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आदाबे ज़िन्दगी हज़रत अमीरुल मोमनीन (अ.) की नज़र में

आदाबे ज़िन्दगी हज़रत अमीरुल मोमनीन (अ.) की नज़र में

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

आदाबे ज़िन्दगी

हज़रत अमीरुल मोमनीन (अ.) की नज़र में

लेखकः सैय्यद मौहम्मद मूसावी नजफी

रुपान्तरणकर्ताः हैदर महदी

नोटः ये किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क के ज़रीऐ अपने पाठको के लिऐ टाइप कराई गई है और इस किताब मे टाइप वग़ैरा की ग़लतीयो को सही किया गया है।

Alhassanain.org/hindi

नाम किताब- आदाबे ज़िन्दगी

हज़रत अमीरुल मोमनीन (अ.) की नज़र में

रुपान्तरणकर्ता- हैदर महदी- बी. काम , एम.ए.

प्रकाशन तिथि- जनवरी 1995

मुद्रक- ए. बी. सी. आफ्सेट प्रेस , दिल्ली

टाईप सेटिंग- फ़ाइव स्टार पब्लिकेशन्स , लखनऊ

प्रकाशक- अब्बास बुक एजेन्सी

बिस्मिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम

अस्सलामों अ-लल महदी अज्जलल्लाहो

पेश लफ़्ज़

हज़रत रसुले खुदा (स.अ) की वफ़ात के बाद मुस्लमान दो अहम हिस्सों मे तक़सीम हो गये

1. अहलेबैत (अ) के पेरौकार- यानी अली इब्ने अबी तालिब (अ) के शिया- ये लोग इसी नाम से रसुले खुदा के ज़माने मे मोजूद थे और उन्ही लोगों की मदह व सनाह में क़ुराने करीम की आयतें नाज़िल हुई – जैसे यह आयत दुनिया मे सबसे बेहतर वह लोग है जो ईमान लाये और जिन्होने नेक आमाल अन्जाम दिये।

तमाम मुआफ़िक़ व मुखालिफ़ इसके मोअतरिफ़ है कि जब यह आयत नाज़िल हुई तो रसुले ख़ुदा ने इरशाद फ़रमायाः

अली अ. के शिया ही कामयाब हैं।

इसी तरह और भी रसुले खुदा की हदीसे शियों के मदह मे वारिद हुई है.- यही वो लोग है जिन्होने सक़लैन यानि ख़ुदा की किताब और अहलेबैत नबी )अ ( से तमस्सुक किया है- यही वो अफराद है जिन्होने अपना दीन ऐसे रास्तों से हासिल किया है जो उनके नज़दीक बल्कि तमाम ओकला के नज़दीक बहुत ज्यादा मोतबर है- और ये अहले बैते नुबुव्वत है- घर की बातें घर वाले ज्यादा जानते है.।

2- ख़ोलफ़ा के पैरोकार जो हाकिमाने वक़्त और अवाम पर मुसल्ल्त थे उन लोगों को बाद में मआविया ने अहले सुन्नत वल-जमाअत का नाम दे दिया , और वह उस वक़्त जब इसने इमाम हसन (अ) से ख़िलाफ़त ग़ज़्ब कर ली।

उस साल का नाम इसने “ आमुल जमाअत ” जमाअत का साल रखा ये लोग अ-ददी अकसरियत के पीछ़े चलते थे।

रसूले ख़ुदा की हदीस है

नबी (अ) के बाद उम्मत ने जब भी इख्तेलाफ़ किया तो बातिल हक़ पर ग़ालिब आया। “ ये लोग अपना दीन खोलफ़ा से हासिल करते है। ”

और उन सहाबा व ग़ैर सहाबा से हासिल करते हैं जो ख़ोलफ़ा के रास्ते पर चलें चाहे वे मुत्तक़ी व परहेज़गार और मोरिदे एअतेमाद हों या ना हों-

दोनों गिरोह इस बात पर मुत्तफ़िक़ हैं के क़ुरान और सुन्नत शरीअत के दो अहम नतीजे हैं लेकिन दोनों में बुनियादी इख्तेलाफ़ इस सवाल की बिना पर है कि “ सही और मोतबर सुन्नत कहाँ हैं- ?”

अहलेबैत (अ) के पैरोकार अहलेबैत (अ) से सुन्नत अख्ज़ करते हैं क्योकि ये हज़रात सुन्नत को सबसे ज्यादा जानने वाले है।इस उम्मत के सरदार और सबसे ज्यादा सिक़ा है , वह कोई हदीस उस वक़्त तक नही लेते जब तक उसके रावी की सदाक़त और वसाक़त को ख़ुब परख न लेते हों।-

जबकि ख़ोलफ़ा के पैरोकार अहलेबैत (अ) के अलावा दुसरों से हदीस अख्ज़ करते हैं जैसे अबु- हुरैरा- समरा बिन जुन्दब और मोग़ीरा बिन शेअबा वग़ैरा।

इन दो गरोहों के दरमियान यह पहला बुनियादी और अहम इख्तेलाफ़ है। इस दुरी और वाज़ेह इख्तेलाफ़ का सरचश्मा यह है के कौन ज्यादा मोतबर और सिक़ा है अहैलेबैत (अ) या उन के अलावा दुसरे लोग जो ग़लतियाँ करते हैं इन दोनों में कितना ज़्यादा वाज़ेह फ़र्क़ है।

दुसरा फ़र्क़ इन अहादीस की तादाद में है जो अहलेबैत (अ) के पैरोकारों को अहलेबैत (अ) से मिली हैं और वह हदीसे जो ख़ोलफ़ा के पैरोकारों के पास है- ख़ोलफ़ा के पैरोकारों ने अपने को साफ़ व शफ़्फ़ाफ़ और शीरीं चश्मे से महरुम कर लिया। जिसको खुदा वन्दे आलम ने तमाम मुस्लमानों के लिए करार दिया था। और वह चश्मा अहलेबैत (अ) हैं इन लोगों ने अहलेबैत (अ) को छोड़ दिया – और उनसे हदीसे नक़ल नही की इसका नतीजा यह हुआ कि जो हदीसे ख़ोलफ़ा और सहाबा वग़ैरा से नक़ल की गई हैं वह बहुत कम है और फ़िक़ा के अबवाब के लिए ना काफ़ी है। लिहाज़ा ये लोग मसाएल के हल के लिए क़यास के पनाह मे गये यह जानते हुए की यह दीन मे बीदअत है दीन मे क़यास करना बिल्कुल सही नही है। और जैसा कि इमाम जाफरे सादिक़ (अ) से मनक़ूल है कि सबसे पहले जिसने कयास किया वह इब्लीस था इसीलिए हम देखते हैं कि ख़ोलफ़ा के पैरोकार के नज़रियात क़यास की बिना पर शरीअत से कोसों दुर हैं। क्योकि ये इंसान के हाथों के दुरुस्त करदा हैं। जबकि शरीअ़त अल्लाह ने नाज़िल की हैं- अगर ये लोग रसुल ख़ुदा (स.अ) की उन अहादीस को अख्ज़ करते जो अहलेबैत (अ) से मनक़ुल हैं तो कभी क़यास की ज़रुरत पेश न आती और न दुसरी गुमराहियों तक नौबत पहुँचती।

दीने इस्लाम का यह एक मौजज़ा है कि इसके अहकाम इतने वसीय हैं के ज़िन्दगी के हर छोटे बड़े और बारीक नीज़ अहम मसाएल को अपने दामन मे लिए हुए हैं। यह बात किसी और दीन मे नही पायी जाती कोई इन्सान इतनी बारीक बीनी से इन तफ़सीलात के साथ मसाएल बयान नहीं कर सकता यह सब अल्लाह का हुक्म हैं।

यह मोजज़ा उस वक़्त और ज़्यादा वाज़ेह व – रोशन हो जाता है जब हम अहलेबैत की रवायात का मुतालेआ़ करते है। जो हज़ारो की तादाद मे हैं। इन्सान के ज़ेहन मे जितने भी मसाएल और मुश्किलात आ सकती हैं। ये हदीसें उन सबको अपने दामन मे लिए हुए हैं- यह बात ख़ोलफ़ा के पैरोंकारो को नसीब नही हैं। और वह इसलिए के इन लोगो ने अपने आप को रसुले ख़ुदा के उल्लुम से महरुम रखा जिनकों अहलेबैत (अ.) से नक़्ल किया था।

हज़रत इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.)ने फरमाया:- “ मेरी हदीस मेरे वालिद की हदीस है उन्होने अपने जद से और उन्होने रसुले ख़ुदा से ”

ख़ोलफ़ा के पैरोकारों के पास अहादीस की जो किताबें हैं उनमें अहादीस की तादाद बहुत कम हैं जब हम इन किताबों को अहलेबैत (अ.) के पैरोकारों की अहादीस से मुकाबला करतें हैं।

“ मोहम्मद बिन याक़ूब क़ुलैनी ” की किताब “ काफ़ी ” मे तमाम सहाय- सित्ता से ज्यादा हदीसे हैं जबकि “ क़ाफ़ी ” शियों के नज़दीक हदीस की चार मशहुर किताबों (कुतुबे अरबा) मे से एक है।

जबकि शियों के पास हदीस की ऐसी किताबें भी हैं जो “ काफ़ी ” से कहीं ज्यादा वसीय हैं। जैसे अल्लामा मजलिसी की “ बेहारुल अनवार ” हुर्रे आमली की “ वसाएलुश शिया ” अब्दुल्लाह बहरानी की “ अलअवालिम वग़ैरा उलूम की वह मेक़दार जो शियों ने अहलेबैत (अ.) से हासिल की हैं। उसका तक़ाबुल उन उलूम से किया जा सकता जो मुख़ालेफिन ने दुसरे मज़ाहिब व मकातिब से अख़्ज़ किये हैं। इसके अलावा शियों के नज़दीक हदीस की सेहत व सदाक़त ये अहलेबैत (अ.) की मुतलक़ सदाक़त की बिना पर हैं जिनको अल्लाह ताला ने हर तरह के रिज्स व बुरायों से पाक व पाकीज़ा क़रार दिया है.।

मुझे याद है जिस वक़्त “ वसाएलुश शिया ” क़ाहेरा में तबअ हुई तो जाम- ए- अज़हर के बाज़ उलमा ने उसका मुतालेआ किया और एक अज़ीम आलिम ने कहाः इस किताब के जुज़वी मुताले के बाद मुझे इस बात का यक़ीन हो गया कि वे हदीस जो अहले सुन्नत नक़्ल करते हैं। वह बिल मानी नक़्ल करते हैं। और वे हदीसें जो शिया नक़्ल करते हैं। वह ऐन इबारत नक़्ल करते हैं। हम सहाय सित्ता और दुसरी अहम किताबों को देखतें हैं। कि एक हदीस मुख़्तलीफ़ अन्दाज़ व अल्फ़ाज़ से नक़ल की गई है। जबकि शियों के यहाँ देखते हैं कि एक हदीस मुताद्दिद और मुख्तलिफ़ रावियों से नक़्ल की गयी है। लेकिन सबकी इबारत एक है और यह इस बात की दलील है कि शियों ने रसुले ख़ुदा की ऐन इबारत को नक़्ल किया हैं। जबकि हमारे यहां यह सुरत नही हैं। लिहाज़ा शियों की हदीस हमारी अहादीस की ब-निस्बत ज़्यादा सही ज़्यादा मोरिदे एअ़तेमाद हैं। ”

दुनिया अहलेबैत (अ.) की अहादीस से वाक़िफ़ नही है। मगर बहुत ही मुख्तसर सी वाक़्फियत और यह इस बिना पर कि मुस्लमान दुसरों से मुनसलिक रहे और अहलेबैत से दुर होते चले जायें अगर लोग अहलेबैत की अहादीस से खुब वाक़िफ हो जाते तो उनके पैरोकार बन जातें।

लिहाज़ा अहलेबैत (अ.) के मुख्लिस पैरोकारों के लिये ज़रुरी है कि वह लोगों को अहलेबैत (अ.) की अहादीसों से रु- शेनास करायें और अक़्ल व फ़िक्र के उन गरा – बहा – खज़ानों और जवाहरात से लोंगों को वाक़िफ़ करायें इन्सानियत की तारीख़ मे इस तरह के ख़ज़ाने और जवाहरात नही मिलते –

अहलेबैत (अ.) की हदीसे ही इस बात के लिये काफी हैं। के यहीं लोग साहेबाने हक़ हैं इनके अलावा कहीं और हक़ नहीं हैं-

अहादीस अपनी कसरत के बावजुद जिनका अहाता और शुमार आसान नहीं हैं। एक दसरे से मबूर्त हैं। जबकि बाज़ हदीसे सदरे इस्लाम मे हज़रत अली (अ.) से वारिद हुई हैं। और बाज़ हदीसें बारहवें इमाम हज़रत वली-ए-अस्र अज्जल्लाहों फ़रजहु से वारिद हुई हैं। दोनों के दरमियान दो सौ ( 200) साल से ज्यादा अस्रे – का फासला हैं। मगर सबके नुक़ूश व ख़ुतूत एक ही हैं ऐसा मालुम होता है के सारी हदीसे एक ही शख्स से वारिद हुई हैं , और एक ही वक़्त मे नक़्ल हूई हैं। इसके अलावा सारी हदीसे आयाते क़ुरानी से मबुर्त व मुनसलिक हैं। तलाश करने वालों को कुरान की 6666 आयतों और अहादीस में ज़रा भी इख्तेलाफ़ नज़र नहीं आयेगा।

ये हदीसे उलूम व मआ़रिफ़ और अजीब व ग़रीब हक़ायक़ पर मुश्तमिल हैं इन्सान इल्म के किसी भी दर्जे पर फ़ायज़ हो जाये मगर इस तरह की हदीसें बयान नहीं कर सकता – यह इस बात की वाज़ह दलील हैं कि अहलेबैत (अ.) का इल्म खुदावन्दे आलम का अता करदा है और इन्ही के बारे में खुदा ने अपनी किताब “ कुरान ” मे इरशाद फ़रमाया है कि

“ व मन इन – दहु इल्मुल-किताब ”

“ और जिस के पास किताब का मुकम्मल इल्म हैं ”

अहलेबैत (अ.)ने अहादीस के बारे मे खास एहतेमाम किया है और शियों को अहादीस सीखने का हुक्म दिया हैं। हदीस का इल्म हासिल करना सबसे अफ़ज़ल इबादत है। हज़रत इमामे मोहम्मदे बाक़िर (अ.) ने जनाबे जाबिर से फरमाया “ ऐ जाबिर ख़ुदा की क़सम हलाल व हराम के बारे मे जो सादिक़ से पहुँची है वह तुम्हारे लिए उन चीज़ों से बेहतर हैं जिस पर सुरज तुलूअ और ग़ुरुब होता हैं ”

( अलमोहसिन)

इमाम (अ) ने यह भी इरशाद फ़रमायाः-

“ अगर शिया जवानों मे कोई जवान मुझे ऐसा नज़र आये जो दीनी मालूमात न रखता हो तो मैं उसको सज़ा दूँगा। (अलमोहसिन)

इल्म और अहादीस हासिल करने के सिलसिले में बेशुमार हदीसें हैं। बाज़ किताबें तो ख़ास इसी मौज़ू के लिये तालीफ़ की गई हैं।

शिया उलूम ने अहादीस की ऐसी अहम किताबें तालीफ़ की हैं। जिसमें अहलेबैत (अ.) से मनक़ूल रवायतों को दर्ज किया हैं। बाज़ मशहूर किताबें इस तरह हैः-

1- अल- काफ़ी तालीफ़ (संकलित) अल- कुलैनी मुता- वफ्फ़ा हिजरी 329

2- मन- ला यहजुरोहुल फ़कीह तालीफ़ शेख़ सुदूक़ मुता- वफ़्फ़ा 381 हिजरी

3- तहज़ीबुल अहकाम तालीफ़ शेख़ तुसी मुत- वफ़्फ़ा 460 हिजरी

4- अल- इस्तिबसार तालीफ़ शेख़ तुसी मुता- वफ़्फ़ा 460 हिजरी

5- जाम- ए- उल- अखबार फ़ी ईज़ाहूल-इस्तिबसार

तालीफ़ अब्दुल लतीफ़ अल हायरी अल हमदानी शार्गिदे शेख़ बहाई मुता – वफ़्फ़ा 1050 हिजरी

6- अल- वाफ़ी तालीफ़ फ़ैज़ काशानी मुता- वफ़्फ़ा 1091, हिजरी

7- वसाएलुश – शिया तालीफ़ हुर्रुल- आमली मुता- वफ़्फ़ा 1101, हिजरी

8- बेहारुल अनवार तालिफ़ अल्लामा मजलिसी मुता- वफ़्फ़ा 1110 हिजरी

9- अल – अवालिम ( 100 ज़िल्दें) तालिफ़ शेख़ अब्दुल्लाह अल बहरानी मुआसिर अल्लामा मजलिसी और उनके शार्गिदें रशीद

10- अश – शिफ़ा फ़ी हदीसे आले मुस्तफ़ा तालीफ़ शेख़ मो. रज़ा- तबरेज़ी मुता- वफ़्फ़ा 1158 हिजरी

11- जाम- ए- उल- अहकाम तालीफ़ सैय्यद अब्दुल्लाह शब्बर मुता-वफ़्फ़ा 1246 हिजरी

12- मुस्तदरेकुल वसाएल तालीफ़ मिर्ज़ा हुसैन अन – नूरी अत – तबरिसी मुता-वफ़्फ़ा 1320 हिजरी

हदीसे अल अरबाओ मेत ( चार सौ हदीसें )

ये वह हदीसें हैं जो अमीरुल मोमनीन हज़रत अली (अ.) से मनक़ूल हैं। जिसको आलिमें जलील जनाब “ इब्ने शेअ- बतुल- हुर्रानी ” ने अपनी किताब मे नक़्ल किया हैं। ये हदीसें दुनिया व आखेरत मे नफ़ा – बख्श चार सौ अबवाब पर मुश्तमिल है। ग़ौर करने वाला अगर इन अहादीस की गहराई और गीराई पर ग़ौर – व – ख़ौज़ करे तो वाज़ह हो जायेगा कि इन अहादीस के बयान करने वाले का इल्म , इन्सानी इल्म नही हैं। वह ऐसा इल्म है जो दुनिया व आख़ेरत की ज़िन्दगी के तमाम पहलुओं को अपने दामन मे लिए हुए है। यह वुसअ़त सिर्फ़ उसी को हासिल हो सकती है जिसका इल्म , इल्मे – इलाही का आइनादार हो

इन्साफ पसन्द के लिए यही एक हदीस काफी है कि हज़रत अली (अ.) बर – हक़ हुज्जते ख़ुदा है , बाबे मदीनतुल इल्म हैं तारीख़े बशरीयत मे जितनी किताबें , खुत्बात , रसायल व मक़ालात हैं. उनकी तमामतर कसरत व वुसअ़त के बावजुद उनमे कोई किताब , ख़ुत्बा और मक़ाला ऐसा नहीं जिसका इस एक हदीस की वुसअतों और बारिक़यों से तक़ाबुल किया जा सके – पैग़ामे रिसालत की सदाक़त पर यह एक बेहतरीन दलील हैं। कि इस्लाम ख़ुदा का दीन हैं। और अहलेबैत (अ.) ही साहेबाने हक़ और हक़ीक़त हैं। इनके अलावा कोई और नही हैं। हम तमाम अद्याने मज़ाहिब , तमाम मकातिबे नज़र और तमाम साहेबाने अक़्ल व इन्साफ़ को दावत देते है कि निहायत ग़ौर – व – फ़िक्र से इस हदीस का मुतालेआ करें ताकि वे इस नूर हक़ीक़त से वाक़िफ़ हो सकें जिसको जेहल व तअस्सुबात ने छ़ुपा रखा हैं।

हम तमाम लोगों से बस यह इस्तेदुआ करते हैं कि वह अहलेबैत के अक़वाल को पढ़े , ग़ौर करें और समझें और तमाम मौरुसी इलाक़ाई तअस्सुबात से आज़ाद होकर अक़्ल व इन्साफ़ की हुर्रियत की रोशनी में फ़ैसला करें- हक़ के मुतालाशी अफ़राद के लिये यही इल्मी रास्ता है-

जहाँ तक अहलेबातिल का मसला हैं। तो वह अपनी आँख़ , कान , दिल सब हक़ से फेरे हुए हैं और हक़ को न सुनना चाहते हैं। और न समझना अपने पैरोकारों को भी इसी बात का हुक्म देते हैं – वह इस बिना पर कि वे हक़ से ड़रते हैं। और हक़ की दलीलों का सामना करने की उनमें ताब व तवानाई नही हैं।

क़ुल हातु बुर्हानकुम इन कुन्तुम सादेक़ीन ,

ऐ रसूल कह दीजिए ले आओ तुम लोग अपनी दलीलो को अगर तुम सच्चे हो-

सदा – क़ल्लाहुल अलियुल अज़ीम

बेशक ख़ुदा – ए – बुज़ुर्ग़ व बर्तर ने सच फ़रमाया हैं –

सै. मो. मूसवी नजफ़ी

हदीस न. 1 से 20

बिस्मिल्लाह हिर्रहमा निर्रहीम

अमीरुल मोमेनीन अली इब्ने अबी तालिब (अ) ने इरशाद फ़रमायाः

1- हज़ामत बदन को सालिम और अक़्ल को पुख्ता करती है।

2- मुँछ़ का दुरुस्त करना पाक़िज़गी और सुन्नत है।

3- इसमें ख़ुश्बू लगाना कातेबीन की करामत और सुन्नत हैं।

4- तेल ज़िल्द को मुलायम और दिमाग़ व अक़्ल में इज़ाफ़ा करता हैं। और वुज़ु व ग़ुस्ल की जगहों को हमवार , ख़ुश्क़ी को दुर और रंग को साफ करता हैं।

5- मिसवाक ख़ुदा की ख़ुशनुदी और मुँह की पाक़ीज़गी का सबब और सुन्नत हैं।

6- ख़त्मी से सर धोना कसाफ़त व गन्दगी को दुर करता है।

7- वुज़ु और ग़ुस्ल के वक़्त नाक मे पानी ड़ालने और कूल्ली करने से मुँह और नाक साफ़ रहते हैं।

8- छींक सर के लिए मुफ़ीद है बदन और सर के जुम्ला अमराज के लिये शिफ़ा है-

9- नूरे से बदन मुस्तहकम और जिस्म पाक रहता है।

10- नाख़ून काटने से बड़ी बीमारियाँ दूर रहती हैं और रिज़्क में वुसअत होती है।

11- बग़ल के बाल साफ करने से इन्सान बदबू से महफ़ूज़ रहता है और यह सुन्नत भी है।

12- खाने से पहले और बाद दोनों हाथ धोने से रिज़्क में इज़ाफ़ा होता है —

13- जो शख़्स ख़ुदा से मुरादें चाहता है और सुन्नत पर अमल करना चाहता है वह ईद के दिनों ग़ुस्ल करे।

14- रात की इबादत से जिस्म सेहत मन्द रहता है ख़ुदा राज़ी-होता है , रहमतें नाज़िल होती हैं और अम्बिया के अख़लाक़ से तमस्सुक होता है।

15- सेब खाने से मेदा सही रहता है।

16- कुन्दर चबाने से जबड़े मज़बूत होते हैं और बलग़म दूर होता है ओर मुँह की बदबू ख़त्म होती है —

17- जमीन में गर्दिश करने की ब-निस्बत तुलू- ए- फज़्र से तुलू- ए- आफ़ताब तक मस्जिद में बैठने से रिज़्क जल्दी हासिल होता है-।

18- सफ़र- जल खाने से कमज़ोर दिल क़वी होता है , मेदा दुरूस्त होता है , दिल साफ़ होता है , बुज़दिल , बहादुर बनता है और फर्ज़न्द बेहतर होता है।

19- रोज़ाना नाश्ते में 21 अदद सुर्ख़ किशमिश खाने से मौत के अलावा सारे अमराज़ दूर हो जाते हैं।

20- मुसलमान के लिए मुस्तहब है के माहे मुबारक की पहली शब अपनी ज़ौजा से हमबिस्तरी करे क्योंकि ख़ुदा का इरशाद है कि माहे मुबारक की रातों में अपनी औरतों से नजदीकी तुम्हारे लिए हलाल कर दी गई है।

हदीस न. 21 से 40

21- चाँदी के अलावा कोई और अँगूठी मत पहनना रसूले ख़ुदा का इरशाद है कि “ जिस हाथ में लोहे की अँगूठी होगी ख़ुदा उस हाथ को कभी पाक नहीं करेगा ” जिसकी अँगूठी पर असमा-ए-इलाही नक्श हों जरूरी है के इस्तिन्जा के वक्त उसको उतार ले।

22- जब आइना देखो तो कहो , हम्द उस ख़ुदा की जिसने मुझे पैदा किया , और बेहतरीन हालत व बेहतरीन शक्ल व सूरत में पैदा किया। मुझे वे चीज़े दीं जिनसे दूसरों को महरूम रखा और मुझें इस्लाम से इज़्ज़त अता की।

23- जब अपने बरादरे मोमिन से मिलने जाओ तो अच्छे हालत में जाओ , जिस तरह एक अजनबी से अच्छी हालत में मिलते हो।

24- हर महीने के तीन दिन के रोज़े और माहे शाबान के रोज़े दिल के वुसवास और क़ल्ब की परेशानियों को दूर करते हैं।

25- ठण्डे पानी से इस्तिन्जा करने से बवासीर नहीं होती।

26- कपड़ा धोने से हम व ग़म दूर होता है और नमाज़ के लिए तहारत होती है।

27- सफेद बालों को निकालों नहीं क्योंकि यह नूर है जिसके बाल ख़िदमते इस्लाम में सफ़ेद हुए हों क़यामत में उसे एक नूर दिया जायेगा।

28- मुसलमान जनाबत की हालत में नहीं सोता वह तो बा-तहारत सोता है जिसको पानी मैयस्सर न हो वह तैयम्मुम कर ले क्योंकि मोमिन की रूह बारगाहे इलाही में जाती है। वह उसे कुबूल करता है और मुबारकबाद देता है। अगर उसका वक्त पूरा हो चुका होता है। तो उसको अच्छ़ी सुरत मे रख दिया जाता है। और अगर उम्र बाक़ी होती है तो उसको अमानतदार फ़रिश्ते के साथ जिस्म में वापिस कर दिया जाता है।

29- मुसलमान क़िब्ले की तरफ़ नहीं थूकता , अगर भूल से थूक दिया तो फौरन अस्तग़फ़ार करता है।

30- रास्ते में पाखाना नहीं करना चाहिए और जिस वक्त हवा चल रही हो उस वक्त कोठे पर पेशाब नहीं करना चाहिए और न जारी पानी में अगर किसी ने ऐसा किया तो वह एक ऐसी चीज़ में गिरफ्तार हो जायेगा के जिसके लिये बस अपने नफ़्स की मलामत करे क्योंकि हवा और पानी में कुछ ज़िन्दा चीज़े हैं हवा के रूख़ पर पेशाब न करों।

31- चित मत लेटो।

32- बे- दिली से और जमाही लेते हुए नम़ाज न पढ़ो।

33- जब बारगाहे इलाही में हाजिर हो अफ़कार को कम करो , क्योंकि जिधर दिल होगा वैसी ही नमाज़ होगी।

34- किसी भी जगह और किसी भी वक्त ज़िक़्रे ख़ुदा से ग़ाफ़िल न हो।

35- नमाज़ में इधर उधर मुल्तफ़ित न हो क्योंकि जब बन्दा दूसरी तरफ़ मुल्तफित होता है ख़ुदा उससे कहता है मेरे बन्दे मेरी तरफ़ मुतावज्जेह हो क्योंकि यह दूसरी चीज़ो से बेहतर है।

36- ( दस्तरख़ान) पर जो गिरा है उसको खाओ क्योंकि इज़्ने ख़ुदा से उसमें शिफ़ा है अमराज़ से , उसके लिये जो शिफा चाहे।

37- सूती कपड़े पहना करो , क्योंकि यही रसूले ख़ुदा का लिबास है आप बग़ैर ज़रूरत के ऊनी और बाल वाले कपड़े नहीं पहनते थे।

38- जब खाना खाओ तो वह उँगली चाट लो जिससे खाया है , अल्लाह ताला फ़रमाता है खुदा तुम्हे बरकत दें।

39- ख़ुदा जमाल को दोस्त रखता है औऱ नेमत के आसार अपने बन्दे पर देखना चाहता है।

40- अपने रिश्तेदारों के साथ कम से कम सलाम के ज़रिये सिले रहम करो क्योंकि ख़ुदा का इरशाद है कि उस ख़ुदा से डरो जो तुमसे रिश्तेदारों के बारे में सवाल करेगा।