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आदाबे ज़िन्दगी हज़रत अमीरुल मोमनीन (अ.) की नज़र में

आदाबे ज़िन्दगी हज़रत अमीरुल मोमनीन (अ.) की नज़र में

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

हदीस न. 121 से 140

121- ऐसे दस्तरख़ान पर मत बैठो जहाँ शराब पी जा रही हो क्योकि किसी को इस बात का इल्म नही हैं। कि कब उस को मौत आ जायेगी।

122- जब ख़ाने के लिए बैठो तो गुलामो की तरह बैठो ज़मीन पर खाओ एक पैर दुसरे पैर पर मत रख़ो और उकड़ू न बैठो क्योकि अल्लाह इस तरह बैठने को पसंद नही करता और ऐसे शख्स को अल्लाह दोस्त नही रखता अम्बिया (अ) रात का खाना नमाज़े इशा के बाद तनाव्वुल फ़रमाते थे। रात का खाना तर्क न करो क्योंकि इससे बदन कमज़ोर होता है।

123- बुख़ार मौत का क़ासिद है और ज़मीन पर ख़ुदा का क़ैद खाना जिसे चाहता है उसमें क़ैद कर देता है। और यह गुनाहों को इस तहर गिराता है जैसे ऊँट के कोहान से रोयें गिर जाते हैं।

124- हर दर्द बदन के अन्दर से उठता है सिवाय बुख़ार और ज़ख़्म के ये जिस्म के ऊपर असर अन्दाज़ होते हैं बुख़ार की गर्मी गुल- ब- नफ़शा और ठण्डे पानी से कम करो बुख़ार की गर्मी जहन्नम की गर्मी से है।

125- मुसलमान इलाज उस वक़्त करता है जब मर्ज़ सेहत पर ग़ालिब आ जाता है।

126- दुआ हतमी क़ज़ा को बदल देती है उसको मोहय्या करो और उसको इस्तेमाल करो।

127- तहारत के बाद वुज़ू दस नेकियाँ रखता है।

128- सुस्ती से दूर रहो , जो सुस्ती करेगा वह ख़ुदा के हुकूक़ अदा न कर सकेगे।

129- बदबू का इलाज पानी से करो , अपने को साफ़ सुथरा रखो , ख़ुदा गन्दे लोगों को पसंद नहीं करता , ऐसे लोग के जहाँ बैठें दूसरों को तकलीफ हो।

130- नमाज़ में दाढ़ी से न खेलों और ऐसा कोई काम न करो जो नमाज़ से ग़ाफ़िल कर दे।

131- क़ब्ल इसके के दूसरे काम में मशगूल हो नेक काम में जल्दी करो।

132- मोमिन ख़ुद तकलीफ़ और सख़्ती में रहता है मगर दूसरों को उससे आराम मिलता है।

133- तुम्हारी अक्सर बातें ज़िक्रे ख़ुदा होनी चाहिए।

134- गुनाहों से बचो क्योंकि जब बन्दा गुनाह करता है उस का रिज़्क़ कैद हो जाता है।

135- अपनी बीमारियों का इलाज सद्के से करो।

136- ज़कात अदा करके अपने अमवाल की हिफ़ाज़त करो।

137- परहेज़गारों के तक़र्रूब का ज़रिया नमाज़ है।

138- हज हर कमज़ोर का जिहाद है।

139- बेहतरीन शौहरदारी औरत का जिहाद है।

140- तंगदस्ती मर्गे अज़ीम है।

हदीस न. 141 से 160

141- अयाल की क़िल्लत एक तरह की तवांगरी है।

142- एअतेदाल निस्फ़ मआश है।

143- जिसने एअ़तेदाल से काम लिया वह कभी फ़क़ीर नहीं हुआ।

144- जिसने मशविरे से काम लिया वह हलाक नहीं हुआ।

145- शरीफ़ और दीनदार इन्सानों के साथ ही नेकी अच्छी लगती है।

146- हर चीज़ का एक फल है। नेकी का फल जल्दी चिराग़ रोशन करता है।

147- जिसे सवाब का यक़ीन होता है वह राहे ख़ुदा में ख़र्च करने से दरेग़ नहीं करता।

148- जो मुसीबत के वक़्त अपने ज़ानू पर हाथ मारे उसका सवाब ख़त्म हो ज़ाता है।

149- मोमिन का बेहतरीन अमल जुहूर का इन्तेज़ार करना है।

150- जिसने अपने वालदैन को नाराज़ किया वह आक़ हुआ।

151- सद्क़ा देकर रिज़्क हासिल करो।

152- दुआओं के ज़रिये बलाओं को दूर करो बला नाज़िल होने से पहले दुआएं करो क़सम है उस ज़ात की जिसने दाने को शिगाफ़्ता किया और जानदारों को पैदा किया बलाएं मोमिन पर इतनी तेज़ रफ़्तारी से नाज़िल होती है के पानी भी इतनी तेज़ी से ऊपर से नीचे नहीं आता बल्कि घोड़ा भी इतनी तेज़ नहीं दौड़ता।

153- बलाओं के हुजूम में आफ़ियत तलब करो , क्योंकि बलाओं का हुजूम दीन को अपने साथ ले जाता है।

154- सईद तो वह है जो बग़ैर मौएज़ा के सुधर जाये।

155- अपने नफ़्स को अच्छे अख़लाक़ से आरास्ता करो , क्योंकि बन्द- ए- मोमिन अपने हुस्ने अख़लाक़ से आबिदे शब जिन्दादार और रोज़ेदार का दर्जा हासिल करता है।

156- जो शराब को शराब जानकर पिये ख़ुदा उसे क़यामत के दिन गन्दगियों से सेराब करेगा , चाहे वह बख़्श ही क्यों न दिया गया हो।

157- गुनाहों के लिये कोई नज़्र नहीं और क़त- ए- रहम के लिये कोई क़सम नहीं।

158- बग़ैर अमल के दुआ करना जैसे बग़ैर चिल्ले के तीर चलाना।

159- औरत को चाहिये कि अपने शौहर के लिये खुशबू लगाए।

160- जो अपने माल की हिफ़ाज़त में कत्ल किया जाये वह शहीद है।

हदीस न. 161 से 180

161- जिसको धोखा दिया गया हो वह न क़ाबिले तारीफ़ है न क़ाबिले अज्र (सवाब)।

162- बाप बेटे और शौहर व ज़ौजा के दरमियान कोई क़सम नहीं।

163- रात तक ख़ामोश रहना अच्छा नहीं मगर ज़िक्रे ख़ुदा में।

164- हिजरत के बाद बू तर्ज़े मुआशेरत का कोई सवाल नहीं और फत़्हे मक्का के बाद कोई हिजरत नहीं।

165- जो अल्लाह के पास है उसको तलब करो इस तरह उन चीज़ो से मुस्तग़्नी हो जाओगें जो दूसरो के पास है।

166- ख़ुदा वन्दे आलम अमानतदार कारीगर को दोस्त रखता है।

167- नमाज़ से बढ़ कर कोई चीज़ ख़ुदा के नज़दीक महबुब नहीं। दुनियावीं मशाग़ील तुम्हें नमाज़ से बाज़ न रखें ख़ुदा वन्दे आलम ने ऐसी कौम की मज़म्मत की है। जिन्होने औकाते नमाज़ की परवाह नहीं की है ।

168- यह जान लो की तुम्हारे नेकुकार दुश्मन अपने आमाल को एक दुसरे को दिखाते हैं वह इसलिये के अल्लाह ने उनसे तौफ़ीक सल्ब कर ली हैं। ख़ुदा तो बस उन्ही आमाल को क़बूल करता है जो सिर्फ और सिर्फ अल्लाह के लिये अन्जाम दिये जाते हैं।

169- नेकी कभी पुरानी नहीं होती और गुनाह कभी भुलाया नहीं जाता।

170- ख़ुदा उन लोगो के साथ है जौ परहेज़गार हैं जो आपस में एक दुसरे से अच्छा बर्ताव करते हैं।

171- मोमिन अपने भाई को ऐब नहीं लगाता उसके साथ ख़यानत नहीं करता , उस पर तोहमत नहीं लगाता उसे ज़लील नहीं करता , उससे दुरी इख्तेयार नहीं करता , अपने भाई के उज्र को क़बूल कर लो अगर (उज्र) न हो तब भी उसके लिये उज्र तलाश करो।

172- पहाड़ को हटा देना आसान है मगर वक़्ती बादशाह की तमन्ना का दिल सें निकलना बहुत मुश्किल हैं ।

173- अल्लाह से मदद चाहो और सब्र से काम लो , ख़ुदा अपने बन्दों मे जिसको चाहेगा ज़मीन का वारिस बनायेगा , और अन्जामकार परहेज़गारों के लिये हैं।

174- काम का वक़्त आने से पहले जल्दबाज़ी से काम न लो वरना शर्मिन्दा होंगे।

175- लम्बी लम्बी आरज़ुएं न करो वरना संगदिल हो जाओगे – अपने ज़ईफ़ों पर रहम करो उनके लिये ख़ुदा से रहमत तलब करो-

176- देख़ो ग़ीबत न करो , कोई मुस्लमान अपने भाई कि ग़ीबत नही करता क्योकि ख़ुदा बन्दे आलम ने इससे मना किया है। ख़ुदा का इरशाद है कि क्या तुम अपने मुर्दा भाई का गोश्त खाना पसन्द करते हो – हर्गिज़ नही।

177- मोमिनो को हाथ बाँधकर नमाज़ नहीं पढ़ना चाहिये वरना वह काफ़िरों का हमरंग हो जायेगा।

178- ख़ड़े हो कर पानी न पियो वरना ऐसा मर्ज़ लाहक़ होगा जिसका कोई इलाज नहीं मगर यह कि ख़ुदा शिफ़ा दे – अगर नमाज़ में कोई कीड़ा पकड़ लो तो या उसको दफ़्न कर दो , या फ़ूंक दो या फिर कपड़े में लपेट लो – यहाँ तक कि नमाज़ तमाम कर लो।

179- क़िब्ले से ज़्यादा रु – गर्दानी नमाज़ को बातिल कर देती है और जिसने ऐसा किया उसे चाहिये कि फिर से अज़ान , अक़ामत और तकबीर कहे।

180- जो तुलू-ए-आफ़ताब से पहले दस मर्तबा “ क़ुल-हो-वल्लाहो अहद ” दस मर्तबा “ इन्ना अन्ज़ल्ना ’’ और दस मर्तबा “ आयतल कुर्सी ” पढ़े उसका साल ख़तरात से महफ़ूज़ रहेगा –

हदीस न. 181 से 200

181- जो तुलू-ए-आफ़ताब से पहले दस मर्तबा क़ुल- हो- वल्लाहो अहद और दस मर्तबा इन्ना अन्ज़ल्ना की तिलावत करे वह दिन भर गुनाहो से महफ़ूज़ रहेगा चाहे शैतान कितनी ही कोशिश करे।

182- ख़ुदा से पनाह माँगो कि कर्ज़ ज़्यादा न होने पाये।

183- अहलेबैत (अ.) की मिसाल कश्तिये नूह (अ.) की है जिसने मुख़ाल्फ़त की वह हलाक हुआ।

184- कपड़े को समेटना नमाज़ के लिये तहारत है- ख़ुदावन्दे- आलम का इरशाद है- कि लिबास क़ो पाक करो “ यानि दामन को समेटो ” ।

185- शहद इस्तेमाल करने में शिफ़ा है- “ ख़ुदावन्दे आलम का इरशाद है कि ” और उसके शिकम से ऐसी पीने की चीज़ निकलती है “ जिसका रंग मुख़्तलिफ़ है और उसमें लोगो के लिये शिफ़ा है ” ।

186- खाने से पहले और खाने के बाद नमक खाया करो अगर लोगों को यह मालूम हो जाये कि नमक में क्या तासीर है। तो नमक को तिर्याक पर तरजीह दें – जो अपना खाना नमक से शुरू करें ख़ुदा उससे सत्तर अमराज़ दूर करेगा , जिन अमराज़ का इल्म सिर्फ ख़ुदा को है।

187- हर महीने में तीन दिन रोज़ा रखो , यह जिन्दगी भर के रोज़ो के बराबर होगा- यह रोज़े हम इस तरह रखते हैं दो जुमेरात और उसके दरमियान एक बुध- खुदा वन्दे आलम ने जहन्नम बुध के दिन पैदा किया है लिहाज़ा उस दिन ख़ुदा से पनाह माँगो।

188- अगर तुम्हारी कोई हाजत हो तो जुमेरात की सुबह से तलब करो- रसूलल्लाह ने ख़ुदावन्दे आलम से दुआ फ़रमाई है कि “ ऐ ख़ुदाया जुमेरात की सुबह मेरी उम्मत के लिये बा-बरकत क़रार दे ” ।

189- जब घर से निकलो तो यह आयत पढ़ो इन्ना फ़ी खल्क़िस समावाते वल अरज़े वख़तिलाफ़िल लैले वन नहार- इन ऩका ला तुख़लेफ़ुल मी- आद और आयतल कुर्सी , इन्ना अन्ज़ल्ना , सूर-ए-हम्द (आले इमरान आयत 192) क्योंकि इसमें दुनिया व आख़ेरत की हाजतें पोशीदा हैं।

190- मोटे कपड़े पहना करो जिसका कपड़ा बारीक उसका दीन भी उसी तरह बारीक होगा- देखो ऐसा कपड़ा पहन कर ख़ुदा की बारगाह में आओ जिसमें तुम्हारा बदन नज़र न आये।

191- बारगाहे इलाही में तौबा करो ओर उसकी मोहब्बत में दाखिल हो जाओ , क्योंकि ख़ुदावन्दे आलम तौबा करने वालों को दोस्त दोस्त रखता है। और तहारत करने वालों को दोस्त रखता है। मोमिन बारगाहे ख़ुदा में बार बार हाज़िर होता है और कसरत से तौबा करता है।

192- जब मोमिन एक दूसरे मोमिन से “ उफ़ ” कहे उनके दरमियान जुदाई हो जाती है और अगर यह कह दे कि “ तुम काफ़िर हो गये ” तो उनमें से एक काफ़िर है- मोमिन के लिये नामुनासिब है कि वह किसी को तोहमत लगाये क्योंकि इत्तेहाम लगाने से ईमान इस तरह पिघल जाता है जिस तरह पानी में नमक।

193- जो तौबा करना चाहे उसके लिये तौबा का दरवाज़ा खुला हुआ है। बारगाहे ख़ुदा में सिद्क़ दिल से तौबा करो ताकि ख़ुदा तुम्हारे गुनाह बख़्श दे।

194- अहद् व पैमान को पूरा करो किसी क़ौम से कोई नेमत और आसाइश नहीं सल्ब की गई मगर उनके गुनाहों की बदौलत।

195- ख़ुदा अपने बन्दों पर ज़र्रा बराबर ज़ुल्म नहीं करता अगर दुआओं से इसतक़बाल किया जाये तो नेमत ज़ाएल नहीं होगी।

196- जब कोई मुसीबत नाज़िल हो या कोई नेमत सल्ब हो जाये उस वक्त बारगाहे इलाही में सिद्क नियत से गिड़गिड़ाये , सुस्ती न करे और असराफ़ न करे तो ख़ुदा तमाम ख़ूबियों की इस्लाह कर देगा और गुम शुदा मिल जायेगा।

197- जब मुसलमान तंगदस्ती का शिकार हो तो दूसरों से नहीं कहना चाहिए बल्कि ख़ुद बारगाहे इलाही में शिकायत करना चाहिये क्योंकि उमूर की कुंजियाँ उसी के दस्ते क़ुदरत में है , वही उन तमाम चीज़ो को चलाता है जो आसमानों , ज़मीनों ओर उनके दरमियान हैं वही अर्शे अज़ीम का परवरदिगार हैं।

198- जब नींद से उठो तो खड़े होने से पहले कहो के हस- बेयर- रब्बो मिनल – एबादे हसबी होवा हसबी व नेअमल वकील और जब रात को उठो तो आसमान की तरफ देखकर यह आयत पढ़ो –

“ इन्ना फ़ी ख़लकिस़ समावाते वल अरज़े वरव़- तेलाफ़िल लैले वन नहार- ला तुख़ लेफ़ुल मीआद ” ( आले इमरान-आयत 192) दुनिया में चार नहरें जन्नत की हैं

1- फ़ुरात

2- नील

3- सीहून

4- जीहून

ज़मज़म के पानी से सर धोने से मर्ज दूर होता है और हजरे असवद् के सामने इसका पानी पियो।

199- मोमिन किसी ऐसे सरदार के साथ जिहाद नहीं करता जो अहकामे इलाही पर ईमान न रखता हो और लोगों में अहकामे ख़ुदा नाफ़िज न करता हो और अगर वह ऐसे जिहाद में क़त्ल हो जाये तो उसने हमारे दुश्मन का साथ दिया जो हमारा हक़ ग़ज़्ब करना चाहता है और हमारा ख़ून बहाना चाहता है ऐसे शख़्स की मौत जाहेलियत की मौत होगी।

200- हम अहलेबैत का तज़किरा शिफ़ा है ख़यानत से अमराज़ से और गुनाहों के वुस्वुसों से हमारी मोहब्बत अल्लाह की ख़ुश्नूदी है। जो हमारे रास्ते को इख़तेयार करेगा हमारी बातों पर अमल करेगा वह कल जन्नत में हमारे साथ होगा और जो हमारे ज़ुहूर का इन्तेज़ार करेगा वह तो उस श्ख़्स की मानिन्द है जो ख़ुदा की राह में ख़ून में डूबा हुआ हो।

हदीस न. 201 से 220

201- जो शख़्स मैदाने जंग में हो , हमारी आवाज़ सुने और हमारी मदद न करे ख़ुदा उसे मुँह के बल जहन्नम में डाल देगा।

202- जिस वक्त लोग कयामत में उठाये जायेंगे और तमाम रास्ते तंग हो जायेंगे तो उस वक़्त हम हैं जन्नत का दरवाज़ा और हम ही हैं तौबा का दरवाज़ा और हम ही वही “ बाबुस्सलाम ” हैं जो इसमें दाख़िल होगा उसने निजात पायी और जो दूर रहा हलाक हुआ।

203- हम ही से ख़ुदा ने शुरूआत की है और हम ही पर इख़्तेताम होगा। ख़ुदा चाहता है हमारे ज़रिये महों कर देता है ज़माने की सख़्तियाँ ख़ुदा हमारे ज़रिये दूर करता है और हमारी बिना पर बारिश होती है देखो कोई तुम्हे धोखा न देने पाये।

204- जिस वक़्त हमारे “ कायम ” का जुहूर होगा उस वक़्त आसमान से बरकतें नाज़िल होगी ज़मीन अपनी शादाबियों को ज़ाहिर कर देगी। लोगों के दिल बुग्ज़ व कीना से पाक साफ़ हो जायेंगे। शेर और बकरी एक साथ रहेंगे इराक़ और शाम के दरमियान अगर औरत सफ़र करेगी उसका हर कद़म हरियाली पर पड़ेगा कहीं ज़मीन ख़ाली नज़र न आयेगी और उसके सर पर उसकी ज़म्बील होगी न उस पर कोई दरिन्दा हमलावर होगा और न उसको किसी तरह का ख़ौफ़ होगा।

205- अगर तुम्हें इसका इल्म हो जाये के दुश्मनों के दरमियान रहने और उनकी बातें सुन सुनकर सब्र करने से तुम्हें क्या दर्जात मिलेंगे तो तुम्हारी आँखे रौशन हो जायेंगी।

206- मेरे बाद तुम ऐसी चीज़े देखोगे कि हर एक को मौत की तमन्ना होगी तुम देखोगे कि जुल्म व जौर हर तरफ़ फैल गया है। हुक़ूक़े इलाही की तौहीन की जा रही है हर एक को अपनी जान का ख़ौफ़ है और जब ऐसी सूरत आजाये तो सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो और इख़्तेलाफ़ न करो। सब्र , नमाज़ और तक़य्या का दामन हाथों से न छूटने पाये और यह भी जान लो के ख़ुदा उन लोगों को पसन्द नहीं करता जो रंग बदलते रहते हैं। हक़ और अहलेहक़ से कभी दूर न होना और जिसने हमारे अलावा किसी और से तमस्सुक किया वह हलाक हुआ। दुनिया भी गई और दुनिया से गुनाहगार जायेगा।

207- जब घर में दाख़िल हो तो अहले ख़ाना पर सलाम करो और अगर घर में कोई न हो तब इस तरह कहो अस्सलामो अलैना मिर-रब्बैना।

जब घर में दाख़िल हो तो उस वक़्त “ क़ुलहो वल्लाहो अहद ” पढ़ो इस तरह से तंगदस्ती दूर होती है।

208- अपने बच्चों को नमाज़ की तालीम दो और जब आठ बरस के हो जायें तो उन पर सख़्ती करो।

209- कुत्तों से दूर रहो , अगर सूखे कुत्ते से मस हो जाओ तो अपने कपड़े पर पानी छिड़क लो अगर वह गीला है तो अपना कपड़ा धोलो।

210- अगर हमारी कोई हदीस सुनो और उसको न समझ पाओ तो हमारी तरफ़ वापिस कर दो , उसके बारे में ख़ामोश रहो और जब हक़ वाज़ह हो जाये तो सामने तसलीम हो जायें। देखो राज के फ़ाश करने वाले और जल्द बाज़ न बनो।

211- जो हमारे हक़ में ग़ुलू करेगा उसकी बाज़गश्त हमारी ही तरफ़ होगी और जो हमारे हक़ में कोताही करेगा वह आख़िर कार हमारे ही पास आयेगा।

212- जिसने हमसे तमस्सुक किया उसने मुरादें पायीं और जो हमसे दूर हुआ वह बर्बाद हुआ जिसने हमारी पैरवी की वह कामयाब हुआ , और जिसने हमारे अलावा दूसरा रास्ता इख़्येतार किया पामाल हुआ।

213- हमारे दोस्तों के लिये अल्लाह की रहमत की फ़ौज है और हमारे दुश्मनों के लिये अज़ाबे इलाही के सिपाही हमारा रास्ता एअ़तेदाल और हमारी बातें हिदायत।

214- पाँच चीज़ों में सहो और निस्यान का कोई गुज़र नहीं

1- नमाज़े वित्र (नमाज़े शब की आखिरी एक रकअत)

2- हर वाजिब नमाज़ की पहली दो रकअतें (जिसने हम्द और सूरे की तिलावत करना चाहिये)

3- नमाज़े सुबह

4- नमाज़े मगरिब

5- हर दो रकअती वाजिब नमाज़े ख़ाह वे सफ़र की बिना पर दो रकअती हो गई हों।

215- हर अक्लमन्द बा- तहारत क़ुर्आन की तिलावत करता है।

216- अगर नमाज़ में सूरा पढ़ रहे हो तो सूरे के बाद ख़ूब अच्छी तरह रूकूअ़ और सुजुद बजा लाओ।

217- ऐसे कपड़े में नमाज़ नहीं पढ़ना चाहिये जिसमें एक शाना ढका हो और एक खुला क्योंकि यह क़ौमे लूत का तरीक़ा है।

218- मर्द एक कपड़े में भी नमाज़ पढ़ सकता है , के उसके दोनों सिरे गर्दन में इस तरह बाँधे के बदन छुप जाये या ऐसा मोटा कपड़ा जिसमें बदन दिखाई न दे।

219- तसवीर पर सजदा नहीं करना चाहिये और न किसी ऐसी चीज़ पर जिसपर तसवीर बनी हो। हाँ उसके क़दमों के नीचे तसवीरे हो सकती हैं या तसवीर को किसी चीज़ से छुपा दे।

220- ऐसे दरहम को लिबास में गिरह लगाकर नमाज़ न पढ़े जिसमें तसवीर बनी हो हाँ अगर दरहम हमयान (बेल्ट) या कपड़े में है मगर ज़ाहिर नहीं है तो कोई हर्ज नहीं।

हदीस न. 221 से 240

221- गेहूँ के ख़िरमन , जौ के ख़िरमन पर सजदा न करे और न उन चीजों पर सजदा करे जो खाई जाती हैं रूई पर भी सजदा न करे।

222- जब बैयतुल- ख़ला जाओ तो यह पढ़ो “ बिस्मिल्लाहे अल्लाह- हुम्मा अम्ते अनिल अज़ा व इज़नी मिनश- शैतानिर रजीम ” ( उस ख़ुदा के नाम से जिसने मेरी तकलीफ़ दूर की औऱ मुझे शैतान से पनाह दी)

और जब बैठो तो यह दुआ पढ़ो

“ अल्लाह हुम्मा कमा अतअ़मतनीह तय्येबन वसा वग़्ग़ता- नीहे फ़क्फ़नेहि ” ( खुदाया जिस तरह तूने पाकीज़ा ग़िज़ा खिलाई तू री केफायत फरमा)

और जब फराग़त के बाद मदफ़ूअ पर नज़र पड़े तो यह कहे

“ अल्लाह हुम्मर ज़ुक़निल हलाला व जुम्बिल हराम ”

ख़ुदाया तूने हलाल रोज़ी अता की और हराम से महफ़ूज़ (रखा) रसूले ख़ुदा (अ.) न इरशाद फ़रमाया है के इन्सान के लिये ख़ुदावन्दे आलम ने एक मुल्क को मोअय्यन किया है कि जब बन्दा फ़राग़त हासिल करता है तो वह उसकी मदफ़ूअ की तरफ मोड़ देता है ऐसे मौक़े पर इन्सान के लिये सज़ावार है

कि वह अल्लाह से हलाल रोज़ी तलब करे क्योंकि वह मलक उससे कहता है कि वह अल्लाह से हलाल रोज़ी तलब करे क्योंकि वह मलक उससे कहता है कि ऐ इब्ने आदम यही वह चीज़ है जिसके लिये तुम हरीस थे देखो इसके लिये कितने जतन किये और उसका अन्जाम क्या है।

223- वुज़ू करते वक़्त पानी इस्तेमाल करने से पहले यह दुआ पढ़ना चाहिये।

“ बिस्मिल्लाहे अल्लाह हुम्मज अल्नी मिनल तव्वाबीन वज- अल्नी मिनल मुतह- हरीन ” और जब वुज़ू कर चुके तो यह दुआ पढ़े।

“ अश्हदो अल- ला- इलाहा इल्लल्लाहो वहदहु ला शरीक लहु व अन्ना मोहम्मदन अब्दोहु व रसूलोहु पस उस वक़्त बख़्शिश का मुसतहक़ होता है ” ।

224- जो नमाज़ सही मानों में अदा करेगा ख़ुदा उसके गुनाह बख़्श देगा।

225- फ़रीज़ा के वक़्त नाफेला अदा न करो पहले फ़रीज़ा अदा कर लो फिर जो दिल चाहे पढ़ो।

226- बग़ैर उज़्र के नाफ़िला तर्क न करो अगर उसकी क़ज़ा अदा हो सकती है तो ज़रूर अदा करो क्योंकि ख़ुदा वन्दे आलम का इरशाद है। वे लोग जो नमाज़ के पाबंद हैं यही वे लोग हैं जो रात में क़ज़ा शुदा नमाज़ को दिन में अदा करते हैं और दिन में क़ज़ा शुदा नमाज़ को रात में अदा करते हैं।

227- ख़ान- ए- काबा और मस्जिदे नबवी में एक रकअत नमाज़ हज़ार रकअत के बराबर है। हज में एक दिरहम सद्क़ा देना हज़ार दिरहम के बराबर है।

228- नमाज़ में ख़ुदा से डरना चाहिये जो नमाज़ में ख़ुदा से डरेगा वह नमाज़ के दौरान किसी चीज से खेलेगा नहीं।

229- हर दो रकअती नमाज़ में दूसरी रकअत में रूकूअ से पहले क़ुनूत पढ़ना चाहिये सिवाय नमाज़ जुमअ के क्योंकि इसमें दोनों रकअत में क़ुनूत है।

पहली में रूकूअ से पहले और दूसरी रकअत में रूकूअ से बाद नमाज़े जुमअ की पहली रक्अत में हम्द के बाद सूर- ए- मुनाफ़ेक़ून पढ़ना चाहिये।

230- दोनों सजदों के बाद इतनी देर बैठो के तुम्हारे आज़ा साकिन हो जायें फिर खड़े हो क्योंकि यही हमारा तरीक़ा है।

231- जब नमाज़ शुरू करो तो दोनों हाथ सीने के बराबर लाओ और जब नमाज़ के लिये खड़े हो तो बिल्कुल सीधे खड़े हो और जब नमाज़ पढ़ चुको तो दुआ के लिये आसमान की तरफ़ हाथों को बलन्द करो और हाथों को सीधा रखो उस वक़्त "इब्ने" सबा ने कहा क्या ख़ुदा हर जगह नहीं है ? आपने फ़रमाया , क्यों नहीं ? तो फिर हम आसमान की तरफ़ हाथ बलन्द क्यों करें ? आपने (अ.) फ़रमाया वाय हो तुम मगर तुमने क़ुर्आन में नहीं पढ़ा कि आसमान में तुम्हारा रिज़्क है। और वे चीज़े हैं जिनका तुमसे वायदा किया गया है रिज़्क तो उसकी जगह से ही तलब करेंगे और उसका वायदा अल्लाह ने आसमान में किया है।

232- किसी मोमिन की नमाज़ क़ुबूल नहीं होती जब तक वह जन्नत की दुआ न करे और जहन्नम से पनाह न माँगे।

233- ख़ुदा से दुआ करो कि तुम्हें हूरऐन अता करे।

234- जब नमाज़ पढ़ो तो इस तरह पढ़ो के यह गोया तुम्हारी आख़िरी नमाज़ है।

235- मुस्कुराहट नमाज़ को नहीं तोड़ती , हाँ क़हक़हा से नमाज़ टूट जाती है।

236- जब नींद दिल पर ग़ालिब आ जाये तो वुज़ू करो , और अगर आँखों में नींद भरी है तो सो जाओ क्योकि इस सूरत में तुम्हें इसका ख़याल नहीं के तुम अपने हक़ में दुआ कर रहे हो या बद- दुआ।

237- जो हमे दिल से दोस्त रख़े , ज़बान से हमारी हिमायत करे और हमारे साथ जिहाद करे वह जन्नत में हमारे दर्जे में होगा।

238- जो दिल से हमें दोस्त रखें मगर ज़बान से हमारी मदद न करें और न जिहाद मे शरीक हो वह उससे कमतर दर्जे में होगा।

239- जो हमें दुश्मन रखे , हमारे ख़िलाफ़ ज़बान चलाये और हमें नुकसान पहुँचाये वह जहन्नम के आख़िरी हिस्से में होगा।

240- जो दिल से हमें दुश्मन रखें , ज़बान से ईज़ा दे मगर नुक़सान न पहुँचाये वह जहन्नम के ऊपरी हिस्से मे होगा।