खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

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खुतबाते इमाम अली (उपदेश) लेखक:
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

174-आपका इरशादे गिरामी

( तल्हा बिन अब्दुल्लाह के बारे में जब आपको ख़बर दी गई के तल्हा व ज़ुबैर जंग के लिये बसरा की तरफ़ रवाना हो गए हैं)

मुझे किसी ज़माने में भी न जंग से मरऊब किया जा सका है और न हर्ब व ज़र्ब से डराया जा सका है। मैं अपने परवरदिगार के नुसरत पर मुतमईन हूँ और ख़ुदा की क़सम उस शख़्स ने ख़ूने उस्मान के मुतालबे के साथ तलवार खींचने में सिर्फ़ इसलिये जल्दबाज़ी से काम लिया है के कहीं उसी से इस ख़ून का मुतालेबा न कर दिया जाए के इसी अम्र का गुमान ग़ालिब है और क़ौम में उससे ज़्यादा उस्मान के ख़ून का प्यासा कोई न था। अब यह इस फ़ौजकशी के ज़रिये लोगों को मुग़ालते में रखना चाहता है और मसले को मुश्तबा और मशकूक बना देना है। हालांके ख़ुदा गवाह है के उस्मान के मामले में उसका मुआमला तीन हाल से ख़ाली नहीं था , अगर उस्मान ज़ालिम था जैसा के इसका ख़याल था तो इसका फ़र्ज़ था के क़ातिलों की मदद करता और उस्मान के मददगारों को ठुकरा देता और अगर वह मज़लूम था तो उसका फ़र्ज़ था के इसके क़त्ल से रोकने वालों और उसकी तरफ़ से माज़ेरत करने वालों में शामिल हो जाता और अगर यह दोनों बातें मशकूक थीं तो इसके लिये मुनासिब था के इस मामले से अलग होकर एक गोशे में बैठ जाता और उन्हें क़ौम के हवाले कर देता लेकिन उसने इन तीन में से कोई भी तरीक़ा इख़्तेयार नहीं किया और ऐसा तरीक़ा इख़्तेयार किया जिसकी सेहत का कोई जवाज़ नहीं था और इसकी माज़ेरत का कोई रास्ता नहीं था।

175-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें मौअज़त के साथ रसूले अकरम से क़राबत का ज़िक्र कर किया गया है)

ऐ वह ग़ाफ़िलों जिनकी तरफ़ से ग़फ़लत नहीं बरती जा सकती है और ऐ छोड़ देने वालों जिनको छोड़ा नहीं जा सकता है। (ताअज्जुब है) मुझे क्या हो गया के मैं तुम्हें अल्लाह से दूर भागते हुए और ग़ैरे ख़ुदा की रग़बत करते हुए देख रहा हूँ। गोया तुम वह ऊंट हो जिनका चरवाहा उन्हें एक हलाक कर देने वाली चरागाह और तबाह कर देने वाले घाट पर ले आया हो या वह चैपाया हो जिसे छुरियों (से ज़िबह करने) के लिये पाला गया है के उसे नहीं मालूम है के जब उनके साथ अच्छा बरताव किया जाता है तो उससे मक़सूद किया है। यह तो अपने दिन को अपना पूरा ज़माना ख़याल करते हैं और पेट भर कर खा लेना ही अपना काम समझते हैं।

ख़ुदा की क़सम मैं चाहूँ तो हर शख़्स को इसके दाखि़ल और ख़ारिज होने की मन्ज़िल से आगाह कर सकता हूं और जुमला हालात को बता सकता हूँ। लेकिन मैं डरता हूँ के कहीं तुम मुझमें गुम होकर रसूले अकरम (स 0) का इन्कार न कर दो और याद रखो के मैं इन बातों से उन लोगों को बहरहाल आगाह करूंगा जिनसे गुमराही का ख़तरा नहीं है। क़सम है उस ज़ाते अक़दस की जिसने उन्हें हक़ के साथ भेजा है और मख़लूक़ात में मुन्तख़ब क़रार दिया है के मैं सिवाए सच के कोई कलाम नहीं करता हूँ।

(((- मोअर्रेख़ीन का इस अम्र पर इत्तेफ़ाक़ है के उस्मान के आखि़र दौरे हयात में इनके क़ातिलों का इज्तेमाअ तल्हा के घर में हुआ करता था और अमीरूल मोमेनीन (अ 0) ही ने इस अम्र का इन्केशाफ़ किया था इसके बाद तल्हा ही ने जनाज़े पर तीर बरसाए थे और मुसलमानों के क़ब्रिस्तान में दफ़न करने से रोक दिया था लेकिन चार दिन के बाद वह ज़ालिम ख़ूने उस्मान का वारिस बन गया और उस्मान के वाक़ेई मोहसिन को उनके ख़ून का ज़िम्मेदार ठहरा दिया। कहीं ऐसा न हो के मुसलमानों को सोचने का मौक़ा मिल जाए , बनी उमय्या तल्हा से इन्तेक़ाम लेने के लिये तैयार हो जाएं और यह तरीक़ा हर शातिर सियासतकार का होता है।-))) रसूले ख़ुदा (स 0) ने सारी बातें मुझे बता दी हैं और हलाक होने वाले की हलाकत और निजात पाने वाले की निजात का रास्ता भी बता दिया है मुझे इस अम्रे खि़लाफ़त के अन्जाम से भी बाख़बर कर दिया है और कोई ऐसी “ शै नहीं है जो मेरे सर से गुज़रने वाली हो और उसे मेरे कानों में न डाल दिया हो और मुझ तक पहुंचा न दिया हो।

ऐ लोगों! ख़ुदा गवाह है के मैं तुम्हें किसी इताअत पर आमादा नहीं करता हूँ मगर पहले ख़ुद सबक़त करता हूँ और किसी मासियत से नहीं रोकता हूं मगर यह के पहले ख़ुद उससे बाज़ रहता हूँ।

176-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

( जिसमें मौअज़ा के साथ क़ुरान के फ़ज़ाएल और बिदअतों के कानअत का तज़किरा किया गया है)

( क़ुराने हकीम) देखो परवरदिगार के बयान से फ़ायदा उठाओ और उसके मवाएज़ से नसीहत हासिल करो और उसकी नसीहत को क़ुबूल करो। उसने वाज़ेह बयानात के ज़रिये तुम्हारे हर बहाने को ख़त्म कर दिया है और तुम पर हुज्जत तमाम कर दी है। तुम्हारे लिये अपने महबूब और नापसन्दीदा तमाम आमाल की वज़ाहत कर दी है ताके तुम एक क़िस्म का इत्तेबाअ करो और दूसरी से इज्तेनाब करो (बचो) के रसूले अकरम (स 0) बराबर यह फ़रमाया करते थे के जन्नत नागवारियों में घेर दी गई है और जहन्नुम को ख़्वाहिशात के घेरे में डाल दिया गया है।

याद रखो के ख़ुदा की कोई इताअत ऐसी नहीं है जिसमें नागवारी की शक्ल न हो और इसकी कोई मासीयत ऐसी नहीं है जिसमें ख़्वाहिश का कोई पहलू न हो। अल्लाह उस बन्दे पर रहमत नाज़िल करे जो ख़्वाहिशात से अलग हो जाए और नफ़्स के हवा व होस को (जड़े बुनियाद से) उखाड़ कर फेंक दे के यह नफ़्स ख़्वाहिशात में बहुत दूर तक खिंच जाने वाला है और यह हमेशा गुनाहों की ख़्वाहिश ही की तरफ़ खींचता है।

बन्दगाने ख़ुदा! याद रखो के मर्दे मोमिन हमेशा सुबह व शाम अपने नफ़्स से बदगुमान ही रहता है और उससे नाराज़ ही रहता है और (उससे) नाराज़गी में इज़ाफ़ा ही करता रहता है लेहाज़ा तुम भी अपने पहले वालों के मानिन्द हो जाओ जो तुम्हारे आगे-आगे जा रहे हैं के उन्होंने दूनियां से अपने ख़ेमे डेरा को हटा लिया है (रूख़सते सफ़र बान्धा जिस तरह मुसाफ़िर अपना डेरा उठा लेता है) और एक मुसाफ़िर की तरह दुनिया की मन्ज़िलों को तय करते हुए आगे बढ़ गए हैं।

याद रखो के यह क़ुरान वह नासेह (नसीहत करने वाला) है जो धोका नहीं देता है और वह हादी है जो गुमराह नहीं करता है। वह बयान करने वाला है (और) ग़लत बयानी से काम लेने वाला नहीं है। कोई शख़्स उसके पास ( 2) नहीं बैठता है मगर यह के जब उठता है तो हिदायत में इज़ाफ़ा कर लेता है या इससे गुमराही में कमी कर लेता है (गुमराही हो घटाकर उससे अलग करता है)।

(((- इन नागवारियों और दुष्वारियों से मुराद सिर्फ इबादत नहीं है के वह सिर्फ़ काहिल और बेदीन अफ़राद के लिये दुशवार हैं वरना सन्जीदा और दीनदार अफ़राद इनमें लज्ज़त और राहत ही का एहसास करते हैं। दर हक़ीक़त इन दुष्वारियों से मुराद वह जेहाद है जिसमें हर राहे हयात में सारी तवानाइयों को ख़र्च करना पड़ता है और हर तरह की ज़हमत का सामना करना पड़ता है जैसा के सूरए मुबारका तौबा में एलान किया गया है के अल्लाह ने साहेबाने ईमान के जान व माल को ख़रीद लिया है और उन्हें जन्नत दे दी है। यह लोग राहे ख़ुदा में जेहाद करते हैं और दुशमन को तहे तेग़ करने के साथ ख़ुद भी शहीद हो जाते हैं। ( 2) कितनी हसीन तरीन ताबीर है तिलावते क़ुरान की के इन्सान क़ुरान के साथ इस तरह रहे जिस तरह कोई शख़्स अपने हमनशीन के साथ बैठता है और जिसके नतीजे में जमाल , हमनशीन से मुतास्सिर होता है। मुसलमान का ताल्लुक़ सिर्फ़ क़ुराने मजीद से नहीं होता है बल्कि उसके मानी से होता है ताके इसके मफ़ाहिम से आश्ना हो सके और उसके तालीमात से फ़ायदा उठा सके। -)))

याद रखो! क़ुरान के बाद कोई किसी का मोहताज नहीं हो सकता है और क़ुरान से (कुछ सीखने से) पहले कोई बे नियाज़ नहीं हो सकता है। अपनी बीमारियों की इससे शिफ़ा हासिल करो और अपनी मुसीबतों में इससे मदद मांगो के इसमें बदतरीन बीमारी कुफ्ऱ व निफ़ाक़ और गुमराही व बेराहरवी का इलाज भी मौजूद है , इसके ज़रिये अल्लाह से सवाल करो और इसकी मोहब्बत के वसीले से उसकी तरफ़ रूख़ करो (अल्लाह से मांगो) और इसके अलावा मख़लूक़ात से सवाल न करो (इसे लोगों से मांगने का ज़रिया न बनाओ)। इसलिये के मालिक की तरफ़ मुतवज्जो होने का इसका जैसा कोई वसीला नहीं है और याद रखो के वह ऐसा शफ़ीअ (शिफ़ाअत करने वाला) है जिसकी शिफ़ाअत मक़बूल है और ऐसा बोलने वाला है जिसकी बात मुसद्देक़ा है। जिसके लिये क़ुरान रोज़े क़यामत सिफ़ारिश कर दे उसके हक़ में शिफ़ाअत क़ुबूल है और जिसके ऐब को वह बयान कर दे उसका ऐब तस्दीक़ शुदा है। रोज़े क़यामत एक मुनादी (निदा देने वाला) आवाज़ देगा के हर (हर क़ुरान की खेती बोने वाला और उसके अलावा हर बोने वाला) अपनी खेती और अपने अमल के अन्जाम में मुब्तिला है लेकिन जो अपने दिल में क़ुरान का बीज बोने वाले थे वह कामयाब हैं लेहाज़ा तुम लोग उन्हीं लोगों और क़ुरान की पैरवी करने वालों में शामिल हो जाओ। उसे मालिक की बारगाह तक पहुंचने में अपना रहनुमा बनाओ और उससे अपने नफ़्स के बारे में नसीहत हासिल करो और अपने ख़यालात को मुतहम (ग़लत) क़रार दो और अपने ख़्वाहिशात को फ़रेबख़ोरदा तसव्वुर करो।

अमल करो अमल- अन्जाम पर निगाह रखो अन्जाम- इस्तेक़ामत से काम लो और इस्तेक़ामत और एहतियात करो एहतियात- तुम्हारे लिये एक इन्तेहा मुअय्यन है उसकी तरफ़ क़दम आगे बढ़ाओ और अल्लाह की बारगाह में उसके हुक़ूक़ की अदायगी और उसके एहकाम की पाबन्दी के साथ हाज़री दो। मैं तुम्हारे आमाल का गवाह बनूंगा और रोज़े क़यामत तुम्हारी तरफ़ से वकालत (हुज्जत पेश) करूंगा।

( नसाएह) याद रखो के जो कुछ होना था वह हो चुका और जो फ़ैसला ख़ुदावन्दी था वह सामने आ चुका। मैं ख़ुदाई वादे और उसकी बुरहान के सहारे कलाम कर रहा हूं बेशक जिन लोगों ने ख़ुदा को ख़ुदा माना और इसी बात पर क़ायम रह गए , उन पर मलाएका इस बशारत के साथ नाज़िल होते हैं के ख़बरदार डरो नहीं और परेशान मत हो , तुम्हारे लिये उस जन्नत की बशारत है जिसका तुमसे वादा किया गया है ” और तुम लोग तो ख़ुदा को ख़ुदा कह चुके हो तो अब उसकी किताब पर क़ायम रहो और उसके अम्र के रास्ते पर साबित क़दम रहो। उसकी इबादत के नेक रास्ते पर जमे रहो और उससे ख़ुरूज न करो और न कोई बिदअत ईजाद करो और न सुन्नत से इख़्तेलाफ़ करो। इसलिये के इताअते इलाही से निकल जाने वाले का रिश्ता परवरदिगार से रोज़े क़यामत टूट जाता है। इससे (के फ़रेब से) होशियार रहो के तुम्हारे अख़लाक़ में उलट फ़ेर अदल-बदल न होने पाए। अपनी ज़बान को एक रखो और उसे महफ़ूज़ रखो इसलिये के यह ज़बान अपने मालिक से बहुत मुंहज़ोरी करती है। ख़ुदा की क़सम मैंने किसी बन्दए मोमिन को नहीं देखा जिसने अपने तक़वा से फ़ायदा उठाया हो मगर यह के अपनी ज़बान को रोक कर रखा है। मोमिन की ज़बान हमेशा उसके दिल के पीछे होती है और मुनाफ़िक़ का दिल हमेशा उसकी ज़बान के पीछे होता है। इसलिये के मोमिन जब बात करना चाहता है तो पहले दिल में ग़ौर-व-फ़िक्र करता है। इसके बाद हर्फ़े ख़ैर होता है तो उसका इज़हार करता है वरना उसे दिल ही में छिपा रहने देता है। लेकिन मुनाफ़िक़ जो इस के मुंह में आता है बक देता है। उसे इस बात की फ़िक्र नहीं होती है के मेरे मवाफ़िक़ है या मुख़ालिफ़।

पैग़म्बरे इस्लाम (स 0) ने फ़रमाया है के किसी शख़्स का ईमान उस वक़्त तक दुरूस्त नहीं हो सकता है जब तक उसका दिल दुरूस्त न हो और किसी शख़्स का दिल दुरूस्त नहीं हो सकता है जब तक उसकी ज़बान दुरूस्त न हो। अब जो शख़्स भी अपने परवरदिगार से इस आलम में मुलाक़ात कर सकता है के उसका हाथ मुसलमानों के ख़ून और उनके माल से पाक हो और उसकी ज़बान उनकी आबरूरेज़ी से महफ़ूज़ हो तो उसे बहरहाल ऐसा ज़रूर करना चाहिये।

( बिदअतों की मोमानिअत) याद रखो के मर्दे मोमिन उस साल इसी चीज़ को हलाल कहता है के जिसे अगले साल हलाल कह चुका है और इस साल उसी “ शै को हराम क़रार देता है जिसे पिछले साल हराम क़रार दे चुका है। और लोगों की बिदअतें और उनकी ईजादात हरामे इलाही को हलाल नहीं बना सकती हैं हलाल व हराम वही है जिसे परवरदिगार ने हलाल व हराम कह दिया है। तुमने तमाम उमूर को आज़मा लिया है और सबका बाक़ायदा तजुर्बा कर लिया है और तुम्हें पहले वालों के हालात से नसीहत भी की जा चुकी है और उनकी मिसालें भी बयान की जा चुकी हैं और एक वाज़ेअ अम्र की दावत भी दी जा चुकी है के अब इस मामले में बहरापन इख़्तेयार नहीं करेगा मगर वही जो वाक़ेअन बहरा हो और अन्धा नहीं बनेगा मगर वही जो वाक़ेअन अन्धा हो और फिर जिसे बलाएं और तजुर्बात फ़ायदा न दे सकें उसे नसीहतें क्या फ़ायदा देंगी। इसके सामने सिर्फ़ कोताहियां ही रहेंगी जिनके नतीजे में बुराईयों को अच्छा और अच्छाइयों को बुरा समझने लगेगा।

लोग दो ही क़िस्म के होते हैं- या वह जो शरीअत का इत्तेबाअ करते हैं या वह जो बिदअतों की ईजाद करते हैं और उनके पास न सुन्नत की कोई दलील होती है और न हुज्जते परवरदिगार की कोई रोशनी।

( क़ुरान) परवरदिगार ने किसी शख़्स को क़ुरान से बेहतर कोई नसीहत नहीं फ़रमाई है। के यही ख़ुदा की मज़बूत रस्सी और इसका अमानतदार वसीला है। इसमें दिलों की बहार का सामान और इल्म के सरचश्मे हैं और दिल की जिलाए इसके अलावा कुछ नहीं है। अब अगरचे नसीहत हासिल करने वाले जा चुके हैं और सिर्फ भूल जाने वाले या भुला देने वाले बाक़ी रह गये हैं लेकिन फ़िर भी तुम कोई खै़र देखो तो उस पर लोगों की मदद करो और कोई शर देखो तो उससे दूर हो जाओ के रसूले अकरम (स 0) बराबर फ़रमाया करते थे “ फ़रज़न्दे आदम ख़ैर पर अमल कर और शर को नज़रअन्दाज़ कर दे ताके बेहतरीन नेक किरदार और मयाना रद हो जाए।

( इक़सामे ज़ुल्म) याद रखो के ज़ुल्म की तीन क़िस्में हैं , वह ज़ुल्म जिसकी बख़्शिश नहीं है और वह ज़ुल्म जिसे छोड़ा नहीं जा सकता है और वह ज़ुल्म जिसकी बख़्शिश हो जाती है और उसका मुतालेबा नहीं होता है।

वह ज़ुल्म जिसकी बख़्शिशनहीं है वह अल्लाह का शरीक क़रार देना है के परवरदिगार ने ख़ुद एलान कर दिया है के इसका शरीक क़रार देने वाले की मग़फ़िरत नहीं हो सकती है और वह ज़ुल्म जो माफ़ कर दिया जाता है वह इन्सान का अपने नफ़्स पर ज़ुल्म है मामूली गुनाहों के ज़रिये। और वह ज़ुल्म जिसे छोड़ा नहीं जा सकता है वह बन्दों का एक-दूसरे पर ज़ुल्म है के यहां क़ेसास बहुत सख़्त है और यह सिर्फ़ छुरी का ज़ख़्म और ताज़ियाने की मार नहीं बल्कि ऐसी सज़ा है जिसके सामने यह सब बहुत मामूली हैं लेहाज़ा ख़बरदार दीने ख़ुदा में रंग बदलने की रोशइख़्तेयार मत करो के जिस हक़ को तुम नापसन्द करते हो उस पर मुत्तहिद रहना इस बातिल पर चलकर मुन्तशिर हो जाने से बहरहाल बेहतर है जिसे तुम पसन्द करते हो , परवरदिगार ने इफ़तेराक़ व इन्तेशार में किसी को कोई ख़ैर नहीं दिया है न उन लोगों में जो चले गए और न उनमें जो बाक़ी रह गए हैं।

(((- इस्लाम के हलाल व हराम दो क़िस्म के हैं , बाज़ उमू रवह हैं जिन्हें मुतलक़ तौर पर हलाल या हराम क़रार दिया गया उनमें तग़य्युर का कोई इमकान नहीं है और उन्हें बदलने वाला दीने ख़ुदा में दख़लअन्दाज़ी करने वाला है जो ख़ुद एक तरह का कुफ्ऱ है , अगरचे बज़ाहिर इसका नाम कुफ्ऱ या शिर्क नहीं है और बाज़ उमू रवह हैं जिनकी हिलयत या हुरमत हालात के एतबार से रखी गई है। ज़ाहिर है के इनका हुक्म हालात के बदलने के साथ ख़ुद ही बदल जाएगा। इसमें किसी के बदलने का कोई सवाल नहीं पैदा होता है। एक मुसलमान और ग़ैर मुसलमान या एक मोमिन और ग़ैर मोमिन का फ़र्क़ यही है के मुसलमान और अम्रे इलाहिया का मुकम्मल इत्तेबाअ करता है और काफ़िर या मुनाफ़िक़ इन एहकाम को अपने मसालेह और मनाफ़ेह के मुताबिक़ बदल लेता है और इसका नाम मसलहते इस्लाम या मस्लहते मुस्लेमीन रख देता है।-)))

लोगों! ख़ुशनसीब है वह जिसे अपना ऐब दूसरों के ऐब पर नज़र करने से मशग़ूल कर ले और क़ाबिले मुबारकबाद है वह शख़्स जो अपने घर में बैठ रहे। अपना रिज़्क़ खाए और अपने परवरदिगार की इताअत करता रहे और अपने गुनाहों पर गिरया करता रहे। वह अपने नफ़्स में मशग़ूल रहे और लोग उसकी तरफ़ से मुतमईन रहें।

177-आपका इरशादे गिरामी

(सिफ़्फ़ीन के बाद हकमीन के बारे में)

तुम्हारी जमाअत ही ने दो आदमियों के इन्तेख़ाब पर इत्तेफ़ाक़ कर लिया था। मैंने तो उन दोनों से शर्त कर ली थी के क़ुरान की हुदूद पर तौक़फ़ करेंगे और उससे तजावुज़ नहीं करेंगे। उनकी ज़बान इसके साथ रहेगी और वह इसी का इत्तेबाअ करेंगे। लेकिन वह दोनों भड़क गए और हक़ को देख भाल कर नज़र अन्दाज़ कर दिया। ज़ुल्म उनकी आरज़ू था और कजरवी फ़हमी इनकी राय (रोशथी) , जबके इस बदतरीन राय और इस ज़ालिमाना फ़ैसले से पहले ही मैंने यह शर्त कर दी थी के अदालत के साथ फ़ैसला करेंगे और हक़ के मुताबिक़ अमल करेंगे लेहाज़ा मेरे पास अपने हक़ में हुज्जत व दलील मौजूद है के इन लोगों ने राहे हक़ से इख़्तेलाफ़ किया है और तै शुदा क़रारदाद के खि़लाफ़ उलटा हुक्म किया है।

178-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(शहादत ईमान और तक़वा के बारे में)

न इस पर कोई हालत तारी हो सकती है और न उसे कोई ज़माना बदल सकता है और न उस पर कोई मकान हावी हो सकता है और न उसकी तौसीफ़ हो सकती है। उसके इल्म से न बारिशके क़तरे मख़फ़ी हैं और न आसमान के सितारे। न फ़िज़ाओं में हवा के झक्कड़ मख़फ़ी हैं और न पत्थरों पर च्यूंटी के चलने की आवाज़ और न अन्धेरी रात में उसकी पनाहगाह , वह पत्तों के गिरने की जगह भी जानता है और आंख के दज़दीदा इशारे भी।

मैं गवाही देता हूं के उसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है। न उसका कोई हमसर व अदील है और न उसमें किसी तरह का शक है , न उसके दीन का इन्कार हो सकता है और न उसकी तख़लीक़ से इन्कार किया जा सकता है।

(((- जब माविया ने सिफ़्फ़ीन में अपने लशकर को हारते हुए देखा तो नैज़ों पर क़ुरान बलन्द कर दिया के हम क़ुरान से फ़ैसला चाहते हैं। अमीरूलमोमेनीन (अ 0) ने फ़रमाया के यह सिर्फ़ मक्कारी और ग़द्दारी है वरना मैं तो ख़ुद ही क़ुराने नातिक़ हूं , मुझसे बेहतर फ़ैसला करने वाला कौन हो सकता है लेकिन शाम के नमकख़्वार और ज़मीर फ़रोशसिपाहियों ने हंगामा कर दिया और हज़रत को मजबूर कर दिया के दो अफ़राद को हकम बनाकर उनसे फ़ैसला कराएं , आपने अपनी तरफ़ से इब्ने अब्बास को पेशकिया लेकिन ज़ालिमों ने उसे भी न माना , बाला आखि़र आपने फ़रमाया के कोई भी फ़ैसला करे लेकिन क़ुरान के हुदूद से आगे न बढ़े के मैंने क़ुरान ही के नाम पर जंग को मौक़ूफ़ किया है। मगर अफ़सोस के यह कुछ न हो सका और अम्र व आस की अय्यारी ने आपके खि़लाफ़ फ़ैसला करा दिया और इस तरह इस्लाम एक अज़ीम फ़ित्ने से दो-चार हो गया लेकिन आपका बहाना वाज़ेह रहा के मैंने फ़ैसले में क़ुरान की शर्त की थी और यह फ़ैसला क़ुरान से नहीं हुआ है लेहाज़ा मुझ पर कोई ज़िम्मेदारी नहीं है-)))

शहादत उस शख़्स की है जिसकी नीयत सच्ची है और बातिन साफ़ है और इसका यक़ीन ख़ालिस है और मीज़ाने अमल गराँबार।

और फिर मैं शहादत देता हूँ के हज़रत मोहम्मद (स 0) उसके बन्दे और तमाम मख़लूक़ात में मुन्तख़ब रसूल हैं। उन्हें हक़ाएक़ की तशरीह के लिये चुना गया है और बेहतरीन शराफ़तों से मख़सूस किया गया है। अज़ीमतरीन पैग़ामात के लिये उनका इन्तेख़ाब हुआ है और उनके ज़रिये हिदायत की अलामात की वज़ाहत की गई है और गुमराही की तारीकियों को दूर किया गया है।

लोगों! याद रखो यह दुनिया अपने से लौ लगाने वाले और अपनी तरफ़ खिंच जाने वाले को हमेशा धोका दिया करती है। जो इसका ख़्वाहिशमन्द होता है उससे कंजूसी नहीं करती है और जो इस पर ग़ालिब आ जाता है उस पर क़ाबू पा लेती है। ख़ुदा की क़सम कोई भी क़ौम जो नेमतों की तरोताज़ा और शादाब ज़िन्दगी में थी और फिर इसकी वह ज़िन्दगी ज़ाएल हो गई है तो उसका कोई सबब सिवाए इन गुनाहों के नहीं है जिनका इरतेकाब इस क़ौम ने किया है। इसलिये के परवरदिगार अपने बन्दों पर ज़ुल्म नहीं करता है। फ़िर भी जिन लोगों पर इताब नाज़िल होता है और नेमतें ज़ाएल हो जाती हैं अगर सिद्क़े नीयत और तवज्जो-ए-क़ल्ब के साथ परवरदिगार की बारगाह में फ़रयाद करें तो वह गई हुई नेमतों को वापस कर देगा और बिगड़े कामों को बना देगा। मैं तुम्हारे बारे में इस बात से ख़ौफ़ज़दा हूँ के कहीं तुम जेहालत और नादानी में न पड़ जाओ। कितने ही मुआमलात ऐसे गुज़र चुके हैं जिनमें तुम्हारा झुकाव उस रूख़ की तरफ़ था जिसमें तुम क़तअन क़ाबिले तारीफ़ नहीं थे। अब अगर तुम्हें पहले की रविशकी तरफ़ पलटा दिया जाए तो फिर नेक बख़्त हो सकते हो लेकिन मेरी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ मेहनत करना है और अगर मैं कहना चाहूँ तो यही कह सकता हूँ के परवरदिगार गुज़िश्ता मुआमलात से दरगुज़र फ़रमाए।

179-आपका इरशादे गिरामी

( जब ज़ालिब यमानी ने दरयाफ़्त किया के या अमीरूल मोमेनीन (अ 0) क्या आपने अपने ख़ुदा को देखा है तो फ़रमाया क्या मैं ऐसे ख़ुदा की इबादत कर सकता हूं जिसे देखा भी न हो , अर्ज़ की मौला! उसे किस तरह देखा जा सकता है ? फ़रमाया)

उसे निगाहें आँखों के मुशाहेदे से नहीं देख सकती हैं। उसका इदराक दिलों को हक़ाएक़ ईमान के सहारे हासिल होता है। वह अष्याह से क़रीब है लेकिन जिस्मानी इक़साल की बिना पर नहीं और दूर भी है लेकिन अलाहेदगी की बुनियाद पर नहीं। वह कलाम करता है लेकिन फ़िक्र का मोहताज नहीं और वह इरादा करता है लेकिन सोचने की ज़रूरत नहीं रखता। वह बिला आज़ाए व जवारेह के सानेअ है और बिला पोशीदा हुए लतीफ़ है। ऐसा बड़ा है जो छोटों पर ज़ुल्म नहीं करता है और ऐसा बसीर है जिसके पास हवास नहीं हैं और उसकी रहमत में दिल की नर्मी शामिल नहीं है। तमाम चेहरे उसकी अज़मत के सामनी ज़लील व ख़्वार हैं और तमाम क़ुलूब उसके ख़ौफ़ से लरज़ रहे हैं।

(((- बाज़ हज़रात ने यह सवाल उठाया है के अगर अफ़राद का ज़वाल सिर्फ़ गुनाहों की बुनियाद पर होता है तो क्या वजह है के दुनिया में बेशुमार बदतरीन क़िस्म के गुनहगार पाए जाते हैं लेकिन उनकी ज़िन्दगी में राहत व आराम , तक़दम और तरक़्क़ी के अलावा कुछ नहीं है। क्या इसका यह मतलब नहीं है के गुनाहों का राहत व आराम या रन्ज व अलम में कोई दख़ल नहीं है और इन मसाएल के असबाब किसी और “ शै में पाए जाते हैं। लेकिन इसका वाज़ेह सा जवाब यह है के अमीरूल मोमेनीन (अ 0) ने अफ़राद का ज़िक्र नहीं किया है , क़ौम का ज़िक्र किया है और क़ौमों की तारीख़ गवाह है के उनका ज़वाल हमेशा इन्फ़ेरादी या इज्तेमाई गुनाहों की बिना पर हुआ है और यही वजह है के जिस क़ौम ने शुक्रे ख़ुदा नहीं अदा किया वह सफ़ए हस्ती से नाबूद हो गई और जिस क़ौम ने नेमत की फ़रावानी के बावजूद शुक्रे ख़ुदा से इन्हेराफ़ नहीं किया उसका जिक्र आज तक ज़िन्दा है और क़यामत तक ज़िन्दा रहेगा।-)))

180-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

मैं ख़ुदा का शुक्र करता हूं उन उमूर पर जो गुज़र गए और उन अफ़आल पर जो उसने मुक़द्दर कर दिये और अपने तुम्हारे साथ मुब्तिला होने पर भी ऐ वह गिरोह जिसे मैं हुक्म देता हूं तो इताअत नहीं करता है और आवाज़ देता हूं तो लब्बैक नहीं कहता है , तुम्हें मोहलत दे दी जाती है तो ख़ूब बातें बनाते हो और जंग में शामिल कर दिया जाता है तो बुज़दिली का मुज़ाहिरा करते हो। लोग किसी इमाम पर इज्तेमाअ करते हैं तो एतराज़ात करते हो और घेर कर मुक़ाबले की तरफ़ लाए जाते हो तो फ़रार इख़्तेयार कर लेते हो।

तुम्हारे दुश्मनों का बुरा हो आखि़र तुम मेरी नुसरत और अपने हक़ के लिये जेहाद में किस चीज़ का इन्तेज़ार कर रहे हो ? मौत का या ज़िल्लत का , ख़ुदा की क़सम अगर मेरा दिन आ गया जो बहरहाल आने वाला है तो मेरे तुम्हारे दरम्यान उस हाल में जुदाई होगी के मैं तुम्हारी सोहबत से दिल बरदाष्ता हूंगा और तुम्हारी मौजूदगी से किसी कसरत का एहसास न करूंगा।

ख़ुदा तुम्हारा भला करे! क्या तुम्हारे पास कोई दीन नहीं है जो तुम्हें मुत्तहिद कर सके और न कोई ग़ैरत है जो तुम्हें आमादा कर सके ? क्या यह बात हैरतअंगेज़ नहीं है के माविया अपने ज़ालिम और बदकार साथियों को आवाज़ देता है तो किसी इमदाद और अता के बग़ैर भी उसकी इताअत कर लेते हैं और मैं तुमको दावत देता हूं और तुमसे अतिया का वादा भी करता हूं तो तुम मुझसे अलग हो जाते हो और मेरी मुख़ालफ़त करते हो , हालांके अब तुम्हीं इस्लाम का तरकह और इसके बाक़ी मान्दा अफ़राद हो। अफ़सोस के तुम्हारी तरफ़ न मेरी रज़ामन्दी की कोई बात ऐसी आती है जिससे तुम राज़ी हो जाओ और न मेरी नाराज़गी का कोई मसला ऐसा आता है जिससे तुम भी नाराज़ हो जाओ। अब तो मेरे लिये महबूबतरीन “ शै जिससे मैं मिलना चाहता हूं सिर्फ़ मौत ही है , मैंने तुम्हें किताबे ख़ुदा की तालीम दी , तुम्हारे सामने खुले हुए दलाएल पेशकिये , जिसे तुम नहीं पहचानते थे उसे पहचनवाया और जिसे तुम थूक दिया करते थे उसे ख़ुशगवार बना दिया। मगर यह सब उस वक़्त कारआमद है जब अन्धे को कुछ दिखाई दे और सोता हुआ बेदार हो जाए। वह क़ौम जेहालत से किस क़द्र क़रीब है जिसका क़ायद माविया हो और उसका अदब सिखाने वाला नाबालिग़ा का बेटा हो।

(((- इन्सान के पास दो ही सरमाये हैं जो उसे शराफ़त की दावत देते हैं दीनदार के पास दीन और आज़ादन्ष के पास ग़ैरत , मगर अफ़सोस के अमीरूलमोमेनीन (अ 0) के एतराफ़ जमा हो जाने वाले अफ़राद के पास न दीन था और न क़ौमी शराफ़त का एहसास , और ज़ाहिर है के ऐसी क़ौम से किसी ख़ैर की तवक़्क़ो नहीं की जा सकती है और न वह किसी वफ़ादारी का इज़हार कर सकती है।

किस क़द्र अफ़सोसनाक यह बात है के आलमे इस्लाम में माविया और अम्र व आस की बात सुनी जाए और नफ़्से रसूल (स 0) की बात को ठुकरा दिया जाए बल्कि उससे जंग की जाए। क्या उसके बाद भी किसी ग़ैरतदार इन्सान को ज़िन्दगी की आरज़ू हो सकती है और वह इस ज़िन्दगी से दिल लगा सकता है। अमीरूलमोमेनीन (अ 0) के इस फ़िक़रे में “ फ़ुज़तो व रब्बिल काबा ” बे पनाह दर्द पाया जाता है। जिसमें एक तरफ़ अपनी शहादत और क़ुरबानी के ज़रिये कामयाबी का एलान है और दूसरी तरफ़ इस बेग़ैरत क़ौम से जुदाई की मसर्रत का इज़हार भी पाया जाता है के इन्सान ऐसी क़ौम से निजात हासिल कर ले और इस अन्दाज़े से हासिल कर ले के इसपर कोई इल्ज़ाम नहीं हो बल्कि मारकए हयात में कामयाब रहे।-)))

181-आपका इरशादे गिरामी

( जब आपने एक शख़्स को उसकी तहक़ीक़ के लिये भेजा-- जो ख़वारिज से मिलना चाहती थी और हज़रत से ख़ौफ़ज़दा थी

और वह शख़्स पलट कर आया तो आपने सवाल किया के क्या वह लोग मुतमईन होकर ठहर गए हैं या बुज़दिली का मुज़ाहेरा करके निकल पड़े हैं ,

उसने कहा के वह कूच कर चुके हैं , तो आपने फ़रमाया-)

ख़ुदा इन्हें क़ौमे समूद की तरह ग़ारत कर दे , याद रखो जब नैज़ों की अनियां इनकी तरफ़ सीधी कर दी जाएंगी और तलवारें इनके सरों पर बरसने लगेंगी तो इन्हें अपने किये पर शर्मिन्दगी का एहसास होगा। आज “ शैतान ने इन्हें मुन्तशिर कर दिया है और क लवही इनसे अलग होकर बराअत व बेज़ारी का एलान करेगा। अब उनके लिये हिदायत से निकल जाना , ज़लालत और गुमराही में गिर पड़ना , राहे हक़ से रोक देना और गुमराही की मुंहज़ोरी करना ही इनके तबाह होने के लिये काफ़ी है।

182-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

नोफ़ बकाली से रिवायत की गई है के अमीरूल मोमेनीन (अ 0) ने एक दिन कूफ़े में एक पत्थर पर खड़े होकर ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया जिसे जादह बिन हुबैरा मखज़ूमी ने नस्ब किया था और उस वक़्त आप उन का एक जबह पहने हुए थे और आपकी तलवार का पर तला भी लैफ़ ख़ुरमा का था और पैरों में लैफ़ ख़ुरमा ही की जूतियां थीं आप की पेशानी अक़दस पर सजदों के गट्टे नुमायां थे , फ़रमाया- सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसकी तरफ़ तमाम मख़लूक़ात की बाज़गष्त और जुमला उमूर की इन्तेहा है , मैं उसकी हम्द करता हूं , उसके अज़ीम एहसान , वाज़ेअ दलाएल और बढ़ते हुए फ़ज़ल व करम पर , वह हम्द जो उसके हक़ को पूरा कर सके और उसके शुक्र को अदा कर सके। उसके सवाब से क़रीब बना सके और नेमतों में इज़ाफ़ा का सबब बन सके। मैं उससे मदद चाहता हूं उस बन्दे की तरह जो उसके फ़ज़ल का उम्मीदवार हो , उसके मनाफ़ेअ का तलबगार हो उसके दफ़ाए बला का यक़ीन रखने वाला हो , उसके करम का एतराफ़ करने वाला हो और क़ौल व अमल में उस पर मुकम्मल एतमाद करने वाला हो।

मैं उस पर ईमान रखता हूं उस बन्दे की तरह जो यक़ीन के साथ उसका उम्मीदवार हो और ईमान के साथ उसकी तरफ़ मुतवज्जो हो , अज़आन के साथ उसकी बारगाह में सर-ब-सुजूद हो और तौहीद के साथ उससे इख़लास रखता हो , तमजीद के साथ उसकी अज़मत का इक़रार करता हो और रग़बत व कोशिशके साथ उसकी पनाह में आया हो।

वह पैदा नहीं किया गया है के कोई उसकी इज़्ज़त में शरीक बन जाए और उसने किसी बेटे को पैदा नहीं किया है के ख़ुद हलाक हो जाए और बेटा वारिस हो जाए , न उससे पहले कोई ज़मान व मकान था और न उस पर कोई कमी या ज़्यादती तारी होती है। उसने अपनी मोहकम तदबीर और अपने हतमी फ़ैसले की बिना पर अपने को अक़लों के सामने बिल्कुल वाज़ेअ और नुमायां कर दिया है। इसकी खि़लक़त के शवाहेदीन में उन आसमानों की तख़लीक़ भी है जिन्हें बग़ैर सुतून के रोक रखा है और बग़ैर किसी सहारे के क़ायम कर दिया है।

(((- बनी नाजिया का एक शख़्स जिसका नाम ख़रैत बिन राशिद था , अमीरूल मोमेनीन (अ 0) के साथ सिफ़फ़ीन में शरीक रहा और उसके बाद गुमराह हो गया , हज़रत से कहने लगा के मैं न आपकी इताअत करूंगा और न मैं आपके पीछे नमाज़ पढ़ूंगा , आपने सबब दरयाफ़्त किया ? उसने कहा कल बताउंगा , और फिर आने के बजाय तीस अफ़राद को लेकर सहराओं में निकल गया और लूट-मार का काम शुरू कर दिया। एक अमीरूल मोमेनीन (अ 0) के चाहने वाले मुसाफ़िर को सिर्फ़ हुब्बे अली (अ 0) की बुनियाद पर काफ़िर क़रार देकर क़त्ल कर दिया और एक यहूदी को आज़ाद छोड़ दिया। हज़रत ने इसकी रोक थाम के लिये ज़ियाद बिन अबी हफ़सा को 130अफ़राद के साथ भेजा , ज़ियाद ने चन्द अफ़राद को तहे तेग़ कर दिया और ख़रैत फ़रार कर गया और कुरदों को बग़ावत पर आमादा करने लगा। आपने माक़ल बिन क़ैस रियाही को दो हज़ार सिपाहियों के साथ रवाना किया , उन्होंने ज़मीने फ़ारस तक उसका पीछा किया यहांतक के तरफ़ैन में शदीद जंग हुई और ख़रैत नोमान बिन सहयान को उसी के हाथों फ़ना के घाट उतार दिया गया और इस फ़ित्ने का ख़ात्मा हो गया।-)))

( ख़ुदावन्दे आलम ने उन्हें पुकरातो बग़ैर कसी सुस्ती और तौक़फ़ के इताअत व फ़रमाबरदारी करते हुए लब्बैक कह उठे। अगर वह उसकी रूबूबियत का इक़रार न करते और उसके सामने सरे इताअत न झुकाते तो वह उन्हें अपने अर्श का मक़ाम और अपने फ़रिश्तो का मस्कन और पाकीज़ा कलमों और मख़लूक़ के नेक अमलों के बलन्द होने की जगह न बनाता। अल्लाह ने उनके सितारों को ऐसी रौशन निशानियां क़रार दिया है के जिनसे हैरान व सरगर्दां एतराफ़े ज़मीन की राहों में आने जाने के लिये रहनुमाई हासिल करते हैं , अन्धेरी रात की अन्धियारियों के स्याह परदे उनके नूर की ज़ौपाशियों को नहीं रोकते और न शबहाए तारीक की तीरगी के परदे यह ताक़त रखते हैं के वह आसमानों में फैली हुई चान्द के नूर की जगमगाहट को पलटा दें पाक है वह ज़ात जिस पर पस्त ज़मीन के क़ितओं और बाहम मिले हुए स्याह पहाड़ों की च्यूटियों में अन्धेरी रात की अन्धयारियां और पुरसूकून शब की ज़ुलमतें पोशीदा नहीं हैं और न उफ़क़ आसमान में राद की गरज उससे मख़फ़ी है और न वह चीज़ें के जिन पर बादलों की बिजलियां कौंद कर नापैद हो जाती हैं और न वह पत्ते जो टूटकर गिरते है। के जिन्हें बारिश के नछत्रों की तन्द हवाएं और मूसलाधार बारिशे उनके गिरने की जगह से हटा देती हैं। वह जानता है के बारिशके क़तरे कहां गिरेंगे और कहां ठहरेंगे और छोटी च्यूटियां कहां रेंगेंगी और कहां अपने को खींच कर ले जाएंगी मच्छरों को कौन सी रोज़ी किफ़ायत करेगी और मादा अपने पेट में क्या लिये हुए है।

तमाम हम्द उस अल्लाह के लिये है जो अर्श व कुर्सी ज़मीन व आसमान और जिन व इन्स से पहले मौजूद था। न इन्सानी वाहमों से उसे जाना जा सकता है और न अक़्ल व फ़हम से उसका अन्दाज़ा हो सकता है। उसे कोई सवाल करने वाला (दूसरे साएलों से) ग़ाफ़िल नहीं बनाता और न बख़्षिशव अता से उसके हां कुछ कमी आती है। वह आंखों से देखा नहीं जा सकता और न किसी जगह में उसकी हदबन्दी हो सकती है। न साथियों के साथ मुत्तसिफ़ किया जा सकता है और न आज़ाअ व जवारेह की हरकत से वह पैदा करता है और न हवास से वह जाना पहचाना जा सकता है और न इन्सानों पर उसका क़यास हो सकता है। वह ख़ुदा के जिसने बग़ैर आज़ाअ व जवारेह और बग़ैर कोयाई और बग़ैर हलक़ के कोवस को हिलाए हुए मूसा अलैहिस्सलाम से बातें कीं और उन्हें अपने अज़ीम निशानियां दिखाईं ऐ अल्लाह की तौसीफ़ में रन्ज व ताब उठाने वाले अगर तू (उससे ओहदा बरा होने में) सच्चा है तो पहले जिबराईल व मीकाईल और मुक़र्रब फरिष्तों के लाव लशकर का वसफ़ बयान कर के जो पाकीज़गी व तहारत के हिजरवी में इस आलम में सर झुकाए पड़े हैं के उनकी अक़्लें शशदर व हैरान हैं के इस बेहतरीन ख़ालिक़ की तौसीफ़ कर सकें। सिफ़तों के ज़रिये वह चीज़ें जानी पहचानी जाती हैं जो शक्ल व सूरत और आज़ा व जवारेह रखती हूँ और व हके जो अपनी हदे इन्तेहा को पहुंच कर मौत के हाथों ख़त्म हो जाएं। उस अल्लाह के अलावा कोई माबूद नही ंके जिसने अपने नूर से तमाम तारीकियों को रोशन व मुनव्वर किया और ज़ुल्मत (अदम) से हर नूर को तीरा व तार बना दिया है। अल्लाह के बन्दों! मैं तुम्हें उस अल्लाह से डरने की वसीयत करता हूँ जिसने तुमको लिबास से ढांपा और हर तरह का सामाने मईशत तुम्हारे लिये मुहैया किया अगर कोई दुनियावी बक़ा की (बुलन्दियों पर) चड़ने का ज़ीना या मौत को दूर करने का रास्ता पा सकता होता तो वह सुलेमान इब्ने दाऊद (अ 0) होते के जिनके लिये नबूवत व इन्तेहाए तक़र्रब के साथ जिन व इन्स की सल्तनत क़ब्ज़े में दे दी गई थी। लेकिन ज बवह अपना आबोदाना पूरा और अपनी मुद्दते (हयात) ख़त्म कर चुके तो फ़ना की कमानों ने उन्हें मौत के तीरों की ज़द पर रख लिया। घर उनसे ख़ाली हो गए और बस्तियां उजड़ गई और दूसरे लोग उनके वारिस हो गए। तुम्हारे लिये गुज़िश्ता दौरों (के हर दौर) में इबरतें (ही इबरतें) हैं (ज़रा सोचो) तो के कहां हैं अमालक़ा और उनके बेटे और कहां हैं फ़िरऔन और उनकी औलादें , और कहां हैं असहाबे अर्रस के शहरों के बाशिन्दे जिन्होंने नबियों को क़त्ल किया जो पैग़म्बर के रौशन तरीक़ों को मिटाया और ज़ालिमों के तौर तरीक़ों को ज़िन्दा किया , कहां हैं वह लोग जो लष्करों को लेकर बढ़े हज़ारों को शिकस्त दी और फ़ौजों को फ़राहम करके शहरों को आबाद किया।

इसी ख़ुतबे के ज़ैल में फ़रमाया है वह हिकमत की सिपर पहने होगा और उसको उसके तमाम शराएत व आदाब के साथ हासिल किया होगा (जो यह हैं के) हमह तन इसकी तरफ़ मुतवज्जो हो उसकी अच्छी तरह शिनाख़्त हो और दिल (अलाएक़े दुनिया से) ख़ाली हो चुनान्चे वह उसके नज़दीक उसी की गुमषुदा चीज़ और उसी की हाजत व आरज़ू है के जिसका वह तलबगार व ख़्वास्तगार है। वह उस वक़्त (नज़रों से ओझल होकर) ग़रीब व मुसाफ़िर होगा के जब इस्लामे आलम ग़ुरबत में और मिस्ल उस ऊँट के होगा जो थकन से अपनी दुम ज़मीन पर मारता हो और गर्दन का अगला हिस्सा ज़मीन पर डाले हुए हो। वह अल्लाह की बाक़ीमान्दा हुज्जतों का बक़िया और अम्बिया के जानशीनों में से एक वारिस व जानशीन है। इसके बाद हज़रत ने फ़रमाया- ऐ लोगों! मैंने तुम्हें इसी तरह नसीहतें की हैं जिस तरह की अम्बिया अपनी उम्मतों को करते चले आए हैं और उन चीज़ों को तुम तक पहुंचाया है जो औसिया बाद वालों तक पहुंचाया किये हैं मैंने तुम्हें अपने ताज़ियाने से अदब सिखाना चाहा मगर तुम सीधे न हुए और ज़जर व तौबीह से तुम्हें हंकाया लेकिन तुम एकजा न हुए। अल्लाह तुम्हें समझे , क्या मेरे अलावा किसी और इमाम के उम्मीदवार हो जो तुम्हें सीधी राह पर चलाए और सही रास्ता दिखाए। देखो! दुनिया की तरफ़ रूख़ करने वाली चीज़ों ने जो रूख़ किये हुए थीं पीठ फिराई , और जो पीठ फिराए हुए थे उन्होंने रूख़ कर लिया। अल्लाह के नेक बन्दों ने (दुनिया से) कूच करने का तहैया कर लिया और फ़ना होने वाली थोड़ी सी दुनिया हाथ से देकर हमेशा रहने वाली बहुत सी आख़ेरत मोल ले ली। भला हमारे उनभाई बन्दों को कहा जिन के ख़ून सिफ़्फ़ीन में बहाए गए उससे क्या नुक़सान पहुंचा ?)

आख़ेरत के अज्रे कसीर के मुक़ाबले में जो फ़ना होने वाला नहीं है , हमारे वह ईमानी भाई जिन का ख़ून सिफ़फ़ीन के मैदान में बहा दिया गया उनका नुक़सान हुआ है अगर वह आज ज़िन्दा नहीं हैं के दुनिया के मसाएब के घूंट पीएं और गन्दे पानी पर गुज़ारा करें , वह ख़ुदा की बारगाह में हाज़िर हो गए और उन्हें इनका मुकम्मल अज्र मिल गया , मालिक ने उन्हें ख़ौफ़ के बाद अमन की मन्ज़िल में वारिद कर दिया है।

कहां हैं मेरे वह भाई जो सीधे रास्ते पर चले और हक़ की राह पर लगे रहे। कहां हैं अम्मार ? कहां हैं इब्ने इतेहान ? कहां हैं ज़ुल मशहादीन ? कहां हैं उनके जैसे ईमानी भाई जिन्होंने मौत का अहद व पैमान बान्ध लिया था और जिनके सर फ़ाजिरों के पास भेज दिये गए।

( यह कहकर आपने महासन शरीफ़ पर हाथ रखा और तावीरे गिरया फ़रमाते रहे इसके बाद फ़रमाया)

आह! मेरे उन भाइयों पर जिन्होंने क़ुरान की तिलावत की तो उसे मुस्तहकम किया और फ़राएज़ पर ग़ौर व फ़िक्र किया तो उन्हें क़ायम किया (अदा किया) , सुन्नतों को ज़िन्दा बनाया और बिदअतों को मुर्दा बनाया , उन्हें जेहाद के लिये बुलाया गया तो लब्बैक कही और अपने क़ाएद पर एतमाद किया तो उसका इत्तेबाअ भी किया।

( इसके बाद बुलन्द आवाज़ से पुकार कर फ़रमाया) जेहाद , जेहाद ऐ बन्दगाने ख़ुदा , आगाह हो जाओ के मैं आज अपनी फ़ौज तय्यार कर रहा हूं , अगर कोई ख़ुदा की बारगाह की तरफ़ जाना चाहता है तो निकलने के लिये तैयार हो जाए।

नोफ़ का बयान है के इसके बाद हज़रत ने दस हज़ार का लशकर इमाम हसन (अ 0) के साथ , दस हज़ार क़ैस बिन साद के साथ , दस हज़ार अबू अयूब अन्सारी के साथ और इसी तरह मुख़तलिफ़ तादाद में मुख़तलिफ़ अफ़राद के साथ तैयार किया और आपका मक़सद दोबारा सिफ़फ़ीन की तरह कूच करने का था लेकिन नौचन्दा जुमा आने से पहले ही आपको इब्ने मुल्जिम ने ज़ख़्मी कर दिया और इस तरह सारा लशकर पलट गया और हम सब इन चैपायों की मानिन्द हो गये जिनका हंकाने वाला गुम हो जाए और उन्हें चारों तरफ़ से भेड़िये उचक लेने की फ़िक्रें हों।