खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

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खुतबाते इमाम अली (उपदेश) लेखक:
कैटिगिरी: इमाम अली (अ)

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

228-आपका इरशादे गिरामी

(जिसमें अपने बाज़ असहाब का तज़किरा फ़रमाया है)

अल्लाह फ़ुलां शख़्स ( 1) का भला करे के उसने कजी को सीधा किया और मर्ज़ का इलाज किया , सुन्नत को क़ायम किया और फ़ितनों को छोड़ कर चला गया। दुनिया से इस आलम में गया के उसका लिबास हयाते पाकीज़ा था और उसके ऐब बहुत कम थे।

(((- इब्ने अबिल हदीद ने सातवीं सदी हिजरी में यह इनकेशाफ़ किया के इन फ़िक़रात में फ़लां से मुराद हज़रत उमर हैं और फिर उसकी वज़ाहत में 87सफ़हे स्याह कर डाले हालांके इसका कोई सबूत नहीं है और न सय्यद रज़ी के दौर के नुस्ख़ों में इसका कोई तज़किरा है और फिर इस्लामी दुनिया के सरबराह की तारीफ़ के लिये लफ़्ज़े फ़ुलां के कोई मानी नहीं हैं। ख़ुतबए शक़शक़िया में लफ़्ज़े फ़ुलां का इमकान है लेकिन मदह में लफ़्ज़े फ़ुलां में अजीब व ग़रीब मालूम होता है। इस लफ़्ज़ से यह अन्दाज़ा होता है के किसी ऐसे सहाबी का तज़किरा है जिसे आम लोग बरदाश्त नहीं कर सकते हैं और अमीरूल मोमेनीन (अ 0) उसकी तारीफ़ ज़रूरी तसव्वुर फ़़रमाते हैं)))

उसने दुनिया के ख़ैर को हासिल कर लिया और उसके शर से आगे बढ़ गया। अल्लाह की इताअत का हक़ अदा कर दिया और इससे मुकम्मल तौर पर ख़ौफ़ज़दा होकर वह दुनिया से इस आलम में रूख़सत हुआ के (ख़ुद चला गया और) लोग मुतफ़र्रिक़ (गुमकर्दा) रास्तों पर थे जहां न गुमराह हिदायत पा सकता था और न हिदायत याफ़्ता यक़ीन तक जा सकता था।

229-आपका इरशादे गिरामी

अपनी बैयते खि़लाफ़त के बारे में)

तुमने बैअत के लिये मेरी तरफ़ हाथ फैलाना चाहा तो मैंने रोक लिया और उसे खींचना चाहा तो मैंने समेट लिया , लेकिन इसके बाद तुम इस तरह मुझ पर टूट पड़े जिस तरह पानी पीने के दिन प्यासे ऊंट तालाब पर गिर पड़ते हैं। यहाँ तक के मेरी जूती का तस्मा टूट गया और अबा कान्धे से गिर गई और कमज़ोर अफ़राद कुचल गए। तुम्हारी ख़ुशी का यह आलम था के बच्चों ने ख़ुशियां मनाईं , बूढ़े लड़खड़ाते हुए क़दमों से आगे बढ़े , बीमार उठते-बैठते पहुंच गए और मेरी बैअत के लिये नौजवान लड़कियाँ भी पर्दे से बाहर निकल आईं (दौड़ पड़ीं)।

(((- किस क़द्र फ़र्क़ है इस बैअत में जिसके लिये बूढ़े , बच्चे , औरतें सब घर से निकल आए और कमाले इश्तियाक़ में साहबे मन्सब की बारगाह की तरफ़ दौड़ पड़े और इस बैअत में जिसके लिये बिन्ते रसूल (स 0) के दरवाज़े में आग लगाई गई , नफ़्से रसूल (स 0) को गले में रस्सी का फनदा डालकर घर से निकाला गया और सहाबाए कराम को ज़दो कोब किया गया। क्या ऐसी बैअत को भी इस्लामी बैअत कहा जा सकता है और ऐसे अन्दाज़ को भी जवाज़े खि़लाफ़त की दलील बनाया जा सकता है ? अमीरूल मोमेनीन (अ 0) ने अपनी बैअत का तज़किरा इसीलिये फ़रमाया है के साहेबाने अक़्ल व शऊर और अरबाबे अद्ल व इन्साफ़ बैअत के मानी का इदराक कर सकें और ज़ुल्म व जौर जब्र व इसतबदाद को बैअत का नाम न दे सकें और न उसे जवाज़े हुकूमत की दलील बना सकें-)))

230-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

यक़ीनन तक़वा इलाही हिदायत की कलीद और आखि़रत का ज़ख़ीरा है , हर गिरफ़्तारी से आज़ादी और हर तबाही से निजात का ज़रिया है। उसके वसीले से तलबगार कामयाब होते हैं , अज़ाब से फ़रार करने वाले निजात पाते हैं और बेहतरीन मतालिब हासिल होते हैं।

लेहाज़ा अमल करो के अभी आमाल बलन्द हो रहे हैं और तौबा फ़ायदामन्द है और दुआ सुनी जा रही है , हालात पुरसुकून हैं , क़लमे आमाल चल रहा है। अपने आमाल के ज़रिये आगे बढ़ जाओ जो उलटे पाँव चल रही है और इस मर्ज़ से जो आमाल से रोक देता है और इस मौत से जो अचानक झपट लेती है , इसलिये के मौत तुम्हारी लज़्ज़तों को फ़ना कर देने वाली , तुम्हारी ख़्वाहिशात को बदमज़ा कर देने वाली और तुम्हारी मन्ज़िलों को दूर कर देने वाली है। वह ऐसी ज़ाएर है जिसे कोई पसन्द नहीं करता है और ऐसी मुक़ाबिल है जो मग़लूब नहीं होती है और ऐसी क़ातिल है जिससे खूंबहा का मुतालबा नहीं होता है। उसने अपने फन्दे तुम्हारे गलों में डाल रखे हैं और उसकी हलाकतों ने तुम्हें घेरे में ले लिया है और इसके तीरों ने तुम्हें निशाना बना लिया है। इसकी सतवत (ग़लबा व तसलत) तुम्हारे बारे में अज़ीम है और इसकी तादियां मुसलसल हैं और इसका वार उचटता (वार ख़ाली जाने का इमकान) भी नहीं है। क़रीब है के इसके सहाबे मर्ग की तीरगियां , इसके मर्ज़ की सख्तियां , इसकी जाँकनी की अज़ीयतें , इसकी दम उखड़ने की बेहोशियाँ , इसके हर तरफ़ छा जाने की तारीकियां और बदमज़गियां , इसकी सख्तियो के अन्धेरे तुम्हें अपने घेरे में ले लें। गोया वह अचानक उस वारिद हो गई के तुम्हारे राज़दारों को ख़ामोश कर दिया , साथियों को मुन्तशिर कर दिया , आसार को महो कर दिया , दयार को मोअत्तल कर दिया और वारिसों को आमादा कर दिया , अब वह तुम्हारी मीरास को तक़सीम कर रहे हैं उन ख़ास अज़ीज़ों के दरम्यान जो काम नहीं आए और सन्जीदा रिश्तेदारों के दरम्यान जिन्होंने मौत को रोका नहीं (रोक न सके) और उन ख़ुश होने वालों के दरम्यान जो हरगिज़ बेचैन नहीं हैं। अब तुम्हारा फ़र्ज़ है के सई करो , कोशिश करो , तैयारी करो , आमादा हो जाओ , उस ज़ादे राह की जगह से ज़ादे सफ़र ले लो और ख़बरदार दुनिया मुम्हें उस तरह धोका न दे सके जैसे पहले वालों को दिया है जो उम्मतें गुज़र गईं और जो नस्लें तबाह हो गईं , जिन्होंने इसका दूध दोहा था , उसकी ग़फ़लत से फ़ायदा उठाया था , उसके बाक़ीमान्दा दिनों को गुज़ारा था और इसकी ताज़गियों को मुर्दा बना दिया था अब उनके मकानात क़ब्र बन गए हैं और उनके अमवाल मीरास क़रार पा गए हैं। न उन्हें अपने पास आने वालों की फ़िक्र है और न रोने वालों की परवाह है और न पुकारने वालों की आवाज़ पर लब्बैक कहते हैं। इस दुनिया से बचो के यह बड़ी धोकेबाज़ , फ़रेबकार , ग़द्दार , देने वाली और छीनने वाली और लिबास पिन्हाकर उतार लेने वाली है। न इसकी आसाइशें रहने वाली हैं और न इसकी तकलीफ़ें ख़त्म होने वाली हैं और न इसकी बलाएं थमने वाली हैं।

कुछ ज़ाहिदों के बारे में

यह उन्हीं दुनियावालों में मकीन अहले दुनिया नहीं थे , ऐसे थे जैसे इस दुनिया के न हों। देख भाल कर अमल किया और ख़तरात से आगे निकल गए। गोया इनके बदन अहले आखि़रत के दरम्यान करवटें बदल रहे हैं और वह यह देख रहे हैं के अहले दुनिया इनकी मौत को बड़ी अहमियत दे रहे हैं हालांके वह ख़ुद इन ज़िन्दों के दिलों की मौत को ज़्यादा बड़ा हादसा क़रार दे रहे हैं (जो ज़िन्दा हैं मगर उनके दिल मुर्दा हैं)।

(((- मौत का अजीबो ग़रीब कारोबार है के मालिक को दुनिया से उठा ले जाती है और उसका माल ऐसे अफ़राद के हवाले कर देती है जो ज़िन्दगी में काम आए और न मरहले ही में साथ दे सके। क्या इससे ज़्यादा इबरत का कोई मक़ाम हो सकता है के इन्सान ऐसी मौत से ग़ाफ़िल रहे और चन्द रोज़ा ज़िन्दगी की लज़्ज़तों में मुब्तिला होकर मौत के जुमला ख़तरात से बेख़बर हो जाए। दुनिया की इससे बेहतर कोई तारीफ़ नहीं हो सकती है के यह एक दिन बेहतरीन लिबास से इन्सान को आरास्ता करती है और दूसरे दिन उसे उतार कर सरे राह बरहना कर देती है। यही हाल ज़ाहिरी लिबास का भी होता है और यही हाल मानवी लिबास का भी होता है। हुस्न देकर बदशक्ल बना देती है। जवानी देकर बूढ़ा कर देती है , ज़िन्दगी देकर मुर्दा बना देती है तख़्त व ताज देकर कुन्ज व क़ब्र के हवाले कर देती है और साहेबे दरबार व बारगाह बनाकर क़ब्रिस्तान के वहशतकदे में छोड़ आती है।-)))

231-आपका इरशादे गिरामी

( अमीरूल मोमेनीन (अ 0) ने बसरा की तरफ़ जाते हुए मक़ामे ज़ीक़ार में यह ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया , इसका वाक़दी ने किताबुल जमल में ज़िक्र किया है)

रसूले अकरम (स 0) को जो हुक्म था उसे आप (स 0) ने खोल कर बयान कर दिया और अल्लाह के पैग़ामात पहुंचा दिये , अल्लाह ने आप (अ 0) के ज़रिये बिखरे हुए अफ़राद की शीराज़ाबन्दी की , सीनों में भरी हुई सख़्त अदावतों और दिलों में भड़क उठने वाले कीनों के बाद ख़विश व अक़ारब को आपस में शीरो शकर कर दिया।

232-आपका इरशादे गिरामी

( अब्दुल्लाह इब्ने ज़मा जो आपकी जमाअत में महसूब होता था आप (अ 0) के ज़मानए खि़लाफ़त में

कुछ माल तलब करने के लिये हज़रत (अ 0) के पास आया तो आप (अ 0) ने इरशाद फ़रमाया)

यह माल न मेरा है न तुम्हारा बल्कि मुसलमानों का हक़्क़े मुश्तरका और उनकी तलवारों का जमा किया हुआ सरमाया है। अगर तुम उनके साथ जंग में शरीक हुए होते तो तुम्हारा हिस्सा भी उनके बराबर होता , वरना उनके हाथों की कमाई दूसरों के मुंह का निवाला बनने के लिये नहीं है।

233-आपका इरशादे गिरामी

मालूम होना चाहिये के ज़बान इन्सान (के बदन का) एक टुकड़ा है जब इन्सान (का ज़ेहन) रूक जाए तो फिर कलाम उनका साथ नहीं दिया करता और जब उसके (मालूमात में) वुसअत हो तो फ़िर कलाम ज़बान को रूकने की मोहलत नहीं दिया करता और हम (अहलेबैत) अक़लीम सुख़न के फ़रमान रवा हैं। वह हमारे रगो पै में समाया हुआ है और उसकी शाख़ें हम पर झुकी हुई हैं। ख़ुदा तुम पर रहम करे इस बात को जान लो के तुम ऐसे दौर में हो जिसमें हक़ गो (हक़ बोलने वाले) कम , ज़बानें सिद्क़ बयानी से कुन्द और हक़ वाले ज़लील व ख़्वार हैं। यह लोग गुनाह व नाफ़रमानी पर जमे हुए हैं और ज़ाहिरदारी व निफ़ाक़ की बिना पर एक-दूसरे से सुलह व सफ़ाई रखते हैं। इनके जवान बदख़ू , इनके बूढ़े गुनहगार , इनके आलिम मुनाफ़िक़ और उनके वाएज़ चापलूस हैं , न छोटे बड़ों की ताज़ीम करते हैं और न मालदार फ़क़ीर व बेनवा की दस्तगीरी करते हैं।

234-आपका इरशादे गिरामी

ज़ालब यमानी ने इब्ने क़तीबा से और उसने अब्दुल्लाह इब्ने यज़ीद से उन्होंने मालिक इब्ने वहीह से रिवायत की है के उन्होंने कहा के हम अमीरूल मोमेनीन (अ 0) की खि़दमत में हाज़िर थे के लोगों के इख़्तेलाफ़ (सूरत व सीरत) का ज़िक्र छिड़ा तो आप (अ 0) ने फ़रमाया- इनके मबदातीनत ने इनमें तफ़रीक़ पैदा कर दी है और यह इस तरह के वह शूरा ज़ार व शीरीं ज़मीन और सख़्त व नर्म मिट्टी से पैदा हुए हैं लेहाज़ा वह ज़मीन के कुर्ब के एतबार से मुत्तफ़िक़ होते और इख़्तेलाफ़ के तनासुब से मुख़्तलिफ़ होते हैं (इस पर कभी ऐसा होता है के) पूरा ख़ुश शक्ल इन्सान अक़्ल में नाक़िस और बलन्द क़ामत आदमी पस्त हिम्मत हो जाता है और नेकोकार , बदसूरत और कोताह क़ामत दूरअन्देश होता है और तबअन नेक सरिश्त कसी बुरी आदत को पीछे लगा लेता है , और परेशान दिन वाला परागान्दा अक़्ल और चलती हुई ज़बान वाला होशमन्द दिल रखता है।

235-आपका इरशादे गिरामी

(रसूलल्लाह (स 0) को ग़ुस्ल कफ़न देते वक़्त फ़रमाया)

या रसूलल्लाह (स 0)! मेरे माँ बाप आप (स 0) पर क़ुरबान हों। आप (स 0) के रेहलत फ़रमा जाने से नबूवत , ख़ुदाई एहकाम और आसमानी ख़बरों का सिलसिला क़ता हो गया जो किसी और (नबी) के इन्तेक़ाल से क़ता नहीं हुआ था (आप (स 0) ने) इस मुसीबत में अपने अहलेबैत (अ 0) को मख़सूस किया यहाँ तक के आप (अ 0) ने दूसरों के ग़मों से तसल्ली दे दी और (इस ग़म को) आम भी कर दिया के सब लोग आप (अ 0) के (सोग में) बराबर के शरीक हैं। अगर आप (अ 0) ने सब्र का हुक्म और नाला व फ़रियाद से रोका न होता तो हम आप (अ 0) के ग़म में आंसुओं का ज़ख़ीरा ख़त्म कर देते और यह दर्द मन्नत पज़ीद दरमाँ न होता और यह ग़म व हुज़्न साथ न छोड़ता। (फिर भी यह) गिरया व बुका और अन्दोह व हुज़्न आपकी मुसीबत के मुक़ाबले में कम होता , लेकिन मौत ऐसी चीज़ है के जिसका पलटाना इख़्तेयार में नहीं है और न इसका दूर करना बस में है , मेरे माँ-बाप आप (अ 0) पर निसार हों हमें भी अपने परवरदिगार के पास याद कीजियेगा और हमारा ख़याल रखियेगा।

236- आपका इरशादे गिरामी (इसमें पैग़म्बर (स 0) की हिजरत के बाद अपनी कैफ़ियत और फिर उन तक पहुंचने तक की हालत का तज़किरा किया है)

मैं रसूलल्लाह (स 0) के रास्ते पर रवाना हुआ और आपके ज़िक्र के ख़ुतूत पर क़दम रखता हुआ मक़ामे अर्ज तक पहुंच गया।

सय्यद रज़ी - यह टुकड़ा एक तवील कलाम का जुज़ है और (फाता ज़िक्रा) ऐसा कलाम है जिसमें मुन्तहा दरजे का इख़्तेसार और फ़साहत मलहूज़ रखी गई है। इससे मुराद यह है के इब्तेदाए सफ़र से लेकर यहाँ तक के मैं इस मुक़ामे अरज तक पहुंचा बराबर आप (अ 0) की इत्तेलाआत मुझे पहुंच रही थीं। आप (अ 0) ने इस मतलब को इस अजीब व ग़रीब कनाया में अदा किया है।

237-आपका इरशादे गिरामी

आमाल बजा लाओ , अभी जबके तुम ज़िन्दगी की फ़िराख़ी व वुसअत में हो आमाल नामे खुले हुए हैं और तौबा का दामन फैला हुआ है। अल्लाह से रूख़ फ़ेर लेने वाले को पुकारा जा रहा है और गुनहगारों को उम्मीद दिलाई जा रही है क़ब्ल इसके के अमल की रोशनी गुल हो जाए और मोहलत हाथ से जाती रहे और मुद्दत ख़त्म हो जाए और तौबा का दरवाज़ा बन्द हो जाए और मलाएका आसमान पर चढ़ जाएं चाहिये के इन्सान ख़ुद अपने से (ख़ुद से) अपने वास्ते और ज़िन्दा से मुर्दा के लिये और फ़ानी से बाक़ी की ख़ातिर और जाने वाली ज़िन्दगी से हयाते जावेदानी के लिये नफ़ा व बहबूद हासिल करे वह इन्सान जिसे एक मुद्दत तक उम्र दी गई है और अमल की अन्जाम दही के लिये मोहलत भी मिली है उसे अल्लाह से डरना चाहिये मर्द वह है जो अपने नफ़्स को लगाम दे के उसकी बागें चढ़ाकर अपने क़ाबू में रखे और लगाम के ज़रिये उसे अल्लाह की नाफ़रमानियों से रोके और उसकी बागें थाम कर अल्लाह की इताअत की तरफ़ खींच ले जाए।

238- आपका इरशादे गिरामी

(दोनों सालेसों (अबू मूसा व अम्रो इब्ने आस) के बारे में और अहले शाम की मज़म्मत में फ़रमाया)

वह तून्दख़ू औबाश और कमीने बदक़माश हैं के जो हर तरफ़ से इकट्ठा कर लिये गये हैं और मख़लूतुन नसब लोगों में से चुन लिये गए हैं , वह उन लोगों में से हैं जो जेहालत की बिना पर इस क़ाबिल हैं के उन्हें (अभी इस्लाम के मुताल्लिक़) कुछ बताया जाए और शाइस्तगी सिखाई जाए (अच्छाई और बुराई की तालीम) दी जाए और (अमल की) मशक़ कराई जाए और उन पर किसी निगरान को छोड़ा जाए और उनके हाथ पकड़कर चलाया जाए , न तो वह मुहाजिर हैं न अन्सार और न इन लोगों में से हैं जो मदीने में फरोकश थे। देखो! अहले शाम ने तो अपने लिये ऐसे शख़्स को मुन्तख़ब किया है जो उनके पसन्दीदा मक़सद के बहुत क़रीब है और तुमने ऐसे शख़्स को चुना है जो तुम्हारे नापसन्दीदा मक़सद से इन्तेहाई नज़दीक है। तुमको अब्दुल्लाह इब्ने क़ैस (अबू मूसा) का कल वाला वक़्त याद होगा (के वह कहता फिरता था) के “ यह जंग एक फ़ित्ना है लेहाज़ा अपनी कमानों के चिल्लों को तोड़ दो और तलवारों को न्यामों में रख लो ” अगर वह अपने इस क़ौल में सच्चा था तो (हमारे साथ) चल खड़ा होने में ख़ताकार है के जबके इस पर कोई जब्र भी नहीं और अगर झूठा था तो इस पर (तुम्हें) बे एतमादी होना चाहिये लेहाज़ा अम्रो इब्ने आस के धकेलने के लिये अब्दुल्लाह इब्ने आस को मुन्तख़ब करो , इन दोनों की मोहलत ग़नीमत जानो और इसलामी (शहरों की) सरहदों को घेर लो क्या तुम अपने शहरों को नहीं देखते के उन पर हमले हो रहे हैं और तुम्हारी क़ूवत व ताक़त को निशाना बनाया जा रहा है।

239-आपका इरशादे गिरामी

(इसमें आले मोहम्मद अलैहिस्सलाम का ज़िक्र किया गया है)

यह लोग इल्म की ज़िन्दगी और जेहालत की मौत हैं। इनका हिल्म उनके इल्म से और इनका ज़ाहिर इनके बातिन से और इनकी ख़मोशी उनके कलाम से बाख़बर करती है। यह न हक़ की मुख़ालेफ़त करते हैं और न हक़ के बारे में कोई इख़्तेलाफ़ करते हैं। यह इस्लाम के सुतून और हिफ़ाज़त के मराकज़ हैं। उन्हीं के ज़रिये हक़ अपने मरकज़ की तरफ़ वापस आया है और बातिल अपनी जगह से उखड़ गया है और इसकी ज़बान जड़ से कट गई है। उन्होंने दीन को इस तरह पहचाना है जो समझो और निगरानी का नतीजा है। सिर्फ़ सुनने और रिवायत का नतीजा नहीं है। इसलिये के (यूं तो) इल्म की रिवायत करने वाले बहुत हैं और (मगर) इसका ख़याल रखने वाले बहुत कम हैं।

(((- इब्ने अबी अलहदीद ने इ समक़ाम पर ख़ुद अबू मूसा अशअरी की ज़बान से यह हदीस नक़ल की है के सरकारे दो आलम (स 0) ने फ़रमाया के जिस तरह बनी इसराईल में दो गुमराह हकम थे उसी तरह इस उम्मत में भी होंगे। तो लोगों ने अबू मूसा से कहा के कहीं आप ऐसे न हो जाएं , उसने कहा यह नामुमकिन है ,, और इसके बाद जब वक़्त आया तो तमए दुनिया ने ऐसा ही बना दिया जिसकी ख़बर सरकारे दो आल (स 0) ने दी थी।

हैरत की बात है के हकमीन के बारे में रिवायत ख़ुद अबू मूसा ने बयान की है और जो आपके सिलसिले में रिवायत ख़ुद उम्मुल मोमेनीन आइशा ने नक़्ल की है , लेकिन इसके बावजूद न उस रिवायत का कोई असर अबू मूसा पर हुआ और न इस रिवायत का कोई असर हज़रत आइशा पर।

इस सूरतेहाल को क्या कहा जाए और उसे क्या नाम दिया जाए , इन्सान का ज़ेहन सही ताबीर से आजिज़ है , और “ नातक़ा सर ब गरीबां है इसे क्या कहिये। ” सरकारे दो आलम (स 0) ने एक तरफ़ नमाज़ को इस्लाम का सुतून क़रार दिया है और दूसरी तरफ़ अहलेबैत (अ 0) के बारे में फ़रमाया है के जो मुझ पर और इन पर सलवात न पढ़े उसकी नमाज़ बातिल और बेकार है , जिसका खुला हुआ मतलब यह है के नमाज़ इस्लाम का सुतून है और मोहब्बते अहलेबैत (अ 0) नमाज़ का सुतूने अकबर है। नमाज़ नहीं है तो इस्लाम नहीं है और अहलेबैत (अ 0) नहीं हैं तो नमाज़ नहीं है-)))