उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ.

उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ.50%

उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ. लेखक:
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
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उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ.
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उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ.

उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा स.अ.

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

सर चश्म ए कौसर उम्मुल मोमिनीन ख़दीजतुल कुबरा (अ )

लेखक

हुज्जतुल इस्लाम अली अकबर मेहदी पुर

हज़रत ख़दीजा (अ) का सिलसिल ए नसब

हज़रत ख़दीजा (अ) बिन्ते ख़ुवैलद , बिन असद , बिन अब्दुल उज़्ज़ा बिन कलाब , बिन मर्रा , बिन कअब , बिन लोएज , बिन ग़ालिब , बिन फ़हर।[ 1] आपके वालिदे मोहतरम (ख़ुवैलद) ने जबरदस्त बहादुरी के साथ ख़ान ए काबा की हुरमत का दिफ़ाअ किया जिसे आज भी याद किया जाता है। जब यमन के मग़रूर बादशाह (तुब्बअ) ने हजरे असवद को यमन में एक इबादतगाह में मुन्तक़िल करने का इरादा किया तो हज़रत ख़ुवैलद ने शमशीर को हाथ में ले लिया और कुरैश के बक़िया अफ़राद की मदद से दुश्मन को ज़िल्लत व ख़्वारी से ख़ान ए काबा की चार दिवारी से दूर भगा दिया।[ 2]

ख़ुवैलद बिन असद बहुत बड़ी शख़्सियत के हामिल थे। आप आमुल फ़िल के दूसरे साल क़ुरैश की जानिब से हज़रत अब्दुल मुत्तलिब के साथ सैफ़ बिन यज़न के तख़्ते हुकूमत पर बैठने के मौक़े पर मुबारक बाद पेश करने के लिये मक्क ए मुअज़्ज़मा से यमन की राजधानी सनआ तशरीफ़ ले गये और ग़मदान के महल में मुलाक़ात का शरफ़ हासिल किया।[ 3] उसके अलावा जंगे फ़ुज्जार में भी शरीक हो कर अपने रिश्तेदारों के लिये जंगी सामान हासिल करने का सम्मान प्राप्त किया। जिस में रसूले इस्लाम (स) भी अपनी जवानी के आग़ाज़ में शरीक थे।[ 4] हज़रत खुवैलद के वालिद मोहतरम हज़रत असद एक ज़माने में पेश कदम और मर्द मैदान रहे। जिसे अब्दुल्लाह बिन जुदआन के घर मज़लूमीन के दिफ़ाअ और हक़ दिलवाने की ख़ातिर मोअतक़िद किया गया। इस पैमान में पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने नुमाया किरदार अदा किया। आप उसके बाद हमेशा उसे याद किया करते थे।[ 5] हज़रत असद उस दौर में भी मर्दे मैदान रहे जिसे तारीख़ हलफ़ुल फ़ुसूल के नाम से याद करती है।[ 6]

आपकी वालिदा मोहतरमा फ़ातेमा बिन्ते ज़ायदा बिन असम , बिन रवाहा , बिन हज़र , बिन अब्द , बिन मईस , बिन आमिर , बिन लूई , बिन ग़ालिब , बिन फ़हर।[ 7] एक बा फ़ज़ीलत ख़ातून और हज़रत इब्राहीम (अ) के दीन की पैरव थीं।

इस बेना पर हज़रत ख़दीजा क़बील ए क़ुरैश से हैं वालिद की जानिब से तीसरी और वालिदा की तरफ़ से आठवी पुश्त से आपका सिलसिला पैग़म्बरे अकरम (स) के ख़ानदान से मिलता है।

हज़रत ख़दीजा (अ) के अलक़ाब

हज़रत खदीजा (अ) के बहुत से लक़ब हैं जो आपकी अज़मत और क़दासत को बयान करते हैं लेकिन यहाँ उन में से सिर्फ़ कुछ का ज़िक्र कर रहे हैं:

सिद्दिक़ा:

पैग़म्बरे अकरम (स) के ज़ियारत नामे में अज़वाज पर दुरुद व सलाम के वक़्त हज़रत ख़दीजा (स) को अल सिद्दिक़ा के लक़ब से याद किया गया है।[ 8] यह ऐसा लफ़्ज़ है जो क़ुरआन मजीद में सिर्फ़ एक बार हज़रत मरियम के लिये इस्तेमाल हुआ है।[ 9] सादिक़े आले मुहम्मद इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने लफ़्ज़े सिद्दिक़ा के मअना मासूम के बताये हैं।[ 10]

मुबारका

ख़ुदा वंदे आलम ने हज़रत ईसा (अ) की कि आख़िरी पैग़म्बर (स) की मुबारक नस्ल एक मुबारका ख़ातून से होगी।[ 11] अब्दुल्लाह बिन सुलैमान ने भी इस मतलब को इंजील से नक़्ल किया है।[ 12]

उम्मुल मोमिनीन

अज़वाजे पैग़म्बरे इस्लाम (स) क़ुरआने मजीद में उम्मुल मोमिनीन के लक़ब से याद की गई हैं।[ 13] जिनकी सरदार हज़रत ख़दीजा हैं। पैग़म्बरे अकरम (स) के क़ौल के मुताबिक़ उनकी बीवियों में सबसे अफ़जल व बेहतर आप ही को शुमार किया गया है।[ 14]

ताहिरा

हज़रत ख़दीजा (स) का सबसे मशहूर लक़ब जाहिलियत के दौर में ताहिरा था।[ 15] चूँकि जाहिलियत के ज़माने की सबसे अफ़ीफ़ और पाक दामन ख़ातून आप ही थीं।[ 16]

(आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

ख़वातीन की शहज़ादी (मलिका)

हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली (अ) ने एक क़सीदे में आपको सैयदतुन निसवा के नाम से ताबीर किया है जिसे सोगनाम ए हज़रत ख़दीजा (स) का उनवान दिया गया है।[ 17] हज़रत इमाम सादिक़ (अ) ने भी आपको सैयदतुल क़ुरैश के नाम से याद किया है।[ 18]

असमा बिन्ते उमैस भी आपको सैयदतुन निसाइल आलमीन कह कर पुकारती थीं।[ 19]

जाहिलियत के दौर में आपको सैयदतुन निसाइल क़ुरैश कहा जाता था।[ 20]

मज़ीद अलक़ाब

पैग़म्बरे अकरम (स) के ज़ियारत नामें में हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा को राज़िया , मरज़िया और ज़किय्या के नाम से भी याद किया गया है।[ 21] यतीम आपको उम्मुल यतामा (यतीमों की माँ) , बे कस व नाचार आपको उम्मुस सआलिक (ग़रीबों की माँ) मोमिनीन , उम्मुल मोंमिनीन और इस कायनात की नहरे जारी उम्मुज़ ज़हरा (स) यानी चश्म ए कौसर कह कर पुकारते थे।

हज़रत ख़दीजा (स) वहयी के आईने में

पैग़म्बरे अकरम (स) शबे मेराज बेसत के दो साल बाद माहे रबीउल अव्वल में जो हज़रत ख़दीजा (स) के घर से शुरु हुई। जब वापस ज़मीन पर लौट रहे थे तो क़ासिदे वहयी ने पैग़म्बर (स) से मुख़ातब हो कर फ़रमाया: ……………..।[ 22]

(मेरी ख़्वाहिश है कि ख़ुदा वंदे आलम और मुझ जिबरईल की तरफ़ से हज़रत ख़दीजा (स) को सलाम अर्ज़ करें।)[ 23] जब पैग़म्बरे अकरम (स) ने ख़ुदा वंदे आलम का सलाम ख़दीजा (स) की ख़िदमत में पहुचाया तो आपने जवाब में यूँ कहा: ख़ुदा वंद सलामती का मालिक है उसकी सलामती उसे मुझे मुबारक हो।[ 24] क़ासिदे वहयी दोबारा पैग़म्बरे इस्लाम (स) की ख़िदमत में अर्ज़ करता है। ऐ मुहम्मद , हज़रत ख़दीजा को ख़ुदा वंदे आलम की जानिब से सलाम अर्ज़ किया जा रहा है। हज़रत ख़दीजा (स) ने फ़रमाया: ख़ुदा वंदे आलम ख़ुद सलामती का मालिक है , सलामती उसकी जानिब से है और जिबरईले अमीन (अ) पर भी सलाम अर्ज़ हो।[ 25] क़ुरैश के वहशियाना हमले में जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) के शहीद होने की अफ़वाह हज़रत ख़दीजा के कानों में पहुची तो आपने मक्के के अतराफ़ की वादी और घाटी में अपने हबीब को तलाश करते हुए अशकों का सैलाब जारी कर दिया। (यह हालत देख कर) क़ासिदे वहयी पैग़म्बरे अकरम (स) पर नाज़िल हुआ और पैग़ाम पहुचाया कि आसमान के फ़रिश्ते हज़रत ख़दीजा (स) के अशकों पर अश्क बहा रहे हैं उन्हे अपने पास बुला कर मेरा सलाम अर्ज़ करें और बशारत दें कि ख़ुदा वंदे आलम भी सलाम अर्ज़ कर रहा है और बहिश्त में हज़रत ख़दीजा (स) से मख़सूस ऐसा महल है जिस में कोई ग़म व अंदोह न होगा।[ 26]

हज़रत ख़दीजा (स) पैग़म्बरे अकरम (स) की नज़र में

पैग़म्बरे अकरम (स) से मुतअद्दिद हदीसें हज़रते ख़दीजा (स) की शान में ज़िक्र हुई हैं लेकिन हम यहाँ उस समुन्दर में से सिर्फ़ एक गोशे की तरफ़ इशारा कर रहे हैं।

ख़ुदा वंदे आलम हर रोज़ हज़रत ख़दीजा (स) के वुजूद मुबारक से फ़रिश्तों पर फ़ख़्र करता है।[ 27]

पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं: हज़रत ख़दीजा (स) मुझ पर उस वक़्त ईमान लायीं जब सब वादी ए कुफ़्र में ख़ोतावर थे उन्होने उस वक़्त मेरी तसदीक़ फ़रमाई जब सब इंकार कर रहे थे।

उन्होने उस वक़्त अपना तमाम माल मेरे हवाले किया जब सब फ़रार कर रहे थे और उन्ही के तुफ़ैल ख़ुदा वंदे आलम ने मुझे साहिब औलाद बनाया।[ 28]

पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं: मरियम बिन्ते इमरान , आसिया बिन्ते मुज़ाहिम , ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलद और फ़ातेमा बिन्ते मुहम्मद (स) दुनिया की बेहतरीन ख़्वातीन शुमार होती है।[ 29]

जन्नत की अफ़ज़ल ख़्वातीन , ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलद , फ़ातेमा बिन्ते मुहम्मद (स) , मरियम बिन्ते इमरान और आसिया बिन्ते (फ़िरऔन की बीवी) हैं।[ 30]

मरियम , ख़दीजा , आसिया और फ़ातिमा (अ) ऐसी चार ख़्वातीन हैं जो जन्नत की ख़्वातीन की सरदार हैं।[ 31]

हज़रत मरियम , ख़दीजा , आसिया और फ़ातेमा दुनिया की ऐसी चार ख़्वातीन हैं जो कमाल की आख़िरी मंज़िल पर फ़ायज़ है।[ 32]

हज़रत ख़दीजा (स) ने ख़ुदा और उसके रसूल (स) पर ईमान लाने में तमाम ख़्वातीने आलम पर सबक़त हासिल की।[ 33]

पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं: कौन हज़रत ख़दीजा की तरह हो सकता है उन्होने मेरी उस वक़्त तसदीक़ की जब सब तकज़ीब कर रहे थे। दीन की तरक़्क़ी में मेरी मददगार रहीं और अपना सारा माल अल्लाह की राह में क़ुर्बान कर दिया।[ 34]

जन्नत चार शहज़ादियों की मुश्ताक़ है , मरियम , ख़दीजा , आसिया और फ़ातेमा (अ)।[ 35]

हज़रत ख़दीजा उम्महातुल मोमिनीन में से सबसे बेहतर और अफ़ज़ल और दुनिया की औरतों की सरदार हैं।[ 36]

ख़दीजा (स) की मुहब्बत मेरे लिये ख़ुदा वंदे आलम की मरहूने मिन्नत हैं।[ 37]

पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं: ख़दीजा (स) आमाक़े दिल से मेरी मुहिब हैं।[ 38]

पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं: मैं ख़दीजा (स) के चाहने वालों को चाहता हूँ।[ 39]

ख़ुदा वंदे आलम ने अज़वाज (बीवियों) में हज़रत ख़दीजा (स) को सबसे बेहतर क़रार दिया है।[ 40]

ख़ुदा वंदे आलम ने किसी को हज़रत ख़दीजा (स) का हम रुतबा क़रार नही दिया है।[ 41]

मैंने ख़िदमत के लिये हज़रत ख़दीजा (स) से बेहतर व हक़ शिनास किसी को नही पाया।[ 42]

हज़रत ख़दीजा (स) के माल से बढ़ कर कोई माल मेरे लिये फ़ायदेमंद साबित नही हुआ।[ 43]

ख़ुदा वंदे आलम ने चार औरतों का इंतेख़ाब किया है। मरियम , आसिया , ख़दीजा और फ़ातेमा (अलैहुन्नस सलाम)।[ 44] हज़रत मरियम अपने ज़माने की और हज़रत ख़दीजा (स) अपने ज़माने की सबसे अफ़ज़ल ख़ातून हैं।[ 45]

ख़ुदा वंदे आलम ने अली , हसन , हुसैन , हमज़ा , जाफ़र , फ़ातेमा और ख़दीजा (अलैहिमुस सलाम) को दोनो आलम में मुन्तख़ब क़रार दिया है।[ 46]

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने आयशा से मुख़ातब हो कर फ़रमाया: हज़रत ख़दीजा (स) के बारे में ऐसी बातें मत करो वह सबसे पहली ख़ातून हैं जो मुझ पर ईमान लायीं और उन्ही के ज़रिये ख़ुदा वंदे आलम ने मुझे साहिबे औलाद बनाया लेकिन तुम इस से महरूम रहीं।[ 47]

हज़रत ख़दीजा (स) बुज़ुर्गों की ज़बानी

अगर हम बुज़ुर्गाने इस्लाम के अक़वाल हज़रत ख़दीजा (स) के बारे में नक़्ल करने की कोशिश करें तो यह बात इस किताब की गुंजाईश से बाहर है। अलबत्ता बाज़ असहाबे सीरत और सवानेहे निगारों के अक़वाल की तरफ़ इशारा करना ज़रुरी है।

इब्ने हेशाम अपनी मशहूर किताब अस सीरतुन नबविया में लिखते हैं कि हज़रत ख़दीजा (स) सिलसिल ए नसब में सबसे आली , शराफ़त में सबसे शरीफ़ , माल व दौलत के ऐतेबार से दूसरों से ज़्यादा दौलत मंद , क़ुरैश की औरतों में सबसे ज़्यादा अमानतदार , हुस्ने ख़ुल्क़ में सबसे ज़्यादा ख़ुश अख़लाक़ , इफ़्फ़त व करामत में सबसे ज़्यादा अफ़ीफ़ थीं , लिहाज़ा शराफ़त की उन बुलंदियों की मालिका हैं। जहाँ तक दूसरों की रसाई नही।

अहले सुन्नत के उलामा ए रेजाल में से ज़हबी लिखते हैं कि हज़रत ख़दीजा (स) जन्नत की ख़्वातीन की सरदार , अक़ील ए क़ुरैश , क़बील ए असद की फ़र्द , निहायत जलीलुल क़द्र , दीनदार , पाक दामन व बुज़ुर्ग शख़्सियत की हामिल थीं और कमाल की आख़िरी मंज़िल पर फ़ायज़ थीं।[ 48]

इब्ने हजरे असक़लानी लिखते हैं कि हज़रत ख़दीजा (स) ने बेसत के आग़ाज़ में ही पैग़म्बरे इस्लाम (स) की रिसालत की गवाही देकर दुनिया वालों के लिये अपने सबाते क़दम , यक़ीने कामिल , अक़्ल सलीम और अज़मे रासिख़ को नमूना क़रार दिया है।[ 49]

सुहैली इस सिलसिले में लिखते हैं कि हज़रत ख़दीजा (स) ख़्वातीने क़ुरैश की सरदार थी। दौरे जाहिलियत व इस्लाम दोनों में आपको ताहिरा के लक़ब से याद किया जाता था।[ 50]

हज़रत ख़दीजा (स) तारीख़ के अदवार में

पूरी तारीख़ में तारीख़ लिखने वाले (इतिहासकार) ज़ोर ज़बरदस्ती और चापलूसी का शिकार रहे हैं। इसी वजह से तारीख़ के मुसल्लम हक़ायक़ तहरीफ़ से दोचार हुए और इस तरह उन्होने अपना असली रुप खो दिया या अब अगर कोई मुहक़्क़िक़ तारीख़ की असली हक़ीक़त को बयान करने की कोशिश करे तो सब के लिये ताज्जुब का मक़ाम बन जाता है। दौरे हाज़िर में एक मुहक़्क़िक़ ने क़ातेअ (मज़बूत) दलीलों के ज़रिये ग़ारे सौर में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के साथी , अब्दुल्लाह बिन ओरैयकज़ बिन बकर को साबित किया है। उसने हक़ीक़त को यूँ बयान किया है कि मुआविया के दौर में पैसे के लालच में दास्ताने ग़ार को जअल किया गया है और अब्दुल्लाह की जगह दूसरे शख़्स का नाम लिख दिया गया है।[ 51] उसने साबित किया है कि इस जुमले को मुआविया के मानने वालों ने जअल किया है।[ 52] लिहाज़ा अगर क़ुरैश की दोशिज़ा , हज़रत ख़दीजा (स) को चालीस साला ख़ातून और साहिबे औलाद बताया जाये तो ताज्जुब नही करना चाहिये। इसी तरह अगर हज़रत अली (अ) को बक़िया ख़ुलफ़ा की शक्ल में सियासी रक़ीब बनाया जाये तो भी ताज्जुब का मक़ाम नही है बल्कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने हज़रत अली (अ) की ख़ुसूसियात को शुमार करते हुए फ़रमाया है कि ऐ अली , आप ऐसी तीन ख़ुसूसियात के मालिक हैं जो दूसरे किसी के पास नही है , यहाँ तक कि मैं भी उन से महरुम हूँ।

तुम्हे मुझ जैसा ससुर मिला है जिससे में महरुम हूँ।

(आप इस किताब को अलहसनैन इस्लामी नैटवर्क पर पढ़ रहे है।)

तुम्हे फ़ातेमा जैसी हम रुतबा बीवी मिली है जिससे मैं महरुम हूँ।

हसन व हुसैन (अ) जैसे बेटे तुम्हारे सुल्ब से हैं जिससे मैं महरुम हूँ।[ 53]

अब अगर पैग़म्बरे इस्लाम (स) के यहाँ फ़ातेमा (स) के अलावा कोई और बेटी तो उसका शौहर भी अली (अ) के मानिन्द होता जबकि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने ख़ुद इस बात की नहयी की है। मुहद्देसीन (हदीसकारों) के मुताबिक़ हज़रत ख़दीजा (स) की शादी जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) से हुई तो आप कुँवारी थीं , बाज़ का हम यहाँ पर ज़िक्र लाज़िम समझते हैं:

सैयद मुर्तज़ा अलमुल हुदा ने अपनी किताब अश शाफ़ी फ़िल इमामह में इस बात का ज़िक्र किया है।

शेख़ तूसी ने अपनी किताब तलख़ीशुश शाफ़ी में इसे लिखा है।

बलाज़री ने अपनी किताब अनसाबुल अशराफ़ में इस का तज़किरा किया है।[ 54]

अबुल क़ासिम कूफ़ी ने अपनी किताब अलइसतेग़ासा फ़ी बदइस सलासा में इसे लिखा है। बहुत से इतिहासकारों और हदीसकारों ने इस बात को इन किताबों से नक़्ल किया है[ 55] और इस नुक्ते पर ताकीद की है कि हज़रत ख़दीजा (स) की उमरे मुबारक शादी के वक़्त 25 या 28 साल थी और वह क़ुँवारी थी। ज़ैनब , रुक़य्या और उम्मे कुलसूम हज़रत ख़दीजा की बहन हाला की बेटियाँ थी जो आप की सर परस्ती और किफ़ालत में ज़िन्दगी बसर कर रही थीं। इब्ने अब्बास से बहुत से इतिहासकारों और हदीसकारों ने नक़्ल किया है कि हज़रत ख़दीजा (स) की शादी जब पैग़म्बरे अकरम (स) से हुई तो उस वक़्त आप की उम्र 28 साल थी।[ 56]

अख़तब ख़्वारिज़्म ने सिलसिल ए सनद को बयान करते हुए मुहम्मद बिन इसलाक़ से नक़्ल किया है कि हज़रत ख़दीजा (स) की उम्र पैग़म्बरे इस्लाम (स) से शादी के वक़्त 28 साल थी। बाज़ इतिहासकार और जीवनी लेखकों के मुताबिक़ हज़रत ख़दीजा (स) की उमरे मुबारक , पैग़म्बरे अकरम (स) से शादी के वक़्त 25 या 28 साल थी।[ 57] मरहूम आयतुल्लाह शिराज़ी लिखते हैं कि हज़रत ख़दीजा (स) दोशिज़ा (कुँवारी) थीं और हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा (स) से अक़्द के शौक़ में तमाम अशराफ़े क़ुरैश को ना में जबाव दे चुकी थी।[ 58]

दौरे हाज़िर के मुहक़्क़ेकीन में से अल्लामा दख़ील ने इस बात की ताईद करते हुए बयान किया है कि हज़रत ख़दीजा (स) के दोशिज़ा (कुँवारी) होने की ताईद किताब अल अनवार वल बिदअ ने भी की है वह लिखते हैं कि रुक़य्या व ज़ैनब हज़रत ख़दीजा (स) की बहन हाला की बेटियाँ थीं।[ 59]

मरहूम अल्लामा मोहसिन अमीन आमुली ने भी अपनी किताब आयानुश शिया में वाज़ेह तारीख़ी दलीलों के ज़रिये से साबित किया है कि ज़ैनब व रुक़य्या पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बेटियाँ नही थीं। दौरे हाज़िर के मुहक़्क़िक़ जनाब जाफ़र मुर्तज़ा आमुली ने मुतअद्दिद शवाहिद से साबित किया है कि हज़रत ख़दीजा (स) पैग़म्बरे अकरम (स) के साथ शादी से क़ब्ल दोशिया (कुँवारी) थीं।[ 60] हैरत अंगेज़ बात यह है कि वह मुजरिम हाथ जिन्होने हज़रत ख़दीजा (स) के लिये जाली फ़रज़ंद और शौहर बनाने की कोशिश की वहीं दूसरे अफ़राद के लिये जो किसी तरह की कोई फ़ज़ीलत नही रखते हैं उन के लिये तहरीफ़ व मन घढ़त फ़ज़ालय में वहाँ तक पहुच गये कि तमाम हुस्न व जमाल को उन के लिये जअल करके उन्हे कल्लिम्नी या हुमैरा की मंज़िल तक पहुचा दिया जबकि इतिहासकारों ने इब्ने अब्बास के जुमले को जो उन्होने जंगे जमल में आयशा से मुख़ातब हो कर फ़रमाया था। जिसे तारीख़ ने इस तरह लिखा है कि ''लसता बे अजमलेहिन्ना ''। पैग़म्बरे इस्लाम (स) की अज़वाज (बीवियाँ) में तुम सबसे बेहतर व हसीन व जमील न थीं और वसी ए पैग़म्बर (स) के ख़िलाफ़ ग़ज़ब की आग भड़का कर जंग के लिये आमादा हो गई हो।

सारे इतिहासकारों की नज़र में हज़रत ख़दीजा (स) हिजाज़ की सबसे हसीन मलिका थीं , हज़रत इमाम हसन (अ) मज़हरे जमाल होने के बावजूद अपने आप को अहले बैत (अ) में हज़रत ख़दीजा (स) की शबीह समझते थे। नफ़्से ज़किय्या के वालिदे माजिद हज़रत अब्दुल्लाह से सवाल किया गया कि हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) दंदाने (दाँत) मुबारक ख़ूबसूरत और चमकदार क्यों थे ? आपके दाँतों की चमक से लोग आपके गिरविदा बन जाते थे। अब्दुल्लाह ने जवाब दिया कि इस की वजह मालूम नही लेकिन हज़रत ख़दीजा (स) के बारे में जानता हूँ कि वह ऐसे हुस्न की मालिका थीं और हज़रत ज़हरा (स) ने उसको अपनी वालिदा से विरासत में हासिल किया था।[ 61]

सबसे पहली मुस्लिम ख़ातून

हर दौर में अब तक सैंकड़ों की तादाद में ख़्वातीन दीने इस्लाम से मुशर्रफ़ होकर फ़ज़ायल व मनाक़िब के बाब खोलने में कामयाब हुई हैं और जहाने इस्लाम के लिये बाइसे इफ़्तेख़ार बनी हैं लेकिन हज़रत ख़दीजा (स) का नाम सरे फेहरिस्त , सबसे पहली ख़ातून के उनवान से तारीख़ के सफ़हात पर सुनहरे क़लम से लिखा नज़र आता है।[ 62] बेसते पैग़म्बरे इस्लाम (स) से क़ब्ल हज़रत ख़दीजा (स) अपने जद्दे बुज़ुर्गवार हज़रत इब्राहीम (अ) के दीन की पैरव थीं दूसरे लफ़्ज़ों में कहा जा सकता है कि दीने हनीफ़ की पैरों थीं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बेसत के पहले दिन आपने आपके दीन के सामने तसलीम होने का ऐलान कर दिया जैसा कि एक हदीस में मिलता है कि मर्दों में सबसे पहले पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर ईमान लाने वाले हज़रत अली (अ) और औरतों में हज़रत खदीजा (स) थीं।[ 63] एक मरतबा एक यहूदी आलिम ने अमीने क़ुरैश (पैग़म्बर (स)) को हज़रत ख़दीजा (स) के घर देखा तो हज़रत खदीजा (स) से अर्ज़ करने लगा कि ऐ ख़दीजा , यह वही पैग़म्बरे मौऊद है जिसकी ख़ुसूसियात को मैंने तौरेत में पढ़ा है कि क़ुरैश की ख़्वातीन की सरदार उससे शादी करेगी। शायद यह शरफ़ आपको नसीब हो।[ 64]

शाम के एक तिजारती सफ़र में पैग़म्बरे इस्लाम (स) से मुतअद्दिद गै़र मामूली उमूर मुशाहेदे में आए। उस की एक एक ख़बर हज़रत ख़दीजा (स) के ख़िदमत में पहुचाई गई जिसके नतीजे में आप पैग़म्बर (स) पर फ़िदा हो गई।[ 65] हज़रत खदीजा (स) के चचाज़ाद भाई वरक़ा बिन नौफ़ल ने भी इस काम में आपकी रहनुमाई की और कहने लगें कि ख़ुदा की क़सम वह ऐसा नबी है जिसकी बेसत के हम सब मुन्तज़िर हैं।[ 66] वरक़ा बिन नौफ़ल ऐसी शख़्सियत थीं जो बुत परस्ती से बर सरे पैकार रही।[ 67] और हज़रत ख़दीजा (स) के लिये पैग़म्बरे इस्लाम (स) की मुहब्बत का बाइस बनी।[ 68] जब पैग़म्बर अकरम (स) ग़ारे हिरा से बेसत के पहले दिन मंसबे रिसालत के साथ आ रहे थे तो ख़्वातीन क़ुरैश की सरदार हज़रत ख़दीजा (स) आपके इस्तिक़बाल में बढ़ीं और अर्ज़ करने लगीं कि यह नूर कैसा है जो आपकी पेशानी ए मुबारक पर नज़र आ रहा है ? आप (स) ने फ़रमाया कि यह नूर नबुव्वत का है। फिर पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अरकाने इस्लाम हज़रत ख़दीजा (स) के ख़िदमत में बयान किये तो हज़रत ख़दीजा (स) बे साख़्ता कहने लगीं: ''आमनतो व सद्दक़तो व रज़ियतो व सल्लमतो '' मैं ईमान ले आई आपके नबी होने की तसदीक़ कर रही हूँ , इस्लाम के आईन से राज़ी हूँ और उसके सामने तसलीम हूँ।[ 69]

सबसे पहली नमाज़ गुज़ार ख़ातून

हज़रत ख़दीजा (स) इस्लाम की सबसे पहली नमाज़ गुज़ार ख़ातून हैं। कई सालों तक दीने इस्लाम की पाबंद सिर्फ़ दो शख़्सियते थीं एक हज़रत अली (अ) दूसरे हज़रत ख़दीजा (स)। पैग़म्बरे इस्लाम (स) हर रोज़ पाँच मरतबा मस्जिदुल हराम में शरफ़याब हो कर काबे की जानिब रुख़ करके खड़े होते थे हज़रत अली (अ) आपके दायें जानिब और हज़रत ख़दीजा आपके पीछे खड़ी होती थी। यह तीन शख़्सियतें ख़ान ए तौहीद में अपने मअबूद की इबादत में उम्मते इस्लामी को तशकील दे रही थीं।[ 70]

अब्दुल्लाह बिन मसऊद ने सबसे पहले जब ऐसा मन्ज़र देखा तो अब्बास से इस मन्ज़र की वज़ाहत तलब की , अब्बास ने जवाब दिया: यह शख़्स मेरा भतीजा है (मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह) है , वह नौजवान अली बिन अबी ताबिल है और वह ख़ातून हज़रत ख़दीजा हैं , मज़कूरा तीन अफ़राद के अलावा पूरी ज़मीन पर इस दीन का मानने वाला और कोई शख़्स नही मिलेगा। अब्बास ने यही जवाब अफ़ीफ़ कंदी को भी दिया।[ 71] मर्दों में सबसे पहले नमाज़ गुज़ार हज़रत अली (अ) और औरतों में हज़रत ख़दीजा (स) थीं , बाद में जाफ़रे तय्यार हज़रत अली (अ) के भाई अपने वालिदे गिरामी हज़रत अबु तालिब के हुक्म के मुताबिक़ इस सफ़ में शामिल हुए।[ 72] उस के दिन के बाद यह इबादत चार आदमियों के ज़रिये अंजाम पाने लगी आख़िरकार क़ुरैश की मुहासरा मुसलमानों पर रफ़ता रफ़ता सख़्त होता गया और वह शेअबे अबी तालिब में ज़िन्दगी बसर करने पर मजबूर हो गये।

सबसे पहली विलायत की पैरव ख़ातून

अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) अपनी उम्र के छठे साल से पैग़म्बरे अकरम (स) तहते किफ़ालत थे लिहाज़ा हज़रत ख़दीजा (स) आपकी परवरिश करने में माँ का हक़ रखती थी। पैग़म्बरे अकरम (स) ने विलायत के बुलंद मक़ाम को जब हज़रत ख़दीजा (स) के सामने बयान किया तो हज़रत अली (अ) विलायत का इक़रार चाहा। हज़रत ख़दीजा (स) ने वाज़ेह तौर पर अर्ज़ की: मैं अली (अ) की विलायत का इक़रार करती हूँ और उन से बैअत का ऐलान करती हूँ।[ 73] हज़रत ख़दीजा (स) को हज़रत अली (अ) से इस क़दर उलफ़त व मुहब्बत थी कि इतिहासकारों ने लिखा है कि अली (अ) पैग़म्बरे इस्लाम (स) के भाई , पैग़म्बर (स) के नज़दीक सबसे नज़दीक और हज़रत ख़दीजा (स) की आँखों का नूर हैं।[ 74]

सबसे पहली शहज़ादी जिसने जन्नत का मेवा खाया

हज़रत खदीजा (स) सबसे पहली ख़ातून हैं जिन्होने पैग़म्बरे अकरम (स) के दस्ते मुबारक से जन्नत का अंगूर तनावुल फ़रमाया।[ 75]

बेनज़ीर बीवी

हज़रत ख़दीजा (स) ऐसी बेनज़ीर शहज़ादी हैं जिन के ज़रिये पैग़म्बरे इस्लाम (स) की नस्ले पाक अभी तक बाक़ी है सिर्फ़ आप ही ऐसी ख़ातून हैं जिन्होने ख़ुदा वंदे इमामत के दरख़्शाँ अनवार के लिये ज़र्फ़ क़रार दिया है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) हज़रत ख़दीजा (स) के मक़ाम व मंज़िलत को हज़रत ज़हरा (स) से यूँ बयान करते हैं: ऐ बेटी , तुम्हारी माँ ख़दीजा (स) को ख़ुदा वंदे आलम ने नुरे इमामत के लिये ज़र्फ़ क़रार दिया है।[ 76] एक दूसरी हदीस में पैग़म्बरे अकरम (स) फ़रमाते हैं: जिबरईले अमीन (अ) ने मुझे बशारत दी है कि मेरी नस्ल की बक़ा हज़रत ख़दीजा (स) से होगी और मेरी उम्मत के इमाम व ख़ुलाफ़ा भी उसी से होंगें।[ 77] पैग़म्बरे इस्लाम (स) हमेंशा जनाबे ख़दीजा (स) की सबसे बड़ी फ़ज़ीलत (उम्मुल फ़ज़ायल) की जानिब इशारा करते हुए फ़रमाते थे: ख़ुदा वंदे आलम ने मुझे हज़रत खदीजा (स) के ज़रिये साहिबे औलाद बनाया जब कि बक़िया बीवियाँ इससे महरुम रहीं।[ 78] हज़रते ख़दीजा (स) की हयाते तय्यबा में पैग़म्बरे अकरम (स) में पैग़म्बरे अकरम (स) ने किसी से शादी नही की। हज़रत ख़दीजा (स) नबुव्वत की नहरे जारी का सर चश्मा हैं कि जिन की बदौलत आज अस्सी लाख से ज़ायद सादात पैग़म्बरे इस्लाम (स) की नस्ल से पाये जाते हैं। यह ख़ैरे कसीर , ख़ैरुल बशर , हज़रत पैग़म्बर अकरम (स) को ख़ुदा वंदे आलम की जानिब से अता किया गया है। पैग़म्बरे अकरम (स) ने हज़रत ख़दीजा (स) को ज़िन्दगी के आख़िरी लम्हात में बशारत दी कि जन्नत में भी आप में मेरी बीवी रहेगीं।[ 79]

अक़ील ए क़ुरैश

हज़रत ख़दीजा (स) जमाल व कमाल , माल व दौलत और ख़ानदानी शराफ़त के बावजूद अक़्ल , इल्म , बसीरत , सालिम फ़िक्र , मजबूत इरादा , दिक़्क़ते नज़र और सही राय व...... की मालिका थीं। आप किन किन सिफ़ात फ़ायज़ थीं इसका अंदाज़ा यूँ लगाया जा सकता है कि बनी हाशिम के सरदार , यमन के बादशाह और तायफ़ के बुज़ुर्ग तमाम माल व दौलत लिये हुए आपसे शादी करने की ख़्वाहिश से आते थे और आपके इंकार के बाद ख़ाली हाथ लौटते थे। इससे साबित होता है कि आप अमीने क़ुरैश पर फ़िदा थीं।

शादी का मक़सद

फ़ितरी तौर पर हर ख़ातून के लिये शादी का मक़सद , माल व दौलत और जाह व हशमत व जमाल हुआ करता है लेकिन अक़ील ए क़ुरैश की नज़र में आद्दी व माद्दी अहदाफ़ की कोई अहमियत नही थी। ख़ुद हज़रत ख़दीजा (स) पैग़म्बरे इस्लाम (स) से अपनी शादी के मक़सद को बयान करते हुए फ़रमाती हैं

ऐ मेरे चचा के बेटे मैं आपकी शैदाई हूँ इसकी कई वजहें हैं:

1. आप मेरे रिश्तेदारों में से हैं।

2. आप शराफ़त की बुलंदियों पर फ़ायज़ है।

3. आपको आपकी क़ौम अमीन के नाम से पुकारती है।

4. आप एक सच्चे इंसान हैं।

5. आप का अख़लाक अच्छा है।[ 80]

हज़रत ख़दीजा (स) ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) की फूफी सफ़िया की ख़िदमत में तोहफ़े भेजे और अर्ज़ किया: ऐ सफ़िया , ख़ुदा के लिये पैग़म्बरे इस्लाम (स) के विसाल तक पहुचने में मेरी रहनुमाई करें।[ 81] हज़रत ख़दीजा (स) अपने राज़ को सफ़िया से बयान करती हैं...........................

मैं यक़ीनन जानती हूँ कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ख़ुदा वंदे आलम की जानिब से ताईद शुदा हैं।[ 82] जब हज़रत ख़दीजा (स) ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) को तिजारती काफ़िले की सर परस्ती के लिये इंतेख़ाब किया तो अर्ज़ किया: मैंने गुफ़तार में सदाक़त , किरदार में अमानत और रफ़तार में हुस्ने ख़ुल्क़ की ख़ातिर आपको अपने काफ़िले का सर परस्त बनाया है। हज़रत ख़दीजा (स) के ग़ुलाम मैयसरा ने तिजारती सफ़र से वापस लौट कर पैग़म्बरे इस्लाम (स) के किरदार व रफ़तार को चश्मदीद गवाह के तौर पर हज़रत ख़दीजा (स) की ख़िदमत में बयान किया और नसतूर नामी राहिब से भी जो कुछ सुना था। अक़ील ए क़ुरैश के सामने पेश किया जिसका कहना था कि वही पैग़म्बरे मौऊद हैं।

हज़रत ख़दीजा (स) ने सारी गुफ़तुगू अपने चचा ज़ाद भाई वरक़ा बिन नौफ़ल को बताई और कहने लगीं कि जब मुहम्मद अमीन (स) आ रहे थें तो बादल आपके सर पर साया फ़िगन थे। वरक़ा बिन नौफ़ल ऐसी शख़्सियत थे जिसे गुज़श्ता अंबिया की किताबों का इल्म था उन्होने जवाब में कहा: मज़कूरा ख़ुसूसियात की बेना पर यह वही पैग़म्बरे मौऊद (स) हैं जिसका हम इंतेज़ार करत रहे थे अब उसकी बेसत का वक़्त आ पहुचा है।[ 83] लिहाज़ा अक़ील ए क़ुरैश चाहती थीं कि अमीने क़ुरैश की बीवी बनने का शरफ़ हासिल करें इसी लिये आप इस रास्ते में तमाम बा असर अफ़राद की मदद से इस मुक़द्दस अम्र के मुक़द्देमात की फ़राहमी के लिये कोशिश कर रही थीं। आपने अपनी बहन हाला को अम्मार के पास भेजा ता कि इस मुक़द्दस बंधन की तमाम रुकावटों को दूर करें।[ 84] इसी तरह आप सफ़िया नामी एक ख़ातून के साथ पैग़म्बरे इस्लाम (स) की ख़िदमत में हाज़िर हुईं और अर्ज़ किया: मैंने अपने ख़ानदान से आपके लिये एक ख़ातून का इंतेख़ाब किया है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने पूछा वह कौन है ? हज़रत ख़दीजा (स) ने अर्ज़ किया: वह तुम्हारी कनीज़ ख़दीजा है।[ 85]

[1] इब्ने हेशाम , अस सीरतुन नबविया जिल्द 2 पेज 8

[2] सैलावी , अल अनवारुस सातेआ पेज 9

[3] अरज़क़ी , अखबारे मक्का जिल्द 1 पेज 149

[4] इब्ने हेशाम , अस सीरतुन नबविया जिल्द 1 पेज 168

[5] इब्ने हेशाम , अस सीरतुन नबविया जिल्द 1 पेज 266

[6] पिछला हवाला पेज 265

[7] पिछला हवाला जिल्द 2 पेज 8

[8] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 100 पेज 189

[9] सूर ए मायदा आयत 75

[10] शेख कुलैनी , उसूले काफ़ी

[11]. शेख़ अब्बास क़ुम्मी , कुहलुल बसर पेज 70

[12] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 43 पेज 22,

[13]. सूर ए अहज़ाब आयत 6

[14] सैलावी , अल अनवारुस सातेआ पेज 226

[15] इब्ने हजर , अल इसाबा जिल्द 4 पेज 273। मजमउज ज़वायद जिल्द 9 पेज 218

[16] ज़रक़ानी , शरहुल मवाहिबिल लदुन्निया जिल्द 1 पेज 99, मामक़ानी , तसहीहुल मक़ाल जिल्द 3 पेज 77

[17] इब्ने शहरे आशोब , मनाक़िबे आले अबी तालिब जिल्द पेज 70

[18] हिमयरी , क़ौसुल असनाद पेज 325

[19] क़ज़वीनी , फ़ातेमातुज़ ज़हरा (स) मिनल महदे एलल लहद पेज 145

[20] ज़रक़ानी , शरहुल मवाहिबिल लदन्निया जिल्द 1 पेज 199

[21] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 100 पेज 189

[22] इब्ने शहर आशोब , मनाकि़बे आले अबी तालिब जिल्द 1 पेज 228

[23] तफ़सीरे अयाशी जिल्द 2 पेज 279, सही बुख़ारी जिल्द 5 पेज 112

[24] शेख़ तूसी , अल अमाली पेज 75 मजलिस 6 हदीस 46

[25] ज़हबी , सीरए आलामुन नुबला जिल्द 2 पेज 85

[26] सही बुख़ारी जिल्द 5 पेज 112, गंजी , किफ़ायतुत तालिब पेज 359

[27] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 18 पेज 243, अरबेली , क़शफ़ुल ग़ुम्मह जिल्द 2 पेज 72

[28] ज़हबी , सीरए आलामुन नबला जिल्द 2 पेज 82, इब्ने हजर , अल एसाबा जिल्द 4 पेज 275

[29] इब्ने असीर , उस्दुल ग़ाबा जिल्द 5 पेज 537

[30] इब्ने अब्दुल बर , अल इसतिआब जिल्द 2 पेज 720

[31] तबरी , ज़ख़ायरुल उक़बा पेज 44

[32] इब्ने सब्बाग़ मालिकी , अल फ़ुसूलुल मुहिम्मह पेज 129

[33] हाकिम , मुसतदरके सहीहैन जिल्द 2 पेज 720

[34] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 43 पेज 25

[35] बिहारुल अनवार जिल्द 43 पेज 53

[36] सैलावी , अल अनवारुस सातेआ पेज 7

[37] गंजी शाफ़ेई , किफ़ायतुत तालिब पेज 359

[38] बहरानी , अल अवालिम जिल्द 11 पेज 32

[39] महल्लाती , रियाहिनुश शरीयह जिल्द 2 पेज 206

[40] इब्ने हेशाम , अस सीरतुन नबविया जिल्द 1 पेज 80

[41] इब्ने अब्दुल बर , अल इसतीआब जिल्द 2 पेज 721

[42] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 16 पेज 10

[43] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 19 पेज 63

[44] इब्ने अबिल हदीद , शरहे नहजुल बलाग़ा जिल्द 10 पेज 266

[45] सही बुख़ारी जिल्द 4 पेज 200

[46] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 37 पेज 63

[47] क़ाज़ी नोमान , शरहुल अख़बार जिल्द 3 पेज 20

[48] ज़हबी , सीर ए आलामुन नुबला जिल्द 2 पेज 109

[49] इब्ने हजर , फ़तहुल बारी जिल्द 7 पेज 134

[50] सुहैली , अर रौज़ुल अन्फ़ जिल्द 1 पेज 215

[51] नजाह ताई , यारे ग़ार पेज 61, नजाह ताई साहिबुल ग़ार पेज 79

[52] नजाह ताई , सीरतुल इमाम अमीरिल मोमिनीन जिल्द 7 पेज 173

[53] काज़ी शूसतरी , अहक़ाक़ुल हक़ जिल्द 5 पेज 74

[54] बलाज़री , अनसाबुल अशराफ जिल्द 1 पेज 98

[55] शहरे इब्ने आशोब मनाक़िबे आले अबी तालिब जिल्द 1 पेज 160, अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 22 पेज 191, रियाहिनुश शरीयह जिल्द 2 पेज 269

[56] इब्ने सअद , अत तबक़ातुल कुबरा जिल्द 8 पेज 17, ज़हबी सीरए आलामुन नुबला जिल्द 2 पेज 111

[57] बलाज़री , अनसाबुल अशराफ़ जिल्द 1 पेज 108, दयार बकरी , तारीख़ुल ख़मीस जिल्द 2 पेज 264, इब्ने कसीर , अल बिदाया वन निहाया जिल्द 2 पेज 295, हलबी , अनसानुस उयून जिल्द 1 पेज 140

[58] सैयद मुहम्मद शीराज़ी , उम्माहातुल मोमिनीन पेज 90

[59] अल्लामा मुहम्मद अली दख़ील , उम्मुल मोमिनीन ख़दीजा (स) बिनते ख़ुवैलद पेज 11

[60] आमोली , बनातुन नबी अम रबायबोह पेज 75

[61] तबरी , दलायलुल इमामह पेज 151

[62] आयशा बिन्तुश शाती , मौसूआतो आलिन नबी (स) पेज 230

[63] शेख़ तूसी , अल अमाली , पेज 259, मजलिस 10 हदीस 467

[64] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 16 पेज 20

[65] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 16 पेज 35, 50

[66] दख़ील , उम्मुल मोमिनीन ख़दीजा (स) पेज 41

[67] इब्ने हेशाम , अस सीरतुन नबविया जिल्द 1 पेज 222

[68] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 16 पेज 21

[69] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 18 पेज 232

[70] निसाई , ख़सायसे अमीरुल मोमिनीन पेज 45

[71] इब्ने अबिल हदीद , शरहे नहजुल बलाग़ा जिल्द 13 पेज 226

[72] इब्ने असीर , उसदुल ग़ाबा जिल्द 3 पेज 414

[73] मुहद्दिस नूरी , मुसतदरकुल वसायल जिल्द 6 पेज 455

[74] फ़ातेमा बिनते असद के इक़रार से मालूम होता है कि रिसालत के दौर के लोगों से भी विलायते अली (अ) के बारे सवाल होगा।

[75] मसऊदी , इसबातुल वसीयह पेज 144

[76] हैसमी , मजमउज़ ज़वायद जिल्द 9 पेज 225

[77] मसऊदी , इसबातुल विलायह पेज 144

[78] इब्ने शहर आशोब , मनाकि़बे आले अबी तालिब जिल्द 3 पेज 383

[79] तबरी , दलायलुल इमामह पेज 77

[80] याक़ूबी , अत तारीख़ जिल्द 2 पेज 28, तबरानी , मोजमुल कबीर जिल्द 22 पेज 276

[81] तबरी , दलायलुल इमामह पेज 77

[82] अरबेली , कशफ़ुल ग़ुम्मह जिल्द 1 पेज 509

[83] अल्लामा मजलिसी , बिहारुल अनवार जिल्द 16 पेज 57

[84] अब्दुल मुनईम , उम्मुल मोमिनीन ख़दीजा (स) पेज 33

[85] अब्दुल मुनईम , उम्मुल मोमिनीन ख़दीजा (स) पेज 52


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