खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

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खुतबाते इमाम अली (उपदेश) लेखक:
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.


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240-आपका इरशादे गिरामी

( जिन दिनों में उस्मान इब्ने अफ़्फ़ान मुहासेरे में थे तो अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास उनकी एक तहरीर लेकर अमीरूल मोमेनीन (अ 0) के पास आए जिसमें आपसे ख़्वाहिश की थी के आप अपनी जागीरी नबा की तरफ़ चले जाएं ताके खि़लाफ़त के लिये जो हज़रत का नाम पुकारा जा रहा है उसमें कुछ कमी आ जाए और वह ऐसी दरख़्वास्त पहले भी कर चुके थे जिस पर हज़रत (अ 0) ने इब्ने अब्बास से फ़रमाया) -

ऐ इब्ने अब्बास! उस्मान तो बस यह चाहते हैं के वह मुझे अपना शतरआब कश बना लें जो डोल के साथ कभी आगे बढ़ता है और कभी पीछे हटता है , उन्होंने पहले भी यही पैग़ाम भेजा था के मैं (मदीने) से बाहर निकल जाऊं और इसके बाद यह कहलवा भेजा के मैं पलट आऊं , अब फिर वह पैग़ाम भेजते हैं के मैं यहां से चला जाऊँ (जहां तक मुनासिब था) मैंने उनको बचाया , अब तो मुझे डर है के मैं (उनको मदद देने से) कहीं गुनहगार न हो जाऊं।

241-आपका इरशादे गिरामी

ख़ुदा वन्दे आलम तुमसे अदाए शुक्र का तलबगार है और तुम्हें अपने इक़तेदार का मालिक बनाया है और तुम्हें इस (ज़िन्दगी के) महदूद मैदान में मोहलत दे रखी है ताके सबक़त का इनआम हासिल करने में एक-दूसरे से बढ़ने की कोशिश करो , कमरें मज़बूती से कस लो , और दामन गरदान लो , बलन्द हिम्मती और दावतों की ख़्वाहिश एक साथ नहीं चल सकती। रात की गहरी नीन्द दिन की महूमों में बड़ी कमज़ोरी पैदा करने वाली है और (इसकी) अन्धयारियां हिम्मत व जुरात की याद को बहुत मिटा देने वाली हैं।

ख़ुत्ब-ए-बिला नुक़्ता

मैं अल्लाह की हम्द करता हूँ जो बादशाह है , हम्द करदा मालिक है , मोहब्बत करने वाला हर मौलूद का मुसव्विर और हर ठुकराए हुए की बाज़गश्त है , फ़र्शे ज़िन्दगी का बिछाने वाला , पहाड़ों का क़ायम करने वाला , बारिश का भेजने वाला और सख्तियो का आसान करने वाला है , वह इसरार का जानने वाला मुदर्रिक और मुल्कों का बरबाद करने वाला और ज़मानों का गर्दिश देने वाला उनका लौटाने वाला और उमूर का मौरिद व मुसद्दर है उसकी सख़ावत आम है और उसका इन्तेज़ाम कामिल है। उसने मोहलत दी है और सवाल व उम्मीद में मतावेअत पैदा की है और रमुल व अरमुल को वुसअत दी।

मैं उसकी हम्द करता हूँ ऐसी हम्द के जो तवील है और उसकी तौहीद बयान करता हूँ जैसा के उसकी तरफ़ रूजू होने वालों ने बयान किया है। वही वह ख़ुदा है के उम्मतों का उसके सिवा कोई ख़ुदा नहीं। कोई उस शख़्स का बिगाड़ने वाला नहीं है जिसको उसने दुरूस्त किया हो , उसने मोहम्मद (स 0) को इस्लाम का इल्म और हुक्काम का इमाम ज़्यादतियों का रोकने वाला और वद और सेवाअ (दोनों बुत हैं) के एहकाम को बातिल करने वाला बनाकर भेजा उसने तालीम दी और हुक्म दिया और उसूलों को मुक़र्रर किया और हिदायत की वादा वफ़ाई की ताकीद की और अल्लाह ने इकराम को उसके साथ मुत्तसिल कर लिया और वदीअत की रूह को सलामती के साथ और उस पर रहम और उसके अहलेबैत को मुकर्रम किया। जब तक सराब की चमक बाक़ी है और चान्द रौशन है , और हलाल को देखने वाला सुनता रहे , जान लो ख़ुदा तुमसे रिआयत करे तुम्हारे आमाल की इस्लाह करे हलाल के रास्तों पर गामज़न रहो और हराम को तर्क करो और हुक्मे ख़ुदा को मानो , उसकी हिफ़ाज़त करो और सिलए रहम करो और उसकी रिआयत करो और ख़्वाहिशात की मुख़ालेफ़त करो और उनको छोड़ो और नेको कारों का साथ इख़्तेयार करो। लहो व लाब और लालचों से जुदाई इख़्तेयार करो तुम्हारे हम सोहबत लोग मुआमलात की हैसियत से पाक व पाकीज़ा हों और सरदारी की हैसियत से मुन्तख़ब हों और बहैसियत मेज़बान के शीरीं बयान हों और आगाह हो के उसी ने हराम किया है तुम्हारी माओं को और हलाल किया है तुम्हारी बीवियों को और मालिक बनाया है तुमको तुम्हारी मुकर्रम दुलहनों का और बनाया है तुमको उनका मेहर देने वाला जैसा के रसूलुल्लाह (स 0) ने उम्मे सलमा का मेहर अदा किया वह ख़स्र की हैसियत से बुज़ुर्गतरीन हस्ती हैं उन्होंने औलाद छोड़ी और मालिक बननाया हर उस चीज़ का जो उन्होंने चाहा उस मालिक बनाने वाले ने न ही सहो किया और न वहम व ग़फ़लत। मैं अल्लाह से तुम्हारे लिये सवाल करता हूँ के उनके वसाल की अच्छाईयां तुम्हें मिलें और उनकी सआदत की मदावमत हासिल हो और कल के लिये इस्लाह हासिल की और उसके माल व मआद के सामान के लिये यानी उसकी दुनिया व आख़ेरत की बहबूदी के लिये ख़्वाहिश करता हूँ हम्द व हमेशगी उसी के लिये है और मदहा उसके रसूल (स 0) के लिये है जिसका नाम अहमद (स 0) है।

ख़ुत्बए मोजिज़ा

((( इब्ने अबी अलहदीद अपनी शर्ह नहजुल बलाग़ा में नाक़िल हैं के एक दिन “ सहाबाए कराम ” में यह बहस हो रही थी के हुरूफ़े तहज्जी में सबसे ज़्यादा कसीरूल इस्तेमाल हर्फ़ कौन सा है ? तै हुआ के कलाम में “ अलिफ़ ” बग़ैर काम नहीं चल सकता। यह सुनकर अली इब्ने अबीतालिब (अ 0) खड़े हो गए और फ़िल बदीहा एक ऐसा ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया जो मफ़हूम के एतबार से निहायत पुरमग़्ज़ और बलीग़ लफ़्ज़ों के लेहाज़ से इन्तेहाई पुर असर और फ़सीह है फ़िर लुत्फ़ यह है के मक़फ़ी होते हुए भी इब्तिदा से आखि़र तक “ आविर्द ” की तरह “ अलिफ़ ” से भी ख़ाली है।)))

मुस्तहके़ हम्द है वह माबूद जिसकी अज़मत ख़ेज़ मिन्नत मुकम्मल नेमत , ग़ज़ब से बढ़ी हुई रहमत , हमहगीर मशीयत , महीते हुज्जत , दुरूस्त फ़ैसले मुझे दावते हम्द दे रहे हैं।

जिस तरह कोई रूबूबियत से मुतमस्सिक उबूदियत में मुस्तग़र्रिक़ , तौहीद में मुतफ़र्रिद , लग़ज़िश से बड़ी , धमकियों से ख़ौफ़ज़दा , महशर की किस्मपुरसी में बख़्शतों की तरफ़ मुतवज्जेह होकर माबूद की तारीफ़ करे , बईना यू नहीं हैं भी मदहेगुस्तर हूँ।

हम माबूद ही से रशद व मदद व रहबरी के मुतमन्नी हैं वही हस्ती हम सबके लिये मरकज़तरीन व महबूब तवक्कल है अब्दे मुख़लिस की तरह हम वजूदे माबूद के मुक़र्रर हैं मोमिन मुत्तक़ीन की तरह मुनफ़रिद समझते हैं मज़बूत अक़ीदा बन्दे की तरह फ़र्द फ़रीद तस्लीम करते हैं न कोई मुल्क में शरीक है , न सनअतगरी में दस्तगीर वह मुशीर व वज़ीर के मशविरों से बरतर है , नीज़ मदद व मददकुनन्दा हम पस्त व हमर की ज़रूरत से मुस्तग़नी , क़ुदरत हमस ब की लग़्ज़िशों को ख़ूब समझती है मगर मख़फ़ी रखती है वह तो तह की चीज़ों से भी ख़बर रखती है वह हुकूमत में सबको मुनज़्ज़म रखती है , हुक्म से सरकशी के वक़्त भी अफ़ो के क़लम को हरकत देती है , लोग बन्दगी करते हैं तो क़ुदरत एवज़ शुक्रिया पेश करती है , फ़ैसले में हमेशा अद्ल को मद्दे नज़र रखती है वह हमेशा से है हमेशा रहेगी। माबूद की मिस्ल व नज़ीर न कोई चीज़ थी , न है , न होगी , वह हर शै से पहले है , नीज़ हर शै के बाद है वह इज़्ज़त से

मोअजि़्ज़ज़ है , क़ूवत से मुतमक्कुन , बुज़ुर्गी की वजह से मु़क़द्दस है बरतरी की वजह से मुतकब्बिर है , चश्मे मख़लूक़ न माबूदे हक़ीक़ी को देख सकती है न किसी की नज़र महीत हो सकती है , वह क़वी व मुनीअ , समीअ व बसीर , रऊफ़ व रहीम है वस्फ़ कुन्दा माबूद , की ग़ैर महदूद सिफ़तों को देखकर गंग हैं बल्कि मारेफ़त के मुद्दई भी हक़ीक़ी तारीफ़ से गुमगश्ता हैं वह नज़दीक होते हुए दूर है , दूर होते हुए नज़दीक है। यह क़ुदरत ही तो है जो हर दावत पर लब्बैक कहती है , रिज़्क़ देती है बल्कि ज़रूरत से बढ़कर भी बख़्श देती है , वही तो मख़फ़ी मुरव्वत क़वी शौकत की मज़हर नीज़ वसीअ रहमत , तकलीफ़देह उक़ूबत की मिसदर है। यह वही हस्ती तो है जिसकी रहमत लम्बी चैड़ी क़ुबूल सूरत जन्नत है , जिसकी उक़ूबत वसीअ व तहलकाख़ेज़ दोज़ख़ है मेरी हस्ती बअसते मोहम्मद (स 0) की मिस्दक़ है जो रसूले अरबी अब्दे हक़ीक़ी बुरगज़ीदा नबी , शरीफ़ ख़सलत , हबीब व ख़लील हैं। वह हज़रत बेहतरीन अहद मगर कुफ्ऱ व बेअमली के दौर में मन्सबे नबूवत पर मुतमक्कन हुए बन्दों पर रहम करते हुए मिन्नत व करम में मज़ीद तरक़्क़ी देते हुए क़ुदरत ने कुल कमी पूरी कर दी यानी मोहम्मद (स 0) पर नबूवत ख़त्म करके हुज्जत मुस्तहकम कर दी।

हज़रत ने भी लोगों को वएज़ व नसीहत करने में कोई कमी नहीं की बल्कि भरपूर जद्दो जेहद की। वह हज़रत जुमला मोमेनीन के लिये शफ़ीअ हमदर्द , रहम दिल , सख़ी , पसन्दीदा व बरगुज़ीदा वली थे रब्ब व रहीम , क़रीब व मुजीब हकीम की तरफ़ से मोहम्मदे अरबी पर रहमत व तस्लीम नीज़ बरकत व ताज़ीम व तकरीम की बढ़न्ती (कसरत) हो , गिरोहे मौजूद! मेरे ज़रिये से तुम लोगों के लिये रब्बे क़दीर की वसीयत , नबीए करीम की सुन्नत पेश हो रही है जिसमें तुम सबके लिये नीज़ मेरे लिये नसीहत व मौएज़त के दफ़्तर हैं। तुम पर फ़र्ज़ है के तुम में वह डर मौजूद हो जिससे ख़ुद तुम्हीं लोगों के दिल को सुकून मयस्सर हो , वह ख़ौफ़ मख़फ़ी हो जिसकी मौजूदगी में चश्मे नम से सील न निकले , वह तक़य्या हो जो बोसीदगी के दिन से पहले ही कल महलकों से महफ़ूज़ कर दे , नीज़ रोज़े महशर से बेफ़िक्र कर दे जबके नेकियों की तूल वज़नी बदियों की तूल सुबुक होने की वजह से बशर को ऐश व इशरत की ज़िन्दगी नसीब होगी। तुम लोगों पर यह भी फ़र्ज़ है के ख़ुशू व ख़ुज़ू , तौबा व रूजूअ ज़िल्लत व शर्मिन्दगी की सूरत से माबूद की खि़दमत में अर्ज़ व मअरूज़ व तमलक़ करो। नीज़ तुम लोग मौक़े को ग़नीमत समझो , मर्ज़ से पहले सेहत की क़द्र करो , पीर फरतूत होने से पहले पीरी की इज़्ज़त करो , फ़क़ीरी से पहले दौलत की तौक़ीर करो। मशग़ूलियत से पहले वक़्ते फ़ुरसत को मद्दे नज़र रखो , सफ़र से पेशतर हिज़्र की क़द्र करो , करने से पहले ज़िन्दगी की हक़ीक़त को समझ लो , न मालूम कितने होंगे जो ज़ईफ़ व कमज़ोर मरीज़ बन गए हों जिनकी कैफ़ियत यह होगी के ख़ुद तबीब (नुस्ख़ा लिखते लिखते) थकन महसूस करने लगेंगे , दोस्त भी परहेज़ करने लगेंगे उम्र ख़त्म के क़रीब होगी , अक़्ल व फ़हम मुंह मोड़ चुके होंगे , कुछ लोग यह कह रहे होंगे के यह तो (जूतों से) पटी हुई सूरत है , जिस्म भी (पतली छड़ी की तरह) मदक़ूक़ है के यक ब यक नज़अ की कैफ़ियत शुरू हो गई नज़दीक व दूर के सब लोग मौजूद होंगे। मरीज़ के दीदों की गर्दिश सल्ब होगी। टकटकी बन्धी होगी , जबीन अर्क़ रेज़ , बीनी कज , तकलीफ़देह चीख़ में सुकून , बस नफ़्स में रन्ज व ग़म की कैफ़ियत महसूस हो रही होगी। बीवी रो-पीट रही होगी , बच्चे यतीम हो रहे होंगे। लहद दुरूस्त हो रही होगी। अज़ीज़ों में तफ़रिक़े की नीव पड़ रही होगी। तरके की तक़सीम होती होगी मगर ख़ुद मय्यत चश्म व गोश से बेताल्लुक़ होगी नौबत यह पहुंचेगी के लोग जिस्म के हिस्से खींच-खींच कर दुरूस्त कर देंगे फिर बदन से कपड़े दूर करेंगे यूं ही बरहना ग़ुस्ल देंगे , फिर धो- पोंछ कर किसी चीज़ पर रख देंगे। बादहू कफ़न में लेटेंगे। पहले मय्यत की ठुड्डी की बन्दिश करेंगे फिर क़ैस देकर सर पर पगड़ी लपेट देंगे , फिर तस्लीम करके रूख़सत करेंगे यानी किसी तख़्त पर मय्यत को रखेंगे , फिर बग़ैर सजदे के फ़रीज़े से तकबीर कह कर सब लोग सुबुकदोश होंगे , नीज़ मय्यत के लिये मग़फ़ेरत तलब करेंगे। फ़िर ज़ेब व ज़ीनत दिये हुए घर , मज़बूत व मुस्तहकम बने हुए क़स्र , सरबलन्द व मज़ीन महल से मुन्तक़िल करके लहद बनी हुई क़ब्र पहले से दुरूस्त किये हुए गड्ढे के सुपुर्द कर देंगें जिस पर संग व ख़ुश्त को बहम करके (मामूली सी) छत दुरूस्त कर देंगे फिर कुछ मिट्टी कुछ ढेले से गड्ढे को भर देंगे यही पर लोग जदीद मुसीबत को देखकर माबूद की खि़दमत में हुज़ूरी को यक़ीनी समझेंगे लेकिन ख़ुद मुर्दे को सहो महो कर देंगे। दोस्त हमदम हम मशरिब , अज़ीज़ क़रीब दफ़्न से पलटने के बाद दूसरे दूसरे दोस्त व रफ़ीक़ ढूंढ लेंगे मगर मय्यत ग़रीब बेकसी के घर में गरो है बल्कि क़ब्र के पेट में लुक़्मा है कैफ़ियत यह है के लहद के कीड़े बेहिस जिस्म पर दौड़ रहे हैं , नथनों से रूतूबत बह रही है , कीड़े तोड़े गोश्त व पोस्त को छलनी कर रहे हैं , ख़ून पी रहे हैं हड्डियों को बोसीदा कर रहे हैं , यौमे महशर तक यही सूरते हाल रहेगी। फिर सूर फूंकने के वक़्त हश्र व नश्र के लिये तलब होंगे। यही तो वह वक़्त है के क़ब्रों की जुस्तजू होगी सीने के मख़फ़ी ख़ज़ीने पेश होंगे नबी सिद्दीक़ शहीद (यानी मोहम्मद (स 0) अली (अ 0) हुसैन (अ 0)) महशर में तलब होंगे फिर रब्बे क़दीर की तरफ़ से जो के ख़बीर व बसीर है सबके फ़ैसले होंगे। मुल्के अज़ीम के पेशे नज़र जो हर छोटी बड़ी चीज़ से मुतलअ है , महशर के ज़बरदस्त पुरहौल मौक़ुफ़ में न मालूम कितने ज़िन्दगीकश शयून बलन्द होंगे , न मालूम कितनी दबी हुई हसरतें पूरी होंगी (यानी ज़ुल्म पेशा गिरोह से मज़लूमों के हुक़ुक़ मिलेंगे) यही वह वक़्त है जबके गले गले पसीने में सब ग़र्क़ होंगे , जहन्नम के शोले हर तरफ़ से घेरे होंगे , चश्मे हसरत से मुसलसल झड़ी बन्धने के बाद भी रहमत के दरमस्दूद चीख़ें बेसूद दलीलें मरदूद होंगी। जुर्म हद को पहुंच चुके होंगे दफ़्तरे अमल खुले रखे होंगे पेशे नज़र बुरे अमल होंगे चश्मे मुजरिम , नज़र की लग़ज़िश की , दस्ते ज़ुल्म तादी के , क़दम ग़लत रोश के , जिल्दे बदन , ग़ैर महरम से मिलने के जिस्म के मख़फ़ी हिस्से लम्स व तक़बील के ख़ुद ब ख़ुद मुक़र्रर होंगे। ख़त्मे हुज्जत के बाद , तौक़ दरे गरदन , दस्त ब ज़न्जीर खींचते घसीटते दोज़ख़ की तरफ़ ले चलेंगे फिर कर्ब व शिद्दत की मईयत में जहन्नुम के सुपुर्द कर देंगे पस तरह-तरह की उक़ूबतें शुरू होंगी , पीने के लिये ख़ून , पीप पेश करेंगे जिसकी वजह से सूरत झुलसी हुई मालूम होगी। जिस्म की जिल्द गल-गल के गिर रही होगी। लोहे के गुर्ज़ से फ़रिश्ते पीट रहे होंगे , जिल्दे बदन जल-जल के गिरती होगी। दूसरी नई जिल्द बनती होगी। बदनसीब के दोने पीटने की तरफ़ से जहन्नुम के मोवक्किल फ़रिश्ते भी मुंह फेरे होंगे। ग़रज़ के यूंहीं मुद्दतों चीख़ नीज़ शर्मिन्दगी की कैफ़ियत में बसर होगी। हम रब्बे क़दीर से हर तरह के फ़ित्ने व शर से तलबे हिफ़्ज़ करते हैं वह जिन लोगों से ख़ुश होकर जिस मक़बूलियत की सफ़ में जगह दिये हुए है हम भी कुछ वैसी ही मग़फ़ेरत व मक़बूलियत के मुतमन्नी हैं क्योंके वही हस्ती हम सबके हर मक़सूद व मतलब की मुतकफ़िल है बेशक जो लोग माबूद की उक़ूबतों से (नेक चलन होने की वजह से) बच गए वह इज़्ज़त माबूद ही के तुफ़ैल से जन्नत में पहुंचेंगे। सर बलन्द व मुस्तहकम महलों में हमेशा हमेशा के लिये ठहरेंगे जिस जगह ऐश व इशरत के लिये हूरें मिलेंगी , खि़दमत के लिये नौकर मौजूद होंगे , शीशा व ख़म गर्दिश में होंगे मुक़द्दस मन्ज़िलों में मुक़ीम होंगे। नेमतों में करवटें बदलते होंगे , तसनीम व सलसबील को मुतमईन होकर पीते होंगे जिसके हर जरए तरह तरह की ख़ुशबुओं में बसे होंगे। यह सब चीज़ें हमेशगी की मिल्कियत होंगी जिसमें सूरूर की हिस क़वी होगी , हरे भरे चमन में मय नौशी होगी , मै नौशों को न दर्देसर की तकलीफ़ होगी न कोई दूसरी ज़हमत होगी। मगर यह मन्ज़िलत ख़ौफ़ व ख़शीयत से मुत्तसिफ़ लोगों की है जो नफ़्स की सरकशियों से हर वक़्त ख़तरे में रहते हैं। (यानी हिरस व हवस के फन्दों से बच कर निकलने की कोशिश करते रहते हैं) बेशक जो लोग हक़ के मुन्किर हों , मज़कूरा हक़ीक़तों को भूले बैठे हों मासीयत कोशी में निडर हों , पुरफ़रेब नफ़्स के धोके में पड़े हों , वह माबूद हक़ीक़ी की तरफ़ से उक़ूबत के मुस्तहेक़ हैं। क्योंके दुरूस्त फ़ैसला मोतदिल हुक्म यही है। (देखो- सबसे बेहतर क़िस्सा सबसे खरी नसीहत हकीमे मुतलक़ की तन्ज़ील है जिसे जिबरईल पहले से रहबरे कुल हज़रत मोहम्मद (स 0) के क़ल्बे मोहतरम के सुपुर्द कर चुके हैं। मुकर्रम व नेक मन्श सफ़ीरों की तरफ़ से हज़रत पर दुरूदो रहमत हो। हम हर लईन व रजीम दुश्मन के शर से बचने के लिये रब्बे अलीम , रहीम , करीम से मदद तलब करते हैं। तुम लोग भी तज़र्रोअ करो। गिरया में मशग़ूल रहो , नीज़ तुम में हर शख़्स जो नेमते रब से बहरो वर है ख़ुद नीज़ मेरे लिये तलबे मग़फ़ेरत करे। बस मेरे लिये रब्बे क़दीर की हस्ती बहुत है- फ़क़त

152-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें परवरदिगार के सिफ़ात और आइम्माए ताहेरीन (अ 0) के औसाफ़ का ज़िक्र किया गया है)

सरी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये हैं जिसने अपनी तख़लीक़ से अपने वजूद का , अपनी मख़लूक़ात के जादिस होने से अपनी अज़लियत का और उनकी बाहेमी मुशाबेहत से अपने बेनज़ीर होने का पता दिया है। उसकी ज़ात तक हवास की रसाई नहीं है और फिर भी परदे उसे पोशीदा नहीं कर सकते हैं।

मौज़ू सानेअ से और हदबन्दी करने वाला महदूद से और परवरिश करने वाला परवरिश पाने वाले से बहरहाल अलग होता है। वह एक है मगर अदद के एतबार से नहीं। वह ख़ालिक़ है मगर हरकत व ताब के ज़रिये नहीं , वह समीअ है लेकिन कानों के ज़रिये नहीं और वह बसीर है लेकिन न इस तरह के आंखों को फैलाए।

वह हाज़िर है मगर छुआ नहीं जा सकता और वह दूर है लेकिन मसाफ़तों के एतबार से नहीं , वह ज़ाहिर है लेकिन देखा नहीं जा सकता है और वह बातिन है लेकिन जिस्म की लताफ़तों की बिना पर नहीं। वह चीज़ो से अलग है अपने क़हर व ग़लबे और क़ुदरत व इख़्तेयार की बिना पर और मख़लूक़ात उससे जुदागाना है ख़ुज़ू व खुशु और उसकी बारगाह में बाज़गश्त की बिना पर। जिसने उसके लिये अलग से औसाफ़ का तसव्वुर किया उसने उसे आदाद मुअय्यन में लाकर खड़ा कर दिया और जिसने ऐसा किया उसने उसे हादस बनाकर उसकी अज़लियत का ख़ात्मा कर दिया और जिसने यह सवाल किया के वह कैसा है उसने अलग से औसाफ़ की जुस्तजू की और जिसने यह दरयाफ़्त किया के वह कहाँ है ? उसने उसे मकान में महदूद कर दिया। वह उस वक़्त से आलिम है जब मालूमात का पता भी नहीं था और उस वक़्त से मालिक है जब ममलूकात का निशान भी नहीं था और उस वक़्त से क़ादिर है जब मक़दूरात परदए अदम में पड़े थे।

( आइम्माए (अ 0) दीन) देखो तुलूअ करने वाला तालेअ हो चुका है और चमकने वाला रौशन हो चुका है , ज़ाहिर होने वाले का ज़हूर सामने आ चुका है , कजी सीधी हो चुकी है और अल्लाह एक क़ौैम के बदले दूसरी क़ौम और एक दौर के बदले दूसरा दौर ले आया है। हमने हालात में इन्क़ेलाब का उसी तरह इन्तेज़ार किया है जिस तरह क़हत ज़दा बारिश का इन्तेज़ार करता है। आइम्मा दर हक़ीक़त अल्लाह की तरफ़ से मख़लूक़ात के निगरां और अल्लाह के बन्दों पर उसकी मारेफ़त का सबक़ देने वाले हैं। कोई शख़्स जन्नत में क़दम नहीं रख सकता है जब तक वह उन्हें न पहचान ले और आइम्मा हज़रात उसे अपना न कह दें और कोई शख़्स जहन्नुम में जा नहीं सकता है मगर यह के वह इन हज़रात का इन्कार कर दे और वह भी उसे पहचानने से इन्कार कर दें। परवरदिगार ने तुम लोगों को इस्लाम से नवाज़ा है और तुम्हें उसके लिये मुन्तख़ब किया है। इसलिये के इस्लाम सलामती का निशान और उम्मत का सरमाया है। अल्लाह ने इसके रास्ते का इन्तेख़ाब किया है। इसके दलाएल को वाज़ेअ किया है। ज़ाहिरी इल्म और बातिनी हुकूमतों के मानिन्द इसके ग़राएब फ़ना होने वाले और इसके अजाएब ख़त्म होने वाले नहीं हैं। इसमें नेमतों की बहार और ज़ुल्मतों के चिराग़ हैं। नेकियों के दरवाज़े इसकी कुन्जियों से खुलते हैं और तारीकियों का इज़ाला इसी के चराग़ों से होता है। इसने अपने हुदूद को महफ़ूज़ कर लिया है। उसने अपनी चरागाह को आम कर दिया है। इसमें तालिबे शिफ़ा के लिये शिफ़ा और उम्मीदवार किफ़ायत के लिये बेनियाज़ी का सामान मौजूद है।

153-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(गुमराहों और ग़ाफ़िलों के बारे में)

( गुमराह) यह इन्सान अल्लाह की तरफ़ से मोहलत की मन्ज़िल में है , ग़ाफ़िलों के साथ तबाहियों के गढ़े में गिर पड़ता है और मक्कारों के साथ सुबह करता है। न इसके सामने सीधा रास्ता है और न क़यादत करने वाला पेशवा।

( ग़ाफ़ेलीन) यहाँ तक के जब परवरदिगार ने उनके गुनाहों की सज़ा को वाज़ेअ कर दिया और उन्हें ग़फ़लत के पर्दों से बाहर निकाल दिया तो जिससे मुंह फिराते थे उसी की तरफ़ दौड़ने लगे और जिसकी तरफ़ मुतवज्जो थे उससे मुंह फिराने लगे। जिन मक़ासिद को हासिल कर लिया था उससे भी कोई फ़ायदा नहीं उठाया और जिन हाजतों को पूरा कर लिया था उनसे भी कोई नतीजा नहीं हासिल हुआ!

देखो मैं तुम्हें और ख़ुद अपने नफ़्स को भी इस सूरते हाल से होशियार कर रहा हूँ। हर शख़्स को चाहिये के अपने नफ़्स से फ़ायदा उठाए। साहेबे बसीरत वही है जो सुने तो ग़ौर भी करे और देखे तो (हक़ीक़तों पर) निगाह भी करे और फिर इबरतों से फ़ायदा हासिल करके उस रौशन रास्ते पर चल पड़े जिसमें गुमराही के गड्ढ़े में गिरने से परहेज़ करे और शुबहात में पड़कर गुमराह न हो जाए। हक़ से बेराह होने और बात में रद्दो बदल करने और सच्चाई में ख़ौफ़ खाने से गुमराहियों की मदद करके ज़ियाँकार न बने। (हक़ के खि़लाफ़ गुमराहों की इस तरह मदद न करे के हक़ की राह से इन्हेराफ़ कर ले या गुफ़्तगू में तहरीफ़ से काम ले या सच बोलने का शिकार हो रहा हो।)

मेरी बात सुनने वालों! अपनी मदहोशी से होश में आ जाओ और अपनी ग़ज़ब (ग़फ़लत) से बेदार हो जाओ। सामाने दुनिया मुख़्तसर कर लो और उन निशानियों पर ग़ौरो फ़िक्र करो जो बातें तुम्हारे पास पैग़म्बर उम्मी (स 0) की ज़बान मुबारक से आई हैं उनमें और जिनका इख़्तेयार करना ज़रूरी है (उनमें अच्छी तरह ग़ौरो फ़िक्र) करो के उनसे न कोई चारा है और न कोई गुरेज़ की राह। जो इस बात की मुख़ालफ़त करे उससे इख़्तेलाफ़ करके दूसरे रास्ते पर चल पड़ो और उसे उसकी मर्ज़ी पर चलने दो (के वह अपने नफ़्स की मर्ज़ी पर चलता है) , फ़ख़्रो मुबाहात को छोड़ दो , तकब्बुर को ख़त्म कर दो (बुराई के सर को नीचा कर दो) और अपनी क़ब्र को याद रखो के इसी रास्ते से गुज़रना है और जैसा करोगे वैसा ही मिलेगा और जैसा बोओगे वैसा ही काटना है जो आज भेज दिया है कल उसी का सामना करना है। अपने क़दमों के लिये ज़मीन लो और उस दिन के लिये सामान पहले से भेज दो , होशियार होशियार ऐ सुनने वालों और मेहनत (कोशिश करो) , मेहनत (कोशिश करो) ऐ ग़फलत वालों! मुझ जैसे बाख़बर की तरह कोई (दूसरा) न बताएगा।

देखो! क़ुराने मजीद में परवरदिगार के मुस्तहकम उसूलों में जिस पर सवाब व अज़ाब और रिज़ा व नाराज़गी का दारोमदार है। यह बात है के इन्सान इस दुनिया में किसी क़द्र मेहनत क्यों न करे और कितना ही मुख़लिस क्यों न हो जाए अगर दुनिया से निकल कर अल्लाह की बारगाह में जाना चाहे और दर्ज ज़ैल ख़सलतों से तौबा न करे तो उसे यह जद्दो जेहद और एख़लास अमल कोई फ़ायदा नहीं पहुंचा सकता है। इबादत इलाही में किसी को शरीक क़रार दे अपने नफ़्स की तस्कीन के लिये किसी को हलाक कर दे , एक के काम पर दूसरों को लगा दे , दीन में कोई बिदअत ईजाद करके उसके ज़रिये लोगों से फ़ायदा हासिल करे , लोगों के सामने पालीसी इख़्तेयार करे , या दो ज़बानों के साथ ज़िन्दगी गुज़ारे उस हक़ीक़त को समझ लो के हर शख़्स अपनी नज़र की दलाली पाता है। ;( यह चीज़ है के किसी बन्दे को चाहे वह जो कुछ जतन करवा ले दुनिया से निकल कर अल्लाह की बारगाह में जाना ज़रा फ़ायदा नहीं पहुंचा सकता जबके वह इन ख़सलतों में से किसी एक ख़सलत से तौबा किये बग़ैर मर जाए एक यह के फ़राएज़े इबादत में किसी को इसका शरीक ठहराया हो या किसी को हलाक करके अपने ग़ज़ब को ठन्डा किया हो , या दूसरे के किये पर ऐब लगाया हो या दीन में बिदअतें डाल कर लोगों से अपना मक़सद पुरा किया हो या लोगों से दो रूख़ी चाल चलता हो या वह ज़बानों से लोगों से गुफ़्तगू करता हो इस बात को समझो इसलिये के एक नज़ीर दुसरी नज़ीर की दलील हुआ करती है।)

यक़ीनन चोपायों का सारा हदफ़ उनका पेट होता है और दरिन्दों का सारा निशाना दूसरों पर ज़ुल्म होता है और औरतों का सारा ज़िन्दगानी मक़सद दुनिया की ज़ीनत और फ़साद पर होता है। लेकिन साहेबाने ईमान ख़ुज़ू व खुशु रखने वाले , ( मोमिन वह है जो तकब्बुर व ग़ुरूर से दूर हों) ख़ौफ़े ख़ुदा रखने वाले और उसकी बारगाह में तरसाँ और लरज़ाँ रहते हैं।

154 -आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें फ़ज़ाएले अहलेबैत (अ 0) का ज़िक्र किया गया है)

अक़्लमन्द वह है जो दिल की आंखों से अपने अन्जाम कार को देख लेता है और उसके नशेब व फ़राज़ को पहचान लेता है। दावत देने वाला दावत दे चुका है और निगरानी (निगेहदाष्त) करने वाला निगरानी का फ़र्ज़ अदा कर चुका है। अब तुम्हारा फ़रीज़ा है के दावत देने वाले की आवाज़ पर लब्बैक कहो और निगराँ (निगेहदाष्त करने वाले) के नक़्शे क़दम पर चल पड़ो।

यह लोग फ़ित्नों के दरयाओं में डूब गए हैं और सुन्नत को छोड़कर बिदअतों को इख़्तेयार कर लिया है। मोमेनीन गोशा व किनार में दबे हुए हैं और गुमराह और इफ़तेराए परवाज़ मसरूफ़े कलाम हैं।

दर हक़ीक़त हम अहलेबैत ही देन के निशान और उसके साथी , इसके एहकाम के ख़ज़ानेदार और इसके दरवाज़े हैं , ज़ाहिर है के घरों में दाखि़ल दरवाज़ों के बग़ैर नहीं हो सकता है वरना इन्सान चोर कहा जाता है।

इन्हीं अहलेबैत (अ 0) के बारे में क़ुरआने करीम की अज़ीम आयात हैं और यही रहमान के ख़ज़ानेदार हैं , यह जब बोलते हैं तो सच बोलते हैं और जब क़दम आगे बढ़ाते हैं तो कोई इन पर सबक़त नहीं ले जा सकता है। हर ज़िम्मेदार क़ौम का फ़र्ज़ है के अपने क़ौम से सच बोले और अपनी अक़ल को गुम न होने दे और फ़रज़न्दाने आख़ेरत में शामिल हो जाए के उधर ही से आया है और उधर ही पलट कर जाना है। यक़ीनन दिल की आंखों से देखने वाले और देख कर अमल करने वाले के अमल की इब्तेदा उसके इल्म से होती है के इसका अमल उसके लिये मुफ़ीद है या इसके खि़लाफ़ है। अगर मुफ़ीद है तो इसी रास्ते पर चलता रहे और अगर मुज़िर है तो ठहर जाए के इल्म के बग़ैर अमल करने वाला ग़लत रास्ते पर चलने वाले के मानिन्द है के जिस क़द्र रास्ते तय करता जाएगा मन्ज़िल से दूरतर होता जाएगा और इल्म के साथ अमल करने वाला वाज़ेअ रास्ते पर चलने के मानिन्द है। लेहाज़ा हर आंख वाले को यह देख लेना चाहिये के वह आगे बढ़ रहा है या पीछे हट रहा है और याद रखो के हर ज़ाहिर के लिये उसी का जैसा बातिन भी होता है लेहाज़ा अगर ज़ाहिर पाकीज़ा होगा तो बातिन भी पाकीज़ा होगा और अगर ज़ाहिर ख़बीस हो गया तो बातिन भी ख़बीस हो जाएगा। रसूले सादिक़ ने सच फ़रमाया है के “ अल्लाह कभी कभी किसी बन्दे को दोस्त रखता है और उसके अमल से बेज़ार होता है और कभी अमल को दोस्त रखता है और ख़ुद उसी से बेज़ार रहता है।

याद रखो के हर अमल सब्ज़े की तरह गिरने वाला होता है और सब्ज़ा पानी से बेनियाज़ नहीं हो सकता है और पानी भी तरह तरह के होते हैं लेहाज़ा सिंचाई पाकीज़ा पानी से होगी तो पैदावार भी पाकीज़ा होगी और फल भी शीरीं होगा और अगर सिंचाई ही ग़लत पानी से होगी तो पैदावार भी ख़बीस होगी और फल भी कड़वे होंगे।

155-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें चिमगादड़ की अजीब व ग़रीब खि़लक़त का ज़िक्र किया गया है)

सरी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसकी मारेफ़त की गहराइयों से औसाफ़ आजिज़ हैं और जिसकी अज़मतों ने अक़्लों को आगे बढ़ने से रोक दिया है तो अब इसकी सल्तनतों की हदों तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं रह गया है।

वह ख़ुदाए बरहक़ व आशकार है , उससे ज़्यादा साबित और वाज़ेह है जो आंखों के मुशाहिदे में आ जाता है , अक़्लें उसकी हदबन्दी नहीं कर सकती हैं के वह किसी की शबीह क़रार दे दिया जाए और ख़यालात उसका अन्दाज़ा नहीं लगा सकते हैं के वह किसी की मिसाल बना दिया जाए। उसने मख़लूक़ात को बग़ैर किसी नमूने और मिसाल के और किसी मुशीर के मश्विरे या मददगार की मदद के बनाया है। उसकी तख़लीक़ उसके अम्र से तकमील हुई है और फिर उसी की इताअत के लिये सर ब सुजूद है और बिला तौक़फ़ उसकी आवाज़ पर लब्बैक कहती है और बग़ैर किसी इख़्तेलाफ़ के सामने सरनिगूं होती है।

उसकी लतीफ़तरीन सनअत और अजीबतरीन खि़लक़त का एक नमूना वह है जो उसने अपनी दक़ीक़तरीन हिकमत से चमगादड़ की तख़लीक़ में पेश किया है के जिसे हर “ शै को वुसअत देने वाली रोशनी सुकेड़ देती है और हर ज़िन्दा को सुकेड़ देने वाली तारीकी वुसअत अता कर देती है। किस तरह उसकी आँखें चकाचैन्द हो जाती है के रौशन आफ़ताब की शुआओं से मदद हासिल करके अपने रास्ते तय कर सके और खुली हुई आफ़ताब की रोशनी के ज़रिये अपनी जानी मन्ज़िलों तक पहुंच सके (हालांके वह हर ज़िन्दा “ शै की आंखों पर नक़ाब डालने वाला है और क्यूंके चमकते हुए सूरज में इनकी आंखें चुन्धिया जाती हैं के वह उसकी नूरपाश शुआओं से मदद ले कर अपने रास्तों पर आ जा सकें और नूरे आफ़ताब के फैलाव में अपनी जानी पहचानी हुई चीज़ों तक पहुंच सकें)। नूरे आफ़ताब ने अपनी चमक दमक के ज़रिये उसे रौशनी के तबक़ात में आगे बढ़ने से रोक दिया है और रोशनी के उजाले में आने से रोक कर मख़फ़ी मक़ामात पर छिपा दिया है। दिन में इसकी पलकें आंखों पर लटक आती हैं और रात को चिराग़ बनाकर वह तलाशे रिज़्क़ में निकल पड़ती है। इसकी निगाहों को रात की तारीकी नहीं पलटा सकती है और इसको रास्ते में आगे बढ़ने से शदीद ज़ुलमत भी नहीं रोक सकती है। इसके बाद जब आफ़ताब अपने नक़ाब को उलट देता है और दिन का रौशन चेहरा सामने आ जाता है और आफ़ताब की किरने बिज्जू के सूराख़ तक पहुंच जाती हैं तो इसकी पलकें आंखों पर लटक आती हैं और जो कुछ रात की तारीकियों में हासिल कर लिया है उसी पर गुज़ारा शुरू कर देती है। क्या कहना उस माबूद का जिसने इसके लिये रात को दिन और वसीलए मआश बना दिया है और दिन को वज्हे सुकून व क़रार मुक़र्रर कर दिया है और फिर उसके लिये ऐसे गोश्त के पर बना दिये हैं जिसके ज़रिये वक़्ते ज़रूरत परवाज़ भी कर सकती है। गोया के यह कान की लौएं हैं जिनमें न पर हैं और न करयां मगर इसके बावजूद तुम देखोगे के कानों की जगहों के निशानात बिल्कुल वाज़ेअ हैं और इसके ऐसे दो पर बन गए हैं जो न इतने बारीक हैं के फट जाएं और न इतने ग़लीज़ हैं के परवाज़ में ज़हमत हो। इसकी परवाज़ की शान यह है के अपने बच्चे को साथ लेकर सीने से लगाकर परवाज़ करती है , जब नीचे उतरती है तो बच्चा साथ होता है और जब ऊपर उड़ती है तो बच्चा हमराह होता है और उस वक़्त तक उससे अलग नहीं होता है जब क उसके आज़ाअ मज़बूत न हो जाएं और उसके पर उसका बोझ उठाने के क़ाबिल न हो जाएं और वह अपने रिज़्क़ के रास्तों और मसलहतों को ख़ुद पहचान न ले। पाक व बेनियाज़ है वह हर “ शै का पैदा करने वाला जिसने किसी ऐसी मिसाल का सहारा नहीं लिया जो किसी दूसरे से हासिल की गई हो।

156-आपका इरशादे गिरामी

(जिसमें अहले बसरा से खि़ताब करके उन्हें हवादिस से बाख़बर किया गया है)

ऐसे वक़्त में अगर कोई शख़्स अपने नफ़्स को सिर्फ़ ख़ुदा तक महदूद रखने की ताक़त रखता है तो उसे ऐसा ही करना चाहिये। फिर अगर तुम मेरी इताअत करोगे तो मैं तुम्हें इन्शा अल्लाह जन्नत के रास्ते पर चलाउंगा चाहे इसमें कितनी ही ज़हमत और तल्ख़ी क्यों न हो।

रह गई फ़लां ख़ातून की बात तो उन पर औरतों की जज़्बाती राय का असर हो गया है और इस कीने ने असर कर दिया है जो उनके सीने में लोहार के कढ़ाव की तरह खौल रहा है।

(((- इस लफ़्ज़ से मुरद मुसल्लम तौर पर हज़रत आइशा की ज़ात है लेकिन आपने उन्हें नाम के साथ क़ाबिले ज़िक्र नहीं क़रार दिया है और उनकी दो अज़ीम कमज़ारियों की तरफ़ मुतवज्जो किया है , एक यह है के इनमें आम औरतों की जज़्बाती कमज़ोरी पाई जाती है जो अक्सर एहकामे दीन और मर्ज़ीए परवरदिगार पर ग़ालिब आ जाती है जबके अज़वाजे रसूल (स 0) को इस कमज़ोरी से बलन्दतर होना चाहिए , और दूसरी बात यह है के इनके दिल में कीना पाया जाता है के इनके बारे में रसूले अकरम (स 0) के वह इरशादात नहीं हैं जो हज़रत अली (अ 0) के बारे में हैं और उन्हें क़ुदरत ने क़ाबिले औलाद न बनाकर नस्ले अली (अ 0) को नस्ले पैग़म्बर (स 0) बना दिया है।-)))

उन्हें अगर मेरे अलावा किसी और के साथ इस बरताव की दावत दी जाती तो कभी न आतीं लेकिन उसके बाद भी मुझे उनकी साबेक़ा हुरमत का ख़याल है। इनका हिसाब बहरहाल परवरदिगार के ज़िम्मे है।

ईमान का रास्ता बिल्कुल वाज़ेह और इसका चिराग़ मुकम्मल तौर पर नूर अफ़्षाँ है। ईमान ही के ज़रिये नेकियों का रास्ता हासिल किया जाता है और नेकियों ही के ज़रिये से ईमान की पहचान होती है। ईमान से इल्म की दुनिया आबाद होती है और इल्म से मौत का ख़ौफ़ हासिल होता है और मौत ही पर दुनिया का रास्ता है। (ईमान की राह सब राहों से वाज़ेअ और सब चिराग़ों से ज़्यादा नुरानी है ईमान से नेकियों पर इस्तेदलाल किया जाता है और नेकियों से ईमान पर दलील लाई जाती है , ईमान से इल्म की दुनिया आबाद होती है और इल्म की बदौलत मौत से डराया जाता है और दुनिया से आख़ेरत हासिल की जाती है।) और दुनिया ही के ज़रिये आख़ेरत हासिल की जाती है और आखि़रत ही में जन्नत को क़रीब कर दिया जाएगा और जहन्नम को गुमराहों के लिये बिल्कुल नुमायां किया जाएगा। मख़लूक़ात के लिये क़यामत से पहले कोई मन्ज़िल नहीं है। उन्हें इस मैदान में आखि़री मन्ज़िल की तरफ़ बहरहाल दौड़ लगाना है।

( क दूसरा हिस्सा) वह अपनी क़ब्रों से उठ खड़े हुए और अपनी आखि़री मन्ज़िल की तरफ़ चल पड़े। हर घर के अपने अहल होते हैं जो न घर को बदलते हैं और न उससे मुन्तक़िल हो सकते हैं।

यक़ीनन अम्रे बिल मारूफ़ और नहीं अनिल मुन्किर यह दो ख़ुदाई इख़्लाक़ हैं और यह न किसी की मौत को क़रीब बनाते हैं और न किसी की रोज़ी को कम करते हैं। तुम्हारा फ़र्ज़ है के किताबे ख़ुदा से वाबस्ता रहो के वही मज़बूत रसीमाने हिदायत और रौशन नूरे इलाही है। इसी में मनफ़अत बख़्श शिफ़ा है और इसी में प्यास बुझाने वाली सेराबी है। वही तमस्सुक करने वालों के लिये वसीलए अज़मत किरदार है और वही राबेता रखने वालों के लिये ज़रियए निजात है। उसी में कोई कजी नहीं है जिसे सीधा किया जाए और उसी में इन्हेराफ़ नहीं है जिसे दुरूस्त किया जाए , मुसलसल तकरार उसे पुराना नहीं कर सकती है और बराबर सुनने से उसकी ताज़गी में फ़र्क़ नहीं आता है जो इसके ज़रिये कलाम करेगा वह सच्चा होगा और जो इसके मुताबिक़ अमल करेगा वह सबक़त ले जाएगा।

इस दरम्यान एक शख़्स खड़ा हो गया और उसने कहा या अमीरूल मोमेनीन (अ 0) ज़रा फ़ित्ना के बारे में बतलाएं ? क्या आपने इस सिलसिले में रसूले अकरम (स 0) से दरयाफ़्त किया है ? फ़रमाया जिस वक़्त आयत शरीफ़ नाज़िल हुई “ क्या लोगों का ख़याल यह है के उन्हें ईमान के दावा ही पर छोड़ दिया जाएगा और उन्हें फ़ित्नों में मुब्तिला नहीं किया जाएगा ” तो हमें अन्दाज़ा हो गया के जब तक रसूले अकरम (स 0) मौजूद हैं फ़ित्ना का कोई अन्देशा नहीं है लेहाज़ा मैंने अर्ज़ किया के या रसूलल्लाह यह फ़ित्ना क्या है जिसकी परवरदिगार ने आपको इत्तेलाअ दी है ? फ़रमाया या अली (अ 0)! यह उम्मत मेरे बाद फ़ित्ने में मुब्तिला होगी। मैंने अर्ज़ की क्या आपने ओहद के दिन जब कुछ मुसलमान राहे ख़ुदा में शहीद हो गए और मुझे शहादत का मौक़ा नसीब नहीं हुआ और मुझे यह सख़्त तकलीफ़ महसूस हुई , तो क्या यह नहीं फ़रमाया था के या अली (अ 0)! बशा रत हो , शहादत तुम्हारे पीछे आ रही है ? फ़रमाया बेशक! यूं कहो उस वक्त तुम्हारा सब्र कैसा होगा ? मैंने अर्ज़ की के या रसूलल्लाह यह तो सब्र का मौक़ा नहीं है बल्कि मसर्रत और शुक्र का मौक़ा है।

(((- इन फ़िक़रों को देखने के बाद कोई शख़्स ईमान व अमल के राबते को नज़र अन्दाज़ नहीं कर सकता है और न ईमान को अमल से बे नियाज़ बना सकता है। ईमान से लेकर आख़ेरत तक इतना हसीन तसलसुल किसी दूसरे इन्सान के कलाम में नज़र नहीं आ सकता है और यह मौलाए कायनात की एजाज़े बयानी का एक बेहतरीन नमूना है।

अम्र बिल मारूफ़ और नहीं अनिल मुन्किर के बारे में पैदा होने वाले “ शैतानी वसवसों का जवाब इन कलेमात में मौजूद है और इन दोनों की अज़मत के लिये इतना ही काफ़ी है के न सिर्फ़ इन कामों में मालिक भी बन्दों के साथ शरीफ़ है बल्के उसने पहले अम्र व नहीं किया है। इसके बाद बन्दों को अम्र व नहीं का हुक्म दिया है। इस कुल्ले ईमान का किरदार जो ज़िन्दगी को हदफ़ और मक़सद नहीं बल्कि वसीलाए ख़ैरात तसव्वुर करता है और जब यह अन्दाज़ा हो जाता है के ज़िन्दगी की क़ुरबानी ही तमाम ख़ैरात , ज़कात का मक़सद है तो इस क़ुरबानी के नाम पर सजदए शुक्र करता है और लफ़्ज़े सब्र व तहम्मूल को बरदाश्त नहीं करता है।-)))

बन्दगाने ख़ुदा! उस दिन से डरो जब आमाल की जांच पड़ताल की जाएगी और ज़लज़लों की बोहतात होगी के बच्चे तक बूढ़े हो जाएंगे। याद रखो ऐ बन्दगाने ख़ुदा! के तुम पर तुम्हारे ही नफ़्स को निगराँ बनाया गया है और तुम्हारे आज़ा व जवारेह तुम्हारे लिये जासूसों का काम कर रहे हैं और कुछ बेहतरीन मुहाफ़िज़ हैं जो तुम्हारे आमाल और तुम्हारी सांसों की हिफ़ाज़त कर रहे हैं। उनसे न किसी तारीक रात की तारीकी छिपा सकती है और न बन्द दरवाज़े उनसे ओझल बना सकते हैं। और कल आने वाला दिन आज से बहुत क़रीब है। आज का दिन अपना साज़ व सामान लेकर चला जाएगा और कल का दिन उसके पीछे आ रहा है , गोया हर शख़्स ज़मीन में अपनी तन्हाई की मन्ज़िल और गढ़े के निशान तक पहुंच चुका है। हाए वह तन्हाई का घर , वहशत की मन्ज़िल और ग़ुरबत का मकान , गोया के आवाज़ तुम तक पहुंच चुकी है और क़यामत तुम्हें अपने घेरे में ले चुकी है और तुम्हें आखि़री फ़ैसले के लिये क़ब्रों से निकाला जा चुका है। जहां तमाम बातिल बातें ख़त्म हो चुकी हैं और तमाम हीले बहाने कमज़ोर पड़ चुके , हक़ाएक़ साबित हो चुके हैं और उमूर पलट कर अपनी मन्ज़िल पर आ गए हैं। लेहाज़ा इबरतों से नसीहत हासिल करो। तग़य्युराते ज़माना से इबरत का सामान फ़राहम करो और फिर डराने वाले की नसीहत से फ़ायदा उठाओ।

152-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें परवरदिगार के सिफ़ात और आइम्माए ताहेरीन (अ 0) के औसाफ़ का ज़िक्र किया गया है)

सरी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये हैं जिसने अपनी तख़लीक़ से अपने वजूद का , अपनी मख़लूक़ात के जादिस होने से अपनी अज़लियत का और उनकी बाहेमी मुशाबेहत से अपने बेनज़ीर होने का पता दिया है। उसकी ज़ात तक हवास की रसाई नहीं है और फिर भी परदे उसे पोशीदा नहीं कर सकते हैं।

मौज़ू सानेअ से और हदबन्दी करने वाला महदूद से और परवरिश करने वाला परवरिश पाने वाले से बहरहाल अलग होता है। वह एक है मगर अदद के एतबार से नहीं। वह ख़ालिक़ है मगर हरकत व ताब के ज़रिये नहीं , वह समीअ है लेकिन कानों के ज़रिये नहीं और वह बसीर है लेकिन न इस तरह के आंखों को फैलाए।

वह हाज़िर है मगर छुआ नहीं जा सकता और वह दूर है लेकिन मसाफ़तों के एतबार से नहीं , वह ज़ाहिर है लेकिन देखा नहीं जा सकता है और वह बातिन है लेकिन जिस्म की लताफ़तों की बिना पर नहीं। वह चीज़ो से अलग है अपने क़हर व ग़लबे और क़ुदरत व इख़्तेयार की बिना पर और मख़लूक़ात उससे जुदागाना है ख़ुज़ू व खुशु और उसकी बारगाह में बाज़गश्त की बिना पर। जिसने उसके लिये अलग से औसाफ़ का तसव्वुर किया उसने उसे आदाद मुअय्यन में लाकर खड़ा कर दिया और जिसने ऐसा किया उसने उसे हादस बनाकर उसकी अज़लियत का ख़ात्मा कर दिया और जिसने यह सवाल किया के वह कैसा है उसने अलग से औसाफ़ की जुस्तजू की और जिसने यह दरयाफ़्त किया के वह कहाँ है ? उसने उसे मकान में महदूद कर दिया। वह उस वक़्त से आलिम है जब मालूमात का पता भी नहीं था और उस वक़्त से मालिक है जब ममलूकात का निशान भी नहीं था और उस वक़्त से क़ादिर है जब मक़दूरात परदए अदम में पड़े थे।

( आइम्माए (अ 0) दीन) देखो तुलूअ करने वाला तालेअ हो चुका है और चमकने वाला रौशन हो चुका है , ज़ाहिर होने वाले का ज़हूर सामने आ चुका है , कजी सीधी हो चुकी है और अल्लाह एक क़ौैम के बदले दूसरी क़ौम और एक दौर के बदले दूसरा दौर ले आया है। हमने हालात में इन्क़ेलाब का उसी तरह इन्तेज़ार किया है जिस तरह क़हत ज़दा बारिश का इन्तेज़ार करता है। आइम्मा दर हक़ीक़त अल्लाह की तरफ़ से मख़लूक़ात के निगरां और अल्लाह के बन्दों पर उसकी मारेफ़त का सबक़ देने वाले हैं। कोई शख़्स जन्नत में क़दम नहीं रख सकता है जब तक वह उन्हें न पहचान ले और आइम्मा हज़रात उसे अपना न कह दें और कोई शख़्स जहन्नुम में जा नहीं सकता है मगर यह के वह इन हज़रात का इन्कार कर दे और वह भी उसे पहचानने से इन्कार कर दें। परवरदिगार ने तुम लोगों को इस्लाम से नवाज़ा है और तुम्हें उसके लिये मुन्तख़ब किया है। इसलिये के इस्लाम सलामती का निशान और उम्मत का सरमाया है। अल्लाह ने इसके रास्ते का इन्तेख़ाब किया है। इसके दलाएल को वाज़ेअ किया है। ज़ाहिरी इल्म और बातिनी हुकूमतों के मानिन्द इसके ग़राएब फ़ना होने वाले और इसके अजाएब ख़त्म होने वाले नहीं हैं। इसमें नेमतों की बहार और ज़ुल्मतों के चिराग़ हैं। नेकियों के दरवाज़े इसकी कुन्जियों से खुलते हैं और तारीकियों का इज़ाला इसी के चराग़ों से होता है। इसने अपने हुदूद को महफ़ूज़ कर लिया है। उसने अपनी चरागाह को आम कर दिया है। इसमें तालिबे शिफ़ा के लिये शिफ़ा और उम्मीदवार किफ़ायत के लिये बेनियाज़ी का सामान मौजूद है।

153-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(गुमराहों और ग़ाफ़िलों के बारे में)

( गुमराह) यह इन्सान अल्लाह की तरफ़ से मोहलत की मन्ज़िल में है , ग़ाफ़िलों के साथ तबाहियों के गढ़े में गिर पड़ता है और मक्कारों के साथ सुबह करता है। न इसके सामने सीधा रास्ता है और न क़यादत करने वाला पेशवा।

( ग़ाफ़ेलीन) यहाँ तक के जब परवरदिगार ने उनके गुनाहों की सज़ा को वाज़ेअ कर दिया और उन्हें ग़फ़लत के पर्दों से बाहर निकाल दिया तो जिससे मुंह फिराते थे उसी की तरफ़ दौड़ने लगे और जिसकी तरफ़ मुतवज्जो थे उससे मुंह फिराने लगे। जिन मक़ासिद को हासिल कर लिया था उससे भी कोई फ़ायदा नहीं उठाया और जिन हाजतों को पूरा कर लिया था उनसे भी कोई नतीजा नहीं हासिल हुआ!

देखो मैं तुम्हें और ख़ुद अपने नफ़्स को भी इस सूरते हाल से होशियार कर रहा हूँ। हर शख़्स को चाहिये के अपने नफ़्स से फ़ायदा उठाए। साहेबे बसीरत वही है जो सुने तो ग़ौर भी करे और देखे तो (हक़ीक़तों पर) निगाह भी करे और फिर इबरतों से फ़ायदा हासिल करके उस रौशन रास्ते पर चल पड़े जिसमें गुमराही के गड्ढ़े में गिरने से परहेज़ करे और शुबहात में पड़कर गुमराह न हो जाए। हक़ से बेराह होने और बात में रद्दो बदल करने और सच्चाई में ख़ौफ़ खाने से गुमराहियों की मदद करके ज़ियाँकार न बने। (हक़ के खि़लाफ़ गुमराहों की इस तरह मदद न करे के हक़ की राह से इन्हेराफ़ कर ले या गुफ़्तगू में तहरीफ़ से काम ले या सच बोलने का शिकार हो रहा हो।)

मेरी बात सुनने वालों! अपनी मदहोशी से होश में आ जाओ और अपनी ग़ज़ब (ग़फ़लत) से बेदार हो जाओ। सामाने दुनिया मुख़्तसर कर लो और उन निशानियों पर ग़ौरो फ़िक्र करो जो बातें तुम्हारे पास पैग़म्बर उम्मी (स 0) की ज़बान मुबारक से आई हैं उनमें और जिनका इख़्तेयार करना ज़रूरी है (उनमें अच्छी तरह ग़ौरो फ़िक्र) करो के उनसे न कोई चारा है और न कोई गुरेज़ की राह। जो इस बात की मुख़ालफ़त करे उससे इख़्तेलाफ़ करके दूसरे रास्ते पर चल पड़ो और उसे उसकी मर्ज़ी पर चलने दो (के वह अपने नफ़्स की मर्ज़ी पर चलता है) , फ़ख़्रो मुबाहात को छोड़ दो , तकब्बुर को ख़त्म कर दो (बुराई के सर को नीचा कर दो) और अपनी क़ब्र को याद रखो के इसी रास्ते से गुज़रना है और जैसा करोगे वैसा ही मिलेगा और जैसा बोओगे वैसा ही काटना है जो आज भेज दिया है कल उसी का सामना करना है। अपने क़दमों के लिये ज़मीन लो और उस दिन के लिये सामान पहले से भेज दो , होशियार होशियार ऐ सुनने वालों और मेहनत (कोशिश करो) , मेहनत (कोशिश करो) ऐ ग़फलत वालों! मुझ जैसे बाख़बर की तरह कोई (दूसरा) न बताएगा।

देखो! क़ुराने मजीद में परवरदिगार के मुस्तहकम उसूलों में जिस पर सवाब व अज़ाब और रिज़ा व नाराज़गी का दारोमदार है। यह बात है के इन्सान इस दुनिया में किसी क़द्र मेहनत क्यों न करे और कितना ही मुख़लिस क्यों न हो जाए अगर दुनिया से निकल कर अल्लाह की बारगाह में जाना चाहे और दर्ज ज़ैल ख़सलतों से तौबा न करे तो उसे यह जद्दो जेहद और एख़लास अमल कोई फ़ायदा नहीं पहुंचा सकता है। इबादत इलाही में किसी को शरीक क़रार दे अपने नफ़्स की तस्कीन के लिये किसी को हलाक कर दे , एक के काम पर दूसरों को लगा दे , दीन में कोई बिदअत ईजाद करके उसके ज़रिये लोगों से फ़ायदा हासिल करे , लोगों के सामने पालीसी इख़्तेयार करे , या दो ज़बानों के साथ ज़िन्दगी गुज़ारे उस हक़ीक़त को समझ लो के हर शख़्स अपनी नज़र की दलाली पाता है। ;( यह चीज़ है के किसी बन्दे को चाहे वह जो कुछ जतन करवा ले दुनिया से निकल कर अल्लाह की बारगाह में जाना ज़रा फ़ायदा नहीं पहुंचा सकता जबके वह इन ख़सलतों में से किसी एक ख़सलत से तौबा किये बग़ैर मर जाए एक यह के फ़राएज़े इबादत में किसी को इसका शरीक ठहराया हो या किसी को हलाक करके अपने ग़ज़ब को ठन्डा किया हो , या दूसरे के किये पर ऐब लगाया हो या दीन में बिदअतें डाल कर लोगों से अपना मक़सद पुरा किया हो या लोगों से दो रूख़ी चाल चलता हो या वह ज़बानों से लोगों से गुफ़्तगू करता हो इस बात को समझो इसलिये के एक नज़ीर दुसरी नज़ीर की दलील हुआ करती है।)

यक़ीनन चोपायों का सारा हदफ़ उनका पेट होता है और दरिन्दों का सारा निशाना दूसरों पर ज़ुल्म होता है और औरतों का सारा ज़िन्दगानी मक़सद दुनिया की ज़ीनत और फ़साद पर होता है। लेकिन साहेबाने ईमान ख़ुज़ू व खुशु रखने वाले , ( मोमिन वह है जो तकब्बुर व ग़ुरूर से दूर हों) ख़ौफ़े ख़ुदा रखने वाले और उसकी बारगाह में तरसाँ और लरज़ाँ रहते हैं।

154 -आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें फ़ज़ाएले अहलेबैत (अ 0) का ज़िक्र किया गया है)

अक़्लमन्द वह है जो दिल की आंखों से अपने अन्जाम कार को देख लेता है और उसके नशेब व फ़राज़ को पहचान लेता है। दावत देने वाला दावत दे चुका है और निगरानी (निगेहदाष्त) करने वाला निगरानी का फ़र्ज़ अदा कर चुका है। अब तुम्हारा फ़रीज़ा है के दावत देने वाले की आवाज़ पर लब्बैक कहो और निगराँ (निगेहदाष्त करने वाले) के नक़्शे क़दम पर चल पड़ो।

यह लोग फ़ित्नों के दरयाओं में डूब गए हैं और सुन्नत को छोड़कर बिदअतों को इख़्तेयार कर लिया है। मोमेनीन गोशा व किनार में दबे हुए हैं और गुमराह और इफ़तेराए परवाज़ मसरूफ़े कलाम हैं।

दर हक़ीक़त हम अहलेबैत ही देन के निशान और उसके साथी , इसके एहकाम के ख़ज़ानेदार और इसके दरवाज़े हैं , ज़ाहिर है के घरों में दाखि़ल दरवाज़ों के बग़ैर नहीं हो सकता है वरना इन्सान चोर कहा जाता है।

इन्हीं अहलेबैत (अ 0) के बारे में क़ुरआने करीम की अज़ीम आयात हैं और यही रहमान के ख़ज़ानेदार हैं , यह जब बोलते हैं तो सच बोलते हैं और जब क़दम आगे बढ़ाते हैं तो कोई इन पर सबक़त नहीं ले जा सकता है। हर ज़िम्मेदार क़ौम का फ़र्ज़ है के अपने क़ौम से सच बोले और अपनी अक़ल को गुम न होने दे और फ़रज़न्दाने आख़ेरत में शामिल हो जाए के उधर ही से आया है और उधर ही पलट कर जाना है। यक़ीनन दिल की आंखों से देखने वाले और देख कर अमल करने वाले के अमल की इब्तेदा उसके इल्म से होती है के इसका अमल उसके लिये मुफ़ीद है या इसके खि़लाफ़ है। अगर मुफ़ीद है तो इसी रास्ते पर चलता रहे और अगर मुज़िर है तो ठहर जाए के इल्म के बग़ैर अमल करने वाला ग़लत रास्ते पर चलने वाले के मानिन्द है के जिस क़द्र रास्ते तय करता जाएगा मन्ज़िल से दूरतर होता जाएगा और इल्म के साथ अमल करने वाला वाज़ेअ रास्ते पर चलने के मानिन्द है। लेहाज़ा हर आंख वाले को यह देख लेना चाहिये के वह आगे बढ़ रहा है या पीछे हट रहा है और याद रखो के हर ज़ाहिर के लिये उसी का जैसा बातिन भी होता है लेहाज़ा अगर ज़ाहिर पाकीज़ा होगा तो बातिन भी पाकीज़ा होगा और अगर ज़ाहिर ख़बीस हो गया तो बातिन भी ख़बीस हो जाएगा। रसूले सादिक़ ने सच फ़रमाया है के “ अल्लाह कभी कभी किसी बन्दे को दोस्त रखता है और उसके अमल से बेज़ार होता है और कभी अमल को दोस्त रखता है और ख़ुद उसी से बेज़ार रहता है।

याद रखो के हर अमल सब्ज़े की तरह गिरने वाला होता है और सब्ज़ा पानी से बेनियाज़ नहीं हो सकता है और पानी भी तरह तरह के होते हैं लेहाज़ा सिंचाई पाकीज़ा पानी से होगी तो पैदावार भी पाकीज़ा होगी और फल भी शीरीं होगा और अगर सिंचाई ही ग़लत पानी से होगी तो पैदावार भी ख़बीस होगी और फल भी कड़वे होंगे।

155-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें चिमगादड़ की अजीब व ग़रीब खि़लक़त का ज़िक्र किया गया है)

सरी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसकी मारेफ़त की गहराइयों से औसाफ़ आजिज़ हैं और जिसकी अज़मतों ने अक़्लों को आगे बढ़ने से रोक दिया है तो अब इसकी सल्तनतों की हदों तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं रह गया है।

वह ख़ुदाए बरहक़ व आशकार है , उससे ज़्यादा साबित और वाज़ेह है जो आंखों के मुशाहिदे में आ जाता है , अक़्लें उसकी हदबन्दी नहीं कर सकती हैं के वह किसी की शबीह क़रार दे दिया जाए और ख़यालात उसका अन्दाज़ा नहीं लगा सकते हैं के वह किसी की मिसाल बना दिया जाए। उसने मख़लूक़ात को बग़ैर किसी नमूने और मिसाल के और किसी मुशीर के मश्विरे या मददगार की मदद के बनाया है। उसकी तख़लीक़ उसके अम्र से तकमील हुई है और फिर उसी की इताअत के लिये सर ब सुजूद है और बिला तौक़फ़ उसकी आवाज़ पर लब्बैक कहती है और बग़ैर किसी इख़्तेलाफ़ के सामने सरनिगूं होती है।

उसकी लतीफ़तरीन सनअत और अजीबतरीन खि़लक़त का एक नमूना वह है जो उसने अपनी दक़ीक़तरीन हिकमत से चमगादड़ की तख़लीक़ में पेश किया है के जिसे हर “ शै को वुसअत देने वाली रोशनी सुकेड़ देती है और हर ज़िन्दा को सुकेड़ देने वाली तारीकी वुसअत अता कर देती है। किस तरह उसकी आँखें चकाचैन्द हो जाती है के रौशन आफ़ताब की शुआओं से मदद हासिल करके अपने रास्ते तय कर सके और खुली हुई आफ़ताब की रोशनी के ज़रिये अपनी जानी मन्ज़िलों तक पहुंच सके (हालांके वह हर ज़िन्दा “ शै की आंखों पर नक़ाब डालने वाला है और क्यूंके चमकते हुए सूरज में इनकी आंखें चुन्धिया जाती हैं के वह उसकी नूरपाश शुआओं से मदद ले कर अपने रास्तों पर आ जा सकें और नूरे आफ़ताब के फैलाव में अपनी जानी पहचानी हुई चीज़ों तक पहुंच सकें)। नूरे आफ़ताब ने अपनी चमक दमक के ज़रिये उसे रौशनी के तबक़ात में आगे बढ़ने से रोक दिया है और रोशनी के उजाले में आने से रोक कर मख़फ़ी मक़ामात पर छिपा दिया है। दिन में इसकी पलकें आंखों पर लटक आती हैं और रात को चिराग़ बनाकर वह तलाशे रिज़्क़ में निकल पड़ती है। इसकी निगाहों को रात की तारीकी नहीं पलटा सकती है और इसको रास्ते में आगे बढ़ने से शदीद ज़ुलमत भी नहीं रोक सकती है। इसके बाद जब आफ़ताब अपने नक़ाब को उलट देता है और दिन का रौशन चेहरा सामने आ जाता है और आफ़ताब की किरने बिज्जू के सूराख़ तक पहुंच जाती हैं तो इसकी पलकें आंखों पर लटक आती हैं और जो कुछ रात की तारीकियों में हासिल कर लिया है उसी पर गुज़ारा शुरू कर देती है। क्या कहना उस माबूद का जिसने इसके लिये रात को दिन और वसीलए मआश बना दिया है और दिन को वज्हे सुकून व क़रार मुक़र्रर कर दिया है और फिर उसके लिये ऐसे गोश्त के पर बना दिये हैं जिसके ज़रिये वक़्ते ज़रूरत परवाज़ भी कर सकती है। गोया के यह कान की लौएं हैं जिनमें न पर हैं और न करयां मगर इसके बावजूद तुम देखोगे के कानों की जगहों के निशानात बिल्कुल वाज़ेअ हैं और इसके ऐसे दो पर बन गए हैं जो न इतने बारीक हैं के फट जाएं और न इतने ग़लीज़ हैं के परवाज़ में ज़हमत हो। इसकी परवाज़ की शान यह है के अपने बच्चे को साथ लेकर सीने से लगाकर परवाज़ करती है , जब नीचे उतरती है तो बच्चा साथ होता है और जब ऊपर उड़ती है तो बच्चा हमराह होता है और उस वक़्त तक उससे अलग नहीं होता है जब क उसके आज़ाअ मज़बूत न हो जाएं और उसके पर उसका बोझ उठाने के क़ाबिल न हो जाएं और वह अपने रिज़्क़ के रास्तों और मसलहतों को ख़ुद पहचान न ले। पाक व बेनियाज़ है वह हर “ शै का पैदा करने वाला जिसने किसी ऐसी मिसाल का सहारा नहीं लिया जो किसी दूसरे से हासिल की गई हो।

156-आपका इरशादे गिरामी

(जिसमें अहले बसरा से खि़ताब करके उन्हें हवादिस से बाख़बर किया गया है)

ऐसे वक़्त में अगर कोई शख़्स अपने नफ़्स को सिर्फ़ ख़ुदा तक महदूद रखने की ताक़त रखता है तो उसे ऐसा ही करना चाहिये। फिर अगर तुम मेरी इताअत करोगे तो मैं तुम्हें इन्शा अल्लाह जन्नत के रास्ते पर चलाउंगा चाहे इसमें कितनी ही ज़हमत और तल्ख़ी क्यों न हो।

रह गई फ़लां ख़ातून की बात तो उन पर औरतों की जज़्बाती राय का असर हो गया है और इस कीने ने असर कर दिया है जो उनके सीने में लोहार के कढ़ाव की तरह खौल रहा है।

(((- इस लफ़्ज़ से मुरद मुसल्लम तौर पर हज़रत आइशा की ज़ात है लेकिन आपने उन्हें नाम के साथ क़ाबिले ज़िक्र नहीं क़रार दिया है और उनकी दो अज़ीम कमज़ारियों की तरफ़ मुतवज्जो किया है , एक यह है के इनमें आम औरतों की जज़्बाती कमज़ोरी पाई जाती है जो अक्सर एहकामे दीन और मर्ज़ीए परवरदिगार पर ग़ालिब आ जाती है जबके अज़वाजे रसूल (स 0) को इस कमज़ोरी से बलन्दतर होना चाहिए , और दूसरी बात यह है के इनके दिल में कीना पाया जाता है के इनके बारे में रसूले अकरम (स 0) के वह इरशादात नहीं हैं जो हज़रत अली (अ 0) के बारे में हैं और उन्हें क़ुदरत ने क़ाबिले औलाद न बनाकर नस्ले अली (अ 0) को नस्ले पैग़म्बर (स 0) बना दिया है।-)))

उन्हें अगर मेरे अलावा किसी और के साथ इस बरताव की दावत दी जाती तो कभी न आतीं लेकिन उसके बाद भी मुझे उनकी साबेक़ा हुरमत का ख़याल है। इनका हिसाब बहरहाल परवरदिगार के ज़िम्मे है।

ईमान का रास्ता बिल्कुल वाज़ेह और इसका चिराग़ मुकम्मल तौर पर नूर अफ़्षाँ है। ईमान ही के ज़रिये नेकियों का रास्ता हासिल किया जाता है और नेकियों ही के ज़रिये से ईमान की पहचान होती है। ईमान से इल्म की दुनिया आबाद होती है और इल्म से मौत का ख़ौफ़ हासिल होता है और मौत ही पर दुनिया का रास्ता है। (ईमान की राह सब राहों से वाज़ेअ और सब चिराग़ों से ज़्यादा नुरानी है ईमान से नेकियों पर इस्तेदलाल किया जाता है और नेकियों से ईमान पर दलील लाई जाती है , ईमान से इल्म की दुनिया आबाद होती है और इल्म की बदौलत मौत से डराया जाता है और दुनिया से आख़ेरत हासिल की जाती है।) और दुनिया ही के ज़रिये आख़ेरत हासिल की जाती है और आखि़रत ही में जन्नत को क़रीब कर दिया जाएगा और जहन्नम को गुमराहों के लिये बिल्कुल नुमायां किया जाएगा। मख़लूक़ात के लिये क़यामत से पहले कोई मन्ज़िल नहीं है। उन्हें इस मैदान में आखि़री मन्ज़िल की तरफ़ बहरहाल दौड़ लगाना है।

( क दूसरा हिस्सा) वह अपनी क़ब्रों से उठ खड़े हुए और अपनी आखि़री मन्ज़िल की तरफ़ चल पड़े। हर घर के अपने अहल होते हैं जो न घर को बदलते हैं और न उससे मुन्तक़िल हो सकते हैं।

यक़ीनन अम्रे बिल मारूफ़ और नहीं अनिल मुन्किर यह दो ख़ुदाई इख़्लाक़ हैं और यह न किसी की मौत को क़रीब बनाते हैं और न किसी की रोज़ी को कम करते हैं। तुम्हारा फ़र्ज़ है के किताबे ख़ुदा से वाबस्ता रहो के वही मज़बूत रसीमाने हिदायत और रौशन नूरे इलाही है। इसी में मनफ़अत बख़्श शिफ़ा है और इसी में प्यास बुझाने वाली सेराबी है। वही तमस्सुक करने वालों के लिये वसीलए अज़मत किरदार है और वही राबेता रखने वालों के लिये ज़रियए निजात है। उसी में कोई कजी नहीं है जिसे सीधा किया जाए और उसी में इन्हेराफ़ नहीं है जिसे दुरूस्त किया जाए , मुसलसल तकरार उसे पुराना नहीं कर सकती है और बराबर सुनने से उसकी ताज़गी में फ़र्क़ नहीं आता है जो इसके ज़रिये कलाम करेगा वह सच्चा होगा और जो इसके मुताबिक़ अमल करेगा वह सबक़त ले जाएगा।

इस दरम्यान एक शख़्स खड़ा हो गया और उसने कहा या अमीरूल मोमेनीन (अ 0) ज़रा फ़ित्ना के बारे में बतलाएं ? क्या आपने इस सिलसिले में रसूले अकरम (स 0) से दरयाफ़्त किया है ? फ़रमाया जिस वक़्त आयत शरीफ़ नाज़िल हुई “ क्या लोगों का ख़याल यह है के उन्हें ईमान के दावा ही पर छोड़ दिया जाएगा और उन्हें फ़ित्नों में मुब्तिला नहीं किया जाएगा ” तो हमें अन्दाज़ा हो गया के जब तक रसूले अकरम (स 0) मौजूद हैं फ़ित्ना का कोई अन्देशा नहीं है लेहाज़ा मैंने अर्ज़ किया के या रसूलल्लाह यह फ़ित्ना क्या है जिसकी परवरदिगार ने आपको इत्तेलाअ दी है ? फ़रमाया या अली (अ 0)! यह उम्मत मेरे बाद फ़ित्ने में मुब्तिला होगी। मैंने अर्ज़ की क्या आपने ओहद के दिन जब कुछ मुसलमान राहे ख़ुदा में शहीद हो गए और मुझे शहादत का मौक़ा नसीब नहीं हुआ और मुझे यह सख़्त तकलीफ़ महसूस हुई , तो क्या यह नहीं फ़रमाया था के या अली (अ 0)! बशा रत हो , शहादत तुम्हारे पीछे आ रही है ? फ़रमाया बेशक! यूं कहो उस वक्त तुम्हारा सब्र कैसा होगा ? मैंने अर्ज़ की के या रसूलल्लाह यह तो सब्र का मौक़ा नहीं है बल्कि मसर्रत और शुक्र का मौक़ा है।

(((- इन फ़िक़रों को देखने के बाद कोई शख़्स ईमान व अमल के राबते को नज़र अन्दाज़ नहीं कर सकता है और न ईमान को अमल से बे नियाज़ बना सकता है। ईमान से लेकर आख़ेरत तक इतना हसीन तसलसुल किसी दूसरे इन्सान के कलाम में नज़र नहीं आ सकता है और यह मौलाए कायनात की एजाज़े बयानी का एक बेहतरीन नमूना है।

अम्र बिल मारूफ़ और नहीं अनिल मुन्किर के बारे में पैदा होने वाले “ शैतानी वसवसों का जवाब इन कलेमात में मौजूद है और इन दोनों की अज़मत के लिये इतना ही काफ़ी है के न सिर्फ़ इन कामों में मालिक भी बन्दों के साथ शरीफ़ है बल्के उसने पहले अम्र व नहीं किया है। इसके बाद बन्दों को अम्र व नहीं का हुक्म दिया है। इस कुल्ले ईमान का किरदार जो ज़िन्दगी को हदफ़ और मक़सद नहीं बल्कि वसीलाए ख़ैरात तसव्वुर करता है और जब यह अन्दाज़ा हो जाता है के ज़िन्दगी की क़ुरबानी ही तमाम ख़ैरात , ज़कात का मक़सद है तो इस क़ुरबानी के नाम पर सजदए शुक्र करता है और लफ़्ज़े सब्र व तहम्मूल को बरदाश्त नहीं करता है।-)))

बन्दगाने ख़ुदा! उस दिन से डरो जब आमाल की जांच पड़ताल की जाएगी और ज़लज़लों की बोहतात होगी के बच्चे तक बूढ़े हो जाएंगे। याद रखो ऐ बन्दगाने ख़ुदा! के तुम पर तुम्हारे ही नफ़्स को निगराँ बनाया गया है और तुम्हारे आज़ा व जवारेह तुम्हारे लिये जासूसों का काम कर रहे हैं और कुछ बेहतरीन मुहाफ़िज़ हैं जो तुम्हारे आमाल और तुम्हारी सांसों की हिफ़ाज़त कर रहे हैं। उनसे न किसी तारीक रात की तारीकी छिपा सकती है और न बन्द दरवाज़े उनसे ओझल बना सकते हैं। और कल आने वाला दिन आज से बहुत क़रीब है। आज का दिन अपना साज़ व सामान लेकर चला जाएगा और कल का दिन उसके पीछे आ रहा है , गोया हर शख़्स ज़मीन में अपनी तन्हाई की मन्ज़िल और गढ़े के निशान तक पहुंच चुका है। हाए वह तन्हाई का घर , वहशत की मन्ज़िल और ग़ुरबत का मकान , गोया के आवाज़ तुम तक पहुंच चुकी है और क़यामत तुम्हें अपने घेरे में ले चुकी है और तुम्हें आखि़री फ़ैसले के लिये क़ब्रों से निकाला जा चुका है। जहां तमाम बातिल बातें ख़त्म हो चुकी हैं और तमाम हीले बहाने कमज़ोर पड़ चुके , हक़ाएक़ साबित हो चुके हैं और उमूर पलट कर अपनी मन्ज़िल पर आ गए हैं। लेहाज़ा इबरतों से नसीहत हासिल करो। तग़य्युराते ज़माना से इबरत का सामान फ़राहम करो और फिर डराने वाले की नसीहत से फ़ायदा उठाओ।


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