चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

आपकी अलालत

हम उपर बा हवाला अल्लामा शहर सतानी व अल्लामा मोईन काशफ़ी लिख कर आए हैं कि हज़रत उमर ने सैय्यदातुन निसां हज़रत फातेमा पर दरवाज़ा गिराया था और शिकमे मुबारक पर ज़र्ब लगाई थी जिसकी वजह से इस्तेक़ाते हमल हुआ था। और इसी सबब से आप बीमार हुईं और आखि़्र में मर गईं। अब आपकी खि़दमत में डिप्टी नज़ीर अहमद की तहरीर का एकतेबास पेश करते हैं। वह लिखते हैं , जो आदमी रसूल (स अ व व ) के मरने से सब से ज़्यादा प्रभावित हुआ वह फातेमा थीं। मां पहले ही मर चुकी थीं अब मां और बाप दोनो की जगह पैग़म्बर साहब ही थे और बाप भी कैसे दीन और दुनियां के बादशाह। ऐसे बाप का साया सर से उठना इस पर हज़रत अली (अ.स) का खि़लाफ़त से महरूम रहना तरके पदरी फि़दक का दावा करना और मुक़दमा हार जाना , इन्हीं दुखों में आप का इन्तेक़ाल हो गया। रोया ऐ सादक़ा फ़सल 14, आप इस क़द्र रोईं की अहले मोहल्ला एतेराज़ करने लगे , आखि़र में हज़रत अली ने रोने के लिये मदीने से बाहर बैतुल हुज़्न बनवाया था।

(अनवारूल हुसैनिया सफ़ा 24 प्रकाशित बम्बई)

हालात से प्रभावित हो कर हज़रत सैय्यदा ने अपने वालिद बुजुर्गवार का जो मरसिया कहा है उसका एक शेर यह है किः-

सुब्बत अलैया मसाएबुन लव अन्नहार

सुब्बत अलल अयामे सिरना लेया लिया

तरजुमाः- अब्बा जान आपके बाद मुझ पर ऐसी मुसीबतें पड़ीं कि अगर वह दिनों पर पड़तीं तो मिस्ल रात के तारीक हो जाते।

(नुरूल अबसार पृष्ठ 46, व मदारिज जिल्द 2 पृष्ठ 524 )

आपकी वसीयत

फातेमा ज़हरा (स.अ) ने अस्मा बिन्ते उमैस से फ़रमाया कि ऐ असमा मुझे मुसलमानों की औरतों की मैयित के ले जाने का तरीक़ा पसन्द नही है। यह तख़्ते पर लिटा कर कपड़ा डाल कर ले जाते हैं। अस्मा ने कहा , मैं हबशा में बहुत अच्छा ताबूत देख आईं हूं , फ़रमाया इसकी नक़ल बना दो। अली (अ.स) को बुलाया और वसीअत की। आपने कहा , मुझे खुद नहलाना , कफ़न पहनाना , मेरा जनाज़ा रात मे उठाना , जिन लोगों ने मुझे सताया है उनको मेरे जनाज़े में न शरीक होने देना। मेरे बाद शादी करना तो एक रात मेरे बच्चों के पास और एक रात अपनी बीवी के पास गुज़ारना।

शमशुल उलमा मिस्टर नज़ीर अहमद देहलवी लिखते हैं कि , फातेमा ने अबू बक्र वग़ैरा से बात करना छोड़ दी। मरते वक़्त वसीअत की कि मुझे रात के वक़्त दफ़न करना और यह लोग मेरे जनाज़े पर न आने पाऐं उम्मेहातुल उम्मत पृष्ठ 99, अल्लामा अब्दुरबर लिखते हैं कि फातेमा की वसीयत थी कि आयशा भी जनाज़े पर न आऐं।

(इस्तेआब जिल्द 2, सफ़ा 772, )

जनाबे सैय्यदा की हज़राते शेख़ैन से नाराज़गी के लिये मज़ीद मुलाहज़ा हों। तेस्पर अलक़ारी तरजुमा बुख़ारी जिल्द 12 पृष्ठ 18 -21 व पे 17 पृष्ठ 21, मुश्किलुल आसार तहावी जिल्द 1 पृष्ठ 48, तरजुमा सही मुस्लिम जिल्द 5 पृष्ठ 25, रौज़तुल अहबाब जिल्द 1 पृष्ठ 434, अज़ाला अलख़फ़ा जिल्द 2 पृष्ठ 57, बराहीने क़ाते तरजुमा सवाऐक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 21, अशअतुल मात जिल्द 3 पृष्ठ 480 अल ज़हरा- उमर अबू नसर उर्दू तरजुमा पृष्ठ 89- जमा उल फ़वाएद जिल्द 2 पृष्ठ 18 प्रकाशित मेरठ।

आपकी वफ़ात हसरते आयात

दुनिया ए इस्लाम के क़दीम मुवर्रेख़ीन इब्ने क़तीबा का बयान है कि हज़रत फातेमा हज़रते सरवरे कायनात (स अ व व ) की वफ़ात के बाद सिर्फ़ 75 दिन जि़न्दा रह कर मर गईं। अल इमामत वल सियासत जिल्द 1 पृष्ठ 14, अल्लामा बहाई का जामऐ अब्बासी पृष्ठ 79 में बयान है कि 100 दिन बाद इन्तेक़ाल हुआ। आपकी तारीख़े वफ़ात सोमवार दिन 3 जमादील सानी 11 हिजरी है।

(अनवाररूल हुसैनिया जिल्द 3 पृष्ठ 29 प्रकाशित नजफ़)

आपकी वफ़ात से सम्बन्धित हज़रत इब्ने अब्बास सहाबी रसूल का बयान है कि जब फातेमा ज़हरा के इन्तेक़ाल का समय आया तो न मासूमा को बुख़ार आया , और न दर्दे सर हुआ बल्कि इमामे हसन (अ.स) और इमामे हुसैन (अ.स) के हाथ पकड़े और दोनों को लेकर क़ब्रे रसूल (स अ व व ) पर गईं और क़ब्र और मिम्बर के बीच दो रकअत नमाज़ पढ़ी। फि़र दोनों को अपने सीने से लगाया और फ़रमाया ऐ मेरे बच्चों ! तुम दोनों एक घंटा अपने बाबा के पास बैठो , अमीरूल मोमिनीन इस वक़्त मस्जिद में नमाज़ पढ़ रहे थे , फिर वहां से घर आईं और आं हज़रत की चादर उठाई ग़ुस्ल कर के हज़रत का बचा हुआ कफ़न , या कपड़े पहने , बाद अज़ान ज़ोजा हज़रते जाफ़रे तैयार असमा को अवाज़ दी , असमा ने अजऱ् की बीबी हाजि़र होती हूं। जनाबे फातेमा ने फ़रमाया , असमा तुम मुझसे अलग न होना , मै एक घंटा इस हुजरे में लेटना चाहती हूं। जब एक घंटा गुज़र जाए और मैं बाहर न निकलूं तो मुझको तीन अवाज़े देना , अगर मैं जवाब दूं तो अन्दर चली आना , वरना समझ लेना कि मैं रसूले ख़ुदा (स अ व व ) से मुलहिक़ हो चुकी हूं। बाद अज़ां रसूले ख़ुदा (स अ व व ) की जगह पर खड़ी हुईं और दो रकअत नमाज़ पढ़ी फिर लेट गईं और अपना मुँह चादर से ढांप लिया। बाज़ उलमा का कहना है कि सैय्यदा ने सजदे मे ही वफ़ात पाई। अल ग़रज़ जब एक घंटा गुज़र गया तो असमा ने जनाबे सैय्यदा को अवाज़ दी। ऐ हसन (अ.स) और हुसैन (अ.स) की मां ! ऐ रसूले खुदा (स अ व व ) की बेटी ! मगर कुछ जवाब न मिला। तब असमा उस हुजरे में दाखि़ल हुईं , क्या देखती हैं कि वह मासूमा मर चुकी हैं , असमा ने अपना गरेबान फाड़ लिया और घर से बाहर निकल पड़ीं। हसन (अ.स) और हुसैन (अ.स) आ पहुंचे। पूछा असमा हमारी अम्मा कहां हैं ? अर्ज़ की हुजरे में हैं। शहज़ादे हुजरे मे पहुंचे तो देखा कि मादरे गिरामी मर चुकी हैं। शहज़ादे रोते पीटते मस्जिद पहुंचे। हज़रत अली (अ.स) को ख़बर दी , आप सदमे से बेहाल हो गये। फिर वहां से बहाले परेशान घर पहुंचे देखा कि असमा सरहाने बैठी रो रही हैं। आपने चेहरा ए अनवर खोला। सरहाने एक पर्चा मिला , जिसमें शहादतैन के बाद वसीयत पर अमल का हवाला था और ताक़ीद थी कि मुझे अपने हाथों से ग़ुस्ल देना , हनूत करना , कफ़न पहनाना , रात के वक़्त दफ़न करना और दुश्मनों को मेरे दफ़न की ख़बर न देना इसमें यह भी लिखा था कि मैं तुम्हें ख़ुदा के हवाले करती हूं और अपनी इन तमाम औलादों सादात को सलाम करती हूं जो क़यामत तक पैदा होगी।

जब रात हुई तो हज़रत अली (अ.स) ने ग़ुस्ल दिया , कफ़न पहनाया , नमाज़ पढ़ी , बेनाबर रवायत मशहूरा जन्नतुल बक़ी मे ले जा कर दफ़न कर दिया।

(ज़ाद अल क़बा तरजुमा मुवद्दतुल क़ुर्बा अली हमदानी शाफे़ई पृष्ठ 125 ता पृष्ठ 129 प्रकाशित लाहौर)

एक रवायत में है कि आपको मिम्बर और क़ब्रे रसूल (स अ व व ) के बीच में दफ़न किया गया।

(अनवारूल हुसैनिया जिल्द 3 पृष्ठ 39 )

मक़ातिल किताब में है कि ग़ुस्ल के वक़्त हज़रत अली (अ.स) पुश्त व बाज़ु ए फातेमा (स.अ) पर उमर के दुर्रे का निशान देखा था और चीख़ मार कर रोए थे। सही बुख़ारी और मुस्लिम मे है कि हज़रत अली (अ.स) ने फातेमा (स.अ) को रात के वक़्त दफ़न कर दिया। ‘‘वलम यूज़न बेहा अबा बक्र व सल्ली अलैहा ’’ अबू बकर वग़ैरा को शिरकते जनाज़ा की इजाज़त नहीं दी और दफ़न की भी ख़बर नहीं दी और नमाज़ ख़ुद पढ़ी। अल्लामा ऐनी शरह बुख़री लिखते हैं कि यह सब कुछ हज़रत अली (अ.स) ने जनाबे फातेमा (स.अ) की वसीअत के अनुसार किया था। सही बुख़ारी हिस्सा अल जिहाद में है कि हज़रत फातेमा (स.अ) हज़रत अबू बकर वग़ैरा से नाराज़ हो गईं और उनसे नाता तोड़ लिया और मरते दम तक बेज़ार रही। इमाम इब्ने कतीका का बयान है कि ख़ुलफ़ा को फातेमा की नाराज़गी की जानकारी थी , वह कोशिश करते रहे कि राज़ी हो जायें एक दफ़ा माफ़ी मांगने भी गये। ‘‘फासताज़ना अली फ़लम ताज़न ’’ और इज़ने हुज़ूरी चाहा , आपने मिलने से इन्कार कर दिया और इनके सलाम तक का जवाब न दिया और फ़रमाया ताजि़न्दगी तुम पर बद्दुआ करूगी और बाबा जान से तुम्हारी शिकायत करूगी।

(अल इमामत वस सियासत जिल्द 1 पृष्ठ 14 प्रकाशित मिस्र)

आपका जनाज़ा

ग़ुस्ल व कफ़न के बाद हज़रत अली (अ.स) अपनी औलाद और अपने रिश्तेदारों समेत जनाज़ा लेकर रवाना हुए। बेहारूल अनवार किताब अलफ़तन में है कि रास्ता देखने के लिए एक शमा साथ थी और हज़रत ज़ैनब जो काफ़ी कमसिन थी काले कपड़े पहने हुए थी इस साए में चल रही थीं जो शमा की वजह से ताबूत के नीचे ज़मीन पर पड़ रहा था। मुवद्दतुल क़ुर्बा पृष्ठ 129 में है कि हज़रत अली (अ.स) जब जन्नतुल बक़ी में पहुंचे तो एक तरफ़ से आवाज़ आई और खुदी खुदाई क़ब्र दिखाई दे गई। हज़रत अली (अ.स) ने उसी क़ब्र में हज़रत फातेमा (स.अ) की लाशे मुताहर दफ़न की और इस तरह ज़मीन बराबर कर दी कि निशाने क़ब्र मालूम न हो सके।

किताबे मुनतहल आमाल शेख़ अब्बास क़ुम्मी पृष्ठ 139 में है कि जब जनाबे सैय्यदा की लाश क़ब्र मे उतारी गई तो रसूले ख़ुदा (स अ व व ) के हाथों की तरह दो हाथ निकले और उन्होने जिसमे मुताहर जनाबे सैय्यदा को सम्भाल लिया। दलाएल उल इमामत में है कि चूकि क़ब्रे फातेमा (स.अ) के साथ बे अदबी का शक था इस लिए चालीस क़ब्रें बनाई गईं। मनाक़िब इब्ने शहर आशोब में है कि चालीस क़ब्रें इस लिए बनाई थी कि सही क़ब्र मालूम न हो सके और फातेमा (स.अ) को सताने वाला क़ब्र पर भी नमाज़ न पढ़ सके वरना सैय्यदा को तकलीफ़ होगी। इसके बावजूद लोगों ने क़ब्र खोद कर नमाज़ पढ़ ने की सई की जिसके रद्दे अमल में हज़रत अली (अ.स) नगीं तलवार ले कर पीले कपड़े पहन कर क़ब्र पर जा बैठे। इस वक़्त आप के मुंह से कफ़ निकल रहा था। यह देख कर लोगों की हिम्मते पस्त हो गईं और आगे न बढ़ सके। नासिख़ अल तवारीख़ वग़ैरा वफ़ात के वक़त जनाबे सैय्यदा ताहेरा (स.अ) की उम्र 18 साल की थी। इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेउन

नतीजा

वफ़ाते रसूल (स अ व व ) के बाद जनाबे सैय्यदा के साथ जो कुछ किया गया इस पर शमसुल उलमा डिप्टी नज़ीर अहमद एल.एल.डी. मोतरज्जिम क़ुरआने मजीद ने अपनी किताब ‘‘रोया ए सादेक़ा ’’ में निहायत मुफ़स्सिल और मुकम्मल तबसिरा फ़रमाया है जिसके आख़री जुमले यह हैं:-

सख़्त अफ़सोस है कि अहले बैते नबवी को पैग़म्बर साहब की वफ़ात के बाद ही ऐसे नामुलाएम इत्तेफ़ाक़ात पेश आए कि इनका वह अदब व लेहाज़ जो होना चाहिये था इसमें ज़ोफ़ आ गया और शुदा शुदा मुनजि़र हुआ। इस ना क़ाबिले बरदाश्त वाक़ेए करबला की तरफ़ जिसकी नज़ीर तारीख़ में नहीं मिलती। यह ऐसी नालायक़ हरकत मुसलमानों से हुई है कि अगर सच पूछो तो दुनिया व आख़ेरत में मुंह दिखाने के क़ाबिल न रहे।

चे खुश फ़रमूद शख़्से ईं लतीफ़ा कि कुश्ता शुद हुसैन अन्दर सक़ीफ़ा

हज़रत फातेमा (स.अ) के जनाज़े मे शिरकत करने वाले

अल्लामा हाफि़ज़ बिन अली शहर आशोब अल मतूफ़ी 588 हिजरी तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत फातेमा ज़हरा (स.अ) के जनाज़े में अमीरल मोमिनीन (अ.स) , इमामे हसन (अ.स) , इमामे हुसैन (अ.स) , अक़ील , सलमाने फ़ारसी , अबूज़र , मेक़दाद , अम्मार और बरीदा शरीक थे और उन्ही लोगों ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ी एक रवायत में अब्बास , फ़ज़ल , हुज़ैफ़ा और इब्ने मसूद का इज़ाफ़ा है। तबरी में इब्ने ज़ुबैर का भी तज़किरा है।

(उम्दतुल मतालिब तरजुमा मनाक़िब जिल्द 2 पृष्ठ 65 प्रकाशित मुल्तान)

हज़रत फातेमा (स.अ) का मदफ़न

जैसा कि उपर गुज़रा , हज़रत फातेमा (स.अ) के जाए दफ़न में अख़्तेलाफ़ है। कोई जन्नतुल बक़ी , कोई मिम्बरे रसूल (स अ व व ) के बीच में कोई क़ब्र और घर के बीच क़ब्र बताता है। मशहूर यही है कि जन्नतुल बक़ी में आप दफ़न हुई हैं लेकिन अहमद बिन मोहम्मद बिन अबी नसर ने अबुल हसन हज़रत इमाम रज़ा (अ.स) से रवायत की है , वह फ़रमाते हैं कि हज़रत फातेमा (स.अ) अपने घर मे मदफ़ून हैं। जब बनी उम्मया ने मस्जिद की तौसीफ़ की तो उनकी क़ब्र रौज़ा ए रसूल (स अ व व ) के अन्दर आ गई है।

(तरजुमा मनाक़िब इब्ने शहर आशोब जिल्द 2 पृष्ठ 69 )

हज़रत फातेमा (स.अ) की क़ब्र पर हज़रत अली (अ.स) का मरसिया

अल्लामा इब्ने शहर आशोब लिखते हैं कि हज़रत अली (अ.स) ने वफ़ाते सैय्यदा (स.अ) पर अत्याधिक दुख प्रकट किया और बे पनाह ग़मों अलम का अहसास किया। उन्हानें जो क़ब्र पर मरसिया पढ़ा वह यह है:-

लेकुले इजतेमा मन ख़लीलैन फ़रक़तह

वक़ल लज़ी दूने अल फि़राक़ क़लील

दो दोस्तों के हर इजतेमा का नतीजा जुदाई है और हर मुसीबत दिलबरों की जुदाई की मुसीबत से कम है।

वअन इफ़तेक़ादी फ़ातम बादे अहमद

वलैला अली अन लायदमू ख़लील

हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) के तशरीफ़ ले जाने के बाद मेरी रफ़ीक़ा ए हयात फातेमा (स.अ) का दाग़े फि़राक़़ दे जाना इस अमर का सबूत है कि कोई दोस्त हमेशा नहीं रहेगा।

अल्लामा शेख़ अब्बास क़ुम्मी लिखते हैं कि हज़रत सैय्यदा को सुपुर्दे ख़ाक करने के बाद हज़रत अमीरल मोमिनीन (अ.स) क़ब्रे जनाबे सैय्यदा के पास बैठ गये और बे इन्तेहा रोए। ‘‘ पस अब्बासे उमूऐ आं हज़रत (स अ व व ) दस्तश गिरफ़त व अज़ सरे क़ब्र उरा बे बुर्द

यह देख कर चचा अब्बास बिन अब्दुल मुत्लिब ने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें क़ब्र के पास से उठाया और घर ले गये।

(मुन्तहल आमाल जिल्द 1 पृष्ठ 140 प्रकाशित नजफ़े अशरफ़)

आपके रोज़े का इन्हेदाम

आलिमों का बयान है कि एक अरसा गुज़रने के बाद आपकी क़ब्रे मुबारक पर रौज़े की तामीर हुई। मैं कहता हूं कि अब से लगभग 43 साल पहले इब्ने सउद व अमीरे सउदी अरबिया ने आपके रौज़े मुबारक को जज़बाए वहाबीयत से मुतासिर होकर तोड़ डाला। शैख़ अल ऐराक़ीन मोहम्मद रज़ा का बयान है कि इब्ने सउद ने मक्का में 9 और मदीना में 19 मुक़द्दस मुक़ामात को मुनहादिम तोड़ कराया था कि जिनमें ख़ाना ए सैय्यदा और बैतुल हुज़्न भी थे। मुलाहेज़ा हो।

(अनवारूल हुसैनिया जिल्द 1 पृष्ठ 54 प्रकाशित बम्बई 1346 हिजरी)