इस्लामी तालीम

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इस्लामी तालीम लेखक:
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इस्लामी तालीम
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इस्लामी तालीम

इस्लामी तालीम

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.


1

बिस्मिल्लाह हिर्रहमा निर्रहीम

पेश लफ़्ज़

रसूले अकरम (स.अ.) ने फ़रमाया हैः

“ मैं बनी नौ-ए-इन्सान में आला अख़्लाक़ कि तकमील के लिए भेजा गया हुँ।

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मौहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.) और आपके फ़र्ज़न्दाने गिरामी (अहले बैत (अ.स.)) इमान और हुस्ने सीरत के उन आला मुक़ामात पर फ़ायज़ है कि उनका किरदार बनी नौ-ए-इन्सान के लिए मिसाल और नमूना बन गया है। इन बुज़ुर्गवारों ने लोगो को एक नया रास्ता दिखाया और इन्तेहाई ना-मसाइद हालात के बावाजूद एक अज़ीमुश्शान इन्क़ेलाब बरपा किया। उन्होने मुआशरे की पेशरफ्त एक ख़ास मकतबे फ़िक्र व अमल क़ायम किया , लोगों को उसकी पैरवी करने की दावत दी , उन्हेँ एक शानदार मुस्तक़बिल की नवेद सुनाई और उनके दिलों में उम्मीद ,ख़ुशी , जोश और वलवला पैदा किया ताकि वो अपनी गलत आदत तर्क कर दें और ऐसी बा-मक़सद ज़िन्दगी गुज़ार दें जो दुनिया और आख़ेरत में उनकी फलाह की ज़ामिन है।

अहलेबैत (अ.स.) के इस बुलन्दो बाला मरतबे को समझने के लिए ज़रूरी है कि क़ुर्आने मजीद की तालीमात और मासूमीन (अ.स.) की अहादीस से रूजूअ किया जाये जिनको इल्मे हदीस के अज़ीम इस्कालर अल्लामा मजलिसी (मुतवफ़्फा 1111 हिजरी) ने अपनी किताब बेहारूल अनवार के मुख़तालिफ़ अबवाब में जमा कर दिया है।

चूँकि दर्सगाहों के लिए मुक़र्रर करदा निसाब के मुताबिक़ इस मौज़ू पर एक निस्बतन मुख़्तसर किताब की ज़रूरत थी लिहाज़ा हमने अल्लामा मरहूम की किताब शाया करने का फ़ैसला किया , जिसको फ़ाज़िल मुसन्निफ़ ने आइम्मा-ए-मासूमीन (अ.स.) की अहादीस की बुनियाद पर तरतीब दिया है। चूँकि यह किताब भी ख़ासी मुफ़स्सिल थी , लिहाज़ा हमने इख़्तेसार की ज़रूरत के तहत मोहद्दिस कुम्मी (मुतावफ़्का 1359 हिजरी) के मुरत्तब करदा तलख़ीस को अपना माख़ज़ बनाया उसमे से कुछ अहादीस का इन्तेसाब करके उसे मौजूदा शक्ल में शाया किया है।

हमे उम्मीद है कि यह मुख़्तसर रिसाला तलबा के लिए बिल-ख़ुसूस और जुमला मोमेनीन के लिए बिल उमूम मुफ़ीद साबित होगा।

यह किताब जाम-ए-तालिमाते इस्लामी करांची पाकिस्तान से उर्दू मे छपी है और अब हमारा इदारा इसे हिन्दी रस्मुलख़त मे शाया करने का शरफ़ हासिल कर रहा है।

नाशिर

सैय्यद अली अब्बास तबातबाई

अब्बास बुक ऐजन्सी , लखनऊ

बिस्मिल्लाह हिर्रहमा निर्रहीम

अल्हमदो लिल्लाहे तआला , हमदन युवाज़ी रहमतहू व युकाफ़ी नेअमतहू , वस्सलातो वस्सलामो अला सय्येदे ख़ल्क़ेही , व हामेले रिसालतेही , अस-सादेक़िल अमीने मोहम्मदिन व अला असफ़ेया –इल्लाहे व अविद्दिदाएही , अहले बैतिन नुबुव्वते , व अला अहिब्बा इल्लाहे व औलियाएही , असहाबिर्रसूलिल अबरार , अद्दुआतिल अख़्यार , व अला जमी-इस्साएरीना एला यौमिद्दीन।

लिबास

इस हक़ीकत के बावजूद कि इस्लाम ने अपने पैरूओं को ऐश व इशरत की ज़िन्दगी गुज़ारने से मना फ़रमाया और फ़ज़ीलत , रूहानियत नीज़ आख़ेरत की रहमतों की जानिब उनकी रहनुमाई की है – उसने दुनिया की नेमतों से परहेज़ करने और राहेबाना ज़िन्दगी गुज़ारने की भी मुमानेअत की है – चुनाँचे क़ुर्आने मजीद राहेबों के तर्ज़े-फ़िक्र की वाज़ेह तौर पर मुख़ाल्फ़त करते हुए फ़रमाता हैः

“ कह दो कि तुम्हें अच्छा लिबास पहनने और अल्लाह नें जो पाकीज़ा चीज़ें अपने बन्दों को एनायत की हैं उनके खाने सेकिसने मना किया है ?” (सुर-ए-एअराफ़ , आयत 32)

इस तरह इस्लाम नें अपने पैरूओं को अच्छा और आबरूमन्दाना लिबास पहनने का हुक्म दिया है। पस एक मुसलमान को चाहिये कि अपनी हैसियत के मुताबिक़ उम्दा और साफ़ सुथरा लिबास पहने ब-शर्ते कि वह लिबास जायज़ तरीक़े हासिल किया गया हो अगर वह जायज़ ज़राय से अपने लिए उम्दा लिबास मोहय्या न कर सके तो फिर उसे चाहिये कि अपने हुदूद में रहते हुए शायस्तगी के साथ मामूली लिबास पहने रहे।

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने फ़रमाया हैः

“ अल्लाह जमील है , वह ख़ूबसूरती को पसन्द करता है और अफ़्सुर्दगी को नापसन्द फ़रमाता है , इसलिए कि जब वह अपने बन्दों को नेमतें अता करता है तो वह उनपर नेमतो के असरात भी देखना चाहता है ” -

जब पूछा गया कि इन्सान ख़ुदा-ए-तआला की नेमत के असर का इज़हार कैसे कर सकता है ? आपने जवाब दियाः साफ़ सुथरा लिबास पहनो और ख़ुश्बू इस्तेमाल करो , घर की सफ़ेदी कराओ और उसकी ग़लाज़त दूर करो , अल्लाह ताला ग़ुरूबे आफ़ताब से पहले (सूरज डूबने से पहले) चिराग़ जलाने को पसन्द करता है , ऐसा करने से इफ़्लास (ग़रीबी) दूर होता है और यह रिज़्क़ में फ़ेराख़ी का मोजिब बनता है-

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) से मर्वी है एक मोअतबर हदीस में कहा गया हैः

“ अच्छे कपड़ों का इस्तेमाल दुश्मन को पस्त करता है-

बदन पर तेल मलना , ज़ेहनी खिचाओ और परेशानियों को कम करता है। बालो में कँघा करना दाँतों को मज़बूत करता है , रोज़ी में इज़ाफ़े (बढ़ोतरी) का सबब बनता है और कुव्वते-बाह को बढ़ाता है।

सबसे बेहतरीन सूती कपड़ा है और उसके बाद कतान है।

1- हमेशा ऊनी कपड़े पहनना और उन्हें अपना मुस्तक़िल लिबास क़रार देना मकरूह है , बिलख़ुलूस उस सूरत में जब यह कपड़े दूसरों पर घमंण्ड जताने के लिए इस्तेमाल किये जाऐं।

2- रसूले अकरम (स.अ) ने उन लोगो पर नफ़रीन (बुराई) की है जो अपने लिबास को दूसरों पर फ़ज़ीलत और फ़ौक़ियत का ज़रीया बनाते है। ((इस्लाम मुआशिरे (समाज) की तरबियत इस अन्दाज़ से करता है कि फ़ज़ीलत का मेयार फ़क़त तक़वा हो।))

3- मर्दों के लिए ख़ालिस रेशम और ज़र-तार कपड़े का लिबास पहनना हराम है।

4- मर्दों के लिए औरतों जैसा लिबास पहनना हराम है उसी तरहा औरतों के लिये भी मर्दों जैसा लिबास पहनना जायज़ नही है। ((इस्लाम यह नही चाहता कि मर्द और औरत के दरमियान मौजूद फ़ितरी फ़र्क नापैद हो जाए।))

5- मोमिनीन के लिए काफ़िरों का मख़सूस लिबास पहनना हराम है। ((इसके बर-अक्स वह इस बात पर ज़ोर देता है कि यह फ़र्क़ लिबास तक के मामले में भी बरक़रार रहे , ताकि मुअशिरे का हर फ़र्द अपने अपने फ़रायज़ अपनी फ़ितरत के मुताबिक़ अन्जाम दे। यह ज़रूरी है कि हर क़ौम का एक ख़ास तमद्दुन का एक हिस्सा है इसलिए कुफ़्फ़ार के लिबास से मुशाबे (मिलता-जुलता) लिबास का इस्तमाल एअतेमाद नफ़्स (आत्म विश्वास) के फ़ुक़दान (समाप्ति) और अग़यार (ग़ैर का बहू) पर इन्हेसार (निर्भरता) की अलामत है।))

6- लिबास के लिए बेहतरीन रंग सफ़ेद है और उसके बाद ज़र्द का नम्बर आता है फ़िर बित-तरतीब (क्रमानुसार) सब्ज़ , हल्का सुर्ख़ , हल्का नीला औऍर हल्का सब्ज़ रंग है।

7- गहरे सुर्ख़ और सियाह रंग का लिबास (ख़ास तौर से नमाज़ पढ़ते वक्त) पहनना मकरूह है।

8- जिस लिबास से तकब्बुर का इज़हार होता हो। वह नापसंदीदा है।

9- अमामे का इस्तेमाल मुस्तहब है।

10- अमामा खड़े होकर बाँधना और उसका सिरा तहतुल हनक़ (ठुड्डी के निचे से) गुज़ारना मुस्तहब है।

11- ऐसी टोपियाँ या हैट पहनना मकरूह है जो ग़ैरे मुस्लिमों से मख़सूस हैं जब आप पाजामा और ज़ेरे जामा पहनें तो क़िबला-रू (क़िब्ला की तरफ़) होकर बैठ जायें और यह दुआ पढ़ेः

“ अल्लाहुम्मस-तुर-औरती व आमिर रौ-अती व अ-इफ़्फ़ा फ़ज़ी वला तज़अल लिश-शैताने फ़ीमा रज़क़तनी नसीबवं वला लहू एला ज़ालेका वुसूलन फ़-यसनआ ले-यल मकाएदा व यो- हय्ये-जनी ले-इरतेकाबे महारेमेका। ”

ऐ परवरदीगार ! मेरा बदन ढाँप दे , मेरे आज़ा की हिफाज़त कर , मेरी इफ़्फत महफ़ूज़ फरमा और शैतान को मुझसे दूर रख ताकि वह मुझे उन बुरी बातों की तरफ़ ना खींचे जो तेरे अहकाम के ख़िलाफ़ है।

जब आप लिबास पहनने लगें तो यह दुआ पढ़ेः

“ अल्लाहुम्मज-अलहो सौबा युमनिंव व तक़वा व तुक़ा व बरकतिन अल्लाहुम्मर ज़ुक़नी फ़ीहे हुस्ना इबादतेका व अमा-लल लेता-अतेका व अदा-अ शुक्रे नेअ-मतेका- “

अल्हम्दो लिल्लाहिल लज़ी कसानी मा उवारी बेही औरती व अता-जम्मलो बेही फ़िन्नासे- “

“ या अल्लाह ! इस कपड़े को मेरे लिए बरकत , तक़वा और सवाब का मोजिब बना-

या अल्लाह ! मुझे तौफ़ीक़ दे कि जब मैं यह लिबास पहनूँ तेरी इबादत मुकम्म्ल तौर पर बजा लाऊँ , तेरे अहकाम की इताअत करूँ और तेरी नेमतों का शुक्र अदा करूँ। तमाम तारीफ़े उस अल्लाह के लिए जिसने मुझे ऐसा लिबास दिया है जो मुझे ढ़ाँपता है और लोगो के दरमियान मेरी इज़्जत और आबरू का ज़रिया है। “

जब आप लिबास पहनें तो वुज़ू करके दो रकअत नमाज़ अदा करें और फ़िर कहेः

“ ला-हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलीयिल अज़ीम ,”

“ कोई ताक़त और क़ुव्वत नही है सिवाए उसके जो अल्लाह से (मिलती) है , वही बलन्द तरीन और बुज़ुर्गतरीन है। “

12- रात के वक्त कपड़े उतार देना और बर्हना हो जाना मकरूह है।

13- जब आप कपड़े उतारने लगें तो “ बिस्मिल्लाह ” पढ़े।

14- कपडे उतारने के बाद उन्हें इधर-उधर न फेकें।

15- जब आप लिबास पहनने का इरादा करें तो नियत बाँधें कि मैं यह लिबास अपनी सतर पोशी मुसलमानों के लिए अपनी आरायश और अल्लाह की नेमतों के इज़हार की ख़ातिर पहन रहा हुँ क्योंकि अल्लाह आरायश को और नेमतों के इज़हार को पसन्द फ़रमाता है।

16- जब आप लिबास पहनें तो उसकी इब्तेदा (शुरूआत) दायें जानिब से और ख़ात्मा बायें जानिब पर करें , जब आप लिबास पहन चुकें तो अल्लाह की हम्द ब्यान करें। ((कारी ख़ूब आगाह है कि यह अख़लाक़ और आदाब एक मुसलमान की ज़िन्दगी के हर शोबे में अपने अल्लाह के कितने क़रीब ले आते हैं।))

17- जब आप नया लिबास ख़रीदें तो पुराना लिबास किसी और हाजतमन्द को दे दें। कोट और कमीज़ के बटन ख़ुले रखना इस्लामी आदाब के ख़िलाफ़ है। जूतों के लिए बेहतरीन रंग ज़र्द है , इसके बाद सफेंद भी मुनासिब है। यह रविश (तरीक़ा) मुस्तहब है कि जूतों के तले का दरमियानी हिस्सा फ़र्श को ना छुए। ((मौजूदा इल्मे हिफ़्ज़े सेहत भी इस बात की ताईद करता है।))

18- जूतों का एक अच्छा जोडा वह है कि जो इन्सान के पाँव को चोट से महफ़ूज़ रखे और नमाज़ के लिए वुज़ू करने में रूकावट ना बने।

19- ऐसे जूते नही पहनने चाहियें जो तकब्बुर का मोजिब हो।

20- जूते पहनते वक़्त इब्तेदा दाये पाँव से करें और यह दुआ पढ़ें।

“ बिस्मिल्लाहे सल्लल्लाहो अला मोहम्मदिंव व आले मोहम्मदिंव व वत्ति क़दमय्या फ़िद्दुनिया वल आख़ेरते व सब्बितहुमा अलस सिराते यौमा तज़िल्लो फ़ीहिल अक़दाम। “

“ मैं अल्लाह के नाम से शुरू करता हुँ – या अल्लाह ! दुरूद और सलाम भेज मोहम्मद (स.) पर और आले मोहम्मद (स.) पर , मेरे क़दम इस दुनिया में मज़बूत कर दे और क़यामत के दिन भी मेरे दोनो पाँव को जमाये रखना जब लोग पुले सिरात पर से जहन्नुम में जा गिरेंगे। ”

21- जब आप जूतें उतारने लगे तो यह दुआ पढ़ेः

“ बिस्मिल्लाहे अल्हम्दो लिल्लाहिल लज़ी रज़क़नी-मा-अक़ी बेही मिनल अज़ा- अल्लाहुम्मा सब्बितहुमा अला सिरातेका वला तज़िल लहुमा अन सिरातेकस सविय्ये , ”

“ मैं अल्लाह के नाम से शुरू करता हुँ तमाम तारीफ़े अल्लाह के लिए हैं जिसने मुझे यह चिज़े इनायत की जो मेरे दोनो पावँ को तकलीफ़ से महफ़ूज़ रखती हैं।

या अल्लाह ! जहन्नुम के ऊपर वाक़ेअ पुले सिरात पर मेरे दोनो पाँव को जमाये रखना और उन्हें सीधे रास्ते से इधर-उधर रपटने नही देना। ”

अरायशे जमाल

एक और पहलू जिसे इस्लाम ने बड़ी अहमीयत दी है , वह आरायशे जमाल यानी “ बनाओ-सिंघार ” है।

इस्लाम कहता है , एक औरत को चाहिये कि वह अपने शौहर की ख़ातिर उम्दा तरीक़े से बनाओ-सिंघार करे ताकि उसकी निगाहें और ख़्यालात दूसरी औरतों की तरफ़ न जायें।

इसी तरहा मर्दों के लिए भी ज़रूरी है कि वह अपनी बीवियों की ख़ातिर आरायश करें ताकि वह दूसरे मर्दों की जानिब मायल न हों ओर यूँ उनकी इफ़्फ़त और पाकदामनी में इज़ाफ़ा हो।

1- मर्दों और औरतों को दायें हाथ में अँगूठी पहनने की ताकीद की गई है।

2- इन्सान को चाहिये कि अँगूठी पहनते वक़्त यह दुआ पढ़ेः

“ अल्लाहुम्मा सव्विमनी बे-सीमाइल ईमाने वख़तिमली बे-ख़ैरिंव वजअल आक़ेबती एला ख़ैरिन इन्नाका अन-तल अज़ीज़ुल हकीमुल करीम , ”

“ या अल्लाह ! ईमान की निशानियों को मेरी पहचान का मोजिब बना- मेरा ख़ातिमा बिल-ख़ैर कर और आख़ेरत में भी मेरे लिये बेहतरी का सामान पैदा कर- बिला शुबा तू क़ुदरत वाला , हिकमत वाला और मेहरबान है ,”

3-यह हिदायत भी कि गई है कि अँगूठी के पत्थर पर मुनदर्जा-ज़ैल अल्फाज़ खुदवाये जायेः

“ माशाल्लाहो ला-क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहे अस्तग़फ़ेरूल्लाहा ,”

“ अल्लाह जो चाहता है सो करता है , कोई ताक़त ओर क़ुव्वत नही है सिवाय उसके जो अल्लाह से (मिलती) है मैं अल्लाह से बख़्शिश का तलबगार हूँ ,”

4- औरतों और बच्चों को सोने और चाँदी के ज़ेवरात पहनने में कोई हर्ज नही।

5- इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स) से रवायत है कि आपने फ़रमायाः

“ औरत के लिये अपने बनाओ सिंघार को तर्क करना मुनासिब नही , चाहे वह एक हार पहनने तक ही क्यों ना महदूद हो। ”

6- मर्दों को सोने के ज़रिये अपनी अरायश करने से बचना चाहिये , चाहे वह उनकी तलवार या क़ुर्आने मजीद में ही क्यों ना हो।

7- रवायत है कि आँखो में सुरमा लगाने के कई फ़ायदे हैं।

8- आँखों में सुरमा लगाते वक़्त यह दुआ पढ़े।

“ अल्लाहुम्मा नव्विर बसरी वज़अल फ़ीहे नूरन अवसिर बेही हक़्का वहदेनी एला सिरातिल हक़्क़े व अर्शिदनी एला सबीलिर्रशादे अल्लाहुम्मा नव्विर अलय्या दुनयाया व आख़ेरती ,”

या अल्लाह ! मेरी आँखें रोशन कर , मुझे ऎसी रौशनी अता फ़रमा कि तेरे अद्ल को देख सकूँ , तू मुझे सीधे रास्ते पर रख और मुझे नेकी की राह पर चलने का शऊर (अक़्ल) बख़्श दे-

या अल्लाह ! मुझे इस दुनिया में और आख़ेरत में भी रौशनी अता फ़रमा।

9- जब आप आईने पर निगाह डालें तो यह दुआ पढ़ेः

“ अल्लाहुम्मा कमा हस्सन्ता ख़ल्क़ी फ़हस्सिन ख़ुलुक़ी व रिज़्क़ी ,”

या अल्लाह ! जिस तरह तूने मुझे अच्छे ख़द व ख़ाल दिये हैं उसी तरह अपनी मेहरबानी से मुझे आला अख़लाक़ ओर पाकीज़ा रोज़ी भी बख़्श दे।

ख़ुर्द व नौश (खाना पीना)

रोटी और पानी इन्सान की बुनयादी ज़रूरत है। इस्लाम उम्दा और लज़ीज़ ख़ुराक और सेहत बख़्श व ख़ुश ज़ायक़ा मशरूबात के इस्तेमाल से मना नही करता।

क़ुर्आने मजीद फरमाता हैः

ऐ ईमान वालों! जो पाक चीज़े हमने तुम्हें ब-तौरे रिज़्क़ दी है उनमे से खाओ और अल्लाह का शुक्र अदा करो। 13(सूर-ए-बक़रा , आयत 132)

खाने पीने के हलाल होने का आम मेयार उनका तय्यब (पाक) होना है- यानि वह पाक , साफ़ , लज़ीज़ और सेहत बख़्श हों-

ख़ुद लज़ीज़ खाने खाना , दूसरों को खिलाना और यह कोशिश करना कि वह ख़ालिस और पाक हों- यह एक बड़ी अच्छी बात है।

1- इन्सान को चाहिए कि वो चीज़े खाये पिये जो हलाल हों।

2- इन्सान को इतना भी नही खाना चाहिये कि वह उसे अल्लाह की इबादत से बाज़ (रोक) रखे।

3- जानवरों की तरह खाने पीने ही में न लगे रहें , इसके बर-अक्स (विपरीत) खाने पीने से आपका मक़सद अल्लाह की इबादत के लिए क़ुव्वत (ताक़त) का हुसूल होना चाहिये।

4- इन्सान को खाने पीने के मामले में फ़ुज़ूल ख़र्च नही होना चाहिये।

5- जब आप खा-पी कर शिकम् सेर हो जायें तो फिर कुछ न खायें।

6- जब इन्सान शिकम् सेर हो जाता है तो वह उसके फ़साद और बग़ावत पर मायल होने का मूजिब बन जाता है।

7- नाश्ते और दोपहर के खाने के बीच कुछ और खाना मुनासिब नहीं है।

8- नाश्ता न करना और दोपहर का खाना न खाना सेहत के लिये मुजिर है।

9- खाना खाने से पहले और खाना खाने के बाद हाथ धोना और कुल्ली करना सुन्नत है।

10- जब खाना चुन दिया जाये तो मुनासिब है कि आप “ बिस्मिल्लाह ” पढ़े और खाना शुरू कर दें और जब खा चुके तो थोड़ा नमक मुहँ में डाल लें।

अपने परवरदिगार के सामने इज्ज़ के तौर पर आपको दस्तरख़ान पर ग़ुलामों की तरह अदब से बैठना चाहिये।

11- (किसी मुसलमान को शरीक न करना) अकेले ही अकेले खाये जाना मकरूह है।

12- नौकरों के साथ मिलकर खाना और उसी तरह फ़र्श पर बैठकर खाना सुन्नत है।

13- नजिस और बदकार लोगों के साथ खाना खाने से परहेज़ करें हमेशा कोशिश करें कि नेकूकार सालेह (नेक) और आलिम लोगों के साथ खाना खायें।

14- खाने पीने के लिए सोने और चाँदी के बर्तनो की इस्तेमाल हराम है।

15- एक ऐसे दस्तरखान से खाना हराम है जिसमें खाने के साथ शराब भी पिलाई जाये।

यह रवायत भी आयी है कि ऐसी ज़ियाफ़त में खाना पीना हराम है जहाँ हराम चीज़े इस्तेमाल की जायें या कोई और ममनूअ (मना) बात मसलन ग़ीबत (बुराई) की जाये।

16- अपने दस्तरख़ान पर सब्ज़ियों के साथ सिरका भी इस्तेमाल करें।

17- सख़्त गर्म खाना कभी ना खायें।

18- खाने पीने की चीज़ो पर फूँक मारना मकरूह है। खाने से पहले फलों को धो लेना चाहिये और पानी ढ़ाक कर रखना चाहिये।

19- बासी और सड़ा हुआ खाना नही खाना चाहिये। रोटी की बे-हुरमती और बे-अदबी न करें।

20-जब खाना दस्तरख़ान पर आ जाये तो बिना देर किये हुए खायें और मजीद किसी चीज़ का इन्तेज़ार न करें।

21- रोटी को मत सूँघे और उसपर हाथ भी न फेरें।

22-जौ की रोटी खाना तर्क ना करें।

23-दस्तरख़ान पर जो चीज़ आपके सामने हो वह खायें और दूसरों के आगे से ना उठायें।

24-छोटे छोटे निवाले लें और उन्हें चबाकर खायें। खाने में दूसरो के चेहरों पर नज़र न डालें।

25-जब आप खाने में किसी दीनी भाई के साथ हों तो ख़ूब सेर हो कर (पेट भरकर) खायें और जो चीज़ें उसे नापसन्द हो उससे परहेज़ करें।

26-मेहमानों को दस्तरख़ान पर ग़ैर-ज़रूरी तकल्लुफ़ात में उलझाना अच्छी बात नही।

27-खाने की जो चीज़ दस्तरख़ान पर गिर जाये उसे उठाकर खा लें।

28-खाने के बाद दाँतों को ख़ेलाल करें।

29-दाँतों में ख़ेलाल करने के बाद तीन बार कुल्ली करें।

30-दीनी भाईयों को खाने की दावत देना और उन्हें खाना खिलाना बड़ा नेक काम है।

31- जो शख़्स खाना खिलाये उसके हक़ में दुआ-ए-ख़ैर (अच्छाई की दुआ) करना मुस्तहब है।

32-जब आपका कोई दीनी भाई आपसे मिलने आये तो जो कुछ घर में मौजूद हो उसके लिए ले आयें जो चीज़ मौजूद न हो उसकी तय्यारी का एहतेमाम न करें।

33-आपको अपने एक दीनी भाई से जितनी ज़्यादा मोहब्बत हो उसके यहाँ उतना ही ज़्यादा खाना खायें।

रवायत है कि एक सख़ी शख़्स अपने एक मेज़बान के यहाँ ज़्यादा खाना खाता है ताकि वह भी उसके यहाँ ज़्यादा खाये।

34-रवायत है कि जब रसूले अकरम (स.अ) मेहमानों के साथ बैठकर खाना खाते तो सबसे पहले खाना शुरू करते और सबके बाद हाथ खींचते थे ताकि कोई मेहमान भूखा न रह जाये।

(मुफ़ज़्ज़ल इब्ने उमर कहते हैं कि उन्होनें इमाम जाफरे सादिक़ (अ.स.) की ख़िदमत मे दर्दे चश्म (आँख में दर्द) की शिकायत की तो इमाम (अ.स.) ने उनसे फ़रमाया कि जब वह खाने के बाद हाथ धोयें तो वही गीले हाथ अपनी भौं और पपोटों पर लगायें और तीन मरतबा यह दुआ पढ़ेः

तमाम तारीफ़ अल्लाह के लिए है जो एहसान करता है इन्सान को ख़ूबसूरत बनाता है उस पर अपनी नेमतों की बारिश करता है और उसे बुलन्द करता है। 14

35-एक रवायत में है कि इन पाँच मौक़ों पर ज़ियाफ़त का एहतमाम करना और लोगों को दावत देना मुस्तहब है।

(1) शादी ( 2) अक़ीक़ा ( 3) लड़के का ख़त्ना कराना ( 4) मकान ख़रीदना या नया मकान बनाना ( 5) सफ़र से घर लौटना

36-किसी ऐसी ज़ियाफ़त में शरीक होना मना है जो खास तौर पर दौलत मन्द लोगों के लिये दी गई हो।

खुद्दारी

रसूल अकरम (स.अ.) का इरशाद है कि आठ क़िस्म के लोग लानत के क़ाबिल है।

(1) वह शख़्स जो बिन बुलाये किसी के यहाँ खाने में शरीक हो जाये।

(2) वह मेहमान जो मेज़बान पर हुक्म चलाये।

(3) वह शख़्स जो अपने दुश्मन से भलाई की उम्मीद रखे।

(4) वह मालदार शख़्स जो खुद कमीना और कंजूस हो फिर भी दूसरो से एहसान की उम्मीद रखे।

(5) वह शख़्स जो दूसरो की बातों में बिला –इजाज़त दख़ल अंदाज़ करे जब कि वे कोई राज़दाराना गुफ़्तुगू कर रहे हों

(6) वह शख़्स जो अहले इक़्दार (मालदार) की मुनासिब इज़्ज़त न करे।

(7) वह शख़्स जो ना अहल लोगों की सोहबत में बैठे।

(8) वह शख़्स जो उस आदमी से गुफ़तुगू करे जो उसकी बातों पर मुनासिब तवज्जोह नदों।

एक और हदीस में आया है कि ( 1) इन्सान फ़क़त उन लोगों को खाने की दावतदे जिन्हें वह सिर्फ अल्लाह की ख़ातिर दोस्त रखता है

(2) मेहमान की ज़्यादा मुददत तीन दिन है –अगर कोई मेहमान इससे ज़्यादा दिनों तक ठहरे तो उसका खाना पीना मेज़बान का सदक़ा शुमार होगा।

(3) मेहमान के साथ भलाईसे पेश आना और उसे अज़ीज़ (दोस्त) रखना मुस्तहब है

(4) मेहमान का एक गक़ यह है कि आप उसे एक ख़ेलाल मोहय्या करें और जब वह रूख़्सत हो तो उसे घर के दरवाज़ तक छोड़ने जाये

(5) जब तक कोई शख़्स आपको बुलाये न उसके खाना खाने न जायें।साहिबे ख़ाना पर हुक्म न चलाये। वह जहाँ बैठने को कहे वहीं बैठें। अगर आप को किसी जियाफ़त मे शिरकतकी दावत मिले तो उसे कुबूल करले।

पीने का पानी

इमाम जाफ़रे सादिक (अ.स.) ने फ़रमाया

ठऩडा पानी हरारते बदनको कम करता है मतली को दूर करता है , और गर्मी से बचाता है।

आपने ये भी फरमाया

गर्म पानी हर क़िस्म के दर्द को दुर करता है और किसी लिहाज़ से भी मुज़िर नहीं होता।

पानी पीते वक़्त यह दुआ पढ़नी चाहिये सलवातुल्लाहे अ-लल हुसैने व अला अहले बैतेही बैतही वअसहाबेही व लानतुललहे अलाक़ातेलीहे व आदाएही ,,

अल्ला ताला रसूले अहलेबैत (अ.स.) पर और असहाब पर अपनी रहमतें नाज़िल फ़रमाये और इमाम हुसैन (अ.स.) के क़तिलों और दुश्मने पर अपनी लानत बरसाये।

(1) रवायत है कि चाहे ज़मज़म (ज़मज़म कुँआ) का पानी बारिश का पानी और दरिया –ए –फ़ुरात का पानी बहुत से फ़ज़ीलत और फ़वायद का हामिल है।

(2) पानी रात के वक़्त बैठकर और दिन के वक़त खड़े होकर पीना चाहिये।

(3) इमाम अली (अ) ने फ़रमाया है कि इन्सान को बारिश कापानी पीना चाहिये क्यें यह बदन को पाक करता है और तमाम दुख –दर्द दुर करता है।

(4) जब आप कोई मशरूब (पीने वाली चीज़) पीनें लगें तो – बिस्मिल्लाह पढ़े , जब पीचुकें तो –अलहम्दो लिल्लाह .कहें। फिर इमाम हुसैन (अ) और उनके अहलेबैत और असहाब को याद करे।

(5) पानी आहिस्ता आहिस्ता पियें और उससे अपना मुँह न भर लें।

(6) सारा पानी एक बार में न पी जायों बल्कि तीन बार ठहर के पिये।

आदाबे तज़वीज

बीवी या शौहर का इन्तेख़ाब (पत्नि या पति का चुनाव)

इस्लाम ने मुआशेरती निज़ाम में तजवीज केमांले को बड़ी अहमियत दी है। यह दीन राहेबाना ज़न्दगी बसरकरने की तल्क़ीन नहीं करता इसके बर अक्स यह अज़्दवाज की तारीफ करता है क्यों कि यह अम्बिया (अ.स.) की सुन्नतों में से एक सुन्नत है। ता हम यह याद रखना ज़रूरी है कि निकाह का मक़सद फ़क़त जीन्सी थ़्वाहिश की तसकीन नहीं होना चाहिये बल्कि उसका अव्वलीन (पहला) मक़सद ससालेह और फ़र्ज़ –शेनास औलाद का हुसूल होना चाहिये ताकि हक़ व सदाक़त के पैरोओं (अनुयाइयों) की तादाद में इजाफ़ा हो .।

रसूले अरकम (स.अ.) ने फ़रमाया

मैंने तुम्हारी दूनिया मे तीन चीज़ों की को चुना है. ( 1) ख़ुश्बू (2) औरत और ( 3) नमाज़ कि जो मेरी आँख की ठंडक है।

इन्नी अख़तारो मिन दुनियाकुम सलासतन ( 1.) अत- तय्येबा ( 2.) वन –निसाआ व कुर्रता ऐनी.अस-सालाता ,

कुंबा

इमाम जाफ़रे सादिक (अ.स.) से मन्कूल मोअतबर अहादीस में कहा गया है कि औरतों को महबूब रखना अम्बिया (अ.स.) के आदाब में से था।आपने यह बात भी ज़ोर देकर कही कि मोमिन लोग जबतक अपनी औरतों से मोहब्बत न करें उनके ईमान में कोई पेश –रफ़्त नहीं हो सकती। आपने यह भी फ़रमाया कि जो लोग औरतों से ज़्यादा मोहब्बत करते है उनका ईमान भी ज़्यादा फुख़्ता होता है।

रसूले अकरम (स.अ.) ने फ़रमाया.

जो मर्द निकाह कर ले वह अपना आधा ईमान नहफूज़ कर लेता है। फिर अगर वह तक़वा इख़्तेयार करे तो उसकाबाक़ी बचा आधा ईमान भी महफूज़ हो जायेगा। हज़रत (स.अ.) ने मानेअ नहीं हो सकता है कि अल्लाह ताला उसको एक ऐसा फ़र्ज़न्द एनायत करे जो

कल-मए-ला-इलाहा इल्लल्लाह , , के नूर के साथ दुनिया को चमका दे , और आपने ज़ोर देकर फ़रमाया कि जो लोग आपकी सुन्नत पर यक़ीन रखते हैं उन्हे निकाह ज़रूर करना चाहिये।

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने फरमाया.

एक शादी शुदा शख़्स का दो रकअत पढ़ना एक ग़ैर शादी शुदा के सत्तर रकअत नमाज़ अदा करने से बेहतर है।

(1) जो शख़्स शादी करे अपना आधा ईमान महफूझ़ कर लेता है

(2) आपकी बीवी आपकी हम पल्ला (बराबर) होनी चाहिये और उसे आपके बच्चों की माँ बनने के क़ाबिल होना चाहिये।

(3) किसी औरत से उसकी दौलत और हुस्न की ख़ातिर निकाह न करों क्योंकि इस सुरत में आप दोनो चीज़ों से महरूम हो जायेंगे इसके बजाय आपको उसकी परहेज़गारी और सलाहियत को मददे नज़र रखते हुए उससे निकाह करना चाहिये।

(4) बेहतरीन औरत वह है जो बहुत से बच्चों कोजन्म दे ,अपने शौहर से मोहब्बत करे पाकदामन हो अपने रिश्तेदारों में इज़्ज़त (आजिज़ी) इख़्तेयार करे शौहर की ख़ातिर बनाओ सिंघार करे और उससे खुश रहेऔर ना महरमों (गैर लोगों) से अपनी इस्मत महफूज़ रखे , शौहर की फ़रमांबर (आज्ञा का पालन) करे और उसपर क़ब्ज़ा जमाने की कोशिश न करे।

(5) जब आप किसी औरत का रिश्ता तलब करना चाहें तो दो रकअत नमाज़ अदा करे अल्लाह की तारीफ़ करें और यह दुआ पढ़े।

अल्लाह हुम्मा इन्नी ओरीदो अन अता-ज़व्वजा फ़-क़द्रदिर- लीमिनन्रनिसाये अ-इफ़्फ़ा-हुन्ना फ़रजंव व अहफ़ज़ाहुन्ना ली फ़ी नफ़सेहा व माली व औ-सआ हुन्ना रिज़क़व व अअ.-ज़मा हुन्ना बरकतंव व क़द्रदिर ली वलदन तययेबन तज-अला-हूँ ख़लक़न सालेहन फ़ी हयाती व बादा मौती , ,

या –अल्लाह , मैं निकाह करना चाहता हूँ। पस मुझे एक ऐसी औरत अता फ़अमा जो बे-हद नेक हो , वहमेरी ख़ातिर खुद अपनी और मेरे माल की हिफ़ाज़त करे औरमेरे रिज़्क में वसअत का मूजिब हो- फिर उसे इस क़बिल बना कि वह एक बेटे को जन्म दे जो मेरी ज़िन्दगी मे भी और मेरे मरने के बाद भी मेरी बेहतरीन यादगार हो , ,

(6) मर्वी है कि जब क़मर –दर अक़रब का पहरा हो तो निक़ाह करना मुनासीब नहीं ,और यह कि निकाह के लिये सबसे बेहतर जुमे का दिन है।

(7) निकाह के मौके पर वलीमा की दावत करना मुस्तहब है।

(8) निकाह से पहले खुत्बा पढ़ना मस्तहब है चुनाँचे इमाम मो तक़ी (अ.स.) से यह

ख़ुत्बा –ए-निकाह नक़्ल किया गया है.

अल्हम्दो लिल्लाहे इक़रारन बे-नेअमतेही वला इलाहा इल्लल्लाहो इख़्लासलन ले –वहदानिय्यतेही व सल्लल्लाहो अला सय्यदे बरिय्यतेही वल असफ़ेयाए मिन इत –रतेही-

अम्मा बाद. फ़कद काना मिन फ़ज़लिल्लाहे अ-लल अनामे अन अग़नाहुम बिल हलाले अनिल हरामे फ़क़ाला सब्हानहु. वअनकेहुल अयामा मिन्कुम वस्सालेहीना मिनइबादेकुम व एमाएकुम इंययकूनू फुक़ा रा-आ युग़ने-हेमुल्लाहो मिन फ़ज़लेहि वल्लाहो वासेउन अलीम (सूर-ए-नूर आयत 32)

मैं अल्लाह की नेमतों का इज़हार करते हुए उसकी तारीफ़ करता हुँ उसकी वहदानियत के साथ इस बात की भी गवाही देता हूँ कि उसके अलावा कोई खुदा नही है औरबनी नौ-ए-इन्सान के सरदार (मों. मुस्तफ़ा (स.अ.) और उनकी बर-गुज़ीदा इतरत पर दुरूद व सलाम भेजता हुँ.

(इसके बाद कहता हुँ) यह अल्लाह का अपने बन्दों पर फ़ज़्ल है कि उसने इनकी रहनुमाई हलाल और हराम इम्तियाज़ की तरफ़ की है जैसा कि हर एक से पाक खुदा फ़रमाता है।

और तुम मे से जो मर्द और औरतें कुवाँरे हो उनके निकाह करा करो अपने नेकूकार गुलामो और लोंडियों (नौकरानियों) के भी (निकाह कर दिया करो)। अगर वे फ़क्र व फ़ाका की हालत मे होंगे तो अल्लाह वुसअत वाला और इल्म वाला है।

मुस्तहब है कि शबे जुफ़्फ़ाफ़ (हमबिस्तरी की रात मे ज़ौजा और शौहर वुजू करें और दो रकअत नमाज़ अदा करे।

फिर शौहर अल्लाह की हम्द व सना (तारीफ़) करने और रसूले अकरम (स.अ.) और आपकी आल पर दुरूद व सलाम भेजने के बाद यह दुआ पढ़े।

अल्लाह हुम्मर जुक़नी उलफ़ता-हा व वुद्रदह वरेज़ाहा व अर –ज़ेनी बेहा वजमअ बै-नना बे अहसनिज तेमाइंव व उनसिंव व अयसरेअ तेला फ़िन फ़-इन्ना तो –हिब्बुल हलाला व तक-रहुल हराम ,

या अल्लाह मुझे इस औरत कीमोहब्बत , उल्फ़त उल्फ़त औरखुशी अता फ़रमा। मुझे मुतमईन कर दे और हमें हम –ख़्याली , यगानेगत और कशिसके ज़रिये एक दुसरे के साथ अच्छी तरह से वाबस्ता कर दे , क्यों कि तू हलाल को पसन्द आर हराम कोना –पसन्द फ़रमाता है।

मुनदर्जा ज़ैल (निम्नलिखित) मौक़ों और हालात में मुजामेंअत (हम- बिस्तरी) मकरूह है।

1. जब इन्सान कपड़े उतारकर बर्हना (नंगा) हो गया हो।

2. जब इन्सान खड़ा हो।

3. जब कोई तीसरा शख़्स शौहर और बीवी की आवाज़ सुन रहा हो।

4. जब उस जगह कोई बच्चा मैजूद हो।

5. वुजू किये बग़ैर (जब औरत हाम्ला हो)।

6. अज़ान और अक़ामत के दरमियान वक़्फ़े में।

7. ग़ुरूबे आफ़ताब के वक़्त।

8. रात के इब्तेदाई हिस्से में (शुरू रात में)

9. (15) शाबान की रात।

10. ईदुल –फ़ित्र और ईदुल-कुर्बान ककी रात।

11. माह शाबान की आख़िरी दिन में।

12. चाँद गहन और सूरज गहन के वक़्त।

13. जिस दिन तेज़ हवाए चले या ज़लज़ला आये।

14. खुले आसमान के नीचे।

15. सूरज के सामने

16. फलदार दरख़्त (पेड़) के नीचे।

17. किसी इमारत की छत पर।

18. जब इन्सान कश्ती में हो।

19. जब पानी दस्तेयाब न हो।

20. औरत के अय्यामे हैज़ मे उससे मुजामेअत हराम है।

(1) सोमवार की रात, मंगल की रात, जुमेरात की रात, जुमेरात के दिन और जुमे की रात मुजामेअत (सेक्स) करना मुस्तहब है।

इस्लाम ने शौहर और बीवी के कुछ फ़रायज़ मुताअय्यन (निश्चित) किये है , जिनकी सही-सही अदायगी न फ़क़त यह कि उनके इख़्तेलाफ़ात (मतभेदों) को दूर करती है बल्कि उनके दरमियान एक ऐसी उल्फ़त और मोहब्बत पैदा कर देती है जिससे उनकी ज़िन्दगी खुश्गवार हो जाती है।

बीवी के फ़रायज़ (पत्नि के कर्तव्य)

बीवी के लिये लाज़िम है कि...

1. अपने शौहर की इताअत करे।

2. शौहर की इजाज़त के बग़ैर न तो उसका माल ख़र्च करे और न किसी को ब-तौर तोहफ़ा दे।

3. शौहर की इजाज़त के बग़ैर अपने माल में से भी किसी को कुछ न दे।

4. शौहर की इजाज़त के बग़ैर इस्तहबाबी रोज़ा न रखे।

5. अगर शौहर उससे ख़फ़ा हो तो (चाहे ज़्यादती शौहर की ही हो) रात को न सोये बल्कि उसे और ख़ुश करने की कोशिश करे।

6. अपने शौहर की ख़ातिर बनाओ सिंघार करे।

शौहर के फ़रायज़

शौहर के लिये लाज़िम है कि..

1. बीवी को रोटी रपड़ा मोहय्या करे

2. बीवी को ऐसा सामान खाने पीने का मोहय्या करे जो लोग आम तौर से इस्तेमाल करते हों।

3. ईदों (त्योहारों) के मौक़ो पर उसे मामूल मोहय्या करे।

4. बीवी के साथ अच्छा सुलूक करें।

5. अगर बीवी से कोई गलती हो जाये तो माफ़करदे।

6. बीवी के साथ सख़्ती से पेश न आये।

7. अपने कारोबार का इन्तेज़ाम उसके सुपुर्द न करे।

8. बीवी को एक ऐसा काम करने ब़ाज़ रखे जिसका अन्जाम बुरा होने का इम्कान हो।

9.हरचार रातों मे से कम से कम एक रात उसके साथ सोये और हर चार महीनों में कम से कम एक मर्तबा उससे मुजामेअत करे।

औलाद

1.अगर कोई शख़्स ला-वलद मर जाये तो वह एसा ही है जैसे कि पैदा ही न हुआ हो और अगर अपने पीछे औलाद छोड़कर मरे तो ऐसा है जैसे वह मरा ही न हो।

2.रवायत है कि बेटियाँ तो नेकियाँ है और बेटे नेमतें हैं। अल्लाह नेकियो का अज्र देता है और नेमतो के बारे में ब़ाज़ पुर्स करता है।

बेटी और बहन की बरकत

रसूले अकरम (स.) ने फ़रमाया , अगर किसी श़ख़्स की तीन बेटियाँ या तीन बहनें हों वह उनकी ज़िम्मेदारी सँभाले औऱ उनकी परवरिश की ख़ातिर ज़हमत उठाये तो अल्लाह ताला अपने फ़ज़ल व करम से उसे जन्नत में दाख़िल करेगा

इस पर एक शख़स ने सवाल किया ,या रसूलल्लाह (स.) अगर उसकी दो बेटियाँ यादो बहने हो।

रसूले अकरम (स़.अ.) ने फ़रमाया

तब भी वह जन्नत मे दाख़ि होगा।

तलबे औलाद

रवायत है कि तलबे औलाद के लिये इन्सान को चाहिये कि फ़ज्रऔर इशा की नमाज़ के बाद सत्तर मर्तबा अस्तग़फेरूल्लाह को और उसकेबाद यह आयत पढे

अस्तग़फ़ेरू रब-बा- कुम इन्नहु कानाग़फ़्फ़ारंम युर-सेलिससमाआ अलैयकुम मिदरारंव व युमदिदकुम बे-अमवीलिंव व बनीना व यजअल लकुम मिदरारंव व यज अल लकुम अन्हार।

अपने परवरदिगार से मग़फ़ेरत चाहतें हैं बेशक वह बड़ा बख़्श ने वाला है वह तुम पर आसमान (की तरफ़) से ख़ूब मेंह (मूसलाधार बारिश) बरसायेगा बरसायेगा और तुम्हें माल व औलाद में तरक़्क़ी देगा।

वह तुम्हारे लिये बाग़ात पैदा करेगा और नहरें जारी करेगा।

एक और रवायत में है कि औलाद तलब करने के लिये बिस्तर में लेटे-लेटे मुन दर्जा ज़ैल आयत पढ़नी चाहिये।

व ज़न्नूने इज़-ज़-हबा मुग़ाज़ेबन फ़-ज़न्ना अल-लन नक़देरा अलैय-हे फ़नादा फ़िज़-ज़लोमाते अल-ला-इलाहा इल्ला अन्ता सुब्हानका इन्नी कुन्तो मिनज़ ज़लेमीन फ़स-त-जबना लहू व नजजैनाहोमिनल ग़म्मे वक़जालेका नुनजिल मोमेनीना व अन्ता ख़ैरूल वीरेसिन।

और जब ज़न्नून (यूनुस (अ.स.)) गुस्से में आकर चले गये उन्होने गुमान किया कि हम उनकी रोज़ी तंग न कर दें फिर उन्होने तारीकिये में से पुकारा कि तेरे सिवा कोई माबूद नहीं और तू पाक है बेशक मैं (ही) क़ुसूरवार हूँ पस हमने उनकी दुआ कुबूल की और उन्हें ग़मसे निजात दी। हम मोमिनो को इसी तरह निजात दी। हम मोमिन को इसी तरह निजात दी। हम मोमिन को इसी तरह निजात दिया करते हैं। जब ज़करिया (अ.स.) नेअपनॊ रब को पुकारा कि ऐ परवरदिगार मुझे तनहा (बे-औलाद) न छोड़ना और तु ही सब वारिसों से बेहतर (वारिस) है।

(सूर - ए - अम्बिया आयत 87से 89 तक )

कुछ और हदीसो में आया है कि अगर किसी शख़्सकी बीवी हामिला हो औरवह नियत करे कि वह अपने बेटे का नाम मोहम्मद या अली रखेगा तो अल्ला उसे बेटे से नवाज़ेगा।

हामिला औरत को चाहिये कि वह बेही और .क़ीकर .का गोंद खाये और बच्चे की पैदाइश के बाद ताज़ी खजूरें खाये।

बच्चे की पैदाइश

मुनासिब है कि बच्चे की पैदाइश के बाद इमाम हुसैन (अ.स.) के रौज़े की ख़ाके शिफ़ा को दरिया-ए-फुरात के पानी में मिलाकर उसके तालू पर लगाई जाये। अगर दरिया-ए-फुरात का पानी दस्तियाब न हो तो बारिश का पानी इस्तेमाल किया जाये।बच्चे के दायें कान में अज़ान और बायें कान में अक़ामत कही जाये।

2. रवायत है कि जब किसी औरत के लियेबच्चे को जन् देना मुश्किलहो जाये तो उसके लिये यह आयात पढ़ना चाहिये ,

फ़ अजा-अ-हल मख़ाज़ो एला जिज़ इन नख़-लतेक़ालत या लयतनी मित्तो क़ब्ला हाज़ा व जाला रब्बोके तहतके सरिय्यन व हुज़्ज़ी एलायके बे जिज़-इन-नख़-लते तो-साक़ित अलैयके रूतबन जनिय्यन ,,

पस दर्द ज़ेह उन्हें खजूर के दरख़्त तले ले आया तो उन्होंने कहा ऐ काश कि मौं इससे क़ब्ल ही मर गई होती और भूली बिसरी हो जाती तब किसी ने उन्हें ज़मीन के नीचे से पुकारा कि रंजीदा ख़ातिर न हो तेरे परवरदिगार ने

तेरे पाँव के नीचे एक चश्मे को जारी कर दिया है और तुम ख़जूर के तने को पकड़कर अपनी तरफ हिलाओ तुम पर पके हुए खुर्मे गिरंगे।

( सुर .- ए - मर्यम - आयात 23से 25 तक )

3.बेहतरीन नाम वह है जिससे अल्लाह के सामने इन्सान कीउबूदियत का इज़हार होता है।होता है (मसलन अब्दुल्लाह) इसके बाद अम्बिया (अ.स.) केनाम हैं।

4.मुनासिब है किबच्चे की पैदाइश से पहले ही उसका एक अच्छा सा नाम रख दिया जाये।

5. रसूले अकरम (स.) ने फ़रमाया है जिस शख़्स के चार फ़र्ज़न्द हों और वह उनमें सें एक को भी मेरा हम नाम न बनाये तो उसे मेरे साथ मोहब्बत नहीं है।

6. पैदाइश के वक़्त बच्चे को नहलाने की ताकीदी हिदायत की गई है।

हजामत ,ख़ाना और अक़ीक़ा

1. जो शख़्स हैसियत वाला हो उसे बच्चे का अक़ीक़ा (जानवर की क़र्बानी) करने की पुरज़ोर ताकीद की गई है और बेहतर यह है कि अक़ीक़ा बच्चे की पैदाइश के सातवें दिन किया जाये अगर इसमे ताख़ीर हो जाये तो बच्चे के बाप को चाहिये कि बच्चे के सिव — बुलूग़ियत को पहुँचने तक उसका अक़ीक़ा कर दे नही तो उसबच्चे के बालिग़ होजाने के बाद ख़ुद उसके लिये मुस्तहब है कि वह जीते जी अपना अक़ीक़ा करे।

2. बच्चे की पादाइश के सातवेंदिन उसका अक़ीक़ा करने सेपहले उसका सिर मुऩडवाना मुस्तहब है। फिर उसके सिरके बालों के बराबर चाँदी या सोना बतौरे सदका देना चाहिये फ़र्ज़न्दे नरीना (लड़के का) ख़त्ना कराना पैदाइश के सातवें दिन ही अंजाम दिया जाये।

3. रवायत के मुताबिक़ बच्चे का ख़त्ना कराते वक़्त यह दुआ पड़नी चाहिये

अल्लाह हुम्मा हाज़ेही सुन्नतोका व सन्नतो नबिय्येका सलावातोका अलैयहेव आलेही वत्तेबाउम मिन्ना-लका वले नबिय्येका बे मशिय्यतेका व अमरिन अन-कज़ा-का ले-अमरिन अ-रत्तहू व क़ज़ा-इन हत्तम-तहू व अमरिन अन्ता अअ-फ़ज़-तहू व अ-ज़फ़-तहू हर्रल-हदीदेफ़ी ख़ेतानेहि व हजा- मतेहि बेअमरिन अन्ता अअ.-रफ़ो बेही मिन्नी

अललाह –हुम्मा फ़-तहहिरहो मिनज़ ज़ुनूबे व ज़िदफ़ी उमरेही वद-फ़-इलआल्लाह- हुम्मा फ़अ. अनहुल फ़क़रा फ़-इन्नाका तअ.-लमो वला नअ.-लमो ,,।

या अल्लाह यह तेरा मुक़र्रर किया हुआ तरीक़ा और तेरे नबी की सुन्नत है कि तू उन पर और उनकी पाक आलपर दुरूद भेजता है (ख़त्ने के) इस अमलमें हम तेरी मशिय्यत , इरादे और फ़ैसले के मुताबिक तेरी इताअत और तेरे नबी की इताअत करते हैं ,जैसा कि तूने इरादा किया मोहकम फ़ैसला किया और इसका सवाब क्या है तेरा वह हुक्म जिसके तहत तूने इस (बच्चे) को इसका सिर मुऩडवाने और ख़त्ना करवाने मे लोहे (के औज़ार) की काट का मज़ा चखाया है।इसकाम की मसलहत को तू मुझसे ज़्यादा जानत है।

या अल्ला तू इस बच्चे को गुनाहों से पाक कर दे.इसको लम्बी उम्र अता फ़रमा दे , इसके बदन को आज़ार (तकलीफ़ों से बचाये रख , इसे कशायश अता करना और मुफ़्लसी से बचाये रकना और जो कुछ तू जानता है , हम नहींजानते ,,।


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