सृष्टि का मोती

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सृष्टि का मोती : मौलाना सैय्यद क़मर ग़ाज़ी जैदी
कैटिगिरी: इमाम मेहदी (अ)

सृष्टि का मोती

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

: मौलाना सैय्यद क़मर ग़ाज़ी जैदी
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सृष्टि का मोती

सृष्टि का मोती

हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

पाँचवां हिस्सा

लंबी उम्र

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ज़िन्दगी से संबंधित जो बहसें हैं उन में से एक बहस उनकी लंबी उम्र के बारे में भी है। कुछ लोगों के दिमाग़ों में यह सवाल पैदा होता है कि एक इंसान की इतनी लंबी उम्र कैसे हो सकती है ?

इस सवाल का आधार और कारण यह है कि आज कल के ज़माने में साधारण रूप से 80 से 100 साल उम्र होती है... अतः इतनी कम उम्र को देखने और सुनने के बाद , इतनी लंबी उम्र पर कैसे यक़ीन करें !। वरना तो लंबी उम्र का मसला अक़्ल और साइंस के आधार पर भी कोई असंभव बात नहीं है। बहुत से बुद्धिजीवियों ने इंसान के बदन के अंशों पर तहक़ीक़ कर के यह नतीजा निकाला है कि इंसान बहुत ज़्यादा लंबी उम्र भी पा सकता है , यहाँ तक कि उसे बुढ़ापे और कमज़ोरी का एहसास तक नही होगा।

बरनार्ड शा कहता है कि

“ सभी बायोलोजिस्ट इस बात को क़बूल करते हैं कि इंसान की उम्र के लिए किसी हद व सामा का निर्धारण नहीं किया जा सकता है , और न ही लंबी उम्र के लिए कोई हद निश्चित नहीं की जा सकती...। ”

प्रोफेसर अटेन्गर लिखते हैं कि

“ मेरी अपनी राय यह है कि टैक्निकल तरक्की और हमाने जो काम शुरु किया है उसके आधार पर इक्कीसवीं सदी के लोग हज़ारों साल जीवित रह सकते हैं..। ”

अतः बुढ़ापे पर क़ाबू पाने और एक लंबी उम्र तक जीवन यापन करने के बारे में बुद्धिजीवियों के लिए कुछ रास्ते हमवार हुए हैं और इस से इस बात का अंदाज़ा होता है कि इस तरह लंबी उम्र पाने की संभावना पाई जाती है। अतः इस बारे में कुछ सकारात्मक क़दम उठाए गए हैं और इस वक़्त भी दुनिया में बहुत से ऐसे लोग मौजूद हैं जो उचित खान पान , जल वायु और अन्य शारीरिक व मानसिक कामों के आधार पर 150 साल या उस से भी ज़्यादा जीवित रहते हैं। इस के अलावा सब से महत्वपूर्ण बात यह है कि इतिहास में ऐसे बहुत से लोग पाये जाते हैं जिन्हों ने लंबी उम्र पाई है। इतिहास व आसमानी किताबों में ऐसे बहुत से लोगों के नाम और उनकी ज़िन्दगी के हालात का वर्णन मिलता हैं जिनकी उम्र आज कल के इंसानों से बहुत ज़्यादा थी।

इस बारे में बहुत सी किताबें और लेख लिखे गए हैं , हम यहाँ पर निम्न लिखित नमूने पेश कर रहे हैं।

1. कुरआने करीम में एक ऐसी आयत है जो न सिर्फ़ यह कि इंसान की लंबी उम्र की खबर देती है बल्कि उम्रे जावेदां (अमरता) के बारे में खबर दे रही है , चुनांचे हज़रत यूनुस (अ.स.) के बारे में वर्णन होता है

فَلَوْلاَاٴَنَّہُ کَانَ مِنْ الْمُسَبِّحِینَ # لَلَبِثَ فِی بَطْنِہِ إِلَی یَوْمِ یُبْعَثُونَ

अगर वह (जानाबे यूनुस अ. स.) मछली के पेट में तस्बीह न पढ़ते तो क़ियामत तक मछली के पेट में ही रहते।

अतः यह आयत बहुत ज़्यादा लंबी उम्र (जानाबे यूनुस (अ.स.) के ज़माने से क़ियामत तक) के बारे में खबर दे रही है और इसे बुद्धिजीवियों व विशेषज्ञों की ज़बान में उम्रे जावेदां (अमरता) कहा जाता है। अतः इंसान और मछली के बारे में लंबी उम्र का मसला एक संभव बात है...।

2. कुरआने करीम में हज़रत नूह (अ.स.) के बारे में वर्णन होता है कि

बेशक हम ने नूह को उन की क़ौम में भेजा जिन्हों ने उन के बीच 950 साल जीवन व्यतीत किया...

इस आयत में जिस मुद्दत का वर्णन हुआ है वह उन की नबूवत और तबलीग की मुद्दत है , क्योंकि कुछ रिवायतों में उल्लेख मिलता है कि हज़रत नूह (अ.स.) की उम्र 2450 साल थी...।

उल्लेखनीय बात यह है कि हज़रत इमाम ज़ैनुल आबदीन (अ.स.) की एक रिवायत में वर्णन हुआ है कि

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ज़िन्दगी में जनाबे नूह (अ.स.) की सुन्नत पाई जाती है और वह सुन्नत उनकी लंबी उम्र है...।

3. और इसी तरह जनाबे ईसा (अ.स.) के बारे में वर्णन होता है कि

बेशक उनको क़त्ल नहीं किया गया और न ही उनको सूली दी गई है बल्कि उनको ग़लत फहमी हुई है , बेशक उनको क़त्ल नहीं किया गया है बल्कि ख़ुदा वन्दे आलम ने उनको अपनी तरफ़ बुला लिया है कि ख़ुदा वन्दे आलम कुदरत वाला और हकीम है...।

सभी मुसलमान कुरआन व अहादीस के अनुसार इस बात पर ईमान रखते हैं कि हज़रत ईसा (अ.स.) ज़िन्दा हैं और वह आसमानों में रहते हैं। वह हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर के वक़्त आसमान से नाज़िल होंगे और उनकी मदद करेंगे।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स.) फरमाते हैं कि

“ उन साहिबे अम्र (इमाम महदी अ.स.) की ज़िन्दगी में चार नबियों (अ.स.) की चार सुन्नतें पाई जाती हैं....उन में हज़रत ईसा (अ.स.) की सुन्नत यह है कि उनके (इमाम महदी अ.स.) बारे में भी लोग यही कहेंगे कि वह मर चुके हैं , जबकि वह ज़िन्दा रहेंगे...

कुरआने करीम के अलावा ख़ुद तौरैत और इंजील में भी लंबी उम्र वाले लोगों का वर्मन हुआ है , जैसा कि तौरैत में उल्लेख हुआ है कि :

जनाबे आदम की पूरी उम्र नौ सौ तीस साल थी जिस के बाद वह मर गए। अनूश की उम्र नौ सौ पांच थी , क़िनान की उम्र नौ सौ दस साल थी , मतूशालेह की उम्र नौ सौ उनहत्तर साल थी...।

इस आधार पर ख़ुद तौरात में बहुत से लोगों की लंबी उम्रों (नौ सौ साल से भी ज़्यादा) का वर्णन किया गया है।

इंजील में भी कुछ ऐसा वर्णन मिलता हैं जिस से यह बात स्पष्ट होती है कि जनाबे ईसा (अ.स.) सूली पर चढ़ाए जाने के बाद दोबारा ज़िन्दा हुए और आसमानों में ऊपर चले गए... ...और एक ज़माने में आसमान से नाज़िल होंगे जबकि इस वक़्त जनाबे ईसा (अ.स.) की उम्र दो हज़ार साल से भी ज़्यादा है।

प्रियः पाठकों ! इस विवरण से ये बात स्पष्ट हो जाती है कि यहूदी व ईसाई धर्मों के मानने वाले चूँकि अपनी पवित्र किताब पर ईमान रखते हैं अतः उनके अनुसार से भी लंबी उम्र का अक़ीदा सही है।

इन सब के अलावा लंबी उम्र का मसला अक्ल और साइंस के आधार पर भी स्वीकारीय है और इतिहास में इस के बहुत से नमूने मिलते हैं। ख़ुदा वन्दे आलम की असीम कुदरत व शक्ति के आधार पर भी इसे सिद्ध किया जा सकता है। सभी आसमानी धर्मों के अनुयायी इस बात में विश्वास रखते है कि इस संसार का कण कण ख़ुदा वन्दे आलम के क़ब्ज़े में है और समस्त घटकों का प्रभाव भी उसी की ज़ात से संबंधित है , अगर वह न चाहे तो कोई भी घटक अपना असर न दिखाये , लेकिन वह किसी भी घटक के बग़ैर उसके असर व प्रभाव को पैदा कर सकता है।

वह ऐसा अल्लाह है जो पहाड़ो के अन्दर से ऊँट निकाल सकता है , भड़कती हुई आग से जनाबे इब्राहीम (अ.स.) को सकुशल बाहर निकाल सकता है और जनाबे मूसा (अ.स.) व उनके मानने वालों के लिए दरिया को सुखा कर ऐसा रास्ता बना सकता है कि वह दो दीवारों के बीच से आराम से निकल सकें... तो अगर वही अल्लाह तमाम नबियों और वलियों के वारिस , तमाम नेक इंसानों की तमन्नाओं के केन्द्र और कुरआने करीम के इस महान वादे को पूरा करने वाली अपनी आख़िरी हुज्जत को इतनी लंबी उम्र दे तो इस में ताज्जुब की कौन सी बात है।

हज़रत इमाम हसने मुजतबा (अ.स.) फरमाते हैं कि

“ ख़ुदा वन्दे आलम उन (इमाम महदी अ.स.) की उम्र को उनकी ग़ैबत के ज़माने में लंबी कर देगा और फिर अपनी कुदरत के ज़रिये उनको जवानी की हालत में (चालीस साल से कम) ज़ाहिर करेगा , ताकि लोगों को यह यक़ीन हो जाये कि ख़ुदा वन्दे आलम हर चीज़ पर क़ादिर है...।

अतः हमारे बारहवें इमाम हज़रत महदी (अ.स.) की लंबी उम्र भी विभिन्न तरीक़ों , अक्ल साइंस और इतिहास के आधार पर संभव व स्वीकारीय है और इन सबके अलावा ख़ुदा वन्दे आलम और उसकी क़ुदरत के जलवों में से एक जलवा है।

छटा हिस्सा

इन्तेज़ार

जब काले बादल सूरज के तेजस्वी चेहरे को छिपा दें , दश्त व जंगल सूरज की चरण स्पर्श से वंचित हो जायें और पेड़ पौधे व फल फूल उस सूरज की मुहब्बत की दूरी से बेजान हो जायें तो उस वक़्त क्या किया जाये ? जब अच्छाईयों का मुजस्समा और खुबसूरतियों का आइना अपने चेहरे पर ग़ैबत की नकाब ड़ाल ले और इस दुनिया में रहने वाले उसके लाभ से वंचित हो जायें तो क्या करना चाहिए ?

चमन के फूलों को इंतेज़ार है कि मेहरबान बाग़बान उनको देखता रहे और वह उसकी मुहब्बत भरी बातों से जीवन अमृत पियें। दिल में शौक़ व उमंग है और आँखें बेताब हैं कि किसी तरह जल्दी से जल्दी उस के नूरानी चेहरे की ज़ियारत हो जाये। यहीँ से इंतेज़ार का अर्थ व मअना समझ में आते हैं। जी हाँ ! सभी इंतेज़ार कर रहें हैं कि वह आयें और अपने साथ ख़ुशियों का तोहफ़ा ले कर आयें।

वास्तव में यह इन्तेज़ार कितना दिलकश , खुबसूरत , हसीन व मिठास से भरा हुआ है ! अगर इस की खुबसूरती को नज़र में रखा जाये और इस के मिठास को दिल की गहराईयों से चखा जाये , तो यह बात समझ में आ सकती है।

इन्तेज़ार की हक़ीक़त और उसका महत्ता

इन्तेज़ार के विभिन्न अर्थ व मअनी वर्णन किये गए हैं , लेकिन इस शब्द पर गौर व फिक्र के ज़रिये इसके अर्थ की वास्तविक्ता तक पहुँचा जा सकता है। इन्तेज़ार का अर्त किसी के लिए आँखे बिछाना है। यह इन्तेज़ार शर्तें पूरी करने व रास्ता तैयार करने के लिहाज़ से महत्व पैदा करता है और इस से बहुत से नतीजे ज़ाहिर होते हैं। इन्तेज़ार सिर्फ़ रुह से संबंधित और आंतरिक हालत का नाम नहीं है , बल्कि यह एक ऐसी हालत होती है जो अन्दर से बाहर की तरफ़ असर करती है और इस के नतीजे में इंसान अपने अन्दर के एहसास के अनुसार काम करता है। इसी वजह से रिवायतों में इन्तेज़ार को एक बेहतरीन अमल बल्कि तमाम आमाल में बेहतरीन अमल की शक्ल में याद किया गया है। इन्तेज़ार , इन्तेज़ार करने वाले को एक हैसियत देता है और उसके कामों व कोशिशों की एक खास तरफ़ हिदायत करता है। इन्तेज़ार वह रास्ता है जो उसी चीज़ पर जा कर खत्म होता है जिस का इंसान को इन्तेज़ार होता है।

अतः इन्तेज़ार का अर्थ हाथ पर हाथ रख कर बैठना नही है , इंसान दरवाज़े पर आँखें जमाए रखे और हसरत लिए बैठा रहे , इसे इन्तेज़ार नहीं कहते , बल्कि हक़ीक़त तो यह है कि इन्तेज़ार में ख़ुशी , शौक व जज़्बा छुपा होता है।

जो लोग किसी अपने महबूब मेहमान का इन्तेज़ार करते हैं , वह ख़ुद को और अपने चारों ओर मौजूद चीज़ों को उस मेहमान के लिए तैयार करते हैं और उसके रास्ते में मौजूद रुकावटों को दूर करते हैं।

हमारी बात उस ला जवाब घटना के इन्तेज़ार के बारे में है जिसकी खूबसूरती और कमाल की कोई हद नहीं है। इन्तेज़ार उस ज़माने का है जिसकी खुशी और मज़े की मिसाल पिछले ज़माने में नहीं मिलती और इस दुनिया में अब तक ऐसा ज़माना नहीं आया है। हमें हज़रत इमामे ज़माना (अ.स.) की उस विश्वव्यापी हुकूमत के स्थापित होने का इन्तेज़ार है जिसे रिवायतों में इन्तेज़ारे फर्ज के नाम से याद किया गया है और जिसको आमाल व इबादत में बेहतरीन अमल बताया गया है , बल्कि जिसे तमाम ही आमाल क़बूल होने का वसीला क़रार दिया गया है।

हज़रत पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :

मेरी उम्मत का सब से बेहतरीन अमल (इन्तेज़ारे फरज) है...

हज़रत इमाम सादिक (अ.स.) ने अपने असहाब से फरमाया :

क्या मैं तुम लोगों को उस चीज़ के बारे में बताऊँ जिसके बग़ैर ख़ुदा वन्दे आलम अपने बन्दों से कोई भी अमल क़बूल नहीं करता ?! सब ने कहा : जी हाँ। इमाम (अ.स.) ने फरमाया :

ख़ुदा के एक होने का इक़रार , पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की नबूव्वत की गवाही , ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से नाज़िल होने वाली चीज़ों का इकरार , हमारी विलायत और हमारे दुशमनों से नफ़रत व दूरी (यानी ख़ास तौर पर हम इमामों के दुशमनों से दूरी) , अइम्मा (अ.स.) की इताअत (आज्ञापालन) करना , तक़वा व परहेज़गारी को अपनाना , कोशिश करना व बुर्दबारी व सयंम से काम करना और क़ाइम आले मुहम्मद (अ.स.) का इन्तेज़ार...

बस इन्तेज़ारे फरज , ऐसा इन्तेज़ार है जिसकी कुछ विशेषताएं है और कुछ अपने तरीक़े के अलग ही एहसास हैं और उनको पूर्ण रूप से पहचानना ज़रुरी है ताकि उसके बारे में बयान किये जाने वाले तमाम फज़ाइल का राज़ मालूम हो सके।

इमामे ज़माना (अ.स.) के इन्तेज़ार की विशेषताएं

जैसे कि हम ने ऊपर उल्लेख किया है कि इन्तेज़ार इंसान की फितरत में शामिल है और हर कौम , दीन व मज़हब में इन्तेज़ार का तस्व्वुर पाया जाता है। इंसान की नीजी और सामाजिक ज़िन्दगी में पाया जाने वाला साधारण इन्तेज़ार चाहे कितना ही महत्वपूर्ण हो , वह हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के इन्तेज़ार के मुक़ाबले में बहुत छोटा है क्यों कि उनके ज़हूर के इन्तेज़ार की कुछ ख़ास विशेषताएं है ।

इमाम ज़माना (अ.स.) के ज़हूर का इन्तेज़ार , एक ऐसा इन्तेज़ार है जो संसार के आरम्भ से मौजूद था। यानी बहुत पुराने ज़माने में भी नबी (अ.स.) और वली उनके ज़हूर की खुश खबरी सुनाते थे और हमारे सभी मासूम इमाम (अ.स.) उनकी हुकूमत के ज़माने की तमन्ना रखते थे।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) फरमाते हैं कि

"अगर मैं उनके (हज़रत इमाम महदी अ. स.) ज़माने में होता तो तमाम उम्र उनकी खिदमत करता...।"

इमाम महदी (अ.स.) का इन्तेज़ार , एक विश्व सुधारक का इन्तेज़ार है , न्याय व समानता पर आधारित एक विश्वव्यापी हुकूमत का इन्तेज़ार है , और समस्त अच्छाइयों के फलने फूलने व लागू होने का इन्तेज़ार है। अतः आज इंसानी समाज इसी इन्तेज़ार में अपनी आँखे बिछाए हुए है और ख़ुदा द्वारा प्रदान की गई पाक व पवित्र फ़ितरत के आधार पर उसकी तमन्ना करता है। यह इंसानी समाज किसी भी ज़माने में पूर्ण रूप से उस तक नहीं पहुँच सका है। हज़रत इमाम महदी (अ.स.) उस शख्सियत का नाम है जो न्याय , समानता , आध्यात्म , सयंम , बराबरी , ज़मीन की आबादी , मेल मुहब्बत , अक्ल की परिपक्वता व पूर्णता , और इंसानों के विभिन्न इल्मों की तरक्की को तोहफ़े में लायेंगे तथा साम्राज्यवाद व गुलामी , ज़ुल्म व अत्याचार , और अख़लाकी बुराईयों को जड़ से मिटा कर उनको ख़त्म करना उनकी हुकूमत का महत्वपूर्ण काम होगा।

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) का इन्तेज़ार , ऐसा इन्तेज़ार है जिसके फलने फूलने का रास्ता हमवार होने से ख़ुद इन्तेज़ार को भी चार चाँद लग जायेंगे और वह ऐसा आख़िरी ज़माना होगा जब तमाम इंसान एक समाज सुधारक और निजात व मुक्ति देने वाले की तलाश में होंगे। उस समय वह आयेंगे और अपने मददगारों के साथ बुराईयों के खिलाफ़ आन्दोलन चलायेंगे। ऐसा नही होगा कि वह आते ही अपने किसी मोजज़े (चमत्कार) से पूरी दुनिया के निज़ाम व व्यवस्था को बदल देंगे।

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) का इन्तेज़ार , उनका इन्तेज़ार करने वालों में उनकी मदद का शौक पैदा करता है और इंसान को हैसियत व ज़िन्दगी देता है और साथ ही साथ उनको उद्देशयहीनता व भटकने से बचाता है।

प्रयः पाठकों ! यह हैं उस इन्तेज़ार की कुछ विशेषताएं जो पूरे इतिहास की बराबर व्यापकता रखती हैं और हर इंसान की रुह में उस की जड़ें मिलती हैं। इसी लिए कोई दूसरा इन्तेज़ार इस महान इन्तेज़ार का ज़र्रा बराबर भी मुक़ाबेला नहीं सकता। अतः उचित है कि अब हम हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के इन्तेज़ार के विभिन्न पहलुओं और उसकी निशानियों व फ़ायदों को पहचानें और उनके ज़हूर का इन्तेज़ार करने वालों की ज़िम्मेदारियों और इस इन्तेज़ार के बे मिसाल सवाब के बारे में बाते करें।

इन्तेज़ार के पहलू

ख़ुद इंसान की ज़ात में विभिन्न पहलु पाये जाते हैं , एक तरफ़ जहाँ उस में थयोरिकल व परैक्टिकल पहलू पाया जाता हैं , वहीँ दूसरी तरफ़ उस में व्यक्तिगत और सामाजिक पहलू भी पाया जाता है। एक अन्य दृष्टिकोण से इंसान में जिस्म के पहलू के साथ रुह और नफ़्स का पहलू भी मौजूद होता है। इस बात में कोई शक नहीं है कि इन सब पहलुओं के लिए निश्चित क़ानूनों की ज़रुरत है , ताकि उनके अन्तर्गत इंसान के लिए ज़िन्दगी का सही रास्ता खुल जाये और भटकाने व गुमराह करने वाला रास्ते बन्द हो जायें।

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर का इन्तेज़ार , इन्तेज़ार करने वाले के तमाम पहलुओं को प्रभावित करता है। इंसान के सोच विचार व चिंतन का पहलू जो कि इंसान के व्यवहार व आमाल (क्रिया कलापों) का आधारभूत पहलू है , यह इंसानी ज़िन्दगी के बुनियादी अक़ीदों की हिफ़ाज़त करता है। दूसरे शब्दों में इस तरह कहा जा सकता है कि सही इन्तेज़ार इस बात का तक़ाज़ा करता है कि इन्तेज़ार करने वाला अपने ईमान व फ़िक्र की बुनियादों को मज़बूत करे ताकि गुमराह करने वाले मज़हब के जाल में न फँस सके। या हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबत लंबी हो जाने की वजह से ना उम्मीदी के दलदल में न फँस सके।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) फरमाते हैं कि

"लोगों के सामने एक ऐसा ज़माना आयेगा , जब उनका इमाम गायब होगा , खुश नसीब है वह इंसान जो उस ज़माने में हमारे अम्र (यानी विलायत) पर बाक़ी रहे...।"

यानी ग़ैबत के ज़माने में दुशमन विभिन्न शुबहें पैदा कर के शिओं के सही अक़ीदों को ख़त्म करने की कोशिश में लगा हुआ है , इस लिए हमें इन्तेज़ार के ज़माने में अपने अक़ीदों की हिफ़ाज़त करनी चाहिए।

इन्तेज़ार , अपने अमली पहलू में इंसान के कामों व किरदार को सही रास्ता दिखाता है। एक सच्चे मुन्तज़िर (इन्तेज़ार करने वाला) को अमल के मैदान में यह कोशिश करनी चाहिए कि इमाम महदी (अ.स.) की हक़ व सच्चाई पर आधारित हुकूमत का रास्ता हमवार हो जाये। अतः मुन्तज़िर को इस बारे में अपने और समाज के सुधार के लिए कमर बाँध लेनी चाहिए। मुन्तज़िर को चाहिए कि अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी में अपनी आध्यात्मिक ज़िन्दगी और अखलाक़ी फज़ीलतों (श्रेष्ठताओं) को उच्चता प्रदान करने की कोशिश करे और अपने जिस्म व बदन को मज़बूत बनाये ताकि एक कारामद ताक़त के लिहाज़ से नूरानी मोर्चे के लिए तैयार रहे।

हज़रत इमाम सादिक (अ.स.) फरमाते हैं कि

"जो इंसान इमाम क़ाइम (अ.स.) के मददगारों में शामिल होना चाहता है उसे इन्तेज़ार करना चाहिए और इन्तेज़ार की हालत में तक़वे व परेहेज़गारी का रास्ता अपनाना चाहिए और अच्छे अखलाक़ व सदव्यवहार से सुसज्जित होना चाहिए...

इस इन्तेज़ार की एक विशेषता यह है कि यह इंसान को व्यक्तिगत ज़ीवन से ऊपर उठा कर उसे समाज के हर इंसान से जोड़ देता है। अर्थात इन्तेज़ार न सिर्फ़ यह कि इंसान के व्यक्तिगत जीवन में प्रभारी होता है बल्कि समाज में इंसानों के लिए एक खास योजना पेश करता है और समाज में सकारात्मक क़दम उठाने का शौक भी दिलाता है। चूँकि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत सार्वजनिक है , अतः हर इंसान को अपनी सामर्थ्य अनुसार समाज सुधार के लिए काम करना चाहिए और समाज में फैली बुराईयों के प्रति खामोश व लापरवाह नहीं रहना चाहिए , क्यों कि विश्वव्यापी सुधार करने वाले के मुन्तज़िर को फिक्र व अमल के आधार पर सुधार व भलाई के रास्ते को अपनान चाहिए।

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि इन्तेज़ार एक ऐसा मुबारक झरना है जिसका जीवन अमृत इंसान और समाज की रगों में जारी है और यह ज़िन्दगी के हर पहलू में इंसान को अल्लाह के रंग में रंगता है। अब आप ही फैसला करें कि अल्लाह के रंग से अच्छा रंग कौनसा हो सकता है ?!

कुरआने करीम में वर्णन होता है कि :

सिबग़तल्लाहे व मन अहसनु मिन अल्लाहे सिबग़तन व नहनु लहु आबेदून....

صِبْغَةَ اللهِ وَمَنْ اٴَحْسَنُ مِنْ اللهِ صِبْغَةً وَنَحْنُ لَہُ عَابِدُونَ

रंग तो सिर्फ़ अल्लाह का रंग है और उससे अच्छा किस का रंग हो सकता है और हम सब उसी के इबादत गुज़ार हैं।

उपरोक्त उल्लेखित अंशों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि हज़रत इमामे ज़माना (अ.स.) का इन्तेज़ार करने वालों की ज़िम्मेदारी अल्लाह के रंग में रंगे जाने के अलावा कुछ नहीं है। इन्तेज़ार की बरकत से यह रंग इंसान की व्यक्तिगत व सामाजिक ज़िन्दगी के विभिन्न पहलुओं में झलकता है। अगर इस नज़र से देखा जाये तो हम मिन्तज़िरों की यह ज़िम्मेदारियाँ हमारे लिए मुश्किल नहीं होंगी , बल्कि एक अच्छी घटना के रूप में हमारी ज़िन्दगी के हर पहलू को बेहतरीन आध्यातमिक रूप देंगी। वास्तव में अगर देश का मेहरबान बादशाह और काफ़ले का प्यारा सरदार हमें एक अच्छे व लायक़ सिपाही की हैसियत से ईमान के खेमे में बुलाए और हक़ व हक़ीक़त के मोर्चे पर हमारे आने का इन्तेज़ार करे तो फिर हमें कैसा लगेगा ? क्या उस समय हमें अपनी इन ज़िम्मेदारियों को निभाने में कोई परेशानी होगी कि ये काम करो और ऐसे न बनो ?, या हम ख़ुद इन्तेज़ार के रास्ते को पहचान कर अपने चुने हुए उद्देश्य व मक़सद की तरफ क़दम बढाते हुए नज़र आयेंगे ?

इन्तेज़ार करने वालों की ज़िम्मेदारियाँ

मासूम इमामों की हदीसों और रिवायतों में ज़हूर का इन्तेज़ार करने वालों की बहुत सी ज़िम्मेदारियों का वर्णन हुआ हैं। हम यहाँ पर उन में से कुछ महत्वपूर्ण निम्न लिखित ज़िम्मेदारियों का उल्लेख कर रहे हैं ।

इमाम की पहचान

इन्तेज़ार के रास्ते को तय करना , इमाम (अ.स.) की शनाख्त और पहचान के बग़ैर संभव नहीं है। इन्तेज़ार की वादी में सब्र से काम लेते हुए अडिग रहना , इमाम (अ.स.) की सही शनाख्त से संबंधित है। अतः हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के नाम व नस्ब की शनाख्त के अलावा उनकी महानता , महत्ता और उनके ओहदे को पहचानना भी बहुत ज़रुरी है।

अबू नस्र , जो कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) के सेवक थे , वह हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की ग़ैबत से पहले हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की सेवा में उपस्थित हुए। हज़रत इमाम महदी (अ.स.) ने उन से सवाल किया कि क्या आप मुझे पहचानते हैं ? उन्होंने जवाब दिया : जी हाँ ! आप मेरे मौला व आक़ा और मेरे मौला व आक़ा के बेटे हैं। इमाम (अ.स.) ने फरमाया : मेरा मक़सद ऐसी पहचान नहीं है , अबू नस्र ने कहा कि आप ही फरमाइये कि आप का मक़सद क्या था।

इमाम (अ.स.) ने फरमाया :

मैं पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का आखरी जांनशीन हूँ , और ख़ुदा वन्दे आलम मेरी बरकत की वजह से हमारे खानदान और हमारे शिओं से बलाओं व विपत्तियों को दूर करता है...।

अगर इन्तेज़ार करने वालों को इमाम (अ.स.) की सही पहचान हो जाये तो फिर वह उसी वक़्त से ख़ुद को इमाम (अ.स.) के मोर्चे पर देखेगा और एहसास करेगा कि वह इमाम (अ.स.) और उनके ख़ेमे के नज़दीक़ है। अतः अपने इमाम के मोर्चे को मज़बूत बनाने में पल भर के लिए भी लापरवाही नहीं करेगा।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) ने फरमाया :

مَنْ مَاتَ وَ ہُوَ عَارِفٌ لِاِمَامِہِ لَمْ َیضُرُّہُ، تَقَدَّمَ ہَذَا الاٴمْرِ اٴوْ تَاٴخَّرَ، وَ مَنْ مَاتَ وَ ہُوَ عَارِفٌ لِاِمَامِہِ کَانَ کَمَنْ ہُوَ مَعَ القَائِمِ فِی فُسْطَاطِہِ “

जो इंसान इस हालत में मरे कि अपने ज़माने के इमाम को पहचानता हो तो ज़हूर में जल्दी या देर से होन से उसे कोई नुक्सान नहीं पहुँचाता , और जो इंसान इस हाल में मरे कि अपने ज़माने के इमाम को पहचानता हो तो वह उस इंसान की तरह है जो इमाम के ख़ेमे में और इमाम के साथ हो।

उल्लेखनीय है कि यह शनाख़्त और पहचान इतनी महत्वपूर्ण है कि मासूम इमामों (अ.स.) की हदीसों में बयान हुई है और इसको हासिल करने के लिए ख़ुदा वन्दे आलम से मदद माँगनी चाहिए।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने फरमाया :

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की लंबी ग़ैबत के ज़माने में बातिल ख्याल के लोग अपने दीन और अक़ीदे में शक व शुब्हे में पड़ जायेंगे। इमाम (अ.स.) के खास शागिर्द जनाबे ज़ुरारा ने इमाम (अ.स.) से पूछा कि मौला अगर मैं उस ज़माने तक रहूँ तो क्या काम करूँ ?

हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने फरमाया : इस दुआ को पढ़ना।

अल्लाहुम्म अर्रिफनी नफसक फइनलम तोअर्रिफनी नफसक लमआरिफ नबियक अल्लाहुम्मा अर्रिफनी रसूलक फइनलम तोअर्रिफनी रसूलक लमआरिफ हुज्जतक अल्लाहुम्म अर्रिफनी हुज्जतक फइन्नक लन तोअर्रिफनी हुज्जतक ज़ललतो अन दीनी..

. ”اَللّٰہُمَّ عَرِّفْنِی نَفْسَکَ فَإنَّکَ إنْ لَمْ تُعَرِّفْنِی نَفْسَکَ لَمْ اٴعْرِفْ نَبِیَّکَ، اَللّٰہُمَّ عَرِّفْنِی رَسُولَکَ فَإنَّکَ إنْ لَمْ تُعَرِّفْنِی رَسُولَکَ لَمْ اٴعْرِفْ حُجَّتَکَ، اَللّٰہُمَّ عَرِّفْنِی حُجَّتَکَ فَإنَّکَ إنْ لَمْ تُعَرِّفْنِی حُجَّتَکَ ضَلَلْتُ عَنْ دِیْنِی “

ऐ अल्लाह ! तू मुझे अपनी ज़ात की पहचान करा दे क्योंकि अगर तूने मुझे अपनी ज़ात की पहचान न कराई तो मैं तेरे नबी को नहीं पहचान सकता। ऐ अल्लाह : तू मुझे अपने रसूल की पहचान करा दे क्योंकि अगर तूने अपने रसूल की पहचान न कराई तो मैं तेरी हुज्जत को नहीं पहचान सकूंगा। ऐ अल्लाह ! तू मुझे अपनी हुज्जत की पहचान करा दे क्योंकि अगर तूने मुझे अपनी हुज्जत की पहचान न कराई तो मैं अपने दीन से गुमराह हो जाऊँगा।

प्रियः पाठकों ! इस दुआ में इस संसार के निज़ाम व व्यवस्था में इमाम (अ.स.) की महानता व महत्ता की पहचान है...। इमाम ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से हुज्जत और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का सच्चा जांनशीन और तमाम लोगों का हादी व इमाम होता है और उसकी इताअत (आज्ञा पालन) सब पर वाजिब है , क्यों कि उसकी इताअत ख़ुदा वन्दे आलम की इताअत है।

इमाम की शनाख़्त का दूसरा पहलू , इमाम (अ.स.) की सिफ़तों और उनकी सीरत की पहचान है।। शनाख़्त का यह पहलू इन्तेज़ार करने वाले के व्यवहार को बहुत ज़्यादा प्रभावी करता है। यह बात स्पष्ट है कि इंसान को इमाम (अ.स.) की जितनी ज़्यादा पहचान होगी , उसकी ज़िन्दगी में उसके उतने ही ज़्यादा असर पैदा होंगें।

इमाम (अ.) को नमून ए अमल व आदर्श बनाना

जब इमाम (अ.स.) की सही पहचान हो जायेगी और उनके खुबसूरत जलवे हमारी नज़रों के सामने होंगे तो उस कमाल ज़ाहिर करने वाली उस ज़ात को नमूना व आदर्श बनाने की बात आयेगी।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) फरमाते हैं कि :

"खुश नसीब है वह इंसान जो मेरी नस्ल के क़ाइम को इस हाल में देखे कि उस के क़ियाम (आन्दोलन) से पहले ख़ुद उसका और उस से पहले इमामों का अनुसरण करे और उनके दुशमनों से दूरी व नफ़रत का ऐलान करे , तो ऐसे लोग मेरे दोस्त और मेरे साथी हैं और यही लोग मेरे नज़दीक मेरी उम्मत के सब से महान इंसान हैं..।.

वास्तव में जो इंसान तक़वे , इबादत , सादगी , सखावत , सब्र और तमाम अखलाक़ी फज़ाइल में अपने इमाम का अनुसरण करे , उसका का रुतबा अपने इमाम के नज़दीक कितना ज़्यादा होगा और वह उनके पास पहुँचने से कितना गौरान्वित व सर बुलन्द होगा!।

क्या इस के अलावा और कुछ है कि जो इंसान दुनिया के सब से ख़ूबसूरत मंज़र को देखने का मुन्तज़िर हो , वह ख़ुद को अच्छाईयों से सुसज्जित करे और बुराईयों व बद अखलाक़ियों से दूर रहे और इन्तेज़ार के ज़माने में अपनी फ़िक्र व क्रिया कलापों की हिफ़ाज़त करता रहे , वरना आहिस्ता आहिस्ता बुराइयों के जाल में फँस जायेगा और उसके व इमाम के बीच फासला ज़्यादा होता जायेगा। ये एक ऐसी हक़ीक़त है जो ख़तरों से परिचित करने वाले इमाम (अ.स.) की हदीस में में बयान हुई है। यह हदीस निम्न लिखित है।

”فَمَا یَحْبِسُنَا عَنْہُمْ إلاَّ مَا یَتَّصِلُ بِنَا مِمَّا نُکْرِہُہُ وَ لاٰ نُوٴثِرُہُ مِنْہُم “

कोई भी चीज़ हमें हमारे शिओं से जुदा नहीं करती , मगर उनके वह बुरे काम जो हमारे पास पहुँचते हैं। न हम उन कामो को पसन्द करते हैं और न शिओं से उनको करने की उम्मीद रखते हैं।

इन्तेज़ार करने वालों की आखिरी तमन्ना यह है कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की वह विश्वव्यापी हुकूमत जो न्याय व समानता पर आधारित होगी , उसमें उनका भी कुछ हिस्सा हो और अल्लाह की उस आखरी हुज्जत की मदद करने का गौरव उन्हें भी प्राप्त हो। लेकिन यह महान सफलता व गौरव ख़ुद को बनाने संवारने और उच्च सदव्यवहार से सुसज्जित हुए बग़ैर संभव नहीं है।

हज़रत इमाम सादिक (अ.स.) फरमाते हैं कि

” مَنْ سَرَّہُ اٴنْ یَکُوْنَ مِنْ اٴصْحَابِ الْقَائِمِ فَلْیَنْتَظِرْ وَ لِیَعْمَلْ بِالْوَرَعِ وَ مَحَاسِنِ الاٴخْلاَقِ وَ ہُوَ مُنْتَظِر “

जो इंसान हज़रत क़ाइम (अ.स.) के मददगारों में शामिल होना चाहता हो , उसे तक़वे , पर्हेज़गारी और अच्छे अखलाक़ से सुसज्जित हो कर इमाम के ज़हूर का इन्तेज़ार करना चाहिए।

यह बात स्पष्ट है कि इस तमन्ना को पूरा करने के लिए ख़ुद हज़रत इमाम महदी (अ.स.) से अच्छा कोई नमूना व आदर्श नहीं मिल सकता क्योंकि वह सभी अच्छाईयों , नेकियों और खुबसूरतियों का आइना हैं।

इमाम (अ.स.) को याद रखना

जो चीज़ हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की पहचान और उनका अनुसरण व पैरवी करने में मददगार साबित होगी और इन्तेज़ार की राह में सब्र व दृढ़ता प्रदान करेगी , वह , रुह व आत्मा के वैद्य व चिकित्सक (हज़रत इमाम महदी अ. स.) से हमेशा संबंध बनाये रखना है।

वास्तव में जब वह मेहरबान इमाम (अ.स.) हर वक़्त और हर जगह शिओं के हालात पर नज़र रखता और किसी भी भी वक़्त उनको नहीं भूलता तो क्या यह उचित है कि उसके चाहने वाले दुनिया के कामों में उलझ कर उस महबूब इमाम (अ.स.) को भूल जायें और उन से बेखबर हो जायें ?! नही दोस्ती व मुहब्बत का तक़ाज़ा यह है कि उन्हें हर काम में अपने और अन्य लोगों पर वरीयता दी जाये। जिस वक़्त दुआ के लिए मुसल्ले पर बैठें तो पहले उनके लिए दुआ करें , उनकी सलामती और ज़हूर की दुआ करने के लिए अपने हाथों को ऊपर उठायें। इसके लिए ख़ुद उन्हेंने फरमाया है :

"मेरे ज़हूर के लिए बहुत दुआ किया करो कि उसमें ख़ुद तुम्हारी भलाई है।"

अतः हमारी ज़बान पर हमेशा यह निम्न लिखित दुआ रहनी चाहिए।

अल्लाहुम्मा कुन लिवलिये-कल हुज्जत इब्निल हसन सलवातुका अलैहि व अला आबाएहि फ़ी हाज़ेहिस्साअत व फ़ी कुल्ले साअत वलियंव व हाफ़िज़ंव व काइदंव व नासिरंव व दलीलंव व ऐना हत्ता तुस्कि-नहु अर्ज़का तौअंव व तुमत्तेअहु फ़ीहा तवीला..

. ”اَللَّہُمَّ کُنْ لِوَلِیِّکَ الْحُجَّةِ بْنِ الحَسَنِ صَلَوٰاتُکَ عَلَیْہِ وَ عَلٰی آبَائِہِ فِی ہَذِہِ السَّاعَةِ وَ فِی کُلِّ سَاعَةٍ وَلِیاً وَ حَافِظاً وَ قَائِداً وَ نَاصِراً وَ دَلِیلاً وَ عَیْناً حَتّٰی تُسْکِنَہُ اٴرْضَکَ طَوْعاً وَ تُمَتِّعَہُ فِیْہَا طَوِیلاً “ ۔

ऐ अल्लाह ! अपने वली , हुज्जत इब्नुल हसन के लिए (तेरा दरुद व सलाम हो उन पर और उन के बाप दादाओं पर , इस वक़्त और हर वक़्त) वली व मुहाफ़िज़ व रहबर व मददगार व दलील और देख रेख करने वाला बन जा , ताकि उनको अपनी ज़मीन पर अपनी मर्ज़ी से बसाये और उनको ज़मीन पर लंबी समय तक लाभान्वित रख।

सच्चा इन्तेज़ार करने वाला , सदक़ा देते वक़्त पहले अपने इमाम (अ.स.) को नज़र में रखता है अर्थात पहले उनका सदक़ा निकालता है और बाद में अपना। वह हर तरह से उनके दामन से चिपका रहता है और हर वक़्त उनके मुबारक ज़हूर का अभिलाषी रहता है और उनके बेमिसाल व नूरानी चेहरे को देखने के लिए रोता बिलकता रहता है।

अज़ीज़ुं अलैया अन अरल खल्क वला तुरा ”عَزِیزٌ عَلَیَّ اٴنْ اٴرَی الخَلْقَ وَ لٰا تُریٰ “

वास्तव में मेरे लिए सख्त है कि मैं सब को तो देखूँ लेकिन आपकी ज़ियारत न कर सकूँ।

इन्तेज़ार के रास्ते पर चलने वाला आशिक हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के नाम से संबंधित परोग्रामों में सम्मिलित होता है ताकि अपने दिल में उनकी मुहब्बत की जड़ों को और अधिक मज़बूत करे। वह हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के नाम से संबंधित पवित्र स्थानों पर ज़ियारत के लिए जाता है - जैसे मस्जिदे सहला , मस्जिदे जमकरान , और सामर्रा का वह तहख़ाना जिसमें से आप ग़ायब हुए थे।

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर का इन्तेज़ार करने वालों की ज़िन्दगी में उनकी याद का बेहतरीन जलवा यह है कि वह हर दिन अपने इमाम (अ.स.) से वादा करें और उन्हें वफ़ादारी का वचन दे और अपने उस वचन पर बाक़ी रहने का ऐलान करें।

जैसा कि हम दुआ ए अहद के इन वाक्यों में पढते हैं कि :

अल्लाहुम्मा इन्नी उजद्दिदु लहु फ़ी सबीहते यौमी हाज़ा व मा इशतु मिन अय्यामी अहदंव व अकदंव व बै-अतन लहु फ़ी उनुक़ी ला अहूलु अन्हु वला अज़ूलु अ-ब-दा अल्लाहुम्मा इजअलनी मिन अंसारिहि व आवानिहि व अद्दाब्बीना अनहु व अल-मुसारि-ईना अलैहि फ़ी क़ज़ा ए हवाइजि-हि व अल-मुमतसिलीना लि-अवामिरिही व अल-मुहाम्मीना अन्हु व अस्साबिक़ीना इला इरा-दतिहि व अल-मुस-तश-हदीना बैना यदैहि।

” اللّٰہُمَّ إِنِّي اٴُجَدِّدُ لَہُ فِي صَبِیحَةِ یَوْمِي ہَذَا وَ مَا عِشْتُ مِنْ اٴَیَّامِي عَہْداً وَ عَقْدًا وَ بَیْعَةً لَہُ فِي عُنُقِي لاَ اٴَحُولُ عَنْہ وَ لاَ اٴَزُولُ اٴَبَداً، اللّٰہُمَّ اجْعَلْنِي مِنْ اٴَنْصَارِہِ وَ اٴَعْوَانِہِ ، وَالذَّابِّینَ عَنْہُ وَ الْمُسَارِعِینَ إِلَیْہِ فِي قَضَاءِ حَوَائِجِہِ ، وَ الْمُمْتَثِلِینَ لاٴَوَامِرِہِ ، وَ الْمُحَامِینَ عَنْہُ ، وَ السَّابِقِینَ إِلیٰ إِرَادَتِہِ ، وَ الْمُسْتَشْہَدِینَ بَیْنَ یَدَیْہِ “

ऐ अल्लाह ! मैं आज की सुब्ह और जब तक ज़िन्दा रहूँ , हर सुब्ह उन की बैअत का अहद (प्रतिज्ञा) करता हूँ और उनकी यह बैअत मेरी गर्दन पर रहेगी न मैं इससे हट सकता हूँ और न कभी अलग हो सकता हूँ। ऐ अल्लाह ! मुझे उनके मददगारों , उनका बचाव करने वालों , उनकी ज़रूरतों को पूरा करने में तेज़ी से काम करने वालों , उनके हुक्म की इताअत (आज्ञा पलन) करने वालों , उनकी तरफ़ से बचाव करने वालों , उनके मक़सदों की तरफ़ आगे बढ़ने वालों और उनके सामने शहीद होने वालों में से बना दे।

अगर कोई इंसान हमेशा इस अहद (प्रतिज्ञा) को पढ़ता रहे और दिल की गहराई से इसमें वर्णित शब्दों व वाक्यों का पाबन्द रहे तो कभी भी अपने इमाम की तरफ़ से लापरवाही नही करेगा। बल्कि वह हमेशा अपने इमाम की तमन्नाओं को पूरा करने और उनके ज़हूर के लिए रास्ता हमवार करने की कोशिश करेगा। सच तो यह है कि ऐसा ही इंसान उस हक़दार इमाम (अ.स.) के ज़हूर के वक़्त उनके मोर्चे पर हाज़िर होने की योग्यता रखता है।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने फरमाया :

जो इंसान चालीस दिन तक सुब्ह के वक़्त अपने अल्लाह से यह अहद (प्रतिज्ञा) करे , ख़ुदा उसे हमारे क़ाइम (अ.स.) के मददगारों में शामिल कर देगा और अगर हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर से पहले उसे मौत आ गई तो ख़ुदा वन्दे आलम उसे क़ब्र से उठायेगा ताकि वह हज़रत क़ाइम (अ.स.) की मदद करे।

हार्दिक एकता

इन्तेज़ार करने वाले गिरोह के हर इंसान को चाहिए कि वह अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के अलावा अपने इमाम हज़रत महदी (अ.स.) के उद्देश्यों व मक़सदों के बारे में एक ख़ास योजना तैयार करे। इसस से भी अधिक स्पष्ट रूप में इस तरह कहा जा सकता है कि इन्तेज़ार करने वालों के लिए ज़रुरी है कि वह उस रास्ते पर चलने की कोशिश करें जिस से उन का इमाम राज़ी व खुश हो।

अतः इन्तेज़ार करने वालों के लिए ज़रुरी है कि वह अपने इमाम से किये हुए बादों पर बाक़ी रहें ताकि इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर के रास्ते हमवार हो जायें।

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) अपने एक पैग़ाम में ऐसे लोगों के बारे में यह निम्न लिखित ख़ुश ख़बरी सुनाते हैं :

अगर हमारे शिया (ख़ुदा वन्दे आलम उन्हें अपनी आज्ञ पालन की तौफ़ीक प्रदान करे) अपने किये हुए वादों पर एक जुट हो जायें तो हमारी ज़ियारत की नेमत में देर नहीं होगी और पूरी व सच्ची पहचान व शनाख़्त के साथ जल्द ही हमारी मुलाक़ात हो जायेगी...

यह वादे वही है जिनका वर्णन अल्लाह की किताब और अल्लाह के नबियों व वलियों की हदीसों में हुआ है। हम यहाँ पर उनमें से कुछ निम्न लिखित महत्वपूर्ण चीज़ों की तरफ़ इशारा कर रहे हैं।

1. जहाँ तक हो सके मासूम इमामों (अ.स.) की पैरवी करने की कोशिश करना और इमामों (अ.स.) के चाहने वालों से दोस्ती और उन के दुशमनों से दूरी व नफ़रत।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से रिवायत करते हैं कि उन्होंने फरमाया :

खुश नसीब है वह इंसान जो मेरे क़ाइम को इस हाल में देखे कि उन के क़ियाम (आन्दोलन) से पहले ख़ुद उनकी और उन से पहले इमामों की पैरवी करे और उनके दुशमनों से दूरी व नफ़रत का ऐलान करे , ऐसे इंसान मेरे दोस्त और मेरे साथी हैं और क़ियामत के दिन मेरे नज़दीक़ मेरी उम्मत के सब से महान इंसान होंगे...

2. इन्तेज़ार करने वालों को दीन में होने वाले परिवर्तनों , बिदअतों और समाज में फैलती हुई अश्लीलताओं व बुराईयों से लापरवा नहीं रहना चाहिए , बल्कि अच्छी सुन्नतों और अख़लाक़ी मर्यादाओं को ख़त्म होता देख उन्हें दोबारा ज़िन्दा करने की कोशिश करनी चाहिए। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से रिवायत है कि उन्होंने फ़रमाया : इस उम्मत के आखरी ज़माने में एक गिरोह ऐसा आयेगा कि उसका सवाब सर्व प्रथम इस्लाम क़बूल करने वालों की बराबर होगा और वह अम्र बिल मअरुफ और नही अनिल मुन्कर (अच्छे काम करने की सिफ़ारिश करना और बुरे कामों से रोकना) करेंगे और बुराईयाँ फैलाने वालों से जंग करेंगे...

3. ज़हूर का इन्तेज़ार करने वालों की यह ज़िम्मेदारी है कि दूसरों के साथ सहयोग व मदद को अपनी योजनाओं का आधार बनायें और इन्तेज़ार करने वाले समाज के लोगों को चाहिए कि संकुचित दृष्टिकोण और स्वार्थता को छोड़ कर समाज के ग़रीब व निर्धन लोगों पर ध्यान दें और उनकी ओर से लापरवाही न करें।

शिओं के एक गिरोह ने हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) से कुछ नसीहतें करने की अपील की तो इमाम (अ.स.) ने फरमाया :

तुम में जो लोग मालदार हैं उन्हें चाहिए कि ग़रीबों की मदद करें और उनके साथ प्यार व मोहब्बत भरा व्यवहार करें और तुम सबको चाहिए कि आपस में एक दूसरे के बारे में अपने मन में अच्छे विचार रखो...

उल्लेखनीय बात यह है कि इस आपसी सहयोग व मदद का दाएरा अपने इलाक़े से मख़सूस नहीं है बल्कि इन्तेज़ार करने वालों की अच्छाईयाँ और नेकियाँ दूर दराज़ के इलाक़ों में भी पहुँचती है , क्यों कि इन्तेज़ार के परचम के नीचे किसी भी तरह की जुदाई और अपने पराये का एहसास नहीं होता।

4. इन्तेज़ार करने वाले समाज के लिए ज़रुरी है कि समाज में महदवी रंग व बू पैदा करें। हर जगह उनके नाम और उनकी याद का परचम लहरायें और इमाम (अ.स.) के कलाम व किरदार को अपनी बात चीत और व्यवहार के ज़रिये सार्वजनिक करें। इस काम के लिए अपनी पूरी ताक़त के साथ कोशिश करनी चाहिए , जो इस काम को करेंगे , उन पर अइम्मा ए मासूमीन (अ.स.) का ख़ास करम होगा।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) के सहाबी , अब्दुल हमीद वास्ती , इमाम (अ.स.) की खिदमत में अर्ज़ करते हैं :

हम ने अम्र फरज (ज़हूर) के इन्तेज़ार में अपनी पूरी ज़िन्दगी वक्फ़ कर दी है और यह काम कुछ लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया है।

इमाम (अ.स.) ने जवाब में फरमाया :

ऐ अब्दुल हमीद ! क्या तुम यह सोचते हो कि जिस इंसान ने ख़ुद को ख़ुदा वन्दे आलम के लिए वक्फ़ कर दिया है , ख़ुदा वन्दे आलम ने उस बन्दे के लिए मुशकिलों से निकलने का कोई रास्ता नहीं बनाया है ?! ख़ुदा की क़सम उसने ऐसे लोगों की मुश्किलों का हल बनाया है , ख़ुदा वन्दे आलम रहमत करे उस इंसान पर जो हमारे अम्र (विलायत) को ज़िन्दा रखे...

आखरी बात यह कि इन्तेज़ार करने वाले समाज को यह कोशिश करनी चाहिए कि वह समस्त सामाजिक पहलुओं में दूसरे समाजों के लिए नमूना बने और इंसानियत को निजात व मुक्ति देने वाले के ज़हूर के लिए तमाम ज़रूरी रास्तों को हमवार करे।

इन्तेज़ार के प्रभाव

कुछ लोगों का यह विचार है कि विश्व स्तर पर सुधार करने वाले (इमाम (अ.स.) का इन्तेज़ार , इंसानों को निष्क्रिय और लापरवाह बना देता है। जो लोग इस इन्तेज़ार में रहेंगे कि एक विश्वस्तरीय समाज सुधारक आयेगा और ज़ुल्म , अत्याचार व बुराईयों को ख़त्म कर देगा , तो वह बुराइयों के सामने हाथ पर हाथ रखे बैठे रहेंगे और ख़ुद कोई क़दम नहीं उठायें बल्कि खामोश बैठे ज़ुल्म व सितम का तमाशा देखते रहेंगे।

यह दृष्टिकोण बहुत सादा व निराधार है और इसमें गहराई से काम नहीं लिया गया है। क्योंकि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के इन्तेज़ार , उसकी विशेषताओं , उसके पहलुओं और इन्तेज़ार करने वाले की विशेषताओं के बारे में जिन बातों का वर्णन हुआ है उनसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) का इन्तेज़ार इंसान को निष्क्रिय और लापरवाह नहीं बनाता है , बल्कि उनकी गतिविधियों को तेज़ करने व उन्हें परिपक्व बनाने में सहायक है।

इन्तेज़ार , इन्तेज़ार करने वालों में एक मुबारक व उद्देश्यपूर्ण जज़बा पैदा करता है। इन्तेज़ार करने वाला , इन्तेज़ार की हक़ीक़त से जितना ज़्यादा परिचित होता जाता है , उसकी रफ़्तार मक़सद की तरफ़ उतनी ही बढ़ती जाती है। इन्तेज़ार के अन्तर्गत , इंसान स्वार्थता से आज़ाद हो कर ख़ुद को इस्लामी समाज का एक हिस्सा समझता है , अतः फिर वह समाज सुधार के लिए जी जान से कोशिश करता है। जब कोई समाज ऐसे सोगों से सुसज्जित हो जाता है तो उस समाज में अच्छाईयों व मर्यादाओं का राज हो जाता और समाज के सभी लोग नेकियों की तरफ़ कदम बढ़ाने लगते हैं। जिस समाज में सुधार , उम्मीद , ख़ुशी और आपसी सहयोग , सहानुभूति व हमदर्दी का महौल पाया जाता है उसमें घार्मिक विश्वास फलते फूलते हैं और लोगों में महदवियत का नज़रीया पैदा होता है। इन्तेज़ार की बरकत से इन्तेज़ार करने वाले , बुराईयों के दलदल में नहीं फँसते बल्कि अपने दीन और अक़ीदों की हिफ़ाज़त करते हैं। वह इन्तेज़ार के ज़माने में अपने सामने आने वाली मुश्किलों में सब्र से काम लेते हैं और ख़ुदा वन्दे आलम का वादा पूरा होने की उम्मीद में हर मुसीबत और परेशानी को बर्दाश्त कर लेते हैं। वह किसी भी वक़्त सुस्ती और मायूसी का शिकार नहीं होते।

आप ही बताईये कि ऐसा कौन सा धर्म व मज़हब है जिसने अपने अनुयायियों के सामने इतना साफ़ व रौशन रास्ता पेश किया है ? ! ऐसा रास्ता जो अल्लाह की ललक में तय किया जाता हो और उस के नतीजे में हद से ज़्यादा सवाब व ईनाम मिलता हो !।

इन्तेज़ार करने वालों का सवाब

खुश नसीब है वह इंसान जो अच्छाईयों व नेकियों के इन्तेज़ार में अपनी आँखे बिछाये हुए हैं। वास्तव उन लोगों के लिए कितना ज़्यादा सवाब है जो हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की विश्वव्यापी हुकूमत का इन्तेज़ार कर रहे हैं। और कितना बड़ा रुत्बा है उन लोगों का जो क़ाइम आले मुहम्मद (अ.स.) के सच्चे मुन्तज़िर हैं।

हम उचित समझते हैं कि इन्तेज़ार नामक इस अध्याय के अन्त में हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर का इन्तेज़ार करने वालों की उच्च श्रेष्ठताओं व मान सम्मान का वर्णन करें और इस संदर्भ में मासूम इमामों (अ.स.) की हदीसों को आप लोगों के सामने पेश करें।

हज़रत इमाम सादिक (अ.स.) फरमाते हैं :

"खुश नसीब हैं क़ाइमे आले मुहम्मद के वह शिआ जो ग़ैबत के ज़माने में उनके ज़हूर का इन्तेज़ार करें और उनके ज़हूर के ज़माने में उनकी आज्ञा का पालन करते हुए उनकी पैरवी करें। यही लोग ख़ुदा वन्दे आलम के महबूब (प्रियः) बंदे हैं और उनके लिए कोई दुखः दर्द न होगा...।"

वास्तव में इस से बढ़ कर और क्या गर्व होगा कि उनके सीने पर ख़ुदा वन्दे आलम की दोस्ती का तम्ग़ा लगा हुआ है।वह किसी दुखः दर्द में कैसे घिर सकते हैं , जबकि कि उनकी ज़िन्दगी और मौत दोनों की क़ीमत बहुत ज़्यादा है।

हज़रत इमाम सज्जाद (अ.स.) फरमाते हैं कि

"जो इंसान हमारे क़ाइम (अ.स.) की ग़ैबत के ज़माने में हमारी विलायत (मुब्बत) पर बाक़ी रहेगा , ख़ुदा वन्दे आलम उसे शुहदा ए बद्र व ओहद के हज़ार शहीदों का सवाब प्रदान करेगा..."

जी हाँ ! ग़ैबत के ज़माने में अपने इमामे ज़माना (अ.स.) की विलायत पर और अपने इमाम से किये हुए वादों पर बाक़ी रहने वाले लोग , ऐसे फौजी हैं जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के साथ मिल कर अल्लाह के दुशमनों से जंग की हो और जंग के मैदान में अपने खून में नहाये हों।

वह मुन्तज़िर जो रसूल (स.) के इस महान बेटे , इमाम ज़माना (अ.स.) के इन्तेज़ार में अपनी जान हथेली पर लिए खड़े हुए हैं , वह अभी से जंग के मैदान में अपने इमाम के साथ मौजूद हैं।

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) फरमाते हैं :

अगर तुम शिओं में से कोई इंसान हज़रत इमाम महदी अ. स. के ज़हूर के इन्तेज़ार में मर जाये तो ऐसा है जैसे वह अपने इमाम (अ.स.) के ख़ेमे में है।---- यह कह कर इमाम (अ.स.) थोड़ी देर के लिए ख़ामोश रहे फिर फरमाया : बल्कि उस इंसान की तरह है जिसने इमाम (अ.स.) के साथ मिल कर जंग में तलवार चलाई हो। इस के बाद फरमाया : नहीं , ख़ुदा की क़सम वह उस इंसान की मिस्ल है जिसने रसूले इस्लाम (स.) के सामने शहादत पाई हो...

यह वह लोग हैं जिन को पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने सदियों पहले अपना भाई और दोस्त कहा है और उन से अपनी दिली मुहब्बत और दोस्ती का ऐलान किया है।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स.) ने फरमाया :

एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने अपने असहाब के सामने अल्लाह से दुआ की : पालने वाले ! मुझे मेरे भाइयों को दिखला दे। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने इस वाक्य को दो बार कहा। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के असहाब ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल ! क्या हम आप के भाई नहीं हैं ?!

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया कि तुम लोग मेरे असहाब हो और मेरे भाई वह लोग हैं जो आख़िरी ज़माने में मुझ पर ईमान लायेंगे , जबकि उन्होंने मुझे नहीं देखा होगा। ख़ुदा वन्दे आलम ने मुझे उनके नाम उनके बापों के नाम के साथ बतायें हैं। उनमें से हर एक का अपने दीन पर अडिग व साबित क़दम रहना अंधेरी रात में गोन नामक पेड़ से कांटा तोड़ने और दहकती हुई आग को हाथ में लेने से भी ज़्यादा सख्त है। वह हिदायत की मशाल हैं ख़ुदा वन्दे आलम उनको खतरनाक बुराईयों से निजात व छुटकारा देगा...

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने यह भी फरमाया :

खुश नसीब हैं वह इंसान जो हम अलेबैत के क़ाइम से इस हाल में मिले , कि उनके क़ियाम से पहले उनकी पैरवी करते हों , उन के दोस्तों को दोस्त रखता हों और उनके दुशमनों से दूर रहता हों व नफ़रत करता हों , वह उनसे पहले इमामों को भी दोस्त रखता हों , उनके दिलों में मेरी दोस्ती , मवद्दत व मुहब्बत हो तो वह मेरे नज़दीक मेरी उम्मत के सब से आदरनीय इंसान हैं...।

अतः जो इंसान पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के नज़दीक़ इतने प्रियः व महान हैं , वही ख़ुदा वन्दे आलम के संबोधन को सुनेगें , ऐसी आवाज़ को जो इशक व मुहब्बत में डूबी होगी और जो ख़ुदा वन्दे आलम से बहुत अधिक नज़दीक होने का इशारा करती होगी।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स.) ने फरमाया :

एक ज़माना ऐसा आयेगा जिसमें मोमिनों का इमाम गायब होगा , अतः खुश नसीब है वह इंसान जो उस ज़माने में हमारी विलायत पर साबित क़दम रहे। बेशक उनका कम से कम ईनाम यह होगा कि ख़ुदा वन्दे आलम उनसे संबोधन करेगा कि ऐ मेरे बन्दो तुम मेरे राज़ और इमाम गायब पर ईमान लाये हो और तुम ने उसकी तस्दीक की है , अतः मेरी तरफ़ से बेहतरीन ईमान की ख़ुश ख़बरी है , तुम हक़ीक़त में मेरे बन्दे हो , मैं तुम्हारे आमाल को क़बूल करता हूँ और तुम्हारे गुनाहों को माफ़ करता हूँ , मैं तुम्हारी बरकत की वजह से अपने बन्दों पर बारिश नाज़िल करता हूँ और उनसे बलाओं को दूर करता हूँ , अगर तुम उन लोगों के बीच न होते तो मैं गुनहगार लोगों पर ज़रुर अज़ाब नाज़िल कर देता...।

लेकिन इन इन्तेज़ार करने वालों को किस चीज़ के ज़रिये आराम व सकून मिलेगा है , उनके इन्तेज़ार की घड़ियां कब खत्म होगी , किस चीज़ से उनकी आँखों को ठंडक मिलेगी , उनके बेकरार दिलों को कब चैन व सकून मिलेगा , क्या जो लोग उम्र भर इन्तेज़ार के रास्ते पर चले है और जो हर तरह की मुश्किलों को बर्दाश्त करते हुए इसी रास्ते पर इस लिए चलते हैं ताकि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के हरे भरे चमन में क़दम रखें और अपने प्रियः मौला के साथ बैठें। वाकिअन इस से बेहतरीन और क्या अंजाम हो सकता है और इस से बेहतर और कौन सा मौक़ा हो सकता है।

हज़रत इमाम मूसा क़ाज़िम (अ.स.) ने फरमाया :

खुश नसीब हैं हमारे वह शिया जो हमारे क़ाइम की ग़ैबत के ज़माने में हमारी दोस्ती की रस्सी को मज़बूती से थामे रखें और हमारे दुशमनों से दूर रहें। वह हम से हैं और हम उनसे हैं। वह हमारी इमामत पर राज़ी हैं और हमारी इमामत को क़बूल करते हैं , अतः हम भी उनके शिआ होने से ख़ुश व राज़ी हैं , वह बहुत ख़ुश नसीब हैं! ख़ुदा की क़सम यह इंसान क़ियामत के दिन हमारे साथ हमारे दर्जे में होंगे.