नहजुल बलाग़ा

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नहजुल बलाग़ा लेखक:
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नहजुल बलाग़ा

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: सैय्यद रज़ी र.ह
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नहजुल बलाग़ा
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नहजुल बलाग़ा

नहजुल बलाग़ा

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

104-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

अम्माबाद! अल्लाह ने हज़रत मोहम्मद (स0) को उस दौर में भेजा है जब अरब में न कोई किताब पढ़ना जानता था और न नबूवत और वही का इदआ करने वाला था। आपने इताअतगुज़ारों के सहारे नाफ़रमानों से जेहाद किया के उन्हें मन्ज़िले निजात की तरफ़ ले जाना चाहते थे और क़यामत के आने से पहले हिदायत दे देना चाहते थे। जब कोई थका मान्दा रूक जाता था और कोई लौटा हुआ ठहर जाता था तो उसके सर पर खड़े हो जाते थे के उसे मन्ज़िल तक पहुंचा दें मगर यह के कोई ऐसा लाख़ैरा हो जिसके मुक़द्दर में हलाकत हो। यहाँ तक के आपने लोगों को मरकज़े निजात से आशना बना दिया और उन्हें उनकी मन्ज़िल तक पहुँचा दिया उनकी चक्की चलने लगी और उनके टेढ़े सीधे हो गए।

और ख़ुदा की क़सम! मैं भी उनके हंकाने वालों में से था यहाँ तक के वह मुकम्मल तौर पर पस्पा हो गए और अपने बन्धनों में जकड़ दिये गए, इस दरम्यान में मैं न कमज़ोर हुआ न बुज़दिली का शिकार हुआ। न मैंने ख़यानत की और न सुस्ती का इज़हार किया।

(((- इमाम अलैहिस्सलाम की ज़िन्दगी का बेहतरीन नक़्षा है और इसी की रोशनी में दूसरे किरदारों का जाएज़ा लिया जा सकता है जिन्हें मैदाने तारीख़ ने तो पहचाना है लेकिन मैदाने जेहाद इनकी गर्दे क़दम से भी महरूम रह गया। मगर अफ़सोस के जानी पहचानी शख़्िसयतें अजनबी हो गईं और अजनबी शहर के मशाहीर बन गए।-)))

ख़ुदा की क़सम! मैं बातिल का पेट चाक करके उसके पहलू से हक़ को बहरहाल निकाल लूंगा।

सय्यद रज़ी - इस ख़ुतबे का एक इन्तेख़ाब पहले नक़्ल किया जा चुका है। लेकिन चूंकि इस रिवायत में क़द्रे कमी और ज़्यादती पाई जाती थी लेहाज़ा हालात का तक़ाज़ा यह था के इसे दोबारा इस शक्ल में भी दर्ज किया जाए।

105- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें रसूले अकरम (स0) के औसाफ़ , बनी उमय्या की तहदीद और लोगों की नसीहत का तज़किरा किया गया है।)

(रसूले अकरम (स0) - यहाँ तक के परवरदिगार ने हज़रत मोहम्मद (स0) को उम्मत के आमाल का गवाह , सवाब की बशारत देने वाला, अज़ाब से डराने वाला बनाकर भेज दिया। आप बचपने में बेहतरीन मख़लूक़ात और सिन रसीदा होने पर अशरफ़े कायनात थे, आदात के एतबार से तमाम पाकीज़ा अफ़राद से ज़्यादा पाकीज़ा और बाराने रहमत के एतबार से हर सहाब रहमत से ज़्यादा करीम व जवाद थे।

(बनी उमय्या) - यह दुनिया तुम्हारे लिये उसी वक़्त अपनी लज़्ज़तों समेत ख़ुशगवार बनी है और तुम उसके फ़वाएद हासिल करने के क़ाबिल बने हो जब तुमने देख लिया के इसकी मेहार झूल रही है और इसका तंग ढीला हो गया है। इसका हराम एक क़ौम के नज़दीक बग़ैर कांटे वाली बेर की तरह मज़ेदार हो गया है और इसका हलाल बहुत दूर तक नापसन्द हो गया है और ख़ुदा की क़सम तुम इस दुनिया को एक मुद्दत तक फैले हुए साये की तरह देखोगे के ज़मीन हर टोकने वाले से ख़ाली हो गई है और तुम्हारे हाथ खुल गए हैं और क़ाएदीन के हाथ बन्धे हुए हैं। तुम्हारी तलवारें उनके सरों पर लटक रही हैं और उनकी तलवारें न्याम में हैं लेकिन याद रखो के हर ख़ून का एक इन्तेक़ाम लेने वाला और हर हक़ का एक तलबगार होता है और हमारे ख़ून का मुन्तक़िम गोया ख़ुद अपने हक़ में फै़सला करने वाला है और वह, वह परवरदिगार है जिसे कोई मतलूबे आजिज़ नहीं कर सकता है और जिससे कोई फ़रार करने वाला भाग नहीं सकता है। मैं ख़ुदा की क़सम खाकर कहता हूँ के बनी उमय्या के अनक़रीब तुम इस दुनिया को अग़्यार के हाथों और दुश्मनों के दयार में देखोगे, आगाह हो जाओ के बेहतरीन नज़र वह है जो ख़ैर में डूब जाए और बेहतरीन कान वह है जो नसीहत को सुन लें और क़ुबूल कर लें।

(मोअज़ा) लोग! एक बाअमल नसीहत करने वाले के चिराग़े हिदायत से रोशनी हासिल कर लो और एक ऐसे साफ़ चश्मे से सेराब हो जाओ जो हर आलूदगी से पाक व पाकीज़ा है।

(((- इस ख़ुतबे में इस नुक्ते की तरफ़ भी इशारा हो सकता है के ग़ासिब अफ़राद ने जिन अमवाल को हज़म कर लिया है, वह एक दिन इनका शिकम चाक करके इसमें से निकाल लिया जाएगा और इस अम्र की तरफ़ भी इशारा हो सकता है के हक़ अभी फ़ना नहीं हुआ है। उसे बातिल ने दबा दिया है और गोया के अपने शिकम के के अन्दर छिपा लिया है और मुझमें इस क़दर ताक़त पाई जाती है के मैं इस शिकम को चाक करके इस हक़ को मन्ज़रे आम पर ले आऊं और बातिल के हर राज़ को बेनक़ाब कर दूँ।-)))

अल्लाह के बन्दों! देखो अपनी जेहालत की तरफ़ झुकाव मत पैदा करो और अपनी ख़्वाहिशात के ग़ुलाम न बन जाओ के इस मन्ज़िल पर आ जाने वाला गोया सेलाबज़दा दीवार के किनारे पर खड़ा है और हलाकतों को अपनी पुश्त पर लादे हुए इधर से उधर मुन्तक़िल हो रहा है। इन उफ़्कार की बिना पर जो यके बाद दीगरे ईजाद करता रहेगा और उन पर ऐसे दलाएल क़ाएम करेगा जो हरगिज़ जस्पां ना होंगे और उससे क़रीबतर भी न होंगे। लेहाज़ा ख़ुदा का ख़याल रखो के अपनी फ़रयाद उस शख़्स से करो जो उसका एज़ाला न कर सके और अपनी राय से हुक्मे इलाही को तोड़ न सके। याद रखो के इमाम की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ वह है जो परवरदिगार ने इसके ज़िम्मे रखी है के बलीग़तरीन मोअज़्ज़म करे, नसीहत की कोशिश करे। सुन्नत को ज़िन्दा करे, मुस्तहक़ीन पर हुदूद का इजरा करे और हक़दारों तक मीरास के हिस्से पहुँचा दे।

देखो इल्म की तरफ़ सबक़त करो क़ब्ल इसके के इसका सब्ज़ा ख़ुश्क हो जाए और तुम उसे साहेबाने इल्म से हासिल करने में अपने कारोबार में मशग़ूल हो जाओ, मुन्करात से रोको और ख़ुद भी बचो के तुम्हें रोकने का हुक्म रूकने के बाद दिया गया है।

106- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें इस्लाम की फ़ज़ीलत और रसूले इस्लाम (स0) का तज़किरा करते हुए असहाब की मलामत की गई है)

सारी तारीफ़ उस ख़ुदा के लिये हैं जिसने इस्लाम का क़ानून मुअय्यन किया तो उसके हर घाट को वारिद होने वाले के लिये आसान बना दिया और उसके अरकान को हर मुक़ाबला करने वाले के मुक़ाबले में मुस्तहकम बना दिया। इसने उस दिन को वाबस्तगी इख़्तेयार करने वालों के लिये जाए-अमन और उसके दार्रा में दाखि़ल हो जाने वालों के लिये महले सलामती बना दिया है। यह दीन अपने ज़रिये कलाम करने वालों के लिये बरहान और अपने वसीले से मुक़ाबला करने वालों के लिये शाहिद क़रार दिया गया है। यह रोशनी हासिल करने वालों के लिये नूर, समझने वालों के लिये फ़हम, फ़िक्र करने वालों के लिये मग़्ज़े कलाम, तलाशे मन्ज़िल करने वालों के लिये निशाने मन्ज़िल, साहेबाने अज़्म के लिये सामाने बसीरत, नसीहत हासिल करने वालों के लिये इबरत, तस्दीक़ करने वालों के लिये निजात, एतमाद करने वालों के लिये क़ाबिले एतमाद, अपने कामो को सुपुर्द कर देने वालों के लिये राहत और सब्र करने वालों के लिये सिपर है। यह बेहतरीन रास्ता और वाज़ेअतरीन दाखि़ले की मन्ज़िल है, उसके मीनार बलन्द, रास्ते रौशन, चिराग़ ज़ूबार, मैदाने अमल बावेक़ार और मक़सद बलन्द है। इसके मैदान में तेज़ रफ़्तार घोड़ों का इज्तेमाअ है और इसकी तरफ़ सबक़त और इसका इनआम हर एक को मतलूब है, इसके शहसवार बाइज़्ज़त हैं। (((- इस मक़ाम पर मौलाए कायनात (अ0) ने इस्लाम के चैदह सिफ़ात का तज़किरा किया है और इसमें नोए बशर के तमाम एक़ाम का अहाता कर लिया है जिसका मक़सद यह है के इस इस्लाम के बरकात से दुनिया का कोई इन्सान महरूम नहीं रह सकता है और कोई शख़्स किसी तरह के बरकात का तलबगार हो उसे इस्लाम के दामन में इस बरकत का हुसूल हो सकता है और वह अपने मतलूबे ज़िन्दगी को हासिल कर सकता है , शर्त सिर्फ़ यह है के इस्लाम ख़ालिस हो और उसकी तफ़सीर वाक़ेई अन्दाज़ से की जाए वरना गन्दे घाट से प्यासा सेराब नहीं हो सकता है और कमज़ोर अरकान के सहारे पर कोई शख़्स ग़लबा नहीं हासिल कर सकता है।-)))

इसका रास्ता तस्दीक़े ख़ुदा और रसूल (स0) है और इसका मिनारा नेकियाँ हैं , मौत एक मक़सद है जिसके लिये दुनिया घोड़दौड़ का मैदान है और क़यामत इसके इज्तेमाअ की मन्ज़िल है और फिर जन्नत इस मुक़ाबले का इनाम है।

(रसूले अकरम (स0)) यहाँ तक के आपने हर रोशनी के तलबगार के लिये आग रौशन कर दी और हर गुमकर्दा राह ठहरे हुए मुसाफ़िर के लिये निशाने मन्ज़िल रौशन कर दिये। परवरदिगार! वह तेरे मोतबर अमानतदार और रोज़े क़यामत के गवाह हैं। तूने उन्हें नेमत बनाकर भेजा और रहमत बनाकर नाज़िल किया है।

ख़ुदाया! तू अपने इन्साफ़ से इनका हिस्सा अता फ़र्मा और फिर अपने फ़ज़्ल व करम से उनके ख़ैर को दुगना-चैगना कर दे। ख़ुदाया! इनकी इमारत को तमाम इमारतों से बलन्दतर बना दे और अपनी बारगाह में इनकी बाइज़्ज़त तौर पर मेज़बानी फ़रमा और इनकी मन्ज़िलत को बलन्दी अता फ़रमा। उन्हें वसीला और रफ़अत व फ़ज़ीलत करामत फ़रमा और हमें उनके गिरोह में महषूर फ़रमा जहां न रूसवा हों और न शर्मिन्दा हों, न हक़ से मुन्हरिफ़ हों न अहद शिकन हों, न गुमराह हों और न गुमराहकुन और न किसी फ़ित्ने में मुब्तिला हों।

सय्यद रज़ी- यह कलाम इससे पहले भी गुज़र चुका है लेकिन हमने इख़्तेलाफ़े रिवायत की बिना पर दोबारा नक़्ल कर दिया है।

(अपने असहाब से खि़ताब फ़रमाते हुए)- तुम अल्लाह की दी हुई करामत से इस मन्ज़िल पर पहुँच गए जहां तुम्हारी कनीज़ों का भी एहतराम होने लगा और तुम्हारे हमसाये से भी अच्छा बरताव होने लगा। तुम्हारा एहतराम वह लोग भी करने लगे जिनपर न तुम्हें कोई फ़ज़ीलत हासिल थी और न उनपर तुम्हारा कोई एहसान था और तुमसे वह लोग भी ख़ौफ़ खाने ले जिन पर न तुमने कोई हमला किया था और न तुम्हें कोई इक़्तेदार हासिल था। मगर अफ़सोस के तुम अहदे ख़ुदा को टूटते हुए देख रहे हो और तुम्हें ग़ुस्सा भी नहीं आता है जबके तुम्हारे बाप दादा के अहद को तोड़ा जाता है तो तुम्हें ग़ैरत आ जाती है। एक ज़माना था के अल्लाह के काम तुम ही पर वारिद होते थे और तुम्हारे ही पास से बाहर निकलते थे और फिर तुम्हारी ही तरफ़ पलट कर आते थे लेकिन तुमने जाहिलों को अपनी मन्ज़िलों पर क़ब्ज़ा दे दिया और उनकी तरफ़ अपनी ज़मामे अम्र बढ़ा दी और उन्हें सारे काम सुपुर्द कर दिये के वह शुबहात पर अमल करते हैं और ख़्वाहिशात में चक्कर लगाते रहते हैं और ख़ुदा गवाह है के अगर यह तुम्हें हर सितारे के नीचे मुन्तशिर देंगे तो भी ख़ुदा तुम्हें उस दिन जमा कर देगा जो ज़ालिमों के लिये बदतरीन दिन होगा।

107- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(सिफ़्फ़ीन की जंग के दौरान)

मैंने तुम्हें भागते हुए और अपनी सफ़ों से फ़ैलते हुए देखा जबके तुम्हें शाम के जफ़ाकार ओबाश और देहाती बद्दू अपने घेरे में लिये हुए थे हालांके तुम अरब के जवाँमर्द बहादुर और शरफ़ के रासवरीं थे। मगर इसकी ऊंची नाक और चोटी की बलन्दी वाले अफ़राद थे, मेरे सीने की कराहने की आवाज़ें उस वक़्त दब सकती हैं जब मैं यह देख लूं के तुम उन्हें इसी तरह अपने घेरे में लिये हुए हो जिस तरह वह तुम्हें लिये हुए थे और उनको उनके मवाक़िफ़ से इसी तरह ढकेल रहे हों जिस तरह उन्होंने तुम्हें हटा दिया था के उन्हें तीरों की बौछार का निशाना न बनाए हुए हो और नैज़ों की ज़द पर इस तरह लिये हुए हो के पहली सफ़ को आख़री सफ़ पर उलट रहे हो जिस तरह के प्यासे ऊंट हंकाए जाते हैं जब उन्हें तालाबों से दूर फेंक दिया जाता है और घाट से अलग कर दिया जाता है।

108- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें मलाहम और हवादिस व फ़ित्न का ज़िक्र किया गया है)

सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जो अपनी मख़लूक़ात के सामने तख़लीक़ात के ज़रिये जलवागर होता है और उनके दिलों पर दलीलों के ज़रिये रोशन होता है। उसने तमाम मख़लूक़ात को बग़ैर सोच विचार की ज़हमत के पैदा किया है के सोचना साहेबाने दिल व ज़मीर का काम है वह इन बातों से बलन्दतर है। उसके इल्म ने पोशीदा इसरार के तमाम पर्दों को चाक कर दिया है और वह तमाम अक़ाएद की गहराइयों का अहाता किये हुए है।

(रसूले अकरम (स0)) उसने आपका इन्तेख़ाब अम्बियाए कराम के शजरे , रोशनी के फ़ानूस, बलन्दी की पेशानी, अर्ज़े तबहा की नाफे़ ज़मीन, ज़ुलमतों के चिराग़ों और हिकमत के सरचश्मो के दरम्यान से किया है। आप वह तबीब थे जो अपनी तबाबत के साथ चक्कर लगा रहा हो के अपने मरहम को दुरूस्त कर लिया हो और दाग़ने के आलात को तपा लिया हो के जिस अन्धे दिल, बहरे कान, गूंगी ज़बान पर ज़रूरत पड़े फ़ौरत इस्तेमाल कर दे। अपनी दवा को लिये हुए ग़फ़लत के मराकज़ और हैरत के मक़ामात की तलाश में लगा हुआ हो।

(फ़ित्नाए बनी उमय्या) इन ज़ालिमों ने हिकमत की रोशनी से नूर हासिल किया और उलूम के चक़माक़ को रगड़कर चिंगारी नहीं पैदा की। इस मसले में इनकी मिसाल चरने वाले जानवरों और सख़्त तरीन पत्थरों की है।

बेशक अहले बसीरत के लिये इसरार नुमायां हैं और हैरान व सरगर्दां लोगों के लिये हक़ का रास्ता रौशन है। आने वाली साअत ने अपने चेहरे से नक़ाब को उलट दिया है और तलाश करने वालों के लिये अलामतें ज़ाहिर हो गई हैं। आखि़र क्या हो गया है के मैं तुम्हें बिल्कुल बेजान पैकर और बिला पैकर रूह की शक्ल में देख रहा हूँ। तुम वह इबादत गुज़ार हो जो अन्दर से सॉलेह न हो और वह ताजिर हो जिसको कोई फ़ायदा न हो। वह बेदार हो जो ख़्वाबे ग़फ़लत में हो और वह हाज़िर हो जो बिल्कुल ग़ैर हाज़िर हो।

अन्धी आंख, बहरे कान और गूंगी ज़बान, गुमराही का परचम अपने मरकज़ पर जम चुका है और इसकी शाख़ें हर सू फैल चुकी हैं। वह तुम्हें अपने पैमाने में तोल रहा है और अपने हाथों इधर-उधर बहका रहा है। इसका क़ाएद मिल्लत से ख़ारिज और ज़लालत पर क़ाएम है। उस दिन तुमसे कोई बाक़ी न रह जाएगा मगर उसी मिक़दार में जितना पतीली का तह देग होता है, या थैली के झाड़े हुए रेज़े। यह गुमराही तुम्हें उसी तरह मसल डालेगी जिस तरह चमड़ा मसला जाता है और इसी तरह पामाल कर देगी जिस तरह कटी हुई ज़राअत रौंदी जाती है और मोमिन ख़ालिस को तुम्हारे दरम्यान से इस तरह चुन लेगी जिस तरह परिन्दा बारीक दानों से मोटे दानों को निकाल लेता है।

आखि़र तुमको यह ग़लत रास्ते किधर ले जा रहे हैं और तुम अन्धेरों में कहां बहक रहे हो और तुमको झूटी उम्मीदें किस तरह धोका दे रही हैं किधर से लाए जा रहे हो और किधर बहकाए जा रहे हो। हर मुद्दत का एक नोष्ता होता है और ग़ैबत के लिये एक वापसी होती है लेहाज़ा अपने ख़ुदा व सय्यदे आलम की बात सुनो। इसके लिये दिलों को हाज़िर करो, वह आवाज़ दे तो बेदार हो जाओ। हर नुमाइन्दे को अपनी क़ौम से सच बोलना चाहिये, उसकी परागन्दगी को जमा करना चाहिये। इसके ज़ेहन को हाज़िर रखना चाहिए। अब तुम्हारे रहनुमा ने तुम्हारे लिये मसलए को इस क़द्र वाशिगाफ़ कर दिया है जिस तरह मेहरा को चीरा जाता है और इस तरह छील डाला है जिस तरह गोन्द खुरचा जाता है। मगर इसके बावजूद बातिल ने अपना मरकज़ संभाल लिया है और जेहल अपने मरकब पर सवार हो गया है और सरकशी बढ़ गई है और हक़ की आवाज़ दब गई है और ज़माने ने फाउण्डेशऩ खाने वाले दरिन्दे की तरह हमला कर दिया है और बातिल का ऊंट चुप रहने के बाद फिर बिलबिलाने लगा है और लोगों ने फिस्क़ व फ़ुजूर की बिरादरी क़ायम कर ली है और सबने मिलकर दीन को नज़रअन्दाज़ कर दिया है। झूट परवस्ती की बुनियादें क़ायम हो गई हैं और सच्चाई पर एक दूसरे के दुशमन हो गए हैं। ऐसे हालात में बेटा बा पके लिये ग़ैज़ व ग़ज़ब का सबब होगा और बारिश गर्मी का बाएस होगी। कमीने लोग फैल जाएंगे और शरीफ़ लोग सिमट जाएंगे। इस दौर के अवाम भेड़िये होंगे और सलातीन दरिन्दे। दरम्यानी तबक़े वाले खाने वाले और फ़क़रा व मसाकीन मुर्दे होंगे। सच्चाई कम हो जाएगी और झूठ फैल जाएगा। मोहब्बत का इस्तेमाल सिर्फ़ ज़बान से होगा और अदावत दिलों के अन्दर पेवस्त हो जाएगी। ज़िनाकारी नसब की बुनियाद होगी और उफ़त एक अजीब व ग़रीब शै हो जाएगी। इस्लाम यूँ उलट दिया जाएगा जैसे कोई पोस्तीन को उलटा पहन ले।

109- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(क़ुदरते ख़ुदा अज़मते इलाही और रोज़े महशर के बारे में)

हर शै उसकी बारगाह में सर झुकाए हुए है और हर चीज़ उसी के दम से क़ायम है। वह हर फ़क़ीर की दौलत का सहारा और हर ज़लील की इज़्ज़त का आसरा है। हर कमज़ोर की ताक़त वही है और हर फ़रयादी की पनाहगाह वही है। हर बोलने वाले के नतक़ को सुन लेता है और हर ख़ामोश रहने वाले के राज़ को जानता है। जो ज़िन्दा है उसका रिज़्क़ उसके ज़िम्मे है जो मर गया उसकी बाज़गष्त उसी की तरफ़ है।

ख़ुदाया! आँखों ने तुझे देखा नहीं है के तेरे बारे में ख़बर दे सकें, तू तमाम तौसीफ़ करने वाली मख़लूक़ात के पहले से है, तूने मख़लूक़ात को तन्हाई की वहशत की बिना पर नहीं ख़ल्क़ किया है और न उन्हें किसी फ़ाएदे के लिये इस्तेमाल किया है। तू जिसे हासिल करना चाहे वह आगे नहीं जा सकता है और जिसे पकड़ना चाहे वह बच कर नहीं जा सकता है। नाफ़रमानों से तेरी सल्तनत में कमी नहीं आती है और इताअत गुज़ारों से तेरे मुल्क में इज़ाफ़ा नहीं होता है जो तेरे फ़ैसले से नाराज़ हो वह तेरे हुक्म को टाल नहीं सकता है और जो तेरे अम्र से रूगरदानी करे वह तुझसे बेनियाज़ नहीं हो सकता है। हर राज़ तेरे सामने रौशन है और हर ग़ैब तेरे लिये हुज़ूर है। तू अबदी है तो तेरी कोई इन्तेहा नहीं है और तू इन्तेहा है तो तुझसे कोई छुटकारा नहीं है, तू सबकी वादागाह है तो तुझसे निजात हासिल करने की कोई जगह नहीं है। हर ज़मीन पर चलने वाले का इख़्तेयार तेरे हाथ में है और हर जानदार की बाज़गष्त तेरी ही तरफ़ है। पाक व बे नियाज़ है तू, तेरी शान क्या बाअज़मत है और तेरी मख़लूक़ात भी क्या अज़ीमुष्षान है और तेरी क़ुदरत के सामने हर अज़ीम शै किस क़द्र हक़ीर है और तेरी सल्तनत किस क़द्र पुरशिकोह है और यह सब तेरी इस ममलेकत के मुक़ाबले में जो निगाहों से ओझल है किस क़द्र मामूली है। तेरी नेमतें इस दुनिया में किस क़द्र मुकम्मल हैं और फ़िर नेमाते आख़ेरत के मुक़ाबले में किस क़द्र मुख़्तसर हैं।

(मलाएका मुक़र्रबीन) यह तेरे मलाएका हैं जिन्हें तूने आसमानों में आबाद किया है और ज़मीन से बलन्दतर बनाया है। यह तमाम मख़लूक़ात से ज़्यादा तेरी मारेफ़त रखते हैं और तुझसे ख़ौफ़ज़दा रहते हैं और तेरे क़रीबतर भी हैं। यह न असलाबे पिदर में रहे हैं और न अरहामे मादर में और न हक़ीर नुत्फ़े से पैदा किये गए हैं और न इन पर ज़माने के इन्क़ेलाबात का कोई असर है। यह तेरी बारगाह में एक ख़ास मक़ाम और मन्ज़िलत रखते हैं। इनकी तमामतर ख़्वाहिशात सिर्फ़ तेरे बारे में हैं और यह बकसरत तेरी ही इताअत करते हैं और तेरे हुक्म से हरगिज़ ग़ाफ़िल नहीं होते हैं। लेकिन इसके बावजूद अगर तेरी अज़मत की तह तक पहुंच जाएं तो अपने आमाल को हक़ीरतरीन तसव्वुर करेंगे और अपने नफ़्स की मज़म्मत करेंगे और उन्हें मालूम हो जाएगा के इन्होंने इबादत का हक़ अदा नहीं किया है और हक़क़े इताअत के बराबर इताअत नहीं की है।

तू पाक व बे नियाज है, ख़ालकीयत के एतबार से भी और इबादत के एतबार से भी। मेरी तस्बीह इस बेहतरीन बरताव की बिना पर है जो तूने मख़लूक़ात के साथ किया है। तूने एक घर बनाया है, उसमें एक दस्तरख़्वान बिछाया है। जिसमें खाने-पीने, ज़ौजियत, खि़दमत, क़स्र, नहर, ज़राअत, समर सबका इन्तज़ामक र दिया है और फिर एक दाई को इसकी तरफ़ दावत देने के लिये भेज दिया है। लेकिन लोगों ने न दाई की आवाज़ पर लब्बैक कही और न जिन चीज़ों की तरफ़ तूने रग़बत दिलाई थी राग़िब हुए और न तेरी तशवीक़ का शौक़ पैदा किया।

सब उस मुरदार पर टूट पड़े जिसको खाकर रूसवा हुए आर सबने इसकी मोहब्बत पर इत्तेफ़ाक़ कर लिया और ज़ाहिर है के जो किसी का भी आशिक़ हो जाता है वह शै उसे अन्धा बना देती है और उसके दिल को बीमार कर देती है। वह देखता भी है तो ग़ैर सलीम आंखों से और सुनता भी है तो ग़ैर समीअ कानों से। ख़्वाहिशात ने इनकी अक़्लों को पारा-पारा कर दिया है और दुनिया ने उनके दिलों को मुर्दा बना दिया है। उन्हें इससे वालहाना लगाव पैदा हो गया है और वह उसके बन्दे हो गए हैं और उनके ग़ुलाम बन गए हैं, जिनके हाथ में थोड़ी सी भी दुनिया है के जिस तरफ़ झुकती है यह भी झुक जाते हैं और जिधर वह मुड़ती है यह भी मुड़ जाते हैं, न कोई ख़ुदाई रोकने वाला उन्हें रोक सकता है और न किसी वाएज़ की नसीहत इन पर असरअन्दाज़ होती है। जबके उन्हें देख रहे हैं जो इसी धोके में पकड़ लिये गए हैं के अब न माफ़ी का इमकान है और न वापसी का। किसी तरह इन पर वह मुसीबत नाज़िल हो गई है जिससे नावाक़िफ़ थे और फ़िराक़े दुनिया की वह आफ़त आ गई है जिसकी तरफ़ से बिल्कुल मुतमइन थे और आख़ेरत में इस सूरते हाल का सामना कर रहे हैं जिसका वादा किया गया था। अब तो उस मुसीबत का बयान भी नामुमकिन है जहां एक तरफ़ मौत का सकरात है और दूसरी तरफ़ फ़िराक़े दुनिया की हसरत। हालत यह है के हाथ पांव ढीले पड़ गए हैं और रंग उड़ गया है इसके बाद मौत की दख़ल अन्दाज़ी और बढ़ी तो वह गुफ़्तगू की राह में भी हाएल हो गई के इन्सान घरवालों के दरम्यान है उन्हें आखों से देख रहा है, कान से उनकी आवाज़ें सुन रहा है, अक़्ल भी सलामत है और होश भी बरक़रार है। यह सोच रहा है के उम्र को कहां बरबाद कर दिया है और ज़िन्दगी को कहां गुज़ारा है। उन अमवाल को याद कर रहा है जिन्हें जमा किया था और उनकी जमाआवरी में आंखें बन्द कर ली थीं के कभी वाज़ेअ रास्तों से हासिल किया और कभी मुश्तबा तरीक़ों से के सिर्फ़ इनके जमा करने के असरात बाक़ी रह गये हैं और उनसे जुदाई का वक़्त आ गया है। अब यह माल बादवालों के लिये रह जाएगा जो आराम करेंगे और मज़े उड़ाएंगे। यानी मज़ा दूसरों के लिये होगा और बोझ इसकी पीठ पर होगा लेकिन इन्सान इस माल की ज़न्जीरों में जकड़ा हुआ है और मौत ने सारे हालात को बेनक़ाब कर दिया है के निदामत से अपने हाथ काट रहा है और इस चीज़ से किनाराकश होना चाहता है जिसकी तरफ़ ज़िन्दगी भर राग़िब था। अब यह चाहता है के काश जो शख़्स इससे माल की बिना पर हसद कर रहा था यह माल उसके पास होता और इसके पास न होता।

इसके बाद मौत इसके जिस्म में मज़ीद दरान्दाज़ी करती है और ज़बान के साथ कानों को भी शामिल कर लेती है के इन्सान अपने घरवालों के दरम्यान न बोल सकता है और न सुन सकता है। हर एक के चेहरे को हसरत से देख रहा है। इनकी ज़बान की जुम्बिश को भी देख रहा है लेकिन अल्फ़ाज़ को नहीं सुन सकता है। इसके बाद मौत और चिपक जाती है तो कानों की तरह आंखों पर भी क़ब्ज़ा हो जाता है और रूह जिस्म से परवाज़ कर जाती है। अब वह घरवालों के दरम्यान एक मुरदार होता है। जिसके पहलू में बैठने से भी वहशत होने लगती है और लोग दूर भागने लगते हैं। यह अब न किसी रोने वाले को सहारा दे सकता है और न किसी पुकारने वाले की आवाज़ पर आवाज़ दे सकता है। लोग उसे ज़मीन के एक गढ़े तक पहुंचा देते हैं और उसे उसके आमाल के हवाले कर देते हैं के मुलाक़ातों का सिलसिला भी ख़त्म हो जाता है।

यहाँ तक के जब क़िस्मत का लिखा अपनी आख़री हद तक और अम्रे इलाही अपनी मुक़र्ररा मन्ज़िल तक पहुंच जाएगा और आख़ेरीन को अव्वलीन से मिला दिया जाएगा और एक नया हुक्मे इलाही आ जाएगा के खि़लक़त की तजदीद की जाए तो यह अम्र आसमानों को हरकत देकर शिगाफ़ता कर देगा और ज़मीन को हिलाकर खोखला कर देगा और पहाड़ों को जड़ से उखाड़कर उड़ा देगा और हैबते जलाले इलाही और ख़ौफ़े सितवते परवरदिगार से एक दूसरे से टकरा जाएंगे और ज़मीन सबको बाहर निकाल देगी और उन्हें दोबारा बोसीदगी के बाद ताज़ा हयात दे दी जाएगी और इन्तेशार के बाद जमा कर दिया जाएगा और मख़फ़ी आमाल पोशीदा अफ़आल के सवाल के लिये सबको अलग-अलग कर दिया जाएगा और मख़लूक़ात दो गिरोहों में तक़सीम हो जाएंगी। एक गिरोह मरकज़े नेमात होगा और दूसरा महले इन्तेक़ाम।

अहले इताअत को इस जवारे रहमत में सवाब और दारे जन्नत में हमेशगी का इनाम दिया जाएगा जहां के रहने वाले कूच नहीं करते हैं और न उनके हालात में कोई तग़य्युर पैदा होता है और न इन पर रन्ज व अलम तारी होता है और न उन्हें कोई बीमारी लाहक़ होती है और न किसी तरह का ख़तरा सामने आता है और न सफ़र की ज़हमत से दो-चार होना पड़ता है। लेकिन अहले मासीयत के लिये बदतरीन मन्ज़िल होगी जहां हाथ गरदन से बन्धे होंगे और पेशानियों को पैरों से जोड़ दिया जाएगा। तारकोल और आग के तराशीदा लिबास पहनाए जाएंगे। इस अज़ाब में जिसकी गर्मी शदीद होगी और जिसके दरवाज़े बन्द होंगे और उस जहन्नम में जिसमें शरारे भी होंगे और शोर व ग़ोग़ा भी, भड़कते हुए शोले भी होंगे और हौलनाक चीख़ें भी, न यहाँ के रहने वाले कूच करेंगे और न यहाँ के क़ैदियों से कोई फ़िदया क़ुबूल किया जाएगा और न यहाँ की बेड़ियां जुदा हो सकती हैं, न इस घर की कोई मुद्दत है जो तमाम हो जाए और न इस क़ौम की कोई अजल है जो ख़त्म कर दी जाए।

(ज़िक्रे रसूले अकरम (स0)) आपने इस दुनिया को हमेशा सग़ीर व हक़ीर और ज़लील व पस्त तसव्वुर किया है और यह समझा है के परवरदिगार ने इस दुनिया को आपसे अलग रखा है और दूसरों के लिये फर्श कर दिया है तो यह आपकी इज़्ज़त और दुनिया की हेक़ारत ही की बुनियाद पर है लेहाज़ा आपने उससे दिल से किनाराकशी इख़्तेयार की और उसकी याद को दिल से बिलकुल निकाल दिया और यह चाहा के इसकी ज़ीनतें निगाहों से ओझल रहें ताके न उमदा लिबास ज़ेबे तन फ़रमाएं और न किसी ख़ास मक़ाम की उम्मीद करें। आपने परवरदिगार के पैग़ाम को पहुंचाने में सारे बहाने तमाम कर दिये और उम्मत को अज़ाबे इलाही से डराते हुए नसीहत फ़रमाई। जन्नत की बशारत सुनाकर उसकी तरफ़ दावत दी और जहन्नम से बचने की तलक़ीन करके इसका ख़ौफ़ पैदा कराया।

(अहलेबैत (अ0)) हम नबूवत का शजरा , रिसालत की मन्ज़िल, मलाएका की रफ़्तो आमद की जगह, इल्म के माअदन और हिकमत के चश्मे हैं। हमारा मददगार और मोहिब हमेशा मुन्तज़िर रहमत रहता है और हमारा दुशमन और कीनापरवर हमेशा मुन्तज़िरे लानत व इन्तेक़ामे इलाही रहता है।

(((- ताअज्जुब न करें के ख़ुदाए रहमान व रहीम अपने बन्दों के साथ इस तरह का बरताव किस तरह करेगा के यह अन्जाम उन्हीं लोगों का है जो दारे दुनिया में अल्लाह के कमज़ोर और नेक बन्दों के साथ उससे बदतर बरताव कर चुके हैं तो क्या मालिके कायनात दुनिया में इख़्तेयारात देने के बाद आख़ेरत में भी उन्हें बेहतरीन नेमतों से नवाज़ देगा और मज़लूमीन का दुनिया व आख़ेरत में कोई पुरसान हाल न होगा।? -)))

110-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(अरकाने इस्लाम के बारे में)

अल्लाह वालों के लिये उसकी बारगाह ते पहुंचने का बेहतरीन वसीला अल्लाह और उसके रसूल (स0) पर ईमान और राहे ख़ुदा मे जेहाद है के जेहाद इस्लाम की सरबलन्दी है , और कलमए इख़लास है के यह फ़ितरते इलाहिया है और नमाज़ का क़याम है के ऐन दीन है और ज़कात की अदायगी है के यह फ़रीज़ाए वाजिब है और माहे रमज़ान का रोज़ा है के यह अज़ाब से बचने का सिपर है और हज बैतुल्लाह है और उमरा है के यह फ़क़्र को दूर कर देता है और गुनाहों को धो देता है और सिलए रहम है के यह माल में इज़ाफ़ा और अजल के टालने का ज़रिया है और पोशीदा तरीक़े से ख़ैरात है के यह गुनाहों का कफ़्फ़ारा है और अलल एलान सदक़ा है के यह बदतरीन मौत के दफ़ा करने का ज़रिया है और अक़रेबा के साथ नेक सुलूक है के यह ज़िल्लत के मक़ामात से बचाने का वसीला है। ज़िक्रे ख़ुदा की राह में आगे बढ़ते रहो के यह बेहतरीन ज़िक्र है और ख़ुदा ने मुत्तक़ीन से जो वादा किया है उसकी तरफ़ रग़बत पैदा करो के इसका वादा सच्चा है। अपने पैग़म्बर की हिदायत के रास्ते पर चलो के यह बेहतरीन हिदायत है और उनकी सुन्नत को इख़्तेयार करो के यह सबसे बेहतर हिदायत करने वाली है। (क़ुराने करीम) क़ुराने मजीद का इल्म हासिल करो के यह बेहतरीन कलाम है और इसमें ग़ौर व फ़िक्र करो के यह दिलों की बहार है। इसके नूर से शिफ़ा हासिल करो के यह दिलों के लिये शिफ़ा है और इसकी बाक़ायदा तिलावत करो के यह मुफ़ीदतरीन क़िस्सों का मरकज़ है, और याद रखो के अपने इल्म के खि़लाफ़ अमल करने वाला आलिम भी हैरान व सरगर्दां जाहिल जैसा है जिसे जेहालत से कभी ओफ़ाक़ा नहीं होता है बल्कि इस पर हुज्जते ख़ुदा ज़्यादा अज़ीमतर होती है और इसके लिये हसरत व अन्दोह भी ज़्यादा लाज़िम होता है और वह बारगाहे इलाही में ज़्यादा क़ाबिले मलामत होता है।

111- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(मज़म्मते दुनिया के बारे में)

अम्माबाद! मैं तुम लोगों को दुनिया से होशियार कर रहा हूँ के यह शीरीं और शादाब है लेकिन ख़्वाहिशात में घिरी हुई है। अपनी जल्द मिल जाने वाली नेमतों की बिना पर महबूब बन जाती है और थोड़ी सी ज़ीनत से ख़ूबसूरत बन जाती है। यह उम्मीदों से आरास्ता है और धोके से मुज़य्यन है। न इसकी ख़ुशी दाएमी है और न इसकी मुसीबत से कोई महफ़ूज़ रहने वाला है यह धोकेबाज़ नुक़सान रसां, बदल जाने वाली, फ़ना हो जाने वाली, ज़वाल पज़ीर और हलाक हो जाने वाली है। यह लोगों को खा भी जाती है और मिटा भी देती है।

(((- बाज़ नादानों का ख़यल है के जब दुनिया बाक़ी रहने वाली नहीं है और इसके शबो रोज़ का एतबार नहीं है तो बेहतरीन बात यह है के जिस क़द्र हासिल हो जाए इन्सान हासिल कर ले और इसकी नेमतों से लुत्फ़ अन्दोज़ हो जाए के कहीं दूसरे दिन हाथ से निकल न जाए। लेकिन यह ख़याल उन्हीं लोगों का है जो आख़ेरत की तरफ़ से यकसर ग़ाफ़िल हैं और उन्हें इस लुत्फ़ अन्दोज़ी के अन्जाम की ख़बर नहीं है वरना इस नुक्ते की तरफ़ मुतवज्जे हो जाते तो मारगुज़ीदा की तरह तड़पने को बिस्तरे हरीर पर आराम करने से ज़्यादा पसन्द करते और मुफ़लिसतरीन ज़िन्दगी गुज़ारने ही को आफ़ियत व आराम तसव्वुर करते।-)))

जब अपनी तरफ़ रग़बत रखने वालों और अपने से ख़ुश हो जाने वालों को ख़्वाहिशात की इन्तेहा को पहुंच जाती है तो बिलकुल परवरदिगार के इस इरशाद के मुताबिक़ हो जाती है “जैसे आसमान से पानी नाज़िल होकर ज़मीन के नबातात में शामिल हो जाए और फिर इसके बाद वह सब्ज़ा सूखकर ऐसा तिनका हो जाए जिसे हवाएं उड़ा ले जाएं और ख़ुदा हर शै पर क़ुदरत रखने वाला है”इस दुनिया में कोई शख़्स ख़ुश नहीं होता है मगर यह के उसे बाद में आँसू बहाना पड़ें और कोई शख़्स ख़ुशी को आते नहीं देखता है मगर यह के वह मुसीबत में डालकर पीठ दिखला देती है और कहीं राहत व आराम की हल्की-हल्की बारिश नहीं होती है मगर यह के बलाओं का दोगड़ा करने लगता है। इसकी शान ही यह है के अगर सुबह को किसी तरफ़ से बदला लेने के लिये आती है तो शाम होते-होते अन्जान बन जाती है और अगर एक तरफ़ से शीरीं और ख़ुश गवार नज़र आती है तो दूसरे रूख़ से तल्ख़ और बलाख़ेज़ होती है। कोई इन्सान इसकी ताज़गी से अपनी ख़्वाहिश पूरी नहीं करता है मगर यह के इसके पै-दर-पै मसाएब की बिना पर रन्ज व ताब का शिकार हो जाता है और कोई शख़्स को अम्न व अमान के परों पर नहीं रहता है मगर यह के सुबह होते होते ख़ौफ़ के बालोपर पर लाद दिया जाता है। यह दुनिया धोके बाज़ है और इसके अन्दर जो कुछ है सब धोका है यह फ़ानी है और इसमें जो कुछ है सब फ़ना होने वाला है। इसके किसी ज़ादे राह में कोई ख़ैर नहीं है सिवाए तक़वा के। इसमें से जो कम हासिल करता है उसी को राहत ज़्यादा नसीब होती है और जो ज़्यादा से चक्कर में पड़ जाता है उसके मोहलकात भी ज़्यादा हो जाते हैं और यह बहुत जल्द उससे अलग हो जाती है। कितने इस पर एतबार करने वाले हैं जिन्हें अचानक मुसीबतों में डाल दिया गया और कितने इस पर इत्मीनान करने वाले हैं जिन्हें हलाक कर दिया गया और कितने साहेबाने हैसियत थे जिन्हें ज़लील बना दिया गया और कितने अकड़ने वाले थे जिन्हें हिक़ारत के साथ पलटा दिया गया। इसकी बादशाही पलटा खाने वाली, इसका ऐश मुकद्दर, इसका शीरीं शूर, इसका मीठा कड़वा, इसकी ग़िज़ा ज़हर आलूद और इसके असबाब सब बोसीदा हैं। इसका ज़िन्दा मारिज़ हलाकत में है और इसका सेहतमन्द बीमारियों की ज़द पर है। इसका मुल्क छिनने वाला है और इसका साहेबे इज़्ज़त मग़लूब होने वाला है। इसका मालदार बदबख़्ितयों का शिकार होने वाला है और इसका हमाया लुटने वाला है। क्या तुम इन्हीं के घरों में नहीं हो जो तुमसे पहले तवीले उम्र, पाएदार आसार और दूर रस उम्मीदों वाले थे, बेपनाह सामान मुहय्या कया, बड़े-बड़े लशकर तैयार किये और जी भरकर दुनिया की परस्तिश की और उसे हर चीज़ पर मुक़द्दम रखा लेकिन इसके बाद यूँ रवाना हो गए के न मन्ज़िल तक पहुँचाने वाला ज़ादे राह साथ था और न रास्ता तय करने वाली सवारी। क्या तुम तक कोई ख़बर पहुँची है के इस दुनिया ने इनको बचाने के लिये कोई फ़िदया पेश किया हो या इनकी कोई मदद की हो या इनके साथ्ज्ञ अच्छा वक़्त गुज़ारा हो?

(((-दुनिया से इबरत हासिल करने का बेहतरीन ज़रिया ख़ुद इसकी तारीख़ है के इसने आज तक किसी से वफ़ा नहीं की है। इसका एक पेशा भी उस वक़्त तक काम नहीं आता है जब तक मालिक से जुदा नहीं हो जाता है और इसकी सल्तनत भी अपने सुलतान को फ़िशारे क़ब्र से निजात देने वाली नहीं है। ऐसे हालात में तारीख़ी हवादिस से आंख बन्द कर लेना जेहालत के मासेवा कुछ नहीं है और साहबे इल्म व अक़्ल वही है जो माज़ी के तजुर्बात से फ़ायदा उठाए।-)))

हरगिज़ नहीं- बल्कि उन्हें मुसीबतों में गिरफ़्तार कर दिया और आफ़तों से आजिज़ व बेबस बना दिया। पै-दर-पै ज़हमतों ने उन्हें झिन्झोड़ कर रख दिया और इनकी नाक रकड़ दी और उन्हें अपने सुमों से रोन्द डाला और फिर हवादिस रोज़गार को भी सहारा दे दिया और तुमने देख लिया के यह अपने इताअत गुज़ारों, चाहने वालों और चिपकने वालों के लिये भी ऐसी अन्जान बन गई के जब उन्होंने यहाँ से हमेशा के लिये कूच किया तो उन्हें सिवाए भूक के कोई ज़ादे राह और तंगी-ए लहद के कोई मकान नहीं दिया। ज़ुल्मत ही इनकी रोशनी क़रार पाई और निदामत ही इनका अन्जाम ठहरा। तो क्या तुम इसी दुनिया को इख़्तेयार कर रहे हो और इसी पर भरोसा कर रहे हो और इसी की लालच में मुब्तिला हो। यह अपने से बदज़नी न रखने वालों और एहतियात न करने वालों के लिये बदतरीन मकान है। लेहाज़ा याद रखो और तुम्हें मालूम भी है के तुम उसे छोड़ने वाले हो और इससे कूच करने वाले हो। उन लोगों से नसीहत हासिल करो जिन्होंने यह दावा किया था के “हमसे ज़्यादा ताक़तवर कौन है”और फिर वह भी अपनी क़ब्रों की तरफ़ इस तरह पहुँचाए गए के उन्हें सवारी भी नसीब नहीं हुई और क़ब्रों में इस तरह उतार दिया गया के उन्हें मेहमान भी नहीं कहा गया। पत्थरों से इनकी क़ब्रें चुन दी गईं और मिट्टी से उन्हें कफ़न दे दिया गया। सड़ी गली हड्डियाँ इनकी हमसाया बन गई और अब यह सब ऐसे हमसाये हैं के किसी पुकारने वाले की आवाज़ पर लब्बैक नहीं कहते हैं और न किसी ज़्यादती को रोक सकते हैं और न किसी रोने वाले की परवाह करते हैं। अगर इनपर मूसलाधार बारिश हो तो उन्हें ख़ुशी नहीं होती है और अगर क़हत पड़ जाए तो मायूसी का शिकार नहीं होते हैं। यह सब एक मुक़ाम पर जमा हैं मगर अकेले हैं और हमसाये हैं मगर दूर-दूर हैं। ऐसे एक-दूसरे से क़रीब के मुलाक़ात तक नहीं करते हैं और ऐसे नज़दीक के मिलते भी नहीं हैं। अब ऐसे बरबाद हो गए हैं के सारा कीना ख़त्म हो गया है और ऐसे बेख़बर हैं के सारा बाज़ व अनाद मिट गया है। न इनसे किसी ज़रर का अन्देशा है और न किसी दिफ़ाअ की उम्मीद है। उन्होंने ज़मीन के ज़ाहिर के बजाए बातिन को और वुसअत के बजाए तंगी को और साथियों के बदले ग़ुरबत को और नूर के बदले ज़ुल्मत को इख़्तेयार कर लिया है। इसकी गोद में वैसे ही आ गए हैं जैसे पहले अलग हुए थे पा-बरहना और नंगे। अपने आमाल समेत दाएमी ज़िन्दगी और अबदी मकान की तरफ़ कूच कर गए हैं जैसा के मालिके कायनात ने फ़रमाया है “जिस तरह हमने पहले बनाया था वैसे ही वापस ले आएंगे, यह हमारा वादा है और हम उसे बहरहाल अन्जाम देने वाले हैं।

112- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें मलकुल मौत इनके क़ब्ज़े रूह और मख़लूक़ात के तौसीफ़े इलाही से आजिज़ी का ज़िक्र किया गया है।)

क्या जिस वक़्त मलकुल मौत घर में दाखि़ल होते हैं तुम्हें कोई एहसास होता है और क्या उन्हें रूह क़ब्ज़ करते हुए तुमने कभी देखा है? भला वह शिकमे मादर में बच्चे को किस तरह मारते हैं। क्या किसी तरफ़ से अन्दर दाखि़ल हो जाते हैं या रूह ही इनकी आवाज़ पर लब्बैक कहती हुई निकल आती है या पहले से बच्चे के पहलू में रहते हैं। सोचो! जो शख़्स एक मख़लूक़ के कमालात को न समझ सकता हो वह ख़ालिक़ के औसाफ़ को क्या बयान कर सकेगा।

113- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(मज़म्मते दुनिया)

मैं तुम्हें इस दुनिया से होशियार कर रहा हूँ के यह कूच की जगह है। आबो दाना की मन्ज़िल नहीं है, यह धोके ही से आरास्ता हो गई है और अपनी आराइश ही से धोका देती है। इसका घर परवरदिगार की निगाह में बिल्कुल बे अर्ज़िश है इसीलिये उसने इसके हलाल के साथ हराम, ख़ैर के साथ्ज्ञ शर, ज़िन्दगी के साथ मौत, और शीरीं के साथ तल्ख़ को रख दिया है और न उसे अपने औलिया के लिये मख़सुस किया है और न अपने दुश्मनों को उससे महरूम रखा है। इसका ख़ैर बहुत कम है और इसका शर हर वक़्त हाज़िर है। इसका जमा किया हुआ ख़त्म हो जाने वाला है और इसका मुल्क छिन जाने वाला है और इसके आबाद को एक दिन ख़राब हो जाना है। भला उस घर में क्या ख़ूबी है जो कमज़ोर इमारत की तरह गिर जाए और उस अम्र में क्या भलाई है जो ज़ादे राह की तरह ख़त्म हो जाए और इस ज़िन्दगी में क्या हुस्न है जो चलते-फ़िरते तमाम हो जाए।

देखो अपने मतलूबे उमूर में फ़राएज़े इलाहिया को भी शामिल कर लो और इसी से इसके हक़ के अदा करने की तौफ़ीक़ का मुतालेबा करो। अपने कानों को मौत की आवाज़ सुना दो क़ब्ल इसके के तुम्हें बुला लिया जाए। दुनिया में ज़ाहिदों की शान यही होती है के वह ख़ुश भी होते हैं तो उनका दिल रोता रहता है और वह हंसते भी हैं तो इनका रंज व अन्दोह शदीद होता है। वह ख़ुद अपने नफ़्स से बेज़ार रहते हैं चाहे लोग इनके रिज़्क़ से ग़बता ही क्यों न करें। अफ़सोस तुम्हारे दिलों से मौत की याद निकल गई है और झूठी उम्मीदों ने उन पर क़ब्ज़ा कर लिया है। अब दुनिया का इख़्तेयार तुम्हारे ऊपर आख़ेरत से ज़्यादा है और वह आक़बत से ज़्यादा तुम्हें खींच रही है। तुम दीने ख़ुदा के एतबार से भाई-भाई थे। लेकिन तुम्हें बातिन की ख़बासत और ज़मीर की ख़राबी ने अलग-अलग कर दिया है के अब न किसी का बोझ बटाते हो, न नसीहत करते हो, न एक दूसरे पर ख़र्च करते हो और न एक दूसरे से वाक़ेअन मोहब्बत करते हो। आखि़र तुम्हें क्या हो गया है के मामूली सी दुनिया को पाकर ख़ुश हो जाते हो और मुकम्मल आख़ेरत से महरूम होकर रन्जीदा नहीं होते हो, थोड़ी सी दुनिया हाथ से निकल जाए तो परेशान हो जाते हो और इसका असर तुम्हारे चेहरों से ज़ाहिर हो जाता है और इसकी अलाहेदगी पर सब्र नहीं कर पाते हो जैसे वही तुम्हारी मन्ज़िल है और जैसे इसका सरमाया वाक़ई बाक़ी रहने वाला है। तुम्हारी हालत यह है के कोई शख़्स भी दूसरे के ऐब के इज़हार से बाज़ नहीं आता है मगर सिर्फ़ इस ख़ौफ़ से के वह भी इसी तरह पेश आएगा। तुम सबने आख़ेरत को नज़रअन्दाज़ करने और दुनिया की मोहब्बत पर इत्तेहाद कर लिया है और हर एक का दीन ज़बान की चटनी बनकर रह गया है। ऐसा लगता है के जैसे सबने अपना अमल मुकम्मल कर लिया है और अपने मालिक को वाक़ेअन ख़ुश कर लिया है।

114-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें लोगों की नसीहत का सामान फ़राहम किया गया है)

सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसने हम्द को नेमतों से और नेमतों को शुक्रिया से मिला दिया है। हम नेमतों में इसकी हम्द उसी तरह करते हैं जिस तरह मुसीबतों में करते हैं और उससे इस नफ़्स के मुक़ाबले के लिये मदद के तलबगार हैं जो अम्र की तामील में सुस्ती करता है और नवाही की तरफ़ तेज़ी से बढ़ जता है। उन तमाम ग़लतियों के लिये अस्तग़फ़ार करते है। जिन्हें इसके इल्म ने अहाता कर रखा है और उसकी किताब ने जमा कर रखा है। इसका इल्म क़ासिर नहीं है और इसकी किताब कोई चीज़ छोड़ने वाली नहीं है। हम उस पर इसी तरह ईमान लाए हैं जैसे ग़ैब का मुशाहेदा कर लिया हो और वादा से आगाही हासिल कर ली हो। हमारे इस ईमान के इख़लास ने शिर्क की नफ़ी की है और इसके यक़ीन ने शक का एज़ाला किया है। हम गवाही देते हैं के इसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है। वह एक है उसका कोई शरीक नहीं है और हज़रत मोहम्मद (स0) इसके बन्दे और रसूल हैं। यह दोनों शहादतें वह हैं जो अक़वाल को बलन्दी देती हैं और आमाल को रफ़अत अता करती हैं। जहां यह रख दी जाएं वह पल्ला हल्का नहीं होता है और जहां से उन्हें उठा लिया जाए उस पल्ले में कोई वज़न नहीं रह जाता है।

अल्लाह के बन्दों! मै। तुम्हें तक़वाए इलाही की वसीअत करता हूँ जो तुम्हारे लिये ज़ादे राह है और इसी पर आख़ेरत का दारोमदार है। यही ज़ादेराह मन्ज़िल तक पहुँचाने वाला है और यही पनाहगाह काम आने वाली है। उसी की तरफ़ सबसे बेहतर दाई ने दावत दे दी है और उसे सबसे बेहतर सुनने वाले ने महफ़ूज़ कर लिया है। चुनांचे उसके सुनाने वाले ने सुना दिया और उसके महफ़ूज़ करने वाले ने कामयाबी हासिल कर ली।

अल्लाह के बन्दों! इसी तक़वाए इलाही ने औलियाए ख़ुदा को मोहर्रमात से बचाकर रखा है और इनके दिलों में ख़ौफ़े ख़ुदा को लाज़िम कर दिया है यहाँ तक के इनकी रातें बेदारी की नज़र हो गईं और इनके यह तपते हुए दिन प्यास में गुज़र गए। उन्होंने राहत को तकलीफ़ के एवज़ और सेराबी को प्यास के ज़रिये हासिल किया है वह मौत को क़रीबतर समझते हैं तो तेज़ अमल करते हैं और उन्होंने उम्मीदों को झुठला दिया है तो मौत को निगाह में रखा है, फिर यह दुनिया तो बहरहाल फ़ना और तकलीफ़ तग़य्युर और इबरत का मक़ाम है। फ़ना ही का नतीजा है के ज़माना हर वक़्त अपनी कमान चढ़ाए रहता है के इसके तीर ख़ता नहीं करते हैं और इसके ज़ख़्मों का इलाज नहीं हो पाता है। वह ज़िन्दा को मौत से, सेहतमन्द को बीमारी से और निजात पाने वाले को हलाकत से मार देता है। इसका खाने वाला सेर नहीं होता है और पीने वाला सेराब नहीं होता है। और इसके रन्ज व ताब का असर यह है के इन्सान अपने खाने का सामान फ़राहम करता है, रहने के लिये मकान बनाता है और उसके बाद अचानक ख़ुदा की बारगाह की तरफ़ चल देता है। न माल साथ ले जाता है और न मकान मुन्तक़िल हो पाता है। इसके तग़य्युरात का हाल यह है के जिसे क़ाबिले रहम देखा था वह क़ाबिले रश्क हो जाता है और जिसे क़ाबिले रष्क देखा था वह क़ाबिले रहम हो जाता है। गोया एक नेमत है जो ज़ाएल हो गई और एक बला है जो नाज़िल हो गई। इसकी इबरतों की मिसाल यह है के इन्सान अपनी उम्मीदों तक पहुंचने वाला ही होता है के मौत इसके सिलसिले को क़ता कर देती है और न कोई उम्मीद हासिल होती है और न उम्मीद करने वाला ही छोड़ा जाता है। ऐ सुबहानल्लाह- इस दुनिया की ख़ुशी भी क्या धोका है और इसकी सेराबी भी कैसी तष्नाकामी है और इसके साये में भी किस क़द्र धूप है, न यहाँ आने वाली मौत को वापस किया जा सकता है और न किसी जाने वाले को पलटाया जा सकता है। सुबहानल्लाह ज़िन्दा मुर्दे से किस क़द्र जल्दी मुलहक़ होकर क़रीबतर हो जाता है और मुर्दा ज़िन्दा से रिश्ता तोड़कर किस क़द्र दूर हो जाता है। (याद रखो) शर से बदतर कोई शै इसके अज़ाब के अलावा नहीं है और ख़ैर से बेहतर कोई शै उसके सवाब के सिवा नहीं है। दुनिया में हर शै का सुनना उसके देखने से अज़ीमतर होता है और आख़ेरत में हर शै का देखना उसके सुनने से बढ़-चढ़ कर होता है। लेहाज़ा तुम्हारे लिये देखने के बजाय सुनना और ग़ैब के मुशाहिदे के बजाय ख़बर ही को काफ़ी हो जाना चाहिए। याद रखो के दुनिया में किसी शै का कम होना और आख़ेरत में ज़्यादा होना इससे बेहतर है के दुनिया में ज़्यादा हो और आख़ेरत में कम हो जाए के कितने ही कम वाले फ़ायदे में रहते हैं और कितने ही ज़्यादती वाले घाटे में रह जाते हैं। बेशक जिन चीज़ों का तुम्हें हुक्म दिया गया है उनमें ज़्यादा वुसअत है ब निस्बत उन चीज़ों के जिनसे रोका गयाहै और जिन्हें हलाल किया गया है वह उनसे कहीं ज़्यादा हैं जिन्हें हराम क़रार दिया गया है। लेहाज़ा क़लील को कसीर के लिये और तंगी को वुसअत की ख़ातिर छोड़ दो। परवरदिगार ने तुम्हारे रिज़्क़ की ज़िम्मेदारी ली है और अमल करने का हुक्म दिया है लेहाज़ा ऐसा न हो के जिसकी ज़मानत ली गई है इसकी तलब उससे ज़्यादा हो जाए जिसको फ़र्ज़ किया गया है। ख़ुदा गवाह है के तुम्हारे हालात को देख कर यह शुबह होने लगता है और ऐसा लगता है के शायद जिस की ज़मानत ली गई है वही तुम पर वाजिब किया गया है और जिसका हुक्म दिया गया है उसी को साक़ित कर दिया गया है। ख़ुदारा अमल की तरफ़ सबक़त करो और मौत के अचानक वारिद हो जाने से डरो इसलिये के मौत के वापस होने की वह उम्मीद नहीं है जिस क़द्र रिज़्क़ के पलट कर आ जाने की है। जो रिज़्क़ आज हाथ से निकल गया है उसके कल इज़ाफ़े का इमकान है लेकिन जो उम्र आज निकल गई है उसके कल वापस आने का भी इमकान नहीं है। उम्मीद आने वाले की हो सकती है जाने वाले की नहीं। इससे तो मायूसी ही हो सकती है “अल्लाह से इस तरह डरो जो डरने का हक़ है और ख़बरदार उस वक़्त तक दुनिया से न जाना जब तक वाक़ेई मुसलमान न हो जाओ।”