सृष्टि का मोती

सृष्टि का मोती 0%

सृष्टि का मोती : मौलाना सैय्यद क़मर ग़ाज़ी जैदी
कैटिगिरी: इमाम मेहदी (अ)

सृष्टि का मोती

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

: मौलाना सैय्यद क़मर ग़ाज़ी जैदी
कैटिगिरी: विज़िट्स: 17129
डाउनलोड: 4106

कमेन्टस:

सृष्टि का मोती
खोज पुस्तको में
  • प्रारंभ
  • पिछला
  • 14 /
  • अगला
  • अंत
  •  
  • डाउनलोड HTML
  • डाउनलोड Word
  • डाउनलोड PDF
  • विज़िट्स: 17129 / डाउनलोड: 4106
आकार आकार आकार
सृष्टि का मोती

सृष्टि का मोती

हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

पाँचवां अध्याय

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत

जब अँधेरों के बादल छट जायेंगे तो संसार को प्रकाशित करने वाले सूरज का उदय होगा और इस तरह इन्तेज़ार करने वाली आँखों को रौशनी मिलेगी।

जी हाँ ! ज़ुल्म , सितम , अत्याचार और बुराइयों से पूरा मुक़ाबेला करने के बाद न्याय व समानता पर आधारित हुकूमत स्थापित करने की बारी आयेगी। उस समय न्याय का राज होगा , ताकि हर चीज़ और हर इंसान को उसकी निश्चित जगह मिल जाये। हर चीज़ को उसका हक़ दिया जायेगा। अतः यह संसार और उस में रहने वाले लोग एक ऐसी हुकूमत को देखेंगे जो पूर्ण रूप से हक़ व अदालत और न्याय व समानता पर आधारित होगी। उस हुकूमत में किसी पर ज़र्रा बराबर भी ज़ुल्म व सितम नहीं होगा। वह हुकूमत ख़ुदा वन्दे आलम की जमाल व जलाल की सिफ़ातों का मज़हर (प्रदर्शन करने वाली) होगी और उस हुकूमत के अन्तर्गत इंसान अपनी भूली हुई समस्त इच्छाओं को प्राप्त कर लेगा।

प्रियः पाठकों ! हम इस अध्याय में चार विषयों पर अपने विचार प्रकट करेंगे।

1.हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की विश्वव्यापी हुकूमत के उद्देश्य।

2.हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत का संविधान।

3.न्याय व समानता पर आधारित उस हुकूमत के नतीजे।

4.उस हुकूमत की विशेषताएं।

पहला हिस्सा

उद्देश्य

चूँकि इस संसार की रचना का उद्देश्य , इंसान को कमाल तक पहुँचाना और सब कमालों के मालिक ख़ुदा वन्दे आलम से ज़्यादा से ज़्यादा क़रीब करना है , इस लिए इस महान इच्छा को प्राप्त करने के लिए उसके ज़रूरी साधनों का उपलब्ध कराना भी बहुत आवश्यक है। अतः हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की उस विश्वव्यापी हुकूमत का मक़सद इंसान को अल्लाह के क़रीब पहुँचने के साधन उपलब्ध कराना और इस रास्ते में आने वाली रुकावटों को दूर करना है।

क्योंकि इंसान शरीर व आत्मा से मिल कर बना है इस लिए उसकी ज़रुरतें भी भौतिक व आध्यात्मिक दो हिस्सों में विभाजित हैं। अतः कमाल तक पहुँचने के लिए ज़रुरी है कि दोनों पहलुओं को नज़र में रख कर आगे क़दम बढ़ाया जाये। चूँकि इलाही हुकूमत की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह अदालत व न्याय पर आधारित होती है , इस लिए उसके अन्तर्गत इंसान भौतिक व आध्यात्मिक दोनों लिहाज़ से तरक्की की मंज़िलें बड़ी आसानी से तय कर सकता है।

इस आधार पर हमारे बारहवें इमाम हज़रत महदी (अ.स.) की हुकूमत भी समाज की आध्यात्मिक तरक़्क़ी और न्याय व समानता को स्थापित करने और उसे फैलाने के लिहाज़ से वर्णन योग्य है।

आध्यात्मिक तरक़्क़ी

उपरोक्त वर्णित दोनों उद्देश्यों की महत्ता व वास्तविक्ता को समझने के लिए ज़रूरी है कि हम पहले तागूत और ज़ालिम बादशाहों की हुकूमत के दौर में इंसानी ज़िन्दगी के इतिहास की थोड़ी सी छान बीन करें।

अब तक के मानवता के इतिहास में (अल्लाह की हुज्जत की हुकूमत को छोड़ कर) आध्यात्मिक्ता व आध्यात्मिक मर्यादाओं का क्या महत्व रहा है ? क्या इसके अलावा कुछ और है कि यह भटकी हुी मानवता हमेशा बुराइयों के रास्ते पर चलती रही है और अपनी इच्छाओं व शैतानी वसवसों का अनुसरण करने के कारण अपने हर गुण व अच्छाई को भुला बैठी है और उसने अपनी श्रेष्ठताओं को ख़ुद अपने ही हाथों से शहवतों व इच्छाओं के क़ब्रिस्तान में दफन कर दिया है ?! पाकीज़गी , पवित्रता , सच्चाई , आपसी सहयोग व मदद , त्याग व दान और नेकी व एहसान की जगह लोलुप्ता , कामुकता , झूट , धोके बाज़ी , स्वार्थता , विश्वासघात , ज़ुल्म , अत्याचार और ज़्यादा की हवस ने ले ली है। इन सबको अगर हम एक वाक्य में कहना चाहें तो इस तरह कह सकते हैं कि इंसानी ज़िन्दगी में आध्यात्मिक्ता दम तोड़ती जा रही है , बल्कि कुछ स्थानों पर तो बहुत से नाम मात्र के इंसानों के अन्दर आध्यात्मिक्ता के असर भी खत्म हो चुके हैं।

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत इंसान के वजूद व अस्तित्व में ऐसी ही चीज़ को ज़िन्दा करने के लिए क़दम उठायेगी और मुर्दा इंसान को एक नया जीवन प्रदान करने की कोशिश करेगी , ताकि जिस इंसानियत को फ़रिश्तों ने सजदा किया था उसे सच्ची ज़िन्दगी का मिठास चखाये और सबको यह याद दिलाये कि शुरु से ही तक़दीर यह थी कि तुम ऐसे ज़माने में ज़िन्दगी बसर करोगे और पाक़ीज़गी , पवित्रता और नेकियों के इतर की खुशबू अपनी रुह में पाओगे।

یَااٴَیُّہَا الَّذِینَ آمَنُوا اسْتَجِیبُوا لِلَّہِ وَلِلرَّسُولِ إِذَا دَعَاکُمْ لِمَا یُحْیِیکُمْ۔۔۔ >

ऐ ईमान लाने वालों ! अल्लाह और रसूल की आवाज़ पर आगे बढ़ो , जब वह तुम्हें उस काम की तरफ़ बुलायें जिसमें तुम्हारी ज़िन्दगी है।

अतः यह आध्यात्मिक जीवन जिसकी वजह से इंसान पशुओं से अलग होता है , यही इंसान का असली वजूद और महत्वपूर्ण हिस्सा है। क्यों कि आदमी को इसी ज़िन्दगी की वजह से इंसान कहा जाता है और यही ज़िन्दगी इंसान को ख़ुदा वन्दे आलम से नज़दीक करती है।

इसी वजह से हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत में इंसान का यह पहलू उजागर होगा और ज़िन्दगी के तमाम पहलुओं में इंसानी मर्यादाओं की धूम होगी मेल , जोल , प्यार , मोहब्बत , त्याग , वफ़ादारी , सच्चाी और हर उस चीज़ का बोल बाला होगा जो अच्छाी और नेकी के क्षेत्र में आती है।

जबकि इस महान और पवित्र मक़सद तक पहुँचने के लिए एक विशाल योजना की ज़रुरत है और उसके बारे में आगे चर्चा करेंगे।

न्याय का विस्तार

हर इंसानी समाज में ज़ुल्म व सितम सब से बड़ा ज़ख्म रहा है , इंसानियत हमेशा विभिन्न मसलों में अपने अधिकारों तक पहुँचने से वंचित रही है। इंसानी समाज में कभी भी में भौतिक और आध्यात्मिक नेमतें न्याय व समानता के आधार पर विभाजित नहीं हुई हैं। मालदार लोगों के साथ एक गिरोह हमेशा ही भूका रहा है। बड़े बड़े महलों के आस पास हमेशा ही कुछ लोग रास्तों और फुटपाथ पर ज़िन्दगी बसर करते रहे हैं। धन व दौलत की ताक़त ने सदैव गरीब और कमज़ोर लोगों को गुलामी की ज़न्जीर में जकड़ा है। गोरों ने कालों पर (सिर्फ काले होने के जुर्म में) ज़ुल्म व सितम किये हैं। अगर इन सब बातों को एक वाक्य में कहा जाये तो इस तरह कहा जा सकता है कि हमेशा और हर जगह ग़रीब व कमज़ोर लोगों के अधिकार , ताकतवरों और मक्कारों के द्वारा पैरों तले कुचले जाते रहे हैं। जबकि इंसान के दिल में हमेशा यह तमन्ना रही है कि एक दिन ऐसा आये कि समाज में न्याय व समानता का बोल बाला हो। अतः इंसान हमेशा से ही न्याय पर आधारित हुकूमत के इन्तेज़ार में है।

इस इन्तेज़ार की आखरी हद हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत का ज़माना है , और वह सब से बड़े आदिल और इंसाफ़ करने वाले हादी के रूप में पूरी दुनिया में न्याय व समानता स्थापित करेंगे। अतः इसी सच्चाई की ख़ुश ख़बरी बहुत सी रिवायतों में सुनाई गई है।

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) ने फरमाया :

अगर दुनिया का एक दिन भी बाक़ी रह जाये तो ख़ुदा वन्दे आलम उस दिन को इतना लंबा कर देगा कि मेरी नस्ल से एक इंसान क़ियाम करेगा और ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से वैसे ही भर देगा जैसे वह ज़ुल्म व सितम से भरी होगी , और यह बात मैं ने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से सुनी है।

इस के अलावा अनेको रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत में विश्व स्तर पर न्याय व समानता स्थापित होने और ज़ुल्म व सितम के मिटने की ख़ुश खबरी दी गई है।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि न्याय व समानता हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की सबसे उच्च विशेषता है और इसी वजह से उन्हें कुछ दुआओं में उनके इसी लक़ब से याद किया गया है।

”اَللھم وَ صل علی ولی امرک القائم المومل و العدلِ المنتظر “

ऐ अल्लाह ! दुरुद व सलाम हो तेरे वली पर जो सब इन्तेज़ार करने वालों की तमन्ना और न्याय स्थापित करने वाले है।

जी हाँ! वह न्याय व समानता को अपने इंकेलाब का आधार बनायेंगे , क्योंकि न्याय व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में वास्तविक जिन्दगी के रास्ते को हमवार करता है। न्याय के बग़ैर ज़मीन और उस पर जीवन व्यतीत करने वाले ऐसे मुर्दा और बे रुह हैं जिनको ज़िन्दा शुमार किया जाता है।

हज़रत इमाम मूसा क़ाज़िम (अ.स.) ने निम्न लिखित आयत की तफ्सीर के बारे में में फ़रमाया है कि

< اعْلَمُوا اٴَنَّ اللهَ یُحْیِ الْاٴَرْضَ بَعْدَ مَوْتِہَا ۔۔۔ >

याद रखो कि अल्लाह मुर्दा ज़मीन को ज़िन्दा करने वाला है।

मक़सद यह नहीं है कि अल्लाह ज़मीन को बारीश के द्वारा ज़िन्दा करता है , बल्कि ख़ुदा वन्दे आलम कुछ ऐसे मर्दों को तैयार करेगा जो अदालत को ज़िन्दा करेंगे , अतः समाज में न्याय व समानता के स्थापित होने से ज़मीन ज़िन्दा हो जायेगी।

ज़मीन का ज़िन्दा होना इस बात की तरफ़ इशारा है कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) का न्याय आम न्याय होगा जो हर जगह स्थापित होगा , यह कुछ ख़ास इलाकों और कुछ ख़ास लोगों से संबंधित नही होगा।।

दूसरा हिस्सा

हुकूमत की योजनाएं

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की न्याय व समानता पर आधारित हुकूमत के उद्देश्यों से परिचित होने के बाद अब हम उस हुकूमत की योजनाओं और कारनामों के बारे में उल्लेख करते हैं , ताकि ज़हूर के ज़माने में होने वाले कामों को पहचान कर , ज़हूर से पहले के ज़माने के लिए एक आदर्श विधान तैयार किया जाये ताकि इंसानियत को निजात व मुक्ति दिलाने वाले उस महान इमाम के इंतेज़ार में रहने वाले लोग हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत की कार्य शैली और योजनाओं से परिचित हो कर ख़ुद को और समाज को उस रास्ते पर चलने के लिए तैयार करें।

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत के बारे में वर्णित अनेकों रिवायतों में उनकी हुकूमत के निम्न लिखित तीन आधारभूत स्तंभों का वर्णन मिलता हैं :

1-सांस्कृतिक योजना

2-आर्थिक योजना

3-सामाजिक योजना

दूसरे शब्दों में यह कहा जाये की इंसानी समाज कुरआन और अहले बैत (अ.स.) की शिक्षाओं से दूरी के कारण सासंकृतिक मैदान में भटकाव का शिकार हो गया है , अतः उसको एक महान सांस्कृतिक इंकेलाब के द्वारा कुरआन व इतरत की तरफ़ पलटना ज़रुरी है।

इसी तरह एक विस्तृत समाजिक योजना का होना भी ज़रूरी है क्योंकि आज इंसानी समाज में विभिन्न प्रकार के ज़ख्म मौजूद हैं। अतः अत्याचार व ज़ुल्म पर आधारित यह शैली जिसने समाज में अफरा तफ़री फैला रखी हैं और अनगिनत बुराइयों को जन्म दे दिया है , जिनके चलते कमज़ोर और गरीब लोगों के अधिकारों को कुचला जा रहा हैं , इसके स्थान पर एक ऐसी सही योजना के लागू होने की ज़रुरत है जो समाज के सच्चे व वास्तविक जीवन की ज़ामिन हो और जिसमें सबके इंसानी और इलाही अधिकारों का ख्याल रखा जाये।

सांस्कृतिक तरक़्क़ी और सामाजिक विकास का रास्ता हमवार करने के लिए आर्थिक योजना का होना बहुत ज़रूरी है , ताकि ज़मीन पर मौजूद भौतिक साधनों से सभी लोग न्यायपूर्वक लाभान्वित हो सकें और हर जगह व हर तबके के लोगों के लिए अपनी जीविका प्राप्त करना संभव हो।

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत की योजनाओं के बारे में संक्षिप्त जानकारी देने के बाद अब हम इस बारे में अइम्मा ए मासूमीन (अ.स.) की रिवायतों के आधार विस्तार पूर्वक वर्णन करते हैं और हर पहलु से संबंधित योजनाओं का उल्लेख करते हैं।

अ- सांस्कृतिक योजना

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की विश्वव्यापी हुकूमत में समस्त सासंस्कृतिक गतीविधियाँ लोगों के शैक्षिक व व्यवहारिक विकास के लिए होंगी और अज्ञानता का हर प्रकार से मुकाबला किया जायेगा।

इस सच्ची हुकूमत में जिन महत्वपूर्ण सासंस्कृतिक स्तंभों पर काम किया जायेगा वह निम्न लिखित हैं।

किताब व सुन्नत को ज़िन्दा करना

कुरआने करीम हर ज़माने में मज़लूम रहा है , इसको ताक़ की ज़ीनत बनाकर रखा गया है और इंसानी ज़िन्दगी में उसको भुला दिया गया है। हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत के दौरान कुरआने करीम की जीवन प्रदान करने वाली शिक्षाओं पर अमल होगा और मासूमीन (अ.स.) की सुन्नत , ज़िन्दगी के हर पहलु में इंसान के लिए नमूना ए अमल व आदर्श बनेगी। सभी के कामों को कुरआन व इतरत की पाक व पवित्र कसौटी पर परखा जायेंगे।

हज़रत अली (अ.स.) हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की कुरआनी हुकूमत की तारीफ़ करते हुए फरमाते हैं कि

“ जिस ज़माने में इंसान पर , इंसान की इच्छाएं हुकूमत करेंगी , उस वक़्त हज़रत इमाम महदी अ. स. ज़हूर करेंगे और वह इच्छाओं की जगह हिदायत को स्थापित कर देंगे , और जिस ज़माने में इंसान अपनी राय को कुरआन पर प्रथमिक्ता देंगे , वह लोगों की फ़िक्र को कुरआन की तरफ़ खीँचेंगे और कुरआन को समाज पर हाकिम बनायेंगे। ”

एक दूसरी जगह पर हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत के ज़माने में कुरआन पर अमल होने के बारे में यह ख़ुश ख़बरी सुनाते हैं कि

“ ऐसा है जैसे मैं इसी वक़्त अपने उन शियों को देख रहा हूँ कि जो मस्जिदे कूफ़ा में खेमा लगाये बैठे हैं और जिस तरह से क़ुरआन नाज़िल हुआ , बिल्कुल उसी तरह लोगों को उसकी तालीम दे रहे हैं। ”

कुरआन की तालीम हासिल करना और क़ुरआन की तालीम देना , कुरआन की संस्कृति के फैलने और इंसान की व्यक्तिगत व सामाजिक ज़िन्दगी में कुरआन व उसके अहकाम की हुकूमत के शुरू होने का आधार है।

अखलाक का विस्तार

कुरआने करीम और अहले बैत (अ.स.) की शिक्षाओं में इंसान के अख़लाक़ी व सदाचारिक विकास और आध्यात्म की तरफ़ बहुत ज़्यादा ध्यान दिया दिया गया है। क्योंकि इंसान के अपनी उत्पत्ती के महान लक्ष्य तक पहुंचने और उसके विकास के मार्ग में अच्छा अख़लाक़ बहुत महत्वपूर्ण और सहायक है। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने अपनी पैग़म्बरी का मक़सद अख़लाक़ को पूर्ण करना माना है। कुरआने करीम ने भी पैग़म्बरे इस्लाम (स.) को मोमिनों के लिए बेहतरीन नमून ए अमल व आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि पूरे इंसानी समाज और विशेष रूप से इस्लामी समाज , कुरआन और अहलेबैत (अ.स.) की हिदायत से दूरी की वजह से बुराइयों के दलदल में फँसा हुआ है। अख़लाक़ी व सदाचारिक मर्यादाओं का त्याग इंसान की व्यक्तिगत और सामाजिक ज़िन्दगी को बर्बाद करने का कारण बना है।

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत जो कि अल्लाह के क़ानूनों व अल्लाह की सुन्नत पर आधारित होगी , उसमें अख़लाक़ी मर्यादाओं को जीवित कर समाज में लागू करने के लिए एक महत्वपूर्ण योजना बनाई जायेगी।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स.) ने फरमाया

” اِذَا قَامَ قَائِمُنَا وَضَعَ یَدَہُ عَلٰی رُوٴُوْسِ الْعِبَادِ فَجَمَعَ بِہِ عُقُولُہُمْ وَ اَکْمَلَ بِہِ اٴَخْلاقُہُمْ “

जब हमारा क़ाइम (अ.स.) क़ियाम करेगा तो वह मोमिनों के सरों पर अपना हाथ रखेंगे जिस से उनकी अक़्ल पूर्ण हो जायेगी और उनका अख़लाक़ पूरा हो जायेगा।

यह बेहतरीन जुमले इस बात पर तर्क करते हैं कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत , जो कि अख़लाक़ और आध्यात्म पर आधारित हुकूमत होगी , वह इंसान की अक़्ल और अख़लाक़ के पूर्ण रूप से विकसित होने का रास्ता हमवार करेगी। क्योंकि इंसान में जो बुराइयां पाई जाती हैं वह उसकी कम अक्ली की वजह से होती हैं , और जब इंसान की अक़्ल पूर्ण हो जायेगी तो फिर इंसान में अच्छा अख़लाक़ पैदा हो जायेगा।

दूसरी तरफ़ कुरआन और अल्लाह की सुन्नत व हिदायत से सुसज्जित माहौल इंसान को नेकी और अच्छाई की तरफ़ ले जायेगा। अतः इस प्रकार ज़ाहिर और बातिन (प्रत्यक्ष व परोक्ष) दोनों रूपो में इंसान में अच्छे अख़लाक़ की तरफ़ क़दम बढ़ाने का शौक़ पैदा होगा और इस तरह पूरी दुनिया में इलाही व इंसानी मर्यादाएं लागू हो जायेंगी।

इल्म व ज्ञान की तरक़्क़ी

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत के सांस्कृतिक प्रोग्राम का एक अंश इल्म को तरक़्क़ी देना और इंसान के ज्ञान को विस्तृत रूप में विकसित करना है। क्योंकि वह ख़ुद इल्म का स्रोत और अपने ज़माने के आलिमों में सबसे श्रेष्ठ हैं।

जिस वक़्त पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के आने की ख़ुश ख़बरी दी थी , उसी वक़्त उन्होंने इमाम (अ.स.) के इस काम की तरफ़ भी इशारा किया था।

इमाम हुसैन (अ.स.) की नस्ल से नवें इमाम , हज़रत क़ाइम (अ.स.) हैं , ख़ुदा वन्दे आलम उनके मुबारक हाथों से इस दुनिया में रौशनी फैलवायेगा , जबकि उससे पहले वह अँधेरो से भरी चुकी होगी , और वह ज़मीन को न्याय व समानता से भर देगा , जबकि वह ज़ुल्म व सितम से भरी होगी। इसी तरह वह पूरी दुनिया को इल्म व ज्ञान की दौलत से माला माल कर देगा जबकि वह अज्ञानता व जिहालत से भरी होगी।

इल्म और फिक्र का यह विकास समाज के हर तबक़े के लिए होगा। इस तरक़्क़ी में औरत और मर्द में कोई फर्क नहीं होगा , बल्कि औरतें भी इल्म और दीनी मालूमात के मैदान में बुलन्द दर्जों पर पहुँच जायेंगी।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स.) ने फरमाया :

इमाम महदी (अ.स.) के ज़माने में तुम्हें बुद्धी और इल्म प्रदान किया जायेगा , यहाँ तक कि औरतें अपने घरों में बैठ कर अल्लाह की किताब और रसूल (स.) की सुन्नत के अनुसार फैसले किया करेंगी।

बिदअतों से मुकाबला

बिदअत का प्रयोग सुन्नत के मुकाबले में होता है और इसका अर्थ दीन में किसी नई चीज़ को दाखिल करना और अपनी व्यक्तिगत राय को दीन और दीनदार में शामिल करना हैं।

हज़रत अली (अ.स.) बिदअतें पैदा करने वालों के बारे में फरमाते हैं कि

वह लोग बिदअत पैदा करने वाले हैं जो अल्लाह के हुक्म , अल्लाह की किताब और अल्लाह के पैग़म्बर (स.) का विरोध करते हैं , और अपनी इच्छा के अनुसार काम करना चाहते हैं , चाहे उन लोगों की संख्या बहुत ज़्यादा ही क्यों न हो...

अतः बिदअत का अर्थ अल्लाह , उसकी किताब और उसके रसूल की मुख़ालेफ़त कर के अपनी व्यक्तिगात राय को लागू करना और अपनी इच्छाओं के अनुसार काम करना हैं। वह चीज़ इससे अलग है जो अल्लाह के क़ानूनों के आधार पर कुरआन और सुन्नत से समझ कर तहक़ीक़ के रूप में पेश की जाती है। अतः बिदअत एक ऐसी चीज़ है जो अल्लाह व रसूल की सुन्नत को ख़त्म कर देती है , जबकि दीन के लिए उससे ज़्यादा खतरनाक कोई चीज़ नहीं है।

हज़रत अली (अ.स.) ने फरमाया :

” مَا ہَدَمَ الدِّیْنُ مِثْلُ الْبِدَعِ “ ۔

बिदअत की तरह किसी भी चीज़ ने दीन को बर्बाद नहीं किया है।

इसी दलील की वजह से बिदअत पैदा करने वाले से मुकाबेला करने के लिए सुन्नत पर अमल करने वालों को क़ियाम करना चाहिए। उनकी साजिशों व मक्कारियों से पर्दा उठा कर उनके ग़लत रास्तों को लोगों के सामने स्पष्ट कर देना चाहिए और इस तरह से लोगों को गुमराही से बचा लेना चाहिए।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :

जब मेरी उम्मत में बिदअतें ज़ाहिर होने लगें तो आलिमों की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने इल्म के ज़रिये मैदान में आयें और उन बिदअतों का मुकाबला करें , और अगर कोई ऐसा न करे तो उस पर ख़ुदा की लअनत हो।

लेकिन अफसोस की बात है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के बाद इस्लाम में बहुत सी बिदअतें पैदा कर दी गईं!। दीन व ईमान के रास्ते में बहुत सी अड़चने डाली गईं और बहुत से लोगों को गुमराह कर दिया गया। इस तरह दीन का मुकद्दस व पवित्र चेहरा बिगाड़ दिया गया और दीन की खूबसूरत तस्वीर को अपनी इच्छाओं और व्यक्तिगत तौर तरीक़ो के बादलों से ढक दिया गया। जबकि अइम्मा ए मासूमीन (अ.स.) जो दीन के जानने वाले थे , उन्होंने इन सबको रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन बिदअत का रास्ता बंद नही हो सका और नबी की सुन्नत उसी तरह बर्बाद होती रही और अब ग़ैबत के ज़माने में उसमें और वृद्धी होती जा रही है।

अब दुनिया इस इन्तेज़ार में है कि इंसान को निजात व मुक्ति देने वाले , कुरआनी मऊद , हज़रत इमाम महदी (अ.स.) तशरीफ़ लायें और उनकी हुकूमत की छत्र छाया में नबी (स.) की सुन्नत दोबारा ज़िन्दा हो और बिदअतों का बिस्तर लिपट जाये। बेशक इमाम (अ.स.) की हुकूमत का एक महत्वपूर्म परोग्राम बिदअत और गुमराही से मुक़ाबला है ताकि इंसान की हिदायत और विकास व तरक़्क़ी का रास्ता हमवार हो जाये।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की तारीफ़ करते हुए एक विस्तृत हदीस के अन्तर्गत फरमाते हैं कि

”وَ لَایَتْرُکُ بِدْعَةً اِلاَّ اَزَالَہَا وَ لَا سُنَّةً اِلاَّ اَقَامَہَا

कोई भी बिदअत ऐसी नहीं होगी जिसको वह जड़ से उखाड़ न फेंकें और कोई भी सुन्नत ऐसी न होगी जिस को लागू न करें।

आ- आर्थिक योजना

एक पूर्ण व अच्छे समाज की पहचान , उसकी सुदृढ़ अर्थव्यवस्था है। अगर समाज में माल व दौलत से सही फायदा उठाया जाये और पैदावार व उसको लोगों तक पहुँचाने के साधन किसी एक खास गिरोह के क़ब्ज़े में न हो बल्कि हुकूमत समाज के हर तबक़े पर तवज्जोह दे और सबके लिए जीविका प्राप्त करने के साधन जुटाये और सबको सार्वजनिक समपत्ति से लाभान्वित होने का अवसर मिले तो ऐसे समाज में इंसान के लिए आध्यात्मिक विकास व तरक़्क़ी का रास्ता अधिक हमवार हो जाता है। कुरआने करीम की आयतों और मासूमीन (अ.स.) की रिवायतों में भी आर्थिक पहलु और लोगों की अर्थिक व्य्वस्था पर तवज्जह दी गई है। इस आधार पर हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की कुरआन पर आधारित हुकूमत में पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था और जनता के लिए खास योजना का निर्धारण होगा। इसके लिए खेती के मसले पर ध्यान दिया जायेगा और प्राकृतिक सम्पदा व अल्लाह द्वारा प्रदान की गई नेमतों से पूर्ण रूप से फायदा उठाया जायेगा और उससे प्रप्त होने वाली संपत्ति को न्यायपूर्वक समाज के हर तबक़े में विभाजित किया जायेगा।

उचित है कि हम इस संबंध में पाई जाने वाली रिवायतों का संक्षेप में एक जायेज़ा लें ताकि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत की अर्थव्यवस्था की योजना को भली भाँति पहचान सकें।

प्राकृतिक संपदा का दोहन

आर्थिक मुशकिलों में से एक बड़ी मुशकिल यह है कि अल्लाह द्वारा प्रदान की गई प्राकृतिक संपदा व नेमतों से सही फायदा नहीं उठाया जाता है। न तो ज़मीन से सही पूर्ण रूप से फायदा उठाया जाता है और न ही पानी से ज़मीन को उपजाऊ बनाने के लिए सही फायदा उठाया जाता है। हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़माने में उनकी हक़ पर आधारित हुकूमत की बरकत से आसमान खुल कर पानी बरसायेगा और ज़मीन पूर्ण रूप से फसल उगायेगी।

जैसे कि हज़रत अली (अ.स.) ने फरमाया :

” ۔۔۔ وَ لَو قَدْ قَامَ قَائِمُنَا لَاٴَنْزَلَتِ السَّمَاءُ قَطْرَہَا، وَ لَاٴَخْرَجَتِ الاٴرْضُ نَبَاتَہٰا۔۔۔ “

और जब क़ाइम आले मुहम्मद (अ.स.) क] fयाम करेंगे तो आसमान से बारिश होगी और ज़मीन दाना उपजेगी।

अल्लाह की आखरी हुज्जत की हुकूमत के ज़माने में ज़मीन और उसके समस्त स्रोत हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के क़ब्ज़े में होंगे , ताकि सुदृढ़ अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा क़ज़ाना जमा हो जाये।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स.) ने फरमाया :

” ۔۔۔تطویٰ لہ الارض و تظھر لہ الکنوز۔۔۔ “

ज़मीन उनके लिए घूम जाया करेगी और पल भर में एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जायेगी और उनके लिए तमाम ख़ज़ाने ज़ाहिर हो जायेंगे।

धन का न्यायपूर्वक वितरण

कमज़ोर अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा कारण धन दौलत का एक खास गिरोह के कब्ज़े में चले जाना है। हमेशा यही हुआ है कि कुछ ख़ास लोगों या गिरोहों ने ख़ुद को समाज के अन्य लोगों से श्रेष्ठ मानते हुए सार्वजनिक माल व दौलत पर कब्ज़ा कर लिया और फ़िर उसको अपने व्यक्तिगत फ़ायदों या किसी खास गिरोह के लिए प्रयोग किया। हज़रत इमाम महदी (अ.स.) ऐसे लोगों से मुक़ाबला करेंगे और सार्वजनिक सम्पत्ति व धन दौलत को उनके हाथों से निकाल कर आम लोगों के क़ब्ज़े में देंगे और इस सबके सामने हज़रत अली (अ.स.) की अदालत का नमूना पेश करेंगे।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) ने फरमाया :

”اِذَا قَامَ قَائِمُنَا اَہْلَ الْبَیْتِ قَسَّمَ بِالسَّوِیَّةِ وَ عَدَلَ فِی الرَّعْیَةِ

जब हम अहलेबैत का क़ाइम क़ियाम करेगा तो माल व दौलत को सबमें बराबर तक्सीम करेगा और लोगों के बीच न्यायपूर्वक काम करेगा।

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़माने में समानता व बराबरी के क़ानून को लागू किया जायेगा और सबको उनके इंसानी और इलाही अधिकार दिये जायेंगे।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया कि

“ मैं तुम को महदी (अ.स.) की ख़ुश ख़बरी सुनाता हूँ जो मेरी उम्मत में क़ियाम करेगा...वह माल व दौलत का सही विभाजन करेगा। किसी ने सवाल किया कि इसका क्या मक़सद है ? तो पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया : यानी लोगों के बीच समानता स्थापित करेगा...। ”

समाज में उस समानता का नतीजा यह होगा कि कोई भी फक़ीर या निर्धन नज़र नही आयेगा और वर्णव्यवस्था का समापन हो जायेगा।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) ने फरमाया :

तुम्हारे बीच इमाम महदी (अ.स.) ऐसी समानता स्थापित करेंगे कि कोई भी ज़कात का लेने वाला नहीं मिल पायेगा...।

वीरानों को आबाद करना

आज कल की हुकूमतों में सिर्फ़ उन्हीं लोगों की ज़िन्दगी ख़ुशहाल होती है जो हुक्काम के इर्द गिर्द घूमते रहते हैं , उन के हम फिक्र होते हैं या फिर मालदार होते हैं , हुकूमत समाज के अन्य लोगों को भुला देती , लेकिन हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत में चूँकि पैदावार और विभाजन का मसला हल हो जायेगा इस लिए हर जगह सबके पास नेमतें मौजूद रहेंगी और चारो ओर ख़ुशहाली होगी।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.स.) , हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत के ज़माने की तारीफ़ करते हुए फरमाते हैं कि

” ۔۔۔ فلا یبقیٰ فی الارض خزاب الا عمَّر

पूरी ज़मीन में कोई वीराना नहीं मिलेगा मगर यह कि उसको आबाद कर दिया जायेगा।

इ- सामाजिक योजना

इंसानी समाज के सुधार का एक पहलु समाज में एक सही योजना का लागू होना है। दुनिया के सबसे बड़े न्याय प्रियः शासक की हुकूमत में समाज को सही डगर पर लगाने के लिए कुरआन और अहले बैत (अ.स.) की सुन्नत व शिक्षाओं के आधार पर पलानिग की जायेगी। उसके लागू होने से इंसानी ज़िन्दगी में विकास होगा और इंसान के बुलन्द मुक़ाम तक पहुँचने का रास्ता हमवार हो जायेगा। उस इलाही हुकूमत की छत्र छाया में इस दुनिया में नेकियों को फैलाया जायेगा और बुराइयों को रोका जायेगा। बुरे लोगों के साथ के साथ क़ानूनी काररवाई की जायेगी। समाज के समस्त लोगों को समान रूप से सामाजिक अधिकार दिये जायेंगे और पूर्ण रूप से न्याय व समानता स्थापित की जायेगी।

प्रियः पाठकों ! हम उचित समझते हैं कि यहाँ पर एक नज़र कुछ रिवायतों पर ड़ालें जिससे उस हसीन दुनिया के जलवों का अच्छी तरह नज़ारा हो सके।

अम्र बिल मारुफ़ और नही अनिल मुनकर

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की विश्वव्यापी हुकूमत में अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुनकर बहुत व्यापक पैमाने पर किया जायेगा। “अम्र बिल मारूफ़ ” का अर्थ है लोगों को अच्छे काम करने के लिए कहना और “नही अनिल मुनकर ” का अर्थ है लोगों को बुराइयों से रोकना। इस बारे में कुरआने करीम ने भी बहुत ज़्यादा ताकीद की है और इसी वजह से इस्लामी उम्मत को मुंतख़ब उम्मत (चुना हुआ समाज) के रूप में याद किया गया है।

इसके ज़रिये तमाम वाजेबाते इलाही पर अमल होता है. और इसको छोड़ना हलाक़त , नेकियों की बर्बादी और समाज में बुराइयों के फैलने का असली कारण है।

अम्र बिल मअरुफ़ और नही अनिल मुनकर का सबसे अच्छा और सबसे ऊँचा दर्जा यह है कि हुकूमत के मुखिया और उसके पदाधिकारी नेकियों की हिदायत करने वाले और बुराईयों से रोकने वाले हों।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स.) ने फरमाया :

”اَلمَھدِی وَ اٴَصْحَابُہُ ۔۔۔ یَاٴْمُرُوْنَ بِالمَعْرُوفِ وَ یَنْہَونَ عَنِ المُنْکِر “

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) और उनके मददगार अम्र बिल मअरुफ़ और नही अनिल मुनकर करने वाले होंगे।

बुराइयों से मुक़ाबला

बुराईयों से रोकना जो कि इलाही हुकूमत की एक विशेषता है , सिर्फ़ ज़बानी तौर पर नहीं होगा , बल्कि बुराईयों का क्रियात्मक रूप में इस तरह मुकाबला किया जायेगा , कि समाज में बुराई और अख़लाक़ी नीचता का वजूद बाक़ी न रहेगा और इंसानी ज़िन्दगी बुराईयों से पाक हो जायेगी।

जैसे कि दुआए नुदबा , जो कि ग़ायब इमाम की जुदाई का दर्दे दिल है , में बयान हुआ है

”اَیْنَ قَاطِعُ حَبَائِلِ الْکِذْبِ وَ الإفْتَرَاءِ، اَیْنَ طَامِسُ آثَارِ الزَّیْغِ وَ الاٴہْوَاءِ “ ۔

कहाँ है वह जो झूठ और बोहतान की रस्सियों का काटने वाला है और कहाँ है वह जो गुमराही व हवा व हवस के आसार को ख़त्म करने वाला है।

अल्लाह की हदों को जारी करना

समाज के उपद्रवी व बुरे लोगों से मुक़ाबले के लिए विभिन्न तरीक़े अपनाये जाते हैं। हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत में बुरे लोगों से मुक़ाबले के लिए तरीक़े अपनाये जायेंगे। एक तो यह कि बुरे लोगों को सांस्कृतिक प्रोग्राम के अन्तर्गत कुरआन व मासूमों की शिक्षाओं के ज़रिये सही अक़ीदों व ईमान की तरफ़ पलटा दिया जायेगा और दूसरा तरीक़ा यह कि उनकी ज़िन्दगी की जायज़ ज़रुरतों को पूरा करने के बाद समाजिक न्याय लागू कर के उनके लिए बुराई का रास्ता बन्द कर दिया जायेगा। लेकिन जो लोग उसके बावजूद भी दूसरों के अधिकारों को अपने पैरों तले कुचलेंगे और अल्लाह के आदेशों का उलंघन करेंगे उनके साथ सख्ती से निपटा जायेगा। ताकि उनके रास्ते बन्द हो जायें और समाज में फैलती हुई बुराईयों की रोक थाम की जासके। जैसे कि बुरे लोगों की सज़ा के बारे में इस्लाम के अपराध से संबंधित क़ानूनों में वर्णन हुआ है।

हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी (अ.स.) ने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से रिवायत नक्ल की जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की विशेषताओं का वर्णन करते हुऐ फरमाया हैं कि

वह अल्लाह की हुदूद को स्थापित करके उन्हें लागू करेंगे...

न्याय पर आधारित फ़ैसले

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत का एक महत्वपूर्ण कार्य समाज के हर पहलू में न्याय को लागू करना होगा। उनके ज़रिये पूरी दुनिया न्याय व समानता से भर जायेगी जैसे कि ज़ुल्म व सितम से भरी होगी। अदालत के फैसलों में न्याय का लागू होना बहुत महत्व रखता है और इसके न होने से सब से ज़्यादा ज़ुल्म और हक़ तलफी होती है। किसी का माल किसी को मिल जाता है ! , नाहक़ खून बहाने वाले को सज़ा नहीं मिलती ! , बेगुनाह लोगों की इज़्ज़त व आबरु पामाल हो जाती है!। दुनिया भर की अदालतों में सब से ज़्यादा ज़ुल्म समाज के कमज़ोर लोगों पर हुआ है। अदालत में फैसले सुनाने वाले ने मालदार लोगों और ज़ालिम हाकिमों के दबाव में आकर बहुत से लोगों के जान व माल पर ज़ुल्म किया है। दुनिया परस्त जजों ने अपने व्यक्तिगत फ़ायदे और कौम व कबीला परस्ती के आधार पर बहुत से गैर मुंसेफाना फैसले किये हैं और उन को लागू किया है। खुलासा यह है कि कितने ही ऐसे बेगुनाह लोग हैं , जिनको सूली पर लटका दिया गया और कितने ही ऐसे मुजरिम लोग हैं जिन पर क़ानून लागू नही हुआ और उन्हें सज़ा नहीं मिली।

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की न्याय पर आधारित हुकूमत , हर ज़ुल्म व सितम और हर हक़ तलफी को ख़त्म कर देगी। वह जो कि अल्लाह के न्याय के मज़हर है , न्याय के लिए अदालतें खोलेंगे और उन अदालतों में नेक , अल्लाह से डरने वाले और बारीकी के साथ हुक्म जारी करने वाले न्यायधीश नियुक्त करेंगे ताकि दुनिया के किसी भी कोने में किसी पर भी ज़ुल्म न हो।

हज़रत इमाम रिज़ा (अ.स.) , हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़हूर के सुनहरे मौके की तारीफ़ में एक लंबी रिवायत के अन्तर्गत फरमाते हैं कि

” فَاِذَا خَرَجَ اَشْرَقَتِ الاٴرْضُ بِنُوْرِ رَبِّہَا، وَ َوضَعَ مِیزَانَ العَدْلِ بَیْنَ النَّاسِ فَلا یَظْلِمُ اَحَدٌ اَحَدًا “

जब वह ज़हूर करेंगे तो ज़मीन अपने रब के नूर से रौशन हो जायेगी और वह लोगों के बीच हक़ व अदालत की तराज़ू स्थापित करेंगे , अतः वह ऐसी अदालत जारी करेंगे कि कोई किसी पर ज़र्रा बराबर भी ज़ुल्म व सितम नहीं करेगा।

प्रियः पाठकों ! इस रिवायत से यह मालूम होता है कि उनकी हुकूमत में अदालत में न्याय व इन्साफ़ पूर्म रूप से लागू होगा , जिससे ज़ालिम और ख़ुदगर्ज़ इंसानों के लिए रास्ते बन्द हो जायेंगे । अतः इसका नतीजा यह होगा कि ज़ुल्म व सितम बंद हो जायेगा और दूसरों के अधिकारों की रक्षा होगी।

तीसरा हिस्सा

हुकूमत के नतीजे

आप ने देखा होगा कि जो लोग अपनी हुकूमत बनाकर ताक़त को अपने हाथ में लेना चाहते हैं , वह पहले अपनी हुकूमत के उद्देश्यों का वर्णन नकरते हैं। कभी कभी तो ऐसा होता है कि वह उन उद्देश्यों तक पहुँचने के लिए अपनी योजनाओं को भी लोगों के सामने पेश कर देते हैं। लेकिन वह हुकूमत व ताक़त प्राप्त करने के बाद कुछ समय बीतने पर अपने उन उद्देश्यों में नाकाम रह जाते हैं या कभी अपने किये हुए वादों से मुकर जाते हैं , या अपने उद्देश्यों को बिल्कुल ही भूल जाते हैं।

लेकिन पहले से निश्चित उन उद्देश्यों को प्राप्त न करने की वजह यह होती है कि वह उद्देश्य असली नहीं होते , या इसकी दूसरी वजह यह हो सकती है कि उन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए हुकूमत के पास कोई सही व संपूर्ण योजना नहीं होती और बहुत से स्थानों पर इस नाकामी की वजह क़ानून बनाने वालों की अयोग्यता होती है।

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत के उद्देश्य ऐसे वास्तविक व आधारभूत हैं कि उनकी जड़ें इंसानों के दिल व दिमाग की गहराईयों में मौजूद हैं और उन तक पहुँचने की सभी तमन्ना रखते हैं। उन उद्देश्यों की प्राप्ती के लिए जो योजनाएं हैं वह कुरआने क़रीम और अहलेबैत (अ.स.) की सुन्नत व शिक्षाओं पर आधारित है , अतः हर डिपारटमेन्ट में उसके लागू होने की ज़मानत मौजूद होगी , इस लिए इस महान इन्क़ेलाब के नतीजे बहुत ज़्यादा अच्छे होंगे। इस पूरे विवरण का एक वाक्य में इस तरह खुलासा किया जा सकता है कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत का नतीजा यह होगा कि इंसान की वह तमाम भौतिक व आध्यात्मिक ज़रुरतें पूरी हो जायेंगी , जिन को ख़ुदा वन्दे आलम ने इंसान के वजूद में अमानत रखा है।

हम यहाँ पर रिवायतों के आधार पर हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत के कुछ नतीजों की तरफ़ इशारा कर रहे हैं।

न्याय का विस्तार

अनेकों रिवायतों में मिलता है कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के इन्क़ेलाब व हुकूमत के नतीजों में सब से महत्वपूर्ण चीज़ दुनिया में अदल व इन्साफ़ का आम होना है। इसके बारे में उनकी हुकूमत के उद्देश्यों के अन्तर्गत उल्लेक हो चुका है। हम यहाँ पर उस हिस्से में वर्णित चीज़ों के अलावा इस चीज़ को बढ़ाते हैं कि क़ाइमे आले मुहम्मद (स.) की हुकूमत में समाज की हर सतह पर न्याय आम हो जायेगा और अदालत समाज की रगों में रच बस जायेगी। कोई भी ऐसा छोटा या बड़ा गिरोह नहीं होगा जिसमें न्याय स्थापित न हो , आपस में समस्त इंसानों का राब्ता उसी न्याय के आधार पर होगा।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने इस बारे में फरमाया :

अल्लाह की क़सम लोगों के घरों में न्याय को इस तरह पहुँचा दिया जायेगा जिस तरह उन घरों में सर्दी और गर्मी पहुँचती है।

समाज का सबसे छोटा विभाग यानी इंसान का घर न्याय का केन्द्र बन जायेगा और घर के सब सदस्य एक दूसरे से न्यायपूर्वक व्यवहार करेंगे। इससे इस बात की पुष्टी होती है कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की न्याय व समानता पर आधारित विश्वव्यापी हुकूमत ताक़त और क़ानून के बल बूते पर नही , बल्कि कुरआन की उस तरबियत पर आधारित होगी जो न्याय व भलाी का हुक्म देती है। उसी से लोगों की तरबियत की जायेगी और ऐसे बेहतरीन माहौल में सभी लोग अपने इंसानी और इलाही कर्तव्यों को पूरा करते हुए दूसरों के अधिकारों का एहतेराम करेंगे , चाहे सामने वाला किसी ओहदे पर भी न हो।

महदवी समाज में न्याय , कुरआन और हुकूमत के आधार पर एक असली सामाजिक स्तंभ के रूप में लागू होगा और कुछ गिने चुने स्वार्थी और कुरआने करीम व अहले बैत (अ.स.) की शिक्षाओं से दूर लोगों के अलावा कोई भी उसका उलंघन नही करेगा। न्याय व समानता पर आधारित हुकूमत ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई करेगी और उनको फलने फूलने का मौक़ा नहीं दिया जायेगा। ऐसे लोगों पर विशेष रूप से हुकूमत के विभागों में शामिल होने पर रोक लगा दी जायेगी।

जी हाँ ! ऐसा विस्तृत और आम न्याय हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत का नतीजा होगा। उसके लागू होने से हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के इन्केलाब का सबसे बड़ा मक़सद पूरा हो जायेगा और दुनिया न्याय व समानता से भर जायेगी और ज़ुल्म व सितम समाज के हर हिस्से से मिट जायेंगे , यहाँ तक कि घरेलू ज़िन्दगी में भी एक दूसरे के संबंधों में इसका नाम व निशान बाक़ी नहीं रहेगा।

ईमान , अख़लाक़ और फिक्र का विकास

प्रियः पाठकों ! हम ने उपरोक्त यह उल्लेख किया है कि समाज में न्याय के आम हो जाने से समाज में रहने वालों की सही तरबियत होगी और समाज में कुरआन व अहलेबैत (अ.स.) की तहज़ीब व सभ्यता फैल जायेगी। अइम्मा ए मासूमीन (अ.स.) की रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत के ज़माने में ईमान , अख़लाक़ और फिक्र के विकसित होने व उनके फलने फूलने का सविस्तार वर्णन किया गया है।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स.) ने फरमाया :

जब हमारे क़ाइम आले मुहम्मद ज़हूर करेंगे तो वह अपना दस्ते करम ख़ुदा के बन्दों के सरों पर रखेंगे उसकी बर्क़त से उनकी अक़्ल अपने क़माल पर पहुँच जायेगी।

और जब इंसान की अक़्ल कमाल पर पहुँच जाती है तो तमाम खूबिया और नेकियां ख़ुद बखुद उसमें पैदा होने लगती हैं , क्योंकि अक़्ल इंसान के लिए आन्तरिक पैग़म्बर है और अगर जिस्म व रूह के मुल्क पर इसकी हुकूमत हो जाये तो फिर इंसान को फिक्र , नेकी , सुधार और ख़ुदा की बन्दगी का अच्छा व कल्याणकारी रास्ता मिल जायेगा।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) से सवाल हुआ कि अक़्ल क्या है ?

उन्होंने फरमाया :

अक़्ल एक ऐसी हक़ीक़त है जिसके ज़रिये ख़ुदा की इबादत की जाती है और उसी की रहनुमाई से जन्नत मिलती है।

जी हाँ ! वर्तमान समाज में हम देखते हैं कि इमाम और उनकी हुकूमत के बग़ैर अक़्ल पर इच्छाओं का अधिपत्य व ग़लबा है। विभिन्न गिरोहों और पार्टियों पर उनकी इच्छाएं हुकूमत कर रही है जिसके नतीजे में दूसरों के हक़ूक पामाल हो रहें है और इलाही इक्दार को भुलाया जा रहा है। लेकिन ज़हूर के ज़माने में , अल्लाह की हुज्जत , की हुकूमत की छत्र छाया में अक़्ल हुक्म करने वाली होगी और जब इंसान की अक़्ल कमाल की मंज़िल पर पहुँच जायेगी तो फिर नेकियों और अच्छाइयों के अलावा कोई हुक्म नहीं करेगी।

एकता और मुहब्बत

अनेकों रिवायतों में मिलता है कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की विश्वव्यापी हुकूमत में ज़िन्दगी बसर करने वाले लोग एकता व मुहब्बत के बंधन में बँधे होंगे और उनकी हुकूमत में मोमिनों के दिलों में ईर्श्या व दुशमनी के लिए कोई जगह न होगी।

हज़रत अली (अ.स.) ने फरमाया :

” وَ لَو قَد قَامَ قَائِمُنَا۔۔۔ لَذَہَبَتِ الشَّحْنَاءُ مِن قُلُوبِ العِبَادِ۔۔۔ “

जब हमारा क़ाइम क़ fयाम करेगा तो ख़ुदा के बंदो के दिलों में ीर्ष्या और दुशमनी नहीं रहेगी।

उस ज़माने में ईर्ष्या और दुशमनी के लिए कोई बहाना बाक़ी नहीं रहेगा , क्योंकि वह ज़माना न्याय व समानता का ऐसा दौर होगा जिसमें किसा का कोई हक़ पामाल नहीं होगा। वह ज़माना अक़्लमंदी और ग़ौर व फिक्र का ज़माना होगा , अक़्ल के ख़िलाफ़ काम करने और इच्छाओं के अनुसरण का नहीं। इस लिए ईर्ष्या और दुशमनी के लिए कोई बहाना नहीं रहेगा और लोगों के दिलों में मुहब्बत पैदा हो जायेगी , जबकि उससे पहले लोगों में दुश्मनी मौजूद होगी। उस ज़माने में सभी लोग कुरआनी भाईचारे की तरफ़ पलट जायेंगे... और आपस में दो भाइयों की तरह मुहब्बत के साथ रहेंगे।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के सुनहरे युग की तारीफ़ करते हुए फरमाते हैं कि

“ उस ज़माने में ख़ुदा वन्दे आलम परेशान और घबराये हुए लोगों में एकता और मुहब्बत पैदा कर देगा। ”

और अगर उस काम में ख़ुदा की मदद होगी तो फिर कोई ताज्जुब की बात नहीं है कि वह एकता व मुहब्बत इतनी बढ़ जाये कि इस दुनिया में , जो भौतिक कशमकश में अपनी चरम सीमा को पहुँच चुकी है , उस का अंदाज़ा लगाना मुशकिल हो जाये।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने फरमाया :

जब हमारा क़ाइम क़ियाम करेगा तो सच्ची दोस्ती और वास्तविक एकता इस हद तक होगी कि ज़रुरतमंद अपने ईमानी भाई की जेब से अपनी ज़रुरत के अनुसार पैसा निकाल लेगा और उसका दीनी भाई उसे नहीं रोकेगा।

जिस्म और रूह की सलामती

आज कल इंसानों की सबसे बड़ी और लाइलाज मुश्किल ख़तरनाक बिमारियाँ हैं जो विभिन्न चीज़ो की वजह से पैदा हो रही हैं जैसे हमारे रहने के वातावरण का प्रदूषित होना , रासायनिक और एटमिक शस्त्रों का इस्तेमाल , इंसानों के आपस में अनैतिक संबंध , पेड़ों को काटना , समुन्द्रों के पानी को प्रदूषित करना आदि। इसी तरह की दूसरी चीज़ें भी विभिन्न ख़तरनाक बिमारियों को जन्म दे रही हैं जैसे कोढ़ , प्लेग , फ़ालिज , दिल और दिमाग़ का दौरा आदि बहुत सी बिमारियां जिनका आज के ज़माने में कोई इलाज नहीं है , हमारी मुश्किलें हैं। जिस्मानी बिमारियों के अलावा रुही और सैकोलोजिकल बिमारियां भी हैं जिनकी वजह से दुनिया भर में इंसान की ज़िन्दगी बद मज़ा और नाकाबिले बर्दाश्त हो गई है , लेकिन यह सब दुनिया और इंसानों पर ग़लत चीज़ों के इस्तेमाल की वजह से हैं।

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत के ज़माने में , जो कि अदल व इन्साफ़ और नेकियों का ज़माना होगा और ताल्लुकात बरादरी और बराबरी की बुनियादों पर होंगे , इंसान की जिस्मानी और सैकोलोजिकल बिमारियों का खात्मा हो जायेगा और इंसान की जिस्मानी व रुहानी ताकत ताज्जुब की हद तक बढ़ जायेगी।

हज़रत इमाम सादिक (अ.स.) ने फ़रमाया :

जब हज़रत इमाम महदी (अ.स.) क़ियाम करेंगे तो ख़ुदा वन्दे आलम मोमिनों से बिमारियों को दूर कर देगा और उन्हें सेहत व तन्दुरुस्ती प्रदान करेगा।

क्योंकि उनकी हुकूमत में इल्म व ज्ञान की बहुत ज़्यादा तरक़्क़ी होगी इस लिए कोई लाइलाज बिमारी बाक़ी नहीं रहेगी। चिकित्साशास्त्र में बहुत ज़्यादा तरक़्क़ी होगी , और हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की बरकत से बहुत से बीमारों को सेहत मिल जायेगी।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स.) ने फरमाया :

जो इंसान हम अहलेबैत के क़ाइम का ज़माना देखेगा तो अगर उसको कोई बिमारी हो जायेगी तो ठीक हो जायेगा और अगर कमज़ोरी का शिकार हो जायेगा तो सेहत मन्द और ताक़त वर हो जायेगा...

बहुत ज़्यादा खैर व बरकत

क़ाइमे आले मुहम्मद हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत का एक बड़ा फ़ायदा यह होगा कि उस ज़माने में खैर व बरकत इतनी होगी कि इतिहास में उसकी मिसाल नहीं मिलेगी। उनकी हुकूमत की बहार में हर जगह हरा भरा और ख़ुशियों का माहौल होगा। आसमान से पानी बरसेगा और ज़मीन में अच्छी फसलें पैदा होंगी। हर तरफ ख़ुदा की बरकत बिखरी हुई नज़र आयेगी।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने फरमाया :

ख़ुदा वन्दे आलम हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की वजह से ज़मीन व आसमान से बरकतों की बारिश करेगा और उनके ज़माने में आसमान से बारिशें होंगी और ज़मीन में अच्छी फसलें होंगी।

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत में कोई ज़मीन बंजर नहीं मिलेगी और हर जगह हरयाली होगी।

यह महान व बेमिसाल परिवर्तन इस वजह से होगा कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़माने में तक़वे , पाकीज़गी और ईमान के फूल खिलने लगेंगे , समाज के तमाम लोग इलाही तरबियत के तहत अपने संबंधों को इस्लामी और इलाही मर्यादाओं के साँचे में ढाल लेंगे। अतः ख़ुदा वन्दे आलम ने ऐसी हालत के लिए पहले ही वादा किया है कि ऐसे पाक व पाक़ीज़ा माहौल को खैर व बरकत से भर दूँगा।

इस बारे में कुरआने मजीद में इस प्रकार वर्णन हुआ है :

وَلَوْ اٴَنَّ اٴَہْلَ الْقُرَی آمَنُوا وَاتَّقَوْا لَفَتَحْنَا عَلَیْہِمْ بَرَکَاتٍ مِنْ السَّمَاءِ وَالْاٴَرْضِ۔۔۔ >

और अगर बस्ती वाले ईमान ले आते और परहेज़गार बन जाते तो हम उनके लिए ज़मीन व आसमान से बरकतों के दरवाज़े खोल देते।

ग़रीबी व फ़क़ीरी का अंत

जिस वक़्त हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के लिए ज़मीन के सारे खज़ाने ज़ाहिर हो जायेंगे और ज़मीन व आसमान से लगातार बरकतें नाज़िल होंगी और मुसलमानों का बैतुलमाल (राजकीय धनकोष) अदालत की बुनियाद पर वितरित होगा तो फिर ग़रीबी व फ़क़ीरी का कोई वजूद नहीं रहेगा और उनकी हुकूमत में हर इंसान ग़रीबी के दलदल से आज़ाद हो जायेगा।

उनकी हुकूमत के ज़माने में आर्थिक संबंध समानता व भाईचारे की बुनियाद पर होंगे और स्वार्थता की जगह अपने दीनी भाईयों से हमदर्दी का जज़बा पैदा हो जायेगा। उस ज़माने में सभी लोग आपस में एक दूसरे को घर के एक मेंमबर के रूप में देखेंगे और सबको अपना तस्व्वुर करेंगे और मोहब्बत व हमदर्दी की खुशबू हर जगह फैली हुई होगी।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स.) ने फरमाया :

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) साल में दो बार लोगों को बख्श दिया करेंगे , और महीने में दो बार उनको रोज़ी व जीविका दिया करेंगे। वह इस काम से लोगों के बीच समानता स्थापित करेंगे। उस ज़माने में लोग ऐसे इतने मालदार हो जायेंगे कि कोई ज़कात लेने वाला ज़रूरतमंद नहीं मिल पायेगा।

विभिन्न रिवायतों से यह नतीजा निकलता है कि लोगों में ग़ुरबत के एहसास के न होने की वजह यह होगी कि उनके यहाँ क़नाअत का एहसास पाया जाता होगा। दूसरे शब्दों में यूँ कहा जाये कि इस से पहले कि कोई उनको माल व दौलत दे , ख़ुद उनके अन्दर का ज़रूरत न होने का एहसास पैदा हो जायेगा। उन्हें जो कुछ ख़ुदा वन्दे आलम ने अपने फज़्ल व करम से दिया होगा वह उस पर राज़ी रहेंगे , इस लिए वह दूसरों के माल की तरफ़ आँख भी नहीं उठायेंगे।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत की तारीफ़ करते हुए फरमाया :

ख़ुदा वन्दे आलम अपने बन्दों के दिलों में बेनियाज़ी (ज़रूरत न होना) का एहसास पैदा कर देगा।

जबकि ज़हूर से पहले इंसान में स्वार्थता , माल व दौलत जमा करने और ग़रीबों पर खर्च न करने की आदत होगी।

ख़ुलासा यह है कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत में इंसान आन्तरिक व बाह्य दोनों रूपों से बेनियाज़ हो जायेगा , क्योंकि एक तरफ़ तो उन्हें बहुत सी दौलत न्यायपूर्वक विभाजन से मिल जायेगी और दूसरी तरफ इंसानों के दिल में कनाअत व निरीहता पैदा हो जायेगी।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने मोमिनों पर हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की बख़्शिश के बारे में बयान करते हुए फरमाया :

ख़ुदा वन्दे आलम मेरी उम्मत को बेनियाज़ कर देगा और अदालते महदवी सब पर इस तरह लागू होगी कि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) हुक्म फरमायेंगे कि मुनादी यह ऐलान कर दे कि कौन है जिस को माल की ज़रुरत है ? लेकिन उस ऐलान को सुन कर एक इंसान के अलावा कोई आगे क़दम नहीं बढाएगा।

उस वक़्त इमाम (अ.स.) उससे फरमायेंगे : खज़ानेदार (मालखाने का इन्चार्ज) के पास जाओ और उससे कहना कि इमाम महदी (अ.स.) की तऱफ़ से तुम्हारे लिए यह हुक्म है कि मुझे कुछ माल व दौलत दे दो। यह सुन कर खज़ानेदार उससे कहेगा कि अपनी चादर फैलाओ और उसकी चादर को भर दिया जायेगा। जब वह उस चादर को कमर पर लाद कर चलेगा तो पछता कर कहेगा : उम्मते मुहम्मदी (स.) में सिर्फ़ मैं ही इतना लालची हूँ। इसके बाद वह माल वापस करने के लिए जायेगा , लेकिन उससे वह माल वापस नहीं लिया जायेगा और उससे कहा जायेगा कि हम जो कुछ दे देते हैं वह वापस नहीं लेते।

इस्लाम की हुकूमत और कुफ्र का ख़ात्मा

कुरआने करीम ने तीन जगहों पर वादा किया है कि ख़ुदा वन्दे आलम इस्लाम को पूरी दुनिया पर ग़ालिब करेगा।

<ھُوَ الَّذِی اٴَرْسَلَ رَسُولَہُ بِالْہُدَی وَدِینِ الْحَقِّ لِیُظْہِرَہُ عَلَی الدِّینِ کُلِّہِ وَلَوْ کَرِہَ الْمُشْرِکُونَ۔ >

वह ख़ुदा वह है जिसने अपने रसूल को हिदायत और दीने हक़ के साथ भेजा ताकि अपने दीन को तमाम धर्मों पर ग़ालिब बनाये चाहे मुशरेकिन को कितना ही नागवार क्यों न हो।

जबकि इस हक़ीक़त में कोई शक नही है कि अल्लाह का वादा पूरा होकर रहता है , वह कभी भी वादा ख़िलाफ़ी नही करता , जैसे क़ुराने करीम में फ़रमाया है :

۔۔۔ اِنَّ اللهَ لَا یُخْلِفُ الْمِیْعَادِ

बेशक अल्लाह वादे के खिलाफ अमल नहीं करता।

लेकिन यह बात रौशन है कि लगातार कोशिश के बावजूद भी पैग़म्बरे इस्लाम (स.) और अल्लाह के वली (अ.स.) अब तक ऐसी मुबारक तारीख नहीं देख पाए हैं।

अतः तमाम मुसलमान ऐसे दीन का इन्तेज़ार कर रहे हैं। यह एक ऐसी हक़ीक़ी तम्न्ना है जो अइम्मा मासूमीन (अ.स.) के कलाम में मौजूद है।

इसी लिए उस वली ए ख़ुदा की हुकूमत में ( ”اشھد ان لا الہ الا الله “ ) का नारा बुलन्द होगा जो तौहीद का परचम है और ”اشھد ان محمد رسول الله “ की आवाज़ जो इस्लाम का अलम है हर जगह लहराता हुआ नज़र आयेगा और किसी भी जगह कुफ़्र व शिर्क का वजूद बाकी न रहेगा।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ.स.) ने निम्न लिखित आयत की व्याख्या में फरमायाः

وَقَاتِلُوہُمْ حَتَّی لاَتَکُونَ فِتْنَةٌ وَیَکُونَ الدِّینُ کُلُّہُ لِلَّہِ

और तुम लोग उन कुफ्फार से जिहाद करो यहाँ तक कि फित्ने का वजूद बाक़ी न रहे।

इस आयत की तावील अभी तक नहीं हुई है और जब हमारा क़ाइम क़ियाम करेगा और जो इंसान उनके ज़माने को पायेगा वह इसकी तावील को अपनी आँखों से देखेगा।

बेशक उस ज़माने में दीने मोहम्मदी (स.) वहाँ तक पहुँच जायेगा , जहाँ तक रात का अँधेरा पहुँचता है और पूरी दुनिया में फैल जायेगा। उस वक़्त ज़मीन से शिर्क का नाम व निशान मिट जायेगा , जैसे कि ख़ुदा वन्दे आलम में वादा फरमाया है।

लेकिन पूरी दुनिया में इस्लाम का फैलाव , इस्लाम की सच्चाी व वास्तविक्ता की वजह से होगा। क्योंकि हज़रत इमाम महदी (अ.स.) के ज़माने में इस्लाम की सच्चाई बहुत स्पष्ट हो जायेगी और इस्लाम सभी को अपनी तरफ आकर्षित कर लेगा और सिर्फ वही लोग बाकी बचेंगे जो ईर्ष्या व दुश्मनी के शिकार होंगे। उस वक़्त हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की न्याय फैलाने वाली तलवार उनके सामने आयेगी और यही ख़ुदा वन्दे आलम का बदला होगा।

इस बारे का आखरी नुक्ता यह है कि अक़ीदे की यह एकता (यानी सभी का मुसलमान हो जाना) हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत के ज़माने में पेश आयेगी और यह मौक़ा विश्वव्यापी समाज की स्थापना के लिए बहुत उचित होगा। उस वक़्त पूरी दुनिया अकीदे में इसी एकता और एकेश्वरवाद के क़ानून को क़बूल करेगी और उसकी छत्र छाया में अपने व्यक्तिगत और सामाजिक संबंध इसी एक अक़ीदे से प्राप्त होने वाली कसौटी के आधार पर व्यवस्थित करेंगे। इस वर्णन के अनुसार एक अक़ीदे व एक दीन के झंडे के नीचे जमा होना उस वक़्त की एक वास्तविक ज़रुरत होगी जो हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत में पूरी होगी।

शाँती व सुरक्षा

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत में जब ज़िन्दगी के हर पहलु में अच्छाइयाँ और नेकियां आम हो जायेंगी तो शांति व सुरक्षा प्राप्त होगी जो इलाही नेमतों में से एक बड़ी नेमत है और इंसान की सब से बड़ी तमन्ना है।

जिस वक़्त तमाम इंसान एक अकीदा होकर इस्लाम की पैरवी करेंगे और समाज के बीच उच्च अख़लाक़ी मर्यादाएं लागू होंगी और अदालत हर इंसान पर हाकिम होगी तो फिर ज़िन्दगी के किसी भी हिस्से में अशाँति और खौफ व दहशत के लिए कोई जगह बाक़ी नहीं रहेगी। जिस समाज में हर इंसान को उसका हक़ मिल रहा होगा तो फिर वह किसी दूसरे पर ज़ुल्म व सितम और इंसानी व इलाही अधिकारों को पामाल नहीं करेगा , और अगर कोई ऐसा करेगा तो उसके साथ सख्त कार्रवाई की जायेगी। इस लिए उस ज़माने में हर तरफ़ शाँति और सकून रहेगा।

हज़रत अली (अ.स.) ने फरमाया :

हमारे ज़रिये और हमारी हुकूमत के ज़रिये एक सख्त ज़माना गुज़रा है और जब हमारा क़ाइम क़ियाम करेगा तो दिलों से दुशमनी और ईर्ष्या निकल जायेगी। पशुओं में भी आपस में एकता होगी , उस ज़माने में ऐसा चैन सकून स्थापित होगा कि औरतें अपने ज़ेवर पहन कर इराक़ से शाम तक का सफर करेंगी....लेकिन उन के दिल में किसी तरह का कोई डर नहीं होगा...

प्रियः पाठकों ! हम चूँकि अन्याय लालच और ईर्ष्या व दुश्मनी के ज़माने में ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं इस लिए हमारे लिए उस हरी भरी व ख़ुशियों पर आधारित दुनिया का तसव्वुर बहुत मुशकिल है। लेकिन जैसे कि हमने उल्लेख किया अगर हम अपनी बुराइयों और गुनाहों के कारणों के बारे में गौर व फिक्र करें और यह तसव्वुर करें कि तमाम बुराइयां हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत में खत्म हो जायेंगी तो हमें मालूम हो जायेगा कि समाज में शाँति व सुरक्षा स्थापित होने का अल्लाह का वादा यक़ीनी है।

ख़ुदा वन्दे आलम कुरआने मजीद में फरमाता है कि

وَعَدَ اللهُ الَّذِینَ آمَنُوا مِنْکُمْ وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَیَسْتَخْلِفَنَّہُم فِی الْاٴَرْضِ کَمَا اسْتَخْلَفَ الَّذِینَ مِنْ قَبْلِہِمْ وَلَیُمَکِّنَنَّ لَہُمْ دِینَہُمْ الَّذِی ارْتَضَی لَہُمْ وَلَیُبَدِّلَنَّہُمْ مِنْ بَعْدِ خَوْفِہِمْ اٴَمْنًا۔۔۔

तुम में से जिन्होने ईमान लाने के बाद नेक काम किये अल्लाह ने उनसे वादा किया है कि उन्हें ज़मीन पर उसी तरह खलीफा बनाएगा जिस तरह पहले वालों को बनाया है और उनके लिए उस दीन को ग़ालिब बनायेगा जिसे उनके लिए पसन्द किया है और उनके खौफ़ को अमन से बदल देगा।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ.स.) ने इसकी तफ़्सीर करते हुए फरमाया :

यह आयत हज़रत इमाम क़ाइम (अ.स.) और उनके असहाब के बारे में नाज़िल हुई है...

इल्म की तरक्की

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत के ज़माने में इस्लामी और इंसानी उलूम के बहुत से राज़ खुल जायेंगे और इंसान का इल्म बहुत तेज़ी से तरक़्क़ी करेगा।

हज़रत इमाम सादिक (अ.स.) ने फरमाया :

इल्म के 27 हर्फ हैं , और जो कुछ भी तमाम नबी (अ.स.) लेकर आये हैं वह सिर्फ तीन हर्फ़ हैं , जबकि जनता उनमें से दो हर्फो के भी नहीं जानती , जिस वक़्त हमारे क़ाइम का ज़हूर होगा तो वह उन बाक़ी 25 हरफ़ों के इल्म की भी लोगों को तालीम देंगे और उन दो हरफो को भी उनमें मिला देंगे जिसके बाद तमाम 27 हर्फ़ का इल्म नशर फरमायेंगे...

ज़ाहिर सी बात है कि इंसान इल्म के हर पहलु में तरक़्क़ी करेगा , अनेकों रिवायतों में होने वाले इशारों से मालूम होता है कि उस ज़माने औद्योगिक ज्ञान आज के ज़माने से कहीं ज़्यादा होगा।

जैसे कि इस वक़्त का उद्योग शताब्दियों पहले उद्योगों से बहुत ज़्यादा फर्क रखता है।

प्रियः पाठकों! हम यहाँ पर इस बारे में बयान होने वाली कुछ रिवायतों की तरफ़ इशारा करते हैं।

हज़रत इमाम सादिक (अ.स.) ने हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत की कैफियत के बारे में फरमाया :

क़ाइम आले मुहम्मद (स.) की हुकूमत के ज़माने में पूरब में रहने वाला मोमिन अपने पश्चिम में रहने वाले भाई को देखता होगा …

इसी तरह इमाम (अ.स.) ने फरमाया :

जिस वक़्त हम अहलेबैत (अ.स.) का क़ाइम ज़हूर करेगा तो ख़ुदा वन्दे आलम हमारे शियों की आँखो और कानों की ताक़त बढ़ा देगा इस तरह से हज़रत इमाम महदी (अ.स.) चार फर्सख़ (22 किलो मीटर) के फासले से अपने शियों से बात चीत करेंगे और वह उनकी बातों को सुनेंगे और उनको देखते भी होंगे हाँलाकि वह अपनी जगह पर खड़े होंगे।

हज़रत इमाम महदी (अ.स.) की हुकूमत में हुक्म सादिर करने वाले के रूप में इमाम के लोगों के हालात से बाखबर होने के बारे में रिवायतों कहती है कि

अगर कोई इंसान अपने घर में बात करेगा तो उसे इस चीज़ का खौफ़ होगा कि कहीं उसके घर की दिवारें उसकी बातों को (इमाम अ. स.) तक न पहुँचा दें।

आज कल की तकनीकी तरक़्क़ी के मद्दे नजर इन रिवायतों को समझना आसान है लेकिन यह बात स्पष्ट नहीं है कि क्या यही साधन और अधिक तरक़्क़ी के साथ इस्तेमाल किये जायेंगे या कोई इस से ज़्यादा अच्छी तकनीक इस्तेमाल की जायेगी।