इस्लामी तालीम

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इस्लामी तालीम लेखक:
कैटिगिरी: अख़लाक़ी किताबें

इस्लामी तालीम

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: अल्लामा मजलिसी
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इस्लामी तालीम
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इस्लामी तालीम

इस्लामी तालीम

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

शीर-खार्गी (दूध पिलायी)

1.शीर-ख़ार्गी की ज़्यादा से ज़यादा मुददत दो साल है और किसी माकूल (सही) उज्र के बच्चे को इससे ज़्यादा अर्से तक दुध पिलाना जायज़ नहीं।इसके अलावा जब तक ज़रूरी न हो दुध पिलाने की मुददत 21 माह से कम नहीं चाहिये।

2. बच्चे केलिये सबसे मुफ़ीद (फ़ायदेमन्द) और मुआफ़िक़ दुध माँ का है और वह दोनों तरफ से पिलाना चाहिये।

3. अगर बच्चे को दूध पिलाने के लिये आया (दुध पिलाने वाली) रखी जाये तो उसे कुबूलसूरत और नेक सीरत होना चाहिये क्योकि बच्चे पर दुध का असर पड़ता है।

तालीम व तरबियत (शिक्षा-दीक्षा)

1 बच्चे की परवरिश (पालन-पोषऩ) के बारे में कहा गया है कि सात साल की उम्र तक उन्हें खेलने देना चाहिये।अगलू सात साल उन्हें लिखना पढ़ना सीख़ना चाहिये। और फिर सात साल तक उन्हें हलाल व हराम के बारे में तालीम देना चाहिये।

2 जब लड़के छ. ( 6) साल की उम्र को पहुँच जायें तो उन्हे एक रज़ाई ओढ़ कर इकटठा नहीं सोना चाहिये। नीज़जब लड़के और लड़कियाँ दस साल की उम्र को पहुँच जायें तो उनके बिस्तर अलग जगह पर कर देना चाहिये।च्चों को नौ-उम्री (बचपन) मे ही हदीसे याद करा देनी चाहिये और उनकी तरबियत इस अंदाज़ से करनी चाहिये कि उनके दिलों में अमीरूल-मोमिनीन (अ.स.) की मोहब्बतऔर अक़ीदत पैदा हो जाये। इसके अलावा उन्हें कुर्आने मजीद ठीक पढ़ना चाहिये और तालीम दिलाकर किसी अच्छे रोज़गार पर लगा देना चाहिये।

3 अपने बच्चे की नौ-उम्र (बचपन) में गुस्ताख़ी और मुतहम्मुल मिज़ाजी (स्वभाविक सहनशीलता) की दलील है।

4 अपने बच्चों को तैराकी और तीर अन्दाज़ी ,निशाने बाज़ी ज़रूर सिखायें।

5 बच्चों से मोहब्बत करें उनके साथ बे-वक़अती (बे — हैसियती) और सख़्ती से पेश न आये।

6 ऐसा मुश्किल काम उनके ज़िम्मे न पेश न आये।

7 अगर आप उनके साथ कोई वायदा करे तो ज़रूर पूरा करें।

8 उन्हें बोसा दें (चूमें) क्यों जो शख़्स अपने बच्चे को चूमे अल्लाह ताला उसके नाम-ए-आमाल में एक नेकी लिख देता है।

9 अपने बच्चे को खुश करें ताकि अल्लाह ताला क़यामत के दिन आपको खुश करें।

10 बच्चों के साथ बच्चे की तरह ख़ेले।

11 इल्म और नेकी के अलावा किसी और बिना पर उनके बीच इमतियाज़ (फ़र्क़) न बर्ते।

12 रात को सोने से पहले उनका हाथ मुँह धलायें।

13 जब कभी आप अपने घर के तरजीह (प्रधानता) दें।

14 अपने बच्चे को ख़ुश व खुर्रम रखें।

15 इस बातका ख़याल रखें कि जब लड़की छ.साल की हो जाये तो कोई ना- महरम (अपरिचित , ख़ूनी रिश्तेदार छोड़कर सभी लोग) न तो उसका बोसा लें और न उसे अपनी गोद में बैठायें।

16 जिस लड़के की उम्र सात से ज़्यादा हो उसके लिये आरतो का बोसा लेना दुरूस्त नहीं।

17 इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) से रवायत है कि आपने फ़रमाया .एक शख़्स के घर के अफ़राद उसके गुलाम है लिहाज़ा जब अल्लाह ताला किसी शख़्स को अपनी रहमत से नवाज़े तो उसे चाहिये कि उसको अपने गुलामो तक फैला दे वरनःजल्द ही वह रहमत मादूम (ख़त्म) हो जाती है।

वालदैन (माता –पिता)

वालदैन (माता-पिता) की इज़्ज़त करना दीन की अहम तरीन हिदायत में से है. उनकी नाफ़रमानी (बात न मानना) करना गुनाहे कबीरा (बड़ा गुनाह) है।

1.एक बेटे को अपने वालेदैन के हुक्म को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिये सिवाये इसके जब व उसे दीन इस्लाम को तर्क करनेपर मजबूर करें।वालदैन के साथ अच्छा बर्ताव करना चाहिये।

2. इन्सान को चाहिये कि अपने बाप को नाम लेकर न पुकारे रास्ता चलते हुए उनसे पे-क़दमी न करे ,जिसके नतीजे (स.अ.) ने फ़रमाया है कि चार लौगों के चेहरे पर निगाह डालना अल्लाह के ज़िक्र के बराबर हैः

(1) इमाम आदिल ( 2) आलिमे हक ( 3) वालिद ( 4) वालिदा हज़रत (स़.अ.) न यह भी फ़रमाया है कि तीन गुनाह ऐसे हैं जिनकी सज़ा इन्सान इसी दुनिया में जल्द ही पा लेता है।

(1) वालदैन की नाफ़रमानी ( 2) अल्लाह की मख़लूत़ (नौ-ए-इन्सान) पर जुल्म करना ( 3) अल्लाह और उसकी मख़लूक़ का ना-शक्रगुज़ार होना।

3. अपनी माँ के साथ बहुत ही अच्छा बर्ताव करे।

4. अपने वालदैन को सख़्त नज़रों से न देखे बल्कि उन पर मोहब्बत और हमदर्दी की निगाह डाले।

5. जब वालदैन फौत (मर जाये) हो जाये तो उनका अपने फरज़न्दो पर हक कि व उनके क़र्ज़े अदा करें और क़ुनूत में उनके लिये दुआ-ए-मग़्फ़ेरत (क्षमा हेतु प्रार्थना) करे और नमाज़ के बाद यह दुआ पढ़े।

रब-बनग़ फ़िर्ली वले वाले दय्या व लिल मोमेनीनीना यौमा यक़ूमुल हिसाब ,,

ऐ परवरदिगार हिसाब के दिन मुझे मेरे वालदैन और मौमेनीन को बख़श देना। (सूरः-ए-इब्राहीम (अ.स.) आयात न. 41)

सफ़ाई और तहारत

इस्लाम ने सफ़ाई को इतनी अहमियत दी है कि उसे ईमान का एक हिस्सा क़रार दे दिया है। जैसा कि कुर्आने मजीद सफ़ाई और तहारत की ताकीद करते हुए फ़रमाता है

मा युरीदुल्लाहो ले यजअला अलैयकुम मिन हरा-जिंव वला किंय योरीदो ले-यो-तह-हेरा कुम वले योतिम्मा नेअ-मता-हू अलैयकम अल-लकुम तशकुरून ,

(सूरः - ए - मायदा आयात न 6)

अल्लाह नहीं चाहता कि तुम्हारे लिये कोई तंगी (मुशकिल) पैदा करे मगर यह कि तुम्हें पाक कर दे और अपनी नेमततुम पर तमाम कर दे ताकि तुम शक्रगुज़ार बनो।

इन्नल्लाह यो हिब्बुतृ-तव्वाबीना व यो हिब्बुल मुतह-हेरीना.

( सुरः-ए-बक़रा आयात न. 222)

बेशक अल्लाह तौबा कने वालों को पंसन्द करता है।

इस्लाम ने बर्तनों , कपड़ो , बदन , बालो , दातों , पीने के पानी , वुज़ू और गुस्ल करने के पानी रिहाईश गाहों , गली-कूचों अवामी जगहों खाने पीने की चीज़ो और इन्सान पर ज़ोर दिया है। रसूले अकरम (स.अ.) और आइम्मा-ए-ताहेरीन (अ.स.) की कई एक अहादीस में हर उस नफ़रत-अंगेज़ चीज़ को जो बीमारी पैदा करती है , उस (मसलन जरासीम) को शैतान से मनसूब किया गया है और ऐसी तमाम चीज़ों को गुर्बत और मुसीबत का मूजिब गर्दाना गया है।

दाँत साफ़ करना

1. रवायत की गई है कि रसूले अकरम (स.अ.) ने फ़रमाया जिब्रईल ने मिसवाक करने पर इतना ज़ोर दिया कि मैं समझा कियह अमल मेरी उम्मत पर वाजिब कर दिया जायेगा।

2. मिसवाक (टूथब्रश) से दाँत नीचे से ऊपर को साफ़ किये जायें और उसके बाद पानी के साथकुल्ली कर लेना चाहिये।*

3. नमाज़ अदा करनेसे पहले मिसवाक करने के 12 फ़ायदे हैं।

(1) यह पैग़म्बरों का अमल है।

(2) यह अल्लाह की ख़ुशनूदी का मूजिब है

(3) यह मुँह को साफ करता है।

(4) यह आँखो की रौशनी को तेज़ करता है।

(5) यह बलग़म निकालता है।

(6) यह हाफ़िज़े (याद-दाश्त) को बढ़ाता है।

(7) इससे दाँत साफ़ होते है।

(8) इस नेक आमाल का सवाब कई गुना बढ़ जाता है।

(9) यह दाँतो की कम ज़ोरी दूर करता है और उन्हें गिरने से रोकता है।

(10) यह दाँतों की जड़ो को मज़बूत करता है।

(11) फ़रिश्ते उन लोगों से खुश होते हैं जो मिसवाक करते है।

(12) यह भूख के सेहत मन्दाना अंदाज़ में बढ़ाता है।

4. इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) और इमाम अली रज़ा (अ.स.) के इरशाद के मुताबिक हज़रत इब्राहीम (अ.स.) की आदतों मे से पाँच ऐसी है। जिनका ताल्लुक़ धड़ से है।

जिन पाँच चीज़ो का ताल्लुक़ सर से है , वे यह है।

(1) मिसवाक करना।

(2) मुँछों को काटकर दुरूस्त करना।

(3) वुजू में सर का मसा करनेके लिये बालोंमे मांग निकालना।

(4) पानी के साथ कुल्ली करना।

(5) पानी के साथ नाक साफ़ करना।

जिन पाँच चीज़ों का ताल्लुक़ धड़ से है वे यह हैः

(1) खत्ने कराना

(2) नाफ़ के नीचे के ग़ैर ज़रूरी बाल साफ करना।

(3) बग़लों के बाल साफ़करना।

(4) नाख़ुन काटना।

(5) पेशाब के बाद शर्मगाह को पानी से धोना

5. रसूले अकरम (स.अ.) के फ़रमान के मुताबिक़ तीन चीज़ें ऐसी हैं जो इनसान के हाफ़िज़े कोतेज़ करती और तमाम दर्दो से शिफ़ा बख़्शती हैं।

(1) गोंद का चबाना।

(2) मिसवाक करना

(3) क़ुरआने मजीद की तिलावत करना

एक और हदीस में रसूले अकरम (स.अ.) ने फ़रमाया है कि मिसवाक करने के बाद नमाज़ की दो रकअते अदा करना सत्तर रकअतों से बेहतर है जो मिसवाक किये बग़ैर अदा की जाये।

बाल तर्शवाना

1 .जब सर के बाल लम्बे हो जाये तो उन्हें तर्शवा दें।

जब आप बाल तर्शवाना चाहें तो क़िब्ला –रू (किब्ले के सामने होकर) बैठें और शुरू में यह दुआ पढेः

अल्लाह हुम्मा अअ-तेनी बे-कुल्ले शअ-रतिन नू-रंय यौमल केयामते ,,।

मैं यह अमल अल्लाह के नाम से शुरू करता हुँ। इसे अंजाम देने में उसकी मदद चाहता हूँ और मैं यह अमल रसूलल्लाह के दीनी अहकाम के मुताबिक़ कर रहा हूँ। ऐ परवरदिगार मेरे बाल के एवज़ क़यामत के दिन मुझे एक रौशनी अता फ़रमा।

जब आप बाल तरशवा चुकें तो कहेः

अल्लाह हुम्मा ज़य्यिन्नी बित-तवा व जन्निब निर –रेदा ,,

ऐ परवरदिगार मेरी आराइश तक़वा से कर और मुझे ग़ुमराही से बचा।

2. बनाओ सिघांर की ख़ातिर औरतों का अपने माथे और चेहरे के बाल उखाड़ने में कोई हर्ज नहीं।

3. मर्दो के लिये मुस्तहब है कि मुनदर्जा ज़ैल (निम्नलिखित) तरीक़ों में से काई एक इख़्तेयार करें।

(बेहतर है कि) वे अपने सर के बाल तर्शवायें या उन्हें बढ़ने दें कि चंदिया नज़र आने लगे।

मुँछे तराशना

इमाम जाफ़रे सादिक (अ.स.) ने फ़रमाया कि जो शख़्स जुमे के दिन मूँछें तराशेया नाख़ुन काटे उसके लिये ज़रूरी है कि यह दुआ पड़ेः

बिहिमल्लाहे व बिल्लाहे व अला सुन्नते मोहम्मदिंव व आले मोहम्मद व आलेमोहम्मद की सुन्नत के मुताबिक़ अमल करता हुँ।

अल्लाह के नाम से , मैं उसी पर भरोसा करता हुँ और मोहम्मद व आले मोहम्मद के मुताबिक़ अमल करता हुँ।

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ) की एक और हदीस के मुताबिक़ मूँचों का तराशना ग़मगीनी और औहाम परस्ती (वहम का बहु औहाम) को कम करता है और यह रसूले अकरम (स.अ.) की सुन्नत भी है।

मूँछो का काटना सुन्नते मौअक्केदा (ऐसी सुन्नत जिसकी ताकीद की गई है और जितना आप उन्हे उनकी जड़ों से काटें उतना ही बेहतर है।

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) अपनी मूँछो को बालो की जड़ों तक काटा करते थे आप यह भी फ़रमाते थे कि नाख़ुनों का जुमे के दिन काटना इन्सान को उस जुमे से अगले जुमे तक बफ़ा (सर के बालों की सकरी) के आर्ज़े से महफूज़ रखता है।

दाढ़ी रखना

इन्सान क़ी दाढ़ी दरमियाना सी होनी चाहिये यानि न बहुत लम्बी और न बहुत छोटी हो। दाड़ी का मुठ्ठी भर से लम्बी होना मकरूह है और उसके ना जायज़ होने का भी इम्कान है।

उलमा मे यह क़ौल मशहूर है कि दाढी का मुंडवाना जायज़ नहीं है।

नाखून काटना

1. हर जुमे को नाख़ून काटना , मुँछे तराशना और नाक के अन्दर से बाल खींचना मुसतहसन (अच्छा) है।

2. नाख़ून काटना सुन्नते मौअक्कदा है।

3. औरतों के लिये जायज़ है कि नाख़ून छोड़ दें , लेकिन मर्दो को चाहिये है कि बढ़े हुए नाख़ून पूरे काटें।

4. नाखून काटने के लिये बेहतरीन दिन जुमे का है।

5. जो बाल नाख़ून और ख़ून बदन से अलग हो जाये उसे ज़मीन में दफ़न कर देना चाहिये।

कंघा करना

सर और दाढ़ी के बालो में कंघा करने के कई फ़वायद हैं एक मोअतबर रवायत के मुताबिक़ इमामं जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने फ़रमाया कि अच्छे कपड़ों का इस्तेमाल दुश्मन को पस्त करता है , बदन पर तेल लगाना ज़ेहनी ख़िचाव और परेशानियों को कम करता है बालों मे कंघा करना दाँतों को मज़बूत करता है। रोज़ी में इज़ाफ़े का बायस बनता और कुव्वते बाह (बाजुओं की ताक़त को बढ़ाता है।

इत्र , खुश्बू और तेल का इस्तेमाल

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने फरमाया है कि इत्र का इस्तेमाल दिल को मज़बूत करता है और क़ुव्वेते बाह को बढाता है।

अमीरूल मोमिनीन इमाम अली (अ.स.) ने फ़रमाया है कि एक औरत के लिये लाज़िम है कि वह हमेशा अपने शौहर की ख़ातिर ख़ुश्बू लगाये।

इमाम अली (अ.स.) का फ़रमान है कि तेल का इस्तेमाल बदन को ज़्यादा जाज़िब बनाता है कि क़ुव्वत और ताज़गी बख़्शता है। बदन के मसानो को खोलता है जिल्द (खाल) की ख़ुश्की और सख़्ती को दूर करता है और चेहरे पर अजीब सी चमक लाता है।

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं कि ख़ुश्बुओं में मुश्क अंबर , ज़ाफ़रान और ऊद शामिल है।

1. इत्र और ख़श्बू का इस्तेमाल अम्बिया-ए-केराम के पंसदीदा मामूलात में से हैं।

2. जुमे केदिन ख़शबू के इस्तेमाल की बड़ी ताकीद की गई है।

3. यह ज़रूरी है कि मर्द तेज़ इत्र इस्तेमाल करे और औरत हल्का इत्र लगाये।

4. एक मुसलमाल औरत को अपने शौहर की ख़ातिर हर रोज़ इत्र इस्तेमाल करे लेकिन इत्र लगा कर घर से बाहर न निकले।

5. जब आरके लिये खुश्बू लाई जाये तो उसे क़ुबूल कर लेंऔर उसके लेने से इन्कार न करें।

बदन पर तेल लगाना

हर महीने में एक बार बदन पर तेल की मालिश मर्दो के लिये मुफ़ीद है जहाँ तक औरतों का ताल्लुक़ है अगर वहहर रोज़ भी तेल मलें तो उसमें कोई क़बाहत नहीं।

मालिश के लिये ब — नफ़्शा और सोसन के तेल सबसे बेहतर हैं।

ग़ुस्ल

ग़ुस्ल करना मुस्तहब है , हर रोज़ हमाम जाना मुनासिब नही लेकिन एक दिन छोड़कर अगले दिन हमाम में जाना ठीक है।

1.बदन का निचला हिस्सा ढ़ाँके बग़ैर खुले आसमान तले ग़ुस्ल करना और बर्हन्गी की हालत में नदी (या नहर) में दाख़िल होना मना है।

2. शिकम सेरी की हालत में हमाम में दाख़िल न हों।

3.जब भूख लगी हो तो ग़ुस्ल ख़ाने में जाये बलिकि उससे पहले कुछ खा पी लें।

4. हमाम में ठऩडा पानी न पियें और तर्बूज़ भी न खायें।

5. हमाम से बाहर आन के बादअपने पाँवों को ठऩडे पानी से धोयें।

6. गुस्ल ख़ाने में दाख़िल होने से पहले यह दुआ पढ़ें।

अल्लाह हुम्मा अज़ हिब अन्निर रिज्सा वन-नजा-सा व तहहिर जसा-दी व क़लबी। ,,

ऐ परवरदिगार मुझसे निजासत को दुर कर देऔर मेरे बदन और दिल को पाक करदे।

7. जब आप हमाम में हों तो पीठ या पहलू के बल न करे।

फ़िक़ा- हुर्रेज़ा में लिखा है कि ग़स्ले जुमा के बाद मुन-दर्जा ज़ैल (निम्नलिखित) दुआ पढ़नी चाहिये।

अल्लाह हुम्मा तहहिरनी व तहहिर क़ल्बी व अनके गुस्ली व अजरे अला लिसानी ज़िक-रका व ज़िकरा नबिय्येका मोहम्मदिन सल्ल्लाहो अलैयहे व आलेही वज अलनी मिनत-तववाबीना वल मुतह-हरन ,,

या अल्लाह मुझे और मेरे दिल के पाक कर दे , मेरे ग़ुस्ल को बा बरकत बना दे – मेरी ज़बान को अपनी और अपने रसूल मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.) और उनके अहैले बैत (अ.स.) की तारीफ़ में मशग़ूल कर दे और मुझे उन पाक दिल लोगों मे शामिल कर दे जिनकी तौबा क़बूल हो चुकी हो।

8. इन्सान को अपना सर और कपड़े धोने की ताकीद की गई है।

9. अपने बदन से उसबदबू को दुर कीजिये जिससे लोगों को तकलीफ़ पहुँचती है। अल्ला ताला उन लोगों से नफ़रत करता है जो गन्दे हों और जिनकी फैलाई हुई बदबू से लोगों को तकलीफ़ पहुँचे।

10. बग़ल और नाफ़ के नीचे उगने वाले बालों को ना तराशना एक ना पसंदीदा फ़ेल है।

11. मुस्तहब है कि गुस्ले जनाबत करते वक़्त यह दुआ पढ़ी जाये।

अल्लाह हुम्मा तहहिर क़ल्बी वज़क्की अमली व तक़ब्बल सअ-यी वजअल मा इन – दका ख़ैरल-ली-अल्लाह हुम्मज अलनी मिनत-तव्वाबीना वज –अलनी मिनल मुतह-हरीन ,,

या अल्लाह मेरा दिल पाक कर दे , मेरा अमल ख़ालिस बना दे , मेरी कोशिश क़बूल फ़रमा मुझे वही एनायत कर जो मेरे लिये अचछा हो मुझे उन लोगो में शामिल कर दे जो पाक दिल और सालेह हैं और जनकी तौबा कुबूल की गई है।

12. मनासिब है कि गुस्ले जुमा उस दिन की सुबह से दोपहर तक तर्क न किया जाये और यह दोपहर के जिस क़द्र क़रीब हो बेहतर है।

गुस्ले जुमा दोपहर के बाद शाम तक क़ज़ा गुस्ल की नियत करके भी किया जा सकता है।

13. रवायत के मुताबिक़ मुस्तहब गुसल इस तरह हैः

(1) रमज़ानुल मुबारक की ताक रातो-और ख़ास कर की पहली पन्द्रहवी सत्ररहवीं , उन्नीसवी , इक्कीसवीं और तेईसवी रात को।

(2) ईदुल फ़ित्र की रात को ईदुलक़ुर्बान के दिन।

(3) आठवी ज़िल – हिजा के दिन।

(4) अर्फ़े के दिन तक़रीबन ज़ोहर के वक़्त।

(5) माहे शाबान की दरमियानी रात को।

(6) माहे रजब की दरमियानी रात को।

(7) रसूले अकरम (स.अ.) की बेसत के दिन ( 27 रजब)

(8) ग़दीरे ख़ुम के दिन ( 18 ज़िल-हिज्जा)

(9) मुबाहेला के दिन ( 24 या 25 ज़िल-हिज्जा)

(10) नौ –रोज़ के दिन ( 21 मार्च)

इसी तरह मुनदर्जा ज़ैल पर ग़ुस्ल करना भी मुस्तहब है।

(1) हज या उमराह के लिये अहराम बाँधते वक़्त।

(2) रसुले अकरम (स.अ.) और आइम्मा –ए- ताहेरीन (अ.स.) की ज़ियारत के मौक़ै पर।

(3) इस्तेख़ारा करते व़क़्ते

(4) तौबा करते वक़्त

(5) सूरज गहन की क़ज़ा नमाज़ पढ़ने के वक़्त चाहे नमाज़जान बुझ कर तर्क की गई हो।

(6) हरमे मदीना , मदीना शहर और मस्जिद नबवी में दाख़िले के वक्त।

(7) तवाफ़ की ख़ातिर खान-ए-काबा में दाख़िले के वक़त।

(8) क़ुर्बानी के तौरपर जानवर ज़िबह करते वक़्त।

(9) पैदा हुए बच्चे को नहलाते वक़्त।

(10) यौमे मीला-दुन्नबी (स.अ.) ( 17 रबी-उल-अव्वल)।

(11) दुआ-ए-बारां करने के लिये।

(12) एक ऐसे शख़्स को देखने के बाद जिसे सही या ग़लत तौर पर फाँसी दे दी गई हो

(13) मय्यित को गुस्ल दिये जाने के बाद मस करने के लिये

(14) छिपकली को मारने के बाद।

सोना , जागना और बैतुल ख़ला में जाना

सूरज निकलने के बाद , मग़्रिब और इशा की नमाज़ों के दरमियान और अस्र की नमाज़ के बाद सोन मकरूह है और फ़ज्र और सुरज निक़लने के बीच सोना मना है।

1 .क़ैलूला करना (यानि दोपहर को सेना) सुन्नत है।

2 .सोने से पहले वुज़ू या तयम्मुम करके सोये तो जब तक वह सोया रहे ऐसे ही है जैसे कि नमाज़ पढ़ रहा है।

3 सोते वक़्त दायें पहलू पर क़िब्ला –रू-होकर सोये और दायां बाजू अपने सर के नीचे रखें

सोने के आदाब

इमाम मो.बाक़िर (अ.स.) से मर्वी है कि जब इन्सान अपना दायां हाथ अपने सर के नीचे रख कर बिस्तर में लेट जाये तो उसे चाहिये कि यह दुआ पढ़ेः

बिस्मिल्लाहे , अल्लाह हुम्मा इन्नी अस-लमतो नफ़्सी एलयका व वज- जैहतो वज-ही एलयका , व फ़व-वज़तो अमरी एलयका व अल-जैतो ज़हरी एलयका वता- वक्कलतो अल़ैयका रहबतम मिनतो बे- किताबेकल लज़ी अन-ज़लता व-बे-रसूलेकल-लज़ी अर-सल्ता ”

मैं अल्लाह के नाम से शुरू करता हुँ — याल्लाह. मैं अपनी जान तेरी हिफ़ाज़त में देता हुँ –अपना मुँह तेरी जानिब करता हुँ अपना मामला तुझे सौंपता हुँ तेरा सहारा लेकर लेटा हुँ मैं फ़क़त तुझ ही से डरता हुँ और तुझ ही से पनाह चाहता हुँ तेरी नाज़िल की हुई किताब और तेरे भेजे हुए रसूल पर ईमान ला चुका हूँ।

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक (अ.स.) भी पढ़ना चाहिये।

1.बे — सबब और जरूरत से ज़्यादा सोना।

2.किसी माक़ुल वजह के बग़ैर हँसना।

3.शिकमसेरी की हालत में कुछ और खाना।

आपने यह भी फ़रमाया कि शुरू में लोगों ने जिन छः आमाल के बारे में ना –फ़रमानी की ,वे यह हैः

1. दुनिया से मोहब्बत।

2 .सल्तनत से मोहब्बत।

3 औरत से मोहब्बत।

4 खूराक से मोहब्बत।

5 नींद से मोहब्बत।

6 आसाश से मोहब्बत।

(1) मस्जिद में सोना मकरूह है।

(2) अगर इन्सान किसी मकान में अकेला हो और सोना चाहे तो उसे चाहिये कि यह दुआ पढ़ेः-

अल्लाह हुम्मा आनिस वह शति व अ-इन्नी अला वह दती ”

या अल्ला खौफ़ और परेशानी में मेरा मददगार रह और इस तन्हाई में मेरी मदद फ़रमा।

ऐसी छत पर सोना जिसका जंगला न हो ऐसी जगह सोना जहाँ दो रास्ते अलग होते हों औरआलूदा हाथों के साथ सोना मना है।

(3) सोने से पहले और जाग उठने के बाद बैयतुल — ख़ला में जायें

(4) सोने से पहले अल्लाह को याद करना और क़र्आने मजीद की तिलावत करना सुन्नत हैं।इस सिलसिले में मुन-दर्जा ज़ैल सूरतो और आयतो को तिलावत की पुर ज़ोर सिफ़ारिश की गई हैः-

(1.) सूर-ए-काफ़ेरून

(2.) सूर-ए-काफ़ेरून

(3.) सूर-ए-नास (इन दो सूरतो को मोअव्वज़ातैन भी कहा जाता है)

(4.) सूर-ए-इख़्लास

(5.) आयतल कुर्सी

(6.) सूर-ए-साफ़्फ़ात की पहली दस आयात

(7.) सूर-ए-तकासुर

(8.) सूर-ए-तकासुर

(1) सूर-ए-फ़लक़

बिस्मिल्लाह-हिर्रहमा-निर्रहीम 0

क़ुल अ-ऊज़ो बे-रब्बिल फ़लक़े 0 मिनशर्र मा-ख़लाका 0व मिन शर्रे ग़ासेक़िन इज़ै 0 व मिन शर्रिन नफ़फासाते फ़िल-उक़दे 0 व मिन शर्रे हासे दिन इज़ा हसद 0”

अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है , कह दे कि मैं सुबह के परवरदिगार की पनाह माँगता हुँ हर उस चीज़ के शर से जो उसने ख़ल्क़ की है , रात की तारीकी के शर से , और हासिद के शर से जब वह हसद करे।

(2) सूर-ए-नास

बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम 0

क़ुल अ-ऊज़ो बे रब्ब्नि नासे 0 मलेकिन नासे 0 इलाहिन नासे 0 मिन शर्रिल वसवीसिल ख़न्नासिल लज़ी यो वसवेसो फ़ी सुदूरिन नासे 0मिनल जिन्नते वन्नास 0

अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबाननिहायत रहम वाला है ,कह दे मै इन्सानों के परवरदिगार की इन्सानों के बादशाह की और इन्सानों के बादशाह की और इन्सानों के माबूद की पनाह माँगता हुँ (छुप जाने वाले शैतान) के वुसवास के शर से जो इन्सानों के दिलों में वसवास डालता रहता है (चाहे) वह जिनों मे से हों या इनसानो में से हों।

(3) सूर-ए-काफ़ेरून

बिस्मिल्लाह हिर्रहमा-निर्रहीम 0

.कुलया अय्योहल ताफ़ेरूना 0 ला-अअबुदो मा-तअबोदूना 0वला अन्तुम आबेदूना मा-अअबुद 0 वला अना आबेदुम मा अबत्तुम वला अन्तुम आबेदूना मा-अअबुद 0लकुम दीनोकुम वलेया दीन 0

अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है , कह दे कि ऐ इन्कार करने वालो ,मैं उसकी बनदग़ी नहीं करूगाँ जिसकी तुम बनदगी किया करते हो , न ही तुम उसकी बनदगी करने वाले हो जिसकी मैं बनदगी करता हूँ न ही मैं उसकी बंदगी करने वाला हुँ जिसकी तुम बनदगी करते हो और न ही तुम उसकी बनदगी करने वाले हो जिसकी मैं बनदगी करता हुँ (पस) तुम्हारा दीन तुमहारे लिये और मेरा दीन मेरे लिये है।

(4) सुर-ए-इख़्लास

बिस्मल्लाह हिर्रहमा-निर्रहीम 0

.कुल हो वल्लाहो अहद 0 अल्लाहुस संमद लम यलिद वलम यूलद 0 वलम यकुल्लहू कुफ़ोवन अ-हद ”

अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है , कह देकि वह अल्लाह यकता (और यगाना) है अल्लाह बे नियाज़ है (जिसके सभी मौहताज हैं) न उसने किसी को जन्म दिया , ना ही वह खुद किसी से पैदा हुआ और उसका कोई हमसर (सानी , दुसरा) नहीं है।

(5) आयतुल कुर्सी

बिस्मिल्लाह हिर्रहमा-निर्रहीम 0

अल्लाहो ला इलाहा इल्ला होवा अल हय्युमो ला ताखुजोहू सिनातुंव वला नौमुन लहू मा फ़िस समावाते वमा फ़िल अर्ज़मनज़ल लज़ी यसफ़ओ इनदहू इल्ला बे इज़नेही यअलमो मा बैना अयदीहिम वमा ख़ल फ़हुम वला योहीतूना बे शैइम मिन इल्मेही इल्ला बेमा शाआ वसेआ कुर्सियोहुस समावाते वल अर्ज़ावला यओदोहू हिफ़्ज़ोहुमा व होवल अलीयुल अज़ीम 0 ला इक रहा फ़िददीन ख़त तबय्यनर रूश्दो मिनल ग़इये फमयं यक़फ़ुर बित तागूते व योअ मिम बिल्लाहे फ़क़ा-दिस तमसका बिल उर वतिल वुसक़ा लन फ़ेसामा लहा वल्लाहो समीउन अलीम अल्लाहो वलिय्युल लज़ीना आ-मन युख़रेजोहुम मिनज़ ज़लोमाते एलन नुर वल लज़ीना कफ़ा-रू औलियाओ हुमुत ताग़ूतो युख़रे जू नहुम मिनन नुरे एलज़ जुलोमाते ऊलायाका असहाबुननीरे हुम फ़ीहा ख़ालेदुन ”

अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है ,वही अल्लाह है कि उसके सिवा कोई माबुद नहीं वह हमेशा ज़िन्दा हर चीज़ का क़ायम रखने वाला है न उसे ऊँग आती है न नींद जो कुछ आसमानौ और ज़मीनों में है वह सब उसी का है। कौन है जो उसके हुजूर मै बग़ैर उसकी इजाज़त के सिफ़ारिश करे वह (इन्सान) उसके इल्म में से किसी चीज़ का इदराक नहीं कर सकते सिवाय उसके जो वह (ख़ुद) चाहे उसकी सलतनत आसमानो और ज़मीनो से वसीअ (बड़ी) है उसे इन दोनो की हिफ़ाज़त करने में कोई ज़हमत नही होती और वह बहुत आली मरतबत है।

दीन में कोई जब्र नही क्योकि हिदायत और गुमराहीमेंफ़र्क वाज़ेह हौ चुका है पस जिसने झूठे खुदाओं का इन्कार किया और अल्लाह पर ईमान लाया यक़ीनन उसने मज़बूत रस्सी को पकड़ लिया जो टुटनहीं सकती और अललाह सब सुनता जानता है अल्लाह सर परस्त है उनका जो ईमान लाये वह उन्हें गुमराही की तारीकियों सेहिदायत की रौशनी (नूर) की तरफ़ लाता है , वह जो (हक से) मुन्किर हो गये तो उनके कर परस्त शैतान हैं जो उन्हे नूर से तारीकियों की तरफ़ जाते हैं यही लोग अहले जहन्नुम है जो हमेशा उसमें रहैंगे।

(6) सू-ए-साफ़फ़ात (पहली दस आयतें)

बिसिमिल्लाह हिर्रहमा निर्रहीम)

वस्साफ़्फ़ाते सफ़्फ़न 0 फ़ज़्ज़ाजेराते ज़जरन 0 फ़त तालेयाते ज़िकरन 0इन्ना-इला-ह-कुम ल-वाहेदुन 0 रब्बुस समावातेवल अर्ज़ेवमा बैयना हुमा व रब्बुल मशारेक़े 0 इन्ना ज़य्यन्नससमा अददुनिया बे जीनते-निल कवाकिबे 0हिफ़्ज़म मिन कुल्ले शैतानिम मारेदिन 0 ला-यस्सम-मऊना एलल मलाइल अअलाव युक़-ज़फूना मिन कुलले जानेबिन 0 दोहूरव व लहुम अज़ाबुंन साक़ेबुन 0”

अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है क़सम है उन (मौमिनों) की जो डाँटकर (बुराईसे) हटाते हैं नीज़ (और) क़सम है उन (आबिदों) की जो कुर्आन पढ़ते हैं कि बेशक तुम्हारा माबूद यकता है वह आसमानो , ज़मीनों और जो कुछ इनके बीच है सबका परवरदिगार और मश्रिक़ों (और मग़िरबों) का मालिक है।

बेशक हमने इस निचले आसमान को सितारों के ज़ेवर से सजाया और इसहर सरकश शैतान से महफूज़ रखा वे (शयातीन) बलन्द मरतबत फ़रिश्तों के कलाम की कन्सूइंयाँ नहीं ले सकते। वे हर तरफ़ से ढ़केले और धुतकारे जाते हैऔरउनके लिये दायमी (हमेशा का) अज़ाब है मगर वे (शैतान) जिसने कोई बात उचक ली हो तो उसके पीछे एकतेज़ शोला लग जाता है।

(7) सूर-ए-साफ़्फ़ात (आख़िरी दस आयतें)

‘’ व इन्ना जुन-दना लहुमुल ग़ालेबून 0 फ़ता-ववल्ला अन्हुम हत्ता हीन 0 व अबसिर हुम फ़-सौफ़ा युबसेरून 0 अफ़ा-बे-अज़ाबेना यस-तअ-जेलूना 0 फ़ 0 इज़ा न-ज़ला बे-सा-हतेहिम फ़सा-अ सबाहुल मुनज़रीना 0 वता-वल्ला अन्हुम हत्ता हीनिंव व अबसिर फ़-सौफ़ा युबसेरूना 0 सुब्हाना रब्बेका रब्बिलइज़्ज़ते अम्मा यसेफ़ना 0 व सलामुन अलल मुर-सलिना वल हम्दो लिल्लाहे रब्बिलआलमीन 0

और यक़ीनन हमारा लश्कर ही ग़ालिब रहेगा पस ऐ (रसूल (स.)) इनकी हालत को देखते रहो और वे भी अनकरीब (अपना अंजाम) देख लेगें-क्या ये हमारे अज़ाब में ताजील पस जब वह (आज़ाब) इनके आँगन में उतर आयेगा तो जिन्हें उससे डराया जा चुका है , वह उनकी क्या ही जाओ उनकी हालत देखते रहो और अनकरीब वे खुद भी (अपना अंजाम) देख लेगें तुम्हारा साहिबे इज़्ज़त परवरदिगार मुनज़्ज़ा है (पाक) है उन बातों से जो यह लोग बनाया करते हैं दुरूद व सलाम हौ अम्बिया-ए- मुरसलीन पर और तमाम तारीफ़ें तो जहानो के पालने वाले उसअल्लाह ही के लिये हैं।

(8) सूर-ए-तकासुर

बिस्मिल्लाह हिर्रहमा-निर्रहीम

अल- हाकुमुततकासुरो 0 हत्ता जुर्रतुमुल मक़ाबेरा 0 कल्ला सौफ़ा तअलामूना 0 सुम्मा कल्ला सैफ़ा तअलामूना 0कल्ला लौ तअलामूना इल्मल यक़ीने 0 लता-र-वुन्नल जहीम 0 सुम्मा लता-र- वुन्नह ऐनलयक़ीन 0 सुम्मा लतुस-अ-लुन्ना यौअ- एज़िन अनिन-नईम 0

अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है।

तुम्हें तो नस्ल की बोतात (ज़्यादती) ने ग़ाफ़िल बना रखा यहाँ तक कि तुम क़ब्रो में जा पड़े। आगाह हो जाओ कितुम जल्दी ही जान लोगे फिर आगाह हो जाओ कि तुम बहुत जल्द ही जान लेगे फिर आगाह हो जाओ कि तुम बहुत जल्द (इस ग़फ्लत का अंजाम) जान जाओगे। देखो अगर तुम यक़ीनी तौर पर जानते (तो हर्ग़िज़ गाफ़िल न होते) तुम लोग ज़रूर जहन्नम को देखोगे हाँ तुम उस यक़ीनी निगाहोंके साथ देखोगे फ़िर उस दिन तुम से नेमतो के बारे में भी ज़रूर पूछ ताछ की जायेगी।

मुन-दर्जाज़ैल (निम्नलिखित) बातों के अलावा रात भर जागना पसंदीदा ल नहीं है।

1 नमाज़े शब के लिये जागना

2. हासिले इल्म की ख़ातिर और तिलावते क़आर्ने पाक के लिये।

3.उस दुल्हन का जागना जिसे शौहर के घर ले जाया जाये।

रात को बहुत ज़्यादा सोना और बहुत ज़्यादा जागना पसंदीदा फ़ेल नहीं है।

पेशाब करना

वह हालतें और जगहें जहाँ पेशाब करना मना है।

1. जहाँ पेशाब की छींटें इन्सान पर पड़े।

2. खड़े होकर पेशाब करना।

3. जानवरों के ब़िलों मे पेशाब करना

4. पानी में पेशाब करना।

5. सड़कों और रास्तो में पेशाब करना।

6. मस्जिदों की दीवारों के साथ पेशाब करना।

7. घरों के चारों तरफ पेशाब करना।

8. मेवेदार पेड़ों के नीचे पेशाब करना।

9. जहाँ पेशाब करने से लोगों को तकलीफ होती है।

पाख़ाने जाना

1.जब आप पाख़ाने जाना चाहें तो पहले बायां पाँव अन्दर रखें।

2. जब बैठ जायें तो बायें पाँव पर ज़ोर डालें।

3. जब अपने पेशाब पाख़ाने पर नज़र पड़े तो आप यह गौर करें कि इसका माख़ज़ क्या था यह क्या चीज़ थी आपने कहाँ से हासिल की और अब इसकी क्या सूरत हो गई।

4. जब पेशाब कर चुकें तो इस्तिब्रा करना मुस्तहब है।

5. बदन का निचला हिस्सा ठण्डे पानी से धोना सुन्नत है चूँकि ऐसा करने से बवासीर के मर्ज़ से शिफ़ा हासिल होती है। पाख़ाने में बहुत देर तक बैठना मकरूह है , जैसा कि कहा गया है , लुकमान पैग़म्बर ने अपने बेटू को हुक्म दिया था कि वह पाख़ाने के दरवाज़े पर यह इन्तेबाह (चेतावनी) लिख दे।

‘’पाख़ाने में ज़्यादा देर तक बैठने से बवासीर का मर्ज़ लग जाता है ;

6. अल्लाह कौ याद करने के अलावा पाख़ाने में कोई और बात करना मकरूह है।

7. बैयतुल — ख़ला (पाख़ाने) मे बैठे हुए शख़्स को यह दुआ पढ़ना चाहिये :

“ अल्लाह-हुम्मर जुक़निल हलाला वजनुबनी अनिल हराम ,

याल्लाह ; मुझे रिज़के हलाल अता फ़रमा और मुझे हराम चीज़ों से महफ़ूज़ रख।

8.इन्सान को चाहिये कि इस्तिन्जा करते वक्त यह दुआ पढे:

9. इस्लाम इन्सान को हर जगह और हर हालत में अल्लाह को याद करने का हुक्म देता है।

“ अल्लाह-हुम्मा हस्सिन फ़र्जी वस्तुर औरती व हर्रिमनिन नारा व वक़किफ़नी लेमा यो-क़र्रेबुऩी मिन्का या ज़ल-जलाले वल इकरामे “ ,

या अल्लाह मुझे (यानि मेरी शर्मगाहों को) ना-जायज़ चीज़ो से महफुज़ रख ,उनके पोशीदा रखने में मेरी मदद कर और मुझे जहन्नम की आग से बचाना- याल्लाह अपने जलाल और बुजर्गी की बदौलत उन अहकाम की पैरवी की तौफ़ीक़ दे जिनके ज़रिये मैं तेरा कुर्ब (नज़दीक़ी) हासिल कर सकूँ।

10. उठते वक़्त इन्सान को चाहिये कि अपना हाथ पेट पर रखेऔरयह दुआ पढे:

‘’अलहम्दो लिल्लाहिल लज़ी हन्ना फ़ी तआमी व शराबी व आफानी मिनल बल्वा “

सबतारीफ़ें अल्लाह के लिये हैं जिसने मेरे खाने को हज़म होने के क़ाबिल बनाया और मुझे उसकी तक्लीफ़ो से बचाया है।

11. बैतुल-ख़ला (पाख़ाने) से निकलते वक़्त इन्सान को चाहिये कि पहले दायां पाँव बाहर निकाले और दुबारा अपना हाथ पेट पररखकर यह दुआ पढ़े :

“ अल्हमदो लिल्लाहिल लज़ी अर्रफ़्नी लज़ ज़ता-हू व अबक़ा फ़ी जसा-दी कुव्वता-हू व अख़रजा अन्नी अज़ाहो ,या लहू मिननेअमतिन , नेअ-मतिल ला यक़देरूल क़ादेरूना क़द-रहा ” ,

सब तारीफ़ें अल्लाह के लिये जिसने मुझे ग़िज़ा का मज़ा चखाया उसकी कुव्वत मेरे बदन में महफूज़ कर दी और उसकी ग़लाज़त को मेरे पेट से ख़ारिज (निकाल) कर दिया।

हाँ.अल्ला की नेमते तो इतनी ज़्यादा हैं कि बड़े से बडे हिसाबदँ भी उनको शुमार करने से आजिज़ है।

बीमारिया और उनका इलाज

जब एक-ए-मोमिन बीमार होतो अल्लाह ताला एक फ़रिशते को मुक़र्रर कर देता है ताकि वह उस शख़्स के उन आमाल को लिखे जो उसने सेहत की हालत में अंजाम दिये हों।

1. बीमारी की हालत में आपको अपनी ज़बान पर हर्फे शिकायत नहीं लाना चाहिये , मसलन यह क़हना कि

“ मुझ पर एक ऐसी मुसीबत आ पड़ी है जो किसी और पर नहीं पड़ी होगी ” और इसके अलावा भी इस तरह की कोई बात नही कहना चाहिये।

2. फ़स्द खुलवाना सेहत के लिये मुफ़ीद है।

3. पेट तमाम बीमारियोँ की जड़ और परहेज़ तमाम दवाओं की जान है। जब तक आपका बदन बीमारी को बदर्शत कर सके ,दवाई न खायें।

अगर आप मुन-दर्जा ज़ैल उसूलो पर अमल करें तो आप हमेशा सेहतमन्द रहेंगे।

(1) खाना उस वक़्त खायें जब भूख लगे।

(2) पानी उस वक़्त पियें जब प्यास लगे।

(3) जब पेशाब की हाजत महसूस हो तो बिला ताखीर पेशाब करें

(4) जब तक ज़रूरी न हो नुजामेअतन करे।

(5) जब नीद , आजाये तो सोने में देर न करेम

(6) शहद हर मर्ज़ की दवा है

(7) मर्वी है कि तुम्हें अपने बीमारें का इलाज सदक़े सेकरना चहिये क्योकि सदका बड़ी से बड़ी मुसिबत को टाल देता है।

(8) एक ग़ैर मुस्लिमतबीब (डाक्टर) से इलाज कराने में कोई हर्ज नहीं

(9) अल्ला ताला ने अपने एक नबी से फ़रमाया जब तक तुम अपना तिब्बी इलाज नही कराओगे में तुम्हें शिफ़ा न दुँगा।

(10) नाश्ता करते वक़त ठणडे पानी के साथ मिस्री की एक छोटी सी डली ख़ाना बुखार से बचाओ के लिये मुफ़ीद है।

जैसा कि पेश्तर कहा गया है , जब कोई शख़्स किसी मुसीबतया बीमारी में गिरफ़्तार हो जाये तो उसे चाहिये कि मुसीबत से बचने की ख़ातिर अमली तदबीर और बीमारी से बचाओ के लिये उसका तिब्बी इलाज करे फिर उसके साथ साख अल्लाह ताला कि जो हर चीज़ का ख़ालिक़ है उसकी बारगाह में दुआ भी करे कि वह इस तदबीर या इलाज में तासीर डाल दे यही वजह हैं कि इस सिलसिलें में बहुत सी आयतों और दुआओं का ज़िक्र आया है।

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) से रवायत है कि इमाम अली (अ) ने अपने घर में एक कमरा अपने लिये मख़सूस कर रखा था , जिसमे फ़क़त कुर्आन हकीम का एक नुस्ख़ा और एक तलवार होती थी आप वहाँ इबादत (पूजा) किया करते थे।

एक मोअतबर हदीस में है एक मुसलमान को चाहिये कि तिलावते क़ुर्आन के ज़रिये अपने घर की आराइश व ज़ेबाइश करे और उसे कब्र न बना दे ,यानि वह यहूदी और ईसाई लोगों का तरीक़ा न अपनाये कि जो अपने घरों में जिक्रे इलाही नहीं करते और फ़क़त ग़िर्जो और इबादत ख़ानों ही में इबादत करते है। जिस घर में क़आर्ने मजीद की ज़्यादा तिलावत की जाये उसकी हालत सुधर जाती है उसके मकीन एक इत्मीनान महसूस करते और आसमान वाले सितारों से रौशन हासिल करते हैं।

कुरआने मजीद की तिलावत सेहत के लिये मुफ़ीद है और इस सिलसिले में सूर-ए-फ़ातिहा और आयतुल कुर्सी पढ़ने पर बार बार ज़ोर दिया गया है।

सूर-ए-फातिहा

‘’ बिस्मिल्लाह-हिरर्हमा-निर्रहीम

अल्हम्दो लिल्लाहे रब्बिल आलमीन 0अर्रहमा निर्रहीम मालिके यौमिद्दीन 0 इय्याका नअबुदो व इय्याका नस-तईन एहदिनस सिरातल मुस्तक़ीमा 0सिरातल लज़ीना अनअम्ता अलैयाहिम ग़ैरिल मग़ज़ूबे अलैयहिम वलज़ ज़ाल्लीन 0’’

अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है तमाम तारिफें अल्लाह के लिये हैं जो तमाम जहानों का पालने वाला मालिक है (ऐ अल्लाह) हम सिर्फ़ तेरी ही इबादत करते हैं (इसके लिये) तुझ ही से मदद माँगते हैं हमें सीधे रास्ते की हिदायत फरमा जो उन लोगों का रास्ता है जिन पर तेरा इनाम हुआ न उनका रास्ता कि जिन पर तेरा ग़ज़ब हुआ और न गुमराहों का

आयतल कुर्सी

आयतल कुर्सी और उसका तर्जुमा इससे पहले लिखा जा चुका है।

दुआ-ए-नूर

रवायत है कि यह दुआ-ए-नूर बीबी फातिमा ज़हरा (अ 0) ने सलमाने फारसी को सिखाई और उनसे कहा अगर तुम इस दुनिया में कभी भी बुख़ार में मुबतला नहीं होना चाहते हो तो यह दुआ रोज़ाना पढ़ा करो फिर सलमान ने यह दुआ एक हज़ार ऐसे अश्ख़ास को सिखाई जो बुख़ार में मुबतला थे और वह सबके सब शिफ़ायाब हो गये ,वह दुआ यह है :

बिस्मिल्लाह हिर्रहमा निर्रहीम

बिस्मिल्लाहिन नूरो 0 बिस्मिल्लाहे नूरून नूरे 0बिस्मिल्लाहे नूरून अलन नूरे 0 बिस्मिल्लाहे लज़ी होवा मुदब्बेरूल उमूरे 0बिस्मिल्लाहिल लज़ी ख़ला- क़न नूरा मिनन नूरे 0 अल्हम्दो लिल्लाहिल लज़ी ख़ला-क़न-नुरा मिनन नूर व अनज़लन नूरा अलत तूरे फ़ी किताबिम मस्तूरे फ़ी रक़्क़िम मन्शूरिन बे-क़दा-रिम-मक़दूरिन अला नबिय्यिम महबूरिन 0 अल्हम्दो लिल्लाहिल लज़ी होवा बिल-इज़ज़े मज़कूरून व बिल-फ़ख़्रे मशहुरून व अलस सर्राय वज़ जर्राये मशकूरून व सल्लल्लाहो अला सययेदेना मोहम्मदिंव व आलेहित ताहेरीन 0”

अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है अल्लाह के नाम से जो रौशन करने वाला है अल्लाह के नाम से जो रौशनी के ऊपर रौशनी है अल्लाह के नाम से जो निज़ामें आलम का तरतीब देने वाला है अल्लाह के नाम से जिसने रौशनी को रौशनी से पैदा किया तमाम तारीफ़ें अल्लाह के लियेहैं जिसने रौशनी को रौशनी से पैदा किया और रौशनी को पहाड़ (तूरे सीना) पर नाज़िल किया जिसका ज़िक्रसतरों वाली किताब मों हैं जो उम्दा चर्म पर लिखी है जिसे बुजुर्गी और शान वशौकत के साथ याद किया जाता है और बुजुर्गी औरशान व शौकत के साथ याद किया जाता है और जिसका शुक्र खुशहाली में और परेशानी मे भी अदा किया जाता है हमारे खुशहाली में और परूशानी मैं भी अदा किया जाता है हमारे सरदार मोहम्मद मुस्तफ़ा (स. अ.) और उनकी पाक व पाक़ीज़ इतरत पर खुदा का दुरूद व सलाम हो

1. नाश्ते के तौर पर सलाद और खजूरे खाने के अलावा दूध पीने की ताकीद की गयी है।

2. कई हदीसों मे आया है कि “ लाहौल ” पढने से ग़म दुरहो जाता है।

“ ला-हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलिय्यल अज़ीम ”

कोई ताक़त और क़ुव्वत नहीं सिवाय उसके जो बलन्द और बुजुर्ग ख़दा से (मिलती) है।

3.सैय्यदुश शोहदा हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के रौज़ेकती ख़ाक पाक शिफ़ा बख़्श है ,ब-शर्तेकि इस बात पर आपका यक़ीन हो और आप उसे मटर के एक दाने से ज़्यादा इस्तेमाल न करें।

4. अगर कोई शख़्स अपने एक मुसलमान भाई की अयादत (बीमार को देखने जाना) के लिये जाये तो उस दिन सत्तर हज़ार फ़रिश्ते उस पर सलाम भेजते है। अपने बीमार आदमी की दुआ की तरह होती है और जल्दी क़बूल होती है।

5. अगर आप एक बीमार की अयादत के लिये जायें तो अपने साथ उसके लिये सेब , बेही चकोतरा या इत्र लेते जायें।