क़यामते सुग़रा

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क़यामते सुग़रा कैटिगिरी: इमाम मेहदी (अ)

क़यामते सुग़रा
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क़यामते सुग़रा

क़यामते सुग़रा

हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

क़यामते सुग़रा

लेखकः सैय्यद मोहम्मद अब्बास क़मर ज़ैदी

नोटः ये किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क के ज़रीऐ अपने पाठको के लिऐ टाइप कराई गई है और इस किताब मे टाइप वग़ैरा की ग़लतीयो को सही किया गया है।

Alhassanain.org/hindi

आत्म निवेदन

दुष्टिगत पुस्तक क़यामते सुग़रा जो सैय्यद मोहम्मद अब्बास क़मर ज़ैदी द्वारा उर्दू भाषा में संकलित है तथा जिसमें हज़रत इमाम मेहदी (अलै 0) जो रसूल के परिवारजनों में अन्तिम व्यक्ति है तथा जिनके अस्तित्व पर मुसलमानों में भेद नही मात्र विरोधाभास यह है कि शिया इममिया आपके अस्तित्व को स्वीकार्य है तथा जीवित होते हुऐ लुप्त जानते है हज़रत मसीह ,हज़रत इलयास , हज़रत खिज्र की भांति किन्तु कुछ सुन्नी सज्जन यह मानते है कि इमाम का अभी जन्म नही हुआ है बल्कि वह जनम लेगें। जबकि रसूल का प्रसिद्ध कथन है कि मेहदी के अस्तित्व को नकारने वाला नास्तिक है।

इस पुस्तक सहित उन लक्षणों का जो इमाम मेहदी के प्रकट होने के सम्बन्ध में भविष्य में विद्यमान होंगे उल्लेख किया गया है जिसकी जानकारी प्राप्त करना प्रत्यक मुसलमान का कर्तव्य है ताकि इमाम के विषय में ज्ञान वृद्धि हो सके प्रत्येक लक्षण अध्यन कर्ता के ईमान व विश्वास की बढ़ोत्तरी का कारण होंगे तता अन्त में मोक्ष प्राप्ति का माध्यम बन जायेंगे

इस वर्तमान समय में धार्मिक रूचि रखने वालो की कमी नही वरन् उर्दू भाषा जानने वालो की कमी अवश्य है ऐसे व्यक्ति जो धार्मिक बातों विशेष रूप से इमाम मेंहदी के प्रकटन के मुख्य लक्षणों को जाने में अभिरूचि रखतेहै और क़यामते सुग़रा जैसी पुस्तक उपलब्ध है परन्तु उर्दू से अनभिज्ञ होने के कारण उससे लाभ उठाना सम्भव नही मात्र ऐसे लोगों की अभिरूचि के दृष्टिगत मैने चाहा कि प्रस्तुत पुस्तक को हिन्दी में अनुवादित करके प्रकाशित करके प्रकाशित किया जाये।

वास्तव में एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद करना कठिन कार्य है परन्तु मैं इस विषय में मौलाना सै 0 गुलाम हुसैन सदफ़ ज़ैदी का ह्रदयगी आभारी हूँ कि उन्होने अपने मूल्यवान समय में से समय निकाल कर भली प्रकार अनुवाद का कार्य सम्पन्न किया। भगवान उनके ज्ञान व बुद्धि में बढोत्तरी करे तथा भविष्य में सफलता प्रदान करे।

अन्त में मैं आप सब के लिये एवं अपने लिये प्रार्थना करता हूँ कि हम सब को सत्यकर्म करने की शक्ति प्रदान हो तथा इमाम के साधारण सेवकों में सम्मिलित हो तथा जब हम प्रलय में भगवान के सम्मुख उपस्थित हों तो उचित इस्लाम के अनुयायी होकर उपस्थित हूँ।

प्राणियों मे अति तुच्छ सै 0 अली अब्बास तबातबाई

श्रद्धार्पित

बिस्म्ल्लाह हिर्रहमा निर्हीम

वस्तुवाद के इस भयकन् और डरावने काल में जब मनुष्य के जूनम का कारवां विश्वव्यापी युद्ध के शोलों की भेंट होने के लिये अपने अन्तिम चरण के बिल्कुल समीप पहुँच चुका है।

नये युग की उन्नित संस्कृति ने सम्पूर्ण विश्व पर शासन करने की अभिलाषा दृष्टि से चाँद , सूरज और सितारों पर जो कमन्दें डाली है उस ने सम्पूर्ण विश्व को भयावह नरक का रूप दे दिया है।

सभ्यता के ठेकेदारो ने उन्नति के नाम पर प्राणी वर्ग में सबसे श्रेष्ठ मनुष्य को असभ्यता की उस सीमा पर पहुँचा दिया है। जिसे देखकर आदम का मस्तिष्क लज्जा से पानी पानी हो गया।

प्रत्यक्ष रूप से इस धरती पर अंधकार और नास्तिकता के काले साये फैलते जा रहे है। संसार का चप्पा चप्पा अत्याचार से भर चुका है। शैतान की नस्ल ने आदम की सन्तान से अपने अपमान का बदला लेने की तैयारियाँ पूरी कर ली है। खौफनाक़ माहौल और गुनाहों के तूफान ने मनुष्य मुक्ती के सभी द्वार बन्द कर दिये है और मनुष्यता पर चारों ओर निराशा के बादल छा भी चुके है। इस निराशा के दशक में भी अगर कोई आस बाक़ी है तो वह केवल आपके तेजस्वी मुख की प्रकाशमय किरणों से सम्बन्धित है अतः मैं पापी एवं गुनाहगार अपने मन की शुद्धता व सन्तुष्टि निष्ठा के साथ अत्यन्त विनय एंव नम्रता और बेचैनी से निवोदित हूँ कि बस प्रतीक्षा के क्षणों को कम कीजिये क्योंकि सहनशीलता का दामन कमज़ोर हाथों से छूटने ही वाला है।

ईश्वर के लिये शीघ्र परदे की अदृश्यता को उलटकर तेजस्वी चेहरे की हल्की सी झलक से अधंकरमय संसार को न्याय एवो इंसाफ की ज्योति से जगमगाकर संसार के कण कण से सर्वश्रेष्ठ ईश्वर के उस कथन को सत्य कर दिखाइये कि ईश्वरीय आभा चरम सीमा पर पहुँच कर ही रहेगी चाहै कुफ़्फार (ईश्वर में विश्वास न रखने वाले) कितनी ही घृणा एवं उदासीनता प्रकट करें।

निर्मल मन से स्वीकार है यद्दपि आपका प्रकटन क़यामत से कम नही किन्तु न आना भी तो एक क़यामत है और जब क़यामत स्वयं आपकी चरण प्रतिक्षा में है तो बस-अब शीघ्रताशीघ्र प्रलयकारी रूप में ही पधारें।

उत्पीडित मानवता की सहायता और ईश्वरीय उद्देश्य की पूर्ति हैतु अब आप ही की आवश्यकता है क्योकि आपके आगमन का मुझे भी पूर्ण विश्वास है अतः आगमन-घोषणा व स्वागतम् सूचना के कारणंवश यह श्रद्धार्पित पुस्तक , शीर्षक क़यामते सुगरा सार्पत है – इसके बदलें में उम्मीदवार हूँ केवल उस कृपा दृष्टि का जो महाप्रलय के सेवकों की पंक्ति से गुज़रती हुई मेरे पापी अस्तित्व पर क्षणिक ठहरे और मेरी नजात का सहारा बन जाये , मैं अपने दुस्साहस पर लज्जित अवश्य हूँ किन्तु आप ही न्याय करें।

ज़ब्त कब तक करे कब तक कोई ख़ामोश रहे।

हुस्न बे-मिस्ल है फिर किसलिये रूपोश रहे

आप उलटें तो ज़रा चेहर – ए – गैबत से नकाब

मेरा जिम्मा जो जमाने में कहीं होश रहे।

(इज़हारे ख़्याल) मन अभव्यक्ति

आदरणीय मौलवी सनाऊल हक़ साहब

एम 0 ए 0 (अलीगढ़)

अनुवादकः अलस्टरानामी फ़ार बिगनर्स

मर्टिन डेविडसन ,

बउनवान महोअंजुम , कराची

हर मुसलमान का कर्तव्य है कि वह क़यामत को सत्य जाने और उस पर मन से विश्वात रखे। चूँकि मनुष्य का अन्तकाल (अन्जाम) विचार अमुचित मार्गों पर जाने से रोकता है। इसी कारण प्रलय (क़यामत) का अक़ीदा (विश्वास) ईमान की प्राथमिकताओं में रखा गया है। अल्लाह ने पवित्र कुरान में स्थान पर क़यामत का उल्लेख है कि अर्थ समझे बगैर केवल शब्द ही मनुष्य की अन्तरात्मा को झँकोर देते है। क़यामत को केवल भयभित करने का स्त्रोत न समझना चाहिऐ अपितु इसे जीवन निधि मानते हुऐ इसके सत्य होने का विश्वास करना चाहिए। यदि अक़ीदे से ड़ट कर देखा जाये तो बौद्धिकता की माँग भी यही प्रतीत होती है कि संसार और जीवन जिस का एक आदि है उसका अन्त भी आवश्यक है।

सर जेम्स जेन्सन ने इस विषय पर केवल भौतिकता की दृष्टि से बहस करते हुए अपनी प्रसिद्ध रहस्यमस संसार में इस सत्यता को इन शब्दो सें प्रस्तुत किया है।

हमारी सम्पूर्ण उमंगों को अन्त में असफ़लताओं का सामना करना है और हमारी सारी उपलब्धयाँ तता सफ़लताऐं मनुष्य वंश के समाप्त होते ही समाप्त हो जायेगी और संसार ऐसा हो जायेगा जैसे हम सब जन्मे ही न हों।

क़यामत (प्रलय) किस तरह आयेगी , इसका रुप क्या होगा , इसका घान केवल ईश्वर को है। हमें तो केवल कुछ लक्षण इंगित करा दिये गचें हैं तथा भूकम्पों इत्यादि के उदाहरण द्वारा इसकी भयानकता को बोध कराया गया है। सम्भव है पृथ्वी के आन्तरिक पदार्थों में विक्षोभ उत्पन्न होने से धरातल उलट – पुलट हो जाये या भूमि की ऊपरी तल पर प्राकृतिक या मनुष्य द्वारा ऐसा वातावरण उत्पन्न हो जो इस धरती के थिन्न भिन्न होने के कारण बन जाये या फ़िर आकाशीय पिण्ड़ों की नियतता तथा क्रमबद्धता में ऐसी बाधा उत्पन्न हो जिससे धरातल काल के गाल में समा जाये। स्वयं वैज्ञानिक कई ऐसे कारणों को इंगित कर रहे है जो संसार को तबाही के गर्त में ढकेल देंगे। इनमें से एक यह है कि सूरज , छव्टा (नोवा) सितारों से सम्बन्धित है , अचानक इतनी विशालता ग्रहण करेगा कि पृथ्वी इसकी लपेट में आकर पूर्णतया जीवन विहीन हो जायेगी। सम्भव है इसी घटना का सूर्य के सवा नेज़ा पर आने से मोध किया गया हो। यद्यपि यह बात भगवान ही के ज्ञान में है कि वह इस सुख समृद्धि से परिपूर्ण संसार को किस प्रकार उसके अन्तिम चरण सें पहुँचायेगा। हमारे लिये तो यही अक़ीदा काफ़ी है कि ऐसा होना आवश्यक है। इसलिये हमें उस दिन की खेदजनक स्थिति से बचने के लिये भगवान के आदेशानुसार जीवन-यापन का पूरा प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार अन्य घटनाओं के प्रकट होने से पूर्व कुछ लक्षण प्रकट होते हैं उसी प्रकार क़यामत (प्रलय) जैसी महान घटना के लिये उनके लक्षण हैं। जिनमें से कुछ के संकेत मोहम्मद सा 0 की वाणी से हो चुका है। इन लक्षणों में से कई इस समय हमारी दृष्टि के सम्मुख हैं और अनेकों की सम्भावनाऐं विद्ममान है। वह भी भविष्य के परदे से शीघ्र या देर में प्रकट होकर रहेंगे। वर्तमान लक्षणों में सबसे मुख्य वह नाना प्रकार के अवगुण हैं जिनमें लगभग समस्त मानव समाज लिप्त है। और जिन पर पश्चाताप होने के स्थान पर वह गर्व प्रकट कर रहा है। इसी लक्षण को देखते हुऐ डा 0 इकबाल ने इबलीस की ज़बान से यह वास्तविकता प्रकट कराई है।

उस की बरबादी पर आज आमादा है वह कारसाज़

जिसने इसका नाम रखा था जहाने क़ाफ व नून

यद्यपि यह इतना स्पष्ट लक्षण है कि इसके पश्चात अन्य किसी लक्षण की आवश्यकता नहीं रहती है। तर्क समाप्ति हैतु औऱ भी कई लक्षण बताये गये हैं जो सम्भव है हमारे जीवन में घटित न हुऐं हों बल्कि आगामी संतान मानव वंश उनको देख सकें। यह आवश्यक है कि कुछ कथन जो क़यामत के लक्षण के सम्बन्ध में कहै गये हैं , आलोचना और विवेचना के मोहताज (आश्रित) हैं। संक्षेपण और विस्तारीकण में भी भेद सम्भावना रहती है फिर भी इस से मुख्य उद्देश्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्योंकि उनके बताने और गिनाने का उद्देश्य क़यामत की याद दिलाना और नसीहत देकर वर्तमान चाल-चलन के सुधार की तरफ आकर्षित करना है और वह उद्देश्य एक या अनेक लक्षणों के प्रकट होने से समाप्त नहीं होता है।

इसी पुनीत उद्देश्य को सामने रखकर आदरणी भ्रातः सै 0 मो 0 अब्बास साहब क़मर जैदी ने कठिन परिश्रम से इन मुख्य-मुख्य क़यामत के लक्षणों को जो हमारे सामने हैं या जिनकी सम्भावनाऐं सम्भव हैं अनेक बड़ी पुस्तकों से उद्धरित करके अत्यन्त सूक्ष्म रुप में एक स्थान पर एकत्र कर दिया , साथ ही यह आभास करके कि वर्तमान समय में कोई भी बात उस समय तक ठोस नहीं समझी जाती जब तक विज्ञान से उसकी पुष्टि न हो उन्होनें बहुधा बातों का वैज्ञानिक ढ़ंग से विश्लेषण करने का सफ़ल प्रयास किया।

ज़ैदी साहब ने क़यामत के दो भाग करके अपने संकल्प को क़यामते सुगरा का शीर्षक दिया है और चूँकि उसे क़यामते कुबरा का प्राक्कथन बताया है इसीलिये दोनों एक ही श्रृंखला की दो कडियां समझना चाहिऐ फिर चूंकि जिस महान क्रांती को उन्होनें क़यामते सुग़रा का नाम दिया है। उसके पश्चात् कुछ समय के अच्छे कार्य भी परलोक के जीवन की अच्छाई के लिऐ होगी जो क़यामते कुबरा के बाद प्रारम्भ होगी इसलिये दोनों अलग-अलग करके नहीं वरन् बल्कि दोनों के सम्पूर्ण चित्रों को एक दर्पण में देखना चाहिऐ।

सम्भव है कुछ कथनों से जो ज़ैदी साहब ने प्रस्तुत किये हैं पाठक को असहमति हो परन्तु जिस उद्देश्य से यह सम्पूर्ण संकलन किया गया है उस पर किसी प्रकार का सन्देह और आलोचना नहीं की जा सकती। उनका उद्देश्य भय दिला कर बुराई से हटाना और भलाई की ओर लाना है , यह उद्देश्य जितना महान है उससे कोई भी असहमति नहीं प्रकट कर सकता अतः इन पृष्ठों को इसी ध्येय के साथ पढ़ा जाये , मात्र मनोरंजन या ज्ञान में वृद्धि के उद्देश्य से नहीं। यदि पाठ्कों ने इस पुस्तक का इस दृष्टिकोण से अध्ययन किया तो संकलनकर्ता के प्रयासों को भी सराहा सकेंगे तथा उनके चाल चलन का सुधार भी हो सकेगा।

ईश्वर सद बुद्धि दे

सनाईल हक़ सिद्दीक़ी

प्राक्कथन

परम आदरणीय ,

श्री अलहाज अल्लामा तालिब जौहरी

(प्रवक्ता गवर्मेन्ट कालिज , नाज़िमा-बाद , कराची)

बिस्ल्लाहिर्रहमान निर्रहीम

क़यामते सुग़रा (लघु प्रलय) सोकलित द्वारा श्री कमर जैदी मेरे सम्मुख है। जिसमें इमामे मेहदी (अ 0) के प्रकटन के लक्षणों को एकत्रित ओर संकलित किया गया है। इमाम मेंहदी (अ 0) का प्रकट होना एक वास्तविक तथ्य है जिस पर इस्लाम के उदभव से आज तक समस्त मुसलमान सहमत रहें हैं। शिया लेखकों ने हज़रत इमाम मेहदी (अ 0) के सम्बन्ध में जिस प्रकार से कथनों का एकत्रीकरण किया है ओर जाँच तथा परख का कार्य सम्पन्न किया है वह आप अपनी मिसाल है। तथा उसके उल्लेख करने की विशेष आवश्यकता भी नहीं परन्तु उसके साथ सुन्नी धर्मशास्त्रीयों तथा पारखियों के विषय में चर्चा भी अपरिहार्य है। इसलिये कि उनकी एक बड़ी संख्या ने अपनी पुस्तको में हज़रत इमाम मेंहदी (अ 0) से सम्बन्धित इतने कथनों का उल्लेख किया है जो विषय के प्रमाण हैतु पर्याप्त हैं। हम उनका संक्षिप्त प्रारूप निम्नवत प्रस्तुत करते हैं।

1. जामये सही मो 0 बिनइस्माईल बुख़ारी 3 हदीसें

2. सही मुस्लिम मुस्लिम बिन हज्जाज 11 हदीसें

3. जमा सहीद्दीन हमीदी 2 हदीसें

4. जमा बैन सहाएसित्ता जैद बिनमाविया अबदरी 11 हदीसें

5. फ़जायलुस सहाबा अब्दुल अज़ीज अबकरी 7 हदीसें

6. तफ़सीरे सालेबी सीलिबी 5 हदीसे

7. ग़रीमुल हदीस इब्ने कतीबा 6 हदीसें

8. अल – फ़िरदैस़ इब्ने शैरविया दैलमी 4 हदीसें

9. मुसन्ते फ़ात्मा हाफिज अबुलहसन दार क़त्नी 6 हदीसें

10. मुसन्दे अली हाफ़िज अबुल हसन दार क़त्नी 3 हदीसें

11. अल – मुब्तदा किसाई 2 हदीसें

12. अब मसाबीह हुसैन बिन मसूद फ़तरा 5 हदीसें

13. अल मसाबीह हुसैन हिम मसैद फ़तरा 5 हदीसें

14. किताब हाफ़िज इब्ने मतीन 3 हदीसें

15. अहलुलखाया मो 0 बन इस्माईल फ़रग़ाफी 3 हदीसें

16. ख़बरे सतीह हमीदी................. 2 हदीसें

17. इस्तेआब युसुफ़ बिन अ 0 अज़ीज नमीरी 2 हदीसें

परन्तु इसके अतरिक्त यह भी एक तथ्य है कि इन तेरह चौदह शताब्दियों में कुछ ऐसे दृष्टिकोण वाले व्यक्ति हुऐ है जिन्होने इमाम मेंहदी (अ 0) की परिकल्पना को सिरे से नकारा है। ऐसे व्यक्ति संख्या में उतने ही कम हैं जितने यज़ीद की ख़िलाफ़त को उचित समझने वाले। हज़रत इमाम मेहदी की परिकल्पना को अस्वीकार करने का कारण वास्तव में दो बाते हैं। एक तो यह है कि यदि उनके अस्तित्व को स्वीकार कर लिया जाचे तो फिर आप के व्याक्तित्व निजी विशेषताऐं , परिवारिक घण , तथा व्यक्तिगत लक्षणों पर भी तर्क वितर्क करना होगा। और फिर अन्ततोगत्वा बातें बहुत दैर तक पहुँच जायेगी। फ़ानी के कथनानुसार

ज़िक्र जब छिड़ गया क़यकमी का।

बात पहुँची तेरी जवानी तक।।

दूसरी बात यह है कि स्वंय बने झूठे मेहदियों की अधिकता से उत्तरहीन हो जाने वालों के पास इसके अतरिक्त और कोई विकल्प नहीं था कि सिरे से इस सम्मान योग्य अस्तित्व की परिकल्पना ही को अस्वीकार कर दिया जाये , यह एक प्रकार से विमुख (भाग जाना) हो जाना है जिसे इसलाम अकीदों के सम्बन्ध में अनुचित समझता है।

इमाम मेहदी के अस्तित्व को न मानने वाले अपने घटिया और सारहीन वितर्कों के कारण , हमारे तर्क का विषय नही हैं उनके उत्तर के लिये मात्र यही बहुत है कि यदि इमाम मेहदी (अ 0) विद्मान होने के मामले में जान न होती तो न तो इतने झूठे मेहदी पैदा होते और न ही उनकी पुष्टि करने वाले। वास्तविक तर्क का विषय तो वह लोग है जिन्होने मेहदियत के पवित्र शरपर से स्पष्ट करने का असफल प्रयास किया है। बनी अब्बास और बनी फ़ात्मा के मेहदियों से लेकर भारतीय एंव पाकिस्तानी मेहदियों तक समय और स्थान की लम्बी दूरी है जिसमें वह बलते और बिगड़ते रहे। मानव प्रवृत्ति हर नयी वस्तु को आश्चर्य और उत्सुक्ता की दृष्टि से देखती है। यह महानुभाव भी जनता की कृपा दृष्टि से लाभान्वित हुए बिना न रह सके कदाचित ,से ही अवसर के लिये कहा गया है कि हल्क – ए – मुस्तजएलून – (जल्दी करने वाला नष्ट हो जाता है)। हज़रत इमाम मेहदी (अ 0) के विषय में भी जल्दी करने वाले नष्ट हो जायेंगे। इसमे कोई सन्देह नही है कि हज़रत मेहदी के सम्बन्ध में इतनी ठोस रचनाए इसलामी पुस्तको में उपलब्ध है कि किसी झूठे मेहदी के बनने की कोई सम्भावना ही न थी। परन्तु झूठे मेहदियों ने इसका अवसर इस प्रकार प्राप्त किया कि मात्र कुछ लक्षणों को अपने व्यक्तित्व में दर्शा कर अपने मेहदी बनने का दावा किया। परिणाम स्वरुप अध्ययन के अल्प भाव में अज्ञानी और साधारण प्रवृत्ति के लोग उनके आस-पास एकत्र हो गये। इसीलिये उर्दू में ऐसी पुस्तकों की अधिक आवश्यकता है जो हज़रत इमाम मेहदी (अ 0) के सम्बन्ध में जनसाधारण को पूर्ण रूप से जानकारी दे सकें अन्यथा भट्कने की श्रँखलाऐं लम्बी होती जायेगी तथा जानकारी कराने के लाभ का एक दृष्टिकोण यह भी है कि मेहदियत को नकारने वालों ने अपनी कुछ विशेष नितियों के कारण जिन मामलों में परिवर्तन तथा परिवर्धन किया है या जिनका अविष्कार किया है उन्हें तर्क-वितर्क का द्वार खोले बिना सरलता से हल किया जा सकेगा। उदाहणार्थ ऐक फ़िरके ने अपनी नीतिनुसार हज़रत ईसा (अ 0) और हज़रत इमाम मेहदी (अ 0) को एक ही व्यक्ति ठहराया है। इसकी तुलना में यदि मनुष्य को इमाम के प्रकट होने के विस्तार का ज्ञाल हो और उसे यह भी बोध हो कि हज़रत ईसा (अ 0) सम्मानित इमाम की सहायतार्थ प्रकट होगें और उनके पीछे नमाज़ पढ़गें तो मामला स्वतः हल हो जाता है। यद्दपि यहाँ पर हज़रत मसीह (अ 0) तथा हज़रत मेहदी (अ 0) की इकाई (वहदत) पर एक संक्षिप्त टिप्पणी उचित होगी। इस दृष्टिकोण के दो मुख्य और मूल भेद हैः

1. जिस मेहदी के हदीस (पै 0 के कथन) में आने की भविष्यवाणी की गयी है वह मेहदी (अ 0) न होगें , बल्कि मसीह तुल्य होंगे

2. महदियत को ला मेहदी इल्ला मसीह (कोई मेहदी नहीं सिवाऐ मसीह के) के अनुसार मसीह में ही निर्भर किया गया है इसलिए मेहदी , मसीह के अतिरिक्त कोई व्यक्ति न होगा , उल्लेखित दृष्टिकोण के प्रमाण स्वरुप जिन अनियमित्ताओं एंव स्पष्टीकरण को मान्यता दी गयी है यदि तर्क और संघर्ष इसकी अनुमति प्रदान करे तो हर सत्य कथन को असत्य से किया जा सकता है। जहाँ जहाँ भी कथनों मे ईसा मसीह (अ 0) के प्रकट होने का वर्णन है वहाँ ईसा पुत्र मरियम के नाम का उल्लेख है। किसी तुल्य या सामान का उल्लेख नहीं है। उस स्थान पर ईसा (अ 0) के जीवन व मृत्यु का विषय इसलिये बेकार और प्रमाण हीन है कि यदि असम्भव परिस्तिथियों में मृत्यु सिद्ध हो जाये जब भी वह कुरान और हदीस के अनुसार उनके गुनः जीवित होने के विपरित न होगी और जहाँ हदीस ला मेहदी इल्ला ईसा का प्रशन है तो यह हदीस शिया पुस्तकों में मूलतः उपलब्ध नही है। हाँ सुन्नी आलिमों ने सल्लेख किया है मगर साथ ही इस कथन को दुबर्ल और इसका सब्बेख करने वाले को अविश्वस्नीय घोषित किया है। इन बातों से हट कर मसीह का इस्रराइली होना तथा हज़रत मेहदी (अ 0) रसूल अल्लाह (स 0) के परिवार से होना इस बात का प्रमाण है कि वह पृथक-पृथक व्यक्तित्व है जिस पर भारी संख्या में कथनों के साक्ष्य उपलब्ध है।

झूठे मेहदियों आधिक्य ते जो असत्य प्रमाण उत्पन्न हुऐ उनसे हट कर सबसे मुख्य बात चह है कि ऐसे व्यक्तियों की निरन्तरता के कारण यदि प्रकट नोने के समय वास्तविक इमाम मेहदी (अ 0) की ओर भी हास्यप्रद दृष्टियाँ उठें तो कुछ दैर नहीं इसलिये विस्तार सहित इस व्यक्तित्द का परिचय कराना हमारे लिये अपरिहार्य है।

आज जबकि बनावटी ग्रहों के युग का संसार अन्याय से पिरपूर्ण होता जा रहा है और तृतीय विश्वयुद्ध की छाया मानव के भाग्य पर गहरी होती जा रही है , ऐसे व्यक्ति का परिचय ह्रदय को शाँति प्रदान कर सकता है जो उन्हें इन समस्याओं से मुक्ति दिलाने वाला है। वास्तव में अध्ययनाधीन पुस्तक हज़रत इमाम मेहदी (अ 0) के परिचय से सम्बद्ध एक कड़ी है जिसके संकलन एंव प्रकलन पर श्रीमान मौला क़मर ज़ैदी बधाई एंव प्रशंसा के पात्र हैं।

जिस कलात्मक दक्षता के साथ श्री ज़ैदी ने अखबारे कथन व सूचनाऐं) की विवेचना की है , और इमाम के प्रकट होने के लक्षण पर आधारित अत्यधिक जानकारियाँ उपलब्ध करायी हैं वह उर्दू भाषा में वास्तव में बढ़ोत्तरी है। इससे पूर्व इस विषय पर उर्दू में संग्रहीत व स्पष्ट पुस्तक मुझे देखने के नहीं मिली। यह भी एक अद्भुत व अनोखी बात है कि मो 0 साहब (अ 0) के परिवारजनों के ज्ञान व बोध के अतरक्त इस जर्चित तथय के विषय पर इतनी सामग्री कहीं और नहीं मिलती जो शिया अख़बार व हदीसों की पुस्तकों में सहस्त्रों पृष्ठ पर फैली है तथा आज भी इसलामी समाज के अचम्भे का कारण है। इस अवसर पर प्राकृतिक रुप से मस्तिष्क में यह प्रशन उत्पन्न होता है कि मात्र रसूल अल्लाह के परिवारजनों के इमामों ने इस विषय पर क्यों इतना प्रकाश डाला अरबी की एक प्रसिद्ध कहावत है घर वालों को घर अन्दर की अधिक जानकारी होती है , चूँकि यह इनके घर का मामला था इसलिये इनसे अच्छा इस विषय पर कौन प्रकाश डाल सकता था इसके अतरिक्त यह तो हज़रत इमाम मेहदी (अ 0) इसी श्रंखला के परिपूर्णकर्ता है जिसे ईश्वर रसूल के अहलेबैत (अ 0) (परिवारजनों) से सम्बध किया है। इसीलिये यह रसैल के परिवारजनों का धर्म सम्बंधी एंव धार्मिक कर्तव्य था कि वह इमाम मेहदी के विषय में अधिक सूचनाऐं एकत्र करें। यह बात भी स्मरणीय है कि वह ख्याति प्राप्त सुन्नी आलिमों जिन्होंने हज़रत इमाम मेहदी के जन्म तथा उनके अस्तित्व को स्वीकारा है कि एक बडी संख्या है जिनके कथनों को अस्वीकार करना वास्तविकता को अस्वीकार करने के समान है। लक्षणों का एकत्रीकरण इतनी विकट समस्या नहीं है बल्कि वह बिन्दु जो वास्तव में कठिन है वह लक्षणों का परीक्षण है। अतः एक पारखी के लिये यह आवश्यक है कि वह लक्षणों सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों को दृष्टिगत रक्खेः

कूफ़ी लिपी अपने विभिन्न आकार बदल कर हम तक आयी है , वह अपने प्रारम्भिक आकार में स्पष्ट मात्रओं और शब्दों से ख़ाली थी। तता शब्दों में भेद के गुण बहुत कम पाये जाते थे। हमारी सूचनाओं और हदीसों की पुरातन पूंजी चूंकि कीफ़ी लिपी से बलदल कर हम तक पहुँची है अतः इस्तेनाक़ ( Coby) की कुछ कठिनाईयाँ और भूलचुक का उत्पन्न होना अपरिहार्य था। तहरीक़ (फाडना) और तकरीक़ (जलाना) में सिर्फ़ एक बिन्दु का भेद है , इसलिये लेखकों ने इस शब्द को अपने दोनों रूपों से सुरक्षित किया है। परिणाम स्वरूप यह न ज्ञात हो सका कि कूफे की गलियों में झन्डे फाड़े जायेंगे या जलाये जायेंगे। औफ़ सलमी के विषय में एक कथानुसार (मावाहकरीत) तथा दूसरे कथनानुसार (मावाहदकोयत) दोनों ही अरब इलाकों के प्रसिद्ध नगर हैं। जिसके आधार पर विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता कि इससे किस नगर का बोध है इसलिये कथनों में ( Coby) इस्तेनाक़ की त्रिटियों को निकालना आवश्यक है। यद्पि ऐसी त्रुटियों से मुक्य लेख प्रभावित नहीं होता और वास्तविक्ता प्रत्यक दशा में सुरक्षित रहती है किन्तु एक दृढ़ निर्णय तक पहुँयने के लिये यह अनिवार्य है।

कथनों में बहुधा नगरों स्थानों और जातियों व नाम आये है जो उस समय प्रयेग किये जाते थे परन्तु वर्तमान में उनका प्रयोग नही है। इसलिये बात को सबके समझने योग्य बनाने के लिये भौगोल अनुसार स्थानों एंव नगरों की स्थिति तथा सदरे इसलाम (इसलाम का आदिकाल) के नगरों , जातियों के नाम का नया रुप जानना आवश्यक है।

3. कथनों की पृष्ठभूमि का ज्ञान आवश्यक है कि मासैम ने कथन कहाँ पर कहा , तथा किन लोगों से कहा ताकि उस स्थान से पूरब पश्चिम तथा उत्तर दक्षिण का बोध किया जा सके और जिन लोगों को सम्बोधित किया है उन्हें भा सुगमता से पहचाना जा सके।

4. मासूमों ने अन्तिम काल के सम्बन्ध में उस समय की राजनीति , समाज , रहन-सहन , आर्थिक सभी विषयों पर टिप्पणी की है , उनके भिन्न-भिन्न शीर्षकों से सम्बन्धित पृथक-पृथक एकत्रीकरण पाठक के मन मस्तिष्क हैतु सहायक सिद्ध होगा। इसके अतरिक्त चार और बड़े प्रकार के लक्षण हैं जिनकी विनेचना लक्षणों के साथ ही कर देना आवश्यक है। अटल न टलने योग्य , लक्षण वह है जो परिस्थितियों एंव कार्यों पर निर्भर है। साधारण वह है जो हर स्थान पर दृष्टिगोचर होंगे और मुख्य वह हैं जो किसी क्षेत्र विशेष के साथ सम्बध होगे। इन भेदों को दृष्टिगत रखने से यह लाभ होगा कि जिन कथनों में प्रत्यक्ष रुप से विरोधाभास तथा त्रुटि दृष्टिगोचर है। उनका सन्तोष जनक उत्तर ज्ञात हो जायेगा।

5. लक्षणों में से बहुधा कथनों में किसी प्रकार की टीका-टिप्पणी का कोई स्थान नहीं है जिन शब्दों में उनका उल्लेख है उन्ही शब्दों में वह पूर्ण होंगे अथवा पूर्ण हो चुके हैं। अतः ज़बरदस्ती किसी को इमाम मेहदी सिधद्ध करने से कथनों को घूमा-फिरा कर विसंगतियां लाने की चेष्टा न की जाये अन्यथा यह ज्ञान के साथ खुली धोखाधड़ी होगी।

मैंने अध्यानाद्दीन पुस्तक को अनेक स्थानों से देखा और मेरे लिए प्रसन्नता का अवसर है कि ज़ैदी साहम उपरोक्त कथित अध्ययन से बड़ी सीमा तक उत्तरदायित्य पूर्ण सिद्ध हुए। इससे बढ़ कर उनका यह चयन भी प्रशंसनीय है कि उन्होने अधिक्ता से उन्ही कथनों को एकत्र किया है जिनमें आने वाली भविष्यवाणी है तथा अब तक महदियत के अस्वीकार कर्ताओं की ओर से उन पर किसी प्रकार की टीका-टिप्पणी नहीं की गयी है। उलहारणार्थ , सै 0 हसनी का उठना , सुफ़यानी का आतंक , पूर्वी मध्य के कुध भागों का ध्वस्त हो जाना आदि।

अन्त में पाठकों से यह अनुरोध है कि वह इस पुस्तक क अध्ययन मनोरंजन या समय बिताने की दृष्टि से न करें बल्कि उस उद्देश्य को सामने रखे जो संकलन का वास्तविक ध्येय है। कुरान एंव हदीसों से सिद्ध है कि मानव किसी काल में भी बिना किसी इमाम के नही रहा है और न रह ही सकती है। इस बात को सर्वसहमति प्राप्त हदीस मन माता वलम यारिफ़ इमामे ज़माने हि माता मिल्तन जहिलियत (जिसने अपने समय के इमाम को न पहचाना वह अज्ञानता की मृत्यु मरा) की ओर संकेत है। अतः जब यह स्थित हो मोक्ष समय के इमाम के बोध होने पर ही निर्भर हो तो फिर उसकी अनिवार्यता में किसे सन्देह हो सकता है।

मकतबे मेराजे अदब बधाई का पात्र है कि उसने अपने प्रथम प्रस्तुतीकरण हैतु एक महत्वपूर्ण विषय ढूँढा।

तालिब जौहरी


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