चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

दज्जाल और उसका ख़ुरूज

दज्जाल दजल से मुश्तक़ है (बना है) जिसके मानी फ़रेब के हैं। इसका असल नाम साएफ़ , बाप का नाम साएद , माँ का नाम काहेता उर्फ़ क़तामा है। यह अहदे रिसालत माआब (स अ व व ) में बमक़ामे तौहा जो मदीना ए मुनव्वरा से तीन मील के फ़ासले पर वाक़े है चहार शम्बे के दिन बवक़्ते ग़ुरूबे आफ़ताब पैदा हुआ है। पैदाईश के बाद आन्न फ़ान्न बढ़ रहा था उसकी दाहिनी आँख फूटी थी और बाई आँख पेशानी पर चमक रही थी। वह चन्द दिनों में काफ़ी बढ़ कर दावाए ख़ुदाई करने लगा। सरवरे कायनात (स अ व व ) जो हालात से बराबर मुत्तला हो रहे थे उन्होंने सलमाने फ़ारसी और चन्द असहाब को लिया और बमक़ामे तीहा जा कर उसको तबलीग़ करना चाही , उसने बहुत बुरा भला कहा और चाहा कि हज़रत पर हमला कर दे , लेकिन आप के असहाब ने मदाफ़ेअत की , आपने उससे यह फ़रमाया था कि ख़ुदाई का दावा छोड़ दे और मेरी नबूवत को मान ले। उलेमा ने लिखा है कि दज्जाल की पेशानी पर ब ख़त्ते यज़दानी ‘‘ अल काफ़िर बिल्लाह ’’ लिखा हुआ था और आँख के ढेले पर भी (काफ़ , फ़े , रे) मरक़ूम था। ग़रज़ कि आपने वहां से मदीना ए मुनव्वरा वापस तशरीफ़ लाने का इरादा किया। दज्जाल ने एक संगे गरां (बहुत बड़ा पत्थर) जो पहाड़ के मानिन्द था हज़रत की राह में रख दिया। यह देख कर हज़रत जिब्राईल (अ.स.) आसमान से आये और उसे हटा दिया। अभी आप मदीने पहुँचे ही थे कि दज्जाल लशकरे अज़ीम ले कर मदीने के क़रीब जा पहुँचा। हज़रत ने बारगाहे अहदियत में अर्ज़ की , ख़ुदाया इसे उस वक़्त तक के लिये महबूस कर दे , जब तक इसे ज़िन्दा रखना मक़सूद है। इसी दौरान में जनाबे जिब्राईल आये और उन्होंने दज्जाल की गरदन को पुश्त की तरफ़ से पकड़ कर उठा लिया और उसे ले जा कर जज़ीरा ए तबरिस्तान में महबूस (क़ैद) कर दिया। लतीफ़ा यह है कि जिब्राईल उसे ले कर जाने लगे तो उसने ज़मीन पर दोनो हाथ मार कर तहतुल शरह तक की दो मुठ्ठी खा़क ले ली और उसे तबरिस्तान में डाल दिया। जिब्राईल (अ.स.) ने सरवरे कायनात (स अ व व ) के जवाब में कहा कि आपकी वफ़ात से 960 साल बाद यह खा़क आलम मे फैले गी और उसी वक़्त से आसारे क़यामत शुरू हो जायेंगे।(ग़ायतल मक़सूद पृष्ठ 64, इरशाद अल तालेबैन पृष्ठ 394 )

पैग़म्बरे इस्लाम का इरशाद है कि दज्जाल को मबहूस होने के बाद तमीम दारमी ने जो पहले नसरानी था जज़ीरा ए तबरिस्तान में ब चश्मे खुद देखा है। उसकी मुलाक़ात की तफ़सील किताब सियाह अल मसाबिह , ज़हरतुल रियाज़ , सही बुख़ारी , सही मुस्लिम में मौजूद है।

ग़रज़ कि अकसर रवायात के मुताबिक़ दज्जाल हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़हूर फ़रमाने के 18 यौम बाद ख़ुरूज करेगा।(मजमऊल बहरैन पृष्ठ 560 व ग़ायतल मक़ूसद जिल्द 2 पृष्ठ 69 ) ज़हूरे इमाम (अ.स.) और खुरूजे दज्जाल से पहले तीन साल तक सख़्त कहत पडे़गा। पहले साल एक बटे तीन बारिश और एक बटे तीन ज़राएत ख़त्म हो जायेगी। दूसरे साल आसमान व ज़मीन की बरकत व रहमत ख़त्म हो जायेगी। तीसरे साल बिल्कुल बारिश न होगी और सारी दुनियां वाले मौत की आग़ोश में पहुँचने के क़रीब हो जायेंगे। दुनियां ज़ुल्म व जौर , इज़तेराब व परेशानी से बिल्कुल पुर होगी। इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़हूर के बाद 18 दिन में कायनात निहायत अच्छी सहत पर पहुँची हो गी कि नागाह दज्जाल मलऊन के खुरूज का गुलग़ुला उठेगा। वह बरवायत अखवन्द दरवीज़ा हिन्दोस्तान के एक पहाड़ पर नमूदार होगा और वहां से ब आवाज़े बलन्द कहेगा ‘‘ मैं खुदाए बुज़ुर्ग हू ’’ मेरी इताअत करो। यह आवाज़ मशरिक़ व मग़रिब में पहुँचेगी। उसके बाद तीन यौम या बरवायत 40 यौम इसी मुक़ाम पर रह कर लश्कर तैयार करेगा। फिर शाम व ईराक़ होता हुआ अस्फ़ाहान के एक क़रये ‘‘ यहूदिया ’’ से ख़ुरूज करेगा। उसके हमराह बहुत बड़ा लश्कर होगा जिसकी तादाद 70 ,00 ,000 (सत्तर लाख) मरक़ूम है। जिन , देव , परी , शैतान इनके अलावा होंगे। वह एह गधे पर सवार होगा। जो अबलक़ रंग का होगा। उसके जिस्म का बालाई हिस्सा सुर्ख़ , हाथ पाँव ताज़ा नौ सियाह उसके बाद से सुम तक सफ़ैद होगा। उसके दोनों कानों के दरमियान 40 मील का फ़ासला होगा। वह 21 मील ऊँचा और 90 मील लम्बा होगा। उसका हर क़दम एक मील का होगा। उसके दोनों कानों में ख़ल्के़ कसीर बैठी होगी। चलने में उसके बालों से हर क़िस्म के बाजों की आवाज़ आयेगी। वह उसी गधे पर सवार होगा। सवारी के बाद जब वह रवाना होगा तो उसके दाहिने तरफ़ एक पहाड़ होगा जो हमराह चलता रहेगा। उसमें नहरें , मेवा जात और हर क़िस्म की नेमते होंगी , और बाईं जानिब एक पहाड़ होगा जिसमें हर क़िस्म के सांप बिच्छू होंगे। वह लोगों को उन्हीं चीज़ों के ज़रिये से बहकायेगा और कहेगा कि मैं खु़दा हूँ। जो मेरा हुक्म मानेगा जन्नत में रखूगा जो न मानेगा उसे जहन्नुम में डाल दूंगा। इसी तरह चालीस दिन में सारी दुनियां का चक्कर लगा कर और सब को बहका कर इमाम मेहदी (अ.स.) की इस्कीम को नाकामयाब बनाने की सई कोशिश में ख़ानाए काबा को गिराना चाहेगा और एक अज़ीम लश्कर भेज कर काबे और मदीने को तबाह करने पर मामूर करेगा और खुद कूफ़े के लिये रवाना होगा। उसका मक़सद यह होगा कि कूफ़ा जो इमाम मेहदी (अ.स.) की आमाजगाह है उसे तबाह कर दे। ‘‘ चूँ आन लईन नज़दीक़ कूफ़ा बरसदे इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) बइसतेसाले ओ बरसद ’’ लेकिन ख़ुदा का करना देखिये कि जब वह कूफ़े के क़रीब पहुँचेगा जो हज़रत इमाम मोहम्मद मेहदी (अ.स.) ख़ुद वहां पहुँच जायेंगे और उसे ब हुक्मे खुदा जड़ से उखाड़ देंगे। ग़रज़ कि घमासान की जंग होगी और शाम तक फैले हुए लश्कर पर इमाम मेहदी (अ.स.) ज़बरदस्त हम ले करेंगे बिल आखि़र वह मलऊन आपकी ज़रबों की ताब न ला कर शाम के मक़ामे ‘‘ उक़बाए रफ़ीक़ ’’ या बमक़ाम ‘‘ लुद ’’ जुमे के दिन तीन घड़ी दिन चढे़ मारा जायेगा। उसके मरने के बाद दस मील तक दज्जाल और उसके गधे और लश्कर का ख़ून ज़मीन पर जारी रहेगा। उलेमा का कहना है कि क़त्ले दज्जाल के बाद इमाम (अ.स.) उसके लशकरियों पर एक ज़बरदस्त हमला करेंगे और सब को क़त्ल कर डालेंगे। उसे जो काफ़िर ज़मीन के किसी हिस्से में छुपे गा , वह आवाज़ देगा कि फ़लां काफ़िर यहां छुपा हुआ है इमाम (अ.स.) उसे क़त्ल कर देंगे। आखि़र कार ज़मीन पर कोई दज्जाल का मानने वाला न रहेगा।(इरशाद अल तालेबीन पृष्ठ 397 ) ग़ायतल मक़सूद जिल्द 2 पृष्ठ 71 , ऐनुल हयात पृष्ठ 126 , किताब अल वसाएल पृष्ठ 181 , क़यामत नामा पृष्ठ 7 , माअरफ़ुल मिल्लता पृष्ठ 328 , सही मुस्लिम , लम्आते शरह मिशक़ात अब्दुल हक़ , मरक़ात , शरह मिशक़ात मजमउल बेहार)

बाज़ रवायात में है कि दज्जाल को हज़रते ईसा (अ.स.) बहुक्मे हज़रते इमाम मेहदी (अ.स.) क़त्ल करेंगे।

नुज़ूले हज़रते ईसा(अ स )

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) सुन्नत के का़यम करने और बिदअत के मिटाने नीज़ इनसेराम व इन्तेज़ामे आलम में मशग़ूल व मसरूफ़ होंगे कि एक दिन नमाज़े सुबह के वक़्त बरवायते नमाज़े अस्र के वक़्त हज़रते ईसा (अ.स.) दो फ़रिश्तों के कंधो पर हाथ रखे हुए दमिश्क़ की जामे मस्जिद के मिनारए शरक़ी पर नुज़ूल फ़रमायेगें। हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) उनका इस्तेक़बाल करेंगे और फ़रमायेंगे कि आप नमाज़ पढ़ाइये हज़रते ईसा कहेंगे कि यह नामुम्किन है नमाज़ आपको पढ़ानी होगी चुनान्चे हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) इमामत करेंगे और हज़रत ईसा (अ.स.) उनके पीछे नमाज़ पढ़ेंगे और उनकी तसदीक़ करेंगे।(नूरूल अबसार पृष्ठ 154 ग़ायत अल मक़सूद पृष्ठ 104 से 154, बहवालाए मुस्लिम व इब्ने माजा , मिशक़ात पृष्ठ 458 ) उस वक़्त हज़रते ईसा (अ.स.) की उम्र चालीस साला नौजवान जैसी होगी। वह इस दुनियां में शादी करेंगे और उनके दो लड़के पैदा होंगे एक नाम अहमद और दूसरे का नाम मूसा होगा।(असआफ़ुल राग़ीबैन , बर हाशिया नूरूल अबसार पृष्ठ 135, क़यामत नामा , पृष्ठ 9, बहवालाए किताबुल वफ़ा इब्ने जोज़ी व मिशक़ात पृष्ठ 465 व सिराजुल कु़लूब पृष्ठ 77 )

इमाम मेहदी (अ.स.) और ईसा इब्ने मरियम का दौरा

इसके बाद हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) और हज़रते ईसा (अ.स.) बलाद मुमालिक का दौरा करने और हालात का जायज़ा लेने के लिये बरामद होंगे और दज्जाल मलऊन के पहुँचाये हुये नुक़सानात और उसके पैदा किये हुये बदतरीन हालात को बेहतरीन सतह पर लायेंगे। हज़रते ईसा (अ.स.) ख़न्जीर के क़त्ल करने , सलीबों को तोड़ने और लोगों के इस्लाम क़ुबूल करने का इन्सेराम व बन्दोबस्त फ़रमायेंगे। अदले मेहदवी से बलादे आलम में इस्लाम का डंका बजेगा और ज़ुल्म व सित्म का तख़्ता तबाह हो जायेगा।(क़यामत नामा क़ुदवतुल मोहद्देसीन पृष्ठ 8 बहवाला सही मुस्लिम)

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) का कुस्तुनतुनया को फ़तेह करना

रवायत में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) कुसतुनतुनया , चीन और जबले देलम को फ़तेह करेंगे। यह वही कु़सतुनतुनया है जिसे अस्तम्बोल कहते हैं और जिस पर उस ज़माने में नसारा का क़ब्ज़ा होगा और उनका क़ब्ज़ा भी मुसलमान बादशाह को क़त्ल करने के बाद होगा। चीन और जबले देलम पर भी नसारा का क़ब्ज़ा होगा और वह हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) से मुक़ाबले का पूरा इन्तेज़ामात करेंगे। ‘‘ चीन ’’ जिसको अरबी में ‘‘ सीन ’’ कहते हैं इसके बारे में रवायत के हवाले से अल्लामा तरही ने मजमउल बहरैन के पृष्ठ 615 में लिखा है कि सीन (1) एक पहाड़ी है। (2) मशरिक़ में एक ममलेकत है। (3) कूफ़े में एक मौजा है। पता यह चलता है कि सारी चीज़ें फ़तेह की जायेंगी। इनके अलावा सिन्ध और हिन्द के मकानात की तरफ़ भी इशारा है। बहर हाल इमाम मेहदी (अ.स.) शहरे कुस्तुनतुनया को फ़तह करने के लिये रवाना होंगे और उनके हमराह सत्तर हज़ार बनू इस्हाक़ के नौजवान होंगे उन्हें दरियाये रोम के किनारे शहर में जाकर उसे फ़तेह करने का हुक्म होगा। ज बवह वहां पहुँच कर फ़सील के किनारे नाराए तकबीर लगायेंगे तो खुद ब खुद रास्ता पैदा हो जायेगा और यह दाखि़ल हो कर उसे फ़तेह कर लेंगे। कुफ़्फ़ार क़त्ल होंगे और उस पर पूरा पूरा क़ब्ज़ा हो जायेगा। (नूरूल अबसार पृष्ठ 155 बहवालाए तबरानी , ग़ाएतल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 152 , बहवालाए अबू नईम , आलामुल वुरा , बहवालए इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) पृष्ठ 264 क़यामत नामा बहवालाए सही मुस्लिम)

याजूज माजूज और उनका ख़ुरूज

क़यामते सुग़रा यानी ज़हूरे आले मोहम्मद और क़यामते कुबरा के दरमियान दज्जाल के बाद याजूज और माजूज का ख़ुरूज होगा यह सद्दे सिकन्दरी से निकल कर सारे आलम में फ़ैल जायेंगे और दुनिया के अमनो अमान को तबाह व बरबाद कर देने में पूरी कोशिश करेंगे।

याजूज , माजूज हज़रते नूह (अ.स.) के बेटे याफ़िस की औलाद से हैं। यह दोनो चार सौ क़बीलों और उम्मतों के सरदार और सरबर आवुरदा हैं। उनकी कसरत का कोई अन्दाज़ा नहीं लगाया जा सकता। मख़लूक़ात में मलाएका के बाद उन्हें कसरत दी गई है। इनमें कोई ऐसा नहीं जिसके एक एक हज़ार औलाद न हो। यानी यह उस वक़्त मरते ही नहीं जब तक एक हज़ार बहादुर पैदा न कर लें। यह तीन क़िस्म के लोग हैं , एक वह जो ताड़ से ज़्यादा लम्बे हैं , दूसरे वह जो लम्बे और चौड़े बराबर हैं जिनकी मिसाल बहुत बड़े हाथी से दी जाती है। तीसरे वह जो अपना एक कान बिछाते हैं और दूसरा ओढ़ते हैं। इनके सामने लोहा , पत्थर , पहाड़ तो कोई चीज़ नहीं है। यह हज़रते नूह (अ.स.) के ज़माने में दुनिया के आखि़र में उस जगह पैदा हुये हैं जहां से पहले पहल सूरज ने तुलउ किया था। ज़मानए फ़ितरत से पहले यह लोग अपनी जगह से निकल पड़ते थे और अपने क़रीब की सारी दुनियां को खा पी जाते थे यानी हाथी , घोड़ा , ऊँट इंसान , जानवर , खेती बाड़ी ग़रज़ कि जो कुछ सामने आता था सब को हज़म कर जाते थे। वहां के लोग उन से सख़्त तंग आ कर आजिज़ थे। यहां तक कि ज़मानए फ़ितरत में हज़रते ईसा (अ.स.) के बाद बरवायते जब ‘‘ ज़ुलक़रनैन ’’ उस मंज़िल तक पहुँचे तो उन्हें वहां का सारा वाक़िया मालूम हुआ और वहां की मख़्लूक़ ने उनसे दरख़्वास्त की कि हमे इस बलाए बे दरमा याजूज , माजूज से बचाइये चुनान्चे उन्होंने दो पहाड़ों के उस दरमियानी रास्ते को जिससे वह आया करते थे बहुक्मे ख़ुदा लौहे की दीवार से जो दौ सौ (200) गज़ ऊँची और पचास सा साठ (50 या 60) ग़ज़ चौड़ी थी बन्द कर दिया। इसी दीवार को ‘‘ सद्दे सिकन्दरी ’’ कहते हैं क्यो कि ‘‘ जु़लक़रनैन ’’ का असल नाम सिकन्दरे आज़म था। सद्दे सिकन्दरी के लग जाने के बाद उनकी ख़ुराक सांप क़रार दी गई जो आसमान से बरसते हैं। यह ता बा ज़हूर इमाम मेहदी (अ.स.) इसी में महसूर रहेंगे। उनका उसूल और तरीक़ा यह है कि यह लोग अपनी ज़बान से सद्दे सिकन्दरी को सारी रात चाट कर काटते हैं जब सुबह होती है और धूप लगती है तो हट जाते हैं फिर दूसरी रात कटी हुई दीवार भी पुर हो जाती है और वह फिर उसे काटने में लग जाते हैं। बहुक्मे ख़ुदा यह लोग इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़माने में खु़रूज करेंगे दीवार कट जायेगी और यह निकल पड़ेंगे। उस वक़्त का आलम यह होगा कि यह लोग अपनी सारी तादाद समैत सारी दुनियां में फैल कर निज़ामे आलम को दरहम बरहम करना शुरू कर देंगे। लाखों जाने जा़या होंगी और दुनियां की कोई चीज़ ऐसी बाक़ी न रहेगी जो खाई और पी जा सके और यह उस पर तसर्रूफ़ न करें। यह बला के जंगजू लोग होंगे। दुनिया को मार कर खा जायेंगे और अपने तीर आसमान की तरफ़ फेंक कर आसमानी मख़लूक़ को मारने का हौसला करेंगे और जब उधर से बहुक्मे ख़ुदा तीर ख़ून आलूद आयेगा तो यह बहुत खुश होंगे और आपस में कहेंगे कि अब हमारा इक़तेदार ज़मीन से बुलन्द हो कर आसमान तक पहुँच गया है। इसी दौरान में हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की बरकत और हज़रते ईसा (अ.स.) की दुआ की वजह से ख़ुदा वन्दे आलम एक बीमारी भेज देगा जिसको अरबी में ‘‘ नग़फ़ ’’ कहते हैं। यह बीमारी नाक से शूरू हो कर ताऊन की तरह एक ही शब में उन सब का काम तमाम कर देगी। फिर उनके मुरदार को खाने के लिये ‘‘ उन्क़ा ’’ नामी परिन्दा पैदा होगा जो ज़मीन को उनकी गंदगी से साफ़ कर देगा और इंसान उनके तीरो कमान और जल सकने वाली चीज़ो और आलाते हर्ब (लड़ाई के असलहों) को सात साल तक जलायेंगे।(तफ़सीरे साफ़ी पृष्ठ 278, मिशकात पृष्ठ 366, सही मुस्लिम , तिरमिज़ी , इरशाद अल तालेबैन , पृष्ठ 398, ग़ायतुल मक़सूद जिल्द 2 पृष्ठ 76, मजमुअल बहरैन पृष्ठ 466, क़यामत नामा पृष्ठ 8 )

इमाम मेहदी (अ.स.) की मुद्दते हुकूमत और ख़ातमाए दुनिया

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) का पाए तख़्त शहरे कूफ़ा होगा। मक्के में आपके नाएब का तक़र्रूर होगा। आपका दीवान ख़ाना और आपके इजराए हुक्म की जगह मस्जिदे कूफ़ा होगी। बैतुल माल मस्जिदे सहला क़रार दी जायेगी और खि़लवत कदा नजफ़े अशरफ़ होगा।(हक़्क़ुल यक़ीन पृष्ठ 145 )

आपके अहदे हुकूमत में मुकम्मल अमनो सुकून होगा। बकरी और भेड़ , गाय और शेर , इंसान और सांप , ज़म्बील और चूहें सब एक दूसरे से बे खौ़फ़ होंगे।(दुर्रे मनशूर , स्यूती जिल्द 3 पृष्ठ 23 ) गुनाह का इरतेक़ाब बिल्कुल बन्द होगा। तमाम लोग पाक बाज़ हो जायेंगे। जेहल , जबन , बुखल काफ़ुर हो जायेंगे। आजिजो , ज़ईफ़ों की दाद रसी होगी जु़ल्म दुनियां से मिट जायेगा। इस्लाम के का़लिब बे जान में रूहे ताज़ा पैदा हो जायेगी। दुनियां के तमाम मज़ाहिब ख़त्म हो जायेंगे , न ईसाई होंगे न यहूदी न और कोई मसलक होगा सिर्फ़ इस्लाम होगा और उसी का डंका बजता होगा। आप दावत बिल सैफ़ देंगे जो आपके खि़लाफ़ होगा क़त्ल कर दिया जायेगा। जज़िया मौक़ूफ़ होगा। ख़ुदा की जानिब से शहर अकाके हरे भरे मैदान में मेहमानी होगी। सारी कायनात मसर्रतों से ममलूह होगी। ग़रज़ कि अदलो इंसाफ़ से दुनिया भर जायेगी दुनियां के तमाम मज़लूम बुलाये जायेंगे और उन पर ज़ुल्म करने वाले हाज़िर किये जायेंगे। हत्ता की आले मोहम्मद (स अ व व ) तशरीफ़ लायेंगे और उन पर ज़ुल्म के पहाड़ तोड़ने वाले बुलाये जायेंगे। हज़रत इमाम (अ.स.) मज़लूम की दाद रसी फ़रमायेंगे और ज़ालिम को कैफ़रो किरदार तक पहुँचायेंगे। हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) इन तमाम उमूर में निगरानी का फ़रीज़ा अदा फ़रमाने के लिये जलवा अफ़रोज़ होंगे। इसी दौरान में हज़रते ईसा (अ.स.) अपनी साबेक़ा अरज़ी 33 साला ज़िन्दगी में 7 साला मौजूदा अरज़ी ज़िन्दगी का इज़ाफ़ा कर के चालीस साल की उम्र में इन्तेक़ाल कर जायेंगे और आपको रौज़ाए हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) में दफ़्न कर दिया जायेगा।(हाशिए मिशक़ात , पृष्ठ 463, सिराज अल क़ुलूब पृष्ठ 77, अजाएबुल क़सस पृष्ठ 23 )

इसके बाद हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की हुकूमत का ख़ात्मा हो जायेगा और हज़रत अमीरूल मोमेनीन निज़ामे कायनात पर हुक्म रानी करेंगे जिसकी तरफ़ कु़रआने मजीद में ‘‘ दाबतुल अर्ज़ ’’ से इशारा किया गया है। अब रह गया यह कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की मुद्दते हुकूमत क्या होगी ? इसके बारे मे सख़्त इख़्तेलाफ़ है। इरशाद मुफ़िद के पृष्ठ 533 में सात साल और पृष्ठ 537 में 19 साल और आलामुल वुरा के पृष्ठ 364 में 19 साल , मिशक़ात के पृष्ठ 462 में 7 , 8 , 9 साल , नूरूल अबसार के पृष्ठ 154 में 7 , 8 , 9 , 10 साल और नेयाबुल मोअद्दता शेख़ सुलेमान क़न्दूज़ी बलखी़ के पृष्ठ 433 में 20 साल मरक़ूम है। मैंने हालात हदीस , अक़वाले उलेमा से इस्तेम्बात कर के बीस साल को तरजीह दी है। हो सकता है कि एक साल दस साल के बराबर हों।

(इरशाद मुफ़िद पृष्ठ 533, नूरूल अबसार पृष्ठ 155 ) ग़रज़ कि आपकी वफ़ात के बाद हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) आपको ग़ुस्लो कफ़न देंगे और नमाज़ पढ़ा कर दफ़्न फ़रमायेंगे। जैसा कि अल्लामा सैय्यद अली बिन अब्दुल हमीद ने किताब अनवारूल मज़ीया में तहरीर फ़रमाया है , हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के अहदे ज़हूर में क़यामत से पहले ज़िन्दा होने को रजअत कहते हैं यह रजअत ज़रूरियाते मज़हबे इमामिया से है।(मजमुल बहरैन पृष्ठ 422 ) इसका मतलब यह है कि ज़हूर के बाद बहुक्मे ख़ुदा शदीद तरीन काफ़िर और मुनाफ़िक़ और कामिल तरीन मोमेनीन हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) , आइम्मा ए ताहेरीन (अ स ) , बाज़ अम्बियाए सलफ़ बराए इज़हार दौलते हक़के मोहम्मदे दुनिया में पलट कर आयेंगे।(तकलीफ़ अल मुकल्लेफ़ीन फी उसूल अल दीन पृष्ठ 25 )

इसमें ज़ालिमो को ज़ुल्म का बदला और मज़लूमों को इन्तेक़ाम का मौक़ा दिया जायेगा। इस्लाम को इतना फ़रोग़ दिया जायेगा कि ‘‘ लेज़हरा अल्ल दीने कुल्लह ’’ दुनियां में सिर्फ़ एक इस्लाम रह जायेगा।(मआरिफ़ अल मिल्लता अल नाजिया वल नारिया पृष्ठ 380 )

इमाम हुसैन (अ.स.) का मुकम्मल बदला लिया जायेगा।(ग़ायतुल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 186 बहवाला तफ़सीर अयाशी) और दुशमनाने आले मोहम्मद (स अ व व ) को क़यामत में अज़ाबे अकबर से पलहे रतअत में अज़ाबे अदना का मज़ा चखाया जायेगा।(हक़्क़ुल यकी़न पृष्ठ 147, बहवाला क़ुरआने मजीद)

शैतान सरवरे कायनात (स अ व व ) के हाथों से नहरे फ़रात पर एक अज़ीम जंग के बाद क़त्ल होगा। आइम्मा ए ताहेरीन (अ.स.) के हर अहदे हुकूमत में अच्छे बुरे ज़िन्दा किये जायेंगे और हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) के अहद में जो लोग ज़िन्दा होंगे उनकी तादाद चार हज़ार होगी(ग़ाएतल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 178 ) शोहदा को भी रजअत में ज़ाहेरी ज़िन्दगी दी जायेगी ताकि उसके बाद जो मौत आये उससे आयत के हुक्म ‘‘کل نفس ذائقة الموت ’’ की तकमील हो सके और उन्हें मौत का मज़ा नसीब हो जाये।(ग़ायतुल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 173 )

इसी रजअत में वादाए क़ुरआनी के हिसाब से आले मोहम्मद (स अ व व ) को हुकूमते आइम्मा ए आलम दी जायेगी और ज़मीन का कोई गोशा न होगा जिस पर आले मोहम्मद (स अ व व ) की हुकूमत न हो। इसके मुताअल्लिक़ कुरआने मजीद में ‘‘ अन्ना अरज़ यरशहा अबादिल सालेहून ’’ व ‘‘و نرید أن نمن على الذین استضعفوا فى الأرض و نجعلهم أئمّة و نجعلهم الوارثین ’’ मौजूद है।(हक़्कु़ल यक़ीन पृष्ठ 146 )

अब रह गया यह कि कायनात की जा़हेरी हुकूमत व विरासते आले मोहम्मद (स अ व व ) के पास कब तक रहेगी उसके मुताअल्लिक़ एक रवायत 8000(आठ हज़ार) साल का हवाला दे रही है और पता यह चलता है कि अमीरल मोमेनीन (अ.स.) हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के ज़ेरे निगरानी हुकूमत करेंगे और दीगर आइम्मा ए ताहेरीन उनके वज़रा और सुफ़रा की हैसियत से मुमालिके आलम में इन्तेज़ाम व इन्सेराम फ़रमायेंगे। एक रवायत मे यह भी है कि हर इमाम तरतीब से हुकूमत करेंगे।(हक़्क़ुल यक़ीन व ग़ायतुल मक़सूद)

हज़रत अली (अ.स.) के ज़हूर और निज़ामे आलम पर हुक्मरानी के मुताअल्लिक़ कु़रआने मजीद में ब सराहत मौजूद है। इरशाद होता है‘‘ اخرجنا لهم دابة من الارض (पारा 20 रूकू 1 )

उलमाए फ़रीक़ैन यानी शिया व सुन्नी का इत्तेफ़ाक़ है कि इस आयत से मुराद हज़रत अली (अ.स.) हैं। मुलाहेज़ा हो ! मीज़ान अल एतेदाल , अल्लामा ज़ेहबी व मोआलिम अल तनज़ील , अल्लामा बग़वी व हक़्क़ुल यक़ीन अल्लामा मजलिसी व तफ़सीर साफ़ी अल्लामा मोहसिन फ़ैज़ उसकी तरफ़ तौरेत में भी इशारा मौजूद है।(तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 246 ) आपका काम यह होगा कि आप ऐसे लोंगे की तसदीक़ न करेंगे जो ख़ुदा के मुख़ालिफ़ और उसकी आयतों पर यकी़न न रखने वाले होंगे। वह पृष्ठ व मरवा के दरमियान से बरामद होंगे। उनके हाथ में हज़रत सुलैमान (अ.स.) की अंगूठी और हज़रते मूसा (अ.स.) का असा होगा। जब क़यामत क़रीब होगी तो आप असा व अंगूशतरी से हर मोमिन व काफ़िर की पेशानी पर निशान लगायेंगे। मोमिन की पेशानी पर ‘‘ हाज़ा मोमिन हक़ा ’’ और काफ़िर की पेशानी पर ‘‘ हाज़ा काफ़िर हक़ा ’’ तहरीर हो जायेगा। मुलाहेजा़ हो (किताब इरशाद अल तालीबैन अख़वन्द दरवेज़ा पृष्ठ 400 व क़यामत नामा , कु़दवतुल मोहद्देसीन , अल्लामा रफ़ीउद्दीन पृष्ठ 10 , अल्लामा बग़वी किताब मिशक़ात अल मसाबीह के पृष्ठ 464 में तहरीर फ़रमाते हैं कि व अबतल अज्ऱ दोपहर के वक़्त निकलेगा और जब इस दाबतुल अर्ज़ का अमल दरामद शुरू हो जायेगा तो बाबे तौबा बन्द हो जायेगा और उस वक़्त किसी का ईमान लाना कारगर न होगा।

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं कि एक मरतबा हज़रत अली (अ.स.) मस्जिद में सो रहे थे इतने में हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) तशरीफ़ लाये और आपने फ़रमाया ‘‘ क़ुम या दाबतुल्लाह ’’ इसके बाद एक दिन फ़रमाया ! ‘‘ या अली अज़ाकान अख़रज कुल्लाहा ’’ ऐ अली (अ.स.) जब दुनियां का आखि़री ज़माना आयेगा तो ख़ुदा वन्दे आलम तुम्हें बरामत करेगा उस वक़्त तुम अपने दुशमनों की पेशानियों पर निशान लगाओगे।(मजमउल बहरैन पृष्ठ 127 )

आपने यह भी फ़रमाया कि अली ‘‘ व अबता अल जन्नता ’’ हैं लुग़त में है कि दाबा के मानी पैरों से चलने वाले के हैं।(मजमउल बहरैन पृष्ठ 127 )

कसीर रवायत से मालूम होता है कि आले मोहम्मद (स अ व व ) की हुक्मरानी जिसे साहेबे अर हज्जुल मतालिब ने बादशाही लिखा है। उस वक़्त तक क़ाएम रहेगी जब तक दुनिया के ख़त्म होने में चालीस दिन बाक़ी रहेंगे।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 137 व आलामुल वुरा पृष्ठ 264 ) इसका मतलब यह है कि चालीस दिन की मुद्दत क़ब्रों से मुर्दो को निकालने और क़यामते कुबरा के लिये होगी। हश्रो नश्र , हिसाबो किताब , सूर फूंकना और दीगर तवाज़िमे क़यामते कुबरा इसी में अदा होगे।(आलामुल वुरा पृष्ठ 264 )

इसके बाद हज़रत अली (अ.स.) लोगों को जन्नत का परवाना देंगे। लोग उसे ले कर पुले सिरात पर से गुज़रेंगे।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा इब्ने हजर मक्की पृष्ठ 74 व इस्आफुल राग़ेबीन पृष्ठ 75, बर हाशिया नूरूल अबसार)

फिर आप हौज़े कौसर की निगरानी करेंगे जो दुशमनाने आले मोहम्मद (स अ व व ) हौज़े कौसर पर होगा उसे आप उठा देंगे।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 767 )

फिर आप ‘‘ लवा अल हम्द ’’ यानी मोहम्मदी झन्डा ले कर जन्नत की तरफ़ चलेंगे और पैग़म्बरे इस्लाम (अ.स.) आगे आगे होंगे। अम्बिया व शोहदा व सालेहीन और दीगर आले मोहम्मद (स अ व व ) के मानने वाले पीछे होंगे।(मनाक़िब अख़तब ख़वारज़मी , कल्मी व अर हज्जुल मतालिब पृष्ठ 774 ) फिर आप जन्नत के दरवाज़े पर जायेंगे और अपने दोस्तों को बग़ैर हिसाब दाखि़ले जन्नत करेंगे और दुशमनों के जहन्नम में झोंक देंगे।(किताब शिफ़ा क़ाज़ी अयाज़ व सवाएके़ मोहर्रेक़ा)

इसी लिये हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) ने हज़रत अबू बक्र , हज़रत उमर , हज़रत उस्मान और बहुत से असहाब को जमा कर के फ़रमा दिया था कि अली (अ.स.) ज़मीन और आसमान दोनों में मेरे वज़ीर हैं अगर तुम लोग खुदा को राज़ी करना चाहते हो तो अली (अ.स.) को राज़ी करो इस लिये की अली (अ.स.) की रज़ा खुदा की रज़ा और अली (अ.स.) का ग़ज़ब ख़ुदा का ग़ज़ब है।(मोवद्दतुल क़ुरबा पृष्ठ 55 से 62 )

अली (अ.स.) की मोहब्बत के बारे में तुम सब को ख़ुदा के सामने जवाब देना पड़ेगा और तुम अली (अ.स.) की मरज़ी के बग़ैर जन्नत में न जा सकोगे और अली (अ.स.) से कह दिया कि तुम और तुम्हारे शिया ‘‘ ख़ैरूल बर्रिया ’’ यानी ख़ुदा की नज़र में अच्छे लोग हैं यह क़यामत में ख़ुश होंगे और तुम्हारे दुशमन नाशादो नामुराद रहेंगे।

मुलाहेजा़ हो !(कंज़ुल आमाल जिल्द 6 पृष्ठ 218 व तोफ़ए अशना अशरया पृष्ठ 604, तफ़सीर फ़तहुल बयान जिल्द 1 पृष्ठ 323 )

वस्सलाम

[[अलहम्दो लिल्लाह ये किताब चौदह सितार पूरी टाईप हो गई। खुदा वंदे आलम से दुआगौ हुं कि हमारे इस अमल को कुबुल फरमाऐ और इमाम हुसैन फाउनडेशन को तरक्की इनायत फरमाए कि जिन्होने इस किताब को अपनी साइट (अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क) के लिऐ टाइप कराया।]]

22-01-2017