चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

ग़ज़वाए बनी मुस्तलक़ और वाकिए अफ़क़

आं हज़रत (स अ व व ) को इत्तेला मिली कि क़बीलाए मुस्तलक़ मदीने पर हमला करना चाहता है। आपने उसे रोकने के लिये 2 शाबान 5 हिजरी को इनकी तरफ़ बढ़े। हज़रत अली (अ.स.) अलमदारे लशकर थे। घमासान की जंग हुई , मुसलमान कामयाब हुए। वापसी के मौक़े पर हज़रत आयशा इसी जंगल में रह गईं। जो बाद में एक शख़्स सफ़वान इब्ने माअतल के साथ ऊँट पर बैठ कर आं हज़रत (स अ व व ) तक पहुँची। आं हज़रत (स अ व व ) ने इसे महसूस किया और लोगों ने शुकूक का चरचा कर दिया। बारवायत तारीख़े आइम्मा आं हज़रत (स अ व व ) को भी शक हो गया था और आप कुछ समय तक कशीदा (नाराज़) रहे फिर फ़रमाया मुझे जहां तक मालूम है मैं अपनी बीवी में सिवाय नेकी और भलाई कुछ नहीं पाता और जिस मर्द यानी सफ़वान इब्ने माअतल के बारे में जो लोग चरचा करते हैं मैं इसमें भी किसी तरह की ख़राबी नहीं पाता , वह बे शक मेरे घर में आमदो रफ़्त रखता था मगर हमेशा मेरे हुज़ूर में।(उम्मेहात अल उम्मा पृष्ठ 166 )

इसी 5 हिजरी में ग़ज़वाए बनी क़ुरैज़ा , सरया , सैफ़ अल बहर , ग़ज़वए बनी अयान भी वाक़े हुए हैं और तयम्मुम का हुक्म भी नाज़िल हुआ है और बक़ौल मुहीउद्दीन इब्ने अरबी इसी 5 हिजरी में सफ़रे ख़न्दक़ के मौक़े पर आं हज़रत (स अ व व ) ने ख़ुद अज़ान में हय्या अला ख़ैरिल अमल का हुक्म दिया। किबरियत अहमर बर हाशिया अल वियाक़ियत वल जवाहर , जिल्द 1 पृष्ठ 43 व मोअल्लिमे तरजुमा मुस्लिम पृष्ठ 528 व कनज़ुल आमाल जिल्द 4 पृष्ठ 226 वाज़े हो कि हय्या अला ख़ैरिल अमल रसूले करीम (स अ व व ) की तशकीले अजां का जुज़ है लेकिन हज़रत उमर ने उसे अपने अहद में अज़ान से ख़ारिज (निकाल) कर दिया। मुलाहेज़ा हो(नील अल वतारा , इमामे शोकानी जिल्द 1 पृष्ठ 339 व सही मुस्लिम मुतारज्जिम जिल्द 2 पृष्ठ 10 )

6हिजरी के अहम वाक़ेयात

सुलैह हुदैबिया ज़ीक़ाद 6 हिजरी मुताबिक़ 628 ई 0 में आं हज़रत (स अ व व ) हज के इरादे से मक्के की तरफ़ चले , कु़रैश को ख़बर हुई तो जाने से रोका , हज़रत एक कुएं पर जिसका हुदैबिया नाम था रूक गए और असहाब से जां निसारी की बैअत ली। इसी को बैत अल रिज़वान कहते हैं और बैअत करने वालों को असहाबे सुमरा से ताबीर किया जाता है। क़ुरैश के ऐलची उरवा ने कहा कि इस साल हज से बाज़ आएं और यह भी कहा कि मैं आपके हमराह ऐसे लोग देख रहा हूँ जो ओबाश हैं और जंग से भाग निकलेंगे यह सुन कर हज़रत अबू बकर ने बज़रआलात चूसने की गाली दी। इसके बाद आं हज़रत (स अ व व ) बारवायत इब्ने असीर हज़रत उमर को क़ुरैश के पास इस लिये बेजना चाहा कि वह उन्हें समझा बुझा कर सुलह करने पर राज़ी कर लें लेकिन वह ना गए और हज़रत उस्मान को भेजने की राय दी हज़रत उस्मान जो अबू सुफ़ियान के भतीजे थे इनके पास गए इनकी अच्छी तरह आव भगत हुई लेकिन आखि़र में गिरफ़्तार हो गए और जल्दी छूट कर चले गए। आखि़र अम्र क़ुरैश की तरफ़ से पैग़ामे सुलह लाया और हज़रत ने सुलह कर ली। सुलह नामा हज़रत अली (अ.स.) ने लिखा है। तरफ़ैन से शाहदते ले ली गईं। इस सुलह के बाद क़ुरैश बे खटके मुसलमान होने लगे और मक्के में बिला मज़ाहमत क़ुरान पढ़ा जाने लगा क्यों कि अमन क़ाएम हो गया और रसूल (स अ व व ) का नाम लेना जुर्म न रहा। एक दूसरे से मिलने लगे और इस्लाम का नया दौर शुरू हो गया। (तारीखे़ ख़मीस जिल्द 2 पृष्ठ 15 और दुर्रे मन्शूर जिल्द 6 पृष्ठ 77 में है कि सुलैह हुदैबिया के बाद हज़रत उमर ने कहा कि मोहम्मद (स अ व व ) की नबूवत में जैसा मुझे आज शक हुआ है कभी नहीं हुआ था। यह उन्होंने इस लिये कहा कि वह सुलह पर राज़ी न थे। इब्ने ख़ल्दून का बयान है कि इनके इस तरज़े अमल से हज़रत रसूले ख़ुदा (स अ व व ) सख़्त रंजीदा हुए।(तारीखे़ इब्ने ख़ल्दून पृष्ठ 361 )

तारीख़े इस्लाम एहसान उल्लाह अब्बासी में है कि हुदैबिया से वापस होते हुए रास्ते मे सूरा ए इन्ना फ़तैहना लका फ़तैहना मुबीनन नाज़िल हुआ। इसी साल ग़ज़वह ज़ी क़रद , सरया दो मताउल जिन्दल , सरया फ़िदक़ , सरया वादिउल क़ुरा और सरया अरनिया भी वाक़े हुये हैं।

इसी 6 हिजरी में हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) ने ज़ैद बिन हारेसा की ज़ेरे सर करदगी चालीस आदमियों की एक जमाअत हमूम की तरफ़ रवाना की जिसने क़बीलाए मुज़ीना की औरत हलीमा और उसके शौहर को गिरफ़्तार कर के आपकी खि़दमत में हाज़िर किया आपने मियां बीवी दोनों को आज़ाद कर दिया।(तारीख़े कामिल बिन असीर जिल्द 2 पृष्ठ 78 व अल रक़ फ़िल इस्लाम , लेखक अतीक़ुर रहमान उस्मानी जिल्द 1 पृष्ठ 107 )

7हिजरी के अहम वाक़ेयात

जंगे ख़ैबर ख़ैबर मदीनए मुनव्वरा से तक़रीबन 50 मील के फ़ासले पर यहूदियों की बस्ती थी। इसके बाशिन्दे यूंही इस्लाम के ऊरूज व इक़बाल से जल भुन रहे थे कि मदीने में जिला वतन यहूदियों ने उनसे मिल कर उनके हौसले बलन्द कर दिये उन्होंने बनी असद और बनी ग़तफ़ान के भरोसे पर मदीने को तबाह व बरबाद कर डालने का मन्सूबा बांधा और उसके लिये मुकम्मल फ़ौजे तैय्यार लीं। जब आं हज़रत (स अ व व ) को उनके अज़मो इरादे की ख़बर हुई तो आप 14 सफ़र 7 हिजरी को चौदह सौ ( 1400) पैदल और दो सौ ( 200) सवार ले कर फ़ितने को ख़त्म करने के लिये मदीने से बरामद हुए और ख़ैबर में पहुँच कर क़िला बन्दी कर ली और मुसलमान उन्हें घेरे में ले कर बराबर लड़ते रहे लेकिन क़िलै क़मूस फ़तेह न हो सका।

तारीख़े तबरी व ख़मीस और शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 85 में है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने क़िला फ़तेह करने के लिये हज़रत उमर को भेजा फिर हज़रत अबू बकर को रवाना किया उसके बाद फिर हज़रत उमर को हुक्मे जिहाद दिया लेकिन यह हज़रात नाकाम वापस आये। (तारीख़े तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 93 में है कि तीसरी मरतबा जब अलमे इस्लाम पूरी हिफ़ज़त के साथ आं हज़रत (स अ व व ) की खि़दमत में पहुँच रहा था रास्ते में भागते हुए लश्कर वालों ने सिपहे सालार की बुज़दिली पर इजमा कर लिया और सालारे लश्कर इन लशकरियों को बुज़दिल कह रहा था। इन हालात को देखते हुए आं हज़रत (स अ व व ) ने फ़रमाया! कल मैं अलमे इस्लाम ऐसे बहादुर को दूंगा जो मर्द होगा और बढ़ बढ़ कर हमले करने वाला होगा और किसी हाल में भी मैदाने जंग से न भागे गा। वह ख़ुदा व रसूल को दोस्त रखता होगा और खुदा व रसूल उसको दोस्त रखते होगें और वह उस वक़्त तक मैदान से न पलटे गा जब तक ख़ुदा वन्दे आलम उसके दोनों हाथों पर फ़तेह न दे देगा।

पैग़म्बरे इस्लाम (स अ व व ) के इस फ़रमाने से अहले इस्लाम में एक ख़ास कैफ़ियत पैदा हो गई और हर एक के दिल में यह उमंग आ मौजूद हुई कि कल अलमे इस्लाम किसी सूरत से मुझे ही मिलना चाहिये। (तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 93 में है कि हज़रत उमर कहते हैं कि मुझे सरदारी का हैसला आज के रोज़ से ज़्यादा कभी न हुआ था। मुवर्रिख़ का बयान है कि तमाम असहाब ने बहुत ही बेचैनी में रात गुज़ारी और सुबह होते ही अपने को आं हज़रत (स अ व व ) के सामने पेश किया। असहाब को अगरचे उम्मीद न थी लेकिन बताये हुए सिफ़ात का तक़ाज़ा था कि अली (अ.स.) को आवाज़ दी जाए , कि नागाह ज़बाने रिसालत (स अ व व ) से अयना अली इब्ने अबू तालिब की आवाज़ बलन्द हुई , लोगों ने हुज़ूर वह तो आशोबे चश्म में मुब्तिला हैं , आ नहीं सकते। हुक्म हुआ कि जा कर कहो कि रसूले ख़ुदा (स अ व व ) बुलाते हैं। पैग़ाम पहुँचाने वाले ने रसूल (स अ व व ) की आवाज़ हज़रत अली (अ.स.) के कानों तक पहुँचाइ और आप उठ ख़ड़े हुए। असहाब के कंधों का सहारा ले कर आं हज़रत (स अ व व ) की खि़दमत में हाज़िर हुए। आपने अली (अ.स.) का सर अपने ज़ानू पर रखा और बुख़ार उतर गया। लुआबे दहन लगाया आशोबे चश्म जाता रहा। हुक्म हुआ अली मैदाने जंग में जाओ और क़िलाए क़मूस को फ़तेह करो। अली (अ.स.) ने रवाना होते ही पूछा हुज़ूर ! कब तक लडूँ़ और कब वापस आऊँ , फ़रमाया जब तक फ़तेह न हो।

हुक्मे रसूल (स अ व व ) पा कर अली (अ.स.) मैदान में पहुँचे। पत्थर पर अलम लगाया। एक यहूदी ने पूछा आपका नाम क्या है फ़रमाया अली इब्ने अबी तालिब उसने अपनों से कहा कि(तौरैत) की क़सम यह शख़्स ज़रूर जीत लेगा क्यों कि इस क़िले के फ़ातेह के जो सिफ़ात तौरैत में बयान किये गये हैं वह बिल्कुल सही हैं इसमें सब सिफ़ात पाए जाते हैं। अल ग़रज़ हज़रत अली (अ.स.) से मुक़ाबले के लिये लोग निकल ने लगे और फ़ना के घाट उतर ने लगे। सब से पहले हारिस ने जंग आज़माई की और एक दो वारों की रद्दो बदल में ही वासिले जहन्नम हो गया। हारिस चूंकि मरहब का भाई था इस लिये मरहब ने जोश में आ कर रजज़ कहते हुए आप पर हमला किया। आपने इसके तीन भाल वाले नैज़े के वार को रोक कर के ज़ुलफ़ेक़ार का ऐसा वार किया कि इससे आहनी खोद , सर और सीने तक दो टुकड़े हो गये। मरहब के मरने से अगरचे हिम्मतें ख़त्म हो गईं थीं लेकिन जंग जारी रही और अन्तर रबी यासिर जैसे पहलवान मैदान में आते और मौत के घाट उतरते रहे। आखि़र में भगदड़ मच गई। मुवर्रेख़ीन का कहना है कि जंग के बीच में एक शख़्स ने आपके हाथ पर एक ऐसा हमला किया कि सिपर छूट कर ज़मीन पर गिर गई और एक दूसरा यहूदी उसे ले भागा। हज़रत को जलाल आ गया आप आगे बढ़े और क़िला ख़ैबर के आहनी दर पर बायाँ हाथ रख कर ज़ोर से दबा दिया। आपकी उंगलियां उसकी चौखट में इस तरह दर आईं जैसे मोम में लौहा दर आता है। इसके बाद आपने झटका दिया और ख़ैबर के क़िले का दरवाज़ा जिसे चालीस आदमी हरकत न दे सकते थे , जिसका वज़न बरवायत मआरिज अल नबूवत आठ सौ मन और बरवायत रौज़तुल पृष्ठ तीन हज़ार मन था उख़ड़ कर आपके हाथ में आ गया और आपके इस झटके से क़िले में ज़लज़ला आ गया और सफ़ीहा बिन्ते हई इब्ने अख़्तब मुहँ के बल ज़मीन पर गिर पड़े। चूंकि यह अमल इन्सानी ताक़त के बाहर था इस लिये आपने फ़रमाया मैंने दरे क़िला ए ख़ैबर को कू़व्वते रब्बानी से उखाड़ा है। उसके बाद आपने उसे सिपर बनाकर जंग की और इसी दरवाज़े को पुल बना कर लशकरे इस्लाम को उस पर उतार लिया। मदारिज अल नबूवा जिल्द 2 पृष्ठ 202 में है कि जब मुकम्मल फ़तेह के बाद आप वापस तशरीफ़ ले गये तो पैग़म्बरे इस्लाम (स अ व व ) आपके इस्तेक़बाल के लिये निकले और अली (अ.स.) को सीने से लगा कर पेशानी पर बोसा दिया और फ़रमाया कि ऐ अली (अ.स.) खुदा और रसूल (स अ व व ) जिब्राईल व मिकाईल बल्कि तमाम फ़रिश्तें तुम से राज़ी व ख़ुश हैं। अल्लामा शेख़ ख़न्दूज़ी किताब नियाबुल मोअदता में लिखते हैं कि आं हज़रत (स अ व व ) ने यह भी फ़रमाया था कि ऐ अली (अ.स.) तुम्हें ख़ुदा ने वो फ़जी़लत दी है कि अगर मैं उसे बयान करता तो लोग तुम्हारी ख़ाके क़दम तबर्रूक समझ कर उठा कर रखते। तारीख़ में है कि फ़तेह खै़बर के दिन हुज़ूर (स अ व व ) को दोहरी ख़ुशी हुई थी। एक फ़तेह ख़ैबर की और दूसरी हबश से मराजेअते जाफ़रे तैयार की। कहा जाता है कि इसी मौक़े पर एक औरत जै़नब बिन्ते हारिस नामी ने आं हज़रत (स अ व व ) को भुने हुये गोश्त में ज़हर दिया था और इसी जंग से वापसी में सहाबा के मक़ाम पर रजअते शम्स हुई थी।(शवाहिद अल नबूवतः पृष्ठ 86, 87 )

हज़रत अली (अ.स.) के लिये रजअते शम्स

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि जब आं हज़रत (स अ व व ) लश्कर समेत ख़ैबर से वापसी में मक़ामे वादी अल क़रा की तरफ़ जाते हुए मक़ामे सहाबा में पहुँचे और वहां ठहरे हुए थे तो एक दिन आप पर वही के नुज़ूल का सिलसिला ऐेसे वक़्त में शुरू हुआ कि सूरज डूबने से पहले ख़त्म न हुआ। हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) हज़रत अली (अ.स.) की गोद में सर रखे हुए थे। जब वही का सिलसिला ख़त्म हुआ तो आं हज़रत (स अ व व ) ने हज़रत अली (अ.स.) से पूछा कि ऐ अली तुम ने नमाज़े अस्र भी पढ़ी या नहीं ? अर्ज़ की , मौला ! नमाज़ कैसे पढ़ता , आपका सरे मुबारक ज़ानू पर था और वही का सिलसिला जारी था। यह सुन कर हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) ने दुआ के लिये हाथ बलन्द किये और कहा कि बारे इलाहा अली तेरी और तेरे रसूल (स अ व व ) की इताअत में था इसके लिये सूरज को पलटा दे ताकि यह नमाज़े अस्र अदा कर ले चुनान्चे सूरज पलट आया और अली (अ.स.) ने नमाज़े अस्र अदा की।(हबीब असीर , रौज़ातुल सफ़ा , रौजा़तुल अहबाब , शरहे शफ़ा क़ाज़ी अयाज़ , तारीख़े ख़मीस) बाज़ रवायात में है कि रसूले ख़ुदा (स अ व व ) ने अली (अ.स.) से फ़रमाया कि सूरज को हुक्म दो वह पलटे गा चुनान्चे अली (अ.स.) ने हुक्म दिया और सूरज पलट आया। अल्लामा अब्दुल हक़ मोहद्दिस देहलवी लिखते हैं यह हदीस रजअते शम्स सही है सुक़्क़ा रावियों से मरवी है। अल्लामा इक़बाल फ़रमाते हैं।

आं के दर आफ़ाक़ , गरद्द बूतुराब।

बाज़ गर दानद ज़े मग़रिब आफ़ताब।।

तबलीगी ख़ुतूत

हज़रत को अभी सुलेह हुदयबिया के ज़रिये से सुकून नसीब हुआ ही था कि आपने सात 7 हिजरी में एक मोहर बनवाई जिस पर मोहम्मद रसूल अल्लाह कन्दा कराया। इसके बाद दुनिया के बादशाहों को ख़त लिखे। इन दिनों अरब के इर्द गिर्द चार बड़ी सलतनतें क़ायम थीं।

1. हुकूमते ईरान जिसका असर मध्य ऐशिया से ईराक़ तक फैला हुआ था।

2. हुकूमते रोम जिसमें ऐशियाए कोचक , फ़िलिस्तीन , शाम और यूरोप के बाज़ हिस्से शामिल थे।

3. मिस्र।

4. हुकूमते हबश जो मिस्री हुकूमत के जुनूब से ले कर बहरे कुलजुम के मग़रबी साहिल पर हिजाज़ व यमन की तरह क़ायम थी और उसका असर सहराए आज़म अफ़रीक़ा के तमाम इलाक़ों पर था।

हज़रत ने बादशाहे हबश नजाशी , शाहे रोम , क़ैसर हरकुल , गर्वरने मिस्र जरीह इब्ने मीना क़िब्ती उर्फ़ मक़वुक़श बादशाहे इरान ख़ुसरो परवेज़ और गर्वनर यमन बाज़ान , वाली दमिश्क हारिस वग़ैरह के नाम ख़ुतूत रवाना फ़रमाये।

आपके ख़ुतूत का बादशाहों पर अलग अलग असर हुआ। नजाशी ने इस्लाम क़ुबूल कर लिया। शाहे इरान ने आपका ख़त पढ़ कर ग़ुस्से के मारे ख़त के टुकड़े कर दिये और ख़त ले कर आने वाले को निकाल दिया और गर्वनरे यमन को लिखा कि मदीने के दीवाने आं हज़रत (स अ व व ) को गिरफ़्तार कर के मेरे पास भेज दे। उसने दो सिपाही मदीने भेजे ताकि हुजू़र को गिरफ़्तार करें। हज़रत (स अ व व ) ने फ़रमाया , जाओ तुम क्या गिरफ़्तार करो गे , तुम्हें ख़बर भी है तुम्हारा बादशाह इन्तेक़ाल कर गया। सिपाही जो यमन पहुँचे तो सुना की शाहे ईरान मर चुका है। आपकी इस ख़बर देने से बहुत से काफ़िर मुसलमान हो गये। क़ैसरे रोम ने आपके ख़त की ताज़िम की। मिस्र के गर्वनर ने आपके क़ासिद की बड़ी आवभगत की और बहुत से तोफ़ो समेत उसे वापस कर दिया। इन तोहफ़ो में मारिया क़िब्तिया (आं हज़रत की पत्नी) और उनकी बहन शीरीं (जौजा ए हस्सान बिन साबित) एक दुलदुल नामी घोड़ा हज़रत अली (अ.स.) के लिये , याफ़ूर नामी दराज़ गोश माबूर नामी ख़्वाजा सरा शामिल थे।

हुसूले फ़िदक़

फ़िदक ख़ैबर के इलाक़े में एक क़रिया (गांव) है। फ़तेह ख़ैबर के बाद आं हज़रत (स अ व व ) ने अली (अ.स.) को फ़ेदक वालों की तरफ़ भेजा और हुक्म दिया कि उन्हें दावते इस्लाम दे कर मुसलमान करें। इन लोगों ने इस बात पर सुलह करनी चाही कि आधी ज़मीन आं हज़रत को दे दें और आधी पर ख़ुद क़ाबिज़ रहें। हज़रत ने उसे मंज़ूर फ़रमाया लिया। तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 95 में है कि चूंकि यह फ़ेदक बग़ैर जंगों जेदाल मिला था इस लिये आं हज़रत (स अ व व ) की मिलकियत क़रार पाया। दुर्रे मन्शूर जिल्द 7 पृष्ठ 177 में है कि फ़ेदक के क़ब्ज़े में आते ही हुक्मे ख़ुदा नाज़िल हुआ वात जिल क़ुरबा हक़्क़ा अपने क़राबत दार को हक़ दे दो। शरह मवाक़िफ़ के पृष्ठ 735 में है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने आताहा फ़ेदक तख़लता फ़ातमा ज़ैहरा (स अ व व ) को बतौरे अतिया फ़ेदक़ दे दिया। रौज़तुल पृष्ठ जिल्द 2 पृष्ठ 377, मआरिज अल नबूवता पैरा 4 पृष्ठ 221 में है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने तहरीरी तसदीक़ नामा यानी बज़रिये दस्तावेज़ जायदाद फ़ेदक़ जनाबे सैय्यदा (स अ व व ) के नाम हिबा कर दी। यही कुछ सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 21, 22, वफ़ा अल वफ़ा जिल्द 2 पृष्ठ 63, फ़तावे अज़ीजी़ पृष्ठ 143, रौज़ातुल पृष्ठ जिल्द 2 पृष्ठ 135 जिल्द 1 पृष्ठ 85 मारिज अल नबूवत मुईन कशफ़ी रूकन 4 पृष्ठ 221, मोअजम अल बलदान में इस ज़मीन को बहुत उपजाऊ बताया गया है और कहा गया है कि यह ज़मीन बहुत से चश्मों से सेराब होती थी। इसमें काफ़ी बागा़त भी थे। अबू दाऊद के किताब ख़ेराज में इसकी आमदनी 4000, चार हज़ार दीनार (अशरफ़ी) सलाना लिखी है।

एक वाकेया

इसी साल मक़ामे सहाबा से वापसी में ग़ज़वा वादी अल क़ुरा वाक़े हुआ। यहूदियों से लड़ाई हुई और बहुत सा माले ग़नीमत हाथ आया। इसी साल मुसलमानों के मशहूर हदीस गढ़ने वाले अबू हुरैरा मुसलमान हुए। यह इस्लाम लाने से पहले यहूदी थे। 3 साल अहदे रिसालत में ज़िन्दगी बसर की। आपने 5304 पांच हज़ार तीन सौ चार हदीसे नक़्ल की हैं। शरह मुस्लिम नूरी पृष्ठ 377, सही मुस्लिम जिल्द 2 पृष्ठ 509, अलफ़ारूक़ जिल्द 2 पृष्ठ 105, मीज़ान अल क़ूबरा जिल्द 1 पृष्ठ 71 में है कि अब्दुल्लाह बिन उमर हज़रत आयशा और हज़रत अली (अ.स.) इन्हें झूठा जानते थे।

8हिजरी के अहम वाक़ेयात

जंगे मौता

जंगे मौता उस मशहूर जंग को कहते हैं जिसमें इस्लाम के तीन सरदार एक के बाद एक शहीद हुए। जिनमें विशेष स्थान जाफ़रे तैयार को हासिल था। मौता यह शाम के इलाक़े बल्क़ा का एक क़रिया है। इस जंग का वाके़या यह है कि हुज़ूर (स अ व व ) ने इस्लामी दावत नामा दे कर बादशाहों और धनी लोगों की ही तरह शाम के ईसाई हाकिम शरजील बिन अम्र ग़सानी के पास भी भेजा। उसने हुज़ूर (स अ व व ) के का़सिद हारिस इब्ने अमीर को मौता के मक़ाम पर क़त्ल कर दिया चूंकि उसने इस्लामी तौहीन के साथ साथ दुनिया के बैनुल अक़वामी क़ानून के खि़लाफ़ किया था लेहाज़ा आँ हज़रत (स अ व व ) ने तीन हज़ार की फ़ौज दे कर अपने ग़ुलाम ज़ैद को रवाना किया और यह प्रोग्राम बना दिया कि अगर यह क़त्ल हो जायें तो जाफ़रे तैयार और अगर यह क़त्ल हो जायें तो उनके बाद अब्दुल्लाह इब्ने रवाह अलमदारी करें (यानी सरदारी करें) मैदान में पहुँच कर मालूम हुआ कि मुक़ाबले के लिये एक लाख का लश्कर आया है। हुक्मे रसूल (स अ व व ) था लेहाज़ा हज़रते ज़ैद ने जंग की और शहीद हो गये। हज़रत जाफ़र ने अलम संभाला और बहुत ही बहादुरी और बे जिगरी के साथ वह लड़ने लगे फ़ौज मे हलचल डाल दी लेकिन सीने पर 90 ज़ख़्म खा कर ताब न ला सके और ज़मीन पर आ कर गिरे। उनके बाद अब्दुल्लाह इब्ने रवाह ने अलम संभाला और जंग में मशग़ूल हुये , आखि़रकार उन्होंने भी शहादत पाई। फिर और एक बहादुर ने अलम संभाला। कामयाबी के बाद मदीना वापसी हुई। मुसलमानों ख़ास कर आं हज़रत (स अ व व ) को इस जंग में तीन सिपाह सालारों के क़त्ल होने का सख़्त मलाल हुआ। जाफ़रे तैयार के लिये आपने फ़रमाया ख़ुदा ने उन्हें जन्नत में परवाज़ के लिये दो ज़मर्रूद के पर अता किये हैं। मुवर्रेख़ीन का कहना है कि इसी लिये आपको जाफ़रे तैयार कहा जाता है। तारीख़े कामिल में है कि आं हज़रत (स अ व व ) जब जाफ़र के घर गये तो उनकी बीवी को रोता देख कर अपने घर पहुँचे तो फ़ातेमा (स अ व व ) को रोते देखा। हुज़ूर ने सबको तसल्ली दी और जाफ़रे तैयार के घर खाना पकवा कर भिजवाया। यह जंग जमादिल अव्वल 8 हिजरी में वाक़े हुई।

ज़ातुल सलासिल

इसी जमादिल अव्वल 8 हिजरी में यह सरिया (जंग) ज़ातुल सलासिल भी वाक़े हुई। आं हज़रत (स अ व व ) ने तीन सौ सिपाहीयों के साथ अम्र आस को क़बीलाए फ़ज़ाआ के सर कुचलने के लिये भेजा मगर वह कामयाब न हो सके तो अबू उबैदा बिन जर्राह को रवाना फ़रमाया उन्होंने कामयाबी हासिल की।

मिम्बरे नबवी की इब्तेदा

अब से पहले आं हज़रत (स अ व व ) के लिये मस्जिद में कोई मिम्बर न था। आप सुतून (ख्म्बे) से टेक लगा कर ख़ुतबा दिया करते थे। आपको लिये आयशा अन्सारिया ने तीन दरजे का मिम्बर अपने रूमी ग़ुलाम बाक़ूम नामी से जो बढ़ई का काम जानता था बनवा दिया।

फ़तेह मक्का

सुलैह हुदैबिया की वजह से 10 साल तक आपसी जंगों जेदाल मना होने के बावजूद क़ुरैश के दुश्मन क़बिले बनू बक्र ने आं हज़रत (स अ व व ) के दुश्मन क़बीले बनू ख़ज़ाआ पर चढ़ाई कर दी और क़ुरैश की मदद से उन्हें तबाह व बरबाद कर डाला। आखि़रकार हालात से मजबूर हो कर बनी ख़ज़ाआ ने आं हज़रत (स अ व व ) से मद्द मांगी। आं हज़रत (स अ व व ) ने 10 हज़ार का लश्कर तैयार कर के मक्के का इरादा किया। अबू सुफ़ियान ने जब यह तैयारी देखी तो यह दरख़्वास्त पेश करने के लिये कि सुलह नामा हुदैबिया की तजदीद (रीनीवल) कर दी जाय। मदीने आया और अपनी बेटी उम्मे हबीब रसूल (स अ व व ) की पत्नी के घर गया उन्होंने यह कह कर उसे बिस्तरे रसूल (स. अ.)से हटा दिया कि तू काफ़िरो मुशरिक है। (अबुल फ़िदा) फिर आं हज़रत (स अ व व ) के पास गया , आपने ख़ामोशी इख़्तेयार की। फिर हज़रत अली (अ.स.) से मिला। उन्होंने भी मुंह न लगाया। फिर हज़रत फातेमा (स अ व व ) के पास पहुँचा और इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) के वास्ते से अमान मांगी उन्होंने भी कोई सहारा न दिया। इसके बाद मस्जिद में तजदीदे सुलोह का ऐलान कर के वापस चला गया। हज़रत मोहम्मद (स अ व व ) ने पूरे पूरे ध्यान के साथ जंग की ख़ुफ़िया तैयारियां कर लीं मगर यह न ज़ाहिर होने दिया कि किस तरफ़ जाने का इरादा है। इसी ख़ुफ़िया तैयारी की इस्कीम के तहत इस्कीम के तहत आपने मक्के आना जाना बिल्कुल बन्द कर दिया था। आपका ख़्याल था कि अगर मक्के वालों को वक़्त से पहले यह ख़बर मिल जायेगी तो कामयाबी मुश्किल हो जायेगी। मगर एक चुग़लख़ोर सहाबी हातिब इब्ने बलतअः ने जिसके बच्चे मक्के में थे , एक औरत के ज़रिये से हमले का मुकम्मल हाल लिख भेजा। वह तो कहिये हज़रत को इत्तेला मिल गई आपने अली (अ.स.) को भेज कर ख़त वापस करा लिया।

अलग़रज़ 10 रमज़ान 8 हिजरी को आप अन्जान रास्तों से अचानक मक्के पहुँचे और मक्के से चार फ़रसक़ की दूरी पर सरा नतहरान पर पड़ाओ डाला। लश्कर की कसरत का चरचा हो गया। अबू सुफ़ियान हज़रते अब्बास से मशविरे से मुसलमान हो गया। आं हज़रत (स अ व व ) ने उसके लिये यह छूट कर दी कि जो उसके घर में फ़तेह मक्का के मौक़े पर पनाह ले उसे छोड़ दिया जाय। अबू सुफ़ियान मक्के वापस गया और उसने आं हज़रत (स अ व व ) की तरफ़ से ऐलान कर दिया कि जो मक्के में मेरे मकान में पनाह लेगा महफ़ूज़ रहेगा। जो हथियार लगाये बग़ैर सामने आयेगा उस पर हाथ न उठाया जायेगा। उसके बाद जंग शुरू हुई और थोड़ी सी रूकावट के बाद मक्के पर क़ब्ज़ा हो गया। सरदारे लशकर हज़रत अली (अ.स.) थे। आं हज़रत (स अ व व ) क़सवा नामी ऊँट पर सवार हो कर मक्के में दाखि़ल हुए और ज़ुबैर के लगाए हुए इस्लामी झंडे के क़रीब जा कर उतरे। ख़ेमें लगाए गए। आपने क़ुरैश से फ़रमाया बताओ तुम्हारे साथ क्या सुलूक करूं। सबने कहा आप करीम इब्ने करीम हैं हमें माफ़ फ़रमायें। आपने माफ़ी दी और आप सात मरतबा तवाफ़ के बाद दाखि़ले हरमे काबा हो गये और उन तमाम बुतों को अपने हाथ से तोड़ा जो नीचे थे और ऊंचे बुतों को तोड़ने के लिये हज़रत अली (अ.स.) को अपने कंधे पर चढ़ाया। अली (अ.स.) ने तमाम बुतों को तोड़ कर ज़मीन पर फेंक दिया गोया पत्थर के ख़ुदाओं को मिट्टी मे मिला दिया। मुवर्रेख़ीन का बयान है कि जिस जगह मोहरे नबूवत थी और जहां मेराज की शब रसूल (स अ व व ) के कांधे पर हाथ रखा हुआ महसूस हुआ था , उसी जगह अली (अ.स.) ने पांव रख कर बुतों को तोड़ा। उनका यह भी बयान है कि हज़रत अली (अ.स.) को रसूल (स अ व व ) ने अपनी पीठ पर सवार किया और जिब्राईल (अ.स.) ने बुत तोड़ने के बाद अपने हाथों से उतारा।(तारीख़े ख़मीस जिल्द 2 पृष्ठ 92 ज़िन्देगानी मोहम्मद पृष्ठ 77, अजायब अल क़स्स पृष्ठ 278 में है कि काबे में तीन सौ साठ ( 360 ) बुत थे।

दावते बनी ख़ज़ीमा

मक्काए मोअज़्ज़ेमा फ़तेह हो जाने के बाद आं हज़रत (स अ व व ) ने कुछ लोगों को तबलीग़े इस्लाम के लिये क़रीब की जगहों पर भेजा। जिन्में ख़ालिद बिन वलीद भी थे। यह लोग जब बनी ख़ज़ीमा के पास पहुँचे तो उन्होंने अपने मुसलमान होने का यक़ीन दिलाया लेकिन इब्ने वलीद ने कोई परवाह न की और उन पर ग़ैर इख़लाकी़ ज़ुल्म किया। आं हज़रत (स अ व व ) ने जब यह ख़बर सुनी तो आपने अपने बरी उज़ ज़िम्मा होने का ऐलान किया और हज़रत अली (अ.स.) को भेज कर हर क़िस्म का तावान अदा किया और ख़ूं बहा दिया।(तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 124 )

जंगे हुनैन

हुनैन मक्के से तीन मील के फ़ासले पर ताएफ़ की तरफ़ एक वादी का नाम है। फ़तेह मक्का की ख़बर से बनी हवाज़न , बनी सक़ीफ़ , बनी हबशम और बनी सअद ने आपस में फ़ैसला किया कि सब मिल कर मुसलमानों से लड़ें। उन्होंने अपना सरदारे लशकर मालिक इब्ने औफ़ नफ़री और अलमदार अबू जरवल को क़रार दिया और वह अपने साथ दरीद इब्ने सम्मा नमी 120 साल का तजरूबे कार सिपाही मशवेरे के लिये पांय हज़ार सिपहियों का लशकर ले कर हुनैन और ताएफ़ के बीच मक़ामे अवतास पर जमा हो गये। जब आं हज़रत (स अ व व ) को इस इजतेमा की ख़बर मिली तो आप बारह हज़ार ( 12,000) या ( 16, 000) सोलह हज़ार का लशकर ले कर जिसमें मक्के के दो हज़ार ( 2000) नौ मुस्लिम भी शामिल थे। 6 शव्वाल 8 हिजरी को दुलदुल पर सवार मक्के से निकल पड़े। हज़रत अली (अ.स.) हमेशा की तरह अलमदारे लशकर थे। मैदान में पहुँच कर हज़रत अबू बकर ने कहा कि हम लोग इतने ज़्यादा हैं कि आज शिकस्त नहीं खा सकते। मैदाने जंग में इस तरह के मंसूबे बांधे जा रहे थे कि वह दुश्मन जो पहाड़ों में छुपे हुये थे निकल आये और तीरों नैजो और पत्थरों से ऐसे हमले किये कि बुज़दिलों की जान के लाले पड़ गये। सब सर पर पांव रख कर भागे। किसी को रसूले ख़ुदा (स अ व व ) की ख़बर न थी , वह पुकार रहे थे। ऐ बैअते रिज़वान वालों ! कहां जा रहे हो , लेकिन कोई न सुनता था। ग़रज़ कि ऐसी भगदड़ मची कि उसूले जंग शुरू होने से पहले ही हज़रत अली (अ स ) , हज़रते अब्बास , इब्ने हारिस और इब्ने मसूद के अलावा सब भाग गये।(सीरते हलबिया जिल्द 3 पृष्ठ 109 ) इस मौक़े पर अबू सुफ़ियान कह रहा था कि अभी क्या है मुसलमान समन्दर पार भागें गे।

हबीब अल सियर और रौज़ातुल अहबाब में है कि सब से पहले ख़ालिद इब्ने वलीद भागे उनके पीछे क़ुरैश के नौ मुस्लिम चले , फिर एक एक कर के महजिर व अन्सार ने राहे फ़रार इख़्तेयार की। इसी दौरान में दुश्मनों ने आं हज़रत (स अ व व ) पर हमला कर दिया जिसे जां निसारों ने रद्द कर दिया। हालात की नज़ाकत को देख कर रसूल अल्लाह (स अ व व ) खुद लड़ने के लिये आगे बढ़े मगर हज़रते अब्बास ने घोड़े की लजाम थाम ली , और मुसलमानो को पुकारा , आप की आवाज़ पर नौ सौ ( 900) मुसलमान वापस आ गये और दुश्मन भी सब के सब मुक़ाबिल हो गये। घमासान की जंग शुरू हुई , अबू जरवल अलमदारे लशकर ने मुक़ाबिल तलब किया। हज़रत अली (अ.स.) अलमदारे लशकरे इस्लाम मुक़ाबले में तशरीफ़ लाये और एक ही वार में उसे फ़ना के घाट उतार दिया। मुसलमानों के हौसले बढ़े और कामयाब हो गये। सीरत इब्ने हश्शाम , जिल्द 2 पृष्ठ 261 में है कि इस जंग में चार मुसलमान और 70 काफ़िर क़त्ल हुए जिनमें से चालिस 40 हज़रते अली (अ.स.) को हाथ से मारे गये। इस जंग में ग़ैबी इमदाद मिली थी जिसका ज़िक्र क़ुरआने मजीद में है। इसके बाद मक़ामे अवतास में जंग हुई और वहां भी मुसलमान कामयाब हुए। इन दोनों जंगों में काफ़ी माले ग़नीमत हाथा आया। अवतास में असमा बिन्ते हलीमा साबिया भी हाथ आईं।

हलीमा सादिया की सिफ़ारिश

जंगे हुनैन की बची हुई फ़ौज ताएफ़ में पनाह गुज़ीन हो गई। आपने शव्वाल 8 हिजरी में इसके मोहासरे का हुक्म दिया और 20 दिन तक मोहासरा (घिराव) जारी रहा। उसके बाद आप ने मोहासरा उठा लिया और मक़ामे जवाना पर चले गये। वहां पांच ज़िकाद को बनी हवाज़न की तरफ़ से दरख़्वास्त आई कि हम आपकी इताअत क़ुबूल करते हैं। आप हमारी औरतें माल वापस कर दीजिये। बनी हवाज़न की सिफ़ारिश में जनाबे हलीमा साबीया भी आई। आं हज़रत (स अ व व ) ने उनकी सिफ़ारिश कु़बूल फ़रमाई।

9हिजरी के अहम वाके़यात

फिलिस की तबाही

क़बीलाए बनी तय जिसमें मशहूर सक़ी हातम ताई पैदा हुआ था फिलिस नामी बुत को पूजता था। फ़तेह मक्का के कुछ दिन बाद आं हज़रत (स अ व व ) ने 150 डेढ़ सौ सवारों समैत रबीउल अव्वल 9 हिजरी में उसकी तरफ़ हज़रत अली (अ.स.) को भेजा। अदी अब्ने हातम जो सरदारे क़बीला था भाग गया। बहुत सा माले ग़नीमत और क़ैदी हाथ आये। हज़रते अली (अ.स.) ने इन्सान और माल लशकर में बांट दिये और अदी की बहन यानी हातम ताई की बेटी सफ़ाना में बहुत ही इज़्ज़तो एहतेराम के साथ आं हज़रत की खि़दमत मे पहुँचाया। उसने शराफ़ते ख़ानदान का हवाला दे कर रहम की दरख़्वास्त की। आपने उसे आज़ाद कर दिया और किराया दे कर उसको उसके भाई के पास भिजवा दिया। आपके इस हुस्ने इख़्लाक़ी से अदी बहुत प्रभावित हुआ। 10 हिजरी में आकर मुसलमान हो गया।

ग़ज़वा ए तबूक़

तबूक़ और दमिश्क के बीच 12 या 14 मंज़िल पर था। हज़रत को ख़बर मिली कि नसारा शाम ने हरक़ुल बादशाहे रूम से चालीस हज़ार ( 40, 000) फ़ौज मगा कर मदीने पर हमला करने का फ़ैसला किया है। आपने हिफ़ाज़त को ध्यान में रखते हुए पेश क़दमी की। मदीने का निज़ाम हज़रते अली (अ.स.) के सिपुर्द फ़रमाया और 30,000 (तीस हज़ार) फ़ौज ले कर शाम की तरफ़ रवाना हो गये। रवानगी के वक़्त हज़रत अली (अ.स.) ने अर्ज़ की मौला मुझे बच्चों और औरतों में छोड़े जाते हैं। क्या तुम इस पर राज़ी नहीं हो कि मैं उसी तरह अपना जां नशीन बना कर जाऊं जिस तरह जनाबे मूसा आपने भाई हारून को बना कर जाया करते थे।(सही बुख़ारी किताबुल मग़ाज़ी) ऐ अली ख़ुदा का हुक्म है कि मैं मदीने रहूं या तुम रहो।(फ़तेहुल बारी जिल्द 3 पृष्ठ 387 ) ग़रज़ की आप रवाना हो कर मंज़िले तबूक़ तक पहुँचे। आपने वहां दुश्मनों का 20 दिन तक इन्तेज़ार किया लेकिन कोई भी मुक़ाबले के लिये न आया। दौराने क़याम में अरीब क़रीब में दावते इस्लाम का सिलसिला जारी रहा। बिल आखि़र वापस तशरीफ़ लाये। यह वाक़ेया रजब 9 हिजरी का है।

वाक़ऐ उक़बा

तबूक़ से वापसी में एक घाटी पड़ती थी जिसका नाम उक़बा ज़ी फ़तक़ था। यह घाटी सवारी के लिये इन्तेहाई ख़तरनांक थी। अन्देशा यह था कि कहीं ऊंट का पांव फिसल न जाये कि हज़रत को चोट न लगे। इसी वजह से ऐलान करा दिया गया कि जब तक हज़रत का ऊँट गुज़र न जाए कोई भी घाटी के क़रीब न आय। ग़रज़ कि रवानगी हुई हज़रत सवार हुए। हुज़ैफ़ा ने मेहार(ऊँट की रस्सी) पकड़ी , अम्मार हंकाते हुये रवाना हुए। यह हज़रात समझ रहे थे कि निहायत पुर अमन जा रहे हैं नागाह बिजली चमकी और उनकी नज़र कुछ ऐसे सवारों पर पड़ी जो चेहरों को कपड़े से छुपाये हुए थे। हज़रत ने फ़रमाया ऐ हुज़ैफ़ा तुम ने पहचाना यह मुनाफ़िक़ मेरी जान लेना चाहते हैं। फिर आपने सब के नाम बता दिये और कहा किसी से कहना नहीं वरना फ़साद होगा। रौज़तुल अहबाब में है कि वह अकाबिर (बड़े सहाबा) थे।

तबलीग़े सूरा ए बराअत

9 हिजरी में आं हज़रत (स अ व व ) ने 300 (तीन सौ) आदमियों के साथ हज़रते अबू बकर को हज और तबलीग़े सूरा ए बराअत के लिये भेजा। अभी आप ज़्यादा दूर न जाने पाये थे कि वापस बुला लिये गये और यह सआदत हज़रत अली (अ. स.) के सिपुर्द कर दी गई। हज़रत अबू बकर के एक सवाल के जवाब में फ़रमाया कि मुझे ख़ुदा का यही हुक्म है कि मैं जाऊं या मेरी आल में से कोई जाए। शाह वली उल्लाह कहते हैं कि शेख़ैन दोनों के दोनों मामूर थे मगर माज़ूल (बरखा़स्त) किये गये। क़ुर्रतुल एैन पृष्ठ 234 सही बुखा़री पैरा 2 पृष्ठ 238, कन्ज़ुल आमाल जिल्द 1 पृष्ठ 126, दुर्रे मन्शूर जिल्द 3 पृष्ठ 310, तारीख़े ख़मीस जिल्द 2 पृष्ठ 157 से 160 तक , ख़माएसे निसाई पृष्ठ 61, रौज़ौल अनफ़ जिल्द 2 पृष्ठ 328, तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 154, रियाज़ुल नज़रा पृष्ठ 174।

जंगे वादीउल रमल

वादीउल रमल मदीने से पांच मंज़िल के फ़ासले पर वाक़े है। वहां अरबों की एक बड़ी जमीअत (ग्रुप) ने मदीने पर शब ख़ूं (रात के अंधेरे में चुपके से हमला करना) मारने और अचानक शहर पर क़ब्ज़ा कर के इस्लामी ताक़त को चकना चूर कर देने का मन्सूबा तैयार किया। हज़रत (स अ व व ) को जैसे ही ख़बर मिली आपने उनकी तरफ़ एक लशकर भेज दिया और अलमदारी हज़रत अबू बकर के सिपुर्द की। उन्हें हज़ीमत (शिकस्त) हुई। फिर हज़रत उमर को अलमदार बनाया। वह ख़ैर से घर को आ गये। फिर उमर बिन आस को रवाना किया वह भी शिकस्त खा गये। जब का कामयाबी किसी तरह न हुई तो आं हज़रत (स अ व व ) ने हज़रत अली (अ.स.) को अलम दे कर रवाना किया। ख़ुदा ने अली (अ.स.) को शानदार कामयाबी अता की। जब हज़रत अली (अ.स.) वापस हुए तो आं हज़रत (स अ व व ) ने खुद हज़रत अली (अ.स.) का इस्तेक़बाल किया। (हबीबुस सियर , माआरिजुन नुबूवा)

वफ़ूद

9 हिजरी में वफ़ूद आना शुरू हुए और आं हज़रत (स अ व व ) की वफ़ात से पहले तक़रीबन अरब का बड़ा हिस्सा मुसलमान हो गया। इसी हिजरी मे हुक्मे नजासते मुशरेकीन भी नाज़िल हुआ।

वुसूलीए सदक़ात

इसी 9 हिजरी में बनी तय से अदी बिन हातम ताई , बनी हंज़ला से मालिक इब्ने नवेरा , बनी नजरान से हज़रत अली (अ.स.) जज़िया व सदक़ात वुसूल करने गये और माल भिजवाया।(इब्ने ख़ल्दून)

10हिजरी के अहम वाक़ेयात

यमन में तबलीग़ी सरगरमियां 10 हिजरी में आं हज़रत (स अ व व ) ने ख़ालिद बिन वलीद को तबलीग़े दीन के ख़्याल से यमन भेजा। यह वहां जा कर छः 6 महीने तक इधर उधर फिरते रहे और कोई काम न कर सके। यानी उनकी तबलीग़ से कोई भी मुसलमान न हो सका तो हज़रत अली (अ.स.) को भेजा गया। आपने ज़ोरो इल्म सलीक़ाए तबलीग़ी की वजह से सारे क़बीलाए हमदान को मुसलमान कर लिया। उसके बाद अहले यमन मुसलसल दाख़ले इस्लाम होने लगे। जब आं हज़रत (स अ व व ) को यह शानदार कामयाबी मालूम हुई तो आपने सजदाए शुक्र अदा किया और क़बीलाए हमदान के लिये दुआ की और फ़रमाया ख़ुदा क़बीलाए हमदान पर सलामती नाज़िल करे।(तारीख़े तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 159 )

यमन में हज़रत अली (अ.स.) की शानदार कामयाबी पर मुख़ालिफ़ों की हासेदाना रविश

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि यमन में ख़ालिद बिन वलीद बिलकुल कामयाब नहीं हुए फिर जब हज़रत अली (अ.स.) को शानदार कामयाबी नसीब हुई तो बाज़ लोगों ने हज़रत अली (अ.स.) पर माले ग़नीमत के सिलसिले में ऐतेराज़ किया।

किताब खि़लाफ़त व इमामत के पृष्ठ 79 लाहौर की छपी , में है जब जनाबे अमीर तबलीग़े अहले यमन के लिये मामूर किये गये थे और आपके खि़लाफ़ कुछ लोगों की शिकायत सुन कर आं हज़रत (स अ व व ) ने फ़रमाया था कि मुझ से अली (अ.स.) की बुराई न करो। फ़ाफ़हा मिनी राआना मिन्हो व हुव्वद लैकुम बाअदी (अली मुझसे है और मैं अली से हूँ और वह मेरे बाद तुम्हारा हाकिम है।) बाद अहादीस में अल्फ़ाज़ वहू वलेकुम बाअदी के नहीं पाये जाते और बाज़ में वहू मौला कुल मोमिन व मोमेनात पाये जाते हैं। शिकायत यह थी के जनाबे अमीर ने ख़ुम्स में से एक लौंड़ी चुन ली थी। बुख़ारी की रवायत से मालूम होता है कि यह शिकायत सुन कर रसूल अल्लाह (स अ व व ) ने फ़रमाया था फ़ा अन लहा फ़िल ख़ुम्स अक्सर मिन ज़ालेका अली का हिस्सा ख़ुम्स में इससे भी ज़्यादा है। यह हदीस भी अहले तसन्नुन की तमाम मोतबर किताबों में पाई जाती है और इससे जो मंज़िलत जनाबे अमीर (अ.स.) की जा़हिर होती है वह भी किसी से छुपी नहीं है।

यमन का निज़ामे हुकूमत

इसी 10 हिजरी में बाजा़न हाकिमे यमन ने इन्तेक़ाल किया। उसकी वफ़ात के बाद यमन को विभिन्न भागों में , विभिन्न हाकिमों के सिपुर्द किया गया। 1. सनआ का गर्वनर बाज़ान के बेटे को। 2. हमदान का गर्वनर आमिर इब्ने शहरे हमदानी को। 3. मआरब का हाकिम अबू मूसा अशअरी को। 4. जनद का अफ़सर लाअली इब्ने उमैया को। 5. मुल्को अशरा में ताहिर इब्ने अबी हाला को। 6. नजरान में उमर इब्ने ख़रम को। 7. नजरान , जुम्आ , ज़ुबैद के दरमियान , सईद इब्ने आस को। 8. सकासक व सुकून में अक्काशा इब्ने सौर को मुक़र्रर कर दिया गया।

असहाब का तारीख़ी इजतेमाऔर तबलीग़े रिसालत की आख़री मंज़िल

हज़रत अली (अ.स.) की खि़लाफ़त का ऐलान

यह एक हक़ीक़त है कि दुनिया के पैदा करने वाले ने इन्तेख़ाबे खि़लाफ़त को अपने लिये मख़सूस रखा है और इसमें लोगों का दस्त रस नहीं होने दिया। फ़रमाता है।

وربك يخلق ما يشاء ويختار ما كان لهم الخيرة سبحان الله وتعالى عما يشركون

तुम्हारा रब ही पैदा करता है और जिसको चाहता है(नबूवत व खि़लाफ़त) के लिये चुनता है। याद रहे इन्सान को न चुन्ने का हक़ है और न वह इस में ख़ुदा के शरीक हो सकते है।(सूरऐ कसस आयत 68 )

यही वजह है कि उसने अपने तमाम ख़ुलफ़ा , आदम से खातम तक खुद मुक़र्रर किये हैं और उनका ऐलान अपने नबियों के ज़रिये से कराया है।(रौज़तुल सफ़ा , तारीखे़ कामिल , तारीखें इब्ने अल वरदी , अराईस शाअल्बी वग़ैरा) और इसमें तमाम अम्बिया के किरदार की मवाफ़ेक़त का इतना लेहाज़ रखा है कि तारीख़े ऐलान तक में फ़र्क नहीं आने दिया। अल्लामा बहाई व अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि तमाम अम्बिया ने खि़लाफ़त का ऐलान 18 ज़िलहिज्जा को ही किया है।(जामे अब्बासी व इख़्तेयाराते मजलिसी) इतिहासकारों का इत्तेफ़ाक़ है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने हज्जतुल विदा के मौक़े पर 18 ज़िलहिज्जा को ग़दीरे खुम के स्थान पर ख़ुदा के हुक्म से हज़रत अली (अ.स.) के जानशीन होने का ऐलान फ़रमाया है।

हुज्जतुल विदा

हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) 25 ज़िकाद 10 हिजरी को हज्जे आखि़र के ईरादे से रवाना हो कर 4 ज़िलहिज को मक्का मोअज़्ज़मा पहुँचें। आपके साथ आपकी तमाम बीबीयां और हज़रत सैय्यदा सलाम उल्लाहे अलैहा थीं। रवानगी के वक़्त हज़ारों सहाबा साथ रवाना हुए और बहुत से मक्का ही में जा मिले। इस तरह आपके असहाब की तादाद एक लाख चौबीस हज़ार हो गई। हज़रत अली (अ.स.) यमन से मक्का पहुँचे। हुज़ूर (स अ व व ) ने फ़रमाया कि तुम क़ुर्बानी और मनासिके हज में मेरे शरीक हो। इस हज के मौक़े पर लोगों ने अपनी आँखों से आं हज़रत (स अ व व ) को मनासिके हज अदा करते हुए देखा और मारेकते अलारा ख़ुतबे सुने। जिनमें बाज़ बातें यह थी

1. जाहिलीयत के ज़माने के दस्तूर कुचल डालने के का़बिल हैं।

2. अरबी को अजमी और अजमी को अरबी पर कोई फ़ज़ीलत नहीं।

3. मुसलमान एक दूसरे के भाई हैं।

4. गु़लामों का ख़्याल ज़रूरी है।

5. जाहिलयत के तमाम ख़ून माफ़ कर दिये गये।

6. जाहिलयत के तमाम वाजिबुल अदा बातिल कर दिये गये। ग़रज़ कि हज से फ़रागत के बाद आप मदीने के इरादे से 14 ज़िलहिज को रवाना हुए। एक लाख चैबीस हज़ार असहाब आपके हमराह थे। हज़फ़ा के क़रीब मुक़ामे ग़दीर पर पहुँचते ही आयए बल्लिग़ का नुज़ूल हुआ आपने पालान शुतर का मिम्बर बनाया और बिलाल(र.) को हुक्म दिया कि हय्या अला ख़ैरिल अमल कह कर आवाज़ दें। मजमा सिमट कर नुक्ताए एतिदाल पर आ गया। आपने एक फ़सीह व बलीग़ ख़ुतबा फ़रमाया जिसमें हम्दो सना के बाद अपनी फ़ज़ीलत का इक़रार लिया और फ़रमाया कि मैं तुम में दो गिदां क़द्र चीजें छोड़ जाता हुँ एक क़ुरआन और दूसरे अहले बैत। इसके बाद अली (अ.स.) को अपने नज़दीक बुला कर दोनों हाथों से उठाया और इतना बुलन्द किया कि सफ़ेदी ज़ेरे बग़ल ज़ाहिर हो गई। फिर फ़रमाया मन कुन्तो मौला फ़ा हाज़ा अलीउन मौला जिसका मैं मौला हूँ उसका यह अली भी मौला है। ख़ुदाया अली जिधर मुड़े हक़ को उसी तरफ़ मोड़ देना। फिर अली (अ.स.) के सर पर सियाह अमामा बाधां , लोगों ने मुबारक बादियां देनी शुरू कीं। सब आपकी जां नशीनी से ख़ुश हुए। हज़रत उमर ने भी नुमाया अल्फ़ाज़ में मुबारक बाद दी। जिब्राईल ने भी बाज़बाने क़ुरआन अकमाले दीं और एतिमामे नेमत का मुजदा सुनाया। सीरतुल हलबिया में है कि यह जां नशीनी 18 ज़िलहिज को वाक़े हुई। नूरूल अबसार पृष्ठ 78 में है कि एक शख़्स हारिस बिन नोमान फ़हरी ने हज़रत के अमल ग़दीरे खुम पर एतिराज़ किया तो उसी वक़्त आसमान से उस पर एक पत्थर गिरा और वह मर गया।

वाज़े हो कि इस वाक़ेए ग़दीर को इमामुल मुहद्देसीन हाफ़िज़ इब्ने अब्दहु ने एक सौ सहाबा से इस हदीसे ग़दीर की रवायत की है। इमामे जज़री व शाफ़ेई ने इन्हीं सहाबियों से इमाम अहमद बिन हम्बल ने तीस सहाबियों और तबरी ने पछत्तर सहाबियों से रवाएत की है अलावा इसके तमाम अक़ाबिर इस्लाम मसलन ज़हबी सनाई और अली अल क़ारी वग़ैरा से मशहूर और मुतावातिर मानते हैं। महज़ मिनहाजुल उसूल , सिद्दीक़ हसन पृष्ठ 13 तफ़सीर साअलबी फ़तेहुल बयान सिद्दीक़ हसन जिल्द 1 पृष्ठ 48।

वाक़ेए मुबाहेला

बख़रान यमन में एक मुक़ाम है वहां ईसाई रहते थे और वहां एक बड़ा कलीसा था। आं हज़रत (स अ व व ) ने उन्हें भी दावते इस्लाम भेजी उन्होंने तहक़ीक़े हालात के लिये एक वफ़द ज़ेरे क़यादत अब्दुल मसीह आक़िब मदीना भेजा। वह वफ़द मस्जिदे नबवी के सहन में आ कर ठहरा। हज़रत से मुबाहेसा हुआ मगर वह क़ाएल न हुए। हुक्मे ख़ुदा नाज़िल हुआ फ़कु़ल तआलो अन्दाअ अब्ना आना ऐ पैग़म्बर उनसे कह दो कि दोनों अपने बेटों अपनी औरतों और अपने नफ़सों को लाकर मुबाहेला करें। चुनान्चे फ़ैसला हो गया और 24 ज़िलहिज 10 हिजरी को पंजेतने पाक झूटों पर लानत करने के लिये निकले। नसारा के सरदारों ने जूँही इनकी शकले देखीं कापने लगे और मुबाहेले से बाज़ आय। ख़ेराज़ देना मन्ज़ूर कर लिया। जज़िया दे कर रेआया बनाना क़ुबूल किया।

(मआरिज अल इरफ़ान पृष्ठ 135, तफ़सीर बैज़ावी पृष्ठ 74 )

सरवरे काऐनात के के आख़री लम्हाते ज़िन्दगी

हुज्जतुल विदा से वापसी के बाद आपकी वह अलालत जो बारवाएते मिशक़ात ख़ैबर में दिये हुए ज़हर के करवट लेने से उभरा करती थी , मुस्तमिर हो गई। आप अकसर बीमार रहने लगे , बीमारी की ख़बर आम होते ही झूटे मुद्दई नबूवत पैदा होने लगे जिनमें मुसालमा कज़्ज़ाब असवद अनसी तलहा सुजाह ज़्यादा नुमाया थे लेकिन ख़ुदा ने उन्हें ज़लील किया। इसी दौरान में आपको इत्तेला मिली कि हुकूमते रोम मुसलमानों को तबाह करने को तबाह करने का मन्सूबा तैयार कर रही है। आपने इस ख़तरे के पेश नज़र कि कहीं वह हमला न कर दें। उसामा बिन ज़ैद की सर करदगी में एक लशकर भेजने का फ़ैसला किया और हुक्म दिया कि अली के अलावा अयाने महाजिर व अनसार में से कोई भी मदीने में न रहे और इसी रवानगी पर इतना ज़ोर दिया कि यह तक फ़रमा दिया लाअनल्लाह मन तखलफ़अनहा जो इस जंग में न जायेगा उस पर ख़ुदा की लानत होगी। इसके बाद आं हज़रत (स अ व व ) ने असामा को अपने हाथों से तैयार कर के रवाना किया। उन्होंने तीन मिल के फ़ासले पर मुक़ामे ज़रफ़ में कैम्प लगाया और अयाने सहाबा का इन्तेज़ार करने लगे , लेकिन वह लोग न आये। मदारिज अल नबूवत जिल्द 2 पृष्ठ 488 व तारीख़े कामिल जिल्द 2 पृष्ठ 120, तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 188 में है कि न जाने वालों में हज़रत अबू बकर व हज़रत उमर भी थे। मदारिज अल नबूवत जिल्द 2 पृष्ठ 494 में है कि आखि़र सफ़र में जब कि आपको शदीद दर्दे सर था। आप रात के वक़्त अहले बक़ी के लिये दुआ की ख़ातिर तशरीफ़ ले गए। हज़रत आएशा ने समझा कि मेरी बारी में किसी और बीवी के यहां चले गएं हैं इस पर वह तलाश के लिये निकलीं तो आपको बक़ीया में महवे दुआ पाया। इसी सिलसिले में आपने फ़रमाया क्या अच्छा होता ऐ आयशा कि तुम मुझ से पहले मर जाती और मैं तुम्हारी अच्छी तरह तजहीज़ो तकफ़ीन करता। उन्होंने जवाब दिया कि आप चाहते हैं मैं मर जाऊँ तो आप दूसरी शादी कर लें। इसी किताब के पृष्ठ 495 में है कि आं हज़रत (स अ व व ) की तीमार दारी आपके अहले बैत करते थे। एक रवायत में है कि अहले बैत को तीमार दारी में पीछे रखने की कोशिश की जाती थी।

वाक़ेए क़िरतास

हुज्जतुल विदा से वापसी पर बामुक़ामे ग़दीरे ख़ुम अपनी जां नशीनी का ऐलान कर चुके थे। अब आखि़री वक़्त में आपने यह ज़रूरी समझते हुए कि उसे दस्तावेज़ी शक्ल दे दें। असहाब से कहा कि मुझे क़लम दवात और कागज़ दे दो ताकि मैं तुम्हारे लिये एक ऐसा नविश्ता लिख दूं जो तुम्हें गुम्राही से हमेशा हमेशा बचाने के लिये काफ़ी हो। यह सुन कर असहाब में आपस में चीमी गोयां होने लगी लोगों के रूजाहनात क़लम दवात दे देने की तरफ़ देख कर हज़रत उमर ने कहा ! अनल रजुल लेहिजर हसबुना किताब अल्लाह यह मर्द हिज़यान बक रहा है। हमारे लिये किताबे ख़ुदा ही काफ़ी है।(सही बुख़ारी पैरा 30 पृष्ठ 842 ) अल्लामा शिब्ली लिखते हैं रवायत में हजर का लफ़्ज़ है जिसके माने हिज़यान के है।

हज़रत उमर ने आं हज़रत (स अ व व ) के इस इरशाद को हिज़यान से ताबीर किया था।(अल फ़ारूक़ पृष्ठ 61 ) लुग़त में हिज़यान के माने बेहूदा गुफ़तन यानी बकवास के हैं।(सराह जिल्द 2 पृष्ठ 123 ) शमशुल उलमा मौलवी नज़ीर अहमद देहलवी लिखते हैं जिन के दिल में तमन्नाए खि़लाफ़त चुटकियां ले रही थी उन्होंने तो धींगा मुश्ती से मन्सूबा ही चुटकियों में उड़ा दिया और मज़हामत की यह तावील की कि हमारी हिदायत के लिये क़ुरआन बस काफ़ी है और चूंकि इस वक़्त पैग़म्बर साहब के हवास बजा नहीं हैं , कागज़ क़लम दवात लाना कुछ ज़रूरी नहीं ख़ुदा जाने क्या लिखवा देगें।(उम्मेहातुल उम्मत पृष्ठ 92 ) इस वाक़ेए से आं हज़रत (स अ व व ) को सख़्त सदमा हुआ और आपने झुंझला कर फ़रमाया कूमू इन्नी मेरे पास से उठ कर चले जाओ। नबी के रूबरू शोर ग़ुल इन्सानी अदब नहीं है। अल्लामा तरही लिखते हैं कि ख़ाना ए काबा में पांच लोगों ने हज़रत अबू बकर , हज़रत उमर , अबु उबैदा , अब्दुर्रहमान , सालिम ग़ुलाम हुज़ैफ़ा ने मुत्तफ़िका़ अहदो पैमान किया था कि ला नुज़्दो हाज़ल अमरनीफ़ा बनी हाशिम पैग़म्बर के इन्तेका़ल के बाद खि़लाफ़त बनी हाशिम में न जाने देगें।(मजमुर बहरैन) मैं कहता हूं कौन यक़ीन कर सकता है कि जेशे उसामा में रसूल से सरताबी करने वालों जिसमें लानत तक की गई है और वाक़ेआ क़िरतास हुक्म को बकवास बतलाने वालों को रसूले ख़ुदा (स अ व व ) ने नमाज़ की इमामत का हुक्म दे दिया होगा मेरे नज़दीक इमामते नमाज़ की हदीस ना क़ाबिले कु़बूल है।

हाशिया अली क़ारी बर हाशिया नसीम अल रियाज़

वसीयत और एहतिज़ार हज़रत आयशा फ़रमाती हैं कि आख़री वक़्त आपने फ़रमाया मेरे हबीब को बुलाओ। मैंने अपने बाप अबू बकर फिर उमर को बुलाया। उन्होंने फिर यही फ़रमाया तो मैंने अली को बुला भेजा। आपने अली को चादर में ले लिया और आखि़र तक सीने से लिपटाए रहे।(रेआज़ अल नज़रा पृष्ठ 180 ) मुवर्रिख़ लिखते हैं कि जनाबे सैय्यदा (स अ व व ) हसनैन (अ.स.) को तलब फ़रमाया और हज़रत अली को बुला कर वसीयत की और कहा जैश असामह के लिये मैंने फ़लां यहूदी से क़रज़ लिया था उसे अदा कर देना और ऐ अली तुम्हें मेरे बाद सख़्त सदमें पहुँचेंगे तुम सब्र करना और देखो जब अहले दुनियां दुनियां परस्ती करें तो तुम दीन इख़्तेयार किए रहना।(रौज़तुल अहबाब जिल्द 1 पृष्ठ 559 मदारिज अल नबूवत जिल्द 2 पृष्ठ 511 व तारीख़ बग़दाद जिल्द 1 पृष्ठ 219 ) (स. अ.)

हाशिया अली क़ारी बर हाशिया नसीम अल रियाज़ व मदारिज अल नबूअत प्रकाशित कानपुर पृष्ठ 542 हबीब उस सियर पृष्ठ 78 व मकतूबात शेख़ अहमद सर हिन्दी मुजद्दि अलिफ़ सानी जिल्द 2 पृष्ठ 61- 62 वग़ैरा में है। उन्हीं कुतूब की रोशनी में शम्शुल उलमा ख़्वाजा हसन निज़ामी देहलवी लिखते हैं इसी बीमारी के ज़माने में एक दिन बहुत से लोग हज़रत (स अ व व ) के पास जमा थे आपने इरशाद फ़रमाया लाओ कागज़ मैं तुम को कुछ लिख दूं ताकि तुम मेरे बाद गुमराह न हो जाओ , यह सुन कर हज़रत उमर बोले हज़रत रसूल (स अ व व ) पर बुख़ार की तकलीफ़ का ग़लबा है इसके सबब से ऐसा फ़रमाते हैं वसीअत नामे की कुछ ज़रूरत नहीं हमको ख़ुदा की किताब काफ़ी है।(मोहर्रम नामा पृष्ठ 10 प्रकाशित देहली)

रसूले करीम (स अ . व . व . ) की शहादत

हज़रत अली (अ.स.) से वसीयत फ़रमाने के बाद आपकी हालत ग़ैर हो गई। हज़रत फातेमा (स अ व व ) जिनके ज़ानू पर सरे मुबारक रिसालत माब (स अ व व ) था फ़रमाती हैं कि हम लोग इन्तेहाईं परेशानी में थे कि नागाह एक शख़्स ने इज़्ने हुज़ूरी चाहा , मैंने दाखि़ले से मना कर दिया और कहा ऐ शख़्स यह वक़्ते मुलाक़ात नहीं है इस वक़्त वापस चला जा। इसने कहा मेरी वापसी नामुम्किन है मुझे इजाज़त दीजिए की मैं हाज़िर हो जाऊँ। आं हज़रत (स अ व व ) को जो क़दरे अफ़ाक़ा हुआ तो आप (स अ व व ) ने फ़रमाया ऐ फातेमा (स अ व व ) इजाज़त दे दो यह मलाकुल मौत है। फातेमा (स अ व व ) ने इजाज़त दे दी और वह दाखि़ले ख़ाना हुए। पैग़म्बर की खि़दमत में पहुँच कर अर्ज़ कि मौला यह पहला दरवाज़ा है जिस पर मैंने इजाज़त मांगी है और अब आप (स अ व व ) के बाद किसी के दरवाज़े पर इजाज़त तलब न करूंगा।(अजाएब अल क़सस अल्लामा अब्दुल वाहिद पृष्ठ 2882 व रौज़तुल पृष्ठ जिल्द 2 पृष्ठ 216 व अनवार अल क़ुलूब पृष्ठ 188 )

अल ग़रज़ मलकुल मौत ने अपना काम शुरू किया हुज़ूर रसूल करीम (स अ व व ) ने बतारीख़ 28 सफ़र 11 हिजरी योमे दोशम्बा ब वक्ते दो पहर खि़लअते हयात उतार दिया।(मुवद्दतुल कु़र्बा पृष्ठ 49, 14 प्रकाशित बम्बई 310 ) हिजरी अहले बैत कराम में रोने का कोहराम मच गया। हज़रत अबू बकर उस वक़्त अपने घर महल्ला सख़ गए हुए थे जो मदीने से एक मील के फ़ासले पर था। हज़रत उमर ने वाक़ेए वफ़ात को नशर होने से रोका और जब हज़रत अबू बकर आ गए तो दोनों सक़ीफ़ा बनी सआदा चले गए जो मदीने से तीन मील के फ़ासले पर था और बातिल मशविरों के लिये बनाया गया था।(ग़यासुल लुग़ात) और उन्हीं के साथ अबू अबीदा भी चले गए जो ग़स्साल थे। ग़रज कि अकसर सहाबा रसूले ख़ुदा (स अ व व ) की लाश छोड़ कर हंगामाए खि़लाफ़त में जा शरीक हुए और हज़रत अली (अ.स.) ने ग़ुस्लो कफ़न का बन्दोबस्त किया। हज़रत अली (अ.स.) ने ग़ुस्ल देने में फ़ज़ल इब्ने अब्बास हज़रत का पैराहन ऊँचा करने में अब्बास और क़सम करवट बदलवाने में और उसामा व शकराना पानी डालने में मसरूफ़ हो गए और उन्हीं छः आदमियों ने नमाज़े जनाज़े पढ़ी और इसी हुजरे में आपके जिस्मे अतहर को दफ़्न कर दिया गया। जहां आपने वफ़ात पाई थी। अबू तलहा ने क़ब्र खोदी। हज़रत अबू बकर व हज़रत उमर आपके ग़ुस्लो कफ़न और नमाज़ में शरीक न हो सके क्यो कि जब यह हज़रात सक़ीफ़ा से वापस आए तो आं हज़रत (स अ व व ) की लाशे मुतहर सुपुर्दे खाक की जा चुकी थी। कंज़ुल आमाल जिल्द 3 पृष्ठ 140, अरजहुल मतालिब पृष्ठ 670, अल मुतर्ज़ा पृष्ठ 39 फ़तेहुलबारी जिल्द 6 पृष्ठ 4, वफ़ात के वक़्त आपकी उम्र 63 साल की थी।(तारीख़ अबुल फ़िदा जिल्द 1 पृष्ठ 152 )

वफ़ात और शहादत का असर

सरवरे कायनात की वफ़ात का असर यूँ तो तमाम लोगों पर हुआ असहाब भी रोए और हज़रत आयशा ने भी मातम किया।(मसनदे अहमद बिन हम्बल जिल्द 6 पृष्ठ 274 व तारीख़े कामिल जिल्द 2 पृष्ठ 122 व तारीखे़ तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 197 ) लेकिन जो सदमा हज़रत फ़ातेमा (स अ व व ) को पहुँचा इसमें वह मुनफ़रिद थीं। तारीख़ से मालूम होता है कि आपकी वफ़ात से आलमे अलवी और आलमे सिफ़ली भी मुत्तसिर हुए और उनमें जो चीज़ें हैं उनमें भी असरात हुवैदा हुए हैं। अल्लामा ज़मख़्शरी का बयान है कि एक दिन आं हज़रत (स अ व व ) ने उम्मे माअबद के वहां क़याम फ़रमाया। आपके वज़ू के पानी से एक पेड़ निकला जो बेहतरीन फल लाता रहा। एक दिन मैंने देखा कि इसके पत्ते झड़े हुए हैं और मेवे गिरे हुए हैं। मैं हैरान हुई कि नागहाँ ख़बरे वफ़ात सरवरे आलम पहुँची। फिर तीस साल बाद देखा गया कि इस में तमाम कांटे उग आए थे। बाद में मालूम हुआ कि हज़रत अली (अ.स.) ने शहादत पाई। फिर मुद्दत मदीद के बाद इसकी जड़ से ख़ून ताज़ा उबलता हुआ देखा गया बाद में मालूम हुआ हज़रत इमामे हुसैन (अ.स.) ने शहादत पाई। इसके बाद वह सूख गया।(अजाएब अल क़सस पृष्ठ 159 बा हवालाए रबीउल अबरार ज़मख़्शरी)

आं हज़रत (स अ . व . व . ) की शहादत का सबब

यह ज़ाहिर है कि चाहरदा मासूमीन (अ.स.) में से कोई भी ऐसा नहीं जिसने शहादत न पाई हो। हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) से लेकर इमामे हसन असकरी (अ.स.) तक सब ही शहीद हुए हैं। कोई ज़हर से शहीद हुआ है कोई तलवार से शहीद हुआ। इनमें से एक औरत भी थीं हज़रत फ़ातेमा बिन्ते रसूल (स अ व व ) वह ज़र्बे शदीद से शहीद हुईं। इन चौदह मासूमों में लगभग तमाम की शहादत का सबब वाज़े है लेकिन हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) की शहादत के सबब से अकसर हज़रात न वाक़िफ़ हैं इस लिये मैं इस पर रौशनी डालता हूँ।

हुज्जतुल इस्लाम इमाम अबू हामिद मोहम्मद अल ग़ज़ाली की किताब सिरूल आलमीन के पृष्ठ 7 प्रकाशित बम्बई 1214 हिजरी और किताब मिशक़ात शरीफ़ के हिस्सा 3 पृष्ठ 58 से वाज़े है कि आपकी शहादत ज़हर के ज़रिए से हुई है और बुख़ारी शरीफ़ की जिल्द 3 प्रकाशित मिस्र 1314 हिजरी के हिस्सा अल्लददू पृष्ठ 127 किताब अल तिब से मुस्तफ़ाद और मुस्तमिबत होता है कि आं हज़रत को दवा में मिला कर ज़हर दिया गया था।

1.तारीख़े तबरी जिल्द 4 पृष्ठ 436 में है कि अन्सार ने जब हज़रत अली (अ.स.) की बैअत करना चाही तो हज़रत उमर ने हज़रत अबू बकर का हाथ पकड़ कर बैअत कर ली और कहा कि आप भी क़रशी हैं और हम में सज़ावार तर हैं।

मेरे नज़दीक रसूले करीम (स अ व व ) के बिस्तरे अलालत पर होने के वक़्त के वाक़ेआत व हालात के पेशे नज़र दवा में ज़हर मिला कर दिया जाना गै़र मुतवक़्क़ा नहीं है। अल्लामा मोहसिन फ़ैज़ किताब अलवाफ़ी की जिल्द 1 के पृष्ठ 166 में बा हवाला तहज़ीबुल एहकाम तहरीर फ़रमाते हैं कि हुज़ूर मदीने में ज़हर से शहीद हुए हैं। अलख़ मुझे ऐसा मालूम होता है कि ख़ैबर में ज़हर ख़ूरानी की तशहीर अख़फ़ाए जुर्म के लिए की गई थी।

अज़वाज

चन्द कनीज़ों के अलावा जिनमे मारिया और रेहाना भी शामिल थीं आपके ग्यारह बीबीयां थीं जिन में हज़रत ख़दीजा और ज़ैनब बिन्ते ख़जी़मह ने आपकी ज़िन्दगी में वफ़ात पाई थी और नौ 9 बीबीयों ने आपकी वफ़ात के बाद इन्तेक़ाल किया। आं हज़रत (स अ व व ) की बीबीयों के नाम निन्मलिखित हैं:-

1.ख़तीजातुल कुबरा , 2. सूदा , 3. आयशा , 4. हफ़सा , 5. ज़ैनब बिन्ते ख़ज़ीमह , 6. उम्मे सलमा , 7. ज़ैनब बिन्ते हजश , 8. जवेरिहा बिन्ते हारिस , 9. उम्मे हबीबा , 10. सफ़िया , 11. मैमूना।

औलाद

आपके तीन बेटे थे और एक बेटी थी। जनाबे इब्राहीम के अलावा जो मारिया क़िबतिया के बतन से थे सब बच्चे हज़रत ख़तीजा के बतन से थे हुज़ूर के औलाद के नाम निम्न लिखित हैं:-

1. हज़रत क़ासिम तैय्यब आप बेअसत से पहले मक्का में पैदा हुए और दो साल की उम्र में वफ़ात पा गए।

2. जनाबे अब्दुल्लाह जो ताहिर के नाम से मशहूर थे बेअसत से पहले मक्का में पैदा हुए और बचपन ही में इन्तेक़ाल कर गए।

3. जनाबे इब्राहीम 8 हिजरी में पैदा हुए और 10 हिजरी में इन्तेक़ाल कर गए।

4. हज़रत फ़ातेमा ज़हरा आप पैग़म्बरे इस्लाम (स अ व व ) की इकलौती बेटी थीं। आपके शौहर हज़रत अली (अ.स.) और बेटे हज़रत इमाम हसन (अ.स.) और हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) थे। फातेमा ज़हरा (स अ व व ) की नसल से ग्यारह इमाम पैदा हुए और इन्हीं के ज़रिए से रसूल (स अ व व ) की नसल बढ़ी और आपकी औलाद को सयादत का शरफ़ हासिल हुआ और वह क़यामत तक सय्यद कही जायगी।

हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) इरशाद फ़रमाते हैं कि क़यामत में मेरे सिलसिले नसब के अलावा सारे सिलसिले टूट जायेगें और किसी का रिश्ता किसी के काम न आयेगा।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 93 ) अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी लिखते हैं कि तमाम अम्बिया की औलाद हमेशा क़ाबिले ताज़ीम समझी जाती रही है। हमारे नबी (स अ व व ) इस सिलसिले में सब से ज़्यादा हक़ दार हैं।(रौज़ातुल शोहदा पृष्ठ 404 )

इमाम उल मुसलेमीन अल्लामा जलालुद्दीन फ़रमाते हैं कि हज़रत हसनैन (अ.स.) वह क़यामत की औलाद के लिये सयादत मख़सूस है। मर्द हो या औरत जो भी इनकी नस्ल से है वह क़यामत तक सय्यद रहेगा। वयजुब अला इजमा अल ख़लक़े ताज़ीमहुम अब अन और सारी कायनात पर वाजिब है कि हमेशा हमेशा इनकी ताज़ीम करती रहे।(लवायमुल तंज़ीम जिल्द 3 पृष्ठ 3, 4 असआफ़ अल राग़ेबीन बर हाशिया नूर अल अबसार शिबलन्जी पृष्ठ 114 प्रकाशित मिस्र)