इस्लाम धर्म व शिया सम्प्रदाय का संक्षिप्त परिचय

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इस्लाम धर्म व शिया सम्प्रदाय का संक्षिप्त परिचय कैटिगिरी: धर्म और सम्प्रदाय

इस्लाम धर्म व शिया सम्प्रदाय का संक्षिप्त परिचय

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इस्लाम धर्म व शिया सम्प्रदाय का संक्षिप्त परिचय

इस्लाम धर्म व शिया सम्प्रदाय का संक्षिप्त परिचय

हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

शिया मज़हब (सम्प्रदाय)

इस्लाम धर्म की उतपत्ति अरब के हिजाज़ प्रान्त के मक्के नामक शहर में हुई। और इस धर्म के प्रवर्तक हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स.) हैं। मक्का वह पवित्र शहर है जिसमें हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की इबादत के लिए “काबे ” नामक एक विशाल इबादत गाह का निर्माण किया था। हज़रत मुहम्द स. हिजाज़ के विश्व विख्यात व शक्तिशाली कबिले “क़ुरैश ” से सम्बन्धित थे। और क़ुरैश क़बीले में आपका परिवार “बनी हाशिम ” के नाम से पहचाना जाता था जो अपने सद्व्यवहार के लिए प्रसिद्ध था।

सन् 610 ई. में हज़रत मुहम्मद स. ने पैगम्बरी के पद को ग्रहण किया। और इसी के साथ इस्लाम प्रचार का कार्य आरम्भ हो गया। प्रारम्भ में तो हज़रत मुहम्मद स. ने केवल अपने परिवार व क़बीले से ही इस्लाम धर्म को स्वीकार करने की याचना की। परन्तु बाद में इस्लाम प्रचार ने विस्तृत रूप धारण कर लिया। और सार्वजनिक स्तर पर लोगों को इस्लाम की ओर बुलाया जाने लगा। हज़रत मुहम्मद (स). की नबूवत का सबसे अधिक विरोध क़ुरैश के उन लोगों ने किया जो बनी हाशिम से ईर्श्या रखते थे और यह विरोध इतना अधिक था कि इसके प्रभाव बाद में भी शेष रहे।

इस्लाम धर्म 13 वर्ष की समय सीमा में मक्के में धीरे धीरे विकसित होता रहा। और जब क़ुरैश व उनके समर्थकों की शत्रुता के कारण पैगम्बर ने मक्के से मदीने की ओर हिजरत[ 10] की तो इस विकास में और भी अधिक तीव्रता आ गयी । और अन्त में पैगम्बर (स.) व उनके साथियों के 23 वर्षीय निरन्तर प्रयास के फल स्वरूप पूरे अरब वासियों ने इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया और मुसलमान हो गये।

इसी समय सीमा में “शियायाने अली ” नामक एक विचारधारा का उद्य हुआ। शिया व सुन्नी दोनो सम्प्रदायों ने पैगम्बर (स.) की बहुतसी ऐसी हदीसों का वर्णन किया है जिनसे यह ज्ञात होता है कि उस समय इस विचार धारा को मान्यता प्राप्त थी। जैसे —

इब्ने असाकिर ने एक रिवायत में जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह के इस कथन का उल्लेख किया है कि “कुन्ना इन्दा रसूलिल्लाह (स.) फ़अक़बला अलीयुन (अ.) फ़क़ालन नबीय्यु (स.) वल्लज़ी नफ़्सी बियदिहि ! इन्ना हाज़ा व शियतहु लहुम फ़ाइज़ूना यौमल क़ियामति व नज़लत “इन्ना अल लज़ीना आमिनू व अमिलुस्सालिहाति उलाइका हुम ख़ैरुल बरिय्याति ” फ़काना असहाबुन्नबिय्यि (स.) इज़ा अक़बला अलीयुन क़ालू जाआ खैरुल बरिय्याति। ”

अनुवाद – जाबिर कहते हैं कि हम नबी (स.) के पास बैठे हुए थे कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम आये और नबी (स.) ने कहा कि “मैं उसकी सौगन्ध खाकर कहता हूँ कि जिसके अधिकार में मेरी जान है कि क़ियामत के दिन यह (अली अ.) और इनके शिया सफ़ल होने वाले हैं। उस समय यह आयत नाज़िल हुई कि- निःसन्देह जो लोग ईमान लाये और उन्होंने अच्छे कार्य किये वह सब खैरि बरिय्यह हैं। इसके बाद से अली (अ.) जब भी असहाब के किसी समूह के पास जाते थे तो असहाब कहते थे कि खैरुल बरिय्यह आगये हैं। ”

(दुर्रे मनसूर 6/589 दारुल फ़िक्र द्वारा प्रकाशित)[ 11]

इतिहास ने पैगम्बर (स.) के बहुतसे ऐसे साथियों का वर्णन किया है जिनको शियायाने अली (अ.) के रूप में जाना जाता था जैसे –अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास , फ़ज़्ल बिन अब्बास , क़सम बिन अब्बास , अक़ील बिन अबी तालिब , सलमाने फ़ारसी , मिक़दाद , अबुज़र , अम्मारि यासिर , अबुअय्यूब अन्सारी , उबई बिन कअब , सअद इब्ने इबादह , मुहम्मद बिन अबि बक्र इत्यादि इसी समूह में आते हैं।

( इस सम्बन्ध में असदुल ग़ाब्बत[ 12], अल इस्तियाब[ 13], अल असाबा[ 14] सुन्नी सम्प्रदाय की किताबें व दरजातुर्रफ़िय्यह , असलुश्शियत व उसूलुहा , फ़सूलुल मुहिम्मह शिया सम्प्रदाय की किताबें हैं।)

इस विचार धारा की उतपत्ति का कारण यह था कि एक ओर तो अपनी धार्मिक विशेषताओं के कारण हज़रत अली अलैहिस्सलाम को पैगम्बर (स.) के समीप विशिष्ठ स्थान प्राप्त था। तथा दूसरी ओर पैगम्बर (स.) ने हज़रत अली (अ.) को अपना उत्तराधिकारी बनाने की वसीयतें की थी।

परन्तु क़ुरैश के वह व्यक्ति जो बनी हाशिम से पुराने समय से ईर्श्या रखते थे। उनको यह बात स्वीकारीय नही थी और बहुत से अवसरों पर उनके द्वारा अली (अ.) का विरोध करने से यह बात पैगम्बर (स.) के जीवन में ही व्यक्त हो चुकी थी। पैगम्बर ने अली (अ.) के साथ क़ुरैश के व्यवहार की कई बार भर्त्सना भी की। जैसे —

यमन के धर्म युद्ध के अवसर पर पैगम्बर (स.) के साथियों के एक गिरोह (ख़ालिद पुत्र वलीद व उसके मित्र) अली (अ.) के सेनानेतृत्व के मामले को लेतकर पैगम्बर की सेवा में पहुँचा। पहले तो पैगम्बर ने उनकी बात पर कोई ध्यान नही दिया परन्तु जब उन्होने इस बात को कई बार दोहराया तो पैगम्बर उन पर क्रोधित हो गये और कहा कि “ मा तुरीदूना मिन अली ? ”अर्थात तुम लोग अली के सम्बन्ध में क्या विचार रखते हो ?और इसके फ़ौरन बाद कहा कि “इन्ना अलीयन मिन्नी व अना मिन्हु व हुवा वलियुन कुल्लि मुमिनिन बअदी। ”

अनुवाद – निःसन्देह अली मुझ से है और मैं अली से हूँ । और वह मेरे बाद समस्त मोमिनों के मौला हैं।

(मुसनदे अहमद[ 15] 4/438 व सही तिरमिज़ी[ 16] 5/296)

इन विरोधों का लाभ यह हुआ कि बहुत से लोगों लगाव हज़रत अली (अ.) की ओर होगा। जैसे कि दूसरे खलीफ़ा ने इस सम्बन्ध में गवाही भी दी है , जब उन्होनें इब्ने अब्बास से कहा कि ऐ अब्बास के पुत्र ! क्या तुम जानते हो कि वह क्या बात थी जिसके कारण पैगम्बर के बाद तुम्हारी बैअत नही हुई ? वह यह पसंद नही करते थे कि तुम लोग नबूवत की तरह खिलाफ़त को भी अपने पास रखो और अपनी क़ौम पर प्रभाव जमाओ। अतः क़ुरैश ने खिलाफ़त पर अपना अधिकार जमा लिया और यह एक सफ़ल व अच्छा कार्य था।

इसके बाद उमर ने कहा कि “मैंनें सुना है कि तुम यह कहते हो कि ख़िलाफ़त को हम से ईर्श्या के कारण बलपूर्वक छीन लिया गया। ”

इब्ने अब्बास ने उत्तर दिया कि “तुमने जो यह कहा है कि बलपूर्वक छीन लिया गया इसमें कोई सन्देह नही है इसको तो आलिम व जाहिल हर व्यक्ति जानता है। और तुमने यह जो कहा है कि यह ईर्श्या के कारण था तो यह बात सही है क्योंकि तुम जानते हो कि आदम से ईर्श्या की गई और हम उसी आदम के पुत्र हैं जिनसे ईर्श्या की गई थी। ”

( अल कामिल फ़ित्तारीख़ ,[17] 3/24शरहे इब्ने अबिल हदीद[ 18] 3/107 तारीख़े बग़दाद[ 19] 2/97)

उपरोक्त वर्णित उमर की इस बात चीत का वर्णन याक़ूबी ने भी किया है और उसने यह भी लिखा है कि अन्त में उमर ने कहा कि “ ऐ इब्ने अब्बास!अल्लाह की क़सम आपके चचा के पुत्र अली खिलाफ़त पद के लिए सबसे अच्छे व्यक्ति हैं। परन्तु क़ुरैश तो उनको देखना भी पसंद नही करते। ”

(मरूजुज़्ज़हब[ 20] 2/137)

हिजाज़ (अरब) की वह भूमी जहाँ पर क़बीला प्रथा का अधिपत्य था , पैगम्बर के सम्मुख इस प्रकार की ईर्श्या व विरोध का पाया जाना कोई आश्चर्य जनक बात नही है।

शिया मज़हब की वास्तविकता

शिया 12 व्यक्तियों की इमामत में विश्वास रखते हैं जिनमें पहले इमाम हज़रत अली (अ.) हैं , और शेष 11 इमाम पैगम्बर की संतान से हैं। और शियों का विशवास है कि बारहवे इमाम जीवित हैं और परोक्ष रूप से जीवन यापन कर रहे हैं।

शिया सम्प्रदाय विशेष रूप से दो बातों पर बल देता है।

1- ज्ञान के क्षेत्र में अहलेबैत[ 21] के संरक्षण (विलायत) को आवश्यक मानता है

और यह पैगम्बर (स.) की बहुत सी हदीसों से सिद्ध है।

आयते ततहीर- “इन्नमा युरीदुल्लाहु लियुज़हिबा अनकुमुर्रिजसा अहला अलबैति व युताह्हिरा कुम ततहीरन। ”

अनुवाद – ऐ अहलिबैत बस अल्लाह का इरादा यह है कि तुम से हर प्रकार की बुराई को दूर रखे और तुम को इस तरह पवित्र रखे जो पवित्र रखने का हक़ है।

(सूरए अहज़ाब आयत न. 33)

शिया व सुन्नी दोनों सम्प्रदायों की हदीसों से सिद्ध है कि यह आयत पैगम्बर (स.) के अहलिबैत के सम्बन्ध में नाज़िल हुई है।

हदीसे सक़लैन- क़ालन नबी (स.) या अय्युहन्नासु इन्नी तारिकुन फ़ीकुम मा इन अख़ज़्तुम बिहि लन तज़िल्लू –किताबल्लाहि व इतरती अहला बैती।

अनुवाद – ऐ लोगो मैं तुम्हारे मध्य दो चीज़े छोड़ कर जा रहा हूँ एक अल्लाह की किताब दूसरे मेरे अहलिबैत अगर तुम इन दोनों से सम्बन्धित रहे तो कभी भी भटक नही सकते।

(कनज़ुल उम्माल 1/44, मुसनदे अहमद 5/ 17,26, मुस्तदरके हाकिम[ 22] 3/109,148 थोड़े से फ़र्क़ के साथ)

हदीसे सफ़ीनेह-क़ालन नबी (स.) “अला इन्नः मस्ला अहलुबैती फ़ीकुम मिस्लु सफ़ीनति नूह मन रकिबाहा नजा व मन तख़ल्लफ़ा अन्हा ग़रक़ा। ”

अनुवाद – पैगम्बर (स.) ने कहा कि जानलो कि निः सन्देह मेरे अहलिबैत तुम्हारे बीच नूह की किश्ती के समान हैं। जो इस पर सवार होगा वह मुक्ति प्राप्त करेगा और जो इस पर सवार नही होगा वह डूब जायेगा।

(मुस्तदरक 3/151)

यह और इनके जैसी अन्य बहुतसी हदीसें , और बहुतसी वह हदीसें जिनका वर्णन क़ुरआन की आयतों की तफ्सीर (व्याख्या) के लिए किया गया इस बात को सिद्ध करती हैं कि पैगम्बर के अहलिबैत इंसानों के लिए हुज्जत हैं। और धर्मिक व्याख्यानों के अनुसार वह मासूम भी हैं। मासूम अर्थात वह व्यक्ति जिससे किसी भी स्थिति में किसी भी प्रकार की कोई ग़लती न हो।

शिया मज़हब पैगम्बर (स.) के अहलिबैत के स्थान की महत्ता के विश्वास में विशेष स्थान रखता है। और वह इस लिए कि शिया मज़हब ही केवल वह मज़हब है जो आइम्माए अतहार (अ.) की विलायत और हिदायत में विश्वास रखता है। और जिसने इस्लामी अहकाम (निर्देशों) का वर्णन करके और समय व स्थान की आवश्यक्ता अनुसार उनको निरन्तर अनुकूलता बनाए रखकर और इसी प्रकार इमामों को हर समय में एक इंसाने कामिल के रूप में प्रस्तुत करके अल्लाह व इंसानों के बीच अल्लाह की हिदायत के सम्बन्ध को सदैव सुरक्षित रखा है। और अल्लाह की विलायत को हमेशा मौजूद माना है।

अन्य धर्मों व इस्लाम के दूसरे मज़हबों में इस (इमामत) आस्था व विश्वास के न होने के कारण उन धर्मो या मज़हबो ने जीवन के बहुतसे क्षेत्रों पर रौशनी नही डाली है। और इन मज़ाहबों में ऐसे मार्ग दर्शकों के अभाव में जिन पर “वही ” आती हो सम्स्याओं के समाधान हेतू स्वंय विचार विमर्श करना पड़ा है। और इतिहास इस बात का साक्षी है कि इंसान ने जब भी “वही ” को छोड़ कर अपनी समस्याओं का समाधान करना चाहा वह सामाजिक बिखराओ व पथभ्रष्टिता का कारण बना और बर्बादी के अलावा कुछ भी हाथ नही आया। हमारे लिए यही अधिक है कि वर्तमान समय में हम संसार को सबक़ लेने की दृष्टि से देखें। सिर्फ़ शिया मज़हब ही वह मजहब है जो आइम्मा-ए-मासूमीन से सम्बन्धित होने के कारण निरन्तर “वही ” के द्वारा अपनी समस्याओं का समाधान करता रहा है।

हमें धर्म के सम्बन्ध में पैगम्बर (स.) के मासूम अहलिबैत की लाखों हदीसें (पवित्र कथन) प्राप्त हुई हैं। और शियों के होज़े इल्मिया(धार्मिक शिक्षण केन्द्र) कि जिनका शिलान्यास अहलिबैत (अ.) के हाथों से हुआ 1300 वर्ष से निरन्तर इन हदीसों के प्रसार , गहरे अध्ययन और प्रकाशन में व्यस्त है।

2- अहलेबैत के सियासी संरक्षण (विलायत) को आवश्यक मानता है।

शिया मज़हब की यह अवधारणा है कि पैगम्बर (स.) ने खिलाफ़त व इस्लामी समाज की इमामत बिना किसी अन्तर के हज़रत अली (अ.) और उनके बाद उनके 11 मासूम बेटों की ओर हस्तान्त्रित की है। और यह मूर्खता पूर्ण ईर्श्या का फल था कि खिलाफ़त ने दूसरा रंग ले लिया और दीने इस्लाम की खिलाफ़त वास्तविक ख़लीफ़ा के हाथों में न जा सकी।

इस दावे को पैगम्बर (स.) का एक कथन सिद्ध करता है जो कि अल्लाह के आदेश से कहा गया है।

हदीसे मंज़िलत

मुहम्मद इस्माईल बुख़ारी ने अपनी किताब सही बुखारी में पैगम्बर (स.) की इस हदीस का वर्णन किया है कि “इन्ना रसूलल्लाह (स.) ख़रजा इला ग़ज़वति तबूकिन व ख़रजा अन्नासु मअहु फ़क़ाला लहु अलीयुन अख़रजु मअक ? फ़क़ाला ला फ़बका अलीयुन फ़क़ाला लहु रसूलुल्लाहि (स.) अमा तरज़ा अन तकूनु मिन्नी बिमनज़लति हारूना मिन मूसा इल्ला इन्नहु ला नबीया बअदी ? इन्नहु ला यमबग़ी अन यज़हबा इल्ला व अन्ता ख़लीफ़ती। ”

अनुवाद – पैगम्बर(स.) तबूक नामक धर्म युद्ध के लिए निकले और उनके साथ अन्य लोग भी निकले , पैगम्बर(स.) से अली (अ.) ने कहा कि क्या मैं आपके साथ

चलूँ ? पैगम्बर ने कहा कि नही। (यह सुनकर) अली अ. रोने लगे तब पैगम्बर(स.) ने अली (अ.) से कहा कि क्या तुम इस बात से राज़ी नही हो कि तुमको मेरे समीप वही स्थान प्राप्त है जो स्थान हारून को मूसा के समीप प्राप्त था , इसके अलावा कि मेरे बाद कोई नबी नही है। बस जिस तरह हारून मूसा के साथ नही गये और उनके ख़लीफ़ा बन कर रहे इसी प्रकार आप भी मेरे ख़लीफ़ा के रूप में यहाँ पर रहें।

(सही बुख़ारी[ 23] 5/ बाबि फ़ज़ाइलि असहाबुन्नबी 24/ बाबि मनाक़िबि अली , सही मुस्लिम[ 24] बाबि फ़ज़ाइलि अली 120,121)

हदीसे ग़दीर अहमद ने ज़ैद पुत्र अरक़म के हवाले से उल्लेख किया है कि उसने कहा कि “नज़लना माअर रसूलिल्लाह (स.) बिवादिन युक़ालु लहु वादियि ख़ुम , फ़अमरा बिस्सलाति फ़सल्लाहा बिहुजैर क़ाला फ़ख़तबना व ज़ल्ला लिरसूलिल्लाहि (स.) बिसूबिन अला शजरतिन समरतिन मिन अश्शम्सि फ़क़ाला अलस्तुम तअलमूना अवा लस्तुम तशहदूना अन्नी अवला बिकुल्लि मुमिनिन मिन नफ़सिहि ? क़ालू बला क़ाला फ़मन कुन्तु मौलाहु फ़अलीयुन मौलाहु अल्लाहुम्मा वालि मन वालाहु व आदि मन आदाहु। ”

अनुवाद – हम रसुलूल्लाह के साथ एक स्थान पर पहुँचे जिसे ख़ुम कहा जाता था। रसूलुल्लाह (स.) ने नमाज़ पढ़ने का आदेश दिया और हमने गर्मी में नमाज़ पढ़ी । वह कहता है कि इसके बाद रसूल ने एक ख़ुत्बा (भाषण) दिया और रसूलुल्लाह को धूप से बचाने के लिए एक पेड़ पर कपड़ा डाल कर साया किया गया। बस रसूलुल्लाह ने कहा कि क्या तुम नही जानते क्या तुम गवाही देते हो कि मैं मोमिनीन पर उनसे ज़्यादा अधिकार रखता हूँ ?सबने उत्तर दिया कि हाँ (आप सब पर उनसे अधिक अधिकार रखते हैं) रसूल (स.) ने कहा कि जिस जिस का मैं मौला[ 25] हूँ उस उस के अली मौला हैं। ऐ अल्लाह तू उसको मित्र रख जो अली को मित्र रखे और तू उससे शत्रुता रख जो अली से शत्रुता रखे।

(मुसनदे अहमद 4/372, सवाइक़ुल मुहर्रिक़ह[ 26] 43,44, मुस्तदरके हाकिम 3/109)

यह जानना आवश्यक है कि ग़दीरे ख़ुम की घटना आयते बलाग़ के नाज़िल होने के बाद घटित हुई। इस आयत में अल्लाह ने कहा है कि “या अय्युहर रसूलु बल्लिग़ मा उनज़िला इलैका मिन रब्बिका व इन लम तफ़अल फ़मा बल्लग़ता रिसालतहु वल्लाहु यअसिमुका मिन अन्नासि इन्ना अल्लाहा ला यहदि अल क़ौमल काफ़ीरीना। ”

(सूरए माइदह आयत न. 67)

अनुवाद — ऐ पैगम्बर आप उस संदेश की घोषणा कर दीजिये जो आपके अल्लाह की ओर से आप पर उतारा जा चुका है। और यदि आपने ऐसा न किया तो यह इसके समान है कि आपने अपनी पैगम्बरी का कोई संदेश नही पहुँचाया।

और जब अली अलैहिस्सलाम की मौलाइयत की घोषणा कर दी तो आयते इकमाले दीन नाज़िल हुई जिसमें अल्लाह ने कहा कि “अल यौमा यइसल लज़ीना कफ़रू मिन दीनिकुम फ़ला तख़शव हुम व इख़शवनि अल यौमा अकमलतु लकुम दीनाकुम व अतमम्तु अलैकुम नेअमती व रज़ीतु लकुम अल इस्लामा दीनन। ”

(सूरए माय़दह आयत 3)

अनुवाद — आज के दिन काफ़िर तुम्हारे दीन से मायूस हो गये अतः तुम उनसे न डरो और मुझ से डरो। आज मैने तुम्हारे दीन का पूर्ण कर दिया , और अपनी नेअमतों को भी पूरा कर दिया। और तुम्हारे लिए इस्लाम धर्म को पसंदीदा बना दिया।

उपरोक्त वर्णन जो इतिहास , बुद्धि , आयत व सुन्नी सम्प्रदाय की रिवायतों के आधार पर हुआ है यह एक सारांश है। अपितु इस सम्बन्ध में बहुत अधिक साक्ष्य मौजूद हैं।

इस्लाम धर्म के सभी सम्प्रदाय इस सम्बन्ध में उलझे हुए कि यह कैसे सम्भव है कि पैगम्बर ने अपने बाद के लिए उम्मत की इमामत की समस्या को हल न किया हो , जबकि वह उम्मत की ओर से सदैव चिंतित रहते थे ?

यह एक छोटासा संकेत कि “यह बात असम्भव है ” इस बात के महत्व को बढ़ाता है कि पैगम्बर ने खलीफ़ा की नियुक्ति की है और उम्मत को बग़ैर इमाम के नही छोड़ा है।

उपरोक्त वर्णन से यह सिद्ध हो जाता है कि शियत वास्तव में एक ऐसी विचारधारा है जो अपने अन्दर निरन्तरा लिए हुए है और इसके मार्ग दर्शक पैगम्बर (स.) हैं। दूसरे शब्दों में शियत इस्लाम का एक ऐसा व्याख्यान है जो पैगम्बर द्वारा प्रशिक्षित लोगों (अहलिबैत) के द्वारा हम को प्राप्त हुआ है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम नें अपने शियों को लिखे गये एक पत्र में यह लिखा है कि “बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम मिन अब्दिल्लाहि अली अमीरिल मुमिनीन इला शीअतिहि मिनल मुमिनीना व हुवा इस्मुन शर्रफ़हु अल्लाहु फ़ी अल किताबि फ़इन्नहु यक़ूलु “व इन्ना मिन शीअतिहि लिइब्राहीमा ” व अन्तुम शीअतिन नबीय्यी मुहम्दिन … इस्मुन ग़ैरु मुख़तस्सिन व अमरुन ग़ैरु मुबतदइन। ”

(मुस्तदरक नहजुल बलाग़ह 2/29)

अर्थात मेरा अनुसरण पैगम्बर का अनुसरण है , क्योकि पैगम्बर ने मुझे अपना उत्तराधिकारी बनाया है। शिया शब्द केवल मेरे कुछ साथियों जैसे अबुज़र , मिक़दाद , सलमान व अम्मार से विशेष नही है। बल्कि यह शिया शब्द हर उस व्यक्ति पर सत्य आता है जो मुहम्मद (स.) और उनके उत्तराधिकारी पर ईमान रखता है।

सक़ीफ़ेह की घटना के कारण आइम्मा-ए अतहार (अहलिबैत) की विलायत प्रत्यक्ष रूप से क्रियान्वित न हो सकी। और अफ़सोस है कि क्योँकि बनी उमैय्यह व बनी अब्बास को यह भय था कि कहीँ ऐसा न हो कि अहले बैत का वर्चस्प स्थापित हो जाये इस लिए अहलिबैत की इल्मी मरजीअत की ओर से भी लापरवाही की गई। अर्थात ज्ञान के क्षेत्र में भी इनसे सम्पर्क स्थापित नही किया गया। यहाँ तक कि शियों के इमामों (पैगम्बर के अहलिबैत) ने एक प्रकार से अपना पूरा जीवन तक़िय्यह में व्यतीत किया और सब शहीद हुए।

आज शिया सम्प्रदाय की प्रार्थना यह है कि जैसे कि हम सब जानते हैं कि खिलाफ़त के मामले में जो कुछ भी हुआ , जैसे भी हुआ , वह आज समाप्त हो चुका है। अब यह चाहिए कि कम से कम अहलिबैत अलैहिमुस्सलाम की इल्मी मरजिअत को जीवित रखा जाये और उनके इल्म को प्रसारित किया जाये। हमारा विश्वास है कि इस्लामी समाज , बहुतसी समस्याओं से केवल इस लिए उन्मुख है क्योँकि वह अहलिबैत अलैहिमुस्सलाम के इल्म से वंचित है। अगर इस्लाम उस नक़्शे पर चलता जो पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने बनाया था तो आज पूरा संसार इस्लामी हिदायत (मार्ग दर्शन) से लाभान्वित हो रहा होता।

शिया मज़हब के इमाम

वह मासूम इमाम जो एक के बाद एक पैगम्बर (स.) के उत्तराधिकारी बनते रहे 12 हैं। और बारहवे इमाम अब तक जीवित हैं तथा परोक्ष रूप से जीवन यापन कर रहे हैं। जिस प्रकार हज़रत पैगम्बर (स.) ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपने बाद के लिए इमाम नियुक्त किया इसी प्रकार हज़रत अली (अ.) ने भी अपने बाद के लिए इमाम नियुक्त किया और यह प्रक्रिया आगे तक चलती रही अर्थात हर इमाम अपने से बाद वाले इमाम का परिचय कराता रहा।

इसके अलावा कुछ ऐसी रिवायतें (उल्लेख) मिलती हैं जिनमें पैगम्बर (स.) ने अपने बाद आने वाले इमामों की संख्या का वर्णन किया और कुछ रिवायतें ऐसी भी पायी जाती हैं जिनमें अपने बाद आने वाले इमामों के नाम भी स्पष्ट किये हैं। और उनकी इमामत के बारे में आग्रह भी किया है।

यहाँ पर सुन्नी सम्प्रदाय की किताबों से दो हदीसें उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत की जा रही हैं।

1- बुख़ारी ने जाबिर पुत्र समुरह के हवाले से वर्णन किया है कि है “ समितु रसूलल्लाहि (स.) यक़ूलु –यकूनु इस्ना अशरा अमीरन फ़क़ाला कलिमतन लम् असमाहा फ़क़ाला अबी इन्नहु क़ाला कुल्लुहुम मिन क़ुरैशिन। ”

(सही बुख़ारी 9/ किताबुल अहकाम /बाब 51बाबि उस्तिख़लाफ़)

अनुवाद – जाबिर ने कहा कि मैनें पैगम्बर से सुना कि उनहोंने कहा कि [मेरे बाद]बारह इमाम होंगे और इसके बाद एक वाक्य और कहा जिसको मैं सुन नही सका। मेरे पिता ने कहा कि पैगम्बर ने कहा था कि वह सब इमाम क़ुरैश से होंगे।

2- तिरमिज़ी जाबिर की इस रिवायत का उल्लेख इस प्रकार करता है “क़ाला रसूलुल्लाहि (स.) यकूनु मिन बअदी इस्ना अशरा अमीरन। ”

(सही तिरमिज़ी 2/45)

अनुवाद — जाबिर ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि मेरे बाद बारह इमाम होंगे।

और अहमद ने इस रिवायत का उल्लेख इस प्रकार किया है कि “यकूनु लिहाजिहिल उम्मति इस्ना अशरा ख़लीफ़तन। ”

(मुसनदि अहमद 5/86-108)

अनुवाद – पैगम्बर ने कहा कि इस उम्मत के लिए बारह ख़लीफ़ा होंगे।

यह रिवायत और इसी जैसी अन्य रिवायतें विभिन्न रूपों में वर्णित हुई है। परन्तु प्रश्न यह है कि क्या बारह ख़लीफ़ा या इमाम शिया मज़हब के इमामों के अलावा किसी दूसरे मज़हब के इमामों पर भी चरितार्थ होते हैं ?

यनाबिउल मवद्दत नामक किताब में इस प्रकार वर्णन हुआ है कि “अन मुजाहिदिन अन इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अनहुमा क़ाला क़दिमा यहूदी युक़ालु लहु नअसलुन क़ाला या मुहम्मद ! असअलुका अन अशयाआ तुलजलिजु फ़ी सदरी …… फ़क़ाला रसूलुल्लाहि (स.) इन्ना वसीय्यी अलीयुब्नु अबी तालिब व बाअदहु सिब्ताया अल हसनु वल हुसैनु ततलुहु तिसअता आइम्मता मिन सुलबि अलहुसैनि क़ाला या मुहम्मद ! फ़सम्मिहिम ली क़ालाइज़ मज़ल हुसैनु फ़इब्नहु अलीयुन फ़इज़ा मज़ा अली फ़इब्नुहु मुहम्मदुन फ़इज़ा मज़ा मुहम्मदुन फ़इब्नुहु जअफ़रुन फ़इज़ा मज़ा जअफ़रुन फ़इब्नुहु मूसा फ़इज़ा मज़ा मूसा फ़इब्नुहु अलीयुन फ़इज़ा मज़ा अली फ़इब्नुहु मुहम्मदुन फ़इज़ा मज़ा मुहम्मदुन इब्नुहु अलीयुन फ़इज़ा मज़ा अलीयुन इब्नुहु हसनु फ़इज़ा मज़ा हसनु फ़इब्नुहु मुहम्मदुन अलमहदी फ़हवलाइ इस्ना अशरा इला अन क़ाला व इन्ना अस्सानि अशरा मिन वुलदी यग़ीबु हत्ता ला युरा व याति अला उम्मति बिज़मनिन ला यबक़ा मिन अल इस्लामि इल्ला इस्मुहु व ला यबक़ा मिन अल क़ुरआनि इल्ला रस्मुहु फ़हीनाइज़िन याज़ुन अल्लाहु तबारका व तअला लहु बिल ख़ुरूजि फ़यज़हरु अल्लाहु अलइस्लामा बिहि व युजद्दिदुहु। ”

अनुवाद – मुजाहिद ने इब्ने अब्बास (रजियल्लाहु अनहुमा) से उल्लेख किया है कि उन्होंने कहा कि नासल नाम का एक यहूदी पैगम्बर (स.) के पास आया और कहा कि ऐ मुहम्मद कुछ प्रश्न हैं जो मेरे हृदय मे उथल पुथल मचाये हैं मैं चाहता हूँ कि उनके बारे मैं आपसे पूछूँ , (इसके बाद उसने कुछ प्रश्न किये और उनके उत्तर प्राप्त किये उन्हीं प्रश्नों में एक प्रश्न पैगम्बर के उत्तराधिकारी के बारे में भी था।) जिसका उत्तर पैगम्बर ने इस प्रकार दिया कि मेरे उत्तराधिकारी अली हैं और उनके बाद मेरे धेवते हसन और हुसैन हैं और उनके बाद हुसैन के 9 बेटे मेरे उत्तराधिकारी होंगे। उस यहूदी ने कहा कि उनके नाम भी बताओ पैगम्बर ने कहा कि हुसैन के बाद उनके बेटे अली और अली के बाद उनके बेटे मुहम्मद और मुहम्मद के बाद उनके बेटे जाफ़र और जाफ़र के बाद उनके बेटे मूसा और मूसा के बाद उनके बेटे अली और अली के बाद उनके बेटे मुहम्मद और मुहम्मद के बाद उनके बेटे अली और अली के बाद उनके बेटे हसन और हसन के बाद उनके बेटे मुहम्मद महदी यह बारह व्यक्ति हैं। यहाँ तक कहा कि मेरी संतान से बारहवा इमाम परोक्ष हो जायेगा , और जब इस्लाम नामत्र के लिए रह जायेगा और क़ुरआन केवल एक रीति रिवाज बनकर रह जायेगा उस समय अल्लाह उनको प्रत्यक्ष होने की अनुमति देगा ताकि वह इस्लाम को जीवित करें।

(समाप्त)