खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

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खुतबाते इमाम अली (उपदेश) लेखक:
कैटिगिरी: इमाम अली (अ)

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)
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खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

5-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

( जो आपने वफ़ाते पैग़म्बर (स 0) के मौक़े पर इरशाद फ़रमाया था जब अब्बास और अबू सुफ़ियान ने आपसे बैअत लेने का मुतालबा किया था)

ऐ लोगो! फ़ितनों की मौजों को निजात की कश्तियों से चीर कर निकल जाओ और मनाफ़ेरत के रास्तों से अलग रहो। बाहेमी फ़ख़्र्र व मुबाहात के ताज उतार दो के कामयाबी इसी का हिस्सा है जो उठे तो बालो पर के साथ उठे वरना कुरसी को दूसरों के हवाले करके अपने को आज़ाद कर ले। यह पानी बड़ा गन्दा है और इसका लुक़मे में उच्छू लग जाने का ख़तरा है और याद रखो के नावक़्त (बेवक़्त) फल चुनने वाला ऐसा ही है जैसे नामुनासिब ज़मीन में ज़राअत करने वाला।

( मेरी मुश्किल यह है के) मैं बोलता हूँ तो कहते हैं के इक़्तेदार की लालच रखते हैं और ख़ामोश हो जाता हूँ तो कहते हैं के मौत से डर गए हैं।

(( अमीरूल मोमेनीन (अ 0) ने हालात की वह बेहतरीन तस्वीरकशी की है जिसकी तरफ़ अबू सुफ़ियान जैसे अफ़राद मुतवज्जोह नहीं थे या साज़िशों का परदा डालना चाहते थे आपने वाज़ेअ लफ़्ज़ों में फ़रमा दिया के मुझे इस मुतालब-ए- बैअत और वादाए नुसरत का अन्जाम मालूम है और मैं इस वक़्त क़याम को नावक़्त क़याम तसव्वुर करता हूँ जिसका कोई मुसब्बत नतीजा निकलने वाला नहीं है लेहाज़ा बेहतर यह है के इन्सान पहले बालो पर तलाश कर ले उसके बाद उड़ने का इरादा करे वरना ख़ामोश होकर बैठ जाए के इसी में आफ़ियत है और यही तक़ाज़ाए अक़्ल व मन्तक़ है। मैं उस तान व तन्ज़ से भी बाख़बर हूँ जो मेरे एक़दामात के बारे में इस्तेमाल हो रहे हैं लेकिन मैं कोई जज़्बाती इन्सान नहीं हूँ के इन जुमलों से घबरा जाऊँ , मैं मशीयते इलाही का पाबन्द हूँ और उसके खि़लाफ़ एक क़दम आगे नहीं बढ़ा सकता हूँ।))

अफ़सोस अब यह बात जब मैं तमाम मराहेल देख चुका हूँ , ख़ुदा की क़सम अबूतालिब का फ़रज़न्द मौत से उससे ज़्यादा मानूस है जितना बच्चा सरचश्मा-ए-हयात से मानूस होता है। अलबत्ता मेरे सीने की तहों में एक ऐसा पोशीदा इल्म है जो मुझे मजबूर किये हुए है वरना उसे ज़ाहिर कर दूँ तो तुम उसी तरह लरज़ने लगोगे जिस तरह गहने कुँए में रस्सी थरथराती और लरज़ती है।

6-हज़रत का इरशादे गिरामी

(जब आपको मशविरा दिया गया के तल्हा व ज़ुबैर का पीछा न करें और उनसे जंग का बन्दोबस्त न करें)

ख़ुदा की क़सम मैं उस बिज्जू के मानिन्द नहीं हो सकता जिसका शिकारी मुसलसल खटखटाता रहता है और वह आँख बन्द किये पड़ा रहता है यहां तक के घात लगाने वाला उसे पकड़ लेता है। मैं हक़ की तरफ़ आने वालों के ज़रिये इन्हेराफ़ करने वालों पर और इताअत करने वालों के सहारे मआसीयतकार तश्कीक करने वालों पर मुसलसल ज़र्ब लगाता रहूँगा यहाँ तक के मेरा आखि़री दिन आ जाए। ख़ुदा गवाह है के मैं हमेशा अपने हक़ से महरूम रखा गया हूँ और दूसरों को मुझ पर मुक़द्दम किया गया है जब से सरकारे दो आलम (स 0) का इन्तेक़ाल हुआ है और आज तक यह सिलसिला जारी है।

7-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें शैतान के पैरोकारों की मज़म्मत की गई है)

उन लोगों ने शैतान को अपने काम का मालिक व मुख़्तार बना लिया है औश्र उसने उन्हें अपना आलाएकार क़रार दे लिया है और उन्हीं के सीनों में अण्डे बच्चे दिये हैं और वह उन्हीं की आग़ोश में पले बढ़े हैं। अब शैतान उन्हीं की आंखों से देखता है और उन्हीं की ज़बान से बोलता है उन्हें लग़्ज़िश की राह पर लगा दिया है और इनके लिए ग़लत बातों को आरास्ता कर दिया है जैसे के इसने उन्हें अपने कारोबार शरीक बना लिया हो और अपने हरफ़े बातिल को उन्हीं की ज़बान से ज़ाहिर करता हो।

(( बिज्जू को अरबी में अमआमिर के नाम से याद किया जाता है इसके शिकार का तरीक़ा यह है के शिकारी इसके गिर्द घेरा डाल कर ज़मीन को थपथपाता है और वह अन्दर सूराख़ में घुस कर बैठ जाता है। फिर शिकारी एलान करता है के अमआमिर नहीं है और वह अपने को सोया हुआ ज़ाहिर करने के लिए पैर फैला देता है और शिकारी पैर में रस्सी बांध कर खींच लेता है। यह इन्तेहाई अहमक़ाना अमल होता है जिस की बिना पर बिज्जू को हिमाक़त की मिसाल बनाकर पेश किया जाता है। आप (अ 0) का इरशादे गिरामी है के जेहाद से ग़ाफ़िल होकर ख़ाना नशीन हो जाना और शाम के लश्करों को मदीने का रास्ता बता देना एक बिज्जू का अमल हो सकता है लेकिन अक़्ले कुल और बाबे मदीनतुल इल्म का किरदार नहीं हो सकता है।

शैतानों की तख़लीक़ में अन्डे बच्चे होते हैं या नहीं यह मसला अपनी जगह पर क़ाबिले तहक़ीक़ है लेकिन हज़रत की मुराद है के शयातीन अपने मआनवी बच्चों को इन्सानी मुआशरे से अलग किसी माहौल में नहीं रखते हैं बल्कि उनकी परवरिश इसी माहौल में करते हैं और फिर इन्हीं के ज़रिये अपने मक़ासिद की तकमील करते हैं। ज़माने के हालात का जाएज़ा लिया जाए तो अन्दाज़ा होगा के शयातीने ज़माना अपनी औलाद को मुसलमानों की आग़ोश में पालते हैं और मुसलमानों की औलाद को अपनी गोद में पालते हैं ताके मुस्तक़बिल में उन्हें मुकम्मल तौर पर इस्तेमाल किया जा सके और इस्लाम को इस्लाम के ज़रिये फ़ना किया जा सके जिसका सिलसिला कल के शाम से शुरू हुआ था और आज के आलमे इस्लाम तक जारी व सारी है।))

8-आपका इरशादे गिरामी ज़ुबैर के बारे में

(जब ऐसे हालात पैदा हो गए और उसे दोबारा बैअत के दायरे में दाखि़ल करने की ज़रूरत पड़ी)

ज़ुबैर का ख़याल यह है के उसने सिर्फ हाथ से मेरी बैअत की है और दिल से बैअत नहीं की है। तो बैअत का तो बहरहाल इक़रार कर लिया है अब सिर्फ दिल के खोट का इदआ करता है तो उसे इसका वाज़ेअ सुबुत फराहम करना पड़ेगा वरना इसी बैअत में दोबारा दाखि़ल होना पड़ेगा जिससे निकल गया है।

9-आपके कलाम का एक हिस्सा

(जिसमें अपने और बाज़ मुख़ालेफ़ीन के औसाफ़ का तज़किरा फ़रमाया है और शायद इससे मुराद अहले जमल हैं)

यह लोग बहुत गरजे और बहुत चमके लेकिन आखि़र में नाकाम ही रहे जबके हम उस वक़्त तक गरजते नहीं हैं जब तक दुश्मन पर टूट न पड़ें और उस वक़्त तक लफ़्ज़ों की रवानी नहीं दिखलाते जब तक के बरस न पड़ें।

10-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसका मक़सद शैतान है या शैतान सिफ़त कोई गिरोह)

आगाह हो जाओ के शैतान ने अपने गिरोह को जमा कर लिया है और अपने प्यादे व सवार समेट लिये हैं। लेकिन फिर भी मेरे साथ मेरी बसीरत है। न मैंने किसी को धोका दिया है और न वाके़अन धोका खाया है और ख़ुदा की क़सम मैं इनके लिये ऐसे हौज़ को छलकाऊंगा जिसका पानी निकालने वाला भी मैं ही हूंगा के यह न निकल सकेंगे और न पलट कर आ सकेंगे।

11-आपका इरशादे गिरामी

(अपने फ़रज़न्द मोहम्मद बिन अलहनफ़िया से -मैदाने जमल में अलमे लशकर देते हुए)

ख़बरदार पहाड़ अपनी जगह से हट जाएं , तुम न हटना , अपने दांतों को भींच लेना अपना कासए सर अल्लाह के हवाले कर देना। ज़मीन में क़दम गाड़ देना। निगाह आखि़रे क़ौम पर रखना। आंखों को बन्द रखना और यह याद रखना के मदद अल्लाह ही की तरफ़ से आने वाली है।

(( हैरत की बात है के जो इन्सान ऐसे फ़नूने जंग की तालीम देता हो उसे मौत से ख़ौफ़ज़दा होने का इल्ज़ाम दे दिया जाए। अमीरूल मोमेनीन (अ) की मुकम्मल तारीख़े हयात गवाह है के आपसे बड़ा शुजाअ व बहादुर कायनात में नहीं पैदा हुआ है। आप मौत को सरचश्मए हयात तसव्वुर करते थे जिसकी तरफ़ बच्चा फ़ितरी तौर पर हुमकता है और उसे अपनी ज़िन्दगी का राज़ तसव्वुर करता है। आपने सिफ़फीन के मैदान में वह तेग़ के जौहर दिखलाए हैं जिसने एक मरतबा फिर बदर ओहद व ख़न्दक़ व ख़ैबर की याद ताज़ा कर दी थी और यह साबित कर दिया था के यह बाज़ू 25साल के सुकूत के बाद भी शल नहीं हुए हैं और यह फ़न्ने हरब किसी मश्क़ो महारत का नतीजा नहीं है। मोहम्मद हनफ़िया से खि़ताब करके यह फ़रमाना के पहाड़ हट जाएं तुम न हटना- इस अम्र की दलील है के आपकी इस्तेक़ामत उससे कहीं ज़्यादा पाएदार और इस्तेवार है। दांतों को भींच लेने में इशारा है के इस तरह रगों के तनाव पर तलवार का वार असर नहीं करता है। कासए सर को आरियत दे देने का मतलब यह है के मालिक ज़िन्दा रखना चाहेगा तो दोबारा यह सर वापस लिया जा सकता है वरना बन्दे ने तो इसकी बारगाह में पेश कर दिया है। आंखों को बन्द रखने और आखि़रे क़ौम पर निगाह रखने का मतलब यह है के सामने के लशकर को मत देखना , बस यह देखना के कहां तक जाना है और किस तरह सफ़ों को पामाल कर देना है। आखि़री फ़िक़रा जंग और जेहाद के फ़र्क़ को नुमाया करता है के जंगजू अपनी ताक़त पर भरोसा करता है और मुजाहिद नुसरते इलाही के एतमाद पर मैदान में क़दम जमाता है और जिसकी ख़ुदा मदद कर दे वह कभी मग़लूब नहीं हो सकता है।))

12-आपका इरशादे गिरामी

जब परवरदिगार ने आपको अस्हाबे जमल पर कामयाबी अता फ़रमाई और आपके बाज़ असहाब ने कहा के काश हमारा अफ़लाल भाई भी हमारे साथ होता तो वह देखता के परवरदिगार ने किस तरह आपको दुश्मन पर फ़तह इनायत फ़रमाई है तो आपने फ़रमाया क्या तेरे भाई की मोहब्बत भी हमारे साथ है ? उसने अर्ज़ की बेशक। फ़रमाया तो वह हमारे साथ था और हमारे इस लशकर में वह तमाम लोग हमारे साथ थे जो अभी मर्दों के सुल्ब और औरतों के रह्म में हैं और अनक़रीब ज़माना उन्हें मन्ज़रे आम पर ले आएगा और उनके ज़रिये ईमान को तक़वीयत हासिल होगी। ((यह दीने इस्लाम का एक मख़सूस इम्तियाज़ है के यहां अज़ाब बद अमली के बग़ैर नाज़िल नहीं होता है और सवाब का इस्तेहक़ाक़ अमल के बग़ैर भी हासिल हो जाता है और अमले ख़ैर का दारोमदार सिर्फ़ नीयत पर रखा गया है बल्कि बाज़ औक़ात तो नीयत मोमिन को उसके अमल से भी बेहतर क़रार दिया गया है के अमल में रियाकारी के इमकानात पाए जाते हैं और नीयत में किसी तरह की रियाकारी नहीं होती है और शायद यही वजह है के परवरदिगार ने रोज़े को सिर्फ़ अपने लिए क़रार दिया है और उसके अज्र व सवाब की मख़सूस ज़िम्मेदारी अपने ऊपर रखी है के रोज़े में नीयत के अलावा कुछ नहीं होता है और नीयत में एख़लास के अलावा कुछ नहीं होता है और एख़लास नीयत का फ़ैसला करने वाला परवरदिगार के अलावा कोई नहीं है।))

13-आपका इरशादे गिरामी

(जिसमें जंगे जमल के बाद अहले बसरा की मज़म्मत फ़रमाई है)

अफ़सोस तुम लोग एक औरत के सिपाही और एक जानवर के पीछे चलने वाले थे जिसने बिलबिलाना शुरू किया तो तुम लब्बैक - 2- कहने लगे और वह ज़ख़्मी हो गया तो तुम भाग खड़े हुए। ((अहले बसरा का बरताव अमीरूल मोमेनीन (अ) के साथ तारीख़ का हर तालिबे इल्म जानता है और जंगे जमल इसका बेहतरीन सबूत है लेकिन अमीरूल मोमेनीन (अ) के बरताव के बारे में तह हुसैन का बयान है के आपने एक करीम इन्सान का बरताव किया और बैतुलमाल का माल दोस्त और दुश्मन दोनों के मुस्तहक़ीन में तक़सीम कर दिया और ज़ख़ीमों पर हमला नहीं किया और हद यह है के क़ैदियों को कनीज़ नहीं बनाया बल्कि निहायत एहतेराम के साथ मदीना वापस कर दिया। - अलीयुन वबनोवा तह हुसैन-))

तुम्हारे इख़लाक़ेयात पस्त तुम्हारा अहद नाक़ाबिले एतबार तुम्हारा दीन निफ़ाक़ और तुम्हारा पानी शूर है। तुम्हारे दरम्यान क़यामक रने वाला गोया गुनाहों के हाथों रेहन है और तुमसे निकल जाने वाला गोया रहमते परवरदिगार को हासिल कर लेने वाला है। मैं तुम्हारी इस मस्जिद को उस आलम में देख रहा हूँ जैसे किश्ती का सीना। जब ख़ुदा तुम्हारी ज़मीन पर ऊपर और नीचे हर तरफ़ से अज़ाब भेजेगा और सारे अहले शहर ग़र्क़ हो जाएंगे।

दूसरी रिवायत में है ख़ुदा की क़सम तुम्हारा शहर ग़र्क़ होने वाला है- 3- यहां तक के गोया मैं इसकी मस्जिद को एक किश्ती के सीने की तरह या एक बैठे हुए शुतुरमुर्ग़ की शक्ल में देख रहा हूँ।

तीसरी रिवायत में है जैसे परिन्दा का सीना समन्दर की गहराईयों में।

एक रिवायत में आपका यह इरशाद वारिद हुआ है- तुम्हारा शहर ख़ाक के एतबार से सबसे ज़्यादा बदबूदार है के पानी से सबसे ज़्यादा क़रीब है और आसमान से सबसे ज़्यादा दूर है। इसमें शर के दस हिस्सों में से नौ हिस्से पाए जाते हैंं। इसमें मुक़ीम गुनाहों के हाथों में गिरफ्तार है।

और उससे निकल जाने वाला अज़वे इलाही में दाखि़ल हो गया। गोया मैं तुम्हारी इस बस्ती को देख रहा हूँ के पानी ने इसे इस तरह ढांप लिया है के मस्जिद के कनगरों के अलावा कुछ नज़र नहीं आ रहा है और वह कनगरे भी जिस तरह पानी की गहराई में परिन्दे का सीना।

14-आपका इरशादे गिरामी

(ऐसे ही एक मौक़े पर)

तुम्हारी ज़मीन पानी से क़रीबतर और आसमान से दूर है। तुम्हारी अक़्लें हल्की और तुम्हारी दानाई अहमक़ाना है। ((इससे ज़्यादा हिमाक़त क्या हो सकती है के कल जिस ज़बान से क़त्ले उस्मान का फ़तवा सुना था आज उसी से इन्तेक़ामे ख़ूने उस्मान की फ़रियाद सुन रहे हैं और फ़िर भी एतबार कर रहे हैं। इसके बाद एक ऊंट की हिफ़ाज़त पर हज़ारों जानें क़ुरबान कर रहे हैं और सरकारे दोआलम (स) के इस इरशादे गिरामी का एहसास तक नहीं है के मेरी अज़वाज में से किसी एक की सवारी को देख कर हदाब के कुत्ते भौकेंगे और वह आएशा ही हो सकती हैं।)) तुम हर तीरन्दाज़ का निशाना , हर भूके का लुक़्मा और हर शिकारी का शिकार हो। ((तारीख़ का मसलमा है के अमीरूल मोमेनीन (अ) जब बैतुलमाल में दाखि़ल होते थे तो सूई तागा और रोटी के टुकड़े तक तक़सीम कर दिया करते थे और उसके बाद झाड़ू देकर दो रकअत नमाज़ अदा करते थे ताके यह ज़मीन रोज़े क़यामत अली(अ) के अद्ल व इन्साफ़ की गवाही दे और इस बुनियाद पर आपने उस्मान की अताकरदा जागीरों को वापसी का हुक्म दिया और सदक़े के ऊंट उस्मान के घर से वापस मंगवाए के उस्मान किसी क़ीमत पर ज़कात के मुस्तहक़ नहीं थे। अगरचे बाज़ हवाख़्वाहान बनी उमय्या ने यह सवाल उठा दिया है के यह इन्तेहाई बेरहमाना बरताव था जहाँ यतीमों पर रहम नहीं किया गया और उनके क़ब्ज़े से माल ले लिया गया। लेकिन उसका जवाब बिल्कुल वाज़े है के ज़ुल्म और शक़ावत का मुज़ाहिरा उसने किया है जिसने ग़ुरबा व मसाकीन का हक़ अपने घर में जमा कर लिया है और माले मुस्लेमीन पर क़ब्ज़ा कर लिया है। फिर यह कोइ नया हादसा भी नहीं है। कल पहली खि़लाफ़त में यतीमाए रसूले अकरम (स) पर कब रहम किया गया था जो वाक़ेअन फ़िदक की हक़दार थीं और उसके बाबा ने उसे यह जागीर हुक्मे ख़ुदा से अता कर दी थी। औलादे उस्मान तो हक़दार भी नहीं हैं और क्या औलादे उस्मान का मरतबा औलादे रसूल (स) से बलन्दतर है या हर दौर के लिये एक नयी शरीअत मुरत्तब की जाती है और इसका महवर सरकारी मसालेह और जमाअती फ़वाएद ही होते हैं।))