तारीखे इस्लाम 2

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तारीखे इस्लाम 2 लेखक:
कैटिगिरी: इतिहासिक कथाऐ

तारीखे इस्लाम 2

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: जनाब फरोग़ काज़मी साहब
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तारीखे इस्लाम 2

तारीखे इस्लाम 2

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

तबलीग़े सूरये बरात

मरासिमे हज में कुफ़्फ़ारे मुश्रेकीन के दरमियान उरयां तवाफ़ की ग़ैर मज़हबी व ग़ैर शाइस्ता भी जारी थी जिसका इन्सदाद ज़रुरी था। रसूले अकरम (स.अ.व.व.) ने अब तक उन्हें तवाफ़ और दूसरे अरकाने हज की बजा आवरी से मना नहीं किया मगर जब सूरये बारात की इब्तेदाई आयतें कुफ़्फ़ारे मुश्रेकीन से इज़हारे बेज़ारी के सिलसिले में नाज़िल हुई तो हुक्म ख़ुदा वन्दी के तहत उन्हें रोकना ज़रुरी हो गया। चुनानचे तीसर ज़िलहिज सन् 6 हिजरी को पैगम़्बर (स.अ.व.व.) ने हज़रत अबुबकर को अमीरे हज बना कर उस काम पर मामूर किया कि वह हज के मौक़े पर सूरये बरात की तबलीग़ भी करें।

हज़रत अबुबकर कुर्बानी के बीस ऊँटों के साथ तीन सौ हाजियों का एक क़ाफिला लेकर मदीने से रवाना हुये। अभी रास्ते ही में थे कि आन हज़रत (स.अ.व.व.) ने हज़रत अली (अ.स.) इब्ने अबीतालिब (अ.स.) को तलब फ़रमाया और उन्हें हुक्म दिया कि तुम मेरे रफ़्तार नाक़े ग़ज़बा पर जाओ और अबुबकर से सूरये बरात की आयतें लेकर इस कार तबलीग़ को अन्जाम दो क्योंकि ख़ुदा का हुक्म है कि इस काम को मैं ख़ुद अन्जाम दूँ या वह शख़्स जो मेरे अहलेबैत में से हों। हज़रत अली (अ.स.) इस हुक्मे पैग़म्बर (स.अ.व.व.) के तहत तेज़ी के साथ मदीने से मक्के की तरफ़ रवाना हुए और मुक़ामे अरज पर अबुबकर से जा मिले। और उनसे सूरये बरात की वह आयतें लेकर उन्हें वापस भेज दिया। इब्ने असीर का कहना है किः-

(पैग़म्बर (स.अ.व.व.) ने हज़रत अबुबकर को सूरये बरात दे कर भेजा फिर रास्ते से उन्हें वापस बुला लिया और फ़रमाया कि इसकी तबलीग़ के लिये वह शख़्स मुनासिब है जो मेरे घर वालों से हो।)

तबरी का बयान है किः-

(रसूल उल्लाह (स.अ.व.व.) ने अबुबकर को सूरये बरात की आयतें देकर भेजा और उन्हें अमीरे हज मुक़र्रर किया जब वह वादी ज़िल हलीफ़ा में मस्जिदे शजरा तक पहुँचे तो उनके पीछे हज़रत अली (अ.स.) को रवाना किया जिन्होंने आयतें उनसे ले लीं। अबुबकर पैग़म्बर (स.अ.व.व.) के पास वापस चले आये और कहा या रसूल उल्लाह (स.अ.व.व.) क्या मेरे बारे में कुछ नाज़िल हुआ है ? आपने फ़रमाया उन आयतों की तबलीग़ मुझसे मुतालिक़ हैं या उससे जो मेरे अहले बैत में से हों। 2

शाह वली उल्लाह मोहद्दिस रक़म तराज़ हैं कि शैख़ीन में अबुबकर के साथ हज़रत उमर भी थे मगर दोनों ही माज़ूल किये गये। 3 और ख़ुद हज़रत अबुबकर का ब्यान है कि रसूल उल्लाह (स.अ.व.व.) ने मुझे सूरये बरात दे कर रवाना किया था कि मैं हज के मौक़े पर यह ऐलान करूं कि इस साल के बाद कोई काफ़िर व मुश्रिक ख़ान-ए-काबा का बरहैना तवाफ़ न करे , जन्नत में सिर्फ़ मोमिन ही जायेगा और अगर रसूले अकरम (स.अ.व.व.) से किसी का कोई मुहायिदा है तो वह वक़्त मुक़र्रर तक ही रहेगा आइन्दा कोई तीसीय न होगी और ख़ुदा और उसका रसूल (स.अ.व.व.) मुश्रेकीन से बुरी उज़-ज़िम्मा है। अभी मैंने सिर्फ तीन दिन की मुसाफ़त तय की थी रसूल उल्लाह (स.अ.व.व.) ने एक ते़ नाक़े पर हज़रत अली (अ.स.) को मेरी तरफ़ भेजा और उन्हें ताकीद की कि वह मुझसे सूरये बरात लेकर उसकी तबलीग़ ख़ुद करें। चनानचे अली (अ.स.) ने वही किया जो हुक्मे पैग़म्बर (स.अ.व.व.) था और मैं मायूसी की हालत में मदीने वापस आ गया और जब पैग़म्बर (स.अ.व.व.) की ख़िदमत में हाज़िर हुआ तो नाकामी व नामुरादी के एहसास ने मुझ पर गिरया तारी कर दिया जब दिल कुछ ठहरा तो मैंने रसूल उल्लाह (स.अ.व.व.) से पूछा कि क्या मेरे मुतालिक़ कोई ख़ास बात रूनुमा होई है। आन हज़रत (स.अ.व.व.) ने फ़रमाया कि ख़ुदा ने मुझे हुक़्म दिया था कि सूरये बारात की तबलीग़ में ख़ुद करूँ या वह शख़्स करे जो मेरी आल में शामिल हो। 4

हज़रत अली इब्ने अबीतालिब (अ.स.) ने मक्के में पहुँच कर अरफ़ात मशअरूल हराम और मिना में खड़े होकर उन आयतों की तिलावत की और ऐलान फ़रमाया जिन मुशरेकीन ने बद अहदी की है उनसे किये हुए मुहायिदे चार माह के बाद ख़त्म हो जायेंगे और कोई काफ़िर व मुश्रिक ईमान लाये बग़ैर ख़ान-ए-काबा के हुदूद में आन तवाफ़ करने और हज करने का मजाज़ न होगा लेहाज़ा आइन्दा कोई काफ़िर यहां न आये।

इस ऐलान से कुफ़्फ़ार व मुश्रेकीन की पेशानियों पर बल पड़े मगर किसी को रोकने टोकने की जुराअत न हो सकती बल्कि वह इस्लामी तसल्लुत व इक़तेदारके आगे बेबस होकर इस्लाम की आड़ लेने पर मजबूर हो गये। अल्लामा तबरी का ब्यान है किः-

(मुश्रेकीन एक दूसरे को बुरा भला कहते हुए वापस हुए और कहने लगे कि जब कुरैश मुसलमान हो गये तो तुम्हारे लिये चारा कार ही क्या है चुनानचे वह भी मुसलमान हो गये।)

ये काम इतना आसान न था जितना नज़र आता है। मुश्रेकीन से मुहायिदे ख़त्म किये जा रहे थे। हज और मु्स्जिदुल हरम मे दाख़िले से उन्हें रोका जा रहा था इस सूरत में मुम्किन था कि वह वग़ावत और सरकशी पर उतर आते। उन्हीं ख़तरात के पेशे नज़र पैग़म्बरे इस्लाम (स.अ.व.व.) भी हज़रत अली (अ.स.) की तरफ़ से मुताफ़क्किर और उनकी वापसी के लिये बेचैनी से मुन्तज़िर थे। जब हज़रत अबुज़र ने आमद की इत्तेला दी तो फिक्र व परेशानी दूर हुई। ख़ुशी से चेहरा खिल उठा। आपने सहाबा के मजमे के साथ शहर से बाहर निकल कर हज़रत अली (अ.स.) का इस्तेक़बाल किया और अपने साथ लेकर मदीने में दाख़िल हुए।

इस मौक़े पर हज़रत अबुबकर की माज़ूली और हज़रत अली (अ.स.) की तक़र्रुरी पैग़म्बर (स.अ.व.व.) की जाती राये का नतीजा न थी बल्कि वहीये इलाही के तहत थी और कुदरत का कोई काम मसलहत और हिकमत से खाली तसव्वुर नहीं किया जा सकता। इसमें भी यह मसलहत कार फ़रमां रही होगी कि काम और काम के अन्जाम देने वाले की अहमियत को नुमायां कर दिया जाये चुनानचे अगर शुरू ही मे अली (अ.स.) को भेज दिया जाता तो काम की अहमियत दब कर रह जाती और कहे वाले यह कह सकते थे कि इस काम को सर अन्जाम देने की सलाहियत हज़रत अली (अ.स.) में भी थी और अबुबकर में भी। मगर एक माज़ूली और दूसरे की तक़र्रुरी और वह भी इस ऐलान के साथ कि यह काम सिर्फ़ नबी या उसके करने का है जो नबी से हो , उस काम की अहमियत नुमायां हो गई और काम की अहमियत से ही काम को अन्जाम देने वाले की अहमियत का अन्दाज़ा होता है।

इस सिलसिले में यह अमर भी ग़ौर तलब है कि जब हज़रत अबुबकर एक जुज़वी अमर की तबलीग़ के लिये सज़वार साबित न हुए तो पैग़म्बर (स.अ.व.व.) के बाद उनकी नियाबत और जॉनशीन के क्यों कर अहल हो सकते हैं ?

अब्दुल्लाह इब्ने अबुमुनाफ़िक़

मुनाफ़ेक़ीन का सरदार अब्दुल्लाह इब्ने अबी जब भी बीमार हुआ तो हामिल ख़ुल्क़े अज़ीम हज़रत रसूले ख़ुदा (स.अ.व.व.) उसकी अयादत को तशरीफ़ ले गये। उसने कहा आप अपना एक पैरहन मुझे इनायत कर दें ताकि वह मेरे क़फ़्न के काम आये और जब मैं मर जाऊँ तो मेरे जनाज़े पर नमाज़ पढ़ायें। आपने उसकी फ़रमाइश पर पैरहन उसे दे दिया मगर जब वह मर गया और आप नमाज़ पढ़ने के इरादे से खड़े हुए तो जिबरील ने आपका दामन थाम लिया और कहा या रसूल उल्लाह (स.अ.व.व.) ! ख़ुदा का हुक्म है किः-

(इन मुनाफ़ेक़ों में से जो मर जाये तो न कभी किसी पर नमाज़े ज़नाज़ा पढ़ना और न उसकी कब्र पर जा कर खड़े होना। यक़ीनन उन लोगों ने ख़ुदा और उसके रसूल (स.अ.व.व.) के साथ कुफ़्र किया और बदकारी की हालत में मर भी गये) (तौबा आयत 84)

इस आयत के नजूल के बाद पैग़म्बरे अकरम (स.अ.व.व.) ने नमाज़ नहीं पढ़ी। जब कुर्ते के बारे में हज़रत उमर के साथ कुछ लोगों ने एतराज़ किया तो आपने फ़रमाया कि मैं जानता हूँ कि उससे उसको कोई फ़ायदा नहीं पहुँचेगा मगर यह कि उसकी वजह से उसके रिश्तेदार और अहले क़बीला मुसलमान होंगे इसलिये मैंने दे दिया। चुनानचे मुनाफ़ेकीन के साथ आपके रहम व करम का हाल सुनकर क़बीलये ख़िज़रिज के एक हज़ार लोग मुसलमान हो गये।

मुख़तलिफ़ वाक़ियात

• रजब सन् 6 हिजरी में हबश के बादशाह असहमा नजाशी का इन्तेक़ाल हुआ। आन हज़रत (स.अ.व.व.) ने सहाबा की जमात के सात उसकी ग़ायबाना नमाज़े जनाज़ा पढ़ी और फ़रमाया कि वह मुसलमान था।

• माहे शाबान में हज़रत उस्मान बिन अफ़ान की ज़ौजा कुलसूम का इन्तेक़ाल हुआ।

• सन् 6 हिजरी के आख़िर में मुसलमान होने के लिये तहाएफ़ व हदाया के साथ मुख़तलिफ़ मुमालिक से वफूद आना शुरू हुए और यह सिलसिला सन् 10 हिजरी के वक़्त तक जारी रहा।

• शाहाने हमीर और बाशिन्दगाने यमन ने इस्लाम कबूल किया।

• बक़ौल तबरी इस सन् में मुसलमानों पर सदक़ात वाजिब हुए (सन् 10 हिजरी)