मासूमीन की अनमोल हदीसें

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मासूमीन की अनमोल हदीसें लेखक:
: मौलाना सैय्यद क़मर ग़ाज़ी जैदी
कैटिगिरी: हदीस

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मासूमीन की अनमोल हदीसें

मासूमीन की अनमोल हदीसें

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

आठवां भाग

308. صَلاحُ العَمَلِ بِصَلاحِ النِّيَّةِ : (5792 )

308. कार्यों का सही होना , नीयत के सही होने पर आधारित है।

309. صَلاحُ العِبادَةِ التَّوَكُّلُ : (5802 )

309. तवक्कुल (अल्लाह पर भरोसा) , इबादत को सवांरता है।

310. صَلاحُ الاِنسانِ فِي حَبسِ اللِّسانِ وَبَذلِ الإحسانِ : (5809 )

310. इन्सान की भलाई , ज़बान को काबू में रखने और नेकी करने में है।

311. صِحَّةُ الاَجسامِ مِن أهنَإ الأقسامِ : (5812 )

311. तन्दरुस्ती , सब से बड़ी नेमत है।

312. صِيانَةُ المَرأةِ أنعَمُ لِحالِها وَأدوَمُ لِجَمالِها : (5820 )

312. औरत का पर्दा , उसके लिये लाभदायक है और उसकी सुन्दरता को हमेशा बाकी रखता है।

313. صاحِبُ السَّوءِ قِطعَةٌ مِنَ النّارِ : (5824 )

313. बुरा साथी दोज़ख की आग का एक अंगारा होता है।

314. صِلَةُ الأرحامِ تُثمِرُ الأموالَ وَتُنسِىءُ فِي الآجالِ : (5847 )

314. सिला ए रहम (रिश्तेदारों के साथ मिलने जुलने) से माल बढ़ता है और मौत टलती है।

315. صَدَقَةُ السِّرِّ تُكَفِّرُ الخَطيئَةَ، وَصَدَقَةُ العَلانِيَةِ مَثراةٌ فِي المالِ : (5848 )

315. छिपा कर दिया जाने वाला सदक़ा , गुनाहों को छिपाता है और खुले आम दिये जाने वाले सदक़े से माल बढ़ाता है।

316. صُن دينَكَ بِدُنياكَ تَربَحهُما وَلا تَصُن دُنياكَ بِدِينِكَ فَتَخسَرَهُما : (5861 )

316. अपने दीन की दुनिया के द्वारा रक्षा करो ताकि दोनों से फ़ायदा उठाओ और अपनी दुनिया को दीन के द्वारा न बचाओ वरन दोनों का नुक़्सान होगा।

317. صُمتٌ يُعقِبُكَ السَّلامَةَ خيرٌ مِن نُطق يُعقِبُكَ المَلامَةَ : (5865 )

317. जिस खामोशी के परिणाम में तुम्हारी सुरक्षा हो , वह उस बोलने से अच्छी है जिसके नतीजे में तुम्हें बुरा कहा जाये।

318. صِيامُ القَلب عَنِ الفِكرِ فِي الآثامِ أفضَلُ مِن صِيامِ البَطنِ عَنِ الطَّعامِ : (5873 )

318. दिल का रोज़ा , पेट के रोज़े से अच्छा है (अर्थात पेट को खाने से रोकने से अच्छा यह है कि दिल को गुनाह की फिक़्र से रोका जाये।

319. صَدرُ العاقِلِ صُندُوقُ سِرِّهِ : (5875 )

319. बुद्धिमान का सीना , उसके रहस्यों का सन्दूक होता है।

320. ضَرُوراتُ الاَحوالِ تُذِلُّ رِقابَ الرِّجالِ : (5892 )

320. आवश्यक्तायें , मर्दों की गर्दनों को झुका देती हैं।

321. ضادُّوا التَّوانِي بِالعَزمِ : (5927 )

321. आलस्य को दृढ़ संकल्प से खत्म करो।

322. طُوبى لِلمُنكَسِرَةِ قُلوبُهُم مِن أجلِ اللهِ : (5937 )

322. खुशी है उनके लिये जिनके दिल अल्लाह के लिये टूटे हैं।

323. طُوبى لِمَن خَلا مِنَ الغِلِّ صَدرُهُ وَسَلِمَ مِنَ الغِشِّ قَلبُهُ : (5941 )

323. खुशी है उनके लिये जिनके सीने किनः (ईर्ष्या) से ख़ाली और दिल धोखे बाज़ी से साफ़ हैं।

324. طُوبى لِمَنَ قَصَّرَ أمَلَهُ وَاغتَنَمَ مَهَلَهُ : (5948 )

324. खुशी है उनके लिये जो अपनी इच्छाओं को कम करते हैं और मोहलत (उम्र) को ग़नीमत मानते हैं।

325. طَلَبُ الجَنَّةِ بِلا عَمِل حُمقٌ : (5991 )

325. (अच्छे) कार्य किये बिना , जन्नत की चाहत मूर्खता है।

326. طَلَبُ الجَمعِ بَينَ الدُّنيا وَالآخِرَةِ مِن خِداعِ النَّفسِ : (5995 )

326. दुनिया और आख़ेरत दोनों को इकठ्ठा करने की चाहत आत्मा का एक धोखा है।

327. طَلَبُ المَراتِبِ وَالدَّرَجاتِ بِغَيرِ عَمَل جَهلٌ : (5997 )

327. (उचित) कार्यों के बिना ऊँचे स्थान की इच्छा , मूर्खता है।

328. طَريقَتُنا القَصدُ، وَسُنَّتُنا الرُّشدُ : (6008 )

328. हम अहले बैत का तरीक़ा मध्य क्रम को अपना और हमारी सुन्नत विकास करना है।

329. طَعنُ اللِّسانِ أمَضٌ مِن طَعنِ السِّنانِ : (6011 )

329. ज़बान का ज़ख्म , भाले के जख्म से अधिक दर्द दायक होता है।

330. طَهِّرُوا أنفُسَكُم مِن دَنَسِ الشَّهَواتِ تُدرِكُوا رَفيعَ الدَّرَجاتِ : (6020 )

330. अपनी आत्मा को हवस की गंदगी से पाक करो , ऊँचे दर्जे पाओ।

331. ظُلمُ الضَّعيفِ أفحَشُ الظُّلمِ : (6054 )

331. कमज़ोर पर ज़ुल्म करना , सब से बुरा ज़ुल्म है।

332. ظَلَمَ المَعروفَ مَن وَضَعَهُ فِي غَيرِ أهلِهِ : (6063 )

332. किसी अयोग्य के साथ भलाई करना , भलाई पर ज़ुल्म है।

333. ظُلمُ اليَتامى وَالاَيامى يُنزِلُ النِّقَمَ وَيَسلُبُ النِّعَمَ أهلَها : (6079 )

333. यतीमों और बेवा औरतों पर ज़ुल्म करने से विपत्तियाँ आती है और नेमत वालों से नेमतें छीन ली जाती हैं।

नौवां भाग

334. عَلَيكَ بِالاخِرَةِ تَأتِكَ الدُّنيا صاغِرَةً : (6080 )

334. आख़ेरत के लिये काम करो , ताकि दुनिया ज़लील हो कर तुम्हारे पास आये।

335. عَلَيكَ بِالسَّكينَةِ فَإنَّها أفضَلُ زينَة : (6088 )

335. गंभीरता के साथ रहो क्यों कि गंभीरता सब से अच्छी शोभा है।

336. عَلَيكَ بِالشُّكرِ فِي السَّرّاءِ وَالضَّرّاءِ : (6092 )

336. सुख दुख में अल्लाह का शुक्र करते रहो।

337. عَلَيكَ بِالبَشاشَةِ فَإنَّها حِبالَةُ المَوَدَّةِ : (6101 )

337. हँस मुख रहो , क्योंकि हँस मुखी दोस्ती का जाल है।

338. عَلَيكَ بِإخوانِ الصَّفاءِ فَإنَّهُم زينَةٌ فِي الرَّخاءِ وَعَونٌ فِي البَلاءِ : (6128 )

338. (बुराईयों से) पाक साफ़ भाईयों (दोस्तों) के साथ रहो , क्योंकि वह खुशियों में शोभा और विपत्तियों में सहायक होते हैं।

339. عَلى قَدرِ المَؤُنَةِ تَكُونُ مِنَ اللهِ المَعُونَةُ : (6172 )

339. जितना खर्च होता है , अल्लाह की तरफ़ से उतनी ही मदद मिलती है।

340. عَلَى التَّواخِي فِي اللهِ تَخلُصُ المَحَبَّةُ : (6191 )

340. अल्लाह के लिये भाई चारे का संबंध स्थापित करने से , निस्वार्थ मोहब्बत होती है।

341. عَلَى المُشيرِ الاِجتِهادُ فِي الرَّأيِ وَلَيسَ عَلَيهِ ضَمانُ النُّجحِ : (6194 )

341. मशवरा देने वाले का काम सही राय देने की कोशिश करना है , उस पर सफ़लता की ज़िम्मेदारी नहीं है।

342. عِندَ تَعاقُبِ الشّدائِدِ تَظهَرُ فَضائِلُ الإنسانِ : (6204 )

342. एक के बाद एक कठिनाई पड़ने की स्थिति में इन्सान के गुण व श्रेष्ठता प्रकट होती हैं।

343. عِندَ نُزُولِ الشَّدائِدِ يُجَرَّبُ حِفاظُ الإخوانِ : (6205 )

343. दोस्ती व भाई चारे की लाज रखने वालों की परख कठिनाई के समय होती है।

344. عِندَ بَديهَةِ المَقالِ تُختَبَرُ عُقُولُ الرِّجالِ : (6221 )

344. तुरंत बात कहने के समय मर्दों की बुद्धियों को परखा जाता है।

345. عِندَ حُضُورِ الشَّهَواتِ وَاللَّذّاتِ يَتَبَيَّنُ وَرَعُ الأتقِياءِ : (6224 )

345. पारसाओं की पारसाई , हवस और मज़े के समय प्रकट होती है।

346. عَوِّد نَفسَكَ السَّماحَ وَتَجَنُّبَ الإلحاحِ يَلزَمكَ الصَّلاحُ : (6235 )

346. अपने अन्दर दूसरों को चीज़ देने और ज़िद न करने की आदत डालो , तुम्हारे ऊपर सुधार व इस्लाह वाजिब है।

347. عادَةُ اللِّئامِ المُكافاةُ بِالقَبيحِ عَنِ الإحسانِ : (6238 )

347. नीच लोगों की आदत , अच्छाई का जवाब बुराई से देना है।

348. عَجِبتُ لِمَن يَرى أنَّهُ يَنقُصُ كُلَّ يَوم فِي نَفسِهِ وَعُمُرِهِ وَهُوَ لا يَتَأَهَّبُ لِلمَوتِ : (6253 )

348. मुझे आश्चर्य है उन लोगों पर जो देखते हैं कि हर दिन उनकी उम्र व जान कम हो रही है , परन्तु वह फिर भी मरने के लिये तैयार नहीं होते।

349. عَجِبتُ لِمَن يَحتَمِي الطَّعامَ لاِذيَّتِهِ كَيفَ لا يَحتَمِي الذَّنبَ لاِليمِ عُقُوبَتِهِ : (6254 )

349. मुझे आश्चर्य है उन लोगों पर जो बीमारी के डर से (अनुचित चीज़ें) खाने पीने से बचते हैं , परन्तु दर्द दायक अज़ाब के डर से गुनाह से नहीं बचते !।

350. عَجِبتُ لِمَن يَرجُو فَضلَ مَن فَوقَهُ كَيفَ يَحرِمُ مَن دُونَهُ : (6285 )

350. मुझे आश्चर्य है उन लोगों पर जो अपने से ऊपर वाले लोगों से भलाई की अम्मीद रखते हैं , वह अपने से नीचे वालों को किस तरह वंचित करते हैं।

351. عِلمٌ بِلا عَمَل كَشَجَر بِلا ثَمَر : (6290 )

351. ज्ञान के अनुरूप कार्यों का न होना , बिना फल के पेड़ के समान है। अर्थात अगर ज्ञान के अनुरूप कार्य न हों तो ज्ञान का कोई लाभ नही है।

352. عَلِّمُوا صِبيانَكُم الصَّلاةَ وَخُذُوهُم بِها إذا بَلَغُوا الحُلُمَ : (6305 )

352. अपने बच्चों को नमाज़ सिखाओ और जब वह बालिग हो जायें तो उनसे नमाज़ के बारे में पूछ ताछ करो।

353. عَينُ المُحِبِّ عَمِيَّةٌ عَن مَعايِبِ المَحبُوبِ، وَأُذُنُهُ صَمَاءُ عَن قِبحِ مَساويهِ : (6314 )

353. आशिक की आँखें , माशूक की बुराईयों को नहीं देखतीं और उसके कान उसकी बुराई को नहीं सुनते।

354. عاص يُقِرُّ بِذَنبِهِ خَيرٌ مِن مُطيع يَفتَخِرُ بِعَمَلِهِ : (6334 )

354. अपने गुनाहों को स्वीकार करने वाला गुनहगार , उस आज्ञाकारी से अच्छा है जो अपने कार्यों पर गर्व करता है।

355. عامِل سائِرَ النّاسِ بِالإنصافِ وَعامِلِ المُؤمِنينَ بِالإيثارِ : (6342 )

355. समस्त लोगों के साथ न्याय पूर्वक व्यवहार करो और मोमिनों से त्याग के साथ।

356. غايَةُ الخِيانَةِ خِيانَةُ الخِلِّ الوَدُودِ وَنَقضُ العُهُودِ : (6374 )

356. ग़द्दारी की अन्तिम सीमा , अपने पक्के दोस्त को धोखा देना और प्रतिज्ञा को तोड़ना है।

357. غَضُّ الطَّرفِ مِن أفضَلِ الوَرَعِ : (6400 )

357. सब से बड़ी पारसाई , स्वयं को बुरी नज़र से रोकना है।

358. غَيِّرُوا العاداتِ تَسهُل عَلَيكُمُ الطّاعاتُ : (6405 )

358. अपनी आदतों को बदलो ताकि आज्ञा पालन तुम्हारे लिये सरल हो जाये।

359. غَلَبَةُ الهَزلِ تُبطِلُ عَزيمَةَ الجِدِّ : (6416 )

359. हँसी मज़ाक़ की अधिकता , गंभीरता को खत्म कर देती है।

दसवां भाग

360. فِي تَصاريفِ الدُّنيَا اعتِبارٌ : (6453 )

360. दुनिया में होने वाले परिवर्तनों में शिक्षाएं (निहित) हैं।

361. فِي تَصاريفِ الأحوالِ تُعرَفُ جَواهِرُ الرِّجالِ : (6470 )

361. स्थितियों के बदलने पर मर्दों के जौहर पहचाने जाते हैं।

362. فِي الضِّيقِ يَتَبَيَّنُ حُسنُ مُواساةِ الرَّفيقِ : (6473 )

362. तंगी के समय , दोस्त की ओर से होने वाली सहायता का पता लगता है।

363. فِي لُزومِ الحَقِّ تَكونُ السَّعادَةُ : (6489 )

363. हक़ की पाबन्दी से खुशी नसीब होती है।

364. فِي المَواعِظِ جَلاءُ الصُّدُورِ : (6509 )

364. नसीहत से दिल चमकते हैं।

365. فازَ مَن أصلَحَ عَمَلَ يَومِهِ وَاستَدرَكَ فَوارِطَ أمسِهِ : (6540 )

365. जिसने अपने आज के कार्यों को सुधार कर , कल की ग़लतियों का बदला चुकाया , वह सफल हो गया।

366. فازَ مَن تَجَلبَبَ الوَفاءَ وَادَّرَعَ الأمانَةَ : (6556 )

366. जिसने वफ़ादारी का वेश धारण किया और अमानत का कवच पहना , वह सफल हो गया। अर्थात जिसने वफादारी और अमानतदारी को अपनाया वह सफल हो गया।

367. فَضِيلَةُ السُّلطانِ عِمارَةُ البُلدانِ : (6562 )

367. बादशाह की श्रेष्ठता शहरों को आबाद करने में है।

368. قَد جَهِلَ مَنِ استَنصَحَ أعداءَهُ : (6663 )

368. जिसने अपने दुशमनों से नसीहत चाही उसने मूर्खता की।

369. قَد تُورِثُ اللَّجاجَةُ ما لَيسَ لِلمرَءِ إِلَيهِ حاجَةٌ : (6680 )

369. कभी कभी इंसान को ज़िद के नतीजे में वह मिलता है , जिसकी उसे ज़रूरत नही होती।

370. قَد كَثُرَ القَبيحُ حَتّى قَلَّ الحَياءُ مِنهُ : (6710 )

370. बुराईयाँ इतनी फैल गईं हैं कि अब बुराईयों से शर्म कम हो गई है।

371. قَليلٌ تَدُومُ عَلَيهِ خَيرٌ مِن كَثير مَملُول : (6740 )

371. निरन्तर चलते रहने वाला कम कार्य , उस अधिक कार्य से अच्छा है , जिससे तुम उकता जाओ।

372. قَدرُ الرَّجُلِ عَلى قَدرِ هِمَّتِهِ، وَعَمَلُهُ عَلى قَدرِ نِيَّتِهِ : (6743 )

372. आदमी का महत्व उसकी हिम्मत के अनुरूप होता है और उसके कार्यों का महत्व उसकी नीयत के अनुसार होता है।

373. قَولُ « لا اَعلَمُ » نِصفُ العِلمِ : (6758 )

373. यह कहना कि "मैं नही जानता हूँ।" स्वयं आधा ज्ञान है।

374. قارِن أهلَ الخَيرِ تَكُن مِنهُم، وَبايِن أهلَ الشَّرِّ تَبِن عَنهُم : (6805 )

374. अच्छे लोगों से मिलो ताकि तुम भी उन्हीं जैसे बन जाओ और बुरे लोगों से दूर रहो ताकि उनसे अलग रह सको।

375. قِوامُ العَيشِ حُسنُ التَّقديرِ وَمِلاكُهُ حُسنُ التَّدبيرِ : (6807 )

375. जीवन अच्छी योजना से आरामदायक बनता है और उसे अच्छे प्रबंधन से प्राप्त किया जा सकता है।

ग्यारहवां भाग

376. كُلُّ ذي رُتبَة سَنِيَّة مَحسودٌ : (6862 )

376. हर ऊँचे पद (मान सम्मान) वाले से ईर्ष्या की जाती है।

377. كُلُّ امرِء يَميلُ إلى مِثلِهِ : (6865 )

377. हर इंसान अपने जैसे इंसान की तरफ़ झुकता है।

378. كُلُّ داء يُداوى اِلاّ سُوءَ الخُلقِ : (6880 )

378. बद अख़लाक़ी (दुष्टता) के अतिरिक्त हर बीमारी का इलाज है।

379. كُلُّ شَيء يَنقُصُ عَلَى الإنفاقِ إلاَّ العِلمَ : (6888 )

379. ज्ञान के अलावा हर चीज़ ख़र्च करने से कम होती है।

380. كُلُّ شَيء لا يُحسُنُ نَشرُهُ أمانَةٌ وَإن لَم يُستَكتَم : (6897 )

380. जिस चीज़ का प्रचार करना सही न हो , वह अमानत है , चाहे उसके छिपाने का आग्रह भी न किया गया हो।

381. كَم مِن صَعب تَسَهَّلَ بِالرِّفقِ : (6946 )

381. बहुत सी कठिनाईयाँ प्यार मोहब्बत से हल हो जाती हैं।

382. كَم مِن مُسَوِّف بِالعَمَلِ حَتّى هَجَمَ عَلَيهِ الأجَلُ : (6954 )

382. ऐसे बहुत से लोग हैं जो काम करने में आज कल करते रहते हैं , यहाँ तक कि उन पर मौत हमला कर देती है।

383. كَيفَ تَصفُو فِكرَةُ مَن يَستَديِمُ الشِّبَعَ؟ !: (6975 )

383. उसके विचार किस तरह साफ़ हो सकते हैं , जिसका पेट हमेशा भरा रहता हो ?!

384. كَيفَ يُفرَحُ بِعُمر تَنقُصُهُ السّاعات؟ !: (6983 )

384. उस उम्र से किस तरह खुशी मिल सकती है , जिसमें हर पल कमी होती रहती है ?

385. كَيفَ يَجِدُ لَذَّةَ العِبادَةِ مَن لا يَصُومُ عَنِ الهَوى؟ !: (6985 )

385. वह इबादत का मज़ा कैसे चख सकता है जो स्वयं को हवस से न रोक सकता हो ?!

386. كَيفَ يُصلِحُ غَيرَهُ مَن لا يُصلِحُ نَفسَهُ؟ !: (6995 )

386. वह दूसरों को कैसे सुधार सकता है , जिसने स्वयं को न सुधारा हो ?!

387. كَيفَ يَدَّعِي حُبَّ اللهِ مَن سَكَنَ قَلبَهُ حُبُّ الدُّنيا؟ !: (7002 )

387. वह अल्लाह से मोहब्बत का दावा कैसे कर सकता है , जिसके दिल में दुनिया की मोहब्बत बस गई हो ?!

388. كَفى بِالشَّيبِ نَذيِراً : (7019 )

388. डरने के लिए , बालों का सफ़ेद होना काफ़ी है।

389. كَفى بِالمَرءِ فَضيلَةً أن يُنَقِّصَ نَفسَهُ : (7039 )

389. आदमी की श्रेषठता के लिए यही काफ़ी है कि स्वयं को अपूर्ण माने।

390. كَفى بِالمرء كَيِّساً أن يَعرِفَ مَعايِبَهُ : (7040 )

390. आदमी की होशिआरी के लिए यही काफ़ी है कि वह अपनी बुराइयों को जानता हो।

391. كَفى بِالمَرءِ جَهلاً أن يَضحَكَ مِن غَيرِ عَجَب : (7051 )

391. आदमी की मूर्खता के लिए बेमौक़े हँसना काफ़ी है।

392. كَفى مُخبِراً عَمّا بَقِيَ مِنَ الدُّنيا ما مَضى مِنها :(7057 )

392. जो (लोग) दुनिया में बच गये हैं , उनकी जानकारी के लिए वह काफ़ी हैं जो दुनियाँ से चले गये हैं।

393. كَفى بِالمَرئِ غَفلَةً أن يَصرِفَ هِمَّتَهُ فيما لا يَعنيهِ : (7074 )

393. आदमी की लापरवाही के लिए यही काफ़ी है कि वह अपनी ताक़त को काम में न आने वाली चीज़ों में व्यय कर दे।

394. كَفاكَ مُؤَدِّباً لِنَفسِكَ تَجَنُّبُ ما كَرِهتَهُ مِن غَيرِكَ : (7077 )

394. स्वयं को शिष्टाचारी बनाने के लिए यह काफ़ी है कि दूसरों की जो बातें पसंद न आयें , उनसे स्वयं भी दूर रहे।

395. كَثرَةُ المُزاحِ تُسقِطُ الهَيبَةَ : (7101 )

395. अधिक मज़ाक़ , रौब को ख़त्म कर देता है।

396. كَثرَةُ الغَضَبِ تُزرِي بِصاحِبِهِ وَتُبدِي مَعايِبَهُ : (7107 )

396. अधिक क्रोध , क्रोधी को अपमानित करा देता है और उसकी बुराइयों को प्रकट कर देता है।

397. كُن سَمِحاً وَلا تَكُن مُبَذِّراً : (7138 )

397. दानी बनो , लेकिन व्यर्थ ख़र्च करने वाले न बनो।

398. كُن مَشغُولاً بِما أنتَ عَنهُ مَسئُولٌ : (7143 )

398. तुम उस काम में व्यस्त रहो जिसके बारे में तुम से पूछ ताछ की जायेगी।

399. كُن لِلمَظلذومِ عَوناً، وَلِلظّالِمِ خَصماً : (7153 )

399. पीड़ित के सहायक और अत्याचारी के दुश्मन बनो।

400. كُن بَعيدَ الهِمَمِ إذا طَلَبتَ، كَريمَ الظَّفَرِ إذا غَلَبتَ : (7161 )

400. जब किसी चीज़ को प्राप्त करना चाहो तो उच्च हिम्मत से काम करो और जब किसी चीज़ पर अधिपत्य जमा लो तो अपनी सफला में महानता का परिचय दो।

401. كُن بِأسرارِكَ بَخيلاً، وَلا تُذِع سِرّاً اُودِعتَهُ فَإنَّ الإذاعَةَ خِيانَةٌ : (7175 )

401. अपने रहस्यों के बारे में कँजूस बन जाओ (अर्थात किसी को न बताओ) और अगर कोई तुम्हें अपना राज़ बता दे तो उसके राज़ को न खोलो , क्योंकि किसी के राज़ को खोलना , ग़द्दारी है।

402. كُلَّما كَثُرَ خُزّانُ الأسرارِ كَثُرَ ضِياعُها : (7197 )

402. जितने राज़दार बढ़ते जायेंगे , उतने ही राज़ खुलते जायेंगे।

403. كَما تَدينُ تُدانُ : (7208 )

403. जिसे तुम कर्ज़ दोगे वह तुम्हें कर्ज़ देगा।

404. كَما تَزرَعُ تَحصُدُ : (7215 )

404. जैसा बोओगे , वैसा काटोगे।

405. كُفرانُ النِّعَمِ يُزِلُّ القَدَمَ وَيَسلُبُ النِّعَمَ : (7239 )

405. नेमत की नाशुक्री पैरों को लड़ खड़ा देती है और नेमत को रोक देती है।

406. لِكُلِّ ضَيق مَخرَجٌ : (7266 )

406. हर तंग जगह से बाहर निकलने का रास्ता है।

407. لِكُلِّ مَقامِ مَقالٌ : (7293 )

407. हर जगह के लिए एक बात है।

408. لِكُلِّ شَيء زَكاةٌ وَزَكاةُ العَقلِ احتِمالُ الجُهّالِ : (7301 )

408. हर चीज़ के लिए एक ज़कात है और बुद्धी की ज़कात मूर्ख लोगों को बर्दाश्त करना है।

409. لِطالِبِ العِلمِ عِزُّ الدُّنيا وَفَوزُ الآخِرَةِ : (7349 )

409. तालिबे इल्म (शिक्षार्थी) के लिए दुनिया में सम्मान और आख़ेरत में सफलता है।

410. لِلمُؤمِنِ ثَلاثُ ساعات : ساعَةٌ يُناجي فيها رَبَّهُ وَساعَةٌ يُحاسِبُ فِيها نَفسَهُ، وَساعَةٌ يُخَلِّي بَينَ نَفسِهِ وَلَذَّتِها فِيما يَحِلُّ وَيَجمُلُ : (7370 )

410. मोमिन के लिए तीन वक़्त हैं: एक वक़्त वह जिसमें अल्लाह की इबादत करता है , दूसरा वक़्त वह जिसमें (अपने कार्यों का) हिसाब करता है , तीसरा वक़्त वह जिसमें वह हलाल व अच्छी लज़्ज़तो का आनंनद लेता है।

411. لِيَكُن أبغَضُ النّاسِ إلَيكَ وَأبعَدُهُم مِنكَ أطلَبَهُم لِمَعايِبِ النّاسِ : (7378 )

411. तुम्हें सबसे ज़्यादा क्रोध उस इंसान पर करना चाहिए , और सबसे ज़्यादा दूर उस इंसान से रहना चाहिए , जो लोगों की बुराईयों की तलाश में अधिक रहता हो।

412. لَن يَفُوزَ بِالجَنَّةِ إلاَّ السّاعِي لَها : (7404 )

412. जन्नत में उन लोगों के अलावा कोई नही जायेगा जो उसमें जाने के लिए कोशिश करते हैं।

413. لَن يُجدِيَ القَولُ حَتّى يَتَّصِلَ بِالفِعلِ : (7413 )

413. किसी भी बात का उस समय तक फ़ायदा नही है , जब तक उसके अनुसार कार्य न किया जाये।

414. لَن تُدرِكَ الكَمالَ حَتّى تَرقى عَنِ النَّقصِ : (7423 )

414. तुम उस समय तक कमाल पर नही पहुँच सकते , जब तक (अपनी) कमियों को दूर न कर लो।

415. لَيسَ مَعَ قَطيعَةِ الرَّحِمِ نَماءٌ : (7455 )

415. क़त- ए- रहम (संबंधियों से नाता तोड़ना) के साथ विकास नही है।

416. لَيسَ لاِنفُسِكُم ثَمَنٌ إلاَّ الجَنَّةُ فَلا تَبيعُوها إلاّ بِها : (7492 )

416. तुम्हारी जान की क़ीमत जन्नत के अलावा कुछ नही है , इस लिए तुम उसे जन्नत के अलावा किसी चीज़ के बदले में न बेंचो।

417. لَيسَ مِنَ العَدلِ القَضاءُ عَلَى الثِّقَةِ بِالظَّنِّ : (7500 )

417. अमानतदार , इंसान के बारे में किसी आशंका के आधार पर कोई फैसला करना न्यायपूर्वक नही है।

418. لَيسَ لَكَ بِأخ مَنِ احتَجتَ إلى مُداراتِهِ : (7503 )

418. वह तुम्हारा भाई नही है , जिसके प्रेम पूर्वक व्यवहार की तुम्हें ज़रूरत हो।

419. لَيسَ لَكَ بِأخ مَن أحوَجَكَ إلى حاكِم بَينَكَ وَبَينَهُ : (7505 )

419. वह तुम्हारा भाई नही है जो तुम्हें अपने व तुम्हारे बीच फ़ैसले के लिए (किसी तीसरे फ़ैसला करने वाले का) मोहताज बना दे।

420. لَيسَ لِلعاقِلِ أن يَكُونَ شاخِصاً إلاّ فِي ثَلاث : خُطوَة في مَعاد، أو مَرَمَّةِ لِمَعاش أو لَذَّة في غَيرِ مُحَرَّم : (7524 )

420. बुद्धिमान के लिए शौभनीय नही है कि वह निम्न- लिखित तीन कामों के अतिरिक्त कोई अन्य काम करे: क़ियामत के लिए काम करना , जीविका कमाना और हलाल तरीक़े से मज़ा लेना।

421. لَم يَعقِل مَواعِظَ الزَّمانِ مَن سَكَنَ إلى حُسنِ الظَّنِّ بِالأيّامِ : (7549 )

421. जो समय के बारे में ख़ुश गुमान रहता है उस आदमी को ज़माने की शक्षाएं व नसीहतें बुद्धिमान नही बना सकती हैं।

422. لَم يَعقِل مَن وَلِهَ بِاللَّعِبِ وَاستُهتِرَ بِاللَّهوِ وَالطَّرَبِ : (7568 )

422. जो खेल कूद , नाच गाने और व्यर्थ बातों का आशिक़ बन जाये , वह बुद्धिमान नही है

423. لَوِ اعتَبَرتَ بِما أضَعتَ مِن ماضِي عُمرِكَ لَحَفِظتَ ما بَقِيَ : (7589 )

423. अगर तुम अपनी व्यर्थ बीती हुई उम्र से शिक्षा लो तो शेष उम्र की रक्षा करो।

424. لَو يَعلَمُ المُصَلّي ما يَغشاهُ مِنَ الرَّحمَةِ لَما رَفَعَ رَأسَهُ مِنَ السُّجُودِ : (7592 )

424. अगर नमाज़ पढ़ने वाला यह जान जाये कि उसे कौनसी रहमत (अनुकम्पा) घेरे हुए है तो वह सजदे से सर न उठाये।

425. لَو بَقِيَتِ الدُّنيا عَلى أحَدِكُم لَم تَصِل إلى مَن هِيَ فِي يَدَيهِ : (7608 )

425. अगर दुनिया तुम में से किसी एक के पास बाक़ी रहती तो जिसके पास आज है , उसके पास कभी न पहुँचती।

426. لِيَكُن مَركَبُكَ القَصدَ وَمَطلَبُكَ الرُّشدَ : (7619 )

426. मध्य चाल के घोड़े पर सवार होकर अपने विकास की ओर बढ़ो। अर्थात अपने ख़र्च को सीमित करो न अधिक ख़र्च करो और न बहुत कम।

427. لِن لِمَن غالَظَكَ فَإنَّهُ يُوشِكُ اَن يَلينَ لَكَ : (7620 )

427. जो तुम्हारे साथ सख़्ती करे , तुम उसके साथ नर्मी करो , वह भी तुम्हारे लिए नर्म हो जायेगा।

428. لِقاءُ أهلِ المَعرِفَةِ عِمارَةُ القُلُوبِ وَمُستَفادُ الحِكمَةِ : (7635 )

428. अहले मारेफ़त (आध्यात्मिक लोग) से मिलने जुलने पर दिल खुश होता है और हिकमत (बुद्धी) बढ़ती है।

429. لَذَّةُ الكِرامِ فِي الإطعامِ، وَلَذَّةُ اللِّئامِ فِي الطَّعامِ : (7638 )

429. करीम (श्रेष्ठ) लोगों को खिलाने में मज़ा आता है और नीच लोगों को खाने में मज़ा आता है।