बहाईयत साम्राज्यवाद की सेवक संस्था

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बहाईयत साम्राज्यवाद की सेवक संस्था कैटिगिरी: धर्म और सम्प्रदाय

बहाईयत साम्राज्यवाद की सेवक संस्था

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

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बहाईयत साम्राज्यवाद की सेवक संस्था

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

बहाईयत और अमरीका

दूसरे विश्व युध्द के बाद नवनिर्मित-विस्तार वादी शक्ति अमरीका वास्तव में ब्रिटिश साम्राज्य और यहूदियों को बढ़ावा देने मे सहायक सिध्द हुई। खूँखार ब्रिटेन ने बहुत से स्थानों पर कमज़ोर जातियों को दबाने के लिए जिस अन्तर्राष्ट्रीय यहूदी आन्दोलन की सहायता की थी। वह उनका शिष्य है। और विश्व में उग्रवाद और खूंखारी करने का ठेका आजकल उसी को दे रखा है। इस समय बड़ी शक्ति होने के दो दावेदार है। अमरीका और इसराईल। दुनिया भर की पूंजी अमरीका में ,और अमरीका की सारी पूंजी यहूदियों के अधिकार में हैं। यही लोग फ्री मेंशनी संस्थाओं के बड़े बड़े पदों पर नियुक्त है। अन्तर्राष्ट्रीय साम्राज्यवाद का नमूना अमरीका है। कठिनाईयों का सामना करने वाले गरीब मजदूरों के विरुध्द योजनाएं अमरीका से बनकर आती हैं। और इन योजनाओं को कार्य रुप देने मे इसराईल आगे है। यह बात भी कही जा सकती है कि बहाईयों ने भी साम्राज्यवाद से अपना समर्थन प्रकट करने मे एक क्षण भी बर्बाद न होने दिया और अपनी इस सरकार सेवा को लोगों के सामने प्रकट भी कर चुके हैं।

अमरीका के राष्ट्रपति रीगन ने कानूनी तौर पर एक बयान मैं बहाईयों का समर्थन करते हुए ईरान में बहाईयत की हालत पर मगरमच्छ के आँसू बहाए और उनसे हमदर्दी प्रकट की। ईरानी क्रान्ति के धार्मिक नेता आयतुल्ला खुमैनी ने 28 मई 1983 के एक बयान में कहा-

“ बहाईयो के अमरीकी जासूस होने पर अगर हमारे पास कोई सबूत न भी होता तो अमरीकी राष्ट्रपति रीगन का बहाईयों के प्रति समर्थन हमारे लिए पूरी दलील है। ”

यह सबूत बताते हैं कि बहाईयत विस्तारवाद की कार्य प्रणाली है। और साथ ही बहाईयत अमेरीका की विश्वसनीय सेना तथा संस्था है। अत: जहां जहां साम्राज्यवाद से युध्द जारी है वहां वहां बहाईयों से निपटना जरुरी है।

कुछ महत्व पूर्ण बातें बहाई कार्यकर्ताओं के विस्तारवादी होने के अतिरिक्त बहाई धार्मिक विश्वासों का फैलाव स्वयं साम्राज्य के लिए लाभदायक है। अगर यह गिरोह अपने ग़लत विश्वासों को किसी भी समाज मे फैला दें तो साम्राज्यवादियों के लिए उस समाज को अपनी संस्कृति मे ढ़ाल देना आसान हो जाता है। क्योकि माहौल बना बनाया मिलता है। इसलिए वह क़ानूनी तौर पर लोगो को अपना अधीन बना लेते हैं। बीसवीं शताब्दी में विस्तारवाद नये नये हथियारों से लैस होकर निकला। न्यू कालोनिजम को मालूम है। कि धार्मिक विश्वास समाज को बनाने और मजबुत करने में बहुत ही असरदार होते हैं क्योकि लोगों कि जिन्दगी से धार्मिक विश्वासों का अलग होना असम्भव है। इसलिए साम्राज्यवादी इस विचार मे रहते हैं कि धार्मिक विश्वासों और उनके फैलाव के सिध्दान्तों को जड़ से हिला दें। फिर साम्राज्य के अन्दर फैले हुए असर को बेकार कर दें। विशेषत: इस्लामी विचारधारा और धार्मिक विश्वास दुनिया के गरीबों को शक्ति और आज़ादी प्रदान करते हैं। और अत्याचार से टक्कर लेने के लिए ताकत और हिम्मत प्रदान करती है। साम्राज्यवादीयों के विचार मे इसका तोड़ आपस मे फूट ड़ालना और धार्मिक विश्वासों को कम करना है। जिससे क्रान्ति फैलाने वाले व्यक्तियों की सक्षमता समाप्त हो जाती है।

धर्म के प्रति विश्वासों को समाप्त कर नए विश्वासों को प्रचलित करना

मेहदवियत या एक मुक्ति देने वाली मानवता का विश्वास अर्थात खुदा की ओर से एक शक्ति का आगमन होगा। जो लोगो को अच्छईयों की ओर प्रेरित करेगा। खुदा की सहायता से लोगों को न्याय दिया जाएगा और संसार मे एक न्यायपूर्ण शासन स्थापित होगा। यह धार्मिक विश्वास आकाश से सम्बन्धित सभी दीन और मज़हब मे पाया जाता है। यह अवश्य है कि इस्लाम मे यह धार्मिक विश्वास भरपूर तरीके से पाया जाता है। अत: न्याय पसन्द और आज़ादी दिलाने वाले दर्शन शास्त्री मनुष्यों ने कमज़ोर और गरीब जनता को सदा अत्याचार से टक्कर लेने पर उभारा है। और उनकी सफलता का विश्वास दिलाया है।और ऐसे ही विश्वासों को भंग करके धर्म पर हमला भी किया जाता हैं। पूंजी पति और अपनी शक्ति से ड़राने वाले धोखेबाज़ इस धार्मिक विश्वास का मज़ाक उड़ाते हैं। और इन विश्वासों से इन्कार करते हैं क्योकि यह धार्मिक विश्वास विस्तारवाद की राह मे सबसे बड़ी रुकावट है। इसलिए फूट ड़ालने वाले गुट फसाद और दंगा भड़काने वाली बाते करते हैं। और नए विश्वासो की सहायता से असली धार्मिक विश्वासो को कमज़ोर करते रहते हैं। उनका विचार है कि अगर एक व्यक्ति मैहदी मौऊद बन बैठे तो कोई खराबी नहीं होगी। ज़ालिम अपने स्थान पर मज़बूत ही रहेगा। कोई उसका विरोधी नहीं होगा। बल्कि “मैहदीं ” साहब भी उनसे टक्कर लेने के बजाए उनकी सहायता करते और आशीर्वाद देने मे भी संकोच न करते। इसके नतीजें में कमज़ोर और बेचारी जनता धार्मिक विश्वासों से बद दिल होती। उनकी आशाओं पर पानी फिर जाता विरोध करने का उत्साह ठंड़ा पड़ जाता और वह हिम्मत हार जाते ; विस्तारवाद को एक नयी शक्ति मिलती।मैहदी साजी की यह चाल विस्तार वाद के लिए लाभदायक सिध्द हुई। उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के मध्य मैहदियों का आगमन आरम्भ हो गया। किन्तु ब्रिटिश उपनिवेश(नौ आबादियात) के अन्तर्गत सोने की चिडिया भारत ,या उसके आस पास वाले देशों मे और उत्तरी अफ्रीका मे भी मेहदवियत के दावेदारों का समर्थन करने वालों में बहाई सबसे प्रसिध्द और शक्तिशाली गुट था। इसलिए बहाई अपने झूठे और बे दलील दावों के साथ साथ कमज़ोर मज़दूर जातियों के लिए सबसे खतरनाक गुट माना जाता है। यह गिरोह विस्तारवाद के लिए रास्ता खोलने और साम्राज्यवाद की सेनाओं के लिए मोर्चे बनाने का कार्य ग्रहण किये हुए है।

बहाई शिक्षा के अंधविश्वासों से उनके धार्मिक विश्वास कमज़ोर होते है , और मनुष्य शंका मे पड़ जाता है। इन्हीं शिक्षाओं के आधार पर हुसैन अली बहा एक दिन इमामे ज़माना(मैहदी मौऊद) बनता है। तो दूसरे दिन आख़िरी नबी होने का दावा करता है। और साथ ही नए धर्म को प्रचलित करता है। कुछ़ दिनो के बाद खुदाई (अल्लाह) का भी दावेदार हो जाता है। उसकी इच्छा यह है कि मानव , धर्म के प्रति विश्वास समाप्त कर बैठे और समाज मे यह प्रचलित हो जाए कि धर्म (मज़हब) बे-बुनियाद चीज़ है। जिस धर्म में अंध विश्वास भरा हो , अच्छ़ा यह है के ऐसे धर्म को छोड़कर बे धर्म रहा जाए।

एक ओर अंध विश्वास वर्णमालाओं का खेल है। जिससे तरह तरह की खुराफात पैदा होते है। पढ़ी लिखी जनता इससे गुमराह होती है। और सीधे साधे लोग इस जाल मे फंस जाते है।

बहाई किताबों में इस प्रकार की निर्रथक और प्रतिकूल बाते जब खुलकर सबके सामने आयीं तो उनके नेताओं ने सभी किताबों और लेखों को छ़ुपा दिया। इसी कारण आज वह किताबें केवल बहाईयों के धर्मगुरुओं के पास मौजूद हैं। इतनी सुरक्षा और बचाव के बावजूद खोज करने वाले विध्दान , ईरानी संसद के पुस्तकालय और मिश्र , लन्दन पैरिस , मास्को , लाहौर के पुस्तकालयों में से थोड़ी बहुत किताबें और लेख प्राप्त कर ही लेते हैं।

बहाईयत ने आरम्भ से प्रतिकूलता का प्रचार इसलिए किया कि धार्मिक विश्वासों को कमज़ोर कर के कुछ नाम निहाद नारे अपनाने के साथ ही आपस मे विरोध , दुश्मनी और एक दूसरे के धार्मिक विश्वासों में दखल आन्दाज़ी न करने का प्रचार शुरु कर दिया जाए। अत: संक्षेप मे कहा जा सकता है कि यह गिरोह धार्मिक विश्वासों का विरोधी होने के साथ साथ न तो मानवता का ही आदर करता है और न ही उसने साम्राज्यवाद के विरुध्द आवाज़ उठाई है।

मानवीय सभ्यता से युध्द

यह पूर्ण रुप से कहा जा सकता है कि जहां भी साम्राज्यवाद का आगमन होता है। वहां से सभ्यता और एक दूसरे के प्रति आदर को निकाल फेंकता है। इससे गुलामी की रस्सियों मे जकड़ी जनता में विरोध की क्षमता कमज़ोर हो जाती है। क्योकि जिस जाति (क़ौम) में सभ्यता का बोलबाला होता और सच्चाई पाकदामनी ,शराफत , गैरत जैसी भावनाएं पाई जाती है तो उसके लिए किसी दुष्ट , दुराचारी के सामने झुकना कठिन होता है। और कोई विस्तारवाद आसानी से उनको अपना ग़ुलाम नहीं बना सकता।

समाज से अगर दुष्टता , दुराचार , शराब खोरी और बैग़ैरती फैलेगी तो उस समाज में सभ्य मनुष्य का जीना कठिन हो जाएगा। साम्राज्यवाद की ग़ुलाम जातियों पर निगाह ड़ालिए तो मालूम होगा कि दुनियाँ के कितने ग़रीब़ और बेसहारा लोग धन दौलत और शक्ति के नीचे दबे हुए हैं। विस्तारवाद के कार्यों का पहला कार्य यह है कि वह समाज मे अय्याशियों के अड्ड़ो , नाइटक्लबों , शराब खानो और दूसरी गंदी चीज़ों के सहारे असभ्यता और दुराचार का प्रचार व प्रचलन करता है। मस्जिदों और धार्मिक स्थलों को बन्द करने के साथ साथ लोगो को इन स्थानों तक जाने से रोकता है। शिक्षा में कभी सुचनाएं और समाचार पहुंचने पर प्रतिबन्ध लगाता है। जिससे जिहालत और असभ्यता लोगों के दिलों मे प्रवेश कर जाती है। अत: यही साम्राज्यवाद के विजयी होने का कारण है। पश्चिमी देशों मे गुंड़ागर्दी और असभ्यता को फैलाने मे बहाईयत आगे आगे है। वह मानवता के कुशल और सभ्य विचारों से युध्द कर रही है। नंगापन , बदमाशी और औरतों को साम्राज्यवादी आज़ादी का समर्थन करने को उक्सा (प्रोत्साहित कर) रही है।

उसका एलान है कि अगर पति पत्नि माता पिता नही बन पाए है तो वह दूसरे मर्द या औरत से सम्भोग द्धारा माता पिता बन सकते हैं।

उनके धर्म मे धात (मनी) का जबरदस्ती निकालना जायज़ है। और इसी तरह से असली , और खूनी रिश्तों को समाप्त करके नामहरम , महरम बन गया है। अब केवल बाप अपनी बेटी से रिश्ता करने के अलावा सभी से अपनी इच्छ़ाओं कि पूर्ति कर सकता है। उनके धर्म मे बलात्कार का जुर्माना 9 तोला है। यह जुर्माना ब्याही और कुँवारी औरत में कोई अन्तर नही रखता। इन सब को देखकर मालूम होता है कि अय्याशी और बलात्कारी को इस धर्म मे पूरी छूट दी गयी है।

जनता की सभ्य राजनीति से सामना

बहाई राजनितिक गुट , राजनीति मे खेलने के बावजूद अपने समर्थकों से कहता है और प्रोपेगंड़ा करता है कि बहाईयत के समर्थक राजनीति से दूर रहें। अब्बास आफन्दी का इस सम्बन्ध में प्रसिध्द वाक्य जो कि बहाईयो का नारा भी समझा जाता है।

“ बहाई होने या न होने का आधर यह है कि जो व्यक्ति राजनीति मे दख़ल देता है। और अपनी औक़ात से बढ़ चढ कर बोलता है। तो इससे सिध्द होता है कि वह बहाई नही है। ” और यही व्यक्ति एक स्थान पर लिखता है। “जनता पर शासन करने वाले शासक का विरोध करने का किसी बहाई का अधिकार नही है। उनकी समस्याओं और कार्यो मे दखल अन्दाज़ी न करें उनको उनके कार्यों और शासन करने पर छोड़ कर उनके दिलों पर नज़र रखें। ”

इन विचारो और विश्वासों का प्रोपेगण्डा करके वास्तव मे विस्तारवाद की सेवा और कार्य प्रणाली को बयान किया गया है। अपने निकटतम साथियों को राजनीतिक अड्डों से हटाकर उनके समाज को अपना गुलाम बनाया है। राजनीतिक नेताओं और सामराजवादी शासकों को तानाशाही करने के लिए पूरी छूट दी गई है। जनता को दुहरी राजनीति मे फँसाया। अत: इस अत्याचार को छुपाने के लिए अपने राजनीतिक कार्य कलापों को गुप्त रखकर दूसरों के विचारों से पीछा छुड़ाया है। दीन और मज़हब के नाम पर विस्तारवाद की प्रसन्नता अर्जित की है।

दूसरे शब्दो मे बहाईयों की राजनीति यह है कि शासनिक कार्यों मे दख़ल न दिया जाए और शासन की सहायता करने को राजनीतिक कानून बनाया जाए।

(समाप्त)

1. इससे मुराद वह सभ्यता नही है जो आजकल अधिकतर मुस्लमानों के अन्तर्गत प्रचलित है। क्योकि आज के युग का अधिकतर मुस्लमान सामाजिक सभ्यता , इस्लामी शिक्षा , क़ौम परस्ती तथा पुर्व पश्चिम के विचारों का एक समूह है। जिसे इस्तेमार ने फेलाया है। इसलिए जिन विशेषताओं को हमने ब्यान किया है वह इस्लामी सभ्यता की मानवीय क्रान्तिकारी तथा वास्सविक विशेषताएं है।

प्राचीन काल से लेकर आज तक साम्राज्यवादियों को यह कोशिश रही है कि यह वास्तविक इस्लामी सभ्यता मुसलमनों के अन्दर जड़ न पकड़ने पाए

2. किताब “नुक़ततुल-क़ाफ़ ” पेज न. 99-107 लेखक मिर्ज़ा जानी का शानी प्रकाशन-ब्रेललाइड़न हालैण्ड 1910 ई.।

स्वयं अली मोहम्मद शीराज़ी अपनी किताब “अहसनुल क़सस ” सुरह युसफ की तफसीर मे इस बात को मानता है। और मिर्ज़ा हुसैन अली ने भी अपनी किताब “इकान ” मे इस बात की तरफ इशारा किया है। पृष्ठ सं. 51, प्रकाशक मिश्र 1923 ई.

3. “तलखीसे-तारीखें-नाबील ” पृष्ठ स. 63 लेखक मोहम्मद नबील ज़रन्दी , अर्बी से फारसी अनुवाद (अशराक़ खाबरी)

प्रकाशित तेहरान 1946 – अलक़ वाकेबुद दुर्रिया भाग- 1, पृष्ठ सं. 31, लेखक अब्दुल हुसैन आवारा , प्रकाशित मिश्र 1923

“ कश्फुल ग़ता ” गन्जीनए-हुदुदे-अहकाम ,” “नफहाते-मुश्कबार ” “अय्यामें-तिसअह ” , “रहीक़े-मखदुम ” , “कामुसे-तौकीए-मनीअ ” , “असरारुल-आसार खुसुसी ” , “ज़हुरुल हक़ ” , “नज़रे इजमीली-बे-दयानते बहाई ” , “दरसे-नहुम इखलाक ” इन सभी किताबों को स्वयं बहाईयों ने प्रकाशित किया है।

4. “हश्त-बहिश्त ” पृष्ठ ए. 276 मिर्ज़ा अहमद रुही , और आग़ाखान किरमानी (लेखक) प्रकाशित तेहरान , “तलखीसे-तारीखे-नबील ज़रन्दी ” पृष्ठ सं. 66, “रोज़ तुस्सफा नासिरी ” पृष्ठ सं. 31 भाग 1. लेखक मिर्ज़ा रज़ा कुली खां हिदायत , प्रका. तेहरान।

5. अलकोकबे दुर्रिया भाग- 1,पृष्ठ सं. 34 मिस्र

6. अली मोहम्मद शीराज़ी ने अपनी किताब “तफसीरे-युसुफ ” में अपने दोवों को लिखित रुप मे प्रकाशित किया। “तफसीरे-सुरह-बक़र ” , “रिसाला बैनुल हरमैन ” , “मतालेउल अनवार ” , “रहीक़े मखतुम ” , “जहुरुल हक़ ” , मे भी यह बात बयान की गयी है।

7-8. “नुक़तुल क़ाफ ” पृष्ठ सं. 151, व 212 लेखक अली मोहम्मद शीराज़ी मकातीब पृष्ठ सं. 266, भाग- 2 लेखक अब्बस आफन्दी , मिस्र “मफावेज़ात ” पृष्ठ सं. 124 लेखक अब्बास आफन्दी हालैण्ड़ 1908.

9. “लोहे-हैकलुद्दीन ” पृष्ठ सं. 5 लेखक अली मोहम्मद शीराज़ी “ बदीअ ” लेखक मिर्ज़ा हुसैन ,“तारिखे-सदरुस्सदुर ” पृष्ठ सं. 207

10. “तलखीसे तारीखे नबील ज़रन्दी ” पृष्ठ सं. 138,“रौज़तुस्सफा नासिरी ” पृष्ठ सं. 311, भाग 10, इनशेआब दर बहाईयत पृष्ठ सं. 70 लेखक इसमाईल राईन , प्रकाशित तेहरान 1978.

11. “मक़ाला शख्सी सय्याह ” पृष्ठ सं. 22 अब्बास आफन्दी , तेहरान 1962 “नुक़ततुल क़ाफ ” पृष्ठ सं. 133, “कश्फल ग़ता ” पृ सं. 202-204 “कर्ने-बदी ” भाग 1 पृष्ठ सं. 423 लेखक शौक़ी आफन्दी “रौज़तुस्सफा नासिरी ” पृ.सं. 423 भाग- 10 “नसिखुततवारीख ” पृष्ठ 13. भाग 3, लेखक मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी तेहरान-

12. “कश्फुलग़ता ” पृष्ठ सं. 204, “इनशआब दर बहाईयत ” पृष्ठ सं. 74, “रौज़तुस्सफा नासिरी ” , “नासिखुततवारीख ” , “तलख़ीसे तारीख़े नबील ” , “अलकवाकेबुद्रदुर्रिया ” , “मक़ालाए शख्सी सय्याह ” इत्यादि मे भी जिन पृष्ठो पर तबरेज़ मे बाब के तोबा नामे का वर्णन किया गया है वहीं पर इन बातों की तरफ भी इशारा किया गया है और इसी प्रकार एड़वर्ड ब्राउन ने “मवाद तहक़ीक दरबारहे मज़हबें बाब ” मे पृष्ठ सं. 54 पर इस बात की ओर इशारा किया गया है।

13. पिछ़ला हवाला

14. “तारीखे- रिजाले-ईरान ” भाग- 4 पृष्ठ सं. 162 लेखक मौहदी बामदाद प्रकाशित तेहरान। “तलख़ीसे तारीख नैबील ज़रन्दी ” , पृष्ठ सं. 196 इसी प्रकार मोहम्मद अली शीराज़ी के जीवन परिचय से सम्बन्धित सभी हवालों में असफहान के शासक की ओर से समर्थन का वर्णन किया गया है।

15. नमुने के तौर पर उस समय के रुसी राजदुत की रिपोर्ट देते हुए लिखते है “बहुत अच्छ़ी बात है कि बाबियों ने इस्लाम के धार्मिक नेताओं के विरुध विरोध प्रकट किया है ” । “शोरिश-बाबियान दर ईरान ” भाग 30 पृष्ठ सं. 143-159 प्रकाशक रुसी कल्चरल सेन्टर मास्को।

“ नक़तुल काफ़ ” के लेखक ने पृष्ठ सं. 266 पर विदेशी राजदुतों की ओर से अली मोहम्मद शीराज़ी को समर्थन देने का वर्णन है।

साम्राज्यवादी शक्तियो की ओर से बाबियों को समर्थन यह स्वयं एक पुर्ण परिच्छ़ेद है (फ़स्ल) जिसको हमें प्रिन्स वाल्गोर की रिपोर्ट “इनशआबदर बहाईयत ” मे वर्णित किया है।

16. “नुक़ततुल-काफ ” पृष्ठ सं. 233

17. बाबियो के आपात काल से सम्बन्धित सभी किताबों और इतिहास में इस उपद्रव के बयान किया गया है।

18. “इनशेआब दर बहाईयत ” पृष्ठ सं. 38, ईरान में ब्रिटिश राजदुत द्धारा अपने विदेश मंत्रालय को भेजी गयी रिपोर्ट का अनुवाद। ब्रिटिश के सरकारी रिकार्ड आफिस से हवाला-

19. “क़र्न-बदीअ ” , भाग- 1 पृष्ठ सं. 338, भाग 2, पृष्ठ सं. 41 “इनशेआब दर बहाईयत ” पृष्ठ सं. 106, तलख़ीसे-तारीख़े नबील ज़रन्दी पृष्ठ सं. 627, “बहाउल्ला व असरेजदीद ” पृष्ठ सं. 44 लेखक ड़ाक्टर असलमन्त , प्रकाश-अमाफरत हीफा इसराईल 1932 “रेसाला-अय्यामे तिसआ ” पृष्ठ सं. 387, “ इशराक़ात ” पृष्ठ सं. 353 लेखक मिर्ज़ा हुसैन अली। “अलकवाकेबुद दुर्रिया ” पृष्ठ सं. 234

20. पिछ़ला हवाला मिर्ज़ा हुसैन अली की गिरफ्तारी और दुसरे वर्णन.

21. मसाबीहे-हिदायत भाग- 2 पृष्ठ सं. 282 लेखक अज़ीजुल्लाह सुलेमानी प्रकाशक , लुजनए मिल्ली प्रकाशन तेहरान.

इस तरह सरकारी किताबों और प्रकाशनों मे भी इश्क़बाद रुस मे बहाईयों के धार्मिक स्थलों का ब्यान किया गया है।

22. मिर्ज़ा हुसैन अली की किताब “मुबीन ” मे लौह का मतन पृष्ठ सं. 76 पर मौजुद है। और किताब “क़र्ने बदीअ ” भागा- 2 पृष्ठ सं. 86 पर इस तरह का वर्णन है।

23. “इन्शेआब दर बहाईयत ” पृष्ठ सं. 83, माएदह-हाए-आसमानी पृष्ठ सं. 130 प्रकाशन मोस्सा मिल्ली प्रकाशन आमरी तेहरान

क़र्नेबदीअ भाग- 2 पृष्ठ सं. 171

24. “मवादे-तहक़ीक दरबारए मज़हबे बाब ” , “हज़रत बहाउल्लाह ” पृष्ठ सं. 148 लेखक मोहम्मद अली फैज़ी प्रकाशन तेहरान “मकातीब ” भाग- 2 पृष्ठ सं. 177

25. क़र्ने बदीअ भाग- 2 पृष्ठ सं. 270,271,275, “अलकवाके बुददुर्रियां ” भाग- 9 पृष्ठ सं. 379,381,383, “इन्शेआबदर बहाईयत ” पृष्ठ सं. 84, “नुक़ततुल क़ाफ़ ” और दुसरे हवालों मे इस बात का वर्णन है।

26. “मक़ाला-शख्सी सय्याह ” पृष्ठ सं. 78, “ईकान ” लेखक मिर्ज़ा हुसैन अली , “मुफावज़ात ” , “अल्फ़राएद ” लेखक मिर्ज़ा अबुलफज़ल गुलपैगानी और तहक़ीक़ दर तारीख व फलस्फ़ा बाबीगिरी और बहाईगरी भाग- 3 मे बहाई हवालों की बहस हुई है।

27. मिर्ज़ा हुसैन अली ने अपनी किताब “मुबीन ” के 21, 48, 56, 210, 232, 286, 308, 342, 405, 417 पृष्ठों पर खुलेआम उलुहीयत का दावा किया है। और माएदह हाए आसमानी , “रेसाला अय्यामे तिसआ ” “अदइयए हजरते महबुब ” , “मजमुए मुबारका ” मसाबीहे हिदायत जैसी किताबे मिर्ज़ा हुसैन अली के इस प्रकार के दावों से भरी पड़ी है। इस प्रकार “मकातीब ” के पृष्ठ सं. 225 पर अब्बास आफ़न्दी ने मिर्ज़ा हुसैन अली के इस दावे को स्वीकार किया है।

28. “कर्नेबदीअ ” बहाईयत के इतिहास से सम्बन्धित बलानफील्ड की किताब देखिए-जिसमे यह किस्सा हुसैन अली की पुत्री के द्दारा नकल हुआ है।

29. “मजमुआ अल्वाह मुबारक ” पृष्ठ सं. 159 पर स्वयं मिर्ज़ा हुसैन अली ने रुसी सरकार से धन लेने को खुले शब्दों मे स्वीकारा है।

30. “किताबे मुबीन ” मे पृष्ठ सं. 159 पर नसिरुद्दीन शाह क़ाचार के समक्ष मिर्ज़ा हुसैन अली द्दारा सहायता मांगने का पुरा वर्णन किया गया है।

31. “खातराते-सुबही ” पृष्ठ सं. 98 लेखक सुबही मेहतदी (मिर्ज़ा हुसैन अली के पर्सनल सिक्रेटरी)

“ अब्बास आफ़न्दी के खुतुत ” मकातीब भाग- 3 पृष्ठ सं. 327 “कर्नेबदाअ ” भाग- 3 पृष्ठ सं. 218,326 और अब्बास आफ़न्दी से सम्बन्धित और दुसरी किताबें-

32. “मकातीब भाग- 2” पृष्ठ सं. 312, भाग- 4 पृष्ठ सं. 177, भाग- 3 पृष्ठ सं. 157 पर उस्मानी सरकार के समर्थन मे पत्र लिखित है। “इन्शेआब दर बहाईयत ” पृष्ठ सं. 12। पिछ़ला हवाला।

33. “कर्नेबदाअ ” भाग- 2, पृष्ठ सं. 125, भाग- 3 पृष्ठ सं. 291 “इन्शेआब दर बहाईयत ” पृष्ठ सं. 127

34. “बयानुल हकाएक़ ” पृष्ठ सं. 71 लेखक अब्दुल हुसैन आयती , “कर्नबदाअ ” भाग- 3 पृष्ठ सं. 297, इनशेआब दर बहाईयत पृष्ट सं. 121 पिछला हवाला

35. पिछला हवाला

36. “अल्कवाकेबुद दुर्रियां ” भाग- 2 पृष्ठ सं. 305, “क़र्नेबदीअ ” भाग- 3 पृष्ठ सं. 299, “इनशेआब दर बहाईयत ” पृष्ठ सं. 118

37. तख्ती (लौह) “मकातीब ” मे वर्णित है। और “इनशेआब दर बहाईयत ” पृष्ठ सं. 119, 120, “मकातीब ” भाग- 3 मे भी इसका वर्णन किया गया है। यहां तक कि अब्दुल बहा ने एक तकरीर के दौरान अंग्रेज़ो को मुखातिब कर के कहा “ईरानी जनता अंग्रेज़ो की जान निसार है ” । देखिए किताब अब्दुल बहा के खुत्बे भाग- 1 पृष्ठ सं. 33

38. “क़र्ने बदीअ ” भाग- 3 पृष्ठ सं. 32। “रिसाला अय्याम तिसआ ” पृष्ठ सं. 508, “अलकवाकबुद-दुर्रियां ” भाग- 2 पृष्ठ सं. 307 “मजल्ला अखबारे आमारी ” पृष्ठ सं. 7 अनुवादक महफिले मिल्ली बहाईयानें-ईरान सं. 7-8 नवम्बर , दिसम्बर 1945.

39. “कश्फुल-हील ” पृष्ठ सं. 154, लेखक अब्दुत हुसैन आयती प्रकाशन-तेहरान “प्यामे-पेदर ” पृष्ठ सं. 142 लेखक सुबही मुहतदी (अब्बसी आफ़न्दी के पर्सनल सिक्रेटरी)

40. “शर्हेहाल हज़रत वली अमरुल्लाह ” पृष्ठ सं. 38, लेखक अब्दुल हमीद इशराक़ खावरी-

41. पिछ़ला हवाला-

42. शौकीं रब्बानी का टेलीग्राम मजल्ला अखबार आमरी से लिया गया। ( 4 जुलाई 1950, व 1951)

43. इनशेआब दर बहाईयत पृष्ठ सं. 195-203

44. पिछला हवाला पृष्ठ सं. 217-327

45. देखिए (बहाई न्यज़) सितम्बर 1947 और मजल्ला अखबार आमरी 7 नवम्बर 1947

46. “तौक़ीआते मुबारक हज़रत वली अमरुल्लाह ” पृष्ठ सं. 290 प्रकाशन अल मोस्साते आमरी तेहरान।

47. मजल्ला अखबार आमरी (अगस्त 1953 ई.)

48. अखबार “अलअहराम ” क़ाहिरा 23 फरवरी 1975 और इरान रेडियो , टीवी. द्दारा प्रसारित न्युजबुलेटिन संख्या 232, 11 जनवरी 1975 ई. मध्य-पुर्व एशिया के रेडियों और अखबार ले नक़ल-अखबार “अलमहबर ” 25 फरवरी और मजल्ला “अखबार वी.टी. ” 10 अप्रैल 1975 पृष्ट सं. 30 और समाचार पत्र “अलअहराम ” 10 अप्रैल 1975 दोबारा- “इनशआब ” दर बहाईयत पृष्ठ 257,299

49. “खुतबाते-अब्दुल बहा ” भाग- 1 अमरीका की यात्रा के दौराने मिस क्रापर के मकान पर एक तक़रीर 1911 ई. और वह किताबें जो कि अमरीका मे बसे बहाईयों ने प्रकाशित की है।

सुचना प्रसारण एजेन्सी –इस्लामी गणराज्य ईरान

50. “तफसीर ” सुरह - युसुफ (खिताबे-कुर्रतुल ऐन) , “ब्यान ” दसवाँ भाग-और तहक़ीक दर तारीख़ फलसफ़ा बाबीगिरी और बहीईगरी-

51. “ब्यान ” बाब 15 खण्ड़ 4,6

52. “ब्यान ” दसवां बाब खण्ड़ 8

53. “अक़दस ” पृष्ठ सं. 38 लेखक मिर्ज़ा हुसैन अली बहा

54. “अक़दस ” पृष्ठ सं. 19

55. अख़बार अमारी से लिया गया। ( 30 दिसम्बर 1945)

56. “अक़दस ” पृष्ठ सं. 225

राजनीति से दूर होने के बयान मे और जानकारी के लिए देखिए अख़बार आमरी ( 12 मार्च 1947) और 4 अप्रैल 1946, 11 फरवरी 1946, 5 मई 1946 और किताब “नज़र इजमाली दर दयानते बहाई ” लेखक अहमद यज़दानी आमरी प्रकाशन तेहरान 1950 ई.

“ रिसालए सियासिया ” लेखक अब्बास आफन्दी ईरान की संसद के पुस्तकालय मे “रिसालय बहाईयां ” के नाम से मौजूद है।

[[अलहम्दो लिल्लाह किताब (बहाईयत साम्राज्यवाद की सेवक संस्था ) पूरी टाईप हो गई खुदा वंदे आलम से दुआगौ हुं कि हमारे इस अमल को कुबुल फरमाऐ और इमाम हुसैन (अ.स.) फाउनड़ेशन को तरक्की इनायत फरमाए कि जिन्होने इस किताब को अपनी साइट (अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क ) के लिऐ टाइप कराया। 20 .6.2017