चौदह सितारे

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चौदह सितारे लेखक:
कैटिगिरी: शियो का इतिहास

चौदह सितारे

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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चौदह सितारे
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चौदह सितारे

चौदह सितारे

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

ख़लीफ़ा का तक़र्रूर और तवारीख़े फ़रहंग

मोअर्रेख़ीने इस्लाम के अलावा मोअर्रेख़ीने फि़रहंग (अंग्रेज़ इतिहासकारों) ने भी हज़रत अली (अ.स.) इस्तेहक़ाक़े खि़लाफ़त और नुमायां तौर पर ख़लीफ़ा मुक़र्रर किये जाने पर मुकम्मल रौशनी डाली है।

हम इस मौक़े पर मिस्टर डीवन पौर्ट की तहरीर का तरजुमा पेश करते हैं। इन दोनों फि़रक़ों सुन्नी और शिया में से एक ने मौहम्मद के चचा जा़द भाई और दामाद अली से जैसा कि मुक़तज़ाए इन्साफ़ व हमियत है तो ला रखा है क्योंकि आंहज़रत ऐलानिया तौर पर उनसे मोहब्बत व उल्फ़त रखते थे और कई बाद उनको अपना ख़लीफ़ा भी ज़ाहिर किया था। ख़ुसूसन दो मौक़ों पर एक जब आंहज़रत स. ने अपने घर में बनी हाशिम की दावत की थी और अली (अ.स.) ने कुफ़्फ़ार के मज़ाक उड़ाने और तौहीन करने के बावजूद अपना ईमान ज़ाहिर किया था। हज़रत ने अपनी बाहें उस जवान के गले में डाल कर छाती से लगाया और बाआवाज़े बलन्द कहा , देखो मेरे भाई , मेरे वसी और मेरे ख़लीफ़ा को।

दूसरे जब आं हज़रत ने अपने इन्तेक़ाल से कुछ महीने पहले ख़ुतबा पढ़ा था। बा हुक्मे ख़ुदा जिसको जिब्राईल आं हज़रत के पास लाये थे और यूं कहा था कि ऐ पैग़म्बर मैं ख़ुदा की तरफ़ से आप पर सलवात व रहमत लाया हूँ और इसका हुक्म आपके पैरवों के नाम जिनको आप बग़ैर ताख़ीर के सुना दीजिये और शरीरों से कोई ख़ौफ़ न कीजिये। ख़ुदा आपको उनके शर से बचाएगा। ख़ुदा के हुक्म के मुताबिक़ आंहज़रत ने अनस से कहा कि लोगों को जमा करें जिसमें आंहज़रत के पैरव व यहूदी व नसरानी व मुख़तलिफ़ बाशिन्दे भी हाजि़र हों। यह जीमयत एक गांव के पास जमा हुई जिसे ग़दीरे ख़ुम कहते हैं जो नवाह शहर हजफ़ा में मक्के और मदीने के बीच मे है। पहले इस मक़ाम को साफ़ किया गया और 2 अप्रैल 626 ई0 को आंहज़रत एक ऊंचे मिम्बर पर गये जो वहां उनके लिये तय्यार किया गया था और जब कि हाज़ेरीन निहायत तवज्जोह से सुनते थे। एक ख़ुतबा हज़रत ने बड़ी शानो शौकत और फ़साहत व बलाग़त से पढ़ा , जिसका खुलासा यह है:-

तमाम हम्दो सना उस खुदाए यकता के लिये हैं जिसके कोई देख नहीं सकता। उसका इल्म माज़ी , हाल और मुस्तक़बिल को शामिल है और उसको इन्सानों के कुल पोशीदा इसरार मालूम हैं क्यों कि उस से कोई चीज़ पोशीदा नहीं रह सकती। वह बेइन्तेहां बईद और बिल्कुल क़रीब है। वही वह है जिसने आसमानों ज़मीन और उसके दरमियान की तमाम चीज़ों को ख़ल्क़ किया। वह ग़ैर फ़ानी है और जो कुछ है सब उसकी क़ुदरत और उसके इखि़्तयार के ताबे है। उसकी रहमत और उसका फ़ज़ल सबके शामिले हाल है। वह जो करता है मसलेहत से करता है। वह नुज़ूले अज़ाब में टाल मटोल करता है। उसका सज़ा देना रहमत से खा़ली नहीं है। उसकी ज़ात का भेद मुमकिनात को मालूम नहीं हो सकता। आफ़ताब (सूरज) व महताब (चाँद) और बाक़ी अजरामे समावी (नक्षत्र) उसी के इल्म से अपनी राह पर जो उसी ने मुक़र्रर कर दी है चलते हैं। बाद हम्दे ख़ुदा वाज़े हो के मैं ख़ुदा का सिर्फ़ एक बन्दा हूं। मुझे ख़ुदा का हुक्म हुआ है और मैं उसकी तामील में सरे नियाज़ बा कमाले अदब व ख़ुज़ू झुकाता हूँ। सुनो तीन बार जिब्राईल मेरे पास आ चुके हैं और तीनों दफ़ा उन्होंने मुझे हुक्म दिया है कि मैं अपने तमाम पैरवों से ख़्वाह वह गोरे हों या काले यह ज़ाहिर कर दूँ कि अली (अ.स.) मेरे खलीफ़ा और मेरे वसी और तमाम उम्मत के इमाम हैं और मेरे गोश्त व पोस्त हैं और मेरे ऐसे हैं जैसे मूसा के हारून थे और मेरी वफ़ात के बाद वही तुम्हारी हिदायत करेंगे और हादी होंगे। जब मैं इस दुनिया से रेहलत कर जाऊं तो मेरे पैरवों को उनकी फ़रमा बरदारी ऐसी करनी चाहिये जैसे इताअत मेरी करते थे जब कि मैं तुम में मौजूद था।

सुनो ! जिसने अली (अ.स.) की नाफ़रमानी की उसने दर हक़ीक़त ख़ुदा और रसूल स. की नाफ़रमानी की , ऐ दोस्तों , यह ख़ुदा के अहकाम हैं। सब वहीयां (जिब्राईल के ज़रिये ख़ुदा के भेजे हुए सारे पैग़ामात) जो वक़्तन फ़ावक़्तन मुझ पर आई हैं अली (अ.स.) ने मुझ से सीख ली हैं। जो अली (अ.स.) का हुक्म न मानेगा उसके सर पर अल्लाह की दाएमी लानत ज़रूर रहेगी।

ख़ुदा ने क़ुरआन की हर सूरत में अली (अ.स.) की तारीफ़ की है मैं दोबारा कहता हूँ कि अली मेरे चचा ज़ाद भाई और मेरे गोश्त और ख़ून हैं और ख़ुदा ने उनको निहायत नादिर ख़ूबियां अता की हैं। अली (अ.स.) के बाद उनके बेटे हसन (अ.स.) और हुसैन (अ.स.) उनके जांनशीन होंगे। इस ख़ुतबे के तमाम होने पर अबू बक्र , उमर , उस्मान , अबू सुफि़यान और दूसरे लोगों ने अली (अ.स.) के हाथ चूमे और उनको रसूल स. के ख़लीफ़ा मुक़र्रर होने की मुबारक बाद दी और इक़रार किया कि उनके कुल अहकाम को सच्चे तौर पर बजा लाऐंगे।

622 ई0 में सिर्फ़ तीन दिन पहले अपने इन्तेक़ाल से आंहज़रत स. ने फिर अपने ताबेईन को इन अक़ीदों की मज़ीद ताक़ीद कर दी और इस बात पर ज़ोर दिया कि आप की आल से ख़ुसूसियत के साथ मोहब्बत रखें और उनकी इज़्ज़तों तौक़ीर करें। आपने बड़े शद्दो मद से यूँ फ़रमाया कि जो मुझको मौला मानता हो वह अली (अ.स.) को भी मौला समझे , अल्लाह ताईद करे उसकी जो दोस्ती रखे अली (अ.स.) से और ग़ज़बनाक हो उस पर जो उनका दुश्मन हो। ऐसे मुक़र्रर और मुसर्रह बयानात से जो खुद रसूल स. के लबों से अदा हुए थे एक वक़्त तो अमरे खि़लाफ़त से शको शुब्हा बिल्कुल दूर रहा मगर आखि़र में सब को मायूसी हो गई क्यों कि अबू बकर की बेटी और आं हज़रत स. की दूसरी ज़ौजा (पत्नी) आयशा ने साज़ बाज़ कर के अपने बाप को पहला ख़लीफ़ा लोगों से मुक़र्रर करा लिया। मलकुल मौत के इन्तिज़ार में आं हज़रत का आयशा के हुजरे में जाना चाहे आपकी मरज़ी से हो या बीबी आयशा के हुक्म से ख़ास कर के उनके मुफ़ीद मतलब बात हो गई कि आं हज़रत का हुक्म दोबारा खि़लाफ़ते अली (अ.स.) लोगों के कानों तक न पहुंचने पाए। बस अल्ल उमूम यह समझा गया कि रसूल स. बग़ैर अपने ख़लीफ़ा के मुताअल्लिक़ आखि़री वसीयत किए हुए इन्तेक़ाल किया और इस तरह यह बात हुई कि तीनों ख़लीफ़ाओं ने राज किया। इससे पहले कि अली (अ.स.) अपने हक़ को पहुँचें जिसका वह मुकम्मल इस्तेहक़़ाक़ रखते थे न सिर्फ़ बा लिहाज़े क़राबत व ज़ौजियत फ़ात्मा दुख़्तरे रसूल स. बल्कि बा लिहाज़ उन बेशुमार और बड़ी खि़दमतों के जो उन्होंने इस्लाम कीं , हो सकता है कि बीबी आयशा ने अपने बाप की लड़की होने की वजह से उनकी यह खि़दमत की हो कि , उन्हें ख़लीफ़ा बना दिया जाए लेकिन सही यह है कि आयशा को अली (अ.स.) की तरफ़ से पुराना बुग़ज़ व कीना था जो वाक़ए अफ़क़ के मौक़े पर पैदा हो गया था क्यों कि उस मौक़े पर अली (अ.स.) ने राय पेश की थी कि बीबी आयशा की तहक़ीक़ात कराई जाय। बीबी आयशा इस बात को कभी न भूलीं और उन्होंने दरगुज़र नहीं किया , बल्कि अली (अ.स.) को सताया और ऐसा इन्तेक़ाम लिया जो इस्लाम में अपनी आप नज़ीर है।

(किताबे खि़लाफ़त मन्क़ूल अज़ तारीख़े इस्लाम जिल्द 3 पृष्ठ 25 )

आनरएबिल मिस्टर टायलर ने अपनी किताब में लिखा है कि मौहम्मद स. ने ख़ुद अपने दामाद अली (अ.स.) को अपना ख़लीफ़ा और जांनशीन कर दिया था लेकिन आपके ससुर अबु बकर ने लोगों को अपनी साजि़श में ले कर खि़लाफ़त पर क़ब्ज़ा कर लिया।(मुलाहेज़ा हो एलीमेंट्स आफ़ जनरल हिस्टी ª पृष्ठ 249, 1851 0 में छपा)

इन्साईक्लोपीडिया बरटानिका में है कि , रसूल स. के बाद इस्लाम की सरदारी का दावा अली (अ.स.) को ज़्यादा मुनासिब मालूम होता था। मिस्टर टरयो ने लिखा है कि अगर क़राबत (नज़दीकी) की वजह से तख़्त नशीनी का उसूल अली (अ.स.) के मोअल्लिफ़ माना जाता तो वह बरबाद कुन झगड़े पैदा न होते जिन्होंने इस्लाम को मुसलमानों के ख़ून में डूबो दिया।(स्प्रिट आफ़ इस्लाम मिस्टर सडीवाज़ तारीख़े इस्लाम जिल्द 3 पृष्ठ 201 )

हज़रत अली (अ.स.) के फ़ज़ाएल

अमीरूल मोमेनीन हज़रत अली (अ.स.) के फ़ज़ाएल क़लमबन्द करना इन्सान की ताक़त के बाहर है। ख़ुद सरवरे कायनात स. ने इसके मोहाल होने पर नस फ़रमा दी है। आपका इरशाद है कि , अगर तमाम दुनिया के दरिया , समन्दर सियाही बन जायें और दरख़्त क़लम हो जायें और जिन्नो इन्स लिखने और हिसाब करने वाले हों तब भी अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) के मुकम्मल फ़ज़ाएल नहीं लिखे जा सकते।(कशफ़ुल गम्मा पृष्ठ 53 व अर हज्जुल मतालिब) उलेमाए इस्लाम ने भी अकसरियत फ़ज़ाएल का एतेराफ़ किया है और अकसर ने अहातए फ़ज़ाएल से आजेज़ी ज़ाहिर की है। अल्लामा अब्दुल बर ने किताब इस्तियाब जिल्द 2 के पृष्ठ 478 पर तहरीर फ़रमाया है फ़ज़ाएले ला यूहीत बहा किताब आपके फ़ज़ाएल किसी एक किताब में जमा नहीं किए जा सकते। अल्लामा इब्ने हजरे मक्की सवाएक़े मोहर्रेक़ा और मंज मकीया में लिखते हैं कि मनाकि़बे अली व फ़ज़ाएल अकसर मिन अन तुहसा हज़रत अली (अ.स.) के मनाकि़ब व फ़ज़ाएल हद्दे एहसा से बाहर हैं और सवाएक़ पृष्ठ 72 पर फ़रमाते हैं कि , फ़ज़ाएले अली वही क़सीरह , अज़ीताह मशाएतः हत्ता क़ाला अहमद वमा जा लाहद मिनल फ़ज़ाएल माजल अली बे शुमार हैं , बेश बहा हैं , और मशहूर हैं। अहमद इब्ने हम्बल का कहना है कि , अली (अ.स.) के लिये जितने फ़ज़ाएल व मनाकि़ब मौजद हैं किसी के लिये नहीं हैं। क़ाज़ी इस्माईल , इमामे निसाई और अबू अली नैशापूरी का कहना है कि किसी सहाबी की शान में उम्दा सनदों के साथ वह फ़ज़ाएल वारिद नहीं हुए जो हज़रत अली (अ.स.) की शान में वारिद हुए हैं। अल्लामा मौहम्मद इब्ने तल्हा शाफ़ेई तहरीर फ़रमाते हैं कि अली (अ.स.) के जो फ़ज़ाएल हैं वह किसी और को नसीब नहीं। रसूल अल्लाह ने आपको आयतुल हुदा , मनारूल ईमान और इमाम अल औलिया फ़रमाया है और इरशाद किया है कि अली का दोस्त मेरा दोस्त है और अली का दुश्मन मेरा दुश्मन है।(मतालेबुल सुऊल पृष्ठ 57 ) अल्लामा हजर लिखते हैं कि क़ुरआन मजीद में जहां या अय्योहल लज़ीना आमेनू आया है वहां ईमान दारों से मुराद लिये जाने वालों में अली (अ.स.) का दरजा सबसे पहला है। क़ुरआने मजीद में मुख़्तलिफ़ मक़ामात पर असहाब की मज़म्मत आई है लेकिन हज़रत अली (अ.स.) के लिये जब भी जि़क्र आया है ख़ैर के साथ आया है और अली (अ.स.) की शान में कु़रआने मजीद की तीन सौ (300) आयतें नाजि़ल हुई हैं।(सवाएके़ मोहर्रेक़ा पृष्ठ 76 मिस्र में छपी) यही वजह है कि इमाम अल इन्स वल जिन हज़रत अली (अ.स.) इरशाद फ़रमाते हैं , इस उम्मत में किसी एक का भी भीक़्यास और मुक़ाबेला आले मौहम्मद स. से नहीं किया जा सकता और इन लोगों की बराबरी जिनको बराबर नेमतें दी गईं उन अफ़राद से नही की जा सकती जो नेमत देने वाले थे और नेमतें देते रहे। आले रसूल स. दीन की निव और यक़ीन के खम्बे हैं।(सल सबीले फ़साहत तरजुमा नहजुल बलाग़ा पृष्ठ 27 ) बे शक हुज़ूरे विलायत का यह फ़रमान बिलकुल दुरूस्त है कि आले मौहम्मद स. की बराबरी नहीं की जा सकती क्यों कि हुज़ूर रसूले करीम स. ने इरशाद फ़रमा दिया है कि मेरी आल मेरे अलावा सारी कायनात से बेहतर और अफ़ज़ल है और हदीसे कफ़ो फ़ात्मा स. ने इसकी वज़ाहत कर दी कि आले रसूल स. का दरजा अम्बिया से बाला तर है। इन्हीं हज़रात की मोहब्बत का हुक्म ख़ुदा वन्दे आलम ने क़ुरआने मजीद में दिया है और उनकी मोहब्बत से सवाल किया जाना मुसल्लम है। इनके लिये दुनिया की मस्जिदें अपने घर के मानिन्द हैं।(दुरेमन्शर व मतालेबुल सवेल पृष्ठ 59 ) अहले बैत में हज़रत अली (अ.स.) का पहला दरजा है , और यह मानी हुई बात है कि जो फ़ज़ीलत अली (अ.स.) की है इसमें तमाम आइम्मा मुशतरक हैं। आपको ख़ुदा ने क़सीमे नारो जन्नत बनाया है।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 73 ) आपके हुक्म के बग़ैर कोई जन्नत में नही लेजा सकता। अल्लामा हजरे मक्की तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत अबू बकर ने इरशाद फ़रमाया है कि मैंने रसूल अल्लाह स. को यह कहते सुना है कि , कोई शख़्स भी सिरात पर से गुज़र कर जन्नत में जा न सकेगा जब तक अली (अ.स.) का दिया हुआ परवानाए जन्नत उसके पास न होगा।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 75 मिस्र में छपी) आपको हक़ के साथ और हक़ को आपके साथ होने की बशारत दी र्गइं है। आपको रसूले अकरम स. ने मवाख़ात के मौक़े पर अपना भाई क़रार दिया है। आपके लिये दो बार आफ़ताब पलटा , शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 87 में है कि जंगे ख़ैबर के सिलसिले में सहाबा के मक़ाम पर (वही) का नज़ूल होने लगा और सरे मुबारके रसूल स. अली (अ.स.) के ज़ानू पर था और आफ़ताब ग़ुरूब हो गया था उस वक़्त आपने अली (अ.स.) को हुक्म दिया कि आफ़ताब को पलटा कर नमाज़ अदा करें चुनांचे आफ़ताब डूबने के बाद पलटा और अली (अ.स.) ने नमाज़ अदा की। इसी किताब के पृष्ठ 176 पर और किताब सफ़ीनातुल बिहार जिल्द 1 पृष्ठ 57 व मजमुए बैहरैन पृष्ठ 232 में है कि वफ़ाते रसूल स. के बाद हज़रत अली (अ.स.) बाबुल जाते वक़्त जब फ़रात के क़रीब पहुँचे तो असहाब की नमाज़े अस्र क़ज़ा हो गई , आपने आफ़ताब को हुक्म दिया कि पलट आए चुनांचे वह पलटा और असहाब ने नमाज़े अस्र अदा की। नसीमुल रियाज़ , शरह शिफ़ा क़ाज़ी अयाज़ वगै़रह में है कि एक मरतबा आपका एक ज़ाकिर आपके जि़क्र में मशग़ूल था कि नमाज़े अस्र क़ज़ा हो गई , उसने कहा कि ऐ आफ़ताब पलट आ कि मैं उसका जि़क्र कर रहा हूँ जिसके लिये तू दो बार पलट चुका है चुनांचे आफ़ताब पलटा और उसने नमाज़े अस्र अदा की। शवाहेदुन नबूवत के पृष्ठ 219 में है कि अली (अ.स.) मुजस्सम हक़ थे और उनकी ज़बान पर हक़ ही जारी होता था। इमामे शाफ़ेई इरशाद फ़रमाते थे जो मुसलमान अपनी नमाज़ में उन पर दुरूद न भेजे उसकी नमाज़ सही नहीं है।

मौलाना ज़फ़र अली खा़ँ का एक शेर और उसकी रद

मौलाना ज़फ़र अली खा़ँ मरहूम एडीटर ज़मींदार लाहौर का एक अजीबो ग़रीब शेर एक दरसी किताब(हमार्री उदू) मुसन्नेफ़ा हारून रशीद में हमारी नज़र से गुज़रा शेर यह है।

हैं किरनें एक ही मशल की अबु बक्रो , उमर उस्मानो अली।

हम मरतबा हैं , याराने नबी , कुछ फ़कऱ् नहीं इन चारों में।।

इस शेर में अगर मशल से मुराद नबी स. की ज़ात ली गई है तो असहाब का उनकी किरन होना इन्तेहाई बईद है क्यों कि वह नूरी और जौहरी थे और यह माद्दी हैं। वह मुजस्सम ईमान थे और उन लोगों ने 38 , 39 , 40 साल कुफ़्र में गुज़ारे हैं। उन्होंने कभी बुत परस्ती नहीं की और उन्होंने अपने उम्र के बड़े हिस्से बुत परस्ती में गुज़ार कर इस्लाम क़ुबूल किया था औश्र अगर मशअल से मुराद नबूवत ली गई है और उसकी किरने उनकी इमामत और खि़लाफ़त को क़रार दिया है तो यह भी दुरूस्त नही है क्यो कि रसूल स. की नबूवत मिन जानिब अल्लाह थी और उनकी खि़लाफ़त की बुनियाद इज्माए नाकि़स पर क़ायम हुई थी। इस शेर के दूसरे मिस्रे में चारों को हम मरतबा कहा गया है और रसूल स. का यार बताया गया है। हो सकता है कि तीनों हज़रात रसूल स. के यार रहे हों लेकिन हज़रत अली (अ.स.) हरगिज़ रसूल स. के यार नहीं थे बल्कि दामाद और भाई थे। अब रह गया चारों का हम मरतबा होना यह तो हो सकता है कि तीनों हम मरतबा हों और था भी कि तीनों हज़रात हर हैसियत से एक दूसरे के बराबर थे लेकिन हज़रत अली (अ.स.) का उनके बराबर होना यह उनका आपके हम मरतबा होना समझ से बाहर है क्यों कि यह चालीस साल बुत परस्ती के बाद मुसलमान हुए थे और अली (अ.स.) पैदा ही मोमिन और मुसलमान हुए। इन लोगों ने मुद्दतों बुत परस्ती की और अली (अ.स.) ने एक सेकेण्ड भी बुत नहीं पूजा। इसी लिये करम अल्लाहो वजहा कहा जाता है। यह फ़ात्मा स. के शौहर थे। इनमें से किसी को यह शरफ़ नसीब नहीं हुआ। वह लोग आम इन्सानों की तरह ख़ल्क़ हुए और अली मिसले नबी स. नूर से पैदा हुये। इसके अलावा खुद ख़ुदा वन्दे आलम ने अली (अ.स.) के अफ़ज़ल ही होने की नहीं बल्कि बेमिस्ल होने की नस (सनद) फ़रमा दी है। मुलाहेज़ा हों:-

(अहया अल उलूम , ग़ज़ाली सफ़सीर साअल्बी व तफ़सीरे कबीर जिल्द 2 पृष्ठ 283 )

इमाम फ़ख़रूद्दीन राज़ी ने हज़रत अली (अ.स.) को अम्बिया के बराबर और तमाम सहाबा से अफ़ज़ल तहरीर किया है।

(अरबईन फ़ी उसूल अल दीन , दारे हज अल मतालिब , पृष्ठ 455 )

सरवरे कायनात स. ने अली (अ.स.) को अपनी नज़ीर बताया है।

(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 454 )

इन्ही ख़ुसूसीयात की बिना पर अली (अ.स.) को मेयारे ईमान क़रार दिया गया है।

अल्लामा तिरमिज़ी और इमामे नेसाई ने बुग़ज़े अली (अ.स.) से मुनाफि़क़ को पहचानने का उसूल बताया है और बाज़ ने अफ़ज़लियते अली (अ.स.) पर एतेक़ाद ज़रूरी क़रार दिया है और अल्लामा अब्दुल बर ने एस्तेयाब में सहाबा , ताबईन वग़ैरा की फ़ेहरिस्त पेश की है जो अली (अ.स.) को अफ़ज़ल सहाबा मानते थे और शायद इसकी वजह यह होगी कि तमाम लोग जानते थे कि ख़ुदा वन्दे आलम ने अली (अ.स.) के सिवा किसी के क़ल्ब को ईमान की कसौटी पर नहीं कसा।(एज़ालतुल ख़फ़ा जिल्द 2 पृष्ठ 256 )

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की इल्मी हैसियत

हज़रत अली (अ.स.) का नफ़्से अल्लाह होना मुसल्लेमात से है और अल्लाह उस वाजेबुल वुजूद ज़ात को कहते हैं जो इल्म व क़ुदरत से इबारत है। यह ज़ाहिर है कि जो नफ़्से अल्लाह होगा उसे फि़तरतन तमाम उलूम से बहरावर होना चाहिये। हज़रत अली (अ.स.) के लिये यह मानी हुई चीज़ है कि आप दुनिया के तमाम उलूम से सिर्फ़ वाकि़फ़ ही नहीं बल्कि उनमें महारत रखते थे और इल्में लदुन्नी से भी माला माल थे। तमाम उलूम के बारे में आपके ज्ञान की कोई सीमा नहीं है। इमामे शबलन्जी लिखते हैः आपके इल्मों फ़हम वग़ैरा के लिये बहुत सी जिल्दें दरकार हैं। मौहम्मद इब्ने तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि इमामुल मुफ़स्सेरीन जनाब इब्ने अब्बास का कहना है कि इल्मों हिकमत के 10 (दस) दरजों मे से 9 (नौ) हज़रत अली (अ.स.) को मिले हैं और दसवें में तमाम दुनिया के उलेमा शामिल हैं और इस दसवें दरजे में भी अली (अ.स.) को अव्वल नम्बर हासिल है। अबुल फि़दा कहते हैं कि हज़रत इल्म अल नास बिल क़ुरआन वल सन्न थे , यानी तुम लोगों से ज़्यादा उन्हें क़ुरआन व हदीस का इल्म था। ख़ुद सरवरे कायनात स. ने भी आपके इल्मी मदारिज पर बार बार रौशनी डाली है। कहीं अना मदीनतुल इल्म व अलीयन बाबोहा फ़रमाया , कहीं अना दारूल हिकमते व अलीयन बाबोहा इरशाद फ़रमाया , किसी जगह पर अलम उम्मती अली इब्ने अबी तालिब कहा। हज़रत अली (अ.स.) ने ख़ुद भी इसका इज़हार किया है और बताया है कि इल्मी नुक़्ताए नज़र से मेरा दरजा क्या है। एक मक़ाम पर फ़रमाया कि रसूल अल्लाह स. ने मुझे इल्म के हज़ार बाब (अध्याय) तालीम फ़रमाये हैं और मैंने हर बाब से हज़ार बाब (अध्याय) पैदा कर लिये हैं। एक मक़ाम पर इरशाद फ़रमाया ज़क़नी रसूल अल्लाह ज़क़न ज़क़न मुझे रसूल अल्लाह स. ने इस तरह इल्म भराया है जिस तरह कबूतर अपने बच्चे को दाना भराता है। एक मन्जि़ल पर कहा कि सलूनी क़ब्ल अन तफ़क़दूनी मेरी जि़न्दगी में जो चाहे पूछ लो वरना फिर तुम्हें इल्मी मालूमात से कोई बहरावर करने वाला न मिलेगा। एक मक़ाम पर फ़रमाया कि आसमान के बारे में मुझसे जो चाहे पूछो मुझे ज़मीन के रास्तों से ज़्यादा आस्मान के रास्तो का इल्म है। एक दिन फ़रमाया कि अगर मेरे लिये मसन्दे क़ज़ा बिछा दी जाए तो मैं तौरैत वालों को तौरैत से , इन्जील वालों को इन्जील से , ज़बूर वालों को ज़बूर से और क़ुरआन वालों को क़ुरआन से इस तरह जवाब दे सकता हूँ कि उनके उलेमा हैरान रह जाऐ। एक मौक़े पर आपने इरशाद फ़रमाया कि , ख़ुदा की क़सम मुझे इल्म है कि क़ुरआन की कौन सी आयत कहां नाजि़ल हुई है , और मैं यह भी जानता हूँ कि ख़ुश्की में कौन सी नाजि़ल हुई है और तरी में कौन सी आयत नाजि़ल हुई है। कौन सी दिन में और कौन सी आयत रात में नाजि़ल हुई है। उलेमा ने लिखा है कि एक शब इब्ने अब्बास ने हज़रत अली (अ.स.) से ख़्वाहिश की कि बिस्मिल्लाह की तफ़सीर बयान फ़रमायें , आपने सारी रात तफ़सीर बयान फ़रमाई और जब सुब्ह हो गई तो फ़रमाया ऐ इब्ने अब्बास मैं इसकी तफ़सीर इतनी बयान कर सकता हूँ कि 70 ऊँटों का बार हो जाए , बस मुख़तसर यह समझ लो कि जो कुछ क़ुरआन में है वह सूरा ए हम्द में है और जो सूरा ए हम्द में है वह बिस्मिल्लाह हिर रहमार्निरहीम में है और जो बिस्मिल्लाह में है वह बाए बिस्मिल्लाह में है और जो बाए बिस्मिल्लाह में है वह नुक़्ताए बाए बिस्मिल्लाह में है। ऐ इब्ने अब्बास मैं वही नुक़्ता हूँ जो बिस्मिल्लाह की बे के नीचे दिया जाता है। शेख़ सुलैमान क़न्दूज़ी लिखते हैं कि तफ़सीरे बिस्मिल्लाह सुन कर इब्ने अब्बास ने कहा कि ख़ुदा की क़सम मेरा और तमाम सहाबा का इल्म अली (अ.स.) के मुक़ाबले में ऐसा है जैसे सात समुन्दरों के मुक़ाबले में पानी का एक क़तरा। कुमैल इब्ने ज़्याद से हज़रत अली (अ.स.) ने फ़रमाया कि ऐ कुमैल मेरे सीने में इल्म के ख़ज़ाने हैं काश कोई अहल मिलता कि मैं उसे तालीम कर देता।

मुहिब तबरी तहरीर फ़रमाते हैं कि सरवरे आलम स. का इरशाद है कि जो शख़्स इल्मे आदम , फ़हमे नूह , हिल्मे इब्राहीम , ज़ोहदे यहीया , सौलते मूसा को इन हज़रात समेत देखना चाहे फ़ल यन्ज़र इला अली इब्ने अबी तालिब उसे चाहिये कि वह अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) के चेहरा ए अनवर को देखे। मुलाहेजा़ हों ,।(नूरूल अबसार शरह मवाकि़फ़ मतालेबुल सवेल , सवाएक़े मोहर्रेक़ा , श्वाहेदुन नबूवत , अबुल फि़दा , कशफ़ुल ग़म्मा , नेयाबुल मोअद्दत , मनाकि़ब इब्ने शहरे आशोब , रियाज़ुल नज़रा , अरजहुल मतालिब , अनवारूल ग़ता) उलमाए इस्लाम के अलावा अंग्रेज़ इतिहासकारों ने भी आपके कमाले इल्मी का एतेराफ़ (मान्ना) किया है। लेखक इन्साईक्लोपीडिया बरटानिका लिखते हैं , अली (अ.स.) इल्म और अक़्ल में मश्हूर थे और अब तक कुछ संग्रह ज़रबुल मिसाल और शेरों के उनसे मन्सूब हैं , ख़सूसन मक़ालाते अली जिसका अंग्रेज़ी तरजुमा (विल्यम पोल) ने 1832 ई0 में बा मक़ाम टोंबरा छपवाया।

(मोहज़ब्बुल मोकालेमा पृष्ठ 104 )

मिस्टर एयर विंग लिखते हैं , आप ही वह पहले ख़लीफ़ा हैं जिन्होंने उलूम व फ़ुनून की बड़ी हिमायत फ़रमाई। आपको ख़ुद भी शेर कहने का पूरा जौक़ था और आप के बहुत से हकीमाना मकूले और ज़रबुल मिसाल इस वक़्त तक लोगों के ज़बांज़द (याद) हैं और मुख़्तलिफ़ ज़बानों में उनका तरजुमा भी हो गया है।

(किताब ख़ुलफ़ाए रसूल पृष्ठ 178 )

मिस्टर ओकली लिखते हैं , तमाम मुसलमानों में बा इत्तेफ़ाक़ अली की अक़्ल व दानाई की शोहरत है जिसको सब मानते हैं। आपके सद कलेमात अभी तक महफ़ूज़ हैं जिनका अरबी में तुरकी में तरजुमा हो गया है। इसके अलावा आपके अशआर का दीवान भी है जिसका नाम अनवारूल अक़वाल है। लोवर वर्डलीन पुस्तकालय में आपके अक़वाल की एक बड़ी किताब(नहजुल बलाग़ह) मौजूद है। आपकी मशहूर तरीन तसनीफ़(जाफ़रो जामा) है जो एक बईदुल फ़हेम (समझ में न आने वाला) ख़त में आदादो हिन्द से (गिन्ती और निशानों) के ज़रिये से लिखा हुआ है। यह हिन्दसे उन तमाम अज़ीमुश्शान वाक़ेयात को जो इब्तेदाए इस्लाम से रहती दुनिया तक होने वाले वाक़ेयात बतलाते हैं। यह आपके ख़ानदान में है लेकिन पढ़ी नहीं जा सकती अल बत्ता इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) इसके कुछ हिस्से की तशरीह व तफ़सीर में कामयाब हो गये हैं और इसको मुकम्मल बारहवें इमाम करेंगे।

(तारीख़े अरब ओकली पृष्ठ 332 )

मोवर्रिख़ गिबन लिखते हैं , आप वह पहले ख़लीफ़ा हैं जिन्होंने इल्मों फ़न और किताबत की परवरिश की और हिकमत से ममलू अक़वाल का एक बड़ा मजमूआ आपके नाम से मन्सूब है। आपका क़ल्ब व दिमाग़ हर शख़्स से खि़राजे तहसीन हासिल करता रहेगा। आपका क़ल्बो देमाग़ मुजस्सम नूर था। आपकी दानाई और पुर मग़ज़ नुकता संजी ज़रबुल मिसाल के ईजाद में आपकी फ़ेरासत बहुत ही आला पाए की थी।

(तारीख़े अरब पृष्ठ 286 )

बम्बई हाई कोर्ट के जज मिस्टर अरनोल्ड , एडवोकेट जनरल एक फ़ैसले में लिखते हैं। शुजाअत , हिकमत , हिम्मत , अदालत , सख़ावत , जोहद और तक़वा में अली (अ.स.) का अदीलो नज़ीर तारीख़े आलम में कम नज़र आता है।

(लाँ रिपार्ट जिल्द 12 एजाज़ अल तन्ज़ील पृष्ठ 166 )

हज़रत अली (अ.स.) की तस्नीफ़ात

उल्माए इस्लाम का इस पर इत्तेफ़ाक़ है कि इस्लाम में सब से पहले मुसन्निफ़ (लेखक) हज़रत अली (अ.स.) हैं। अल्लामा रशीद उद्दीन इब्ने शहरे आशोब किताब माआलिम अल उलेमा में और अल्लामा मौहम्मद मोहसिन सदर ने किताब अल शिया व फ़ुनूने इस्लाम में तहरीर फ़रमाया है कि , अव्वल मिन सनफ़ फि़ल इस्लाम अमीरल मोमेनीन इस्लाम मे सब से पहले हज़रत अली (अ.स.) ने तस्नीफ़ की है। आपकी किताब का नाम (किताबे अली) और जामिया था। उसूले काफ़ी किताब अल हुज्जत में है कि इस किताब में तमाम दुनिया में होने वाले वाक़ेयात व हालात लिखे हुए थे। यह भी मुसल्लम है कि सब से पहले क़ुरआन जमा करने वाले भी हज़रत अली (अ.स.) हैं। मुलाहेज़ा हों (नूरूल अबसार इमामे शबलेंजी पृष्ठ 73 मिस्र में छपी) किताब आयानुल शिया में अबुल आइम्मा की तालीफ़ात व तसनीफ़ात की फ़ेहरिस्त इस तरह लिखी है।

1. कुरआने मजीद को तन्ज़ील के मुताबिक़ हज़रत अली (अ.स.) ने जमा किया इसमे असबाब व मक़ामाते नुज़ूल आया व सूर का भी जि़क्र था।

2. किताबे अली जिसमें क़ुरआने मजीद के साठ कि़स्म के उलूम का जि़क्र था।

3. किताब जामे , 4. किताब अल जफ़र 5. सहीफ़ुल फ़राएज़ , 6. किताब फ़ी ज़कात अल नअम 7. किताब फि़ल अबवाब अल फि़क़ा , 8. किताब फि़ल फि़क़ा 9. मालिके अशतर के नाम तहरीरी हिदायत , 10. मौहम्मद बिन हन्फि़या के नाम वसीयत , 11. मसन्दे अली (अ.स.) लाबी अब्दुल रहमान , अहमद बिन शईब नेसाई , इन किताबों के अलावा आपका संग्रह और सहीफ़ाए अलविया और आपके अशआर का मजमूआ दीवाने अली के नाम से हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) की तरफ़ मन्सूब है। यह किताब नवाब अलाउद्दीन अहमद ख़ां बहादुर , फ़रमा रवाए लोहारो के हुक्म से 1876 ई0 में फ़ख़रूल मताबे , लाहौर में छपी थी और अब मुख़तलिफ़ मुल्कों में छप चुकी है और उसकी शरहें भी हो चुकी हैं। इन किताबों के अलावा जनाबे अमीरूल मोमेनीन का कलाम नीचे लिखी किताबों में जमा किया गया है।

1. नहजुल बलाग़ा:- इसे अल्लामा सय्यद रज़ी (अलै रहमा) ने जमा फ़रमाया है , वह 359 हिजरी मुताबिक़ 969 ई0 में पैदा हुए थे। और उनकी वफ़ात मोहर्रम 404 हिजरी मुताबिक़ 1513 ई0 में हुई है। किताब नहजुल बलाग़ा की बहुत सी शरहें लिखी गई हैं लिखने वालो में से कुछ नाम यह हैं।

1. इमामे अहले सुन्नत अज़ीज़ बिन अबु हामिद अब्दुल हमीद बिन हेयत उल्लाह बिन मौहम्मद बिन हसनैन इब्ने अबिल हदीद मदाईनी अल मुतावल्लिद 1 जि़लज्जिा 586 हिजरी मुताबिक़ 1257 ई0 बा मक़ाम बग़दाद।

2. क़वामुद्दीन युसूफ़ बिन हसन , जिनकी वफ़ात 922 हिजरी मुताबिक़ 1516 ई0।

3. मुफ़्ती मौहम्मद अब्दूह मिस्र

4. अल्लामा मौहम्मद हसन नाएल अल मरसफ़ी जिनका हाशिया है असल किताब नहजुल बलाग़ाह मिस्र के मशहूर प्रेस दारूल कुतुब अल अरबिया में छप गई है। यह चारों व्याख्याकर्ता अहले सुन्नत वल जमाअत से ताअल्लुक़ रखते हैं।

5. सय्यद अली बिन नासिर यह सय्यद रज़ी के दौर के थे सब से पहले नहजुल बलाग़ा की शरह उन्होंने ही लिखी है। उनकी शरह का नाम आलामे नहजुल बलाग़ा है।

6. अल्लामा कुतुबउद्दीन रावन्दी उनकी शरह का नाम मिनहाजुल बरअता है।

7. सय्यद इब्ने ताऊस , अबुल क़ासिम अली बिन मूसा बिन जाफ़र बिन मौहम्मद बिन ताऊस जो मोहर्रम 519 हिजरी में पैदा हुये और 5 ज़ीक़ाद 668 हिजरी में इन्तेक़ाल हुआ।

8. कमाल उद्दीन मीसम बिन अली मीसम बहरानी।

9. कुतुबउद्दीन मौहम्मद बिन हुसैन सिकन्दरी।

10. शेख़ हुसैन बिन शहाबुद्दीन हैदर अली आमेली का सफ़र के महीने में 1076 हिजरी मुताबिक़ अगस्त 1664 ई0 बामक़ाम हैदराबाद दकन इन्तेक़ाल हुआ।

11. शेख़ निज़ामुद्दीन अली बिन हुसैन इनकी शरह का नाम अनवारूल फ़साहत है।

12. अल्लामा मिर्ज़ा अलाउद्दीन मौहम्मद बिन अबी तुराब अल हुसैन उनकी शरह बहुत ही मबसूत है। इसका नाम हदायक़ुल हक़ाएक़ है। यह 20 (बीस) जिल्दों में है।

13. आक़ा शेख़ मौहम्मद रज़ा मुसम्मा बा दुर्रे नजफि़या।

14. मुल्ला फ़तेह अल्लाह काशेफ़ी जिनका इन्तेक़ाल 997 हिजरी में हुआ यह फ़ारसी में है और इसका नाम तम्बीहुल ग़ाफ़ेलीन है।

15. मोहकि़क़ हबीब अल्लाह हाशमी अल खूई इनकी शरह का नाम भी मिनहाज उल बराअता फ़ी नहजुल बलाग़ा है यह 25 जिल्दों में है। क़ुम ख़याबाने इरम तेहरान में मिलती है। इसके अलावा किताब के कुछ मुस्तदरकात हैं जो छप चुकी हैं।

2. मायते कलमता जिसको जाहिज़ ने जमा किया था।

3. ग़र्र अल हकम व दरद अल कलम जिसको अब्दुल वाहिद बिन मौहम्मद बिन अब्दुल वाहिद ने जमा किया था।

4. दस्तूरे माअलम हक्म जिसको क़ाज़ी अबू अब्दुल्लाह मौहम्मद बिन सलामा ने जमा किया था इनका इन्तेक़ाल 454 हिजरी में हुआ था।

5. नसर अला लाई जिसको अबुल फ़ज़ल अली बिन हुसैन अल बतरसी साहब मजमउल बयान ने जमा किया।

6. किताब मतलूब कुल्ले तालिब मन कलामे अली बिन अबी तालिब जिसको अबू इस्हाक़ अल वतवात अल अन्सारी ने जमा किया है। इसका फ़ारसी और जरमन ज़बान में तरजुमा हो चुका है।

7. क़लाएद अल हकम व फ़राएद अल क़लम जिसको क़ाज़ी अबू युसूफ़ बिन सुलैमान अला सफ़रानई ने जमा किया है।

8. किताब माअमियाते अली

9. इमसाल अल इमाम अली बिन अबी तालिब

10. शेख़ मुफ़ीद अल रहमा ने किताब अल इरशाद में कुछ कलाम जमा किया है।

11. नसर बिन मज़ाहम की किताब सिफ़्फ़ीन में आपका कलाम जमा है।

12. किताब जवाहरूल मतालिब।

आपकी इल्मी मरकजीयत

अल्लामा इब्ने अबिल हदीद , अल्लामा इब्ने शहरे आशोब , अल्लामा इब्ने तल्हा शाफ़ेई और अल्लामा अरबली तहरीर फ़रमातें हैं कि अशरफ़ुल उलूम , उल इलाहियात है और यह हज़रत अली (अ.स.) ही के कलाम से एक़तेबास किया गया है और आप ही इसकी इब्तेदा और इन्तेहां हैं। अक़ाएद के एतेबार से इस्लाम में मुख़तलिफ़ फि़रक़े हैं इन्में मोतज़ला भी है। इस फि़रक़े का बानी वासिल इब्ने अता है जो अबु हाशिम का शार्गिद था और वह अपने बाप मौहम्मद बिन हन्फि़या का शार्गिद था और मौहम्मद हज़रत अली के शार्गिद थे। दूसरा फि़रक़ा अशअरिया है जो अबुल हसन अशअरी की तरफ़ मन्सूब है और वह शार्गिद था अबु अली जबाई का जो मशाएख़ मोतज़ला से था। इसकी इन्तेहा भी हज़रत अली तक क़रार पाती है। तीसरा फि़रक़ा इमामिया व ज़ैदिया है। इसका हज़रत की तरफ़ मन्सूब होना बिल्कुल वाज़ेह है।

इस्लामी उलूम में इल्में फि़क़्हा भी है और इस्लाम का हर फि़रक़ा व मुजतहिद हज़रत ही का शार्गिद है। चुनान्चे अहले सुन्नत में चार फि़रक़े हैं। मालकी , हन्फ़ी , शाफ़ेई और हम्बली। मालकी फि़रके़ के बानी इमामे मालिक शार्गिद थे रबीअतुल राई के और वह शार्गिद थे अकरेमा के और वह शार्गिद थे इब्ने अब्बास के और वह शार्गिद थे हज़रत अली (अ.स.) के। दूसरे फि़रक़े हन्फ़ी के बानी इमामे अबू हनीफ़ा थे , वह शार्गिद थे इमामे मौहम्मद बाक़र (अ.स.) के और इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के और वह शार्गिद थे इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के और इमाम आबिद (अ.स.) शार्गिद थे इमाम हुसैन (अ.स.) के और वह शार्गिद थे हज़रत अली (अ.स.) के। तीसरे फि़रक़े के बानी इमाम शाफ़ेई शार्गिद थे इमाम मौहम्मद के और वह शार्गिद थे इमाम अबू हनीफ़ा के। चौथे फि़रक़े के बानी इमाम अहमद बिन हम्बल शार्गिद थे , इमाम शाफ़ेई के इस तरह उनका फि़रक़ा भी हज़रत अली (अ.स.) का शार्गिद हुआ। इसके अलावा सहाबा के फ़ुक़हा हज़रत उमर व अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास थे , और दोनों ने इल्में फि़क़्हा हज़रत अली (अ.स.) से ही सीखा। इब्ने अब्बास का शार्गिदे हज़रत अली (अ.स.) होना तो वाज़ेह और मशहूर है , रहे हज़रत उमर तो उनके बारे में भी सब को इल्म है कि बकसरत मसाएल में जब उनकी अक़्लो फ़हम और राह चारो तदबीर बन्द हो जाया करती थी तो वह हज़रत अली (अ.स.) की तरफ़ रूजु करते और हज़रत अली (अ.स.) से ही मुश्किल कुशाई की दरख़्वास्त किया करते थे और अकसर ऐसा भी हुआ है कि अपने अलावा दीगर सहाबा की भी मुश्किल कुशाई अली (अ.स.) से कराया करते थे। उनका बार बार लौला अली लहक़ा उमर अगर अली (अ.स.) न होते तो उमर हलाक हो जाता , कहना और यह फ़रमाना कि ख़ुदा वह वक़्त न लाये कि मैं किसी इल्मी मुश्किल में मुब्तिला हो जाऊँ और अली (अ.स.) मौजूद न हों। इसके अलावा यह कहना कि जब अली (अ.स.) मस्जिद में मौजूद हों तो कोई फ़तवा देने की जुरअत न करे। यह साबित करता है कि हज़रत उमर की फि़क़ही हद हज़रत अली (अ.स.) की मुन्तही होती है। हज़रत अली (अ.स.) ही वह हैं जिन्होने उस औरत के मुक़दमे में मुनसेफ़ाना फ़तवा दिया जिसने छः (6) महीने में बच्चा जना था और जि़ना कार हामला औरत के मामले में तय फ़रमाया था जिसके रजम का फ़तवा हज़रत उमर दे चुके थे।

इस्लामी उलूम में तफ़सीरे क़ुरआनी का इल्म भी है। यह इल्म भी हज़रत अली (अ.स.) से हासिल किया गया है। जो शख़्स तफ़सीर की किताबें देखे उसे आसानी से इस दावे की सेहत मालूम हो जाऐगी क्यों कि तफ़सीर के मतालिब ज़्यादा तर हज़रत अली (अ.स.) और अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास ही से मन्क़ूल हैं और अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास का शार्गिदे अली (अ.स.) होना मशहूर व मारूफ़ है। लोगों ने अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास से एक दफ़ा पूछा कि हज़रत अली (अ.स.) के इल्म के मुक़ाबले में आपका इल्म कितना है ? फ़रमाया जितना एक बहरे ज़ख़्ख़ार के मुक़ाबले में एक छोटा क़तरा हो सकता है। इस्लामी उलूम में इल्मे तरीक़त व हकी़क़त और उसूले तसव्वुफ़ भी है और तुमको मालूम होना चाहिये कि इस फ़न के जुमला उलेमा व माहेरीन अपने को हज़रत की तरफ़ ही मन्सूब करते हैं और हज़रत ही तक अपने सिलसिले को मुन्तही क़रार देते हैं। इसकी सराहत उन लोगों ने भी की है जो फि़रक़ाए सूफ़ीया के इमाम और पेशवा माने गये हैं। जैसे शिब्ली , जुनैद , सिरी , अबू यज़ीद बस्तामी , मारूफ़ करख़ी , सूफ़ी ख़रक़ा , सूफ़ी को अली (अ.स.) का ही शेआर क़रार देते हैं।

उलेमा अरबिया मे इल्मे नुजूम भी है। दुनिया के माहेरीन को इल्म है कि इस इल्म के बानी हज़रत अली (अ.स.) हैं। आप ही ने इस इल्म की ईजाद की है। आप ही ने इसके क़वाएद व ज़वाबित मदून फ़रमाये हैं। आप ने इस इल्म के उसूल व जवामे की तालीम अबू अल अस्वद देली को दी और उसके क़वानीन तरतीब देने का तरीक़ा सिखाया हज़रत ने जो मुख़्तसर और जामे उसूल बताये उनमें कलाम , कलमा और एराब थे। आप ने कहा कि कलाम , इल्मे फ़ेल , हरफ़ को कहते हैं और कलमा मारेफ़ा और नुक़रा होता है और एराब , रफ़े नसब हजर और जज़्म में मुन्क़सिम होता है। हज़रत के इन मुख़्तसर उसूल व ज़वाबित को आपके मोजेज़ात मे शुमार करना चाहिये।(शरह इब्ने अबिल हदीद , जिल्द 1 पृष्ठ 7, व मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 98 व कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 54 मनाकि़ब जिल्द 2 पृष्ठ 67 )

इसके अलावा इल्म अल कि़रअत , इल्म अल फ़राएज़ , इल्म अल कलाम , इल्म अल खि़ताबत , इल्म अल फ़साहत व बलाग़त , इल्म अल शेर , इल्म अल उरूज वल क़वाफ़ी , इल्म अल अदब , इल्म अल किताबत , इल्म ताबीरे ख़्वाब , इल्म अल फ़लसफ़ा , इल्म अल हिन्दसा , इल्म अल नुजूम , इल्म अल हिसाब , इल्म अल तिब , इल्मे मन्तिक़ अल तैर वग़ैरा में आपको इन्तेहाई कमाल हासिल था।(मनाकि़ब जिल्द 2 पृष्ठ 67 ) और इल्मे लदुन्नी , इल्मे अल ग़ैब में भी आपको यदे तूला हासिल था।(नुरूल अबसार पृष्ठ 760 व अरजहुल मतालिब पृष्ठ 213 )

इब्ने शहरे आशोब ने मनाकि़ब में हज़रत अली (अ.स.) के सौते नाकूस की तफ़सीर बयान फ़रमाने की तफ़सील लिखी है और अल्लामा मौहम्मद बाक़र ने दमुस साके़बा के पृष्ठ 141 पर इब्ने अबिल हदीद के हवाले से 33 , बड़ी सतरों पर मुश्तमिल हज़रत का एक निहायत फ़सीह व बलीग़ ऐसा ख़ुतबा नक़ल किया है जिसमें लफ़्ज़े अलिफ़ नहीं है।

आपका ज़ोहद व तक़वा

मिस्र के मशहूर मोवर्रिख़ अल्लामा जरजी ज़ैदान लिखते हैं कि अली (अ.स.) की हालत क्या बयान हो। ज़ोहद और तक़वे के मुताअल्लिक़ आपके वाक़ेयात बहुत कसरत से हैं। उसूले इस्लाम की पाबन्दी करने में आप बहुत सख़्त और अपने हर क़ौलो फ़ेल में निहायत शरीफ़ व आज़ाद थे। जाल , फ़रेब , धोका , मक्र को आप जानते तक न थे और अपनी जि़न्दगी के मुख़्तलिफ़ ज़मानों से किसी हालत में भी आपने चाल , हीला , ग़द्दारी वग़ैरा की तरफ़ ज़र्रा बराबर भी रूख़ न किया। आपकी तमाम तर तवज्जे महज़ दीन के मुताअल्लिक़ रहती थी और आपका कुल एतेमाद और भरोसा सिर्फ़ सच्चाई और हक़ पर था। चुनान्चे आपके ज़ोहद और फ़क़ीराना जि़न्दगी की मिसालों में से एक यह भी है कि आपने जिस वक़्त रसूल स. की बेटी फ़ात्मा (स अ ) से शादी की तो आपके पास फ़र्श की कि़स्म से कोई चीज़ नहीं थी सिवाय दुम्बे की एक खाल के कि उसी पर दोनों शब में पड़ कर सो रहते थे और दिन के वक़्त इसी चमड़े पर अपने ऊँट को दाना खिलाते थे। आपके पास एक मुलाजि़म भी न था जो आपकी खिदमत करता। आपकी खि़लाफ़ते ज़ाहेरी के ज़माने में एक दफ़ा असफ़हान के (ख़ेराज) का माल आया तो आपने उसको सात हिस्सों पर तक़सीम कर दिया फिर उसमें एक रोटी मिली तो उसके भी सात टुकड़े किये। आप ऐसे कपड़ों का लिबास पहनते थे जो सर्दी से ज़रा भी महफ़ूज़ नहीं रख सकता था। बाज़ लोगों ने आपको देखा कि अपने ओढ़ने की चादर में खजूरें उठा कर खुद ला रहे हैं जिनको एक दिरहम में खरीदा था। यह देख कर अर्ज़ कि ऐ अमीरूल मोमेनीन यह हमें दे दें ताके हम पहुँचा दें। आपने जवाब दिया कि जिसके अयाल हैं उन्हीं को उनका बोझ उठाना चाहिये। आपके ज़र्री अक़वाल से यह भी है कि मुसलमान को चाहिये कि इतना कम खाएं कि भूख से उनके पेट हल्कें रहें और इतना कम पियें कि प्यास से उनके पेट सूखे रहें और खुदा के ख़ौफ़ से इतना रोयें कि उनकी आंखें ज़ख़्मी रहें।

(तारीख़े तमददुने इस्लामी , जिल्द 4 पृष्ठ 37 व तारीख़े कामिल जिल्द 3 पृष्ठ 204 )

आपकी सही राय

आप की राय इतनी सही थी कि कभी लग़जि़श नहीं हुई। जिसको जो मशवेरा दे दिया वह अटल साबित हुआ। अल्लामा इब्ने अबिल हदीद शरह नहजुल बलाग़ह में लिखते हैं कि तमाम लोगों से ज़्यादा हज़रत अली (अ.स.) की राय साएब और मोहकम व सही हुआ करती थी और आपकी तदबीर तमाम लोगों की तदबीरों से बलन्द व बरतर होती थी अलबत्ता आप इसी मामले में राय देते थे जो शरीयत के मुताबिक़ और इस्लाम की रौशनी में हो यानी ग़लत उमूर में आपका कोई मशवेरा न था।

आपकी सियासत

अल्लामा इब्ने अबिल हदीद लिखते हैं काना शदीद अल सियासत खशनन फ़ी ज़ात अल्लाह आप बे नज़ीर सियासी थे। आप की सियासत उन लोगों जैसी न थी जो दीन और ख़ुदा को पहचानते नहीं। आप की सियासत हुक्मे खुदा व रसूल स. की मिसाल हुआ करती थी। आप अल्लाह की ज़ात के बारे में निहायत ही सख़्त और शदीद अल अमल थे। इस सिलसिले में उन्होंने कभी अपने भाई तक की परवाह नहीं की। अक़ील और इब्ने अब्बास की नाराज़गी मशहूर है।

(सवाएक़े मोहर्रेक़ा)

हिल्म ,सदाक़त , अदल

ख़ालिद इब्नल अमीर का बयान है कि मैं अली (अ.स.) को तीन बातों की वजह से महबूब रखता हूँ।

1. यह कि जब वह ख़फ़ा होते थे तो मुकम्मल इल्म का इस्तेमाल करते थे।

2. जो बात कहते थे सच कहते थे।

3. जो फ़ैसला करते थे पूरे अदल के साथ करते थे।

माअक़ल इब्नुल यसार का बयान है कि सरवरे कायनात स. ने एक दिन फ़ात्मा ज़हरा स. से फ़रमाया कि मैंने तुम्हारी शादी बहुत बड़े आलिम और उम्मत में सब से बड़े ईमानदार और अज़ीम तरीन हिल्म करने वाले अली से की है।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 202 )

मौला ए कायनात हज़रत अली (अ.स.) के बाज़ करामात

यह मुसल्लम है कि मौला ए कायनात , मुशकिल कुशा , आलिम , हज़रत अली बिन अबी तालिब (अ.स.) मज़हरूल अजाएब वल ग़राएब थे। खि़ल्क़ते ज़ाहेरी से क़ब्ल अम्बिया (अ.स.) की मद्द करना , सलमाने फ़ारसी को दश्त अरज़न में शेर से छुड़ाना और ज़हूरो शहूद के बाद एक शब में चालीस जगह बयक वक़्त दावत में शिरकत करना , दुनिया के हर गोशे में आपके क़दम के निशानात का पत्थर पर मौजूद होना। ग़ारे असहाबे कहफ़ में निशाने क़दम का मौजूद होना। क़ाबुल में मज़ारे सख़ी का वजूद और दीगर निशानात का मौजूद होना। तूरे ख़ुम के क़रीब मस्जिदे अली की तामीर , पेशावर में असाए शाहे मरदां की जि़यारत गाह का होना। कोटा के रास्ते में क़दम के निशानात का पाया जाना। हैदराबाद में क़दम गाह मौला अली का होना। आलम में हर शख़्स की मुश्किल कुशाई का हो जाना। नीज़ बाबे ख़ैबर का उख़ाड़ना। रसूल करीम स. की आवाज़ पर चश्मे ज़दन में पहुच जाना। चादर पर बैठ कर ग़ारे असहाबे कहफ़ तक जाना और उनसे कलाम करना वग़ैरा वग़ैरा आपके मज़हरूल अजाएब वल ग़राएब होने का बय्यन सुबूत है। हम ज़ैल में किताब (इमामे मुबीन) से वाक़ेयात का खुलासा दर्ज करते हैं।