नहजुल बलाग़ा

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नहजुल बलाग़ा लेखक:
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नहजुल बलाग़ा
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नहजुल बलाग़ा

नहजुल बलाग़ा

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.


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104-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

अम्माबाद! अल्लाह ने हज़रत मोहम्मद (स0) को उस दौर में भेजा है जब अरब में न कोई किताब पढ़ना जानता था और न नबूवत और वही का इदआ करने वाला था। आपने इताअतगुज़ारों के सहारे नाफ़रमानों से जेहाद किया के उन्हें मन्ज़िले निजात की तरफ़ ले जाना चाहते थे और क़यामत के आने से पहले हिदायत दे देना चाहते थे। जब कोई थका मान्दा रूक जाता था और कोई लौटा हुआ ठहर जाता था तो उसके सर पर खड़े हो जाते थे के उसे मन्ज़िल तक पहुंचा दें मगर यह के कोई ऐसा लाख़ैरा हो जिसके मुक़द्दर में हलाकत हो। यहाँ तक के आपने लोगों को मरकज़े निजात से आशना बना दिया और उन्हें उनकी मन्ज़िल तक पहुँचा दिया उनकी चक्की चलने लगी और उनके टेढ़े सीधे हो गए।

और ख़ुदा की क़सम! मैं भी उनके हंकाने वालों में से था यहाँ तक के वह मुकम्मल तौर पर पस्पा हो गए और अपने बन्धनों में जकड़ दिये गए, इस दरम्यान में मैं न कमज़ोर हुआ न बुज़दिली का शिकार हुआ। न मैंने ख़यानत की और न सुस्ती का इज़हार किया।

(((- इमाम अलैहिस्सलाम की ज़िन्दगी का बेहतरीन नक़्षा है और इसी की रोशनी में दूसरे किरदारों का जाएज़ा लिया जा सकता है जिन्हें मैदाने तारीख़ ने तो पहचाना है लेकिन मैदाने जेहाद इनकी गर्दे क़दम से भी महरूम रह गया। मगर अफ़सोस के जानी पहचानी शख़्िसयतें अजनबी हो गईं और अजनबी शहर के मशाहीर बन गए।-)))

ख़ुदा की क़सम! मैं बातिल का पेट चाक करके उसके पहलू से हक़ को बहरहाल निकाल लूंगा।

सय्यद रज़ी - इस ख़ुतबे का एक इन्तेख़ाब पहले नक़्ल किया जा चुका है। लेकिन चूंकि इस रिवायत में क़द्रे कमी और ज़्यादती पाई जाती थी लेहाज़ा हालात का तक़ाज़ा यह था के इसे दोबारा इस शक्ल में भी दर्ज किया जाए।

105- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें रसूले अकरम (स0) के औसाफ़ , बनी उमय्या की तहदीद और लोगों की नसीहत का तज़किरा किया गया है।)

(रसूले अकरम (स0) - यहाँ तक के परवरदिगार ने हज़रत मोहम्मद (स0) को उम्मत के आमाल का गवाह , सवाब की बशारत देने वाला, अज़ाब से डराने वाला बनाकर भेज दिया। आप बचपने में बेहतरीन मख़लूक़ात और सिन रसीदा होने पर अशरफ़े कायनात थे, आदात के एतबार से तमाम पाकीज़ा अफ़राद से ज़्यादा पाकीज़ा और बाराने रहमत के एतबार से हर सहाब रहमत से ज़्यादा करीम व जवाद थे।

(बनी उमय्या) - यह दुनिया तुम्हारे लिये उसी वक़्त अपनी लज़्ज़तों समेत ख़ुशगवार बनी है और तुम उसके फ़वाएद हासिल करने के क़ाबिल बने हो जब तुमने देख लिया के इसकी मेहार झूल रही है और इसका तंग ढीला हो गया है। इसका हराम एक क़ौम के नज़दीक बग़ैर कांटे वाली बेर की तरह मज़ेदार हो गया है और इसका हलाल बहुत दूर तक नापसन्द हो गया है और ख़ुदा की क़सम तुम इस दुनिया को एक मुद्दत तक फैले हुए साये की तरह देखोगे के ज़मीन हर टोकने वाले से ख़ाली हो गई है और तुम्हारे हाथ खुल गए हैं और क़ाएदीन के हाथ बन्धे हुए हैं। तुम्हारी तलवारें उनके सरों पर लटक रही हैं और उनकी तलवारें न्याम में हैं लेकिन याद रखो के हर ख़ून का एक इन्तेक़ाम लेने वाला और हर हक़ का एक तलबगार होता है और हमारे ख़ून का मुन्तक़िम गोया ख़ुद अपने हक़ में फै़सला करने वाला है और वह, वह परवरदिगार है जिसे कोई मतलूबे आजिज़ नहीं कर सकता है और जिससे कोई फ़रार करने वाला भाग नहीं सकता है। मैं ख़ुदा की क़सम खाकर कहता हूँ के बनी उमय्या के अनक़रीब तुम इस दुनिया को अग़्यार के हाथों और दुश्मनों के दयार में देखोगे, आगाह हो जाओ के बेहतरीन नज़र वह है जो ख़ैर में डूब जाए और बेहतरीन कान वह है जो नसीहत को सुन लें और क़ुबूल कर लें।

(मोअज़ा) लोग! एक बाअमल नसीहत करने वाले के चिराग़े हिदायत से रोशनी हासिल कर लो और एक ऐसे साफ़ चश्मे से सेराब हो जाओ जो हर आलूदगी से पाक व पाकीज़ा है।

(((- इस ख़ुतबे में इस नुक्ते की तरफ़ भी इशारा हो सकता है के ग़ासिब अफ़राद ने जिन अमवाल को हज़म कर लिया है, वह एक दिन इनका शिकम चाक करके इसमें से निकाल लिया जाएगा और इस अम्र की तरफ़ भी इशारा हो सकता है के हक़ अभी फ़ना नहीं हुआ है। उसे बातिल ने दबा दिया है और गोया के अपने शिकम के के अन्दर छिपा लिया है और मुझमें इस क़दर ताक़त पाई जाती है के मैं इस शिकम को चाक करके इस हक़ को मन्ज़रे आम पर ले आऊं और बातिल के हर राज़ को बेनक़ाब कर दूँ।-)))

अल्लाह के बन्दों! देखो अपनी जेहालत की तरफ़ झुकाव मत पैदा करो और अपनी ख़्वाहिशात के ग़ुलाम न बन जाओ के इस मन्ज़िल पर आ जाने वाला गोया सेलाबज़दा दीवार के किनारे पर खड़ा है और हलाकतों को अपनी पुश्त पर लादे हुए इधर से उधर मुन्तक़िल हो रहा है। इन उफ़्कार की बिना पर जो यके बाद दीगरे ईजाद करता रहेगा और उन पर ऐसे दलाएल क़ाएम करेगा जो हरगिज़ जस्पां ना होंगे और उससे क़रीबतर भी न होंगे। लेहाज़ा ख़ुदा का ख़याल रखो के अपनी फ़रयाद उस शख़्स से करो जो उसका एज़ाला न कर सके और अपनी राय से हुक्मे इलाही को तोड़ न सके। याद रखो के इमाम की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ वह है जो परवरदिगार ने इसके ज़िम्मे रखी है के बलीग़तरीन मोअज़्ज़म करे, नसीहत की कोशिश करे। सुन्नत को ज़िन्दा करे, मुस्तहक़ीन पर हुदूद का इजरा करे और हक़दारों तक मीरास के हिस्से पहुँचा दे।

देखो इल्म की तरफ़ सबक़त करो क़ब्ल इसके के इसका सब्ज़ा ख़ुश्क हो जाए और तुम उसे साहेबाने इल्म से हासिल करने में अपने कारोबार में मशग़ूल हो जाओ, मुन्करात से रोको और ख़ुद भी बचो के तुम्हें रोकने का हुक्म रूकने के बाद दिया गया है।

106- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें इस्लाम की फ़ज़ीलत और रसूले इस्लाम (स0) का तज़किरा करते हुए असहाब की मलामत की गई है)

सारी तारीफ़ उस ख़ुदा के लिये हैं जिसने इस्लाम का क़ानून मुअय्यन किया तो उसके हर घाट को वारिद होने वाले के लिये आसान बना दिया और उसके अरकान को हर मुक़ाबला करने वाले के मुक़ाबले में मुस्तहकम बना दिया। इसने उस दिन को वाबस्तगी इख़्तेयार करने वालों के लिये जाए-अमन और उसके दार्रा में दाखि़ल हो जाने वालों के लिये महले सलामती बना दिया है। यह दीन अपने ज़रिये कलाम करने वालों के लिये बरहान और अपने वसीले से मुक़ाबला करने वालों के लिये शाहिद क़रार दिया गया है। यह रोशनी हासिल करने वालों के लिये नूर, समझने वालों के लिये फ़हम, फ़िक्र करने वालों के लिये मग़्ज़े कलाम, तलाशे मन्ज़िल करने वालों के लिये निशाने मन्ज़िल, साहेबाने अज़्म के लिये सामाने बसीरत, नसीहत हासिल करने वालों के लिये इबरत, तस्दीक़ करने वालों के लिये निजात, एतमाद करने वालों के लिये क़ाबिले एतमाद, अपने कामो को सुपुर्द कर देने वालों के लिये राहत और सब्र करने वालों के लिये सिपर है। यह बेहतरीन रास्ता और वाज़ेअतरीन दाखि़ले की मन्ज़िल है, उसके मीनार बलन्द, रास्ते रौशन, चिराग़ ज़ूबार, मैदाने अमल बावेक़ार और मक़सद बलन्द है। इसके मैदान में तेज़ रफ़्तार घोड़ों का इज्तेमाअ है और इसकी तरफ़ सबक़त और इसका इनआम हर एक को मतलूब है, इसके शहसवार बाइज़्ज़त हैं। (((- इस मक़ाम पर मौलाए कायनात (अ0) ने इस्लाम के चैदह सिफ़ात का तज़किरा किया है और इसमें नोए बशर के तमाम एक़ाम का अहाता कर लिया है जिसका मक़सद यह है के इस इस्लाम के बरकात से दुनिया का कोई इन्सान महरूम नहीं रह सकता है और कोई शख़्स किसी तरह के बरकात का तलबगार हो उसे इस्लाम के दामन में इस बरकत का हुसूल हो सकता है और वह अपने मतलूबे ज़िन्दगी को हासिल कर सकता है , शर्त सिर्फ़ यह है के इस्लाम ख़ालिस हो और उसकी तफ़सीर वाक़ेई अन्दाज़ से की जाए वरना गन्दे घाट से प्यासा सेराब नहीं हो सकता है और कमज़ोर अरकान के सहारे पर कोई शख़्स ग़लबा नहीं हासिल कर सकता है।-)))

इसका रास्ता तस्दीक़े ख़ुदा और रसूल (स0) है और इसका मिनारा नेकियाँ हैं , मौत एक मक़सद है जिसके लिये दुनिया घोड़दौड़ का मैदान है और क़यामत इसके इज्तेमाअ की मन्ज़िल है और फिर जन्नत इस मुक़ाबले का इनाम है।

(रसूले अकरम (स0)) यहाँ तक के आपने हर रोशनी के तलबगार के लिये आग रौशन कर दी और हर गुमकर्दा राह ठहरे हुए मुसाफ़िर के लिये निशाने मन्ज़िल रौशन कर दिये। परवरदिगार! वह तेरे मोतबर अमानतदार और रोज़े क़यामत के गवाह हैं। तूने उन्हें नेमत बनाकर भेजा और रहमत बनाकर नाज़िल किया है।

ख़ुदाया! तू अपने इन्साफ़ से इनका हिस्सा अता फ़र्मा और फिर अपने फ़ज़्ल व करम से उनके ख़ैर को दुगना-चैगना कर दे। ख़ुदाया! इनकी इमारत को तमाम इमारतों से बलन्दतर बना दे और अपनी बारगाह में इनकी बाइज़्ज़त तौर पर मेज़बानी फ़रमा और इनकी मन्ज़िलत को बलन्दी अता फ़रमा। उन्हें वसीला और रफ़अत व फ़ज़ीलत करामत फ़रमा और हमें उनके गिरोह में महषूर फ़रमा जहां न रूसवा हों और न शर्मिन्दा हों, न हक़ से मुन्हरिफ़ हों न अहद शिकन हों, न गुमराह हों और न गुमराहकुन और न किसी फ़ित्ने में मुब्तिला हों।

सय्यद रज़ी- यह कलाम इससे पहले भी गुज़र चुका है लेकिन हमने इख़्तेलाफ़े रिवायत की बिना पर दोबारा नक़्ल कर दिया है।

(अपने असहाब से खि़ताब फ़रमाते हुए)- तुम अल्लाह की दी हुई करामत से इस मन्ज़िल पर पहुँच गए जहां तुम्हारी कनीज़ों का भी एहतराम होने लगा और तुम्हारे हमसाये से भी अच्छा बरताव होने लगा। तुम्हारा एहतराम वह लोग भी करने लगे जिनपर न तुम्हें कोई फ़ज़ीलत हासिल थी और न उनपर तुम्हारा कोई एहसान था और तुमसे वह लोग भी ख़ौफ़ खाने ले जिन पर न तुमने कोई हमला किया था और न तुम्हें कोई इक़्तेदार हासिल था। मगर अफ़सोस के तुम अहदे ख़ुदा को टूटते हुए देख रहे हो और तुम्हें ग़ुस्सा भी नहीं आता है जबके तुम्हारे बाप दादा के अहद को तोड़ा जाता है तो तुम्हें ग़ैरत आ जाती है। एक ज़माना था के अल्लाह के काम तुम ही पर वारिद होते थे और तुम्हारे ही पास से बाहर निकलते थे और फिर तुम्हारी ही तरफ़ पलट कर आते थे लेकिन तुमने जाहिलों को अपनी मन्ज़िलों पर क़ब्ज़ा दे दिया और उनकी तरफ़ अपनी ज़मामे अम्र बढ़ा दी और उन्हें सारे काम सुपुर्द कर दिये के वह शुबहात पर अमल करते हैं और ख़्वाहिशात में चक्कर लगाते रहते हैं और ख़ुदा गवाह है के अगर यह तुम्हें हर सितारे के नीचे मुन्तशिर देंगे तो भी ख़ुदा तुम्हें उस दिन जमा कर देगा जो ज़ालिमों के लिये बदतरीन दिन होगा।

107- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(सिफ़्फ़ीन की जंग के दौरान)

मैंने तुम्हें भागते हुए और अपनी सफ़ों से फ़ैलते हुए देखा जबके तुम्हें शाम के जफ़ाकार ओबाश और देहाती बद्दू अपने घेरे में लिये हुए थे हालांके तुम अरब के जवाँमर्द बहादुर और शरफ़ के रासवरीं थे। मगर इसकी ऊंची नाक और चोटी की बलन्दी वाले अफ़राद थे, मेरे सीने की कराहने की आवाज़ें उस वक़्त दब सकती हैं जब मैं यह देख लूं के तुम उन्हें इसी तरह अपने घेरे में लिये हुए हो जिस तरह वह तुम्हें लिये हुए थे और उनको उनके मवाक़िफ़ से इसी तरह ढकेल रहे हों जिस तरह उन्होंने तुम्हें हटा दिया था के उन्हें तीरों की बौछार का निशाना न बनाए हुए हो और नैज़ों की ज़द पर इस तरह लिये हुए हो के पहली सफ़ को आख़री सफ़ पर उलट रहे हो जिस तरह के प्यासे ऊंट हंकाए जाते हैं जब उन्हें तालाबों से दूर फेंक दिया जाता है और घाट से अलग कर दिया जाता है।

108- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें मलाहम और हवादिस व फ़ित्न का ज़िक्र किया गया है)

सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जो अपनी मख़लूक़ात के सामने तख़लीक़ात के ज़रिये जलवागर होता है और उनके दिलों पर दलीलों के ज़रिये रोशन होता है। उसने तमाम मख़लूक़ात को बग़ैर सोच विचार की ज़हमत के पैदा किया है के सोचना साहेबाने दिल व ज़मीर का काम है वह इन बातों से बलन्दतर है। उसके इल्म ने पोशीदा इसरार के तमाम पर्दों को चाक कर दिया है और वह तमाम अक़ाएद की गहराइयों का अहाता किये हुए है।

(रसूले अकरम (स0)) उसने आपका इन्तेख़ाब अम्बियाए कराम के शजरे , रोशनी के फ़ानूस, बलन्दी की पेशानी, अर्ज़े तबहा की नाफे़ ज़मीन, ज़ुलमतों के चिराग़ों और हिकमत के सरचश्मो के दरम्यान से किया है। आप वह तबीब थे जो अपनी तबाबत के साथ चक्कर लगा रहा हो के अपने मरहम को दुरूस्त कर लिया हो और दाग़ने के आलात को तपा लिया हो के जिस अन्धे दिल, बहरे कान, गूंगी ज़बान पर ज़रूरत पड़े फ़ौरत इस्तेमाल कर दे। अपनी दवा को लिये हुए ग़फ़लत के मराकज़ और हैरत के मक़ामात की तलाश में लगा हुआ हो।

(फ़ित्नाए बनी उमय्या) इन ज़ालिमों ने हिकमत की रोशनी से नूर हासिल किया और उलूम के चक़माक़ को रगड़कर चिंगारी नहीं पैदा की। इस मसले में इनकी मिसाल चरने वाले जानवरों और सख़्त तरीन पत्थरों की है।

बेशक अहले बसीरत के लिये इसरार नुमायां हैं और हैरान व सरगर्दां लोगों के लिये हक़ का रास्ता रौशन है। आने वाली साअत ने अपने चेहरे से नक़ाब को उलट दिया है और तलाश करने वालों के लिये अलामतें ज़ाहिर हो गई हैं। आखि़र क्या हो गया है के मैं तुम्हें बिल्कुल बेजान पैकर और बिला पैकर रूह की शक्ल में देख रहा हूँ। तुम वह इबादत गुज़ार हो जो अन्दर से सॉलेह न हो और वह ताजिर हो जिसको कोई फ़ायदा न हो। वह बेदार हो जो ख़्वाबे ग़फ़लत में हो और वह हाज़िर हो जो बिल्कुल ग़ैर हाज़िर हो।

अन्धी आंख, बहरे कान और गूंगी ज़बान, गुमराही का परचम अपने मरकज़ पर जम चुका है और इसकी शाख़ें हर सू फैल चुकी हैं। वह तुम्हें अपने पैमाने में तोल रहा है और अपने हाथों इधर-उधर बहका रहा है। इसका क़ाएद मिल्लत से ख़ारिज और ज़लालत पर क़ाएम है। उस दिन तुमसे कोई बाक़ी न रह जाएगा मगर उसी मिक़दार में जितना पतीली का तह देग होता है, या थैली के झाड़े हुए रेज़े। यह गुमराही तुम्हें उसी तरह मसल डालेगी जिस तरह चमड़ा मसला जाता है और इसी तरह पामाल कर देगी जिस तरह कटी हुई ज़राअत रौंदी जाती है और मोमिन ख़ालिस को तुम्हारे दरम्यान से इस तरह चुन लेगी जिस तरह परिन्दा बारीक दानों से मोटे दानों को निकाल लेता है।

आखि़र तुमको यह ग़लत रास्ते किधर ले जा रहे हैं और तुम अन्धेरों में कहां बहक रहे हो और तुमको झूटी उम्मीदें किस तरह धोका दे रही हैं किधर से लाए जा रहे हो और किधर बहकाए जा रहे हो। हर मुद्दत का एक नोष्ता होता है और ग़ैबत के लिये एक वापसी होती है लेहाज़ा अपने ख़ुदा व सय्यदे आलम की बात सुनो। इसके लिये दिलों को हाज़िर करो, वह आवाज़ दे तो बेदार हो जाओ। हर नुमाइन्दे को अपनी क़ौम से सच बोलना चाहिये, उसकी परागन्दगी को जमा करना चाहिये। इसके ज़ेहन को हाज़िर रखना चाहिए। अब तुम्हारे रहनुमा ने तुम्हारे लिये मसलए को इस क़द्र वाशिगाफ़ कर दिया है जिस तरह मेहरा को चीरा जाता है और इस तरह छील डाला है जिस तरह गोन्द खुरचा जाता है। मगर इसके बावजूद बातिल ने अपना मरकज़ संभाल लिया है और जेहल अपने मरकब पर सवार हो गया है और सरकशी बढ़ गई है और हक़ की आवाज़ दब गई है और ज़माने ने फाउण्डेशऩ खाने वाले दरिन्दे की तरह हमला कर दिया है और बातिल का ऊंट चुप रहने के बाद फिर बिलबिलाने लगा है और लोगों ने फिस्क़ व फ़ुजूर की बिरादरी क़ायम कर ली है और सबने मिलकर दीन को नज़रअन्दाज़ कर दिया है। झूट परवस्ती की बुनियादें क़ायम हो गई हैं और सच्चाई पर एक दूसरे के दुशमन हो गए हैं। ऐसे हालात में बेटा बा पके लिये ग़ैज़ व ग़ज़ब का सबब होगा और बारिश गर्मी का बाएस होगी। कमीने लोग फैल जाएंगे और शरीफ़ लोग सिमट जाएंगे। इस दौर के अवाम भेड़िये होंगे और सलातीन दरिन्दे। दरम्यानी तबक़े वाले खाने वाले और फ़क़रा व मसाकीन मुर्दे होंगे। सच्चाई कम हो जाएगी और झूठ फैल जाएगा। मोहब्बत का इस्तेमाल सिर्फ़ ज़बान से होगा और अदावत दिलों के अन्दर पेवस्त हो जाएगी। ज़िनाकारी नसब की बुनियाद होगी और उफ़त एक अजीब व ग़रीब शै हो जाएगी। इस्लाम यूँ उलट दिया जाएगा जैसे कोई पोस्तीन को उलटा पहन ले।

109- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(क़ुदरते ख़ुदा अज़मते इलाही और रोज़े महशर के बारे में)

हर शै उसकी बारगाह में सर झुकाए हुए है और हर चीज़ उसी के दम से क़ायम है। वह हर फ़क़ीर की दौलत का सहारा और हर ज़लील की इज़्ज़त का आसरा है। हर कमज़ोर की ताक़त वही है और हर फ़रयादी की पनाहगाह वही है। हर बोलने वाले के नतक़ को सुन लेता है और हर ख़ामोश रहने वाले के राज़ को जानता है। जो ज़िन्दा है उसका रिज़्क़ उसके ज़िम्मे है जो मर गया उसकी बाज़गष्त उसी की तरफ़ है।

ख़ुदाया! आँखों ने तुझे देखा नहीं है के तेरे बारे में ख़बर दे सकें, तू तमाम तौसीफ़ करने वाली मख़लूक़ात के पहले से है, तूने मख़लूक़ात को तन्हाई की वहशत की बिना पर नहीं ख़ल्क़ किया है और न उन्हें किसी फ़ाएदे के लिये इस्तेमाल किया है। तू जिसे हासिल करना चाहे वह आगे नहीं जा सकता है और जिसे पकड़ना चाहे वह बच कर नहीं जा सकता है। नाफ़रमानों से तेरी सल्तनत में कमी नहीं आती है और इताअत गुज़ारों से तेरे मुल्क में इज़ाफ़ा नहीं होता है जो तेरे फ़ैसले से नाराज़ हो वह तेरे हुक्म को टाल नहीं सकता है और जो तेरे अम्र से रूगरदानी करे वह तुझसे बेनियाज़ नहीं हो सकता है। हर राज़ तेरे सामने रौशन है और हर ग़ैब तेरे लिये हुज़ूर है। तू अबदी है तो तेरी कोई इन्तेहा नहीं है और तू इन्तेहा है तो तुझसे कोई छुटकारा नहीं है, तू सबकी वादागाह है तो तुझसे निजात हासिल करने की कोई जगह नहीं है। हर ज़मीन पर चलने वाले का इख़्तेयार तेरे हाथ में है और हर जानदार की बाज़गष्त तेरी ही तरफ़ है। पाक व बे नियाज़ है तू, तेरी शान क्या बाअज़मत है और तेरी मख़लूक़ात भी क्या अज़ीमुष्षान है और तेरी क़ुदरत के सामने हर अज़ीम शै किस क़द्र हक़ीर है और तेरी सल्तनत किस क़द्र पुरशिकोह है और यह सब तेरी इस ममलेकत के मुक़ाबले में जो निगाहों से ओझल है किस क़द्र मामूली है। तेरी नेमतें इस दुनिया में किस क़द्र मुकम्मल हैं और फ़िर नेमाते आख़ेरत के मुक़ाबले में किस क़द्र मुख़्तसर हैं।

(मलाएका मुक़र्रबीन) यह तेरे मलाएका हैं जिन्हें तूने आसमानों में आबाद किया है और ज़मीन से बलन्दतर बनाया है। यह तमाम मख़लूक़ात से ज़्यादा तेरी मारेफ़त रखते हैं और तुझसे ख़ौफ़ज़दा रहते हैं और तेरे क़रीबतर भी हैं। यह न असलाबे पिदर में रहे हैं और न अरहामे मादर में और न हक़ीर नुत्फ़े से पैदा किये गए हैं और न इन पर ज़माने के इन्क़ेलाबात का कोई असर है। यह तेरी बारगाह में एक ख़ास मक़ाम और मन्ज़िलत रखते हैं। इनकी तमामतर ख़्वाहिशात सिर्फ़ तेरे बारे में हैं और यह बकसरत तेरी ही इताअत करते हैं और तेरे हुक्म से हरगिज़ ग़ाफ़िल नहीं होते हैं। लेकिन इसके बावजूद अगर तेरी अज़मत की तह तक पहुंच जाएं तो अपने आमाल को हक़ीरतरीन तसव्वुर करेंगे और अपने नफ़्स की मज़म्मत करेंगे और उन्हें मालूम हो जाएगा के इन्होंने इबादत का हक़ अदा नहीं किया है और हक़क़े इताअत के बराबर इताअत नहीं की है।

तू पाक व बे नियाज है, ख़ालकीयत के एतबार से भी और इबादत के एतबार से भी। मेरी तस्बीह इस बेहतरीन बरताव की बिना पर है जो तूने मख़लूक़ात के साथ किया है। तूने एक घर बनाया है, उसमें एक दस्तरख़्वान बिछाया है। जिसमें खाने-पीने, ज़ौजियत, खि़दमत, क़स्र, नहर, ज़राअत, समर सबका इन्तज़ामक र दिया है और फिर एक दाई को इसकी तरफ़ दावत देने के लिये भेज दिया है। लेकिन लोगों ने न दाई की आवाज़ पर लब्बैक कही और न जिन चीज़ों की तरफ़ तूने रग़बत दिलाई थी राग़िब हुए और न तेरी तशवीक़ का शौक़ पैदा किया।

सब उस मुरदार पर टूट पड़े जिसको खाकर रूसवा हुए आर सबने इसकी मोहब्बत पर इत्तेफ़ाक़ कर लिया और ज़ाहिर है के जो किसी का भी आशिक़ हो जाता है वह शै उसे अन्धा बना देती है और उसके दिल को बीमार कर देती है। वह देखता भी है तो ग़ैर सलीम आंखों से और सुनता भी है तो ग़ैर समीअ कानों से। ख़्वाहिशात ने इनकी अक़्लों को पारा-पारा कर दिया है और दुनिया ने उनके दिलों को मुर्दा बना दिया है। उन्हें इससे वालहाना लगाव पैदा हो गया है और वह उसके बन्दे हो गए हैं और उनके ग़ुलाम बन गए हैं, जिनके हाथ में थोड़ी सी भी दुनिया है के जिस तरफ़ झुकती है यह भी झुक जाते हैं और जिधर वह मुड़ती है यह भी मुड़ जाते हैं, न कोई ख़ुदाई रोकने वाला उन्हें रोक सकता है और न किसी वाएज़ की नसीहत इन पर असरअन्दाज़ होती है। जबके उन्हें देख रहे हैं जो इसी धोके में पकड़ लिये गए हैं के अब न माफ़ी का इमकान है और न वापसी का। किसी तरह इन पर वह मुसीबत नाज़िल हो गई है जिससे नावाक़िफ़ थे और फ़िराक़े दुनिया की वह आफ़त आ गई है जिसकी तरफ़ से बिल्कुल मुतमइन थे और आख़ेरत में इस सूरते हाल का सामना कर रहे हैं जिसका वादा किया गया था। अब तो उस मुसीबत का बयान भी नामुमकिन है जहां एक तरफ़ मौत का सकरात है और दूसरी तरफ़ फ़िराक़े दुनिया की हसरत। हालत यह है के हाथ पांव ढीले पड़ गए हैं और रंग उड़ गया है इसके बाद मौत की दख़ल अन्दाज़ी और बढ़ी तो वह गुफ़्तगू की राह में भी हाएल हो गई के इन्सान घरवालों के दरम्यान है उन्हें आखों से देख रहा है, कान से उनकी आवाज़ें सुन रहा है, अक़्ल भी सलामत है और होश भी बरक़रार है। यह सोच रहा है के उम्र को कहां बरबाद कर दिया है और ज़िन्दगी को कहां गुज़ारा है। उन अमवाल को याद कर रहा है जिन्हें जमा किया था और उनकी जमाआवरी में आंखें बन्द कर ली थीं के कभी वाज़ेअ रास्तों से हासिल किया और कभी मुश्तबा तरीक़ों से के सिर्फ़ इनके जमा करने के असरात बाक़ी रह गये हैं और उनसे जुदाई का वक़्त आ गया है। अब यह माल बादवालों के लिये रह जाएगा जो आराम करेंगे और मज़े उड़ाएंगे। यानी मज़ा दूसरों के लिये होगा और बोझ इसकी पीठ पर होगा लेकिन इन्सान इस माल की ज़न्जीरों में जकड़ा हुआ है और मौत ने सारे हालात को बेनक़ाब कर दिया है के निदामत से अपने हाथ काट रहा है और इस चीज़ से किनाराकश होना चाहता है जिसकी तरफ़ ज़िन्दगी भर राग़िब था। अब यह चाहता है के काश जो शख़्स इससे माल की बिना पर हसद कर रहा था यह माल उसके पास होता और इसके पास न होता।

इसके बाद मौत इसके जिस्म में मज़ीद दरान्दाज़ी करती है और ज़बान के साथ कानों को भी शामिल कर लेती है के इन्सान अपने घरवालों के दरम्यान न बोल सकता है और न सुन सकता है। हर एक के चेहरे को हसरत से देख रहा है। इनकी ज़बान की जुम्बिश को भी देख रहा है लेकिन अल्फ़ाज़ को नहीं सुन सकता है। इसके बाद मौत और चिपक जाती है तो कानों की तरह आंखों पर भी क़ब्ज़ा हो जाता है और रूह जिस्म से परवाज़ कर जाती है। अब वह घरवालों के दरम्यान एक मुरदार होता है। जिसके पहलू में बैठने से भी वहशत होने लगती है और लोग दूर भागने लगते हैं। यह अब न किसी रोने वाले को सहारा दे सकता है और न किसी पुकारने वाले की आवाज़ पर आवाज़ दे सकता है। लोग उसे ज़मीन के एक गढ़े तक पहुंचा देते हैं और उसे उसके आमाल के हवाले कर देते हैं के मुलाक़ातों का सिलसिला भी ख़त्म हो जाता है।

यहाँ तक के जब क़िस्मत का लिखा अपनी आख़री हद तक और अम्रे इलाही अपनी मुक़र्ररा मन्ज़िल तक पहुंच जाएगा और आख़ेरीन को अव्वलीन से मिला दिया जाएगा और एक नया हुक्मे इलाही आ जाएगा के खि़लक़त की तजदीद की जाए तो यह अम्र आसमानों को हरकत देकर शिगाफ़ता कर देगा और ज़मीन को हिलाकर खोखला कर देगा और पहाड़ों को जड़ से उखाड़कर उड़ा देगा और हैबते जलाले इलाही और ख़ौफ़े सितवते परवरदिगार से एक दूसरे से टकरा जाएंगे और ज़मीन सबको बाहर निकाल देगी और उन्हें दोबारा बोसीदगी के बाद ताज़ा हयात दे दी जाएगी और इन्तेशार के बाद जमा कर दिया जाएगा और मख़फ़ी आमाल पोशीदा अफ़आल के सवाल के लिये सबको अलग-अलग कर दिया जाएगा और मख़लूक़ात दो गिरोहों में तक़सीम हो जाएंगी। एक गिरोह मरकज़े नेमात होगा और दूसरा महले इन्तेक़ाम।

अहले इताअत को इस जवारे रहमत में सवाब और दारे जन्नत में हमेशगी का इनाम दिया जाएगा जहां के रहने वाले कूच नहीं करते हैं और न उनके हालात में कोई तग़य्युर पैदा होता है और न इन पर रन्ज व अलम तारी होता है और न उन्हें कोई बीमारी लाहक़ होती है और न किसी तरह का ख़तरा सामने आता है और न सफ़र की ज़हमत से दो-चार होना पड़ता है। लेकिन अहले मासीयत के लिये बदतरीन मन्ज़िल होगी जहां हाथ गरदन से बन्धे होंगे और पेशानियों को पैरों से जोड़ दिया जाएगा। तारकोल और आग के तराशीदा लिबास पहनाए जाएंगे। इस अज़ाब में जिसकी गर्मी शदीद होगी और जिसके दरवाज़े बन्द होंगे और उस जहन्नम में जिसमें शरारे भी होंगे और शोर व ग़ोग़ा भी, भड़कते हुए शोले भी होंगे और हौलनाक चीख़ें भी, न यहाँ के रहने वाले कूच करेंगे और न यहाँ के क़ैदियों से कोई फ़िदया क़ुबूल किया जाएगा और न यहाँ की बेड़ियां जुदा हो सकती हैं, न इस घर की कोई मुद्दत है जो तमाम हो जाए और न इस क़ौम की कोई अजल है जो ख़त्म कर दी जाए।

(ज़िक्रे रसूले अकरम (स0)) आपने इस दुनिया को हमेशा सग़ीर व हक़ीर और ज़लील व पस्त तसव्वुर किया है और यह समझा है के परवरदिगार ने इस दुनिया को आपसे अलग रखा है और दूसरों के लिये फर्श कर दिया है तो यह आपकी इज़्ज़त और दुनिया की हेक़ारत ही की बुनियाद पर है लेहाज़ा आपने उससे दिल से किनाराकशी इख़्तेयार की और उसकी याद को दिल से बिलकुल निकाल दिया और यह चाहा के इसकी ज़ीनतें निगाहों से ओझल रहें ताके न उमदा लिबास ज़ेबे तन फ़रमाएं और न किसी ख़ास मक़ाम की उम्मीद करें। आपने परवरदिगार के पैग़ाम को पहुंचाने में सारे बहाने तमाम कर दिये और उम्मत को अज़ाबे इलाही से डराते हुए नसीहत फ़रमाई। जन्नत की बशारत सुनाकर उसकी तरफ़ दावत दी और जहन्नम से बचने की तलक़ीन करके इसका ख़ौफ़ पैदा कराया।

(अहलेबैत (अ0)) हम नबूवत का शजरा , रिसालत की मन्ज़िल, मलाएका की रफ़्तो आमद की जगह, इल्म के माअदन और हिकमत के चश्मे हैं। हमारा मददगार और मोहिब हमेशा मुन्तज़िर रहमत रहता है और हमारा दुशमन और कीनापरवर हमेशा मुन्तज़िरे लानत व इन्तेक़ामे इलाही रहता है।

(((- ताअज्जुब न करें के ख़ुदाए रहमान व रहीम अपने बन्दों के साथ इस तरह का बरताव किस तरह करेगा के यह अन्जाम उन्हीं लोगों का है जो दारे दुनिया में अल्लाह के कमज़ोर और नेक बन्दों के साथ उससे बदतर बरताव कर चुके हैं तो क्या मालिके कायनात दुनिया में इख़्तेयारात देने के बाद आख़ेरत में भी उन्हें बेहतरीन नेमतों से नवाज़ देगा और मज़लूमीन का दुनिया व आख़ेरत में कोई पुरसान हाल न होगा।? -)))

110-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(अरकाने इस्लाम के बारे में)

अल्लाह वालों के लिये उसकी बारगाह ते पहुंचने का बेहतरीन वसीला अल्लाह और उसके रसूल (स0) पर ईमान और राहे ख़ुदा मे जेहाद है के जेहाद इस्लाम की सरबलन्दी है , और कलमए इख़लास है के यह फ़ितरते इलाहिया है और नमाज़ का क़याम है के ऐन दीन है और ज़कात की अदायगी है के यह फ़रीज़ाए वाजिब है और माहे रमज़ान का रोज़ा है के यह अज़ाब से बचने का सिपर है और हज बैतुल्लाह है और उमरा है के यह फ़क़्र को दूर कर देता है और गुनाहों को धो देता है और सिलए रहम है के यह माल में इज़ाफ़ा और अजल के टालने का ज़रिया है और पोशीदा तरीक़े से ख़ैरात है के यह गुनाहों का कफ़्फ़ारा है और अलल एलान सदक़ा है के यह बदतरीन मौत के दफ़ा करने का ज़रिया है और अक़रेबा के साथ नेक सुलूक है के यह ज़िल्लत के मक़ामात से बचाने का वसीला है। ज़िक्रे ख़ुदा की राह में आगे बढ़ते रहो के यह बेहतरीन ज़िक्र है और ख़ुदा ने मुत्तक़ीन से जो वादा किया है उसकी तरफ़ रग़बत पैदा करो के इसका वादा सच्चा है। अपने पैग़म्बर की हिदायत के रास्ते पर चलो के यह बेहतरीन हिदायत है और उनकी सुन्नत को इख़्तेयार करो के यह सबसे बेहतर हिदायत करने वाली है। (क़ुराने करीम) क़ुराने मजीद का इल्म हासिल करो के यह बेहतरीन कलाम है और इसमें ग़ौर व फ़िक्र करो के यह दिलों की बहार है। इसके नूर से शिफ़ा हासिल करो के यह दिलों के लिये शिफ़ा है और इसकी बाक़ायदा तिलावत करो के यह मुफ़ीदतरीन क़िस्सों का मरकज़ है, और याद रखो के अपने इल्म के खि़लाफ़ अमल करने वाला आलिम भी हैरान व सरगर्दां जाहिल जैसा है जिसे जेहालत से कभी ओफ़ाक़ा नहीं होता है बल्कि इस पर हुज्जते ख़ुदा ज़्यादा अज़ीमतर होती है और इसके लिये हसरत व अन्दोह भी ज़्यादा लाज़िम होता है और वह बारगाहे इलाही में ज़्यादा क़ाबिले मलामत होता है।

111- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(मज़म्मते दुनिया के बारे में)

अम्माबाद! मैं तुम लोगों को दुनिया से होशियार कर रहा हूँ के यह शीरीं और शादाब है लेकिन ख़्वाहिशात में घिरी हुई है। अपनी जल्द मिल जाने वाली नेमतों की बिना पर महबूब बन जाती है और थोड़ी सी ज़ीनत से ख़ूबसूरत बन जाती है। यह उम्मीदों से आरास्ता है और धोके से मुज़य्यन है। न इसकी ख़ुशी दाएमी है और न इसकी मुसीबत से कोई महफ़ूज़ रहने वाला है यह धोकेबाज़ नुक़सान रसां, बदल जाने वाली, फ़ना हो जाने वाली, ज़वाल पज़ीर और हलाक हो जाने वाली है। यह लोगों को खा भी जाती है और मिटा भी देती है।

(((- बाज़ नादानों का ख़यल है के जब दुनिया बाक़ी रहने वाली नहीं है और इसके शबो रोज़ का एतबार नहीं है तो बेहतरीन बात यह है के जिस क़द्र हासिल हो जाए इन्सान हासिल कर ले और इसकी नेमतों से लुत्फ़ अन्दोज़ हो जाए के कहीं दूसरे दिन हाथ से निकल न जाए। लेकिन यह ख़याल उन्हीं लोगों का है जो आख़ेरत की तरफ़ से यकसर ग़ाफ़िल हैं और उन्हें इस लुत्फ़ अन्दोज़ी के अन्जाम की ख़बर नहीं है वरना इस नुक्ते की तरफ़ मुतवज्जे हो जाते तो मारगुज़ीदा की तरह तड़पने को बिस्तरे हरीर पर आराम करने से ज़्यादा पसन्द करते और मुफ़लिसतरीन ज़िन्दगी गुज़ारने ही को आफ़ियत व आराम तसव्वुर करते।-)))

जब अपनी तरफ़ रग़बत रखने वालों और अपने से ख़ुश हो जाने वालों को ख़्वाहिशात की इन्तेहा को पहुंच जाती है तो बिलकुल परवरदिगार के इस इरशाद के मुताबिक़ हो जाती है “जैसे आसमान से पानी नाज़िल होकर ज़मीन के नबातात में शामिल हो जाए और फिर इसके बाद वह सब्ज़ा सूखकर ऐसा तिनका हो जाए जिसे हवाएं उड़ा ले जाएं और ख़ुदा हर शै पर क़ुदरत रखने वाला है”इस दुनिया में कोई शख़्स ख़ुश नहीं होता है मगर यह के उसे बाद में आँसू बहाना पड़ें और कोई शख़्स ख़ुशी को आते नहीं देखता है मगर यह के वह मुसीबत में डालकर पीठ दिखला देती है और कहीं राहत व आराम की हल्की-हल्की बारिश नहीं होती है मगर यह के बलाओं का दोगड़ा करने लगता है। इसकी शान ही यह है के अगर सुबह को किसी तरफ़ से बदला लेने के लिये आती है तो शाम होते-होते अन्जान बन जाती है और अगर एक तरफ़ से शीरीं और ख़ुश गवार नज़र आती है तो दूसरे रूख़ से तल्ख़ और बलाख़ेज़ होती है। कोई इन्सान इसकी ताज़गी से अपनी ख़्वाहिश पूरी नहीं करता है मगर यह के इसके पै-दर-पै मसाएब की बिना पर रन्ज व ताब का शिकार हो जाता है और कोई शख़्स को अम्न व अमान के परों पर नहीं रहता है मगर यह के सुबह होते होते ख़ौफ़ के बालोपर पर लाद दिया जाता है। यह दुनिया धोके बाज़ है और इसके अन्दर जो कुछ है सब धोका है यह फ़ानी है और इसमें जो कुछ है सब फ़ना होने वाला है। इसके किसी ज़ादे राह में कोई ख़ैर नहीं है सिवाए तक़वा के। इसमें से जो कम हासिल करता है उसी को राहत ज़्यादा नसीब होती है और जो ज़्यादा से चक्कर में पड़ जाता है उसके मोहलकात भी ज़्यादा हो जाते हैं और यह बहुत जल्द उससे अलग हो जाती है। कितने इस पर एतबार करने वाले हैं जिन्हें अचानक मुसीबतों में डाल दिया गया और कितने इस पर इत्मीनान करने वाले हैं जिन्हें हलाक कर दिया गया और कितने साहेबाने हैसियत थे जिन्हें ज़लील बना दिया गया और कितने अकड़ने वाले थे जिन्हें हिक़ारत के साथ पलटा दिया गया। इसकी बादशाही पलटा खाने वाली, इसका ऐश मुकद्दर, इसका शीरीं शूर, इसका मीठा कड़वा, इसकी ग़िज़ा ज़हर आलूद और इसके असबाब सब बोसीदा हैं। इसका ज़िन्दा मारिज़ हलाकत में है और इसका सेहतमन्द बीमारियों की ज़द पर है। इसका मुल्क छिनने वाला है और इसका साहेबे इज़्ज़त मग़लूब होने वाला है। इसका मालदार बदबख़्ितयों का शिकार होने वाला है और इसका हमाया लुटने वाला है। क्या तुम इन्हीं के घरों में नहीं हो जो तुमसे पहले तवीले उम्र, पाएदार आसार और दूर रस उम्मीदों वाले थे, बेपनाह सामान मुहय्या कया, बड़े-बड़े लशकर तैयार किये और जी भरकर दुनिया की परस्तिश की और उसे हर चीज़ पर मुक़द्दम रखा लेकिन इसके बाद यूँ रवाना हो गए के न मन्ज़िल तक पहुँचाने वाला ज़ादे राह साथ था और न रास्ता तय करने वाली सवारी। क्या तुम तक कोई ख़बर पहुँची है के इस दुनिया ने इनको बचाने के लिये कोई फ़िदया पेश किया हो या इनकी कोई मदद की हो या इनके साथ्ज्ञ अच्छा वक़्त गुज़ारा हो?

(((-दुनिया से इबरत हासिल करने का बेहतरीन ज़रिया ख़ुद इसकी तारीख़ है के इसने आज तक किसी से वफ़ा नहीं की है। इसका एक पेशा भी उस वक़्त तक काम नहीं आता है जब तक मालिक से जुदा नहीं हो जाता है और इसकी सल्तनत भी अपने सुलतान को फ़िशारे क़ब्र से निजात देने वाली नहीं है। ऐसे हालात में तारीख़ी हवादिस से आंख बन्द कर लेना जेहालत के मासेवा कुछ नहीं है और साहबे इल्म व अक़्ल वही है जो माज़ी के तजुर्बात से फ़ायदा उठाए।-)))

हरगिज़ नहीं- बल्कि उन्हें मुसीबतों में गिरफ़्तार कर दिया और आफ़तों से आजिज़ व बेबस बना दिया। पै-दर-पै ज़हमतों ने उन्हें झिन्झोड़ कर रख दिया और इनकी नाक रकड़ दी और उन्हें अपने सुमों से रोन्द डाला और फिर हवादिस रोज़गार को भी सहारा दे दिया और तुमने देख लिया के यह अपने इताअत गुज़ारों, चाहने वालों और चिपकने वालों के लिये भी ऐसी अन्जान बन गई के जब उन्होंने यहाँ से हमेशा के लिये कूच किया तो उन्हें सिवाए भूक के कोई ज़ादे राह और तंगी-ए लहद के कोई मकान नहीं दिया। ज़ुल्मत ही इनकी रोशनी क़रार पाई और निदामत ही इनका अन्जाम ठहरा। तो क्या तुम इसी दुनिया को इख़्तेयार कर रहे हो और इसी पर भरोसा कर रहे हो और इसी की लालच में मुब्तिला हो। यह अपने से बदज़नी न रखने वालों और एहतियात न करने वालों के लिये बदतरीन मकान है। लेहाज़ा याद रखो और तुम्हें मालूम भी है के तुम उसे छोड़ने वाले हो और इससे कूच करने वाले हो। उन लोगों से नसीहत हासिल करो जिन्होंने यह दावा किया था के “हमसे ज़्यादा ताक़तवर कौन है”और फिर वह भी अपनी क़ब्रों की तरफ़ इस तरह पहुँचाए गए के उन्हें सवारी भी नसीब नहीं हुई और क़ब्रों में इस तरह उतार दिया गया के उन्हें मेहमान भी नहीं कहा गया। पत्थरों से इनकी क़ब्रें चुन दी गईं और मिट्टी से उन्हें कफ़न दे दिया गया। सड़ी गली हड्डियाँ इनकी हमसाया बन गई और अब यह सब ऐसे हमसाये हैं के किसी पुकारने वाले की आवाज़ पर लब्बैक नहीं कहते हैं और न किसी ज़्यादती को रोक सकते हैं और न किसी रोने वाले की परवाह करते हैं। अगर इनपर मूसलाधार बारिश हो तो उन्हें ख़ुशी नहीं होती है और अगर क़हत पड़ जाए तो मायूसी का शिकार नहीं होते हैं। यह सब एक मुक़ाम पर जमा हैं मगर अकेले हैं और हमसाये हैं मगर दूर-दूर हैं। ऐसे एक-दूसरे से क़रीब के मुलाक़ात तक नहीं करते हैं और ऐसे नज़दीक के मिलते भी नहीं हैं। अब ऐसे बरबाद हो गए हैं के सारा कीना ख़त्म हो गया है और ऐसे बेख़बर हैं के सारा बाज़ व अनाद मिट गया है। न इनसे किसी ज़रर का अन्देशा है और न किसी दिफ़ाअ की उम्मीद है। उन्होंने ज़मीन के ज़ाहिर के बजाए बातिन को और वुसअत के बजाए तंगी को और साथियों के बदले ग़ुरबत को और नूर के बदले ज़ुल्मत को इख़्तेयार कर लिया है। इसकी गोद में वैसे ही आ गए हैं जैसे पहले अलग हुए थे पा-बरहना और नंगे। अपने आमाल समेत दाएमी ज़िन्दगी और अबदी मकान की तरफ़ कूच कर गए हैं जैसा के मालिके कायनात ने फ़रमाया है “जिस तरह हमने पहले बनाया था वैसे ही वापस ले आएंगे, यह हमारा वादा है और हम उसे बहरहाल अन्जाम देने वाले हैं।

112- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें मलकुल मौत इनके क़ब्ज़े रूह और मख़लूक़ात के तौसीफ़े इलाही से आजिज़ी का ज़िक्र किया गया है।)

क्या जिस वक़्त मलकुल मौत घर में दाखि़ल होते हैं तुम्हें कोई एहसास होता है और क्या उन्हें रूह क़ब्ज़ करते हुए तुमने कभी देखा है? भला वह शिकमे मादर में बच्चे को किस तरह मारते हैं। क्या किसी तरफ़ से अन्दर दाखि़ल हो जाते हैं या रूह ही इनकी आवाज़ पर लब्बैक कहती हुई निकल आती है या पहले से बच्चे के पहलू में रहते हैं। सोचो! जो शख़्स एक मख़लूक़ के कमालात को न समझ सकता हो वह ख़ालिक़ के औसाफ़ को क्या बयान कर सकेगा।

113- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(मज़म्मते दुनिया)

मैं तुम्हें इस दुनिया से होशियार कर रहा हूँ के यह कूच की जगह है। आबो दाना की मन्ज़िल नहीं है, यह धोके ही से आरास्ता हो गई है और अपनी आराइश ही से धोका देती है। इसका घर परवरदिगार की निगाह में बिल्कुल बे अर्ज़िश है इसीलिये उसने इसके हलाल के साथ हराम, ख़ैर के साथ्ज्ञ शर, ज़िन्दगी के साथ मौत, और शीरीं के साथ तल्ख़ को रख दिया है और न उसे अपने औलिया के लिये मख़सुस किया है और न अपने दुश्मनों को उससे महरूम रखा है। इसका ख़ैर बहुत कम है और इसका शर हर वक़्त हाज़िर है। इसका जमा किया हुआ ख़त्म हो जाने वाला है और इसका मुल्क छिन जाने वाला है और इसके आबाद को एक दिन ख़राब हो जाना है। भला उस घर में क्या ख़ूबी है जो कमज़ोर इमारत की तरह गिर जाए और उस अम्र में क्या भलाई है जो ज़ादे राह की तरह ख़त्म हो जाए और इस ज़िन्दगी में क्या हुस्न है जो चलते-फ़िरते तमाम हो जाए।

देखो अपने मतलूबे उमूर में फ़राएज़े इलाहिया को भी शामिल कर लो और इसी से इसके हक़ के अदा करने की तौफ़ीक़ का मुतालेबा करो। अपने कानों को मौत की आवाज़ सुना दो क़ब्ल इसके के तुम्हें बुला लिया जाए। दुनिया में ज़ाहिदों की शान यही होती है के वह ख़ुश भी होते हैं तो उनका दिल रोता रहता है और वह हंसते भी हैं तो इनका रंज व अन्दोह शदीद होता है। वह ख़ुद अपने नफ़्स से बेज़ार रहते हैं चाहे लोग इनके रिज़्क़ से ग़बता ही क्यों न करें। अफ़सोस तुम्हारे दिलों से मौत की याद निकल गई है और झूठी उम्मीदों ने उन पर क़ब्ज़ा कर लिया है। अब दुनिया का इख़्तेयार तुम्हारे ऊपर आख़ेरत से ज़्यादा है और वह आक़बत से ज़्यादा तुम्हें खींच रही है। तुम दीने ख़ुदा के एतबार से भाई-भाई थे। लेकिन तुम्हें बातिन की ख़बासत और ज़मीर की ख़राबी ने अलग-अलग कर दिया है के अब न किसी का बोझ बटाते हो, न नसीहत करते हो, न एक दूसरे पर ख़र्च करते हो और न एक दूसरे से वाक़ेअन मोहब्बत करते हो। आखि़र तुम्हें क्या हो गया है के मामूली सी दुनिया को पाकर ख़ुश हो जाते हो और मुकम्मल आख़ेरत से महरूम होकर रन्जीदा नहीं होते हो, थोड़ी सी दुनिया हाथ से निकल जाए तो परेशान हो जाते हो और इसका असर तुम्हारे चेहरों से ज़ाहिर हो जाता है और इसकी अलाहेदगी पर सब्र नहीं कर पाते हो जैसे वही तुम्हारी मन्ज़िल है और जैसे इसका सरमाया वाक़ई बाक़ी रहने वाला है। तुम्हारी हालत यह है के कोई शख़्स भी दूसरे के ऐब के इज़हार से बाज़ नहीं आता है मगर सिर्फ़ इस ख़ौफ़ से के वह भी इसी तरह पेश आएगा। तुम सबने आख़ेरत को नज़रअन्दाज़ करने और दुनिया की मोहब्बत पर इत्तेहाद कर लिया है और हर एक का दीन ज़बान की चटनी बनकर रह गया है। ऐसा लगता है के जैसे सबने अपना अमल मुकम्मल कर लिया है और अपने मालिक को वाक़ेअन ख़ुश कर लिया है।

114-आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा

(जिसमें लोगों की नसीहत का सामान फ़राहम किया गया है)

सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसने हम्द को नेमतों से और नेमतों को शुक्रिया से मिला दिया है। हम नेमतों में इसकी हम्द उसी तरह करते हैं जिस तरह मुसीबतों में करते हैं और उससे इस नफ़्स के मुक़ाबले के लिये मदद के तलबगार हैं जो अम्र की तामील में सुस्ती करता है और नवाही की तरफ़ तेज़ी से बढ़ जता है। उन तमाम ग़लतियों के लिये अस्तग़फ़ार करते है। जिन्हें इसके इल्म ने अहाता कर रखा है और उसकी किताब ने जमा कर रखा है। इसका इल्म क़ासिर नहीं है और इसकी किताब कोई चीज़ छोड़ने वाली नहीं है। हम उस पर इसी तरह ईमान लाए हैं जैसे ग़ैब का मुशाहेदा कर लिया हो और वादा से आगाही हासिल कर ली हो। हमारे इस ईमान के इख़लास ने शिर्क की नफ़ी की है और इसके यक़ीन ने शक का एज़ाला किया है। हम गवाही देते हैं के इसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है। वह एक है उसका कोई शरीक नहीं है और हज़रत मोहम्मद (स0) इसके बन्दे और रसूल हैं। यह दोनों शहादतें वह हैं जो अक़वाल को बलन्दी देती हैं और आमाल को रफ़अत अता करती हैं। जहां यह रख दी जाएं वह पल्ला हल्का नहीं होता है और जहां से उन्हें उठा लिया जाए उस पल्ले में कोई वज़न नहीं रह जाता है।

अल्लाह के बन्दों! मै। तुम्हें तक़वाए इलाही की वसीअत करता हूँ जो तुम्हारे लिये ज़ादे राह है और इसी पर आख़ेरत का दारोमदार है। यही ज़ादेराह मन्ज़िल तक पहुँचाने वाला है और यही पनाहगाह काम आने वाली है। उसी की तरफ़ सबसे बेहतर दाई ने दावत दे दी है और उसे सबसे बेहतर सुनने वाले ने महफ़ूज़ कर लिया है। चुनांचे उसके सुनाने वाले ने सुना दिया और उसके महफ़ूज़ करने वाले ने कामयाबी हासिल कर ली।

अल्लाह के बन्दों! इसी तक़वाए इलाही ने औलियाए ख़ुदा को मोहर्रमात से बचाकर रखा है और इनके दिलों में ख़ौफ़े ख़ुदा को लाज़िम कर दिया है यहाँ तक के इनकी रातें बेदारी की नज़र हो गईं और इनके यह तपते हुए दिन प्यास में गुज़र गए। उन्होंने राहत को तकलीफ़ के एवज़ और सेराबी को प्यास के ज़रिये हासिल किया है वह मौत को क़रीबतर समझते हैं तो तेज़ अमल करते हैं और उन्होंने उम्मीदों को झुठला दिया है तो मौत को निगाह में रखा है, फिर यह दुनिया तो बहरहाल फ़ना और तकलीफ़ तग़य्युर और इबरत का मक़ाम है। फ़ना ही का नतीजा है के ज़माना हर वक़्त अपनी कमान चढ़ाए रहता है के इसके तीर ख़ता नहीं करते हैं और इसके ज़ख़्मों का इलाज नहीं हो पाता है। वह ज़िन्दा को मौत से, सेहतमन्द को बीमारी से और निजात पाने वाले को हलाकत से मार देता है। इसका खाने वाला सेर नहीं होता है और पीने वाला सेराब नहीं होता है। और इसके रन्ज व ताब का असर यह है के इन्सान अपने खाने का सामान फ़राहम करता है, रहने के लिये मकान बनाता है और उसके बाद अचानक ख़ुदा की बारगाह की तरफ़ चल देता है। न माल साथ ले जाता है और न मकान मुन्तक़िल हो पाता है। इसके तग़य्युरात का हाल यह है के जिसे क़ाबिले रहम देखा था वह क़ाबिले रश्क हो जाता है और जिसे क़ाबिले रष्क देखा था वह क़ाबिले रहम हो जाता है। गोया एक नेमत है जो ज़ाएल हो गई और एक बला है जो नाज़िल हो गई। इसकी इबरतों की मिसाल यह है के इन्सान अपनी उम्मीदों तक पहुंचने वाला ही होता है के मौत इसके सिलसिले को क़ता कर देती है और न कोई उम्मीद हासिल होती है और न उम्मीद करने वाला ही छोड़ा जाता है। ऐ सुबहानल्लाह- इस दुनिया की ख़ुशी भी क्या धोका है और इसकी सेराबी भी कैसी तष्नाकामी है और इसके साये में भी किस क़द्र धूप है, न यहाँ आने वाली मौत को वापस किया जा सकता है और न किसी जाने वाले को पलटाया जा सकता है। सुबहानल्लाह ज़िन्दा मुर्दे से किस क़द्र जल्दी मुलहक़ होकर क़रीबतर हो जाता है और मुर्दा ज़िन्दा से रिश्ता तोड़कर किस क़द्र दूर हो जाता है। (याद रखो) शर से बदतर कोई शै इसके अज़ाब के अलावा नहीं है और ख़ैर से बेहतर कोई शै उसके सवाब के सिवा नहीं है। दुनिया में हर शै का सुनना उसके देखने से अज़ीमतर होता है और आख़ेरत में हर शै का देखना उसके सुनने से बढ़-चढ़ कर होता है। लेहाज़ा तुम्हारे लिये देखने के बजाय सुनना और ग़ैब के मुशाहिदे के बजाय ख़बर ही को काफ़ी हो जाना चाहिए। याद रखो के दुनिया में किसी शै का कम होना और आख़ेरत में ज़्यादा होना इससे बेहतर है के दुनिया में ज़्यादा हो और आख़ेरत में कम हो जाए के कितने ही कम वाले फ़ायदे में रहते हैं और कितने ही ज़्यादती वाले घाटे में रह जाते हैं। बेशक जिन चीज़ों का तुम्हें हुक्म दिया गया है उनमें ज़्यादा वुसअत है ब निस्बत उन चीज़ों के जिनसे रोका गयाहै और जिन्हें हलाल किया गया है वह उनसे कहीं ज़्यादा हैं जिन्हें हराम क़रार दिया गया है। लेहाज़ा क़लील को कसीर के लिये और तंगी को वुसअत की ख़ातिर छोड़ दो। परवरदिगार ने तुम्हारे रिज़्क़ की ज़िम्मेदारी ली है और अमल करने का हुक्म दिया है लेहाज़ा ऐसा न हो के जिसकी ज़मानत ली गई है इसकी तलब उससे ज़्यादा हो जाए जिसको फ़र्ज़ किया गया है। ख़ुदा गवाह है के तुम्हारे हालात को देख कर यह शुबह होने लगता है और ऐसा लगता है के शायद जिस की ज़मानत ली गई है वही तुम पर वाजिब किया गया है और जिसका हुक्म दिया गया है उसी को साक़ित कर दिया गया है। ख़ुदारा अमल की तरफ़ सबक़त करो और मौत के अचानक वारिद हो जाने से डरो इसलिये के मौत के वापस होने की वह उम्मीद नहीं है जिस क़द्र रिज़्क़ के पलट कर आ जाने की है। जो रिज़्क़ आज हाथ से निकल गया है उसके कल इज़ाफ़े का इमकान है लेकिन जो उम्र आज निकल गई है उसके कल वापस आने का भी इमकान नहीं है। उम्मीद आने वाले की हो सकती है जाने वाले की नहीं। इससे तो मायूसी ही हो सकती है “अल्लाह से इस तरह डरो जो डरने का हक़ है और ख़बरदार उस वक़्त तक दुनिया से न जाना जब तक वाक़ेई मुसलमान न हो जाओ।”

ख़दीजा को मिला बेटी , नबी को बिज़अतो मिन्नी

हुई तकमीले तबलीग़े अमल तन्ज़ीमे ईमां में

रिसालत आमदे ज़हरा पा , यह एलान करती है

करेंगी फातेमा (स.अ) , कारे रिसालत सिन्फ़े निस्वां में

जलवा नुमा ए शम्मे हक़ीक़त हैं फातेमा।

आइना ए कमाले नबूवत हैं , फातेमा।।

यह मानता हूं इनको रिसालत नहीं मिली।

लेकिन , शरीके कारे रिसालत हैं फातेमा।।

हज़रत फातेमा (स.अ) , पैग़म्बरे इस्माल हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) और जनाबे ख़दीजातुल कुबरा की इक लौती बेटी हज़रत अली अ 0 की रफ़ीक़ा ए हयात और इमाम हसन (अ.स.) व इमामे हुसैन (अ.स.) जनाबे ज़ैनब व उम्मे कुलसूम की मादरे गिरामी और नौ , ( 9) इमामों की जद्दे माजेदा थीं। आपकी मशहूर कुन्नियत उम्ममुल आइम्मा , उम्मुल हसनैन और इमाम अल सिबतैन थी। मशहूर अलक़ाब ज़हरा व सय्यातुलनिस्सां थे। एक रवायत में है कि आपकी कुन्नियत उम्मे अबीहा भी थी जो मेरे नज़दीक़ यह उम्मे इब्नीहा है यानी हसन व हुसैन की माँ।

आप की विलादत

आप का नूरे वजूद नूरे रिसालत (स अ व व ) के साथ ख़िलक़ते कायनात से बहुत पहले पैदा हो चुका था। अलबत्ता आपके ज़ाहिरी नमूद व शहूद के लिए उलमा ने लिखा है कि आप मेराजे रिसालत मआब (स अ व व ) के बाद 5 बैअसत में तारीख़ 20 जमादुस्सानी जुमे के दिन मक्का मोअज़्ज़मा में पैदा हुईं। आप का साले विलादत आमुल फ़ील के लिहाज़ से 46 और इसवी नुक़ताये निगाह से 614, 615 ई 0 था। आपकी विलादत के वक़्त जन्नत से हूरों और आसिया बिन्ते मज़ाहम , मरयम बिन्ते इमरान , सफ़ूरा बिन्ते शुऐब , कुल्सूम हमशीरा ए , मूसा का आना किताबों से साबित है। जनाबे ख़दीजा का बयान है कि चूंकि मैंने अपने क़बीले के मनशा के बर ख़िलाफ़ सरवरे काएनात से शादी कर ली थी , इस लिए मेरी क़ौम ने मेरा बाईकाट कर दिया था। मैंने विलादत के वक़्त हसबे दस्तूर इत्तेला दी लेकिन कोई न आया। अल्लाह की रहमत शामिले हाल हुई , हूरों और पाक बीबीयों ने क़ाबला और दाया का काम किया बच्ची पैदा हुई। हुज्जतुल आलमीन का घर बुक़्क़ा ए नूर बन गया।

(तारीख़े ख़मीस जिल्द 1 स. 313 व दम ए साक़ेबा पृष्ठ 53 )

आप का इकलौती बेटी होना

मुनाक़िब इब्ने शहर आशोब में है कि जनाबे ख़दीजा के साथ जब आं हज़रत (स अ व व ) की शादी हुई तो आप बाकरह थीं। यह तसलीम शुदा अमर है कि क़ासिम अब्दुल्ला यानी तैय्यब व ताहिर और फातेमा ज़हरा बतने ख़दीजा से रसूले इस्लाम की औलाद थीं। इस में इख़्तेलाफ़ है कि ज़ैनब , रूक़य्या , उम्मे कुल्सूम , आं हज़रत की लड़कियां थीं या नहीं , यह मुसल्लम है कि यह लड़कियां ज़हूरे इस्लाम से क़ब्ल काफ़िरों अतबा , पिसराने अबू लहब और अबू आस , इब्ने रबी के साथ ब्याही थीं। जैसा कि मवाहिबे लदुनिया जिल्द 1 स. 197 मुद्रित मिस्र व मुरव्वज उज ज़हब मसूदी जिल्द 2 स. 298 मुद्रित मिस्र से वाज़े है। यह माना नहीं जा सकता कि रसूले इस्लाम अपनी लड़कियों को काफ़रों के साथ ब्याह देते। लेहाज़ा यह माने बग़ैर चारा नहीं है कि यह औरतें हाला बिन्ते ख़वैला हमशीर जनाबे ख़दीजा की बेटियां थीं। इन के बाप का नाम अबू लहनद था। जैसा कि अल्लामा मोतमिद बदख़शानी ने मरजा उल अनस , में लिखा है। यह वाक़ेया है कि यह लड़कियां ज़माना ए कुफ़्र में हाला और अबू लहनद में बाहमी चपकलिश की वजह से जनाबे ख़दीजा के ज़ेरे केफ़ालत और तहते तरबीयत रहीं और हाला के मरने के बाद मुतलक़न उन्हीं के साथ हो गईं और ख़दीजा की बेटी कहलाईं। इसके बाद बा ज़रिया ए जनाबे ख़दीजा आं हज़रत से मुनसलिक हो कर उसी तरह रसूल (स अ व व ) की बेटियां कहलाईं। जिस तरह जनाबे ज़ैद मुहावरा अरब के मुताबिक़ रसूल के बेटे कहलाते थे। मेरे नज़दीक इन औरतों के शौहर मुताबिक़ दस्तूरे अरब के मुताबिक़ दामादे रसूल कहे जाने का हक़ रखते हैं। यह किसी तरह नहीं माना जा सकता कि रसूल की सुलबी बेटियां थीं क्यों कि हुज़ूरे सरवरे आलम (स अ व व ) का निकाह जब बीबी ख़दीजा से हुआ था तो आपके ऐलाने नबूवत से पहले इन लड़कियों का निकाह मुशरिकों से हो चुका था और हुज़ूर सरकारे दो आलम का निकाह 25 साल के सिन में ख़दीजा से हुआ और 30 साल तक कोई औलाद नहीं हुई और चालीस साल के सिन में आपने ऐलाने नबूवत फ़रमाया और इन लड़कियों का निकाह मुशरिक़ों से आप की चालीस साल की उम्र से पहले हो चुका था , और इस दस साल के अर्से में आपके फ़रज़न्द का भी पैदा होना और तीन लड़कियों का पैदा होना तहरीर किया गया है। जैसा कि मदारिज अल नबूवत में तफ़सील मौजूद है। भला ग़ौर तो कीजिए की दस साल की उमर में चार , पांच औलादें भी पैदा हो गईं और इतनी उमर भी हो गई के निकाह मुशरिक़ों से हो गया। क्या यह अक़ल व फ़हम में आने वाली बात है कि चार साल की लड़कियों का निकाह मुशरिक़ों से हो गया और हज़रत उस्मान से भी एक लड़की का निकाह हालते शिर्क ही में हो गया। जैसा कि मदारिज अल नबूवत में मज़कूर है। इस हक़ीक़त पर ग़ौर करने से मालूम होता है कि लड़कियां हुज़ूर की न थीं बल्कि हाला ही की थीं और इस उम्र में थीं कि इनका निकाह मुशरिक़ों से हो गया था।

(सवानेह हयाते सैय्यदा पृष्ठ 34 )

बचपन और तरबीयत

जनाबे सैय्यदा (स.अ) में बचपन के वह आसार ही न थे जो आम लड़कियों में हुआ करते हैं। उम्मे सलमा से कहा गया कि फातेमा को ऊसूले तहज़ीब सीखायें। उन्होंने जवाब दिया कि मैं मुजस्समाये अस्मत व तहारत को अख़लाक़ व आदात की क्या तालीम दे सकती हूं। मैं तो ख़ुद इस कमसीन बच्ची से तालीमें उसूम हासिल किया करती हूं। किताबों से मालूम होता है कि आपका सारा बचपन इबादत और ख़िदमते वालदैन में गुज़रा। एक मरतबा आं हज़रत (स अ व व ) सहने काबा में नमाज़ अदा फ़रमा रहे थे कि अबू जहल जो हज़रत उमर का मामू था।(तारीख़े इस्माल जिल्द 2 पृष्ठ 20 ) की नज़र आप पर पड़ी तो उसने हालते सजदे में ऊंट की औझड़ी गोबर भरी पुश्ते हुज़ूर पर रख दी , फातेमा को ख़बर मिली , आप दौड़ी हुई आयीं और पुश्ते रिसालत से औझड़ी हटा दी और पुश्ते मुबारक को पानी से धोया। रसूले अकरम (स अ व व ) ने फ़रमाया , बेटी एक दिन दुश्मन भी मग़लूब होंगे और ख़ुदा मेरे दीन को इन्तेहाईं बुलन्द करेगा। तारीख़ में है कि ख़दीजा (स.अ) किसी शादी में जाने को तैय्यार हुईं और कपड़े पहन्ने लगीं तो पता चला कि जनाबे सैय्यदा के लिए कपड़े नहीं हैं , मां इसी तरद्दुद में थी कि बेटी को एहसास हो गया , अर्ज़ कि मादरे गिरामी मैं पुराने कपड़े में ही चलूंगी , क्यों कि बाबा जान फ़रमाते हैं कि मुसलमान लड़कियों का सब से बेहतर ज़ेवर हयाते तक़वा है और बेहतरीन अराईश शर्म व हया है।

फातेमा ज़हरा (स.अ) का सारा बचपन फ़क़्र फ़ाक़ा और तंगी व मसाएब में गुज़रा। आपको जिन हज़रात से तालीम मिली वह यह हैं। 1.ख़दीजातुल कुबरा , 2. सरवरे काएनात (स अ व व ) , 3. फातेमा बिन्ते असद , 4. उम्मे अफ़ज़ल ज़ौजा ए अब्बास , 5. असमा बिन्ते उमैस ज़ौजा जाफ़रे तैय्यार , 6. उम्मे हानी हम्शीरा जनाबे अबू तालिब अ 0, 7 उम्मे ऐमन , 8. सफ़िया बिन्ते जनाबे हमज़ा।

मदारिजुल नबूवत में है कि हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) जनाबे सैय्यदा को जब कि वह कमसिन थी अकसर अपनी आग़ोश में बिठा लिया करते थे और उन के होठों को बोसा देते थे। इस पर हज़रत आयशा ने कहा कि जनाबे फातेमा के बोसे देते हैं और अपनी ज़बान उनके मुंह में देते हैं , हुज़ूर ने इरशाद फ़रमाया तुम्हें मालूम नहीं जब मैं मेराज पर गया था जिबरईल ने एक सेब जन्नत में दिया था , मैंने उसे खाया था और इसी से फातेमा का नुतफ़ाये वुजूद क़ायम हुआ था। ऐ आयशा जब मैं जन्नत का मुशताक़ होता हूं तो फातेमा (स.अ) की ख़ुशबू सूंघता हूं और दहने फातेमा से मेवा ए जन्नत का लुत्फ़ उठाता हूं।

(मदारिज 1 पृष्ठ 192 )

आपकी इस्मत

इस्मत कोई ऐसी सिफ़त नहीं जो किसी अमल पर मौक़ूफ़ हो , यह ख़ुदा का अतीया होता है और बदो फ़ितरत में अता हुआ करता है। मलाएक अम्बिया और औसिया ख़ास के अलावा यह पाकीज़ा सिफ़त जिन अहम शख़्सियतों को अता हुई उनमें हज़रत फातेमा(स . अ) को ख़ास हैसीयत हासिल है। उलमा का इत्तिफ़ाक़ है कि जिस तरह एक लाख चौबीस हज़ार अम्बिया और बारह इमाम दुनिया में हिदायते ख़ल्क़ के लिए भेजे गये और सब मासूम थे इसी तरह सिनफ़े नाज़ुक़ के लिए हज़रत मरयम (स अ) हज़रत फातेमा ज़हरा (स अ) तशरीफ़ लायीं और यह दोनों बीबीयां मासूम थीं और दोंनो की इस्मत पर क़ुरआन गवाह है।

आप की वालेदा की वफ़ात

आपकी वालेदा जनाबे ख़दीजातुल कुबरा थीं हज़रत फातेमा (स.अ) को पांच साल मां की आग़ोश में तरबीयत नसीब रही। जनाबे ख़दीजा की अलालत से जनाबे सैय्यदा को बेहद दुख हुआ। आप इनकी तीमारदारी में रात और दिन लगी रहती थी और उनके चेहरे पर नज़र जमाए उन्हीं को देखा करती थीं। मां का चेहरा बहाल देखा तो ख़ुश हो गयीं। मां की शकल पज़मुर्दा देखी तो रंजीदा हो गयीं। यही तरज़े अमल रहा कि एक दिन ख़दीजा (स.अ) ने फातेमा (स.अ) को अपने सीने से लगाया और फूट फूट कर रोने लगीं। बेटी ने पूछा- अम्मा जाना आपके रोने का अन्दाज़ कुछ निराला है फ़रमाया- बेटी ! मैं तुझसे रूख़सत हो रही हूं , अफ़सोस तुझे दुल्हन न देख सकी। मां बेटी में अलमनाक बात चीत हो रही थी कि माथे पर मौत का पसीना आ गया और ख़दीजा (स.अ) 10 रमज़ान 10 बेअसत को इन्तेक़ाल फ़रमा गयीं मौत के वक़्त आपकी उम्र 65 साल की थी। आप को मक़बरा ए हज़ून में दफ़्न किया गया। ख़दीजा (स.अ) के इन्तेक़ाल से फातेमा (स.अ) को इन्तेहाई दुख हुआ और आप से ज़्यादा सरवरे कायनात (स अ व व ) को दुख हुआ। इसी वजह से आपने इस साल को आम उल हुज़्न कहा है।

सही बुख़ारी जिल्द 3 पृष्ठ 419 में है कि आं हज़रत (स अ व व ) जनाबे ख़दीजा की याद में गोसफ़न्द (बकरा) ज़िब्ह कर के उनकी सहेलियों के पास भेजा करते थे। एक मरतबा हज़रत आयशा ने कहा कि उस बूढ़ी औरत को जिस के मुंह में दांत भी न थे। कब तक याद करते रहेंगे यह सुन कर आं हज़रत (स अ व व ) ग़ज़ब नाक हो गये और फ़रमाया कि इससे बेहतर मुझे कोई औरत नसीब नहीं हुई। वह उस वक़्त ईमान लायीं जब कि सब काफ़िर थे और वक़्त मेरे लिये माल ख़र्च किया जब लोग महरूम करना चाहते थे। हयात अल क़ुलूब में है हज़रत अबूतालिब और उनके तीन दिन बाद हज़रत ख़दीजा का इन्तेक़ाल हुआ था।

हिजरते फातेमा (स.अ)

10 बेसत जुमे की रात यकुम रबीउल अव्वल को आं हज़रत (स अ व व ) ने हिजरत फ़रमाई और 16 रबीउल अव्वल जुमे के दिन को दाख़िले मदीना हुए। वहां पहुंचने के बाद आपने ज़ैद बिन हारेसा और अबू राफ़ये को 5 सौ दिरहम और दो ऊंट दे कर मक्का की तरफ़ रवाना किया कि हज़रत फातेमा , फातेमा बिन्ते असद , उम्मुल मोमिनीन सौदा , उम्मे ऐमन वग़ैरा को ले आए। चुनान्चे यह बीबीयां चन्द दिनों के बाद मदीना पहुंच गयीं आप के अक़्द में उस वक़्त सिर्फ़ दो बीबीयां थीं। एक सौदा और दूसरी आयशा। 2 हिजरी में आप (स अ व व ) ने उम्मे सलमा से अक़्द किया। उम्मे सलमा ने निगहदाश्ते फातेमा (स.अ) का बीड़ा उठाया और इस अन्दाज़ से ख़िदमत गुज़ारी की कि फातेमा ज़हरा (स.अ) से मां को भुला दिया।

हज़रत फातेमा ज़हरा (स.अ) की शादी

पैग़म्बरे इस्लाम (स अ व व ) ने अली अ 0 की विलादत के वक़्त अली को ज़बान दे दी थी और बाद में फ़रमाया था कि मेरी बेटी का कफ़ू ख़ाना ज़ादे ख़ुदा के कोई नहीं हो सकता। (नूरूल अनवार सहीफ़ाये सज्जादिया) हालात का तक़ाज़ा और नसबी वा ख़ानदानी शराफ़त का मुक़तज़ा यह था कि फातेमा की ख़्वास्तगारी के सिलसिले में अली के सिवा किसी का तज़किरा तक न आता लेकिन किया क्या जाए कि दुनिया इस एहमियतक को समझने से क़ासिर रही है। यही वजह है कि फातेमा (स.अ) के सिने बुलूग़ तक पहुंचते ही लोगों के पैग़ामात आने लगे। सब से पहले अबू बकर ने फिर हज़रत उमर ने ख़्वास्गारी की और इनके बाद अब्दुर रहमान ने पैग़ाम भेजा। हज़राते शेख़ैन के जवाब में रहमतुल लिल आलेमीन (स अ व व ) ग़ज़बनाक हुए और उनकी तरफ़ से मुंह फेर लिया।

(कन्ज़ुल आमाल जिल्द 7 पृष्ठ 113)

और अब्दुर रहमान से फ़रमाया कि फातेमा की शादी हुक्मे ख़ुदा से होगी तुम ने जो महर की ज़्यादती का हवाला दिया है वह अफ़सोस नाक है। तुम्हारी दरख़्वास्त क़ुबूल नहीं की जा सकती।

(बिहारुल अनवार जिल्द 10 पृष्ठ 14)

इसके बाद हज़रत अली अ 0 ने दरख़्वास्त की तो आप (स अ व व ) ने फातेमा (स.अ) की मरज़ी दरयाफ़्त फ़रमाई , वह चुप ही रहीं यह एक तरह का इज़हारे रज़ामन्दी था।

(सीरतुल अल नबी जिल्द 1 पृष्ठ 26 )

बाज़ उलमा ने लिखा है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने ख़ुद अली अ 0 से फ़रमाया कि ऐ अली अ 0 मुझे ख़ुदा ने फ़रमाया है कि अपने लख़्ते जीगर का अक़्द तुम से करूं क्या तुम्हें मनज़ूर है ? अर्ज़ की जी हां ! इसके बाद शादी हो गयी।

(रेयाज़ अल नज़रा जिल्द 2 पृष्ठ 184 प्रकाशित मिस्र)

अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि पैग़ाम महमूद नामी एक फ़रिश्ता ले कर आया था।

(बिहारूल अनवार जिल्द 1 पृष्ठ 35 )

बाज़ उलमा ने जिबरील का हवाला दिया है। ग़रज़ हज़रत अली (अ.स) ने 500 दिरहम में अपनी ज़िरह उस्मान ग़नी के हाथों बेची और इसी को महर क़रार दे कर बातारीख़ 1 ज़िलहिज 2 हिजरी हज़रत फातेमा ज़हरा (स.अ) के साथ निकाह किया

जनाबे सैय्यदा का जहेज़

निकाह के थोड़े समय बाद 24 ज़िल हिज को हज़रत सैय्यदा की रूख़सती हुई सरवरे काएनात (स अ व व ) ने अपनी इकलौती चहीती बेटी को जो जहेज़ दिया उसकी तफ़सील यह है।

1.एक कमीज़ क़ीमती सात दिरहम ,

2. एक मक़ना ,

3. एक सियाह कम्बल ,

4. एक बिस्तर खजूर के पत्तों का बना हुआ ,

5. दो मोटे टाट ,

6. चमड़े के चार तकिये ,

7. आटा पीसने की चक्की ,

8. कपड़ा धोने की लगन ,

9. एक मशक ,

10. लकड़ी का बादिया ,

11. खजूर के पत्तों का बना हुआ एक बरतन ,

12. दो मिट्टी के आब ख़ोरे ,

13. एक मिट्टी की सुराही ,

14. चमड़े का फ़र्श ,

15. एक सफ़ेद चादर ,

16. एक लोटा।

यह ज़ाहिर है कि रसूल (स अ व व ) आला दरजे का जहेज़ दे सकते थे मगर अपनी उम्मत के ग़ुरबा के ख़्याल से इसी पर इक़तेफ़ा फ़रमाया।

जुलूसे रूख़सत

खाने पीने के बाद जुलूस रवाना हुआ। अशहब नामी नाक़ा पर हज़रत फातेमा (स.अ) सवार थीं। सलमान सारबान थे , अज़वाजे रसूल नाक़े के आगे आगे थीं , बनी हाशिम नंगी तलवारे लिये हुए थे , मस्जिद का तवाफ़ कराया और अली अ 0 के घर में फातेमा (स.अ) को उतार दिया इसके बाद आं हज़रत (स अ व व ) ने फातेमा (स.अ) से एक बरतन में पानी मंगाया और कुछ दुआयें दम कीं और उसे फातेमा और अली के सर सीने और बाज़ू पर छिड़का और बरगाहे अहदीयत में अर्ज़ की बारे इलाह इन्हें और इनकी औलादों को शैतान रजीम से तेरी पनाह में देता हूं।

(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 84 )

इसके बाद फातेमा (स.अ) से कहा देखो अली से बेजा सवाल न करना। यह दुनियां में सब से आला और अफ़ज़ल है लेकिन दौलत मन्द नहीं है। अली से कहा कि यह मेरे जिगर का टुकड़ा है कोई ऐसी बात न करना कि उसे दुख हो।

तज़किरा ए अलख़्वास सिब्ते इब्ने जौज़ी के पृष्ठ 365 में है कि फातेमा के साथ जिस वक़्त अली की शादी हुई उन के घर में एक चमड़ा था , रात को बिछाते थे और दिन में उस पर ऊंट को चारा दिया जाता था।

हज़रत फातेमा (स.अ) का निज़ामे अमल

शौहर के घर जाने के बाद आप ने जिस निज़ामे ज़िन्दगी का नमूना पेश किया वह तबक़ा ए निसवां के लिए एक मिसाली हैसीयत रखता है। आप घर का तमाम काम अपने हाथों से करती थीं। झाड़ू देना , खाना पकाना , चरख़ा कातना , चक्की पीसना और बच्चों की तरबीयत करना यह सब काम और अकेली सय्यादा ए आलम , लेकिन न कभी तेवरी पर बल आते थे और न कभी शौहर से मददगार न ख़ादमा की फ़रमाईश की। फिर जब 7 हिजरी में पैग़म्बरे ख़ुदा (स अ व व ) ने एक ख़ादमा अता की जो फ़िज़्ज़ा के नाम से मशहूर हैं , तो रसूल अल्लाह (स अ व व ) की हिदायत के अनुसार सैय्यदाए आलम फ़िज़्ज़ा के साथ एक कनीज़ का सा नहीं , बल्कि एक अज़ीज़ रफ़ीक़ कार जैसा बरताव करती थीं और एक दिन घर का काम ख़ुद करती थीं। दरअस्ल यह मसावाते मोहम्मदी की आला मिसाल हैं।

(सैय्यदा की अज़मत , मुसन्नेफ़ मौलाना कौसर नियाज़ पृष्ठ 5 )

फातेमा (स.अ) और पर्दा

आप ने औरतों की मेराज पर्दादारी को बताया है और ख़ुद भी हमेशा इस पर आमिल रही हैं और इतनी सख़्ती के साथ कि मस्जिदे रसूल (स अ व व ) बिल्कुल मुतास्सिल क़याम रखने और मस्जिद के अन्दर घर का दरवाज़ा होने के बावजूद कभी अपने वालिदे बुज़ुर्गवार के पीछे नमाज़े जमाअत में शिरकत या आपके मौवाएज़ के सुनने के लिए भी मस्जिद में तशरीफ़ नहीं लाईं। एक मरतबा पैग़म्बर (स अ व व ) ने मिम्बर पर यह सवाल पेश फ़रमा दिया कि औरत के लिये सब से बेहतर क्या चीज़ है ? यह बात जनाबे सैय्यदा (स.अ) तक पहुंची , आपने जवाब दिया , औरत के लिये सब से बेहतर यह बात है कि न इसकी नज़र किसी ग़ैर मर्द पर पड़े और न किसी ग़ैर मर्द की नज़र उस पर पड़े। रसूल (स अ व व ) के सामने यह जवाब पेश हुआ आपने फ़रमाया , क्यों न हो फातेमा मेरा ही एक जुज़ है।

जनाबे सैय्यदा (स.अ) का जिहाद

इस्लाम में औरत का जिहाद मर्द से अलग है इस लिए सैय्यदा (स.अ) ने कभी मैदाने जंग में क़दम नहीं रखा मगर रसूल (स अ व व ) जब कभी ज़ख़्मी हो कर घर वापस तशरीफ़ लाते थे तो पैग़म्बर (स अ व व ) के ज़ख़्मों को धुलाने वाली , और अली अ 0 जब ख़ून में डूबी तलवार ले कर आते थे तो उनकी तलवार को साफ़ करने वाली फातेमा ज़हरा ही होती थीं। एक मरतबा नुसरते इस्लाम के लिए मैदान में गईं मगर उस पुर अमन मामले में जो नसारा के मुक़ाबले में हुआ था और जिस में सिर्फ़ रूहानी फ़तेह का सवाल था। इस जिहाद का नाम मुबाहेला है और इस में पर्दा दारी के तमाम इमकानी तक़ाज़ों की पाबन्दी के साथ सैय्यदा ए आलम बाप बेटों और शौहर के बीच मरकज़ी हैसीयत रखती थी।

(वसाएल अल शिया जिल्द 3 पृष्ठ 61 )

हज़रत फातेमा (स.अ) और उमूरे ख़ानादारी

औरतों का ज़ौहरे ज़ाती शौहरों की ख़िदमत और अमूर ख़ाना दरी में कमाल हासिल करना है। फातेमा ज़हरा (स.अ) ने अली (अ.स) की ऐसी ख़िदमत की कि मुश्किल से इसकी मिसाल मिल सकेगी। हर मुसीबत और तकलीफ़ में फ़रमा बरदारी पर नज़र रखी और अगर मैं यह कहूं तो बेजा न होगा कि जिस तरह ख़दीजा (स.अ) ने इस्लाम और पैग़म्बरे इस्लाम की ख़िदमत की , इसी तरह बिन्ते रसूल (स.अ) ने इस्लाम और अली अ 0 की ख़िदमत की , यही वजह है कि जिस तरह रसूले करीम (स अ व व ) ने ख़दीजा (स.अ) की मौजूदगी में दूसरा अक़्द नहीं किया हज़रत अली अ 0 ने भी फातेमा (स.अ) की मौजूदगी में दूसरा अक़्द नहीं किया।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 85 व मुनाक़िब पृष्ठ 8 ) हज़रत अली अ 0 से किसी ने पूछा के फातेमा (स.अ) आप की नज़र में कैसी थीं ? फ़रमाया ख़ुदा की क़सम वह जन्नत का फूल थीं। दुनियां से उठ जाने के बाद मेरा दिमाग़ उनकी ख़ुशबू से मुअत्तर है।

उमूरे ख़ानदानी में जनाबे सैय्यदा आप ही अपनी नज़र थीं। 7 हिजरी तक आप के पास कोई कनीज़ न थी। कनीज़ न होने की सूरत में घर का सारा काम ख़ुद करती थीं , झाड़ू देती थीं , पानी भरती , चक्की पीसती थीं , आटा छानती थीं , आटा गुंधती थी , तनूर जलाकर रोटी पकाती थीं। हज़रत अली (अ.स) सवेरे उठ कर मस्जिद चले जाते थे और वहां से मज़दूरी की फ़िक्र में लग जाते थे। फ़िज़्ज़ा के आ जाने के बाद काम बांट लिया गया था। बल्कि बारी बांट ली थी। एक दफ़ा सरकारे दो आलम (स अ व व ) ख़ाना ए सैय्यदा स. में तशरीफ़ लाये। देखा कि सैय्यदा गोद में बच्चे को लिये चक्की पीस रही हैं , फ़रमाया बेटी एक काम फ़िज़्ज़ा के हवाले कर दो। अर्ज़ की बाबा जान ! आज फ़िज़्ज़ा की बारी का दिन नहीं है।

(मनाक़िब पृष्ठ 14 )

हज़रत फातेमा (स.अ) और बाहम गुज़ारदारी ज़ौजा व ख़ावन्द

हज़रत इमाम मूसा काज़िम अ 0 इरशाद फ़रमाते हैं कि जिहाद अल मरअतल हसन अल तबअल , औरत का जिहाद शौहर के साथ हुस्ने सुलूक है।(वसाएल एल शिया जिल्द 12 पृष्ठ 116 ) एक हदीस में है कि , ला तूदी अलमुरतह हक़ अल्लाह हत्ती तूदी हक़ ज़ौजह , औरत अगर ख़ावन्द का हक़ अदा नहीं करती तो समझ लेना चाहिए कि वह अल्लाह ते हुक़ूक़ भी अदा नहीं कर सकती।

(मकारिमुल अख़लाक़ पृष्ठ 247 )

रसूले करीम (स अ व व ) फ़रमाते हैं कि अगर ख़ुदा के अलावा किसी को सज्दा जाएज़ होता तो मैं औरतों को हुक्म देता कि अपने शौहरों को सज्दा करें।

(वसाएल जिल्द 14 पृष्ठ 114 )

हज़रत फातेमा (स.अ) हुक़ूक़े ख़ावन्द से जिस दर्जा वाक़िफ़ थीं कोई भी वाक़िफ़ न थी। उन्होंने हर मौक़े पर अपने शौहर हज़रत अली (अ.स) का लिहाज़ व ख़्याल रखा। उन्होंने कभी उन से कोई ऐसा सवाल नहीं किया जिसके पूरा करने से हज़रत अली अ 0 आजिज़ रहे हों। किताब रेयाहीन अल शरीअत में है कि एक मरतबा हज़रत फातेमा (स.अ) बीमार पड़ीं तो हज़रत अली अ 0 ने उनसे फ़रमाया कुछ खाने को दिल चाहता हो तो बताओ , हज़रत सैय्यदा ने अर्ज़ की किसी चीज़ को दिल नहीं चाहता। हज़रत अली अ 0 ने इसरार किया तो अर्ज़ की मेरे पदरे बुज़ुर्गवार ने मुझे हिदायत की है कि मैं आप से किसी चीज़ का सवाल न करूं मुम्किन है आप उसे पूरा न कर सके तो आप को दुख हो इस लिये मैं कुछ नहीं कहती। हज़रत अली (अ.स) ने जब क़सम दी तो अनार का ज़िक्र किया।

यह तारीख़ का मुसल्लेमा अमर है कि हज़रत अली अ 0 और हज़रत फातेमा (स.अ) में कभी किसी बात पर नाराज़गी नहीं हुई और दोनों ने बाहम दिगर ख़ुशगवार ज़िन्दगी गुज़ारी है।

सास बहू के ताअल्लुक़ात

फातेमा ज़हरा स. की शादी के वक़्त जनाबे फातेमा बिन्ते असद ज़िन्दा थीं। सास बहू के ताअल्लुक़ात अकसर बेशतर नाख़ुशगवार हो जाया करते हैं लेकिन फातेमा स. ने ऐसा दस्तूर और रवैया इख्तियार किया कि कभी भी ताअल्लुक़ात में तनाव पैदा न होने पाया। फातेमा बिन्ते असद के सिपुर्द दोस्त व रिश्तेदारों की मुलाक़ात , शादी और ग़मी में शिरकत वग़ैरा क़रार दिया और अपने ज़िम्मे अमूर ख़ानदारी मसलन चक्की पीसना , रोटी पकाना वग़ैरा रख लिया था। तारीख़ में इन दोनों की बाहमी कशीदगी का सुराग़ नहीं मिलता।

आपकी औलाद

आपके तीन बेटे और दो बेटियां पैदा हुईं। 15 रमज़ान 3 हिजरी को इमाम हसन अ 0 और 3 शाबान 4 हिजरी को इमाम हुसैन अ 0 और 5 जमादिल अव्वल 6 हिजरी में हज़रत ज़ैनब स. और 9 हिजरी में जनाबे उम्मे कुलसूम और 11 हिजरी में इस्तेक़ाते मोहसिन हुआ। उलमा ने लिखा है कि ज़ैनब का निकाह अब्दुल्लाह बिन जाफ़र और उम्मे कुलसूम का निकाह मोहम्मद बिन जाफ़र से हुआ था।

(इब्ने माजा अबू दाऊद , इब्ने हजर और असआफ़ उर राग़ेबीन बर हाशिया नूर उल अबसार पृष्ठ 80 मुद्रित मिस्र)

बारवायते सिब्ते इब्ने जौज़ी हज़रत ज़ैनब के बतन से औन व अब्दुल्लाह पैदा हुए और उम्मे कुलसूम ला वलद मरीं।

(तज़किरा ख्वास पृष्ठ 380 )

आपकी इबादत

आप अनगिनत नमाज़े रात और दिन पढ़ा करती थीं। आपने अपने पदरे बुज़ुर्गवार के साथ 10 हिजरी में आख़री हज फ़रमाया था।

फातेमा ज़हरा (स.अ) पैग़म्बरे इस्लाम (स अ . व . व . ) की नज़र में

फातेमा ज़हरा (स.अ) की फ़ज़ीलत और इनके मदारिज के सिलसिले में क़ुरान मजीद की आएतें और बेशुमार हदीसें मौजूद हैं इस वक़्त चन्द अहादीस और पैग़म्बरे इस्लाम के बाज़ तरज़े अमल पर इक़तेफ़ा करता हूं। आपका इरशाद है कि फातेमा जन्नत में जाने वाली औरतों की सरदार हैं। तमाम जहान की औरतों की सरदार हैं। आपकी रज़ा से अल्लाह राज़ी होता है जिसने आपको तकलीफ़ दी उसने रसूल (स.अ) को तकलीफ़ पहुंचाई। ख़ुदा ने आपकी बदौलत आपके मानने वालों को जहन्नम से छुड़वा दिया। आप फ़रमाते हैं कि मर्दों में बहुत लोग कामिल गुज़रे हैं लेकिन औरतों में सिर्फ़ चार औरतें कामिल गुज़री हैं। 1.मरयम , 2. आसीया 3. ख़दीजा 4. फातेमा और इन में सब से बड़ा दर्जा ए कमाल फातेमा को हासिल है। उलमा का बयान है कि हज़रत पैग़म्बरे इस्लाम (स अ व व ) आप से इन्तेहाई मोहब्बत रखते थे और कमाल इज़्ज़त भी करते थे। मोहब्बत के मुज़ाहिरों में से एक यह था कि जब किसी ग़ज़वे में तशरीफ़ ले जाते थे तो सब से आख़िर में फातेमा स. से रूख़सत होते थे और जब वापिस आते थे तो सब से पहले फातेमा ज़हरा स. को देखने तशरीफ़ ले जाते थे और इज़्ज़तो एहतिराम का मुज़ाहेरा यह था कि जब हज़रत फातेमा आती थीं तो आप ताज़ीम को खड़े हो जाते थे और अपनी जगह पर बिठाते थे।

(तिरमिज़ी जिल्द 2 पृष्ठ 249 मुद्रित मिस्र)

(मतालिब सऊल पृष्ठ 22 मुद्रित लखनऊ)

मुख़तलिफ़ कुतुब सहा में मौजूद है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने फ़रमाया , फातेमा मेरा जुज़ है जो उसे तकलीफ़ पहुंचाएगा वह मुझे तकलीफ़ पहुंचाएगा। मुवर्रेख़ीन और मुहद्देसीन का इत्तेफ़ाक़ है कि नुज़ूल आया ए ततहीर के बाद सरवरे दो आलम दरे फातेमा स पर 9 माह लगातार बवक़्ते नमाज़े सुबह जाकर आवाज़ दिया करते और फ़रते मसर्रत में फ़रमाया करते थे कि ख़ुदा ने तुम्हें हर तरह की गन्दगी से पाको पाकीज़ा किया है।

(ज़ाद उल उक़बा तरजुमा मुवद्दतुल क़ुरबा मुवद्दत 11 पृष्ठ 100 )

हज़रत फातेमा (स अ) रब्बुल इज़्ज़त की निगाह मे

मोहद्देसीन (हदीसों के ज्ञाता) का बयान है कि हज़रत फातेमा (स अ) को परवर दीगारे आलम अपनी कनीज़े ख़ास जानता था और उनकी बेहद इज़्ज़त करता था। देखा गया है कि हज़रत सैय्यदा नमाज़ में मशग़ूल होती थीं और फ़रिश्ते इनके बच्चों को झूला झुलाते थे और जब वह क़ुरआन पढ़ने बैठती थीं तो फ़रिश्ते उनकी चक्की पीसा करते थे। हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) ने झूला झुलाने वाले फ़रिश्ते का नाम जिब्राईल और चक्की पीसने वाले का नाम औक़ाबील बताया है।(मनाक़िब इब्ने शहरे आशोब , जिल्द 2 पृष्ठ 28, मुल्तान में छपी)

फातेमा (स अ) अहदे रिसालत (स अ व व ) मे

पैग़म्बरे इस्लाम (स अ व व ) की हयात में फातेमा (स अ) की क़दरो मंज़िलत , इज़्ज़त व तौक़ीर की कोई हद न थी। इन्सान तो दर किनार मलाएका का यह हाल था कि आसमानों में उतर ज़मीन पर आते और फातेमा (स अ) की ख़िदमत करते। कभी जन्नत के तबक़ लाये , कभी हसनैन (अ.स.) का झूला झुला कर फातेमा की मदद की। अगर उनके मुंह से ईद के मौक़े पर निकल गया कि बच्चों तुम्हारे कपड़े दरज़ी लायेगा तो जन्नत के ख़ज़ानची को दरज़ी बन कर आना पड़ा। हद है कि मलकुल मौत भी आपकी इजाज़त के बग़ैर घर में दाख़िल न हुये। अल्लामा अबदुल मोमिन हन्फ़ी लिखते हैं कि सरवरे कायनात (स अ व व ) के वक़्ते आख़िर फातेमा के ज़ानू पर सरे रिसालत माआब था , मलकुल मौत ने आवाज़ दी और घर में आने की इजाज़त चाही , फातेमा (स अ) ने इन्कार कर दिया , मलकुल मौत दरवाज़े पर रूक गये लेकिन मकान में दाख़िल होने की ज़िद करते रहे। फातेमा (स अ) के बराबर इन्कार पर मलकुल मौत ने कुछ आवाज़ बदल कर आवाज़ दी। फातेमा स रो पड़ीं , आपके आंसू रूख़सारे रिसालत पर गिरे। पैग़म्बर (स अ व व ) ने पूछा क्या बात है ? आप ने वाक़िया बताया। हुक्म हुआ ?! इजाज़त दो यो मलकुल मौत हैं।(अजायब अल क़स्स , पृष्ठ 282 )

फातेमा ज़हरा रसूले इस्लाम के बाद

28 सफ़र 11 हिजरी को रसूले इस्लाम का इन्तेक़ाल हुआ। आपके इन्तेक़ाल के बाद आपके घर वालों पर ज़ुल्म व अत्याचार के पहाड़ टूट पड़े और आप इतना दुखी हुईं कि अपनी कश्तीए हयात 75 दिन से अधिक न खेंच सकीं। आपके सर पर पट्टी बंधी रहा करती थी और रात दिन अपने बाबा को रोया करती थीं। आपके लिये सरवरे कायनात का सदमा ही क्या कम था के उस पर आफ़त यह कि दुनिया दारों ने रसूल (स अ व व ) के घर को ग़मों का अड्डा बना दिया। होना यह चाहिये था कि बाप के इन्तेक़ाल के बाद कफ़न दफ़न की मुसिबत से दुख दर्द मारी बेटी को बे नियाज़ कर दिया जाता और हुज़ूर की तदफ़ीन , तकफ़ीन को बहुत अच्छी तरह अंजाम दिया जाता , लेकिन अफ़सोस इसके विपरीत दुनिया वालों ने रसूले इस्लाम (स अ व व ) की मय्यत को यूं ही घर में छोड़ दिया और ख़ुदा और रसूल की मंशे के ख़िलाफ़ अपनी हुकूमत की बुनियाद क़ायम करने के लिये सक़ीफ़ा बनी साएदा चले गये। रसूले इस्लाम (स अ व व ) की मय्यत पड़ी रही , बिल आख़िर आले मोहम्मद (स अ व व ) और दीगर चन्द मानने वालों ने इस फ़रीज़े को अदा किया। यह वाक़ेया भुलाने के क़ाबिल नहीं जब की हज़रत अबू बक्र ख़लीफ़ा बन कर और हज़रत उमर ख़लीफ़ा बना कर वापस लौटे तो सरवरे कायनात (स अ व व ) की लाशे मुतहर सुपुर्दे ख़ाक की जा चुकी थी। इन हज़रात ने इस तरफ़ ध्यान न दिया और किसी ग़म व अफ़सोस का इज़हार न किया और सब से पहले जिस चीज़ की कोशिश शुरू की वह हज़रत अली अ 0 से बैअत लेने की थी। हज़रत अली (अ.स.) और कुछ महत्वपूर्ण एंव आदरणीय सहाबा जिन में कुल बनी हाशिम , ज़ुबैरस अतबआ बिन अबी लहब , ख़ालिद बिन सईद , मिक़दाद बिन उमर , सलमाने फ़ारसी , अबू ज़रे ग़फ़्फ़ारी , अम्मारे यासिर , बरा बिन आज़िब , इब्ने अबी क़अब , और अबू सुफ़ियान क़ाबिले ज़िक्र हैं।

(तारिख़े अबुल फ़िदा , जिल्द 1 पृष्ठ 375 )

यह लोग चूकिं ख़िलाफ़ते मन्सूसा के मुक़ाबले में सक़ीफ़ाई ख़िलाफ़त को तसलीम न करते थे लेहाज़ा लिहाज़ा जनाबे फातेमा (स.अ) के घर में गोशा नशीन हो गये। इस पर हज़रत उमर आग और लकड़ियां लेकर आये और कहा घर से निकलों वरना हम घर में आग लगा दें गे। यह सुन कर हज़रत फातेमा ज़हरा (स.अ) दरवाज़े के क़रीब आईं और फ़रमाया कि इस घर में रसूल (स.अ) के नवासे हसनैन भी मौजूद हैं। कहा होने होने दीजिये।

(तारिख़ तबरी , वल इमामत वल सियासत , जिल्द 1 पृष्ठ 12 )

इसके बाद बराबर शोर ग़ुल होता रहा और अली (अ.स) को घर से बाहर निकालने की बात होती रही। मगर अली (अ.स) न निकले , फातेमा (स.अ) के घर को आग लगा दी गई।( 1) जब शोले बलन्द होने लगे तो फातेमा (स.अ) दौड़ कर दरवाज़े के क़रीब आईं और फ़रमाया , अरे अभी मेरे बाप का कफ़न भी मैला न होने पाया कि यह तुम क्या कर रहे हो ? यह सुन कर फातेमा (स.अ) के उपर दरवाज़ा गिरा दिया गया जिसकी वजह से फातेमा (स.अ) के पेट पर चोट लगी और फातेमा (स.अ) के पेट में मोहसिन नाम का बच्चा शहीद हो गया।

(किताब अल मिलल वन्नहल शहरिस्तानी , मिस्र में छपी पृष्ठ 202 )

अल्लामा मुल्ला मूईन काशफ़ी लिखतें हैं कि फातेमा इसी ज़रबे उमर से रेहलत कर गईं।

(मुलाहेज़ा हो मआरिजुन नुबूवा , पैरा 4, भाग 3 पृष्ठ 42 )

इसके बाद यह लोग हज़रत फातेमा (स.अ) के घर में बेधड़क घुस आये और अली (अ.स) को गिरफ़तार कर के उनके गले में रस्सी बांधी इब्ने अबील हदीद , 3, और लेकर दरबारे खि़लाफ़त में पहुंचे , और कहा बैअत करो , वरना ख़ुदा की क़सम तुम्हारी गरदन मार देंगे। रौज़तुल अहबाब हज़रत अली (अ.स) ने कहा , तुम क्या कर रहे हो और कि़स क़ायदे और किस बुनियाद पर मुझ से बैअत ले रहे हो। यह कभी नहीं हो सकता। अल इमामत वल सियासत , जिल्द 1 पृष्ठ 13 बाज़ इतिहास कारों का बयान है कि उन लोंगो ने सैय्यदा के घर में घुस कर धमा चौकड़ी मचा दी बिल आखि़र इबने वाज़े के अनुसार ‘‘फ़ख़्रजत फ़ात्मतः फ़ाक़ालत वल्लाहुल तजज़ जिन औला कशफ़न शआरी वल अजजन इल्ललाह ’’ फातेमा बिन्ते रसूल (स.अ) सहने ख़ाना में निकल आईं और कहने लगीं ख़ुदा की क़सम घर से निकल जाओ वरना मैं अपने सर के बाल खोल दूंगी और ख़ुदा की बारगाह में सख़्त फ़रियाद करूगीं।

तारीख़ अल याक़ूबी जिल्द 2 पृष्ठ 116 एक रवायत में है कि जब हज़रत अली (अ.स) को गिरफ़तार कर के ले जाया जा रहा था तो हज़रत फातेमा बिन्ते रसूल (स.अ) ने फ़रियाद करते हुए कहा था कि अबुल हसन को छोड़ दो वरना अपने सर के बाल खोल दूंगी। तबरी कहते हैं कि इस कहने पर मस्जिदे नबवी की दीवार कद्दे आदम बुलन्द हो गई थी।( 2) इसके बाद हज़रत फातेमा को सूचना मिली के आपकी वह जायदाद जिसका नाम फ़दक़ था जो बहुक्मे ख़ुदा रसूल (स अ व व ) के हाथों आई थी और जिसकी आमदनी फ़क़ीरों , अनाथों पर हमेशा से ख़र्च होती आई जिसका महले वक़ू मदीना मुनव्वरा से शुमाल की तरफ़ सौ मील है पर ख़लीफ़ा ए वक़्त ने क़ब्ज़ा कर लिया है। मोअजि़्ज़म अलबदान सही बुख़ारी अल फ़ारूख़ जिल्द 2 पृष्ठ 288, यह मालूम कर के आप हद् दर्जा ग़ज़ब नाक हुईं बुख़ारी और यह मालूम कर के और ज़्यादा दुखी हुईं कि एक फ़रज़ी हदीस ग़सबे फि़दक के जवाज़ में गढ़ ली है। अल ग़रज़ आप ने दरबारे खि़लाफ़त में अपना मुतालबा पेश किया और इनकारे सुबह पर बतौरे सबूत हज़रत अली (अ.स) , हज़रत हमामे हसन (अ.स) , इमामे हुसैन (अ.स) , उम्मे ऐमन और रबाह को गवाही में पेश किया लेकिन सब की गवाहियां रद्द कर दी गईं और कहा गया अली शैहर हैं हसनैन बेटे हैं उम्मे ऐमन वग़ैरा कनीज़ व ग़ुलाम हैं , इनकी गवाही नहीं मानी जा सकती। किताब अल कशफ़ा , इन्सान अल उयून व सवाएक़ पृष्ठ 32, एक रवायत की बिना पर हज़रत अबू बकर ने हेबा का तस्दीक़ नामा लिख कर फातेमा (स.अ) को दे दिया था वह ले कर जाने ही वाली थीं कि अचानक हज़रत उमर आये , पूछा क्या है ? कहा तसदीक़े हेबा नामा , आप ने वह ख़त हाथ से ले कर चाक कर डाला और बा रवायत ज़मीन पर फेक कर उस पर थूक दिया और पांव से रगड़ डाला।(सीरते हलबिया पृष्ठ 185, और मुक़दमा ख़ारिज करा दिया , इनसान अल उयून जिल्द 3 पृष्ठ 400 सबा मिस्त्र) , इसी सिलसिले में आपका ख़ुतबा लम्मा ख़ास अहमियत रखता है। इसके थोड़े दिन बाद हज़रत अबू बक्र और हज़रत उमर , अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली (अ.स) की खि़दमत मे हाजि़र हुए और अजऱ् की कि हम ने फातेमा को नाराज़ किया है , हमारे साथ चलिए हम उन से माफ़ी मांग लें। हज़रत अली (अ.स) उनको हमराह ले कर आए और फ़रमाया ऐ फातेमा यह दोनों पहले आए थे और तुमने उन्हें अपने मकान में घुसने नहीं दिया अब मुझे ले कर आएं हैं इजाज़त दो कि दाखि़ले खाना हो जाऐं। हुक्मे अली (अ.स) से इजाज़त तो दे दी लेकिन जब यह दाखिले खाना हुए तो फातेमा ने दीवार की तरफ़ मुंह फेर लिया और सलाम का जवाब तक न दिया और फ़रमाया ख़ुदा की क़सम ता जि़न्दगी नमाज़ के बाद तुम दोनों पर बद दुआ करती रहूंगी। ग़रज़ की फातेमा ने माफ़ न किया और यह लोग मायूस वापिस हो गये। अल इमामत वल सियासत मुअल्लेफ़ा इब्ने अबी क़तीबा मतूफ़ी 276 हिजरी जिल्द 1 पृष्ठ 14 इमाम बुख़ारी कहते हैं कि फातेमा ने ता हयात उन लोगों से बात नहीं की और ग़ज़ब नाक ही दुनिया से उठ गईं।

1 रौज़ातुल अल मनाजि़र हासिया कामिल 11 पृष्ठ 113 32 व एहतिजाज तबरी

2 मुआक़ी अल अख़बार पृष्ठ 206 4, एतिजाज 1 पृष्ठ 112

आपकी अलालत

हम उपर बा हवाला अल्लामा शहर सतानी व अल्लामा मोईन काशफ़ी लिख कर आए हैं कि हज़रत उमर ने सैय्यदातुन निसां हज़रत फातेमा पर दरवाज़ा गिराया था और शिकमे मुबारक पर ज़र्ब लगाई थी जिसकी वजह से इस्तेक़ाते हमल हुआ था। और इसी सबब से आप बीमार हुईं और आखि़्र में मर गईं। अब आपकी खि़दमत में डिप्टी नज़ीर अहमद की तहरीर का एकतेबास पेश करते हैं। वह लिखते हैं , जो आदमी रसूल (स अ व व ) के मरने से सब से ज़्यादा प्रभावित हुआ वह फातेमा थीं। मां पहले ही मर चुकी थीं अब मां और बाप दोनो की जगह पैग़म्बर साहब ही थे और बाप भी कैसे दीन और दुनियां के बादशाह। ऐसे बाप का साया सर से उठना इस पर हज़रत अली (अ.स) का खि़लाफ़त से महरूम रहना तरके पदरी फि़दक का दावा करना और मुक़दमा हार जाना , इन्हीं दुखों में आप का इन्तेक़ाल हो गया। रोया ऐ सादक़ा फ़सल 14, आप इस क़द्र रोईं की अहले मोहल्ला एतेराज़ करने लगे , आखि़र में हज़रत अली ने रोने के लिये मदीने से बाहर बैतुल हुज़्न बनवाया था।

(अनवारूल हुसैनिया सफ़ा 24 प्रकाशित बम्बई)

हालात से प्रभावित हो कर हज़रत सैय्यदा ने अपने वालिद बुजुर्गवार का जो मरसिया कहा है उसका एक शेर यह है किः-

सुब्बत अलैया मसाएबुन लव अन्नहार

सुब्बत अलल अयामे सिरना लेया लिया

तरजुमाः- अब्बा जान आपके बाद मुझ पर ऐसी मुसीबतें पड़ीं कि अगर वह दिनों पर पड़तीं तो मिस्ल रात के तारीक हो जाते।

(नुरूल अबसार पृष्ठ 46, व मदारिज जिल्द 2 पृष्ठ 524 )

आपकी वसीयत

फातेमा ज़हरा (स.अ) ने अस्मा बिन्ते उमैस से फ़रमाया कि ऐ असमा मुझे मुसलमानों की औरतों की मैयित के ले जाने का तरीक़ा पसन्द नही है। यह तख़्ते पर लिटा कर कपड़ा डाल कर ले जाते हैं। अस्मा ने कहा , मैं हबशा में बहुत अच्छा ताबूत देख आईं हूं , फ़रमाया इसकी नक़ल बना दो। अली (अ.स) को बुलाया और वसीअत की। आपने कहा , मुझे खुद नहलाना , कफ़न पहनाना , मेरा जनाज़ा रात मे उठाना , जिन लोगों ने मुझे सताया है उनको मेरे जनाज़े में न शरीक होने देना। मेरे बाद शादी करना तो एक रात मेरे बच्चों के पास और एक रात अपनी बीवी के पास गुज़ारना।

शमशुल उलमा मिस्टर नज़ीर अहमद देहलवी लिखते हैं कि , फातेमा ने अबू बक्र वग़ैरा से बात करना छोड़ दी। मरते वक़्त वसीअत की कि मुझे रात के वक़्त दफ़न करना और यह लोग मेरे जनाज़े पर न आने पाऐं उम्मेहातुल उम्मत पृष्ठ 99, अल्लामा अब्दुरबर लिखते हैं कि फातेमा की वसीयत थी कि आयशा भी जनाज़े पर न आऐं।

(इस्तेआब जिल्द 2, सफ़ा 772, )

जनाबे सैय्यदा की हज़राते शेख़ैन से नाराज़गी के लिये मज़ीद मुलाहज़ा हों। तेस्पर अलक़ारी तरजुमा बुख़ारी जिल्द 12 पृष्ठ 18 -21 व पे 17 पृष्ठ 21, मुश्किलुल आसार तहावी जिल्द 1 पृष्ठ 48, तरजुमा सही मुस्लिम जिल्द 5 पृष्ठ 25, रौज़तुल अहबाब जिल्द 1 पृष्ठ 434, अज़ाला अलख़फ़ा जिल्द 2 पृष्ठ 57, बराहीने क़ाते तरजुमा सवाऐक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 21, अशअतुल मात जिल्द 3 पृष्ठ 480 अल ज़हरा- उमर अबू नसर उर्दू तरजुमा पृष्ठ 89- जमा उल फ़वाएद जिल्द 2 पृष्ठ 18 प्रकाशित मेरठ।

आपकी वफ़ात हसरते आयात

दुनिया ए इस्लाम के क़दीम मुवर्रेख़ीन इब्ने क़तीबा का बयान है कि हज़रत फातेमा हज़रते सरवरे कायनात (स अ व व ) की वफ़ात के बाद सिर्फ़ 75 दिन जि़न्दा रह कर मर गईं। अल इमामत वल सियासत जिल्द 1 पृष्ठ 14, अल्लामा बहाई का जामऐ अब्बासी पृष्ठ 79 में बयान है कि 100 दिन बाद इन्तेक़ाल हुआ। आपकी तारीख़े वफ़ात सोमवार दिन 3 जमादील सानी 11 हिजरी है।

(अनवाररूल हुसैनिया जिल्द 3 पृष्ठ 29 प्रकाशित नजफ़)

आपकी वफ़ात से सम्बन्धित हज़रत इब्ने अब्बास सहाबी रसूल का बयान है कि जब फातेमा ज़हरा के इन्तेक़ाल का समय आया तो न मासूमा को बुख़ार आया , और न दर्दे सर हुआ बल्कि इमामे हसन (अ.स) और इमामे हुसैन (अ.स) के हाथ पकड़े और दोनों को लेकर क़ब्रे रसूल (स अ व व ) पर गईं और क़ब्र और मिम्बर के बीच दो रकअत नमाज़ पढ़ी। फि़र दोनों को अपने सीने से लगाया और फ़रमाया ऐ मेरे बच्चों ! तुम दोनों एक घंटा अपने बाबा के पास बैठो , अमीरूल मोमिनीन इस वक़्त मस्जिद में नमाज़ पढ़ रहे थे , फिर वहां से घर आईं और आं हज़रत की चादर उठाई ग़ुस्ल कर के हज़रत का बचा हुआ कफ़न , या कपड़े पहने , बाद अज़ान ज़ोजा हज़रते जाफ़रे तैयार असमा को अवाज़ दी , असमा ने अजऱ् की बीबी हाजि़र होती हूं। जनाबे फातेमा ने फ़रमाया , असमा तुम मुझसे अलग न होना , मै एक घंटा इस हुजरे में लेटना चाहती हूं। जब एक घंटा गुज़र जाए और मैं बाहर न निकलूं तो मुझको तीन अवाज़े देना , अगर मैं जवाब दूं तो अन्दर चली आना , वरना समझ लेना कि मैं रसूले ख़ुदा (स अ व व ) से मुलहिक़ हो चुकी हूं। बाद अज़ां रसूले ख़ुदा (स अ व व ) की जगह पर खड़ी हुईं और दो रकअत नमाज़ पढ़ी फिर लेट गईं और अपना मुँह चादर से ढांप लिया। बाज़ उलमा का कहना है कि सैय्यदा ने सजदे मे ही वफ़ात पाई। अल ग़रज़ जब एक घंटा गुज़र गया तो असमा ने जनाबे सैय्यदा को अवाज़ दी। ऐ हसन (अ.स) और हुसैन (अ.स) की मां ! ऐ रसूले खुदा (स अ व व ) की बेटी ! मगर कुछ जवाब न मिला। तब असमा उस हुजरे में दाखि़ल हुईं , क्या देखती हैं कि वह मासूमा मर चुकी हैं , असमा ने अपना गरेबान फाड़ लिया और घर से बाहर निकल पड़ीं। हसन (अ.स) और हुसैन (अ.स) आ पहुंचे। पूछा असमा हमारी अम्मा कहां हैं ? अर्ज़ की हुजरे में हैं। शहज़ादे हुजरे मे पहुंचे तो देखा कि मादरे गिरामी मर चुकी हैं। शहज़ादे रोते पीटते मस्जिद पहुंचे। हज़रत अली (अ.स) को ख़बर दी , आप सदमे से बेहाल हो गये। फिर वहां से बहाले परेशान घर पहुंचे देखा कि असमा सरहाने बैठी रो रही हैं। आपने चेहरा ए अनवर खोला। सरहाने एक पर्चा मिला , जिसमें शहादतैन के बाद वसीयत पर अमल का हवाला था और ताक़ीद थी कि मुझे अपने हाथों से ग़ुस्ल देना , हनूत करना , कफ़न पहनाना , रात के वक़्त दफ़न करना और दुश्मनों को मेरे दफ़न की ख़बर न देना इसमें यह भी लिखा था कि मैं तुम्हें ख़ुदा के हवाले करती हूं और अपनी इन तमाम औलादों सादात को सलाम करती हूं जो क़यामत तक पैदा होगी।

जब रात हुई तो हज़रत अली (अ.स) ने ग़ुस्ल दिया , कफ़न पहनाया , नमाज़ पढ़ी , बेनाबर रवायत मशहूरा जन्नतुल बक़ी मे ले जा कर दफ़न कर दिया।

(ज़ाद अल क़बा तरजुमा मुवद्दतुल क़ुर्बा अली हमदानी शाफे़ई पृष्ठ 125 ता पृष्ठ 129 प्रकाशित लाहौर)

एक रवायत में है कि आपको मिम्बर और क़ब्रे रसूल (स अ व व ) के बीच में दफ़न किया गया।

(अनवारूल हुसैनिया जिल्द 3 पृष्ठ 39 )

मक़ातिल किताब में है कि ग़ुस्ल के वक़्त हज़रत अली (अ.स) पुश्त व बाज़ु ए फातेमा (स.अ) पर उमर के दुर्रे का निशान देखा था और चीख़ मार कर रोए थे। सही बुख़ारी और मुस्लिम मे है कि हज़रत अली (अ.स) ने फातेमा (स.अ) को रात के वक़्त दफ़न कर दिया। ‘‘वलम यूज़न बेहा अबा बक्र व सल्ली अलैहा ’’ अबू बकर वग़ैरा को शिरकते जनाज़ा की इजाज़त नहीं दी और दफ़न की भी ख़बर नहीं दी और नमाज़ ख़ुद पढ़ी। अल्लामा ऐनी शरह बुख़री लिखते हैं कि यह सब कुछ हज़रत अली (अ.स) ने जनाबे फातेमा (स.अ) की वसीअत के अनुसार किया था। सही बुख़ारी हिस्सा अल जिहाद में है कि हज़रत फातेमा (स.अ) हज़रत अबू बकर वग़ैरा से नाराज़ हो गईं और उनसे नाता तोड़ लिया और मरते दम तक बेज़ार रही। इमाम इब्ने कतीका का बयान है कि ख़ुलफ़ा को फातेमा की नाराज़गी की जानकारी थी , वह कोशिश करते रहे कि राज़ी हो जायें एक दफ़ा माफ़ी मांगने भी गये। ‘‘फासताज़ना अली फ़लम ताज़न ’’ और इज़ने हुज़ूरी चाहा , आपने मिलने से इन्कार कर दिया और इनके सलाम तक का जवाब न दिया और फ़रमाया ताजि़न्दगी तुम पर बद्दुआ करूगी और बाबा जान से तुम्हारी शिकायत करूगी।

(अल इमामत वस सियासत जिल्द 1 पृष्ठ 14 प्रकाशित मिस्र)

आपका जनाज़ा

ग़ुस्ल व कफ़न के बाद हज़रत अली (अ.स) अपनी औलाद और अपने रिश्तेदारों समेत जनाज़ा लेकर रवाना हुए। बेहारूल अनवार किताब अलफ़तन में है कि रास्ता देखने के लिए एक शमा साथ थी और हज़रत ज़ैनब जो काफ़ी कमसिन थी काले कपड़े पहने हुए थी इस साए में चल रही थीं जो शमा की वजह से ताबूत के नीचे ज़मीन पर पड़ रहा था। मुवद्दतुल क़ुर्बा पृष्ठ 129 में है कि हज़रत अली (अ.स) जब जन्नतुल बक़ी में पहुंचे तो एक तरफ़ से आवाज़ आई और खुदी खुदाई क़ब्र दिखाई दे गई। हज़रत अली (अ.स) ने उसी क़ब्र में हज़रत फातेमा (स.अ) की लाशे मुताहर दफ़न की और इस तरह ज़मीन बराबर कर दी कि निशाने क़ब्र मालूम न हो सके।

किताबे मुनतहल आमाल शेख़ अब्बास क़ुम्मी पृष्ठ 139 में है कि जब जनाबे सैय्यदा की लाश क़ब्र मे उतारी गई तो रसूले ख़ुदा (स अ व व ) के हाथों की तरह दो हाथ निकले और उन्होने जिसमे मुताहर जनाबे सैय्यदा को सम्भाल लिया। दलाएल उल इमामत में है कि चूकि क़ब्रे फातेमा (स.अ) के साथ बे अदबी का शक था इस लिए चालीस क़ब्रें बनाई गईं। मनाक़िब इब्ने शहर आशोब में है कि चालीस क़ब्रें इस लिए बनाई थी कि सही क़ब्र मालूम न हो सके और फातेमा (स.अ) को सताने वाला क़ब्र पर भी नमाज़ न पढ़ सके वरना सैय्यदा को तकलीफ़ होगी। इसके बावजूद लोगों ने क़ब्र खोद कर नमाज़ पढ़ ने की सई की जिसके रद्दे अमल में हज़रत अली (अ.स) नगीं तलवार ले कर पीले कपड़े पहन कर क़ब्र पर जा बैठे। इस वक़्त आप के मुंह से कफ़ निकल रहा था। यह देख कर लोगों की हिम्मते पस्त हो गईं और आगे न बढ़ सके। नासिख़ अल तवारीख़ वग़ैरा वफ़ात के वक़त जनाबे सैय्यदा ताहेरा (स.अ) की उम्र 18 साल की थी। इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेउन

नतीजा

वफ़ाते रसूल (स अ व व ) के बाद जनाबे सैय्यदा के साथ जो कुछ किया गया इस पर शमसुल उलमा डिप्टी नज़ीर अहमद एल.एल.डी. मोतरज्जिम क़ुरआने मजीद ने अपनी किताब ‘‘रोया ए सादेक़ा ’’ में निहायत मुफ़स्सिल और मुकम्मल तबसिरा फ़रमाया है जिसके आख़री जुमले यह हैं:-

सख़्त अफ़सोस है कि अहले बैते नबवी को पैग़म्बर साहब की वफ़ात के बाद ही ऐसे नामुलाएम इत्तेफ़ाक़ात पेश आए कि इनका वह अदब व लेहाज़ जो होना चाहिये था इसमें ज़ोफ़ आ गया और शुदा शुदा मुनजि़र हुआ। इस ना क़ाबिले बरदाश्त वाक़ेए करबला की तरफ़ जिसकी नज़ीर तारीख़ में नहीं मिलती। यह ऐसी नालायक़ हरकत मुसलमानों से हुई है कि अगर सच पूछो तो दुनिया व आख़ेरत में मुंह दिखाने के क़ाबिल न रहे।

चे खुश फ़रमूद शख़्से ईं लतीफ़ा कि कुश्ता शुद हुसैन अन्दर सक़ीफ़ा

हज़रत फातेमा (स.अ) के जनाज़े मे शिरकत करने वाले

अल्लामा हाफि़ज़ बिन अली शहर आशोब अल मतूफ़ी 588 हिजरी तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत फातेमा ज़हरा (स.अ) के जनाज़े में अमीरल मोमिनीन (अ.स) , इमामे हसन (अ.स) , इमामे हुसैन (अ.स) , अक़ील , सलमाने फ़ारसी , अबूज़र , मेक़दाद , अम्मार और बरीदा शरीक थे और उन्ही लोगों ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ी एक रवायत में अब्बास , फ़ज़ल , हुज़ैफ़ा और इब्ने मसूद का इज़ाफ़ा है। तबरी में इब्ने ज़ुबैर का भी तज़किरा है।

(उम्दतुल मतालिब तरजुमा मनाक़िब जिल्द 2 पृष्ठ 65 प्रकाशित मुल्तान)

हज़रत फातेमा (स.अ) का मदफ़न

जैसा कि उपर गुज़रा , हज़रत फातेमा (स.अ) के जाए दफ़न में अख़्तेलाफ़ है। कोई जन्नतुल बक़ी , कोई मिम्बरे रसूल (स अ व व ) के बीच में कोई क़ब्र और घर के बीच क़ब्र बताता है। मशहूर यही है कि जन्नतुल बक़ी में आप दफ़न हुई हैं लेकिन अहमद बिन मोहम्मद बिन अबी नसर ने अबुल हसन हज़रत इमाम रज़ा (अ.स) से रवायत की है , वह फ़रमाते हैं कि हज़रत फातेमा (स.अ) अपने घर मे मदफ़ून हैं। जब बनी उम्मया ने मस्जिद की तौसीफ़ की तो उनकी क़ब्र रौज़ा ए रसूल (स अ व व ) के अन्दर आ गई है।

(तरजुमा मनाक़िब इब्ने शहर आशोब जिल्द 2 पृष्ठ 69 )

हज़रत फातेमा (स.अ) की क़ब्र पर हज़रत अली (अ.स) का मरसिया

अल्लामा इब्ने शहर आशोब लिखते हैं कि हज़रत अली (अ.स) ने वफ़ाते सैय्यदा (स.अ) पर अत्याधिक दुख प्रकट किया और बे पनाह ग़मों अलम का अहसास किया। उन्हानें जो क़ब्र पर मरसिया पढ़ा वह यह है:-

लेकुले इजतेमा मन ख़लीलैन फ़रक़तह

वक़ल लज़ी दूने अल फि़राक़ क़लील

दो दोस्तों के हर इजतेमा का नतीजा जुदाई है और हर मुसीबत दिलबरों की जुदाई की मुसीबत से कम है।

वअन इफ़तेक़ादी फ़ातम बादे अहमद

वलैला अली अन लायदमू ख़लील

हज़रत रसूले करीम (स अ व व ) के तशरीफ़ ले जाने के बाद मेरी रफ़ीक़ा ए हयात फातेमा (स.अ) का दाग़े फि़राक़़ दे जाना इस अमर का सबूत है कि कोई दोस्त हमेशा नहीं रहेगा।

अल्लामा शेख़ अब्बास क़ुम्मी लिखते हैं कि हज़रत सैय्यदा को सुपुर्दे ख़ाक करने के बाद हज़रत अमीरल मोमिनीन (अ.स) क़ब्रे जनाबे सैय्यदा के पास बैठ गये और बे इन्तेहा रोए। ‘‘ पस अब्बासे उमूऐ आं हज़रत (स अ व व ) दस्तश गिरफ़त व अज़ सरे क़ब्र उरा बे बुर्द

यह देख कर चचा अब्बास बिन अब्दुल मुत्लिब ने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें क़ब्र के पास से उठाया और घर ले गये।

(मुन्तहल आमाल जिल्द 1 पृष्ठ 140 प्रकाशित नजफ़े अशरफ़)

आपके रोज़े का इन्हेदाम

आलिमों का बयान है कि एक अरसा गुज़रने के बाद आपकी क़ब्रे मुबारक पर रौज़े की तामीर हुई। मैं कहता हूं कि अब से लगभग 43 साल पहले इब्ने सउद व अमीरे सउदी अरबिया ने आपके रौज़े मुबारक को जज़बाए वहाबीयत से मुतासिर होकर तोड़ डाला। शैख़ अल ऐराक़ीन मोहम्मद रज़ा का बयान है कि इब्ने सउद ने मक्का में 9 और मदीना में 19 मुक़द्दस मुक़ामात को मुनहादिम तोड़ कराया था कि जिनमें ख़ाना ए सैय्यदा और बैतुल हुज़्न भी थे। मुलाहेज़ा हो।

(अनवारूल हुसैनिया जिल्द 1 पृष्ठ 54 प्रकाशित बम्बई 1346 हिजरी)

[[अलहम्दो लिल्लाह ये किताबः उम्मुल आइम्मा जनाबे फातेमा ज़हरा जो कि किताबः चौदह सितारे एक हिस्सा है , पूरी टाईप हो गई खुदा वंदे आलम से दुआगौ हुं कि हमारे इस अमल को कुबुल फरमाऐ और इमाम हुसैन फाउनडेशन को तरक्की इनायत फरमाए कि जिन्होने इस किताब को अपनी साइट (अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क) के लिऐ टाइप कराया। 19-02-2016]]


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