खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)0%

खुतबाते इमाम अली (उपदेश) लेखक:
कैटिगिरी: इमाम अली (अ)

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
कैटिगिरी: विज़िट्स: 38036
डाउनलोड: 4985

कमेन्टस:

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)
खोज पुस्तको में
  • प्रारंभ
  • पिछला
  • 31 /
  • अगला
  • अंत
  •  
  • डाउनलोड HTML
  • डाउनलोड Word
  • डाउनलोड PDF
  • विज़िट्स: 38036 / डाउनलोड: 4985
आकार आकार आकार
खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

खुतबाते इमाम अली (उपदेश)

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

82-आपका इरशादे गिरामी

(दुनिया के सिफ़ात के बारे में)

मैं उस दुनिया के बारे में क्या कहूँ जिसकी इब्तिदा रन्ज व ग़म और इन्तेहा फ़ना व पस्ती है। इसके हलालें हिसाब में है और हराम में अक़ाब। जो इसमें ग़नी हो जाए वह आज़माइषों में मुब्तिला हो जाए और जो फ़क़ीर हो जाए वह रन्जीदा व अफ़सरदा हो जाए। जो इसकी तरफ़ दौड़ लगाए उसके हाथ से निकल जाए और जो मुंह फेर कर बैठ रहे उसके पास हाज़िर हो जाए। जो इसको ज़रिया बनाकर आगे देखे उसे बीना बना दे और जो इसको मन्ज़ूरे नज़र बना ले उसे अन्धा बना दे।

सय्यद रज़ी- अगर कोई शख़्स हज़रत के उस इरशादे गिरामी “ मन अबसर बेहा बसरता ” में ग़ौर करे तो अजीब व ग़रीब मानी और दूर रस हक़ाएक़ का इदराक कर लेगा जिनकी बलन्दियों और गहराइयों का इदराक मुमकिन नहीं है। ख़ुसूसियत के साथ अगर दूसरे फ़िक़रे “ मन अबसर एलैहा आमतह ” को मिला लिया जाए तो “ अबसर बेहा ” और “ अबसर एलैहा ” का र्फ़क़ नुमायां हो जाएगा और अक़्ल मदहोश हो जाएगी।

((( इस ख़ुतबे में इस नुक्ते पर नज़र रखना ज़रूरी है के यह जंगे जमल के बाद इरशाद फ़रमाया गया है और इसके मफ़ाहिम में कुल्लियात की तरह सूरते हाल और तजुर्बात का भी दख़ल हो सकता है। यानी यह कोई लाज़िम नहीं है के इसका इतलाक़ हर औरत पर हो जाए। दुनिया में ऐसी ख़ातून भी हो सकती है जो निसवानी अवारिज़ से पाक हो। इसकी गवाही बस क़ुरान तन्हा क़ाबिले क़ुबूल हो और वह अपने बाप की तन्हा वारिस हो। ज़ाहिर है के इस ख़ातून में किसी तरह का नुक़्स नहीं पाया जाता है जिसे जनाबे फ़ातेमा (अ 0) और ऐसी औरत भी हो सकती है जिसमें सारे नक़ाएस पाए जाते हों और इन फ़ितरी नक़ाएस के साथ किरदारी और ईमानी नक़ाएस भी हों के यह औरत हर एतेबार से क़ाबिले लानत व मज़म्मत हो। क़वानीन का दारोमदार न क़िस्मे अव्वल पर हो सकता है और न क़िस्मे दोम पर। क़वानीन का इतलाक़ दरमियानी क़िस्म पर होता है जिसमें किसी तरह का इम्तियाज़ न पाया जाता हो और सिर्फ़ फ़ितरते निसवानी कार फ़रमाई हो और अमीरूल मोमेनीन (अ 0) ने इसी क़िस्म के बारे में इरशाद फ़रमाया है वरना अगर सिर्फ़ जंगे जमल की बिना पर ग़ैज़ व ग़ज़ब होता तो मर्दों के खि़लाफ़ भी बयान देते जिन्होंने उम्मुल मोमेनीन की इताअत की थी या उन्हें भड़काया था। फिर अमीरूल मोमेनीन (अ 0) इमाम मासूम हैं कोई जज़्बाती इन्सान नहीं हैं और इनसे पहले रसूले अकरम (स 0) भी यही बात फ़रमा चुके हैं। अलबत्ता यह कहा जा सकता है के इस एलान के लिये एक मुनासिब मौक़ा हाथ आ गया जहां अपनी बात को बख़ूबी वाज़ेअ किया जा सकता है और औरत के इत्तेबाअ के नताएज से बाख़बर किया जा सकता है।)))

83-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(इस अजीब व ग़रीब ख़ुतबे को ख़ुत्बए ग़र्रा कहा जाता है)

इस ख़ुतबे में परवरदिगार के सिफ़ात , तक़वा की नसीहत , दुनिया से बेज़ारी का सबक़ , क़यामत के हालात , लोगों की बेरूख़ी पर तम्बीह और फिर यादे ख़ुदा दिलाने में अपनी फ़ज़ीलत का ज़िक्र किया गया है। सारी तारीफ़े उस अल्लाह के लिये हैं जो अपनी ताक़त की बिना पर बलन्द और अपने एहसानात की बिना पर बन्दों से क़रीबतर है। वह हर फ़ाएदा और फ़ज़ल का अता करने वाला और हर मुसीबत और रन्ज का टालने वाला है। मैं इसकी करम नवाज़ियों और नेमतों की फ़रावानियों की बिना पर इसकी तारीफ़ करता हूँ और इस पर ईमान रखता हूँ के वही अव्वल और ज़ाहिर है और उसीसे हिदायत तलब करता हूँ के वही क़रीब और हादी है। उसी से मदद चाहता हूँ के वही क़ादिर और क़ाहिर है और उसी पर भरोसा करता हूँ के वही काफ़ी और नासिर है।

और मैं गवाही देता हूँ के हज़रत मोहम्मद (स 0) उसके बन्दे और रसूल हैं। उन्हें परवरदिगार ने अपने हुक्म को नाफ़िज़ करने , अपनी हुज्जत को तमाम करने और अज़ाब की ख़बरें पेश करने के लिये भेजा है।

बन्दगाने ख़ुदा! मैं तुम्हें इस ख़ुदा से डरने की दावत देता हूँ जिसने तुम्हारी हिदायत के लिये मिसालें बयान की हैं। तुम्हारी ज़िन्दगी के लिये मुद्दत मुअय्यन की है। तुम्हें मुख़्तलिफ़ क़िस्म के लिबास पिन्हाए हैं। तुम्हारे लिये अस्बाबे माशियत को फ़रावां कर दिया है। तुम्हारे आमाल का मुकम्मल अहाता कर रखा है और तुम्हारे लिये जज़ा का इन्तेज़ाम कर दिया है। तुम्हें मुकम्मल नेमतों और वसीअतर अतीयों से नवाज़ा है और मवस्सर दलीलों के ज़रिये अज़ाबे आख़ेरत से डराया है। तुम्हारे आदाद को शुमार कर लिया है और तुम्हारे लिये इस इम्तेहानगाह और मक़ामे इद्दत में मुद्दतें मुअय्यन कर दी हैं। यहीं तुम्हारा इम्तेहान लिया जाएगा और इसी के अक़वाल व आमाल पर तुम्हारा हिसाब किया जाएगा।

((( यूँ तो अमीरूल मोमेनीन (अ 0) के किसी भी ख़ुतबे की तारीफ़ करना सूरज को चिराग़ दिखाने के मुतरादिफ़ है लेकिन हक़ीक़त अम्र यह है के यह ख़ुत्बा “ ख़ुत्बए ग़र्रा ” कहे जाने के क़ाबिल है जिसमें इस क़द्र हक़ाएक़ व मआरेफ और मानी व मफ़ाहिम को जमा कर दिया गया है के इनका शुमार करना भी ताक़ते बशर से बालातर है। आग़ाज़े ख़ुतबे में मालिके कायनात के बज़ाहिर दो तज़ाद सिफ़ात व कमालात का ज़िक्र किया गया है के वह अपनी ताक़त के एतबार से इन्तेहाई बलन्दतर है लेकिन इसके बाद भी बन्दों से दूर नहीं है इसलिये के हर आन अपने बन्दों पर ऐसा करम करता रहता है के यह करम उसे बन्दों से क़रीबतर बनाए हुए है और उसे दूर नहीं होने देता है। लफ़्ज़ “ बहोला ” में इस नुक्ते की तरफ़ भी इशारा है के इसकी बलन्दी किसी वसीले और ज़रिये की बुनियाद पर नहीं है बल्कि यह अपनी ज़ाती ताक़त और क़ुदरत का नतीजा है वरना इसके अलावा हर एक की बलन्दी इसके फ़ज़्ल व करम से वाबस्ता है और इसके बाद बग़ैर बलन्दी का कोई इमकान नहीं है। वह अगर चाहे तो बन्दे को क़ाब क़ौसैन की मन्ज़िलों तक बलन्द कर दे “ इसरा बेअब्देही ” और अगर चाहे तो “ साहबे मेराज ” के कान्धों पर बलन्द कर दे “ वअलीयुन वाज़ेअ अक़दाम- फ़ी महल्ल वज़अल्लाह यदह ” । इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स 0) की बअसत के तीन बुनियादी मक़ासिद की तरफ़ इशारा किया गया है के इस बअसत का असल मक़सद यह था के इलाही एहकाम नाफ़िज़ हो जाएं। बन्दों पर हुज्जत तमाम हो जाए और उन्हें क़यामत में पेश आने वाले हालात से क़ब्ल अज़ वक़्त बाख़बर कर दिया जाए के यह काम नुमाइन्दाए परवरदिगार के अलावा कोई दूसरा अन्जाम नहीं दे सकता है और यह ख़ुदाई नुमाइन्दगी के फ़वाएद में सबसे अज़ीमतर फ़ाएदा है जिसकी बिना पर इन्सान रिसालते इलाहिया से किसी वक़्त भी बेनियाज़ नहीं हो सकता है।)))

याद रखो इस दुनिया का सरचश्मा गन्दा और इसका घाट गिल आलूद है। इसका मन्ज़र ख़ूबसूरत दिखाई देता है। लेकिन अन्दर के हालात इन्तेहाई दरजा ख़तरनाक हैं। यह दुनिया एक मिट जाने वाला धोका एक बुझ जाने वाली रोशनी , एक ढल जाने वाला साया और एक गिर जाने वाला सहारा है। जब इससे नफ़रत करने वाला मानूस हो जाता है और इसे बुरा समझने वाला मुतमईन हो जाता है तो यह अचानक अपने पैरों को पटकने लगती है और आशिक़ को अपने जाल में गिरफ़्तार कर लेती है और फिर अपने तीरों का निशाना बना लेती है। इन्सान की गरदन में मौत का फन्दा डाल देती है और उसे खींच कर तंगी , मरक़द और वहशते मन्ज़िल की तरफ़ ले जाती है जहां वह अपना ठिकाना देख लेता है और अपने आमाल का मुआवज़ा हासिल कर लेता है और यूंही यह सिलसिला नस्लों में चलता रहता है के औलाद बुज़ुर्गों की जगह पर आ जाती है। न मौत चीरा दस्तियों से बाज़ आती है और न आने वाले अफ़राद गुनाहों से बाज़ आते हैं। पुराने लोगों ने नक़्शे क़दम पर चलते रहते हैं और तेज़ी के साथ अपनी आख़री मन्ज़िले इन्तेहा व फ़ना की तरफ़ बढ़ते रहते हैं।

यहाँ तक के जब तमाम मामलात ख़त्म हो जाएंगे और तमाम ज़माने बीत जाएंगे और क़यामत का वक़्त क़रीब आ जाएगा तो उन्हें क़ब्रों के गोशों , परिन्दों के घोसलों , दरिन्दों के के भटों और हलाकत की मन्ज़िलों से निकाला जाएगा। उसके अम्र की तरफ़ तेज़ी से क़दम बढ़ाते हुए और अपनी वादागाह की तरफ़ बढ़ते हुए , गिरोह दर गिरोह ख़ामोश सफ़ बस्ता और इस्तादा निगाहे क़ुदरत इन पर हावी और दाई इलाही की आवाज़ इनके कानों में , बदन पर बेचारगी का लिबास और ख़ुद सिपर्दगी व ज़िल्लत की कमज़ोरी ग़ालिब , तदबीरें गुम , उम्मीदें मुनक़ता , दिल मायूसकुन ख़ामोशी के साथ बैठे हुए।

((( एक-एक लफ़्ज़ पर ग़ौर किया जाए और दुनिा की हक़ीक़त से आशनाई पैदा की जाए। सूरते हाल यह है के यह एक धोका है जो रहने वाला नहीं है। एक रौशनी है जो बुझ जाने वाली है। एक साया है जो ढल जाने वाला है और एक सहारा है जो गिर जाने वाला है। इन्साफ़ से बताओ क्या ऐसी दुनिया भी दिल लगाने के क़ाबिल और एतबार करने के लाहक़ है , हक़ीक़ते अम्र यह है के दुनिया से इष्क़ व मोहब्बत सिर्फ़ जेहालत और नावाक़फ़ीयत का ख़ुत्बा है वरना इन्सान की हक़ीक़त व बेवफ़ाई से बाख़बर हो जाए तो तलाक़ दिये बग़ैर नहीं रह सकता है। क़यामत यह है के इन्सान दुनिया की बेवफ़ाई , मौत की चीरादस्ती का बराबर मुशाहेदा कर रहा है लेकिन इसके बावजूद कोई इबरत हासिल करने वाला नहीं है और हर आने वाला दौरे गुज़िश्ता दौर का अन्जाम देखने के बाद भी उसी रास्ते पर चल रहा है। यह हक़ीक़त आम इन्सानों की ज़िन्दगी में वाज़ेअ न भी हो तो ज़ालिमों और सितमगारों की ज़िन्दगी में सुबह व शाम होती रहती है के हर सितमगर अपने पहले वाले सितमगरों का अन्जाम देखने के बाद भी उसी रास्ते पर चल रहा है और हर मसलए हयात का हल ज़ुल्म व सितम के अलावा किसी और चीज़ को नहीं क़रार देता है। ख़ुदा जाने इन ज़ालिमों की आँखें कब खुलेंगी और यह अन्धा इन्सान कब बीना बनेगा।

मौलाए कायनात ही ने सच फ़रमाया था के “ सारे इन्सान सो रहे हैं जब मौत आ जाएगी तो बेदार हो जाएंगे ’ यानी जब तक आंख खुली रहेगी बन्द रहेगी और जब बन्द हो जाएगी तो खुल जाएगी। अस्तग़फ़ेरूल्लाह रब्बी वातूबो इलैह)))

और आवाज़ें दब कर ख़ामोश हो जाएंगी , पसीना मुंह में लगाम लगा देगा और ख़ौफ़ अज़ीम होगा। कान उस पुकारने वाले की आवाज़ से लरज़ उठेंगे जो आख़ेरी फ़ैसला सुनाएगा और आमाल का मुआवज़ा देने और आख़ेरत के अक़ाब या सवाब के हुसूल के लिये आवाज़ देगा। तुम वह बन्दे हो जो उसके इक़तेदार के इज़हार के लिये पैदा हुए हो और इसके ग़लबे व तसल्लत के साथ उनकी तरबीयत हुई है। नज़अ के हंगाम इनकी रूहें क़ब्ज़ कर ली जाएंगी और उन्हें क़ब्रों के अन्दर छिपा दिया जाएगा। यह ख़ाक के अन्दर मिल जाएंगे और फिर अलग अलग उठाए जाएंगे। उन्हें आमाल के मुताबिक़ बदला दिया जाएगा और हिसाब की मंज़िल में अलग-अलग कर दिया जाएगा। उन्हें दुनिया में अज़ाब से निकलने का रास्ता तलाश करने के लिये मोहलत दी जा चुकी है और उन्हें रोशन रास्ते की हिदायत की जा चुकी है। उन्हें मरज़ीए ख़ुदा के हुसूल का मौक़ा भी दिया जा चुका है और इनकी निगाहों से शक के परदे भी उठाए जा चुके हैं। उन्हें मैदाने अमल में आज़ाद भी छोड़ दिया जा चुका है ताके आख़ेरत की दौड़ की तैयारी कर लें और सोच समझ कर मन्ज़िल की तलाश कर लें और इतनी मोहलत पा लें जितनी फ़वाएद के हासिल करने और आइन्दा मन्ज़िल का सामान मुहैया करने के लिये ज़रूरी होती है। हाए यह किस क़द्र सही मिसालें और शिफ़ा बख़्श नसीहतें हैं अगर इन्हें पाकीज़ा दिल , सुनने वाले कान , मज़बूत राएं और होशियार अक़लें नसीब हो जाएं। लेहाज़ा अल्लाह से डरो उस शख़्स की तरह जिसने नसीहतों को सुना तो दिल में खुशुअ पैदा हो गया और गुनाह किया तो फ़ौरन एतराफ़ कर लिया और ख़ौफ़े ख़ुदा पैदा हो गया तो अमल शुरू कर दिया।

((( इन्सान को यह याद रखना चाहिए के न इसकी तख़लीक़ इत्तेफ़ाक़ात का नतीजा है और न इसकी ज़िन्दगी इख़्तेयारात का मजमुआ। वह एक ख़ालिक़े क़दीर की क़ुदरत के नतीजे में पैदा हुआ है और एक हकीम ख़बीर के इख़्तेयारात के ज़ेरे असर ज़िन्दगी गुज़ार रहा है। एक वक़्त आएगा जब फ़रिश्तए मौत इसकी रूह क़ब्ज़ कर लेगा और उसे ज़मीन के ऊपर से ज़मीन के अन्दर पहुंचा दिया जाएगा और फिर एक दिन तने तन्हा क़ब्र से निकाल के मन्ज़िले हिसाब में लाकर खड़ा कर दिया जाएगा और उसे उसके आमाल का मुकम्मल मुआवज़ा दे दिया जाएगा और यह काम ग़ैर आदिलाना नहीं होगा इस लिये के उसे दुनिया में अज़ाब से बचने और रज़ाए ख़ुदा हासिल करने की मोहलत दी जा चुकी है। उसे तौबा का रास्ता भी बताया जा चुका है और अमल के मैदान की भी निशानदेही की जा चुकी है और इसकी निगाहों से शक के परदे भी उठाए जा चुके हैं और उसे मैदाने अमल में दौड़ने का मौक़ा भी दिया जा चुका है। उसे इस इन्सान जैसी मोहलत भी दी जा चुकी है जो रोशनी में अपने मद्दआ को तलाश करता है के एक तरफ़ यह भी ख़तरा रहता है के तेज़ रफ़तारी में मक़सद से आगे न निकल जाए और एक तरफ़ यह भी एहसास रहता है के कहीं चिराग़ बुझ न जाए और इस तरह इसकी रोशनी इन्तेहाई मोहतात होती है।

इसमें कोई शक नहीं है के मालिके कायनात की बयान की हुई मिसालें साएब व सही और इसकी नसीहतें सेहतमन्द और शिफ़ाबख़्श हैं लेकिन मुश्किल यह है के कोई नुस्क़ाए शिफ़ा सिर्फ़ नुस्क़े की हद तक कार आमद नहीं होता है बल्कि इसका इस्तेमाल करना और इस्तेमाल के साथ परहेज़ करना भी ज़रूरी होता है और इन्सानों में इसी शर्त की कमी है। नसीहतों से फ़ाएदा उठाने के लिये चार अनासिर का होना लाज़मी है। सुनने वाले कान हों , तय्यबो ताहिर दिल हों , राय में इस्तेहकाम हो और फ़िक्र में होशियारी हो , यह चारों अनासिर नहीं हैं तो नसीहतों का कोई फ़ाएदा नहीं हो सकता है और आलमे बशरीयत की कमज़ोरी ही है के इसमें उन्हीं अनासिर में से कोई न कोई अनसर कम हो जाता है और वह मवाएज़ व नसातेह के असरात से महरूम रह जाता है।)))

आख़ेरत से डरा तो अमल की तरफ़ सबक़त की , क़यामत का यक़ीन पैदा किया तो बेहतरीन आमाल अन्जाम दिये , इबरत दिलाई गई तो इबरत हासिल कर ली , ख़ौफ़ दिलाया गया तो डर गया , रोका गया तो रूक गया , सदाए हक़ पर लब्बैक कही तो इसकी तरफ़ मुतवज्जो हो गया और मुड़कर आ गया तो तौबा कर ली , बुज़ुर्गों की इक़तेदा की तो उनके नक़्शे क़दम पर चला , मन्ज़रे हक़ दिखाया गया तो देख लिया। तलबे हक़ में तेज़ रफ़तारी से बढ़ा और बातिल से फ़रार कर निजात हासिल कर ली। अपने लिये ज़ख़ीरए आख़ेरत जमा कर लिया और अपने बातिन को पाक कर लिया। आख़ेरत के घर को आबाद किया और ज़ादे राह को जमा कर लिया उस दिन के लिये जिस दिन यहां से कूच करना है और आख़ेरत का रास्ता इख़्तेयार करना है और आमाल का मोहताज होना है और महले फ़क़्र की तरफ़ जाना है और हमेशा के घर के लिये सामान आगे आगे भेज दिया।

अल्लाह के बन्दों! अल्लाह से डरो इस जहत की ग़र्ज़ से जिसके लिये तुमको पैदा किया गया है और इसका ख़ौफ़ पैदा करो , उस तरह जिस तरह उसने तुम्हें अपने अज़मत का ख़ौफ़ दिलाया है और इस अज्र का इस्तेहक़ाक़ पैदा करो जिसको उसने तुम्हारे लिये मुहैया किया है उसके सच्चे वादे के पुरा करने और क़यामत के हौल से बचने के मुतालबे के साथ। उसने तुम्हें कान इनायत किये हैं ताके ज़रूरी बातों को सुनें और आंखें दी हैं ताके बे बसरी में रौशनी अता करें और जिस्म के वह हिस्से दिये हैं जो मुख़्तलिफ़ आज़ा को समेटने वाले हैं और इनके पेच व ख़म के लिये मुनासिब हैं , सूरतों की तरकीब और उम्रों की मुद्दत के एतबार से ऐसे बदनों के साथ जो अपनी ज़रूरतों को पूरा करने वाले हैं और ऐसे दिलों के साथ जो अपने रिज़्क़ की तलाश में रहते हैं इसकी अज़ीमतरीन नेमतों , एहसानमन्द बनाने वाली बख़्िशषों और सलामती के हसारों के दरम्यान , इसने तुम्हारे लिये वह उम्रें क़रार दी हैं जिनको तुमसे मख़ज़ी कर रखा है और तुम्हारे लिये माज़ी में गुज़र जाने वालो के आसार में इबरतें फ़राहम कर दी हैं , वह लोग जो अपने ख़त व नसीब से लुत्फ़ व अन्दोज़ हो रहे थे और हर बन्धन से आज़ाद थे लेकिन मौत ने उन्हें उम्मीदों की तकमील से पहले ही गिरफ़्तार कर लिया और अजल की हलाकत सामानियों ने उन्हें हुसूले मक़सद से अलग कर दिया। उन्होंने बदन की सलामती के वक़्त कोई तैयारी नहीं की थी और इब्तेदाई औक़ात में कोई इबरत हासिल नहीं की थी , तो क्या जवानी की तरो ताज़ा उम्रे रखने वाले बुढ़ापे में कमर झुक जाने का इन्तेज़ार कर रहे हैं और क्या सेहत की ताज़गी रखने वाले मुसीबतों और बीमारियों के हवादिस का इन्तेज़ार कर रहे हैं और क्या बक़ा की मुद्दत रखने वाले फ़ना के वक़्त के मन्ज़र हैं जब के वक़्ते ज़वाल क़रीब होगा और इन्तेक़ाल की साअत नज़दीकतर होगी।

((( एक मर्दे मोमिन की ज़िन्दगी का हसीन तरीन और पाकीज़ातरीन नक़्षा यही है लेकिन यह अलफ़ाज़ फ़साहत व बलाग़त से लुत्फ़अन्दोज़ होने के लिये नहीं हैं। ज़िन्दगी पर मुन्तबिक़ करने के लिये और ज़िन्दगी का इम्तेहान करने के लिये हैं के क्या वाक़ेअन हमारी ज़िन्दगी में यह हालात और कैफ़ियात पाए जाते हैं। अगर ऐसा है तो हमारी आक़बत बख़ैर है और हमें निजात की उम्मीद रखना चाहिये और अगर ऐसा नहीं है तो हमें इस दारे इबरत में गुज़िश्ता लोगों के हालात से इबरत हासिल करनी चाहिये और अब से इस्लाह दुनिया व आखि़रत के अमल में लग जाना चाहिये। ऐसा न हो के मौत अचानक नाज़िल हो जाए और वसीयत करने का मौक़ा भी फ़राहम न हो सके। कितना बलीग़ फ़िक़रा है मौलाए कायनात (अ 0) का के गुज़िश्ता लोग हर क़ैद व बन्द और हर पाबन्दीए हयात से आज़ाद हो गए लेकिन मौत के चंगुल से आज़ाद न हो सके और उसने बाला आखि़र उन्हें गिरफ़्तार कर लिया और उनकी वादागाह तक पहुंचा दिया।

फिर जवानी में यह ख़याल के ज़ईफ़ी में अमल या तौबा कर लेंगे यह भी एक वसवसए शैतानी है। वरना फ़ुरसते अमल और हंगामे कार जवानी ही का ज़माना है। ज़ईफ़ी में काम करने का हौसला एक वहम व सिफ़त है , इसके अलावा कुछ नहीं है। रब्बे करीम हर मोमिन को ऐसे औहाम और वसवसों से महफ़ूज़ रखे।)))

और बिस्तरे मर्ग पर कलक़ की बेचैनियां और सोज़ो तपिश का रन्जो अलम और लोआबे दहन के फन्दे होंगे और वह हंगाम होगा जब इन्सान अक़रबा , औलाद , अइज़्ज़ा , अहबाब से मदद तलब करने के लिये इधर उधर देख रहा होगा। तो क्या आज तक कभी अक़रबा ने मौत को दफ़ा कर दिया है या फ़रयाद किसी के काम आई है ? हरगिज़ नहीं , करने वाले को तो क़ब्रिस्तान में गिरफ़्तार कर दिया गया है और तंगी क़ब्र में तन्हा छोड़ दिया गया है। इस आलम में के कीड़े मकोड़े इसकी जिल्द को पारा-पारा कर रहे हैं और पामालियों ने उसके जिस्म की ताज़गी को बोसीदा कर दिया है। आन्धियों ने इसके आसार को मिटा दिया है और रोज़गार के हादसात ने इसके निशानात को महो कर दिया है। जिस्म ताज़गी के बाद हलाक हो गए हैं और हड़िडयां ताक़त के बाद बोसीदा हो गई हैं , रूहें अपने बोझ की गरानी में गिरफ़्तार हैं और अब ग़ैब की ख़बरों का यक़ीन आ गया है। अब न नेक आमाल में कोई इज़ाफ़ा हो सकता है और न बदतरीन लग़्िज़षों की माफ़ी तलब की जा सकती है। तो क्या तुम लोग उन्हीं आबा व अजदाद की औलाद नहीं हो और क्या उन्हीं के भाई बन्दे नहीं हो के फिर उन्हीं के नक़्शे क़दम पर चले जा रहे हो और उन्हीं के तरीक़े को अपनाए हुए हो और उन्हीं के रास्ते पर गामज़न हो ? हक़ीक़त यह है के दिल अपना हिस्सा हासिल करने में सख़्त हो गए हैं और राहे हिदायत से ग़ाफ़िल हो गए हैं , ग़लत मैदानों में क़दम जमाए हुए हैं , ऐसा मालूम होता है के अल्लाह का मुख़ातब इनके अलावा कोई और है और शायद सारी अक़्लमन्दी दुनिया ही के जमा कर लेने में है। याद रखो तुम्हारी गुज़रगाह सिरात और इसकी हलाकत ख़ेज़ लग़्ज़िशे हैं। तुम्हें इन लग़्ज़िशो के हौलनाक मराहेल और तर्जे तरह के ख़तरनाक मनाज़िल से गुज़रना है। अल्लाह के बन्दों! अल्लाह से डरो , उस तरह जिस तरह वह साहिबे अक़्ल डरता है जिसके दिल को फ़िक्रे आख़ेरत ने मशग़ूल कर लिया हो और उसके बदन को ख़ौफ़े ख़ुदा ने ख़स्ता हाल बना दिया हो और शब बेदारी ने इसकी बची कुची नींद को भी बेदारी में बदल दिया हो और उम्मीदों ने इसके दिल की तपिश को प्यास में गुज़ार दिया हो और ज़ोहद ने इसके ख़्वाहिशात को पैरों तले रौंद दिया हो और ज़िक्रे ख़ुदा इसकी ज़बान पर तेज़ी से दौड़ रहा हो और उसने क़यामत के अम्न व अमान के लिये यहीं ख़ौफ़ का रास्ता इख़्तेयार कर लिया हो और सीधी राह पर चलने के लिये टेढ़ी राहों से कतराकर चला हो और मतलूबा रास्ते ते पहुंचने के लिये मोतदल तरीन रास्ता इख़्तेयार किया हो।

((( ज़रूरत इस बात की है के इन्सान जब दुनिया के तमाम मशाग़ेल तमाम करके बिस्तर पर आए तो इस ख़ुतबे की तिलावत करे और इसके मज़ामीन पर ग़ौर करे , फिर अगर मुमकिन हो तो कमरे की रौशनी गुल करके दरवाज़ा बन्द करके क़ब्र का तसव्वुर पैदा करे और यह सोचे के अगर इस वक़्त किसी तरफ़ से सांप बिच्छू हमलावर हो जाएं और कमरे की आवाज़ बाहर न जा सके और दरवाज़ा खोलकर भागने का इमकान भी न हो तो इन्सान क्या करेगा और इस मुसीबत से किस तरह निजात हासिल करेगा , शायद यही तसव्वुर उसे क़ब्र के बारे में सोचने और इसके हौलनाक मनाज़िर से बचने के रास्ते निकालने पर आमादा कर सके। वरना दुनिया की रंगीनियां एक लम्हे के लिये भी आख़ेरत के बारे में सोचने का मौक़ा नहीं देती है और किसी न किसी वहम में मुब्तिला करके निजात का यक़ीन दिला देती हैं और फिर इन्सान आमाल से यकसर ग़ाफ़िल हो जाता है।)))

न ख़ुश फ़रेबों ने इसमें इज़तेराब पैदा किया हो और न मुश्तबा कामो ने इसकी आंखों पर परदा डाला हो , बशारत की मसर्रत और नेमतों की राहत हासिल कर ली हो , दुनिया की गुज़रगाह से क़ाबिले तारीफ़ अन्दाज़ से गुज़र जाए और आख़ेरत का ज़ादे राह नेक बख़्ती के साथ आगे भेज दे। वहां के ख़तरात के पेशे नज़र अमल में सबक़त की और मोहलत के औक़ात में तेज़ रफ़्तारी से क़दम बढ़ाया। तलबे आख़ेरत में रग़बत के साथ आगे बढ़ा और बुराइयों से मुसलसल फ़रार करता रहा। आज के दिन कल पर निगाह रखी और हमेशा अगली मन्ज़िलों को देखता रहा , यक़ीनन सवाब और अता के लिये जन्नत और अज़ाब व वबाल के लिये जहन्नम से बालातर क्या है और फिर ख़ुदा से बेहतर मदद करने वाला और इन्तेक़ाम लेने वाला कौन है और क़ुरान के अलावा हुज्जत और सनद क्या है।

बन्दगाने ख़ुदा! मैं तुम्हें उस ख़ुदा से डरने की वसीयत करता हूँ जिसने डराने वाली अशया के ज़रिये बहाने का ख़ात्मा कर दिया है और रास्ता दिखाकर हुज्जत तमाम कर दी है , तुम्हें उस दुशमन से होशियार कर दिया है जो ख़ामोशी से दिलों में नुज़ोज कर जाता है और चुपके से कान में फूंक देता है और इस तरह गुमराह और हलाक कर देता है और वादा करके उम्मीदों में मुब्तिला कर कर देता है , बदतरीन जराएम को ख़ूबसूरत बनाकर पेश करता है और महलक गुनाहों को आसान बना देता है। यहां तक के जब अपने साथी नफ़्स को अपनी लपेट में ले लेता है और अपने क़ैदी को बाक़ाएदा गिरफ़्तार कर लेता है तो जिसको ख़ूबसूरत बनाया था उसी को मुनकिर बना देता है और जिसे आसान बनाया था उसी को अज़ीम कहने लगता है और जिसकी तरफ़ से महफ़ूज़ बना दिया था उसे से डराने लगता है। ज़रा इस मख़लूक़ को देखो जिसे बनाने वाले ने रहम की तारीकियों और मुतअदद परदों के अन्दर यूँ बनाया के उछलता हुआ नुत्फ़ा था फ़िर मुनजमद ख़ून बना , फिर जिनीन बना , फिर रज़ाअत की मन्ज़िल में आया फिर तिफ़्ल नौख़ेज़ बना फ़िर जवान हो गया और इसके बाद मालिक ने उसे महफ़ूज़ करने वाला दिल , बोलने वाली ज़बान , देखने वाली आंख इनायत कर दी ताके इबरत के साथ समझ सके और नसीहत का असर लेते हुए बुराइयों से बाज़ रहे। लेकिन जब इसके आज़ा में एतदाल पैदा हो गया और इसका क़द व क़ामत अपनी मन्ज़िल तक पहुंच गया तो ग़ुरूर व तकब्बुर से अकड़ गया और अन्धेपन के साथ भटकने लगा और हवा व होस के डोल भर-भर कर खींचने लगा।

((( परवरदिगार का करम है के उसने क़ुराने मजीद में बार-बार क़िस्सए आदम (अ 0) व इबलीस को दोहराकर औलादे आदम (अ 0) को मुतवज्जो कर दिया है के यह तुम्हारे बाबा आदम का दुशमन था और उसी ने इन्हें जन्नत की ख़ुशगवार फ़िज़ाओं से निकाला था और फिर जब से बारगाहे इलाही से निकाला गया है मुसलसल औलादे आदम (अ 0) से इन्तेक़ाम लेने पर तुला हुआ है और एक लम्हए फ़ुरसत को नज़र अन्दाज़ नहीं करना चाहता है। इसका सबब है बड़ा हुनर यह है के गुनाहों के वक़्त गुनाहों को मामूली और मज़ीन बना देता है , इसके बाद जब इन्सान का इरतेकाब कर लेता है तो इसके ज़ेहनी कर्ब को बढ़ाने के लिये गुनाह की अहमियत व अज़मत का एहसास दिलाता है और एक लम्हे के लिये उसे चैन से नहीं बैठने देता है।

मालिके कायनात के करोड़ों एहसानात में से यह तीन एहसानात ऐसे हैं के अगर यह न होते तो इन्सान का वजूद जानवरों से बदतर होकर रह जाता और इन्सान किसी क़ीमत पर अशरफ़ मख़लूक़ात कहे जाने के क़ाबिल न होता। मालिक ने पहला करम यह किया के दुनिया के हालात से बाख़बर बनाने के लिये आंखें दे दीं , इसके बाद अपने जज़्बात व ख़यालात के इज़हार के लिये ज़बान दे दी और फिर मालूमात से किसी वक़्त भी फ़ायदा उठाने के लिये हाफ़ेज़ा दे दिया वरना यह हाफ़ेज़ा न होता तो बार-बार अशया का सामने आना नामुमकिन होता और इन्सान साहबे इल्म होने के बाद भी जाहिल ही रह जाता। - फातबरोवा या ऊलिल अबसार)))

तरब की लज़्ज़तों और ख़्वाहेशात की तमन्नाओं में दुनिया के लिये अनथक कोशिश करने लगा , न किसी मुसीबत का ख़याल रह गया और न किसी ख़ौफ़ व ख़तर का असर रह गया। फ़ितनों के दरम्यान फ़रेब ख़ोरदा मर गया और मुख़्तसर सी ज़िन्दगी को बेहूदगियों में गुज़ार गया। न किसी अज्र का इन्तेज़ाम किया और न किसी फ़रीज़े को अदा किया। इसी बाक़ीमान्दा सरकशी के आलम में मर्गबार मुसीबतें इस पर टूट पड़ीं और वह हैरत ज़दा रह गया। अब रातें जागने में गुज़र रही थीं के शदीद क़िस्म के आलाम थे और तरह-तरह के अमराज़ व असक़ाम। जबके हक़ीक़ी भाई और मेहरबान बाप और फ़रयाद करने वाली माँ और इज़तेराब से सीनाकोबी करने वाली बहन भी मौजूद थी लेकिन इन्सान सकराते मौत की मदहोशियों , शदीद क़िस्म की बदहवासियों , दर्दनाक क़िस्म की फ़रयादों और कर्ब अंगेज़ क़िस्म की नज़अ की कैफ़ियतों और थका देने वाली शिद्दतों में मुब्तिला था। इसके बाद उसे मायूसी के आलम में कफ़न में लपेट दिया गया और वह निहायत दरजए आसानी और ख़ुदसुपर्दगी के साथ खींचा जाने लगा इसके बाद उसे तख़्ते पर लिटा दिया गया इस आलम में के ख़स्ताहाल और बीमारियों से निढाल हो चुका था , औलाद और बरादरी के लोग उसे उठाकर उस घर की तरफ़ ले जा रहे थे जो इज़्ज़त का घर था और जहां मुलाक़ातों का सिलसिला बन्द था और तन्हाई की वहशत का दौरे दौरा था यहाँ तक के जब मुशायअत करने वाले वापस आ गए और गिरया व ज़ारी करने वाले पलट गए तो उसे क़ब्र में दोबारा उठाकर बैठा दिया गया। सवाल व जवाब की दहशत और इम्तेहान की लग़्ज़िशो का सामना करने के लिये और वहाँ की सबसे बड़ी मुसीबत तो खोलते हुए पानी का नूज़ूल और जहन्नम का वदूद है जहां आग भड़क रही होगी और शोले बलन्द हो रहे होंगे। न कोई राहत का वक़्फ़ा होगा और न सुकून का लम्हा न कोई ताक़त अज़ाब को रोकने वाली होगी और न कोई मौत सुकूलन बख़्श होगी। हद यह है के कोई तसल्ली बख़्श नींद भी न होगी। तरह तरह की मौतें होंगी और दमबदम का अज़ाब , बेशक हम उस मन्ज़िल पर परवरदिगार की पनाह के तलबगार हैं।

((( हाए रे इन्सान की बेकसी , अभी ग़फ़लत का सिलसिला तमाम न हुआ था और लज़्ज़त अन्दोज़ी हयात का तसलसुल क़ायम था के अचानक हज़रत मलकुल मौत नाज़िल हो गए और एक लम्हे की मोहलत दिये बग़ैर लेजाने के लिये तैयार हो गए। इन्सान सहरा बियाबान और वीराना दष्त व जबल में नहीं है घर के अन्दर है। इधर औलाद उधर अहबाब , इधर मेहरबान बाप उधर सरो सीना पीटने वाली माँ , इधर हक़ीक़ी भाई उधर क़ुरबान होने वाली बहन , लेकिन कोई कर्ब मौत के लम्हे में तख़फ़ीफ़ भी नहीं करा सकता है और न मरने वाले के किसी काम आ सकता है बल्के इससे ज़्यादा कर्बनाक यह मन्ज़र है के इसके बाद अपने ही हाथों से कफ़न में लपेटा जा रहा है और सांस लेने के लिये भी कोई रास्ता नहीं छोड़ा जा रहा है और फिर यहां तक दरजए अदब व एहतेराम से क़ब्र के अन्धेरे में डालकर चारों तरफ़ से बन्द कर दिया जाता है के कोई सूराख़ भी न रहने पाए और हवा या रोशनी का गुज़र भी न होने पाए।

किसी के मुंह से न निकला हमारे दफ़न के वक़्त - के ख़ाक इन पे न डालो ये हैं नहाए हुए और इतना ही नहीं बल्के हज़रात ख़ुद भी ख़ाक डालने ही को मोहब्बत की अलामत और दोस्ती के हक़ की अदायगी तसव्वुर कर रहे हैं: मुट्ठियों में ख़ाक लेकर दोस्त आए वक़्ते दफ़न- ज़िन्दगी भर की मोहब्बत का सिला देने लगे इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन।)))

बन्दगाने ख़ुदा! कहाँ हैं वह लोग जिन्हें उम्रें दी गईं तो ख़ुब मज़े उड़ाए और बताया गया तो सब समझ गए लेकिन मोहलत दी गई तो ग़फ़लत में पड़ गए। सेहत व सलामती दी गई तो इस नेमत को भूल गए। उन्हें काफ़ी तवील मोहलत दी गई और काफ़ी अच्छी नेमतें दी गईं और उन्हें दर्दनाक अज़ाब से डराया भी गया और बेहतरीन नेमतों का वादा भी किया गया। लेकिन कोई फ़ायदा न हुआ। अब तुम लोग मोहलक गुनाहों से परहेज़ करो और ख़ुदा को नाराज़ करने वाले उयूब से दूर रहो। तुम साहेबाने समाअत व बसारत और अहले आफ़ियत व सरवत हो बताओ क्या बचाव की कोई जगह या छुटकारे की कोई गुन्जाइश है। कोई ठिकाना या पनाहगाह है। कोई जाए फ़रार या दुनिया में वापसी की कोई सूरत है ? और अगर नहीं है तो किधर बहके जा रहे हो और कहाँ तुमको ले जाया जा रहा है या किस धोके में पड़े हो ? याद रखो इस तवील व अरीज़ ज़मीन में तुम्हारी क़िस्मत सिर्फ़ बक़द्र क़ामत जगह है जहाँ रूख़सारों को ख़ाक पर रहना है। बन्दगाने ख़ुदा। अभी मौक़ा है , रस्सी ढीली है , रूह आज़ाद है , तुम हिदायत की मंज़िल और जिस्मानी राहत की जगह पर हो। मजलिसों के इज्तेमाअ में हो और बक़िया ज़िन्दगी की मोहलत सलामत है और रास्ता इख़्तेयार करने की आज़ादी है और तौबा की मोहलत है और जगह की वुसअत है , क़ब्ल इसके के तंगीए लहद , ज़ीक़ मकान , ख़ौफ़ और जाँकनी का शिकार हो जाओ और क़ब्ल इसके के वह मौत आ जाए जिसका इन्तज़ाम हो रहा है और वह परवरदिगार अपनी गिरफ़्त में ले ले जो साहबे इज़्ज़त व ग़लबा और साहबे ताक़त व क़ुदरत है। सय्यद रज़ी- कहा जाता है के जब हज़रत (अ 0) ने इस ख़ुतबे को इरशाद फ़रमाया तो लोगों के रोंगटे खड़े हो गए और आंखों से आंसू जारी हो गए और दिल लरज़ने लगे। बाज़ लोग इस ख़ुतबे को ख़ुत्बए ग़र्रा के नाम से याद करते हैं।

84-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें अम्र व आस का ज़िक्र किया गया है)

ताज्जुब है नाबग़ा के बेटे से , के यह अहले शाम से बयान करता है के मेरे मिज़ाज में मिज़ाह पाया जाता है और मैं कोई खेल तमाशे वाला इन्सान हूँ और हंसी मज़ाक़ में लगा रहता हूँ। यक़ीनन इसने यह बात ग़लत ही कही है और इसकी बिना पर गुनहगार भी हुआ है। आगाह हो जाओ के बदतरीन कलाम ग़लतबयानी है और यह जब बोलता है तो झूट ही बोलता है और जब वादा करता है तो वह वादाखि़लाफ़ी ही करता है और जब उससे कुछ मांगा जाता है तो कंजूसी ही करता है और जब ख़ुद मांगता है तो चिमट जाता है। अहद व पैमान में ख़यानत करता है। क़राबतों में क़तअ रहम करता है। जंग के वक़्त देखो तो क्या क्या अम्र व नहीं करता है जब तक तलवारें अपनी मन्ज़िल पर ज़ोर न पकड़ लें। वरना जब ऐसा हो जाता है तो इसका सबसे बड़ा जरबा यह होता है के दुशमन के सामने अपनी पुश्त को पेश कर दे। ख़ुदा गवाह है के मुझे खेल कूद से यादे मौत ने रोक रखा है और उसे हर्फ़े हक़ से निसयाने आख़ेरत ने रोक रखा है। इसने माविया की भी उस वक़्त तक नहीं की जब तक उससे यह तय नहीं कर लिया के उसे कोई हदिया देगा और उसके सामने तर्के दीन पर कोई तोहफ़ा पेश करेगा।

85-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें परवरदिगार के आठ सिफ़ात का तज़किरा किया गया है)

मैं गवाही देता हूँ के अल्लाह के अलावा कोई ख़ुदा नहीं है , वह अकेला है इसका कोई शरीक नहीं है , वह ऐसा अव्वल है जिससे पहले कुछ नहीं है और ऐसा आखि़र है जिसकी कोई हद मुअय्यन नहीं है। ख़यालात उसकी किसी सिफ़त का इदराक नहीं कर सकते हैं और दिल इसकी कोई कैफ़ियत तय नहीं कर सकता है। इसकी ज़ात के न अजज़ा हैं और न टुकड़े और न वह दिल व निगाह के अहाते के अन्दर आ सकता है।

बन्दगाने ख़ुदा! मुफ़ीद इबरतों से नसीहत हासिल करो और वाज़े निशानियों से इबरत को बलीग़ डराने वाली चीज़ों से असर क़ुबूल करो और ज़िक्र व मौअज़त से फ़ायदा हासिल करो। यह समझो के गोया मौत अपने पन्जे तुम्हारे अन्दर गाड़ चुकी है और उम्मीदों के रिश्ते तुमसु मुनक़ता हो चुके हैं और दहशतनाक हालात ने तुम पर हमला कर दिया है और आख़री मन्ज़िल की तरफ़ ले जाने का अमल शुरू हो चुका है। याद रखो के “ हर नफ़्स के साथ एक हँकाने वाला है और एक गवाह रहता है ” , हँकाने वाला क़यामत की तरफ़ खींच कर ले जा रहा है और गवाही देने वाला आमाल की निगरानी कर रहा है। सिफ़ाते जन्नत

इसके दरजात मुख़्तलिफ़ और इसकी मन्ज़िलें पस्त व बलन्द हैं लेकिन इसकी नेमतें ख़त्म होने वाली नहीं हैं और इसके बाशिन्दों को कहीं और कूच करना नहीं है। इसमें हमेशा रहने वाला भी बूढ़ा नहीं होता है और इसके रहने वालों की फ़क़्र व फ़ाक़े से साबक़ा नहीं पड़ता है।

((( बाज़ औक़ात यह ख़याल पैदा होता है के जब जन्नत में हर नेमत का इन्तेज़ाम है और वहां की कोई ख़्वाहिश मुस्तर्द नहीं हो सकती है तो इन दरजात का फ़ायदा ही क्या है , पस्त मन्ज़िल वाला जैसे ही बलन्द मन्ज़िल की ख़्वाहिश करेगा वहां पहुंच जाएगा और यह सब दरजात बेकार होकर रह जाएंगे। लेकिन इसका वाज़ेअ सा जवाब यह है के जन्नत उन लोगो का मुक़ाम नहीं है जो अपनी मन्ज़िल न पहचानते हों और अपनी औक़ात से बलन्दतर जगह की हवस रखते हों। हवस का मक़ाम जहन्नम है जन्नत नहीं है। जननत वाले अपने मक़ामात को पहचानते हैं। यह और बात है के बलन्द मक़ामात वालों के ख़ादिम और नौकर हैं तो खि़दमत के सहारे दीगर नौकरों की तरह बलन्द मनाज़िल तक पहुंच जाएं जिसकी तरफ़ इमाम (अ 0) ने इशारा फ़रमाया है के “ हमारे शिया हमारे साथ जन्नत में हमारे दर्जे में होंगे। ” )))

86-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें सिफ़ाते ख़ालिक़ “ जल्ला जलालोहू ” का ज़िक्र किया गया है और फिर लोगों को तक़वा की नसीहत की गई है।)

बेशक! वह पोशीदा इसरार का आलिम और दिलों के राज़ों से बाख़बर है , उसे हर शै पर अहाता हासिल है और वह हर शै पर ग़ालिब है और ताक़त रखने वाला है।

-- मोअज़्मा-- तुम में से हर शख़्स का फ़र्ज़ है के मोहलत के दिनों में अमल करे क़ब्ल इसके के मौत हाएल हो जाए और फ़ुरसत के दिनों में काम करे क़ब्ल इसके के मशग़ूल हो जाए। अभी जबके सांस लेने का मौक़ा है क़ब्ल इसके के गला घोंट दिया जाए , अपने नफ़्स और अपनी मन्ज़िल के लिये सामान मुहय्या कर ले और इस कूच के घर से उस क़याम के घर के लिये ज़ादे राह फ़राहम कर ले।

लोगों! अल्लाह को याद रखो और उससे डरते रहो इस किताब के बारे में जिसका तुमको मुहाफ़िज़ बराया गया है और उन हुक़ूक़ के बारे में जिनका तुमको अमानतदार क़रार दिया गया है। इसलिये के उसने तुमको बेकार नहीं पैदा किया है और न महमिल छोड़ दिया है और न किसी जेहालत और तारीकी में रखा है। तुम्हारे आसार को बयान कर दिया है। आमाल को बता दिया है और मुद्दते हयात को लिख दिया है। वह किताब नाज़िल कर दी है जिसमें हर शै का बयान पाया जाता है और एक मुद्दत तक अपने पैग़म्बर को तुम्हारे दरम्यान रख चुका है। यहाँ तक के तुम्हारे लिये अपने इस दीन को कामिल कर दिया है जिसे इसने पसन्दीदा क़रार दिया है और तुम्हारे लिये पैग़म्बर (स 0) की ज़बान से उन तमाम आमाल को पहुंचा दिया है जिनको वह दोस्त रखता है या जिनसे नफ़रत करता है। अपने अम्र व नवाही को बता दिया है और दलाएल तुम्हारे सामने रख दिये हैं और हुज्जत तमाम कर दी है और डराने धमकाने का इन्तज़ामक र दिया है और अज़ाब के आने से पहले ही होशियार कर दिया है लेहाज़ा अब जितने दिन बाक़ी रह गए हैं उन्हीं में तदारूक कर लो और अपने नफ़्स को सब्र आमादा कर लो के यह दिन अय्यामे ग़फ़लत के मुक़ाबले में बहुत थोडे़ हैं जब तुमने मौअज़ सुनने का भी मौक़ा नहीं निकाला , ख़बरदार अपने नफ़्स आज़ाद मत छोड़ो वरना यह आज़ादी तुमको ज़ालिमों के रास्ते पर ले जाएगी और इसके साथ नरमी न बरतो वरना यह तुम्हें मुसीबतों में झोंक देगा।

बन्दगाने ख़ुदा! अपने नफ़्स का सबसे सच्चा मुख़लिस वही है जो परवरदिगार का सबसे बड़ा इताअत गुज़ार है और अपने नफ़्स से सबसे बड़ा ख़यानत करने वाला वह है जो अपने परवरदिगार का मासियतकार है। ख़सारे में वह है जो ख़ुद अपने नफ़्स करे घाटे में रखे और क़ाबिले रष्क वह है जिसका दीन सलामत रह जाए। नेक बख़्त वह है जो दूसरों के हालात से नसीहत हासिल कर ले और बदबख़्त वह है जो ख़्वाहेशात के धोके में आ जाए।

याद रखो के मुख़्तसर सा शाएबा रियाकारी भी एक तरह का शिर्क है और ख़्वाहिश परस्तों की सोहबत भी ईमान से ग़ाफ़िल बनाने वाली है और शैतान को अलबत्ता सामने लाने वाली है। झूट से परहेज़ करो के वह ईमान से किनाराकश रहता है। सच बोलने वाला हमेशा निजात और करामत के किनारे रहता है और झूट बोलने वाला हमेशा तबाही और ज़िल्लत के दहाने पर रहता है। ख़बरदार एक दूसरे से हसद न करना “ हसद ईमान को उस तरह खा जाता है जिस तरह आग सूखी लकड़ी को खा जाती है। ” और आपस में एक दूसरे से बुग़्ज़ न रखना के बुग़़्ज़ ईमान का सफ़ाया कर देता है याद रखो के ख़्वाहिश अक़्ल को भुला देती है और ज़िक्रे ख़ुदा से ग़ाफ़िल बना देती है। ख़्वाहिशात को झुटलाओ के यह सिर्फ़ धोका हैं और इनका साथ देने वाला एक फ़रेब ख़ोरदा इन्सान है और कुछ नहीं है।

((( जब चाहें अहले दुनिया की महफ़िलों का जाएज़ा लें। दुनिया भर की महमिल बातें , खेल कूद के तज़किरे , सियासत के तबसिरे , लोगों की ग़ीबत , पाकीज़ा लोगों पर तोहमत , ताश के पत्ते , शतरन्ज के मोहरे वग़ैरा नज़र आ जाएंगे तो क्या ऐसी महफ़िलों में मलाएका मुक़र्रबीन भी हाज़िर होंगे। यक़ीनन यह मक़ामात शयातीन और ईमान से ग़फ़लत के मराहेल हैं जिनसे इजतेनाब हर मुसलमान का फ़रीज़ा है और इसके बग़ैर तबाही के अलावा कुछ नहीं है।)))

87-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें मुत्तक़ीन और फ़ासेक़ीन के सिफ़ात का तज़किरा किया गया है और लोगों को तम्बीह की गई है)

बन्दगाने ख़ुदा! अल्लाह की निगाह में सबसे महबूब बन्दा वह है जिसकी ख़ुदा ने उसके नफ़्स के खि़लाफ़ मदद की है और उसने अन्दर लिबासे हुज़्न और बाहर ख़ौफ़ का लिबास पहन लिया है। (यानी अन्दोह व मलाल उसे चिमटा रहता है और ख़ौफ़ उस पर छाया रहता है) उसके दिल में हिदायत का चिराग़ रौशन है और उसने आने वाले दिन की मेहमानी का इन्तेज़ाम कर लिया है। अपने नफ़्स के लिये आने वाले बईद (मौत) को क़रीब कर लिया है और सख़्त मरहले को आसान कर लिया है , देखता है तो बसीरत व मारेफ़त पैदा की है और ख़ुदा को याद किया है तो अमल में कसरत पैदा की है। हिदायत के इस चश्मए शीरीं व ख़ुशगवार से सेराब हो गया है जिस के घाट पर (अल्लाह की रहनुमाई ने) वारिद होने को आसान बना दिया गया है , जिसके नतीजे में ख़ूब छक कर पी लेता है और सीधे रास्ते पर चल पड़ा है। ख़्वाहिशात के लिबास को जुदा कर दिया है और तमाम अफ़कार से आज़ाद हो गया है। सिर्फ़ एक फ़िक्रे आख़ेरत बाक़ी रह गई है जिसके ज़ेरे असर गुमराही की मन्ज़िल से निकल आया है और अहले हवा व हवस की शिरकत (हवस परस्तों की हवसरानियों) से दूर हो गया है। हिदायत के दरवाज़े की कलीद बन गया है और गुमराही के दरवाज़ों का क़फ़ल बन गया है। अपने रास्ते को देख लिया है और उसी पर चल पड़ा है। हिदायत के मिनारे को पहचान लिया है और गुमराहियों के धारे को तय कर लिया है। मज़बूत तरीन वसीले से वाबस्ता हो गया है और मोहकमतरीन रस्सी को पकड़ लिया है इसलिये के वह अपने यक़ीन में बिलकुल नूर आफताब जैसी रौशनी रखता है। अपने नफ़्स को बलन्दतरीन कामो की ख़ातिर राहे ख़ुदा में आमादा कर लिया है के हर आने वाले के मसले को हल कर देगा और फ़ुरूअ को उनकी असल की तरफ़ पलटा देगा। वह तारीकियों का चिराग़ है और अन्धेरों का रौशन करने वाला मुश्तबा बातों को हल करने वाला , उलझे हुए मसलों को सुलझाने वाला , मुश्किलात का दफ़ा करने वाला और फिर सहराओं में रहनुमाई करने वाला। वह बोलता है तो बात को समझा लेता है और चुप रहता है तो सलामती का बन्दोबस्त कर लेता है। उसने अल्लाह से इख़लास बरता है तो अल्लाह ने उसे अपना बन्द-ए मुख़लिस बना लिया है। अब वह दीने ख़ुदा का मअदन है और ज़मीने ख़ुदा का कारकुन आज़म। इसने अपने नफ़्स के लिये अद्ल को लाज़िम क़रार दे लिया है और इसके अद्ल की पहली मन्ज़िल यह है के ख़्वाहिशात को अपने नफ़्स से दूर कर दिया है और अब हक़ ही को बयान करता है और उसी पर अमल करता है। नेकी की कोई मन्ज़िल ऐसी नहीं है जिसका क़स्द न करता हूँ और कोई ऐसा एहतेमाल नहीं है जिसका इरादा न रखता हो। अपने कामो की ज़माम किताबे ख़ुदा के हवाले कर दी है और अब वही उसकी क़ायद और पेशवा है जहाँ इसका सामान उतरतर है वहीं वारिद हो जाता है और जहां इसकी मंज़िल होती है वहीं पड़ाव डाल देता है। इसके बरखि़लाफ़ एक शख़्स वह भी है जिसने अपना नाम आलिम रख लिया है हालांके इल्म से कोई वाबस्ता नहीं है। जाहिलों से जेहालत को हासिल किया है और गुमराहों से गुमराही को। लोगों के वास्ते धोका के फन्दे और मक्रो फ़रेब के जाल बिछा दिये हैं। किताब की तावील अपनी राय के मुताबिक़ की है और हक़ को अपने ख़्वाहिशात की तरफ़ मोड़ दिया है। लोगों को बड़े-बड़े जरायम की तरफ़ से महफ़ूज़ बनाता है और उनके लिये गुनाहाने कबीरा को भी आसान बना देता है। कहता यही है के मैं शुबहात के मवाक़े पर तवक़फ़ करता हूं लेकिन वाक़ेअन इन्हीं में गिर पड़ता है और फिर कहता है के मैं बिदअतों से अलग रहता हूं हालांके उन्हीं के दरमियान उठता बैठता है। इसकी सूरत इन्सानों जैसी है लेकिन दिल जानवरों जैसा है। न हिदायत के दरवाज़े को पहुंचता है के इसका इत्तेबाअ करे और न गुमराही के रास्ते को जानता है के इससे अलग रहे , यह दर हक़ीक़त एक चलती फिरती मय्यत है और कुछ नहीं है। तो आखि़र तुम लोग किधर जा रहे हो और तुम्हें किस सिम्त मोड़ा जा रहा है ? जबके निशानात क़ायम रहते हैं और आयात वाज़ेअ हैं। मिनारे नसब के लिये जा चुके हैं और तुम्हें भटकाया जा रहा है और तुम भटके जा रहे हो। देखो तुम्हारे दरम्यान तुम्हारे नबी की इतरत मौजूद है। यह सब हक़ के ज़मामदार दीन के परचम और सिदाक़त के तरजुमान हैं। उन्हें क़ुरआने करीम की बेहतरीन मन्ज़िल पर जगह दो और उनके पास इस तरह वारिद हो जिस तरह प्यासे ऊँट चश्मे पर वारिद होते हैं। लोगों! हज़रत ख़ातेमुन्नबीयीन (अ 0) के इस इरशादे गिरामी पर अमल करो के “ हमारा मरने वाला मय्यत नहीं होता है और हममें से कोई मुरदर ज़माने से बोसीदा नहीं होता है। ” ख़बरदार वह न कहो जो तुम नहीं जानते हो। इसलिये के बसाऔक़ात हक़ इसी में होता है जिसे तुम नहीं पहचानते हो और जिसके खि़लाफ़ तुम्हारे पास कोई दलील नहीं है उसके बहाने को क़ुबूल कर लो और वह मैं हुँ। क्या मैंने सिक़्ले अकबर क़ुरान पर अमल नहीं किया है और क्या सक़ले असग़र अहलेबैत (अ 0) को तुम्हारे दरम्यान नहीं रखा है। मैंने तुम्हारे दरम्यान ईमान के परचम को नस्ब कर दिया है और तुम्हें हलाल व हराम के हुदूद से आगाह कर दिया है। अपने अद्ल की बिना पर तुम्हें लिबास आफ़ियत बिछाना है और अपने क़ौलो फ़ेल की नेकियों को तुम्हारे लिये फर्श कर दिया है और तुम्हें अपने बलन्द तरीन अख़लाक़ का मन्ज़र दिखला दिया है। लेहाज़ा ख़बरदार जिस बात की गहराई तक निगाहें नहीं पहुंच सकती हैं और जहां तक फ़िक्र रसाई नहीं है इसमें अपनी राय को इस्तेमाल न करना।

ग़लतफ़हमी-(बनी उमय्या के मज़ालिम ने इस क़द्र दहशतज़दा बना दिया है के बाज़ लोग ख़याल कर रहे हैं के दुनिया बनी उमय्या के दामन से बान्धी दी गई है। उन्हीं को अपने फ़वाएद से फ़ैज़याब करेगी और वही इसके चश्मे पर वारिद होते रहेंगे और अब इस उम्मत के सर से उनके ताज़याने और तलवारें उठ नहीं सकती हैं। हालांके यह ख़याल बिलकुल ग़लत है। यह हुकूमत फ़क़त एक लज़ीज़ क़िस्म का आबे दहन है जिसे थोड़ी देर चूसेंगे और फिर ख़ुद ही थूक देंगे।)

88-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें लोगों की हलाकत के असबाब बयान किये गए हैं)

अम्माबाद! परवरदिगार ने किसी दौर के ज़ालिमों की कमर उस वक़्त तक नहीं तोड़ी है जब तक उन्हें मोहलत और ढील नहीं दे दी है और किसी क़ौम की टूटी हुई हड्डी को उस वक़्त तक जोड़ा नहीं है जब तक उसे मुसीबतों और बलाओं में मुब्तिला नहीं किया है। अपने लिये जिन मुसीबतों का तुमने सामना किया है और जिन हादेसात से तुम गुज़र चुके हो उन्हीं में सामाने इबरत मौजूद है। मगर मुश्किल यह है के हर दिल वाला अक़्लमन्द नहीं होता है और हर कान वाला समीअ या हर आंख वाला बसीर नहीं होता है। किस क़द्र हैरतअंगेज़ बात है और मैं किस तरह ताअज्जुब न करूं के यह तमाम फ़िरक़े अपने दीन के बारे में मुख़तलिफ़ दलाएल रखने के बावजूद सब ग़लती पर हैं के न नबी (स 0) के नक़्शे क़दम पर चलते हैं और न उनके आमाल की पैरवी करते हैं , न ग़ैब पर ईमान रखते हैं और न ग़ैब से से परहेज़ करते हैं। शुबहात पर अमल करते हैं और ख़्वाहिशात के रास्तों पर क़दम आगे बढ़ाते हैं। इनके नज़दीक मारूफ़ वही है जिसको यह नेकी समझें और मुनकिर वही है जिसका यह इनकार कर दें। मुश्किलात में इनका मरजा ख़ुद इनकी ज़ात है और मबहम मसाएल में इनका एतमाद सिर्फ़ अपनी राय पर है। गोया के इनमें का हर शख़्स अपने नफ़्स का इमाम है और अपनी हर राय को मुस्तहकम वसाएल और मज़बूत दलाएल का नतीजा समझता है।

89-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(रसूले अकरम (स 0) और तबलीग़े इमाम के बारे में)

अल्लाह ने उन्हें उस दौर में भेजा जब रसूलों का सिलसिला मौक़ूफ़ और उम्मतें ख़्वाबे ग़फ़लत में पड़ी हुई थीं। फ़ितने सर उठाए हुए थे और जुमला कामो में एक इन्तेशार की कैफ़ियत थी और जंग के शोले भड़क रहे थे। दुनिया की रोशनी कजलाई हुई थी और उसका फ़रेब वाज़ेह था। बाग़े ज़िन्दगी के पत्ते ज़र्द हो गए थे और समराते हयात से मायूसी पैदा हो चली थी , पानी भी तहनशीन हो चुका था और हिदायत के मिनारे भी मिट गए थे और हलाकत के निशानात भी नुमायां थे। यह दुनिया अपने अहल को सख्त निगाहो से देख रही थी और अपने तलबगारों के सामने मुंह बिगाड़ कर पेश आ रही थी। इसका समरा फ़ितना था और इसकी ग़िज़ा मुरदार। इसका अन्दरूनी लिबास ख़ौफ़ था और बैरूनी लिबास तलवार। लेहाज़ा बन्दगाने ख़ुदा तुम इबरत हासिल करो और उन हालात को याद करो जिनमें तुम्हारे बाप दादा और भाई बन्दे गिरफ़्तार हैं और इनका हिसाब दे रहे हैं। मेरी जान की क़सम- अभी इनके और तुम्हारे दरम्यान ज़्यादा ज़माना नहीं गुज़रा है और न सदियों का फ़ासला हुआ है और न आज का दिन कल के दिन से ज़्यादा दूर है जब तुम उन्हीं बुज़ुर्गों के सल्ब में थे।

ख़ुदा की क़सम रसूले अकरम (स 0) ने तुम्हें कोई ऐसी बात नहीं सुनाई है जिसे आज मैं नहीं सुना रहा हूँ और तुम्हारे कान भी कल के कान से कम नहीं हैं और जिस तरह कल उन्होंने लोगों की आंखें खोल दी थीं और दिल बना दिये थे वैसे ही आज मैं भी तुम्हें वह सारी चीज़ें दे रहा हूँ और ख़ुदा गवाह है के तुम्हें कोई ऐसी चीज़ नहीं दिखलाई जा रही है जिससे तुम्हारे बुज़ुर्ग नावाक़िफ़ थे और न कोई ऐसी ख़ास बताई जा रही है जिससे वह महरूम रहे हों और देखो तुम पर एक मुसीबत नाज़िल हो गई है उस ऊंटनी के मानिन्द जिसकी नकेल झूल रही हो और जिसका तंग ढीला हो गया हो लेहाज़ा ख़बरदार तुम्हें पिछले फ़रेबख़र्दा लोगों की ज़िन्दगी धोके में न डाल दे के यह इश्क़े दुनिया एक फैला हुआ साया है जिसकी मुद्दत मुअय्यन है और फिर सिमट जाएगी।

90-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें माबूद के क़ेदम और उसकी मख़लूक़ात की अज़मत का तज़किरा करते हुए मोअज़ पर इख़्तेताम किया गया है।)

सारी तारीफ़ें उस अल्लाह के लिये हैं जो बग़ैर देखे मारूफ़ है और बग़ैर सोचे पैदा करने वाला है। वह हमेशा से क़ायम और दायम है जब न यह बुर्जों वाले आसमान थे और न बलन्द दरवाज़ों वाले हेजाबात , न अन्धेरी रात थी और न ठहरे हुए समन्दर , न लम्बे चैड़े रास्तों वाले पहाड़ थे और न टेढ़ी तिरछी पहाड़ी राहें , न बिछे हुए फर्श वाली ज़मीन थी और न किसी बल वाली मख़लूक़ात , वही मख़लूक़ात का ईजाद करने वाला है और वही आखि़र में सबका वारिस है। वही सबका माबूद है और सबका राज़िक़ है। शम्स व क़मर इसकी मर्ज़ी से मुसलसल हरकत में हैं के हर नए को पुराना कर देते हैं और हर बईद को क़रीबतर बना देते हैं। उसी ने सबके रिज़्क़ को तक़सीम किया है और सबके आसार व आमाल का अहसाए किया है। उसी ने हर एक की सांसों का शुमार किया है और हर एक की निगाह की ख़यानत और सीने के पीछे छुपे हुए इसरार और इसलाब व अरहाम में इनके मराकज़ का हिसाब रखता है यहाँ तक के वह अपनी आखि़री मन्ज़िल तक पहुंच जाएं। वही वह है जिसका ग़ज़ब दुश्मनों पर उसकी वुसअते रहमत के बावजूद शदीद है और उसकी रहमत इसके दोस्तों के लिये इसके शिद्दते ग़ज़ब के बावजूद वसीअ है जो इस पर ग़लबा पैदा करना चाहते हैं।उसके हक़ में क़ाहिर है और जो कोई इससे झगड़ा करना चाहे उसके हक़ में तबाह करने वाला है। हर मुख़ालेफ़त करने वाले का ज़लील करने वाला और हर दुश्मनी करने वाले पर ग़ालिब आने वाला है। जो इस पर तवक्कल करता है उसके लिये काफ़ी हो जाता है और जो उससे सवाल करता है उसे अता कर देता है। जो उसे क़र्ज़ देता है उसे अदा कर देता है और जो इसका शुक्रिया अदा करता है उसको जज़ा देता है।

बन्दगाने ख़ुदा , अपने आप को तौल लो , क़ब्ल इसके के तुम्हारा वज़न किया जाए और अपने नफ़्स का मुहासेबा कर लो क़ब्ल इसके के तुम्हारा हिसाब कर लिया जाए। गले का फन्दा तंग होने से पहले सांस ले लो और ज़बरदस्ती ले जाए जाने से पहले अज़ ख़ुद जाने के लिये तैयार हो जाओ और याद रखो के जो शख़्स ख़ुद अपने नफ़्स की मदद करके उसे नसीहत और तम्बीह नहीं करता है उसको कोई दूसरा न नसीहत कर सकता है अैर न तम्बीह कर सकता है।

((( यूँ तो परवरदिगार की किसी सिफ़त और उसके किसी कमाल में इसका कोई मिस्लो नज़ीर या शरीक व वज़ीर नहीं है लेकिन इन्सानी ज़िन्दगी के लिये ख़ुसूसियत के साथ यह चार सिफ़ात इन्तेहाई अहम हैं:

1. वह अपने ऊपर एतमाद करने वालों के लिये काफ़ी हो जाता है और उन्हें दूसरों का दोस्त निगर नहीं बनने देता है।

2. वह हर सवाल करने वाले को अता करता है और किसी तरह की तफ़रीक़ का क़ायल नहीं है बल्कि हक़ीक़त यह है के सवाल न करने वालों को भी अता करता है।

3. वह हर क़र्ज़ को अदा कर देता है हालांके हर क़र्ज़ देने वाला उसी के दिये हुए माल में से क़र्ज़ देता है और उसी की राह में ख़र्च करता है।

4. वह शुक्रिया अदा करने वालों को भी इनाम देता है जबके वह अपने फ़रीज़े को अदा करते हैं और कोई नया कारे ख़ैर अन्जाम नहीं देते हैं। यह और बात है के उन लोगों को भी इस बात का ख़याल रखना चाहिए के इस बात का शुक्रिया न अदा करें के हमें दिया है और “ दूसरों को नहीं दिया है ” के यह इसके करम की तौहीन है शुक्रिया यह नहीं है। शुक्रिया इस बात का है के हमें यह नेमत दी है। अगरचे दूसरों को भी मसलहत के मुताबिक़ दूसरी नेमतों से नवाज़ा है।)))

91-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(इस ख़ुतबे को ख़ुत्बए अष्बाह कहा जाता है जिसे आपके जलील तरीन ख़ुतबात में शुमार किया जाता है)

( मेदा बिन सिदक़ा ने इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0) से रिवायत की है के अमीरूल मोमेनीन (अ 0) ने यह ख़ुत्बा मिम्बरे कूफ़ा से उस वक़्त इरशाद फ़रमाया था जब एक शख़्स ने आपसे यह तक़ाज़ा किया के परवरदिगार के औसाफ़ इस तरह बयान करें के गोया वह हमारी निगाह के सामने है ताके हमारी मारेफ़त और मोहब्बते इलाही में इज़ाफ़ा हो जाए। आपको इस बात पर ग़ुस्सा आ गया और आपने नमाज़े जमाअत का एलान फ़रमा दिया। मस्जिद मुसलमानों से छलक उठी तो आप मिम्बर पर तशरीफ़ ले गए और इस आलम में ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया के आपके चेहरे का रंग बदला हुआ था और ग़ैज़ व ग़ज़ब के आसार नमूदार थे। हम्द व सनाए इलाही और सलवात के बाद इरशाद फ़रमाया।)

सारी तारीफ़ उस परवरदिगार के लिये है जिसके ख़ज़ाने में फ़ज़्लो करम के रोक देने और अताओं के मुन्जमिद कर देने से इज़ाफ़ा नहीं होता है और जूदो करम के तसलसुल से कमी नहीं आती है। इसलिये के उसके अलावा हर अता करने वाले के यहां कमी हो जाती है और उसके मा सेवा हर न देने वाला क़ाबिले मज़म्मत होता है। वह मुफ़ीदतरीन नेमतों और मुसलसल रोज़ियों के ज़रिये एहसान करने वाला है। मख़लूक़ात उसकी ज़िम्मेदारी में हैं और उसने सबके रिज़्क़ की ज़मानत दी है और रोज़ी मुअय्यन कर दी है। अपनी तरफ़ तवज्जो करने वालों और अपने अताया के साएलों के लिये रास्ता खोल दिया है और मांगने वालों को न मांगने वालों से ज़्यादा अता नहीं करता है। वह ऐसा अव्वल है जिसकी कोई इब्तेदा नहीं है के उससे पहले कोई हो जाए और ऐसा आखि़र है जिसकी कोई इन्तेहा नहीं है के उसके बाद कोई रह जाए। वह आँखों की बीनाई को अपनी ज़ात तक पहुँचने और उसका इदराक करने से रोके हुए है। उस पर ज़माना असर अन्दाज़ नहीं होता है के हालात बदल जाएं और वह किसी मकान में नहीं है के वहां से मुन्तक़िल हो सके अगर वह उन तमाम जवाहरात को अता कर दे जो पहाड़ों के मअदन अपनी साँसों से बाहर निकालते हैं या जिन्हें समन्दर के सदफ़ मकराकर बाहर फेंक देते हैं , याहे वह चान्दी हो या सोना , मोती हों या मरजान , तो भी उसके करम पर कोई असर न पड़ेगा और न उसके ख़ज़ानों की वुसअत में कोई कमी आ सकती है और उसके पास नेमतों के वह ख़ज़ाने रह जाएंगे जिन्हें मांगने वालों के मुतालबात ख़त्म नहीं कर सकते हैं। इसलिये के वह ऐसा जवाद व करीम है के न साएलों के सवाल इसके यहाँ कमी पैदा कर सकता है और न मुफ़लिसों का इसरार उसे बख़ील बना सकता है।

क़ुराने मजीद में सिफ़ाते परवरदिगार

सिफ़ाते ख़ुदा के बारे में सवाल करने वालों! क़ुरआन मजीद ने जिन सिफ़ात की निशानदेही की है उन्हीं का इत्तेबाअ करो।

((( इसका मतलब यह नहीं है के क़ुराने मजीद ने जितने सिफ़ात बयान कर दिये हैं उनके अलावा दीगर इस्माअ व सिफ़ात का इतलाक़ नहीं हो सकता है के बाज़ ओलमाए इस्लाम का ख़याल है के इस्माए इलायिा तोक़ीफ़िया हैं और नुसूसे आयात व रिवायात के बग़ैर किसी नाम या सिफ़त का इतलाक़ जाएज़ नहीं है। बल्कि इस इरशाद का वाज़ेअ सा मफ़हूम यह है के जिन सिफ़ात की क़ुरआने करीम ने नफ़ी कर दी है उनका इतलाक़ जाएज़ नहीं है चाहे किसी ज़बान और किसी लम्हे में क्यों न हो।)))

उसी के नूरे हिदायत से रोशनी हासिल करो आर जिस इल्म की तरफ़ शैतान मुतवज्जो करे और उसका कोई फ़रीज़ा न किताबे इलाही में मौजूद हो , न सुन्नते पैग़म्बर (स 0) आर इरशादाते आइम्माए हुदा में तो इसका इल्म परवरदिगार के हवाले कर दो के यही उसके हक़ की आखि़री हद है और यह याद रखो के “ असख़ून फ़िलइल्म ” वही अफ़राद हैं जिन्हें ग़ैबे इलाही के सामने पड़े हुए परदों के अन्दर वराना दाखि़ल होने से इस अम्र ने बेनियाज़ बना दिया है। वह इस पोशीदा ग़ैब का इजमाली इक़रार रखते हैं और परवरदिगार ने उनके इसी जज़्बे की तारीफ़ की है के जिस चीज़ को उनका इल्म अहाता नहीं कर सकता उसके बारे में अपनी आजिज़ी का इक़रार कर लेते हैं और इसी सिफ़त को उसने रूसूख़ से ताबीर किया है के जिस बात की तहक़ीक़ उनके बस में नहीं है उसकी गहराइयों में जाने का ख़याल नहीं रखते हैं। तुम भी इसी बात पर इकतेफ़ा करो और अपनी अक़्ल के मुताबिक़ अज़मते इलाही का अन्दाज़ा न करो के हलाक होने वालों में शुमार जो जाओ। देखो वह ऐसा क़ादिर है के जब फ़िक्रें उसकी क़ुदरत की इन्तेहा मालूम करने के लिये आगे बढ़ती हैं और हर तरह के वसवसे से पाकीज़ा ख़याल उसकी सलतनत के पोशीदा इसरार को अपनी ज़द में लाना चाहता है और दिल वालेहाना तौर पर इसके सिफ़ात की कैफ़ियत मालूम करने की तरफ़ मुतवज्जो करते हैं और अक़्ल की राहें इसकी ज़ात का इल्म हासिल करने के लिये सिफ़ात की रसाई से आगे बढ़ना चाहती हैं तो वह उन्हें इस आलम में वापस कर देता है के वह आलमे ग़ैब की गहराइयों की राहें तय कर रही होती हैं और मुकम्मल तौर पर इसकी तरफ़ मुतवज्जो होती हैं जिसके नतीजे में अक़्लें इस एतराफ़ के साथ पलट आती हैं के ग़लत फ़िक्रों से उसकी मारेफ़त की हक़ीक़त का इदराक नहीं हो सकता है और साहेबाने फ़िक्र के दिलों में उसके जलाल व इज़्ज़त का एक शम्मा भी ख़तूर नहीं कर सकता है। उसने मख़लूक़ात को बग़ैर किसी नमूने को निगाह में रखे हुए ईजाद किया है और किसी मासबक़ के ख़ालिक़ व माबूद के नक़शे के बग़ैर पैदा किया है। उसने अपनी क़ुदरत के इख़्तेयारात , अपनी हिकमत के मुंह बोलते आसार और मख़लूक़ात के लिये इसके सहारे की एहतेयाज के इक़रार के ज़रिये इस हक़भ्क़त को बे नक़ाब कर दिया है के हम उसकी मारेफ़त पर दलील क़ायम होने का इक़रार कर लें के जिन जदीदतरीन अशया को उसके आसारे सनअत ने ईजाद किया है और निशानहाए हिकमत ने पैदा किया है वह सब बिलकुल वाज़ेअ है और हर मख़लूक़ उसके वजूद के लिये एक मुसतक़िल हुज्जत और दलील है के अगर वह ख़ामोश भी है तो उसकी तदबीर बोल रही है और उसकी दलालत ईजाद करने वाले पर क़ायम है। ख़ुदाया- मैं गवाही देता हूं के जिसने भी तेरी मख़लूक़ात के आज़ा के इख़्तेलाफ़ और इनके जोड़ों के सरों के मिलने से तेरी हिकमत की तदबीर के लिये तेरी शबीह क़रार दिया। ((( इन्सान की ग़फ़लत की आखि़री हद यह है के वह जूद व हिकमते इलाही की दलील तलाश कर रहा है जबके उसने अदना तामल से काम लिया होता तो उसे अन्दाज़ा हो जाता के जिस निगाह से आसारे क़ुदरत को तलाश कर रहा है और जिस दिमाग़ से दलाएले हिकमत की जुस्तजू कर रहा है यह दोनों अपनी ज़बान बे ज़बानी से आवाज़ दे रहे हैं के अगर कोई ख़ालिक़े हकीम और सानेअ करीम न होता तो हमारा वजूद भी न होता। हम उसकी अज़मत व हिकमत के बेहतरन गवाह हैं। हमारे होते हुए दलाएले हिकमत व अज़मत का तलाश करना बग़ल में कटोरा रखकर शहर में ढिन्डोरा पीटने के मतरादिफ़ है और यह कारे अक़्लन नहीं है।)))

इसने अपने ज़मीर के ग़ैब को तेरी मारेफ़त से वाबस्ता नहीं किया और इसके दिल में यह यक़ीन पेवस्त नहीं हुआ के तेरा कोई मिस्ल नहीं है और गोया इसने यह पैग़ाम नहीं सुना के एक दिन मुरीद अपने पीरो मुरशद से यह कहकर बेज़ारी करेंगे के “ बख़ुदा हम खुली हुई गुमराही में थे जब तुमको रब्बुलआलमीन के बराबर क़रार दे रहे थे , बेशक तेरे बराबर क़रार देने वाले झूटे हैं के उन्होंने तुझे अपने अस्नाम से तशबीह दी है और अपने औहाम की बिना पर तुझे मख़लूक़ात का हुलिया अता कर दिया है और अपने ख़यालात की बिना पर मुजस्समों की तरह तेरे टुकड़े-टुकड़े कर दिये हैं और अपनी अक़्लों की सूझ बूझ से तुझे मुख़्तलिफ़ ताक़तों वाली मख़लूक़ात के पैमाने पर नाप तोल दिया है। मैं इस बात की गवाही देता हूँ के जिसने भी तुझे किसी के बराबर क़रार दिया उसने तेरा हमसर बना दिया और जिसने तेरा हमसर बना दिया उसने आयाते मोहकमात की तन्ज़ील का इन्कार कर दिया है और वाज़ेतरीन दलाएल के बयानात को झुटला दिया है। बेशक तू वह ख़ुदा हैजो अक़्लों की हुदूद में नहीं आ सकता है के उफ़कार की रवानी में कैफ़ियों की ज़द में आजाए और न ग़ौर व फ़िक्र की जूलानियों में समा सकता है के महदूद और तसरेफ़ात का पाबन्द हो जाए।

एक दूसरा हिस्सा

मालिक ने हर मख़लूक़ की मिक़दार मुअय्यन की है और मोहकमतरीन मोअय्यन की है औश्र हर एक की तदबीर की है और लतीफ़ तरीन तदबीर की है। हर एक को एक रूख़ पर लगा दिया है तो उसने अपनी मन्ज़ेलत के हुदूद से तजावुज़ भी नहीं किया है और इन्तेहा तक पहुँचने में कोताही भी नहीं की है और मालिक के इरादे पर चलने का हुक्म दे दिया गया तो इससे सरताबी भी नहीं की है और यह मुमकिन भी कैसे था जबके सब इस मशीअत से मन्ज़रे आम पर आए हैं। वह तमाम अशयाअ का ईजाद करने वाला है बग़ैर इसके के फ़िक्र की जूलानियों की तरफ़ रूजूअ करे या तबीअत की दाखि़ली रवानी का सहारा ले या हवादिस ज़माने के तजुर्बात से फ़ाएदा उठाए या अजीब व ग़रीब मख़लूक़ात के बनाने में किसी शरीक की मदद का मोहताज हो।

उसकी मख़लूक़ात उसके अम्र से तमाम हुई है और इसकी इताअत में सर ब सुजूद है। इसकी दावत पर लब्बैक कहती है और इस राह में न देर करने वाले की सुस्ती का शिकार होती है और न हील व हुज्जत करने वाले की ढील में मुब्तिला होती है। उसने अशयाअ की कजी को सीधा रखा है। उनके हुदूद को मुक़र्रर कर दिया है। अपनी क़ुदरत से उनके मोतज़ाद अनासिर में तनासब पैदा कर दिया है और नफ़्स व बदन का रिश्ता जोड़ दिया है। उन्हें हुदूद व मक़ादीर तबाएअ व हसयात की मुख़तलिफ़ जिन्सों में तक़सीम कर दिया है। यह नौईजाद मख़लूक़ है जिसकी सनअत मुस्तहकम रखी है और इसकी फ़ितरत व खि़लक़त को अपने इरादे के मुताबिक़ रखा है।

कुछ आसमान के बारे में

उसने बग़ैर किसी चीज़ से वाबस्ता किये आसमानों के नशेब व फ़राज़ को मुनज़्ज़म कर दिया है और उसके शिगाफ़ों को मिला दिया है और उन्हें आपस में एक दूसरे के साथ जकड़ दिया है और इसका हुक्म लेकर उतरने वाले बन्दों के आमाल को लेकर जाने वाले फ़रिश्तो के लिये बलन्दी की ना-हमवारियों को हमवार कर दिया है। अभी यह आसमान धुएं की शक्ल में थे के मालिक ने उन्हें आवाज़ दी और उनके तस्मों के रिश्ते आपस में जुड़ गए और उनके दरवाज़े बन्द रहने के बाद खुल गए। फिर उसने इनके सूरूाख़ों पर टूटते हुए सितारों के निगेहबान खड़े कर दिये और अपने दस्ते क़ुदरत से इस अम्र से रोक दिया के हवा के फैलाव में इधर उधर चले जाएं। उन्हें हुक्म दिया के इसके हुक्म के सामने सरापा तस्लीम खड़े रहें। इनके आफ़ताब को दिन के लिये रौशन निशानी और माहताब को रात की धुन्धली निशानी क़रार दे दिया और दोनों को उनके बहाव की मन्ज़िल पर डाल दिया है और उनकी गुज़रगाहों में रफ़तार की मिक़दार मुअय्यन कर दी है ताके उनके ज़रिये दिन और रात का इम्तेयाज़ क़ायम हो सके और इनकी मिक़दार से साल वग़ैरह का हिसाब किया जा सके। फिर फ़िज़ाए बसीत में सबके मराद मअल्लक़ कर दिये और उनसे इस ज़ीनत को वाबस्ता कर दिया जो छोटे-छोटे तारों और बड़े-बड़े सितारों के चिराग़ों से पैरा हुई थी। आवाज़ों के चुराने वालों के लिये टूटते तारों से संगसार का इन्तेज़ाम कर दिया और उन्हें भी अपने जब्र व क़हर की राहों पर लगा दिया के जो साबित हैं वह साबित रहें , जो सयार हैं व सयार रहें। बलन्द व पस्त नेक व बद सब उसी की मर्ज़ी के ताबे रहें।

औसाफ़े मलाएका का हिस्सा

इसके बाद उसने आसमानों को आबाद करने और अपनी सलतनत के बलन्दतरीन तबक़े को बसाने के लिये मलाएका जैसी अनोखी मख़लूक़ को पैदा किया और उनसे आसमानी रास्तों के शिगाफ़ों को पुर कर दिया और फ़िज़ा की पिनहाइयों को मामूर कर दिया। उन्हें शिगाफ़ों के दरम्यान तस्बीह करने वाले फ़रिश्तो की आवाज़े क़ुद्स की चारदीवारी , अज़मत के हेजाबात , बुज़ुर्गी के सरा पर्दों के पीछे गून्ज रही हैं और इस गूंज के पीछे जिससे कान के परदे फट जाते हैं , नूर की वह तजल्लियां हैं जो निगाहों को वहां तक पहुंचतने से रोक देती हैं और नाकाम होकर अपनी हदों पर ठहर जाती हैं। उसने फ़रिश्तो को मुख़्तलिफ़ शक्लों और अलग-अलग पैमानों के मुताबिक़ पैदा किया है। उन्हें बाल व पर इनायत किये हैं और वह उसके जलाल व इज़्ज़त की तस्बीह में मसरूफ़ हैं। मख़लूक़ात में इसकी नुमायां सनअत को अपनी तरफ़ मन्सूब नहीं करते हैं।

((( वाज़े रहे के मलाएका और जिन्नात का मसला ग़ैबियात से ताल्लुक़ रखता है और इसका इल्म दुनिया के आम वसाएल के ज़रिये मुमकिन नहीं है। क़ुराने मजीद ने ईमान के लिये ग़ैब के इक़रार को शर्ते इसासी क़रार दिया है लेहाज़ा इस मसले का ताल्लुक़ सिर्फ़ साहेबाने ईमान से है। दीगर अफ़राद के लिये दीगर इरशादात इमाम (अ 0) से इस्तेफ़ाज़ा किया जा सकता है। लेकिन इतनी बात तो बहरहाल वाज़े हो चुकी है के आसमानों के अन्दर आबादियां पाई जाती हैं और यहां के अफ़राद का वहां ज़िन्दा न रह सकना इस बात की दलील नहीं है के वहां के बाशिन्दे भी ज़िन्दा न रह सकें। मालिक ने हर जगह के बाशिन्दे में वहां के एतबार से सलाहियते हयात रखी है और उसे सामाने ज़िन्दगी इनायत फ़रमाया है। इमाम सादिक़ (अ 0) का इरशादे गिरामी है के परवरदिगार आलम ने दस लाख आलम पैदा किये हैं और दस लाख आदम और हमारी ज़मीन के बाशिन्दे आखि़री आदम की औलाद में हैं। (अलहय्यता वल इस्लाम शहरस्तानी) )))

और किसी चीज़ की तख़लीक़ का दावा नहीं करते हैं , “ यह अल्लाह के मोहतरम बन्दे हैं जो उस पर किसी बात में सबक़त नहीं करते हैं और उसी के हुक्म के मुताबिक़ अमल कर रहे हैं। ” अल्लाह ने उन्हें अपनी वही का अमीन बनाया है और मुरसलीन की तरफ़ अम्र व नहीं की अमानतों का हामिल क़रार दिया है। उन्हें शुकूक व शुबहात से महफ़ूज़ रखा है के कोई भी इसकी मज़ी की राह से इन्हेराफ़ करने वाला नहीं है। सबको अपनी कारआमद इमदाद से नवाज़ा है और सबके दिल में आजिज़ी और शिकस्तगी की तवाज़अ पैदा कर दी है। उनके लिये अपनी तमजीद की सहूलत के दरवाज़े खोल दिये हैं और तौहीद की निशानियों के लिये वाज़े मिनारे क़ायम कर दिये हैं। इनपर गुनाहों का बोझ भी नहीं है और उन्हें शबो रोज़ की गरदिशे अपने इरादों पर चला भी नहीं सकती हैं। शुकूक व शुबहात उनके मुस्तहकम ईमान को अपने ख़यालात के तीरों का निशाना भी नहीं बना सकते हैं और वहम व गुमान इनके यक़ीन की पुख़्तगी पर हमलावर भी नहीं हो सकते हैं। इनके दरम्यान हसद की चिंगारी भी नहीं भड़कती है और हैरत व इस्तेजाब इनके ज़मीरों की मारेफ़त को सल्ब भी नहीं कर सकते हैं और इनके सीनों में छिपे हुए अज़मत व हैबत व जलालते इलाही के ज़ख़ीरों को छीन भी नहीं सकते हैं और वसवसों ने कभी यह सोचा भी नहीं है के इनकी फ़िक्र को ज़ंगआलूद बना दें। उनमें बाज़ वह हैं जिन्हें बोझिल बादलों , बलन्दतरीन पहाड़ों और तारीकतरीन ज़ुल्मतों के पर्दों में रखा गया है और बाज़ वह हैं जिनके पैरों ने ज़मीन के आखि़री तबक़े को पारा कर दिया है और वह इन सफ़ेद परचमों जैसे हैं जो फ़िज़ा की वुसअतों को चीरकर बाहर निकल गए हों। जिनके नीचे एक हल्की हवा हो जो उन्हें उनकी हदों पर रोके रहे। उन्हें इबादत की मशग़ूलियत ने हर चीज़ से बेफिक्र बना दिया है और ईमान के हक़ाएक़ ने उनके और मारेफ़त के दरम्यान गहरा राब्ता पैदा कर दिया है और यक़ीने कामिल ने हर चीज़ से रिश्ता तोड़कर उन्हें मालिक की तरफ़ मुशताक बना दिया है इनकी रग़बतें मालिक की नेमतों से हट कर किसी और की तरफ़ नहीं हैं के उन्होंने मारेफ़त की हेलावत का मज़ा चख लिया है और मोहब्बत के सेराब करने वाले जाम से सरशार हो गए हैं।

((( बाज़ ओलमा ने इसकी यह तावील की है के मलाएका का इल्म ज़मीन व आसमान के तमाम तबक़ात को महीत है लेकिन बज़ाहिर इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। जब इनका जिस्म नूरानी है और इसपर माद्दियात का दबाव नहीं है तो इनका जिस्म लतीफ़ माद्दियात के तमाम हुदूद को तोड़ सकता है और इसमें कोई बात खि़लाफ़े अक़्ल नहीं है। नूरानियत में मुख़तलिफ़ इश्काल इख़्तेयार करने की सलाहियत पाई जाती है और वह मुख़्तलिफ़ सूरतों में सामने आ सकते हैं।

मलाएका के नूरानी इजसाम की वुसअत हैरतअंगेज़ नहीं है। वह ज़मीन की आखि़री तह से आसमान की आख़ेरी बलन्दी तक अहाता कर सकते हैं। हैरतअंगेज़ उस किसाए यमानी की वुसअत है जिसमें इस गिरोहे मलाएका का सरदार भी समा जाता है और चादर की वुसअत पर कोई असर नहीं पड़ता है।

ज़ाहिर है के ज़िन्दगी में दुनिया के मसाएल तिजारत व ज़राअत , मुलाज़ेमत व सनअत और रिश्ते व क़राबत शामिल न हों। उससे ज़्यादा इबादत कौन कर सकता है और उससे ज़्यादा इबादत को कौन वक़्त दे सकता है। यह और बात है के बाज़ अल्लाह के बन्दे ऐसे भी हैं जिनकी ज़िन्दगी में ज़राअत भी है और तिजारत भी। सनअत भी है और सियासत भी , रिश्ता भी है और क़राबत भी , लेकिन इसके बावजूद इतनी इबादत करते हैं के मलक को आराम करने का हुक्म देना पड़ता है और उनकी एक ज़रबत इबादते सक़लैन पर भारी हो जाती है या वह एक नीन्द से मर्ज़ीए माबूद का सौदा कर लेते हैं।)))

और उनके दिलों की तह में उसका ख़ौफ़ जड़ पकड़ चुका है जिसकी बिना पर उन्होंने मुसलसल इताअत से अपनी सीधी कमरों को ख़मीदा बना लिया है और तूले रग़बत के बावजूद उनके तज़्रेअ वज़ारी का ख़ज़ाना ख़त्म नहीं हुआ है और न कमाले तक़र्रब के बावजूद इनके खुशु की रस्सियां ढीली हुई हैं और न ख़ुदपसन्दी ने इन पर ग़लबा हासिल किया है के वह अपने गुज़िश्ता आमाल को ज़्यादा तसव्वुर करने लगें और न जलाले इलाही के सामने इनके इन्केसार ने कोई गुन्जाइश छोड़ी है के वह अपनी नेकियों को बड़ा ख़याल करने लगें। मुसलसल ताब के बावजूद उन्होंने सुस्ती को रास्ता नहीं दिया और न इनकी रग़बत में कोई कमी वाक़ेअ हुई है के वह मालिक से उम्मीद के रास्ते को तर्क कर दें। मुसलसल मुनाजातों ने इनकी नोके ज़बान को ख़ुश्क नहीं बनाया और न मसरूफ़ियात ने इन पर क़ाबू पा लिया है के इनकी मुनाजात की ख़ुफ़िया आवाज़ें मुनक़ता हो जाएं। न मक़ामाते इताअत में इनके शाने आगे पीछे होते हैं और न तामीले एहकामे इलाहिया में कोताही की बिना पर इनकी गरदन किसी तरफ़ मुड़ जाती है। इनकी कोशिशो के अज़ाएम पर न ग़फ़लतों की नादानियों का हमला होता है और न ख़्वाहिशात की फ़रेबकारियां इनकी हिम्मतों को अपना निशाना बनाती हैं। उन्होंने अपने मालिक साहबे अर्ष को रोज़े फ़क्ऱो फ़ाक़ा के लिये ज़ख़ीरा बना लिया है और जब लोग दूसरी मख़लूक़ात की तरफ़ मुतवज्जो हो जाते हैं तो वह इसी को अपना हदफ़े निगाह बनाए रखते हैं। यह इबादत की इन्तेहा को नहीं पहुँच सकते हैं लेहाज़ा इनका इताअत का वालहाना ज़ज़्बा किसी और तरफ़ ले जाने के बजाये सिर्फ़ उम्मीद व बीम के नाक़ाबिले इख़्तेताम ज़ख़ीरों ही की तरफ़ ले जाता है। इनके लिये ख़ौफ़े ख़ुदा के असबाब मुनक़ता नहीं हुए हैं के इनकी कोशिशो में सुस्ती पैदा करा दें और न उन्हें ख़्वाहिशात ने क़ैदी बनाया है के वक़्ती कोशिशो को अबदी सई पर मुक़ददम कर दें। यह अपने गुज़िश्ता आमाल को बुरा ख़याल नहीं करते हैं के अगर ऐसा होता तो अब तक उम्मीदें ख़ौफ़े ख़ुदा को फ़ना कर देतीं। उन्होंने शैतानी ग़लबे की बुनियाद पर परवरदिगार के बारे में आपस में कोई इख़्तेलाफ़ भी नहीं किया है और न एक दूसरे से बिगाड़ने इनके दरम्यान इफ़तेराक़ पैदा किया है। न इन पर हसद का कीना ग़ालिब आता है और न वह शुकूक की बिना पर आपस में एक दूसरे से अलग हुए हैं।

((( किरदार का कमाल यही है के इन्सानी ज़िन्दगी में न उम्मीद ख़ौफ़ पर ग़ालिब आने पाए और न क़ुरबत का एहसास ख़ुज़ू व खुशु के जज़्बे को मजरूअ बना दे। मौलाए कायनात (अ 0) ने इस हक़ीक़त का इज़हार मलाएका के कमाल के ज़ैल में फ़रमाया है लेकिन मक़सद यही है के इन्सान इस सूरते हाल से इबरत हासिल करे और अशरफ़ुल मख़लूक़ात होने का दावेदार है तो किरदार में भी दूसरी मख़लूक़ात के मुक़ाबले में अशरफ़ीयत का मुज़ाहेरा करे वरना दावाए बे दलील किसी मन्तिक़ में क़ाबिले क़ुबूल नहीं होता है। इन्सान जब अपने ज़ाती आमाल का मुवाज़ना बहुत से दूसरे अफ़राद से करता है तो इसमें ग़ुरूर पैदा होने लगता है के इसकी नमाज़ें , इबादतें या इसके माल का रहाए ख़ैर दूसरे अफ़राद से ज़्यादा हैं लेकिन जब इनका मुवाज़ना करमे परवरदिगार और जलाले इलाही से करता है तो यह सारे आमाल हैच नज़र आने लगते हैं। मौलाए कायनात ने इसी नुक्ते की तरफ़ मुतवज्जो किया है के अपने अमल का मुवाज़ना दूसरे अफ़राद के आमाल से न करो। मवाज़ना करने का शौक़ है तो करमे इलाही और जलाले परवरदिगार से करो ताके तुम्हें अपनी औक़ात का सही अन्दाज़ा हो जाए और शैतान तुम्हारे ऊपर ग़ालिब न आने पाए।)))

और न पस्त हिम्मतों ने इन्हें एक-दूसरे से जुदा किया है। यह ईमान के वह क़ैदी हैं जिनकी गरदनों को कजी , इन्हेराफ़ , सुस्ती , फ़ितूर , कोई चीज़ आज़ाद नहीं करा सकती है। फ़ज़ाए आसमान में एक खाल के बराबर भी ऐसी जगह नहीं है जहां कोई फ़रिश्ता सजदा गुज़ार या दौड़ धूप करने वाला न हो। यह तूले इताअत से अपने रब की मारेफ़त में इज़ाफ़ा ही करते हैं और इनके दिलों में उसकी अज़मत व जलालत बढ़ती ही जाती है।

ज़मीन और उसके पानी पर फर्श होने की तफ़सीलात

इसने ज़मीन को तहो बाला होने वाली मौजों और अथाह समन्दर की गहराइयों के ऊपर क़ायम किया है जहां मौजों का तलातुम था और एक दूसरे को ढकेलने वाली लहरें टकरा रही थीं। इनका फेन ऐसा ही था जैसे हैजान ज़दा ऊँट का झाग। मगर इस तूफ़ान को तलातुमख़ेज़ पानी के बोझ ने दबा दिया और इसके जोश व ख़रोश को अपना सीना टेक कर साकिन बना दिया और अपने शाने टिका कर इस तरह दबा दिया के वह ज़िल्लत व ख़्वारी के साथ राम हो गया अब वह पानी मौजों की घड़घराहट के बाद साकित और मग़लूब हो गया और ज़िल्लत की लगाम में असीर व मोतीअ हो गया और ज़मीन भी तूफ़ानख़ेज़ पानी की सतह पर दामन फैलाकर बैठ गई थी के इसने इठलाने , सर उठाने , नाक चिढ़ाने जोश दिखाने का ख़ात्मा कर दिया था और रवानी की बे अतदालियों पर बन्ध बान्ध दिया था। अब पानी उछल कूद के बाद बेदम हो गया था और जस्त व ख़ेज़ की सरमस्तियों के बाद साकित हो गया था। अब जब पानी का जोश एतराफ़े ज़मीन के नीचे साकिन हो गया और सरबफ़लक पहाड़ों के बोझ ने इसके कान्धों को दबा दिया तो मालिक ने उसकी नाक के बांसों के चश्मे जारी कर दिये और उन्हें दूर-दराज़ सहराओं और गढ़ों तक मुन्तशिर दिया और फिर ज़मीन की हरकत को पहाड़ों की चट्टानों और ऊंची-ऊंची चोटियों वाले पहाड़ों के वज़्न से मोतदिल बना दिया।

((( वाज़े रहे के इस मक़ाम पर अस्ल खि़लक़ते ज़मीन का कोई तज़किरा नहीं है के इसकी तख़लीक़ मुस्तक़िल हैसियत रखती है जैसा के दौरे हाज़िर में ओलमाए तबीअत का ख़याल है या उसे सूरज से अलग करके बनाया गया है जैसा के साबिक़ ओलमाए तबीयत कहा करते थे। इस ख़ुतबे में सिर्फ़ ज़मीन के बाज़ कैफ़ियात औश्र हालात का ज़िक्र किया गया है और परवरदिगार के इस एहसास को याद दिलाया गया है के उसने ज़मीन को इन्सानी ज़िन्दगी का मुस्तख़र क़रार देने के लिये कितनी दूर से एहतेमाम किया है और इस मख़लूक़ को बसाने के लिये कितने अज़ीम एहतेमाम से काम लिया है। काश इन्सान इन एहसानात का एहसास करता और इसे यह अन्दाज़ा होता के इसके मालिक ने उसे किस क़दर अज़ीम क़रार दिया था के इसके क़याम व इस्तेक़रार के लिये ज़मीन व आसमान सब को मुन्क़लिब कर दिया और उसने अपने को इस क़द्र ज़लील कर दिया के एक-एक ज़र्रा कायनात और एक एक चप्पा ज़मीन के लिये जान देने को तैयार है और अपनी क़द्र व क़ीमत को यकसर नज़रअन्दाज़ किये हुए है। मदहोह के मानी अगरचे आमतौर से फर्ष शुदा के बयान किये जाते हैं लेकिन लुग़त में अन्डे देने की जगह को भी कहा जाता है। इसलिये मुमकिन है के मौलाए कायनात ने इस लफ़्ज़ से ज़मीन की बेज़ावी शक्ल की तरफ़ इशारा किया हो के दौरे हाज़िर की तहक़ीक़ की बिना पर ज़मीन की शक्ल करवी नहीं है , बल्के बेज़ावी है।)))

पहाड़ों के इसकी सतह के मुख़्तलिफ़ हिस्सों में डूब जाने और इसकी गहराइयों की तह में घुस जाने और इसके हमवार हिस्सों की बलन्दी पस्ती पर सवार हो जाने की बिना पर इसकी थरथराहट रूक गई और मालिक ने ज़मीन से फ़िज़ा तक एक वुसअत पैदा कर दी और हवा को इसके बन्दों के सांस लेने के लिये मुहय्या कर दिया और इसके बसने वालों को तमाम सहूलतों के साथ ठहरा दिया। इसके बाद ज़मीन के वह चटियल मैदान जिनकी बलन्दियों तक चश्मों और नहरों के बहाव का कोई रास्ता नहीं था उन्हें भी यूँ ही रहने दिया यहां तक के इनके लिये वह बादल पैदा कर दिये जो उनकी मुर्दा ज़मीनों को ज़िन्दा बना सकें और नबातात को उगा सकें। उसने अब्र की चमकदार टुकड़ियों को ऊपर परागन्दा बदलियों को जमा किया यहाँ तक के जब इसके अन्दर पानी का ज़ख़ीरा जोश मारने लगा और उसके किनारों पर बिजलियाँ तड़पने लगीं और उनकी चमक सफ़ेद बादलों की तहों और तह ब तह सोहाबों के अन्दर बराबर जारी रहीं तो उसने उन्हें मूसलाधार बारिश के लिये भेज दिया। इस तरह के इसके बोझिल हिस्से ज़मीन पर मण्डला रहे थे और जुनूबी हवाएं उन्हें मुसलसल कर बरसने वाले बादल की बून्दें और तेज़ बारिश की शक्ल में बरसा रही थीं। इसके बाद जब बादलों ने अपना सीना हाथ पांव समेत ज़मीन पर टेक दिया और पानी का सारा लदा हुआ बोझ इस पर फेंक दिया तो इसके ज़रिये इफ़तादा ज़मीनों से खेतियां उगा दीं और ख़ुश्क पहाड़ों पर हरा भरा सब्ज़् फैला दिया। अब ज़मीन अपने सब्ज़े की ज़ीनत से झूमने लगी और शुगूफ़ों की ओढ़नियों और शिगफ़ता व शादाब कलियों के से इतराने लगी। परवरदिगार ने इन तमाम चीज़ों को इन्सानों की ज़िन्दगी का सामान और जानवरों का रिज़्क़ क़रार दिया है। उसी ने ज़मीन के एतराफ़ कुशादा रास्ते निकाले हैं और शाहराहों पर चलने वालों के लिये रौशनी के मिनारे नस्ब किये हैं और फिर जब ज़मीन का फर्श बिछा लिया और अपना काम मुकम्मल कर लिया-

((( इस हिस्सए कलाम में मौलाए कायनात (अ 0) ने मालिक के दो अज़ीम एहसानात की तरफ़ इशारा किया है जिन पर इन्सानी ज़िन्दगी का दारोमदार है और वह हैं हवा और पानी। हवा इन्सान के सांस लेने का ज़रिया है और पानी इन्सान का क़वामे हयात है। यह दोनों न होते तो इन्सान एक लम्हा ज़िन्दा नहीं रह सकता था। इसके बाद इन दोनों तख़लीक़ों को मज़ीद कारआमद बनाने के लिये हवा को सारी फ़िज़ा में मुन्तशिर दिया और पानी के चश्मे अगर पहाड़ों की बलन्दियों को सेराब नहीं कर सकते थे तो बारिश का इन्तेज़ाम कर दिया ताके बलन्दी-ए-कोह (पहाड़) पर रहने वाली मख़लूक़ भी इससे इस्तेफ़ादा कर सके और इन्सानों की तरह जानवरों की ज़िन्दगी का इन्तज़ाम हो जाए। अफ़सोस , के इन्सान ने दुनिया की हर मामूली से मामूली नेमत की क़द्र व क़ीमत का एहसास किया है लेकिन इन दोनों की क़द्र-व-क़ीमत का एहसास नहीं किया वरना हर सांस पर शुक्रे ख़ुदा करता और हर क़तर-ए-आब पर एहसानाते इलाहिया को याद रखता और किसी आन इसकी याद से ग़ाफ़िल न होता और इसके एहकाम की मुक़ालफ़त न करता।)))

तब आदम (अ 0) को मख़लूक़ात में मुन्तख़ब क़रार दे दिया और उन्हें नौए इन्सानी की फ़र्दे अव्वल बनाकर जन्नत में साकिन कर दिया और उनके लिये तरह तरह के खाने पीने को आज़ाद कर दिया और जिससे मना करना था उसका इशारा भी दे दिया और यह बता दिया के इसके एक़दाम में नाफ़रमानी का अन्देशा और अपने मरतबे को ख़तरे में डालने का ख़तरा है लेकिन उन्होंने इसी चीज़ की तरफ़ रूख़ कर लिया जिससे रोका गया था के यह बात पहले से इल्मे ख़ुदा में मौजूद थी। नतीजा यह हुआ के परवरदिगार ने तौबा के बाद उन्हें नीचे उतार दिया ताके अपनी नस्ल से दुनिया को आबाद करें और उनके ज़रिये से अल्लाह बन्दों पर हुज्जत क़ायम करे। फिर उनको उठा लेने के बाद भी ज़मीन को उन चीज़ों से ख़ाली नहीं रखा जिनके ज़रिये रूबूबीयत की दलीलों की ताकीद करे और जिन्हें बन्दों की मारेफ़त का वसीला बनाए बल्कि हमेशा मुन्तख़ब अम्बियाए कराम और रिसालत के अमानतदारों की ज़बानों से हुज्जत के पहुँचाने की निगरानी करता रहा और यूँ ही सदियाँ गुज़रती रहीं यहाँ तक के हमारे पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद (स 0) के ज़रिये इसकी हुज्जत तमाम हो गई और एतमाम हुज्जत और तख़वीफ़े अज़ाब का सिलसिला नुक़्तए आखि़र तक पहुंच गया।

अल्लाह ने सबकी रोज़ियां मुअय्यन कर रखी हैं चाहे क़लील हों या कसीर और फिर तंगी और वुसअत के एतबार से भी तक़सीम कर दिया और इसमें भी अदालत रखी है ताके दोनों का इम्तेहाल लिया जा सके और ग़नी व फ़क़ीर दोनों को शुक्र या सब्र से आज़माया जा सके। फिर वुसअते रिज़्क़ के साथ फ़क़्र व फ़ाक़ा के ख़तरात और सलामती के साथ नाज़िल होने वाली आफ़ात के अन्देशे और ख़ुशी व शादमानी की वुसअत के साथ ग़म व अलम के गुलूगीर फन्दे शामिल भी कर दिये। ज़िन्दगियों की तवील व क़सीर मुद्दतें मुअय्यन कीं। उन्हें आगे-पीछे रखा और फिर सबको मौत से मिला दिया और मौत को उनकी रस्सियों का खींचने वाला और मज़बूत रिष्तों को पारा-पारा करने वाला बना दिया। वह दिलों में बातों के छुपाने वालों के इसरार , ख़ुफ़िया बातें करने वालों की गुफ़्तगू , ख़यालात में अटकल पच्चू लगाने वालो के अन्दाज़े , दिल में जमे हुए यक़ीनी अज़ाएम , पलकों में दबे हुए कनखियों के इशारे और दिलों की तहों के राज़ और ग़ैब की गहराइयों के रमूज़ , सबको जानता है।

((( इसमें कोई शक नहीं है के जनाबे आदम (अ 0) ने दरख़्त का फ़ल खाकर अपने को ज़हमतों में मुब्तेला कर लिया लेकिन सवाल यह पैदा होता है के जब उन्हें रूए ज़मीन का ख़लीफ़ा बनाया गया था तो क्या जन्नत ही में महवास्तराहत रह जाते और अपने फ़राएज़ मन्सबी की तरफ़ मुतवज्जा न होते। यह तो एहसासे ज़िम्मादारी का एक रूख़ है के उन्होंने जन्नत के राहत व आराम को नज़र अन्दाज़ करने का अज़्म कर लिया और रूए ज़मीन पर आ गए ताके अपनी नस्ल से दुनिया को आबाद कर सकें और अपने फ़रीज़ए मन्सब को अदा कर सकें। यह और बात है के तक़ाज़ाए एहतियात यह था के मालिके कायनात ही से गुज़ारिश करते के जहाँ के लिये ज़िम्मेदार बनाया है वहाँ तक जाने का इन्तेज़ाम कर दे या कोई रास्ता बता दे। उस रास्ते को इबलीस के इशारे के बाद इख़्तेयार नहीं करना चाहिये था के उसे इबलीस अपनी फ़तहे मुबीन क़रार दे ले और ख़लीफ़तुल्लाह के मुक़ाबले में अपने ग़ुरूर का इज़हार कर सके। ग़ालेबन एहतियात के इसी तक़ाज़े पर अमल न करने का नाम “ तर्के ऊला ’ रखा गया है। )))

वह उन आवाज़ों को भी सुन लेता है जिनके लिये कानों के सूराख़ों को झुकना पड़ता है। च्यूंटियों के मौसमे गर्म के मुक़ामात व दीगर हशरातिल अर्ज़ की सर्दियों की मंज़िल से भी आगाह है। पिसरे मुर्दा औरतों की दर्द भरी फ़रयाद और पैरों की चाप भी सुन लेता है। वह सब्ज़ पत्तियों के ग़िलाफ़ों के अन्दरूनी हिस्सों में तैयार होने वाले फलों की जगह को भी जानता है और पहाड़ों के ग़ारों और वादियों में जानवरों की पनाहगाहों को भी पहचानता है। वह दरख़्तों के तनों और उनके छिलकों में मच्छरों के छिपने की जगह से भी बाख़बर है और शाख़ों में पत्ते निकलने की मन्ज़िल और सल्बों की गुज़रगाहों में नुत्फ़ों के ठिकानों और आपस में जड़े हुए बादलों और तह ब तह सहाबों से पटकने वाले बारिश बारिश के क़तरों से भी आशना है बल्के जिन ज़रात को आन्धियां अपने दामन से उड़ा देती हैं और जिन निशानात को बारिशे अपने सेलाब से मिटा देती हैं उनसे भी बाख़बर है। वह रेत के टीलों पर ज़मीन के कीड़ों के चलने फिरने और सरबलन्द पहाड़ों की चोटियों पर बाल व पर रखने वाले परिन्दों के नशेमनों को भी जानता है और घोसलों के अन्धेरों में परिन्दों के नग़मों को भी पहचानता है। जिन चीज़ों को सदफ़ ने समेट रखा है उन्हें भी जानता है और जिन्हें दरिया की मौजों ने अपनी गोद में दबा रखा है उन्हें भी पहचानता है जिसे रात की तारीकी ने छिपा लिया है उसे भी पहचानता है और जिन पर दिन के सूरज ने रोशनी डाली है उससे भी बाख़बर है। जिन चीज़ों पर यके बाद दीगर अन्धेरी रातों के पर्दे और रौशन दिनों के आफ़ताब की शोआए नूर बिखरती हैं वह इन सबसे बाख़बर है , निशाने क़दम , हस्स व हरकत , अलफ़ाज़ की गूंज , होंटों की जुम्बिश , सांसों की मन्ज़िल , ज़र्रात का वज़न , ज़ीरूह की सिस्कियों की आवाज़ , इस ज़मीन पर दरख़्तों के फल , गिरने वाले पत्ते , नुत्फ़ों की क़रारगाह , मुन्जमिद ख़ून के ठिकाने , लोथड़े या इसके बाद बनने वाली मख़लूक़ या पैदा हुए बच्चे सबको जानता है और उसे इस इल्म के हिस्सों में कोई ज़हमत नहीं हुई और न अपनी मख़लूक़ात की हिफ़ाज़त में कोई रूकावट पेश आई और न अपने उमूर के नाफ़िज़ करने और मख़लूक़ात का इन्तेज़ाम करने में कोई सुस्ती या थकन लाहक़ हुई बल्कि इसका इल्म गहराइयों में उतरा हुआ है और उसने सबके आदाद को शुमार कर लिया है और सब पर इसका अद्ल शामिल और फ़ज़ल महीत है हालांके यह सब उसके शायाने शान हक़ के अदा करने से क़ासिर हैं।

((( मालिके कायनात के इल्म के बारे में इस क़द्र दक़ीक़ बयान एक तरफ़ ग़ैर हकीम फ़लासफ़े के इस तसव्वुर की तरदीद है के ख़ालिक़ हकीम के इल्म का ताल्लुक़ सिर्फ़ कुल्लियात से होता है और वह जुज़्ज़ेयात से ब हैसियत जुज़्ज़ेयात बाख़बर नहीं होता है वरना इससे बदलते हुए जुज़्ज़ेयात के साथ ज़ाते में तग़य्युरे लाज़िम आएगा और यह बात ग़ैरे माक़ूल है और दूसरी तरफ़ इन्सान को नुक्ते की तरफ़ मुतवज्जा करना है के जो ख़ालिक़ व मालिक मज़कूरा तमाम बारीकियों से बाख़बर है वह ख़लवत कदों में नामहरमों के इज्तेमाआत , नीम तारीक रक़्सगाहों के रक़्स , सड़कों और बाज़ारों के ज़रदीदा इशारात , स्कूलों और दफ़्तरों के ग़ैर शरई तसरेफ़ात और दिल व दिमाग़ में छिपे हुए ग़ैर शरीफ़ाना तसव्वुरात व ख़यालात से भी बाख़बर है। उसके इल्म से कायनात का कोई ज़र्रा मख़फ़ी नहीं हो सकता है। वह आँखों की ख़यानत और दिल के पोशीदा इसरार , दोनों से मसावी तौर पर इत्तेलाअ रखता है। “ वल्लाहो अलीमुन बे ज़ातिस्सुदूर ” )))

ख़ुदाया! तू ही बेहतरीन तौसीफ़ और आखि़र तक सराहे जाने का अहल है। तुझसे आस लगाई जाए तो बेहतरीन आसरा है और उम्मीद रखी जाए तो बेहतरीन मरकज़े उम्मीद है। तूने मुझे वह ताक़त दी है जिसके ज़रिये किसी ग़ैर की मदहा व सना नहीं करता हूँ और उसका रूख़ उन अफ़राद की तरफ़ नहीं मोड़ता हूँ जो नाकामी का मरकज़ और शुबहात की मन्ज़िल हैं। मैंने अपनी ज़बान को लोगों की तारीफ़ और तेरी परवरदा मख़लूक़ात की सना व सिफ़त से मोड़ दिया है। ख़ुदाया हर तारीफ़ करने वाले का अपने ममदोह पर एक हक़ होता है चाहे वह मुआवेज़ा हो या इनआम व इकराम , और मैं तुझसे आस लगाए बैठा हूँ के तू रहमत के ज़ख़ीरों और मग़फ़ेरत के ख़ज़ानों की रहनुमाई करने वाला है। ख़ुदाया! यह उस बन्दे की मन्ज़िल है जिसने सिर्फ़ तेरी तौहीद और यकताई का एतराफ़ किया है और तेरे अलावा औसाफ़ व कमालात का किसी को अहल नहीं पाया है। फिर मैं एक एहतियाज रखता हूँ जिसका तेरे फ़ज़्ल के अलावा कोई इलाज नहीं कर सकता है और तेरे एहसानात के अलावा कोई इसका सहारा नहीं बन सकता है। अब इस वक़्त मुझे अपनी रेज़ा इनायत फ़रमा दे और दूसरों के सामने हाथ फैलाने से बेनियाज़ बना दे के तू हर शै पर क़ुदरत रखने वाला है।

92-आपका इरशादे गिरामी

(जब लोगों ने क़त्ले उस्मान के बाद आपकी बैअत का इरादा किया)

मुझे छोड़ दो और जाओ किसी और को तलाश कर लो। हमारे सामने वह मामला है जिसके बहुत से रंग और रूख़ हैं जिनकी न दिलों में ताब है और न अक़्लें उन्हें बरदाश्त कर सकती हैं। देखो उफ़क़ किस क़दर अब्र आलूद है और रास्ते किस क़द्र अन्जाने हो गए हैं। याद रखो के अगर मैंने बैअत की दावत को क़ुबूल कर लिया तो तुम्हें अपने इल्म ही के रास्ते पर चलाऊंगा और किसी की कोई बात या सरज़निश नहीं सुनूंगा। लेकिन अगर तुमने मुझे छोड़ दिया तो तुम्हारी ही एक फ़र्द की तरह ज़िन्दगी गुज़ारूंगा बल्के शायद तुम सबसे ज़्यादा तुम्हारे हाकिम के एहकाम का ख़याल रखूं। मैं तुम्हारे लिये वज़ीर की हैसियत से अमीर की बनिस्बत ज़्यादा बेहतर रहूँगा।

((( अमीरूल मोमेनीन (अ 0) के इस इरशाद से तीन बातों की मुकम्मल वज़ाहत हो जाती है।

1. आपको खि़लाफ़त की कोई हिरस और तमाअ नहीं थी और न आप उसके लिये किसी तरह की दौड़ धूप के क़ायल थे ओहदाए इलाही ओहदेदार के पास आता है , ओहदेदार उसकी तलाश में नहीं निकलता है।

2. आप किसी क़ीमत पर इस्लाम की तबाही बरदाश्त नहीं कर सकते थे। आपकी निगाह में खि़लाफ़त के जुमला मुश्किलात व मसाएब थे और क़ौम की तरफ़ से बग़ावत का ख़तरा निगाह के सामने था लेकिन उसके बावजूद अगर मिल्लत की इस्लाह और इस्लाम की बक़ा का दारोमदार इसी खि़लाफ़त के क़ुबूल करने पर है तो आप इस राह में हर तरह की क़ुरबानी देने के लिये तैयार हैं।

3. आपकी नज़र में उम्मत के लिये एक दरम्यानी रास्ता वही था जिस पर आज तक चल रही थी के अपनी मर्ज़ी से कोई अमीर तय कर ले और फिर वक़्तन फ़वक़्तन आपसे मष्विरा करती रहे के आप मष्विरा देने से बहरहाल गुरेज़ नहीं करते हैं जिसका मुसलसल तजुरबा हो चुका है और इसी अम्र को आपने ज़रारत से ताबीर किया है। वरना जिसको हुकूमत की इमारत नाक़ाबिले क़ुबूल हो उसकी वज़ारत उससे ज़्यादा बदतर होगी। विज़ारत फ़क़त इस्लामी मफ़ादात की हद तक बोझ बटाने की हसीन तरीन ताबीर है।)))

93-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें आपने अपने इल्म व फ़ज़्ल से आगाह करते हुए बनी उमय्या के फ़ित्ने की तरफ़ मुतवज्जो किया है।)

हम्द व सनाए परवरदिगार के बाद- लोगों! याद रखो मैंने फ़ित्ने की आंख को फोड़ दिया है और यह काम मेरे अलावा कोई दूसरा अन्जाम नहीं दे सकता है जबके इसकी तारीकियां तहोबाला हो रही हैं और उसकी दीवानगी का मर्ज़ शदीद हो गया है। अब तुम मुझसे जो चाहो दरयाफ़त कर लो क़ब्ल इसके के मैं तुम्हारे दरम्यान न रह जाऊँ। उस परवरदिगार की क़सम जिसके क़ब्ज़ए क़ुदरत में मेरी जान है तुम अब से क़यामत तक के दरम्यान जिस चीज़ के बारे में सवाल करोगे और जिस गिरोह के बारे में दरयाफ़्त करोगे जो सौ अफ़राद को हिदायत दे और सौ को गुमराह कर दे तो मैं उसके ललकारने वाले , खींचने वाले , हंकान वाले , सवारियों के क़याम की मंज़िल , सामान उतारने की जगह , कौन इनमें से क़त्ल किया जाएग , कौन अपनी मौत से मरेगा। सब बता दूंगा। हालांके अगर यह बदतरीन हालात और सख़्त तरीन मुश्किलात मेरे बाद पेश आए तो दरयाफ़्त करने वाला भी परेशानी से सर झुका लेगा और जिससे दरयाफ़्त किया जाएगा वह भी बताने से आजिज़ रहेगा और यह सब उस वक़्त होगा जब तुम पर जंगें पूरी तैयारी के साथ टूट पड़ेंगी और दुनिया इस तरह तंग हो जाएगी के मुसीबत के दिन तुलानी महसूस होने लगेंगे। यहांतक के अल्लाह बाक़ीमान्दा नेक बन्दों को कामयाबी अता कर दे।

याद रखो फ़ितने जब आते हैं तो लोगों को शुबहात में डाल देते हैं और जब जाते हैं तो होशियार कर जाते हैं। यह आते वक़्त नहीं पहचाने जाते हैं लेकिन जब जाने लगते हैं तो पहचान लिये जाते हैं , हवाओं की तरह चक्कर लगाते रहते हैं। किसी शहर को अपनी ज़द में ले लेते हैं और किसी को नज़रअन्दाज़ कर देते हैं। याद रखो। मेरी निगाह में सबसे ख़ौफ़नाक फ़ितना बनी उमय्या का है जो ख़ुद भी अन्धा होगा और दूसरों को भी अन्धेरे में रखेगा। उसके ख़ुतूत आम होंगे लेकिन इसकी बला ख़ास लोगों के लिये होगी जो इस फ़ित्ने में आंख खोले होंगे और न अन्धों के पास से बा आसानी गुज़र जाएगा

ख़ुदा की क़सम! तुम बनी उमय्या को मेरे बाद बदतरीन साहेबाने इक़तेदार पाओगे जिनकी मिसाल उस काटने वाली ऊंटनी की होगी जो मुंह से काटेगी और हाथ मारेगी या पांव चलाएगी और दूध न दूहने देगी और यह सिलसिला यूँ ही बरक़रार रहेगा जिससे सिर्फ़ वह अफ़राद बख़्षेंगे जो इनके हक़ में मुफ़ीद हों या कम से कम नुक़सानदेह न हों। यह मुसीबत तुम्हें इसी तरह घेरे रहेगी यहाँ तक के तुम्हारी दाद ख़्वाही ऐसे ही होगी जैसे ग़ुलाम अपने आक़ा से या मुरीद अपने पीर से इन्साफ़ का तक़ाज़ा करे।

((( पैग़म्बरे इस्लाम (स 0) के इन्तेक़ाल के बाद जनाज़ाए रसूल (स 0) को छोड़कर मुसलमानों की खि़लाफ़त साज़ी , खि़लाफ़त के बाद अमीरूल मोमेनीन (अ 0) से मुतालेब-ए-बैयत , अबू सुफ़यान की तरफ़ से हिमायत की पेशकश , फ़िदक का ग़ासेबाना क़ब्ज़ा , दरवाज़े का जलाया जाना , फिर अबूबक्र की तरफ़ से उमर की नामज़दगी , फिर उमर की तरफ़ से शूरा के ज़रिये उस्मान की खि़लाफ़त , फिर तलहा व ज़ुबैर और आइशा की बग़ावत और फिर ख़वारिज का दीन से ख़ुरूज। यह वह फ़ित्ने थे जिनमें से कोई एक भी इस्लाम को तबाह कर देने के लिये काफ़ी था। अगर अमीरूल मोमेनीन (अ 0) ने मुकम्मल सब्र व तहम्मुल का मुज़ाहेरा न किया होता और सख़्त तरीन हालात पर सुकूत इख़्तेयार न फ़रमाया होता। इसी सुकूत और तहम्मुल को फ़ित्नों की आंख फोड़ देने से ताबीर किया गया है और इसके बाद इल्मी फ़ित्नों से बचने का एक रास्ता यह बता दिया गया है के जो जाहो दरयाफ़्त कर लो , मैं क़यामत तक के हालात से बाख़बर कर सकता हूँ। (रूहीलहल फ़िदाअ) )))

तुम पर इनका फ़ित्ना ऐसी भयानक शक्ल में वारिद होगा जिससे डर लगेगा और इसमें जाहेलीयत के अजज़ा होंगे , न कोई मिनारए हिदायत होगा और न कोई रास्ता दिखाने वाला परचम। बस हम अहलेबैत (अ 0) हैं जो इस फ़ित्ने से महफ़ूज़ रहेंगे और इसके दाइयों में से न होंगे , इसके बाद अल्लाह तुमसे इस फ़ित्ने को इस तरह अलग कर देगा , जिस तरह जानवर की खाल उतारी जाती है। इस शख़्स के ज़रिये उन्हें ज़लील करेगा और सख़्ती से हंकाएगा और मौत के तल्ख़ घूंट पिलाएगा और तलवार के अलावा कुछ न देगा और ख़ौफ़ के अलावा कोई लिबास न पहनएगा। वह वक़्त होगा जब क़ुरैश को यह आरज़ू होगी के काश दुनिया और उसकी तमाम दौलत देकर एक मन्ज़िल पर मुझे देख लेते चाहे सिर्फ़ इतनी ही देर के लिये जितनी देर में एक ऊँट नहर किया जाता है ताके मैं उनसे इस चीज़ को क़ुबूल कर लूं जिसका एक हिस्सा आज मांगता हूँ तो वह देने के लिये तैयार नहीं हैं।

94-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

( जिसमें परवरदिगार के औसाफ़ - रसूले अकरम (स 0) और अहलेबैत (अ 0) अतहार के फ़ज़ाएल और मौअज़ए हसना का ज़िक्र किया गया है)

ब-बरकत है वह परवरदिगार जिसकी ज़ात तक हिम्मतों की बलन्दियां नहीं पहुँच सकती हैं और अक़्ल व फ़हम की ज़ेहानतें उसे नहीं पा सकती हैं। वह ऐसा अव्वल है जिसकी कोई आखि़री हद नहीं है और ऐसा आखि़र है जिसके लिये कोई फ़ना नहीं है। (अम्बियाए कराम) (अ 0) परवरदिगार ने उन्हें बेहतरीन मुक़ामात परवरीयत रखा और बेहतरीन मन्ज़िल में मुस्तक़र किया। वह मुसलसल शरीफ़तरीन असलाब से पाकीज़ातरीन अरहाम की तरफ़ मुन्तक़िल होते रहे के जब कोई बुज़ुर्ग गुज़र गया तो दीने ख़ुदा की ज़िम्मेदारी बाद वाले ने संभाल ली। (रसूले अकरम (अ 0)) यहां तक के इलाही शरफ़ हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स 0) तक पहुंच गया और उसने उन्हें बेहतरीन नष्र व नुमा के मअदन और शरीफ़तरीन असल के मरकज़ के ज़रिये दुनिया में भेज दिया। इसी शजरए तय्यबा से जिस से अम्बिया को पैदा किया और अपने अमीनों का इन्तेख़ाब किया। पैग़म्बर (स 0) की इतरत बेहतरीन और उनका ख़ानदान शरीफ़तरीन ख़ानदान है। इनका शजरा बेहतरीन शजरा है जो सरज़मीने हरम पर उगा है और बुज़ुर्गी के साये में परवान चढ़ा है। इसकी शाख़ें बहुत तवील हैं और इसके फल इन्सानी दस्तरस से बालातर हैं। वह अहले तक़वा के इमाम और हिदायत हासिल करने वालों के लिये सरचश्मए बसीरत हैं।

((( अमीरूल मोमेनीन (अ 0) का यह इरशादे गिरामी इस बात की वाज़ेअ दलील है के अम्बियाए कराम के आबाओ अजदाद और उम्महात में कोई एक भी ईमान या किरदार के एतबार से नाक़िस और ऐबदार नहीं था और इसके बाद इस बहस की ज़रूरत नहीं रह जाती है के यह बात अक़्ली एतबार से ज़रूरी है या नहीं और उसके बग़ैर मन्सब का जवाज़ पैदा हो सकता है या नहीं ? इसलिये के अगर काफ़िर अस्लाब और बेदीन अरहाम में कोई नुक़्स नहीं था और नापाक ज़र्फ़ मन्सबे इलाही के हामिल के लिये नामुनासिब नहीं था तो इस क़द्र एहतेमाम की क्या ज़रूरत थी के आदम (अ 0) से लेकर ख़ातम तक किसी एक मरहले पर भी कोई नापाक या ग़ैर तय्यब रहम दाखि़ल न होने पाए।)))

ऐसा चिराग़ हैं जिसकी रोशनी लौ दे रही है और ऐसा रौशन सितारा हैं जिसका नूर दरख़्षा है और ऐसा चक़माक़ हैं जिसकी ज़ौ शोला फ़िषां है , उनकी सीरत (अफ़रात व तग़रीयत से बच कर) सीधी राह पर चलना और सुन्नत हिदायत करना है। इनका कलाम हक़ व बातिल का फ़ैसला करने वाला और हुक्म मुबीन अद्ल है। अल्लाह ने उन्हें उस वक़्त भेजा के जब रसूल की आमद का सिलसिला रूका हुआ था। बदअमली फैली हुई और उम्मतों पर ग़फ़लत छाई हुई थी।

( मोअज़) देखो। ख़ुदा तुम पर रहमत नाज़िल करे। रौशन निशानियों पर जम कर अमल करो। रास्ता बिल्कुल सीधा है। वह तुम्हें सलामतीयों के घर (जन्नत) की तरफ़ बुला रहे हैं और अभी तुम ऐसे घर में हो के जहां तुम्हें इतनी मोहलत व फ़राग़त है के इसकी ख़ुशनूदियां हासिल कर सको , अभी मौक़ा है , चूंके आमालनामे खुले हुए हैं , क़लम चल रहे हैं , बदन सही व सालिम हैं , ज़बानें आज़ाद हैं , तौबा सुनी जा रही है और आमाल क़ुबूल किये जा रहे हैं।

95-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें रसूले अकरम (स 0) के फ़ज़ाएल व मनाक़िब का तज़किरा किया गया है।)

अल्लाह ने उन्हें उस वक़्त भेजा जब लोग गुमराही , हैरत व परेशानी में गुमकर्दा राह थे और फ़ितनों में हाथ पांव मार रहे थे। ख़्वाहिशात ने उन्हें बहका दिया और ग़ुरूर ने उनके क़दमों में लग़ज़िशपैदा कर दी थी और भरपूर जाहलीयत ने उन्हें सुबक सर बना दिया था और वह ग़ैर यक़ीनी हालात और जिहालत की बलाओं की वजह से हैरान व परेशान थे। आपने नसीहत का हक़ अदा कर दिया , सीधे रास्ते पर चलने और लोगों को हिकमत और मोअज़ हसना की तरफ़ दावत दी।

96-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(हज़रत रब्बुल आलमीन और रसूले अकरम (स 0) के सिफ़ात के बारे में)

तमाम तारीफ़ें उस अल्लाह के लिये हैं जो ऐसा अव्वल है के उससे पहले कोई शय नहीं है और ऐसा आखि़र है के इसके बाद कोई शै नहीं है , वह ज़ाहिर है तो इससे माफ़ूक़ (बालातर) कुछ नहीं है और बातिन है तो इससे क़रीबतर कोई शय नहीं है। इसी ख़ुतबे के ज़ैल में (रसूले अकरम (स 0)) का ज़िक्र फ़रमाया। बुज़ुर्गी और शराफ़त के मादनों और पाकीज़गी की जगहों में इनका मुक़ाम बेहतरीन मुक़ाम और मरजियोम बेहतरीन मरज़ियोम है। उनकी तरफ़ नेक लोगों के दिल झुका दिये गए हैं और निगाहों के रूख़ मोड़ दिये गए हैं। ख़ुदा ने इनकी वजह से फ़ित्ने दबा दिये और (अदावतों के) शोले बुझा दिये भाइयों में उलफ़त पैदा की और जो (कुफ्ऱ में) इकट्ठे थे , उन्हें मुन्तशिर (अलहदा-अलहदा) कर दिया (इस्लाम की) पस्ती व ज़िल्लत को इज़्ज़त बख़्षी , और (कुफ्ऱ) की इज्ज़त व बुलन्दी को ज़लील कर दिया। इनका कलाम (शरीयत का) बयान और सुकूत (एहकाम की) ज़बान थी।

((( ओलमाए उसूल की ज़बान में मासूम की ख़ामोशी तक़रीर से ताबीर किया जाता है और वह उसी तरह हुज्जत और मुदरक एहकाम है जिस तरह मासूम का क़ौल व अमल। वह सनद की हैसियत रखता है और उससे एहकामे शरीअत का इस्तनबात व इस्तख़राज किया जाता है। आम इन्सानों की ख़ामोशी दलीले रज़ामन्दी नहीं बन सकती है लेकिन मासूम की ख़ामोशी दलीले एहकाम भी बन जाती है।)))

97-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें अपने असहाब और असहाबे रसूले अकरम (स 0) का मवाज़ाना किया गया है।)

अगर परवरदिगार ने ज़ालिम को मोहलत दे रखी है तो इसका मतलब यह नहीं है के वह उसकी गिरफ़्त से बाहर निकल गया है। यक़ीनन वह उसकी गुज़गाह और उसकी गरदन में उच्छू लगने की जगह पर उसकी ताक में है। क़सम है उस मालिक की जिसके क़ब्ज़े में मेरी जान है के यह क़ौम यक़ीनन तुम पर ग़ालिब आ जाएगी। न इसलिये के वह तुमसे ज़्यादा हक़दार हैं बल्कि इसलिये के वह अपने अमीर के बातिल की फ़ौरन इताअत कर लेते हैं और तुम मेरे हक़ में हमेशा सुस्ती से काम लेते हो। तमाम दुनिया की क़ौमें अपने हुक्काम के ज़ुल्म से ख़ौफ़ज़दा हैं और मैं अपनी रेआया के ज़ुल्म से परेशान हूँ। मैंने तुम्हें जेहाद के लिये आमादा किया मगर तुम न उठे। मौअज़ सुनाया तो तुमने न सुना , अलल एलान और ख़ुफ़िया तरीक़े से दावत दी लेकिन तुमने लब्बैक न कही और नसीहत भी की तो उसे क़ुबूल न किया। तुम ऐसे हाज़िर हो जैसे ग़ायब और ऐसे इताअत गुज़ार हो जैसे मालिक। मैं तुम्हारे लिये हिकमत आमेज़ बातें करता हूँ और तुम बेज़ार हो जाते हो। बेहतरीन नसीहत करता हूँ और तुम भाग खड़े होते हो , बाग़ियों के जेहाद पर आमादा करता हूँ और अभी आखि़रे कलाम तक नहीं पहुँचने पाता हूं के तुम सबा की औलाद की तरह फ़ैल जाते हो। अपनी महफ़िलों की तरफ़ पलट जाते हो और एक दूसरे के धोके में मुब्तिला हो जाते हो। मैं सुबह के वक़्त तुम्हें सीधा करता हूँ और तुम शाम के वक़्त यूँ पलट कर आते हो जैसे कमान , तुम्हें सीधा करने वाला भी आजिज़ आ गया और तुम्हारी इस्लाह भी नामुमिकन हो गई।

ऐ वह क़ौम जिसके बदन हाज़िर हैं और अक़्लें ग़ायब , तुम्हारे ख़्वाहिशात गो-ना-गों हैं और तुम्हारे हुक्काम तुम्हारी बग़ावत में मुब्तिला हैं। तुम्हारा अमीर अल्लाह की इताअत करता है और तुम उसकी नाफ़रमानी करते हो और शाम का हाकिम अल्लाह की मासियत करता है और उसकी क़ौम उसकी इताअत करती है। ख़ुदा गवाह है के मुझे यह बात पसन्द है के वामिया मुझसे दिरहम व दीनार का सौदा करे के तुममें के दस लेकर अपना एक दे दे।

कूफ़े वालों! मैं तुम्हारी वजह से तीन तरह की शख़्सियात और दो तरह की कैफ़ियात से दो-चार हू। तुम कान रखने वाले बहरे , ज़बान रखने वाले गूंगे और आंख रखने वाले अन्धे हो। तुम्हारी हालत यह है के न मैदाने जंग के सच्चे जवाँमर्द हो और न मुसीबतों में क़ाबिले एतमाद साथी। तुम्हारे हाथ ख़ाक में मिल जाएं , तुम उन ऊंटों जैसे हो जिनके चराने वाले गुम हो जाएं के जब एक तरफ़ से जमा किये जाएँ तो दूसरी तरफ़ से मुन्तशिर जाएं। ख़ुदा की क़सम , मैं अपने ख़याल के मुताबिक़ तुम्हें ऐसा देख रहा हूँ के जंग तेज़ हो गई और मैदाने कारज़ार गर्म हो गया तो तुम फ़रज़न्दे अबूतालिब से इस बेशर्मी के साथ अलग हो जाओगे जिस तरह कोई औरत बरहना हो जाती है , लेकिन बहरहाल मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ से दलीले रौशन रखता हूँ और पैग़म्बर (स 0) के रास्ते पर चल रहा हूँ। मेरा रास्ता बिल्कुल रौशन है जिसे मैं बातिल के अन्धेरों में भी ढून्ढ लेता हूँ।

(((- ख़ुदा गवाह है के क़ाएद की तमाम क़ायदाना सलाहियतें बेकार होकर रह जाती हैं जब क़ौम इताअत के रास्ते से मुन्हरिफ़ हो जाती है और बग़ावत पर आमादा हो जाती है। इन्हेराफ़ भी अगर जेहालत की बिना पर होता है तो उसकी इस्लाह का इमकान रहता है , लेकिन माले ग़नीमत और रिश्वत का बाज़ार गर्म हो जाए और दौलते दीन की क़ीमत बनने लगे तो वहाँ एक सही और सॉलेह क़ाएद का फ़र्ज़ क़यादत अन्जाम देना तक़रीबन नामुमकिन होकर रह जाता है और उसे सुबह-व-शाम हालात की फ़रयाद ही करना पड़ती है ताके क़ौम पर हुज्जत तमाम कर दे और मालिक की बारगाह में अपना बहाना पेश कर दे। -)))

( असहाबे रसूले अकरम (स 0)) देखो , अहलेबैते (अ 0) पैग़म्बर (स 0) पर निगाह रखो और उन्हीं के रास्ते को इख़्तेयार करो , उन्हीं के नक़्शे क़दम पर चलते रहो के वह न तुम्हें हिदायत से बाहर ले जाएंगे और न हलाकत में पलट कर जाने देंगे। वह ठहर जाएं तो ठहर जाओ , उठ खड़े हों तो खड़े हो जाओ , ख़बरदार उनसे आगे न निकल जाना के गुमराह हो जाओ और पीछे भी न रह जाना के हलाक हो जाओ। मैंने अस्हाबे पैग़म्बर (स 0) का दौर भी देखा है मगर अफ़सोस तुममें का एक भी उनका जैसा नहीं है। वह सुबह के वक़्त इस तरह उठते थे के बाल उलझे हुए , सर पर ख़ाक पड़ी हुई जबके रात सजदे और क़याम में गुज़ार चुके होते थे और कभी पेशानी ख़ाक पर रखते थे और कभी रूख़सार। क़यामत की याद में गोया अंगारों पर खड़े रहते थे और उनकी पेशानियों पर सजदों की वजह से बकरी के घुटने जैसे गट्टे होते थे , उनके सामने ख़ुदा का ज़िक्र आता था तो आँसू इस तरह बरस पड़ते थे के गरेबान तक तर हो जाता था और उनका जिस्म अज़ाब के ख़ौफ़ और सवाब की उम्मीद में इस तरह लरज़ता था जिस तरह सख़्त तरीन आंधी के दिन कोई दरख़्त।

98-आपका इरशादे गिरामी

(जिसमें बनी उमय्या के मज़ालिम की तरफ़ इशारा किया गया है)

ख़ुदा की क़सम , यह यूँ ही ज़ुल्म करते रहेंगे यहां तक के कोई हराम न बचेगा जिसे हलाल न बना लें और कोई अहद व पैमान न बचेका जिसे तोड़ न दें और कोई मकान या ख़ेमा बाक़ी न रहेगा जिसमें इनका ज़ुल्म दाखि़ल न हो जाए और उनका बदतरीन बरताव उन्हें तर्के वतन पर आमादा न कर दे और दोनों तरह के लोग रोने पर आमादा न हो जाएं। दुनियादार अपनी दुनिया के लिये रोए और दीनदार अपने दीन की तबाही पर आँसू बहाए , और तुममें एक का दूसरे से मदद तलब करना उसी तरह हो जिस तरह के ग़ुलाम आक़ा से मदद तलब करे के सामने आ जाए तो इताअत करे और ग़ायब हो जाए तो ग़ीबत करे। और तुममें सबसे ज़्यादा मुसीबतज़दा वह हो जो ख़ुदा पर सबसे ज़्यादा एतमाद रखने वाला हो , लेहाज़ा अगर ख़ुदा तुम्हें आफ़ियत दे तो उसक क़ुबूल कर लो , और अगर तुम्हारा इम्तेहान लिया जाए तो सब्र करो के अन्जामकार बहरहाल साहेबाने तक़वा के लिये है।

(((- दुनिया के हर ज़ुल्म के मुक़ाबले में साहबाने ईमान व किरदार के लिये यही बशारत काफ़ी है के अन्जामकार साहबाने तक़वा के हाथ में है और इस दुनिया की इन्तेहाई फ़साद और तबाहकारी पर होने वाली नहीं है बल्कि उसे एक न एक दिन बहरहाल अद्ल व इन्साफ़ से मामूर होना है। उस दिन हर ज़ालिम को उसके ज़ुल्म का अन्दाज़ा हो जाएगा और हर मज़लूम को उसके सब्र का फल मिल जाएगा। मालिके कायनात की यह बशारत न होती तो साहेबाने ईमान के हौसले पस्त हो जाते और उन्हें हालाते ज़माना मायूसी का शिकार बना देते लेकिन इस बशारत ने हमेशा उनके हौसलों को बलन्द रखा है और इसी की बुनियाद पर वह हर दौर में हर ज़ालिम से टकराने का हौसला रखे रहे हैं।)))

99-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें दुनिया से किनाराकशी की दावत दी गई है।)

ख़ुदा की हम्द है उस पर जो हो चुका और उसकी इमदाद का तक़ाज़ा है के उन हालात पर जो सामने आने वाले हैं , हम उससे दीन की सलामती का तक़ाज़ा उसी तरह करते हैं जिस तरह बदन की सेहत व आफ़ियत की दुआ करते हैं।

बन्दगाने ख़ुदा! मैं तुम्हें वसीयत करता हूँ के उस दुनिया को छोड़ दो जो तुम्हें बहरहाल छोड़ने वाली है चाहे तुम उसकी जुदाई पसन्द न करो , वह तुम्हारे जिस्म को बहरहाल बोसीदा कर देगी तुम लाख उसकी ताज़गी की ख़्वाहिश करो , तुम्हारी और उसकी मिसाल उन मुसाफ़िरों जैसी है जो किसी रास्ते पर चले और गोया के मन्ज़िल तक पहुंच गए। किसी निशाने राह का इरादा किया और गोया के उसे हासिल कर लिया और कितना थोड़ा वक़्फ़ा होता है इस घोड़ा दौड़ाने वाले के लिये जो दौड़ाते ही मक़सद तक पहुंच जाए। इस शख़्स की बक़ा ही क्या है जिसका एक दिन मुक़र्रर हो जिससे आगे न बढ़ सके और फ़िर मौत तेज़ रफ़्तारी से उसे हंका कर ले जा रही हो यहाँ तक के बादिले-नाख़्वास्ता दुनिया को छोड़ दे , ख़बरदार दुनिया की इज़्ज़त और इसकी सरबलन्दी में मुक़ाबला न करना और इसकी ज़ीनत व नेमत को पसन्द न करना और इसकी दुशवारी और परेशानी से रंजीदा न होना के इसकी इज़्ज़त व सरबलन्दी ख़त्म हो जाने वाली है और उसकी ज़ीनत व नेमत को ज़वाल आ जाने वाला है और उसकी तंगी और सख़्ती बहरहाल ख़त्म हो जाने वाली है , यहाँ हर मुद्दत की एक इन्तेहा है और हर ज़िन्दा के लिये फ़ना है। क्या तुम्हारे लिये गुज़िश्ता लोगों के आसार में सामाने तम्बीह नहीं है ? और क्या आबा व अजदाद की दास्तानों में बसीरत व इबरत नहीं है ? अगर तुम्हारे पास अक़्ल है , क्या तुमने यह नहीं देखा है के जाने वाले पलट कर नहीं आते हैं और बाद में आने वाले रह नहीं जाते हैं , क्या तुम नहीं देखते हो के अहले दुनिया मुख़्तलिफ़ हालात में सुबह व शाम करते हैं। कोई मुर्दा है जिस पर गिरया हो रहा है और कोई ज़िन्दा है तो उसे पुरसा दिया जा रहा है। एक बिस्तर पर पड़ा हुआ है तो एक इसकी अयादत कर रहा है और एक अपनी जान से जा रहा है। कोई दुनिया तलाश कर रहा है तो मौत उसे तलाश कर रही है और कोई ग़फ़लत में पड़ा हुआ है तो ज़माना उससे ग़ाफ़िल नहीं है और इस तरह जाने वालों के नक़्शे क़दम पर रह जाने वाले चले जा रहे हैं। आगाह हो जाओ के अभी मौक़ा है उसे याद करो जो लज़्ज़तों को फ़ना कर देने वाली , ख़्वाहिशात को मुकदर कर देने वाली और उम्मीदों को क़ता कर देने वाली है। ऐसे औक़ात में जब बुरे आमाल का इरतेकाब कर रहे हो और अल्लाह से मदद मांगो के इसके वाजिब हक़ को अदा कर दो और उन नेमतों का शुक्रिया अदा कर सको जिनका शुमार करना नामुमकिन है।

(((- ख़ुदा जानता है के ज़िन्दगी की इससे हसीनतर ताबीर नहीं हो सकती है के इन्सान ज़िन्दगी के प्रोग्राम बनाता ही रह जाता है और मौत सामने आकर खड़ी हो जाती है , ऐसा मालूम होता है के घोड़े ने दम भरने का इरादा ही किया था के मन्ज़िल क़दमों में आ गई और सारे हौसले धरे रह गये। ज़ाहिर है के इस ज़िन्दगी की क्या हक़ीक़त है के जिसकी मीआद मुअय्यन है और वह भी ज़्यादा तवील नहीं है और हर हाल में पूरी हो जाने वाली है चाहे इन्सान मुतवज्जोह हो या ग़ाफ़िल , और चाहे उसे पसन्द करे या नापसन्द।)))

100-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(रसूले अकरम (स 0) और आपके अहलेबैत (अ 0) के बारे में)

शुक्र है उस ख़ुदा का जो अपने फ़ज़्लो करम का दामन फैलाए हुए है और अपने जूदो-अता का हाथ बढ़ाए हुए है। हम उसकी हम्द करते हैं उसके तमाम मआमलात में उसकी मदद चाहते हैं ख़ुद उसके हुक़ूक़ का ख़याल रखने के लिये , हम शहादत देते हैं के उसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है और मोहम्मद (स 0) उसके बन्दे और रसूल हैं। जिन्हें उसने अपने अम्र के इज़हार और अपने ज़िक्र के बयान के लिये भेजा तो उन्होंने निहायत अमानतदारी के साथ उसके पैग़ाम को पहुंचा दिया और राहे रास्त पर इस दुनिया से गुज़र गए और हमारे दरम्यान एक ऐसा परचमे हक़ छोड़ गए के जो उससे आगे बढ़ जाए वह दीन से निकल गया और जो पीछे रह जाए वह हलाक हो गया और जो इससे वाबस्ता रहे वह हक़ के साथ रहा। उसकी तरफ़ रहनुमाइ करने वाला वह है जो बात ठहर कर करता है और क़याम इत्मीनान से करता है लेकिन क़याम के बाद फिर तेज़ी से काम करता है। देखो जब तुम उसके लिये अपनी गरदनों को झुका दोगे और हर मसले में उसकी तरफ़ इशारा करने लगोगे तो उसे मौत आ जाएगी और उसे लेकर चली जाएगी। फिर जब तक ख़ुदा चाहेगा तुम्हें उसी हाल में रहना पड़ेगा यहां तक के वह इस शख़्स को मन्ज़रे आम पर ले आए , जो तुम्हें एक मक़ाम पर जमा कर दे और तुम्हारे इन्तेशार को दूर कर दे। तो देखो जो आने वाला है उसके अलावा किसी की लालच न करो और जो जा रहा है उससे मायूस न हो जाओ , हो सकता है के जाने वाले का एक क़दम उखड़ जाए तो दूसरा जमा रहे और फिर ऐसे हालात पैदा हो जाएं के दोनों क़दम जम जाएं। देखो आले मोहम्मद (स 0) की मिसाल आसमान के सितारों जैसी है के जब एक सितारा ग़ायब हो जाता है तो दूसरा निकल आता है , तो गोया अल्लाह की नेमतें तुम पर तमाम हो गई हैं और उसने तुम्हें वह सब कुछ दिखला दिया है जिसकी तुम आस लगाए बैठे थे।

101-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जो उन ख़ुत्बों में है जिनमें हवादिस ज़माना का ज़िक्र किया गया है)

सारी तारीफ़ उस अव्वल के लिये हैं जो हर एक से पहले है और उस आखि़र के लिये है जो हर एक के बाद है। उसकी अव्वलीयत का तक़ाज़ा है के उसका अव्वल न हो और इसकी आखि़रत का तक़ाज़ा है के इसका कोई आखि़र न हो। मैं गवाही देता हूँ के उसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है और इस गवाही में मेरा बातिन ज़ाहिर के मुताबिक़ है और मेरी ज़बान दिल से मुकम्मल तौर पर हमआहंग है।

(((- उससे मुराद ख़ुद हज़रत अली (अ 0) की ज़ाते गिरामी है जिसे हक़ का महवर व मरकज़ बनाया गया है और जिसके बारे में रसूले अकरम (स 0) की दुआ है के मालिक हक़ को उधर-उधर फेर दे जिधर-जिधर अली (अ 0) मुड़ रहे हों (सही तिरमिज़ी) और बाद के फ़िक़रात में आले मोहम्मद (अ 0) के दीगर अफ़राद की तरफ़ इशारा है जिनमें मुस्तक़बिल क़रीब में इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ 0) और इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ 0) का दौर था जिनकी तरफ़ अहले दुनिया ने रूजू किया और उनकी सियासी अज़मत का भी एहसास किया और मुस्तक़बिल बईद में इमाम मेहदी (अ 0) का दौर है जिनके हाथों उम्मत का इन्तेशार दूर होगा और इस्लाम पलटकर अपने मरकज़ पर आ जाएगा। ज़ुल्म व जौर का ख़ात्मा होगा और अद्ल व इन्साफ़ का निज़ाम क़ायम हो जाएगा-)))

ऐ लोगो! ख़बरदार मेरी मुख़ालफ़त की ग़लती न करो और मेरी नाफ़रमानी करके हैरान व सरगर्दान न हो जाओ और मेरी बात सुनते वक़्त एक-दूसरे को इशारे न करो के उस परवरदिगार की क़सम जिसने दाने को शिगाफ़्ता किया है और नुफ़ूस को ईजाद किया है के मैं जो कुछ ख़बर दे रहा हूँ वह रसूले उम्मी की तरफ़ से है जहां न पहुंचाने वाला ग़लत गो था और न सुनने वाला जाहिल था और गोया के मैं उस बदतरीन गुमराह को भी देख रहा हूँ जिसने शाम में ललकारा और कूफ़े के एतराफ़ में अपने झण्डे गाड़ दिये और उसके बाद जब इसका दहाना खुल गया और उसकी लगाम का दहाना मज़बूत हो गया और ज़मीन में उसकी पामालियां सख़्ततर हो गई तो फ़ितने अबनाए ज़माना को अपने दांतों से काटने लगे और जंगों ने अपने थपेड़ों की लपेट में ले लिया और दिनों की सख्तियां और रातों की जराहतें मन्ज़रे आम पर आ गईं और फिर जब इसकी खेती तैयार होकर अपने पैरों पर खड़ी हो गई और इसकी सरमस्तियां अपना जोश दिखलाने लगीं और तलवारें चमकने लगीं तो सख़्त तरीन फ़ितनों के झण्डे गाड़ दिये गए और वह तारीक रात और तलातुम ख़ेज़ समन्दर की तरह मन्ज़रे आम पर आ गए , और कूफ़े को इसके अलावा भी कितनी ही आन्धियां पारा-पारा करने वाली हैं और उस पर से कितने ही झक्कड़ गुज़रने वाले हैं और अनक़रीब वहां जमाअतें जमाअतों से गुथने वाली हैं और खड़ी खेतियां काटी जाने वाली हैं और कटे हुए माहसल को भी तबाह व बरबाद किया जाएगा।

102-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें क़यामत और इसमें लोगों के हालात का ज़िक्र किया गया है)

वह दिन वह होगा जब परवरदिगार अव्वलीन व आख़ेरीन को दक़ीक़तरीन हिसाब और आमाल की जज़ा के लिये इस तरह जमा करेगा के सब ख़ुज़ू व खुशु के आलम में खड़े होंगे , पसीना इनके दहन तक पहुँचा होगा और ज़मीन लरज़ रही होगी। बेहतरीन हाल उसका होगा जो अपने क़दम जमाने की जगह हासिल कर लेगा और जिसे सांस लेने का मौक़ा मिल जाएगा।

(((- रसूले अकरम (स 0) के दौर में अब्दुल्लाह बिन उबी और मौलाए कायनात (अ 0) के दौर में अशअत बिन क़ैस जैसे अफ़राद हमेशा रहे हैं जो बज़ाहिर साहेबाने ईमान की सफ़ों में रहते हैं लेकिन इनका काम बातों का मज़ाक़ उड़ाकर उन्हें मुश्तबा बना देने और क़ौम में इन्तेशार पैदा कर देने के अलावा कुछ नहीं होता है। इसलिये आपने चाहा के अपनी ख़बरों के मसदर व माखि़ज़ की तरफ़ इशारा कर दें ताके ज़ालिमों को शुबहा पैदा करने का मौक़ा न मिले और आप इस हक़ीक़त को भी वाज़े कर सकें के मेरे बयान में शुबह दर हक़ीक़त रसूले अकरम (स 0) की सिदाक़त में शुबह है जो कुफ़्फ़ार व मुष्रेकीने मक्का भी न कर सके तो मुनाफ़िक़ीन के लिये इसका जवाज़ किस तरह पैदा हो सकता है ? इसके बाद आपने इस नुक्ते की तरफ़ भी इशारा फ़रमा दिया के अगर बाक़ी लोग यह काम नहीं कर सकते हैं तो इसका ताल्लुक़ उनकी जेहालत से है रिसालत के ओहदए फ़याज़ से नहीं है , उसने तो हर एक को तालीमे दुनिया चाही लेकिन बे सलाहियत अफ़राद इस फ़ैज़ से महरूम रह गए तो करीम का क्या क़ुसूर है।)))

इसी ख़ुतबे का एक हिस्सा

ऐसे फ़ित्ने जैसे अन्धेरी रात के टुकड़े जिसके सामने न घोड़े खड़े हो सकेंगे और न उनके परचमों को पलटाया जा सकेगा , यह फ़ित्ने लगाम व सामान की पूरी तैयारी के साथ आएँगे के इनका क़ाएद उन्हें हंका रहा होगा और उनका सवाल उन्हें थका रहा होगा। इसकी अहल एक क़ौम होगी जिसके हमले सख़्त होंगे लेकिन लूट मार कम और उनका मुक़ाबला राहे ख़ुदा में सिर्फ़ वह लोग करेंगे जो मुस्तकबरीन की निगाह में कमज़ोर और पस्त होंगे। वह अहले दुनिया में मजहूल और अहले आसमान में मारूफ़ होंगे।

ऐ बसरा! ऐसे वक़्त में तेरी हालत क़ाबिले रहम होगी इस अज़ाबे इलाही के लशकर की बना पर जिसमें न ग़ुबार होगा न शोर व ग़ोग़ा और अनक़रीब तेरे बाशिन्दों को सुखऱ् मौत और सख़्त भूक में मुब्तिला किया जाएगा।

103-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(ज़ोहद के बारे में)

ऐ लोगो! दुनिया की तरफ़ इस तरह देखो जैसे वह लोग देखते हैं जो ज़ोहद रखने वाले और उससे नज़र बचाने वाले होते हैं के अनक़रीब यह अपने साकिनों को हटा देगी और अपने ख़ुशहालों को रन्जीदा कर देगी। इसमें जो चीज़ मुंह फेरकर जा चुकी वह पलट कर आने वाली नहीं है और जो आने वाली है उसका हाल नहीं मालूम है के इसका इन्तेज़ार किया जाए। इसकी ख़ुशी रन्ज से मख़लूत है और इसमें मर्दों की मज़बूती ज़ोफ़ व नातवानी की तरफ़ माएल है। ख़बरदार इसकी दिल लुभाने वाली चीज़ें तुम्हें धोके में न डाल दे के इसमें से साथ जाने वाली चीज़ें बहुत कम हैं।

ख़ुदा रहमत नाज़िल करे उस शख़्स पर जिसने ग़ौर व फ़िक्र किया तो इबरत हासिल की और इबरत हासिल की तो बसीरत पैदा कर ली के दुनिया की हर मौजूद शै अनक़रीब ऐसी हो जाएगी जैसे थी ही नहीं और आख़ेरत की चीज़ें इस तरह हो जाएंगी जैसे अभी मौजूद हैं। हर गिनती में आने वाला कम होने वाला है और हर वह शै जिसकी उम्मीद हो वह अनक़रीब आने वाली है और जो आने वाला है वह गोया के क़रीब और बिल्कुल क़रीब है।

( सिफ़ते आलिम) आलिम वह है जो अपनी क़द्र ख़ुद पहचाने और इन्सान की जेहालत के लिये इतना ही काफ़ी है के वह अपनी क़द्र को न पहचाने। अल्लाह की निगाह में बदतरीन बन्दा वह है जिसे उसने उसी के हवाले कर दिया हो के वह सीधे रास्ते से हट गया है और बग़ैर रहनुमा के चल रहा है।

(((- हक़ीक़ते अम्र यह है के इन्सान अपनी क़द्र व औक़ात को पहचान लेता है तो उसका किरदार ख़ुद-ब-ख़ुद सुधर जाता है और इस हक़ीक़त से ग़ाफ़िल हो जाता है तो कभी क़द्र व मन्ज़िलत से ग़फ़लत दरबारदारी , ख़ुशामद , मदहे बेजा , ज़मीर फ़रोशी पर आमादा कर देती है के इल्म को माल व जाह के एवज़ बेचने लगता है और कभी औक़ात से नावाक़फ़ीयत मालिक से बग़ावत पर आमादा कर देती है के अवामुन्नास पर हुकूमत करते-करते मालिक की इताअत का जज़्बा भी ख़त्म हो जाता है और एहकामे इलाही को भी अपनी ख़्वाहिशात के रास्ते पर चलाना चाहता है जो जेहालत का बदतरीन मुज़ाहिरा है और इसका इल्म से कोई ताल्लुक़ नहीं है-!)))

ऐ दुनिया के कारोबार की दावत दी जाए तो अमल पर आमादा हो जाता है और आख़ेरत के काम की दावत दी जाए तो सुस्त हो जाता है। गोया के जो कुछ किया है वही वाजिब था और जिसमें सुस्ती बरती है वह उससे साक़ित है।

( आखि़र ज़माना) वह ज़माना ऐसा होगा जिसमें सिर्फ़ वही मोमिन निजात पा सकेगा जो गोया के सो रहा होगा के मजमे में आए तो लोग उसे पहचान न सकें और ग़ाएब हो जाए तो कोई तलाश न करे। यही लोग हिदायत के चिराग़ और रातों के मुसाफ़िरों के लिये निशाने मन्ज़िल होंगे न इधर उधर लगाते फिरेंगे और न लोगों के उयूब की इशाअत करेंगे। उनके लिये अल्लाह रहमत के दरवाज़े खोल देगा और उनसे अज़ाब की सख्तियो को दूर कर देगा।

लोगों! अनक़रीब एक ज़माना आने वाला है जिसमें इस्लाम को इसी तरह उलट दिया जाएगा जिस तरह बरतन को उसके सामान समेत उलट दिया जाता है। लोगों! अल्लाह ने तुम्हें इस बात से पनाह दे रखी है के वह तुम पर ज़ुल्म करे लेकिन तुम्हें इस बात से महफ़ूज़ नहीं रखा है के तुम्हारा इम्तेहान न करे। इस मालिके जल्लाजलालोह ने साफ़ एलान कर दिया है के “ इसमें हमारी खुली हुई निशानियां हैं और हम बहरहाल तुम्हारा इम्तेहान लेने वाले हैं ”

सय्यद शरीफ़ रज़ी - मोमिन के नौमए (ख़्वाबीदा) होने का मतलब इसका गुमनाम और बेशर होना है और मसायीह , मिस्याह की जमा है और वह वह शख़्स है के जिसे किसी का ऐब मालूम हो जाए तो उसकी इशाअत के बग़ैर चैन न पड़े। बुज़ुर-बुज़दर की जमा है यानी वह शख़्स जिसकी हिमाक़त ज़यादा है और उसकी गुफ़्तगू लगवियात पर मुष्तमिल हो।