खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

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खुतबाते इमाम अली (उपदेश) लेखक:
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

128-आपका इरशादे गिरामी

(बसरा के हवादिस की ख़बर देते हुए)

ऐ अहनफ़! गेया के मैं उस शख़्स को देख रहा हूँ जो एक ऐसा लशकर लेकर आया है जिसमें न गर्द व ग़ुबार है और न शोर वग़ोग़ा है , न लजामों की खड़खड़ाहट है और न घोड़ों की हिनहिनाहट , यह ज़मीन को उसी तरह रोन्द रहे हैं जिस तरह शुर्तमुर्ग़ के पैर।

सय्यद रज़ी - हज़रत ने इस ख़बर में साहबे रन्ज की तरफ़ इशारा किया है (जिसका नाम अली बिन मोहम्मद था और उसने सन 225हि 0में बसरा में ग़ुलामों को मालिकों के खि़लाफ़ मुत्तहिद किया और हर ग़ुलाम से उसके मालिक को 500कोड़े लगवाए।

अफ़सोस है तुम्हारी आबाद गलियों और उन सजे सजाए मकानात के हाल पर जिन के छज्जे गिदों के पर और हाथियों के सूंड़ के मानिन्द हैं उन लोगों की तरफ़ से जिनके मक़तूल पर गिरया नहीं किया जाता है और उनके ग़ाएब को तलाश नहीं किया जाता है , मैं दुनिया को मुंह के बल औन्धा कर देने वाला और इसकी सही औक़ात का जानने वाला और उसकी हालत को उसके शायाने शान निगाह से देखने वाला हूँ।

( तुर्कों के बारे में) मैं एक ऐसी क़ौम को देख रहा हूँ जिनके चेहरे चमड़े से मन्ढी ढाल के मानिन्द हैं , रेशम व दीबा के लिबास पहनते हैं और बेहतरीन असील घोड़ों से मोहब्बत रखते हैं , उनके दरम्यान अनक़रीब क़त्ल की गर्म बाज़ारी होगी जहाँ ज़ख़्मी मक़तूल के ऊपर से गुज़रंेगे और भागने वाले क़ैदियों से कम होंगे। (यह तातारियों के फ़ित्ने की तरफ़ इशारा है जहां चंगेज़ ख़ाँ और उसकी क़ौम ने तमाम इस्लामी मुल्कों को तबाह व बरबाद कर दिया और कुत्ते , सुअर को

अपनी ग़िज़ा बनाकर ऐसे हमले किये के शहरों को ख़ाक में मिला दिया) यह सुनकर एक शख़्स ने कहा के आप तो इल्मे ग़ैब की बातें कर रहे हैं तो आपने मुस्कुराकर इस कलबी शख़्स से फ़रमाया ऐ बरादरे कल्बी! यह इल्मे ग़ैब नहीं है बल्के साहेबे इल्म से तअल्लुम है।

(((- बनी तमीम के सरदार अहनफ़ बिन क़ैस से खि़ताब है जिन्होंने रसूले अकरम (स 0) की ज़ेयारत नहीं की मगर इस्लाम क़ुबूल किया और जंगे जमल के मौक़े पर अपने इलाक़े में उम्मुल मोमेनीन के फ़ित्नों का दिफ़ाअ करते रहे और फिर जंगे सिफ़फ़ीन में मौलाए कायनात के साथ शरीक हो गए और जेहाद राहे ख़ुदा का हक़ अदा कर दिया।-)))

इल्मे ग़ैब क़यामत का और उन चीज़ों का इल्म है जिनको ख़ुदा ने क़ुराने मजीद में शुमार कर दिया है के अल्लाह के पास क़यामत का इल्म है बारिश के बरसाने वाला वही है और पेट में पलने वाले बच्चे का मुक़द्दर वही जानता है। उसके अलावा किसी को नहीं मालूम है के वह क्या कमाएगा और किस सरज़मीन पर मौत आएगी। परवरदिगार जानता है के रह्म का बच्चा लड़का है या लड़की , हसीन है या बदसूरत , सख़ी है या बख़ील , शफ़ी है या सईद , कौन जहन्नम का कुन्दा बन जाएगा और कौन जन्नत में अम्बियाए कराम का हमनशीन होगा। यह वह इल्मे ग़ैब है जिसे ख़ुदा के अलावा कोई नहीं जानता है। इसके अलावा जो भी इल्म है वह ऐसा इल्म है जिसे अल्लाह ने पैग़म्बर (स 0) को तालीम दिया है और उन्होंने मुझे इसकी तालीम दी है और मेरे हक़ में दुआ की है के मेरा सीना उसे महफ़ूज़ कर ले और उस दिल में उसे महफ़ूज़ कर दे जो मेरे पहलू में हो।

129-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(नाप तौल के बारे में)

अल्लाह के बन्दों! तुम और जो कुछ इस दुनिया से तवक़्क़ो रखते हो सब एक मुक़र्ररा मुद्दत के मेहमान हैं और ऐसे क़र्जदार हैं जिनसे क़र्ज़ का मुतालबा हो रहा हो , उम्रें घट रही हैं और आमाल महफ़ूज़ किये जा रहे हैं , कितने दौड़ धूप करने वाले हैं जिनकी मेहनत बरबाद हो रही है और कितने कोशिश करने वाले हैं जो मुसलसल घाटे का शिकार हैं। तुम ऐसे ज़माने में ज़िन्दगी गुज़ार रहे हो जिसमें नेकी मुसलसल मुंह फेरकर जा रही है और बुराई बराबर सामने आ रही है। शैतान लोगों को तबाह करने की हवस में लगा हुआ है , इसका साज़ व सामान मुस्तहकम हो चुका है उसकी साज़िशे आम हो चुकी हैं और उसके शिकार उसके क़ाबू में हैं। तुम जिधर चाहो निगाह उठाकर देख लो सिवाए उस फ़क़ीर के जो फ़क़्र की मुसीबत झेल रहा है और उस अमीर के जिसने नेमते ख़ुदा की नाषुक्री की है और उस कंजूसी के जिसने हक़क़े ख़ुदा में बुख़्ल ही को माल के इज़ाफ़े का ज़रिया बना लिया है और उस सरकश के जिसके कान नसीहतों के लिये बहरे हो गए हैं और कुछ नज़र नहीं आएगा। कहां चले गए वह नेक और स्वालेह बन्दे और किधर हैं वह शरीफ़ और करीमुन्नफ़्स लोग , कहां हैं वह अफ़राद जो कस्ब माश में एहतियात बरतने वाले थे और रास्तों में पाकीज़ा रास्ता इख़्तेयार करने वाले थे , क्या सब के सब इस पस्त और ज़िन्दगी को मकदर बना देने वाली दुनिया से नहीं चले गये और क्या तुम्हें ऐसे अफ़राद में नहीं छोड़ गए जिनकी हिक़ारत और जिनके ज़िक्र से एराज़ की बिना पर होंठ सिवाए इनकी मज़म्मत के किसी बात के लिये आपस में नहीं मिलते हैं। इन्ना लिल्लाह व इन्ना इलैहे राजेऊन। फ़साद इस क़द्र फ़ैल चुका है के न कोई हालात का बदलने वाला है और न कोई मना करने वाला और न ख़ुद परहेज़ करने वाला है तो क्या तुम इन्हीं हालात के ज़रिये ख़ुदा के मुक़द्दस जवार में रहना चाहते हो और उसके अज़ीज़तरीन दोस्त बनना चाहते हो। अफ़सोस! अल्लाह को जन्नत के बारे में धोका नहीं दिया जा सकता है और न उसकी मर्ज़ी को इताअत के बग़ैर हासिल किया जा सकता है। अल्लाह लानत करे उन लोगों पर जो दूसरों को नेकियों का हुक्म देते हैं और ख़ुद अमल नहीं करते हैं। समाज को बुराइयों से रोकते हैं और ख़ुद उन्हीं में मुब्तिला हैं।

130-आपका इरशादे गिरामी

(जो आपने अबूज़र ग़फ़्फ़ारी से फ़रमाया जब उन्हें रब्ज़ा की तरफ़ शहर बदर कर दिया गया)

अबूज़र! तुम्हारा ग़ैज़ व ग़ज़ब अल्लाह के लिये है लेहाज़ा उससे उम्मीद वाबस्ता रखो जिसके लिये यह ग़ैज़ व ग़ज़ब इख़्तेयार किया है। क़ौम को तुमसे अपनी दुनिया के बारे में ख़तरा था और तुम्हें उनसे अपने दीन के बारे में ख़ौफ़ था लेहाज़ा जिसका उन्हें ख़तरा था वह उनके लिये छोड़ दो और जिसके लिये तुम्हें ख़ौफ़ था उसे बचाकर निकल जाओ। यह लोग बहरहाल उसके मोहताज हैं जिसको तुमने उनसे रोका है और तुम उससे बहरहाल बेनियाज़ हो जिससे इन लोगों ने तुम्हें महरूम किया है। अनक़रीब यह मालूम हो जाएगा के फ़ायदे में कौन रहा और किससे हसद करने वाले ज़्यादा हैं। याद रखो के किसी बन्दए ख़ुदा पर अगर ज़मीन व आसमान दोनों के रास्ते बन्द हो जाएं और वह तक़वाए इलाही इख़्तेयार कर ले तो अल्लाह उसके लिये कोई न कोई रास्ता ज़रूर निकाल देगा। देखो तुम्हें सिर्फ़ हक़ से उन्स और बातिल से वहशत होनी चाहिए तुम अगर इनकी दुनिया को क़ुबूल कर लेते तो यह तुमसे मोहब्बत करते और अगर दुनिया में से अपना हिस्सा ले लेते तो तुम्हारी तरफ़ से मुतमइन हो जाते।

131-आपका इरशादे गिरामी

(जिसमें अपनी हुकूमत तलबी का सबब बयान फ़रमाया है और इमामे बरहक़ के औसाफ़ का तज़किरा किया है।)

अगर वह लोग जिनके नफ़्स मुख़्तलिफ़ हैं और दिल मुतफ़र्रिक़ , बदन हाज़िर हैं और अक़्लें ग़ायब , मैं तुम्हें मेहरबानी के साथ हक़ की दावत देता हूँ और तुम इस तरह फ़रार करते हो जैसे शेर की डकार से बकरियां। अफ़सोस तुम्हारे ज़रिये अद्ल की तारीकियों को कैसे रौशन किया जा सकता है और हक़ में पैदा हो जाने वाली कजी को किस तरह सीधा किया जा सकता है। ख़ुदाया तू जानता है के मैंने हुकूमत के बारे में जो एक़दाम किया है उसमें न सलतनत की लालच थी और न माले दुनिया की तलाश , मेरा मक़सद सिर्फ़ यह था के दीन के आसार को उनकी मन्ज़िल तक पहुंचाऊं और शहरों में इस्लाह पैदा कर दूँ ताके मज़लूम बन्दे महफ़ूज़ हो जाएं और मोअत्तल हुदूद क़ाएम हो जाएं। ख़ुदाया तुझे मालूम है के मैंने सबसे पहले तेरी तरफ़ रूख़ किया है और उसे क़ुबूल किया है और तेरी बन्दगी में रसूले अकरम (स 0) के अलावा किसी ने भी मुझ पर सबक़त नहीं की है।

तुम लोगों को मालूम है के लोगों की आबरू , उनकी जान , उनके मनाफ़े , इलाही एहकाम और इमामते मुस्लेमीन का ज़िम्मेदार न कोई बख़ील हो सकता है के वह अमवाले मुस्लेमीन पर हमेशा दांत लगाए रहेगा और न कोई जाहिल हो सकता है के वह अपनी जेहालत से लोगो को गुमराह कर देगा और न कोई बद अख़लाक़ हो सकता है के वह बद अख़लाक़ी के चरके लगाता रहेगा और न कोई मालियात का बद दियानत हो सकता है के वह एक को माल दे देगा और एक को महरूम कर देगा और न कोई फैसले में रिश्वत लेने वाला हो सकता है के वह हुक़ूक़ को बरबाद कर देगा और उन्हें इनकी मन्ज़िल तक न पहुंचने देगा और न कोई सुन्नत को मुअत्तल करने वाला हो सकता है के वह उम्मत को हलाक कर देगा।

132-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें लोगों को नसीहत फ़रमाई है और ज़ोहद की तरग़ीब दी है)

शुक्र है ख़ुदा का उस पर भी जो दिया है और उस पर भी जो ले लिया है। उसके इनआम पर भी और उसके इम्तेहान पर भी वह हर मख़फ़ी के अन्दर का भी इल्म रखता है और हर पोशीदा अम्र के लिये हाज़िर भी है। दिलों के अन्दर छिपे हुए इसरार और आँखों के चोरी छिपे इशारों को बख़ूबी जानता है और मैं इस बात की गवाही देता हूं के उसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है और हज़रत मोहम्मद (स 0) उसके भेजे हुए रसूल हैं और इस गवाही में बातिन ज़ाहिर से और दिल ज़बान से हम आहंग है।

ख़ुदा की क़सम वह शै जो हक़ीक़त है और खेल तमाशा नहीं है , हक़ है और झूठ नहीं है वह सिर्फ़ मौत है जिसके दाई ने अपनी आवाज़ सबको सुना दी है और जिसका हंकाने वाला जल्दी मचाए हुए है लेहाज़ा ख़बरदार लोगों की कसरत तुम्हारे नफ़्स को धोके में न डाल दे , तुम देख चुके हो के तुमसे पहले वालों ने माल जमा किया , इफ़लास से ख़ौफ़ज़दा रहे , अन्जाम से बेख़बर रहे , सिर्फ़ लम्बी-लम्बी उम्मीदों और मौत की ताख़ीर के ख़याल में रहे और एक मरतबा मौत नाज़िल हो गई और उसने उन्हें वतन से बेवतन कर दिया। महफ़ूज़ मक़ामात से गिरफ़तार कर लिया और ताबूत पर उठवा दिया जहां लोग कान्धों पर उठाए हुए , उंगलियों का सहारा दिये हुए एक-दूसरे के हवाले कर रहे थे। क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो दूर दराज़ उम्मीदें रखते थे और मुस्तहकम मकानात बनाते थे और बेतहाशा माल जमा करते थे के किसी तरह उनके घर क़ब्रों में तब्दील हो गए और सब किया धरा तबाह हो गया। अब अमवाल विरसे के लिये हैं और अज़वाज दूसरे लोगों के लिये। न नेकियों में इज़ाफ़ा कर सकते हैं और न बुराइयों के सिलसिले में रिज़ाए इलाही का सामान फ़राहम कर सकते हैं। याद रखो जिसने तक़वा को शआर बना लिया वही आगे निकल गया और उसी का अमल कामयाब होगा , लेहाज़ा तक़वा के मौक़े को ग़नीमत समझो और जन्नत के लिये उसके आमाल अन्जाम दे लो। यह दुनिया तुम्हारे क़याम की जगह नहीं है। यह फ़क़त एक गुज़रगाह है के यहाँ से हमेशगी के मकान के लिये सामान फ़राहम कर लो , लेहाज़ा जल्दी तैयारी करो और सवारियों को कूच के लिये अपने से क़रीबतर कर लो।

133-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें अल्लाह की अज़मत और क़ुरआन की जलालत का ज़िक्र है और फिर लोगों को नसीहत भी की गई है)

( परवरदिगार) दुनिया व आख़ेरत दोनों ने अपनी बागडोर उसी के हवाले कर रखी है और ज़मीन व आसमान ने अपनी कुन्जीयात उसी की खि़दमत में पेश कर दी है। उसकी बारगाह में सुबह व शाम सरसब्ज़ व शादाब दरख़्त सजदारेज़ रहते हैं और अपनी लकड़ियों से चमकदार आग निकालते रहते हैं और उसी के हुक्म के मुताबिक़ पके हुए फल पेश करते रहते हैं।

(((- इन्सानी ज़िन्दगी में कामयाबी का राज़ यही एक नुक्ता है के यह दुनिया इन्सान की मन्ज़िल नहीं है बल्कि एक गुज़रगाह है जिससे गुज़रकर एक अज़ीम मन्ज़िल की तरफ़ जाना है और यह मालिक का करम है के उसने यहाँ से सामान फ़राहम करने की इजाज़त दे दी है और यहाँ के सामान को वहाँ के लिये कारआमद बना दिया है। यह और बात है के दोनों जगह का फ़र्क़ यह है के यहाँ के लिये सामान रखा जाता है तो काम आता है और वहाँ के लिये राहे ख़ुदा में दे दिया जाता है तो काम आता है। ग़नी और मालदार दुनिया सजा सकते हैं लेकिन आख़ेरत नहीं बना सकते हैं। वह सिर्फ़ करीम और साहबे ख़ैर अफ़राद के लिये है जिनका शआर तक़वा है और जिनका एतमाद वादाए इलाही पर है।-)))

( क़ुराने हकीम) किताबे ख़ुदा निगाह के सामने है वह नातिक़ है जिसकी ज़बान आजिज़ नहीं होती है और वह घर है जिसके अरकान मुनहदिम नहीं होते हैं , यही वह इज़्ज़त है जिसके ऐवान व अन्सार शिकस्त ख़ोरदा नहीं होते हैं।

( रसूले अकरम स 0) अल्लाह ने आपको उस वक़्त भेजा जब रसूलों का सिलसिला रूका हुआ था और ज़बानें आपस में टकरा रही थीं। आपके ज़रिये रसूलों के सिलसिले को तमाम किया और वही के सिलसिले को मौक़ूफ़ किया तो आपने भी उससे इन्हेराफ़ करने वालों और उसका हमसर ठहराने वालों से जम कर जेहाद किया। (दुनिया) यह दुनिया अन्धे की बसारत की आख़री मन्ज़िल है जो उसके मावरा कुछ नहीं देखता है जबके साहेबे बसीरत की निगाह उस पार निकल जाती है और वह जानता है के मन्ज़िल उसके मावदा है। साहबे बसीरत उससे कूच करने वाला है और अन्धा इसकी तरफ़ कूच करने वाला है। बसीर इससे ज़ादे राह फ़राहम करने वाला है और अन्धा इसके लिये ज़ादे राह इकट्ठा करने वाला है।

( मोअज़) याद रखो के दुनिया में जो शै भी है उसका मालिक सेर हो जाता है और उकता जाता है अलावा ज़िन्दगी के , के कोई शख़्स मौत में राहत नहीं महसूस करता है और यह बात उस हिकमत की तरह है जिसमें मुर्दा दिलों की ज़िन्दगी , अन्धी आंखों की बसारत , बहरे कानों की समाअत और प्यासे की सेराबी का सामान है और इसी में सारी मालदारी है और मुकम्मल सलामती है।

यह किताबे ख़ुदा है जिसमें तुम्हारी बसारत और समाअत का सारा सामान मौजूद है। इसमें एक हिस्सा दूसरे की वज़ाहत करता है और एक दूसरे की गवाही देता है। यह ख़ुदा के बारे में इख़्तेलाफ़ नहीं रखता है और अपने साथी को ख़ुदा से अलग नहीं करता है , मगर तुमने आपस में कीना व हसद पर इत्तेफ़ाक़ कर लिया है और इसी घूरे पर सब्ज़ा उग आया है। उम्मीदों की मोहब्बत में एक-दूसरे से हम-आहंग हो और माल जमा करने में एक-दूसरे के दुशमन हो , शैतान ने तुम्हें सरगर्दां कर दिया है और फ़रेब ने तुमको बहका दिया है। अब अल्लाह ही मेरे और तुम्हारे नफ़्सों के मुक़ाबले में एक सहारा है।

(((- अगरचे दुनिया में ज़िन्दा रहने की ख़्वाहिश आम तौर से आख़ेरत के ख़ौफ़ से पैदा होती है के इन्सान अपने आमाल और अन्जाम की तरफ़ से मुतमईन नहीं होता है और इसी लिये मौत के तसव्वुर से लरज़ जाता है लेकिन इसके बावजूद यह ख़्वाहिश ऐब नहीं है बल्कि यही जज़्बा है जो इन्सान को अमल करने पर आमादा करता है और इसी के लिये इन्सान दिन और रात को एक कर देता है। ज़रूरत इस बात की है के इस ख़्वाहिशे हयात को हिकमत के साथ इस्तेमाल करे और उससे वैसा ही काम ले जो हिकमत सही और फ़िक्रे सलीम से लिया जाता है वरना यही ख़्वाहिश वबाले जान भी बन सकती है।-)))

134-आपका इरशादे गिरामी

(जब उमर ने रोम की जंग के बारे में आपसे मशविरा किया)

अल्लाह ने साहेबाने दीन के लिये यह ज़िम्मेदारी ले ली है के वह उनके हुदूद को तक़वीयत देगा और उनके महफ़ूज़ मक़ामात की हिफ़ाज़त करेगा , और जिसने उनकी उस वक़्त मदद की है जबके वह क़िल्लत की बिना पर इन्तेक़ाम के क़ाबिल नहीं थे और अपनी हिफ़ाज़त का इन्तेज़ाम भी न कर सकते थे , वह अभी भी ज़िन्दा है और उसके लिये मौत नहीं है। अगर ख़ुद दुशमन की तरफ़ जाओगे और उनका सामना करोगे और निकबत में मुब्तिला हो गए तो मुसलमानों के लिये आख़ेरी शहर के अलावा कोई पनाहगाह न रह जाएगी और तुम्हारे बाद मैदान में कोई मरकज़ भी न रह जाएगा जिसकी तरफ़ रूजू कर सकें लेहाज़ा मुनासिब यही है के किसी तजुर्बेकार आदमी भेजो और उसके साथ साहेबाने ख़ैर व महारत की एक जमाअत को कर दो। उसके बाद अगर ख़ुदा ने ग़लबा दे दिया तो यही तुम्हारा मक़सद है अगर इसके खि़लाफ़ हो गया तो तुम लोगों का सहारा और मुसलमानों के लिये एक पलटने का मरकज़ रहोगे।