इस्लाम और सेक्स

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इस्लाम और सेक्स लेखक:
कैटिगिरी: अख़लाक़ी किताबें

इस्लाम और सेक्स
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इस्लाम और सेक्स

इस्लाम और सेक्स

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

इस्लाम और जिन्सियात

लेखकः डा. मोहम्मद तक़ी अली आबदी

नोटः ये किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क के ज़रीऐ अपने पाठको के लिऐ टाइप कराई गई है और इस किताब मे टाइप वग़ैरा की ग़लतीयो को सुधार दिया गया है।

Alhassanain.org/hindi

लेखक एक दृष्टि में

नामः डा. मोहम्मद तक़ी अली आबदी

पिताः श्री सैय्यद हैदर अली आबदी

माताः श्रीमती सैय्यदा ज़किया बेगम

जन्म तिथि व स्थानः- दो जुलाई उन्नीस सौ बासठ ई. ( 02-07-1962), लखनऊ , यू.पी.

भाईः मोहम्मद सफ़दर अली (बड़े) , मोहम्मद नक़ी अली , मोहम्मद रज़ा अली (छोटे)

बहनः सैय्यद हैदरी बेगम (बड़ी)

पत्नीः सैय्यदः साजिदा बानो पुत्री सैय्यद सज्जाद अली आबदी

पुत्रः अस्करी मेंहदी अकबर

शैक्षिक योगताः पी. एच. डी. (फ़ारसी , लखनऊ विश्वविधालय) , सनदुल अफ़ाज़िल (सुल्तानुल मदारिस , लखनऊ) , मौलवी , कामिल , फ़ाज़िले फ़िकह (अरबी व फ़ारसी इलाहाबाद बोर्ड)

पुस्तकेः- 1. परवीन ऐतीसामी के हालात और शायरी , 1984 ई. नामी प्रेस , लखनऊ.

2. जदीद फ़ारसी शायरी , 1988 ई. नामी प्रेस , लखनऊ. (उ.प्र. उर्दू अकादमी , लखनऊ से ईनाम पाई हुई)

3. फ़ारसी अदब की शख्सियात 1992 ई , निज़ामी प्रेस , लखनऊ , (उ.प्र. उर्दू अकादमी , लखनऊ से ईनाम पाई हुई) (उपरोक्त सभी पुस्तकें फखरूद दीन अली अहमद मेमोरियल कमेटी , हुकूमत उ.प्र. लखनऊ की मदद से प्रकाशित)

4. इस्लाम और जिन्सियात , 1994 ई. अब्बास बुक एजेन्सी , लखनऊ की मदद से प्रकाशित।

5. इस्लाम और सेक्स (हिन्दी) , 1995 ई. अब्बास बुक एजेन्सी , लखनऊ की मदद से प्रकाशित।

6. रिसालः –ए- नख्लबन्दी , मुकददमः , हवाशी और तर्जुमे के साथ (प्रकाशनाधीन)

और लगभग ( 50) धार्मिक और साहित्यिक लेख प्रकाशित

कार्यः- 1. पार्ट टाईम लेक्चरर ( Part time Lecturer) डिपार्टमेन्ट आँफ ओरिएन्टल स्टडीज़ इन अरबिक एण्ड परशियन , लखनऊ , यूनिवर्सिटी।

2. शोध विषय – तरतीब व तसहीह तज़किरः ए अरफ़ात अल आशिकीन अज़ तक़ी औहदी – डी. लिट. के लिए (रिसर्च ऐसोसिएट , यू.जी.सी. डिपार्टमेन्ट आँफ़ परशियन , लखनऊ यूनिवर्सिटी)

पताः हैदर मंज़िल , 450/128/13, फ्रेन्डस कालोनी , न्यु मुफ़ती गंज , लखनऊ – (226) 003 (यू.पी.)

प्राक्कथन

सब से पहले खुदा की बारगाह मे अपने सर को झुकाने के साथ साथ मुहम्मद (स.) , आले मुहम्मद (आ.) और असहाबे पैग़म्बर (स.) पर दुरूद व सलाम भेजने मे गर्व महसूस करता हूँ जिनकी दया और कृपा से यह काम समाप्ति की मंज़िल तक पहुँचा।

कहना यह है कि ------ आज से लगभग छ: महीने पहले मै सुबह की नमाज़ और कुर्आन शरीफ को पढकर नाश्ते पर बैठने ही वाला था कि घंटी बजी बाहर निकल कर आया तो देखा मौलाना अली अब्बास तबातबाई गेट पर मौजूद हैं। अभी ठीक से सलाम व दुआ भी न होने पाई थी और मै इसी बीच सोच ही रहा था कि मौलाना ने मुझे अपनी तरफ आकर्षित करते हुए शीकायती अन्दाज़ मे कहा कि तक़ी साहब , आप के पास कई लोगों से पैगाम भिजवा चुके हैं , आप को मतलब मालूम ही हो गया होगा , मै उसी काम के सिलसिले मे आप का इन्तिज़ार करते करते आप के पास सुबह सुबह आ धमका ताकि आप के घर से निकलने से पहले ही मुलाक़ात हो जाये और बात तय हो जाये------- यह वह जुमले थे जिसने मेरी सोच मे बढोतरी कर दी। जिस की वजह से थोड़ी ही देर मे कई सवाल दिमाग मे आये---- क्या पैगाम था ? क्या मतलब है ? क्या तय करने आये हैं ? और हर सवाल का जवाब था--- हमें नही मालूम --- फ़ौरन सभी सवलों का जवाब मिलते ही मैं ने कहा ------- अब्बास भाई आप ने किस-किस से क्या पैग़ाम भिजवाया ? क्या मतलब है ? क्यों इन्तिज़ार करते रहे ? क्या तय करना है ? मुझे तो कुछ मालूम नही---- आख़िर मामला क्या है ? कुछ बताइये तो समझ मे आ सके --- अच्छा रूकिये मै बाहरी कमरा खोलता हूँ बैठकर सुक़ून से बात होगी------ मै यह कह कर पलटा --- अब्बास साहब ने नाम गिनाना शुरू किये , असद साहब से , सईद साहब से , फाज़िल साहब से--- मै नाम सुनते सुनते घूम कर कमरे मे पहुँच चुका था। दरवाज़ा खोलकर उनको कमरे मे बुला चुका था---- उनके बैठते-बैठते मैने कह भी दिया कि नही भाई मुझे किसी से कोई पैग़ाम नही मिला ---- तब उन्होंनें कहा ठीक है आप बैठें मै खुद आप को पैग़ाम देता हूँ।

“हमारी क़ौम मे शादी के तरीक़े से सम्बन्धित कोई मालूमाती किताब न होने की वजह से अक्सर लोग हराम मे पड़ जाते हैं-------- इसलिए मैं यह चाहता हूँ कि आप एक ऐसी किताब लिख दें कि जिस से कौंम के नौजवानों को कुछ शादी से सम्बन्धित मालूम हो सके। अकसर लोग दुक़ान पर आते हैं। जो इस समय की खास आव्यश्कता है। यह तो एक दीनी और मज़हबी काम है। जिस मे आप की मदद चाहता हूँ। इस सिलसिले में खुदा आपको बहुत सवाब देगा ”।

इन वाक्यों को सुनते ही मैने बिना कुछ सोचे समझे शादी के विषय पर किताब लिखने का वादा करते हुवे कही ठीक है मुझे भी आज से लगभग दस साल पहले शादी के समय ऊर्दू या हिन्दी में एक ऐसी मज़हबी उसूल और क़ानून की किताब की तलाश थी जिसमें शादी की सभी बातें लिखी हों ताकि मज़हबी उसूल की रौशनी में सेक्सी मज़ा हासिल कर सकूँ। लेकिन इस सिलसिले मे उस समय ऊर्दू मे “तहज़ीब-उल-अखलाक़ ” के अलावा कोई और दूसरी किताब न मिल सकी। इस के अलावा कुछ उसूली बातें तोहफ़त-उल-अवाम से सीखीं और उसी को काफी समझा। क्योंकि उस समय शोध की ओर ज़्यादा ध्यान नही दिया-------- इसलिए आप की बात शत प्रतिशत सही मालूम होती है कि आप की दुक़ान पर कुछ लोग सेक्स से सम्बन्धित किताब तलाश करते हुवे आ जाते हैं और वह शायद इसलिए ऐसा करते होगें कि इस्लाम ने सेक्स से सम्बन्धित हर बात को खुब समझा कर बताया होगा (जो सच है) जिसकी रौशनी में सेक्सी बातों को बहुत आसानी से समझा जा सकता है। हालांकि मुमकिन है कि कुछ लोगों को यह बात अजीब व गरीब लगे कि क्या इस्लाम मे भी एक ऐसे विषय से सम्बन्धित कुछ मिल सकता है जो समाज का बहुत ही खराब और गिरा हुवा विषय समझा जाता है। एक ऐसा विषय है जिसका समाज मे नाम लेना , जिस से सम्बन्धित कुछ सोचना , कुछ बातें करना या कुछ पढना भी बहुत बुरा समझा जाता है। लेकिन क्या कहना इस्लाम धर्म का जिसने ज़िन्दगी के हर हिस्से के साथ सेक्स जैसे मुख्य और आवश्यक हिस्से से सम्बन्धित भी हर बात को विस्त्रत रूप से बयान किया है ताकि हर मनुष्य इस्लाम की रौशनी में सेक्सी बातों को समझ सके।

इस्लाम ने शुरूअ जवानी में पैदा होने वाली प्राकृतिक सेक्सी इच्छा और उसको पूरा करने के ग़लत और हराम तरीक़ों (मुश्त ज़नी (हस्तमैथुन) , इग़लाम बाज़ी (गुदमैथुन) और ज़िना कारी (जारकर्म , हरामकारी , बलात्कार) की तरफ इशारा करने के साथ जायज़ और हलाल तरीक़ों (थोड़े समय या पूरी उम्र के लिये निकाह) की तरफ इशारा किया है जिसको आज के तरक्क़ी करते हुवे वैज्ञानिक दौर मे भी माना जा रहा है। उदाहरण स्वरूप इस्लाम ने 1400 साल पहले हस्तमैथुन , गुदमैथुन और बलात्कार के व्यक्ति , समाज और माहौल पर पड़ने वाले खराब असर को बताया। जिसे आज बड़े से बड़े समाज शास्त्री , सेक्स शास्त्र , और मर्दों व औरतों की शारीरिक सेक्सी बीमारियों को दूर करने वाले डाक्टरों ने भी माना है। साथ ही तरक्क़ी करने वाले देशों मे मनुष्य को विभिन्न बीमारियों और बुराईयों से बचने के लिए ही थोड़े समय की शादी या जानकारी की शादी को जगह दी जा रही है (जो इस्लाम धर्म में मुतअ: की शक्ल मे शुरू से मौजूद है) ताकि मनुष्य प्राकृतिक सेक्सी इच्छा को पूरा करने के लिए ग़लत तरीक़ों का प्रायोग न करे जिसके मनुष्य और समाज दोनो पर बुरे असर पड़ते हैं।

बहरहाल सेक्स एक ऐसा मुख्य और आव्यशक विषय है जिससे कोई भी मनुष्य बच नही सकता। क्योंकि नौजवानी मे कदम रखने के साथ ही हर नौजवान पुरूष और स्त्री का ------- शारीरिक मशीन की इच्छा की बुनियाद पर प्राकृतिक और कुदरती तौर पर एक दूसरे की तरफ लगाव होने लगता है ताकि प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं को पूरा कर सकें।

चूँकि हर स्वस्थ और निरोग मनुष्य में प्रकृति की ओर से सेक्सी इच्छा मौजूद होती है और वह सेक्सी इच्छा को पूरा करने के तरीके तलाश करता रहता है। इसीलिए हर धर्म मे प्ररकृतिक सेक्सी इच्छा को पूरा करने के लिए शादी का रिवाज है (कुछ धर्मो मे बिना शादी 7 के रहने को ही अच्छा समझा जाता है) और इस्लाम में तो खुदा के नज़दीक सब से ज़्यादा अज़ीज़ और महबूब (अर्थात पसन्द की जाने वाली) चीज़ शादी को ही बताया गया है।

इस्लाम धर्म मे जहाँ ज़िन्दगी के सभी हिस्सों से सम्बन्धित पूरी मालूमात दी है वहीं ज़िन्दगी के वणिर्त आवश्यक और मुख्य हिस्से “सेक्स ” से सम्बन्धित भी खुल कर बयान किया है ताकि हर मुस्लमान इस्लामी दायरे मे रहकर भरपूर सेक्सी आनन्द और स्वाद उठा सके -------- अत: हर मुसलमान का कर्तव्य है कि जिस तरह वह ज़िन्दगी के और हिस्सों से सम्बन्धित इस्लामी शीक्षा को सीखता , मालूम करता और अमल करता है उसी तरह सेक्स से सम्बन्धित भी मालूमात हासिल करे , और इसमे किसी तरह की बुराई न समझे ताकि हराम (अर्थात वह काम जिसके करने पर गुनाह या न करने पर सवाब न हो) , मुस्तहब (अर्थात वह काम जिसके करने में सवाब और न करने पर गुनाह न हो) और वाजिब (अर्थात वह काम जिसके करने पर सवाब और न करने पर गुनाह हो) की मालूमात हो सके और मामूली गलती या थोड़ी देर के मज़े की कारण हराम काम न कर बैठे या ज़हनी बेचैनी (जैसे बच्चे की शारीरिक कमज़ोरी और खराबी , औरत और मर्द का अलगाव या बीमारीयों में घिर जाना आदि) न हो सके। बल्कि इस तरह मज़ा (लज़्ज़त , स्वाद) उठाये कि सवाब भी मिल सके और इस सवाब के नतीजे में मिलने वाली औलाद नेक और शारीरिक कमज़ोरी और बुराई से दूर भी हो।

इस्लाम ने सेक्सी स्वाद उठाने में किसी तरह की रूकावट नहीं डाली है। बल्कि सेक्सी रूचि दिलाने के लिए यह ज़रूर कहा है कि औरतें तुम्हारी खेतियाँ हैं , तुम जिस तरह , जैसे और जब चाहो उनसे स्वाद हासिल करो , उनके पास पहुँच कर सुकून और आराम हासिल करो , उनके रहिनम (गर्भाशय) मे अपना नुतफा (वीर्य) डालो इतियादि। यह वह कुर्आनी आयतें हैं जिन से सेक्स से सम्बन्धित हर पहलू पर भरपूर रौशनी पड़ती है और जहाँ विवरण या विस्तार की आवश्यकता महसूस की गई है वहां मुहम्मद (स.) व आले मुहम्मद (अ.) ने खुद से अपने सुनहरे प्रवचन से या किसी के सवाल करन पर अपने जवाबों से उसको विस्तार से बयान कर दिया है ताकि मनुष्य हराम व हलाल या फायदा व नुक़सान को आसानी से समझ सके।

इसी हराम व हलाल या फायदे और नुक़सान को सामने रखते हुए ही लेखक ने – इस्लाम और सेक्स – किताब कुर्आन , आइम्मा –ए- मासूमीन के प्रावचनों की रौशनी में लिखने की कोशीश की है। इस कीताब को छह अध्यायों में बाटा गया है।

पहले अध्याय मे –सेक्स और प्राकृति- से बहस की गई है। जिसमें मनुष्य के द्वारा प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अप्राकृतिक और हराम तरीकों (हस्तमैथुन. गुदमैथुन , बलात्कार) का वर्णन किया गया है और कुर्आन और आइम्मा –ए- मासूमीन के प्रावचनों की रोशनी में यह बात साबित (स्पष्ट) करने की कोशीश की गयी है कि हस्तमैथुन. गुदमैथुन , और बलात्कारी से मनुष्य अपनी सेहत और तनदुरुस्ती को खराब करने के साथ साथ गुनाह (पाप) का पात्र भी हो जाता है। अत: सेक्सी इच्छओं की पूर्ति के लिए जाएज़ (सही) और हलाल तरीक़ा ही अपनाया जाए।

इस्लाम के बताए हुए जाएज़ और हलाल तरीक़े से सम्बन्धित बहस किताब के दूसरे अध्याय -इस्लाम और सेक्स- मे पेश किया गया है। जिसमें पूरी ज़िन्दगी के लिए निकाह (शादी) और थोड़े समय के लिए निकाह (मुतअः) का वर्णन किया गया है और हज़रत अली (अ ,) के प्रवचन से यह बात साबित करने की कोशिश की गयी है कि थोड़े समय का निक़ाह (मुतअः) ही दुनिया से बलात्कारी को खत्म करने का अकेला तरीक़ा है। जिसे इस्लाम ने 1400 साल पहले बताया।

तीसरा अध्याय –स्त्री और पुरूष- विषय पर आधारित है। जिनका सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए एक दूसरे के लिए होना आवश्यक है। इसी अध्याय में अच्छी और बुरी स्त्री और अच्छे और बुरे पुरूषों की पहचान बताई गय़ी है।

किताब के चौथे अध्याय में –शादी का तरीक़ा- बताया गया है। जिसमें शादी का ख्याल पैदा होने पर दुआ , महीना , तारीख , दिन , और समय को ध्यान में हुए निकाह की तारीख़ों का तय करना , महर , दहेज , निकाह , रुखसती (विदाई) वलीमः (बहू भोज) आदि का वर्णन है।

पाचवे अध्याय में –जिमाअ (मैथुन , संभोग) के आदाब- (अर्थात मैथुन के तरीकों) का वर्णन किया गया है। जिसमे मैथुन के वर्जित होने (हुर्मत-ए-जिमाअ) , वह मैथुन जिस से घिन आये (मक्रूहात-ए-जिमाअ) वह मैथुन जो अच्छा हो और करने पर पुण्य मिले (मुसतहिब्बात-ए-जिमाअ) और वह मैथुन जो ज़रूरी हो (वाजेबाते-ए-जिमाअ) के साथ-साथ विवाहित ज़िन्दगी को अच्छा बनाने के लिए इस्लाम के बताए हुवे स्त्री और पुरूष के अधिकार और कर्तव्य को भी बयान किया गया है ताकि मनुष्य की विवाहित ज़िन्दगी लाजवाब और बेमीसाल बीत सके।

आखरी अर्थात यानी छटा अध्याय –सेक्स और परलोक- शीर्षक पर आधारित है। जिसमें यह बताने की कोशिश की गयी है कि दुनिया के नेक कार्य की परलोक की ज़िन्दगी को बना सकते हैं। जहाँ सेक्सी इच्छा को पूरा करने और आराम व सुकून के लिए हूर और ग़िलमान मौजूद हैं।

लेखक ने इस किताब में अपने बस भर सभी बातें कुर्आन या मासूमीन (आ.) के प्रावचनों से सहारा लेकर ही लिखने की कोशिश की है ताकि लेख में वज़न पैदा हो और बात पूरे सुबूत से साबित हो सके। लेकिन मुमकिन है कि इसमें कुछ जगह कमीयाँ या गलतीयाँ हुई हों या नतीजे निकालने में गलतियाँ पैदा हुई हों। इसलिए मै खुदा-ए-रब्बुल इज़्ज़त और आइम्मः-ए-मासूमीन (आ.) की बारगाह में सच्चे दिल से अपनी ग़लतियों को मानते हुवे तौबः करता हूँ और आप से दुआ चाहता हूँ ताकि मेरी गलतियों को माफ कर दिया जाये--- और वह (खुदा) तो बड़ा ग़फूर व रहीम (माफ करन और बख्शने वाला) है।

मुझे इस बात का पूरी तरह अहसास है कि मैने अब तक जो भी लिखा है उसमें सब से मुख्य किताब यही है। क्योंकि अगर मैने या किसी और ने सेक्स से सम्बन्धित इस्लामी शीक्षा की रौशनी में अपनी दुनिया की ज़िन्दगी ग़ुज़ार ली तो अवश्य ही परलोक (आखिरत) की ज़िन्दगी भी बेहतर हो जाएगी।

मुझे इस बात का भी अहसास है कि मैं यह किताब उस वक्त तक पेश नही कर सकता था जब तक के मेरे कुछ दोस्तों विषय से सम्बन्धित कुछ किताबें तलाश करने व जुटाने में मेरा साथ न दिया होता या सेक्स से सम्बन्धित बात चीत कर के कुछ बातों की तरफ इशारा न किया होता। अतः यह मेरे लिए ज़रूरी है कि मैं अपने उन दोस्तों का दिल की गहराईयों से शुक्रीया अदा करूँ जिन्होंने इस सिलसिले में मेरी मदद फरमाई। इन लोगों में रज़ा आबिद रिज़वी (ज्योलोजिकल सर्वे आँफ़ इन्डिया , लखनऊ) सैय्यद असरार हुसैन (सूचना एवं जनसमंपर्क विभाग , लखनऊ) साजिद ज़ैदपुरी (सुल्तानुल मदारिस , लखनऊ) मोहम्मद सादिक़ (उ.प्र. उर्दू अकादमी , लखनऊ) अली मेहदी रिज़वी एडवोकेट (मशक गंज लखनऊ) सैय्यद एहतिशाम हुसैन (टांडा) , डा एहतिशाम अब्बास हैदरी (तनज़ीमुल मकातिब , लखनऊ) सैय्यद मोहम्मद जाफर रिज़वी (उ.प्र. सचिवालय) अज़ीज़ुल हसन जाफरी (ईरान कलचरल हाऊस , नई दिल्ली) मौलाना मुहम्मद ज़फर-अल-हुसैनी (बनारस) इरफान ज़ंगीपुरी (उ.प्र उर्दू अकादमी , लखनऊ) सैय्यद मुनतज़िर जाफरी (दूल्हीपुर , बनारस) डा. महमूद आबदी (शीया डिग्री कालेज , लखनऊ) के नाम विशेष रूप से ज़रूरी हैं। जिन्होने किताबें दी या विशेष बातों की तरफ ध्यान आकर्षित कराया।

इसके अलावाः डा. इराक़ रज़ा ज़ैदी (पंजाबी यूनीवर्सिटी , पटीयाला) मौलाना सैय्यद अली नक़वी (लखनऊ , यूनीवर्सिटी , लखनऊ) मौलाना मुजताबा अली खाँ अदीब-उल-हिन्दी (लखनऊ) मौलाना सैय्यद जाबिर जौरासी (सम्पादक , इस्लाह लखनऊ) डा. निजाबत अदीब (बरेली) सईद हसन (शिया कालेज सिटी ब्रान्च , लखनऊ) असद रज़ा (मुफ्तीगंज , लखनऊ) भी धन्यवाद के पात्र हैं। जिनसे पूरी किताब या किताब के किसी न किसी हिस्से पर खुल कर बात चीत हुई। जिस्से कुछ नतीजे निकालने में आसानी हुई। खास तौर से शुक्रिया के पात्र मौलाना सैय्यद फरीद महदी रिज़वी (जामे-उत-तबलीग , लखनऊ) हैं। जिन्होनें मुझे इस काम में फंसवाकर छः महीने तक किसी दूसरे काम का नही रखा। उपर्युक्त लोगों के साथ घर के सभी लोगों मुख्य रूप से अपनी धर्म पत्नी सैय्यदः साजिदा बानो का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने मुझे काम करने का पूरा मौका दिया और किताब का पुरूफ पढने में पूरा साथ भी। वास्तव में इन लोगों का शुक्रिया ज़बान या कलम से अदा नही किया जा सकता क्योंकि यह बहुत कम है।

आखिर में मौलाना अली अब्बास तबातबाई (अब्बास बुक एजेन्सी , लखनऊ) का शुक्रिया अदा करना भी ज़रूरी है जिन्होंने (एजेन्सी के अलिफ , ये को को निकाल कर जिन्सी) किताब लिखने की फरमाईश की , किताबें दी , समय समय पर किताब जल्दी पूरी करने के लिए टोका और किताब को छपवाने की पूरी ज़िम्मेदारी निभाई। जिससे यह किताब छप कर सामने आ सकी।

यहाँ पर उल्लेख ज़रूरी है कि यह किताब पहले फारसी (उर्दू) लिपि में लिखी गई जो अगस्त 1994 ई. मे एजेन्सी की ओर से प्राकाशित हो चुकी है। जिसकी बढती हुई लोकप्रियता को देखते हुए अब्बास साहब ने इसे राष्ट्र भाषा हिन्दी (देवनागरी) लिपि में करने कि ज़िम्मेदारी भी मुझ पर सौंपी। ताकि इस किताब से उर्दू न जानने वाले लोग भी लाभान्वित हो सकें।

बहरहाल किताब पूरी होकर अब आपके सामने है। जिसका खास मकसद नौजवान मुसलमानों को इस्लामी दायरे में रहकर भरपूर सेक्सी आन्नद और मज़ा उठाने के तरीकों की मालूमात देना है और ये काम केवल धार्मिक भावना (दीनी जज़बः) की खातिर किया गया है। इसमें मुझे कहाँ तक कामयाबी मिलती है इसका अनदाज़ः पाठक गणों के पत्रों से ही लगाया जा सकता है। इस मौक़े पर मेरी पाठक गणों से यह गुज़ारिश ज़रूर है कि अगर उन्हे इस किताब में कोई गलती या कमी महसूस हो तो कृपया मुझे बता दें ताकि बाद में उस ग़लती और कमी को दूर किया जा सके।

अन्त में खुदा वन्दे करीम से केवल यही दुआ है कि खुदाया हम सब को कुर्आन-ए-करीम और आइम्मः-ए-मासूमीन के प्रावचनों की रोशनी में सेक्सी मसलों को समझने , उनका हल निकालने और आन्नद और मज़ा उठाने की उमंग अता फ़र्मा। आमीन सुम्मा आमीन।

मोहम्मद तक़ी अली आबदी हैदर मंज़िल , 450/128/13, फ्रेन्डस कालोनी , न्यू मुफ़्तीगंज लखनऊ - 226003 (यू.पी.) ( 10) सितम्बर 1994

पहला अध्याय

सेक्स और प्रकृति

अ- जवानी की पहचान

ब- हस्त मैतुन

स- गुद मैतुन

द- बलात्कार

इस्लाम वह बड़ा और अच्छा धर्म है जिसने ज़िन्दगी के सभी हिस्सों से सम्बन्घित हर बात को विस्तार से बयान किया है ताकि एक सच्चे मुसलमान को ज़िन्दगी के किसी भी हिस्से मे नाकामयाबी या मायूसी ना हो। इन्ही सब हिस्सो मे से एकहिस्सा सेक्स का भी है।

आम तौर से समाज मे सेक्स से सम्बन्धित कुछ बाते करना , सोचना , पढ़ना बहुत ही बुरा समझा जाता है और फिर इस हस्सास (संवेदनशील) विषय पर कुछ लिखना----- लेकिन इस्लाम सेक्स से सम्बन्धित अमल (कार्य) और सेक्सी हरकत के आख़िरी नुक़ते स्त्री और पुरुष की मैथुन क्रिया के तरीक़े भी विस्तार से बयान करता है ताकि मनुष्य गुमराही और बुराई से बचकर संयम नियम का पालन करने तथा इद्रिंयों को वश मे करने वाला (तक़्वा और परहेज़गारी करने वाला) बन सके।

सेक्स और प्रकृति

सेक्स एक ऐसी वास्तविकता है जिसे बुरा ज़रुर समझा जाता है लेकिन इससे इन्कार नही किया जा सकता। क्योकि इस संसार मे नर का मादा और मादा का नर की तरफ सेक्सी लगाव केवल मनुषयों और जानवरों मे नही है बल्कि यह सेक्सी लगाव पेड़ पौधों मे भी देखा जा सकता है।

ताड़ के वृक्ष मे नर और मादा होते हैं। नर असर डालने की शक्ति रखता है और मादा असर को क़ुबुल करने की ( 1)। इसी तरह पपीते के पेङों मे भी नर और मादा होते हैं। एक फल कम लाता है और दूसरा ज़्यादा। ताड़ और पपीते की तरह खजूर खजूर के पेड़ो मे भी नर और मादा पाये जाते हैं जो जानवरों से मिलते जुलते हैं और उनके गुच्छे मे आदमी के वीर्य (मनी) की जैसी महक होती है जिसके लिए मिलता है:

“ यह एक बड़ा पेड़ है। इसकी जानवरो से बहुत मुशाबिहत (एक रूपता) है। उदाहरण के लिए अगर इसका सर काट दें तो मर जाता है फिर नही बढता। इसमें भी नर और मादा होते हैं। जब तक इसके नर का मादा से मिलाप नही होता अच्छे फल नही देता। इसके नर से मादा से इश्क़ (मुहब्बत) और लगाव है। इसीलिए कहते है कि मादा के लिए एक बाग़ से दूसरे बाग़ की तरफ आकर्षित होता है और झुक जाता है। इसके गुच्छे मे आदमी के वीर्य की जैसी महक़ होती है ”।( 2)

इस तरह मालूम होता है कि खुदा ने पेड़ पौधों मे भी नर और मादा को बनाया है। दोनों में मुहब्बत और लगाव पैदा किया है। और नर का मादा से मिलाप होने पर ही अच्छे फल आते हैं। इसी फल का नाम औलाद (संतान) है। जिससे नस्ल बाक़ी रहती है। और हर जानदार अपनी नस्ल के ज़रिये ज़िन्दा (जीवित) रहना चाहता है।

अगर पेड़ पौधों से हट कर जानवरों का अध्ययन करें तो मालूम होगा कि उनमे भी नर और मादा से मिलाप (मैथुन) करता है ताकि औलाद पैदा हो और दुनिया मे उसका नाम व निशान बाक़ी रहे (यहाँ औलाद पैदा करने का तात्पर्य कोई फायदः नही बल्कि केवल अपनी नस्ल को बढाना ही है) जानवरों मे यह सेक्सी लगाव बचपन से ही प्रकट होने लगते है जिसको बकरी , गाय , भैंस , सुअर , कुत्ते आदि के छोटे छोटे बच्चों मे देखा जा सकता है जो लिंग (अर्थात नर या मादा) की पहचान किये बिना आपस मे सेक्सी खेल खेलने की कोशिश करते हैं। और जब वह जवान हो जाते है और औलाद जैसे फल को हासिल (प्राप्त) करना चाहते हैं तो वह अपनी सेक्सी इच्छा को प्रकट करने के लिए अपनी ही लिंग का विपरीत लिंग से मुहब्बत व लगाव पैदा करते हैं और जब विपरीत लिंग से पूरी तरह से इच्छा पूर्ति हो जाती है अर्थात् सेक्सी मिलाप कर लेते हैं तो खुशी और ताज़गी महसूस करते हैं। क्योंकि जानवरों मे यह सेक्सी मज़ा और आनन्द प्राप्त करने के लिए सेक्सी मिलाप के अलावा और कोई दूसरा रास्ता या तरीका नहीं है।

जबकि मनुष्य , सेक्सी आनन्द और मज़े को प्राप्त करने के लिए विभिन्न तरीक़े अपनाता है। बचपन मे अपनी माँ की छाती को प्राकृतिक भोजन प्राप्त करने के लिए मुँह मे लेता और चूसता है। साथ ही साथ मज़ा महसूस करता है। यह भी देखने मे आता है कि हर बच्चा (लड़का हो या लड़की) प्राकृतिक तौर पर भोजन प्राप्त करने के बीच अपनी माँ की छाती को हाथों से मसलता और सहलाता रहता है जिससे माँ और बच्चा दोनों मज़ा महसूस करते हैं और फ्राइड के अनुसार जब उसे अपनी माँ की छाती नही मीलती है तो वह मज़ा (न कि भोजन) प्राप्त करने के लिए अपना अंगूठा या कोई और चीज़ चूस कर ही संतोश प्राप्त कर लेता है।( 3)

बच्चा कुछ बडा होने पर अच्छे और बुरे की तमीज़ (पहचान) किये अथवा सोचे समझे बिना ही अपने खास अंग (लिंग) से मज़ा हासिल करने के लिए खेलता रहता और आनन्द हासिल करने के लिए खेलता रहता है और आनन्द हासिल करता है। इस बात को फ्राइड ने भी माना है। उसके अनुसार

“ सेक्सी ज़िन्दगी केवल बालिग़ होने की उम्र से शुरू नही होती बल्कि पैदा होने के कुछ ही समय बाद यह पूरी तरह से प्रकट होने लगती है ”।( 4)

जब यही बच्चा कुछ और बड़ा होकर जवान हो जाता है , अच्छे और बुरे की तमीज़ (पहचान) करने लगता है और सोचने समझने लगता है तो वह अपनी विपरीत लिंग के साथ रहने या केवल उसे देखने मे मज़ा और आनन्द महसूस करता है। यह भी ज्ञात हुआ है कि कभी कभी मनुष्य केवल विपरीत लिंग का ख़्याल करके ही सेक्सी मज़ा हासिल कर लेता है। कभी आपस मे सेक्सी बातें करके सेक्सी मज़ा महसूस करता है और कभी सेक्स से सम्बन्दित कुछ पढकर। कभी नाचने गाने की महफीलों मे बैठकर सेक्सी मज़े को प्राप्त करता है और कभी अपनी ही लिंग या विपरीत लिंग के साथ बैठकर या शरीर को छूने से ही सेक्सी इच्छा को पूरा कर लेता है। इत्यादि।

लेकिन उपरोक्त सभी तरीके सेक्सी मज़े और आनन्द को हासिल करने के लिए पूरी तरह इच्छा पूर्ति का साधन नही होते हैं। क्योंकि पूरी तरह इच्छा पूर्ति केवल सेक्स मिलाप अर्थात मैथुन क्रिया से ही हो सकती है। जो प्राकृतिक है और यह प्राकृतिक सेक्सी इच्छा हर तनदुरुस्त और पुरुष मे जवान होने के कम से कम तीस साल बाद तक बाक़ी रहती है।

जवानी की पहचान

इस्लाम मे जवानी (बालिगो) की पहचान मे लडकी की आयु कम से कम चौदह वर्ष और लडकी की आयु कम से कम नौ वर्ष पूरा हो जाना बताया है। लेकिन अगर किसी को अपनी आयु मालूम नही है तो इसकी आसान पहचान यह है कि लडके के चेहरे पर दाढी और मूंछ निकलने लगे और लडकी के सीने (अर्थात छाती) पर उभार आने लगे। साथ ही साथ दोनों की आवाज़ भारी हो जाये। इसके अलावा दोनों की बग़लों और नाभि के नीचे बाल उग आयें , लडके के सोते या जागते मे वीर्य (मनी)( 5) निकल आये इसी तरह लडकी के मसिक धर्म का खून (हैज़ , आर्तव)( 6) आने लगे।

यही वह मौका होता है जब जवान लडके और लडकियों मे प्यार व मुहब्बत की भावना पैदा होती है और उसके अन्दर प्राकृतिक तौर पर एक तूफानी ताक़त जोश मारना शुरु कर देती है। उसके अन्दर सेक्सी इच्छा पैदा होती है। एक उमंग उठती है एक न दबने वाली भावना और न रुकने वाला जोश उसके सीने मे उठता है। वह खुद इस बात को समझ नही पाता है कि यह सब कुछ क्या है ? उस समय उसे प्राकृतिक तौर पर यह अहसास होता है कि उसे एक साथी की आव्श्यकता है। पुरुष स्त्री की तरफ खिंचता है और स्त्री पुरुष की तरफ खिंचती चली जाती है। ज़िन्दगी के यही वह दिन होते हैं जब नौजवान रास्ता भटक जाते हैं। उन्हे उस समय न धर्म का डर होता है न रवाज का खौफ़ , न माली रुकावट आती है , न परिवार के राज़ी होंने की फिक्र। उसे हर समय यही अहसास और ख्याल रहता है कि उसे अपनी ज़िन्दगी का साथी चाहिए। बहुत कम ऐसे होते हैं जो इन दिनों सीधे रास्ते पर बाक़ी रहे , वरना जवानी वास्तव मे मसतानी और दीवानी होती है , जो होश व हवास भुला देती है और इन ही दिनों मे जवान इच्छा पूर्ति के नये नये तरीके निकालते हैं जिनमे हस्त मैथुन , गुद मैथुन और बलात्कार ( 7) सभी शामिल हैं। जो एक अच्छे खासे जवान की अच्छी खासी ज़िन्दगी को बर्बाद कर देते हैं।

हस्त मैथुन

आम तौर से यह बात समझी जाती है कि जवानी में केवल लड़के ही हस्त मैथुन (मुश्त ज़नी) जैसा खतरनाक काम करते हैं जब कि यह गलत है क्योंकि इस बात का सुबूत मौजूद है कि हस्त मैथुन लड़कियाँ भी करती हैं। वह एकान्त मे बैठकर अपनी उंगली या उस जैसी किसी दूसरी चीज़ को अपनी योनि (शर्म गाह) में डालकर धीरे-धीरे हरकत देंती हैं और आन्नद और मज़ा महसूस करती हैं। कभी-कभी दो जवान लड़कियाँ एक दूसरे की छाती को मुहँ में डालकर चूसती और एक दूसरे को उंगलियों से वीर्यपात (इंज़ाल) कराती हैं। ( 8) लेकिन लड़कियों और औरतों की यह हरकत बहुत बुरी और हानिकारक है। ऐसी लड़कियों की शर्मगाह में वरम (सूजन) हो जाता है , धार्मिक खून के दिनों में असंबध्दता (बेकाइदगी) पैदा हो जाती है। कभी कभी गंदे हाथों की वजह से योनि में ज़ख्म हो जाते हैं , जो मैथुन मे तकलीफ़ देते हैं। अतः चाहिए कि इस बुरे और हानिकारक काम से बचा जाए।

बहरहाल दुनियां में यह बात पूरी तरह से मानी जा चुकि है कि नब्बे प्रतिशत से अधिक नौजवान लड़के और लड़कियां हस्त मैथुन करते हैं। लेकिन नौजवान लड़कियों की संख्या कुछ कम है। इसका मुख्य कारण यह है कि लड़कों की सेक्सी शक्ति लड़कियों से अधिक हुआ करती है। वह सेक्स को भड़काने वाली तस्वीर , बात , खूबसूरत शरीर या विचार के ही द्वारा अपने लिगं (क्योंकि पुरूष में सेक्सी अंग केवल एक है जो शीघ्र ही असर को कबूल कर लेता है) में जोश और तनाव महसूस करते हैं। लड़को को यह तनाव उस समय भी महसूस होता है जब उन के लिगं पर कपड़े या किसी और चीज़ से हल्की-हल्की रगड़ लगती रहती है। जिस से उन्हें मज़ा मिलता और आन्नद महसूस होता है। कभी-कभी शुरू में लड़के खुद या किसी दोस्त के बताने पर आन्नद और मज़े को हासिल करने के लिए अपने लिंग को अपने हाथ से धीरे-धीरे सहलाते , मसलते और रगड़ते रहत हैं जिस से सख्त तनाव और जोश पैदा होता है और इस तनाव और जोश का आख़री नतीजा वीर्य का निकल जाना (वीर्यपात , इंज़ाल या अहतिलाम) हुआ करता है। जिसके बाद लिंग के साथ-साथ पूरे शरीर को थोड़ी देर के लिए सुकून और एक खास तरह का मज़ा और आन्नद महसूस होता है। और नौजवान का पूरा बदन मुख्य रूप से लिंग ढीला पड़ जाता है। इसी थोड़े समय के सुकून और हस्त मैथुन स जवान खुश होता है और धीरे-धीरे इसी को अपनी आदत बना लेता है। क्योंकि इसमें न तो दौलत की ज़रूरत होती है (मगर खून जैसी कीमती दौलत नष्ट (बर्बाद) ज़रूर होती है) और न ही किसी दूसरे लिंग की ज़रूरत होती है। इसलिए नौजवान सोचने लगता है कि शादी और सेक्सी मिलाप से पहले सेक्सी इच्छा को पूरा करने के लिए हस्त मैथुन के ज़रिए ही वीर्य को निकालना आसान और बेहतर तरीक़ा है। कभी-कभी वह यह भी सोचता है कि हराम कारी (बलात्कारी) से बेहतर हस्त मैथुन के ज़रिए सेक्सी इच्छा को पूरा करना ही ठीक है। लेकिन उसे इस बात का ख्याल नही रहता कि चौदह से बीस साल की आयु का यह वीर्य कच्चा और कम होता है। और कच्चे वीर्य को इस तरह से नष्ट करना अपनी सेहत और तनदुरूस्ती को सदैव के लिए बरबाद करना हुआ करता है। इस बुरे और हानिकारक कार्य के लिए हमेशा नर्म और नाज़ुक (कोमल) अंग को छेड़ते रहने से लिंग छोटा , पतला , कमज़ोर और टेढा हो जाता है। जो शादी या सेक्सी मिलाप के समय लज्जा का कारण बनता है।

यह सही है कि वीर्य जैसी क़ीमती चीज़ को हस्त मैथुन के ज़रिए बराबर नष्ट करते रहने से नौजवान में वह क़ुव्वत , सहत , मर्दानगी. जवांमर्दी , अक्लमंदी और जोश व ख़रोश बाक़ी नही रहता है जो वीर्य को बचाए रखने से प्राकृतिक तौर पर हासिल होता है। बराबर हस्त मैथुन करते रहने से संवेदन शक्ति (ज़कावते हिस) बढ जाती है , वीर्य पतला हो जाता है , नौजवान बहुत जल्द वीर्यपात का मरीज़ हो जाता है , निगाह खराब हो जाती है , स्मरण शक्ति कमज़ोर हो जाती है , खाना पच नही पाता , चेहरा पीला दिखाई देता है , आँखें अन्दर को धंस जाती हैं , टाँगों और कमर में दर्द रहने लगता है , बदन थका थका सा रहने लगता है , चक्कर आते हैं , ख़ौफ , घबराहट , परेशानी और लज्जा हर वक्त बनी रहती है---- संक्षिप्त यह कि नौजवान चलती फिरती लाश बनकर रह जाता है। वह इस बात पर गौर नही करता कि हस्त मैथुन से एक या दो मिनट तक महसूस होने वाले मज़े का नुकसान पूरी ज़िन्दगी सहना पडता है , मर्दानः शक्ति बर्बाद हो जाती है।

दुनिया में इस बात के सुबूत मौजूद हैं कि इस बुरे और हानिकारक कार्य मे नौजवानों के अलावा कुछ प्रौढ लोग भी पड जाते हैं।

कभी-कभी हस्त मैथुन के आसान तरीक़े को वह प्रौढ लोग अपनाते हैं जो कुछ कठीनाईयों (मुख्य रुप से आर्थिक कठीनाईयों) के कारण से शादी (धार्मिक तरीक़े पर सेक्सी मिलाप) नही कर पाते। लेकिन प्राकृतिक सेक्सी इच्छा की वजह से हस्त मैथुन जैसे बुरे और हानिकारक कार्य से संतोष प्राप्त करते रहते हैं।

इस बुरे , हानिकारक और हराम कार्य को वह विवाहित पुरूष भी अपनाते हैं जो पत्नी से दूर रहते हैं। जिनकी पत्नी बीमार रहती है या पत्नी , पति की सेक्सी आव्शकता को पूरा नही कर पाती। इसलिए पति , पत्नी को सेक्सी मिलाप के लिए बार बार परेशान करके अपनी घरेलू ज़िन्दगी को खराब करने की जगह पर हस्त मैथुन से सेक्सी संतोष हासिल करता रहता है। और नतीजे में उन तमाम बीमारीयों का मालिक बन जाता है जो इस बुरे और हानिकारक कार्य से पैदा होती हैं।

इसीलिए इस्लाम धर्म ने इस बुरे और हानिकारक कार्य (हस्त मैथुन) को हराम (अर्थात जिस के करने पर गुनाह हो) बताया है और हज़रत अली (अ.) ने इरशाद फरमाया हैः-

“ मुझे आश्चर्य है उस मनुष्य से जो मज़े से खतरनाक़ (हानिकारक) नतीजों को जानता है। वह इफ़्फ़त और पाक़ीज़गी (बुराईयों से बचने और पवित्र रहने) का रास्ता क्यों नही अपनाता। ” (10)

दूसरी जगह इरशाद फरमाते हैः

“ वह मज़ा जिससे शर्मिन्दगी (लज्जा) मिले। वह सेक्स और इच्छा जिससे दर्द में बढोतरी हो , उसमे कोई अच्छोई नही है ”।( 11)

अतः हर मनुष्य को लज्जा और खतरनाक़ नतीजों के सामने रखते हुए हस्त मैथुन जैसे बुरे , हानिकारक और हराम कार्य से तौबः करके इज़्ज़त और पाकीज़गी का रास्ता अपनाना चाहिए ताकि उसकी सहत और तन्दुरूस्ती बाक़ी रहे और यही इस्लामी शीक्षा का बुनयादी उद्देश्य है।

गुद मैथुन

हस्त मैथुन की तरह गुद मैथुन (इग़लाम बाज़ी अर्थात लड़कों के साथ बुरा काम करना) भी केवल पुरूषों में नही है बल्कि दुनियाँ में गुद मैथुन क्रिया की शीकार औरतों में भी पाई जाती हैं जो अपनी सेक्सी इच्छा के संतोष के लिए इधर उधर मुँह मारती फिरती हैं। अपने सेक्सी अंगों को दिखाती हैं ताकि अधिक से अधिक लड़के (पुरूष) उनकी ओर आकर्षित हों। अधिकतर देखा गया है कि ऐसी औरतें बड़ी आयु के लोगों को घांस नही डालती हैं बल्कि नौजवानों को चुनती हैं और वह जल्द उन औरतों के मुहब्बत के जाल मे गिरफ्तार हो जाते हैं। यह ज़माने को देखी हुई औरतें चूँकि सेक्स और मैथुन के सभी उसूलों और तरीकों को जानती हैं इस लिए जब नौजवान को अपनी मुहब्बत के जाल में फंसाने के लिए उस से लिपटती , चिमटती , चूमती और उसके लिंग को पकड़ कर मसलती और प्यार करती हैं तो नौजवान लड़का अपनी भावनाओं (जज़्बे पर काबू नही रख पाता। फिर वह इस तरह से मैथुन करती है कि बस वह उसी का गुलाम हो कर रह जाता है ( 12) ----- फिर कुछ दिन बाद ऐसे नौजवान सेक्सी तौर पर बेकार हो जाते हैं। और वह औरतें दूसरे नौजवान को तलाश कर लेती हैं।

पुरूष में यह सेक्सी लगाव अपनी ही जाती (लिंग) अर्थात् लड़को की तरफ होता है जिनसे दोस्ती पैदा कर लेने में ज्यादा कठिनाई नही होती। लेकिन यह रास्ता पहले (अर्थात हस्त मैथुन) से भी अधीक तबाह करने वाला होता है। क्योंकि पैदा करने वाले (अर्थात खुदा) ने पुरूष को पुरूष के साथ बुरा काम करने के लिए नही पैदा किया है।

ग़ौर से देखें और दुनिया की सभी चीज़ों का निरीक्षण करें तो मालूम होगा कि चौपाये , पंक्षी और जंगली जानवर सब इस जुर्म और बुरी आदत से बहुत दूर हैं। इन्सान के अतिरिक्त किसी दूसरे जानवर में नर को नर के साथ बुरा काम करते नही देखा जा सकता है।( 13) अर्थात एक ऐसा जुर्म है जिसकी कल्पना भी उनमें मौजूद नही। लेकिन यह इन्सान का अभाग्य है कि उसने अपनी तबाही के लिए नया रास्ता निकाल लिया है। आदम की औलादों में सब से ज़्यादा बुरा , खराब और बेग़ैरत वह लड़का है जो दूसरे से बुरा काम करवाता है और बहुत लानत है उस लड़के पर जो अपने ही जैसे लड़के के साथ बुरा काम करता है।

कुर्आने करीम में यह वाकेया मौजूद है कि शैतान ने क़ौमे-ए-लूत ( 14) को एक ऐसे बुरे काम में फसा दिया जो उनसे पहले दुनिया की किसी क़ौम का फर्द (मनुष्य) ने नही किया था और न किसी को उसकी खबर थी। वह बुरा काम यह था कि मर्द नौजवान लड़कों के साथ बुरा काम करते थे और अपनी सेक्सी इच्छा को औरतों के बजाए लड़कों से पूरा करते थे। इस पर अल्लाह ने अपने पैग़म्बर हज़रत लूत (अ.) को आदेश दिया कि वह इन लोंगो को इस से बचे रहने की नसीहत करें। आपने अल्लाह के आदेश का पालन करते हुए , अपनी कौंम को , कौंम की लड़कियों से निकाह करने के लिए कहा। लेकिन इस काम में फंसे लोगों ने आप की एक न सुनी। आख़िर कार लूत (अ ,) की कौम पर खुदा का अज़ाब (पाप) आया और इस काम में फंसे लोग अपने पूरे माल व असहाब (अर्थात सामान) और शान व शौकत के साथ हमेशा-हमेशा के लिए ग़र्क हो (डूब) गए।

अतः इस बुरे और खराब काम से बचना ज़रूरी है। वरना लूत की कौम वाला हाल हो जाएगा। ऐसे लोगों की सज़ा इस्लाम में कत्ल है।( 15) इससे लिंग की रगें मर जाती हैं और आदमी नामर्द (नपुंसक) हो जाता है साथ ही साथ सहत व तनदुरूस्ती ख़त्म और बीमारियाँ लग जाती हैं। जबकि इस्लाम मनुष्य को तन्दुरूस्त देखना चाहता है न कि बीमार।

क़ुर्आन में गुद मैथुन अर्थात अपनी ही लिंग से सेक्सी इच्छा को पूरा करने वाले लोगों से सम्बन्धित यह मिलता हैः-

“ (हाँ) तुम औरतों को छोड़कर सेक्सी इच्छा की पूर्ति के वास्ते मर्दों की ओर आकर्षित होते हो (हालांकि इसकी ज़रूरत नहीं) मगर तुम लोग हो ही बेहूदा (बेकार) सर्फ़ (खर्च) करने वाले (कि नुतफ़े अर्थात वीर्य को नष्ट करते हो)। “ (16)

और

“ क्या तुम औरतों को छोड़ कर काम वासना (इच्छा पूर्ति) से मर्दों के पास आते हो (यह तुम अच्छा नही करते) बल्कि तुम लोग बड़ी अनपढ क़ौम हो ”।( 17)

या

“ क्या तुम लोग (औरतों को छोड़कर काम वासना के लिए) मर्दों की तरफ गिरते हो और (मुसाफिरों की) रहज़नी (लूट पाट) करते हो ”।( 18)

यह भी है कि

“ क्या तुम लोग (काम वासना के लिए) सारी दुनिया के लोगों में मर्दों ही के पास जाते हो और तुम्हारे लिए जो बीवीयाँ तुम्हारे खुदा ने पैदा की हैं उन्हे छोड़ देते हो (यह कुछ नहीं) बल्कि तुम लोग हद से गुज़र जाने वाले आदमी हो ”।( 19)

और

“ जब किसी क़ौम में गुद मैथुन की ज़्यादती हो जाती है तो खुदा उस क़ौम से अपना हाथ उठा लेता है और उसे इसकी परवाह (ख्याल) नही होती कि यह क़ौम किसी जंगल में हल़ाक कर दी जाए ”। ( 20)

यह भी मिलता है

“ अल्लाह तआला उस मर्द की तरफ देखना भी पसन्द नही करता जो किसी औरत या मर्द से गुद मैथुन करता है। (यह तो क़ुफ़्र के बराबर है) ” (21)

अतः इस बुरे और हराम काम से सच्चे दिल से तौबः करनी चाहिए और केवल औरतों से उसकी जाएज़ और हलाल जगह से ही सेक्स इच्छा की पूर्ति हासिल करना चाहिए। जो प्राकृतिक है।

बलात्कार

जब यह बात साबित हो गई कि हस्त मैथुन और गुद मैथुन से बचना चाहिए और प्राकृतिक सेक्सी इच्छा को पूरा करने के लिए औरत और मर्द को एक दूसरे की जाएज़ जगह से स्वाद , मज़ा और आन्नद उठाना चाहिए। तो यह भी समझ लेना चाहिए कि यह आज़ादी हर मर्द और औरत के साथ नही है।

यूँ प्राकृतिक तौर पर हर सहत मंद नौजवान लड़के औक लड़कियां चाहे अनचाहे एक दूसरे की तरफ ललचाही निगाहों से घूरने लगते हैं। वह यह इच्छा करते हैं कि एक दूसरे के पास घंटों बैठें , मिलें , बातें करें , छुऐं , गोद में लें , प्यार करें , चूमें चाटें और शारीरिक मिलाप के द्वारा इच्छा पूरी करें------ यही वह सच्ची इच्छा है जिसे सेक्सी इच्छा (काम वासना) कहते हैं। यह सेक्सी इच्छा ज़िन्दगी में एक ज़रूरी चीज़ है। इसे नापाक , खराब , शर्मनाक या बुरी नही समझना चाहिए। क्योंकि प्राकृतिक तौर पर शरीर में वह कीमती जौहर (वीर्य) बनने लगता है जो इन्सानी नस्ल को बाक़ी रखने का ज़रीया है। इसी से औलादें पैदा होती हैं।

लेकिन कभी-कभी इसी सच्ची सेक्सी इच्छा को पूरा करने के लिए मनुष्य अधार्मिक कदम उठा कर बलात्कारी (हराम कारी) का शीकार हो जाता है। इसकी खास वजह औरतों के संवेदनशील (हस्सास) अंगों की नुमाईश है। जिसकी एक झलक भी मर्दों की काम वासना को जगा देती है और मर्द , औरत के मामूली इशारे पर ही हरामकारी (बलात्कारी) पर तैयार हो जाता है।( 22)

कुछ अनुभवी औरतें एक खास तरह के इशारे और हरकतें करती हैं जिसको अनुभवी मर्द आसानी से समझ लेते हैं और एक़ान्त में जाकर दोनो सेक्सी इच्छा की पूर्ति करते हैं। ऐसी औरतें , मर्दों को संभोग की दावत देने के लिए कभी बार-बार दुपट्टा छाती से नीचे गिराती है , दुपट्टा न होने पर अपना हाथ छाती पर ले जाकर अंगों की नुमाईश करती हैं , जान बुझ कर बिस्तर पर लेटती हैं , कभी-कभी सर में दर्द का बहाना भी करती हैं कि मर्द सर दबाने के साथ साथ सब कुछ दबा जाए और उनके साथ संभोग भी कर ले जो उनका खास मक़सद होता है। क्योंकि वह मर्द से नही केवल उसके लिंग से मुहब्बत करती है और मर्द जो लिंग का पुजारी होता है वह ऐसी औरतों से सेक्स कर के अपनी जीत समझता है. ऐसे मर्दों के लिए बाज़ारी (बुरी , वैश्या) औरतों (इस तरह की औरतें करीब करीब हर ज़माने में पायी जाती हैं) के दर्वाज़े हमेशा खुले रहते हैं। जहाँ वह जाकर अपनी काम वासना को पूरा कर सकते हैं।

ऐसी बाज़ारी और फाहिशः (कुकर्म , वैश्या) औरतों के लिए डाक्टर फ़्रेकल लिखता है कि

“ मर्द और औरत के खुसूसी अंगों की बनावट में बड़ा अन्तर है। एक बदकार (बुरी औरत दिन रात में बहुत से मर्दों की सेक्सी इच्छा की पूर्ति का कारण बन सकती है ( 23) और बिना किसी तरह की शारीरिक तक़लीफ और परेशानी के वह कई मर्दों से ग़लत संम्बन्ध रख सकती है। इसके अतिरिक्त मर्द काफी कुव्वत और ताक़त रखने के बावजूद भी कुछ सालों तक प्रतिदिन एक बार संभोग की क्रिया नही कर सकता। अगर कोई मर्द बुरे पेशे से रोज़ी कमाएगा तो कितने दिनों , महीनों या सालों तक। इसका समय बहुत कम होगा और वह कुछ वर्षों बाद हड्डियों का ढ़ाँचा बन के रह जाएगा ”। ( 24)

अर्थात औरतें ही अपनी दुकान को सजाए मर्दों को हराम कारी के लिए बुलाती रहती हैं। शायद यह बात औरतों को बुरी लगे लेकिन चूँकि सेक्स शास्त्र के विशेषज्ञों ने यही राय निकाली इसलिए लेखक ने नक़्ल कर दी। बहरहाल औरत और मर्द को बुरे काम (बलात्कारी) की ओर दावत देने का सुबूत क़ुर्आन-ए-करीम में मौजूद जनाबे यूसुफ (अ.) और ज़ुलेख़ा का वाकिआ भी मिल जाता हैः-

“ और जिस औरत के घर यूसुफ रहते थे (ज़ुलेख़ा) उसने अपने (ग़लत) मकसद को हासिल करने के लिए खुद उनसे आरज़ू (ख़्वाहिश) की और सब दर्वाज़े बन्द कर दिए और (उत्कंठित अर्थात बेताब हो) कहने लगी लो आओ यूसुफ ने कहा मआज़अल्लाह वह (तुम्हारे पति) मेरे मालिक हैं उन्होंने मुझे अच्छी तरह रखा है। (मैं ऐसी गलती क्यों कर सकता हूँ) बेशक ऐसी गलती करने वाले नेकी नही पाते। ज़ुलैखा ने तो उनके साथ (बुरा) इरादः कर ही लिया था और अगर यह भी अपने खुदा की दलील न देख चुके होते तो इरादः कर बैठते (हमने उसको यूँ बचाया) ताकि हम उससे बुराई और बदकारी को दूर रखें। बेशक वह हमारे खास बन्दों में से था और दोनों दर्वाज़े की तरफ झपट पड़े और ज़ूलैख़ा ने पीछे से उनका कुर्ता (पकड़कर खैंचा और) फाड़ डाला और दोनों ने ज़ुलैख़ा के पति को दरवाज़े के पास (खड़ा) पाया। ज़ुलैख़ा फ़ौरन (अपने पति से) कहने लगी जो तुम्हारी बीवी के साथ बदकारी का इरादः करे उसकी सज़ा इसके अलावा और कुछ नही कि या तो कैद कर दिया जाए या दर्द नाक आज़ाब में ड़ाल दिया जाए। यूसुफ ने कहा इसने खुद मुझ से मेरी आरज़ू (ख्वाहिश) की थी और ज़ुलैख़ा के परिवार वालों में से एक ग़वाही देने वाले (दूध पीते बच्चे) ने गवाही दी कि अगर इनका कुर्ता आगे से फटा हुआ हो तो यह सच्ची और वह झूठे और अगर उनका कुर्ता पीछे से फटा हुआ हो तो यह झूठी और वह सच्चे फिर जब अज़ीज़-ए-मिस्र ने उनका कुर्ता पीछे से फटा हुआ देखा तो (अपनी औरत से) कहने लगे यह तुम ही लोगों के चलत्तर (बहानें) हैं इसमें कोई शक नही कि तुम लोगों के चलत्तर बड़े (खतरनाक) होते हैं ”।( 25)

अर्थात ज़ुलैख़ा (औरत) ने अपनी सेक्सी इच्छा की पूर्ति के लिए खुदा के नेक बन्दे जनाबे यूसुफ (मर्द) को हरामकारी की दावत दी और जब जनाबे यूसुफ (मर्द) उस से बचकर भागे तो ज़ुलैखा (औरत) ने अज़ीज़ मिस्र (अपने पति) के सामने अपने चल्लतर दिखा कर अपने को पाक और साफ और जनाबे यूसुफ को दोषी साबित करने की कोशिश की। इससे यह नतीजा नीकाला जा सकता है कि अधिकतर औरतें ही दोषी होती हैं मर्द नहीं।

बहरहाल यही औरतें क्लबों और होटलों में थोड़े पैसों पर ही अपनी मान मर्यादा (इज़्ज़त व आबरू) का सौदा कर लेती हैं , दफ़तरों और मिलों में मर्दों के दिल खुश करती हैं , दुकानों पर सेक्सी अंगों की नुमाईश करती हैं , बाज़ारों और कम्पनियों में ग्राहक को बढ़ाने के लिए टेलीविज़न पर विभिन्न अदायें दिखाती हैं फिल्मों में मर्दों को खुश करने के लिए नंगी नाचती हैं ------ जिससे मर्द की सेक्सी इच्छा जागती है और वह औरत को अपनी सेक्सी इच्छा की पूर्ति का निशाना बना लेता है और औरतें समझती हैं कि औरतों को आज़ादी है। जबकि यह आज़ादी उनको बर्बादी की तरफ ले जा रही है। औरतें यह नही समझती कि अधिक बुद्धी रखने वाला मर्द , कम अक्ल रखने वाली औरत की आज़ादी से सम्बन्धित बात करके उसे अपनी सेक्सी इच्छा पूर्ति के लिए निशाना बनाता रहता है ------- इसिलिए इस्लाम में औरतों को घर की चहारदिवारी में घर की मालिकः (रानी) बनाया है ताकि मान मर्यादा बाक़ी रहे। लेकिन औरतों ने घर को क़ैदखाना समझकर घर से बाहर क़दम निकाला और मर्दों के हाथों अपनी मान मर्यादा को बेच दिया। जिसका मुख्य दोषी मर्द को साबित किया जाता है। जो औरतों की खूबसूरती और बनाव सिंगार पर रीझ कर अपना ग़लत क़दम उठाता है। जिससे बचने का तरीक़ा हज़रत अली (अ.) ने अपने ज़माने में उस समय पेश किया जबकि आप अपने असहाब के साथ बैठे थे औरः

“ एक बार एक खूबसूरत औरत का गुज़र हुआ तो लोगों ने उस पर ताक झांक शुरू कर दी जिस पर आप ने कहा इन मर्दों की निगाहें ताकने वाली हैं और यह ताक झांक उनकी सेक्सी इच्छा को उभारने का कारण हैं। अतः जब तुम में से किसी की निगाह ऐसी औरत पर पड़े जो उसे भली मालूम हो तो चाहिए कि वह अपनी पत्नी के पास जाये क्योंकि वह भी औरत जैसी औरत है ”।( 26)

यह इस बात की दलील है कि औरत की खूबसूरती बनाव सिंगार और बेपर्दिगी ही मर्दों को ग़लत कदम उठाने पर उभारती हैं। इसी लिए जनाबे फातिमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा ने कहा है कि

“ पर्दः औरतों का सब से बड़ा ज़ेवर है ”।( 27)

इसी पर्दे से सम्बन्धित क़ुर्आन में है।

“ (ऐ रसूल स.) ईमानदार औरतों से भी कह दो कि वह भी अपनी निगाहें नीचे रखें और अपनी शर्मगाह की हिफाज़त (सुरक्षा) करें और अपने बनाव सिंगार (के हिस्सों) को (किसी पर) प्रकट न होने दें मगर जो खुद से प्रकट हो जाता है (छुप न सकता हो उसका गुनाह नही) और अपनी चादरों को अपने गरेबानों (सीनों , छातियों) पर ड़ाले रहें और और अपने पतियों या बाप दादाओं या अपने पति के बाप दादाओं या अपने बेटों या अपने पति के बेटों या अपने भाईयों या अपने भतीजों या भानजों या अपनी (तरह की) औरतों या नौकरानियों यह घर के वह नौकर चाकर जो मर्द की सूरत हैं मगर (बहुत बूढ़े होने की वजह से) औरतों से कुछ मतलब नही रखते या वह कम उम्र लड़के जो औरतों के पर्दे की बात नही जानते। इनके अलावा (किसी पर) अपना बनाव सिंगार प्रकट न करें और चलने में अपने पैर ज़मीन पर इस तरह न रखें की लोगों को उनके छुपे हुए बनाव सिंगार की खबर हो जाए ”।( 28)

अर्थात औरतों को चाहिए कि वह अपनी छाती पर चादरें (दुपट्टा) डाले रहें ताकि वह खूबसूरती जो खुदा ने उनकी छाती के उभार में पैदा की है वह ग़ैर मर्दों पर प्रकट न होने पाए।

औरतों की इसी बेपर्दिगी और शरीर के छीपे हुए बनाव सिंगार की नुमाईश से सम्बन्धित रिवायत में मिलता है कि पैग़मबर-ए-इस्लाम ने फर्मायाः

“ एक नौजवान लड़की अपनी बेपर्दिगी और अपने शरीर को ग़ैर मर्दों को दिखाने के नतीजे में नर्क मे जाएगी। उसकी माँ जो पर्दे में रहती थी अपने आप को ग़ैर मर्दों से छिपाती थी वह भी अपनी बेपर्दः बेटी के साथ नर्क में जाएगी ”। ( 29)

इस तरह के नमूने रास्ता चलते बहुत से दिखाई देते हैं। जिसमें माँ पर्दे में होती है और बेटी बेपर्दः मेकप किए , आधी नंगी अपने शरीर के संवेदन-शील अंगो की नुमाईश करती है। जिसकी वजह से कभी-कभी हरामकारी और बलात्कारी में पड़ जाती है। जिसकी मुख्य दोषी लड़की की माँ है। क्योंकि वह अपनी बेटी को इस्लामी शिक्षा के अनुसार शिक्षा नही प्रदान कर सकी। अतः आव्यशक है कि इस्लामी आदेश के अनुसार औरत पर्दे में रहे ताकि बदकारी , हरामकारी , बलात्कारी से बच सके। इन सभी बुरे कामों से बचने के लिए मौला अली (अ ,) ने आसान तरीक़ा बताया है कि औरत अपने अन्दर तकब्बुर ( 30) अर्थात घमण्ड (जो देखने में बुरी बात है) पैदा कर ले। क्योंकि यही उसके नफ्स अर्थात काम वासना की सुरक्षा करता है।

जब कि आज की औरत घमण्ड नहीं करती वह अपने शरीर को शीघ्र ही मर्द के सामने पेश कर देती हैं , वह अपने शरीर की नुमाईश करना आज़ादी और फ़ैशन समझती है , वह विवाहित और अपनी बीवी से नाखुश और असंतुष्ट मर्दों को अपने शरीर से खेलने की खुली छूट देती है -------- जिससे बलात्कारी , बदकारी और हरामकारी में प्रतिदिन बढ़ोतरी होती जा रही है।

जब कि यह काम हर धर्म और समाज में बुरा और खराब जाना जाता है और इस्लाम का भी आदेश है किः-

“ और (देखो) बलात्कारी के पास भी न फटकना। क्योंकि बेशक वह बड़ी बेशर्मी का काम है और बहुत बुरा चलन है ”। ( 31)

यह ऐसा बुरा काम है कि जिसका स्पष्ट एलान और स्वीकृति फाहिशः औरत या मर्द के अतिरिक्त कोई नही करता। फिर भी बलात्कारी मर्द या औरत का पता चल जाने पर कुर्आन उसकी सज़ा का एलान करता हैः-

“ और तुम्हारी औरतों मे से जो औरतें हरामकारी करें तो उनकी हरामकारी पर अपने लोगों मे से चार की गवाही लो , फिर अगर चारों गवाह उस बात को सच बतायें तो (उसकी सज़ा यह है कि) उनको घरों में बन्द रखो यहाँ तक की मौत आ जाए या खुदा उनकी कोई (दुसरी) राह निकाले और तुम लोगों मे जिन से हरामकारी हुई हो उनको मारो पीटो। फिर अगर वह दोनों अपनी हरकत से तौबः करें और सुधार पैदा कर लें तो उनको छोड़ दो। बेशक खुदा बड़ा तौबः करने वाला महरबान है ”।( 32)

और

“ बलात्कारी औरत और बलात्कारी मर्द (अगर अविवाहित हों) उन दोनों में से हर एक को सौ कोड़े मारो और अगर तुम खुदा और आखिरत के दिन पर ईमान रखते हो तो खुदा का आदेश लागू करने में तुम को उनके बारे में किसी तरह का लिहाज़ न होने पाए और उन दोनों की सज़ा के वक्त मोमेनीन के एक गिरोह को मौजूद रहना चाहिए (ताकि लोग उससे सबक़ हासिल करें) ” (33)

और अगर विवाहित मर्द और औरत हैं तो

“ विवाहित मर्द और औरत अगर हरामकारी (ज़िना) करें तो उनको पत्थर मारो ताकि दोनों मर जायें ”।( 34)

बलात्कारी मर्द या औरत की या तो दुनिया में दी जाने वाली सज़ा है और अगर वह किसी तरीक़े से इस सज़ा से यहाँ बच भी गए तो अल्लाह के यहाँ उन लोगों के लिए दर्दनाक अज़ाब (पाप) है। वैसे भी बलात्कार करने से बरकत उठ जाती है , मुँह की रौनक जाती रहती है , चेहरे पर मनहूसियत छा जाती है , आतशक (लिंग पर एक गंदा और पीप से भरा हुआ फोड़ा निकलना) और सोज़ाक (लिंग के अन्दर फुसियाँ निकलना) जैसी बीमारियाँ लग जाती हैं , हौसलः कमज़ोर हो जाता है , फिक्र और परेशानी लग जाती है , खानदान की मान मर्यादा का जनाज़ः (शव) निकल जाता है , शर्म और हया (लज्जा) खत्म हो जाती है , इख़लाक़ और ईमान तबाह हो जाता है-

अतः चाहिए कि इस बुरे और ख़राब काम से दुनिया को बचाया जाए। जिस के लिये डाक्टर एन. फ़िटन भविष्य वाणी करता हैः-

“ यह केवल औरत ही है जो दुनिया को हरामकारियों से बचा सकती है पापी जीवन व्यतीत करने वाली औरतें , मर्दों के युग की बहुत खराब यादगार हैं। इनसे सभ्यता और मानवता बहुत तकलीफ उठा रही है। यह पेशा (धन्धा) इंसानी तरक्क़ी के रास्ते में रोड़े का काम दे रहा है। लेकिन इस पेशे (धन्धे) को दूर करने का फ़र्ज़ (कर्तव्य) भी औरत के हाथ है ”।( 35)

वैसे भी बलात्कारी जैसे बुरे और हराम काम से औरत या मर्द की वह सेक्सी इच्छा पूरी नही हो सकती जो विवाह के बाद अपनी औरत या मर्द से होती है----- क्योंकि बलात्कार (ज़िना) कर रहे औरत या मर्द को यह डर लगा रहता है कि कही कोई आ न जाए , कोई देख न ले , किसी को पता न चल जाए--- इसलिए दोनों एक दूसरे से शीघ्र ही अलग होने की कोशीश करते हैं जिससे भरपूर सेक्सी इच्छा की पूर्ति नही हो पाती है। इसके अलावा उनको अकसर मौक़ा ढूढ़ना पड़ता है। और मौका न मिल पाने की सूरत में मुर्दः दिल हो जाते हैं ------ जबकि शादी (अर्थात धर्म के बताए हुए तरीक़े के अनुसार औरत और मर्द को सेक्सी इच्छा पूर्ति अर्थात शारीरिक मिलाप की इजाज़त) के बाद यह डर नही रहता। क्योंकि धर्म और समाज दोनों की ओर से औरत और मर्द को शारीरिक मिलाप (अर्थात संभोग) का पूरा हक़ हासिल होता है। वह जब चाहे एक दूसरे से सेक्सी आन्नद हासिल कर सकते हैं। और खुदा ने उन्हे एक दूसरे से सेक्सी स्वाद और आन्नद हासिल करने के लिए ही बनाया है।

इसी लिए इस्लाम जहाँ हस्त मैथुन , गुद मैथुन और बलात्कारी जैसे बुरे और हराम कामों पर सख्त पाबन्दी लगाता है। वहीं प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं की पूर्ति के लिए शादी (विवाह) का आदेश भी देता है।


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