इस्लाम में क़ुरआन

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इस्लाम में क़ुरआन लेखक:
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: मफ़ाहीमे क़ुरआन

इस्लाम में क़ुरआन

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: अल्लामा सैय्यद मुहम्मद हुसैन तबातबाई
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: विज़िट्स: 8857
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इस्लाम में क़ुरआन
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इस्लाम में क़ुरआन

इस्लाम में क़ुरआन

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

19.बहस का नतीजा

वह नतीज जो पिछले बाब से हासिल होता है वह यह है कि क़ुरआने मजीद की हक़ीक़ी तफ़सीर ,वह तफ़सीर जो आयत में ग़ौर व ख़ौज़ और एक आयत को दूसरी आयत के साथ मिला कर पढ़ने से हासिल होती है दूसरे अल्फ़ाज़ में क़ुरआनी आयात की तफ़सीर के लिये हमारे सामने तीन तरीक़े हैं:

1.एक आयत की अलग तफ़सीर इन तमाम इल्मी व ग़ैर इल्मी मुक़द्दमों के साथ जो हमारे सामने मौजूद हैं।

2.एक आयत की तफ़सीर रिवायत व हदीस की मदद से कि जो आयत के ज़ैल में एक मासूम (पैग़म्बर या अहले बैत) से हम तक पहुची है।

3.आयत की तफ़सीर तदब्बुर और ग़ौर व फ़िक्र की मदद से और आयत के मअना तमाम मरबूत आयात से हासिल करना और हत्तल इमकान रिवायात से इस्तेफ़ादा करना।

तीसरा तरीक़ा वही है जिस के बारे में पिछले बाब में हम ने नतीजा अख़्ज़ किया है और वह ऐसा तरीक़ा है कि पैग़म्बरे अकरम (स) और आप के अहले बैत (अ) अपनी तालिमात में उस की तरफ़ इशारा करते रहे हैं। जैसा कि पैग़म्बरे अकरम (स) फ़रमाते हैं कि और बेशक यह आयात बाज़ दूसरी आयात की तसद़ीक में आई हैं। और अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) फ़रमातै हैं कि क़ुरआने मजीद की बाज़ आयात बाज़ दूसरी आयात को बयान करती हैं और बाज़ आयात बाज़ दूसरी आयात के बारे में शहादत देती हैं।

मुन्दरजा बाला बयान से वाज़ेह होता है कि यह तरीक़ा उस तरीक़े से जुदा है जो मशहूर हदीसे नबवी ,जो शख़्स अपने अक़ीदे और नज़रिये के तहत क़ुरआन की तफ़सीर करता है वह अपना मकान आग में बनाता है ,के मुताबिक़ अपनी अक़ीदे से क़ुरआन की तफ़सीर को मना किया गया है। क्योकि इस तरीक़े में कुरआने मजीद की तफ़सीर ख़ुद क़ुरआन की आयात से होती हैं न कि मुफ़स्सिर की अपनी राय और अक़ीदे के साथ।

पहला तरीक़ा क़ाबिल ऐतेबार नही है और हक़ीक़त में तफ़सीर अपनी मर्ज़ी और राय के मुताबिक़ है मगर यह कि तीसरे तरीक़े के साथ मुताबिक़त करे।

दूसरा तरीक़ा क़ाबिल ऐतेबार नही है जो उलामा ए इस्लाम अवायले इस्लाम में अंजाम देते थे और सदियों तक रायज रहा और उस पर अमल दर आमद होता रहा। (जैसा कि पिछले बाबों में ज़िक्र किया गया है।) और अब तक अहले सुन्नत मुफ़स्सेरीन में जारी और रायज है।

यह तरीक़ा हा महदूद ज़रुरतों के मुक़ाबले में बहुत महदूद है क्योकि 6हज़ार कुछ सौ क़ुरआनी आयात में हमारे लिये सैकड़ों और हज़ारों इल्मी और ग़ैर इल्मी सवालात पैदा होते हैं। हमें इन सवालात और मुश्किलात का हल कहाँ से हासिल करना चाहिये ?

आया रिवायात और अहादीस की तरफ़ रुजू करना चाहिये ?

इस सूरत में ऐसी रिवायत और अहादीस जिन की तादाद दो सौ पचास अहादीस तक भी नही पहुचती और सब की सब अहले सुन्नत के ज़रिये हम तक पहुची हैं और उन में बहुत सी हदीसें ज़ईफ़ हैं और बाज़ दूसरी क़ाबिल इंकार है और ऐसी अहादीस जो शिया ज़रियों और अहले बैत की ज़बानी हम तक पहुची हैं अगर इन को नज़र में रखें तो इन की तादाद हज़ारों तक पहुचती है। इन के दरमियान बहुत ज़्यादा अहादीस क़ाबिले ऐतेबार मिल सकती हैं। लेकिन बहरहाल हा महदूद सवालात का जवाब देने के लिये काफ़ी नही है और इस के अलावा बहुत ज़्यादा क़ुरआनी आयात भी हैं। जिन के बारे में ख़ास और आम तरीक़ों से कोई हदीस नही मिलती।

आया उन मुश्किलात को हल करने के लिये उन को मुनासिब आयात की तरफ़ रुजू करना चाहिये जो इस तरीक़े में मना हैं ?

या बहस से बिल्कुल परहेज़ करना चाहिये और अपनी इल्मी ज़रुरत से चश्म पोशी कर लेनी चाहिये ?इस सूरत में आयते शरीफ़ा:

हम ने तुम पर यह किताब (क़ुरआन) नाज़िल की ता कि हर चीज़ की हक़ीक़त को वाज़ेह करे यानी हक़ को बातिल से जुदा करे।

सूरज से ज़्यादा रौशन दलील के क्या मअना होगें ?सूर ए निसा और सूर ए मुहम्मद की यह आयाते शरीफ़ा और सूर ए साद की 29वी आयत जिस का यह मतलब है कि यह किताब बहुत मुबारक है जो हम ने तुम पर नाज़िल की है ,इस लिये कि उस की आयत पर ग़ौर करें और साहिबे अक़्ल लोग इस को बयान करें और सूर ए मोमिनून की 68वी आयते शरीफ़ा आया उन्होने इस बयान पर ग़ौर नही किया है या उन की तरफ़ कोई नई चीज़ नाज़िल हुई है जो उन के आबा व अजदाद की तरफ़ पहले कभी नाज़िल नही हुई थी। उन आयात के मअना क्या होगें ?

मुसल्लेमा अहादीस जो पैग़म्बरे अकरम (स) और आईम्म ए अहले बैत (अ) से हम से पहुची हैं और लोगों को उन (पर ग़ौर व फिक्र करने) की ताकीद और वसीयत की गई है कि मुश्किलात व इख़्तिलाफ़ात पेश आने पर क़ुरआन मजीद की तरफ़ रुजू करें ,उन का असर क्या होगा ?

बुनियादी तौर पर इस तरीक़े की बेना पर क़ुरआने मजीद पर ग़ौर व फिक्र करने का मसला जो बहुत सी आयात के मुताबिक़ एक उमूमी फ़र्ज़ है ,क्या इस के कुछ मअना नही है ?

इसी तरह आम तरीक़े से पैग़म्बर अकरम (स) की अहादीस में और ख़ास तरीक़े से , (अख़बारे मुतावातिर) जो पैग़म्बरे अकरम (स) और आईम्म ए अहले बैत (अ) की तरफ़ से अहादीस को किताबुल्लाह (क़ुरआन) की तरफ़ रुजू करने में फ़र्ज़ हुआ है ,इल अहादीस के मुताबिक़ हदीस को क़ुरआने मजीद के मुताबिक़ होना चाहिये ,अगर मुताबेक़त करे तो उस पर अमल होना चाहिये अगर मुख़ालिफ़ हो तो उस को रद्द करना चाहिये।

ज़ाहिर है कि इन अहादीस का मज़मून उसी वक़्त ठीक होगा जब क़ुरआनी आयात अपने मदलूल (मअना) पर दलालत करती हो और उस मदलूल का मा हसल ,जो हक़ीक़त में आयत की तफ़सीर है ,काबिल ऐतेमाद हो और अगर ऐसा हो कि आयत के मआनी के मा हसल यानी तफ़सीर को ख़ुद हदीस तशकील दे। (कि ठीक है या नही) तो इस सूरत में किताब (क़ुरआन) की तरफ़ रुजू करने और हासिल शुदा मआनी ठीक और सही नही होगें।

यह अहादीस बेहतरीन गवाह हैं कि क़ुरआने मजीद की आयात पूरे कलाम की तरह मआनी पर दलालत करती है और रिवायात के अलावा भी मुस्तकिल तौर पर हुज्जत हैं।

पस जो चीज़ पिछली बहसों से वाज़ेह होती है वह यह है कि एक मुफ़स्सिर का फ़र्ज़ यह है कि पैग़म्बर अकरम (स) और आईम्म ए अहले बैत (अ) की उन अहादीस पर ग़ौर व ख़ौज़ करे जो क़ुरआने मजीद की तफ़सीर में दाख़िल हो गई हैं और उन के तरीक़ों से आशना हों। उस के बाद क़ुरआन व सुन्नत की रौशनी में क़ुरआने मजीद की तफ़सीर करें और उन अहादीस व रिवायात को जो आयत के मज़मून के मुताबिक़ हों ,सिर्फ़ उन्ही पर अमल करें।

20.क़ुरआन से क़ुरआन की तफ़सीर का नमूना

खुदावंदे आलम अपनी किताब में कई जगह फ़रमाता है कि हर चीज़ का पैदा करने वाला ख़ुदा है। (सूर ए ज़ुमर आयत 65)जिस चीजॉ को शय या चीज़ कहा जाता है वह ख़ुदा के अलावा है। यही मज़मून क़ुरआने मजीद में चार बार आया है और उस के लिहाज़ से जो चीज़ भी दुनिया में मख़लूक़ फ़र्ज़ की जाये वह ख़ुदा ने ही पैदा की है और उस की ज़िन्दगी भी ख़ुदा से वाबस्ता है।

अलबत्ता इस नुक्ते को भी नही भूलना चाहिये कि क़ुरआने मजीद सैकड़ो आयात में इल्लत व मालूम की तसदीक़ करता है और हर फ़ाइल के फ़ेल को ख़ुद उस के फ़ाइल से निस्बत देता है। चीज़ों से असरात को जैसे आग के जलाने ,ज़मीन से खेती उगाने ,आसमान से बारिश बरसाने और ऐसे ही दूसरे आमाल ,जो इंसान के इख़्तियारी फ़ेल हैं उन को इंसान सें मंसूब करता है।

नतीजे के तौर पर हर काम को अंजाम देने वाला शख़्स इस काम का साहिब या मालिक है लेकिन ज़िन्दगी देने वाला और हर चीज़ को पैदा करने वाला ,हक़ीक़ी साहिबे कार सिर्फ़ ख़ुदा ही है और बस ,

अल्लाह तआला ने अपनी मख़लूक और आफ़रिनिश को उमूमियत देने के बाद ,फ़रमाता है कि वह ख़ुदा जिसने हर चीज़ को बहुत ख़ूब सूरत पैदा किया है ,मुनदर्जा बाला आयात के इंज़ेमाम के मुताबिक़ ,ख़ूब सूरती के अलावा और कोई सिफ़त नही रखतीं। (हर चीज़ ज़ेबा और ख़ूब सूरत है)

और इस नुक्ते से भी ग़ाफ़िल नही होना चाहिये कि क़ुरआने मजीद बहुत ज़्यादा आयात में अच्छाई को बुराई के मुक़ाबले में और फ़ायदे को नुक़सान के मुक़ाबले में और उसी तरह अच्छे को बुरे के मुक़ाबले में और ख़ूब सूरत को बदसूरत के मुक़ाबले में बयान करता है।

और बहुत से कामों ,मज़ाहिर क़ुदरत को अच्छा और बुरा कह कर पुकारता है लेकिन हक़ीक़त में यह बुराईयाँ आपस में मुक़ाबला करने से पैदा होती हैं लिहाज़ा इन का वुजूद क़यासी और निसबी है न कि नफ़्सी (ज़ाती)। जैसे साँप और बिछ्छू बुरे जानवर हैं लेकिन इंसानों और हैवानात की बनिस्बत ,जिन को उन के डंकों से नुक़सान पहुचता है न कि पत्थर और मिट्टी की बनिस्बत ,तल्ख़ मज़ा और मुर्दार की बदबू क़ाबिले नफ़रत है लेकिन इंसान के ज़ायक़े और सूघने की बनिस्बत न कि किसी दूसरी चीज़ की। बाज़ अख़लाक़ और किरदार भी बुरे हैं लेकिन इंसानी समाज की अर्थ व्यवस्था की बनिस्बत न कि हर निज़ाम की बनिस्बत और न ही समाजी निज़ाम से अलग हो कर।

हाँ तो अगर मुक़ाबले और निस्बत से चश्म पोशी कर ली जाये तो इस सूरत में हर चीज़ ,जिस चीज़ को भी देखेगें ,ख़ूब सूरती ,हैरत अंगेज़ और चौंधिया देने वाले अजीब करिश्मों के सिवा कुछ नज़र नही आयेगा और इस दुनिया का ख़ूब सूरत जलवा इंसानी बयान और तारीफ़ से बाहर हैं क्योकि ख़ुद तारीफ़ और बयान भी। इसी दुनिया का हिस्सा हैं।

दर हक़ीक़त इस आयत की मक़सद यह है कि लोगों को बुराईयों से हटा कर सिर्फ़ ख़ूबियों और अच्छाईयों की तरफ़ मायल करें और कुल्ली और उमूमी तौर पर ज़हनों को अरास्ता कर दे।

इस तालीम को हासिल करने के बाद हम सैक़ड़ों क़ुरआनी आयात का मुशाहिदा करते हैं कि अपने भिन्न भिन्न के बयानात के ज़रिये इस दुनिया की मौजूदात को अलग अलग ,गिरोह गिरोह ,जुज़ई और कुल्ली निज़ामों को जिन के मुताबिक़ वह हुकूमत करते हैं ख़ुदा वंदे आलम की निशानियों के तौर पर तआरुफ़ कराते हैं और अगर उन पर गहराई से ग़ौर व फिक्र करें तो वह अल्लाह तआला का रास्ता दिखाने वाली हैं।

पिछली दो आयतों के पेशे नज़र हमें यह मालूम होता है कि यह अदुभुत ख़ूब सूरती जो सारी दुनिया को घेरे हुए है वही ख़ुदाई ख़ूबसूरती जो आसमान व ज़मीन की निशानियों के ज़रिये दिखाई देती है और इस दुनिया के तमाम अजज़ा एक ऐसा दरिचा हैं जिन से दिलनशीन और असीमित फ़ज़ा बाहर निकलती है लेकिन यह अजज़ा ख़ुद व ख़ुद कोई चीज़ नही है।

इस तरह क़ुरआने मजीद दूसरी आयात में हर कमाल और जमाल को ख़ुदा वंदे आलम से मुतअल्लिक़ शुमार करता है जैसा कि इरशाद होता है कि वह (ख़ुदा) ज़िन्दा है उस के अलावा कोई ख़ुदा नही है। (सूर ए मोमिन आयत 65),समस्त ताक़त और शक्ति अल्लाह के लिये हैं। (सूर ए बक़रह आयत 165),वास्तव में सारी इज़्ज़तें ख़ुदा को जचती हैं। (सूर ए निसा आयत 139)या सूर ए रूम की 54वी और सूर ए इसरा की पहली आयतें के मअना के अनुसार या सूर ए ताहा की 8वी के अनुसार ख़ुदा वह है जिस के बग़ैर और कोई ख़ुदा नही है ,हर अच्छा नाम उसी का है। इन आयतों के अनुसार सारी ख़ूबसूरतियाँ जो इस दुनिया में पाई जाती हैं उन सब की हक़ीक़त ख़ुदा वंद की तरफ़ से है लिहाज़ा दूसरों के लिये सिर्फ़ मजाज़ी और वक़्ती हैं।

इस बयान की ताईद में क़ुरआने मजीद एक और बयान के ज़रिये वज़ाहत करता है कि दुनिया के हर मज़हर में जमाल व कमाल महदूद और सीमित है हैं और ख़ुदा वंद तआला के लिये ना महदूद और असीमित। हमने हर चीज़ को एक ख़ास अंदाज़े के साथ पैदा किया है। (सूरए क़मर आयत 49),हर चीज़ हमारे सामने एक ख़ज़ाने है ,हम ने इस ख़ज़ाने को बग़ैर एक मुअय्यन अंदाज़े के जम़ीन पर नही भेजते। (सूर ए हिज्र आयत 21)

इंसान इस क़ुरआनी हक़ीक़त को क़बूल करने से अचानक अपने आप को एक ना महदूद जमाल व कमाल के सामने देखेगा कि हर तरफ़ से उस को घेर हुए है और उस के मुक़ाबले में किसी क़िस्म का ख़ला नही पाया जाता है और हर जमाल व कमाल और हत्ता कि अपने आप को जो कि ख़ुद उन्ही आयतों (निशानियों) में से एक है ,भूल कर उसी (ख़ुदा) का आशिक़ हो जायेगा। जैसा कि इरशाद होता है कि जो लोग ख़ुदा पर ईमान लाये हैं वह ख़ुदा की निस्बत ज़्यादा महर व मुहब्बत रखते हैं। (सूर ए बक़रह आयत 165)

और यही वजह है कि चुँकि महर व मुहब्बत का ख़ास्सा है अपने इस्तिक़लाल और इरादे को ख़ुदा के सामने तसलीम करते हुए ख़ुदा की कामिल सर परस्ती के तहत चला जाता है।

चुँनाचे अल्लाह तआला फ़रमाता है कि ख़ुदा मोमिनों का सर परस्त और वली है। (सूर ए आले इमरान आयत 68)और अल्लाह तआला ने भी जैसा कि वादा किया है ,ख़ुद इंसानों की रहबरी और क़यादत करता है। ख़ुदा मोमिनों का सरपरस्त है और उन को अंधेरों से निकाल कर रौशनी की तरफ़ रहनुमाई करता है। (सूर ए बक़रह आयत 257)

और इस आयते करीमा के अनुसार ,आया वह शख़्स मर गया था जो हम ने उस को ज़िन्दा किया और उसको नूर और रौशनी दिखाई कि वह उस रौशनी के साथ लोगों के दरमियान चलता फिरता है (सूर ए इनआम आयत 122)और इस आयत के मुताबिक़ और ख़ुदा ने उस के दिलों में ईमान को क़ायम और साबित कर दिया है और उन को अपनी रूह या ईमान से मदद दी है। उन को एक नई रुह और नई ज़िन्दगी बख़्शता है और एक नूर यानी ख़ास हक़ीक़त बिनी का मलका उस को अता कर देता है ता कि सआदत मंदाना ज़िन्दगी को समाज में तशख़ीस दे। (सूर ए मुजादेला आयत 22)

और दूसरी आयते शरीफ़ा इस नूर को हासिल करने के बारे में वज़ाहत करती है ,ऐ ईमान वालो ,परहेज़गार बनो और ख़ुदा के पैग़म्बर पर ईमान लाओ ताकि ख़ुदावंदे तआला अपनी रहमत से तुम्हे दुगुना दे और तुम्हारे लिये नूर लाये ताकि तुम उस नूर के साथ राह पर चलो। (सूर ए हदीद आयत 28)

और पैग़म्बरे अकरम (स) पर ईमान लाने को दूसरी आयात में उन के सामने सरे तसलीम ख़म करने और उन की पैरवी करने का हुक्म दिया गया है जैसा कि इरशाद होता है कि ऐ नबी कह दीजिये कि अगर तुम्हे ख़ुदा से मुहब्बत है तो मेरी पैरवी करो ता कि ख़ुदा तुम से मुहब्बत करे। पैरवी और इताअत की बुनियाद एक दूसरी आयते शरीफ़ा में वज़ाहत फ़रमाता है। जो लोग इस पैग़म्बर की इताअत और पैरवी करते हैं जो उम्मी है और जो कोई तौरेत और इंजील में लिखे हुए सुबूत को पैदा करना चाहता है ,तौरेत और इंजील में भी इस (नबी) का ज़िक्र आया है उन को अच्छी बातों का तरफ़ दावत देता है और बुरी बातों से मना करता है और इसी तरह पाक चीज़ों को उन के लिये हलाल और नापाक और पलीद चीज़ों को उन के लिये हराम करता है और उन से सख़्तियों और हर क़िस्म की पाबंदियों को दूर करता है यानी उन को आज़ादी बख़्शता है। (सूर ए आराफ़ आयत 157)

पैरवी और इताअत के बारे में उस से भी वाज़ेह तर बयान एक और आयते शरीफ़ा में जो पहली आयत की तफ़सीर भी करती है और उसे वाज़ेह भी करती है ,अपने चेहरों को दीन के लिये मज़बूत रखो ,ऐतेदाल की हालत में रहो ,दीन में ऐतेदाल के साथ साबित क़दम रहो ,यह ख़ुदा की फ़ितरत है जिस पर इंसानों को पैदा किया गया है (उसी पर साबित क़दम रहो) ख़ुदा की फ़ितरत में कोई तब्दीली नही है ,यही वह दीन है जो इंसानी समाज का बख़ूबी इंतेज़ाम कर सकता है। (सूर ए रूम आयत 30)

इस आयते शरीफ़ा के मुताबकि इस्लाम का मुकम्मल प्रोग्राम फ़ितरत के तक़ाज़ों पर मबनी है दूसरे अल्फ़ाज़ में ऐसी शरीयत और क़वानीन है जिन की तरफ़ इंसानी फ़ितरत रहनुमाई करती है। (यानी एक क़ुदरती और फ़ितरी इंसान की फ़ितरी ज़िन्दगी तमाम बुराईयों से पाक हो।) जैसा कि एक जगह पर इरशाद होता है कि मुझे क़सम है इंसानी नफ़्स की जो अपने कमाल में पैदा किया गया है लेकिन इस को शर का इलहाम भी दिया गया है ,इन आयात की क़सम जिस ने अपने नफ़्स को गुनाहों से पाक रखा यक़ीनन गुनाहों से निजाता पैदा करेगा और जिस ने नफ्स को गुनाहों से आलूदा किया वह यक़ीनन घाटे में रहेगा। (सूरए शम्स आयत 7,10)

कुरआने मजीद वाहिद आसमानी किताब है जो सब से पहले इंसानी सआदत मंदाना ज़िन्दगी को फ़ितरी और पाक इंसान की ज़िन्दगी को बे लाग ज़िन्दगी के बराबर समझती है और दूसरे तमाम तरीक़ों के ख़िलाफ़ जो इंसान की ख़ुदा परस्ती (तौहीद) के प्रोग्राम को ज़िन्दगी के प्रोग्राम से जुदा और अलग करते हैं ,दीन के प्रोग्राम को ही ज़िन्दगी का प्रोग्राम कहती है और इस तरह इंसान के तमाम इंफ़ेरादी और समाजी पहलू में मुदाखिलत करते हुए हक़ीक़त बिनी पर मबनी , (ख़ुदा परस्ती और तौहीद) अहकाम को जारी करती है। दर अस्ल अफ़राद को दुनिया और दुनिया को अफ़राद के हवाले करती है और दोनो को ख़ुदा के हवाले। कुरआने मजीद ख़ुदा के बंदों और अवलिउल्लाह के लिये उन के यक़ीन और ईमान के मुताबिक़ बहुत ज़्यादा मानवी ख़वास का ज़िक्र करता है। जिस का बयान इस बाब में समा नही सकता।

21.पैग़म्बरे अकरम (स) और आईम्मा (अ) के बयानात के हुज्जत होने के मअना

क़ुरआन मजीद के अपने सबूत के मुताबिक़ पैग़म्बरे अकरम (स) और आप के अहले बैत (अ) का बयान जैसा कि पिछले बाबों में आया है क़ुरआनी आयात की तफ़सीर में हुज्जत रखता है। यह हुज्जत पैग़म्बरे अकरम (स) और आईम्म ए अहले बैत (अ) की ज़बानी वाज़ेह बयान के मुतअल्लिक़ है और ऐसे ही अहादीसे क़तईउस सुदुर में इन के बयातान वाज़ेह तौर पर आये है लेकिन ग़े कतई हदीस जिस हदीस को इस्तेलाह में ख़बरे वाहिद कहते हैं और इस का सबूत मुसलमानों के दरमियान मुख़्तलिफ़ हैं ,वह उस शख़्स की राय पर मबनी है जो क़ुरआन की तफ़सीर करता है। अहले सुन्नत के दरमियान एक तौर से ख़बरे वाहिद जिस को हदीसे सही कहा जाता है उस पर मुकम्मल तौर पर अमल करते हैं और शियों के दरमियान जिस चीज़ को ,जो अब इल्मे उसूल के ज़रिये साबित और मुसल्लम हैं यह है कि ख़बरे वाहिद जो क़ाबिले ऐतेबार तरीक़े से जारी हुई हो अहकामे शरई में हुज्जत है और अगर इस के ख़िलाफ़ हो तो इस पर यक़ीन नही किया जा सकता। इस मसले में तहक़ीक़ करने के लिये इल्मे उसूल की तरफ़ रूजू करना चाहिये।

नोट:

इस बेना पर कि तफ़सीर के मअना आयत से हासिल शुदा मअना ही हैं और इस बहस को तफ़सीर बहस भी कहा जाता है आयत के हासिल शुदा मअना में तासीर रखती हो ,लेकिन वह बहसें जो आयत से हासिल शुदा मअना में असर नही रखती जैसे बाज़ लुग़वी ,क़राअती ,बदीई मबाहिस वग़ैह इस क़िस्म की बहसें क़ुरआन की तफ़सीर नही हो सकतीं।

क़ुरआने मजीद की वही (अल्लाह का संदेश)

अ. क़ुरआने मजीद की वही (अल्लाह का संदेश) को बारे में मुसलमानों का आम अक़ीदा

ब. वही और नबुव्वत के बारे में मौजूदा लिखने वालों की राय

स. ख़ुद क़ुरआने मजीद इस बारे में क्या फ़रमाता है:

1.अल्लाह का कलाम

2.जिबरईल और रुहुल अमीन

3.फ़रिश्ते और शैतान

4.ज़मीर की आवाज़

5.दूसरी वज़ाहत के मुतअल्लि़क़

ह. ख़ुद क़ुरआने मजीद वही और नबुव्वत के बारे में क्या फ़रमाता हैं:

1.आम हिदायत और इँसानी हिदायत

2.राहे ज़िन्दगी तय करने में इंसानी विशेषताएँ

3.इंसान किस लिहाज़ से समाजी है ?

4.इख़्तिलाफ़ात का पैदा होना और क़ानून की ज़रुरत

5.क़ानून की तरफ़ इंसान की हिदायत और रहनुमाई करने के लिये अक़्ल काफ़ी नही है।

6.इंसानी हिदायत का अकेला रास्ता वही (अल्लाह की ओर से आने वाला संदेश) है।

7.मुश्किलात और उन के जवाबात

8.वही का रास्ता हर तरह से ग़लती और ख़ता से ख़ाली है।

9.हमारे लिये वही की वास्तविकता ना मालूम है।

10.क़ुरआन की वही की कैफ़ियत

अ. क़ुरआने मजीद की वही के बारे में मुसलमानों का आम अक़ीदा

क़ुरआने मजीद ने तमाम दूसरी इलहामी और पवित्र किताबों जैसे तौरेत और इंजील आदि से ज़्यादा आसमानी वही ,वही भेजने वाले और वही लाने वाले के बारे में लिखा है और यहाँ तक कि वही की कैफ़ियत के बारे में भी लिखा है।

मुसलमानों का आम अक़ीदा अलबत्ता अक़ीदे की बुनियाद वही क़ुरआने मजीद का ज़ाहिरी पहलू है। क़ुरआन के बारे में यह है कि क़ुरआने मजीद अपने बयान के अनुसार अल्लाह का कथन है जो एक बड़े फ़रिश्ते के ज़रिये जो आसमान का रहने वाला है ,नबी ए इस्लाम पर नाज़िल हुआ है।

उस फ़रिश्ते का नाम जिबरईल और रुहुल अमीन है जिस ने अल्लाह के कथन को तेईस वर्ष की ज़माने में धीरे धीरे इस्लाम के दूत तक पहुचाया और उस के अनुसार आँ हज़रत (स) को ज़िम्मेदारी दी कि वह आयतों के लफ़्ज़ों और उस के अर्थ को लोगों के सामने तिलावत करें और उस के विषयों और मतलब को लोगों को समझाएँ और इस तरह अक़ीदे की बातें ,समाजी और शहरी क़ानून और इंसानों की अपनी ज़िम्मेदारियों को ,जिन ज़िक्र क़ुरआने मजीद करता है ,उस की तरफ़ दावत दें।

अल्लाह के इस मिशन का पैग़म्बरी और नबुव्वत है। इस्लाम के नबी ने भी इस दावत में बिना किसी दख़्ल और कमी बेशी और रिआयत के अपनी ज़िम्मेदारी को निभाया।

ब. वही और नबुव्वत के बारे में मौजूदा लिखने वालों का राय

अकसर मौजूदा दौर के लेखक ,जो विभिन्न मज़हबों और धर्मों के बारे में तहक़ीक़ में कर रहे हैं ,उन की राय क़ुरआनी वही और नबुवत के बारे में इस तरह हैं:

पैग़म्बरे अकरम (स) समाज के बहुत ही ज़हीन इंसान थे जो इंसानी समाज को इंहेतात ,वहज़त गरी और ज़वाल से बचाकर उस को तमद्दुन और आज़ादी के गहवारे में जगह देने के लिये उठ खड़े हुए थे ताकि समाज को अपने पाक और साफ़ विचार की तरफ़ यानी एक जामें और मुकम्मल दीन की तरफ़ जो आपने ख़ुद मुरत्तब किया था ,दावत दे।

कहते हैं कि आप बुलंद हिम्मत और पाक रुह के मालिक थे और एक तीरा व तारीक माहौल में ज़िन्दगी बसर करते थे। जिसमें सिवाए ज़बरदस्ती ,ज़ुल्म व सितम ,झूठ और हरज मरज के अलावा और कोई चीज़ दिखाई नही देती थी और ख़ुद ग़र्ज़ी ,चोरी ,लूटपाट और दहशतगर्दी के अलावा कोई चीज़ मौजूद नही थी। आप हमेशा इन हालात से दुखी होते थे और जब कभी बहुत ज़्यादा तंग आ जाते थे तो लोगों से अलग होकर एक गुफ़ा में जो तिहामा के पहाड़ों में थी कुछ दिनों तक अकेले रहते थे और आसमान ,चमकते हुए तारों ,ज़मीन ,पहाड़ ,समुन्दर और सहरा आदि जो प्रकृति के रुप हैं जो इंसान के वश में किये गये हैं ,उन की तरफ़ टुकटुकी बाँध कर देखते रहते थे और इस तरह इँसान की ग़फ़लत और नादानी पर अफ़सोस किया करते थे जिसने इंसान को अपनी लपेट में ले रखा था ताकि उसे इस क़ीमती जीवन की ख़ुशियों और सफ़लताओं से दूर करके उन को दरिन्दों और जानवरों की तरह गिरी हुई ज़िन्दगी गुज़ारने पर मजबूर करे दे।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) लगभग चालीस साल तक इस हालत को अच्छी तरह समझते रहे और मुसीबत उठाते रहे ,यहाँ तक कि चालीस साल की उम्र में एक बहुत बड़ा मंसूबा बनाने में कामयाब हो गये ताकि इंसान इन बुरे हालात से निजात दिलाएँ जिसका नतीजा हैरानी ,परेशानी ,आवारगी ,ख़ुदगर्ज़ी और बे राहरवी था और वह दीने इस्लाम था जो अपने ज़माने की आलातरीन और मुनासिब तरीन हुकूमत थी।

पैग़म्बरे अकरम (स) अपने पाक विचार को ख़ुदा का कलाम और ख़ुदा की वही तसव्वुर करते थे कि ख़ुदा वंदे आलम ने आप की पाक फ़ितरत रुह के ज़रिये आप से हमकलाम होता था और अपनी पाक और ख़ैर ख़्वाह रुह को जिस से यह अफ़कार निकलते थे आप के पाक दिल में समा जाते थे और उस को रुहुल अमीन जिबरईल ,फ़रिशत ए वही कहते हैं। कुल्ली तौर पर ऐसी क़ुव्वतें जो ख़ैर और हर क़िस्म की खुशबख़्ती की तरफ़ दावत देती है उनको मलाएका और फ़रिश्ते कहा जाता है और वह क़ुव्वतें जो शर और बदबख़्ती की तरफ़ दावत देती हैं उन को शयातीन और जिन कहा जाता है। इस तरह पैग़म्बरे अकरम (स) ने अपने फ़रायज़ को नबुव्वत और रिसालत का नाम दिया ,जो जम़ीर की आवाज़ के मुताबिक़ थे और उन के अनुसार इंसानों को इंक़ेलाब की दावत देते थे।

अलबत्ता यह वज़ाहत उन लोगों की है जो इस दुनिया के लिये एक ख़ुदा के अक़ीदे के क़ायल हैं और इंसाफ़ की रु से इस्लाम के दीनी निज़ाम के लिये महत्व के क़ायल हैं लेकिन वह लोग जो इस दुनिया के लिये किसी पैदा करने का अक़ीदा नही रखते हैं वह नबुव्वत ,वही ,आसमानी फ़रायज़ ,सवाब ,अज़ाब ,स्वर्ग और नर्क जैसी बातों को धार्मिक राजनिती और दर अस्ल मसलहत आमेज़ झूठ समझते हैं।

वह कहते हैं कि पैग़म्बर इस्लाह पसंद इंसान थे और उन्होने दीन की सूरत में इंसानी समाज की भलाई और बेहतरी के लिये क़वानीन बनाए और चुँकि गुज़िश्ता ज़माने के लोग जिहालत और तारीकी में ग़र्क़ और तवह्हुम परस्ती पर मबनी अक़ीदों के साए में मबदा और क़यामत को महफ़ूज़ रखा है।

ख़ुद क़ुरआन मजीद इस के बारे में क्या फ़रमाता है ?

जो लोग वही और नबुव्वत की तंज़ीम को गुज़िश्ता बयान के मुताबिक़ तौजीह करते हैं वह ऐसे दानिशवर हैं जो माद्दी और तबीईयाती उलूम के साथ दिलचस्बी और मुहब्बत रखते हुए जहाने हस्ती की हर एक चीज़को फ़ितरी और क़ुदरती क़वानीन की इजारा दारी में ख़्याल करते हैं और आख़िरी गिरोहे हवादिस की बुनियाद को भी फ़ितरी फ़र्ज़ करता है। इस लिहाज़ से मजबूरन आसमानी मज़ाहिब और अदयान को ही इजतेमाई मज़ाहिर समझेगें और इस तरह तमाम इजतेमाई मज़ाहिर से जो नतीजा हासिल होगा उस पर ही परखेगें। चुँनाचे अगर इजतेमाई नवाबिग़ (ज़हीन इंसान) में से कोई एक जैसे कौरवश ,दारयूश ,सिकन्दर वग़ैरह अपने आप को ख़ुदा की तरफ़ से भेजा हुआ और अपने कामों को आसमानी मिशन और अपने फ़ैसलों को ख़ुदाई फ़रमान को तौर पर तआरुफ़ कराएँ तो गुज़िश्ता बाब में आने वाली बहस के अलावा और कोई वज़ाहत नही हो सकेगी।

हम इस वक़्त यहाँ दुनिया ए मा वरा को साबित नही करना चाहते और उन दानिशवरों को भी नही कहते कि हर इल्म सिर्फ़ अपने इर्द गिर्द को मौज़ूआत पर ही राय दे सकते हैं और माद्दी उलूम जो माद्दे के आसार और ख़वास से बारे में बहस करते हैं वह यक़ीनी या ग़ैर यक़ीनी तौर पर मा वरा में मुदाख़लत रखते हैं।