क़ुरआनी दुआए

क़ुरआनी दुआए50%

क़ुरआनी दुआए कैटिगिरी: दुआ व ज़ियारात

क़ुरआनी दुआए
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क़ुरआनी दुआए

क़ुरआनी दुआए

हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

अध्याय 10 – दुआ - परमात्मा सबके जीवन में सहायता करे उसके लिए

दुआ # 1 – सुरः हूद (11) – आयात # 56.

11.56: मै तो सिर्फ ख़ुदा पर भरोसा रखता हूँ जो मेरा भी परवरदिगार है और तुम्हारा भी परवरदिगार है और रुए ज़मीन पर जितने चलने वाले हैं सबकी चोटी उसी के साथ है इसमें तो शक़ ही नहीं कि मेरा परवरदिगार (इन्साफ की) सीधी राह पर है.

दुआ # 2 – सुरः अर-रअद (13) – आयात # 36.

13.36: और (ए रसूल) जिन लोगों को हमने किताब दी है वह तो जो (एहकाम) तुम्हारे पास नाज़िल किए गए हैं सब ही से खुश होते हैं और बाज़ फिरके उसकी बातों से इन्कार करते हैं तुम (उनसे) कह दो कि (तुम मानो या न मानो) मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मै ख़ुदा ही की इबादत करु और किसी को उसका शरीक न बनाऊ मै (सब को) उसी की तरफ बुलाता हूँ और हर शख़्श को हिर फिर कर उसकी तरफ जाना है.

दुआ # 3 – सुरः अज़-ज़ुखरुफ़ (43) – आयात # 64.

43.64: बेशक ख़ुदा ही मेरा और तुम्हार परवरदिगार है तो उसी की इबादत करो यही सीधा रास्ता है:

दुआ # 4a – सुरः युनुस (10) – आयात # 21.

10.21: और लोगों को जो तकलीफ पहुँची उसके बाद जब हमने अपनी रहमत का जाएक़ा चखा दिया तो यकायक उन लोगों से हमारी आयतों में हीले बाज़ी शुरू कर दी (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तद्बीर में ख़ुदा सब से ज्यादा तेज़ है तुम जो कुछ मक्कारी करते हो वह हमारे भेजे हुए (फरिश्ते) लिखते जाते हैं.

दुआ # 4b – सुरः अल-हज्ज (22) – आयात # 78.

22.78: ताकि तुम कामयाब हो और जो हक़ जिहाद करने का है खुदा की राह में जिहाद करो उसी नें तुमको बरगुज़ीदा किया और उमूरे दीन में तुम पर किसी तरह की सख्ती नहीं की तुम्हारे बाप इबराहीम ने मजहब को (तुम्हारा मज़हब बना दिया उसी (खुदा) ने तुम्हारा पहले ही से मुसलमान (फरमाबरदार बन्दे) नाम रखा और कुरान में भी (तो जिहाद करो) ताकि रसूल तुम्हारे मुक़ाबले में गवाह बने और तुम पाबन्दी से नामज़ पढ़ा करो और ज़कात देते रहो और खुदा ही (के एहकाम) को मज़बूत पकड़ो वही तुम्हारा सरपरस्त है तो क्या अच्छा सरपरस्त है और क्या अच्छा मददगार है !

दुआ # 5 – सुरः अन-निसा (4) – आयात # 87.

4.87: अल्लाह तो वही परवरदिगार है जिसके सिवा कोई क़ाबिले परस्तिश नहीं वह तुमको क़यामत के दिन जिसमें ज़रा भी शक नहीं ज़रूर इकट्ठा करेगा और ख़ुदा से बढ़कर बात में सच्चा कौन होगा?

दुआ # 6 – सुरः ताःहाः (20) – आयात # 98.

20.98: तुम्हारा माबूद तो बस वही ख़ुदा है जिसके सिवा कोई और माबूद बरहक़ नहीं कि उसका इल्म हर चीज़ पर छा गया है.

दुआ # 7 – सुरः अन-निसा (4) – आयात # 45.

4.45: और ख़ुदा तुम्हारे दुशमनों से ख़ूब वाक़िफ़ है और दोस्ती के लिए बस ख़ुदा काफ़ी है और हिमायत के वास्ते भी ख़ुदा ही काफ़ी है.

दुआ # 8 – सुरः युनुस (10) – आयात # 82.

10.82: और ख़ुदा सच्ची बात को अपने कलाम की बरकत से साबित कर दिखाता है अगरचे गुनाहगारों को ना गॅवार हो.

दुआ # 9 – सुरः अन-निसा (4) – आयात # 70.

4.72: और तुममें से बाज़ ऐसे भी हैं जो (जेहाद से) ज़रूर पीछे रहेंगे फिर अगर इत्तेफ़ाक़न तुमपर कोई मुसीबत आ पड़ी तो कहने लगे ख़ुदा ने हमपर बड़ा फ़ज़ल किया कि उनमें (मुसलमानों) के साथ मौजूद न हुआ.

दुआ # 10 – सुरः अन-निसा (4) – आयात # 132.

4.132: जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज सब कुछ) ख़ास ख़ुदा ही का है और ख़ुदा तो कारसाज़ी के लिये काफ़ी है.

दुआ # 11 – सुरः अन-निसा (4) – आयात # 123.

4.123: न तुम लोगों की आरज़ू से (कुछ काम चल सकता है) न अहले किताब की तमन्ना से कुछ हासिल हो सकता है बल्कि (जैसा काम वैसा दाम) जो बुरा काम करेगा उसे उसका बदला दिया जाएगा और फिर ख़ुदा के सिवा किसी को न तो अपना सरपरस्त पाएगा और न मददगार.

दुआ # 12 – सुरः अत-तौबा (9) – आयात # 59.

9.59: और जो कुछ ख़ुदा ने और उसके रसूल ने उनको अता फरमाया था अगर ये लोग उस पर राज़ी रहते और कहते कि ख़ुदा हमारे वास्ते काफी है (उस वक्त नहीं तो) अनक़रीब ही खुदा हमें अपने फज़ल व करम से उसका रसूल दे ही देगा हम तो यक़ीनन अल्लाह ही की तरफ लौ लगाए बैठे हैं.

दुआ # 13 – सुरः अत-तौबा (9) – आयात # 129.

9.129: ऐ रसूल अगर इस पर भी ये लोग (तुम्हारे हुक्म से) मुँह फेरें तो तुम कह दो कि मेरे लिए ख़ुदा काफी है उसके सिवा कोई माबूद नहीं मैने उस पर भरोसा रखा है वही अर्श (ऐसे) बुर्जूग (मख़लूका का) मालिक है.

दुआ # 14 – सुरः अर-रअद (13) – आयात # 30.

13.30: (ऐ रसूल जिस तरह हमने और पैग़म्बर भेजे थे) उसी तरह हमने तुमको उस उम्मत में भेजा है जिससे पहले और भी बहुत सी उम्मते गुज़र चुकी हैं -ताकि तुम उनके सामने जो क़ुरान हमने वही के ज़रिए से तुम्हारे पास भेजा है उन्हें पढ़ कर सुना दो और ये लोग (कुछ तुम्हारे ही नहीं बल्कि सिरे से) ख़ुदा ही के मुन्किर हैं तुम कह दो कि वही मेरा परवरदिगार है उसके सिवा कोई माबूद नहीं मै उसी पर भरोसा रखता हूँ और उसी तरफ रुज़ू करता हूँ.

दुआ # 15 – सुरः अज़-ज़ुमर (39) – आयात # 38.

39.38: और (ऐ रसूल) अगर तुम इनसे पूछो कि सारे आसमान व ज़मीन को किसने पैदा किया तो ये लोग यक़ीनन कहेंगे कि ख़ुदा ने, तुम कह दो कि तो क्या तुमने ग़ौर किया है कि ख़ुदा को छोड़ कर जिन लोगों की तुम इबादत करते हो अगर ख़ुदा मुझे कोई तक़लीफ पहुँचाना चाहे तो क्या वह लोग उसके नुक़सान को (मुझसे) रोक सकते हैं या अगर ख़ुदा मुझ पर मेहरबानी करना चाहे तो क्या वह लोग उसकी मेहरबानी रोक सकते हैं (ऐ रसूल) तुम कहो कि ख़ुदा मेरे लिए काफ़ी है उसी पर भरोसा करने वाले भरोसा करते हैं.

दुआ # 16 – सुरः अर-रूम (30) – आयात # 5.

30.5: वह जिसकी चाहता है मदद करता है और वह (सब पर) ग़ालिब रहम करने वाला है;

दुआ # 17 – सुरः अल-अहज़ाब  (33) – आयात # 3.

33.3: और खुदा ही पर भरोसा रखो और खुदा ही कारसाजी के लिए काफी है.

दुआ # 18 – सुरः अत-तागाबून (64) – आयात # 13.

64.13: ख़ुदा (वह है कि) उसके सिवा कोई माबूद नहीं और मोमिनो को ख़ुदा ही पर भरोसा करना चाहिए.

 

अध्याय 11- दुआ - परिवार पर रहम के लिए.

दुआ # 1 – सुरः अल-आराफ़ (7) – आयात # 151.

7.151: (तब) मूसा ने कहा ऐ मेरे परवरदिगार मुझे और मेरे भाई को बख्श दे और हमें अपनी रहमत में दाख़िल कर और तू सबसे बढ़के रहम करने वाला है.

दुआ # 2 – सुरः अल-आराफ़ (7) – आयत # 155 और 156.

7.155: और मूसा ने अपनी क़ौम से हमारा वायदा पूरा करने को (कोहतूर पर ले जाने के वास्ते) सत्तर आदमियों को चुना फिर जब उनको ज़लज़ले ने आ पकड़ा तो हज़रत मूसा ने अर्ज़ किया परवरदिगार अगर तू चाहता तो मुझको और उन सबको पहले ही हलाक़ कर डालता क्या हम में से चन्द बेवकूफों की करनी की सज़ा में हमको हलाक़ करता है ये तो सिर्फ तेरी आज़माइश थी तू जिसे चाहे उसे गुमराही में छोड़ दे और जिसको चाहे हिदायत दे तू ही हमारा मालिक है तू ही हमारे कुसूर को माफ कर और हम पर रहम कर और तू तो तमाम बख्शने वालों से कही बेहतर है

7.156: और तू ही इस दुनिया (फ़ानी) और आख़िरत में हमारे वास्ते भलाई के लिए लिख ले हम तेरी ही तरफ रूझू करते हैं ख़ुदा ने फरमाया जिसको मैं चाहता हूँ (मुस्तहक़ समझकर) अपना अज़ाब पहुँचा देता हूँ और मेरी रहमत हर चीज़ पर छाई हैं मै तो उसे बहुत जल्द ख़ास उन लोगों के लिए लिख दूँगा (जो बुरी बातों से) बचते रहेंगे और ज़कात दिया करेंगे और जो हमारी बातों पर ईमान रखा करेंगें.

दुआ # 3 – सुरः अल-फुर्क़ान (25) – आयात # 74.

25.74: और वह लोग जो (हमसे) अर्ज़ करते हैं कि परवरदिगार हमें हमारी बीबियों और औलादों की तरफ से ऑंखों की ठन्डक अता फरमा और हमको परहेज़गारों का पेशवा बना.

दुआ # 4 – सुरः अल-मोमिन (40/7-9) – आयत # 7 से  9.

40.7: जो (फ़रिश्ते) अर्श को उठाए हुए हैं और जो उस के गिर्दा गिर्द (तैनात) हैं (सब) अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह करते हैं और उस पर ईमान रखते हैं और मोमिनों के लिए बख़शिश की दुआएं माँगा करते हैं कि परवरदिगार तेरी रहमत और तेरा इल्म हर चीज़ पर अहाता किए हुए हैं, तो जिन लोगों ने (सच्चे) दिल से तौबा कर ली और तेरे रास्ते पर चले उनको बख्श दे और उनको जहन्नुम के अज़ाब से बचा ले:

40.8: ऐ हमारे पालने वाले इन को सदाबहार बाग़ों में जिनका तूने उन से वायदा किया है दाख़िल कर और उनके बाप दादाओं और उनकी बीवीयों और उनकी औलाद में से जो लोग नेक हो उनको (भी बख्श दें) बेशक तू ही ज़बरदस्त (और) हिकमत वाला है .

40.9: और उनको हर किस्म की बुराइयों से महफूज़ रख और जिसको तूने उस दिन ( कयामत ) के अज़ाबों से बचा लिया उस पर तूने बड़ा रहम किया और यही तो बड़ी कामयाबी है.

दुआ # 5 – सुरः अल-हश्र  (59) – आयात # 10.

59.10: और उनका भी हिस्सा है और जो लोग उन (मोहाजेरीन) के बाद आए (और) दुआ करते हैं कि परवरदिगारा हमारी और उन लोगों की जो हमसे पहले ईमान ला चुके मग़फेरत कर और मोमिनों की तरफ से हमारे दिलों में किसी तरह का कीना न आने दे परवरदिगार बेशक तू बड़ा यफीक़ निहायत रहम वाला है.

 

अध्याय 12 –दुआ - स्वास्थ्य वापस पाने के लिए.

दुआ # 1 – सुरः फ़ातेहा (1) – आयत # 1 और 2.

1.1: अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान हैं।.

1.2: प्रशंसा अल्लाह ही के लिए हैं जो सारे संसार का रब हैं .

दुआ # 2 – सुरः बनी इसराइल (17) – आयात # 80

17.80: और ये दुआ माँगा करो कि ऐ मेरे परवरदिगार मुझे (जहाँ) पहुँचा अच्छी तरह पहुँचा और मुझे (जहाँ से निकाल) तो अच्छी तरह निकाल और मुझे ख़ास अपनी बारगाह से एक हुकूमत अता फरमा जिस से (हर क़िस्म की) मदद पहुँचे.

दुआ # 3 – सुरः अल-अंबिया (21) – आयात # 69.

21.69: (ग़रज़) उन लोगों ने इबराहीम को आग में डाल दिया तो हमने फ़रमाया ऐ आग तू इबराहीम पर बिल्कुल ठन्डी और सलामती का बाइस हो जा;

दुआ # 4 – सुरः अश-शु'अरा (26) – आयात # 68.

26.68: और इसमें तो शक ही न था कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन (सब पर) ग़ालिब और बड़ा मेहरबान है.

दुआ # 5 – सुरः या'सीन (36) – आयत #s 81 से  83.

36.81: (भला) जिस (खुदा) ने सारे आसमान और ज़मीन पैदा किए क्या वह इस पर क़ाबू नहीं रखता कि उनके मिस्ल (दोबारा) पैदा कर दे हाँ (ज़रूर क़ाबू रखता है) और वह तो पैदा करने वाला वाक़िफ़कार है.

36.82: उसकी शान तो ये है कि जब किसी चीज़ को (पैदा करना) चाहता है तो वह कह देता है कि ''हो जा'' तो (फौरन) हो जाती है.

36.83: तो वह ख़ुद (हर नफ्स से) पाक साफ़ है जिसके क़ब्ज़े कुदरत में हर चीज़ की हिकमत है और तुम लोग उसी की तरफ लौट कर जाओगे.

दुआ # 6 – सुरः अल-हश्र  (59) – आयात # 21.

59.21: अगर हम इस क़ुरान को किसी पहाड़ पर (भी) नाज़िल करते तो तुम उसको देखते कि ख़ुदा के डर से झुका और फटा जाता है ये मिसालें हम लोगों (के समझाने) के लिए बयान करते हैं ताकि वह ग़ौर करें.

दुआ # 7a – सुरः अत-तहरीम (66)- आयात # 8.

66.8: ऐ ईमानदारों ख़ुदा की बारगाह में साफ़ ख़ालिस दिल से तौबा करो तो (उसकी वजह से) उम्मीद है कि तुम्हारा परवरदिगार तुमसे तुम्हारे गुनाह दूर कर दे और तुमको (बेहिश्त के) उन बाग़ों में दाखिल करे जिनके नीचे नहरें जारी हैं उस दिन जब ख़ुदा रसूल को और उन लोगों को जो उनके साथ ईमान लाए हैं रूसवा नहीं करेगा (बल्कि) उनका नूर उनके आगे आगे और उनके दाहिने तरफ़ (रौशनी करता) चल रहा होगा और ये लोग ये दुआ करते होंगे परवरदिगार हमारे लिए हमारा नूर पूरा कर और हमें बख्य दे बेशक तू हर चीज़ पर कादिर है.

दुआ # 7b – सुरः क़ाफ़o (50) – आयात # 22.

50.22: और एक (आमाल का) गवाह उससे कहा जाएगा कि उस (दिन) से तू ग़फ़लत में पड़ा था तो अब हमने तेरे सामने से पर्दे को हटा दिया तो आज तेरी निगाह बड़ी तेज़ है.

 

अध्याय 13 –दुआ - धर्म में दृढ़ता के लिए  के लिए.

दुआ # 1 – सुरः अन-निसा (4) – आयत # 95 और 96.

4.95: माज़ूर लोगों के सिवा जेहाद से मुंह छिपा के घर में बैठने वाले और ख़ुदा की राह में अपने जान व माल से जिहाद करने वाले हरगिज़ बराबर नहीं हो सकते (बल्कि) अपने जान व माल से जिहाद करने वालों को घर बैठे रहने वालें पर ख़ुदा ने दरजे के एतबार से बड़ी फ़ज़ीलत दी है (अगरचे) ख़ुदा ने सब ईमानदारों से (ख्वाह जिहाद करें या न करें) भलाई का वायदा कर लिया है मगर ग़ाज़ियों को खाना नशीनों पर अज़ीम सवाब के एतबार से ख़ुदा ने बड़ी फ़ज़ीलत दी है:

दुआ # 2 – सुरः अल-आराफ़ (7) – आयात # 89.

7.89: हम अगरचे तुम्हारे मज़हब से नफरत ही रखते हों (तब भी लौट जाएं माज़अल्लाह) जब तुम्हारे बातिल दीन से ख़ुदा ने मुझे नजात दी उसके बाद भी अब अगर हम तुम्हारे मज़हब मे लौट जाएं तब हमने ख़ुदा पर बड़ा झूठा बोहतान बॉधा (ना) और हमारे वास्ते तो किसी तरह जायज़ नहीं कि हम तुम्हारे मज़हब की तरफ लौट जाएँ मगर हाँ जब मेरा परवरदिगार अल्लाह चाहे तो हमारा परवरदिगार तो (अपने) इल्म से तमाम (आलम की) चीज़ों को घेरे हुए है हमने तो ख़ुदा ही पर भरोसा कर लिया ऐ हमारे परवरदिगार तू ही हमारे और हमारी क़ौम के दरमियान ठीक ठीक फैसला कर दे और तू सबसे बेहतर फ़ैसला करने वाला है.

दुआ # 3 – सुरः युसूफ (12) – आयात # 33.

12.33: ऐ मेरे पालने वाले जिस बात की ये औरते मुझ से ख्वाहिश रखती हैं उसकी निस्वत (बदले में) मुझे क़ैद ख़ानों ज्यादा पसन्द है और अगर तू इन औरतों के फ़रेब मुझसे दफा न फरमाएगा तो (शायद) मै उनकी तरफ माएल (झुक) हो जाँऊ ले तो जाओ और जाहिलों से युमार किया जाऊँ.

दुआ # 4 – सुरः अन-नहल (16) – आयात # 52.

16.52: और जो कुछ आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में हैं (ग़रज़) सब कुछ उसी का है और ख़ालिस फरमाबरदारी हमेशा उसी को लाज़िम (जरूरी) है तो क्या तुम लोग ख़ुदा के सिवा (किसी और से भी) डरते हो?

दुआ # 5 – सुरः अल-कहफ़ (18) – आयात # 14.

18.14: और हमने उनकी दिलों पर (सब्र व इस्तेक़लाल की) गिराह लगा दी (कि जब दक़ियानूस बादशाह ने कुफ्र पर मजबूर किया) तो उठ खड़े हुए (और बे ताम्मुल (खटके)) कहने लगे हमारा परवरदिगार तो बस सारे आसमान व ज़मीन का मालिक है हम तो उसके सिवा किसी माबूद की हरगिज़ इबादत न करेगें.

दुआ # 6 – सुरः अल-मोमिनून (23) – आयत # 93 और 94.

23.93: (ऐ रसूल) तुम दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले जिस (अज़ाब) का तूने उनसे वायदा किया है अगर शायद तू मुझे दिखाए:

23.94: तो परवरदिगार ! मुझे उन ज़ालिम लोगों के हमराह न करना.

दुआ # 7 – सुरः अल-क़सस  (28) – आयात # 88.

28.88: और ख़ुदा के सिवा किसी और माबूद की परसतिश न करना उसके सिवा कोई क़ाबिले परसतिश नहीं उसकी ज़ात के सिवा हर चीज़ फना होने वाली है उसकी हुकूमत है और तुम लोग उसकी तरफ़ (मरने के बाद) लौटाये जाओगे.

दुआ # 8 – सुरः अल-क़सस  (28) – आयात # 55.

28.55: और जब किसी से कोई बुरी बात सुनी तो उससे किनारा कश रहे और साफ कह दिया कि हमारे वास्ते हमारी कारगुज़ारियाँ हैं और तुम्हारे वास्ते तुम्हारी कारस्तानियाँ (बस दूर ही से) तुम्हें सलाम है हम जाहिलो (की सोहबत) के ख्वाहॉ नहीं.

दुआ # 9 – सुरः अल-काफेरून  (109) – आयत # 1 से  6.

शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम हैं.

109.1: (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ काफिरों!

109.2: तुम जिन चीज़ों को पूजते हो, मैं उनको नहीं पूजता,

109.3: और जिस (ख़ुदा) की मैं इबादत करता हूँ उसकी तुम इबादत नहीं करते:

109.4: और जिन्हें तुम पूजते हो मैं उनका पूजने वाला नहीं,

109.5: और जिसकी मैं इबादत करता हूँ उसकी तुम इबादत करने वाले नहीं:

109.6: तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मेरे लिए मेरा दीन.

 

अध्याय 14 –दुआ - धर्म में दृढ़ता के लिए

दुआ # 1 – सुरः बनी इसराइल (17) – आयात # 24.

17.24: और उनके सामने नियाज़ (रहमत) से ख़ाकसारी का पहलू झुकाए रखो और उनके हक़ में दुआ करो कि मेरे पालने वाले जिस तरह इन दोनों ने मेरे छोटेपन में मेरी मेरी परवरिश की है.

दुआ # 2 – सुरः अल-अहकाफ़(46) – आयात # 15.

46.15: और हमने इन्सान को अपने माँ बाप के साथ भलाई करने का हुक्म दिया (क्यों कि) उसकी माँ ने रंज ही की हालत में उसको पेट में रखा और रंज ही से उसको जना और उसका पेट में रहना और उसको दूध बढ़ाई के तीस महीने हुए यहाँ तक कि जब अपनी पूरी जवानी को पहुँचता और चालीस बरस (के सिन) को पहुँचता है तो (ख़ुदा से) अर्ज़ करता है परवरदिगार तो मुझे तौफ़ीक़ अता फरमा कि तूने जो एहसानात मुझ पर और मेरे वालदैन पर किये हैं मैं उन एहसानों का युक्रिया अदा करूँ और ये (भी तौफीक दे) कि मैं ऐसा नेक काम करूँ जिसे तू पसन्द करे और मेरे लिए मेरी औलाद में सुलाह व तक़वा पैदा करे तेरी तरफ रूजू करता हूँ और मैं यक़ीनन फरमाबरदारो में हूँ.

दुआ # 3 – सुरः नूह (71) – आयात # 28.

71.28: परवरदिगार मुझको और मेरे माँ बाप को और जो मोमिन मेरे घर में आए उनको और तमाम ईमानदार मर्दों और मोमिन औरतों को बख्श दे और (इन) ज़ालिमों की बस तबाही को और ज्यादा कर!

 

अध्याय 15 – दुआ - दैविक मदद के लिए, जब अपनी बात या मासूमियत साबित कर रहे हों.

दुआ # 1 – सुरः अल-अनफ़ाल (8/8) – आयात # 8.

8.8: ताकि हक़ को (हक़) साबित कर दे और बातिल का मटियामेट कर दे अगर चे गुनाहगार (कुफ्फार उससे) नाखुश ही क्यों न हो.

दुआ # 2 – सुरः युसूफ (12) – आयात # 77.

12.77: (ग़रज़) इब्ने यामीन रोक लिए गए तो ये लोग कहने लगे अगर उसने चोरी की तो (कौन ताज्जुब है) इसके पहले इसका भाई (यूसुफ) चोरी कर चुका है तो यूसुफ ने (उसका कुछ जवाब न दिया) उसको अपने दिल में पोशीदा (छुपाये) रखा और उन पर ज़ाहिर न होने दिया मगर ये कह दिया कि तुम लोग बड़े ख़ाना ख़राब (बुरे आदमी) हो.

दुआ # 3 – सुरः अर-रअद (13) – आयात # 43.

13.43: और (ऐ रसूल) काफिर लोग कहते हैं कि तुम पैग़म्बर नही हो तो तुम (उनसे) कह दो कि मेरे और तुम्हारे दरमियान मेरी रिसालत की गवाही के वास्ते ख़ुदा और वह शख़्श जिसके पास (आसमानी) किताब का इल्म है काफी है.

दुआ # 4 – सुरः अल-अनकबूत  (29) – आयात # 52.

29.52: तुम कह दो कि मेरे और तुम्हारे दरमियान गवाही के वास्ते ख़ुदा ही काफी है जो सारे आसमान व ज़मीन की चीज़ों को जानता है-और जिन लोगों ने बातिल को माना और ख़ुदा से इन्कार किया वही लोग बड़े घाटे में रहेंगे.

दुआ # 5 – सुरः अल-अहकाफ़(46) – आयात #8.

46.8: क्या ये कहते हैं कि इसने इसको ख़ुद गढ़ लिया है तो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर मैं इसको (अपने जी से) गढ़ लेता तो तुम ख़ुदा के सामने मेरे कुछ भी काम न आओगे जो जो बातें तुम लोग उसके बारे में करते रहते हो वह ख़ूब जानता है मेरे और तुम्हारे दरमियान वही गवाही को काफ़ी है और वही बड़ा बख्शने वाला है मेहरबान है.

दुआ # 6 – सुरः ताःहाः (20) – आयत # 25 से 28

20.25: मूसा ने अर्ज़ की परवरदिगार (मैं जाता तो हूँ),

20.26: मगर तू मेरे लिए मेरे सीने को कुशादा फरमा,

20.27: और दिलेर बना और मेरा काम मेरे लिए आसान कर दे और मेरी ज़बान से लुक़नत की गिरह खोल दे,

20.28: ताकि लोग मेरी बात अच्छी तरह समझें और;

दुआ # 7 – सुरः अल-अंबिया (21:112) – आयात # 112.

21.112: (आख़िर) रसूल ने दुआ की ऐ मेरे पालने वाले तू ठीक-ठीक मेरे और काफिरों के दरमियान फैसला कर दे और हमार परवरदिगार बड़ा मेहरबान है कि उसी से इन बातों में मदद माँगी जाती है जो तुम लोग बयान करते हो.

दुआ # 8a – सुरः अल-मोमिनून (23) – आयात # 26.

23.26: नूह ने (ये बातें सुनकर) दुआ की ऐ मेरे पलने वाले मेरी मदद कर .इस वजह से कि उन लोगों ने मुझे झुठला दिया

दुआ # 8b – सुरः अल-मोमिनून (23) – आयात # 39.

23.39: तू मेरी मदद कर ख़ुदा ने फरमाया (एक ज़रा ठहर जाओ).

दुआ # 9 – सुरः अश-शु'अरा (26) – आयत # 12 से 14.

26.12: मूसा ने अर्ज़ कि परवरदिगार मैं डरता हूँ कि (मुबादा) वह लोग मुझे झुठला दे;

26.13: और (उनके झुठलाने से) मेरा दम रुक जाए और मेरी ज़बान (अच्छी तरह) न चले तो हारुन के पास पैग़ाम भेज दे (कि मेरा साथ दे);

26.14: (और इसके अलावा) उनका मेरे सर एक जुर्म भी है (कि मैने एक शख्स को मार डाला था)

अध्याय 16- दुआ - माफ़ी में मदद के लिए

दुआ # 1 – सुरः मरयम (19/47) – आयात # 47.

19.47: इबराहीम ने कहा (अच्छा तो) मेरा सलाम लीजिए (मगर इस पर भी) मैं अपने परवरदिगार से आपकी बख्शिश की दुआ करूँगा:

 

अध्याय 17 –दुआ - ज्ञान की उन्नति के लिए

दुआ # 1 – सुरः ताःहाः (20/114) – आयात # 114.

20.114: पस (दो जहाँ का) सच्चा बादशाह खुदा बरतर व आला है और (ऐ रसूल) कुरान के (पढ़ने) में उससे पहले कि तुम पर उसकी ''वही'' पूरी कर दी जाए जल्दी न करो और दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले मेरे इल्म को और ज्यादा फ़रमा.

 

अध्याय 18 दुआ- यात्रा शुरू करने से पहले, नया काम से पहले या मंजिल पर पहुँचने के लिए

दुआ # 1 – सुरः अल-मोमिनून (23/29) – आयात # 29.

23.29: और दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले तू मुझको (दरख्त के पानी की) बा बरकत जगह में उतारना और तू तो सब उतारने वालो से बेहतर है.

दुआ # 2 – सुरः हूद (11/88) – आयात # 88.

11.88: युएब ने कहा ऐ मेरी क़ौम अगर मै अपने परवरदिगार की तरफ से रौशन दलील पर हूँ और उसने मुझे (हलाल) रोज़ी खाने को दी है (तो मै भी तुम्हारी तरह हराम खाने लगूँ) और मै तो ये नहीं चाहता कि जिस काम से तुम को रोकूँ तुम्हारे बर ख़िलाफ (बदले) आप उसको करने लगूं मैं तो जहाँ तक मुझे बन पड़े इसलाह (भलाई) के सिवा (कुछ और) चाहता ही नहीं और मेरी ताईद तो ख़ुदा के सिवा और किसी से हो ही नहीं सकती इस पर मैने भरोसा कर लिया है और उसी की तरफ रुज़ू करता हूँ:

दुआ # 3 – सुरः अज़-ज़ुखरुफ़ (43) आयत # 13 से 14.

43.13: ताकि तुम उसकी पीठ पर चढ़ो और जब उस पर (अच्छी तरह) सीधे हो बैठो तो अपने परवरदिगार का एहसान माना करो और कहो कि वह (ख़ुदा हर ऐब से) पाक है जिसने इसको हमारा ताबेदार बनाया हालॉकि हम तो ऐसे (ताक़तवर) न थे कि उस पर क़ाबू पाते

43.14: और हमको तो यक़ीनन अपने परवरदिगार की तरफ लौट कर जाना है

 

अध्याय 19 –दुआ - प्रियजनों से मिलने के लिए.

दुआ # 1 – सुरः बक़रा (2/148) – आयात # 148.

2.148: और हर फरीक़ के वास्ते एक सिम्त है उसी की तरफ वह नमाज़ में अपना मुँह कर लेता है पस तुम ऐ मुसलमानों झगड़े को छोड़ दो और नेकियों मे उन से लपक के आगे बढ़ जाओ तुम जहाँ कहीं होगे ख़ुदा तुम सबको अपनी तरफ ले आऐगा बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है.

दुआ # 2 – सुरः युसूफ (12/83) – आयात # 83.

12.83: (ग़रज़ जब उन लोगों ने जाकर बयान किया तो) याक़ूब न कहा (उसने चोरी नहीं की) बल्कि ये बात तुमने अपने दिल से गढ़ ली है तो (ख़ैर) सब्र (और ख़ुदा का) शुक्र ख़ुदा से तो (मुझे) उम्मीद है कि मेरे सब (लड़कों) को मेरे पास पहुँचा दे बेशक वह बड़ा वाकिफ़ कार हकीम है.

 

अध्याय 20 दुआ - निर्णय करने के लिए

दुआ # 1 – सुरः अज़-ज़ुमर (39) – आयात # 46.

39.46: (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ ख़ुदा (ऐ) सारे आसमान और ज़मीन पैदा करने वाले, ज़ाहिर व बातिन के जानने वाले हक़ बातों में तेरे बन्दे आपस में झगड़ रहे हैं तू ही उनके दरमियान फैसला कर देगा.

 

अध्याय 21 – दुआ - बारिश के लिए

दुआ # 1 – सुरः अर-रूम (30/48-50) – आयत #s 48 से 50.

30.48: ख़ुदा ही (क़ादिर तवाना) है जो हवाओं को भेजता है तो वह बादलों को उड़ाए उड़ाए फिरती हैं फिर वही ख़ुदा बादल को जिस तरह चाहता है आसमान में फैला देता है और (कभी) उसको टुकड़े (टुकड़े) कर देता है फिर तुम देखते हो कि बूँदियां उसके दरमियान से निकल पड़ती हैं फिर जब ख़ुदा उन्हें अपने बन्दों में से जिस पर चहता है बरसा देता है तो वह लोग खुशियाँ माानने लगते हैं

30.49: अगरचे ये लोग उन पर (बाराने रहमत) नाज़िल होने से पहले (बारिश से) शुरु ही से बिल्कुल मायूस (और मज़बूर) थे.

30.50: ग़रज़ ख़ुदा की रहमत के आसार की तरफ देखो तो कि वह क्योंकर ज़मीन को उसकी परती होने के बाद आबाद करता है बेशक यक़ीनी वही मुर्दो को ज़िन्दा करने वाला और वही हर चीज़ पर क़ादिर है.

 

अध्याय 22 – दुआ - दान और परोपकार के काम के स्वीकृति के लिए.

दुआ # 1 – सुरः अद-दहर  (76) – आयत # 9 और 10.

76.9: (और कहते हैं कि) हम तो तुमको बस ख़ालिस ख़ुदा के लिए खिलाते हैं हम न तुम से बदले के ख़ास्तगार हैं और न शुक्र गुज़ारी के:

76.10: हमको तो अपने परवरदिगार से उस दिन का डर है जिसमें मुँह बन जाएँगे (और) चेहरे पर हवाइयाँ उड़ती होंगी.

 

अध्याय 4 – दुआ - मार्गदर्शन के लिए

दुआ # 1 – सुरः फ़ातेहा (1/5 और 6) – आयत # 5 और 6.

1.5: हम तेरी बन्दगी करते हैं और तुझी से मदद माँगते हैं.

1.6: हमें सीधे मार्ग पर चला .

दुआ # 2 – सुरः अल-बक़रा (2/32) – आयात # 32.

2.32: तब फ़रिश्तों ने (आजिज़ी से) अर्ज़ की तू (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है हम तो जो कुछ तूने बताया है उसके सिवा कुछ नहीं जानते तू बड़ा जानने वाला, मसलहतों का पहचानने वाला है.

दुआ # 3 – सुरः अल-अन'आम  (6/77) – आयात # 77.

6.77: फिर जब चाँद को जगमगाता हुआ देखा तो बोल उठे (क्या) यही मेरा ख़ुदा है फिर जब वह भी ग़ुरुब हो गया तो कहने लगे कि अगर (कहीं) मेरा (असली) परवरदिगार मेरी हिदायत न करता तो मैं ज़रुर गुमराह लोगों में हो जाता.

दुआ # 4 – सुरः युनुस (10/109) – आयात # 109.

10.109: और (ऐ रसूल) तुम्हारे पास जो 'वही' भेजी जाती है तुम बस उसी की पैरवी करो और सब्र करो यहाँ तक कि ख़ुदा तुम्हारे और काफिरों के दरमियान फैसला फरमाए और वह तो तमाम फैसला करने वालों से बेहतर है.

दुआ # 5 – सुरः अल-कहफ़ (18/24) – आयात # 24.

18.24: मगर इन्शा अल्लाह कह कर और अगर (इन्शा अल्लाह कहना) भूल जाओ तो (जब याद आए) अपने परवरदिगार को याद कर लो (इन्शा अल्लाह कह लो) और कहो कि उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे ऐसी बात की हिदायत फरमाए जो रहनुमाई में उससे भी ज्यादा क़रीब हो.

दुआ # 6 – सुरः अल-अंबिया (21/4) – आयात # 4.

21.4: (तो उस पर) रसूल ने कहा कि मेरा परवरदिगार जितनी बातें आसमान और ज़मीन में होती हैं खूब जानता है (फिर क्यों कानाफूसी करते हो) और वह तो बड़ा सुनने वाला वाक़िफ़कार है

दुआ # 7 – सुरः अल-कहफ़ (18/10) – आयात # 10.

18.10: कि एक बारगी कुछ जवान ग़ार में आ पहुँचे और दुआ की-ऐ हमारे परवरदिगार हमें अपनी बारगाह से रहमत अता फरमा-और हमारे वास्ते हमारे काम में कामयाबी इनायत कर.

दुआ # 8 – सुरः अल-कहफ़ (18/17) – आयात # 17.

18.17: (ग़रज़ ये ठान कर ग़ार में जा पहुँचे) कि जब सूरज निकलता है तो देखेगा कि वह उनके ग़ार से दाहिनी तरफ झुक कर निकलता है और जब ग़ुरुब (डुबता) होता है तो उनसे बायीं तरफ कतरा जाता है और वह लोग (मजे से) ग़ार के अन्दर एक वसीइ (बड़ी) जगह में (लेटे) हैं ये ख़ुदा (की कुदरत) की निशानियों में से (एक निशानी) है जिसको हिदायत करे वही हिदायत याफ्ता है और जिस को गुमराह करे तो फिर उसका कोई सरपरस्त रहनुमा हरगिज़ न पाओगे.

दुआ # 9 – सुरः अन-नम्ल (27/79) – आयात # 79.

27.79: तो (ऐ रसूल) तुम खुदा पर भरोसा रखो बेशक तुम यक़ीनी सरीही हक़ पर हो.

दुआ # 10 – सुरः अत-तक्वीर    (81/29) – आयात # 29.

81.29: और तुम तो सारे जहॉन के पालने वाले ख़ुदा के चाहे बग़ैर कुछ भी चाह नहीं सकते.

दुआ # 11 – सुरः अल-फुर्क़ान (25/31) – आयात # 31.

25.31: और हमने (गोया ख़ुद) गुनाहगारों में से हर नबी के दुश्मन बना दिए हैं और तुम्हारा परवरदिगार हिदायत और मददगारी के लिए काफी है.

दुआ # 12 – सुरः अल-क़सस  (28) – आयात # 22.

28.22: और जब मदियन की तरफ रुख़ किया (और रास्ता मालूम न था) तो आप ही आप बोले मुझे उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे सीधे रास्ता दिखा दे.

दुआ # 13 – सुरः अल-अनकबूत  (29/26) – आयात # 26.

29.26: तब सिर्फ लूत इबराहीम पर ईमान लाए और इबराहीम ने कहा मै तो देस को छोड़कर अपने परवरदिगार की तरफ (जहाँ उसको मंज़ूर हो ) निकल जाऊँगा

दुआ # 14 – सुरः अस-साफफात (37/99) – आयात # 99.

37.99: तो हमने (आग सर्द गुलज़ार करके) उन्हें नीचा दिखाया और जब (आज़र ने) इबराहीम को निकाल दिया तो बोले मैं अपने परवरदिगार की तरफ जाता हूँ.

दुआ # 15 – सुरः अल-मआरिज (70/40 और 41) – आयत # 40 और 41.

70.40: तो मैं मशरिकों और मग़रिबों के परवरदिगार की क़सम खाता हूँ कि हम ज़रूर इस बात की कुदरत रखते हैं

70.41: कि उनके बदले उनसे बेहतर लोग ला (बसाएँ) और हम आजिज़ नहीं हैं .

दुआ # 16 – सुरः अल-माइदा  (5/48) – आयात # 48.

5.48: और (ऐ रसूल) हमने तुम पर भी बरहक़ किताब नाज़िल की जो किताब (उसके पहले से) उसके वक्त में मौजूद है उसकी तसदीक़ करती है और उसकी निगेहबान (भी) है जो कुछ तुम पर ख़ुदा ने नाज़िल किया है उसी के मुताबिक़ तुम भी हुक्म दो और जो हक़ बात ख़ुदा की तरफ़ से आ चुकी है उससे कतरा के उन लोगों की ख्वाहिशे नफ़सियानी की पैरवी न करो और हमने तुम में हर एक के वास्ते (हस्बे मसलेहते वक्त) एक एक शरीयत और ख़ास तरीक़े पर मुक़र्रर कर दिया और अगर ख़ुदा चाहता तो तुम सब के सब को एक ही (शरीयत की) उम्मत बना देता मगर (मुख़तलिफ़ शरीयतों से) ख़ुदा का मतलब यह था कि जो कुछ तुम्हें दिया है उसमें तुम्हारा इमतेहान करे बस तुम नेकी में लपक कर आगे बढ़ जाओ और (यक़ीन जानो कि) तुम सब को ख़ुदा ही की तरफ़ लौट कर जाना है;

दुआ # 17 – सुरः मरयम (19/76) – आयात # 76.

19.76: और जो लोग राहे रास्त पर हैं खुदा उनकी हिदायत और ज्यादा करता जाता है और बाक़ी रह जाने वाली नेकियाँ तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक सवाब की राह से भी बेहतर है और अन्जाम के ऐतबार से (भी) बेहतर है.

दुआ # 18 – सुरः अश-शु'अरा (26/62) – आयात # 62.

26.62: कि अब तो पकड़े गए मूसा ने कहा हरगिज़ नहीं क्योंकि मेरे साथ मेरा परवरदिगार है.

दुआ # 19 – सुरः अन-नम्ल (27/93) – आयात # 93.

27.93: Aऔर तुम कह दो कि अल्हमदोलिल्लाह वह अनक़रीब तुम्हें (अपनी क़ुदरत की) निशानियाँ दिखा देगा तो तुम उन्हें पहचान लोगे और जो कुछ तुम करते हो तुम्हारा परवरदिगार उससे ग़ाफिल नहीं है.

दुआ # 20 – सुरः अल-क़सस  (28/85) – आयात # 85.

28.85: (ऐ रसूल) ख़ुदा जिसने तुम पर क़ुरान नाज़िल किया ज़रुर ठिकाने तक पहुँचा देगा (ऐ रसूल) तुम कह दो कि कौन राह पर आया और कौन सरीही गुमराही में पड़ा रहा.

दुआ # 21 – सुरः अज़-ज़ुखरुफ़ (43/27) – आयात # 27.

43.27: मगर उसकी इबादत करता हूँ, जिसने मुझे पैदा किया तो वही बहुत जल्द मेरी हिदायत करेगा.

 

अध्याय 5 – दुआ - औलाद के लिए

दुआ # 1 – सुरः बक़रा (2/117) – आयात # 117.

2.117: (वही) आसमान व ज़मीन का मोजिद है और जब किसी काम का करना ठान लेता है तो उसकी निसबत सिर्फ कह देता है कि ''हो जा'' पस वह (खुद ब खुद) हो जाता है.

दुआ # 2 – सुरः हूद (11/123) – आयात # 123

11.123: और सारे आसमान व ज़मीन की पोशीदा बातों का इल्म ख़ास ख़ुदा ही को है और उसी की तरफ हर काम हिर फिर कर लौटता है तुम उसी की इबादत करो और उसी पर भरोसा रखो और जो कुछ तुम लोग करते हो उससे ख़ुदा बेख़बर नहीं.

दुआ # 3 – सुरः अर-रअद (13/16) – आयात # 16.

13.16: (ऐ रसूल) तुम पूछो कि (आख़िर) आसमान और ज़मीन का परवरदिगार कौन है (ये क्या जवाब देगें) तुम कह दो कि अल्लाह है (ये भी कह दो कि क्या तुमने उसके सिवा दूसरे कारसाज़ बना रखे हैं जो अपने लिए आप न तो नफे पर क़ाबू रखते हैं न ज़रर (नुकसान) पर (ये भी तो) पूछो कि भला (कहीं) अन्धा और ऑंखों वाला बराबर हो सकता है (हरगिज़ नहीं) (या कहीं) अंधेरा और उजाला बराबर हो सकता है (हरगिज़ नहीं) इन लोगों ने ख़ुदा के कुछ शरीक़ ठहरा रखे हैं क्या उन्होनें ख़ुदा ही की सी मख़लूक़ पैदा कर रखी है जिनके सबब मख़लूकात उन पर मुशतबा हो गई है (और उनकी खुदाई के क़ायल हो गए) तुम कह दो कि ख़ुदा ही हर चीज़ का पैदा करने वाला और वही यकता और सिपर (सब पर) ग़ालिब है.

दुआ # 4 – सुरः अर-रूम (30/11) – आयात # 11.

30.11: ख़ुदा ही ने मख़लूकात को पहली बार पैदा किया फिर वही दुबारा (पैदा करेगा) फिर तुम सब लोग उसी की तरफ लौटाए जाओगे.

दुआ # 5 – सुरः अर-रूम (30/26 और 27) – आयात # 26 और 27.

30.26: और जो लोग आसमानों में है सब उसी के है और सब उसी के ताबेए फरमान हैं.

30.27: और वह ऐसा (क़ादिरे मुत्तालिक़ है जो मख़लूकात को पहली बार पैदा करता है फिर दोबारा (क़यामत के दिन) पैदा करेगा और ये उस पर बहुत आसान है और सारे आसमान व जमीन सबसे बालातर उसी की शान है और वही (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है.

दुआ # 6 – सुरः अल-अनकबूत  (29/19) – आयात # 19.

29.19: बस क्या उन लोगों ने इस पर ग़ौर नहीं किया कि ख़ुदा किस तरह मख़लूकात को पहले पहल पैदा करता है और फिर उसको दोबारा पैदा करेगा ये तो ख़ुदा के नज़दीक बहुत आसान बात है.

दुआ # 7 – सुरः ताःहाः (20/50) – आयात # 50.

20.50: मूसा ने कहा हमारा परवरदिगार वह है जिसने हर चीज़ को उसके (मुनासिब) सूरत अता फरमाई.

दुआ # 8 – सुरः अल-अंबिया (21/89 – आयात # 89.

21.89: और ज़करिया (को याद करो) जब उन्होंने (मायूस की हालत में) अपने परवरदिगार से दुआ की ऐ मेरे पालने वाले मुझे तन्हा (बे औलाद) न छोड़ और तू तो सब वारिसों से बेहतर है.

दुआ # 9 – सुरः अस-साफफात 37/100) – आयात # 100.

37.100: वह अनक़रीब ही मुझे रूबरा कर देगा (फिर ग़रज की) परवरदिगार मुझे एक नेको कार (फरज़न्द) इनायत फरमा.

 

अध्याय 6 – दुआ - शहर में शांती  के लिए

दुआ # 1 – सुरः इब्राहीम (14/35) – आयात # 35.

14.35: याद करो जब इबराहीम ने कहा था, "मेरे रब! इस भूभाग (मक्का) को शान्तिमय बना दे और मुझे और मेरी सन्तान को इससे बचा कि हम मूर्तियों को पूजने लग जाए:

 

अध्याय 7 – दुआ - जंग में बचने, विपत्ति और दुश्मन के लिए

दुआ # 1 – सुरः आले इमरान – आयात # 147.

3.147: उन्होंने कुछ नहीं कहा सिवाय इसके कि "ऐ हमारे रब! तू हमारे गुनाहों को और हमारे अपने मामले में जो ज़्यादती हमसे हो गई हो, उसे क्षमा कर दे और हमारे क़दम जमाए रख, और इनकार करनेवाले लोगों के मुक़ाबले में हमारी सहायता कर।"

दुआ # 2 – सुरः अल-मोमिनून – आयात # 28.

23.28: फिर जब तू नौका पर सवार हो जाए और तेरे साथी भी तो कह, प्रशंसा है अल्लाह की, जिसने हमें ज़ालिम लोगों से छुटकारा दिया:

दुआ # 3 – सुरः अल-बक़रा – आयत # 249 और 250.

2.249: Sफिर जब तालूत लशकर समैत (शहर ऐलिया से) रवाना हुआ तो अपने साथियों से कहा देखो आगे एक नहर मिलेगी इस से यक़ीनन ख़ुदा तुम्हारे सब्र की आज़माइश करेगा पस जो शख्स उस का पानी पीयेगा मुझे (कुछ वास्ता) नही रखता और जो उस को नही चखेगा वह बेशक मुझ से होगा मगर हाँ जो अपने हाथ से एक (आधा चुल्लू भर के पी) ले तो कुछ हर्ज नही पस उन लोगों ने न माना और चन्द आदमियों के सिवा सब ने उस का पानी पिया ख़ैर जब तालूत और जो मोमिनीन उन के साथ थे नहर से पास हो गए तो (ख़ास मोमिनों के सिवा) सब के सब कहने लगे कि हम में तो आज भी जालूत और उसकी फौज से लड़ने की सकत नहीं मगर वह लोग जिनको यक़ीन है कि एक दिन ख़ुदा को मुँह दिखाना है बेधड़क बोल उठे कि ऐसा बहुत हुआ कि ख़ुदा के हुक्म से छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ालिब आ गयी है और ख़ुदा सब्र करने वालों का साथी है.

2.250: (ग़रज़) जब ये लोग जालूत और उसकी फौज के मुक़ाबले को निकले तो दुआ की ऐ मेरे परवरदिगार हमें कामिल सब्र अता फरमा और मैदाने जंग में हमारे क़दम जमाए रख और हमें काफिरों पर फतेह इनायत कर.

दुआ # 4 – सुरः अन-निसा आयात # 75.

4.75: तुम्हें क्या हुआ है कि अल्लाह के मार्ग में और उन कमज़ोर पुरुषों, औरतों और बच्चों के लिए युद्ध न करो, जो प्रार्थनाएँ करते है कि "हमारे रब! तू हमें इस बस्ती से निकाल, जिसके लोग अत्याचारी है। और हमारे लिए अपनी ओर से तू कोई समर्थक नियुक्त कर और हमारे लिए अपनी ओर से तू कोई सहायक नियुक्त कर।".

दुआ # 5 – सुरः युनुस – आयत # 85 और 86.

10.85: इसपर वे बोले, "हमने अल्लाह पर भरोसा किया। ऐ हमारे रब! तू हमें अत्याचारी लोगों के हाथों आज़माइश में न डाल:

10.86: "और अपनी दयालुता से हमें इनकार करनेवालों से छुटकारा दिया।".

दुआ # 6 – सुरः अल-क़सस  – आयात # 21.

28.21: फिर वह वहाँ से डरता और ख़तरा भाँपता हुआ निकल खड़ा हुआ। उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मुझे ज़ालिम लोगों से छुटकारा दे।".

दुआ # 7 – सुरः अल-अनकबूत  – आयत # # 30.

29.30: उसने कहास "ऐ मेरे रब! बिगाड़ पैदा करनेवाले लोगों के मुक़ावले में मेरी सहायता कर।".

दुआ # 8 – सुरः ताःहाः (20) – आयत # 45 और 46.

20.45: दोनों ने कहा, "ऐ हमारे रब! हमें इसका भय है कि वह हमपर ज़्यादती करे या सरकशी करने लग जाए।".

20.46: कहा, "डरो नहीं, मै तुम्हारे साथ हूँ। सुनता और देखता हूँ.

 

अध्याय 8 – दुआ - हिफाज़त के लिए

दुआ # 1 – सुरः अल-बक़रा आयात 255.

2.255: ख़ुदा ही वो ज़ाते पाक है कि उसके सिवा कोई माबूद नहीं (वह) ज़िन्दा है (और) सारे जहान का संभालने वाला है उसको न ऊँघ आती है न नींद जो कुछ आसमानो में है और जो कुछ ज़मीन में है (गरज़ सब कुछ) उसी का है कौन ऐसा है जो बग़ैर उसकी इजाज़त के उसके पास किसी की सिफ़ारिश करे जो कुछ उनके सामने मौजूद है (वह) और जो कुछ उनके पीछे (हो चुका) है (खुदा सबको) जानता है और लोग उसके इल्म में से किसी चीज़ पर भी अहाता नहीं कर सकते मगर वह जिसे जितना चाहे (सिखा दे) उसकी कुर्सी सब आसमानॊं और ज़मीनों को घेरे हुये है और उन दोनों (आसमान व ज़मीन) की निगेहदाश्त उसपर कुछ भी मुश्किल नहीं और वह आलीशान बुजुर्ग़ मरतबा है.

दुआ # 2 – सुरः अत-तौबा – आयत # # 51.

9.51: कह दो, "हमें कुछ भी पेश नहीं आ सकता सिवाय उसके जो अल्लाह ने लिख दिया है। वही हमारा स्वामी है। और ईमानवालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।".

दुआ # 3 – सुरः मरयम आयात # 65.

19.65: आकाशों और धरती का रब है और उसका भी जो इन दोनों के मध्य है। अतः तुम उसी की बन्दगी पर जमे रहो। क्या तुम्हारे ज्ञान में उस जैसा कोई है?

दुआ # 4 – सुरः अल-फुर्क़ान आयात # 18.

25.18: वे कहेंगे, "महान और उच्च है तू! यह हमसे नहीं हो सकता था कि तुझे छोड़कर दूसरे संरक्षक बनाएँ। किन्तु हुआ यह कि तूने उन्हें औऱ उनके बाप-दादा को अत्यधिक सुख-सामग्री दी, यहाँ तक कि वे अनुस्मृति को भुला बैठे और विनष्ट होनेवाले लोग होकर रहे।",

दुआ # 5 – सुरः हाः मीम: / अस सजदा आयात # 36.

41.36: और यदि शैतान की ओर से कोई उकसाहट तुम्हें चुभे तो अल्लाह की शरण माँग लो। निश्चय ही वह सबकुछ सुनता, जानता है.

दुआ # 6 – सुरः युसूफ – आयात # 101.

12.101: मेरे रब! तुने मुझे राज्य प्रदान किया और मुझे घटनाओं और बातों के निष्कर्ष तक पहुँचना सिखाया। आकाश और धरती के पैदा करनेवाले! दुनिया और आख़िरत में तू ही मेरा संरक्षक मित्र है। तू मुझे इस दशा से उठा कि मैं मुस्लिम (आज्ञाकारी) हूँ और मुझे अच्छे लोगों के साथ मिला।".

दुआ # 7 – सुरः बनी इसराइल – आयत # # 110 और 111.

17.110: कह दो, "तुम अल्लाह को पुकारो या रहमान को पुकारो या जिस नाम से भी पुकारो, उसके लिए सब अच्छे ही नाम है।" और अपनी नमाज़ न बहुत ऊँची आवाज़ से पढ़ो और न उसे बहुत चुपके से पढ़ो, बल्कि इन दोनों के बीच मध्य मार्ग अपनाओ.

17.111: और कहो, "प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने न तो अपना कोई बेटा बनाया और न बादशाही में उसका कोई सहभागी है और न ऐसा ही है कि वह दीन-हीन हो जिसके कारण बचाव के लिए उसका कोई सहायक मित्र हो।" और बड़ाई बयान करो उसकी, पूर्ण बड़ाई.

दुआ # 8 – सुरः आले इमरान – आयात # 13.

3.13: तुम्हारे लिए उन दोनों गिरोहों में एक निशानी है जो (बद्र की) लड़ाई में एक-दूसरे के मुक़ाबिल हुए। एक गिरोह अल्लाह के मार्ग में लड़ रहा था, जबकि दूसरा विधर्मी था। ये अपनी आँखों देख रहे थे कि वे उनसे दुगने है। अल्लाह अपनी सहायता से जिसे चाहता है, शक्ति प्रदान करता है। दृष्टिवान लोगों के लिए इसमें बड़ी शिक्षा-सामग्री है.

दुआ # 9 – सुरः अल-आराफ़ – आयात # 126.

7.126: "और तू केबल इस क्रोध से हमें कष्ट पहुँचाने के लिए पीछे पड़ गया है कि हम अपने रब की निशानियों पर ईमान ले आए। हमारे रब! हमपर धैर्य उड़ेल दे और हमें इस दशा में उठा कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) हो।".

दुआ # 10 – सुरः अल-अनफ़ाल – आयात # 18.

8.18: यह तो हुआ, और यह (जान लो) कि अल्लाह इनकार करनेवालों की चाल को कमज़ोर कर देनेवाला है.

दुआ # 11 – सुरः इब्राहीम – आयत # 11 और 12.

14.11: उनके रसूलों ने उनसे कहा, "हम तो वास्तव में बस तुम्हारे ही जैसे मनुष्य है, किन्तु अल्लाह अपने बन्दों में से जिनपर चाहता है एहसान करता है और यह हमारा काम नहीं कि तुम्हारे सामने कोई प्रमाण ले आएँ। यह तो बस अल्लाह के आदेश के पश्चात ही सम्भव है; और अल्लाह ही पर ईमानवालों को भरोसा करना चाहिए.

14.12: आख़िर हमें क्या हुआ है कि हम अल्लाह पर भरोसा न करें, जबकि उसने हमें हमारे मार्ग दिखाए है? तुम हमें जो तकलीफ़ पहुँचा रहे हो उसके मुक़ाबले में हम धैर्य से काम लेंगे। भरोसा करनेवालों को तो अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।".

दुआ # 12 – सुरः अल-कहफ़ (18) – आयात # 98.

18.98: जुलक़रनैन ने (दीवार को देखकर) कहा ये मेरे परवरदिगार की मेहरबानी है मगर जब मेरे परवरदिगार का वायदा (क़यामत) आयेगा तो इसे ढहा कर हमवार कर देगा और मेरे परवरदिगार का वायदा सच्चा है.

दुआ # 13 – सुरः मरयम – आयात # 18.

19.18: (वह उसको देखकर घबराई और) कहने लगी अगर तू परहेज़गार है तो मैं तुझ से खुदा की पनाह माँगती हूँ.

दुआ # 14 – सुरः अश-शु'अरा – आयात 77.

26.77: मगर सारे जहाँ का पालने वाला जिसने मुझे पैदा किया (वही मेरा दोस्त है);

दुआ # 15 – सुरः अद-दूखान  (44) – आयात 20 और 21.

44.20: और इस बात से कि तुम मुझे संगसार करो मैं अपने और तुम्हारे परवरदिगार (ख़ुदा) की पनाह मांगता हूँ:

दुआ # 16 – सुरः अल-मोमिन (40) – आयात # 27.

40.27: और मूसा ने कहा कि मैं तो हर मुताकब्बिर से जो हिसाब के दिन (क़यामत पर ईमान नहीं लाता) अपने और तुम्हारे परवरदिगार की पनाह ले चुका हूं .

दुआ # 17 – सुरः अल-हुजुरात (49) – आयात # 18.

49.18: बेशक ख़ुदा तो सारे आसमानों और ज़मीन की छिपी हुई बातों को जानता है और जो तुम करते हो ख़ुदा उसे देख रहा है.

दुआ # 18 – सुरः याः सीन: (36/9) – आयात # 9.

36.9: हमने एक दीवार उनके आगे बना दी है और एक दीवार उनके पीछे फिर ऊपर से उनको ढाँक दिया है तो वह कुछ देख नहीं सकते.

 

अध्याय 9 – दुआ - धन और समृद्धि के लिए

दुआ # 1 – सुरः आले इमरान (3) – आयत # 73 और 74.

3.73: और तुम्हारे दीन की पैरवरी करे उसके सिवा किसी दूसरे की बात का ऐतबार न करो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि बस ख़ुदा ही की हिदायत तो हिदायत है (यहूदी बाहम ये भी कहते हैं कि) उसको भी न (मानना) कि जैसा (उम्दा दीन) तुमको दिया गया है, वैसा किसी और को दिया जाय या तुमसे कोई शख्स ख़ुदा के यहॉ झगड़ा करे (ऐ रसूल तुम उनसे) कह दो कि (ये क्या ग़लत ख्याल है) फ़ज़ल (व करम) ख़ुदा के हाथ में है वह जिसको चाहे दे और ख़ुदा बड़ी गुन्जाईश वाला है (और हर शै को)े जानता है .

3.74: जिसको चाहे अपनी रहमत के लिये ख़ास कर लेता है और ख़ुदा बड़ा फ़ज़लों करम वाला हे.

दुआ # 2 – सुरः अश-शु'अरा – आयात # 19.

26.19: और तुम अपना वह काम (ख़ून क़िब्ती) जो कर गए और तुम (बड़े) नाशुक्रे हो.

दुआ # 3 – सुरः अज़-ज़ारियात (51) – आयात # 58.

51.58: ख़ुदा ख़ुद बड़ा रोज़ी देने वाला ज़ोरावर (और) ज़बरदस्त है.

दुआ # 4 – सुरः अल-जुमुआ      (62) – आयात # 4.

62.4: ख़ुदा का फज़ल है जिसको चाहता है अता फरमाता है और ख़ुदा तो बड़े फज़ल (व करम) का मालिक है.

दुआ # 5 – सुरः आले इमरान (3) – आयत # 26 और 27.

3.26: (ऐ रसूल) तुम तो यह दुआ मॉगों कि ऐ ख़ुदा तमाम आलम के मालिक तू ही जिसको चाहे सल्तनत दे और जिससे चाहे सल्तनत छीन ले और तू ही जिसको चाहे इज्ज़त दे और जिसे चाहे ज़िल्लत दे हर तरह की भलाई तेरे ही हाथ में है बेशक तू ही हर चीज़ पर क़ादिर है .

3.27: तू ही रात को (बढ़ा के) दिन में दाख़िल कर देता है (तो) रात बढ़ जाती है और तू ही दिन को (बढ़ा के) रात में दाख़िल करता है (तो दिन बढ़ जाता है) तू ही बेजान (अन्डा नुत्फ़ा वगैरह) से जानदार को पैदा करता है और तू ही जानदार से बेजान नुत्फ़ा (वगैरहा) निकालता है और तू ही जिसको चाहता है बेहिसाब रोज़ी देता है.

दुआ # 6 – सुरः अल-क़सस  (28) – आयात # 82.

28.82: और जिन लोगों ने कल उसके जाह व मरतबे की तमन्ना की थी वह (आज ये तमाशा देखकर) कहने लगे अरे माज़अल्लाह ये तो ख़ुदा ही अपने बन्दों से जिसकी रोज़ी चाहता है कुशादा कर देता है और जिसकी रोज़ी चाहता है तंग कर देता है और अगर (कहीं) ख़ुदा हम पर मेहरबानी न करता (और इतना माल दे देता) तो उसकी तरह हमको भी ज़रुर धॅसा देता-और माज़अल्लाह (सच है) हरगिज़ कुफ्फार अपनी मुरादें न पाएँगें.

दुआ # 7 – सुरः सबा  (34) – आयात # 39.

34.39: (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मेरा परवरदिगार अपने बन्दों में से जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और (जिसके लिए चाहता है) तंग कर देता है और जो कुछ भी तुम लोग (उसकी राह में) ख़र्च करते हो वह उसका ऐवज देगा और वह तो सबसे बेहतर रोज़ी देनेवाला है.

दुआ # 8 – सुरः साद (38) – आयात # 35.

38.35: फिर (सुलेमान ने मेरी तरफ) रूजू की (और) कहा परवरदिगार मुझे बख्श दे और मुझे वह मुल्क अता फरमा जो मेरे बाद किसी के वास्ते शायाँह न हो इसमें तो शक नहीं कि तू बड़ा बख्शने वाला है;

 


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