इस्लाम और सेक्स

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इस्लाम और सेक्स लेखक:
कैटिगिरी: अख़लाक़ी किताबें

इस्लाम और सेक्स

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: डा. मोहम्मद तक़ी अली आबदी
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इस्लाम और सेक्स

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लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

हवाशी

1. इस्लामी समाज , प्रो , रियूबन लेवी , अनुवादक प्रो , मुशीर-उल-हक़ पेज ( 507) तरक्की ऊर्दू ब्योरो , नई दिल्ली , 1987 ई.

2. पाण्डुलिपी रिसालः-ए-नख्लबंदी , हकीम अमानुल्लाह खाँ अमानी हुसैनी , एशियाटिक सोसाइटी आफ बंगाल (रिसालः-ए-नख्लबंदी , पाण्डुलिपि के मूल लेखक तथा टीका की तय्यारी और अनुवाद का काम लेखक ने किया है। जो शीघ्र ही प्रकाशित होकर सामने आने की उम्मीद है। यह फारसी से आज़ाद ऊर्दू अनुवाद है।) (तक़ी अली आबिदी)

3. तहलील-ए- नफ्सी का इजमाली खाका , सिगमंड फ्राइड , अनुवादक प्रो , ज़फर अहमद सिददीक़ी पेज ( 20) तरक्की ऊर्दू ब्योरो , नई दिल्ली , 1985 ई तथा हयात-ए-इज़दवाज फित तफसीर-ए-जिन्सियात हकीम सै , अली अहमद पेज ( 25) व , (61) पैग़ाम प्रेस हिमाँयू बाग़ कानपुर , 1978 ई.।

4. तहलील-ए-नफ़सी का इजमाली ख़ाका , पेज 18।

5. मनुष्य अपनी सेहत और तन्दुरूस्ती को बाक़ी रखने तथा बनाये रखने के लिए खाना खाता है जिस से खून बनता है। बाद में उसी खून के ( 80) क़तरे के बराबर मनी (वीर्य) बनती है जो अण्ड कोशों मे पहुँचकर गाढ़ी होकर सफेद रंग ग्रहण करती है। वहीं उसमें मनी के कीड़े पैदा होते हैं। धीरे धीरे यह मनी , मनी की थैलीयों में पहुचँती रहती है और जब मनी निकलने का कार्य अर्थात मैथुन , गुद मैथुन या हस्त मैथुन किया जाता है या सोने में सेक्सी स्वपन देखते हैं तो यह बाहर आ जाती है। यह मनी मनुष्य की नस्ल को बाक़ी रखने का कारण होती है।

मनी औरत में भी बनती है और वह वीर्य पात (इंज़ाल) भी होती है इस विषय में – दोषीज़ः – किताब के लेखक ने कुछ दलीलें भी दी हैं।

1. जब औरत में मर्द की तरह से इच्छा पैदा होती है तो आव्यशक है कि उस समय इच्छा का परिणाम भी मर्द की तरह से हो।

2. --- मर्द और औरत की मनी मिलने से ही नुतफः (वीर्य , शुक्र) बन सकता है. इसलिए दूसरे का वजूद अनिवार्य है।

3. --- कभी कभी औरत केवल मसास (अर्थात मैथुन के समय स्त्री के अंगों का मर्दन) ही से वीर्यपात हो जाती है और उसकी इच्छा बाक़ी नहीं रहती और वह मैथुन योग्य नहीं रह जाती।

4. जिस तरह से मर्द वीर्यपात हो जाने के बाद मैथुन करने के योग्य नही रह जाता उसी तरह से औरत भी जब मैथुन के बीच वीर्यपात हो जाता है तो वह मैथुन क्रिया के सहन करने के योग्य नहीं रहती और मर्द से अलग होना चाहती है। ऍसी अवस्था औरत पर कभी एक या आधा मिनट में ही पैदा हो जाती है और कभी बहुत देर तक पैदा नहीं होती।

5. अगर औरत में वीर्य पात की क़ुव्वत न होती तो वह मैथुन से कभी न थकती।

6. मर्द और औरत की मनी का रंग और कैफियत अलग-अलग है। एक में असर कुबूल करने की क़ुव्वत होती है और एक में असर डालने की। दोनों के मिलने से नुतफः बनता है।

7. औरत के कभी स्वपन में वीर्यपात हो जाता है। जिसे अहतिलाम कहते हैं।

8. औरत में अण्डकोशों की मौजूदगी मनी में तरी के वुजूद पर एक दलील है।

9. औरत को भी वीर्यपात में मर्द की तरह से स्वाद और आनन्द महसूस होता है।

10. बच्चा कभी माँ की शक्ल पर होता है और कभी बाप की शक्ल पर। और यह अपनी अपनी मनी की मुशाबहत (एक रूपता) है। (दोषीज़ः प्रथम भाग , हकीम मुहम्मद युसूफ हसन , पेज ( 74) युसूफिया कुतुब खाना , बारूद खाना , लाहौर)

बहरहाल यह याद रखना चाहिए कि जब मनी स्वाद व आनन्द के साथ इख्तियारी (इच्छा से) या बे इख्तियारी (बिना इच्छा के) तौर पर बदन से निकलती है अर्थात अहतिलाम या इन्ज़ाल होता है या हस्त मैथुन (मुश्त ज़नी) के द्वारा मनी निकलती है या औरत से आनन्द लेते समय उसके आगे या पीछे के सुराख में अपने लिंग की केवल सुपारी या उससे अधिक हिस्से को दाखिल करते हैं (चाहे मनी न निकले) या खुदा न करे किसी जानवर से संभोग करने पर मनी निकलती है तो ग़ुस्ल-ए-जनाबत (जनाबत का स्नान) अनिवार्य हो जाता है। उस समय बदन के किसी हिस्से को क़ुर्आन के शब्दों , अल्लाह के नाम , पैग़मबरों या इमाम के नाम से मस (छुआना) करना , मस्जिद-उल-हराम और मस्जिद-ए-नबी की तरफ से गुज़रना , मस्जिद में ठहरना , उन आयतों का पढ़ना जिनके पढ़ने पर सजदः वाजिब (अनिवार्य) है , मुजनिब (अर्थात जिसके वीर्य निकल चुका हो) हराम है। इसी लिए चाहिए कि कपड़े और बदन की गंदगी को साफ कर के ग़ुस्ले इरतिमासी (अर्थात नीयत के बाद पूरे तालाब , नदी आदि में सम्भव है) या तरतीबी (अर्थात नीयत के बाद पहले सर और गर्दन धोए फिर दाहिना हिस्सा और आखिर में बाँया हिस्सा , या लोटे आदि किसी बर्तन से या शावर के नीचे खड़े होने पर सम्भव है) करके पाक व साफ हो जाए।

6. खून-ए-हैज़ (मासिक धर्म) से सम्बन्धित क़ुर्आन मे मिलता हैः

(ए रसूल स.) तुम से लोग हैज़ के बारे में पुछते हैं। तुम उनसे कह दो कि यह गंदगी और घिन की बीमारी है। तो हैज़ (के दिनों) में तुम औरतों से अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जायें उनके पास न जाओ तो जिधर से तुम्हें खुदा ने हुक्म दिया है उनके पास जाओ। बेशक खुदा तौबः करने वालों और साफ सुथरे लोगों को पसन्द करता है। (सूरः-ए-बक़रः आयत न. 223)

खून-ए-हैज़ औरतों में जवानी की निशानी है। जो अक्सर हर महीने में कुछ दिन औरत की बच्चा दानी से आता है। जो आम तौर पर सुर्ख और गाढ़ा होता है और थोड़ी जलन के साथ निकलता है। इसका कम से कम समय तीन से चार दिन तक है और ज़्यादा से ज़्यादा समय दस दिन का है। (यह याद रखना चाहिए के दो हैज़ों के बीच का समय दस दिन से कम नहीं होना चाहिए) खूने हैज़ की मेक़दार ( 25) तोला है। खूने हैज़ आने के बीच औरत पर वह सभी इबादतें जिन में नमाज़ की तरह वज़ू , ग़ुस्ल या तयम्मुम करना ज़रूरी है , हराम हैं। वह सभी बातें भी हराम हैं जो एक मुजनिब (अर्थात जिसके वीर्य निकल चुका हो) पर हराम होती हैं। औरत के अगले या पिछले सुराख मे मर्द का लिंग दाखिल करना (चाहे केवल सुपारी या उससे कम हिस्सा दाखिल हो और मनी भी न निकले) औरत और मर्द दोंनो पर हराम है। लेकिन मैथुन के अलावा बाक़ी हर तरह की छेड़ छाड़ और बोसा बाज़ी (चूमा-चाटी) जाएज़ है।

हायज़ः औरत की छः किस्में होती हैं।

1. साहिबे आदते वक्तियः व अददिय (अर्थात वक़्त और दिनों की गिनती के हिसाब से एक आदत रखने वाली औरत)

2. साहिबे आदते वक्तियः (अर्थात हर महीने वक़्त के हिसाब से आदत रखने वाली औरत)

3. साहिबे आदते अददियः अर्थात हर महीने दिनों की गिनती के हिसाब से आदत रखने वाली औरत)

4. मुज़तरिबः (अर्थात जिस की कोई आदत तय न हो)

5. मुबतदियः (अर्थात जिसे पहली बार खूने हैज़ आया हो) और

6. नासियः (अर्थात अपनी आदत भूलने वाली औरत)

बहरहाल हर औरत पर खूने हैज़ से पाक हो (अर्थात खून आना रूक) जाने के बाद ग़ुस्ले हैज़ (हैज़ का स्नान) वाजिब हो जाता है।

संस्कृत की पुरानी किताबों की मदद से औरत के पहली बार हैज़ आने पर उसके भविष्य के बारे में फैसला किया जा सकता है। इन किताबों में महीनों , चाँद की तारीखों , दिनों और समय के अनुसार औरत पर पड़ने वाले हैज़ के असरात (प्रभाव) को बताया गया है (विस्तार के लिए देखिये दोशीज़ः प्रथम भाग , हकीम मुहम्मद युसूफ हसन , पेज ( 19) से ( 23) और क़ानूने मुबाशिरत , हकीम वली उर रहमान नासिर , पेज ( 36) से ( 44) फैसल पब्लीकेशनज़ , नयी दिल्ली , 1993 ई ,।

यहाँ यह भी स्पष्ट करना ज़रूरी है कि हैज़ के अलावा औरत के खूने निफास (अर्थात वह खून जो बच्चे की पैदाइश के साथ पहले या बाद दस दिन के अन्दर औरत की योनि से निकलने वाला वह खून जो आम तौर से ठंडा , पतला और लाल रंग का होता है और बिना उछाल और जलन के धीरे धीरे निकलता रहता है) भी आता है।

खूने निफास के वही अहकाम (हुक्म) हैं जो खूने हैज़ के हैं। इसके अलावा खूने इस्तिहाज़ा की चूँकि तीन क़िस्में कलीलः (अर्थात और की योनि मे रखे जाने वाली रूई में ऊपर ऊपर खून लग जाए लेकिन रूई तर न हो) मुतवस्सितः (अर्थात खून रूई में पहुँच जाए लेकिन जाये लेकिन दूसरी तरफ फूट कर न निकले) और कसीरः (अर्थात खून रूई में पहुँच कर दूसरी तरफ फूट कर निकल जाये) हैं। अतः उनके अलग अलग अहकाम भी हैं। (विस्तार के लिए देखिये तौज़िहुल मसाएल , आकाऐ सैय्यद अबुल कासिम-अल-मूसवी अल खुई ऊर्दू अमलियः तनज़ीमुल मकातिब लखनऊ या किसी भी आलम का अमलियः और तोहफतुल अवाम)

7. छोटे और नौजवान लड़के और लड़कियों को इन बुराईयों से बचाने के लिए दोशीज़ः किताब के लेखक ने निम्मलिखित बचाओ की तरकीबें बतायी हैः

1. मामाओं और नौकरानियों और दूसरी गैर औरतों के साथ छोटे बच्चों को न सुलायें।

2. बच्चों को अलग चारपाई पर सोने की आदत डालें।

3. नौजवान लड़कियों को आपस में एक चारपाई पर न सोने दें।

4. लड़को और लड़कियों को एक चारपाई पर सोने से रोके दें।

5. लड़को और लड़कियों की देख रेख रखें कि वह शौचालय आदि इकटठे न जायें और वहाँ ज़्यादा देर तक न बैठे रहें। इस बात का भी ध्यान रखें कि बे वक्त शौचालय में न जाया करें। किसी न किसी खुफिया तरीक़े से उनकी निगरानी ज़रूरी है।

6. नौजवान लड़कों को अकेले कमरों मे बैठने से मना करें। अकेला पन एक नौजवान के लिए बहुत हानिकारक होता है।

7. खेल , पढ़ाई और घर के काम काज में बच्चों और बच्चीओं को लगाये रखना उन्हे बुरी आदतों से बचाये रखता है।

8. नौजवान लड़कियों जो एक दूसरे की सहेलियाँ होती है वह अकेले में घंटों अलग कमरों या कोठों पर बातें करती रहती हैं , उनकी निगरानी भी ज़रूरी है मगर वह थोड़ी देर अकेले रहें तो कोई नुक़सान नहीं।

9. उचित हो अगर उन्हें इस तरीक़े से बिठायें कि घर की बड़ी औरतों की निगाहें उन पर कभी कभी पड़ती रहें।

10. प्रेम व मुहब्बत के अफसाने , नाविल और इस तरह के वाकेआत उनके सामने पेश न किये जायें।

11. पति और पत्नी , बच्चों के सामने चूमा चाटी न करें। बल्कि अलग अलग चारपाईयों पर सोयें। (जबकि आज टी वी और वी सी आर पर गन्दी फिल्में घर के सभी बच्चे बुढ़े और जवान साथ-साथ देखते हैं जिससे आदतें बिगड़ती हैं। अतः इस से बचे रहना ज़रूरी है। (तकी अली आबिदी)

12. नौजवान लड़को और लड़कियों को सो जाने के बाद जब आप रात में जागें तो उनको ज़रूर देख लिया करें और सुबह तड़के जागने के बाद नौजवान लिहाफ के अन्दर देर तक दबके रहें तो उनके खराब होने की सम्भावना है। इसलिए उन्हें सुबह तड़के ही जगा देना और बिस्तर से अलग कर देना ज़रूरी है।

13. बच्चों को हमेशा फरिश्ता , मासूम और केवल कम उम्र का बच्चा ही न समझने , जो सच्ची मिसालें ऊपर दी जा चुकी है उनको दृष्टिगत रखते हुवे आप अपने बच्चों पर पूरी तरह निगरानी रखें (देखिये दोशीज़ः प्रथम भाग , पेज 143-150)

8. कानूने मुबाशिरत , पेज 90-91

9. जबकि हयाते इज़दिवाज की तफसीरे जिनसीयात के लेखक ने लिखा है कि मर्दों की तुलना में औरतों में हस्त मैथुन (मुश्त ज़नी , खुद लज़्ज़ती) की आदत ज़्य़ादः होती है। इसके निम्नलिखित कारण बतायें हैं।

1. मर्दों की तादाद में कमी जो जंग (युद्ध) या किसी वबा (बीमारी) का शिकार हो जाते हैं।

2. मर्दों की तुलना में औरतों में शर्म व हया (लाज व लज्जा) ज़्यादा होती है इसलिए वह हरामकारी के बजाये अकेले गुनाह करने की तरफ लग जाती है , चूँकि ईश्वर ने औरत के अन्दर शर्म व हया ज़्यादा रखी है और दूसरे समाज व माहौल ने भी औरत के अन्दर शर्म व हया पैदा कर दी है। इस पर्दे की वजह से औरत अपनी इच्छाओं को प्रकट नहीं कर पाती और आम तौर से ऍसा देखा गया है कि वैवाहिक सम्बन्धों में बंधने के कई साल बाद भी औरत अपनी प्राकृतिक सेक्सी इच्छाओं को प्रकट करने में हिचकिचाती रहती है और पति और पत्नी के बीच इस सिलसिले में एक पर्दः पड़ा रहता है।

3. कुछ कौमों मे दोबारा शादी करना बुरा ख्याल किया जाता है इसलिये प्राकृतिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए औरतें इस कार्य की ओर रागिब (लग) हो जाती हैं।

4. चूँकि मर्द के बहुत जल्दी वीर्य पात हो जाता है और उस (औरत) की इच्छा देर तक बाक़ी रहती है इसलिए वह इस तरह काम लेती है।

5. अधिकतर औरतें ऍसी होती हैं जिनकी इच्छा पूर्ति प्राकृतिक तौर पर आसानी से नहीं हो सकती इसलिये वह यह तरीक़ा अपना लेती हैं।

6. चूँकि औरतों को हामिलः (गर्भवती) होने का खौफ रहता है इसलिये यह तरीक़ा उनको बहुत महफूज़ नज़र आता है।

7. औरत का मासिक धर्म खत्म होते ही मर्द की ख्वाहिश पैदा होती है और अगर उस समय उनको दूसरी जिन्स (अर्थात मर्द) न मिले तो वह कभी-कभी गुद मैथुन की ओर लग जाया करती है।

8. मर्द के अन्दर सेक्सी आला (अंग) केवल एक है लेकिन औरत के अन्दर बहुत से अंग ऐसे है जिन में इच्छा पैदा होती है।

9. इस ज़माने मे पैसा कमाने के लिए मर्दों को काम में लगे रहने कि ज़्यादा ज़रूरत रहती है। जिस के कारण वह औरतों की तरफ पूरा ध्यान नहीं कर सकते इस लिए औरते हस्त मैथुन से अपना शौक़ पूरा कर लेती हैं।

10. कुछ औरतों को हिस्टीरिया आदि ऐसी बीमारियाँ होती हैं कि उनकी तरबीयत इस तरफ अपने आप लग जाती है।

11. कुछ औरतें जो ऊँचे घरानें की होती या ऊचाँ पद ग्रहण कर लेती हैं उन्हें मन पसन्द पति न मिलने से इसकी तरफ लग जाती हैं।

12. कुछ औरतों को अपनी खूबसूरती का इतना ज़्यादा घमण्ड होता है कि वह मर्द से बात करना अपने लिए बुरा समझती हैं लेकिन प्राकृतिक इच्छा होने पर उन्हे हस्त मैथुन पर मजबूर होना पड़ता है।(देखिए हयाते इज़दिवाज फी तफसीरे जिनसीयात , पेज 76-81

10. व. 11. ग़रूल हिकम पेज ( 218) व ( 354) मसायल-ए-ज़िन्दगी अनुवाद सैय्यद अहमद अली आबदी पेज ( 117) व ( 118) नूरूल इस्लाम , ईमाम बाड़ा , फैज़ाबाद से नक़्ल।

12.विस्तार के लिए देखिए क़ानूने मुबाशिरत , पेज 46- (51)

13.जबकि फ्रांस के मशहूर माहिरे हैवानात (जानवरों के विशेषज्ञ बफोन , Baffon) ने अपनी किताब में जानवरों और पक्षियों की आदत के बारे में गुद मैथुन के अध्याय में लिखा है कि अगर नर जानवर या पक्षी एक जगह एकत्र कर दियें जायें तो उन में शीघ्र ही यह क्रिया आरम्भ हो जाती है इस बात को फ्रेंच स्कालर सैट कीलेर डी वेली ने भी सही माना है और बाद में यह बताया है कि यह कैफियत मादा के बजाए नर में शीघ्र ही पैदा होती है। (देखिए हायाते इज़दिवाज फी तफसीरे जिनसीयात पेज 65।

14.विस्तार के लिए देखिए क़ुर्आन-ए-करीम सूराऐ राफ आयत न. 80-84 सूरः हूद आयत न. 77-83 – सूरः हजर आयत न , 58-77 सूरः अम्बीया आयत न , 71-74 व ( 75) सूरः शोअरा आयत न. 107-175 सूरः नम्ल आयत न. 54-55 सूरः अनकबूत आयत न. 26,28-30, 33-35, सूरः साफात आयत न. 133-138, सूरः ज़ारियात आयत न. 32-37, सूरः नजम आयत न. 53, सूरः क़मर आयत न , 33-36, और सूरः तहरीम आयत न ,10

15.देखिए हाशीया क़ुर्आन-ए-करीम सूराऐ राफ आयत न. ( 80) अनुवादक मौलाना फर्मान अली , निज़ामी प्रेस , लखनऊ।

16. से 19. क़ुर्आन-ए-करीम सूराऐ राफ आयत न. 81 सूरः नम्ल आयत न. 55 सूरः अनकबूत आयत न. 29 (इस में रहज़नी करने तकतऊनस्सुबुल से मुराद कुछ तफसीर लिखने वालों ने बच्चे पैदा करने की राह रोकना (मारना) अर्थात नुतफे की बरबादी मुराद लिया है) और सूरः-ए-शोअरा आयत न. ( 165) व 166।

20 व 21. नौजवानों के मसाएल और उनका हल , अली असगर चौधरी , पेज 63, ,सरताज कम्पनी , दिल्ली , 1981 ई.।

22. यह याद रखना चाहिए कि मर्द (नर) औरत (मादा) की मर्ज़ी के बिना हराम कारी नही कर सकता। यह बात जानवरों और पक्षीयों में भी पाई जाती है कि जब मादा संभोग पर तैय्यार होती हैं तब नर संभोग कर सकता है मादा (औरत) की इसी खुसूसीयत (विशेषतायें) से सम्बन्धित मौला-ए-कायनात हज़रत अली (अ.) की किताब नहजुल बलाग़ा में मिलता है कि औरत की बेहतरीन खसलतों में घमण्ड भी है जिस से वह अपना शरीर आसानी के साथ किसी मर्द के क़ब्ज़े में नही दे सकती जिसके नतीजे में बलात्कारी नहीं हो सकती (देखिए नहजुल बलाग़ा इर्शाद न. ( 234) पेज 877, शीया जनरल बुक एजेन्सी , इन्साफ प्रेस , लाहौर) (तक़ी अली आबदी)

23.कुछ ऐसी ही बात कुछ जानवरों में भी पाई जाती है जैसे एक कुतिया के पीछे कई कुत्ते लगे रहते हैं और मौक़ा मिलने पर सेक्सी इच्छा की पूर्ति करते हैं। आज के अख़बारात आये दिन औरतों के सामूहिक बलात्कार की खबरें प्रकाशित करते रहते हैं जो इस बात की दलील है कि एक लड़की (औरत) बारी बारी से कई लड़कों (मर्दों) की सेक्सी इच्छा की पूर्ति का ज़रिया बन सकती हैं। (तक़ी अली आबदी) केवल यही नही बल्कि वत्सायन ने अपनी किताब कामासूत्र में A WOMAN WITH TWO YOUTHS (दो जवानों के साथ एक औरत) से यह स्पष्ट किया गया है कि एक औरत एक ही समय में दो मर्दों की इच्छा पूर्ति का ज़रिया बन सकती है। (विस्तार के लिए देखिए KAMA SUTRA, VATSYAYANA EDITED BY MULK RAJ ANAND P 140. OM PRAKASH JAIN, SANSKRITI PRATISHTHAN, NEW DEHLI 1982 A.D)

24.दोशीज़ः प्रथम भाग , पेज 48

25. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः युसूफ आयत न. 23 सं 26

26.नहजुल बलाग़ा इर्शाद न ,420 पेज ( 637)

27.विस्तार के लिए देखिए इन पंकतियों के लेखक का लेख औरत नहजुल बलाग़ा की रौशनी में , पेज ( 28) से 38, बाबे शहरे इल्म , फैज़ाबाद जुलाई 1986 ई.।

28. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-नूर आयत न ,31 अपनी निगाहों को नीचे रखे और शर्मगाह की हिफाज़त (सुरक्षा) करने से सम्बन्धित मर्दों को भी हुक्म (आदेश) दिया गया है।

(ए रसूल स.) ईमानदारों से कह दो कि अपनी निगाहों को नीचे रखे और शर्मगाह की हिफाज़त करें यही उनके लिए ज़्यादा सफाई की बात है-। देखिये सूरः-ए-नूर आयत न ,30

इस से यह नतीजा निकलता है कि जब औरत और मर्द दोनों अपनी अपनी जगह निगाहों को नीचा रखे और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करेंगे तो बलात्कारी सम्भव ही नही।

औरत को अपने सीने पर चादर डाले रहने से सम्बन्धित ही क़ुर्आन में यहाँ तक मिल जाता है कि जो औरतें बाहर निकलते वक़्त चादर का घूँघट लटका लिया करेंगी तो उनको रास्ता चलते कोई मर्द छेड भी नही सकता।

ए नबी (स.) अपनी बीबीयों और अपनी लड़कियों और मोमिनीन की औरतों से कह दो कि (बाहर निकलते वक़्त) अपने (चेहरों और गर्दनों) पर अपनी चादरों का घूँघट लटका लिया करो यह उनकी (शराफत की) पहचान के वास्ते बहुत मुनासिब (उचित) है तो उन्हे कोई छेडेगा नहीं और खुदा तो बड़ा बख्शने वाला महरबान है। (कृपा करने वाला है)। (सूरः-ए-अहज़ाब आयत न ,59)

बहरहाल यह याद रखना चाहिए कि बलात्कार उस वक़्त सिद्ध होता है जब कोई मर्द अपने लिंग को ऍसी औरतों के आगे या पीछे के सुराख में जो उस पर पूरी तरह से हराम है इरादे के साथ दाखिल कर दे और अगर लिंग का दाखिल करना साबित न हो तो वह बलात्कार नही है चाहे बाकी हर तरफ स्वाद व आनन्द उठाया जाए बल्कि अपनी उंगलियाँ औरत की योनि में दाखिल करे या अपने लिंग को औरत के मुँह में दाखिल कर दे औरत के हराम होने की क़ैद इसी लिए लगाई गई है कि जो औरत उस पर हराम न हो जैसे हमेशा विवाह या कुछ समय के लिए विवाह (मुतअः) वाली बीबी या नौकरानी (लौड़ी) आदि तो उनसे मैथुन संभोग करने पर हद को (सज़ा) जारी न होगी क्योंकि यह उनके लिए शरई (धर्म के हिसाब से) हलाल है। इसी तरह लिंग के इरादे के साथ दाखिल करने की क़ैद इसलिए लगाई गई है अगर कोई लिंग को इरादे के साथ दाखिल न करे तो वह भी बलात्कार न होगा जैसे कोई दूसरा व्यक्ति किसी के लिंग को या स्वय औरत किसी के लिंग को अपने योनि में उसके अख्तियार और इरादे के बिना ज़बरदस्ती दाखिल कर ले तो यह भी बलात्कार न होगा.... लेकिन यह याद रखना चाहिए की बलात्कार का सबूत मिल जाने के बाद बलात्कार की हद कभी कत्ल होती है और कभी पत्थर मारना , कभी कोड़े मारना और कभी शहर से बाहर निकाल देना। बलात्कारी के विस्तार अध्यन के लिये देखिये , किताब अलहुदुद , व अलताज़ीरात , प्रथम भाग , सैय्यद मुहम्मद शीराज़ी , अनुवादक अख्तर अब्बास मुअर-सतु-अल-रसूल-अल-आज़म , पाकिस्तान , हुसैनीया हाल , हूप रोड लाहौर , 1404 हि)

29.तरबीयत-ए-औलाद , जान अली शाह काज़मी , पेज ( 18) अब्बास बुक एजेन्सी , लखनऊ , 1992 ई.

30.नहजुल बलाग़ा , इर्शाद न. 234 पेज न , 877

31 – 33. क़ुर्आन-ए-करीम बनी इस्राईल आयत न. ( 32) सूरः निसाअ आयत न. ( 15) व ( 19) व सूरः-ए-नूर आयत न , (2)

34. क़ुर्आन-ए-करीम , हाशिया सूरः-ए-निसाअ आयत न. ( 15) (देखिए मौलाना फर्मान अली का तर्जुमः)

35. दोशीज़ः प्रथम भाग पेज न , 48

36. मुस्तदक-अल-वसाएल , दूसरा भाग पेज न , 531, हदीस न ,21 मसाएल-ए-ज़िन्दगी पेज ( 176) से नक़्ल सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम , आदाब-ए-अज़वाज अबू अजवद मुहम्मद अल आज़मी पेज ( 11) व ( 12) इदारः-ए-तहकीक़ात व नशरियात-ए-इस्लामी , मदरसा-ए-ऐ आलिया अरबिया , मऊनाथ भनजन , यू पी 1985 ई से नक़्ल।

37.वसाएल-अल-शीयः भाग ( 14) पेज 5, मसाएल-ए-ज़िन्दगी पेज ( 185) से नक़्ल।

38.तहज़ीब-उल-इस्लाम ऊर्दू अनुवाद हिलयतुल मुत्तक़ीन , मुल्ला मुहम्मद बाक़िर मजलिसी , अनुवादक सैय्यद मक़बूल अहमद पेज 101, नूर-अल-मताबेअ , लखनऊ 1328 हि , सहीह मुस्लिम आदाबे अज़वाज पेज ( 12) से नक़्ल जवाहेर अल अखबार व रोज़ः अल अज़कार , औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तक़ीन , नवाब सैय्यद मुज़फ्फर हुसैन खाँ बहादुर पेज ( 307) स्टार प्रेस , कानपुर , 1313 हि , से नक़्ल।

39 व 40.तहज़ीब अल इस्लाम पेज ( 100) व 101.

41 व 42.मजमअ अल ज़वाएद व मनबअ अल फवाएद , भाग 4, अली बिन अबी बक्र अबू अल हसन नूर अल दीन अल हसीमी मिस्री , पेज 252, खानदान का अखलाक़ उस्ताद इब्राहीम अमीनी , अनुवादक अनदलीब ज़हरा पेज ( 12) दार अल सकाफा अल इस्लामिया , पाकिस्तान , 1992 ई से नक़्ल , औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तक़ीन पेज ( 307) व 308.

43. बिहार अल अनवार , जिल्द 103, अल्लामा मुहम्मद बाक़िर मजलिसी , पेज 217, खानदान का अखलाक़ पेज ( 12) से नक़्ल.

44. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 101.

45.याद रखना चाहिए कि अगर सेक्सी इच्छा की बहुतायत (अधिकता) की वजह से हराम का डर हो तो विवाह (निकाह) वाजिब (अनिवार्य) है वरना सुन्नत.

46 से 48. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-नूर आयत न , (32) सूरः-ए-रूम आयत न. 21 व सूरः-ए-फतह आयत न ,4.

49.बिहार अल अनवार , मसाएल-ए-ज़िन्दगी पेज ( 182) से नक़्ल.

50.तहज़ीब अल इस्लाम पेज 101.

51 से 53.औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तक़ीन पेज 308.

54. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-नूर आयत न ,32.

55.तहज़ीब अल इस्लाम , पेज ( 101) व 102.

56. कोशिश (प्रयास , मेहनत) से सम्बन्धित क़ुर्आन मे मिलता हैः

और यह कि मनुष्य को वही मिलता है जिसकी वह कोशिश करता है। (सूरः-ए-नज्म आयत न , 39)

57.रोज़ी (रिज़्क) से सम्बन्धित क़ुर्आन में मिलता हैः अपने परवर्दिगार की दी हुई रोज़ी खाओ (पियो) और उसका शुक्र (ध्नयवाद) अदा करो। (सूरः-ए-सबा आयत न , 15)

(58) व 59. वसाएल अल शीअः भाग ( 14) पेज न , 78, मसाएल ज़िन्दगी पेज ( 189) व ( 190) से नक़्स.

(60) से 64.तरबीयत-ए-औलाद पेज ( 19) से 21

65.तहज़ीब अल इस्लाम पेज 103.

66 व 67. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-नूर आयत न. 26 व 30-31.

68. जबकि ग़रीबी के खौफ (डर) से अपनी संतान (औलाद) को क़त्ल करने वाले लोंगो को क़ुर्आन-ए-करीम ने इस तरह आगाह किया हैः

और मुफलिसी (ग़रीबी) के खौफ से अपनी औलाद को मार न डालना (क्योंकि) उनको चाहे तुम को रोज़ी (रिज़्क) देने वाले तो हम हैं। (देखिए सूरः-ए-अनआम आयत न. 152.)

या

और (लोंगो) मुफलिसी के खौफ से अपनी औलाद को कत्ल न करो (क्योंकि) उनको और तुम को (सब को) तो हम ही रोज़ी देते हैं। बेशक औलाद (संतान) का कत्ल करना बड़ा सख्त गुनाह (बहुत बड़ा पाप) है। (देखिए सूरः-ए-बनी इस्राईल आयत न. 31) और फैमली प्लानिंग के उसूलों पर अमल करना (को मानना) औलाद को कत्ल करने के बराबर है।

69.तोहफतुल अवाम पेज 431, नवल किशोर , लखनऊ 1975 ई.

70.तहज़ीब अल इस्लाम पेज 101.

71.तौज़ीह अल मसाएल (ऊर्दू) आकाये सैय्यद अबू अल कासिम अल मूसवी अल खूई पेज ( 287) व 288, तनज़ीम अल मकातिब व तौज़ीह अल मसाएल (ऊर्दू) सैय्यद मुहम्मद रज़ा अल मूसवी गुलपाएगानी पेज ( 391) व ( 392) अनुवादक सैय्यद फ़य्याज़ हुसैन नक़वी दार अल कुर्आन अल करीम , कुम , ईरान 1413 हि.

72. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ आयत न. 24

73. तोहफतुल अवाम पेज 422

74. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ आयत न. ( 24) का हाशिया मौलाना फर्मान अली.

75. हुकूक ज़न दर इस्लाम (हिन्दी अनुवाद इस्लाम में नारी के विशेष अधिकार) लेखक शहीद मुर्तज़ा मुतहरी , अनुवाद सैय्यद शम्सुल हसन ज़ैदी व सैय्यद मुनतज़िर जाफरी पेज न. 79. उपकार प्रेस लखनऊ , 1989 ई.

76.हयात-ए-इज़दिवाज पेज ( 47) – 48

77.मसाएल ज़िन्दगी पेज 196-197

78. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ आयत न. 24 का हाशिया मौलाना फर्मान अली।

79.अब्द उल करीम मुशताक़ अपनी किताब – हम मुतअः क्यों करते हैं- में लिखा है किः

प्राकृतिक उसूल (कायदः) है कि बुढापे मे औरत की इच्छा मर्द को अधिक होती है और मुख्य रूप से कम आयु की औरत की। उनकी यह इच्छा लालच और हवस पर आधारित नहीं की जा सकती क्योंकि प्राकृतिक कायदः है और प्राकृतिक इच्छा है। यही कारण है लोग खोई हुई जवानी क़मर झुकाये तलाश करते फिरते है और सैकङों रूपये इधर उधर की दवाईयों पर बरबाद करते हैं। लेकिन इस्लाम चूँकि हकीमानः (विज्ञान पूर्ण) निज़ाम (पद्धति) है अतः इसने इस समस्या का हल भी बहुत आसान बताया है कि अगर मर्द में समझ और अक़्ल बाक़ी है और कम औरत का प्रयोग दवाई के लिए , न कि मज़े लूटने के लिए चाहता है तो यह नुसखा लाभदायक सिद्ध होगा। चूँनाचे शुरूअ (आरम्भ) में इस नुस्खे पर अमल किया गया। इतिहास में यह बात पूरी तरह स्पष्ट है कि बुढ़ापे की उम्र मे सहाबः ने कम आयु की लड़कियों से शादीयाँ की मगर आज कल केवल ज़िद में इस बात को बुरा बता कर पूर्वजों की सीरतों को शर्मिन्दः किया जाता है। (ग़लत बताया जाता है)

लेकिन यहाँ यह सवाल किया जा सकता है कि चलिए यह नुस्खा बुढ़े मर्द के लिए लाभदायक हो सकता है मगर औरत के लिए बेकार है। क्योंकि मर्द अपने बुढ़ापे को दूर करने के लिए अपना बुढ़ापा जवान औरत के हवाले कर देता है जो औरत के हक़ पर डाका और ज़ुल्म (अन्याय) है। लेकिन ज़रा ग़ौर कीजिए , ऍसा एतिराज़ (हस्तक्षेप) पूरी उम्र के निकाह पर ठीक होगा लेकिन इस्लाम ने मुतअः का हुक्म देकर ऍसी हालत में मर्द और औरत दोनों की प्राकृतिक इच्छा का लिहाज़ रखा है कि थोड़े समय के लिए तुम इस दवाई का प्रयोग कर लो। फिर इसको छोड़ दो। अब मर्द की प्राकृतिक इच्छा भी पूरी हो गई और औरत भी आज़ाद है कि अपनी इच्छा अनुसार शादी कर सकती है। सारी उम्र बूढ़े के पल्ले से बंधी न रहेगी। अतः अन्याय (ज़ुल्म) किसी पर भी नहीं हुआ। (देखिए –हम मुतअः क्यों करते हैं- अब्द उल करीम मुश्ताक़ पेज ( 24) से 26, हैदरी कुतुब खाना , बम्बई)

यह याद रखना चाहिए की मुतअः की मुददत (समय) खत्म होने अर्थात औरत के आज़ाद होने पर औरत को इददे (अर्थात वह समय जिस में औरत पुनर्विवाह नहीं कर सकती) के दिन गुज़ारना (व्यतीत) करना होंगे ताकि यह साबित हो सके की मुतअः की मुददत में शारीरिक मिलाप से गर्भ ठहरा है या नहीं। तथा गर्भ किसका है ताकि बच्चे की विरासत (के संरक्षक) को तय किया जा सके। क्योंकि वह भी निकाही औलाद की तरह बाप की जाएदाद का वारिस होगा।मुतअः के बाद मुतअः की गई औरत की इददत से सम्बन्धित इमाम-ए-जाफ़र सादिक़ (अ ,) एक हदीस में इर्शाद फर्माते हैं किः

खुद उसी व्यक्ति से फिर अगर विवाह करना चाहे तो इददे की ज़रूरत नहीं है और अगर किसी और से विवाह चाहे तो पैतालिस ( 45) दिन का इददा रखने की ज़रूरत है। (मुतअः और इस्लाम , सैय्यद अल उलमा सैय्यद अली नक़ी नक़वी , पेज ( 76) इमामिया मिशन , लखनऊ , 1387 हि ,) और मुतअः के बाद औलाद पैदा होने से सम्बन्धित मिलता हैः

एक व्यक्ति ने इमाम-ए-रिज़ा (अ ,) से सवाल किया कि अगर कोई व्यक्ति औरत से मुतअः करे इस शर्त पर कि औलाद की इच्छा न करे और फिर औलाद हो जाए तो क्या हुक्म है। हज़रत ने यह सुन कर औलाद के इन्कार से सख्त मना किया और बहुत ज़्यादा अहमियत ज़ाहिर करते हुवे फर्माया कि हाँय। क्या वह औलाद का इन्कार कर देगा।

अर्थात हमेशा के या कुछ समय के निकाह से पैदा होने वाली औलाद में कोई अनतर नहीं है और दोनों को मीरास का हिस्सा बराबर मिलेगा। (देखिए मुतअः और इस्लाम पेज 96) (मुतअः से सम्बन्धित और मालूमात के लिए सैय्यद अल उलमा सैय्यद अली नक़ी नक़वी की किताब मुतअः और इस्लाम को देखा जा सकता है)

80.हम मुतअः क्यों करते हैं , पेज 28, मुतअः और इस्लाम पेज 92

81 व 82. इस्लाम में नारी के विशेष अधिकार पेज 79

83 व 84. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ आयत न , (1) व सूरः-ए-एअराफ आयत न , 189

85.परवर्दिगार-ए-आलम ने मनुष्यों के अलावा भी हर एक की दो क़िस्में नर और मादा को बनाया है। क़ुर्आन में मिलता हैः

और यह कि वही नर व मादा दो तरह (के जानदार) नुत्फे (वीर्य) से जब (रहिम , गर्भ में) डाला जाता है पैदा करता है। (सूरः-ए-नज्म आयत न. 45-46)

86. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-तारिक़ आयत न. ( 5) से 7

87. यह बात बीसवीं सदी के आखिर में इल्मी तौर पर मालूम हो गयी है कि मर्द की रीढ़ की हड्डी में और औरत के सीने के ऊपरी हड्डियों में मनी बनती है। जिस को कुर्आन-ए-करीम ने सदियों पहले बताया था (तक़ी अली आबदी) (देखिए हयात-ए-इन्सान के छः मरहले , सैय्यद जवाद अल हुसैनी आले अली अल शाहरूदी अनुवादक प्रोफेसर अली हसनैन शेफतः पेज 22, जामेअ तालीमाते इस्लामी कराँची , पाकिस्तान , 1989 ई.।

88.औरत और मर्द की , माँ के गर्भाशय में जमा हुई इस मनी को कुर्आन-ए-करीम नुतफः-ए-मखलूत कहता है , इसी से मनुष्य की पैदाईश का तात्पर्य भी मालूम हो जाता है। मिलता हैः

हमने मनुष्य को मखलूत नुत्फे से पैदा किया कि उसे आज़मायें (उसकी परीक्षा लें) तो हमने उसे सुनता देखता बनाया। क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-दहर आयत न. 2

89. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-कयामः आयत न , (37) से ( 39) यहाँ याद रखना चाहिए कि औरत का गर्भवती होना और बच्चा जनना (पैदा करना) बिना खुदा की मर्ज़ी (इच्छा) के सम्भव नहीं।

क़ुर्आन-ए-करीम में हैः

और खुदा ने ही तुम लोंगों को पैदा (पहले पहल) मिट्टी से पैदा किया फिर नुत्फे से फिर तुम को जोड़ा (नर व मादा) बनाया और बिना उसके इल्म (ज्ञान) (और इजाज़त) के न कोई औरत गर्भवती होती है और न बच्चा जनती है (पैदा करती है) (सूरः-ए-फातिर आयत न. 11)

90. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-मोमिनून आयत न. 12 से 14

91 से 95. तहज़ीब अल इस्लाम पेज ( 100) से 103

96. दीवान परवीन ऍतिसामी पेज 187, तेहरान. 1962 ई. (जदीद फारसी कवित्री परवीन ऍतिसामी से सम्बन्धित कुछ मालूमात को इन पंक्तियों के लिखने वाले ने अपनी दो किताबों , परवीन ऍतिसामी हालात और शायरी , नामी प्रेस लखनऊ 1988 ई. में जमा किया है। (तक़ी अली आबदी)

97. विस्तार के लिए देखिए दोशिज़ः पहला भाग पेज 9, (13) व ( 14) और क़ानूने मुबाशरत पेज ( 23) से ( 25) (मुख्य रूप से पहचान के लिए)

98 से 100. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 103

101. तहज़ीब अल इस्लाम पेज ( 103) व ( 104) व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तक़ीन पेज 307

102. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 104

103. सुन्दर औरत खूबसूरत औरत की पहचान से सम्बन्धित लोक शास्त्रों मे मिलता है किः

1. औरत के चार अंग सफेद होने चाहिए (अ) दाँत (ब) नाखुन (स) चेहरा (द) आँख की सफेदी

2. औरत की चार चीज़े सुर्ख (लाल) होनी चाहिए (अ) ज़बान (ब) गाल (स) होंठ (द) मसूढ़े

3. औरत की चार चीज़े गोल होनी चाहिए (अ) सर (ब) बाज़ू (स) ऐङियाँ (द) उगँलियों के पोरवे

4. औरत की चार चीज़े लम्बी होनी चाहिए (अ) कद (ब) पलकें (स) सर के बाल (द) उगँलियां

5. औरत की चार चीज़े मोटी होनी चाहिए (अ) चूतड़ (ब) गर्दन (स) रान (द) हिप

6. औरत की चार चीज़े छोटी होनी चाहिए (अ) सर (ब) कमर (स) बग़ल (द) मुँह

7. औरत की चार चीज़े चौड़ी होनी चाहिए (अ) शाना (ब) आँख (स) सीना (द) माथा

8. औरत की चार चीज़े तंग होनी चाहिए (अ) नाफ (ब) नाक के सुराख (स) मुँह का दहाना (द) शर्मगाह (योनि)

9. औरत की चार चीज़े छोटी होनी चाहिए (अ) हाँथ (ब) पाँव (स) रहिम (द) छाती

10. औरत की चार चीज़े नर्म होनी चाहिए (अ) सर के बाल (ब) पेट (स) हाँथ (द) शर्मगाह। (कानून-ए-मुबाशिरत पेज ( 76) व ( 77) से नक़्ल)

104 से 106. तहज़ीब अल इस्लाम पेज ( 104) व 105

107. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-नूर आयत न , 31

108. नहजुल बलाग़ा इर्शाद न , (234) पेज 877

109. दोशीज़ः पहला भाग पेज ( 15) – (16) व क़ानून-ए-मुबाशरत पेज 19-20

110. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-नूर आयत न. 30

111. जब कि अधुनिक युग में मर्द अपने शरीर के अधिक से अधिक हिस्सों को वस्त्रों से छुपाने की कोशिश कर रहा है और इसके विपरीत औरत शरीर के अधिक से अधिक हिस्सों (मुख्य रूप से सीना , पीठ , रान , पिंडली , बाज़ू , बग़ल आदि) को प्रकट करके आधी नंगी हो रही हैं ----- जो एक अच्छी औरत की निशानी नहीं समझी जा सकती। (तक़ी अली आबदी)

112. नक़ाब या चादर केवल मुसलमानों मे प्रचलित है और घूँघट मुसलमान औरतों के अलावा गैर मुसलमान औरतों मे भी। जो इस बात की दलील है कि प्राकृतिक तौर पर औरत अपनी निगाहों का पर्दः करना चाहती है। तक़ी अली आबदी

अच्छी और बुरी औरतों की पहचान के लिए –दोशिज़ः किताब के लेखक ने लिखा है किः

1. ज़्यादा सोच विचार और बनाव सिंगार में लगी रहने वाली , पर्दः कम करने वाली , झूठ बोलने वाली , पति से लड़ने झगड़ने वाली औरत मशकूक (संदिगद्ध) है।

2. दायें बायें घूरने , बिना वजह हसनें , ग़ैर मर्दों को अपना बाप , भाई बनाने वाली की इज़्ज़त देर तक बाक़ी रहनी मुश्किल है।

3. ग़ैर मर्दों के सामने हसने बोलने वाली औरत को अकेला नही छोड़ना चाहिए।

4. जो औरत शर्म और हया करने वाली , मुँह और शरीर को छुपाने वाली , अपनी औलाद से बहुत मुहब्बत रखती हो वह शरीफ और पाक दामन होती है। (देखिए दोशिज़ः पहला भाग , पेज ( 9) व 10)

113. औरतों और मर्दों के अंगों के लिए देखिए , दोशिज़ः पहला भाग , पेज ( 70) से ( 74) और पेज ( 135) से ( 140)।

114 से 116. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-बक़रः आयत न , 221, सूरः-ए-नूर आयत न , (3) और सूरः-ए-रूम आयत न. 21

117. रसूल और तयदाद इज़दिवाज , सैय्यद मुस्तफा हसन रिज़वी , पेज ( 13) इमामिया मिशन , लखनऊ 1386 हि.

118. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ आयत न , 3

119. यहाँ एक से मुराद एक मर्द के नुत्फे से है क्योंकि कभी कभी औरत एक मर्द से मिलाप कर के नौ महीने में दो बच्चे को दे दिया करती है। इस तरह दो एक मिसालें दो से ज़्यादा बच्चों की भी मिल जाती है। (तक़ी अली आबदी)

120. रसूल और तयदादे इज़दवाज़ पेज न , (18) व 19

121 व 122. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ आयत न. ( 3) व 23

123. तहज़ीब अल इस्लाम पेज न. ( 107) व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तक़ीन भाग चार पेज 308, 1314 हि.

124. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-मोमिन आयत न. 60

125. सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम , आदाबे जवाज पेज ( 12) व ( 13) से नक़्ल व मसाएले ज़िन्दगी पेज ( 176) से नक़्ल.

126. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-नूर आयत न. ( 33) और पाकदामनी इख्तियार करने के लिए रसूले खुदा ने इर्शाद फ़र्मायाः

जिस किसी को निकाह करने की क़ुव्वत न हो वह रोज़े रखे , रोज़ा उनके लिए गुनाहों से बचाओ है। (देखिए सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम आदाबे ज़वाज पेज ( 13) से नक्ल।

जो व्यक्ति किसी ग़ैर औरत को देखे और उसको वह औरत अच्छी मालूम हो बाद में उसके वह व्यक्ति अपनी औरत से इस ख्याल से मैथुन , संभोग करे कि यह औरत और वह औरत एक जैसी है और शैतान को अपने दिल मे रास्ता न दे और अगर औरत न रखता हो तो दो रकअत नमाज़ पढ़े और हम्दे खुदा (खुदा की वन्दना करे) बजा लाए और सलवात (दुरूद) मुहम्मद (स.) व आले मुहम्मद (अ) पर भेजे , उसके बाद खुदा से सवाल करे कि खुदा वन्दा उसे औरत अता करे तो खुदा उसे औरत या वह चीज़ देगा कि उसको हराम से बचाए रखे। (देखिए तोहफाऐ अहमदिया , दूसरा भाग , सैय्यद अबू अल हसन पेज 141-142, बुसताने मुर्तज़वी , 1305 हि.

127. नहजुल बलाग़ा , इर्शाद न , 399, पेज 931

128. तौज़ीह अल मसाएल , खूई मसअलः न. 2420 पेज 283, व तौज़ीह अस मसाएल , गुलपाएगानी , मसअलः न 2384 पेज 386

129. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-कसस आयत न. 27

130. क़ुर्आन-ए-करीम में हराम औरतों की सूची इस तरह गिनाई गयी है।

मुसलमानो। निम्नलिखित औरतें तुम पर हराम की गयी हैं। तुम्हारी माँयें (दादी नानी आदि सब) और तुम्हारी बेटीयाँ (पोतियाँ नवासियाँ आदि) और तुम्हारी बहनें और तुम्हारी फूफीयाँ और खालायें और भतीजीयाँ और भानजीयाँ और तुम्हारी वह माँयें जिन्होने तुम को दुध पिलाया है और तुम्हारी दूध शरीक (रिज़ाई) बहनें और तुम्हारी बीवीयों की माँयें (सास) और उन औरतों (के पेट) से (पैदा हुई हैं) जिन से तुम संभोग कर चुके हो। हाँ अगर तुम ने उन बीवीयों से (केवल निकाह किया हो) संभोग न किया हो तो (उन माँओं की) लड़कियों से (निकाह करने में) तुम पर कुछ गुनाह नही और तुम्हारे वीर्य से पैदा हुए लड़कों (पोतों , नवासों आदि) की बीवीयाँ (बहूऐं) और दो बहनो से एक साथ निकाह करना मगर जो कुछ जो हो चुका (वह माफ है) बेशक खुदा बड़ा बखशने वाला और महरबान है। (देखिए सूरः-ए-निसाअ आयत न , 23)

और क़ुर्आन ही ने हलाल औरतों की सूची इस तरह गिनाई है।

और हमनें तुम्हारे वास्ते तुम्हारी उन बीवीयों को हलाल कर दिया है जिन को तुम महर दे चुके हो और तुम्हारी उन लौङियों को भी जो खुदा ने तुम को (बिना लड़े भिड़े) माले गनीमत (युद्ध में शत्रु से लूटा हुआ माल) में अता की है और तुम्हारे चाचा की बेटीयाँ और तुम्हारे मामू की बेटीयाँ और तुम्हारी खालाओं की बेटीयाँ (देखिए सूरः- अहज़ाब आयत न. 50)

क़ुर्आन ने हराम और हलाल के साथ शादी अर्थात रिश्ते के चयन का कुल्लिया (व्यापक नियम) इस तरह बयान किया हैः

गंदी औरत गंदे मर्दों के लिए (मुनासिब) हैं और गंदे मर्द गंदी औरत के लिए और पाक औरत पाक मर्दों के लिए (उचित) हैं और पाक मर्द पाक औरतों के लिए। लोग जो कुछ भी इनके सम्बन्ध में बाका करते हैं उससे यह लोग पूरी तरह अलग है इन ही (पाक लोगों के लिए (आखिरत) में बख्शिश (मोक्ष) है और इज़्ज़त की रोज़ी। (देखिए सूरः-नूर आयत न. 26)

131. क़ुर्आन-ए-करीम में है किः

तुम्हारी बीवीयों (वास्तव में) तुम्हारी खेती हैं तो तुम अपनी खेती में जिस तरह चाहो आओ। (देखिए सूरः-ए-बक़रा आयत न. 233)

132 व 133. हयाते इन्सान के छः मरहले , पेज 25

134. तरबीयते औलाद पेज 19

135. यहाँ इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि अगर किसी ने किसी औरत से निकाह का पैगाम भेजा है तो उसमें दूसरे को पैग़ाम नहीं देना चाहिए क्योंकि यह मनुष्ता , शराफत और हमदर्दी से गीरी हुई बूरी हरकत है जिसे इस्लामी शरीअत बिल्कुल पसन्द नही करती। इसीलिए रसूले खुदा ने इर्शाद फ़र्मायाः

कोई शख्स अपने भाई के पैग़ाम पर पैग़ाम न दे जब तक कि पहला शख्स अपना पैग़ाम छोड़ न दे या दूसरे को पैग़ाम देने की आज्ञा दे। (देखिए सहीह बुखारी , आदाबे ज़वाज , पेज ( 23) से नक़्ल।

136. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ आयत न. ( 23) में लिखी हराम औरतों की सूची के अनुसार हराम मर्दों की सूची में बाप , दादा , नाना , पोता , नवासा , भाई , चाचा , मामूँ , भतीजा भानजा आदि आयेंगे जो औरतों पर हराम हैं। और क़ुर्आने क़रीम के सूराऐ अहज़ाब आयत न. ( 50) में वर्णित हलाल औरतों की मदद से हलाल मर्दों की सूची में चाचा का बेटा , फूफी का बेटा , मामूँ का बेटा , खाला का बेटा , जिसने महर दे कर निकाह किया हो आदि आयेंगे जो औरत पर हलाल हैं। (तक़ी अली आबदी)

137. अच्छे मर्दों के लिए हज़रत अली (अ) ने इर्शाद फर्माया है किः

मर्दों की खूबीयाँ हालात के बदलाव में मालूम होती हैं। (देखिए नहजुल बलाग़ा इर्शाद न. ( 217) पेज 874)

138. रसूले खुदा (स) ने इर्शाद फर्माया किः

अपनी बेटी अपने बराबर वाले और अपने जैसे को दो और अपने बराबर और अपने जैसे की बेटी लो और नुत्फे (वीर्य) के लिए ऍसी औरत तलाश करो जो उसके लिए मुनासिब (उचित) हो ताकि उससे लाएक़ (अच्छी) औलाद पैदा हो। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम , पेज 103)

139. इस्लाम में नारी के विशेष अधिकार , पेज 83-84

140. तिरमाज़ी , निसाई , आदाबे ज़वाज , पेज ( 21) से नक़्ल

141. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 107

142. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ आयत न. 115

143. कोक शास्त्र से सम्बन्धित संस्कृत किताबों में भी चाँद के महीने (अर्थात वैशाख , ज्येशठ , आषाढ़ , श्रवण , भादृपद , आश्विन , कार्तिक , मार्ग शीर्ष , पौष , माघ , फाल्गुन , और चैत्न) और तारीख के असरात (प्रभाव) औरत मर्द और बच्चे पर बताये गये हैं। (तक़ी अली आबदी)

144. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 107

145. चाँद के महीने के वह आखिरी तीन दिन जिसमें चाँद नहीं निकलता।

146. चाँद के महीने के वह आखिरी दिन जिसमें चाँद बुर्जे अकरब (व्रश्चिक राशि) में रहता है। इसके मालूम करने का तरीका यह है कि पहले यह मालूम करे के सूरज किस बुर्ज में है इस तरह से ईसवी कलैन्डर की तारीख तक जनवरी से तमाम दिनों की गिनती करके उस में दस को बढ़ायें। फिर हर बुर्ज में दिनों को बाटें (अर्थात सभी बुर्जों को दिनों में इस तरह बाटें।) जदी (मकर राशि) 29. दलव (कुंभ राशि) 30, हूत (मीन राशि) 30, हमल (मेष राशि) 31, सौर (वृष राशि) 31, जौज़ा (मिथुन राशि) 32, सर्तान (कर्क राशि) 31, असद (सिंह राशि) 30, संबुल (कन्या राशि) 31, मीज़ान (तुला राशि) 30, अक्रब (वृश्चिक राशि) 30, और क़ौस (धनु राशि) 29। फिर आखिर में बचे हुवे या पूरे पूरे बटे हुए दिनों से सूरज का बुर्ज मालूम हो जाएगा। उदाहरणर्थात यह मालूम करना है कि ( 14) नवम्बर 1993 ई. ( 28 जमादी अल अव्वल 1414 हि.) को सूरज किस बुर्ज (राशि) में है तो पहली जनवरी से ( 14) नवम्बर तक सभी दिनों की गिनती करें।

जनवरी ( 31) + फरवरी 28+ मार्च ( 31) + अप्रैल ( 30) + मई ( 31) + जून ( 30) + जुलाई ( 31) + अगस्त ( 31) + सितम्बर ( 30) + अक्तूबर ( 31) + नवम्बर ( 14) = (318) दिन इसमें ( 10) को बढ़ाओ ( 318) + (10) = (328) अब ( 328) को राशियों के दिनों में बाँटा , जदी ( 29) + दलव ( 30) + हूत ( 30) + हमल ( 31) + सौर 31+ जौज़ा ( 32) + सर्तान ( 31) + असद ( 31) + संबुलः ( 31) + मीज़ान ( 30) = (306) इसके बाद ( 22) दिन ( 328 – (306) = 22) बचे जो बुर्जे अक्रब (वृश्चिक राशि) में आयें। अतः मालूम हुआ कि सूरज बुर्जे अक्रब में है।

और चाँद के महीने की तारीख ( 28 जमादी अल अव्वल. ( 14) नवम्बर) को ( 13) से गुणा देकर उसमें ( 26) को बढ़ाया। फिर बुर्जे अक्रब (जिस में ( 14) नवम्बर को सूरज है) से हर राशि में 30-30 बाटते चले गए तो आखिरी राशि चाँद का बुर्ज (की राशि) होगा। इस तरह चाँद की तारीखों को ( 13) से गुणा करने पर 28*13=364, (26) को बाढ़ाने पर 364+26 = (39) अब बुर्जे अक्रब (जिसमें ( 14) नवम्बर को सूरज है) से 30-30 हर बुर्ज में बाटने पर अक्रब 30+ कौस 30+ जदी 30+ दवल 30+ हूत 30+ हमल 30+ सौर 30+ जौज़ा 30+ सर्तान 30+ असद 30+ संबुल 30+ मीज़ान 30+ अक्रब ( 30) = (390) पूरे पूरे बुर्जे अक्रब में बट गये अतः मालूम हुआ कि ( 14) नवम्बर ( 28) जामादी अल अव्वल को क़मर दर अक्रब (अर्थात चाँद बुर्जे अक्रब में) हुआ।

क़ुर्आने करीम में हैः

बहुत बा बरकत है वह खुदा जिसने आसमान पर बुर्ज बनाए और उन बुर्जों में सूरज का चिराग और जगमगाता चाँद बनाया। (सूराऐ फुर्क़ान आयत न. 61)

आठवां आसमान जिसे शरीअत में कुर्सी कहते हैं उसकी खबुर्ज़े की काशों के से बारह टुकड़े बराबर के हैं उन्ही को बुर्ज कहते हैं। इन में हर एक सूरज तो एक महीना रहता है और चाँद एक ही महीनें में सब बुर्जों को तय करता और हर बुर्ज में ढ़ाई दिन रहता है (देखिए क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-हजर आयत न. ( 16) का हाशिया) और इन्ही सूरज और चाँद के बुरूज से क़मर दर अक्रब निकाला जाता है जो लगभग दो दिन पाँच घन्टे रहता है। और दो क़मर दर अक्रब के बीच लगभग ( 25) दिन ( 10) घंटे का वकफा रहता है यह घंटा , मिनट , सेकेंड मे रहता है जिसके निकालने का तरीक़ा नुजूम (ज्योतिष) की किताबों (जैसे देखिए मुहम्मद वाजिद अली शाह के काल में लिखी गई किताब अनवार उस नुजूम , सैय्यद मुहम्मद हसन , उर्फ मीर ग़ुलाम हुसैन दहलवी , पेज 29-30, 37-38 आदि , हसन प्रिंटिंग प्रेस , हीवेट रोड , लखनऊ) आसानी के लिए जनतरीयों को भी देखा जा सकता है। (तक़ी अली आबदी)

147 से 149. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 107

150. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 107, निकाह के रात में होने से सम्बन्धित अल्लामा सैय्यद ज़ीशान हैदर जवादी ने लिखा है किः

अक़्द का रात में होना उस सुहावने माहौल की तरफ इशारा है जिस में सेक्सी लगाव के बहुत से कारण खुद से पैदा हो जाते हैं और इन्सान एक दीमागी सुकून महसूस करने लगता है। (देखिए खानदान और इन्सान , अल्लामा ज़ीशान हैदर जवादी , पेज 46, मज़हबी दुनियां 19, कोहलन टोला , इलाहाबाद , 1983 ई ,

151 व 152. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 107

153. आधुनिक युग में दहेज देने या लेने के खिलाफ एहतिजाज किया जाता है। जबकि पैग़मबर ए इस्लाम (स.) ने अपनी बेटी फातमः ज़हरा (स) को दहेज दिया जो इस बात की दलील है कि आप अपनी बेटी को नये घर का इन्तिज़ाम (रख रखाव) के लिए दहेज दे सकते हैं। लेकिन उसे इस बात का ज़रूर ध्यान रखना चाहिए कि रसूल ए खुदा (स) ने अपनी बेटी का दहेज तय्यार करने के लिए लड़के (अर्थात हज़रत अली (अ)) से महर की माँग की और उसी से दहेज तैय्यार किया। अतः हर बाप को अपनी बेटी का दहेज तैय्यार करने के लिए चाहिए की वह उसके होने वाले पति से महर की माँग करे और उसी से ज़िन्दगी की ज़रूरतों का सामान , अर्थात दहेज तैय्यार करे। (तक़ी अली आबदी)

154. वसाएल अल शीअः भाग ( 14) पेज 78, मसाएल ए ज़िन्दगी पेज ( 189) से ( 190) से नक्ल.

155. हदीस मे आया है कि पाँच सौ को इस लिए तय किया गया है कि परवर्दिगार ने अपने ऊपर वाजिब करार दिया है कि जो मोमिन अल्लाहो अकबर सौ बार , सौ बार ला इलाहा इललल्लाह , सौ बार अलहमदो लिल्लाह , सौ बार सुबहान अल्लाह और सौ बार अल्ला हुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद (सब मिला कर पाँच सौ बार) कहेगा और उसके बाद कहेगा अल्लाहुम्मा ज़वविजनी मिनल हूरिल ऍन (अर्थात ऐ अल्लाह मेरा बड़ी बड़ी आँखों वाली हूर से जोड़ा लगा) तो खुदा बड़ी बड़ी आँखों वाली हूर से उसका जोड़ा लगाऐगा और उस मोमिन बन्दे के पढ़े गये पाँच सौ कलमात को महर करार देगा। (देखिए औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तकीन पेज 309)

156. वसाएल अल शीअः भाग ( 14) पेज 78, मसाएल ए ज़िन्दगी पेज ( 190) से नक्ल.

157. तोहफत उल अवाम पेज 428

158 व 159. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-निसाअ , आयत न , (4) व 24

160. आम तौर से शीओं में निकाह के समय खुतबः पढ़ा जाता है जो इमाम ए मुहम्मद ए तक़ी (अ) ने खलीफ़ा मामून रशीद की बेटी उम उल फज़ल के साथ अपने अक्द ए निकाह के मौके पर पढ़ा। (देखिए औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तकीन पेज 309, तहज़ीब अल इस्लाम पेज 108, तोहफत उल अवाम पेज 424, 425, चौदह सितारे , सैय्यद नजमुल हसन करारवी , पेज 382, शीआ बुक ऐजन्सी , इन्साफ प्रेस , लाहौर , 1974 ई. कुछ विद्धानों ने इसी को बेहतर जाना है।

161. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-फुरक़ान , आयत न. 54

162. तहज़ीब अल इस्लाम , पेज 107

163. मिलता है कि रूखसत की रात में रसूल ए खुदा (स) ने अपना खच्चर अशहब नाम का मगाया और एक चादर जो रंग बिरंग के टुकड़ो से जोड कर बनाई गई थी उसके मुँह पर डाल दी। जनाब सलमान ए फारसी को हुक्म दिया कि इसकी लगाम थाम कर चलें। हज़रत फातिमः ज़हरा (स) को हुक्म दिया की उस पर सवार हो जायें और खुद आन हज़रत पीछे पीछे रवाना हुवे। रास्ते में फ़रिश्तों की आवाज़ आन हज़रत (स) के मुबारक कान में पहुँची देखा की जिबरईल व मीकाईल (अ) एक एक हज़ार फ़रिश्तों को साथ लेकर आयें हैं और उन्होंने अर्ज़ की कि खुदा ने हमको हज़रत ज़हरी (स) की विदाई की मुबारकबाद के लिए भेजा है। उस वक़्त से जिबरईल व मीकाईल अपने साथ के फ़रिश्तों के साथ अल्लाहो अकबर कहते रहे। इसी वजह से दुल्हन की रूखसती (विदाई) के समय अल्लाहो अकबर कहना सुन्नत है। (देखिए तहज़ीब उल इस्लाम पेज 113)

164 व 165. तहज़ीब उल इस्लाम पेज 117

166. तहज़ीब उल इस्लाम पेज 116, व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तकीन पेज 312

167. तहज़ीब अल इस्लाम , पेज ( 111) व तोहफ ए अहमदया भाग ( 2) पेज 139

168. वर्तमान युग में अधिकतर लोग दुल्हन के पैर केवल रस्म समझ कर धुलाते हैं न की रसूल अल्लाह (स) की वसीयत समझ कर खुदा करे रसूल अल्लाह (स) की वसीयत समझकर पैर धुलायें और घर के कोने कोने में पानी छिड़क कर खैर व बरकत (लाभ) का अन्दाज़ः लगायें। आमीन (तक़ी अली आबदी)

169. जब कि वर्तमान युग मे दुल्हन के वुजूद को शौहर...... दहेज , अच्छे की तलाश न पसन्दीदः आदि के हरकत के कारण खत्म कर देते हैं या दुल्हन खुद कुछ खटपट , अपनी पसन्द के अनुसार जीवन व्यतीत न होने , दहेज , अच्छे का चयन न होने आदि के कारण अपने वुजूद को खत्म कर लेती है , इस तरह की खबरें रोज़ पढ़ने और सुनने को मिलती हैं जिसको खत्म करना हर औरत और मर्द का अपनी अपनी जगह कर्तव्य है। (तक़ी अली आबदी)

170. जबकि आम तौर से देखने में यह आता है कि दूल्हा तो खामोशी से दुल्हन के आँचल पर दो रकअत नमाज़ पढ़ लेता है लेकिन दुल्हन से नहीं कह पाता की नमाज़ पढ़ो..... मुमकिन है कि किसी मौके पर दुल्हन शरई सबब (मज़हबी कारण अर्थात मासिक खून आने) की वजह से नमाज़ न पढ़ सकी हो और बाद में धीरे धीरे उसी को रस्म बना लिया गया हो। अतः चाहिए कि इस रस्म को तोड़े और इमाम ए मुहम्मद ए बाक़िर (अ) की शिक्षा के अनुसार दूल्हा और दुल्हन दोनों नमाज़ पढ़े और अपने लिए खैर व बरकत की दुआऐं करें। यही इस्लाम मज़हब की बुनियादी शिक्षा भी है। (तक़ी अली आबदी)

171. तहज़ीब उल इस्लाम , पेज ( 116) व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तक़ीन , पेज 313

172 से 175. तहज़ीब अल इस्लाम पेज ( 116) से 118

176. आदाबे ज़वाज पेज 60, सहीह बुखारी , सुनन तिरमीज़ी अबू दाऊद , आदाबे इज़दवाज , सैय्यद अहमद उरूज कादरी , पेज 9, इदारः ए शहादत ए हक़ , नई दिल्ली 1986 ई.)

177 व 178. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 118.

179. मिलता है कि पैग़मबर ए इस्लाम (स) जनाबे फातिमः ज़हरा (अ) और हज़रत अली (अ) के घर गये और पानी मगाया , उससे वज़ू किया और वज़ू का पानी हज़रत अली (अ) पर डाल कर यह दुआ किः

अल्लाहुम्मा बारिक फीहेमा व बारिक लहोमा फी बेनाए हेमा (अर्थात ए खुदा इन के सम्बन्धों में बरत नाज़िल फर्मा और इनकी सुहाग रात को इनके लिए मुबारक बना) (देखिए इब्ने सऊद , तिबरानी , इब्ने असाकर , आदाबे इज़दवाज पेज ( 16) से नक़्ल)

181 व 182. तहज़ीब अल इस्लाम , पेज ( 107) व 114

182 व 183. देखिए तौज़ीहु अल मसाएल (उर्दू) सैय्यद अबुल अल कासिम अल खुई या आकाए सैय्यद मुहम्मद रज़ा गुलपाएगानी क्रमशः पेज ( 283) या पेज 386

184. सहीह मुस्लिम आदाब ए ज़वाज पेज ( 61) व आदाब ए इज़दिवाज पेज 15

185. मसाएल में मिलता है किः

जहाँ भी एक महीना कहा जाए उससे वहाँ महीने की पहली तारीख से लेकर तीसवीं तारीख तक का समय तय नहीं बल्कि खून आना शुरू से लेकर तीस दिन खत्म होने तक के समय से मुराद है। (देखिए तौज़ीहु अल मसाएल (उर्दू) सैय्यद अबुल अल कासिम अल खुई पेज ( 57) आकाए सैय्यद मुहम्मद रज़ा गुलपाएगानी पेज 90-91.

186 व 187. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-बकरा आयत न. ( 222) व हाशिया

188. आदाब ए ज़वाज , पेज 64

189. मसाएल में मिलता है किः

मासिक खून आने वाली औरत के साथ संभोग के अलावा बाकी हर तरह की छेड़ छाड़ , चुमा चाटी जाएज़ है। (देखिए तौज़ीह अल मसाएल , सैय्यद अबुल अल कासिम अल खुई पेज 58)

190. मसाएल में मिलता है किः

अगर औरत के मासिक खून आने के दिनों को तीन हिस्सों में बाँटा जाए और शौहर पहले हिस्से में औरत के आगे के हिस्सें में मैथुन करे तो मुसतहब बल्कि अहतियात यह है कि चने के अठठारह दानों के बराबर सोना कफ्फारे के तौर पर फकीर को दे और अगर दूसरे हिस्से में मैथुन करे तो नौ दानों के बराबर और अगर तीसरे हिस्से में मैथुन करे तो साढे चार दानों के बराबर दे। जैसे एक औरत को छः दिन हैज़ आता है तो अगर शौहर पहले दो दिनों की रात में मैथुन करे तो मुसतहिब बल्कि अहतियात यह है कि अठठारह दोने को देना पड़ेगा और तीसरे चौथे दिन या रात में हो तो नौ दाने और पाँचवे या छटे दिन या रात में साढ़े चार दाने देने पड़ेगें। (देखिए तौज़ीहुल मसाएल (उर्दू) मुहम्मद रज़ा गुलपाएगानी पेज ( 79) व अल खूई पेज 50)

191. शर्मगाह योनि में मैथुन करना औरत के लिए हराम है और मर्द के लिए भी अगरचे (चाहे) केवल खतने की जगह हो और वीर्य भी न निकले बल्कि अहतियात वाजिब यह है कि खतने वाली जगह से कम जगह भी दाखिल (प्रविष्ट) न करे। और हैज़ वाली औरत के पीछे के हिस्से में भी मैथुन न करें। (चूँकि सख्त (बहुत ज़्यादा) मक्रूह है। (देखिए तौज़ीहुल मसाएल (उर्दू) गुलपाएगानी पेज 79)

192. मसनद अहमद , 444/2, 479, अबू दाऊद भाग ( 1) किताब अल निकाह , बाब फी जेमाअ अल निकाह , जिमाअ के आदाब , सुल्तान अहमद इस्लामी पेज 28-29 अल कलम प्रेस एण्ड पब्लीकेशन्स , नई दिल्ली , 1991 ई. से नक़्ल।.

193. तिरमिज़ी भाग 1, अबवाब अल रिज़ाअ , जिमाअ के आदाब पेज. ( 250) से नक़्ल।

194. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-बकरा आयत न. 222

195.तौज़ीह अल मसाएल , खुई पेज ( 51) व गुलपाएगानी पेज 80-81

196. तौज़ीह अल मसाएल खूई पेज 58, जबकि आकाए गुलपाएगानी ने कफ्फारः अदा करने को अहतियाते मुसतहिब बताया है। मिलता है किः

निफास की हालत में औरत को तलाक़ देना बातिल है और उससे संभोग करना हराम है और अगर शौहर उस से संभोग कर ले तो अहतियाते मुसतहिब यह है कि जिस तरह अहकामे हैज़ में बयान हो चुका है कफ्फारः अदा करे। (देखिए तौज़ीह अल मसाएल (उर्दू) आकाए गुलपाएगानी पेज 92)

197. तौज़ीह अल मसाएल (उर्दू) खूई , पेज 172

198. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-बकरा आयत न. 187

199 व 200. तौज़ीह अल मसाएल (उर्दू) खूई पेज 190

201. दस्तूर ए हज , मसाएल ए हज मुताबिक फतवाए अबू अल कासिम अल खूई , रूह अल्लाह खुमैनी , अनुवादक सैय्यद मुहम्मद सालेह रिज़वी , पेज 39, निज़ामी प्रेस , लखनऊ , 1980 ई.।

202. यहाँ रहे कि अहले सुन्नत के यहाँ तवाफ ए निसाअ नहीं है। (तक़ी अली आबदी)

203 व 204. दस्तूर ए हज , पेज ( 82) व 83

205. देखिए हयात ए इन्सान के छः मरहले पेज ( 32) से 36

206. इमाम ए जाफ़र ए सादिक (अ.) ने इर्शाद फ़र्माया किः जिस समय सूरज निकलता है या निकलने के बाद अभी पूरी तरह रौशन न हुआ हो बल्कि थोड़ी लाली ली हो और इसी तरह डूबने से पहले जब रौशनी कम हो गई हो और लाली लिए हुवे हो या डूबता हो , उन वक़्तों में मुजनिब (अर्थात वीर्य निकलना) होना मक्रूह है (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज ( 111) व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तकीन पेज 313

207. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 115

208. यही वजह है कि चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण के मौकों पर गर्भवती औरतों को विभिन्न तरह की हिदायतें की जाती हैं। जैसे कुछ काटे नहीं , जागती रहे आदि। क्योंकि इन मौकों पर गर्भवती औरत के किये गये कार्य का असर गर्भ में बढ़ रहे बच्चे पर ज़रूर पड़ता है। (तकी अली आबदी)

209. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 108

210. वही पेज ( 109) व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तकीन में यही हदीस इमाम ए जाफर ए सादिक (अ.) से नक्ल है (देखिए पेज 313)

211. तहज़ीब अल इस्लाम , पेज 109

212. तोहफत अल अवाम , पेज 430

213. तहज़ीब अल इस्लाम , पेज 113

214. बातें न करने से सम्बन्धित ही इमाम ए जाफऱ ए सादिक (अ) ने इर्शाद फर्माया किः

अगर संभोग के समय बात किया जाए तो ख़ौफ है कि बच्चा गूँगा पैदा हो और अगर उस हालत में मर्द औरत की तरफ देखे तो खौफ है कि बच्चा अन्धा पैदा हो। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 109)

215. जहाँ एक मौके पर इमाम ए जाफर ए सादिक (अ) ने संभोग के समय औरत की योनि की तरफ न देखने की बात कही है। वहीं दूसरी जगह मिलता है किः

संभोग के समय औरत की योनि की ओर देखनें में कोई हर्ज नहीं। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 109)

216. यहाँ कोठे से मुराद आसमान के नीचे खुली छत है न कि कोठे का कमरा। (तकी अली आबदी)

217. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 111-112

218 व 219. वही पेज 110, व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तकीन ( 313) – (314) लेकिन अगर कनीज़ से संभोग कर रहा है तो कोई हर्ज नही। हदीस में है किः

लौड़ी से ऐसी हालत में संभोग करना कि उस मकान में कोई व्यक्ति हो जो उनको देखे या उन की आवाज़ सुने कुछ हर्ज नहीं (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम , पेज 110)

220 से 222. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 110, 115

223. हयात ए इन्सान के छः मरहले पेज 38

224 व 225. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 115-116, 110-111

226. कानून ए मुबाशरत पेज 12

227. तहज़ीब अल इस्लाम , पेज 112-113 व तोहफः ए अहमदया भाग ( 2) पेज 141

228 व 229. तहज़ीब अल इस्लाम पेज ( 114) व ( 109) व औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अल मुत्तकीन पेज 314

230. याद रखना चाहिए कि इमाम ए जाफर ए सादिक (अ) से संभोग से सम्बन्धित निम्नलिखित बातें भी पूछी गयी कि

(अ) अगर संभोग के समय औरत या मर्द के मुँह से कपड़ा हट जाए तो कैसा। फर्माया कुछ हर्ज नहीं।

(ब) अगर कोई संभोग करने की हालत में अपनी औरत का बोसा ले (प्यार करे) तो कैसा। फर्माया कुछ हर्ज नही। (इस तरह करने से सेक्सी स्वाद व आनन्द काफी हद तक बढ़ जाता है। जिसका अहसास (अनुभव) औरत और मर्द दोनों को होता है।) (तकी अली आबदी)

(स) अगर कोई व्यक्ति अपनी औरत को नंगा कर के देखे तो कैसा। फर्माया न देखने में स्वाद व आनन्द ज़्यादा है।

(द) क्या पानी में संभोग कर सकते हैं। फर्माया कोई हर्ज नहीं।

और इमाम रज़ा (अ) से पूछा गया कि हम्माम (स्नानग्रह) में संभोग कर सकते हैं। फर्माया कुछ हर्ज नहीं। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम , पेज ( 109) व 110)

231. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 110

232. तौज़ीह अल मसाएल (उर्दू) मुहम्मद रज़ा गुलपाएगानी पेज ( 391) और अबू अल कालिस अल खूई के अमलये मे मिलता है कि

मर्द को अपनी जवान और विवाहित बीवी से चार महीनें में एक बार ज़रूर संभोग करना चाहिए। (देखिए तौज़ीह अल मसाएल अल खूई पेज 287)

233. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 122

234 व 235. क़ुर्आन-ए-करीम सूरः-ए-आले इमरान , आयत न. 38 व सूराऐ वस्साफफात , आयत न. ( 100)

236. तोहफ ए अहमदया भाग ( 2) पेज 139

237. सेक्स के विशेषज्ञों (माहिरीन ए जिनसीयात) ने औरत की सेक्सी इच्छा बढ़ाने और भड़काने के लिए चाँद की तारीखों के हिसाब से अलग अलग हस्सास (संवेदन शील) अंगों को बताया है जिस को सहलाने और मसलने से औरत बहुत जल्दी काबू हो कर संभोग के लिए तैय्यार हो जाती है और मर्द अपनी पूरी मर्दानगी के साथ संभोग करके खुद भी स्वाद व आनन्द उठाता है और बीवी को भी स्वाद व आनन्द पहुँचता है। उसी मौके पर और खुद भी स्वाद व आनन्द लेती है और मर्द को भी मज़े देती है। खुद भी वीर्यपात होती है और मर्द को भी पूरे प्यार से वीर्यपात कराती है और हमेशा सेक्सी मिलाप की इच्छा करती रहती है।

चाँद की तारीखों के हिसाब से औरत के संवदेन शील (हस्सास) अंगों का चार्ट इस तरह तैय्यार किया गया है।

बायें तरफ

दायें तरफ

तारीख अंग

तारीख अंग

पांवों का अंगूठा

तलवे (कफे पा)

पिंडिली

घुटने के नीचे

9. छाती

5. रान

10. गर्दन

11. होंठ

12. चेहरा

13. कान के नीचे

14. पेशानी (माथा)

15. सर

16. सर

17. पेशानी

18. कान के नीचे

19. चेहरा

20. मुँह और होंठ

6. कमर

7. योनि (शर्गगाह)

8. नाफ़

21. होंठ

10. गर्दन

22. होंठ

23. नाफ

24. योनि

25. कमर

26. रान

27. घुटने के नीचे

28. पींड़ली

29 तलवे

30. अंगूठा

(देखिए कानूने मुबाशिरत , पेज 33-34)

238. औरत पर छाने से सम्बन्धित क़ुर्आन में हैः तो जब मर्द औरत के ऊपर छा जाता है (अर्थात संभोग करता है) तो बीवी एक हल्के से गर्भ से गर्भावती हो जाती है। (क़ुर्आने करीम सूराऐ एअराफ आयत न. 186)

या

तुम उनके लिए लिबास हो और वह तुम्हारे लिए लिबास है।

(देखिए क़ुर्आने करीम सूराऐ बकरा आयत न. 187)

अर्थात संभोग के समय मर्द और औरत एक दूसरे से इस तरह लिपट और चिमट जाते हैं जिस तरह से लिबास (वस्त्र) बदन (शरीर) से चिमटा रहता है इसके अतिरिक्त दोनों एक दूसरे के मुख्य अंगों को संभोग की हालत में लिबास ही की तरह छिपा लेते हैं शायद इसीलिए दोनों को एक दूसरे का लिबास कहा जाता है।

239. हयात ए इन्सान के छः मरहले पेज 44

240 से 243. क़ुर्आने करीम सूराऐ एअराफ आयत न , 189, सूराऐ नज्म आयत न. 45-46 सूराऐ कयामत आयत न , (37) और सूराऐ वाकेआ आयत न , 58-59

244. सहीह बुखारी भाग ( 1) किताब अल ग़ुस्ल जुमाअ के आदाब पेज ( 20) से नक़्ल

245. क़ुर्आने करीम सूराऐ बकरा आयत न. 223

246. सेक्स तकनीक डा केवल धैर्य , पेज 199, शमअ बुक डिपो , नई दिल्ली , जिमाअ के आदाब ने नक़्ल

247. देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 112

248. देखिए जिमाअ के आदाब , पेज 61

249. वर्तमान युग में कुछ जगह ज़रूर यह देखने में आया है कि अगर मर्द पहली रात (अर्थात सुहाग रात) में अपनी नई नवेली दुल्हन से किसी वजह से संभोग नही करता तो लड़की के घर वाले (मुख्य रूप से माँ) मर्द के नामर्द (नपुन्सक) होने का यकीन करके विभिन्न प्रकार की बातें करने लगते है जबकि उन्हे दो चार दिन हालात को देख कर ही फैसला करना चाहिए न कि पहले ही दिन। (तक़ी अली आबदी)

250. सहीह बुखारी भाग ( 1) किताब अल ग़ुस्ल जिमाअ के आदाब पेज ( 20) से नक़्ल

251 व 252. क़ुर्आने करीम सूराऐ निसाअ आयत न. ( 43) व सूराऐ माएदा आयत न. 6

253. औराद अल मोमिनीन व वज़ाएफ अस मुत्तकीन पेज 317

254. जिमाअ के आदाब पेज 15

255. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 110

256. सहीह मुस्लिम भाग ( 4) किताब अल निकाह जिमाअ के आदाब पेज ( 54) से नक्ल व आदाब ए ज़वाज पेज ( 70) और आदाब ए इज़दिवाज पेज ( 15) से नक्ल

257. क़ुर्आने करीम सूराऐ वाकेआ आयत न. 58-59

258. फुरूअ अल काफी भाग ( 6) पेज 14, हयात ए इन्सान के छः मरहले पेज ( 48) -49 से नक्ल

259 व 260. क़ुर्आने करीम सूराऐ शोअरा आयत न. 49-50 व हाशिया मौलाना फर्मान अली.

261 व 262. क़ुर्आने करीम सूराऐ नहल आयत न , 57-59 व सूरः ज़खरफ आयत न. 16-17

263. तरबीयत ए औलाद पेज ( 39) (औलाद अर्थात संतान की शिक्षा पद्धति से सम्बन्धित विस्तार से मालूमात के लिए यह किताब देखी जा सकती है)

264. तरबीयत ए औलाद पेज 41-42

265. मुसतदरक भाग ( 2) पेज 550, खानदान का अख्लाक पेज ( 612) से नक्ल

266. बिहार अल अनवार भाग ( 103) पेज ( 254) खानदान का अख्लाक पेज ( 24) से नक्ल

267. क़ुर्आने करीम सूराऐ बकरा आयत न , 228

268. इसी सम्बन्ध में रसूल ए खुदा (स) ने बताया कि मर्द का औरत से यह कहना की मुझे तुझ से मुहब्बत है उसके दिल से कभी नही निकलता।

(देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज ( 118) व शाफी भाग ( 2) पेज 138, खानदान का अख्लाक पेज ( 166) से नक्ल)

और इमाम ए जाफर सादिक़ (अ) ने बीवी से मुहब्बत करने वाले व्यकति को अपना दोस्त बताया है।

जो व्यक्ति अपनी बीवी से मुहब्बत को ज़्यादा ज़ाहिर करता है वह हमारे दोस्तों में से है।

(देखिए खानदान का अख्लाक पेज 166)

269. रसूल ए खुदा न (स) ने इर्शाद फर्मायाः

नेक और उचकोटि के लोग अपनी बीवीयों की इज़्ज़त करते है और कम अक्ल और नीच लोग उनकी तौहीन (बेइज़्ज़ती) करते हैं

(देखिए खानदान का अख्लाक पेज न. 169)

और इमाम ए जाफर ए सादिक़ (अ) ने फर्माया जो व्यक्ति शादी करे उसे चाहिए की अपनी बीवी की इज़्ज़त और आदर करे। (देखिए बिहार अल अनवार भाग ( 103) पेज 224, खानदान का अख्लाक पेज 170)

270. रसूल ए खुदा (स) ने इर्शाद फर्मायाः

तुम में सब से बेहतर वह व्यक्ति है जो अपनी औरत के साथ सब से बेहतर व्यवहार करे। फर्माया कि हर व्यतक्ति के बीवी और बच्चे उसके कैदी हैं और खुदा सब से ज़्यादा उस व्यक्ति को दोस्त रखता है जो अपने कैदीयों के साथ अच्छा व्यवहार करता है। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 221)

271. हदीस में आया है किः

औरत का हक मर्द पर यह है कि उसे पेट भर खाना खिलाए आव्यश्कता अनुसार कपड़े दे और अगर जान बुझ कर उससे कोई ग़लती हो जाए तो मांफ करे। (तहज़ीब अल इस्लाम पेज 120)

और हज़रत अली (अ) ने यहाँ तक कहा है किः

हर हाल में औरत से निबाह करे। उनसे अच्छी हंस हंस के बातें करो शायद इस तरीके से उनके आमाल नेक हो जाए (देखिए बिहार अल अनवार भाग ( 103) पेज 223, खानदान का अख्लाक पेज ( 198) से नक्ल)

इसी तरह इमाम ए ज़ैनुल आबेदीन (अ) ने इर्शाद फर्मायाः तुम पर औरत का हक़ यह है कि उसके साथ मेहरबानी करो क्योंकि वह तुम्हारी देख भाल में है उसके खाने कपड़े का इन्तिज़ाम करो , उसकी ग़लतीयों को माँफ करो। (देखिए बिहार अल अनवार भाग ( 47) पेज 5, खानदान का अख्लाक पेज ( 198) से नक्ल)

इसी लिए रसूल ए खुदा (स) ने इर्शाद फर्मायाः

औरत की मिसाल पसली की हड्डी सी है कि अगर उसके हाल पर रहने दोगे तो फायदः पाओगे और अगर सीधा करना चाहोगे तो सम्भव है कि वह टूट जाऐ। (संक्षिपत यह है कि ज़रा ज़रा सी अप्रसन्ताओं पर सब्र करो।) (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 122)

272. इमाम ए जाफर ए सादिक (अ) ने इर्शाद फर्माया कि

जिस शहर में किसी व्यक्ति की पत्नी मौजूद हो वह उस शहर में रात को किसी दूसरे व्यक्ति के मकान में सोये और अपनी बीवी के पास न आये तो यह बात उस मकान मालिक की हलाकत (मर जाने) का कारण होगा। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 121,)

273. कुर्आन ए करीम में मिलता है कि जो लोग अपनी बीवी के पास जाने से कसम खाऐं उन के लिए चार महीने की मोहलत (ढ़ील) है। (देखिए क़ुर्आने करीम सूराऐ बकरा आयत न. 227)

274. हज़रत अली (अ) ने इमाम ए हसन (अ) को वसीयत फर्माया कि देखो अपनी बातों मे हसी की बात का ज़िक्र तक न लाना चाहे झूठ कहने वाले (रावी) की गर्दन पर की हैसीयत से हो खबरदार औरतों से सलह व मशवरा न लेना क्योंकि उनकी अक्ल कमज़ोर और इरादः (ढ़ीला) होता है और उन्हें पर्दें मे पाबन्द कर के उनकी आँखों पर पहरा बैठा दो क्योंकि मर्द जितना सख्त होगा उनकी इज़्ज़त उतनी बची रहेगी (महफूज़ रहेगी) और उनका घर से निकलना उतना खतरनाक नहीं जितना किसी गैर भरोसेमंद को ग़ैर महरम को उनके घरों मे जाने देना है और उनकी ताक़त सामथ्ये भर कोशिश करें की तुम्हारे अलावा किसी (ग़ैर महरम , गैर मर्द) से उनकी जान पहचान न होने पाये। और औरतों को उनके नीजी कामों के अलावा दूसरे कामों में मनमानी मत करने दो औरत एक फूल है कारफार्म (काम करने वाली) नहीं उसकी वाजिबी इज़्ज़त से आगे न बढ़ो और उसे इतना सर न चड़ाओ कि वह अपने गैर की सिफारिश करने लगे और देखो औरत पर बिना वजह शक न करना क्योंकि यह (शक) नेक चलन औरत को बदचलनी और पाक दामन को बुराईयों की दावत देती है (देखिए नहज उल बलाग़ा , बकतूब न. ( 31) पेज 740, (उर्दू) अनुवाद शिया जनरल बुक एजेन्सी , इन्साफ प्रेस लाहौर , 1974 ई. व तहज़ीब अल इस्लाम पेज 121, औरत से सम्बन्धित और विस्तार के लिए देखा जा सकता है लेखक का लेख ,

औरत नहज अल बलागा की रौशनी में पेज 27-35 मासिक बाब ए शहर ए इल्म आल इण्ङिया अली मिशन , फैज़ाबाद , वर्ष 3. क्रमाक ( 100) जून जुलाई 1989 ई ,)

औरत से मशवरे (सलाह) से सम्बन्धित ही मिलता है किः

रसूल अल्लाह जब जंगों का इरादः करते थे तो पहले अपनी औरतों से सलाह लिया करते थे और जो कुछ वह राय देती थी उसके उलटा अम्र फर्माते थे (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 121-122)

इसीलिए हज़रत अली (अ) ने कहा किः

जिस व्यक्ति के कामों की सलाह देने वाली औरत हो वह मलऊन है। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 121)

275. रसूल खुदा (स) से नक्ल है किः

औरतों को कोठो और खिड़कियों मे जगह मत दो और उनको कोई चीज़ लिखना न सिखाओ और सूराऐ युसूफ की शिक्षा उन्हें न दो उन्हें चरखा काटना सिखाओ और सूराऐ नूर की शिक्षा दो (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 121)

276. मालूम होना चाहिए की रसूल खुदा (स) ने औरतों को ज़ीन की सवारी से मना फर्माया है और यह भी फर्माया है कि तुम नेक कामों में भी औरतों की पैरवी न करो ऍसा न हो की उनकी लालच बढ़ जाए और फिर वह तुम्हें बुराई की तरफ ले जाऐं उन्में से जो बुरी हैं उनसे पनाह मांगों और जो नेक हैं उनसे भी पनाह मागों (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 121)

277. औरतों की इताअत (आज्ञा पालन) से सम्बन्धित रसूल ए खुदा (स) ने फर्मायाः

जो व्यक्ति अपनी औरत की आज्ञा का पालन करेगा खुदा उसे औंधे मुँह नर्क (जहनन्म) डालेगा लोंगो ने कहा या रसूल अल्लाह इस आज्ञा पालन से कौन सी आज्ञा का पालन मुराद (तात्पर्य) है फर्माया औरत उस से हम्मामों (स्नानग्रहो) में जाने की और शादीयों की ईद गाहों की सैर की या मैदान ए जंग के लिए जाने की आज्ञा (इजाज़त) मांगे और वह उसको इजाज़त दे या घर से बाहर फेंके जाने के लिए अच्छे कपड़े माँगे और या उसे ला दे। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 121)

278. इमाम ए मुहम्मद ए बाकिर (अ) ने फर्माया किः

अपना राज़ (भेद) उनसे न कहो और तुम्हारे अज़ीज़ो व रिश्तेदारों (परिवार वालों) के बारे में जो कुछ वह कहे उनकी एक न सुनो। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 121)

279. हज़रत इमाम अली (अ) ने हज़रक इमाम हसन (अ) को वसियत करते हुए कहा किः

देखो औरत पर बिना वजह शक को ज़ाहिर न करना क्योंकि यह (शक) नेक चलन औरत को बद चलनी और पाक दामन को बुराई की दावत देती है (देखिए नहज उल बलाग़ा (उर्दू अनुवाद) मकतूब ( 31) पेज 740)

280 व 281. माकारिम अल अख्लाक पेज ( 225) व 248, खानदान का अख्लाक पेज 270-271 से नक्ल।

282. वसाएल ए शीअः भाग ( 14) पेज 109, खानदान का अख्लाक पेज ( 226) से नक्ल

283. किताब दर शामोश ए खुशबख्ती पेज 142, खानदान का अख्लाक पेज ( 24) से नक्ल।

284. इमाम मुहम्मद ए बाकिर से नक्ल है किः

एक औरत हज़रत रसूल अल्लाह (स) की खिदमत मे आई (पास आई) और कहा या रसूलल्लाह (स) शौहर (पति) का हक (ज़ौजा) पत्नी पर क्या है फर्माया ज़रूरी है कि पति की आज्ञा का पालन करे किसी समय और किसी हाल में उसके आदेश को रद न करे उसके घर से और उसके माल में से बिना उसकी अनुमति (इजाज़त) के सदका तक न दे (दान तक न करे) बिना उसके अनुमति के सुन्नती ज़ा न रखे जिस समय वह संभोग का इरादः करे इन्कार न करे चाहे ऊँट की पीठ पर ही क्यों सवार न हो पति के मकान से बिना उसके अनुमति के बाहर न निकले अगर बिना अनुमति के बाहर निकल गई तो जह तक पलट कर न आऐगी सभी आसमान और ज़मीन के फ़रिश्ते और सभी गज़ब (देवा प्रकोप औक क्रोध) और रहमत (दया) के फरिश्ते उस पर लानत किये जायेंगे फिर उसने कहा कि या रसूलल्लाह (स) मर्द पर किसका हक सब से बहा है फर्माया बाप का कहा औरत पर सब से बड़ा हक किसका है फर्माया पति का कहा पति पर मेरा हक उतना नहीं है जितना उसका मुझपर फर्माया नहीं तेरे और उसके हक का प्रतिशत एक और सौ का भी नहीं है उस औरत ने कहा की या रसूलल्लाह (स) उसी खुदा की कसम जिस ने आपको हक ज़ाहिर करने के लिए नबी बनाया मै हरगिज़ हरगिज़ (कभी भी) निकाह न करूँगी।

इसी तरह

एक औरत हज़रत रसूल अल्लाह (स) की खिदमत मे आई (पास आई) और कहा औरत पर जो हक शौहर (पति) के होते हैं उनके बारे में सवाल किया आहज़रत ने इर्शाद फर्माया कि वह हक इतने हैं कि बयान में नही आ सकते उनमें से एक ये है कि औरत बिना पति के अनुमति के सुन्नती रोज़े न रखे बिना उसकी अनुमति के घर से बाहर न निकले अच्छी से अच्छी खूशबू से अपने आप को मोअत्तर करे (खुशबू अपने लगाए) अच्छे से अच्छे कपड़े पहने और जहाँ तक हो सके अपने आप को बना सवार के उसके सामने आए और अगर वह संभोग का इरादः करे तो वह इन्कार न करे।(देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज ( 118) व 119)

और रसूल ए खुदा ने इर्शाद फर्माया किः

जिस औरत को उसका पति संभोग के लिए बुलाए और यह इतनी देर कर दे कि पति सो जाए तो जब तक वह जाग न जाएगा फरिश्तें बराबर उस पर लानत किये जायेंगें। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 120)

और हर औरत को यह याद रखना चाहिए किः

औरत की बिना पति के अनुमति के सेवाए निम्नलिखित चीज़ो के किसी और काम में अपना नीजी माल खर्च नहीं कर सकती अर्थात हज , ज़कात , माँ बाप के साथ अच्छा सुलूक (देख रेख) और अपने परेशान व गरीब परिवार जनो और गरीब की मदद (सहायता) करना। (देखिए तहज़ीब अल इस्लाम पेज 120)

285 व 286. तहज़ीब अल इस्लाम पेज 119

287. शाफी भाग ( 1) पेज 177, खानदान का अख्लाक पेज ( 176) से नक्ल

288. बिहार अल अनवार भाग ( 71) पेज 389, खानदान का अख्लाक पेज ( 35) से नक्ल.

289. शाफी भाग ( 1) पेज 176, खानदान का अख्लाक पेज ( 176) से नक्ल

290. कुर्आन ए करीम सूराऐ नहल आयत न , 30-31

291. देखने में दीवाने और पागल लगने वाले लोग (सम्भव है यह लोग सेक्सी इच्छा की पूर्ति न हो पाने पर ही दीवाने और पागल हो जाते हों।) भी अपने में सेक्सी इच्छा महसूस को अनुभूत करते हैं जिसका सुबूत उनकी हरकतों या बोल चाल से मिल जाया करता है।

इसी लखनऊ शहर में एक ( 18) या ( 20) साल का बिल्कुल नंगा या केवल कभी कभी केवल कमीज़ पहने हुवे एक नौजवान लड़का दिखाई देता है जो चलती हुई सड़क पर रास्ता चलते अपना लिंग हाथ में लेने कभी कभी हस्त मैथुन करके वीर्य निकालने और वीर्य को अपने हाथ पर देखनें में बहुत ज़्यादा खुश होता है (यह लड़का हुसैना बाद के ईलाकों में अकसर दिखाई देता है।) और साठ से सत्तर साल का एक बूढ़ा अपनी कमर पर तहबन्द हिलाता देखा जा सकता है जिस ज़बान पर हर वक्त यह शब्द

तसवीर बनाता हूँ तसवीर नहीं बनती

रहते हैं अर्थात उसके दिमाग में कोई खास तसवीर ही रहती है (इस व्यक्ति को सब्ज़ी मंण्ङी चौक के ईलाके मे देखा जा सकता है)

या इसी तरह के और उदाहरण तलाश किये जा सकते हैं। (तकी अली आबदी)

292 से 295. नहज अल बलागा खुतबः न 202, 81, (221) और ( 115) पेज 609, 318, (874) और 466.

296. जंग ए जमल (एक इस्लामी युद्ध का नाम जमल) के बाद औरतों की बुराई करते हुवे हज़रत अली (अ) ने एक खुतबे में इर्शाद फर्मायाः

ए गिरोह मरदुम (जंग समूह) औरतों के ईमान हिस्से की कमी और अकल ए कमज़ोर (कम) होती हैं।

ईमान में कमी का सबूत यह है कि वह हैज़ (मासिक धर्म का खून आने) के दिनों में नमाज़ और रोज़ा अदा करने के काबिल नही रहती।

अक्ल कम होने का सबूत यह है कि दो औरतों की गवाही एक मर्द के बराबर तय पायी है और

हिस्से में कमी का सुबूत यह है किः मीरास में उनका हिस्सा मर्दों के मुकाबले (की तुलना में) में आधा होता है

अतः बुरी औरतों से डरते रहो और अच्छी औरतों से भी डरते रहा करो अच्छी बातों में भी उनकी बातों को न माना करो ताकि बुरी बातों में सलाह देने की उन्हे हिम्मत ही न हो (देखिए नहज अल बलागा , खुतबः न. ( 80) पेज 316)

लेकिन यह खुदा का प्रबन्ध है कि उनके बच्चे के लिए पहली पाठशला उनकी माँ (अर्थात औरत जो कम अक्ल कही गई) की गोद को बनाया गया है। जो बच्चों की शिक्षा दिक्षा (तालीम व तरबीयत) की वह मुख्य कड़ी है जिस के द्वारा बच्चा तरक्की की आखिरी मंज़िल तक आसानी से पहुच सकता है लेकिन यह उसी वक्त सम्भव है जब औरत अपनी अक्ल का सही प्रयोग करे क्योंकि औरत चीज़ को कर डालने पर कुदरत रखती है।

इस्लाम ने इसी (कम अक्ल) औरत अर्थात मां की अज़मत व प्रतीशठा को बताते हुए कहा

माँओं के पैरों के नीचे जनन्त (स्वर्ग) है (देखिए नहज अल फसाहत ज़न अज़ दीदगाह ए नहज उल बलागा , फातिमा आलाई रहमानी , पेज ( 250) साज़मान ए तबलीगात ए इस्लामी क़ुम. ईरान से नक्ल।

297. कुर्आन ए करीम में मर्दों के ताकतवर होने से सम्बन्धित मिलता हैः

मर्दों का औरतों पर काबू है (देखिए कुर्आन ए करीम सूराऐ निसाअ आयत न. 34

298 व 299. नहज उल बलागा इर्शाद न ( 238) व ( 61) पेज ( 878) व 830

300. मुहज्जा अल बैज़ा भाग ( 2) पेज 72, खानदान का अख्लाक पेज ( 34) से नक्ल

301.कुर्आन ए करीम सूराऐ तग़ाबन आयत न. 14

302. शायद इसीलिए शरीयत ने मर्दों को दुश्मन औरतों से बचाने के लिए तलाक देने और दुश्मन बच्चों से बचने के लिए आक (अर्थात अपनी संतान को बहिशकृत) करने का हक दे रखा हो। (बच्चों को आक करने का हक औरत अर्थात माँ को भी है)

303. याद रखना चाहिए कि जो मर्द अपनी औरत और बच्चों पर अत्याचार करे वह मोमिन नहीं गैर मोमिन है और यकीनी तौर पर (वास्तव में) नर्क का हकदार है। (तकी अली आबदी)

304 से 307. कुर्आन ए करीम सूराऐ फुर्कान आयत न ( 74) से 76, सूराऐ मोमिन आयत न , 7-8 सूराऐ ज़खरूफ आयत न. ( 68) से ( 72) और सूराऐ यासीन आयत न 55-56

308. मुहज्जा अल बैज़ा भाग ( 2) पेज 72, खानदान का अख्लाक पेज ( 34) से नक्ल

309 से 317. कुर्आन ए करीम सूराऐ दुखान आयत न , 54, सूराऐ आले इमरान आयत न , 14-17 सूराऐ बकरः आयत न. ( 25) सूराऐ तूर आयत न. ( 17) – 21, सूराऐ वाकेआ आयत न 22-30, सूराऐ रहमान आयत न , 70-77, सूराऐ तूर आयत न. 24-25, सूराऐ वाकेआ आयत न. 17-18, सूराऐ बकरा आयत न , 177.