मनाज़िले आख़ेरत

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मनाज़िले आख़ेरत कैटिगिरी: क़यामत

मनाज़िले आख़ेरत

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मनाज़िले आख़ेरत

मनाज़िले आख़ेरत

हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

फ़स्ल हश्तुम (आठ)

हिसाब

मोवक़िफ़े हिसाब

उन ख़ौफ़नाक मोवाक़िफ़ में से जिनका ऐतक़ाद (विश्वास) हर मुसलमान के लिए ज़रुरी है , मुक़ामे हिसाब भी है. परवरदिगारे आलम कुर्आन मजीद में इरशाद फ़रमाता है-

“ लोगों के हिसाबे आमाल का वक़्त नज़दीक है , लेकिन वह ग़फ़लत में मदहोश हैं और (इसमें ग़ौरो फ़िक़् और तैयारी से) गुरेज़ कर रहे हैं। ”

दूसरी जगह इरशादे कुदरत हैः-

“ और कितनी बस्ती वालों ने अपने परवरदिगार और रसूलों के हुक्म से सरकशी की , फिर हमने उनका हिसाब बड़ी सख़्ती से लिया और हुमने एक नाशिनासा सा अज़ाब दिया। बस उन्होंने अपने किए का फल चख लिया और उनके कामों का अंजाम नुक़सानदेह हुआ। अल्लाह तआला ने उनके लिए सख़्त अज़ाब तैयार किया। बस ऐ अक़ल वालों , अल्लाह तआला से डरते रहो। ”

हिबास कौन लगे ?

अगरचे कुर्आन और हदीस के उमूमन से यही मुस्तफ़ीद होता है कि हर शख़्स हिसाब खुद खुदावन्द आलम लेगा।

लेकिन बाज़ रवायात से ज़ाहिर होता है कि मलायका कराम इस काम को अंजाम देंगे। कुछ अख़बार व आसार से यह मतलब वाज़े होता है कि अम्बिया का हिसाब खुद खुदावन्द आलम लेगा औऱ अम्बिया अपने औसिया का हिसाब लेंगे और औसिया अपनी उम्मत का हिसाब लेंगे।

“ बेरोज़े क़यामत तमाम लोगों को उनके इमामे ज़माना के साथ बुलाएंगे। ” ( अहसनुल क़वायद)

बहारुल अनवार जिल्द 3 अमाली शेख़ मुफ़ीद (र 0) में बसन्द मुतसिल हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0 स 0) से रवायत है कि आपने फ़रमाया-

“ जब रोज़े क़यामत होगा तो इल्लाह तआला हमें अपने शियों का हिसाब लेने के लिए मुक़र्रर फ़रमाएगा। बस हम अपने शियों से हकूक़ अल्लाह के बारे में सवाल करेंगे और अल्लाह तआला उनको माफ़ कर देगा और शियों के ज़िम्मे हमारे जो हुकूक़ होंगे , हम खुद उनको माफ़ कर देंगे फिर आपने यह आयत तिलावत फ़रमायीः-

“ बेशक वह हमारी ही तरफ़ लौटाए जाएंगे , फ़िर बेशक उनका हिसाब हम ही लेंगे। ”

इसी किताब में मासूम से रवायत (कथन) है कि हुकूक अल्लाह और हुकूक़ इमाम अलैहिस्सलाम के बख़्शे जाने के बाद फ़रमाया-

“ ……..यानी जो मज़ालिम और हुकूकुन्नास शियों के ज़िम्मे होंगे , हज़रत रसूले खुदा (अ 0 स 0) हुकूक़ का मतालिबा करने वालों को अदा कर देंगे। ”

परवरदिगारे आलम हमें उम्मते ख़ातमुल अम्बिया अलैहे व आलेहे व सल्लम और शियाने अहलेबैत अलैहिस्सलाम में शुमार करे और हमारा हश्र उन्हीं के साथ हो। (आमीन सुम्मा आमीन)।

शियों के लिए यह खुशखबरी है कि बेरोज़े क़यामत परवर दिगारे आलम हर क़ौम के हिसाब के लिए उसके इमाम को मुक़र्रर फ़रमाएगा और वह उनके आमाल का हिसाब लेगा और हमारा हिसाब हुज्जत इब्नुल हसन इमामे ज़माना (अ 0 स 0) लेंगे , लेकिन जिस वक़्त हमरुसियाह अपने सिरों को झुकाए उनके सामने पेश होंगे और दामन उनकी दोस्ती से पुर होंगे , तो उम्मीद है कि वह हमाऱी शफ़ाअत करेंगे। खुदा का शुक्र है कि हमारा हिसाब उस करीम इब्ने करीम के सुपुर्द होगा , जो खुदा के नज़दीक आला मरातिब का मालिक है। (मआद)

हिसाब किन लोगों का होगा ?

क़यामत (प्रलय) के दिन हिसाब के लिए लोग चार गिरोहों में होंगे। कुछ लोग ऐसे होंगे जो बग़ैर हिसाब के बेहश्त में दाख़िल होंगे और यह मुहब्बाने (अ 0 स 0) से वह लोग होंगे , जिनसे कोई फ़ेले हराम सरज़द न हुआ होगा या वह तौबा के बाद दुनियां से रुख़सत हुए होंगे।

दूसरा गिरोह इसके बर ख़िलाफ़ होगा , जो बग़ैर हिसाब के जहन्नुम में दाख़िल किए जायेंगे और उन्हीं के बारे में यह आयत है-

तर्जुमा- “ कि जो शख़्स दुनियाँ से बेईमान उठेगा , उसका हिसाब नहीं किया जाएगा , और न ही आमालनामा खोला जाएगा शेख़ कुलैनी (र 0) हज़रत इमाम ज़ैनुल आब्दीन अलैहिस्सलाम से रवायत करते हैं कि मुशरिकों के आमाल नीहं तौले जाएंगे , क्योंकि हिसाब और मीज़ान और आमाल के खोले जाने का ताअल्लुक अहले इस्लाम के साथ है। काफ़िर (नास्तिक) और मुशरिक नब्स कुर्आन हमेशा अजाब में रहेंगे।

तीसरा गिरोह उन लोगों का है , जिनको मौक़िफ़े हिसाब में रोक लिया जाएगा। यह वह लोग हैं जिनके गुनाह (पाप) नेकियों पर ग़ालिब होंगे। जब यह रुकावट उनके गुनाहों का कफ़्फ़ारा हो जाएगी तो उनको नजात मिल जाएगी।

चूनांचे रसूले अकरम (स.अ.व.व. ) ने इब्ने मसूद (र 0) को फ़रमाया कि बाज़ लोग एक सौ साल मौकिफ़े हिसाब में रोके जाएंगे और फ़िर वह जन्नत में जाएंगे।

“ इन्सान एक गुनाह के बदले सौ साल तक रोका जाएगा ” लेकिन गुनाह का वर्णन नहीं कि किस गुनाह के बदले रोका जाएगा , लिहाज़ा मोमनीन को चाहिए कि वह हर गुनाह से दूरी रखे ताकि मौक़िफ़े हिसाब पर रुकावट न हो। (मआद)

शेख़ सद्दूक (र 0) हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0 स 0) से रवायत करते हैं कि क़यामत के दिन दो अहलेबैत से मुहब्बत करने वालों को रोका जाएगा , उसमें से एक दुनियाँ में मुफ़लिस और फक़ीर और दूसरा दौलतमन्द होगा। वह फ़क़ीर अर्ज़ करेगा , परवर दिगार मुझे किस वजह से रोका गया है। मुझे तेरी इज़्ज़तों जलाल की क़स्म तूने मुझे कोई हुकूमत या सल्तनत न दी थी , जिसमें मैं अदालत या जुल्मों सितम करता और न ही तूने मुझे इस क़द्र माल दिया था कि मैं वाजिब कर्दा हकूक़ को अदा करता या ग़सब करता और तूने मुझे इस क़द्र रोज़ा अता की थी , जिसको तूने मेरे लिए काफ़ी समझा और मैंने उसी पर क़िफ़ायत की। बस अल्लाह तआला का हुकम होगा। ऐ बन्दए मोमिन! तू सच कहता है और उसे दाख़िले बेहश्त किया जाएगा।

दूसरा दौलतमन्द इतनी देर खड़ा रहेगा कि उसके खड़ा रहने से इतना पसीना जारी होगा जिससे चालीस ऊँट सेराब हो सकें , फिर उसको बेहश्त में दाख़िल किया जाएगा। जन्नत में वह फ़क़ीर उससे पूछेगा , तुझे किस चीज़ की वजह से इतनी देर रोके रखा गया। वह कहेगा कई चीज़ों की बराबर तक़सीरात के लम्बे हिसाब ने मुझे रोक रखा , यहां तक की अल्लाह तआला ने अपनी रहमत से निवाज़ा और मुझे माफ़ फ़रमाय औऱ मेरी तौबा को कुबूल फ़रमाया , फिर वह फ़क़ीर से पूछेगा , तू कौन है ? वह जवाब देगा , मैं वही फ़क़ीर हूं जो मैदाने हश्र में तेरे साथ था , फ़िर वह ग़नी कहेगा तुझको जन्नत की न्यामतों में इस क़द्र तब्दील कर दिया है कि मैं उस वक़्त तुझे न पहचान सका। (मतालिब)

चौथा गिरोह उन लोगों का होगा जिनके गुनाह उनकी नेकियों से ज़्यादा होंगे। बस अगर शफ़ाअत औऱ परवर दिगारे आलम की रहमत और फ़ज़लों करम शामिले हाल होगा तो वह नजात हासिल करके जन्नत में चले जायेंगे वरना उनको उस जगह पर अज़ाब में डाल जाएगा , जो ऐसे लोगों के लिए मख़सूस होगा , यहां तक कि गुनाहों से पाक हो जांय और इस अज़ाब से नजात मिल जाय , फिर उनको बेहश्त में भेज दिया जाएगा।

जिस इन्सान के दिल में ज़र्रा भर भी ईमान होगा वह जहन्नुम में बाक़ी न रहेगा , बिल आख़िर जन्नत में दाख़िल होगा। जहन्नुम में सिर्फ़ काफ़िर (नास्तिक) और मआनदीन बाक़ी रह जाएंगे।

अहबात व तकफ़ीर

“ जो लोग काफ़िर (नास्तिक) हैं उनके लिए डगमगाहट है खुदा ने जो चीज़ नाज़िल फ़रमायी है , उन्होंने उसको ना पसन्द किया तो खुदा ने उनके आमाल ज़ाए कर दिए। ”

( स 0 मोहम्मद , 8-9)

दूसरी जगह इरशादे कुदरत है-

“ जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे काम किए और जो (किताब) मोहम्मद पर उनके परवर दिगार की तरफ़ से नाज़िल हुई है , वह बरहक़ है , इस पर ईमान लाए तो ख़ुदा ने उनके पिछले गुनाह उनसे दूर कर दिए और उनकी हालत संवार दी। ”

( सू 0 मोहम्मद- 2)

अहबात

अगर कोई आदमी अपनी शुरी ज़िन्दगी में दायरए इस्लाम में रहकर नेक कामों में मशगूल रहा , मगर मरते वक़्त हक़ से फ़िर गया और कुफ़्र की हालत पर मरा हो तो उसे इस्लाम की हालत में किए हुए आमाल फ़ायदा न देंगे और वह नेकियां बेकार हो जाएंगी।

अगर कोई कहे कि कुर्आन मजीद में है-

“ जो शख़्स ज़र्रा बराबर भी नेकी करेगा , उसका अज्र उसको मिलेगा। ”

इसका जवाब यह है कि कुफ्र पर मरने वाले ने अपने हाथ से ही अपनी नेकियों को बरबाद कर दिया। काफ़िर (नास्तिक) के अज्र को बाक़ी रखना खुदा के लिए मोहाल है कि वह उसको जन्नत में दाख़िल करे , बल्कि उसकी नेकियों की तलाफ़ी दुनियाँ में ही कर दी जाती है , जैसे मौत की आसानी , मरीज़ न होना और माद्दी (मायावी) वसायल के ज़रिए जैसा कि गुज़र चुका है।

और मुमकिन है इन नेकियों की वजह से अज़ाब में तख़फ़ीफ़ हो , जैसा कि हातिमताई और नौशेरवां जो सख़ावत में ज़रबुल मसल है , जहन्नुम में होंगे , मगर आग उनको न जलाएगी , जैसा कि कुर्आन में इरशाद मौजूद है।

और दूसरी जगह इरशाद फ़रमाया-

“ जिन लोगों ने हमारी आयात (सूत्रों) और आख़िरत की मुलाक़ात को झुठलाया उनके तमाम आमाल बरबाद हो गए , उन्हें बस आमाल की सज़ा या जज़ा मिलेगी जो वह करते हैं। ”

( सू 0 आराफ़ , आ 0-147)

इसी तरह बहुत से आयात (सूत्रों) से वाज़ेह (स्पष्ट) है कि कुफ़्र औऱ शिर्क से आमाल बरबाद हो जाते हैं।

इसी तरह दूसरे गुनाह (पाप) भी नेक आमाल को बरबाद कर देते हैं और दरजए कुबूलियत तक नहीं पहुंचते। जैसे वालदैन के नाफ़रमान बेटे के लिए हुज़ूर ने फ़रमाया-

“ ऐ वाल्दैन के ना फ़रमान तेरा जो जी चाहे करता फ़िर , तेरा कोई अमल कुबूल नहीं है , अगर किसी शख़्स के पीछे वालिदा की आहें और बद्दुआएं हों और वह पहाड़ों के बराबर भी आमाल करें तो वह आग मे जलाया जाएगा। इसी तरह तोहमत औऱ हसद जैसा कि हदीस में है- ”

“ हसद (ईर्ष्या) ईमान को इस तरह खाता है जिस तरह आग लकडियों को खाती है। ” ( मआद)।

सक़अतुल इस्लाम कुलैनी (र 0) मोआन अनन अबुबसीर से रवायत (कथन) करते हैं कि इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0 स 0) ने फ़रमाया , यानी “ कुफ्र की जड़ें तीन हैं ” – हिर्स , तकब्बुर और हसद (ईर्ष्या)। ” यह जड़ें ज्यूं-ज्यूं मज़बूती इख़्तियार करती जाएंगी , ईमान रुख़सत होता जाएगा और नेक आमाल बरबाद होते जाएंगे और इन्सान दोज़ख़ का ईंधन बन जाएगा , जैसा कि शैतान के तमाम , आमाल तकब्बुर की वजह से बरबाद हो गए और सिर्फ़ आख़िरत तक उम्र ज़्यादा मिली। पूरा वाक़िया कुर्आन मजीद में मौजूद है।

तकफ़ीर

तक़फ़ीर के माने क़फ़्फ़ारा है। यानी उन गुनाहों का महो करना , जो उससे सादिर हुए हैं। ईमान कुफ़्र के साब्क़ा (पूर्व) गुनाहों को मिटा देता है अगर कोई शख़्स शुरु उम्र में काफ़िर (नास्तिक) रहा और फ़िर इस्लाम ले आया तो उसके पहले वाले गुनाह ख़त्म हो जाएंगे और उनका हिसाब न होगा। इसी तरह मुसलमान के गुनाह (पाप) सच्ची तौबा से ख़त्म हो जाते हैं। उन्हीं के बारे में कुर्आन मजीद में आया है।

यानी ख़ल्लाक़े आलम इनके गुनाहों को नेकियों में तब्दील कर देता है।

बहारुल अनवार जिल्द 15 में रवायत (कथन) है कि एक शख़्स हज़रत ख़ातिमुल अम्बिया (स.अ.व.व. ) के पास आया और अर्ज़ किया कि , “ आका मेरा गुनाह (पाप) बहुत बड़ा है , ( वह गुनाह दरगोर किया था) आप मुझे ऐमा अमल बतलांए की पपरवदिगारे आलम मेरे इस गुनाह को माफ़ फरमाए। आपने फ़रमाया क्या तेरी वालिदा ज़िन्दा हैं ? उसने अर्ज़ किया नहीं। (मालूम होता है कि वालिदा के साथ नेकी इस गुनाह का बेहतरीन इलाज है।) आपने फ़रमाया क्या ख़ाला मौजूद हैं ? उसने अर्ज़ किया हां। या रसूल अल्लाह! आपने फ़रमाया जा और उसके साथ नेकी कर। (वालिदा के साथ ताअल्लुक़ होने की वजह से ख़ाला से नेकी करना वालिदा से नेकी करने के बराबर है।) बाद में फ़रमाया “ लौ काना उम्मोहू ” अगर उसकी वालिदा जि़न्दा होती तो इस गुनाह के असर को ज़ायल करने के लिए उसके साथ नेकी करना यक़ीन , उससे बेहतर था। (मआद)।

हिकायत अहबात व तकफ़ीर के मुत्तालिक़

किताबे मोतबरा में मनकूल (उद्धृत) है कि ज़मानए साबिक़ में दो भाई थे। एक मोमिन ख़ुदा परस्त और दूसरा काफ़िर (नास्तिक) बुत परस्त और वह दोनों एक मकान में रहते थे बुत परस्त ऊपरी मंजिल पर और खुदा परस्त निचली मंजिल पर। बुत परस्त अमीर कबीर और ऐशो ईशरत की ज़िन्दगी गुज़ार रहा था और खुदा परस्त फ़क़्रोफ़ाक़ा और बेनवाई की ज़िन्दगी में मुबतिला था। कभी-कभी उसका बुत परसत भाई उससे कहता कि अगर तू बुत को सजदा करे तो मैं तुझे दौलत में शरीक कर लूंगा। तू क्यों इतनी तलख़ और तकलीफ़ देह ज़िन्दगी गुज़ार रहा है। आ और इस बुत को सज्दा कर ताकि दोनों इकट्ठे ऐश की ज़िन्दगी गुज़ारें। उसका मोमिन (धर्मनिष्ठ) भाई इसके जवाब में कहता कि ऐ मेरे भाई! तू क्यों खुदा और रोज़े जज़ा से ख़ौफ़ ज़दा नहीं होता। बुत खुदा नहीं आ और खुदा का इबादत कर और खुदा के अज़ाब से डर , यहां तक की इस क़ीलो-क़ील में काफ़ी मुद्दत गुज़र गयी जब भी दोनों भाई मुलाकात करते एक दूसरे से इसी किस्म की बातें करते। यहां तक कि एक रात खुदा परस्त अपने हुजरे में बैठा था कि बुत परस्त भाई के हुजरे से लज़ीज़ खाने की खुशबू उसके मशाम में पहुंची औस उसने अपने नफ़स से कहा कि कब तक खुदा की इबादत करता रहेगा और या अल्लाह कहता रहेगा , हालाकिं इस उम्र तक तुझे नया लिबास और नर्म ग़िज़ा (खाना) नसीब नहीं हुयी और ख़ुश्क रोटी खाते-खाते बूढ़ा हो चुका है और दांत खुश्क खाने को चबा नहीं सकते। मेरा भाई सच कहता है , चलो और उसके बुत की पूजा करो ताकि उसका अच्छा खाना खा कर लुत्फ़ उठाओ। उठा और ऊपरी मंज़िल की तरफ़ भाई के पास जाने के लिए रवाना हुआ ताकि उसके मज़हब (धर्म) बुत परस्ती को कुबूल करे।

इधर उसके बुत परस्त भाई की यह हालत है कि सोच-विचार में है कि मैं इस बुत परस्ती को नहीं समझ सका और न ही कुछ फ़ायदा हुआ। चलो और अपने भाई के पास जाकर ख़ुदा की इबादत करो और वह ऊपर की मंज़िल से उतरा और सीढ़ियों पर दोनों भाईयों की मुलाक़ीत हुई। एक दूसरे से वाक़िया बयान किया , इधर इज़राइल को हुक्म हुआ कि दोनों भाईयों की रुह (आत्मा) क़ब्ज़ कर लो। वह दोनों मर गए और जो इबादत उस ख़ुदा परस्त ने की थी तमाम आमाल उस बुत परस्त के नामए आमाल में लिखे , जो इस इरादे से चला था और जो बुत परस्त के गुनाह थे , वह खुदा परस्त के नामए आमाल में दर्ज हो गए , जो कुफ्र की नीयत से हुजरा से निकला था। तमाम उम्र इबादत में गुज़ार दी , मगर मौत इस्लाम पर। यह अहबात और तकफ़ीर की आला (श्रेष्ठ) और उम्दा मिसाल है।

ऐ बरादर! शैतान तेरा सब से बड़ा दुश्मन है आख़िर वक़्त तक हक़ से फ़ुसलाने की कोशिश में रहता है , अपने ख़्यालात को मुजाहदाते क़सीरा और इबादात के ज़रिए हक़ का आदी बना , ताकि शैतान के हरबे कारगर न हो सकें और तू हक़ पर क़ायम और दायम रहे।

पुरसिशे आमाल

कुर्आन पाक़ में इरशादे ख़ुदा वन्दी है।

हम ज़रुर बिलज़रुर अम्बिया और उनकी उम्मतों से सवाल करेंगे कि तुम्हें लोगों की तरफ़ हक़ की दावत देने के लिए भेजा गया था , क्या तुमने मेरे अहकाम उन तक पहुंचाए थे ? अर्ज़ करेंगे परवरदिगार! हमने तेरे अहकाम पहुंचाने में ज़र्रा भर नर्मी नहीं की। पूछा जाएगा तुम्हारा गवाह कौन है ? तमाम अर्ज़ करेंगे , परवरदिगार तेरी ज़ात के अलावा ख़ातिमुल अम्बिया हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.व.व. ) गवाह हैं , जैसा कि कुर्आन में हैः

“ और इसी तरह तुमको आदिल उम्मत बनाया ताकि औऱ लोगों के मुक़ाबिले में तुम गवाह बनो और रसूल (मोहम्मद , स 0 अ 0) तुम्हारे मुक़ाबिले में गवाह बने। ”

( सू 0 आल इमरान- 138)

इसी तरह हज़रत ईसा (अ 0 स 0) से पूछा जाएगाः-

“ ऐ ईसा इब्ने मरियम क्या तूने उनको कहा था कि तुम मेरी और मेरी वालिदा की परस्तिश करो ? ”

हज़रत ईसा (अ 0 स 0) के बदन में अज़मते ख़ुदावन्दी के रोब से लरज़ा तारी होगा और अर्ज़ करेंगे परवरदिगार! अगर मैंने यह कहा होता तो तुझे भी इल्म होता। मैंने तो कहा था “ इन्नी अब्दुल्ला ” कि , मैं तो ख़ुदा का बन्दा हूं तुम्हारे पास किताब लेकर औऱ नबी बनकर आया हूँ। तुम उसकी इबादत करो , जिसने मुझे और तुम्हें पैदा किया। फ़िर उनकी उम्मतों से सवाल किया जाएगा कि क्या तुम्हारे पैग़म्बरों ने आज के दिन से मुत्तालिक़ा क़ज़ाया की ख़बर नहीं दी थी ? सभी कहेंगे की ख़बर धी थी। दूसरे न्यामते परवरदिगार के मुत्तालिक़ सवाल होगा कि उनसे क्या सुलूक किया था ?

क्या न्यामतों पर शुक्र अदा किया था , या कुफ़राने न्यामत किया था ? न्यामतों की पुरसिश के बारे में मुख़तलिफ़ रवायत (कथन) है , जिनकों इस तरह इकट्ठा किया गया है कि न्यामतों के मुख़्तलिफ़ दर्जें है और अहम तरीन न्यामत वलायते आले मोहम्मद है , बल्कि नईमे मुतलक़ हैं।

इमाम अलैहिस्सलाम ने क़तादह से पूछा तुम आम्म (सुन्नी) “ सुम्माल्तुस अलुन्ना यौमएज़िन अनिन्नईम ” से क्या मुराद लेते हो ? उसने अर्ज़ किया रोटी और पानी वग़ैरा के बारे में पूछा जाएगा।

इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि खुदा करीमतर है कि वह इसके मुत्तालिक सवाल करे( अगर तुम किसी को अपने दस्तरख़्वान पर बुला कर रोटी खिलाओ , तो क्या उसके बाद तुम उसके मुत्तालिक पूछा करते हो) उसने अर्ज़ किया फ़िर नईम से क्या मुराद है ? हज़रत ने फ़रमाया , इस न्यामत से मुराद हम आले मोहम्मद (स 0 अ 0) की विलायत हैं। पूछा जाएगा कि तुमने आले मोहम्मद के साथ क्या सुलूक किया। किस क़द्र मोहब्बत और ताबेदारी की ? दुश्मनों से पूछा जाएगा कि तुमने इस न्यामत से दुश्मनी करके कुफ़राने न्यामत क्यों किया।

तर्जुमाः- अल्लाह की न्यामत को पहचानने के बाद उसका इन्कार करते हैं।

ख़ुराक के बारे में तो इतना पूछा जाएगा कि हलाल से कमाया था या हराम से। इमें असराफ़ क्यों किया था ? हराम पर क्यों खर्च करते रहे मैं सवाल करता रहा मगर तुमने न दिया। “ अलमालो माली वलफुक़राओ अयाली ” फुक़रा का सवाल मेरा सवाल था।

शेख़ सद्दूक (र 0) से रवायत (कथन) है कि क़यामत के दिन किसी आदमी के क़दम अपनी जगह से उस वक़्त तक न उठेंगे , यहां तक की उससे चार चीज़ों के बारे में पूछ न लिया जाय।

तर्जुमा-

1- तूने अपनी उम्र को किन चीज़ों में बरबाद किया ?

2- अपनी जवानी किन कामों में तबाह की ?

3- माल कैसे कमाया औऱ कैसे ख़र्च किया ?

4- और वलायते आले मोहम्मद के बारे में सवाल होगा ?

अबादात

तर्जुमा- “ सबसे पहले बन्दे से जिसका हिसाब होगा , वह नमाज़ है। ”

क्या नमाजॉ वाजिब वक़्त पर अदा करता रहा है , क्या इस उमूदे दीन और वसायाए अम्बिया को सहा अदा करता रहा है या रियाकारी करता रहा। इसके बाद रोज़ा हज़ ज़कात , खुम्स व जिहाद के बारे में हिसाब होगा और ज़कात व ख़ुम्स के हक़दार दामन पकड़कर मुतालिबा करेंगे।

हुकुकुन्नास

ख़ल्लाक़े आलम का अपने बन्दों के साथ दो कि़स्म का मामला होगा। ( 1) अदल ( 2) फ़ज़लों करम।

(1) जिस शख़्स के ज़िम्मे किसी इन्सान का कोई हक़ होगा। उसकी नेकियां लेकर साहबे हक़ को दी जाएगी। मसलन ग़ीबत , तोहमत , यानी ग़ीबत करने वाले औऱ तोहम लगाने वाले की नेकियां उसको दी जाएंगी , जिसकी ग़ीबत की गयी है , और उसके गुनाह (पाप) ग़ीबत करने वाले को दिए जाएंगे। इस बारे में सरीहन रवायात मौजूद है। चूनांचे रौज़ए काफ़ी में हज़रत अली बिनअल हुसैन (अ 0 स 0) से एक बड़ी हदीस में क़यामत के दिन ख़लाएक़ के हिसाब का ज़िक्र किया गया है। इस हदीस के आख़िर में आपने एक शख़्स के जवाब में इरशाद फ़रमाया , जिसने पूछा था कि ऐ फ़रज़न्दे रसूल (स 0 अ 0)! अगर किसी मुसलमान का किसी काफ़िर (नास्तिक) से हक़ का मुतालिबा हो , वह तो दोज़ख़ में होगा। उसकी तलाफ़ी कैसे होगी ? उसके पास नेकियां तो हैं नहीं ? आपने फ़रमाया , इस हक़ के वज़न के मुताबिक़ उस काफ़िर (नास्तिक) के अज़ाब में अज़ाफ़ा कर दिया जाएगा। फ़रमाया ज़ालिम की नेकियां बक़द्र जुल्म मज़लूम (असहाय) को दी जाएंगी। उस शख़्स ने अर्ज़ किया कि अगर उस ज़ालिम मुसलमान के पास नेकियां न हो , तो आपने फ़रमाया उस मज़लूम के गुनाहों का बोझ , इस ज़ालिम पर डाल दिया जाएगा और यही अदल (इन्साफ़) का तक़ाज़ा है।

लसालिउल अख़बार में पैग़म्बरे ख़ुदा (स 0 अ 0 स) से मनकूल (उद्धृत) है कि आपने सहाबा से पूछा कि क्या तुम जानते हो कि मुफ़लिस कौन है ? सहाबा ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह (स.अ.व.व. )! हममें मुफ़लिस वह है , जिसके पास रुपया-पैसा और माल व मताअ न हो। आपने फ़रमाया-

“ मेरी उम्मत का मुफ़लिस वह शख़्स है , जो क़यामत के दिन नमाज़ , रोज़ा , हज , ज़कात के साथ आए , लेकिन उसने किसी को गालियां दी होंगी। किसी का माल खाया होगा। किसी को क़त्ल किया होगा। किसी को पीटा होगा। इसलिए इन मज़लूमों में से हर एक को उसकी नेकियां दी जाएंगी और वह नेकियां उसकी होंगी , अगर उनसे पहले नेकियां ख़त्म हो गयीं तो उनके गुनाह (पाप) उस ज़ालिम पर

डाल दिया जाएगें और उसे आग में डाल दिया जाएगा। (मआद)

अल्लामा जज़ायरी अपनी किताब में एक हदीस नक़्ल फ़रमाते हैं अगर कोई शख़्स एक दरहम अपने ख़सम को वापस कर दे तो यह हज़ार बरस की इबादत , हज़ार गुलाम आज़ाद करने और हज़ार हज , उमरा , बजा लाने से बेहतर है।

एक और जगह मासूमीन (अ 0 स 0) से नक़ल फ़रमाते हैं-

“ यानी जो शख़्स अपने तलबगारों को राज़ी करे उसके लिए बग़ैर हिसाब के जन्नत वाजिब हो जाती है और जन्नत में उसे हज़रत इस्माइल (अ 0 स 0) की रिफ़ाक़ात हासिल होगी। ”

(2) मआमला बफ़ज़्ले ख़ुदावन्दी- ऐसे वक़्त में जबकि किसी शख़्स के ज़िम्मे हुकूकुन्नास हों औऱ वह उनकी वजह से रोक लिया गया हो तो उस वक़्त अल्लाह तआला का फ़ज़्ल अगर शामिल हुआ तो नजात हासिल हो जाएगी। उस वक़्त कुछ लोग अपने-अपने पसीने में गोता खा रहे होंगे। ख़ल्लाक़े आलम फ़ज़्लो करम से बेहश्ती महलात को ज़ाहिर करेगा और उस शख़्स को जो मुतालिबा रखता है , निदा (आवाज़) दी जाएगी , ऐ मेरे बन्दे से मुतालिबा करने वाले! अगर चाहता है तो इस महल में दाख़िल हो जा और मेरे इस बन्दे को अपना हक़ माफ़ करके रिहा कर दे। खुशक़िस्मत है वह बन्दा जिसके शामिले हाल परवरदिगारे आलम का फ़ज़्लों करम हो जाए। अगर खुदा उसके मामले की इस्लाह न करे तो मामला सख़्त है। इमाम ज़ैनुल अब्दीन (अ 0 स 0) उस के खौफ़ से गरिया करते और दुआ फ़रमाते थेः-

“ इलाही हमारे साथ अपने फ़ज़्ल के ज़रिए मामला कर न कि अदल (इन्साफ़) के साथ ऐ करीम। ”

दोआए अबू हमज़ा सुमाली के अल्फ़ाज़ ज़्यादा मौज़ूं हैं और नमाज़ रद्दे मज़ालिम बेहतरीन अमल है। चार रकत की नीयत करे और पहली रकत में “ अलहम्द ” के बाद पच्चीस बार “ कुलहुअल्लाह ” दूसरी में पचास बार , तीसरी में पचहत्तर बार , चौथी में सौ बार और सलाम फ़ेर कर दुआ करे।

हिकायत

शेख़ शहीद अलैहे रहमा के मकातिब से यह कहानी मनक़ूल (उद्धृत) है कि अहमद बिने अबी अलहवारी ने कहा मेरी ख़्वाहिश थी कि मैं अबू सलमान दुर्रानी (अब्दुल रहमान बिने अतिया मशहूर व मारुफ़ ज़ाहिद जिसने 235 हिजरी में दमिश्क के क़रिया दारिया में वफ़ात पायी और वही उसकी क़ब्र मशहूर है) और अहमद बिने अबी अलहवारी (उसके असहाब में से हैं) को ख़्वाब मशहूर है) और अहमद बिने अबी अबहबारी (उसके असहाब में से है) को ख़्वाब में देखूं यहा तक कि एक साल के बाद मैंने उन्हें ख़्वाब में देखा। मैंने उनसे पूछा , ऐ उस्तादे गरामी! अल्लाहतआला ने तेरे साथ क्या सुलूक किया ? अबू सलमान ने कहा , ऐ अहमद! एक बार बाबे सग़ीर से आते हुए एक ऊँट पर घास लदी हुई देखी , सब मैंने उसमें से एक शाख़ पकड़ी। मुझे याद नहीं कि मैंने उससे ख़िलाल किया या उसे दाँतों में जाले बग़ैर दूर फ़ेंक दिया। अभ एक साल गुज़रने वाला है कि मैं अभी तक उसी शाख़ के हिसाब में मुबतिला हूँ।

यह हिकायत बईद अज़क़यास नहीं है , बल्कि यह आययए करीमा इश की तसदीक़ करती है।

“ ऐ बेटे दुरुस्त है कि राई के बराबर भी नेकी या बदी अगर आसमान व ज़मीन या किसी पत्थर में भी हुई तो उसे हिसाब के वक़्त पेश किया जाएगा औऱ उसके मुत्तालिक़ सवाल किया जाएगा। ”

( सू 0 लुक़मान – 16)

और हज़रत अमीरुल मोमनीन (अ 0 स 0) एक खुत्बे में इरशाद फ़रमाते हैं-

“ क्या बरोज़े क़यामत नफ़सों से राई के बराबर नेकी या बदी का हिसाब नहीं किया जाएगा। ? ” और हज़रत अली (अ 0 स 0) ने मोहम्मद बिने अबी बकर (र 0) को एक कागज़ पर तहरीर करके भेजा था-

“ ऐ अल्लाह के बन्दों तुम्हें इल्म होना चाहिए कि बरोज़े क़यामत अल्लाहतआला तुमसे छोटे बड़े हर अमल के बारे में पूछेगा। ” और इब्ने अब्बास को एक ख़त में तहरीर फ़रमायाः-

“ क्या तू हिसाब के मनाक़शा से नहीं डरता ” ?

अस्ल में मनाक़शा बदन में कांटा चुभने को कहते हैं , जिस तरह कांटा निकालने के लिए बारीक बीनी काविश का सामना करना पड़ता है इसी तरह बरोज़े क़यामत हिसाब में भी बारीक बीनी और काविश का सामना होगा। कुछ मोहक़्कीन ने कहा है कि बरोज़े क़यामत मीज़ान के ख़ौफ़ से कोई शख़्स भी महफूज़ (सुरक्शित) न होगा , बल्कि वह शख़्स जिसने दुनियाँ में अपने आमाल व अक़वाल औऱ ख़तरात व लहज़ात का हिसाब मीज़ाने शरा के साथ कर लिया होगा , महफूज़ होगा। इसी तरह एक हदीम मर्वी है कि आं हज़रत (स.अ.व.व. ) ने फ़रमाया , “ ऐ लोगों! ” क़यामत के दिन हिसाब होने से पहले अपने आमाल का हिसाब कर लो और क़यामत के दिन आमाल का वज़न होने से पहले अपने आमाल का वज़न कर लो।

हिकायत

तौबा बिने समा के बारे में नक़ल किया गया है कि वह शबो रोज़ अक्सर अपने नफ़स का मुहासिबा किया करता था। एक दिन उसने अपनी गुज़िश्ता ज़िन्दगी के दिनों का हिसाब लगाया तो उसने अन्दाज़ा लगाया कि अब तक उसकी साठ साल उम्र गुज़र चुकी है , फिर उसने सालों के दिन बनाए तो वह इक्कीस हज़ार छः सौ दिन बने। उसने अफ़सोस करते हुए कहा क्या मैं इक्कीस हज़ार छः सौ गुनाहों के साथ अपने परवरदिगार के हुज़ूर में पेश हूंगा। यह अल्फाज़ कहते ही वह बेहोश हो गया और उशी बेहोशी में मर गया। एक रवायत में है कि एक बार रसूल अकरम (स.अ.व.व. ) बिना घास की ज़मीन पर तशरीफ़ फर्मा थे , कि वहां पर असहाब को ईंधन जमा करने का हुक्म दिया। सहाबा ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह (स.अ.व.व. )! हम ऐसी ज़मीन पर उतरे हुए हैं जहां पर ईंधन मिलना मुश्किल है। आपने फ़रमाया जिस किसी से जितना मुमकिन हो इकट्ठा करें। बस उन्होंने ईंधन लाकर हुजूर के सामने रख दिया और एक ढ़ेर लग गया। हुज़ूर ने ईंधन की तरफ़ देखकर फ़रमाया कि इसी तरह रोज़े क़यामत लोगों के गुनाह भी जमा होंगे। इससे मालूम होता है कि आपने इसलिए हुक्म दिया है कि सहाबा (साथी) को इल्म हो जाए कि जिस तरह वे घास मैदान में ईंधन नज़र नहीं आता , लेकिन तलाश करने के बाद ढ़ेर लग गया। इसी तरह तुम्हारे गुनाह तुम्हें नज़र नहीं आते , लेकिन जिस दिन गुनाहों की जुसतजू और तलाश होगी और हिसाब होगा तो बेशुमार गुनाह इकट्ठा हो जाएंगे , चुनांचे तौबा बिने समा ने अपनी तमाम उम्र में हर रोज़ एक गुनाह फर्ज़ किया। इसी वजह से उसके इक्कीस हज़ार गुनाह (पाप) बन गए।