खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

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खुतबाते इमाम अली (उपदेश) लेखक:
कैटिगिरी: इमाम अली (अ)

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

143आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(तलबे बारिश के सिलसिले में)

याद रखो के जो ज़मीन तुम्हारा बोझ उठाए हुए है और जो आसमान तुम्हारे सर पर सायाफ़िगाँ है दोनों तुम्हारे रब के इताअतगुज़ार हैं और यह जो अपनी बरकतें तुम्हें अता कर रहे हैं तो उनका दिल तुम्हारे हाल पर नहीं कुढ़ रहा है।

और न यह तुमसे तक़र्रब चाहते हैं और न किसी ख़ैर के उम्मीदवार हैं। बात सिर्फ़ यह है के उन्हें तुम्हारे फ़ायदों के बारे में हुक्म दिया गया है तो यह इताअते परवरदिगार कर रहे हैं और उन्हें तुम्हारे मसालेह के हुदूद पर खड़ा कर दिया गया है तो खड़े हुए हैं।

याद रखो के अल्लाह बदआमालियों के मौक़े पर अपने बन्दों को उन मसाएब में मुब्तिला कर देता है के फल कम हो जाते हैं , बरकतें रूक जाती हैं , ख़ैरात के ख़ज़ानों के मुंह बन्द हो जाते हैं ताके तौबा करने वाला तौबा कर ले और बाज़ आ जाने वाला बाज़ आ जाए। नसीहत हासिल करने वाला नसीहत हासिल कर ले और गुनाहों से रूकने वाला रूक जाए। परवरदिगार ने अस्तग़फ़ार को रिज़्क़ के नुज़ूल और मख़लूक़ात पर रहमत के विरूद का ज़रिया क़रार दे दिया है। उसका इरशादे गिरामी है के “ अपने रब से अस्तग़फ़ार करो के वह बहुत ज़्यादा बख़्शने वाला है। वह अस्तग़फ़ार के नतीजे में तुम पर मूसलाधार पानी बरसाएगा। तुम्हारी अमवाल और औलाद के ज़रिये मदद करेगा , तुम्हारे लिये बाग़ात और नहरें क़रार देगा। ” अल्लाह उस बन्दे पर रहम करे जो तौबा की तरफ़ मुतवज्जे हो जाए , ख़ताओं से माफ़ी मांगे और मौत से पहले नेक आमाल कर ले।

ख़ुदाया हम परदों के पीछे और मकानात के गोशों से तेरी तरफ़ निकल पड़े हैं , हमारे बच्चे और जानवर सब फ़रयादी हैं। हम तेरी रहमत की ख़्वाहिश रखते हैं। तेरी नेमत के उम्मीदवार हैं और तेरे अज़ाब और ग़ज़ब से ख़ौफ़ज़दा हैं। ख़ुदाया हमें बाराने रहमत से सेराब कर दे और हमें मायूस बन्दों में क़रार न देना और न क़हत से हलाक कर देना और न हमसे उन आमाल का मुहासेबा करना जो हमारे जाहिलों ने अन्जाम दिये हैं। ऐ सबसे ज़्यादा रहम करने वाले!

ख़ुदाया हम तेरी तरफ़ उन हालात की फ़रयाद लेकर आए हैं जो तुझसे मख़फ़ी नहीं हैं और उस वक़्त निकले हैं जब हमें सख़्त तंगियों ने मजबूर कर दिया है और क़हत सालियों ने बेबस बना दिया है और शदीद हाजत मन्दियों ने लाचार कर दिया है और दुष्वारियों व फ़ित्नों ने ताबड़तोड़ हमले कर रखे हैं। ख़ुदाया हमारी इल्तेमास यह है के हमें महरूम वापस न करना और हमें नामुराद न पलटाना। हमसे हमारे गुनाहों की बात न करना और हमारे आमाल का मुहासेबा न करना बल्के हम पर अपनी बारिश रहमत , अपनी बरकत , अपने रिज़्क़ और करम का दामन फैला दे और हमें ऐसी सेराबी अता फ़रमा जो तष्नगी को मिटाने वाली , सेर व सेराब करने वाली और सब्ज़ा उगाने वाली हो ताके जो खेतियां गई गुज़री हो गई हैं दोबारा उग आएं और जो ज़मीनें मुर्दा हो गई हैं वह ज़िन्दा हो जाएं। यह सेदाबी फ़ायदेमन्द और बेपनाह फलों वाली हो जिससे हमवार ज़मीनें सेराब हो जाएं और वादियां बह निकलें। दरख़्तों में पत्ते निकल आएं और बाज़ारी की क़ीमतें नीचे आ जाएं के तू हर शै पर क़ादिर है।

144-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें बअसत अम्बिया का तज़किरा किया गया है)

परवरदिगार ने मुरसेलीन कराम को मख़सूस वही से नवाज़ कर भेजा है और उन्हें अपने बन्दों पर अपनी हुज्जत बना दिया है ताके बन्दों की यह हुज्जत तमाम न होने पाए के उनके बहाने का ख़ातेमा नहीं किया गया है। परवरदिगार ने इन लोगों को इसी लिसाने सिद्क़ के ज़रिये राहे हक़ की तरफ़ दावत दी है। इसे मख़लूक़ात का हाल मुकम्मल तौर से मालूम है वह न उनके छिपे हुए इसरार से बेख़बर है और न पोशीदा बातों से नावाक़िफ़ है जो उनके दिलों के अन्दर मख़फ़ी है। वह अपने एहकाम के ज़रिये इनका इम्तेहान लेना चाहता है के हुस्ने अमल के एतबार से कौन सबसे बेहतर है ताके जज़ा में सवाब अता करे और पादाश में मुब्तिलाए अज़ाब कर दे।

( अहलेबैत अलैहिस्सलाम) कहाँ हैं वह लोग जिनका ख़याल यह है के हमारे बजाय वही रासख़्ून फ़िल इल्म हैं और यह ख़याल सिर्फ़ झूट और हमारे खि़लाफ़ बग़ावत से पैदा हुआ है के ख़ुदा ने हमें बलन्द बना दिया है और उन्हें पस्त रखा है। हमें कमालात इनायत फ़रमा दिये हैं और उन्हें महरूम रखा है। हमें अपनी रहमत में दाखि़ल कर दिया है और उन्हें बाहर रखा है। हमारे ही ज़रिये से हिदायत तलब की जाती है और अन्धेरों में रोशनी हासिल की जाती है। याद रखो क़ुरैश के सारे इमाम जनबा हाशिम की इसी किष्ते ज़ार में क़रार दिये गए हैं और यह अमानत न उनके अलावा किसी को ज़ेब देती है और न उनसे बाहर कोई इसका अहल हो सकता है।

( गुमराह लोग) इन लोगों ने हाज़िर दुनिया को इख़्तेयार कर लिया है और देर में आने वाली आख़ेरत को पीछे हटा दिया है। साफ़ पानी को नज़रअन्दाज़ कर दिया है और गन्दा पानी को पी लिया है। गोया के मैं उनके फ़ासिक़ को देख रहा हूँ जो मुनकिरात से मानूस हैं और बुराइयों से हमरंग व हमआहंग हो गया है , यहांतक के इसी माहौल में इसके सारे बाल सफ़ेद हो गए हैं और इसी रंग में इसके एख़लाक़ियात रंग गए हैं। इसके बाद एक सेलाब की तरह उठा है जिसे इसकी फ़िक्र नहीं है के इसको डुबो दिया है और भूसे की एक आग है जिसे इसकी परवाह नहीं है के क्या जला दिया है।

क्हां हैं वह अक़्लें जो हिदायत के चराग़ों से रोशनी हासिल करने वाली हैं और कहां हैं वह निगाहें जो मिनारए तक़वा की तरफ़ नज़र करने वाली हैं , कहां हैं वह दिल जो अल्लाह के लिये दिये गये हैं और इताअते ख़ुदा पर जम गए हैं। लोग तो माले दुनिया पर टूट पड़े हैं और हराम पर बाक़ायदा झगड़ा कर रहे हैं और जब जन्नत व जहन्नम का परचम बलन्द किया गया तो जन्नत की तरफ़ से मुँह को “ शैतान ने दावत दी तो लब्बैक कहते हुए आ गए।

145-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(दुनिया की फ़ना के बारे में)

लोगों! तुम उस दुनिया में ज़िन्दगी गुज़ार रहे हो जहाँ मौत के तीरों के मुस्तक़िल हदफ़ हो। यहाँ हर घूंट के साथ उच्छू है और हर लुक़्मे के साथ गले का फ़न्दा। यहाँ कोई नेमत उस वक़्त तक नहीं मिलती है जब तक दूसरी हाथ से निकल न जाए और यहाँ की ज़िन्दगी में एक दिन का भी इज़ाफ़ा नहीं होता है जब तक एक दिन कम न हो जाए। यहाँ के खाने में ज़्यादती भी पहले रिज़्क़ के ख़ात्मे के बाद हाथ आती है और कोई असर भी पहले निशान के मिट जाने के बाद ही ज़िन्दा होता है। हर जदीद के लिये एक जदीद को क़दीम बनना पड़ता है और हर घास के उगने के लिये एक खेत को काटना पड़ता है। पुराने बुज़ुर्ग जो हमारी असल थे गुज़र गए अब हम उनकी शाख़ें हैं और खुली हुई बात है के असल के चले जाने के बाद फ़ुरूअ की बक़ा ही क्या होती है।

( मज़म्मते बिदअत) कोई बिदअत उस वक़्त तक ईजाद नहीं होती है जब तक कोई सुन्नत मर न जाए। लेहाज़ा बिदअतों से डरो और सीधे रास्ते पर क़ायम रहो के मुस्तहकमतरीन मुआमलात ही बेहतर होते हैं और दीन में जदीद ईजादात ही बदतरीन शै होती हैं।

146-आपका इरशादे गिरामी

(जब अम्र बिन ख़त्ताब ने फ़ारस की जंग में जाने के बारे में मष्विरा तलब किया)

याद रखो के इस्लाम की कामयाबी और नाकामयाबी का दारोमदार क़िल्लत व कसरत पर नहीं है बल्कि यह दीन , दीने ख़ुदा है जिसे उसी ने ग़ालिब बनाया है और यह उसी का लशकर है जिसे उसी ने तैयार किया है और उसी ने इसकी इमदाद की है यहाँतक के इस मन्ज़िल तक पहुँच गया है और इस क़द्र फैलाव हासिल कर लिया है। हम परवरदिगार की तरफ़ से एक वादा पर हैं और वह अपने वादे को बहरहाल पूरा करने वाला है और अपने लशकर की बहरहाल मदद करेगा।

मुल्क में निगराँ की मंिन्ज़ल महरों के इज्तेमाअ में धागे की होती है के वही सबको जमा किये रहता है और वह अगर टूट जाए तो सारा सिलसिला बिखर जाता है और फिर कभी भी जमा नहीं हो सकता है। आज अरब अगरचे क़लील हैं लेकिन इस्लाम की बिना पर कसीर हैं और अपने इत्तेहाद व इत्तेफ़ाक़ की बिना पर ग़ालिब आने वाले हैं। लेहाज़ा आप मरकज़ीन में रहें और इस चक्की को उन्हीं के ज़रिये गर्दिश दें और जंग की आग का मुक़ाबला उन्हीं को करने दें आप ज़हमत न करें के अगर आपने इस सरज़मीन को छोड़ दिया तो अरब चारों तरफ़ से टूट पड़ेंगे और सब इसी तरह शरीके जंग हो जाएंगे के जिन महफ़ूज़ मुक़ामात को आप छोड़कर गए हैं उनका मसला जंग से ज़्यादा अहम हो जाएगा।

इन अजमों ने अगर आपको मैदाने जंग में देख लिया तो कहेंगे के अरबीयत की जान यही है इस जड़ को काट दिया तो हमेशा हमेशा के लिये राहत मिल जाएगी और इस तरह उनके हमले शदीदतर हो जाएंगे और वह आपमें ज़्यादा ही लालच करेंगे और यह जो आपने ज़िक्र किया है के लोग मुसलमानों से जंग करने के लिये आ रहे हैं तो यह बात ख़ुदा को आपसे ज़्यादा नागवार है और वह जिस चीज़ को नागवार समझता है उसके बदल देने पर क़ादिर भी है। और यह जो आपने दुशमन के अदद का ज़िक्र किया है तो याद रखो के हम लोग माज़ी में भी कसरत की बिना पर जंग नहीं करते थे बल्कि परवरदिगार की नुसरत और इआनत की बुनियाद पर जंग करते थे।

147-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

परवरदिगारे आलम ने हज़रत मोहम्मद (स 0) को हक़ के साथ मबऊस किया ताके आप लोगों को बुत परस्ती से निकाल कर इबादते इलाही की मन्ज़िल की तरफ़ ले आएँ और “ शैतान की इताअत से निकाल कर रहमान की इताअत कराएं। इस क़ुरान के ज़रिये जिसे उसने वाज़ेअ और मोहकम क़रार दिया है ताके बन्दे ख़ुदा को नहीं पहचानते हैं तो पहचान लेँ और उसके मुन्किर हैं तो इक़रार कर लें और हठधर्मी के बाद उसे मान लें। परवरदिगार अपनी क़ुदरते कामेला की निशानियों के ज़रिये बग़ैर देखे जलवा नुमाँ है और अपनी सुतूत के ज़रिये उन्हें ख़ौफ़ज़्दा बनाए हुए हैं के किस तरह उसने उक़ूबतों के ज़रिये उसके मुस्तहक़ीन को तबाह व बरबाद कर दिया है और अज़ाब के ज़रिये उन्हें तहस-नहस कर दिया है।

याद रखो- मेरे बाद तुम्हारे सामने वह ज़माना आने वाला है जिसमें कोई “ शै हक़ से ज़्यादा पोशीदा और बातिल से ज़्यादा नुमायाँ न होगी। सबसे ज़्यादा रिवाज ख़ुदा और रसूल पर इफ़तरा का होगा और उस ज़माने वालों के नज़दीक किताबे ख़ुदा से ज़्यादा बेक़ीमत कोई क़िताअ न होगी अगर इसकी वाक़ेई तिलवात की जाए और इससे ज़्यादा कोई फ़ायदेमन्द बज़ाअत न होगी अगर इसके मफ़ाहिम को उनकी जगह से हटा दिया जाए। शहरों में “ मुन्किर ” से ज़्यादा मारूफ़ और “ मारूफ़ ” से ज़्यादा मुन्किर कुछ न होगा। हामेलाने किताब को छोड़ देंगे और हाफ़िज़ाने क़ुरान क़ुरान को भुला देंगे। किताब और उसके वाक़ेई अहल शहर बदर कर दिये जाएंगे और दोनों एक ही रास्ते पर इस तरह चलेंगे के कोई पनाह देने वाला न होगा। किताब और अहले किताब इस दौर में लोगों के दरम्यान रहेंगे लेकिन वाक़ेअन न रहेंगे। उन्हीं के साथ रहेंगे लेकिन हक़ीक़तन अलग रहेंगे। इसलिये के गुमराही हिदायत के साथ नहीं चल सकती है चाहे एक ही मक़ाम पर रहे। लोगों ने इफ़्तेराक़ पर इत्तेहाद और इत्तेहाद पर इफ़तेराक़ कर लिया है जैसे यही क़ुरान के पेशवा हैं और क़ुरान उनका पेशवा नहीं है। अब उनके पास सिर्फ़ क़ुरान का नाम बाक़ी रह गया है और वह सिर्फ़ उसकी किताबत व इबारत को पहचानते हैं और बस! इसके पहले भी यह नेक किरदारों को बेहद आज़ियत कर चुके हैं और इनकी सिदाक़त को इफ़तेरा का नाम दे चुके हैं उन्हें नेकियों पर बुराइयों की सज़ा दे चुके हैं।

तुम्हारे पहले वाले सिर्फ़ इसलिये हलाक हो गये के उनकी उम्मीदें दराज़ थीं और मौत उनकी निगाहों से ओझल थी यहाँतक के वह मौत नाज़िल हो गई जिसके बाद माज़रत वापस कर दी जाती है और तौबा की मोहलत उठा ली जाती है और मुसीबत व अज़ाब का वुरूद हो जाता है।

ऐ लोगो! जे परवरदिगार से वाक़ेअन नसीहत हासिल करना चाहता है उसे तौफ़ीक़ नसीब हो जाती है और जो उसके क़ौल को वाक़ेअन राहनुमा बनाना चाहता है उसे सीधे रास्ते की हिदायत मिल जाती है। इसलिये के परवरदिगार का हमसाया हमेशा अम्नो अमान में रहता है और उसका दुशमन हमेशा ख़ौफ़ज़दा रहता है। याद रखो जिसने अज़मते ख़ुदा को पहचान लिया है उसे बड़ाई ज़ेब नहीं देती है के ऐसे लोगों की रफ़अत व बलन्दी तवाज़अ और ख़ाकसारी ही में है और इसकी क़ुदरत के पहचानने वालों की सलामती उसके सामने सरे तस्लीम ख़म कर देने ही में है। ख़बरदार हक़ से इस तरह न भागो जिस तरह सही व सालिम ख़ारिशज़दा से , या सेहत याफ़्ता बीमार से फ़रार करता है। याद रखो तुम हिदायत को उस वक़्त तक नहीं पहचान सकते हो जब तक उसे छोड़ने वालों को न पहचान लो और किताबे ख़ुदा के अहद व पैमान को उस वक़्त तक इख़्तेयार नहीं कर सकते हो जब तक उसके तोड़ने वालों की मारेफ़त हासिल न कर लो और उसे तमस्सुक उस वक़्त तक मुमकिन नहीं है जब तक उसे नज़र अन्दाज़ करने वालों का इरफ़ान हो जाए। हक़ को उसके अहल के पास तलाश करो के यही लोग इल्म की ज़िन्दगी और जेहालत की मौत हैं। यही लोग वह हैं जिनका हुक्म उनके इल्म का और उनकी ख़ामोशी उनके तकल्लुम का और उनका ज़ाहिर उनके बातिन का पता देता है। यह लोग दीन की मुख़ालफ़त नहीं करते हैं और न उसके बारे में आपस में इख़्तेलाफ़ करते हैं दीन उनके दरम्यान बेहतरीन सच्चा गवाह और ख़ामोश बोलने वाला है।

(((- यह हर दौर का ख़ासेरा है और सरकारे दो आलम (स 0) के बाद बनी उमय्या ने तो इस इफ़तरा का बाज़ार इस तरह गर्म किया था के बाद के मोहद्देसीन को लाखों हदीसों के ज़ख़ीरे में से चन्द हज़ार के अलावा कोई हदीस सही नज़र न आई और उनमें भी बाज़ हदीसें दूसरे ओलमा की नज़र में मशकूक रह गईं।

ख़ुदा व रसूल (स 0) पर इफ़तरा के एतबार से ज़मानों को तक़सीम किया जाए तो शायद आज का दौर सद्रे इस्लाम से बेहतर ही नज़र आएगा के इस बदअमली की कसरत के बावजूद इस तरह की बेदीनी का रिवाज यक़ीनन कम हो गया है और अब मुसलमान इस क़िस्म की रिवायत साज़ी को पसन्द नहीं करते हैं अगरचे बदक़िस्मती से जाली रिवायात पर अमल कर रहे हैं-)))

148-आपका इरशादे गिरामी

(अहले बसरा (तल्हा व ज़ुबैर) के बारे में)

यह दोनों अम्रे खि़लाफ़त के अपनी ही ज़ात के लिये उम्मीदवार हैं और उसे अपनी ही तरफ़ मोड़ना चाहते हैं। इनका अल्लाह के किसी वसीले से राबेता और किसी ज़रिये से ताअल्लुक़ नहीं है। हर एक दूसरे के हक़ में कीना रखता है और अनक़रीब इसका परदा उठ जाएगा। ख़ुदा की क़सम अगर उन्होंने अपने मुद्दआ को हासिल कर लिया तो एक दूसरे की जान लेकर छोड़ेंगे और इसकी ज़िन्दगी का ख़ात्मा कर देंगे। देखो बाग़ी गिरोह उठ खड़ा हुआ है। तो राहे ख़ुदा में काम करने वाले कहाँ चले गए जबके उनके लिये रास्ते मुक़र्रर कर दिये गए हैं और उन्हें इसकी इत्तेलाअ दी जा चुकी है ? मैं जानता हूँ के हर गुमराही का एक सबब होता है और हर अहद शिकन एक शुबह ढूंढ लेता है लेकिन मैं उस शख़्स के मानिन्द नहीं हो सकता हूँ जो मातम की आवाज़ सुनता है। मौत की सनानी कानों तक आती है। लोगों का गिरया देखता है और फिर इबरत हासिल नहीं करता है।

149-आपका इरशादे गिरामी

(अपनी शहादत से क़ब्ल)

लेगों! देखो हर शख़्स जिस वक़्त से फ़रार कर रहा है उससे बहरहाल मुलाक़ात करने वाला है और मौत ही हर नफ़्स की आखि़री मन्ज़िल है और उससे भागना ही उसे पा लेना है। ज़माना गुज़र गया जबसे मैं इस राज़ की जुस्तजू में हूँ लेकिन परवरदिगार मौत के इसरार को परदए राज़ ही में रखना चाहता है। यह एक इल्म है जो ख़ज़ानए क़ुदरत में महफ़ूज़ है। अलबत्ता मेरी वसीअत यह है के किसी को अल्लाह का शरीक न क़रार देना और पैग़म्बरे अकरम (स 0) को ज़ाया न कर देना के यही दोनों दीन के सुतून हैं उन्हीं को क़ायम करो और उन्हीं दोनों चिराग़ों को रोशन रखो। इसके बाद अगर तुम मुन्तशिर नहीं होगे तो तुम पर कोई ज़िम्मेदारी नहीं है। हर शख़्स अपनी ताक़त भर बोझ का ज़िम्मेदार बनाया गया है और जाहिलों का बोझ हल्का रखा गया है के परवरदिगार रहीम व करीम है और दीन मुस्तहकम है और राहनुमा भी अलीम व दाना है। मैं कल तुम्हारे साथ था और आज तुम्हारे लिये मन्ज़िले इबरत मैं हूँ और कल तुमसे जुदा हो जाऊंगा , अल्लाह तुम्हें और मुझे दोनों को माफ़ कर दे।

देखो! इस मन्ज़िले लग़ज़िशमें अगर साबित रह गए तो क्या कहना। वरना अगर क़दम फिसल गए तो याद रखना के हम भी उन्हीं शाख़ों की छावें , उन्हीं हवाओं की गुज़रगाह और उन्हीं बादलों के साये में थे लेकिन इन बादलों के टुकड़े फ़िज़ा में फ़ैला जाओगे और इन हवाओं के निशानात ज़मीन से छुप गए।

(((- इसमें कोई शक नहीं है के मुसलमानों ने खि़लाफ़त का झगड़ा दफ़ने पैग़म्बर (स 0) से पहले ही शुरू कर दिया था और फिर उसे मुसलसल जारी रखा और मुख़्तलिफ़ अन्दाज़ से जोड़-तोड़ के ज़रिये खि़लाफ़तों का फ़ैसला होता रहा लेकिन किसी दौर में भी खि़लाफ़त के फ़ैसले के लिये तलवार और जंग का सहारा नहीं लिया गया। यह बिदअत सिर्फ़ हज़रत उम्मुलमोमेनीन की ईजाद है के उन्होंने तल्हा व ज़ुबैर की खि़लाफ़त के लिये तलवार का भी सहारा ले लिया और फिर माविया के लिये ज़मीन हमवार कर दी और उसके नतीजे में खि़लाफ़त का फ़ैसला जंग व जेदाल से शुरू हो गया और इस राह में बेशुमार जानें ज़ाया होती रहीं।

अफ़सोस के जंगे हमल और सिफ़फ़ीन में तौ शुबे की भी कोई गुन्जाइश नहीं थी , हज़रत आइशा , तल्हा , ज़ुबैर , माविया , अम्र व आस कोई ऐसा नहीं था जो हज़रत अली (अ 0) की शख़्सियत और उनके बारे में इरशादाते पैग़म्बर (स 0) से बाख़बर न हो। इसके बाद शुबह या ख़ताए इज्तेहादी का नाम देकर अवामुन्नास को तो धोका दिया जा सकता है , दावरे महशर को धोका नहीं दिया जा सकता है।-)))

मैं कल तुम्हारे हमसाये में रहा , मेरा बदन एक अरसे तक तुम्हारे दरम्यान रहा और अनक़रीब तुम उसे जसे बिला रूह की शक्ल में देखोगे जो हरकत के बाद साकिन हो जाएगा और तकल्लुम के बाद साकित हो जाएगा। अब तो तुम्हें इस ख़ामोशी , इस सुकूत और इस सुकून से नसीहत हासिल करनी चाहिए के यह साहेबाने इबरत के लिये बेहतरीन मुक़र्रर और क़ाबिले समाअत बयानात से ज़्यादा बेहतर नसीहत करने वाले हैं। मेरी तुमसे जुदाई इस शख़्स की जुदाई है जो मुलाक़ात के इन्तेज़ार में है। कल तुम मेरे ज़माने को पहचानोगे और तुम पर मेरे इसरार मुन्कशिफ होंगे और तुम मेरी सही मारेफ़त हासिल करोगे जब मेरी जगह ख़ाली हो जाएगी और दूसरे लोग इस मन्ज़िल पर क़ाबिज़ हो जाएंगे।

150-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें ज़माने के हवादिस की तरफ़ इशारा किया गया है और गुमराहों के एक गिरोह का तज़किरा किया गया है)

डन लोगों ने गुमराही के रास्तों पर चलने और हिदायत के रास्तों को छोड़ने के लिये दाहिने बायें रास्ते इख़्तेयार कर लिये हैं मगर तुम इस अम्र में जल्दी न करो जो बहरहाल होने वाला है और जिसका इन्तेज़ार किया जा रहा है और उसे दूर न समझो जो कल सामने आने वाला है के कितने ही जल्दी के तलबगार जब मक़सद को पा लेते हैं तो सोचते हैं के काश उसे हासिल न करते , आज का दिन कल के सवेरे से किस क़द्र क़रीब है।

लोगों! यह हर वादे के वुरूद और हर उस चीज़ के ज़हूर की क़ुरबत का वक़्त है जिसे तुम नहीं पहचानते हो लेहाज़ा जो शख़्स भी इन हालात तक बाक़ी रह जाए उसका फ़र्ज़ है के रौशन चिराग़ के सहारे क़दम आगे बढ़ाए और स्वालेहीन के नक़्शे क़दम पर चले ताके हर गिरह को खोल सके और हर ग़ुलामी से आज़ादी पैदा कर सके , हर मुज्तमा को बवक़्ते ज़रूरत मुन्तशिर कर सके और हर इन्तेशार को मुज्तमा कर सके और लोगों से यूँ मख़फ़ी रहे के क़या़फ़ाशिनास भी उसके नक़्शे क़दम को ताहद्दे नज़र न पा सकें। उसके बाद एक क़ौम पर इस तरह सैक़ल की जाएगी जिस तरह लोहार तलवार की धार पर सैक़ल करता है। इन लोगों की आंखों को क़ुरआन के ज़रिये रौशन किया जाएगा और उनके कानों में तफ़सीर को मुसलसल पहुंचाया जाएगा और उन्हें सुब्ह व शाम हुकुमत के जामों से सेराब किया जाएगा।

इन गुमराहों को मोहलत दी गई ताके अपनी रूसवाई को मुकम्मल कर लें और हर तग़य्युर के हक़दार हो जाएं। यहाँ तक के जब ज़माना काफ़ी गुज़र चुका और एक क़ौम फ़ित्नों से मानूस हो चुकी और जंग की तख़हम पाशियों के लिये खड़ी हो गई , तो वह लोग भी सामने आ गए जो अल्लाह पर अपने सब्र का एहसान नहीं जताते और राहे ख़ुदा में जान देने को कोई कारनामा नहीं तसव्वुर करते , यहाँ तक के जब आने वाले हुक्म क़ज़ाने आज़्माइश की मुद्दत को तमाम कर दिया।

(((- अमीरूल (अ 0) ने अपने बाद पैदा होने वाले फ़ित्नों की तरफ़ भी इशारा किया है और इस नुक्ते की तरफ़ भी मुतवज्जो किया है के ज़माना बहरहाल हुज्जते ख़ुदा से ख़ाली न रहेगा। और इस अन्धेरे में भी कोई न कोई सिराज मुनीर ज़रूर रहेगा लेहाज़ा तुम्हारा फ़र्ज़ है के इसका सहारा लेकर आगे बढ़ो और बेहतरीन नताएज हासिल कर लो। इसका बेहतरीन दौर इमाम बाक़र (अ 0) और इमाम सादिक़ (अ 0) का दौर है जहाँ चार हज़ार असहाबे फ़िक्र व नज़र इमाम (अ 0) के मदरसे में हाज़री दे रहे थे और आपके तालीमात से अपने दिल व दिमाग़ को रौशन कर रहे थे। कानों में क़ुरान सामित की आवाज़े थी और निगाहों में क़ुराने नातिक़ का जलवा-)))

तो इन्होंने अपनी बसीरत को अपनी तलवारों पर मुसल्लत कर दिया और अपने नसीहत करने वाले के हुक्म से परवरदिगार की बारगाह में झुक गए। मगर इसके बाद जब परवरदिगार ने पैग़म्बरे अकरम (स 0) को अपने पास बुला लिया तो एक क़ौम उलटे पांव पलट गई और उसे मुख़तलिफ़ रास्तों ने तबाह कर दिया। उन्होंने महमिले अक़ायद का सहारा लिया और ग़ैर क़राबतदार से ताल्लुक़ात पैदा किये और इस सबब को नज़रअन्दाज़ कर दिया जिससे मवद्दत का हुक्म दिया गया था। इमारत को जड़ से उखाड़ कर दूसरी जगह पर क़ायम कर दिया जो हर ग़लती का मोअद्दन व मख़ज़न है और हर गुमराही का दरवाज़ा थे , हैरत में सरगर्दां और आले फ़िरऔन की तरह नशे में ग़ाफ़िल थे इनमें कोई दुनिया की तरफ़ मुकम्मल कट कर आ गया था और कोई दीन से मुस्तक़िल तरीक़े पर अलग हो गया था।

151-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें फ़ित्नों से डराया गया है)

मैं ख़ुदा की हम्द व सना करता हूँ और उसकी मदद चाहता हूँ उन चीज़ों के लिये जो शयातीन को हंका सकें , भगा सकें और उसके फन्दों और हथकण्डों से महफ़ूज़ रख सकें और मैं उस अम्र की गवाही देता हूं के उसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है और हज़रत मोहम्मद (स 0) उसके बन्दे और रसूल , उसके मुन्तख़ब और मुस्तफ़ा हैं उनके फ़ज़्ल का कोई मुक़ाबला नहीं कर सकता है और उनके फ़िक़दान की कोई तलाफ़ी नहीं है। उनकी वजह से तमाम शहर ज़लालत की तारीकी , जेहालत के ग़लबे और बदसरशती और बद एख़लाक़ी की शिद्दत के बाद जब लोग हराम को हलाल बनाए हुए थे और साहबाने हिकमत को ज़लील समझ रहे थे , रसूलों से ख़ाली दौर में ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे और कुफ्ऱ की हालत में मर रहे थे , मुनव्वर और रौशन हो गए।

(फ़ित्नों से आगाही)

इसके बाद तुम ऐ गिरोहे अरब उन बलाओं के निशाने पर हो जो क़रीब आ चुकी हैं लेहाज़ा नेमतों की मदहोशियों से बचो और हलाक करने वाले अज़ाब से होशियार रहो। अन्धेरों के धुन्धलकों में क़दम जमाए रहो और फ़ित्नों की कजरवी से होशियार हो जिस वक़्त उनका पोशीदा ख़दशा सामने आ रहा हो और मख़फ़ी अन्देशा ज़ाहिर हो रहा हो और खूंटा मज़बूत हो रहा हो। यह फ़ित्ने इब्तेदा में मख़फ़ी रास्तों से शुरू होते हैं और आखि़र में वाज़ेअ मसाएब तक पहुंच जाते हैं। इनका आग़ाज़ बच्चों के आग़ाज़ जैसा होता है लेकिन इनके आसार नक़श काले हजर जैसे होते है। दुनिया के ज़ालिम बाहमी अहद व पैमान के ज़रिये उनके वारिस बनते हैं। अव्वल आखि़र का क़ाएद होता है और आखि़र अव्वल का मुक़तदी। हक़ीर दुनिया के लिये एक दूसरे से मुक़ाबला करते हैं और बदबूदार मुर्दे पर आपस में जंग करते हैं।

(((- सही बुख़ारी के किताबुलफ़ित्न में इसी सूरते हाल की तरफ़ इशारा किया गया है के जब रसूले अकरम (स 0) हौज़े कौसर पर बाज़ असहाब का हष्र देख कर उन्हें हंकाया जा रहा है। फ़रयाद करेंगे के ख़ुदाया मेरे असहाब हैं तो इरशाद होगा के तुम्हें नहीं मालूम के इन्होंने तुम्हारे बाद क्या-क्या बिदअतें ईजाद की हैं और किस तरह दीने ख़ुदा से मुनहरिफ़ हो गए हैं।

इन्सानी बसीरत का सबसे बड़ा कारनामा यह है के इन्सान फ़ित्ने को पहले मरहले पर पहचान ले और वहीं उसका सदबाब कर दे वरना जब उसका रिवाज हो जाता है तो उसका रोकना नामुमकिन हो जाता है लेकिन मुश्किल यह है के इसका आग़ाज़ इतने मख़फ़ी और हसीन अन्दाज़ से होता है के उसका पहचानना हर एक के बस का काम नहीं है और इस तरह अवामुन्नास अपने मनहूस अक़ायद व नज़रियात या अवातिफ़ व जज़्बात की बिना पर फ़ितनों का शिकार हो जाते हैं और आखि़र में उनकी मुसीबत का इलाज नामुमकिन हो जाता है। ओलमा , आलाम और मुफ़क्केरीने इस्लाम की ज़रूरत इसीलिये होती है के वह फ़ित्नों को आग़ाजकार ही से पहचान सकते हैं और उनका सद्दबाब कर सकते हैं बशर्ते के अवामुन्नास उनके ऊपर एतमाद करें और उनकी बसीरत से फायदा उठाने के लिये तैयार हों।-)))

जबके अनक़रीब मुरीद अपने पीर और पीर अपने मुरीद से बराअत करेगा और बुग़्ज़ व अदावत के साथ एक दूसरे से अलग हो जाएंगे और वक़्ते मुलाक़ात एक-दूसरे पर लानत करेंगे , इसके बाद वह वक़्त आएगा जब ज़लज़लए अफ़गन फ़ित्ना सर उठाएगा जो कमर तोड़ होगा और शदीद तौर पर हमलावर होगा। जिसके नतीजे में बहुत से दिल इस्तेक़ामत के बाद कजी का शिकार हो जाएंगे और बहुत से लोग सलामती के बाद बहक जाएंगे। इसके हुजूम के वक़्त ख़्वाहिशात में टकराव होगा और उसके ज़हूर के हंगाम अफ़्कार मुश्तबा हो जाएंगे। जो उधर सर उठाकर देखेगा उसकी कमर तोड़ देगे और जो उसमें दौड़ धूप करेगा उसे तबाह कर देंगे। लोग यूँ एक-दूसरे को काटने दौड़ेंगे जिस तरह भीड़ के अन्दर गधे। ख़ुदाई रस्सी के बल खुल जाएंगे और हक़ाएक़ के रास्ते मुश्तबा हो जाएंगे। हिकमत का चश्मा ख़ुश्क हो जाएगा और ज़ालिम बोलने लगेंगे। देहातियों को हथोड़ों से कूट दिया जाएगा और अपने सीने से दबाकर कुचल दिया जाएगा। अकेले अकेले अफ़राद उसके ग़ुबार में गुम हो जाएंगे और उसके रास्ते में सवार हलाक हो जाएंगे। यह फ़ित्ने क़ज़ाए इलाही की तल्ख़ी के साथ वारिद होंगे और दूध के बदले ताज़ा ख़ून निकालेंगे। दीन के मिनारे (ओलमा) हलाक हो जाएंगे और यक़ीन की गिरहें टूट जाएंगी , साहेबाने होश उनसे भागने लगेंगे और ख़बीसुन्नफ़्स अफ़राद इसके मदारे इलहाम हो जाएंगे। यह फ़ितने गरजने वाले चमकने वाले और सरापा तैयार होंगे। उनमें रिश्तेदारों से ताल्लुक़ात तोड़ लिये जाएंगे और इस्लाम से जुदाई इख़्तेयार कर ली जाएगी। उससे अलग रहने वाले भी मरीज़ होंगे और कूच कर जाने वाले भी गोया मुक़ीम ही होंगे।

अहले ईमान में बाज़ ऐसे मक़तूल होंगे जिनका ख़ुन बहा तक न लिया जा सकेगा और बाज़ ऐसे ख़ौफ़ज़दा होंगे के पनाह की तलाश में होंगे। उन्हें पुख़्ता क़िस्मों और ईमान की फ़रेबकारियों में मुब्तिला किया जाएगा लेहाज़ा ख़बरदार तुम फ़ित्नों का निशाना और बिदअतों का निशान मत बनना और इसी रास्ते को पकड़े रहना जिस पर ईमानी जमाअत क़ायम है और जिस पर इताअत के अरकान क़ायम किये गये हैं। ख़ुदा की बारगाह में मज़लूम बन कर जाओ , ख़बरदार ज़ालिम बनकर मत जाना। “ शैतान के रास्तों और ज़ुल्म के मरकज़ों से महफ़ूज़ रहो और अपने शिकम में लुक़म-ए-हराम को दाखि़ल मत करो के तुम उसकी निगाह के सामने हो जिसने तुम पर मासियत को हराम किया है और तुम्हारे लिये इताअत के रास्तों को आसान कर दिया है।

(((- अमीरूल मोमेनीन (अ 0) जिस क़िस्म के फ़ित्नों की तरफ़ इशारा किया है उनका सिलसिला अगरचे आपके बाद से ही शुरू हो गया था लेकिन अभी तक मौक़ूफ़ नहीं हुआ और न फ़िलहाल मौक़ूफ़ होने के इमकानात हैं। जिस तरफ़ देखो वही सूरते हाल नज़र आ रही है जिसकी तरफ़ आपने इशारा किया है और उन्हीं मज़ालिम की गरम बाज़ारी है जिनसे आपने होशियार किया है। ज़रूरत है के साहेबाने ईमान हिदायत से फ़ायदा उठाएं , फ़ित्नों से महफ़ूज़ रहें , साहेबाने बसीरत से वाबस्ता रहें और कम से कम इतना ख़याल रखें के ख़ुदा की बारगाह में मज़लूम बन कर हाज़िर होने में कोई ज़िल्लत नहीं है बल्कि उसी में दाएमी इज्ज़त और अबदी शराफ़त है। ज़िल्लत ज़ुल्म में होती है मज़लूमियत में नहीं-)))