चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

जज़ीराए खि़ज़रा में इमाम (अ.स.) से मुलाक़ात

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की क़याम गाह जज़ीराए खि़ज़रा में जो लोग पहुँचे हैं उनमें से शेख़ सालेह , शेख़ ज़ैनुल आब्दीन अली बिन फ़ाज़िल माज़न्देरानी का नाम नुमाया तौर पर नज़र आता है। आपकी मुलाक़ात की तस्दीक़ , फ़ज़ल बिन यहिया बिन अली ताबई कुफ़ी व शेख़ आलिम आलिम शेख़ शम्सुद्दीन नजी अली व शेख़ जलालुद्दीन , अब्दुल्लाह इब्ने अवाम हिल्ली ने फ़रमाई है।

अल्लामा मजलिसी ने आपके सफ़र की सारी रूदाद एक रिसाले की सूरत में ज़ब्त किया है जिसका मुसलसल ज़िक्र बेहारूल अनवार में मौजूद है। रिसाला जज़ीराए खि़ज़रा के पृष्ठ 1 में है कि शेख़ अजल सईद शहीद बिन मोहम्मद मक्की और मीर शम्सुद्दीन मोहम्मद असद उल्लाह शुस्तरी ने भी तसदीक़ की है।

मोअल्लिफ़ किताबे रिसाला जज़ीराए खि़ज़रा कहता है कि हज़रत की विलादत हज़रत की ग़ैबत , हज़रत का ज़ुहूर वग़ैरा जिस तरह रमज़े ख़ुदावन्दी और राज़े इलाही है उसी तरह आपकी जाए क़याम भी एक राज़ है जिसकी इत्तेला आम ज़रूरी नहीं है। वाज़े हो कि कोलम्बस के इदराक से भी क़ब्ल अमरीका का वजूद था।

इमामे ग़ायब का हर जगह हाज़िर होना

अहादीस से साबित है कि इमाम मेहदी (अ.स.) जो कि मज़हरूल अजाएब हज़रत अली (अ.स.) के पोते हैं , हर मक़ाम पर पहुँचते और हर जगह अपने मानने वालों के काम आते हैं। उलमा ने लिखा है कि आप ब वक़्ते ज़रूरी मज़हबी लोगों से मिलते हैं उन्हें देखते हैं यह और बात है कि उन्हें पहचान न सकें।(गा़एतुल मक़सूद)

इमाम मेहदी (अ.स.) और हज्जे काबा

यह मुसल्लेमात से है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) हर साल काबा के लिये मक्का मोअज़्ज़मा इसी तरह तशरीफ़ ले जाते हैं जिस तरह हज़रते खि़ज़र व इलयास (अ.स.) जाते हैं।(सिराज अल क़ुलूब पृष्ठ 77 )

अहमद कूफ़ी का बयान है कि मैं तवाफ़े काबा में मसरूफ़ व मशग़ूल था कि मेरी नज़र एक निहायत ख़ूब सूरत नवजवान पर पड़ी मैंने पूछा आप कौन हैं और कहां से तशरीफ़ लाए हैं ? आपने फ़रमाया ‘‘ अनल मेहदी व अनल क़ाएम ’’ मैं मेहदी आख़रूज़ ज़मा और क़ाएमे आले मोहम्मद (स अ व व ) हूँ।

ग़ानम हिन्दी का बयान है कि मैं इमाम मेहदी (अ.स.) की तलाश में एक मरतबा बग़दाद गया , एक पुल से गुज़रते हुए मुझे एक साहब मिले वह मुझे एक बाग़ में ले गए और उन्होंने मुझ से हिन्दी ज़बान में कलाम किया और फ़रमाया कि तुम इस साल हज के लिये ना जाओ वरना नुक़सान पहुँच जाऐगा। मोहम्मद बिन शाज़ान का कहना है कि मैं एक दफ़ा मदीने में दाखि़ल हुआ तो हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) से मुलाक़ात हुई , उन्होंने मेरा पूरा नाम ले कर मुझे पुकारा , चुंकि पूरे नाम से कोई वाक़िफ़ न था इस लिये मुझे ताज्जुब हुआ। मैंने पूछा आप कौन हैं ? फ़रमाया इमामे ज़मान हूँ।

अल्लामा शेख़ सुलेमान क़न्दूज़ी बलख़ी तहरीर फ़रमाते हैं कि अब्दुल्लाह इब्ने सालेह ने कहा मैंने ग़ैबते कुबरा के बाद इमाम मेहदी (अ.स.) को हजरे असवद के नज़दीक इस हाल में खड़े हुए देखा कि उन्हें लोग चारों तरफ़ से घेरे हुए हैं।(यनाबिउल मोवद्दता)

ज़मानाए ग़ैबते कुबरा में इमाम मेहदी (अ.स.) की बैअत

हज़रत शेख़ अब्दुल लतीफ़ हलबी हनफ़ी का कहना है कि मेरे वालिद शेख़ इब्राहीम हुसैन का शुमार हलब के मशएख़ अज़ाम में था। वह फ़रमाते हैं कि मेरे मिस्री उस्ताद ने बयान किया है कि मैंने हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के हाथ पर बैअत की है।(नियाबुल मोवद्दता बाब 85 पृष्ठ 392 )

इमाम मेहदी (अ.स.) की मोमेनीन से मुलाक़ात

रिसालए जज़ीरए खि़ज़रा के पृष्ठ 16 में ब हवाला अहादीसे आले मोहम्मद (स अ व व ) मरक़ूम है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) से हर मोमिन की मुलाक़ात होती है यह और बात है कि मोमेनीन उन्हें मसलहते ख़ुदा वन्दी की बिना पर इस तरह न पहचान सकें जिस तरह पहचान्ना चाहिये। मुनासिब मालूम होता है कि इस मुक़ाम पर मैं अपना ख़्वाब लिख दूँ। वाक़िया है कि आज कल जब कि मैं इमामे ज़माना (अ.स.) के हालात लिख रहा हूँ हदिसे मज़कूर पर नज़र डालने के बाद फ़ौरन ज़हन में यह ख़्याल पैदा हुआ कि मौला सब को दिखाई देते हैं लेकिन मुझे आज तक नज़र नहीं आये। इसके बाद मैं बिस्तरे इस्तेराहत पर गया और सोने के इरादे से लेटा। अभी नींद ना आई थी और क़तई तौर पर नीम बेदारी(ग़ुनूदगी) की हालत थी कि नागाह मैंने देखा कि मेरे मकान से मशरिक़ की जानिब ता बा हद्दे नज़र एक क़ौसी ख़त पड़ा हुआ है यानी शुमाल की जानिब का सारा हिस्सा आलमे पहाड़ है और उस पर इमाम मेहदी (अ.स.) तलवार लिये ख़ड़े हैं और यह कहते हुए कि ‘‘ निस्फ़ दुनिया आज ही फ़तह कर लूंगा ’’ शुमाल की जानिब एक पांव बढ़ा रहे हैं। आपका क़द आम इंसानों के क़द से डेयोढ़ा और जिस्म दोहरा है। बड़ी बड़ी सुरगमीं आंखें और चेहरा इन्तेहाई रौशन है। आपके पट्टे कटे हुए हैं और सारा लिबास सफ़ैद है और वक़्त अस्र का है। यह वाक़िया 30 नवम्बर 1958 ई0 शबे यक शम्बा(रवीवार की रात) ब वक़्त 4.30 बजे शब का है।

मुल्ला मोहम्मद बाक़िर दामाद का इमामे अस्र (अ.स.) से इस्तेफ़ादा करना

हमारे अकसर उलेमा इल्मी मसाएल और मज़हबी व मआशरती मराहिल हज़रत इमामे ज़माना (अ.स.) ही से तय करते आये हैं। मुल्ला मोहम्मद बाक़िर दामाद जो हमारे अज़ीमुल क़द्र मुजतहिद थे उनके मुताअल्लिक़ है कि एक शब आपने ज़रीह नजफ़े अशरफ़ में एक मसला लिख कर डाला , उसके जवाब में तहरीरन कहा गया कि तुम्हारा इमामे ज़माना इस वक़्त मस्जिदे कूफ़ा में नमाज़ गुज़ार है , तुम वहां जाओ। वह वहा जा पहुँचे। खुद ब खुद मस्जिद का दरवाज़ा खुद गया और आप अन्दर दाखि़ल हो गये। आप ने मसले का जवाब हासिल किया और आप मुतमइन हो कर बरामद हुए।

जनाब बहरूल उलूम का इमामे ज़माना (अ.स.) से मुलाका़त करना

किताब क़सासुल उलेमा मोअल्लेफ़ा अल्लामा तन्काबनी पृष्ठ 55 में मुजतहिदे आज़म करबलाए मोअल्ला जनाब आक़ा सय्यद मोहम्मद मेहदी बहरे उलूम के तज़किरे में मरक़ूम है कि एक शब आप नमाज़ में अन्दूरूने हरम मशग़ूल थे कि इतने में इमामे अस्र (अ.स.) अपने अबो जद की ज़्यारत के लिये तशरीफ़ लाये जिसकी वजह से उनकी ज़बान में लुकनत हुई और बदन में एक क़िस्म का राशा पैदा हो गया फिर जब वह वापस तशरीफ़ ले गये तो उन पर जो एक ख़ास क़िस्म की कैफ़ियत तारी थी वह जाती रही। इसके अलावा आपके इसी क़िस्म के कई वाक़ेयात किताब मज़कूरा में लिखे हैं।

इमाम मेहदी (अ.स.) का हिमायते मज़हब फ़रमाना

वाक़िए‘‘ अनार ’’

किताब कशफ़ुल ग़ुम्मा पृष्ठ 133 में है कि सय्यद बाक़ी बिन अतूवाह इमामिया मज़हब के थे और उनके वालिद ज़ैद यह ख़्याल रखते थे। एक दिन उनके वालिद अतूवाह ने कहा कि मैं सख़्त अलील हो गया हूँ और अब बचने की कोई उम्मीद नहीं। हर क़िस्म के हकीमों का इलाज कर चुका हूँ। ऐ नूरे नज़र मैं तुमसे वायदा करता हूँ कि अगर मुझे तुम्हारे इमाम ने शिफ़ा दे दी तो मैं मज़हबे इमामिया इख़्तेयार कर लूंगा। यह कहने के बाद जब यह रात को बिस्तर पर गये तो इमामे ज़माना का उन पर ज़हूर हुआ , इमाम ने मक़ामे मर्ज़ को अपने हाथ से मस कर दिया और वह मर्ज़ जाता रहा , अतूवाह ने उसी वक़्त मज़हबे इमामिया इख़्तेयार कर लिया और रात ही में जा कर अपने फ़रज़न्द बाक़ी अतूवाह को ख़ुश ख़बरी दे दी।

इसी तरह किताब जवाहरूल बयान में है कि बहरैन का वाली नसरानी और उसका वज़ीर ख़वारजी था। वज़ीर ने बादशाह के सामने चन्द ताज़ा अनार पेश किये जिन पर ख़ुल्फ़ा के नाम अल्ल तरतीब कन्दा थे और बादशाह को यक़ीन दिलाया कि हमारा मज़हब हक़ है और तरतीबे खि़लाफ़त मन्शाए क़ुदरत के मुताबिक़ दुरूस्त है। बादशाह के दिल में यह बात कुछ इस तरह बैठ गई िकवह यह समझने पर मजबूर हो गया कि वज़ीर का मज़हब हक़ है और इमामिया राहे बातिल पर गामज़न है। चुनान्चे उसने अपने ख़्याल की तकमील के लिये जुमला उलेमाए इमामिया को जो उसके अहदे हुकूमत में थे बुला भेजा और उन्हें अनार दिखा कर उन से कहा कि इसकी रद्द में कोई माक़ूल दलील लाओ वरना हम तुम्हें क़त्ल कर के तमाम मज़हब को जड़ से उखा़ड़ देंगे। इस वाक़िए ने उलेमाए कराम में एक अजीब क़िस्म का हैज़ान पैदा कर दिया। बिला आखि़र सब उलेमा आपस में मशवरे के बाद ऐसे दस उलेमा पर मुत्तफ़िक़ हो गये जो उन में निसबतन मुक़द्दस थे और प्रोग्राम यह बना कि जंगल में एक एक आलिम शब में जा कर इमामे ज़माना (अ.स.) से इस्तेआनत करे , चूंकि एक शब की मोहलत व मुद्दत मिली थी इस लिये परेशानी ज़्यादा थी। ग़रज़ कि उलेमा ने जंगल में जा कर इमामे ज़माना (अ.स.) से फ़रियाद का सिलसिला शुरू किया। दो आलिम अपनी अपनी मुद्दते फ़रयादो फ़ुगां ख़त्म होने पर जब वापस आये और तीसरे आलिम हज़रत मोहम्मद बिन अली की बारी आई तो आपने बदस्तूर सहरा में जाकर मुसल्ला बिछा दिया और नमाज़ के बाद इमामे ज़माना (अ.स.) को अपनी तरफ़ मुतवज्जे करने की कोशिश की लेकिन नाकाम हो कर वापस आते हुए उन्हें एक शख़्स रास्ते में मिला , उसने पूछा क्या बात है क्यों परेशान हो ? आपने अर्ज़ की इमामे ज़माना की तलाश है और वह तशरीफ़ ला नहीं रहे हैं। उस शख़्स ने कहा ‘‘ अना साहेबुल अस्र फ़ा ज़िक्र हाजतेका ’’ मैं ही तुम्हारा इमामे ज़माना हूँ। कहो क्या कहते हो। मोहम्मद बिन अली ने कहा कि अगर साहेबुल अस्र हैं तो आपसे हाजत बयान करने की ज़रूरत क्या ? आपको ख़ुद ही इल्म होगा।

इसके जवाब में उन्होंने फ़रमाया कि सुनो ! वज़ीर के कमरे में एक लकड़ी का सन्दूक़ है उसमें मिट्टी के कुछ सांचे रखे हुए हैं। जब अनार छोटा होता है वज़ीर उस पर सांचा चढ़ा देता है और जब वह बढ़ता है तो उस पर नाम कन्दा हो जाते हैं। जो सांचे में कन्दा हैं। मोहम्मद बिन अली ! तुम बादशाह को अपने हमराह ले जाकर वज़ीर के दजल व फ़रेब को वाज़े कर दो। वह अपने इरादे से बाज़ आ जायेगा और वज़ीर को सज़ा देगा। चुनान्चे ऐसा ही किया गया और वज़ीर बरख़ास्त कर दिया गया।(किताब बदाए उल अख़बार मुल्ला इस्माईल सबज़वारी , पृष्ठ 150 व सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 1 पृष्ठ 536 मुद्रित नजफ़े अशरफ़)

इमामे अस्र (अ.स.) का वाक़िए करबला बयान करना

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) से पूछा गया कि ‘‘كهيعص ’’ का क्या मतलब है। तो फ़रमाया कि इसमें काफ़ से करबला है , हे से हलाकते इतरत , ये से यज़ीद मलऊन , ऐन से अतशे हुसैनी , सुवाद से सब्रे आले मोहम्मद मुराद है। आपने फ़रमाया कि आयत में जनाबे ज़करिया का ज़िक्र किया गया है। जब ज़करिया को वाक़िए करबला की इत्तेला हुई तो वह तीन रोज़ तक मुसलसल रोते रहे।(तफ़सीरे सानी पृष्ठ 279 )

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के तूले उम्र की बहस

बाज़ मुशतशरक़ीन व माहेरीन आमार का कहना है कि ‘‘ जिनके आमाल व किरदार अच्छे होते हैं और जिनका पेज न.ए बातिन कामिल होता है उनकी उमरें तवील होती हैं। यही वजह है कि उलमा फ़ुक़हा और सुलहा की उमरें अकसर तवील देखी गई हैं और हो सकता है कि तवील उमर इमाम मेहदी (अ.स.) की यह भी वजह हो , इन से क़ब्ल जो आइम्मा (अ.स.) गुज़रे वह शहीद कर दिये गए और इन पर दुशमन का दस्तरस न हुआ तो यह ज़िन्दा रह गए और अब तक बाक़ी हैं। लेकिन मेरे नज़दीक़ उम्र का तक़र्रूर व तअय्युन दस्त एज़िदी में है उसे इख़्तेयार है कि किसी की उम्र कम रखे किसी की ज़्यादा। उसकी मोअय्यन करदा मुद्दत उम्र में एक पल का भी तफ़रेक़ा नहीं हो सकता।

तवारीख़ व अहादीस से मालूम होता है कि ख़ुदा वन्दे आलम ने बाज़ लोगों को काफ़ी तवील उमरे अता की हैं। उम्र की तवालत मसलहते ख़ुदा वन्दी पर मब्नी है। इससे उसने अपने दोस्दों और दुश्मनों को नवाज़ा है। दोस्तों में हज़रत ईसा (अ स ) , हज़रत इदरीस (अ स ) , हज़रत खि़ज़्र (अ स ) , हज़रत इलयास (अ.स.) और दुश्मनों में से इबलीस लईन , दज्जाल व बताल , याजूज माजूज वग़ैरा हैं और हो सकता है कि चुंकि क़यामत उसूले दीने इस्लाम से है और इसकी आमद में इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़हूर ख़ास हैसियत रखता है लेहाज़ा उनका ज़िन्दा व बाक़ी रहना मक़सद रहा हो और उनके तवीले उम्र के ऐतिराज़ को रद और रफ़ा दफ़ा करने के लिये उसने बहुत से अफ़राद की उम्रें तवील कर दी हों। मज़कूरा अफ़राद को जाने दीजिए। आम इंसानों की उम्रों को देखिए बहुत से ऐसे लोग मिलेंगे जिनकी उम्रे काफ़ी तवील रही है। मिसाल के लिये मुलाहेज़ा हों:-

1. लुक़मान की उम्र 3500 साल , 2. औज बिन अनक़ की उम्र 3300 साल और बक़ौले 3600 साल , 3. ज़ुलक़रनैन की उम्र 3000 साल , 4. हज़रत नूह (अ.स.) की उम्र 900 साल , 5. ज़हाक़ व 6. तमहूरस की उम्रें 1000 साल , 7. क़ैनान की उम्र 900 साल , 8. महलाइल की उम्र 800 साल , 9. नफ़ीस बिन अब्दुल्लाह की उम्र 700 साल , 10. रबी बिन उम्र उर्फ़ सतीह काहिन की उम्र 600 साल , 11. हाकिमे अरब आमिर बिन ज़रब की उम्र 500 साल , 12. साम बिन नूह 500 साल , 13. हरस बिन मजाज़ ज़र हमी की उम्र 400 साल , 14. अरमख़्शद की उम्र 400 साल , 15. दरीद बिन ज़ैद की उम्र 456 साल , 16. सलमान फ़ारसी की उम्र 400 साल , 17. उमर बिन दूसी की उम्र 400 साल , 18. ज़ुहैर बिन जनाब बिन अब्दुल्लाह की उम्र 430 साल , 19. हरस बिन ज़यास की उम्र 400 साल , 20. काब बिन जमजा की उम्र 390 साल , 21. नसर बिन धमान बिन सलमान की उम्र 390 साल , 22. क़ैस बिन साद की उम्र 380 साल , 23. उमर बिन रबी की उम्र 333 साल , 24. अक्सम बिन ज़ैफ़ी की उम्र 336 साल , 25. उमर बिन तफ़ील अदवानी की उम्र 200 साल थी।(ग़ाएतलम क़सूद पृष्ठ 103 आलामुल वुरा पृष्ठ 270 )

इन लोगों की तवील उम्रों को देखने के बाद यह हरगिज़ नहीं कहा जा सकता कि ‘‘ चुंकि इतनी उम्र का इंसान नहीं होता , इस लिये इमाम मेहदी (अ.स.) का वजूद हम तसलीम नहीं करते। क्यों कि इमाम मेहदी (अ.स.) की उम्र इस वक़्त (किताब लिखते वक्त) 1393 हिजरी में सिर्फ़ ग्यारह सौ अड़तालिस साल की होती है जो मज़कूरा उम्रों में है लुक़मान हकीम और ज़ुलक़रनैन जैसे मुक़द्दस लोगों की उम्रों से बहुत कम है।

अलग़रज़ कु़रआने मजीद , अक़वाले उलमाए इस्लाम और अहादीस से यह साबित होता है कि इमाम मेहदी (अ.स.) पैदा हो कर ग़ायब हो गए हैं और क़यामत के क़रीब ज़हूर करेंगे और आप उसी तरह ज़मानाए ग़ैबत में भी हुज्जते ख़ुदा हैं जिस तरह बाज़ अम्बिया अपने अहदे नबूवत में ग़ायब होने के दौरान में भी हुज्जत थे।(अजाएब अल क़सस पृष्ठ 191 ) और अक़ल भी यही कहती है कि आप ज़िन्दा और बाक़ी मौजूद हैं , क्यों कि जिस के पैदा होने पर उलमाए इस्लाम का इत्तेफ़ाक़ हुआ और वफ़ात का कोई एक भी ग़ैर मुतअसिब आलिम क़ाएल न हुआ और तवील उल उम्र इन्सानों के होने की मिसालें भी मौजूद हों तो ला मुहाला उसका मौजूद और बाक़ी होना मानना पड़ेगा। दलील मन्तक़ी से भी यही साबित होता है लेहाज़ा इमाम मेहदी (अ.स.) ज़िन्दा और बाक़ी हैं।

इन तमाम शवाहिद और दलाएल की मौजूदगी में जिनका हम ने इस किताब में ज़िक्र किया है मौलवी मोहम्मद अमीन मिस्री का रिसाला ‘‘ तूले इस्लाम ’’ कराची जिल्द 14 पृष्ठ 45 व पृष्ठ 94 में यह कहना कि , ‘‘ शियों को इब्तेदाअन रूए ज़मीन पर कोई ज़ाहेरी ममलेकत का़एम करने में कामयाबी न हो सकी इनको तकलीफ़ें दी गईं और परागन्दा और मुन्तशिर कर दिया गया तो उन्होंने हमारे ख़्याल के मुताबिक़ इमामे मुन्तज़िर और इमाम मेहदी (अ.स.) वग़ैरा के पुर उम्मीद अक़ाएद ईजाद कर लिये ताकि अवाम की ढारस बन्धी रहे।

और मुल्ला अख़ून्द दरवेज़ा का किताब इरशाद अल तालेबीत पृष्ठ 396 मे यह फ़रमाना कि , ‘‘ हिन्दुस्तान में एक शख़्स अब्दुल्लाह नामी पैदा होगा जिसकी बीवी अमीना(आमना) होगी। उसके एक लड़का पैदा होगा जिसका नाम मोहम्मद होगा , वही कूफ़े जा कर हुकूमत करेगा। लोगों का यह कहना दुरूस्त नहीं कि इमाम मेहदी (अ.स.) वही हैं जो इमाम हसन असकरी (अ.स.) के फ़रज़न्द हैं। ’’ हद दरजा मज़हक़ा ख़ेज़ , अफ़सोसनाक और हैरत अंगेज़ है क्यों कि उलेमाए फ़रीक़ैन का इत्तेफ़ाक़ है कि ‘‘ अल मेहदी मन वलद अल इमाम अल हसन अल असकरी ’’ इमाम मेहदी (अ.स.) हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) के बेटे हैं और 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हो चुके हैं।

मुलाहेज़ा हो , असआफ़ अल राग़बैन , दफ़यातुल अयान , रौज़तुल अहबाब , तारीख़े इब्नुल वरदी , नेयाबुल मोअद्दता , तारीख़े कामिल , तारीख़े तबरी , नुरूल अबसार , उसूले काफ़ी , कशफ़ुल ग़म्मा , जिलाउल उयून , इरशाद मुफ़ीद , आलामुल वरा , जामाए अब्बासी , सवाएक़े मोहर्रेक़ा , मतालेबुस सूऊल , शवाहेदुन नबूवत , अर हज्जुल मतालिब , बेहारूल अनवार , मनाक़िब वग़ैरा।

हदीसे नअसल और इमामे अस्र(अ स . )

नअसल एक यहूदी था जिससे हज़रत आयशा हज़रत उस्मान को तशबीह दिया करती थीं और रसूले इस्लाम (स अ व व ) के बाद फ़रमाया करती थीं इस नअसले इस्लामी उस्मान को क़त्ल कर दो। मुलाहेज़ा हो ,(निहायत अल लुग़ता अल्लामा इब्ने असीर जज़री पृष्ठ 321 ) यही नअसल एक दिन हुज़ूर रसूले करीम (स अ व व ) की खि़दमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ परदाज़ हुआ , मुझे अपने ख़ुदा , अपने दीन , अपने ख़ुलफ़ा का ताअर्रूफ़ कराईये अगर मैं आपके जवाब से मुतमईन हो गया तो मुसलमान हो जाऊंगा। हज़रत ने निहायत बलीग़ और बेहतरीन अंदाज़ में ख़ल्लाके आलम का ताअर्रूफ़ कराया। उसके बाद दीने इस्लाम की वज़ाहत की , ‘‘ का़ला सदक़त ’’ नअसल ने कहा आपने बिल्कुल दुरूस्त फ़रमाया फिर उसने अर्ज़ कि मुझे अपने वसी से आगाह कीजिए और बताइये की वह कौन हैं ? आपने फ़रमाया मेरे वसी अली बिन अबी तालिब (अ.स.) और उनके फ़रज़न्द हसन (अ.स.) व हुसैन (अ.स.) के सुल्ब से नौ (9) बेटे क़यामत तक होंगे। उसने कहा सब के नाम बताइये। आपने बारह इमामों के नाम बताए। नामों को सुनने के बाद वह मुसलमान हो गया और कहने लगा कि मैंने कुतुबे आसमानी में इन बारह नामों को इसी ज़बान के अलफ़ाज़ में देखा है। फिर उसने हर वसी के हालात बयान किये। करबला का होने वाला वाक़िया बताया। इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत की ख़बर दी और कहा कि हमारे बारह इस्बात में से लादी बिन बरखि़या ग़ायब हो गये थे। फिर मुद्दतों के बाद ज़ाहिर हुये और अज़ सरे नौ दीन की बुनियादें इस्तेवार (मज़बूत) कीं।

हज़रत ने फ़रमाया इसी तरह हमारा बारहवां जानशीन इमाम मेहदी मोहम्मद बिन हसन (अ.स.) तवील मुद्दत तक ग़ायब रह कर ज़हूर करेगा और दुनियां को अदलो इन्साफ़ से भर देगा।

(ग़ायतुल मक़सूद पृष्ठ 134 बहवाला फ़राएद अल सिमतैन हमवीनी)

अलामते ज़हूरे मेहदी (अ.स.) के मुताअल्लिक़ अरबाबे अस्मत के इरशादात

इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़हूर से पहले बेशुमार अलामात ज़ाहिर होंगे। फिर आखि़र में आपका ज़हूर होगा। मग़रिब व मशरिक़ पर आपकी हुकूमत होगी। ज़मीन खुद ब खुद तमाम दफ़ाएन (ज़मीन के ख़ज़ाने) उगल देगी। दुनियां की कोई ऐसी ज़मीन न बाक़ी रहेगी जिसको आप आबाद न कर दें। अलामाते ज़हूर में यह चन्द हैं:

1. औरतें मरदों के मुशाबेह होगीं। 2. मर्द औरतों जैसे होगें। 3. औरतें ज़ीन जैसी चीज़ें , घोड़े , साईकिलों , स्कूटरों , करों वग़ैरा पर सवारी करने लगेंगी। 4. नमाज़ जान बूझ कर क़ज़ा की जाने लगेगी। 5. लोग ख़ाहिशाते नफ़सानी की पैरवी करने लगेंगे। 6. क़त्ल करना मामूली चीज़ समझा जायेगा। 7. सूद का ज़ोर होगा। 8. ज़िना आम होगा। 9. अच्छी अच्छी इमारतें बहुत बनेगीं। 10. झूठ बोलना हलाल समझा जायेगा। 11. रिश्वत आम होगी। 12. शहवते नफ़सानी की पैरवी की जायेगी। 13. दीन को दुनिया के बदले बेचा जायेगा। 14. अज़ीज़दारी की परवाह न होगी। 15. अहमक़ों को आमिल बनाया जायेगा। 16. बुर्दबारी को बुज़दिली व कमज़ोरी पर महमूल किया जायेगा। 17. ज़ुल्म फ़ख़्र के तौर पर किया जायेगा। 18. बादशाह व उमरा फ़ासिक़ो फ़ाजिर होंगे। 19. वज़ीर झूठ बोलेंगे। 20. अमानत दार ख़ाएन होंगे। 21. हर एक मद्दगार ज़ुल्म परवर होगा। 22. क़ारीयाने क़ुरआन फ़ासिक़ होंगे। 23. ज़ुल्म व जौर आम होगा। 24. तलाक़ बहुत ज़्यादा होंगी। 25. फ़िसक़ो फ़ुजूर नुमायाँ होंगे। 26. फ़रेबी की गवाही क़ुबूल की जायेगी। 27. शराब नोशी आम होगी। 28. इग़लाम बाज़ी का ज़ोर होगा। 29. सिहक़ , यानी औरतें , औरतों के ज़रिए शहवत की आग बुझाएंगी। 30. माले ख़ुदा व रसूल (स अ व व ) को माले ग़नीमत समझा जायेगा। 31. सदक़ा व ख़ैरात से नाजायज़ फ़ायदा उठाया जायेगा। 32. शरीरों की ज़बान के ख़ौफ़ से नेक बन्दे ख़ामोश रहेंगे। 33. शाम से सुफ़ियानी का ख़ुरूज होगा। 34. यमन से यमानी बरामद होगा। 35. मक्के और मदीने के दरमियान ब मक़ाम ‘‘ लुद ’’ ज़मीन धंस जायेगी। 36. रूकन और मक़ाम के दरमियान आले मोहम्मद की एक मोअजि़्ज़ज़ फ़र्द क़त्ल होगी।(नुरूल अबसार पृष्ठ 155 मुद्रित मिस्र) 37. बनी अब्बास में शदीद एख़्तेलाफ़ होगा। 38. 15 शाबान को सूरज गरहन और इसी माह के आखि़र में चाँद गरहन होगा। 39. ज़वाल के वक़्त आफ़ताब अस्र के वक़्त तक क़ाएम रहेगा। 40. मग़रिब से आफ़ताब निकलेगा। 41. नफ़से ज़किया और सत्तर (70) सालेहीन का क़त्ल। 42. मस्जिदे कूफ़ा की दीवार ख़राब व बरबाद कर दी जायेगी। 43. ख़ुरासान की जानिब से सियाह (काले) झंडे बरामद होंगे। 44. मिस्र में एक मग़रेबी का ज़हूर होगा। 45. तुर्क जज़ीरे में होंगे। 46. रोम रमले में पहुँच जायेंगे। 47. मशरिक़ में एक सितारा निकलेगा जिसकी रौशनी मग़रिब तक फ़ैलेगी। 48. एक सुरखी ज़ाहिर होगी जो आसमान और सूरज पर गा़लिब आ जायेगी। 49. मशरिक़ से एक ज़बरदस्त आग भड़केगी जो तीन या सात रोज़ बाक़ी रहेगी और बरवायत शिब्लन्जी पृष्ठ 21 , वह आग मग़रिब तक फैल कर आलम को तहस नहस कर देगी। 50. अरब मुख़तलिफ़ बलाद पर क़ाबू पा लेंगे और अजम के बादशाह को मग़लूब कर देगें। 51. मिस्री अपने बादशाह और हाकिम को क़त्ल कर देंगे। 52. शाम तबाह व बरबाद हो जायेगा। 53. क़ैस व अरब के झंड़े मिस्र पर लहराएगें। 54. ख़ुरासान पर बनी कन्दा का परचम लहरायेगा। 55. फ़रात का पानी इस दरजा चढ़ जायेगा कि कूफ़े के गली कूचों में पानी होगा। 56. 60 , अद्द मुद्दीयाने नबूवत ज़ाहिर होंगे। 57. 13 नफ़र औलादे अबू तालिब से दावाए इमामत करेंगे। 58. बनी अब्बास का एक अज़ीम शख़्स ब मुक़ाम हलवलाद ख़ानक़ैन नज़रे आतश किया जायेगा। 59. बग़दाद में ख़रक़ जैसा पुल बनाया जायेगा। 60. सियाह आंधी का आना। 61. ज़लज़लों का आना। 62. अकसर मक़ामात पर ज़मीन का धंस जाना। 63. नागहानी मौतों का ज़्यादा होना। 64. जानो माल व समरात (फ़लों) की तबाही। 65. चींटीयों और टिड्डियों की कसरत जो खेती को खा जायें। 66. ग़ल्ले का कम उगना। 67. आपसी कुश्तो ख़ून की कसरत। 68. अपने सरदारो से लोगों का नाफ़रमान होना। 69. अपने सरदारों को क़त्ल करना। 70. बाज़ गिरोह का सुअर और बन्दर की सूरत में मसख़ होना। 71. आसमान से एक आवाज़ का आना जिसे तमाम अहले ज़मीन सुनेंगे। 72. आसमानी आवाज़ का हर ज़बान बोलने वाले के कान में उसी की ज़बान में पहुँचना। 73. बाज़ सूरतों का मक़ामे ऐन अल शम्स में ज़ाहिर होना। 74. 24 , चौबीस बारीशों का पै दर पै होना। 75. ज़मीन का ज़िन्दा हो कर अपने तमाम मालूमात ज़ाहिर करना।(कशफ़ल ग़म्मा पृष्ठ 134 ) 76. अच्छाई और बुराई एक नज़र से देखी जायेगी। 77. बुराई का हुक्म अपनी औलाद को दिया जायेगा और अच्छाई से रोका जायेगा। 78. लालच की वजह से बातिन ख़राब हो जायेंगे। 79. ख़ौफ़े ख़ुदा दिल से निकल जायेगा। 80. क़ुरआन का सिर्फ़ निशान रह जायेगा। 81. मस्जिदें आबाद मगर हिदायत से ख़ाली होंगी। 82. फ़ोक़हा फ़ितना परवर होंगे। 83. औरतों से मशवेरा लिया जायेगा। 84. गुनाह खुल्लम खुल्ला किया जायेगा। 85. बद अहदी आम होगी। 86. औरतों को तिजारत में शरीक किया जायेगा। 87. ज़लील तरीन शख़्स क़ौम का सरदार होगा। 88. गाने वालियों का ज़ोर होगा। 89. उस ज़माने के लोग अगलों पर बिला वजह लानत करेंगे। 90. झूठी गवाही दी जायेगी। 91. हक़ ख़त्म हो जायेगा। 92. क़ुरआन एक कोहना (पुरानी) किताब समझी जायेगी। 93. दीन अन्धा कर दिया जायेगा। 94. बदकारी ऐलान के साथ की जायेगी। 95. फ़िसक़ो फ़ुजूर में जिसकी मदह की जायेगी ख़ुश होगा। 96. लड़के औरतों की तरह उजरत पर इस्तेमाल होंगे। 97. मासियत पर माल ख़र्च करने वालों को टोका न जायेगा। 98. हमसाया हमसाये को अज़ीयत देगा। 99. नेकी का हुक्म करने वाला ज़लील होगा। 100. नेकी के रास्ते छोड़ दिये जायेंगे। 101. बैतुल्लाह मोअत्तल कर दिया जायेगा। 102. औरतें अन्जुमनें क़ायम करेंगी। 103. मर्द औरतों की तरह कंघी करेंगे। 104. मर्दों को शर्मगाहों का मुआवज़ा मिलेगा। 105. मोमिन से ज़्यादा साहेबे माल की इज़्ज़त होगी। 106. औरतें अपने शौहरों को मर्दों के साथ बद फ़ेली पर मजबूर करेंगी। 107. औरतों की दलाली करने वाले मोअज़्ज़ज़ समझे जायेंगे। 108. मोमिन ग़मगीन और ज़लील होगा। 109. हराम को हलाल किया जायेगा। 110. दीन में खुदराई की जायेगी। 111. गुनाह के लिये परदाए शब की ज़रूरत न होगी। 112. बड़े बड़े माल ख़ुदा की मासियत में सर्फ़ होंगे। 113. हुक्काम दीनदारी से दूर होंगे। 114. जज फ़ैसले में रिश्वत लेंगे। 115. हराम औरतों से ज़िना किया जायेगा , जैसे माँ बहनें। 116. मर्द अपनी जौजा की हराम कमाई खायेगा। 117. औरतें अपने मर्दों पर हुकूमत करेंगी। 118. मर्द अपनी जोजा और लोंडी को किराये पर चढ़ायेगा। 119. शरीफ़ को ज़लील समझा जायेगा। 120. हुक्काम में उसकी इज़्ज़त होगी जो आले मोहम्मद (स अ व व ) को बुरा कहेगा। 121. कु़रआन पढ़ना और सुन्ना बार होगा। 122. चुग़लखोरी आम होगी। 123. ग़ीबत को अच्छा समझा जायेगा। 124. हज और जेहाद ख़ुदा के लिये नहीं दीगर मक़ासिद के लिये किया जायेगा। 125. बादशाह यानी बर सरे इक़्तेदार तबक़ा मोमिन को काफ़िर के लिये ज़लील करेगा। 126. वीराना आबादी से बदल जायेगा। 127. नाप तोल में कमी लोंगो का ज़रिए माश होगा। 128. लोग रियासत तलबी के लिये अपने को बदज़बानी में मशहूर करेंगे ताकि ख़ौफ़ के मारे हुकूमत उनके सिपुर्द कर दी जाये। 129. नमाज़ बिल्कुल हलकी और बेअहमियत कर दी जायेगी। 130. माले कसीर के बावजूद ज़कात न दी जायेगी। 131. मय्यत क़ब्र से निकालीं जायेगी। 132. क़ब्र से कफ़न चुरा कर बेचा जायेगा। 133. इन्सान सुबह शाम नशे में होगा। 134. चोपायो के साथ बदफ़ेली की जायेगी। 135. चौपाए चौपायों को फाड़ खायेंगे। 136. लोग जानमाज़ पर बरहैना जायेंगे। 137. लोगों के क़ुलूब सख़्त हो जायेंगे। 138. लोगों की आंखें बेहयाई करेंगी। 139. ज़िक्रे ख़ुदा लोगों पर बार होगा। 140. माले हराम आम होगा। 141. नमाज़ सिर्फ़ दिखावे के लिये पढ़ी जायेगी। 142. फ़क़ीह दीन के सिवा दूसरे कामों के लिये फ़िक़ा हासिल करेंगे। 143. लोग ग़ासिब का साथ देंगे। 144. हलाल रोज़ी कमाने वाले की मज़म्मत की जायेगी। 145. तालिबे हराम की मदाह की जायेगी। 146. हरमैन शरीफ़ैन में ऐसे अमल होंगे जो मन्शाए ख़ुदा वन्दी के खि़लाफ़ होंगे। 147. आलाते ग़िना (गाने बजाने की चीज़ें) मक्के व मदीने में आम हों जायेंगी। 148. हक़ की हिदायत को मना किया जायेगा। 149. लोग एक दूसरे की तरफ़ देखेंगे और अहले शहर उनकी इक़्तेदा करेंगे चाहे वह कुछ करें। 150. नेकी के रास्ते ख़ाली हो जायेंगें। 151. मय्यत का मज़हका़ उड़ाया जायेगा। 152. हर साल बुराईयों मे ईज़ाफ़ा होगा। 153. मजलिस में सिर्फ़ माल दार की इज़्ज़त की जायेगी। 154. फ़क़ीरों को मज़हक़े के तौर पर माल दिया जायेगा। 155. आसमानी मख़ादफ़ से कोई ख़ौफ़ न खायेगा। 156. मर्द और औरतें सब के सामने ख़्वाहिशाते नफ़सानी की आग बुझायेंगे। 157. अपनी इज़्ज़त के ख़ौफ़ से कोई शरीफ़ किसी को रोक टोक न सकेगा। 158. मासियत में माल ख़ुशी से सर्फ़ किया जायेगा लेकिन ख़ुदा की राह में बिल्कुल न दिया जायेगा। 159. वालेदैन की तरफ़ से औलाद को आक़ करना आम हो जायेगा। 160. वालेदैन अपनी औलाद की निगाह में सुबुक़ होंगे। 161. औलाद अपने वालेदैन पर इफ़तेरा करने में ख़ुशी महसूस करेगी। 162. औरतें मुल्क व हुकूमत पर गा़लिब हो जायेंगी। 163. फ़रज़न्द अपने बाप पर बोहतान बांधेगा। 164. लड़का माँ बाप पर बद दुआ करेगा। 165. फ़रज़न्द माँ बा पके जल्द मरने की तमन्ना करेगा। 166. इंसान जिस दिन कोई गुनाह न करेगा उस दिन ग़मगीन रहेगा। 167. बादशाह गरानी के लिये ग़ल्ला रोकेगा। 168. आइज़्ज़ा का माल फ़रेब से तक़सीम किया जायेगा। 169. जुआ खेला जायेगा। 170. शराब के ज़रिये से मरीज़ों का इलाज किया जायेगा। 171. अच्छाई और बुराई दोनों की तलक़ीन बराबर हैसियत रखेगी। 172. मुनाफ़िक़ और दुश्मने ख़ुदा की हवा बंधेगी और अहले हक़ मक़हूर (बे इज़्ज़त) रहेंगे। 173. उजरत ले कर अज़ान कही जायेगी और ऐवज़ ले कर नमाज़ पढ़ाई जायेगी। 174. ख़ुदा से न डरने वाले मस्जिदों पर क़ाबिज़ होंगे। 175. मस्जिदों में न अहल जमा हो कर ग़िबतें करेंगे। 176. बद मस्त रसमी तौर पर जमाअत में खड़े हो कर नमाज़ पढ़ेंगे। 177. यतीमों का माल खाने वाले की मदह की जायेगी। 178. क़ाज़ी हुक्मे ख़ुदा के खि़लाफ़ फ़ैसला करेगा। 179. हुक्काम लालच की वजह से ख़ाइनों पर भरोसा करेंगे। 180. मीरास बदकारी में सर्फ़ की जायेगी। 181. मिम्बर पर तक़वे का ज़िक्र किया जायेगा लेकिन वाएज़ ख़ुद अमल नहीं करेगा। 182. नमाज़ के अवक़ात की परवाह न की जायेगी। 183. सदक़ा व ख़ैरात ख़ुशनूदिये ख़ुदा के लिये नहीं सिर्फ़ सिफ़ारिश पर दिया जायेगा। 184. इन्सान का मक़सूदे हयात सिर्फ़ पेट पालना और ऐश करना होगा। 185. हक़ की निशानियां मिट जायेंगी। 186. भाई भाई से हसद करेगा। 187. अपने दोस्तों के साथ ख़यानत की जायेगी। 188. दिलों में ज़हर की तरह तकब्बुर दौड़ जायेगा। 189. ज़ोहद ख़त्म हो जायेगा। 190. लोगों की शक्लें इन्सानी और दिल शैतानी हो जायेंगे। 191. उनकी उम्रें क़लील और उनकी तमन्नाएं कसीर होंगी।(बेहारूल अनवार जिल्द 13 पृष्ठ 174 मुद्रित ईरान) 192. कनीज़ों से मशविरे किये जायेंगे। 193. बच्चे मिम्बरों पर बैठेंगे। 194. ऐसे हाकिम होंगे कि जब उनसे कोई बात करेगा तो क़त्ल कर दिया जायेगा। 195. हुक्काम शुरफ़ा के माल को अपना माल समझेंगे। 196. औरतों की आबरू रेज़ी करेंगे। 197. कुछ चीज़ें मशरिक़ से और कुछ मग़रिब से लाई जायेंगी जिनसे उम्मत का इम्तेहान किया जायेगा। 198. मस्जिद नक़शों निगार से मुज़अय्यन की जायेगी। 199. कु़रआन मजीद सजाये जायेंगे। 200. मस्जिदों की मिनारें बलन्द बनाई जायेंगी। 201. मर्द सोना इस्तेमाल करेंगे। 202. रेशमी कपड़े पहनेगें। 203. चीते की खाल का फ़र्श बनायेंगे। 204. सूद ख़ोरी ज़ाहिर बज़ाहिर होगी। 205. हदे शरई न की जायेगी। 206. शरीर अफ़राद हाकिम होंगे। 207. मालदार तफ़रीह के लिये , ग़रीब दिखाने के लिये मुतवसित तिजारत के लिये हज करेंगे। 208. क़ुरआन मजीद सुर से पढ़ा जायेगा। 209. वल्द अज़ ज़ेना की कसरत होगी। 210. ख़ुशामद बहुत ज़्यादा राएज होगी। 211. लिबास पर फ़ख़रो मुबाहात किया जायेगा। 212. उमरा शतरन्ज खेलेंगे। 213. क़ारियाने क़ुरआन और अब्बाद एक दूसरे पर लानत करेंगे। 214. मालदार फ़ख़ीरों से दूर भागेंगे। 215. मुल्की नज़्म व नस्क़ में वह लोग दख़ील होंगे जिनको उससे हिस व मिस न होगा। 216. ज़मीने ऐतिराफ़ से धंस जायेंगी।(तफ़सीर अली बिन इब्राहीम क़ुम्मी पृष्ठ 229 ) 217. दरिन्दें इन्सानों से बाते करने लगेंगे। 218. लोंगो से उनके कोड़े और जूते कलाम करने लगेंगे। 219. इन्सान की राने बोलने लगेंगी और वह इसके घर के लोगों ने जो कुछ किया होगा घर के मालिक को बताने लगेगी।(नियाबुल मोवद्दता पृष्ठ 431 बहवाला तिरमिज़ी) 220. सुफ़यानी , ख़ुरासानी , यमानी का ख़ुरूज एक ही दिन , एक ही महीना , एक ही साल में होगा। 221. हुकूमते शाम , हमस महतसकीन , अरदन कफ़ससरीन पर ग़ालिब आ जायेगी। 222. तूफ़ान का ज़ोर होगा। 223. वादी याबिस से ‘‘ इब्ने आक़लातुल अकबाद ’’ खुरूज करेंगे। 224. मोमेनीन का इम्तेहान ख़ौफ़ , जू अन्कस अमवाल , नक़श , समरात से होगा। 225. शाम का ‘‘ क़रिया ’’ जाबीह ज़मीन में धंस जायेगा। 226. क़त्ले नफ़से ज़किया के 15 दिन बाद इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़हूर होगा।(आलम अलवरा तबरसी पृष्ठ 262 मुद्रित बम्बई 1312 हिजरी) 227. दुनियां में झगड़े बखेड़े बेइन्तेहां होंगे। 228. नए नए फ़ितने पैदा होंगे। 229. आमदो रफ़्त के रास्ते बन्द हों जायेंगे। 230. लोग एक दूसरे को लूटने लगेगें।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 472 ) 231. मर्दों की कमी और औरतों की ज़्यादती होगी। 232. हेजाज़ से आग निकलेगी। 233. मस्जिदों से(लाऊड स्पीकर वग़ैरा के ज़रिये से) आवाज़ें बुलन्द होंगी। 234. रेशमी लिबास मर्द पहनने लगेगें। 235. मशरिक़ मग़रिब जज़ीराए अरब में ज़मीन धंस जायेंगी। 236. यमन और अदन से आग भड़कने लगेगी।(मिशक़ात पृष्ठ 461 ) 237. अच्छे लोग ख़त्म हो जायेंगे और बुरों की कसरत होगी। 238. मुक़द्देराते इलाही की मुख़ालेफ़त आम होगी। 239. माल के लाने ले जाने वाले चोरी करेंगे। 240. हराम ख़ोरी आम होगी। 241. गरानी हद से बढ़ जाएगी। 242. दरिया ख़ुश्क हो जायेंगे। 243. बारिश बन्द हो जायेगी। 244. अहले बरबर ज़र्द झंडे ले कर मिस्र पहुँच जायेंगे। 245. सख़र की औलाद से एक शख़्स खुरूज करेगा। 246. बर सरे आम औरतों की छातियों से खेला जायेगा। 247. सफ़ेद पिंडलियों की औरतें सड़कों पर बरैहना मिलेगी। 248. एक यमनी बादशाह हसन नामी यमन से खुरूज करेगा। 249. हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं क़ुरसे आफ़ताब (सूरज के गोले) के क़रीब आसमान पर एक हाथ ज़ाहिर होगा। 250. हज का रास्ता बन्द कर दिया जायेगा। 251. मर्दों से बदफ़ेली के लिये ताक़तवर ग़िजा़ए खाई जायेंगी। 252. दौलत के ज़ोर से हुकूमत हासिल की जायेगी। 253. झूठी क़सम खाना फ़ैशन में दाखि़ल होगा। 254. ज़ख़ीरा अन्दोज़ी होगी। 255. मस्जिदे बरासा जो जंगे नहरवान के बाद हज़रत अली (अ.स.) ने राहिब ज़रिये से बनाई थी , तबाह कर दी जायेगी। 256. क़ज़वैन में एक काफ़िर की अज़ीम हुकूमत होगी। 257. तकरीत से एक शख़्स ‘‘ औफ़ सलमा ’’ नामी ख़ुरूज करेगा। 258. मक़ामे क़रक़िया में जंगे अज़ीम होंगी। 259. तुर्क मैदाने जंग में उतर आयेंगे। 260. अहले नाक़ूस नसारा की हुकूमते आलम पर छा जायेंगे। 261. इस्लामी मुमालिक में बेशुमार कलीसे बनाये जायेंगे।(किताब अल वसाएल अलहाज मोहम्मद अली पृष्ठ 207 मुद्रित बम्बई 1329 हिजरी) 262. औरतें ऊंट के कोहान की तरह सर के बाल बनाएंगी। 263. औरतें ऐसे कपड़े पहनेंगी कि बरैहना मालूम होंगी। 264. औरतें ज़ीनत कर के बाहर निकला करेंगी।(बेहारूल अनवार) 265. लड़के लम्बे बाल रखेंगे। 266. बेवकूफ़ तफ़रीह के लिये इस्तेमाल किये जायेंगे। 267. मस्जिदें ख़ूबसूरत बनाई जायेंगी। 268. बड़ी बड़ी इमारतें बनाई जायेंगी। 269. क़हवे की मुख़्तलिफ़ क़िस्में इस्तेमाल होंगी। 270. लोग सवारियों से टकरा कर मरेंगे। 271. लोग रात में सोयेंगे और सुबह को मुर्दा होंगे। 272. रोयते हिलाल पर इख़्तेलाफ़ होंगे। 273. लोग आलाते ग़िना जेब में रख कर घूमा करेंगे। 274. हिन्द तिब्बत की वजह से तबाह होगा और तिब्बत की तबाही चीन की वजह से होगी।(मनाक़िब) 275. मिस्र में अमीर अल आमरा का क़याम होगा। 276. अरबो की हुकूमत छिन जायेगी।(कशफ़ुल ग़म्मा) 277. अदन की गहराई से आग निकलेगी।(रिसालाए ग़ैबत तूसी पृष्ठ 281 ) 278. दुनियां में हबशियों की हुकूमत क़ायम हो जायेंगी। 279. शाम में चीनी घुस जायेंगे तब ज़हूर होगा।(इलजा़म अल निसाब पृष्ठ 183 )

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़हूर मौफ़ूरुल सुरूर

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़हूर से पहले जो अलामात जा़हिर होंगी उनकी तकमील के दौरान ही में नसारा फ़तेह ममालिके आलम का इरादा कर के उठे खड़े होंगे और बेशुमार ममालिक पर क़ाबू हासिल करने के बाद उन पर हुक्मरानी करेंगे। इसी ज़माने में अबू सुफ़ियान की नस्ल से एक ज़ालिम पैदा होगा जो अरब व शाम पर हुक्मरानी करेगा। इसकी दिली तमन्ना यह होगी की सादात के वजूद से मुमालिके मीरूसा ख़ाली कर दिये जायें और नस्ले मोहम्मदी का एक फ़रज़न्द भी बाक़ी न रहे। चुनान्चे वह सादात को निहायत बेदर्दी से क़त्ल करेगा। फिर इसी असना में बादशाहे रोम को नसारा के एक फ़िरक़े से ज़ग करना पड़ेगी शाहे रोम एक फ़िरक़े को हमवार बना कर दूसरे फ़िरक़े से जंग करेगा और शहर क़ुसतुनतुनयां पर क़ब्ज़ा कर लेगा। क़ुसतुनतुनियां का बादशाह वहां से भाग कर शाम में पनाह लेगा , फिर वह नसारा के दूसरे फ़िरक़े की मुवावनत से फ़िरक़ये मुख़लिफ़ के साथ नर्बद आज़मा होगा। यहां तक कि इस्लाम को ज़बर दस्त फ़तेह नसीब होगी। फ़तेह इस्लाम के बवजूद नसारा शोहरत देंगे कि ‘‘ सलीब ’’ ग़ालिब आयेगी उस पर नसारा और मुसलमानों मे जंग होगी और नसारा ग़ालिब आजायगें। बादशाहे इस्लाम क़त्ल हो जायेगा और मुल्के शाम पर भी नसारा का झंडा लहराने लगेगा और मुसलमानों का क़त्ले आम होगा। मुसलमान अपनी जान बचा कर मदीने की तरफ़ कूच करेंगे और नसारा अपनी हुकूमत को वुस्अत देते हुए ख़ैबर तक पहुँचेंगे। इस्लामियां आलम के लिये कोई पनाह न होगी। मुसलमान अपनी जान बचाने से आजिज़ होंगे। उस वक़्त वह गिरोह सारे आलम में मेहदी (अ.स.) को तलाश करेंगे , ताकि इस्लाम महफ़ूज़ रह सके और उनकी जानें बच सकें और अवाम ही नहीं मुल्क के कुतुब , अबदाल और औलिया , जुस्तजू में मशग़ूल व मसरूफ़ होंगे नागाह आप मक्का ए मोअज़्ज़मा में रूकनव मक़ाम के दरमियान से बरामद होंगे।(क़यामत नामा क़दो तह अल मोहद्देसीन शाह रफ़ीउद्दीन देहलवी पृष्ठ 3 मुद्रित पेशावर 1926 0 ) उलमाए फ़रीक़ैन का कहना है कि आप क़रिया ‘‘ क़रआ ’’ से रवाना हो कर मक्कए मोअज़्ज़मा से ज़हूर फ़रमाएंगे।

(ग़ाएतल मक़सूद पृष्ठ 165, नूरूल अबसार पृष्ठ 154 )

अल्लामा कुन्जी शाफ़ई और अली बिन मोहम्मद साहब किफ़ायतुल अस्र का ब हवाला अबू हुरैरा बयान करते हैं कि हज़रत सरवरे कायनात (स अ व व ) ने इरशाद फ़रमाया है कि इमाम मेहदी (अ.स.) क़रया (क़रआ) (जो मदीने से बतरफ़ मक्का तीस मील के फ़ासले पर वाक़े है(मजमुअल बहरैन पृष्ठ 435 ) निकल कर मक्का ए मोअज़्ज़मा से ज़हूर करेंगे , वह मेरी ज़िरा पहने होगे। मेरी तलवार लगाए होंगे और मेरा अमामा बांधे होंगे। उनके सर पर अब्र का साया होगा और मलक आवाज़ देता होगा यही इमाम मेहदी (अ.स.) हैं इनकी इत्तेबा करो। एक रवायत में है कि जिब्राईल आवाज़ देगें और ‘‘ हवा ’ ’ इसको सारी कायनात में पहुँचा देगी और लोग आपकी खि़दमत मे हाज़िर होंगे।(ग़ाएतुल मक़सूद पृष्ठ 165 )

लुग़ाते सरवरी पृष्ठ 530 में है कि आप क़स्बाए ख़ैरवाँ से ज़हूर फ़रमाएंगे। मासूम का फ़रमान है कि इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़हूर के मुताअल्लिक़ किसी का कोई वक़्त मोअय्यन करना फ़िल हक़ीक़त अपने आप को इल्में ग़ैब में ख़ुदा का शरीक क़रार देना है। वह मक्के में बे ख़बर ज़हूर करेंगे , उनके सर पर ज़र्द रंग का अमामा होगा। बदन पर रिसालत मआब (स अ व व ) की चादर और पाँव में उन्हीं की नालैने मुबारक होगी। वह अपने सामने चन्द भेड़ें रखेंगे। कोई उन्हें पहचान न सकेगा और उसी हालत में यको तन्हा बग़ैर किसी रफ़ीक़ के काबातुल्लाह में आ जायेंगे। जिस वक़्त आलम सियाहिए शब की चादर ओढ़ लेगा और लोग सो जायेंगे उस वक़्त मलाएका सफ़ ब सफ़ उतरेंगे और हज़रत जिब्राईल व मीकाईल उन्हें नवेदे इलाही सुनाएंगे , कि उनका हुक्म तमाम दुनियां पर जारी व सारी है। यह बशारत पाते ही इमाम मेहदी (अ.स.) शुक्रे ख़ुदा बजा लाऐंगे और रूकने हजरे असवद और मक़ामे इब्राहीम के दरमियान खड़े हो कर बा आवाज़े बुलन्द निदा देंगे कि ऐ वह गिरोह जो मेरे मख़सूसों और बुज़ुर्गों से हो और वह लोग जिनको हक़ तआला ने रूए ज़मीन पर मेरे ज़ाहिर होने से पहले मेरी मद्द के लिये जमा किया है ‘‘ आजाओ ’’ यह निदा हज़रत के उन लोगों तक ख़्वाह वह मशरिक़ में हैं या मग़रिब में पहुँच जायेगी , और वह लोग यह आवाज़ सुन कर चश्मे ज़दन में हज़रत के पास जमा हो जायेंगे। यह लोग 313 होंगे और नक़ीबे इमाम कहलाएंगे। उसी वक़्त एक नूर ज़मीन से आसमान तक बलन्द होगा जो सफ़े दुनियां में हर मोमिन के घर में दाखि़ल होगा। जिससे उनकी तबीयतें मसरूर हो जायेंगी मगर मोमिनीन को मालूम न होगा कि इमाम (अ.स.) का ज़हूर हुआ है। सुबह इमाम (अ.स.) मय उन 313 अशख़ास (लोगों) के जो रात को उन के पास जमा हो गये थे काबे में खड़े होंगे और दीवार से तकिया लगा कर अपना हाथ खोलेंगे जो मूसा (अ.स.) के यदे बैज़ा के मानिन्द होगा और कहेंगे कि जो कोई इस हाथ पर बैयत करेगा वह ऐसा है गोया उसने ‘‘ यद अल्लाह ’’ पर बैयत की। सब से पहले जिब्राईल शरफ़े बैयत से मुशर्रफ़ होंगे। इनके बाद मलायका बैयत करेंगे। फिर मुक़द्दम अल ज़िक्र नुक़बा 313 बैयत से मुशर्रफ़ होंगे। इस हलचल और इज़देहाम में मक्के में तहलका मच जायेगा और लोग हैरत ज़दा हो कर हर सिम्त से इस्तेफ़सार करेंगे कि यह कौन शख़्स है। यह तमाम वाक़ेयात तुलूए आफ़ताब से पहले सर अन्जाम हो जायेंगे फिर जब सूरज चढ़ेगा तो कु़रसे आफ़ताब के सामने एक मुनादी करने वाला ज़ाहिर होगा और बाआवाज़े बलन्द कहेगा जिसको साकेनाने ज़मीनो आसमान सुनेंगे कि ‘‘ ऐ गिरोह ख़लाएक़ यह मेहदी आले मोहम्मद (स अ व व ) हैं इनकी बैयत करो फिर मलाएक और 313 आदमी तसदीक़ करेंगे और दुनिया के हर गोशे से ज़ूक दर ज़ूक आपकी ज़्यारत के लिये रवाना हो जायेंगे और आलम पर हुज्जत क़ायम हो जायेगी। इसके बाद दस हज़ार अफ़राद बैयत करेंगे और कोई यहूदी और नसरानी बाक़ी न छोड़ा जायेगा सिर्फ़ अल्लाह का नाम होगा और इमाम मेहदी (अ.स.) का काम होगा। जो मुख़ालेफ़त करेगा उस पर आसमान से आग बरसे गी और उसे ख़ाक इसतर कर देगी।(नूरूल अबसार , इमाम शिब्लन्जी , शाफ़ेई पृष्ठ 155, आलामुल वुरा पृष्ठ 264 )

उलेमा ने लिखा है कि 27 मुख़लेसीन आपकी खि़दमत में कूफ़े से इस क़िस्म के पहुँच जायेंगे जो हाकिम बनाए जायेंगे। जिनके असमा , किताब ‘‘ मुन्तख़ब बसाएर ’’ यह हैं। यूशा बिन नून , सलमान फ़ारसी , अबू दजाना अन्सारी , मिक़दाद बिन असवद , मालिके अशतर और क़ौमे मूसा के 15 अफ़राद और सात असहाबे कहफ़।(आलामुल वुरा पृष्ठ 264, इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 216 )

अल्लामा अब्दुल रहमान जामी का कहना है कि कुतब , अबदाल , अरफ़ा सब आपकी बैयत करेंगे। आपकी जानवरों की ज़बान से भी वाक़िफ़ होंगे और आप इंसानों व जिनों में अदल व इंसाफ़ करेंगे।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 216 )

अल्लामा तबरीसी का कहना है कि आप हज़रते दाऊद (अ.स.) के उसूल पर अहकाम जारी करेंगे। आपको गवाह की ज़रूरत न होगी। आप हर एक के अमल से ब इल्हामे ख़ुदा वन्दी वाक़िफ़ होंगे।(आलामुल वुरा पृष्ठ 264 )

इमाम शिब्लन्जी शाफ़ेई का बयान है कि जब इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़हूर होगा तो तमाम मुसलमान ख़वास और अवाम ख़ुश व मसरूर हो जायेंगे। उनके कुछ वज़रा होंगे जो आपके अहकाम पर लोगों से अमल कराऐंगे।(नूरूल अबसार पृष्ठ 153 बहवाला फ़तूहाते मक्किया)

अल्लाम हल्बी का कहना है कि असहाबे कहफ़ आप के वज़रा होंगे।(सीरते हल्बिया)

हमूयनी का बयान है कि आपके जिस्म का साया न होगा।(ग़ायत अल मक़सूद जिल्द 2 पृष्ठ 150 )

हज़रत अली (अ.स.) का फ़रमान है कि अन्सार व असहाब इमाम मेहदी (अ.स.) ख़ालिस अल्लाह वाले होंगे।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 469 ) और आपके गिर्द इस तरह लोग जमा हो जायेंगे जिस तरह शहद की मक्खी अपने ‘‘ यासूब ’’ बादशाह के गिर्द जमा हो जाती हैं।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 469 )

एक रवायत में है कि ज़हूर के बाद आप सब से पहले कूफ़े तशरीफ़ ले जायेंगे और वहां के कसीर अफ़राद क़त्ल करेंगे।

इमाम मेहदी (अ.स.) का सिने ज़हूर

ख़ल्लाक़े आलम ने पांच चीजो का इल्म अपने लिये मख़सूस रखा है जिनमें एक क़यामत भी है।(क़ुरआने मजीद) ज़हूरे इमाम मेहदी (अ.स.) चूंकि लाज़मए क़यामत से है लेहाज़ा इसका इल्म भी ख़ुदा ही को है कि आप कब ज़हूर फ़रमाऐंगे। कौन सी तारीख़ होगी , कौन सा सन् होगा। ताहम अहादीसे मासूमीन (अ.स.) जो इल्हाम और कु़रआन से मुसतम्बित होती हैं उनमें इशारे मौजूद हैं। अल्लामा शेख़ मुफ़ीद , अल्लामा सैय्यद अली , अल्लामा तबरेसी , अल्लामा शिब्लन्जी रक़म तराज़ हैं कि हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने इसकी वज़ाहत फ़रमाई है कि आप ताक़ सन् में ज़हूर फ़रमाऐंगे जो 1 , 3 , 5 , 7 , 9 , से मिल कर बनेगा मसलन 1300 , 1500 , 1700 , 1900 या 1000 , 3000 , 5000 , 7000 , 9000 , इसी के साथ ही साथ आपने फ़रमाया है कि आपके इस्मे गेरामी का ऐलान बज़रिए जनाबे जिब्राईल (अ.स.) 23 तारीख़ को कर दिया जायेगा और ज़हूर यौमे आशूरा होगा जिस दिन इमाम हुसैन (अ.स.) ब मुक़ामे करबला शहीद हुए हैं।(शरह इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 532, ग़ायतूल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 161, आलामुल वुरा पृष्ठ 262, नूरूल अबसार पृष्ठ 155 )

मेरे नज़दीक़ ज़िल्ज्जिा की 23 तारीख़ होगी क्यो कि नफ़से ज़किया के क़त्ल और ज़हूर में 15 रातों का फ़ासला होना मुसल्लम है। इमकान है कि क़त्ले नफ़से ज़किया के बाद ही नाम का ऐलान कर दिया जाय फिर उसके बाद ज़हूर हो।

मुल्ला जव्वाद साबाती का कहना है कि इमाम मेहदी (अ.स.) यौमे जुमा बवक़्ते सुबह बतारीख़ 10 मोहर्रमुल हराम 7100 हिजरी में ज़हूर फ़रमाऐंगे।(ग़ाएतुल मक़सूद पृष्ठ 161 ब हवाला बराहीने साबतीया)

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) का इरशाद है कि इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़हूर बवक़्ते अस्र होगा और वही असराय ‘‘ वल अस्र इन्नल इंसाना लफ़ी ख़ुसरिन ’’ से मुराद है।

शाह नेमत अल्लाह वली काज़मी अल मतूफ़ी 827 हिजरी(मजालिसे मोमेनीन पृष्ठ 276 ) जो शायर होने के अलावा आलिम और मुनज्जिम भी थे। आपको इल्मे जाफ़र में भी दख़्ल था। आपने अपनी मशहूर पेशीन गोई में 1380 हिजरी का हवाला दिया है जिसका ग़लत होना साबित है क्यों कि 1393 हिजरी है। (वल इल्म इन्दल्लिाह) (क़यामत नामा क़ुदवतुल मोहद्देसीन शाह रफ़ीउद्दीन पृष्ठ 38 )

ज़हूर के वक़्त इमाम (अ.स.) की उम्र

यौमे विलादत से ता बा ज़हूर आपकी क्या उम्र होगी ? इसे तो ख़ुदा ही जाने , लेकिन यह मुसल्लेमात से है कि जिस वक़्त आप ज़हूर फ़रमायेंगे मिसले हज़रते ईसा (अ.स.) आप चालीस साला जवान की हैसियत में होंगे।(आलामुल वुरा पृष्ठ 265 व ग़ायतुल मक़सूद पृष्ठ 76 पृष्ठ 119 )

आपका अलम

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के अलम पर ‘‘ अल बकीयतुल्लाह ’’ लिखा होगा और आप अपने हाथों पर ख़ुदा के लिये बैयत लेंगे और कायनात में सिर्फ़ दीने इस्लाम का परचम लहरायेगा।(यनाबिउल मोवद्दता पृष्ठ 434 )

ज़हूर के बाद

ज़हूर के बाद हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) काबे की दीवार से टेक लगा कर खडे होंगे। अब्र(बादल) का साया आपके सरे मुबारक पर होगा। आसमान से आवाज़ आती होगी ‘‘ यही इमाम मेहदी (अ.स.) हैं ’’ इसके बाद आप एक मिम्बर पर जलवा अफ़रोज़ होंगे। लोगो को ख़ुदा की तरफ़ दावत देंगे और दीने हक़ की तरफ़ आने की सब को हिदायत फ़रमायेंगे। आपकी तमाम सीरत पैग़म्बरे इस्लाम की सीरत होगी और उन्हीं के तरीक़े पर अमल पैरा होंगे। अभी आपका ख़ुत्बा जारी होगा कि आसमान से जिब्राईल और मीकाईल आ कर बैयत करेंगे। फिर मलाएक ए आसमानी की आम बैयत होगी। हज़ारों मलाएका की बैयत के बाद वह 313 मोमेनीन बैयत करेंगे जो आपकी खि़दमत में हाज़िर हो चुके होंगे। फिर आम बैयत का सिलसिला शुरू होगा। दस हज़ार अफ़राद की बैयत के बाद आप सब से पहले कूफ़े तशरीफ़ ले जायेंगे और दुश्मनाने आले मोहम्मद का गला क़मा करेंगे। आपके हाथ में असाए मूसा होगा। जो अज़दहे का काम करेगा और तलवार हेमाएल होगी।(अयनुल हयात मजलिसी पृष्ठ 92 )

तवारीख़ में है कि जब आप कूफ़े पहुँचेंगे तो कई हज़ार का एक गिरोह आपकी मुख़ालफ़त के लिये निकल पडे़गा और कहेगा हमें बनी फ़ात्मा की ज़रूरत नहीं , आप वापस जाइये , यह सुन कर तलवार से उनका क़िस्सा पाक कर देंगे और किसी को भी ज़िन्दा न छोड़ेंगे। जब कोई भी दुश्मनें आले मोहम्मद और मुनाफ़िक़ वहां बाकी़ न रहेगा तो आप एक मिम्बर पर तशरीफ़ ले जायेंगेक और वाक़िया ए करबला का ज़िक्र करेंगे यानी मजलिसे हुसैन (अ.स.) पढ़ेंगे। उस वक़्त लोग महवे गिरया हो जायेंगे और कई घंटे तक रोने का सिलसिला जारी रहेगा। फिर आप हुक्म देंगे कि मशहदे हुसैन (अ.स.) तक नहरे फ़ुरात काट कर लाई जाये और एक मस्जिद की तामीर की जाये , जिसके एक हज़ार दर हों चुनान्चे ऐसा ही किया जायेगा। इसके बाद आप ज़्यारते सरवरे कायनात के लिये मदीनए मुनव्वरा तशरीफ़ ले जायेंगे।

(आलामुल वुरा पृष्ठ 263 इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 532 नूरूल अबसार पृष्ठ 155 )

क़ुदवतुल मोहद्देसीन शाह रफ़ीउद्दीन रक़म तराज़ हैं कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) जो इल्मे लदुन्नी से भर पूर होंगे जब मक्के से आपका ज़हूर होगा और उस ज़हूर की शोहरत अतराफ़ व अकनाफ़े आलम में फैलेगी तो अफ़वाज़ मदीना व मक्का आपकी खि़दमत में हाज़िर होगी और शाम व ईराक़ व यमन के अब्दाल और औलिया खि़दमत शरीफ़ में हाज़िर होंगे और अरब की फ़ौजे जमा हो जायेंगी। आप उन तमाम लोगों को उस ख़ज़ाने से माल देंगे जो काबे से बरामद होगा और मुक़ामे ख़जा़ना को ‘‘ ताजुल काबा ’’ कहते होंगे। इसी असना में एक शख़्स ख़ुरासानी अज़ीम फ़ौज ले कर हज़रत की मदद के लिये मक्के मोअज़्ज़मा को रवाना होगा। रास्ते में इस लशकरे ख़ुरासानी के मुक़द्देमा अल जैश के कमान्डर मन्सूर से नसरानी फ़ौज की टक्कर होगी और ख़ुरासानी लशकर नसरानी फ़ौज को पसपा कर के हज़रत की खि़दमत में पहुँच जायेगा।

इसके बाद एक शख़्स सुफ़ियानी जो बनी कल्ब से होगा हज़रत से मुक़ाबले के लिये लशकरे अज़ीम इरसाल करेगा लेकिन बहुक्मे ख़ुदा जब वह लशकरे मक्काए मोअज़्ज़मा और काबाए मुनव्वरा के दरमियान पहुँचेगा और पहाड़ में क़याम करेंगा जो ज़मीन में वहीं धंस जायेगा। फिर सुफ़ियानी जो दुशमनों आले मोहम्मद होगा नसारा से साज़ बाज़ कर के इमाम मेहदी (अ.स.) से मुक़ाबले के लिये ज़बर दस्त फ़ौज फ़राहम करेगा। नसरानी और सुफ़ियानी फ़ौज के अस्सी निशान होंगे और निशान के नीचे 12000 की फ़ौज होगी। उनका दारूल खि़लाफ़ा शाम होगा। इमाम मेहदी (अ.स.) भी मदीनाए मुनव्वरा होते हुए जल्द से जल्द शाम पहुँचेंगे। जब आप का वरूदे मसऊद दमिशक़ में होगा तो दुश्मने आले मोहम्मद और सुफ़ियानी और दुशमने इस्लाम नसरानी आप से मुक़ाबले के लिये सफ़ आरा होंगे। इस जंग में फ़रीक़ैन के बे शुमार अफ़राद क़त्ल होंगे। बिल आखि़र इमाम (अ.स.) का फ़तेह कामिल होगी और एक नसरानी भी ज़मीने शाम पर बाक़ी न रहेगा। उसके बाद इमाम (अ.स.) अपने लशकरियों में इनाम तक़सीम करेंगे और उन मुसलमानों को मदीनए मुनव्वरा से वापस बुला लेगे जो नसरानी बादशाह के ज़ुल्म व जौर से आजिज़ आ कर शाम से हिजरत कर गये थे।(क़यामत नामा पृष्ठ 4 )

इसके बाद आप मक्काए मोअज़्ज़मा वापस तशरीफ़ ले जायेंगे और मस्जिदे सहला में क़याम फ़रमायेंगे।(इरशाद पृष्ठ 533 )

इसके बाद मस्जिदुल हराम को अज़ सरे नो बनायेंगे और दुनिया की तमाम मसाजिद को शरई उसूल पर कर देंगे , हर बिदअत को ख़त्म कर देंगे और हर सुन्नत को क़ायम करेंगे। निज़ामे आलम दुरूस्त करेंगे और शहरों में फ़ौजें इरसाल करेंगे। इन्सेराम व इन्तेज़ाम के लिये वज़रा रवाना होंगे।(आलामुल वुरा पृष्ठ 262 पृष्ठ 264 )

इसके बाद आप मोमेनीन , कामेलीन और काफ़रीन को ज़िन्दा करेंगे और इस ज़िन्दगी का मक़सद यह होगा कि मोमेनीन इस्लामी उरूज से ख़ुश हों और काफ़ेरीन से बदला लिया जाये। इन ज़िन्दा किये जाने वालों में का़बिल से ले कर उम्मते मोहम्मदिया के फ़राना तक ज़िन्दा किये जायेंगे और उनके किये का पूरा पूरा बदला उन्हें दिया जायेगा। जो जो ज़ुल्म उन्हीं ने किये उनका मज़ा चखेंगे। ग़रीबों मज़लूमों और बे कसों पर जो ज़ुल्म हुआ है उसकी , ज़ालिम को सज़ा दी जायेगी। सब से पहले जो वापस लाया जायेगा वह यज़ीद बिन माविया मलऊन होगा और इमाम हुसैन (अ.स.) तशरीफ़ लायेंगे।(ग़ायत अल मक़सूद)