मनाज़िले आख़ेरत

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मनाज़िले आख़ेरत कैटिगिरी: क़यामत

मनाज़िले आख़ेरत

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मनाज़िले आख़ेरत

मनाज़िले आख़ेरत

हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

जन्नत के चराग़

सूरए दहर में इरशादे कुदरत है-

जन्नत में जन्नतियों को आफ़ताब (सूरज) की गर्मी और जाड़े का सर्दी न होगी। वहां पर मौसम में मोतदिल होगा। उन्हे आफ़ताब और माहताब की रौशनी की ज़रुरत नहीं होगी , बल्कि जन्नत में हर एक के लिए उसके आमाले सालेह और ईमान का नूर काफ़ी होगा।

जैसा कि रवायत में गुज़रा है कि हूराने जन्नत का नूर आफ़ताब के नूर पर ग़ालिब होगा और यह चलते-फिरते चिराग होंगे। जन्नती मकानों पर जो मोती , मूंगे , याकूत व मरजान व ज़बरजद ज़र्मरुद जड़े हुए हैं , वह मुख़्तलिफ़ रंगों की रोशनी से अजीब समा पैदा किए होंगे। फ़र्श , बर्तन और लिबास मुख़तलिफ़ रंगों में ज़ियापाशियां कर रहे होंगे और यह नूरानी क़न्दीलें जन्नत को बक़या नूर बना रही होंगी।

अब्दुल्ला इब्ने अब्बास से रवायत है कि जन्नती एक दिन मामूल से ज़्यादा रोशनी पाएंगे। अर्ज़ करेंगे कि परवरदिगार! तेरा वादा था कि जन्नत में सूरज की रौशनी और सख़्त सर्दी न लगेगी। आज क्या हो गया ? कहीं सूरज तो नहीं निकल गया। आवाज़ आएगी यह सूरज नहीं है , बल्कि सैय्यदुल औसिया यानी अलीए मुर्तज़ा और सय्यदह फ़ात्मा ज़हरा (अ 0स 0) आपस में लताफ़त की बातें करते हुए हंसते हैं और यह रौशनी उनके दन्दाने नूरानी का असर है , जो जन्नत की रौशनी पर ग़ालिब आ गया।

जन्नती नग़मात

यह दुनियावी तरह-तरह की न्यामतें और लज़्ज़तें जन्नती लज़्ज़तों का मामूली हिस्सा भी नहीं है। वहां हक़ीक़त और असल मौजूद होगी। सदए कामिल और खुशकुन नग़मात जन्नत में होंगे। अगर जन्नती नग़मात की आवाज़ अहले दुनिया के कानों तक पहुंच जाए तो उनके सुनने से पहले हलाक हो जाएं।

चूनांचे लहने दाऊदी में परवरदिगारे आलम से यह असर अता किया था कि जब वह हज़रत दाऊद (अ 0स 0) इस लहेन में ज़बूर की तिलावत फ़रमाते थे , तो हैवान आपके इर्द-गिर्द मदहोश हो जाते थे और जब यह आवाज़ इन्सानों के कानों में पड़ती तो गिर पड़ते और बाज़ हलाक हो जाते।

हज़रत अमीरूल मोमनीन (अ 0स 0) नहजूल बलागा में हालाते अम्बिया के तहत एक ख़ुतबे में इरशाद फ़रमाते हैं , कि हज़रत दाऊद (अ 0स 0) जन्नत में लोगों को अपने लहेन से लुत्फ़ अन्दोज़ फ़रमाएंगे और अहले जन्नत के क़ारी होंगे। इस जुमले से पता चलता है कि वह जन्नतियों को जन्नत के नग़मात से लुत्फ़ अन्दोज़ फ़रमाएंगे और जन्नती उनको सुनने की ताक़त भी रखते होंगे।

तफ़सीर मजमउल ब्यान में रसूले खुदा (स.अ.व.व. ) से मर्वी है कि जन्नत के नग़मों में से बेहतरीन नग़मा वह होगा , जो हूराने जन्नत अपने शौहरों के लिए पढ़ेंगी और वह आवाज़ ऐसी होगी जो जिन्नों , इन्सानों ने न सुनी होगी। मगर आलाते मौसिक़ी के साथ यह नग़मात न गाए जाएंगे। एक रवायत (कथन) में है कि बेहश्ती परिन्दे मुख़तलिफ़ नग़मात गाते होंगे।

हज़रत सादिक़ आले मोहम्मद (अ 0स 0) से पूछा गया , कि जन्नत में ग़िना व सुरुर होगा जतो आपने इरशाद फ़रमाया कि जन्नत में एक दरख़्त है। ख़ुदा वन्दे आलम के हुक्म से हवा उसे हरकत देगी और उससे ऐसी सुरीली आवाज़ पैदा होगी कि किसी इन्सान ने इतना उम्दा साज़ और नग़मा न सुना होगा और यह उस शख़्स को नसीब होगा , जिस शख़्स ने दुनीयाँ में ख़ौफ़े खुदा की वजह से ग़िना की तरफ़ कान न धरे होंगे।

जन्नत की न्यामतें और लज़्ज़तें

जन्नत में तरह-तरह की न्यामतें होंगी इरशादे कुदरत है-

“ तुम अगर खुदा की न्यामतों को शुमार करना चाहो तो उसका अहसार व अहाता नहीं कर सकते। ”

जिन तक हमारी अक़लों की रसाई नामुमकिन हैं। हक़ायक़ और मारफ़े इलाहिया की ख़्वाहिश पूरी होगी।

तफ़सीरे साफ़ी में “ वअक़बल मअज़ुहुम अला बअज़िन यतासाअलून ” के ज़िम्न में तहरीर है कि जन्नती एक दूसरे के साथ मारिफ़े इलाहिया के बारे में मुज़ाकिरा करेंगे।

इसके अलावा जन्नती लोग जिनके वाल्दैन , औलाद और दोस्त दुनिया से बेईमान रुख़सत होंगे और जन्नत में दाख़िल होने की सलाहियत रखते होंगे , उनकी शिआअत करेंगे और उनको अफने पहलू मे लाएंगे और यह मोमिन के इकराम व एहतराम की ख़ातिर होगा। कुर्आन मजीद में है।

“ हमेशा रहने के बाग़ जिनमें वह आप जाएंगे और उनके बाप , दादा और उनकी बीवियां और उनकी औलाद में से जो लोग नेकूकार हैं ,” और जिस वक़्त जन्नती जन्नत में चले जाएंगे तो एक हज़ार फ़रिश्ते जो ख़ल्लाक़े आलम की तरफ़ से मोमनीन की ज़ियारत और मुबारकबादी के िलए मामूर हैं आएंगे और मोमिन के महल जिसके हज़ार दरवाज़े हैं हर दरवाज़े से एक-एक फ़रिश्ता दाखि़ल होकर उसे सलाम करेगा और मुबारकबादी देगा। कुर्आन पाक मे इसी तरफ़ इशारा किया गया है-

“ और फ़रिश्ते तुम्हारे पास हर दरवाज़े से आएंगे (और कहेंगे) तुम पर सलामती हो। ”

इससे बढ़कर मोमनीन के साथ परवरदिगारे आलम का मुकालमा है , जिसके बारे में कुछ रवायत (कथन) मिलती है , लेकिन यहां पर सिर्फ़ सूरए यासीन की इस आयत “ सलामुन क़ौलन मिररबबिर रहीम ” को काफ़ी समझता हूँ। “ मेहरबान परवरदिगार की तरफ़ से सलामती का पैग़ाम। ”

तफ़सीर मिनहज में जाबिर इब्ने अब्दुल्ला ने रसूले अकरम (स.अ.व.व. ) से रवायत की है कि आपने फ़रमाया , कि जब जन्नती जन्नत की न्यामतों में ग़र्क़ होंगे तो उन पर एक नूर साते होगा और उससे आवाज़ आयगी अस्सलामो अलैकुम या अहल्ल जन्नते , इस जगह यह कहा जा सकता है कि दुनियाँ में जो कुछ बरगुज़दी पैग़म्बरों को हासिल था कि वह परवरदिगारे आलम से हम कलाम होते थे , मेराज वग़ैरा , आख़िरत में वह जन्नतियों को नसीब होगा।

इसके अलावा मोहम्मद व आले मोहम्मद अलैहिस्सलाम की जन्नत में हमसायगी कुछ कम न्यामत नहीं है , चूनांचे रसूले अकरम (स.अ.व.व. ) ने इरशाद फ़रमाया , ऐ अली (अ 0स 0)। तेरे शिया जन्नत में नूरानी मिम्बरों पर बैठे होंगे। उनके चेहरे (चौहदवीं के चांद की तरह) सफ़ेद होंगे वह जन्नत मे हमारे हमसाये (पड़ोसी) होंगे।

और जन्नत में हमेशगी और न्यामात का ख़लूद जैसा कि ज़िक्र हो चुका है , सबसे बुजुर्ग न्यामत हे। जन्नत मे मोमनीन एक दूसरे के सामने भाईयों की तरह जन्नती तख़्तों पर बैठे होंगे।

(आमने सामने तख़्तों पर बैठे होंगे) , औऱ एक दूसरे की दावतें उड़ाते होंगे , जैसा कि रवायत में मौजूद है।

मर्वी है कि हर रोज़ जन्नत मे उलुल अज़्म अम्बिया में से एक मोमिन की मुलाक़ात , व ज़ियारत के लिए हाज़िर होगा और उस रोज़ तमाम लोग उस बुजुर्गवार के मेहमान होंगे और जुमेरात को ख़ातिमुल अम्बिया के मेहमान होंगे और बेरोज़े जुमा बमुक़ाम कुर्ब हज़रत अहदीयत जल्ला व ओला मेहमान नवाज़ी की जाएगी। (मआद)।

सहबाने ख़ौफ़े ख़ुदा के क़िस्से

(1) एक फ़ासिक़ नौजवान का किस्सा

शेख़ कुलैनी (र 0) बसन्दे मोअतबर हज़रत अली (अ 0स 0) बिने हुसैन (अ 0स 0) से रवायत करते हैं कि एक शख़्स अपने अहलो अयाल (परिवार) के साथ किश्ती (नाव) में सवार हुआ और तक़दीरे इलाही से किश्ती टूट गयी। तमाम सवार गर्क़ (डूब) हो गए , मगर उस शख़्स की बीवी एक तख़्त पर बैठी समुद्र के दूर उफ़तादा जज़ीरा मे पहुंच गयी और उस जज़ीरा के अन्दर एक रहज़न (डाकू) मर्दे फ़ासिक़ रहता था , जिसने किसी क़िस्म का फिस्क़ो फुजूर (अपराध) न छोड़ा था जब उसने उस औरत को देखा तो पूछा कि क्या तू इन्सान है या जिन ? उस औरत ने कहा मैं इन्सान हूँ। इसके अलावा उसने उस औरत से और कोई बात न की और उसके साथ लिपट कर मुजामियत करने का इरादा किया। जब वह इस अम्ले क़बीह की तरफफ़ मुत्तवजेह हुआ तो उस फ़ासिक़ ने औरत को मुज़तरिब और कांपते देखा। उस फ़सिक़ ने पूछा तू कि़स वजह से मुज़तरिब है। उसने आसमान की तरफ़ इशारा करते हुए कहा , अल्लाहतआला के ख़ौफ़ से उसने कहा , क्या तूने आज तक कभी यह काम किया है ? उस औरत ने कहा , खुदा की क़सम ज़िना हरगिज़ नहीं किया। उस फ़ासिक़ ने कहा , जबकि तूने आज तक कोई बुरा काम नहीं किया , तो फ़िर किस वजह से खुदा से डरती है। हालांकि मैं तुझे इस काम पर मजबूर कर रहा हूं तू खुद अपनी रज़ामन्दी से नहीं कर रही , इसके बावजूद इस क़द्र ख़ौफ़ज़दा है। इसलिए मैं तुझसे ज़्यादा खुदा से डरने का हक़दार हूं क्योंकि मैंने इससे पहले भी बहुत से गुनाह (पाप) किए हैं। बस वह फ़ासिक़ इस काम से बाज़ रहा और उस औरत से कोई बात किए बग़ैर घर की तरफ़ रवाना हुआ और दिल में किए हुए गुनाहों पर नादिम (शर्मिन्दा) और तौबा (प्रायश्चित) करने का इरादा कर लिया। रास्ते में उसकी मुलाक़ात एक राहिब से हो गयी और वह दोनों एक दूसरे के रफ़ीक़ बन गए। जब वह थोड़ी राह चल चुके तो सूरज की गर्मी बढ़ने लगी। राहिब ने उस जवान से कहा , गर्मी ज़्यादा बढ़ गयी है तू दुआ कर की खुदावन्द तआला बादल को फेजे और वह हम पर साया कर दे। जवान ने कहा मैंने कोई नेकी और अच्छा काम नहीं किया , जिसकी बिना पर ख़ुदावन्द तआला से हाजत तलब करने की हिम्मत करुँ। राहिब ने कहा मैं दुआ करता हूं तुम आमीन कहना।

बस उन्होंने ऐसा ही किया। थोड़ी देर बाद एक बादल आकर उनके सिर पर साया फ़िगन हुआ और वह उसके साये में चलने लगा। जब वह काफ़ी रास्ता तै कर चुका तो उनके रास्ते अलग हो गए। जवान अपने रास्ते पर और राहिब अपने रास्ते पर चलने लगा औऱ बादल का साया जवान के साथ हो लिया और साहिब धूप में रह गया। राहिब ने जवान से कहा तू मुझसे बेहतर है क्योंकि तेरी दुआ मुस्तजाब हुई और मेरी दुआ मुस्तजाब न हुई। बताओ वह कौन-सा नेक काम तूने किया है कि जिसकी बदौलत तू इस करामत का मुस्तहक़ हुआ। जवान ने अपने क़िस्से को नक़ल किया। तब राहिब ने कहा चूंकि तूने ख़ौफ़ ख़ुदा की वजह से तर्क़े गुनाह का मुस्म्म इरादा कर लिया। इसलिए अल्लाहतआला ने तेरे पिछले गुनाह माफ़ कर दिए तू कोशिश कर कि इसके बाद भी नेक रहे।

(2) बहलोल नब्बाश का क़िस्सा

शेख़ सद्दूक (र 0) रवायत करते हैं कि एक दिन मआज़ दिने जबल (र 0) रोते हुए हुजूरे अकरम (स.अ.व.व. ) की ख़िदमत में हाज़िर हुए और सलाम किया। आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने सलाम का जवाब दिया और पूछा ऐ मआज़! तेरे रोने का सबब क्या है ? उसने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह (स.अ.व.व. )! दरवाज़े पर एक ख़ूबसूरत नौजवान खड़ा इस तरह रो रहा है , जैसे कोई औरत अपने नौजवान बेटे की मय्यत पर रोती है। वह आपकी ख़िदमत में हाजि़र होने की इजाज़त चाहता है। आं हज़रत ने फ़रमाया उसे अन्दर बुला लाओ , बस मआज़ गया और नौजवान को अन्दर बुला लाया। नौजवान ने अन्दर दाख़िल होकर सलाम अर्ज़ किया। आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने सलाम का जवाब दिया और पूछा। ऐ नौजवान तेरे रोने की वजह क्या है ? उसने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह (स.अ.व.व. )! मैं क्यों न रोऊँ जबकि मुझसे गुनाहे अज़ीम सरज़द हुआ है। अगर अल्लाहतआला मुझसे इस गुनाह का मोआख़ज़ा करे तो वह मुझे जहन्नुम में भेजेगा और मुझे यक़ीन है कि वह मुझसे ज़रुर मोआख़ज़ा करेगा और कभी न बख़शेगा। आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने फ़रमाया क्या तूने शिर्क किया है ? उसने अर्ज़ किया , मैं मुशरिक बनने से ख़ुदा की पनाह चाहता हूं। आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने पूछा क्या तूने किसी को नाहक़ क़त्ल किया है ? उसने नफ़ी में जवाब दिया। आपने फ़रमाया अगर तेरा गुनाह पहाड़ों से भी अज़ीमतर है तो भी ख़ुदा बख़्श देगा। उसने अर्ज़ किया हुजूर! मेरा गुनाह तो पहाड़ो से भी अज़ीमतर है। आपने फ़रमाया अगर तेरा गुनाह सातों ज़मीनों , दरियाओं , दरख़्तों और जो कुछ उनमें हैं , उससे भी बड़ा है तो खुदा वन्दे आलम इस गुनाह को भी बख़्श देगा। उस नौजवान ने अर्ज़ किया हुज़ूर मेरा गुहना , इन सबसे अज़ीमतर है। आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने फ़रमाया अगर तेरा गुनार सितारों , आसमानों , अर्श व कुर्सी जैसी भी अज़ीम है तो अल्लाहतआला उसे बख़्श देगा। तब आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने उसकी तरफ़ नाराज़ होकर देखा और फ़रमाया , ऐ नौजवान! तेरा गुनाह बड़ा है या परवरदिगारे आलम! बस उस नौजवान ने सिर झुका कर अर्ज़ किया। मेरा परवरदिगार हर ऐब से पाको-साफ़ है। कोई चीड़ उससे बड़ी नहीं है। बल्कि मेरा परवरदिगार हर चीज़ से बुजुर्ग व आला है। आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने फ़रमाया , कि अल्लाहतआला के सिवा कौन गुनाहे अज़ीम बख़्शने वाला है। उस नौजवान ने अर्ज़ किया। बखुदा या रसूल अल्लाह! उसके सिवा कोई नहीं औऱ ख़ामोश हो गया। फ़िर आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने इरशाद फ़रमाया , ऐ नौजवान! अपने गुनाह से आगाह कर। उस नौजवान ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह ! (स.अ.व.व. ) सात साल तक मैं क़बरों को खोद कर कफ़न चोरी करता रहा। एक रोज़ एक अन्सारी लड़की की मय्यत को दफ़न किया गया। जब रात हुई तो मैंने पहले की तरह क़ब्र खोदकर और मय्यत को बाहर निकाल कर उसका कफ़ऩ उतार लिया और उसको नंगा क़ब्र के किनारे छोड़़कर चल दिया। उसी वक्त शैतान ने मेरे दिल में वसवसा पैदा किया और उस लड़की को मेरी नज़रों में ख़ूबसूरत कर दिखाया और शैतान ने मुझ़से कहा क्या तूने इसके सफ़ेद बदन को नहीं देखा और उसकी मोटी रानों को नहीं देखा। यहां तक की शैतान ने मुझ पर ग़लबा हासिल कर लिया और मैं वापस क़ब्र की तरफ़ लौटा और उस मय्यत के साथ मुजामेअत करके अपना मुंह सियाह किया और मय्यत को उसी हालत में छोड़कर वापस हुआ। अचानक मैंने अपने पीछे से एक आवाज़ सुनी की लानत हो कि बरोज़े क़यामत जब अहले महशर के सामने अल्लाहतआला के हुज़ूर झग़ड़ा पेश होगा , कि तूने मुझे मुर्दों के दर्मियान नंगा किया। क़ब्र से बाहर निकाल कर मेरा कफ़न चुराया और मुझे जनाबत की हालत में नंगा छोड़ दिया. और इसी नजिस (अपवित्र) हालत में महशूर हूंगी और ऐ जवान तेरी जवानी जहन्नुम में जले। बस जवान ने अर्ज़ किया , मुझे यक़ीन है कि इन आमाल के होते हुए , जन्नत की बू भी नहीं सूंघ सकूंगा। हुज़ूर ने फ़रमाया , ऐ फ़ासिक़! मेरी नज़रों से दूर हो जा , क्योंकि मैं डरता हूं कि कहीं तेरे साथ मुझे भी आतिशे दोज़ख़ न जला दे , क्योंकि तू जहन्नुम के इतना क़रीब है।

(यह बात छिपी न रहे कि आं हज़रत (स.अ.व.व. ) का उस नौजवान को इस तरह दूर करना सिर्फ़ उसके दिल में ज़्यादा ख़ौफ़ पैदा करने की वजह से था ताकि वह ज़्यादा इल्तिजा करे और लोगों से ताअल्लुक़ात तोड़ कर हक़तआला से तौबा करे ताकि वह कुबूल करे। चुनांचे उसने तौबा की और वह कुबूल हुई।)

आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने बार-बार उसे यही हुक्म दिया यहां तक की वह नौजवान दरबार से बाहर निकला , मदीने के बाज़ार में आकर कुछ दिनों के लिए खाना ख़रीदा और वह मदीना के किसी पहाड़ पर चला गया और टाट का लिबास पहन कर इबादत में मशगूल हो गया और अपने हाथों को गर्दन में डाल कर फ़रियाद करता रहा।

“ ऐ परवरदिगार तेरा बन्दा बहलोल तेरे हुज़ूर में हाथ गर्दन में डाले खड़ा है। ” ऐ अल्लाह तू मुझे और मेरे गुनाहों को भी जानता है ऐ खुदाया मैं अपने किए गुनाहों पर परेशान हैं और मैंने तेरे पैग़म्बर के पास जाकर तौबा का इज़हार किया है। उशने मुझे अपने पहलू से दूर भगा कर मेरे ख़ौफ़ को बढ़ाया है) बस मैं तुझे तेरी अज़मत व जलालत और असमाए आज़म का वास्ता देकर सवाल करता हूं। कि मुझे अपनी रहमत से मायूस न करना। यहां तक की चालीस दिन तक यह अलफ़ाज़ दोहराता रहा और इस क़द्र रोया कि हैवानात और दरिन्दे भी उसे देख़कर रोते थे। जब चालीस दिन गुज़र चुके तो उसने अपने हाथों को आसमान की तरफ़ उठा कर दुआ की और अर्ज़ किया। ऐ मेरे परवरदिग़ार! तूने मेरी हाजत को क्या किया। अगर तूने मेरी दुआ को कुबूल किया और मेरे गुनाहों को माफ़ कर दिया है तो तू अपने पैग़म्बर को वही नाज़िल फ़रमा ताकि मैं भी अपनी दुआ के मुत्तालिक़ जान लूं और ऐ खुदा अगर तूने मेरी दुआ कुबूल नहीं फ़रमायी और मुझे अभी तक नहीं बख़्शा तो मुझे अज़ाब में मुबतिला कर और ऐसी आग भेज जो मुझे जला डाले या मुझे इस दुनियाँ के अन्दर सख़्स मुसीबत में मुबलिता कर , लेकिन खुदाया मुझे रोज़े क़यामत के अज़ाब से नजात दे। बस अल्लाहतआला ने उसकी तौबा कुबूल होने पर आयत नाज़िल फ़रमायी।

“ और वह लोग जब कोई बदी कर गुज़रते हैं या अपनी जानों पर जुल्म करते हैं तो अल्लाहतआला को याद करके अपने गुनाहों की माफ़ी चाहते हैं और अल्लाहताला के सिवा कन है जो गुनाहों को माफ़ कर सकता है ? और जो कुछ वह कर चुके , इस पर जन बूझ कर इसरार नहीं करते। यही वह लोग हैं , जिनकी जज़ा उनके रब की तरफ़ बख़शीश और जन्नत है , जिनके नीचे नहरें बहती हैं , वह इसमें हमेशा रहने वाले हैं और अमल करने वालों का कितना अच्छा अज्र है। ”

जब यह आयते करीमा नाज़िल हुई तो आं हज़रत (स.अ.व.व. ) अफने घर से बाहर तशरीफ़ लाए और इस आयते करीमा की तिलावत भी करते थे और बहलोल की हालत मालूम करते थे मआज़ (र 0) ने अर्ज़ किया या रूसल अल्लाह! हमने सुन रखा है कि वह फ़लां जगह रहता है। आं हड़रत (स.अ.व.व. ) अपने कुछ सहाबा (सर 0) कराम के हमराह उस पहाड़ की तरफ़ मुत्तवजेह हुए और वहां तशरीफ़ ले गए और देखा कि वह नौजवान (महलोल) दो पत्थरों के दर्मियान अपने दोनों हाथों को गले में डाले खड़ा है और उसका चेहरा सूरज की गर्मी की वजह से सियाह (काला) और बराबर रोने की वजह से पल्कें गिर चुकी हैं औऱ वह कह रहा है कि ऐ मेरे परवरदिगार तूने तुझे अशरफुल मख़़लूक़ात (इन्सान) पैदा किया और मुझे अच्छी शक्ल व सूरत से नवाज़ा। काश! मैं यह भी जान लेता की तू मेरे साथ क्या करेगा। तू मुझे आग में जलाएगा या अपने ज्वार में मुझे बेहश्त के अन्दर जगह देगा। ऐ अल्लाह तूने मुझ पर बड़े-बड़े ऐससान किए और तेरी न्यामतों का हक़ मुझ पर ज़्यादा है हाय अफ़सोस काश! मैं अपना अन्जाम भी जानता होता कि तू मुझे अपनी रहमत के ज़रिए बेहश्त में भेजेगा , या मुझे ज़लील करके दोज़ख़ में भेजेगा। ऐ अल्लाह मेरा गुनाह ज़मीन व आसमान और अर्श व कुर्सी से भी बड़ा है कितना अच्छा होता अगर मैं यह भी जान लेता कि मेरा गुनाह तू बख़्श देगा या बरोज़े क़यामत मुझे ज़लील व रुसवा करेगा। वह जवान इस क़िस्म की बातें कर रह था और रो रहा था और अपने सिर पर ख़ाक डालता था , जंगह के हैवान व दरिन्दे उसके गिर्द हल्क़ा बांधे हुए थे और परिन्दे उसके सिर पर साफ़ (लाइन) बांधे खड़े थे और उसको देख रहे थे। बस आँ हज़रत (स.अ.व.व. ) उसके पास तशरीफ़ लाए और उसके हाथों को गर्दन से खोला और अपने दस्ते मुबारक से उसके सिर से मिट्टी को निकाला और फ़रमाया। ऐ बहलोल! तुझे खुशख़बरी हो कि अल्लाहतआला ने तुझे दोज़ख़ की आग से आज़ाद कर दिया और आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने अपने सहाबा (र 0) को मुख़ातिब करके फ़रमाया ऐ मेरे सहाबा! तुम भी बहलोल की तरह अपने गुनाहों की माफ़ी मांगो , फिर इस आयते करीमा की तिलावत फ़रमायी और बहलोल को जन्नत की खुशख़बरी सुनायी।

अल्लामा मजलिसी (र 0) ने ऐनुल हयात में इसी हदीस के ज़ैल में जो कुछ फ़रमाया है , उसका खुलासा है कि इन्सान को जानना चाहिए कि तौबा (प्रायश्चित) करने की कुछ शरायत और असबाब भी हैं।

शरायते तौबा (प्रायश्चित)

तौबा (प्रायश्चित) करने की पहली शर्त यह है कि इन्सान अल्लाहतआला की अज़मत व बुजुर्गी को देखकर सोचे कि उसने कितने बुजुर्ग व बरतर खुदा की नाफ़रमानी की और फ़िर अपने गुनाह की बुजुर्गी को देखे कि किस क़द्र गुनाह मुझसे सरज़द हुआ , और फिर गुनाहों की सज़ा देखे , जो अल्लाहतआला ने दुनियाँ और आख़िरत में उसके लिए मुक़र्रर कर रखी है , जो आयात और अहादीस से वाज़ेह है , औऱ यही निदामत इन्सान को तीन चीज़ों पर आमाद करती है , जिन तीन चीज़ों से तौबा मुरक्कब है।

पहली चीज़ यह है कि बन्दे और अल्लाहतआला का ताअल्लुक जो इस गुनाह की वजह से टूट चुका है , वह बहाल हो जाए।

दोम यह कि वह अपने किए पर नादिम (शर्मिन्दा) हो और अगर गुनाह का तदारुक मुमकिन हो तो तदारुक भी करे।

क़ाबिले तौबा गुनाह

कुछ क़ाबिले तौबा गुनाह यह हैं-

पहले किस्म का गुनाह वह है जिसका ताअल्लुक करने वाले के अलावा किसी दूसरे इन्सान से मुत्तालिक़ न हो , बल्कि उसकी सज़ा सिर्फ़ आखि़रत का अज़ाब ही हो , जैसे मर्द का सोने की अंगूठी और अबरेशम का लिबास ज़ेबे तन करना , क्योंकि इस गुनाह की तौबा दोबारा न पहनने का पक्का इऱादा करना और किए पर पशेमन होना ही क़यामत के दिन उसके अज़ाब से बचने के लिए काफ़ी है।

दोम जिस गुनाह का ताअल्लुक़ करने वाले के अलावा दूसरे शख़्स से भी हो और उसकी कुछ क़िस्मे हैं-

1- हुकूक़ अल्लाह 2- हुकूकुल इबाद।

अगर किसी के ज़िम्मे किसी का हक़ हो या उसके ज़िम्मे किसी कि़स्म का माल हो मसलन उसने कोई ऐसा गुनाह किया हो कि उसके बदले एक गुलाम आज़ात करना हो तो अगर वह ऐसा करने पर क़ादिर है तो जब तक वह ऐसा न करेगा तो सिर्फ़ निदामत से उसके गुनाह का अज़ाब नहीं टल सकता , बल्कि उस पर वाजिब है कि उस गुनाह का कफ़्फ़ारा अदा करे और अगर उसके जि़म्मे माल के अलावा कोई चीज़ मसलन उससे नमाज़ और रोज़े कज़ा हो गए हों तो उसके उनकी कज़ा बजा लानी चाहिए अगर उसने कोई ऐसा काम किया है कि जिसकी वजह से इस शरीयते खुदा की हद लगायी गयी हो। मसलन उसने शराब पी हो और हाकिमे शरह के सामने साबित न हो सकी हो तो उसे चाहिए कि वह खुद तौबा करे और उस का इज़हार न करे और उसे यह भी इख़्तियार है कि वह हाकिमे शरह के सामने इक़रार करे ताकि वह इस पर शरई हद लगाए , लेकिन इज़हार न करना बेहतर है। अगर हुकुकुल नास में से हो , मसलन उसके ज़िम्में किसी शख़्स का माल हो तो उस पर वाजिब है कि वह माल अस्ल वारिस तक पुहंचाये र अगर माल के अलावा हो यानी उसने किसी को गुमराह किया हो तो उसे चाहिए कि वह उसको सही रास्ते पर लगाए। अगर वह हद का मुस्तहक़ है मसलन उसने फोहश (फूहड़) बात कही है तो अगर कहने वाला आलिम शख़्स है तो चूंकि ह उसकी अहानत की वजह है तो हद जारी होने से पहले , उसको अपना मर्तबा देखना होगा और अगर वह इस फ़ेल (कार्य) की शरई मारिफ़त से नावाक़िफ़ हो तो इसके बारे में एख़तिलाफ़ है। अकसर उल्मा का ऐतीक़ाद यह है कि इस बात का कहना चूंकि अहानत है और तकलीफ़ की वजह है। इसलिए उसे तकलीफ़ पहुंचाना ज़रुरी नहीं और यही ग़ीबत के बारे में भी है।

(3) हरारते जहन्नुम की याद में धूप में लेटने वाले का क़िस्सा

इब्ने बाबूया मे मर्वी है कि एक रोज़ अकरम (स.अ.व.व. ) गर्मी की वजह से दरख़्त के साया में तशरीफ़ फ़रमा थे। अचानक एक आदमी आया और अपने लिबास को उतार कर गर्म ज़मीन पर लेटने लगा और कभी पेट को और कभी पेशानी को तपती हुई ज़मीन पर रगड़ता और अपने नफ़स से मुख़ातिब होकर कहता देख अल्लाहतआला का अज़ाब इस गर्मी से अज़ीमतर है।

हज़रत रसूले अकरम (स.अ.व.व. ) ने उसकी तरफ़ देखा तो उसने अपना लिबास (कपड़ा) पहन लिया। आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने उसको बुलाकर फ़रमाया , ऐ शख़्स! मैंने तुझको ऐसा करते देखा है , जो किसी दूसरे शख़्स को करते हुए नहीं देखा। बता तुझे किस चीज़ ने ऐसा करने पर मजबूर किया। उसने अर्ज़ किया कि इसका सबब सिर्फ़ खौफ़े खुदा है और अल्लाहतआला का अज़ाब इस तकलीफ़ से ज़्यादा सख़्त है , जिसके बरदाश्त (सहन) करने की मुझमें ताक़त नहीं।

आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने फ़रमाया कि तू खुदा से ऐसे ही डर रहा है , जैसा कि डरने का हक़ है , और अल्लाहतआला भी तेरे इस ख़ौफ़ और फ़ेल पर फ़रिश्तों में फ़ख़्र व मुबाहात कर रहा है। बस आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने अपने साहबियों से मुख़ातिब होकर फ़रमाया उस आदमी के पास चले जाओ , ताकि वह तुम्हारे लिए दुआ करे , जब वह तमाम उसके नज़दीक गए तो उसने कहा , ऐ खुदाया हम तमाम लोगों को हिदायत और राहेरास्त पर ला और परहेज़गाी को हमारा ज़ारदेराह बना और हमारा बेहश्त में दाखिला फ़रमा।

(4) ज़िनाकार औरत और आबिद का क़िस्सा

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़र (अ 0स 0) से मनकूल (उद्धृत) है कि बनी इसराईल में एक ज़िनाकारा औरत थी , जिसने बनी इसराइल के बहुत से नवजवानों को अपना फ़रेफ़ता बना रखा था। एक दिन कुछ नवजवानों ने आपस में मशविरा किया अगर फ़लां (अमुक) आबिद भी उस औरत को देखे तो उस पर आशिक़ हो जाए। औरत ने जब उनका यह मश्विरा सुना तो उसने क़सम खाई कि मैं आज घर न जाऊंगी , जब तक की उस आबिद को अपना फ़रेख़्ता न बना लूं। बस वह उसी रात ज़ाहिद के घर गयी और उसके घर पर दस्तक दी और कहा कि ऐ आबिद मुझे आज रात पनाह दे ताकि आज रात में तेरे घर में गुज़ारूं। आबिद ने इन्कार कर दिया तो उस औरत ने कहा कि बनी इसराइल के कुछ नौजवान मेरे साथ ज़िना का इरादा रखते हैं और मैं उनसे भाग कर तुझसे पनाह मांगती हूं अगर दरवाज़ा न खोला तो वह पहुंच जाएंगे और मुझे रुसवा करेंगे। आबिद ने जब यह अलफ़ाज़ सुनें तो दरवाज़ा खोल दिया। जब यह औरत आबिद के घर में दाख़िल हो गयी तो उसने अपने लिबास उतार फेंक़ा। आबिद ने जब उस औरत के हुस्नों जमाल को देखा तो वह बेएख़्तियार (बेचैन) हो गया और अपने हाथ उसकी तरफ़ बढ़ाया , मगर उसी वक़्त ख़ौफ़े ख़ुदा से हाथ को खींच लिया और चूल्हे पर रखी हुई देग के अन्दर दाख़िल कर दिया। उस औरत ने पूछा तू क्या कर रहा है ? उस आबिद ने जवाब दिया मैं अपने हाथ को इस ग़ल्ती की सज़ा के तौर पर जला रहा हूं। बस वह औरत जल्दी से बाहर निकली और बनी इसराइल को ख़बर दी कि आबिद अपने हाथ को जला रहा है , जब वह लोग आए तो देखा कि उसका तमाम हाथ जल चुका था।

(5) हारसा (र 0) बिने मालिक सहाबी का क़िस्सा

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0स 0) से मनकूल है कि एख दिन रसूले अकरम (स.अ.व.व. ) ने सुबह की नमाज़ अदा करने के बाद हारसा बिने मालिक की तरफ़ देखा , जिसका सिर बराबर जागंने की वजह से नीचे गुर रहा था (ऊँघ रहा था) और उसके चेहरे का रंग ज़र्द हो चुका था। उसका बदन कमज़ोर और आंखे अन्दर धंस चुकी थीं। आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने उस जवान से पूछा तूने किस आलम में सुबह की और अब तेरा क्या हाल है ? हारसा ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह (स.अ.व.व. )! मैंने सुबह यक़ीन के साथ की। हज़रत (स.अ.व.व. ) ने इरशाद फ़रमाया , हर दावे की दलाल होती है। तेरे इस यक़ीन पर क्या दलील है। उसने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह (स.अ.व.व. ) मेरे यक़ीन पर वह चीज़ गवाह है जो मुझे बराबर ग़मगीन और परेशान रखती है , रातों को बेदारी और दिनों को रोज़ा रखने पर आमादा रखती है और इसी यक़ीन की वजह से मेरा दिल इस दुनियाँ से उकता चुका है और तमाम दुनियावी चीज़ों को मेरा दिल मकरुह और बुरा ख़्याल करता है और मेरा खुदा पर यक़ीन इस दर्जा पर पहुँच चुका है , गोया मैं क़यामत के दिन के हिसाब के लिए बनाए गए अर्श को बचश्मे खुद देख रहा हूं और तमाम महशूर लोग मेरी आंखों के सामने हैं औऱ उनके दर्मियान खड़ा अहले बेहश्त को कुर्सियों पर बैटे बेहश्त की न्यामतों से मुस्तफ़ैज़ तकिये लगाए एक दूसरे से मुहब्बत भी गुफ़्तगू में मशगूल देख रहा हूं। उसी तरह अहले जहन्नुम को भी जहन्नुम के अन्दर अज़ाब में मुबतिला फ़रियाद करते देख रहा हूं। गोया जहन्नुम की वहशतनाक आवाज़ अब भी मेरे कानों में आ रही है। बस हज़रत रसूले अकरम (स 0अ 0स) ने अपने सहाबा की तरफ़ मुख़ातिब होकर इरशाद फ़रमाया , देखो अल्लाहतआला ने उसके दिल को नूरे ईमान से किस तरह रौशन कर दिया और इसके बाद आपने हारसा (र 0) से इरशाद फ़रमायाः-

ऐ हारसा! तू अपनी इस हालत पर हनेशा के लिए साबित क़दम रह। उस जवान ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह (स 0अ 0)! आप दुआ करें कि अल्लाहतआला मुझे शहादत नसीब करे। बस आपने दुआ फ़रमायी। फ़िर चन्द रोज़ के बाद हुज़ूर (स.अ.व.व. ) ने उसे हज़रत जाफ़रे तैय्यार (र 0) के साथ जेहाद के लिए भेजा और वह नौ आदमियों के बाद दरजए शहादत पर फ़ायज़ हुआ।

हदीसे अबु दरदा (र 0) व मुनाजात

हज़रत अमीर (अ 0स 0)

इब्ने बाबूया अरवह बिने जुबैर से रवायत (कथन) करते हैं कि उसने कहा एक दिन रसूले अकरम (स.अ.व.व. ) सहाबा (र 0) के मजमें में तशरीफ़ फ़रमा थे कि हम अहले बदर और अहले बैते रिज़वानुल्लाह अलैहिम अजमईन की इबादत व आमाल का तज़किरा करने लगे।

अबू दादा ने कहा , ऐ क़ौम! मैं चाहता हूं कि तुम्हें ऐसे शख़्स का पता बताऊँ जिसकी दौलत तमाम सहाबियों से कम है लेकिन उसके आमाल और इबादात सबसे ज़्यादा है। लोगों ने पूछा कि वह कौन शख़्स है। अबु दरदा (र 0) ने कहा वह अली (अ 0स 0) बिने अबु तालिब है , जब उसने अमीरुल मोमनीन (अ 0स 0) का नाम लिया तो तमाम लोगों ने उसकी तरफ़ से मुँह फ़ेर लिया। इस पर एक अन्सारी ने कहा , ऐ अबु दरदा , तूने आज एक ऐसी बात कही , जिसमें तेरा किसी न साथ नहीं दिया। उसने जवाब दिया। मैंने जो कुछ देखा था , तुमसे वही ब्यान किया और तुम भी वही कहते हो , जो कुछ तुमने दूसरे से सुना है। (कलाम बक़्रद मारिफ़त है) मैं एक ख़िदमत में पहुंचा। मैंने देखा कि हज़रत अली (अ 0स 0) अपने साथियों से दूर खजूरों के दरख़्तों की पीछे छिपे हुए हैं और दर्दनाक और ग़मनाक आवाज़ के साथ कह रहे हैं-

“ ऐ अल्लाह! मुझसे कितने हलाक कर देने वाले गुनाह सरज़द हुए हैं और बजाए इसके तू मुझे इन गुनाहों की सज़ा देता तूने हिलम से काम लिया और मुझसे कितनी बुराईयां , हुई , मगर तूने मुझे रुसवा व ज़लील न किया बल्कि मुझ पर रहम किया। ऐ अल्लाह! अगर मेरी यह उम्र तीर मासियत में गुज़र गयी और मेरे नामए आमाल में गुनाह ज़्यादा होते गए तो मैं तेरी बख़शिश और खुशनूदी के अलावा किसी और चीज़ की ख़्वाहिश न करूँगा।

बस मैंने उस आवाज़ का पीछा किया और मुझे यक़ीन हो गया कि यह आवाज़ हज़रत अमीरुल मोमनीन (अ 0स 0) की है इसलिए मैं उस आवाज़ को सुनने के लिए दरख्तों में छुपकर बैठ गया। मैंने देखा कि हज़रत अली (अ 0स 0) नाज़ की बहुत सी रकातें पढ़ रहे हैं और जब भी नमाज़ से फ़ारिग़ होते हैं तो वह दुआओं , आरजुओं और रोने में लग जाते हैं। हज़रत अली (अ 0स 0) की वह दुआएं जो रात को पढ़ रहे थे यह हैं-

“ ऐ अल्लाह! जब मैं तेरी बख़शिश और मेहरबानी को याद करता हूं तो गुनाह मुझ पर आसान मालूम होते हैं औऱ जब मैं तेरे सख़्त अज़ाम को याद करता हूं तो यह गुनाह मुझ पर बड़ी मुसीबत बन जाते हैं। हाय अफ़सोस! जिस दिन मैं अपने इन भूले हुए गुनाहों को नामए आमाल में क़यामत के दिन लिखा हुआ पाऊँगा , जिन्हें तूने अपनी कुदरत कामिला के साथ लिख रखा है। हाय अफ़सोस! उस वक़्त पर जिस वक़्त तू फ़रिश्तों को हुक्म देगा कि उसे पकड़ लो। मुझे इस तरह पकड़े और क़ैद किए जाने पर अफ़सोस है। क़ैदी भी ऐसा जिसके गुनाह के पादाश में उसके कुंचे को भी नजात न मिल सके और उसका क़बीला उसकी फ़रियाद रसी के लिए न पहुंच सकेगा और उसकी इस हालतेज़ार पर तमाम अहले महशर रहम खायेंगे। हाए वह आग जो जिगर और गुर्दो को जला देती ह। हाय वह आग जो सिर की खोपड़ी को जला देती है। ”

बस हज़रत अली (अ 0स 0) इसके बाद बहुत रोए यहां तक कि मुझे हज़रत अमीरूल मोमनीन (अ 0स 0) की आवाज़ तक न सुनाई दी। मैंने अपने दिल में कहा। शायद ज़्यादा बेदारी की वजह से हज़रत को नींद आ गयी है। मैंने इरादा किया कि हज़रत अली (अ 0स 0) को सुबह की नमाज़ के बेदार करूँ। मैंने आपको बहुत हरकत दी। मगर आपने हरकत न की और ख़ुश्क लक़ी की तरह आपका बदन बेहिस हो चका था। मैने इन्नालिल्लाहे वा इन्ना इलैहे राजेऊन पढ़ा और दौड़ कर हज़रत फ़ात्मा सलवात उल्लाहे अलैहा के घर पर जाकर इत्तिला दी और जो कुछ मैंने देखा था तमाम क़िस्सा कह सुनाया। जनाबे सैय्यदा सलामुल्लाह अलैहा ने फ़रमाया कि ऐ अबुदरदा ख़ौफ़े ख़ुदा की वजह से हज़रत की हालत अकसर इसी तरह हो जाती है बस मैं पानी ले गया और हज़रत (अ 0स 0) के चेहरे पर छिड़का तो वह होश में आ गए , और नज़र उठा कर मेरी तरफ़ देखा तो मैं रो रहा था। हज़रत (अ 0स 0) ने मुझसे रोने की वजह पूछी तो मैंने जो कुछ देखा था , कह सुनाया और अर्ज़ किया कि यही मेरे रोने की वजह है तो हज़रत अली (अ 0स 0) ने फ़रमाया-

ऐ अबुदरदा! क्या तूने समझ लिया है कि मैं ज़रुर जन्नत में जाऊँगा , जिस वक़्त तमाम गुनाहगार अपने अज़ाबों का यक़ीन कर चुकेंगे और बड़े तन्दख़ूं औऱ सख्त मिज़ाज फ़रिश्ते अपने घेरे में लिए होंगे और खुदाए जब्बार के नज़दीक ले जाएंगे और इस हालत में तमाम दोस्त मुझे अकेला छोड़ देंगे और तमाम अहले दुनियाँ मुझ पर रहम करेंगे। क्या तू भी उस दिन ऐसी हालत में मुझ पर रहम करेगा , जबकि मैं बतौर मुजरिम अल्लाहतआला के हुज़ूर में खड़ा हूंगा , जिस पर कोई राज़ पोशीदा न होगा।

बस अबुदरदा ने कहा , खुदा की क़सम मैने रसूल अकरम (स.अ.व.व. ) के सहाबियों में से कोई भी इतना इबादत गुज़ार नहीं देखा।

मैं इस मुनाजात का तज़कीरा इन ही अलफ़ाज़ के साथ मुनासिब समझता हूँ जिन अल्फाज़ के साथ हज़रत अली (अ 0स 0) ने उस रात अपनी ज़बाने मुबारक से अदा की थी , ताकि हर शख्स रात की तारीकी में नमाज़े शब के दौरान वह मुनाजात पढ़े। चूनांचे शेख़ बहाई (र 0) ने अपनी किताब मुफ़ाताहुल फ़लाह में इस मुनाजात को इस तरह लिखा है-

“ इलाही कम मिन मोअेक़तिन हल्लत अन मुक़ाबलतेहा बेनेअमतेका व कमामिन जरीरतिन तकर्रमत अन कशफ़ेहा बेकरमेका इलाही इन ताला फ़ी इसयानेका उमरी व अज़ोमा फ़िस्सोहफ़े ज़म्बी फ़आना बेमुअम्मेलीन ग़ैरा गुफ़राने का वला अजाबेराज़िन ग़ैरां रिज़वानेका , इलाही उफ़क्केरो फ़ी अफ़वेका फ़तहूनो अज़कोंरुल अज़ीम मिन अखज़ेका फ़ताज़मो अलंय्या बलीय्यती आह इन अलना क़राअतो फ़िस्सोहोफ़ सय्येअतुन अना नसीहा व अन्त मोहसीहा फ़तकूला ख़ोजूहो फ़यालहू मिम्माख़ूजिन लातुनजीहे अशीरतोहू वलां तफ़ओहू क़बालतोहू आह मिननारिन तनज़ीजुल अक़बाद वलाक़ोबा आह मिननारिन नज़्ज़अतिन लिश्शवा आह मिन ग़मरतिम मिन लहाबातिन लज़ा। ”

मोमनीन की तंबीह के लिए चन्द मिसाल (उदाहरण)

मिस्ले अव्वल

बलोहर कहता है कि एक बार कोई शख़्स जंगल में जा रहा था , कि मस्त हाथी उसके पीछे हो लिया। वह शख़्स डर के मारे भागने लगा , लेकिन हाथी ने भी पीछा न छोड़ा। जब उस आदमी ने देखा कि हाथी बिल्कुल क़रीब आ गया है तो सख़्त बेचैन हुआ। देखा कि क़रीब ही एक ग़ैर आबाद कुंआ था , जिसके किनारे खड़े हुए पेड़ों की डालें , उसमें झुकी हुईं थीं। वह उसकी शाखों को पकड़ कर कुएं में लटक गया। जब उसने इन शाख़ों की तरफञ नज़र की तो उसे मालूम हुआ कि दो बड़े-बड़े चूहे , जिनमें एख सफ़ेद और एक स्याह है , इन डालों को तेजी से काट रहे हैं। जब पांव के निचे नज़र की तो चार अजगर अपने सूराख़ों से बाहर निकल रहे थे और जब कुएं के अन्दर देखा तो एक बड़ा अजगर अपने मुँह को खोलकर उसे निगलने वाला था , जब ऊपर को सिर उठाया तो एक डाल शहद से भरी हुई नज़र आयी। वह उस शहद को चूसने में मशगूल हो गया। बस उस शहद की शीरीनी और लज़्ज़त ने उस आदमी को इन सांपों के ख़तरात से ग़ाफ़िल कर दिया , जो किसी वक़्त भी उसका काम तमाम कर सकते थे। बस वह कुंआ दुनियाँ है , जो मुसीबतों और बलाओं से पुर है और टहनियां इन्सान की उम्र हैं और वह स्याह और सफ़ेद चूहे दिन और रात हैं , जो इन्सान की उम्र को लगातार काट रहे हैं , और वह सांप इन्सान के अनासिरे अरअबा हैं , जिनसे इन्सान मुरक्कब है और वह सौदा , सफ़रा , बलग़म औऱ ख़ून हैं। इनमें से किसी एक का भी इल्म नहीं कि कब और किस उनसुर की वजह से वह हलाक हो जाएगा और वह अजगर इन्सान की मौत है , जो हमेशा उसके इन्तिज़ार में है और शहद जिसको चूसने में मगन है। वह इस दुनिया की लज़्ज़तें और ऐश व आराम है।

इन्सान के मौत से ग़ाफ़िल होने और मौत के बाद वाले अज़ाब से बेपरवाह और दुनिया की लज़्ज़तों में मगर रहने की मिसाल ऊपर लिखी मिसाल (उदाहरण) से बेहतर नहीं हो सकती। हमें उस मिसाल का बग़ौर मुतालिया (अध्य्यन) करना चाहिए। शायद किसी वक़्त इस ख़्वाबे ग़फ़लत से बेदारी का सबब बन जाए।

हज़रत अमीरूल मोमनीन (अ 0स 0) से रवायत है कि एक दिन वह बसरा के बाज़ार में जा रहे थे तो लोगों को ख़रीद फ़रोख़्त में मशगूल देखकर बहुत रोए और उन लोगों से मुख़ातिब होकर फ़रमाया। ऐ दुनिया के गुलामों , और ऐ अहले दुनिया के हाकिमों! तुम तो अपने दिनों को झूठी कसमें खाने और सौदागरी में और रातों को मीठी नींद में गुज़ार देते हो और इन लज्ज़तों की वजह से आख़िरत के अज़ाब से ग़ाफ़िल हो। तुम किस दिन आखत़िरत के सफ़र के लिए जादे राह मोहय्या करोगे और कब अपनी आख़िरत और मआद (वापसी) की फिक़्र करोगे।

मैं मुनासिब समझता हूं कि इस जगह चन्द अशआर का ज़िक्र करूँ। तवालत (ज़्यादा बढ़ जाने) के ख़ौफ़ से सिर्फ़ तर्जुमा पर इक्तिफ़ा करता हूं।

1- ऐ अपनी उम्रे अज़ीज़ को गफ़लत में गुज़ारने वाले इन्सान तूने कौन से आमाल आख़िरत के लिए किए हैं और तेरे वह आमाल कहां हैं

2- ऐ इन्सान! यह तेरे सफ़ेद बाल तेरी मौत के क़ासिद हैं अब तू ही बता कि आख़िरत के तवील (लम्बे) सफ़र के लिए तेरे पास किस क़द्र ज़ादे राह है।

3- तुझे इल्मों अमल के लिहाज़ से फ़रिश्ता होना चाहिए था , लेकिन तूने अपनी कोताह हिम्मत और ताक़त के सहारे दुनिया में मकर व फ़रेब का जाल बिछा रखा है।

4- तूझे किस तरह हूराने जन्नत की सोहबत हासिल होगी , जब कि तू हैवान की तरह मामूली घास और पानी की तरफ़ लपकता है। (चौपाया ख़सलत है)

5- यु दुनियाँ चन्द रोज़ा है तू कोशिश कर ताकि कहीं अल्लाहताला के इनामात से महरूम न हो जाए।

शेख़ अलमशाएख़ निज़ामी गंजवी

के अशआर का तर्जुमा

1- ऐ निज़ामी तू बचपन की बातों को छोड़ क्योंकि बचपन की हालत तो मस्ती और मदहोशी का वक़्त था।

2- जब इन्सान की उम्र बीस या तीस साल हो जाए तो फ़िर उसे ग़ाफ़िल और सुस्त नहीं होना चाहिए।

3- इन्सान के लिए चालीस साल तक ऐश व आराम होता है चालीस साल के बाद इन्सान के बाल गिरने लगते हैं। (कमज़ोरी)।

4- और पचास साल के इन्सान की तन्दुरुस्ती और सेहत जवाब देत जाती है। आंखे , धंस जाती हैं और पांव में सुस्ती आ जाती है।

5- और जब साठ साल को पहुंच जाता है , तो वह हर काम को छोड़कर बैठ जाता है और जब सत्तर साल को पहुंचता है तो उसका निज़ामें तन्फ़्फुस बिल्कुल मफ़लूज (बेकार) हो जाता है।

6- और जब अस्सी और नब्बे साल की उम्र को पहुंचता है तो हर क़िस्म की बीमारियों और तकलीफ़ घेर लेती हैं।

7- अगर वह सौ साल को पहुंच जाए तो उसकी जि़न्दगी उसके लिए मौत होती है।

8- सौ साल की उम्र वें वह शिकारी कुत्ता जो हिरनों को कभी दौड़ कर पकड़ता था। अब कमज़ारी की वजह से उसको हिरन भी पकड़ सकता है और उस पर गालिब आ सकता है।

9- ऐ इन्सान जब तेरे बाल सफ़ेद होने लगें तो समझ ले कि अब तेरी मायूसी के दिन आ रहे हैं।

10- अब तेरा कफ़नपोश जिस्म रुई की तरह हो गया है , लेकिन अब भी रुई के टुकडे को अपने कान से बाहर नहीं निकाल रहा है। (मौत सिर पर है और मोअत्तर (सुगन्धित) रहने का शौक़ अब भी बदस्तूर है)

किसी दूसरे शायर ने कहा है

1- नीलगूँ फ़लक (नीले आकाश) की गर्दिश की वजह से मेरी उम्र के साठ साल गुज़र चुके हैं।

2- इस बीती हुई ज़िन्दगी में हर साल के ख़ात्में पर गुज़री हुई खुशियों पर अफ़सोस करता हूं।

3- मैं उस ज़माने की गर्दिश पर खुश हूं क्योंकि उसने मुझे सब कुछ देकर फ़ेर लिया है।

4- मेरे हाथ-पांव की ताक़त जवाब दे चुकी है और मेरे चेहरे का रंग उड़ गया है और बाल सफ़ेद हो गए हैं।

5- सुरैया ने अपना ताअल्लुक मुझसे तोड़ लिया है , मेरे दांतो की चमक भी धीरे-धीरे जाती रही (यानी मेरा तआल्लुक़ सुरैया से था , अब बुढ़ापे ने सब कुछ ले लिया , यहां तक की दांतो की चमक भी।)

6- यह बिल्कुल सही है दुनियाँ धोखा है , क्योंकि उसके गुनाह का बोझ ज़्यादा और उम्मीद लम्बी हो जाती है , (गुनाह की बख़शिश की उम्मीद पर गुनाह ज़्यादा करता है।)

7- दुनियाँ में कूच का नक़्क़ारा बज रहा है और तमाम हम सफ़र अपने-अपने सफ़र पर चले जा रहे हैं।

8- हाय अफ़सोस! क़यामत के लिए ज़ादे राह नहीं है , क्योंकि सफ़र तवील (लम्बा) है।

9- मेरे कंधों पर (गुनाहों का) बोझ पहाड़ से भी ज्यादा वज़नी है , बल्कि पहाड़ भी मेरे इस बोझ पर तारीफ़ करते हैं (कि किस क़द्र बोझ उठाए हुए हैं)

10- मेरे गुनाहों की बख़शिश कोई मुश्किल काम नहीं ,

(क्योकि वह गफुरूर्र रहीम है) यह मसल मशहूर है कि सेलाब के दामन में कभी-कभी बहार भी होती है।

11- ऐ मेरे परवरदिगार! अगर तेरी मेहरबानी और फ़ज़ल मेरी दस्तगिरी न करे और सिर्फ़ मेरी पाक दामनी पर मुझे छोड़ दे।

12- तो ऐसी हालत में मैं सीधा जहन्नुम में जाऊँगा और तू मेहरबानी करे तो जन्नत में जा सकता हूं और अगर अदल करे तो मेरे आमाल की कोताही मुझे जहन्नुम में पहुंचा देगी)

13- ऐ परवरदिगार मैं बेवकूफ़ इन्सान अपने किए पर नादिम हूं क्योंकि मैं गुनाहों के समुन्द्र में ग़ाते लगा रहा हूं।

14- मेरे अल्लाह तू ही मेरा ख़ालिक़ और मोहसिन है और बख़शने वाला है , क्योंकि तू ही अपनी बख़शिश और रहमत से इन्सान को नवाज़ात है।

“ रसूले अकरम (स.अ.व.व. ) ने फ़रमाया कि जिन लोगों की उम्र चालीस साल हो जाए। वह उस खेती की तरह हैं जिसके काटने का मौसम क़रीब हो और पचास साला लोगों को आवाज़ आती है तुमने अपने आगे कौन से आमाल भेजे और पिछे क्या रखा और साठ साला को हुक्म होता है कि क़यामत के हिसाब के लिए बढ़ो और सत्तर साला को आवाज़ आती है कि तुम अपने आपको मुर्दो में शुमार करो। ” हदीम में आया है कि मुर्ग अपनी ज़बान में कहता है-

ऐ ग़ाफ़िलों! अल्लाह का नाम लो और उसे याद करो।

हंगामे सफ़ेद दम खुरदम सहरी

दानी चराहमी कुन्द नौहा गरी।

नमदन्द दर आइना सुबह

कज़ उमर शबी गुज़िश्त ती बेख़बरी।

तर्जुमा- “ क्या तू जानता है कि सुबह सादिक़ के वक़्त मुर्ग किस वजह से नौहगार होता है , क्योंकि उसे सुबह के आइने में नज़र आता है कि तेरी उम्र बक़द्र रात कम हो गयी है , लेकिन तू अभी बेख़बर है। ”

शेख़ जामी ने कितना अच्छा कहा है

दिलाता के दरई काख़ मिजाजी।

कनी मानिन्द तिफलां खाक़ बाज़ी।।

ऐ दिल तू कब तक इस मजाज़ी महल (दुनियाँ) के अन्दर बच्चों की तरह मिट्टी से खेलता रहेगा।

तवई अन दस्त परवर मुर्ग़ गुस्ताख़।

कि बूदत आशियाँ बैरून अज़ईन काख़।।

तू ही गुस्ताख़ परिन्दे (नफ़स) की परवरिश करने वाला हाथ हैं , हालांकि तेरा मुक़ाम (यहान नहीं बल्कि) इस महल से बाहर है (आख़िरत)।

चरा अज़ां आशयां बेगाना गश्ती।

चूदोना मुर्ग वीराना गश्ती।।

तू उस आशयाने (आख़िरत) से क्यों बेगाना हो गया और रज़ील परिन्दों की तरह इस वीरने (दुनिया) में सरगर्दा है।

बेफ़िशां बालों परज़ आमेज़िश खाक़।

बा पर ता कंगरह इवाने अफलाक़।।

अपने पर व बाल इस दुनियाँ की अलाइशों (गन्दगी) से पाक कर ताकि तू इवाने अफ़लाक़ (अर्श) के कूंगरों तक परवाज़ कर सके।

बबइं दर रख़्स अरज़क तिलस्तनान।

रिदए नूर बर आलम फ़शनाँ।

तू इस नीले आसमान को रख़्स में देखेगा औऱ इस दुनियां पर नूरानी चादर डाल देगा।

हमा दौरे जहां रोज़ी गिरफ़्ता।

बमक़सद राह फ़िरोज़ी गिरफ़्ता।।

इस दुनियां के हर दौर में लोगों को रोज़ी मिलती रही है और अपने मक़सद में कामयाबी हासिल करते रहे हैं।

खलील आसादरर दर मुल्क यक़ींज़न।

नवाए ला उहिब्बुल आफ़िलीन ज़न।।

और हजरत इब्राहिम (अ 0स 0) की तरह सल्तनते यक़ीन में यक़ीन के साथ रह औऱ उनकी तरह ला उहिब्बुल आफ़ेलीन (मैं डूबने वालों को दोस्त नहीं रखता) का नारा लगा।

क़िस्सा बलोहर व दास्ताने बादशाह

मिस्ले दोम (दो)

दुनिया और अहले दुनिया की मिसाल कि उन्होंने दुनिया के साथ दिल लगा कर किस तरह धोखा खाया है। बलोहर ने कहा है कि किसी शहर में लोगों की यह आदत थी की वह किसी ऐसे अजनबी शख़्स को जो उनेक हालात से बेख़बर होता , तलाश करके लाते और एक साल के लिए उसे बादशाह और हाकिम बना लेते। वह शख़्स जब तक उनके हालात से बेख़बर रहात और ख़्याल करता कि वह हमेशा के लिए उन पर हुकूमत करता रहेगा। जब एक साल गुज़र जाता तो अहले शहर उसे ख़ाली हाथ नंगा करके शहर बदर कर देते और वह ऐसी परेशानियों में मुबतिला हो जाता , जिनका उसके दिल में कभी ख़्याल भी न गुज़रा होता और इस मुद्दत में वह बादशाह मुसीबतों में घिरा हुआ , इन अशआर का मिसदाक़ नज़र आता-

ए करदा शराब हुब्बे दुनियां मस्तत।

होशियार नशीं कि चर्ख साज़ पस्तत।

मग़रुर जहां मशो की चूं रंगे हिना।

बेश अज़दो सह रोज़ी नबूद दर्दसता।।

तर्जुमा- “ ऐ इन्सान तुझे हुब्बे दुनियाँ की शराब ने मस्त कर रखा है अब होशियार हो जा कि आसमान अब तुझे ज़लील व रुसवा करने वाला है। ”

तू दुनियाँ की इस आरज़ी (अस्थायी) हुकूमत पर तकब्बुर (गर्व) न कर क्योंकि यह मेंहदी के रंग की तरह दो तीन दिन के बाद तेरे हाथ में न रहेगी। “

एक बार उन्होंने एक अजनबी को अपना हाकिम व बादशाह मुक़र्र किया। वह आदमी अपनी सूझ-बूझ की वजह से समझ गया कि मैं इनमें नावाकिफ़ और अजनबी हूँ इसलिए उनसे उन्स पैदा न किया। उसने एक ऐसे शख़्स को बुलाया , जो उसके शहर का रहने वाला था और इन लोगों के हालात से बाख़बर था। उसने अपने बारे में शहर वालों के रवैय्या के बारे में मालूम किया। उस आदमी ने कहा कि एक साल के बाद यह लोग तुझे फ़लां जगह पर खाली हाथ भेज देंगे। इसलिए मैं तुझे मुख़लिसाना मशविरा देता हूं कि इस दौरान तुझसे जिस क़द्र मुमकिन हो सके माल व दौलत उस जगह इकट्ठा कर ले ताकि जब एक साल के बाद तुझे वहां भेजा जाय तो उस माल व दौलत के बाअस (द्वारा) आऱाम व सुकून की ज़िन्दगी बसर कर सके। बादशाह ने उसके मशविरह के मुताबिक़ अमल किया। जब एक साल गुज़र गया और उसे शहर बदर कर दिया गया तो वह उस मुक़ाम पर पहुंच कर अपने पहले से भेजे हुए माल की बदौलत ऐश व आराम की ज़िन्दगी बसर करने लगा। हक़तआला का कुर्आन पाक में इरशाद है-

“ जो आमाले सालेह बजा लाता है , वह शख़्स अपने नफ़स के आराम व असाइश के लिए करता है। ”

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक (अ 0स 0) फ़रमाते हैं कि आदमी के आमाले सालेह , इस अमल करने वाले से पहले जन्नत में पहुंच जाते हैं और उसके लिए मकान तैयार करते हैं। हज़रत अमीरुल मोमनीन (अ 0स 0) अपने मुख़्तसर इरशादात में फ़रमाते हैं-

“ ऐ फ़रज़न्दे आदम (अ 0स 0) तू अपने नफ़स का खुद वसी बन जा और अपने माल से ऐसा काम कर कि वह तेरे बाद भी असर करने वाला साबित हो , जबकि माल तेरे हाथ में न होगा। ”

किसी शायर ने क्या ख़ूब कहा है-

बर्ग़ ऐंशी बग़ोर ख़वीश क़ब्र सत।

किस न्यारद ज़पस तू पेश फ़रसत।।

क़ब्र में जाने से पहले जि़न्दगी के पत्ते (आमाले सालेह) वहां भेज क्योंकि तेरे चले जाने (मौत) के बाद कोई नहीं तुझे भेजेगा।

खू रुपोश व बख़शाई व रोज़ी रसां।

निगाहें मी चेदार ज़ बहरे कसां।

तुझे अपने लिए लिबास और खाने पीने का सामान और रोज़ी खुद मुहैय्या करनी चाहिए , बख़िलाफ़ इसके तू लोगों के अमवाल पर नज़र जमाए हुए है। (कि वह भेजेंगे)।

ज़र्द न्यामत अकनं बदेह कान तस्त।

कि बाद अज़ तू बैरून ज़ फ़रमान तस्त।।

तू अपना माल व दौलत इससे क़ब्ल राहे खुदा में दे जबकि यह तेरे हाथ से चला जाए। (तुझे मौत आ जाए)।

तू बाखुद बबर तू शरह ख़्वेश्तन।

कि शफ़क़त नयायद ज़ फ़रज़न्द व ज़न।।

तू अपना ख़र्च खुद अपने साथ ले जा क्योंकि बाद में कोई फ़रज़न्द या ज़ौजा खर्च नहीं देता।

गमें ख़्विशहर जि़न्दगी ख़ोर की ख़विश।

बमुर्दा न परवाज़ दाअज़ हिर्स ख़विशा।।

तुझे अपनी आख़िरत की फ़िक्र ज़िन्दगी के दौरान करनी चाहिए , क्योंकि मुर्दा आदमी कुछ नहीं कर सकता।

बग़म ख़वारगी सर अंगुश्त तू।

बख़ारद कसे दरजहां पुश्त तू।।

तेरे बाद आख़िरत मे इस दुनियाँ का कोई शख़्स उंगली के पोर के बराबर भी तेरी इमदाद न कर सकेगा।

“ रसूले पाक (स.अ.व.व. ) ने इरशाद फ़रमाया कि तुम अच्छी तरह जान लो कि हर श़ख़्श अपने भेजे हुए आमाल की तरप बढ़ने वाला है और दुनियां में छोड़े हुए पर पशेमान होने वाला है। ”

आमाली मुफ़ीद नेशापुरी और तारीख़े बग़दाद से मनक़ूल (कहा हुआ) है कि एक बार हज़रत अमीरुल मोमीन (अ 0स 0) ने हज़रत ख़िज्र (अ 0स 0) को ख़्वाब में देखा और उनसे नसीहत (उपदेश) तलब की। हज़रत ख़िज़्र (अ 0स 0) ने अपने हाथ की हथेली हज़रत अली (अ 0स 0) को दिखायी तो आपने उस पर रौशन ख़त में यह लिखा हुआ देखा-

तर्जुमा- “ तू मुर्दा था , ख़ल्लाक़े आलम ने तुझे ज़िन्दगी अता की और अन क़रीब तू फ़िर मुर्दा हो जाएगा। दुरालबक़ा (आख़िरत) के लिए घर तैयार कर और दारुलफ़ना (दुनियाँ) के घर की तामीर छोड़ दे। ”

बादशाह और वज़ीर का क़िस्सा

मिस्ले सोम (तीन)

कहते हैं कि एक अक़लमन्द साहबे फ़हमों फ़रासत और मेहरबान बादशाह था। वह हेशा रियाया की तरक़्क़ी में कोशों रहता था और उनके मामलात की तह तक पहुंच जाता और उसका वज़ीर , सच्चाई ईमानदारी से मुत्तसिफ़ रियाया की तरक़्क़ी की इस्लाह में बादशाह का बेहतरीन साथी था और वह उसका बेहतरीन विश्वास पात्र औऱ सलाहकार था। दोनों एक दूसरे से कोई राज़ छुपा कर न रखते थे। वज़ीर उल्मा व सालहीन की ख़िदमत से बहरोबर था और उनसे हक़ की बातें सुन चुका था और दिल व जान से उन पपर कुर्बान था। उसका दिल तर्के दुनियाँ की तरफ़ राग़िब था , लेक़िन बतौर तक़य्या बादशाह की ख़िदमत में हाज़िर होकर बुतों की ताज़ीम औऱ सजदा किया करता था ताकि बादशाह नाराज़ होकर उसे जानी नुक़सान न पहुंचाए। बादशाह की इंतेहाई मेहरबानी औऱ शफ़क़त के बावजूद वह उसकी गुमराही औऱ ज़लालत से अकसर ग़मगीन औऱ अफ़सुर्दा रहा करता था और वह ऐसे मौक़े की तलाश में था कि कहीं मुनासिब वक़्त में फुरसत के लम्हात मय्यसर आंए , ताकि वह बादशाह को हिदायत व नसीहत कर सके। यहां तक की एक रात जब तमाम लोग सो चुके तो बादशाह ने वज़ीर से कहा आओ सवार होकर शहर के चक्कर लगाएँ , ताकि पता चल सके कि लोग कैसी ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं , औऱ कंधों पर जो बोझ है , उसके आसार देख सकें। वज़ीर ने कहा बहुत अच्छा ख़्याल है।

बस दोनों सवार होकर शहर का चक्कर लगाने लगे , इस सैर के दौरान जब वह एक मज़बला के क़रीब हुआ तो बादशाह की नज़र उस रौशनी पर पडी जो मज़बला की तरफ़ से आ रही थी। बादशाह ने वज़ीर से कहा , हमें इस रौशनी का पीछा करना चाहिए ताकि इसकी पूरी कैफ़ियत मालूम कर सकें। बस वह घोंड़ो से उतर कर पैदल चलने लगे , यहां तक वह उस जगहं पर पहुंचे , जहां से रौशनी आ रही थी। जब उन्होंने उस सूराख़ से देखा तो एक बद शक्ल फ़क़ीर बोसीदा लिबास पहने मज़बला पर गंदगी का तकिया लगाए बैठा है और हाथ में तम्बूरा लिए बजा रहा है और सामने मिट्टी का शराब से पुर लोटा पड़ा है , उसके सामने बदख़िलक़त व बदशक्ल , बोसीदा लिबास पहने एक औरत ख़ड़ी है। जब वह फ़क़ीर शराब तलब करता है तो वह औरत नाचना शुरु कर देती है। जब वह शराब नोश करता तो औरत उसकी मदद सराई करती जैसा कि लोग बादशाहों की तारीफ़ करते हैं और वह भी उस औरत की मदह सराई करता और सय्यदतुन निसां के अलक़ाब से नवज़ता। वह दोनों एक दूसरे के हुस्नों जमाल की तारीफ़ करने और निहायत खुशी व सुरुर की ज़िन्दगी बसर कर रहे थे।

बादशाह और वज़ीर काफ़ी देर तक उनके पास खड़े उनका तमाशा देखते रहे और वह उनकी कसाफ़त के बावजूद लज्ज़त व खुशी पर आश्चर्य चकित रहे थे। इसके बाद वह वापस पलटे तो बादशाह ने वज़ीर से कहा , मेरे ख़्याल से हम दोनों ने इस क़द्र खुशी और लज्ज़त न उठायी होगी , जितनी यह मर्द और औरत ऐसी कसीफ़ हालत में इस रात लुत्फ़ अन्दोज़ हो रहे हैं और मेरा गुमान है कि यह रोज़ इसी तरह लुत्फ़ अन्दोज़ होते होंगे , क्योंकि वज़ीर ने बादशाह से यह हक़ीक़त आशना अल्फ़ाज़ सुने , तो मौक़ा को ग़नीमत समझ कर कहा कि ऐ बादशाह सलामत! यह हमारी दुनिया और आपकी बादशाहत और दुनियावी आराम व सुकून इन लोगों की नज़रों में जो हक़ीक़ी बादशाह को जानते हैं। उस वीरान और गंदे घर की तरह हैँ। हमारे मकान जिनको तामीर करने में हम इन्तेहाई मेहनत व काविश से काम करते हैं , उन लोगों की नज़रों में ऐसे ही हैं जैसे हमारी नज़रों में उन दो बदसूरत इन्सानों की शक्ल दिखायी दे रही है और हमारा इस फ़ानी (नश्वर) दुनीयाँ की ऐश व इशरत में मगन रहना हक़ीक़त पसन्द लोगों की नज़रों मे ऐसा ही है , जैसा कि यह दोनों खुशी के मवाक़े मयस्सर न होने की सूरत में खुशी मना रहे हैं।

बादशाह ने वज़ीर से कहा , क्या तू ऐसे लोगों को जानता है जो इन सिफ़ात (गुणों) से मुत्तसिफ़ (गुणवान) हों वज़ीर ने जवाब दिया हां। मैं उन लोगों को जानता हूँ। बादशाह नेपूछा वह कौन लोग हैं ? औऱ कहाँ हैं ? वज़ीर ने कहा वह ऐसे लोग हैं , जो अल्लाहतआला के दीन के आशिक़ औऱ ममलिकते आख़िरत औऱ उसकी लज्ज़़ात (स्वादों) से वाक़िफ़ हैं और हमेशा आख़िरत की सआदत के तालिब रहते हैं। बादशाह ने वज़ीर से पूछा आख़िरत क्या है ?

वज़ीर ने जवाब दिया वह ऐसी लज्ज़त और आराम है , जिसके बाद सख़्ती औऱ तकलीफ़ नहीं होगी। वह ऐसी दौलत है , जिसके बाद इन्सान किसी का मोहताज नहीं रहता। बस वज़ीर ने एख़तियार (संक्शेप) के साथ मुल्के आख़िरत के अवसाफ़ (गुण) ब्यान किए। यहां तक कि बादशाह ने कहा , क्या तू इस सआदत को हासिल करने और इस मंज़िल में दाख़िल होने का कोई वसीला भी जानता है वज़ीर ने कहा हां वह घर उस शख़्स के नसीब में होता है , जो उस राह की तलाश करता है।

बादशाह आख़िरत का इस क़द्र मुश्ताक़ हुआ कि वज़ीर से कहने लगा तूने इससे पहले मुझे इस घर की राह क्यों न बतलायी और उन औसाफ़ को मेरे सामने क्यों न ब्यान किया। वज़ीर ने अर्ज़ किया , मैं तेरे बादशाही रोब और दबदबे से डरता था। बादशाह ने कहा जो अवसाफ़ तूने मेरे सामने ब्यान किए हैं , यह क़ाबिले सजा़ न थे और न ही बरबाद करने के क़ाबिल थे , बल्कि उनकी तहसील के लिए कोशिश करनी चाहिए ताकि हम उन अवसाफ़ से मुत्तासिफ हो सकें और कामयाबी और कामरानी हो सके। वज़ीर ने कहा बादशाह सलामत! अगर आप इजाज़त दें तो मैं और आख़िरत के अवसाफ़ ब्यान करुं ताकि उसके बारे में आपका यक़ीन और पुख्ता हो जाए।

बादशाह ने कहा बल्कि मैं तुम्हें हुकम देता हूं कि आप सुबह व शाम इसी काम में लगे रहें ताकि मैं दूसरे काम में मशगूल न हो जाऊँ। इस क़िस्म की बातों को हाथ से न जाने देना चाहिए। क्योंकि यह बहुत अजीबो ग़रीब काम है और उसे आसान न समझ़ना चाहिए और ऐसे अच्छे फ़रीज़े से ग़ाफ़िल न रहना चाहिए। इसके बाद वज़ीर ने इसी क़िस्म की बातों से बादशाह को नेकी की तब्लीग़ (शिक्शा) की और सआदतों अब्दी पर फ़ायज़ कर दिया।

मैं बतौर तबर्रुक और मोमनीन की बसीरत में इज़ाफ़े के लिए यहां पर हज़रत अली (अ 0स 0) के खुतबे के चन्द कलमात का ज़िक्र मुनासिब समझता हूँ-

“ ऐ लोगों! इस फ़रेबकार दुनिया से बचों , क्योंकि इसने अपने आप को सिर्फ़ ज़ेबो ज़ीनत के ज़रिए दिलों को धोखा देकर बातिल की तरफ़ मायल कर रखा है और झूठे वादों के ज़रिए तुम्हारी उम्मीदों को छीन रखा है। यह दुनिया एक ऐसी बनाव सिंगार वाली औरत है , जिसने सिर्फ़ अपनी शादी रचाने के लिए ज़ाहरी ज़ीनत से धोखा दे रखा है जो अपने हुस्न व ज़माल के जलवे का परतव दिखाकर तमाम लोगों को अपना गिरवीदा और आशिक़ बनाने और फ़िर अपने ही हाथ से पनपने वाले शौहरों को तहस-नहस कर डाले। बस न तो बाक़ी आशख़ास गुज़िश्ता से इबरत हासिल करते हैं और न ही आख़िरी लोग उसके मोत्तक़दीन (मानने वाले) पर बुरे असरात की वजह से अपने आपको उसके असर से बचाते हैं। ”

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0स 0) से मनकूल है आपने फ़रमाया , कि दुनिया हज़रत ईसा (अ 0स 0) के पास नीली आंखो वाली औरत की शक्ल में आयी। हज़रत ने उससे पूछा कि तूने कितने शौहर किए है ? उसने जवाब दिया बेशुमार हैं। आपने पूछा क्या सबसे तलाक़ ली ? उसने कहा बल्कि सबको मार डाला। हज़रत ईसा ने फ़रमाया। अफ़सोस है उन लोगों पर जो आइन्दा उससे अक़्द करेंगे कि वह उसके पहले शौहरों से इबरत हासिल नहीं करते।

हज़रत ने दुनियाँ की पस्ती और कमीनगी को ब्यान करते हुऐ फ़रमाया , कि अल्लाहतआला ने इसी वजह से अपने औलिया और दोस्तो से उसको अपने दुश्मनों के लिए छोड़ दिया। इसीलिए हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.व. ) को भूख और प्यास की ज़्यादती की वजह से पेट पर पत्थर बांधे देख कर पसन्द फ़रमाया। मूसा कलीमउल्लाह ने भूख की वजह से घास खाकर गुज़ारा किया। यहां तक की घास की सब्ज़ी आप के पेट से नज़र आती थी , क्योंकि आपका गोश्त झड़ गया था और जिस्म की जिल्द पतली हो गयी थी। आप नबियों और वलियों का तज़कीरा करते हुए फ़रमाते हैं कि अम्बिया तो इस दुनियाँ को बमंज़िला मुरदार समझते थे , जिसका खाना हलाल नहीं कि वह सेर होकर खाते , मगर ज़रुरत के वक़्त खाते कि सांस आती रहे और रुह परवाज़ न करे (कु्व्वतुन ला यमूतू) , यह अम्बिया की नज़रों में ऐसा मुरदार है , जिसके पास से गुजरने वाला इन्सान उसकी बदबू से बचने के लिए अपने मुहँ और नाक को ढांप लेता है ताकि बदबू से महफूज़ रहे। इसी वजह से वह दुनियाँ इस क़द्र हासिल करते थे कि वह अपनी असल मंज़िल तक पहुंच सकें और अपने आपको सेर नहीं करते थे और अम्बिया उन लोगों पर ताअज्जुब करते हैं , जो कि दुनियाँ को इकट्ठा करके अपनी शिकमों को पुर करते हैं और अपने इस फ़ेल (कार्य) पर राज़ी हैं कि वह दुनियाँ की न्यामत से बहरावर हैं।

ऐ मेरे भाइयों! खुदा की क़सम यह दुनियां किसी की ख़ैरख़्वाह नहीं है , बल्कि यह तो मुरदार से भी ज़्यादा गंदी और मकरुह है , लेकिन जो चमड़ा रंगने का काम करता है , उसे चमड़े की बदबू तकलीफ़देह नहीं मालूम होती , क्योंकी वह उससे मानूस हो जाता है। मगर वहां से गुज़रने वाला सख़्त तकलीफ़ उठाता है औऱ आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने फ़रमायाः

“ ऐ इन्सान! तू अहले दुनिया को दुनिया की तरफ़ लपकते देख कर इस दुनियाँ की तरफ़ रग़बत न कर क्योंकि वह इसकी ख़ातिर एक दूसरे से झगड़ते रहते हैं। वह तो भौंकते हुए कुत्ते हैं और अपने शिकार की तरफ़ आवाज़ें देते हुए भागने वाले दरिन्दे हैं , जो एक दूसरे को खा रहे हैं। ग़ालिब अपने मग़लूब को और बड़ा छोटे को लुक़मए नजल बना रहा है। ” हकीम सनाई ने ख़ूब इस मतलब को नज़्म किया है-

ई जहां बर मिसाल मुरदार यस्त।

कर गसान गर्द और हज़ार-हज़ार।।

यह दुनियाँ एक मुरदार की मिसाल है कि जिसके इर्द-गिर्द हज़ारों गिदहें खाने के लिए आ बैठीं हैं।

ई मराँ राहमी ज़न्द मुख़लिब।

आँमराँ ई हमीं ज़ल्द मिन्क़ार।।

इनमें से एक दूसरी को पंज़ा मार रही हैं , दूसरे उसे चोंच मार रही है।

आख़िरा लामर बगजर न्द हमा।

वज़ हमा बाज़ माँद ई मुरदार।।

आख़िरकार तमाम गिदहें मुरदार को छोड़कर चली जाती हैं और वह मुरदार वहीं पड़ा रहता है।

ऐ सनायी अज़ई सगां बरज़मीं।

गोशा-ए-गीर अज़ाई जहां हमवार।।

ऐ सनाई इस जहां (आख़िरत) को संवारने के लिए इश ज़मीन के कु्त्तों से अलगवा एख्तियार कर।

हां वहां ता तराचा खुद बाकुनन्द।

मुश्ती इब्लीस दिद्ह तर्रार।।

ख़बरदार! यह मुरदार खाने वाले तुझे दुनियाँ के लालच में ख़त्म कर डालेंगे , क्योंकि इब्लीस ने इनकी आँखों में धूल झोंक रखी है।

“ हज़रत अली (अ 0स 0) फ़रमाते हैं , खुदा की क़सम मेरी आंखों में यह दुनियाँ ख़िनज़ीर की बग़ैर की हड्डियों से जो कि मजज़ूम के हाथ में हो ज़्यादा ज़लालतर हैं। ”

यह दुनियाँ की सबसे ज़्यादा तहक़ीर है , क्योंकि हड्डियाँ बदतरीन चीज़ हैं और फ़िर ख़िनजीर की हड्डियाँ इस पर तुर्रा यह कि वह मज़जूम के हाथ में हैं। उनमे से हर एक दूसरे से ज़्यादा बदतरीन औऱ नजिस तरीन है।