकरी (अ.स.) को ज़हर दे दिया जिसकी वजह से आप बतारीख़ 8 रबीउल अव्वल 260 हिजरी मुताबिक़ 873 ब उम्र 28 साल रेहलत फ़रमा गए। वख़ल मन अलविदा बनहूमोहम्मदन और आपने औलाद में सिर्फ़ इमाम मेहदी (अ.स.) को छोड़ा।(नुरूल अबसार पृष्ठ 53, दमए साकेबा पृष्ठ 191 )

अल्लामा शिब्लन्जी लिखते हैं कि जब आपकी शहादत की ख़बर मशहूर हुई तो सारे शहर सामरा में हलचल मच गई। फ़रयादो फ़ुग़ां की आवाज़ बुलन्द हो गई , सारे शहर में हड़ताल कर दी गई यानी सारी दुकाने बन्द हो गईं लोगों ने अपने करोबार छोड़ दिये। तमाम बनी हाशिम हुक्कामे दौलत , मुन्शी काज़ी अरकान अदालत , अयान हुकूमत और आम ख़लाएक़ हज़रत के जनाज़े के लिये दौड़ पड़े। हालत यह थी कि शहर सामरा क़यामत का मन्ज़र पेश कर रहा था। तजहीज़ और नमाज़ से फ़राग़त के बाद आपको इसी मकान में दफ़्न कर दिया गया जिस में इमाम अली नक़ी (अ.स.) मदफ़ून थे।(नुरूल अबसार पृष्ठ 152 व तारीख़े कामिल सवाएक़े मोहर्रेक़ा व फ़सूल महमा , जिला अल उयून पृष्ठ 296 )

अल्लामा मोहम्मद बाक़िर तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) की वफ़ात के बाद नमाज़े जनाज़ा हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) ने पढ़ाई। मुलाहेज़ा हो ,(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 192 व जिला अल उयून पृष्ठ 297 )

अल्लामा तबरसी लिखते हैं कि नमाज़ के बाद आप को बहुत से लोगों ने देखा और आपके हाथों का बोसा दिया।(आलामुल वुरा पृष्ठ 242 ) अल्लामा इब्ने ताऊस का इरशाद है कि 8 रबीउल अव्वल को इमाम हसन असकरी (अ.स.) की वफ़ात वाक़ेए हुई और 9 रबीउल अव्वल से हज़रत हुज्जत (अ.स.) की इमामत का आग़ाज़ हुआ। हम 9 रबीउल अव्वल को जो ख़ुशी मनाते हैं इसकी एक वजह यह भी है।(किताब इक़बाल) अल्लामा मजलिसी लिखते हैं 9 रबीउल अव्वल को उमर बिन साद ब दस्ते मुख़्तार आले मोहम्मद का क़त्ल हुआ।(ज़ाद अल माद पृष्ठ 585 ) जो उबैदुल्लहा इब्ने ज़्याद का सिपह सालार था , जिसके क़त्ल के बाद आले मोहम्मद (स अ व व ) ने पूरे तौर पर ख़ुशी मनाई।(बेहारूल अनवार मुख़तार आले मोहम्मद) किताब दमए साकेबा के पृष्ठ 192 में है कि हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने 259 में अपनी वालेदा को हज के लिये भेज दिया था और फ़रमा दिया था कि 260 हिजरी में मेरी शहादत हो जायेगी। इसी सिन में आपने हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) को जुमला तबरूकात दे दिये थे और इस्में आज़म वग़ैरा तालीम कर दिया था।(दमए साकेबा व जिला अल उयून पृष्ठ 298 ) उन्हीं तबरूकात में हज़रत अली (अ.स.) का जमा किया हुआ वह क़ुरान भी था जो तरतीब नुज़ूल पर सरवरे काएनात की ज़िन्दगी में मुरत्तब किया गया था।(तारीख़ अल ख़ुलफ़ा व अनफ़ान) और जिसे हज़रत अली (अ.स.) ने अपने अहदे खि़लाफ़त में भी इस लिये राएज न किया था कि इस्लाम में दो क़ुरआन रवाज पा जायेंगे और इस्लाम में तफ़रेक़ा पड़ जायेगा।(अज़ाता अल ख़फ़ा पृष्ठ 273 ) मेरे नज़दीक इस सन् में हज़रत नरजिस ख़ातून का इन्तेक़ाल हुआ है और इसी सन् में हज़रत ने ग़ैबत इख़्तेयार फ़रमाई है।

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत और उसकी ज़रूरत

बादशाहे वक़्त ख़लीफ़ा मोतमिद बिन मुतावक्किल अब्बासी जो अपने आबाव अजदाद की तरह ज़ुल्म का ख़ूगर और आले मोहम्मद (अ.स.) का जानी दुश्मन था उसके कानों में मेहदी (अ.स.) की विलादत की भनक पड़ चुकी थी। उसने हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शहादत के बाद तकफ़ीन व तदफ़ीन से पहले बक़ौल अल्लामा मजलिसी हज़रत के घर पर पुलिस का छापा डलवाया और चाहा कि इमाम मेहदी (अ.स.) को गिरफ़्तार करा ले लेकिन चुकि वह बहुक्मे ख़ुदा 23 रमज़ानुल मुबारक 259 हिजरी को सरदाब में जा कर ग़ायब हो चुके थे। जैसा कि शवाहेदुन नबूवत , नुरूल अबसार , दमए साकेबा , रौज़तुस शोहदा , मनाक़िब अल आइम्मा , अनवारूल हुसैनिया वग़ैरा से मुुस्तफ़ाद मुस्तबज़ होता है इसी लिये वह उसे दस्तयाब न हो सके। उसने उसके रद्दे अमल में हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की तमाम बीबीयों को गिरफ़्तार करा लिया और हुक्म दिया कि इस अमर की तहक़ीक़ की जाये कि आया कोई उनमें से हामेला तो नहीं है , अगर कोई हामेला हो तो उसका हमल ज़ाया कर दिया जाए। क्यों कि वह हज़रते सरवरे कायनात (स अ व व ) की पेशीन गोई से ख़ाएफ़ था कि आख़री ज़माने में मेरा एक फ़रज़न्द जिसका नाम मेहदी होगा। कायनात आलम के इन्क़ेलाब का ज़ामिन होगा और उसे यह मालूम था कि वह फ़रज़न्द इमाम हसन असकरी (अ.स.) की औलाद से ही होगा , लेहाज़ा उसने आपकी तलाश और आपके क़त्ल की पूरी कोशिश की। तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 31 में है कि 260 हिजरी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शहादत के बाद जब मोतमिद ख़लीफ़ए अब्बासी ने आपके क़त्ल करने के लिये आदमी भेजे तो आप(सरदाब) 1 सरमन राय में ग़ायब हो गये। बाज़ अकाबिर उलेमाए अहले सुन्नत भी इस अमर में शियों के हम ज़बान हैं। चुनान्चे मुल्ला जामी ने शवाहेदुन नबूवत में इमाम अब्दुल वहाब शेरानी ने लवाक़ेउल अनवार व अल यूवाक़ेयत वल जवाहर में और शेख़ अहमद मुहिउद्दीन इब्ने अरबी ने फ़तूहाते मक्कीया में और ख़्वाजा पारसा ने फ़सलुल खि़ताब मोहद्दिस देहलवी ने रिसाला आइम्माए ताहेरीन में और जमालुद्दीन मोहद्दिस ने रौज़तुल अहबाब में , अबू अब्दुल्लाह शामी साहब किफ़ातुल तालिब ने किताब अल तिबयान फ़ी अख़बार साहेबुज़्ज़मान में और सिब्ते इब्ने जौज़ी ने तज़किराए ख़्वास अल मता , और इब्ने सबाग़ नुरूद्दीन अली मालकी ने फ़सूल अल महमा में और कमालुद्दीन इब्ने तलहा शाफ़ेई ने मतालेबुस सूऊल में और शाह वली उल्लाह फ़ज़ल अल मुबीन में और शेख़ सुलेमान हनफ़ी ने नियाबुल मोवद्दता में और बाज़ दीगर उलेमा ने भी ऐसा ही लिखा है और जो लोग इन हज़रत के तवील उम्र में ताअज्जुब कर के इन्कार करते हैं उनको यह जवाब देते हैं कि ख़ुदा की क़ुदरत से कुछ बईद नहीं है जिसने आदम (अ.स.) को बग़ैर माँ बाप के और ईसा (अ.स.) बग़ैर बाप के पैदा किया , तमाम अहले इस्लाम ने हज़रत खि़ज़्र (अ.स.) को अब तक ज़िन्दा माना हुआ है। इदरीस (अ.स.) बेहिशत में और हज़रत ईसा (अ.स.) आसमान पर अब तक ज़िन्दा माने जाते हैं और अगर ख़ुदाए ताअला ने आले मोहम्मद (स अ व व ) में से एक शख़्स को तुले उम्र इनायत किया तो ताअज्जुब क्या है ? हालां कि अहले इस्लाम को दज्जाल के मौजूद होने के क़रीबे क़यामत ज़हूर करने से इन्कार नहीं है। किताब शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 68 में है कि ख़ानदाने नबूवत के ग्यारवे इमाम हसन असकरी (अ.स.) 260 हिजरी में ज़हर से शहीद कर दिये गये थे उनकी वफ़ात पर इनके साहब ज़ादे मोहम्मद लक़ब व मेहदी शियों के आख़री इमाम हुए।

मौलवी अमीर लिखते हैं कि ख़ानदाने रिसालत के इन इमामों के हालात निहायत दर्द नाक हैं। ज़ालिम मुतावक्किल ने हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) के वालिदे माजिद इमाम अली नकी़ (अ.स.) को मदीने से सामरा पकड़ बुलाया था और वहां उनकी वफ़ात तक उनको नज़र बन्द रखा था फिर ज़हर से हलाक कर दिया था इसी तरह मुतावक्किल के जां नशीनों ने बदगुमानी और हसद के मारे हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) को क़ैद रखा था। उनके कमसिन साहब ज़ादे मोहम्मद अल मेहदी (अ.स.) जिनकी उम्र अपने वालिद की वफ़ात के वक़्त पांच साल की थी ख़ौफ़ के मारे अपने घर के क़रीब ही एक ग़ार में छुप गये और ग़ायब हो गये। इब्ने बतूता ने अपने सफ़र नामे में लिखा है कि जिस ग़ार में इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबर बताई जाती है उसे मैंने अपनी आंखों से देखा है।(नूरूल अबसार जिल्द 1 पृष्ठ 152 ) अल्लामा हजरे मक्की का इरशाद है कि इमाम मेहदी (अ.स.) सरदाब में ग़ायब हुये थे। फ़ल्म यारफ़ ईं ज़हब फिर मालूम नहीं कहां तशरीफ़ ले गये।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 124 )

हाशिया : 1. यह सरदाब मक़ाम सरमन राय में वाक़े है जिसे असल में सामेरा कहते हैं। सामरा की आबादी बहुत ही क़दीमी है और दुनियां के क़दीम तरीन शहरों में से एक शहर है। इसे साम बिन नूह ने आबाद किया था और इसी को दारूल सलतनत भी बनाया था। इसकी आबादी सात फ़रसख़ लम्बी थी। इसने इसे निहायत ख़ूब सूरत शहर बना दिया था इस लिये इसका नाम सरमन राय रख दिया था यानी वह शहर जिसे जो भी देखे ख़ुश हो जाए , असकरी इसी का एक मोहल्ला है जिसमें इमाम अली नक़ी (अ.स.) नज़र बन्द थे बाद में उन्होंने दलील बिन याक़ूब नसरानी से एक मकान ख़रीद लिया था जिसमें अब भी आपका मज़ार मुक़द्दस वाक़े है।

सामरा में हमेशा ग़ैर शिया आबादी रही इसी लिये अब तक वहां शिया आबाद नहीं हैं वहां के जुमला ख़ुद्दाम भी ग़ैर शिया हैं।

हज़रत हुज्जत (अ.स.) के ग़ाएब होने का सरदाब वहीं एक मस्जिद के किनारे वाक़े है जो हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) और हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) के मज़ारे अक़दस के क़रीब है।

ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) पर उलेमाए अहले सुन्नत का इजमा

जम्हूरे उलेमाए इस्लामा इमाम मेहदी (अ.स.) के वुजूद को तसलीम करते हैं। इसमें शिया सुन्नी का सवाल नहीं हर फ़िरक़े के उलेमा यह मानते हैं कि आप पैदा हो चुके हैं और मौजूद हैं। हम उलेमाए अहले सुन्नत के अस्मा मय उनकी किताबों और मुख़्तसर अक़वाल के दर्ज करते हैं।

1. अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ेई किताब मतालेबुस सूऊल में फ़रमाते हैं कि इमाम मेहदी (अ.स.) सामरा में पैदा हुए जो बग़दाद से 20 फ़रसख़ के फ़ासले पर है।

2. अल्लामा अली बिन मोहम्मद बिन सबाग़ मालकी की किताब फ़ुसूल अल महमा में है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) गयाहरवें इमाम ने अपने बेटे इमाम मेहदी (अ.स.) की विलादत बादशाहे वक़्त से ख़ौफ़ से पोशीदा रखी।

3. अल्लामा शेख़ अब्दुल्लाह बिन अहमद ख़साब की किताब तवारीख़ मवालीद में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) का नाम मोहम्मद और कुन्नियत अबुल क़ासिम है। आप आख़री ज़माने में ज़हूर व ख़ुरूज करेंगे।

4. अल्लामा मुहिउद्दीन इब्ने अरबी हम्बली की किताब फ़तूहात में है कि जब दुनियां ज़ुल्मो जौर से भर जायेगी तो इमाम मेहदी (अ.स.) ज़हूर करेंगे।

5. अल्लामा शेख़ अब्दुल वहाब शेरानी की किताब अल यूवाक़ियात वल जवाहर में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए हैं। अब इस वक़्त यानी 958 हिजरी में उनकी उम्र सात सौ छः 706 साल) की है। हयी मज़मून अल्लामा बदख़शानी की किताब मिफ़ताह अल नजाता में भी है।

6. अल्लामा अब्दुल रहमान जामी हनफ़ी की किताब शवाहेदुन नबूवत में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) सामरा में पैदा हुए हैं और उनकी विलादत पोशीदा रखी गई है। वह इमाम हसन असकरी (अ.स.) की मौजूदगी में ग़ाएब हो गए हैं। इसी किताब में विलादत का पूरा वाक़ेया हकीमा ख़ातून की ज़बानी लिखा है।

7. अल्लामा शेख़ अब्दुल हक़ मोहद्दिस देहलवी की किताब मनाक़ेबुल आइम्मा में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए हैं। इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने उनके कान में अज़ान व इक़ामत कही है और थोड़े अर्से के बाद आपने फ़रमाया कि वह उस मालिक के सुपुर्द हो गये हैं जिनके पास हज़रते मूसा (अ.स.) बचपने में थे।

8. अल्लामा जमाल उद्दीन मोहद्दिस की किताब रौज़ातुल अहबाब में है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए और ज़मानाए मोतमिद अब्बासी में बमक़ाम सरमन राय अज़ नज़र बराया ग़ायब शुद , लोगों की नज़र से सरदाब में ग़ायब हो गये।

9. अल्लामा अब्दुल रहमान सूफ़ी की किताब मराएतुल इसरार में है कि आप बतने नरजिस से 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए।

10. अल्लामा शहाबुद्दीन दौलताबादी साहेबे तफ़सीर बहरे मवाज की किताब हिदाएतुल सआदा में है कि खि़लाफ़ते रसूल (स अ व व ) हज़रत अली (अ.स.) के वास्ते से इमाम मेहदी (अ.स.) तक पहुँची आप ही आख़री इमाम हैं।

11. अल्लामा नसर बिन अली जहमनी की किताब मवालिदे आइम्मा में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) नरजिस ख़ातून के बतन से पैदा हुए हैं।

12. अल्लामा मुल्ला अली क़ारी की किताब मरक़ात शरह मिशक़ात में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) बारहवें इमाम हैं। शियो का यह कहना ग़लत है कि अहले सुन्न्त अहते बैत (अ.स.) के दुश्मन हैं।

13. अल्लामा जवाद साबती की किताब बराहीन साबतीया मे है कि इमाम मेहदी (अ.स.) औलादे फ़ात्मा (स अ व व ) में से हैं। वह बक़ौले 255 हिजरी में पैदा हो कर एक अर्से के बाद ग़ायब हो गये हैं।

14. अल्लामा शेख़ हसन ईराक़ी जिनकी तारीफ़ किताब अल वाक़ेया में है कि उन्होंने इमाम मेहदी (अ.स.) से मुलाक़ात की है।

15. अल्लामा अली ख़वास जिनके मुताअल्लिक़ शेरानी ने अल यूवाक़ियत में लिखा है कि उन्होंने इमाम मेहदी (अ.स.) से मुलाक़ात की है।

16. अल्लामा शेख़ सईद उद्दीन का कहना है कि इमाम मेहदी (अ.स.) पैदा हो कर ग़ायब हो गए हैं। दौरे आखि़र ज़माना आशकार गरदद और वह आखि़र ज़माने में ज़ाहिर होंगे। जैसा कि किताब मस्जिदे अक़सा में है।

17. अल्लामा अली अकबर इब्ने सआद अल्लाह की किताब मकाशिफ़ात में है कि आप पैदा हो कर कुतुब हो गये हैं।

18. अल्लामा अहमद बिला ज़री अहादीस में लिखते हैं कि आप पैदा हो कर महज़ूब हो गये हैं।

19. अल्लामा शाह वली अल्लाह मोहद्दिस देहलवी के रिसाले नवादर में है , मोहम्मद बिन हसन (अ.स.)(अल मेहदी) के बारे में शियों का कहना दुरूस्त हैं।

20. अल्लामा शम्सुद्दीन जज़री ने बहवाला मुसलसेलात बिलाज़री ने एतेराफ़ किया है।

21. अल्लामा अलाउद्दौला अहमद समनानी साहब तारीख़े ख़मीस दर अहवाली अल नफ़स नफ़ीस अपनी किताब में लिखते है कि इमाम मेहदी (अ.स.) ग़ैबत के बाद एबदाल फिर कु़तुब हो गये।

23. अल्लामा नूर अल्लाह बहवाला किताब बयानुल एहसान लिखते हैं कि इमाम मेहदी (अ.स.) तकमीले सिफ़ात के लिये ग़ायब हुये हैं।

24. अल्लामा ज़हबी अपनी तारीख़े इस्लाम में लिखते हैं कि इमाम मेहदी (अ.स.) 256 हिजरी में पैदा हो कर मादूम हो गये हैं।

25. अल्लामा इब्ने हजर मक्की की किताब सवाएक़े मोहर्रेक़ा में है कि इमाम मेहदी अल मुन्तज़र (अ.स.) पैदा हो कर सरदाब में ग़ायब हो गए हैं।

26. अल्लामा अस्र की किताब दफ़यातुल अयान की जिल्द 2 पृष्ठ 451 में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) की उम्र इमाम हसन असकरी (अ.स.) की वफ़ात के वक़्त 5 साल की थी। वह सरदाब में ग़ाएब हो कर फिर वापस नहीं हुए।

27. अल्लामा सिब्ते इब्ने जौज़ी की किताब तज़किराए ख़वास अल आम्मा के पृष्ठ 204 में है कि आपका लक़ब अल क़ायम , अल मुन्तज़िर , अल बाक़ी है।

28. अल्लामा अबीद उल्लाह अमरतसरी की किताब अर हज्जुल मतालिब के पृष्ठ 377 में बहवाला किताबुल बयान फ़ी अख़बार साहेबुज़्ज़ान मरक़ूम है कि आप उसी तरह ज़िन्दा व बाक़ी हैं जिस तरह हज़रत ईसा (अ स ) , खि़ज़्र (अ स ) , इलयास (अ.स.) वग़ैरा ज़िन्दा और बाक़ी हैं।

29. अल्लामा शेख़ सुलैमान तमन दोज़ी ने किताब नियाबुल मोवद्दता पृष्ठ 393 में।

30. अल्लामा इब्ने ख़शाब ने किताब मवालिद अलले बैत में।

31. अल्लामा शिब्लन्जी ने नूरूल अबसार के पृष्ठ 152 प्रकाशित मिस्र 1222 हिजरी में बहवाला किताबुल बयान लिखा है कि इमाम मेहदी (अ.स.) ग़ायब होने के बाद अब तक ज़िन्दा और बाक़ी हैं और उनके वजूद के बाक़ी और ज़िन्दा होने में कोई शुबहा नहीं। वह इसी तरह ज़िन्दा और बाक़ी हैं जिस तरह हज़रते ईसा (अ स ) , हज़रते खि़ज़्र (अ.स.) और हज़रत इलयास (अ.स.) वग़ैरा ज़िन्दा और बाक़ी हैं। उन अल्लाह वालों के अलावा दज्जाल , इबलीस भी ज़िन्दा हैं। जैसा कि क़ुरआने मजीद , सही मुस्लिम , तारीख़े तबरी वग़ैरा से साबित है लेहाज़ा ला इमतना फ़ी बक़ाया उनके बाक़ी और ज़िन्दा होने में कोई शक व शुबहे की गुन्जाईश नहीं है।

32. अल्लामा चलपी किताब कशफ़ुल जुनून के पृष्ठ 208 में लिखते हैं कि किताब अल बयान फ़ी अख़बार साहेबुज़्ज़मान अबू अब्दुल्लाह मोहम्मद बिन यूसुफ़ कंजी शाफ़ेई की तसनीफ़ हैं। अल्लामा फ़ाज़िल रोज़ बहान की अबताल अल बातिल में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) क़ायम व मुन्तज़िर हैं। वह आफ़ताब की मानिन्द ज़ाहिर हो कर दुनिया की तारीकी , कुफ़्र ज़ाएल कर देंगे।

33. अल्लामा अली मुत्तक़ी की किताब कंज़ुल आमाल की जिल्द 7 के पृष्ठ 114 में है कि आप ग़ायब हैं ज़ुहूर कर के 9 साल हुकूमत करेंगे।

34. अल्लामा जलाल उद्दीन सियूती की किताब दुर्रे मन्शूर जिल्द 3 पृष्ठ 23 में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़हूर के बाद हज़रते ईसा (अ.स.) नाज़िल होंगे वग़ैरा वग़ैरा।

इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत और आपका वुजूद व ज़ुहूर क़ुरआने मजीद की रौशनी में

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत और आपके मौजूद होने और आपके तूले उम्र नीज़ आपके ज़ुहूर व शहूद और ज़हूर के बाद सारे दीन को एक कर देने के मुताअल्लिक़ 94 आयतें क़ुरआन मजीद में मौजूद हैं जिनमें से अकसर दोनों फ़रीक़ ने तसलीम किया है। इसी तरह बेशुमार ख़ुसूसी अहादीस भी हैं। तफ़सील के लिये मुलाहेज़ा हों। ग़ाएतुल मक़सूद व ग़ाएतुल मराम , अल्लामा हाशिम बहरानी व नियाबतुल मोवद्दता। मैं इस मक़ाम पर सिर्फ़ दो तीन आयतें लिखता हूँ आपकी ग़ैबत के मुताअल्लिक़। अलीफ़ लाम्मीम। ज़ालेकल किताबो ला रैबा फ़ीहे हुदल्लीम मुत्तक़ीन। अल लज़ीना यौमेनूना बिल ग़ैब है।

हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) फ़रमाते हैं कि ईमान बिल ग़ैब से इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत मुराद है। नेक बख़्त हैं वह लोग जो उनकी ग़ैबत पर सब्र करें और मुबारकबाद के क़ाबिल हैं , वह समझदार लोग जो ग़ैबत मे भी उनकी मोहब्बत पर क़ायम रहेंगे।(नेयाबुल मोवद्दता पृष्ठ 370 प्रकाशित बम्बई) आपके मौजूद और बाक़ी होने के मुताअल्लिक़ जाअलहा कलमता बाक़ियता फ़ी अक़बा है। इब्राहीम (अ.स.) की नस्ल में कलमा बक़िया को क़रार दिया है जो बाक़ी और ज़िन्दा रहेगा। इस कलमाए बाक़िया से इमाम मेहदी (अ.स.) का बाक़ी रहना मुराद है और वही आले मोहम्मद (स अ व व ) में बाक़ी हैं।(तफ़सीरे हुसैनी अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी पृष्ठ 226 ) नम्बर 3 , आपके ज़हूर और ग़लबे के मुताअल्लिकत्र यनज़हरहू अलद्दीने कुल्लाह जब इमाम मेहदी (अ.स.) ब हुक्मे ख़ुदा ज़हूर फ़रमाएंगे तो तमाम दीनों पर ग़लबा हासिल कर लेंगे यानी दुनिया में सिवा एक दीने इस्लाम के कोई और दीन न होगा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 153 प्रकाशित मिस्र)

इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़िक्र कुतुबे आसमानी में

हज़रत दाऊद (अ.स.) की ज़बूर की आयत 4 मरमूज़ 97 में है कि आख़री ज़माने में जो इन्साफ़ का मुजस्सेमा इन्सान आयेगा , उसके सर पर अब्र साया फ़िगन होगा। किताब सफ़याए पैग़म्बर के फ़सल 3 आयत 9 में है आख़री ज़माने में तमाम दुनिया मोवहिद हो जायेगी। किताब ज़बूर मरमूज़ 120 में है , जो आख़ेरूज़्ज़मान आयेगा उस पर आफ़ताब असर अन्दाज़ न होगा। सहीफ़ए शैया पैग़म्बर के फ़सल 11 मे है कि जब नूरे ख़ुदा ज़हूर करेगा तो अदलो इन्साफ़ का डन्का बजेगा , शेर और बकरी एक जगह रहेगे , चीता और बाज़गाला एक साथ चरेंगे। शेर और गौसाला एक साथ रहेंगे , गोसाला और मुर्ग़ एक साथ होंगे। शेर और गाय में दोस्ती होगी। तिफ़ले शीर ख़्वार सांप के बिल में हाथ डालेगा और वह काटेगा नहीं। फिर इसी सफ़हे के फ़सल 27 में है कि यह नूरे ख़ुदा जब ज़ाहिर होगा तो तलवार के ज़रिये तमाम दुश्मनों से बदला लेगा। सहीफ़ए तनजास हरफ़े अलिफ़ में है कि ज़हूर के बाद सारी दुनिया के बुत मिटा दिये जायेंगे ज़ालिम और मुनाफ़िक़ ख़त्म कर दिये जायेंगे। यह ज़हूर करने वाला कनीज़े ख़ुदा (नरजिस) का बेटा होगा।

तौरैत के सफ़रे अम्बिया में है कि मेहदी (अ.स.) ज़हूर करेंगे। हज़रज ईसा (अ.स.) आसमान से उतरेंगे। दज्जाल को क़त्ल करेंगे। इन्जील में है कि मेहदी (अ.स.) और ईसा (अ.स.) दज्जाल और शैतान को क़त्ल करेंगे। इसी तरह मुकम्मल वाक़िया जिसमें शहादते इमाम हुसैन (अ.स.) और ज़हूरे मेहदी (अ.स.) का इशारा हैं इन्जील किताब दानियाल बाब 12 फ़सल 9 आयत 24 रोयाए 2 में मौजूद है।(किताब अल वसाएल पृष्ठ 129 प्रकाशित बम्बई 1339 हिजरी)

इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत की वजह

मज़कूरा बाला तहरीरों से उलेमाए इस्लाम का एतेराफ़ साबित हो चुका यानी वाज़े हो गया कि इमाम मेहदी (अ.स.) के मुताअल्लिक़ जो अक़ाएद शियो के हैं वही मुन्सिफ़ मिज़ाज और ग़ैर मुताअस्सिब अहले तसन्नुन के उलेमा के भी हैं और मक़सदे असल की ताईद क़ुरआन की आयतों ने भी कर दी। अब रही ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) की ज़रूरत उसके मुताअल्लिक़ अर्ज़ है कि , 1. ख़ल्लाक़े आलम ने हिदायते ख़ल्क़ के लिये एक लाख चौबीस हज़ार पैग़म्बर और कसीर तादाद में उनके औसिया भेजे। पैग़म्बरों में से एक लाख तेहीस हज़ार नौ सौ निन्नियानवे 1,23,999 ) अम्बिया के बाद चूंकि हुज़ूर रसूले करीम (स अ व व ) तशरीफ़ लाये थे लेहाज़ा उनके जुमला सिफ़ात व कमालात व मोजेज़ात हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) में जमा कर दिये गये थे और आपको ख़ुदा ने तमाम अम्बिया के सिफ़ात का जलवा बरदार बना दिया बल्कि ख़ुद अपनी ज़ात का मज़हर क़रार दिया था और चूंकि आपको भी इस दुनियाए फ़ानी से ज़ाहिरी तौर पर जाना था इस लिये आपने अपनी ज़िन्दगी ही मे हज़रत अली (अ.स.) को हर क़िस्म के कमालात से भर पूर कर दिया था। हज़रत अली (अ.स.) अपने ज़ाती कमालात के अलावा नबवी कमालात से भी मुम्ताज़ हो गये थे। सरवरे कायनात के बाद कायनाते आलम में सिर्फ़ अली (अ.स.) की हस्ती थी जो कमालाते अम्बिया की हामिल थी। आपके बाद यह कमालात अवसाफ़ में मुन्तिक़िल होते हुए इमाम मेहदी (अ.स.) तक पहुँचे। बादशाहे वक़्त इमाम मेहदी (अ.स.) को क़त्ल करना चाहता था। अगर वह क़त्ल हो जाते तो दुनियां से अम्बिया व औसिया का नाम व निशान मिट जाता और सब की यादगार बयक ज़र्ब शमशीर ख़त्म हो जाती और चुंकि उन्हें अम्बिया के ज़रिये से ख़ुदा वन्दे आलम मुताअरिफ़ हुआ था लेहाज़ा उसका भी ज़िक्र ख़त्म हो जाता। इस लिये ज़रूरी था कि ऐसी हस्ती को महफ़ूज़ रखा जाए जो जुमला अम्बिया और अवसिया की यादगार और तमाम के कमालात की मज़हर हो। 2. ख़ुदा वन्दे आलम ने क़ुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाया वाजालाहा कमातह बाक़ीयता फ़ी अक़बे इब्राहीम (अ.स.) की नस्ल मे कलमा बाक़ीहा क़रार दे दिया है। नस्ले इब्राहीम (अ.स.) दो फ़रज़न्दों से चली है एक इस्हाक़ (अ.स.) और दूसरे इस्माईल (अ.स.)। इस्हाक़ (अ.स.) की नस्ल से ख़ुदा वन्दे आलम जनाबे ईसा (अ.स.) को ज़िन्दा व बाक़ी क़रार दे कर आसमान पर महफ़ूज़ कर चुका था अब यह मुक़तज़ाए इन्साफ़ ज़रूरी थी कि नस्ले इस्माईल (अ.स.) से भी किसी एक को बाक़ी रखे और वह भी ज़मीन पर क्यो कर आसमान पर एक बाक़ी मौजूद था लेहाज़ा इमाम मेहदी (अ.स.) को जो नस्ले इस्माईल (अ.स.) से हैं ज़मीन पर ज़िन्दा और बाक़ी रखा और उन्हें भी इसी तरह दुश्मन के शर से महफ़ूज़ कर दिया जिस तरह हज़रत ईसा (अ.स.) को महफ़ूज़ किया था। 3. यह मुसल्लेमाते इस्लामी से है कि ज़मीन हुज्जते ख़ुदा और इमामे ज़माना से ख़ाली नहीं रह सकती।(उसूले काफ़ी 103 प्रकाशित नवल किशोर) चुंकि हुज्जते ख़ुदा उस वक़्त इमाम मेहदी (अ.स.) के सिवा कोई न था , उन्हें दुश्मन क़त्ल कर देने पर तुले हुए थे इस लिये उन्हे महफ़ूज़ व मस्तूर कर दिया गया। हदीस में है कि हुज्जते ख़ुदा की वजह से बारीश होती है और उन्हीं के ज़रिये से रोज़ी तक़सीम की जाती है।(बेहार) 4. यह मुसल्लम है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) जुमला अम्बिया के मज़हर थे इस लिये ज़रूरत थी कि उन्हीं की तरह उनकी ग़ैबत भी होती यानी जिस तरह बादशाहे वक़्त के मज़ालिम की वजह से हज़रत नूह (अ स ) , हज़रत इब्राहीम (अ स ) , हज़रत मूसा (अ स ) , हज़रत ईसा (अ.स.) और हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) अपने अहदे हयात में मुनासिब मुद्दत तक ग़ाएब रह चुके थे इसी तरह यह भी ग़ाएब रहते। 5. क़यामत का आना मुसल्लम है और इस वाक़िये क़यामत में इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़िक्र बताता है कि आपकी ग़ैबत मस्लहते ख़ुदा वन्दे आलम की बिना पर हुई है। 6. सुरए इन्ना अन ज़ल्नाहो से मालूम होता है कि नुज़ूले मलाएक शबे क़दर में होता रहता है यह ज़ाहिर है कि नुज़ूले मलाएक अम्बिया व औसिया पर ही हुआ करता है। इमाम मेहदी (अ.स.) को इस लिये मौजूद और बाक़ी रखा गया है ताकि नुज़ूले मलाएक की मरकज़ी ग़रज़ पूरी हो सके और शबे क़द्र में उन्हीं पर नुज़ूले मलाएक हो सके। हदीस में है कि शबे क़द्र में साल भर की रोज़ी वगै़रह इमाम मेहदी (अ.स.) तक पहुँचा दी जाती है और वही उसे तक़सीम करते हैं। 7. हकीम का फ़ेल हिकमत से ख़ाली नहीं होता यह दूसरी बात है कि आम लोग इस हिकमत व मसेलहत से वाक़िफ़ न हों। ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) उसी तरह मसलेहत व हिकमते ख़ुदा वन्दी की बिना पर अमल में आई है। जिस तरह तवाफ़े काबा , रमी जमरात वग़ैरह हैं जिसकी असल मसलेहत ख़ुदा वन्दे आलम को ही मालूम है।। 8. इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) का फ़रमान है कि इमाम मेहदी (अ.स.) को इस लिये ग़ायब किया जायेगा ताकि ख़ुदा वन्दे आलम अपनी सारी मख़लूक़ात का इम्तेहान कर के यह जांचे कि नेक बन्दे कौन हैं और बातिल परस्त कौन लोग है। (इकमालुद्दीन) 9. चूंकि आपको अपनी जान का ख़ौफ़ था और यह तय शुदा है कि मन ख़ाफ अली नफ़सही एहसताज अली इला सत्तार कि जिसे अपने नफ़्स और अपनी जान का ख़ौफ़ हो वह पोशीदा होने को लाज़मी जानता है।(अल मुतुर्जा़) 10. आपकी ग़ैबत इस लिये वाक़े हुई है कि ख़ुदा वन्दे आलम एक वक़्ते मोइय्यन में आले मोहम्मद (स अ व व ) पर जो मज़ालिम किये गए हैं इनका बदला इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़रिये से लेगा यानी आप अहदे अव्वल से लेकर बनी उमय्या और बनी अब्बास के मज़ालिमों से मुकम्मिल बदला लेंगे।(कमालुद्दीन)

ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) जफ़र जामए की रौशनी में

अल्लामा शेख़ क़न्दूज़ी बलख़ी हनफ़ी रक़मतराज़ हैं कि सुदीर सैरफ़ी का बयान है कि हम और मुफ़ज़ल बिन उमर , अबू बसीर , अमान बिन तग़लब एक दिन सादिक़े आले मोहम्मद (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुए तो देखा कि आप ज़मीन पर बैठे हुए रो रहे हैं और कहते हैं कि ऐ मोहम्मद ! तुम्हारी ग़ैबत की ख़बर ने मेरा दिल बेचैन कर दिया है। मैंने अर्ज़ कि हुज़ूर , ख़ुदा की आंखों को कभी न रूलाए , बात क्या है , किस लिए हुज़ूर गिरया कुना हैं ? फ़रमाया , ऐ सुदीर ! मैंने आज किताब जाफ़र जामे में बवक़्ते सुबह इमाम मेहदी की ग़ैबत का मुताला किया है। ऐ सुदीर ! यह वह किताब है जिसमे आमा माकाना वमायकून का इन्दराज है और जो कुछ क़यामत तक होने वाला है सब इसमें लिखा हुआ है। ऐ सुदीर ! मैंने इस किताब में यह देखा है कि हमारी नस्ल से इमाम मेहदी होगें। फिर वह ग़ायब हो जाएगें और उनकी ग़ैबत नीज़ उमर बहुत तवील होगी। उनकी ग़ैबत के ज़माने में मोमेनीन मसाएब में मुबतिला होगें और उनके इम्तेहानात होते रहेंगे और ग़ैबत में ताख़ीर की वजह से उनके दिलों में शकूक पैदा होते होंगे , फिर फ़रमाया ऐ सुदीर ! सुनो इनकी विलादत हज़रत मूसा (अ.स.) की तरह होगी और उनकी ग़ैबत ईसा (अ.स.) की मानिन्द होगी और उनके ज़हूर का हाल हज़रत नूह (अ.स.) के मानिन्द होगा और उनकी उम्र हज़रते खि़ज़्र (अ.स.) की उम्र जैसी होगी।(नेयाबुल मोवद्दत) इस हदीस की मुख़तसर शरह यह है कि :

1. तारीख़ में है कि जब फ़िरऔन को मालूम हुआ कि मेरी सलतनत का ज़वाल एक मौलूद बनी इस्राईल के ज़रिए होगा तो उसने हुक्म जारी कर दिया कि मुल्क में कोई औरत हामेला न रहने पाए और कोई बच्चा बाक़ी न रखा जाए। चुनान्चे इसी सिलसिले में 40 हज़ार बच्चे ज़ाया किये गए लेकिन खुदा ने हज़रत मूसा (अ.स.) को फ़िरऔन की तमाम तरकीबों के बवजूद पैदा किया , बाक़ी रखा और उन्हीं के हाथों से उसकी सलतनत का तख़्ता उलट दिया। इसी तरह इमाम मेहदी (अ.स.) के लिये हुआ कि तमाम बनी उमय्या और बनी अब्बास की सई बलीग़ के बावजूद आप बतने नरजीस ख़ातून से पैदा हुए और आपको कोई देख तक न सका।

2. हज़रत ईसा (अ.स.) के बारे में तमाम यहूदी और नसरानी मुत्तफ़िक़ हैं कि आपको सूली दे दी गई और आप क़त्ल किये जा चुके , लेकिन ख़ुदा वन्दे आलम ने उसकी रद्द फ़रमा दी और कह दिया कि वह न क़त्ल हुए हैं और न उनको सूली दी गई है। यानी ख़ुदा वन्दे आलम ने अपने पास बुला लिया और वह आसमान पर अमन व अमाने ख़ुदा में हैं। इसी तरह हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के बारे में भी लोगों का कहना है कि पैदा ही नहीं हुए , हालां कि पैदा हो कर हज़रत ईसा (अ.स.) की तरह ग़ाएब हो चुके हैं।

3. हज़रत नूह (अ.स.) ने लोगों की नाफ़रमानी से आजिज़ आ कर ख़ुदा के अज़ाब के नज़ूल की दरख़्वास्त की। ख़ुदा वन्दे आलम ने फ़रमाया कि पहले एक दरख़्त लगाओ वह फल लाएगा , तब अज़ाब करूगां। इसी तरह नूह (अ.स.) ने सात मरतबा किया बिल आखि़र इस ताख़ीर के वजह से आपके तमाम दोस्त व मवाली और इमानदार काफ़िर हो गए और सिर्फ़ 70 मोमिन रह गए। इसी तरह ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) और ताख़ीरे ज़हूर की वजह से हो रहा है। लोग फ़रामीने पैग़म्बर और आइम्मा (अ.स.) की तकज़ीब कर रहे हैं और अवामे मुस्लिम बिला वजह ऐतिराज़ात कर के अपनी आक़बत ख़राब कर रहे हैं और शायद इसी वजह से मशहूर है कि जब दुनियां में चालीस मोमिन कामिल रह जाएगें तब आपका ज़हूर होगा।

4. हज़रते खि़ज्र (अ.स.) जो ज़िन्दा और बाक़ी हैं और क़यामत तक ज़िन्दा और मौजूद रहेगें। उन्हीं की तरह हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) भी ज़िन्दा और बाक़ी हैं और क़यामत तक मौजूद रहेंगे और जब कि हज़रते खि़ज़्र (अ.स.) के ज़िन्दा और बाक़ी रहने में मुसलमानों में कोई इख़्तेलाफ़ नहीं है , हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़िन्दा और बाक़ी रहने में भी कोई इख़्तेलाफ़ की वजह नहीं हैं।

ग़ैबते सुग़रा व कुबरा और आपके सुफ़रा

आपकी ग़ैबत की दो हैसियतें थीं , एक सुग़रा और दूसरी कुबरा। ग़ैबते सुग़रा की मुद्दत 75 या 73 साल थी। उसके बाद ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई। ग़ैबते सुग़रा के ज़माने में आपका एक नाएबे ख़ास होता था जिसके ज़ेरे एहतेमाम हर क़िस्म का निज़ाम चलता था। सवाल व जवाब , ख़ुम्स व ज़कात और सिफ़ारिश से सुफ़रा मुक़र्रर किये जाते थे।

सब से पहले जिन्हें नाएबे ख़ास होने की सआदत नसीब हुई उनका नामे नामी व इस्मे गेरामी हज़रत उस्मान बिन सईद उमरी था। आप हज़रत इमाम अली नकी़ (अ.स.) और इमाम हसन असकरी (अ.स.) के मोतमिदे ख़ास और असहाबे ख़ल्लस में से थे। आप क़बीलाए बनी असद से थे। आपकी कुन्नियत अबू उमर थी। आप सामरा के क़रीए असकर के रहने वाले थे। वफ़ात के बाद आप बग़दाद में दरवाज़ा जबला के क़रीब मस्जिद में दफ़्न किये गये हैं। आपकी वफ़ात के बाद बहुक्मे इमाम (अ.स.) आपके फ़रज़न्द हज़रत मोहम्मद बिन उस्मान बिन सईद इस अज़ीम मंज़िलत पर फ़ाएज़ हुए , आपकी कुन्नियत अबू जाफ़र थी। आपने अपनी वफ़ात से दो माह क़ब्ल अपनी क़ब्र खुदवा दी थी। आपका कहना था कि मैं यह इस लिये कर रहा हूँ कि मुझे इमाम (अ.स.) ने बता दिया है और अपनी तारीख़े वफ़ात से वाक़िफ़ हूँ। आपकी वफ़ात जमादिल अव्वल 305 हिजरी में वाक़े हुई और आप माँ के क़रीबब बमक़ाम दरवाज़ा कूफ़ा सिरे राह दफ़्न हुये।

फिर आपकी वफ़ात के बाद बा वास्ता मरहूम हज़रत इमाम (अ.स.) के हुक्म से हज़रत हुसैन बिन रौह इस मनसबे अज़ीम पर फ़ाएज़ हुए।

जाफ़र बिन मोहम्मद बिन उस्मान सईद का कहना है कि मेरे वालिद हज़रत मोहम्मद बिन उस्मान ने मेरे सामने हज़रत हुसैन बिन रौह को अपने बाद इस मनसब की ज़िम्मेदारी के मुताअल्लिक़ इमाम (अ.स.) का पैग़ाम पहुँचाया था। हज़रत हुसैन बिन रौह की कुन्नियत अबू क़ासिब थी। आप महल्ले नव बख़्त के रहने वाले थे। आप ख़ुफ़िया तौर पर जुमला मुमालिके इस्लामिया का दौरा किया करते थे। आप दोनों फ़िरक़ों के नज़दीक मोतमिद , सुक़्क़ा , सालेह और अमीन क़रार दिये गये हैं। आपकी वफ़ात शाबान 326 हिजरी में हुई और आप महल्ले नव बख़्त कूफ़े में मदफ़ून हुए हैं। आपकी वफ़ात के बाद बहुक्मे इमाम (अ.स.) हज़रत अली बिन मोहम्मद अल समरी इस ओहदाए जलीला पर फ़ाएज़ हुए। आपकी कुन्नियत अबुल हसन थी। आप अपने फ़राएज़ अंजाम दे रहे थे , जब वक़्त क़रीब आया तो आप से कहा गया कि आप अपने बाद का क्या इंतेज़ाम करेंगे ? आपने फ़रमाया कि अब आइन्दा यह सिलसिला क़ाएम न रहेगा।(मजालेसुल मोमेनीन , पृष्ठ 89 व जज़ीरए खि़ज़रा पृष्ठ 6 व अनवारूल हुसैनिया पृष्ठ 55 ) मुल्ला जामी अपनी किताब शवाहेदुन नबूवत के पृष्ठ 214 में लिखते हैं कि मोहम्मद अल समरी के इन्तेक़ाल से 6 यौम क़ब्ल इमाम (अ.स.) का एक फ़रमाने नाहिया मुक़द्देसा से बरामद हुआ जिसमें उनकी वफ़ात का ज़िक्र और सिलसिलाए सिफ़ारत के ख़त्म होने का सिलसिला था। इमाम मेहदी (अ.स.) के ख़त के उयून अल्फ़ाज़ यह हैं।

बिस्मिल्लाहिर्रहमार्निरहीम

या अली बिन मोहम्मद अज़म अल्लाह अजरा ख़वाएनेका फ़ीक़ा फ़ाअनका मयता मा बैनका व बैने सुन्नता अय्याम फ़ा अज़मा अमरेका वला तरज़ इला अहद याकौ़म मक़ामेका बाअद वफ़ातेका फ़क़त वक़अत अल ग़ैबता अल तामता फ़ला ज़हूर इला बआद इज़न अल्लाह ताआला व ज़ालेका बआद तूल अल आमद। ’’

तरजुमा:- ऐ अली बिन मोहम्मद ! ख़ुदा वन्दे आलम तुम्हारे बारे में तुम्हारे भाईयों और दोस्तों को अजरे जमील अता करे। तुम्हें मालूम हो कि तुम 6 यौम में वफ़ात पाने वाले हो , तुम अपने इन्तेज़ामात कर लो और आइन्दा के लिये अपना कोई क़ाएम मुक़ाम तजवीज़ व तलाश न करो। इस लिये कि ग़ैबते कुबरा वाक़े हो गई है और इज़ने ख़ुदा के बग़ैर ज़हूर न मुम्किन होगा। यह ज़हूर बहुत तवील अर्से के बाद होगा।

ग़रज़ कि 6 दिन गुज़रने के बाद हज़रत अबुल हसन अली बिन मोहम्मद अल समरी बतारीख़ 15 शाबान 329 हिजरी इन्तेक़ाल फ़रमा गए और फिर कोई ख़ुसूसी सफ़ीर मुक़र्रर नहीं हुआ और ग़ैबते कुबरा शुरू हो गई।

सुफ़राए उमूमी के नाम

मुनासिब मालूम होता है कि उन सुफ़रा के इस्मा भी दरजे ज़ैल कर दिये जायें जो उन्हें नब्वाबे ख़ास के ज़रिए और सिफ़ारिश से बहुक्मे इमाम (अ.स.) मुमालिके महरूसा मख़सूसिया में इमाम (अ.स.) का काम करते और हज़रत की खि़दमत में हाज़िर होने रहते थे।

1.बग़दाद से हाजिज़ , बिलाली , अत्तार 2. कूफ़े से आसमी , 3. अहवाना से मोहम्मद बिन इब्राहीम बिन मेहरयार , 4. हमदान से मोहम्मद इब्ने सालेह , 5. रै से बसामी व असदी 6. आज़र बैजान से क़सम बिन अला , 7. नैशापूर से मोहम्मद बिन शादान , 8. क़सम से अहमद बिन इस्हाक़।(ग़ाएत अल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 120 )

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत के बाद

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत चूंकि ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से बतौरे लुत्फ़े ख़ास अमल में आई थी। इस लिये आप ख़ुदाई खि़दमत में हमतन मुनहमिक हो गये और ग़ायब होने के बाद आपने दीने इस्लाम की खि़दमत शुरू फ़रमा दी। मुसलमानों , मोमिनों के ख़ुतूत के जवाबात देने उनकी बवक़्ते ज़रूरत रहबरी करने और उन्हें राहे रास्त दिखाने का फ़रीज़ा अदा करना शुरू कर दिया। ज़रूरी खि़दमात आप ज़मानाए ग़ैबते सुग़रा में ब वास्ता सुफ़रा या बिला वास्ता और ज़मानए कुबरा में बिला वास्ता अन्जाम देते रहे और क़यामत तक अन्जाम देते रहेंगे।

307 हिजरी में आपका हजरे असवद नसब करना

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि ज़मानाए नियाबत में बाद हुसैन बिन रौह , अबूल क़ासिम , जाफ़र बिन मोहम्मद , कौलिया हज के इरादे से बग़दाद गये और वह मक्के मोअज़्ज़मा पहुँच कर हज करने का फ़ैसला किये हुए थे लेकिन वह बग़दाद पहुँच कर सख़्त अलील हो गये। इसी दौरान में आपने सुना कि क़रामता ने हजरे असवद को निकाल लिया है और वह उसे कुछ दुरूस्त कर के अय्यामे हज में फिर नसब करेंगे। किताबों में चूंकि पढ़ चुके थे कि हजरे असवद सिर्फ़ इमामे ज़माना ही नसब कर सकता है जैसा कि पहले हज़रत मोहम्मद (स अ व व ) ने नसब किया था। फिर ज़मानाए हज में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने नसब किया था। इसी बिना पर उन्होंने अपने एक करम फ़रमा ‘‘ इब्ने हश्शाम ’’ के ज़रिए से एक ख़त इरसाल किया और उसे कह दिया कि जो हजरे असवद नसब करे उसे यह ख़त दे देना। नसबे हजर की लोग सई कर रहे थे लेकिन वह अपनी जगह पर क़रार नहीं लेता था कि इतने में एक ख़ूब सूरत नौ जवान एक तरफ़ से सामने आया और उसने उसे नसब कर दिया और वह अपनी जगह पर मुसतक़र हो गया। जब वह वहां से रवाना हुआ तो इब्ने हश्शाम उनके पीछे हो लिये। रास्ते में उन्होंने पलट कर कहा ऐ इब्ने हश्शाम , तू जाफ़र बिन मोहम्मद का ख़त मुझे दे दे। देख उस में उसने मुझ से सवाल किया है कि वह कब तक ज़िन्दा रहेगा। यह कह कर वह नज़रों से ग़ायब हो गए। इब्ने हश्शाम ने सारा वाक़ेया बग़दाद पहुँच कर जाफ़र बिन क़ौलिया से बयान कर दिया। ग़रज़ कि वह तीस साल के बाद वफ़ात पा गये।(कशफ़ुल ग़ुम्मा पृष्ठ 133 )

इसी क़िस्म के कई वाक़ेयात किताबे मज़कूरा में मौजूद हैं। अल्लामा अब्दुल रहमान मुल्ला जामी रक़म तराज़ हैं कि एक शख़्स इस्माईल बिन हसन हर कुली जो नवाही हिल्ला में मुक़ीम था उसकी रान पर एक ज़ख़्म नमूदार हो गया था जो हर ज़मानए बहार में उबल आता था। जिसके इलाज से तमाम दुनिया के हकीम आजिज़ और क़ासिर हो गये थे। वह एक दिन अपने बेटे शम्सुद्दीन को हमराह ले कर सय्यद रज़ी उद्दीन अली बिन ताऊस की खि़दमत में गया। उन्होंने पहले तो बड़ी सई की लेकिन कोई चारा कार न हुआ। हर तबीब यह कहता था कि यह फोड़ा ‘‘ रगे एकहल ’’ पर है अगर इसे नशतर दिया तो जान का ख़तरा है इस लिये इसका इलाज न मुम्किन है। इस्माईल का बयान है कि ‘‘ चून अज़ अत्तबा मायूस शुदम अज़ी मत मशहद शरीफ़ सरमन राए करदम ’’ जब मैं तमाम एतबार से मायूस हो गया तो सामरा के सरदाब के क़रीब गया और वहां पर हज़रते साहेबे अम्र को मुतावज्जे किया। एक शब दरयाए दजला से ग़ुस्ल कर के वापस आ रहा था कि चार सवार नज़र आए , उनमें से एक ने मेरे ज़ख़्म के क़रीब हाथ फेरा और मैं बिल्कुल अच्छा हो गया। मैं अभी अपनी सेहत पर ताअज्जुब ही कर रहा था कि इनमें से एक सवार ने जो सफ़ेद रीश (सफ़ैद दाढ़ी) थे कहा कि ताअज्जुब क्या है। तुझे शिफ़ा देने वाले इमाम मेहदी (अ.स.) हैं। यह सुन कर मैंने उनके क़दमों का बोसा दिया और वह लोग नज़रों से ग़ायब हो गये।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 214 व कशफ़ुल ग़ुम्मा पृष्ठ 132 )

इस्हाक़ बिन याक़ूब के नाम इमामे अस्र (अ.स.) का ख़त

अल्लामा तबरिसी बहवाला मोहम्मद बिन याक़ूब क़ुलैनी लिखते हैं कि इस्हाक़ बिन याक़ूब ने बज़रिये मोहम्मद बिन उस्मान अमरी हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की खि़दमत में एक ख़त इरसाल किया जिसमें कई सवालात लिखे थे। हज़रत ने ख़ुद खत़ का जवाब तहरीर फ़रमाया और तमाम सवालात के जवाबात तहरीर इनायत फ़रमा दिये जिसके अजज़ा यह हैं:

1. जो हमारा मुनकिर है , वह हम से नहीं।

2. मेरे अज़ीज़ों में से जो मुख़ालेफ़त करते हैं , उनकी मिसाल इब्ने नूह और बरादराने युसुफ़ की हैं।

3. फुक्का़ह यानी जौ की शराब का पीना हराम है।

4. हम तुम्हारे माल सिर्फ़ इस लिये(बतौरे ख़ुम्स) क़ुबूल करते हैं कि तुम पाक हो जाओ और अज़ाब से निजात हासिल कर सको।

5. मेरे ज़हूर करने और न करने का ताल्लुक़ सिर्फ़ ख़ुदा से है जो लोग वक़्ते ज़हूर मुक़र्रर करते हैं वह ग़लती पर हैं झूट बोलते है।

6. जो लोग यह कहते हैं कि इमाम हुसैन (अ.स.) क़त्ल नहीं हुए वह काफ़िर झूठे और गुमराह हैं।

7. तमाम वाके़ए होने वाले हवादिस में मेरे सुफ़रा पर एतिमाद करो वह मेरी तरफ़ से तुम्हारे लिए हुज्जत हैं और मैं हुज्जतुल्लाह हूँ।

8. मोहम्मद बिन उस्मान ’’ अमीन और सुक़्क़ह हैं और उनकी तहरीर मेरी तहरीर है।

9. मोहम्मद बिन अली महरयार अहवाज़ी का दिल इन्शा अल्लाह बहुत साफ़ हो जायेगा और उन्हें कोई शक न रहेगा।

10. गाने वाले की उजरत व क़ीमत हराम है।

11. मोहम्मद बिन शादान बिन नईम हमारे शियों में से हैं।

12. अबू अल ख़त्ताब मोहम्मद बिन ज़ैनब अजद मलऊन है और इनके मानने वाले भी मलऊन हैं मैं और मेरे बाप दादा इस से और इसके बाप दादा से हमेशा बेज़ार रहे हैं।

13. जो हमारा माल खाते हैं वह अपने पेटों में आग भरते हैं।

14. ख़ुम्स हमारे सादात शिया के लिये हलाल है।

15. जो लोग दीने ख़ुदा में शक करते हैं वह अपने खुद ज़िम्मेदार हैं।

16. मेरी ग़ैबत क्यो वाक़ेए हुई है यह बात ख़ुदा की मसलहत से मुताअल्लिक़ है इसके मुताअल्लिक़ सवाल बेकार है। मेरे आबाओ अजदाद दुनियां वालों के शिकन्जें में हमेशा रहे हैं लेकिन ख़ुदा ने मुझे इस शिकन्जे से बचा लिया है जब मैं ज़हूर करूगां बिल्कुल आज़ाद हूंगा।

17. ज़मानाए ग़ैबत में मुझ से फ़ायदा क्या है इसके मुताअल्लिक़ यह समझ लो कि मेरी मिसाल ग़ैबत में वैसी है , जैसे अब्र में छुपे हुए आफ़ताब की। मैं सितारों की मानिन्द अहले अर्ज़ के लिये अमान हूँ। तुम लोग ग़ैबत और ज़हूर के मुताअल्लिक़ सवालात का सिलसिला बन्द करो और ख़ुदा वन्दे आलम की बारगाह में दोआ करो औ वह जल्द मेरे ज़हूर का हुक्म दे दे। ऐ इस्हाक़ ! तुम पर और उन लोगों पर मेरा सलाम जो हिदायत की इब्तेदा करते हैं।

(आलामुल वुरा पृष्ठ 258, मजालिसुल मोमेनीन पृष्ठ 190, कशफ़ुल ग़ुम्मा पृष्ठ 140 )

शेख़ मोहम्मद बिन मोहम्मद के नाम इमामे ज़माना (अ.स.) का मकतूबे गिरामी

डलमा का बयान है कि हज़रत इमामे अस्र (अ.स.) ने जनाबे शेख़ मुफ़ीद अबू अब्दुल्लाह मोहम्मद बिन मोहम्मद बिन नेमान के नाम एक मकतूब इरसाल फ़रमाया है जिसमें उन्होंने शेख़ मुफ़ीद की मदह फ़रमाई है और बहुत से वाक़ेयात से मौसूफ़ को आगाह फ़रमाया है। उनके मकतूबे गिरामी का तरजुमा यह है:-

मेरे नेक बरादर और लाएक़ मोहिब , तुम पर मेरा सलाम हो। तुम्हें दीनी मामले में ख़ुलूस हासिल है और तुम मेरे बारे में यक़ीने कामिल रखते हो। हम उस ख़ुदा की तारीफ़ करते हैं जिसके सिवा कोई माबूद नहीं है। हम दुरूद भेजते हैं हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) और उनकी पाक आल पर। हमारी दुआ है कि ख़ुदा तुम्हारी तौफ़ीक़ाते दीनी हमेशा क़ाएम रखे और तुम्हें नुसरते हक़ की तरफ़ हमेशा मुतावज्जा रहे। तुम जो हमारे बारे में सिदक़ बयानी करते रहतें हो , ख़ुदा तुमको इसका अज्र अता फ़रमाए। तुम ने जो हम से ख़त व किताबत का सिलसिला जारी रखा और दोस्तों को फ़ायदा पहुँचाया , वह का़बिले मदह व सताईश है। हमारी दोआ है कि ख़ुदा तुम को दुश्मनों के मुक़ाबले में कामयाब रखे। अब ज़रा ठहर जाओ , और जैसा हम कहते हैं उस पर अमल करो। अगरचे हम ज़ालिमों के इमकानात से दूर हैं जब तब दौलते दुनियां फ़ासिक़ों के हाथ में रहेगी। हम उन लग़ज़ीशों को जानते हैं जो लोगों से अपने नेक असलाफ़ के खि़लाफ़ जा़हिर हो रही हैं। (शायद इससे अपने चचा जाफ़र की तरफ़ इरशाद फ़रमाया है) उन्होंने अपने अहदों को पसे पुश्त डाल दिया गोया वह कुछ जानते ही नहीं। ताहम हम उनकी रिवायतों को छोड़ने वाले नहीं और न उनके ज़िक्र भूलने वालें हैं अगर ऐसा होता तो इन पर मुसीबतें नाज़िल होतीं और दुश्मनों का ग़लबा हासिल हो जाता , पस उनसे कहो कि ख़ुदा से डरो और हमारे अमर नहीं मुनकर की हिफ़ाज़त करो और अल्लाह अपने नूर का कामिल करने वाला है चाहे मुश्रिक कैसी ही कराहीय्यत करें तक़य्या को पकड़े रहो। मैं उसकी निजात का ज़ामिन हूँ जो ख़ुदा की मरज़ी का रास्ता चलेगा। इस साल जमादील अव्वल का महीना आयेगा तो इसके वाक़ियात से इबरत हासिल करना तुम्हारे लिए आसमान व ज़मीन से रौशन आएतें ज़ाहिर होगीं। मुसलमानों के गिरोह हुज़न व क़लक़ में बामुक़ाम एराक़ फंस जाएगें और उनकी बद आमालियों की वजह से रिज़्क़ में तगीं हो जाऐगी। फिर यह ज़िल्लत व मुसीबत शरीरों की हलाकत के बाद दूर हो जायेगी। उनकी हलाकत से नेक और मुत्तक़ी लोग ख़ुश होंगे। लोगों को चाहिये कि वह ऐसे काम करें जिनसे उनमें हमारी मोहब्बत ज़्यादा हो। यह मालूम होना चाहिए कि जब मौत यकायक आएगी तो बाबे तौबा बन्द हो जाऐगा और ख़ुदाई कहर से नजात न मिलेगी। ख़ुदा तुम को नेकी पर क़ाएम रखे और तुम पर रहमत नाज़िल करे। ’’

मेरे ख़्याल में यह ख़त अहदे ग़ैबते कुबरा का है , क्योंकि शेख़ मुफ़िद की विलादत 11 ज़ीक़ाद 326 हिजरी और वफ़ात 3 रमज़ान 413 हिजरी में हुई और ग़ैबते सुग़रा का ऐख़्तेतामम 15 शाबान 329 हिजरी में हुआ है। अल्लामा कबीर हज़रत शहीदे सालिस अल्लामा नूर उल्लाह शूस्तरी मजालिस अल मोमेनीन के पृष्ठ 206 में लिखते हैं कि शेख़ मुफ़ीद के मरने के बाद हज़रत इमामे इस्र (अ.स.) ने तीन शेर इरसाल फ़रमाए थे जो मरहूम की क़ब्र पर कन्दा हैं।

उन हज़रात के नाम जिन्होंने ज़मानए ग़ैबते सुग़रा में इमाम को देखा है।

चारों वकलये ख़ुसूसी और सात वकलाए उमूमी के अलावा वह जिन लोगों ने हज़रत इमामे अस्र (अ.स.) को देखा है उनके इसमाए बाज़ के नाम यह हैं:-

बग़दाद के रहने वालों में से , 1. अबू अल क़ासिम बिन रईस , 2. अबू अब्दुल्लाह इब्ने फ़राख़ , 3. मसरूर अल तबाख़ , 4. , 5. अहमद व मोहम्मद पिसराने हसन , 6. इसहाक़ कातिब अज़नू बख़्त , 7. साहेगे अल फ़राए , 8. साहेबे असरतह अल मख़तूमा , 9. अबू अल क़ासिम बिन अबी जलैसा , 10. अबू अब्दुल्लाह अल कन्दी , 11. अबू अब्दुल्लाह अल जन्दी , 12. हारून अल फ़राज़ , 13. अल नैला , (हमदान के बाशिन्दों में से) 16. हसन बिन हरवान , 17. अहमद बिन हरवान(अज़ असफ़हान) 18. इब्ने बाज़शाला ,(अज़ जै़मर) 19. ज़ैदान अज़ क़ुम , 20. हसन बिन नसर , 21. मोहम्मद बिन मोहम्मद , 22. अली बिन मोहम्मद बिन इसहाक़ , 23. मोहम्मद बिन इसहाक़ , 24. हसन बिन याक़ूब , (अज़ रै) 25. क़सम बिन मूसा , 26. फ़रज़न्द क़सीम बिन मूसा , 27. इब्ने मोहम्मद बिन हारून , 28. साहेबे अल अस साका़ , 29. अली बिन मोहम्मद , 30. मोहम्मद बिन याक़ूब क़ुलैनी , 31. अबू जाफ़र अरक़ा , (अज़ कज़वीन) 32. मरवास , 33. अली बिन अहमद , (अज़ फ़ारस) 34. अकमज़रूह (शेहज़ोर) 35. इब्ने अल जमाल , (अज़ क़ुद्स) 36. मजरूह (अज़मरो) 37. साहेबे अलफ़ दीनार , 38. साहेबे अल माल व अरक़ता अल बैज़ा , 39. अबू साबित (अज़ नेशापूर) 40. मोहम्मद बिन शोऐब बिन सालेह (अज़ यमन) 41. फ़ज़ल बिन यज़ीद , 42. हसन बिन फ़ज़ल , 43. जाफ़री , 44. इब्ने अल अजमी , 45. शमशाती (अज़ मिस्र) 46. साहेबे अल मौलूदैन , 47. साहेबे अल माल , 48. अबू रहाए , (अज़ नसीबैन) 50. अल हुसैनी(ग़ायतल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 121 )

ज़्यारते नाहिया और उसूले काफ़ी

कहते हैं कि इसी ज़मानाए ग़ैबते सुग़रा में नाहिया मुक़द्देसा से एक ऐसी ज़्यारत बरामद हुई है जिसमे तमाम शोहदाए करबला के नाम और उनके क़ातिलों के असमा हैं इसे ‘‘ ज़्यारते नाहिया ’’ के नाम से मौसूम किया जाता है।

इसी तरह यह भी कहा जाता है कि उसूले काफ़ी जो कि हज़रत सुक़तुल इस्लाम अल्लामा क़ुलैनी अल मतूफ़ी 328 हिजरी की 20 साला तसनीफ़ है। वह जब इमामे अस्र (अ.स.) की खि़दमत में पेश हुई तो आपने फ़रमाया ‘‘ हाज़ क़ाफ़े लाशैतना ’’ यह हमारे शियो के लिये काफ़ी है।

ज़्यारते नाहिया की तौसीक़ बहुत से उलमा ने की है जिनमें अल्लामा तबरसी और मजलिसी भी हैं। दोआए सबासब आप ही से मरवी है।

ग़ैबते कुबरा में इमाम मेहदी (अ.स.) का मरक़जी़ मुक़ाम

इमाम मेहदी (अ.स.) चुंकि उसी तरह ज़िन्दा और बाक़ी हैं जिस तरह हज़रत ईसा (अ स ) , हज़रत खि़ज्ऱ (अ.स.) हज़रत इलयास नीज़ दज्जाल , बताल , याजूज माजूज और इब्लीस लईन ज़िन्दा और बाक़ी हैं और उन सब का मरक़ज़ी मुक़ाम मौजूद है। जहां यह रहते हैं मसलन हज़रत ईसा चौथे आसमान पर(क़ुरान मजीद) हज़रत इदरीस जन्नत में(क़ुरान मजीद) हज़रत खि़ज़्र और इलयास मजमउल बहरैन यानी दरियाए फ़ारस व रोम के दरमियान पानी के क़सर में(अजाएब अल क़स अल्लामा अब्दुल वाहिद पृष्ठ 176 ) और दज्जाल व बताल तबरस्तान जज़ीराए मग़रिब में(किताब ग़ायतुल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 102 ) और याजूज माजूज बहरे रोम के अक़ब में दो पहाड़ों के दरमियान(ग़ायतल मक़सूद जिल्द 2 पृष्ठ 74 ) और इबलीस लईन , इस्तेमारे अरज़ी के वक़्त वाले पाएतख़्त मुल्तान में(किताब इरशाद उत तालेबीन अल्लामा अख़ून्द दरवीज़ा पृष्ठ 243 ) तो ला मुहाला हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) का भी कोई मरकज़ी मुक़ाम होना ज़रूरी है जहां आप तशरीफ़ फ़रमा हों और वहां से सारी काएनात में अपने फ़राएज़ अंजाम देते हों।

इसी लिये कहा जाता है कि ज़मानाए ग़ैबत में हज़रत मेहदी (अ.स.)(जज़ीराए खि़ज़रा और बहरे अबयज़) में अपनी औलाद अपने असहाब समेत क़याम फ़रमा हैं और वहीं से ब एजाज़ तमाम काम किया करते और जगह पहुँचा करते हैं। यह जज़ीराए खि़ज़रा सरज़मीने विलायत बरबर में दरमियान दरिया उन्दलिस वाक़े है यह जज़ीरह मामूर व आबाद है। इस दरिया के साहिल में एक मौज़ा भी है जो ब शक्ले जज़ीरा है उसे उन्दलिस वाले(जज़ीराए रफ़ज़ा) कहते हैं क्यों कि उसमें सारी आबादी शियों की है। इस तमाम आबादी की ख़ुराक वग़ैरा जज़ीराए खि़ज़रा से बराह बहरे अबयज़ साल में दो बार इरसाल की जाती है।

मुलाहेज़ा हो (तारीख़ जहाँ आरा , रेआज़ उल उलमा कफ़ाएतुल मेहदी , कशफ़ुल के़नाअ , रेआज़ अल मोमेनीन , ग़ाएतल मक़सूद , रिसाला जज़ीराए खि़ज़रा , बहरे अबयज़ और मजालिस अल मोमेनीन , अल्लामा नूर उल्लाह शूस्तरी व बेहारूल अनवार , अल्लामा मजलिसी किताब रौज़तुल शौहदा अल्लामा हुसैन वाज़ेए काशफ़ी पृष्ठ 439 में इमाम मेहदी (अ.स.) के अक़साए बिलादे मग़रिब में होने और उनके शहरों पर तसर्रूफ़ रखने और साहबे औलाद वग़ैरा होने का हवाला है।

इमाम शिब्लन्जी अल्लामा अब्दुल अल मोमिन ने भी अपनी किताब नूरूल अबसार के पृष्ठ 152 में इसकी तरफ़ ब हवाला किताब जामेए अल फ़नून इशारा किया है ग़यास अल ग़ास के पृष्ठ 72 में है कि यह वह दरिया है जिसके जानिबे मशरिक़ चीन , जानिबे ग़रबी यमन , जानिबे शुमाली हिन्द , जानिबे जुनूबी दरियाए मोहीत वाक़े हैं। इस बहरे अबयज़ व अख़ज़र का तूल 2 हज़ार फ़रसख़ और अर्ज़ पाँच सौ फ़रसख़ है। इसमें बहुत से जज़ीरे आबाद हैं जिनमें एक सरान्दीब भी है इस किताब के पृष्ठ 295 में है कि आप कि ‘‘ साहेबुज़्ज़मान ’’ हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) का लक़ब है। अल्लामा तबरसी लिखते हैं कि आप जिस मकान में रहते हैं उसे ‘‘ बैतुल हम्द ’’ कहते हैं।(आलामुल वुरा पृष्ठ 263 )