इस्लामी तालीम

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इस्लामी तालीम लेखक:
कैटिगिरी: अख़लाक़ी किताबें

इस्लामी तालीम

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: अल्लामा मजलिसी
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इस्लामी तालीम
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इस्लामी तालीम

इस्लामी तालीम

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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

मुआशरती हुक़क (सामाजिक अधिकार)

एक शख़्स रसूले अकरम (स.) की ख़िदमत में आया और अर्ज़ किया या रसूलल्लाह (स.अ) आप मुझे ज़िन्दगी बसर करने का ऐसा तरीक़ा बतायें कि जिसकी बदौलत मैं बेहिश्त का हक़दार हो जाऊँ----हजूर (स.अ.) ने फ़रमाया तुम उनसे अपने लिये चाहते हो पस जो चीज़ तुम अपने लिये पसन्द नहीं करते वह दूसरौ के लिये भी पसन्द न करो।

चुनाँचे इस्लामी तालीमात कि वह दुसरो का सरदार है औरहर चीज़ का महवर है उसे चाहिये कि वह दूसरों का सरदार है और हर चीज़ का महवर है उसे चाहिये कि वह दूसरों को भी यही रूत्बा दे जो अपने को देता है यह तालीम इस्लाम के फ़लसफ़ — ए — मुसावात पर मब्नी (निभर्र) है जिसके मुताबिक़ तमाम इन्सान आपस में बराबर हैं। जैसा कि रसूले अकरम (स.अ.) का इरशाद है सबसे बड़ी फ़ज़ीलत यह है कि इनसान इन्साफ़ पर मब्नी फ़ैसला करे चाहे वह फ़ैसला उसके अपने दीनी भाई को अपने बराबर समझो और हर हालत में अपने अल्लाह को याद रखो।

यही वह सिफ़त है जो ईमान का मेयार है और इन्सान और इन्सानी मुआशरे के लिये मूजिबे इफ़्तेख़ार है। जब एक इन्सान यह चाहता है कि दसरे उसकी इज़्ज़त करें उसके सामने सच बोलें ,उसकी मदद करें उससे खुलूस बर्ते , उसके हुक़क अदा करें और उसके साथ खुशख़ल्क़ी के साथ पेश आयें तो उसे भी दूसरों के साथ ऐसा ही बर्ताव करना चाहिये यानि वह भी उनकी इज़्ज़त करे उनके सामने सच बोले , उनकी मदद करे उनसे खुलूस बर्ते ,और उनके हक़ूक़ अदा करे और उनसे खुश खुल्की से पेश आये। क्योंकि अस्लमें उसके और दूसरो के दरमियान कौई फ़र्क नहीं है। इसी तरह जब वह इस बात को पसन्द नही करता कि दूसरे उसे बदनाम करें , उसकी बुराई करे उस पर इल्ज़ाम लगायें , उसकी तरक़्क़ी की राह में रोड़े अटकायें या उसके साथ घमण्ड से पेश आयें तो फ़िर उसे भी उनसे बद सुलूकी नहीं करनी चाहिये उसे भी हर किस्म के ज़ल्म और सितम व ज़्यादती से बाज़ रहना चाहिये। और महसूस करना चाहिये कि दूसरे भी उसी की तरह इन्सान हैं उसे चाहिये कि उनके ग़म और ख़ुशी में शरीक हों लिहाज़ा बनी-नौ-ए-इन्सान कौ फ़ायदा पहुँचाना और मुआशरे की ख़िदमत करना क़ुर्बे इलाही के वसीले हैं।

सिल-ए-रहमी

कोई अमल ऐसा नहीं जिसका बदला इतनी जल्दी मिलता हो जितनी जल्दी सिल-ए-रहमी का बदला जल्दी मिलता हो जितनी जल्दी सिल-ए-रहमी का बदला मिलता है पस जो शख़्स रिशते दारी के ताल्लुक़ात को तोड़ देता है वह बेहिश्त में दाख़िल नहीं होगा।

हमसायों के हुक़क़ (पड़ोसियों के अधिकार)

इस्लाम में हम सायों के हुक़ुक़ को बड़ी अहमियत दी गई है जैसा कि रवायत है कि रसूले अकरम (स.अ.) ने फ़रमाया , जिब्रईल ने मुझे हमसाये के साथ हुस्ने सुलूक के बारे में अक्सर सिफ़ारिश की ,हत्ता कि मैं ने ख़याल किया कि शायद वह विरासत में भीहमसाये का हिस्सा वह बेहिश्त की खुश्बू नही सूँघेंगा।

1. इमामे सादिक (अ.स.) से रवायत है कि आपने फ़रमाया जो लोग एक आदमी के दोनो तरफ़ में चालीस घरों मे रहते हैं उसके हमसाये हैं।

2. हमसाये के मुख़तलिफ़ हक़ूक़ में से एक हक़ “ माअन ” हैं इसके माना (अर्थ) उस क़र्ज़ के हैं जो हम साये को दिया जाये या वह एहसान जौ उसके साथ किया जाये या वह चीज. जो घरेलू ज़रूरयात के सिलसिले में उसे मुस्तआर (अस्तआई रूप से) दी जाये।

3. यतीम के हुक़ूक़ (अनाथ के अधिकार)

(1) यतीम का माल ग़ज़्ब करना गुनाहे कबीरा है।

(2) यतीम को चुम्कारने और प्यार करने का बड़ा सवाब है।

(3) ऐसी बहुत सी हदीसें हैं जिनके मुताबिक़ यतीम की परवरिश करना और उसके ख़र्चो की ज़िम्मेदारी लेना बड़े सवाब का काम है।

दीनी भाईयों के हुकूक़

1.भाई एक निहायत ही पंसदीदा फ़ेल है।

2. एक सालेह भाई के चेहरे पर निगाह डालना , ख़दा की इबादत बजा लाने के बराबर है।

3. एक मोमिन दूसरे मोमिन का भाई है वह उसकी आँख़ोंकी तरह है और उसका रहनुमा है वरना तो अपने दीनी भाई से बे वफ़ाई करता है और न ही उस पर जुल्म करता है वह न उसे धोका देता और न उससे किया हुआ वायदा तोड़ता है वह न उस भाई से झूठ बोलता है और न उसकी ग़ीबत (निन्दा) करता है।

4. आप अपने किसी दोस्त को अपने सारे राज़ (भेद) न बतायें कही ऐसा न हो कि एक दिन वही आपका दुश्मन बन जाये।

5. जो शख़्स किसी पर तोहमत (इल्ज़ाम) लगने का सबब बन जाये उसे उस आदमी को मलामत नहीं करनी चाहिये जो उसके मुताल्लिक़ बुरी राय रखना हो।

6. जब आप किसी से बरादराना ताल्लुक़ात क़ायम करें तो उसका जो अमल देखें उसे अच्छा माना (अर्थ) पहनायें सिवाय इसके जब नौबत यहाँ तक पहुँच जाये कि आप उसकेबारे में अच्छी राय क़ायम न कर सकें इसके अलावा उस पर शक करने से भी परहेज़ करें।

7. उन लोगों से मश्विरा कीजिये जो अल्लाह से डरते और उसके अहकाम की पैरवी करते हैं।

8. अपने दीनी भाइयों से उनके तक़वे के मेयार के मुताबिक़ मोहब्बत करें।

9. बुरी औरतों से बचें और जो अच्छी हों उनसे मोहतात रहें।

मोमिनीन के एक दूसरे पर बहुत से हुकूक़ हैं और जैसा कि इमाम जाफरे सादिक़ (अ.स.) से मन्क़ूल है उनमें से सहल और आसान यह हैं :-

1.आप किसी मोमिन के लिये वही पसन्द करें जो ख़ुद अपने लिये पसन्द करतें और वह नापसन्द करें जो अपने लिये नापसन्द करते हैं।

2. आप उसके उज़्र को कुबूल करलें और उसकी ख़ता से दर गुज़र करें।

3. ज़रूरत के वक़्त रक़म जिन्स (चीज़ों) से उसकी मदद कर दिया करें।

4. आपको उसकी आँखे , उसका रहनुमा और उसका आईना बन जाना चाहिये।

5. आपको चाहिये कि वह भूखा हो तो खुद सेर न हों , वह प्यासा हो तो अपनी प्यास न बुझायें और वह बर्हना होतो खुद लिबास न पहने यानि यह चीज़े अपने से पहले उसको मोहय्या (उपलब्ध) करें।

6.अगर आपके पास मुलाज़िम हो और उसके पास न हो तो आप पर लाज़िम है कि अपने मुलाज़िम को उसकेपास भेजें , ताकि वह उसका बिस्तर लगा दे।

7. आपको चाहिये कि वह क़सम खाये तो उसकी तसदीक़ करें वह आपको अपने घर बुलाये तो उसकी दावत क़ुबूल करले कर लें ,वह बीमार पड़े तो उसकी अयादत को जायें , अगर वह फ़ौत (मर) हो जाये तो उसके जनाज़े की तशीअ करें (साथ जायें) , अगर आपको पता चले कि उसे किसी चीज़ की की ज़रूरत है तो पेश्तर इसके कि वह आपसे माँगे उसकी ज़रूरत पूरी कर दें। पस आप ऐसा करेंगे तो जब ही आप उसके साथ अपना ताल्लुक़ क़ायम करेंगे और आप उससे दोस्ताना और बरादराना रवाबित मुस्तहकम करेंगे।

8. इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) से नक़्ल किया गयाहैं किआपने फ़रमाया “ यहलाजिम है कि तुम मख़्लूक केसाथ करीमुन नफ़्सी का बर्ताव करो ,क्यों कि अल्लाह की निगाह में इससे अच्छा कोई फ़ेल (काम) नहीं है।

9. अल्लाह को इससे ज़्यादा कोई इबादत पसन्द नहीं कि एक मोमिन को खुश किया जाये।

10. एक मोमिन के सामने मुस्कुराना एक पसन्दीदा फ़ेल है और उसके बदन से गर्द व गुबार को झाड़ना भी एक अच्छा फ़ेल है।

11. मौमेनीन की हाजत बर-आरी की कोशश करना बड़े सवाब का काम है। (ज़रूरत को पूरा करना)

12. अगर आप एक ऐसे शख़्स को देखे जो उम्र में आपसे बड़ा हो तो आपको कहना चाहिये “ यह शख़्स ईमान और नेक आमाल के मामले में मुझ पर सबक़्क़त ले गया है ले गया है लिहाज़ा यह मुझ से बेहतर है। इसी तरह अगर आपअपने से कम उम्र के आदमी को देखें तो कहें “ मैं ने इससे ज़्यादा गुनाह किये हैं लिहाज़ा यह मुझसे बेहतर है ” और जब आप किसी अपने हम उम्र शख़्स को देखें तो कहें “ मुझे अपने गुनाहों का यक़ीन है लेकिन इसके गुनाहों के बारे में शक है लिहाज़ा मैं शक के मुक़ाबिल यक़ीन को कैसे नज़र अन्दाज़ कर सकता हुँ “ जब आप देखे कि लोग आपकी इज़्ज़त करते हैं तो आपको कहना चाहिये “ यह उन्हीं की अच्छाई है कि वे अछ्छे अखलाक़ व अतवार का मुज़ाहिरा करते है ” लोग आपसे दूर रहें और आपकी इज़्ज़त न करें तो आपको कहना चाहिये “ इसकी वजह मेरे वे गुनाह हैं जिनको मैं ने किया है ” अगर आप ऐसा करेंगें तो आपकी ज़िन्दगी चैन से गुज़रेगी , आपके दोस्तों में इजाफ़ा होगा और आप लोगों की अच्छाई सेखुश होगें और उनकी बद सुलूकी पर ग़मगीन नहीं होंगे।

13. एक मोमिन भाई को अल्लाह की ख़ातिर जाकर मिलने का बड़ा सवाब है और बेहतर है कि मुलाक़ात के वक़्त अहले बैत (अ.स.) के इरशादात के मुताल्लिक़ गुफ़्तुगू की जाये।

14. एक मोमिन भाई को खाना खिलाने की बड़ी ताकीद की गई है।

रसूले अकरम (स.अ.) से रवायत है कि आपने फ़रमाया यह तीन आमाल अल्लाह ताला की निगाह में बहुत महबूब है।

(क) एक भूखे मुसलमान को पेट भरके खाना खिलाना

(ख) एक कर्ज़दार का क़र्ज़ा अदा करना।

(ग) एक मुसलमान को किसी मुसीबत से रिहाई दिलाना।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) से रवायत है कि आपने फ़रमाया अगर एक शख़्स के पास ज़्यादा लिबास हो और उसे इल्म हो जाये कि उसके एक मोमिन भाई को उसकी ज़रूरत है ,लेकिन वह उसे न दे तो अल्लाहताला उसे सर के बल जहन्नम में झोंक देगा।

15. रसुले अकरम (स.अ.) से रवायत है कि आपने फ़रमाया अगर कोई शख़्स पेट भर के खाये जब कि उसका मुसलमान भाई भूखा हो तो वह शक़्स मेरी नबुव्वत पर ईमान नहीं रखता।

16. रसूले अकरम (स.अ.) ने फ़रमाया जो शख़्स मुसलमान के रास्ते से एक काँटा हटा दे वह जन्नत में दाख़िल होगा। एक और हदीस में आपने फ़रमाया जो शख़्स मुसलमानों के रास्ते से कोई ऐसी चीज़ हटा दे जो उनके लिये ज़हमत का मूजिब हो तो अल्लाह ताला उख़्स को क़ुर्आन मजीद की चार सौ आयातकी तिलावत के बराबर सवाब अता करता है।

17. मुसलमानों का एक दुसरे को तोहफ़े भिजवाना मुस्तहब है वह तोहफ़ा बहुत ही अच्छा है जो सिर्फ़ अल्लाह की ख़ातिर और किसी दुनियावी ग़रज़ के बग़ैर भेजा गया हो।

18. जो शख़्स किसी मोमिन को उसकी ज़बों हाली की बिना पर हक़ीर और क़ाबिले नफ़रत समझे , अल्लाह ताला उसे क़यामत के दिन तमाम मख़्लूक़ के सामने रूस्वा करेगा एक और रवायत में है कि जो शख़स किसी मोमिन को ज़लील करे अल्लाहा ताला उसे भी ज़लील करेगा।

19. हदीसे कुदसी में अल्लाह ताला फ़रमाता है जो शख़्स किसी मोमिन को दिर्क़ (परेशान) करे वह मेरे साथ लड़ने की तैयारी करता है।

20. इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) से रवायत है कि आपने फ़रमाया: जो शख़्स किसी मुसलमान को नुक़सान पहुँचाने की ख़ातिर आधे लफ़्ज़ से भी मदद दे , क़यामत दिन उसकी आँखो के बीच यह अल्फ़ाज़ लिखे जायेंगे:

21. एक मोमिन को मोमिन इस लिये कहा जाता है कि लोगों किजान और माल वग़ैरा (सब कुछ) उसके तार्रूज़से महफ़ूज़ रहता है-

मुस्लिम वह है जिसके हाथ और ज़बान से लोग महफ़ूज हों- “ मुहाजिर ” वह है जो गुनाहोंसे हिजरत करे (यानि दुरी इख़्तेयार करे)।

रसूले अकरम (स.अ.) ने फ़रमाया :

“ मै उस परवरदिगार की क़सम खाकर कहता हुँ जिसके क़ब्ज़-ए-कुदरत में मेरी जान है कि अगर आसमान और ज़मीन के तमाम रहने वाले मिलकर एक मोमिन को क़त्ल कर दें या उसके क़त्ल परमुत्तफ़िक़ हो जायें तोअल्लाह उन सबको जहन्नम वासिल कर देगा।

मैं उस परवरदिगार की क़सम खाता हूँ , जिसके क़ब्ज़-ए-कुदरत में मेरी जान है कि कोई किसी को बिला जवाज़ कोड़ानहीं मारता मगर यह कि उसे जहन्नम में उसी तरह कोड़े लगाये जायेंगे।

रसूले अकरम (स.अ.) ने यह भी फ़रमाया अगर एक शख़्स एक बूढे आदमी के बूढापे की बिना पर उसकी इज़्ज़त और ताज़ीम करे अल्लाह ताला क़यामत के दिन उसे ख़ौफ़ से महफूज़ रखेगा ,आपने यह भी फ़रमाया: “ एक सफ़ेदरीश (सफ़ेद दाढ़ी) मोमिन की ताज़ीम करना हक़ीक़त में अल्लाह ताला की ताज़ीम है ” -

हज़रत (स.अ.) ने फरमाया :जो शख़्स छोटों पर मेहरबान न हो और बड़ों का अदब न करे वह हममें से नही है “

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) से रवायत है कि आपने फ़रमाया :-

“ अगर तुम कोईबात एक बहरे शख़्स को इस तरह समझाओ कि वह सुनले और तुमहें भी नागवार न गुज़रे तो तुम्हारा यह फ़ेल सदक़ा शुमार होगा। “

(5.)ज़ालिम लोगों के साथ मेल जोल

1. इन्सान को चाहिये कि ज़ालिमो के साथ मेल जोल रखने से परहेज़ करें

2. जो शख़्स किसी ज़ालिम बादशाह या हाकिम की तारीफ़ करे और दुनियावी फ़यादे की ख़ातिर अपने आप को उसके सामने ज़लील करे वह जहन्नम में ज़ालिम हाकिम का साथी होगा।

3. फ़ासिक़ व फ़ाजिर के साथ मिलकर खाना पीना मना है।

4. ज़ालिमो के कामो में उनके साथ शरीक होना उनकी मदद करना और उनकी ज़रूरत (आवश्यकतायें) पूरी करने की कोशिश करना कुफ्र के बराबर है।

5. अगर काई आदमी किसी अमीर आदमी से मिलने जाये और उसकी दौलत की बिना पर अपने आपको उसके सामने ज़लील करे वह अपना दो तिहाई ईमान खो बैठता है।

6. जो शख़्स किसी बादशाह के दरबार में हो और वह ललोगों को उसके ज़ुल्म व सितम से बचाये मुसलमानों केहालात को बेहतर बनाये और लोगों ख़सतौर से मोमेनीन की आवश्यतताओ को पूरा करेतो वह सच्चा मोमिनऔरतमाम ज़मीन पर अल्लाह का अमीन है।

7 रवायत है कि तक़य्ये में बड़ी फ़ज़ीलत है जैसा कि हदीस में है कि जो शख़्स तक़य्या न करे वह ईमाननही रखता और तक़य्य ईमान का 1/10हिस्सा है।

8. तकय्या हर उस चीज़ में ज़रूरी है जिसमें इन्सान को नुक़सान पहुँचने का इम्कान हो सिवाय ख़ून बहाने के कि इसमें कोई तक़य्या नहीं है। (यानि इन्सान को ख़ून बहाने से परहेज़ करना चाहिये)

9. इन्सान को चाहिये कि ग़ैर मुस्लिमों से इतनी गहरी दोस्ती पैदा न करे (कि जिससे ख़ुद उसके ईमान या उम्मते मुस्लिमा को नुक़सान पहुँचे।

(6.)सलाम

1. तवाज़ोअ (सत्यकार) के इज़हार का एक तरीक़ा यह है कि आप जिस किसी से मिलें उसे सलाम कहें (यानि “ सलाम अलैयकुम ” कहकर उसके हक़ में दुआ-ए-ख़ैर करें इसके माना है तुमपर सलामती हो)

2. रवायत है कि एक नौ उम्र आदमी को मुक़ाबलतन अपने से बड़े को सलाम कहना चाहिये एक राहगीर उस शख़्स को सलाम कह जो बैठा हुआ हो एक छोटा गिरोह बड़े गिरोह को सलाम कहे और एक छोटा गिरोह बड़े गिरोह को सलाम कहे और एक सवार पैदल चलने वाले को सलाम कहे।

3. अगर कोई शख़्स एक गरोह को सलाम कहे और उनमे से कोई एक जवाब देदे तो बाकी लोगों पर जवाब देने की ज़िम्मेदारी साक़ित हो जाती है।

4. किसी नौजवान औरत को सलाम कहना मकरूह है (जब कि बूढ़ी औरतों को सलाम कहने में कोई हर्ज नहीं है)

5. एक शख़्स के साथ हाथ मिलाने से सलाम मुकम्मल हो जाता है जो शख़्स सफ़र सें वापस आये उसके साथ गले मिलने से सलाम मुकम्मल हो जाता है।

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने फ़रमाया , जब रसूले अकरम (स.अ.) किसी से हाथ मिलाते थे तो आप उस वक़्त तक हाथ नहीं ख़ींचतेथे जब तक वह अपना हाथ नहीं ख़ींच लेता था।

(क) एक और हदीस में रसूले अकरम (स.अ.) ने फ़रमाया , इन्सान को हाथ मिलाना चाहिये क्योंकि हाथ मिलाने से नाचाक़ी ख़त्म होती है।

(ख) अपनी बीवी और बच्चे के अलावा किसी का बोसा लेना मुनासिब नही है। लेकिन दीनी भाई के एक रूख़सार (गाल) या माथे का बोसा लेना चाहिये और अगर एक शख़्स आलिमे दीन हो तो उसके हाथ का बोसा भी लेना चाहिये।

(ग) इमाम जाफ़रे सादिक (अ.स.) ने फ़रमाया , हमारे पैरोऔं (अनुयायियों) की पेशानी मे एक रोशनी होती है , जिसकी बदौलत दुनिया के लोग उन्हें आसानी से पहचान लेते है पस जब वे आपस में सलाम व दुआ करें तो उन्हें एक दुसरे का माथा चूमना चाहिये।

(7)मुआशरती आदाब

1. जब आप किसी जमाअत में शामिल होना चाहों तो पहले इत्मीनान कर लें कि यह ऐसी जमाअत तो नहीं कि जिससे आप पर शक किया जाये या इल्ज़ाम लगाया जाये अगर इस बिना पर लोगों की राय आपके बारेमे ख़राब हो जाये तो उसकी तमाम तर ज़िम्मेदारी ख़ुद आप पर होगी।

2. अगर किसी महफ़िल में ऐसे लोग मौजूद हो जो आपसे ज़्यादा इल्म रकते हो तो आप उनकी जगह से बलन्दतर जगह पर न बैठे , बल्कि आपको चाहियें वहाँ आप किसी ऐसी चीज़ के बारे में गुफ़तुगू न करें जिसका आपको इल्म न हो।

3. अगर आप किसी ऐसी जगह बैठें जो आपके मर्तबे और मक़ाम से फ़रोतर (कम) हो तो इसमे कोई हर्ज नहीं ,बल्कि यह फ़रोतनी (ख़ाकसारी) की निशानी है।

4. जब आपको किसी ज़ियाफ़त (खान पान) में बुलाया जाये तो उस जगह बैठें जो साहिबे ख़ाना आपके लिये तजवीज़ करे।

एक हदीस में हैं कि जिन मक़ामात पर जाने के लिये एक इन्सान का अपने घर से निकलना बेहतर है वह ये है।

(क) हज या उमराह अदा करने के लिये बैतुल्लाह (क़ाबे) जाना।

(ख) उलमा –ए-दीन के घरों पर जाना , जिससे इन्सान को फ़यदा पहुँचता है और वह उनसे दूर हो कर घाटे मे रहता है।

(ग) दीनी या दुनियावी इल्म हासिल करने के लिये उलमा से मुलाक़ात करने जाना।

(घ) सख़ी (धनी) लेगों के घरों पर जाना ” जो क़यामत के दिन अज्र (सवीब) पाने के लिये अपनी दौलत दूसरों कोदे देते है।

5. किसी बेवकूफ़ शख़्स के यहाँ जाना कि कुछ हालात इन्सान को ऐसे लोगों के एहसान का बार उठाने पर भी मजबूर कर देते हैं।

6. इज़्ज़त के हुसूल और हाजत बरआरी के लिये मालदार लोगों के घरों पर जाना।

7. सलाह मशवरे के लिये ऐसे लोगों के पास जाना जिन्हें लोग ज़िम्मेदार समझते हों और उनकी माक़ूलियत पसन्दी और मुस्तक़िल मिज़ाजी की बिना पर उनसे बहुत से फ़ायदे की उम्मीद की जा सकती हो।

8. एक दीनी भाई के घर जाना क्योंकि एक मोमिन का अख़्लाक़ी फ़रीज़ा है कि वह दूसरे मोमिन का ख़याल रखे।

9. अपने दुश्मनके घर जाना (जब कि उसमें ख़तरा न हो) क्यों कि इन्सान अक्सर आता जाता रहे तो दुश्मनी मांद पड़ जाती है और ग़लत फ़हमी दुर हो जाती है।

10. ऐसी महफ़िल में जाना जहाँ इन्सान और फ़य्याज़ी के जज़बात पैदा हो जायें।

इमाम जाफ़रे सादीक (अ.स.) से रवायत है कि आपने फ़रमाया

(क) जो शख़्स एक तंग जगह पर चार ज़ानू होकर यानि आल्ती पाल्ती मारकर बैठे वह इन्सान ही नहीं है।

(ख) जब कोई शख़्स आपसे मिलने आये तो चन्द क़दम आगे बढ़कर उसका इस्तक़बाल करें जब वह जाने लगे तो दरवाज़े तक उसे छोड़ने जायें और जो कुछ करने को कहे वह करें।

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) से रवायत है कि आपने फ़रमाया

(1) अपनी जगह से उठकर किसी का इस्तक़बाल करना मकरूह है सिवाय उस शख़्स के जिसकी उसके ईमान (मसलन इल्म , आला ,अख़्लाक , और नेकी) की वजह से इज़्ज़त की जाती हो।

(2) अपको एक ऐसे साथी का इन्तेख़ाब करना चाहिये जो आपको अल्लाहकी याद दिलाये , इल्मे दीन सिखाये ,आख़ेरत के लिये अमले ख़ैर करने का शौक़दिलाये और दुनिया में और आख़ेरत में आपकी बेहतरी चाहे।

एक और हदीस में आपने फ़रमाया , जिन चार अफ़आल (कामों) की कोई फ़सल नहीं काटी जाती वे यह है।

(क) उस शख़्स से मोब्बत करनाजो आपकी मोहब्बत का जवाब न दे।

(ख) एक ऐसे शख़्स पर एहसान करना जो आपका एहसान क़ुबूल करने को तैयार न हो।

(ग) एक ऐसे शख़्स को इल्म सिखाना जो उसकी क़द्र न करे।

(घ) अपना भेद ऐसे शख़्स को बताना जो उसे अपने दिल में न रख सके

एक हदीस में आया है कि सहाबा-ए- केराम नेरसूले अकरम (स.अ.) से पूछा हम किस की सोहबत में रहें ?

हज़रत (स.अ.) ने फ़रमाया , तुम उन लोगों की सोहबत में रहे जिनके दीदार से तुम्हें अल्लाह की याद आये ,जिनके अहवाल तुम्हारे इल्म कोबढ़ाये और जिनके आमाल तुम्हें हक़ व हक़ीकत के क़रीब ले आये।

1. अगर एक शख़्स देखे कि उसका दीनी भाई ना मुनासिब काम कर रहा है और वह उसको न रोके तो वह हक़्क़े

बरादर (भाई के अधिकार केमामले में उससे ग़ददारी करता है।

2. इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने फ़रमाया मैं उस शख़्स को अपना बेहतरीन दोस्त तसव्वुर करता हूँ जो मेरे उयूब (ऐबों) को मुझपर ज़ाहिर कर दे।

3. अगर एकदोस्त ईमान के मामले में आपको कुछ फ़ायदा न पहुँचाये।तो उसकी तरफ़ कोई तवज्जो न दें और उससे मेल जोल की ख़वाहिश न रखें।

रसूले अकरम (स.अ.) से रवायत है कि आपने फ़रमाया चार ऐसी हैं जो दिल को मुर्दा कर देत हैं।

(क) मुसलसल (बराबर , निरन्तर) गुनाह करना।

(ख) औरत से ज़्यादा बातें करना।

(ग) एक ऐसे आदमी से बहस मुबाहिसा करना जिससे तुम एक बात कहो तो वह कोई दूसरी कह और हकीक़त को तसलीम न करे।

4 .मर्द से मेल जोल रखना।

हाज़िरीन ने कहा , या रसुलल्लाह ये मर्दे कौन हैं ?आपने फ़रमाया वे दौलत मंद लोग जिन्होंने अल्लाह को भुला दिया है।

रसूले अकरम (स.अ.) ने फ़रमाया अल्लाह ताला नहीं चाहता कि उसके रसूल में छ: आदतें हों।

(क) नमाज़ पढते वक़्त अपनी दाढ़ी या कपड़ें से खेलना।

(ख) रोज़े की हालत में बदज़बानी करना।

(ग) दूसरे जितलाना कि तुमने उसे ख़ैरात देकर एहसान किया है।

(घ) नजिस होने की हालत में मस्जिद में दाख़िल होना।

(ड़) क़ब्रिस्तान में हँसना

(च) दूसरे लोगों के घरों में झाँकना।